Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

भाइयो आजकल भारत चाइना सीमा विवाद काफी छाया


भाइयो आजकल भारत चाइना सीमा विवाद काफी छाया है मीडिया में तो में आप को इस विवाद की पुरी जानकारी देती हु की क्या और कैसे सुरु हुआ ये विवाद जाने पूरा मामला क्या है
बात सन 1913 की है जब भारत और चाइना गुलाम थे और दोनों देशो में अंग्रेजो का सासन था सन 1913 में अंग्रेजो के तत्कालीन विदेश सचिव हेनरी मैकमोहन ने भारत और चाइना को अलग करने के लिये एक नक्शे में एक लाइन खीच कर भारत चाइना को अलग कर दीया और तभी से आज तक उसी रेखा को मैकमोहन रेखा कहते है और इसी मैकमोहन रेखा को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत और चाइना की LOC कहते है हालाकी दोनों देश इस रेखा को नहीं मानते दरअसल भारत और चाइना की कोई निर्धारित LOC है ही नहीं इसी बजह से जिस की लाठी उस की भैस बाला हाल चल रहा है कभी हम किसी हिस्से पर अपना हक़ मानते है और कभी चाइना किसी हिस्से को अपना होने का दाबा करता है
लेकिन आज मोदी जी ने चाइना को स्पस्ट कह दीया की पहले बोर्डर पर घुसपैठ बंद करो फिर LOC का निर्धारण करेगे जैसे ही LOC का पता चल जाएगा ये घुसपैठ का विवाद अपने आप सुलझ जाएगा

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  • Vijay Singh Rathore's photo.
  • Sudhakar More सीमा विवाद का बना रहना वह भी दोनो देशो के वर्षो पहले आजाद होने के बाद भी यह खुद ही अपने आप मे विवाद का विषय बन गया है .
Posted in Sai conspiracy

Shirdi Sai Baba – भारत के इतिहास का सबसे बड़ा पाखंड


अल्लाह के खतनाधारी चाँद मुहम्मद क-साई बन्दो द्वारा भ्रमित-अज्ञानी हिन्दूओ का इस्लामीकरण | भ्रमित हिन्दूओ को मुसलमान बनाने के षडयन्त्र के मुख्य चरण ::
1) चाँद मुहम्मद क-साई ने साई सतचरित्र मे 10 से अधिक बार *अल्लाह मालिक* कहा जबकि क-साई बंदे कहते है कि क-साई ने *सबका मालिक एक* कहा |
2) अल्लाह के बंदे क-साई के नाम के साथ सनातनी देवताओ का नाम जोड़ कर जैसे साई-राम , साई-माँ ,साई-कृष्ण ,शिव-साई-कृष्ण ,शिव-साई-राम , वैदिक सनातन धर्म को दूषित कर रहे है |
3) जागरण , नवदुर्गा ,गणेश उत्सव ,रामलीला जैसे पवित्र धार्मिक उत्सव मे क-साई की मूर्ति सनातनी देवताओ के साथ लगाना और क-साई पालकी निकालना |
4) पवित्र नवरात्रि जागरण और रामलीला के आधार पर, साई संध्या , साईलीला, साई जागरण और श्रद्धा-सबूरी जैसे कार्यक्रम करके |
5) साई संध्या और श्रद्धा-सबूरी कार्यक्रम मे मुस्लिम सूफियो को बुला करके सभी हिन्दूओ से क-साई बाबा के सच्चा भक्त होने की कसम देकर हाथ ऊपर उठा करके *अल्लाह-अल्लाह* गवाते है |
6) साई संध्या और श्रद्धा-सबूरी के अंतर्गत अब मुस्लिम शब्द नाम से कार्यक्रम करना जैसे *हुकुम-ए-साई * और *साई-द-सजदा* |
यदि इसीप्रकार छल और लालच के माध्यम से हिन्दूओ का इस्लामीकरण होता रहा तो वह दिन दूर नहीं होगा जब ईद मे आपके बच्चे बकरे को हलाल करते दृष्टिगोचर होंगे और अल्लाह-अल्लाह चिल्लाएँगे |
जय सियाराम
धर्मो रक्षति रक्षितः
धर्म की जय हो अधर्म का नाश हो |

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चीन था हिन्दू राष्ट्र


चीन था हिन्दू राष्ट्र, जानिए कैसे और कबWDवैसे तो संपूर्णजम्बूद्वीपपरहिन्दू साम्राज्यस्थापित था। जम्बूद्वीप के 9 देश थे उसमें से 3 थे- हरिवर्ष, भद्राश्व और किंपुरुष। उक्त तीनों देशों को मिलाकर आज इस स्थान कोचीनकहा जाता है। चीन प्राचीनकाल में हिन्दू राष्ट्रथा। 1934 में हुई एक खुदाई में चीन के समुद्र के किनारे बसे एक प्राचीन शहर च्वानजो 1000 वर्ष सेभी ज्यादा प्राचीन हिन्दू मंदिरों के लगभग एक दर्जन से अधिक खंडहर मिले हैं। यह क्षेत्र प्राचीन काल में हरिवर्ष कहलाता था, जैसेभारतकोभारतवर्ष कहा जाता है।तिब्बत के मंदिरों में विराजित हैं श्रीगणेशवैसे वर्तमान में चीन में कोई हिन्दू मंदिर तो नहीं हैं, लेकिन एक हजार वर्ष पहले सुंग राजवंश के दौरान दक्षिण चीन के फूच्यान प्रांत में इस तरह के मंदिर थे लेकिन अब सिर्फ खंडहर बचे हैं।भारतीय प्रदेश अरुणाचल के रास्ते लोग चीन जाते थे और वहीं से आते थे। दूसरा आसान रास्ता था बर्मा। हालांकि लेह, लद्दाख, सिक्किम से भी लोग चीन आया-जाया करते थे, लेकिन तब तिब्बत को पार करना होता था। तिब्बत को प्राचीनकाल में त्रिविष्टप कहा जाता था। यह देवलोक और गंधर्वलोकका हिस्सा था।
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चीन था हिन्दू राष्ट्र, जानिए कैसे और कबWDवैसे तो संपूर्णजम्बूद्वीपपरहिन्दू साम्राज्यस्थापित था। जम्बूद्वीप के 9 देश थे उसमें से 3 थे- हरिवर्ष, भद्राश्व और किंपुरुष। उक्त तीनों देशों को मिलाकर आज इस स्थान कोचीनकहा जाता है। चीन प्राचीनकाल में हिन्दू राष्ट्रथा। 1934 में हुई एक खुदाई में चीन के समुद्र के किनारे बसे एक प्राचीन शहर च्वानजो 1000 वर्ष सेभी ज्यादा प्राचीन हिन्दू मंदिरों के लगभग एक दर्जन से अधिक खंडहर मिले हैं। यह क्षेत्र प्राचीन काल में हरिवर्ष कहलाता था, जैसेभारतकोभारतवर्ष कहा जाता है।तिब्बत के मंदिरों में विराजित हैं श्रीगणेशवैसे वर्तमान में चीन में कोई हिन्दू मंदिर तो नहीं हैं, लेकिन एक हजार वर्ष पहले सुंग राजवंश के दौरान दक्षिण चीन के फूच्यान प्रांत में इस तरह के मंदिर थे लेकिन अब सिर्फ खंडहर बचे हैं।भारतीय प्रदेश अरुणाचल के रास्ते लोग चीन जाते थे और वहीं से आते थे। दूसरा आसान रास्ता था बर्मा। हालांकि लेह, लद्दाख, सिक्किम से भी लोग चीन आया-जाया करते थे, लेकिन तब तिब्बत को पार करना होता था। तिब्बत को प्राचीनकाल में त्रिविष्टप कहा जाता था। यह देवलोक और गंधर्वलोकका हिस्सा था।
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  • कौशल किशोर त्रिपाठी चीन के प्राचीन राजा भगवान श्री कृष्ण के बुआ के बेटे शिशुपाल थे जिनके सहस्त्र हाथ थे और उनका वध श्री कृष्ण ने किया था तब इसे चैनि देश के नाम से जाना जाता था।
Posted in भारत गौरव - Mera Bharat Mahan

गर्व करो की हम हिन्दू है


गर्व करो की हम हिन्दू है !
1)अलबर्ट आइन्स्टीन – हम भारत के बहुत ऋणी हैं,जिसने हमे गिनती सिखाई,जिसके बिना कोई भी सार्थक वैज्ञानिक खोज संभव नहीं हो पाती.
२)रोमां रोलां (फ्रांस) – मानव ने आदिकाल से जो सपने देखने शुरू किये ,उनके साकार होने का इस धरती पर कोई स्थान है ,तो वो है भारत.
३)हू शिह (अमेरिका में चीन राजदूत)- सीमा पर एक भी सैनिक न भेजते हुए भारत ने बीस सदियों तक सांस्कृतिक धरातल पर चीन को जीता और उसे प्रभावित भी किया.
4)मैक्स मुलर- यदि मुझसे कोई पूछे की किस आकाश के तले मानव मन अपने अनमोल उपहारों समेत पूर्णतया विकसित हुआ है, जहा जीवन की जटिल समस्याओं का गहन विश्लेषण हुआ और समाधान भी प्रस्तुत किया गया, जो उसके भी प्रशंशा का पात्र हुआ जिन्होंने प्लेटो और कांट का अध्ययन किया ,तो मैं भारत का नाम लूँगा.
5)मार्क ट्वेन- मनुष्य के इतिहास में जो भी मूल्यवान और सृजनशील सामग्री है,उसका भंडार अकेले भारत में है.
6)आर्थर शोपेन्हावर – विश्व भर में ऐसा कोई अध्ययन नहीं है जो उपनिषदों जितना उपकारी और उदात्त हो. यही मेरे जीवन को शांति देता रहा है ,और वाही मृत्यु में भी शांति देगा.
7)हेनरी डेविड थोरो – प्रातः काल मैं अपनी बुद्धिमत्ता को अपूर्व और ब्रह्माण्डव्यापी गीता के तत्वज्ञान से स्नान करता हू ,जिसकी तुलना में हमारा आधुनिक विश्व और उसका साहित्य अत्यंत क्षुद्र और तुच्छ जन पड़ता है.
8)राल्फ वाल्डो इमर्सन – मैं भगवत गीता का का अत्यंत ऋणी हू .यह पहला ग्रन्थ है जिसे पढ़कर मुझे लगा की किसी विराट शक्ति से हमारा संवाद हो रहा है .
9)विल्हन वोन हम्बोल्ट- गीता एक अत्यंत सुन्दर और संभवतः एकमात्र सच्चा दार्शनिक ग्रन्थ है जो किसी अन्य भाषा में नहीं .वह एक ऐसी गहन और उन्नतवस्तु है जैस पर सारी दुनिया गर्व कर सकती है.
10)एनी बेसेंट -विश्व के विभिन्न धर्मों का लगभग ४० वर्ष अध्ययन करने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंची हूँ की हिंदुत्व जैसा परिपूर्ण,वैज्ञानिक,दार्शनिक,और अध्यात्मिक धर्म और कोई नहीं.
इसमें कोई भूल न करे की बिना हिंदुत्व के भारत का कोई भविष्य नहीं है.हिंदुत्व ऐसी भूमि है जिसमे भारत की जड़े गहरे तक पहुंची है ,उन्हें यदि उखाड़ा गया तो यह महावृक्ष निश्चय ही अपनी भूमि से उखड जायेगा. हिन्दू ही यदि हिंदुत्व की रक्षा नही करेंगे ,तो कौन करेगा? अगर भारत के सपूत हिंदुत्व में विश्वास नहीं करेंगे तो कौन उनकी रक्षा करेगा? भारत ही भारत की रक्षा करेगा. भारत और हिंदुत्व एक ही है

गर्व करो की हम हिन्दू है !
1)अलबर्ट आइन्स्टीन - हम भारत के बहुत ऋणी हैं,जिसने हमे गिनती सिखाई,जिसके बिना कोई भी सार्थक वैज्ञानिक खोज संभव नहीं हो पाती.
२)रोमां रोलां (फ्रांस) - मानव ने आदिकाल से जो सपने देखने शुरू किये ,उनके साकार होने का इस धरती पर कोई स्थान है ,तो वो है भारत.
३)हू शिह (अमेरिका में चीन राजदूत)- सीमा पर एक भी सैनिक न भेजते हुए भारत ने बीस सदियों तक सांस्कृतिक धरातल पर चीन को जीता और उसे प्रभावित भी किया.
4)मैक्स मुलर- यदि मुझसे कोई पूछे की किस आकाश के तले मानव मन अपने अनमोल उपहारों समेत पूर्णतया विकसित हुआ है, जहा जीवन की जटिल समस्याओं का गहन विश्लेषण हुआ और समाधान भी प्रस्तुत किया गया, जो उसके भी प्रशंशा का पात्र हुआ जिन्होंने प्लेटो और कांट का अध्ययन किया ,तो मैं भारत का नाम लूँगा.
5)मार्क ट्वेन- मनुष्य के इतिहास में जो भी मूल्यवान और सृजनशील सामग्री है,उसका भंडार अकेले भारत में है.
6)आर्थर शोपेन्हावर - विश्व भर में ऐसा कोई अध्ययन नहीं है जो उपनिषदों जितना उपकारी और उदात्त हो. यही मेरे जीवन को शांति देता रहा है ,और वाही मृत्यु में भी शांति देगा.
7)हेनरी डेविड थोरो - प्रातः काल मैं अपनी बुद्धिमत्ता को अपूर्व और ब्रह्माण्डव्यापी गीता के तत्वज्ञान से स्नान करता हू ,जिसकी तुलना में हमारा आधुनिक विश्व और उसका साहित्य अत्यंत क्षुद्र और तुच्छ जन पड़ता है.
8)राल्फ वाल्डो इमर्सन - मैं भगवत गीता का का अत्यंत ऋणी हू .यह पहला ग्रन्थ है जिसे पढ़कर मुझे लगा की किसी विराट शक्ति से हमारा संवाद हो रहा है .
9)विल्हन वोन हम्बोल्ट- गीता एक अत्यंत सुन्दर और संभवतः एकमात्र सच्चा दार्शनिक ग्रन्थ है जो किसी अन्य भाषा में नहीं .वह एक ऐसी गहन और उन्नतवस्तु है जैस पर सारी दुनिया गर्व कर सकती है.
10)एनी बेसेंट -विश्व के विभिन्न धर्मों का लगभग ४० वर्ष अध्ययन करने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंची हूँ की हिंदुत्व जैसा परिपूर्ण,वैज्ञानिक,दार्शनिक,और अध्यात्मिक धर्म और कोई नहीं.
इसमें कोई भूल न करे की बिना हिंदुत्व के भारत का कोई भविष्य नहीं है.हिंदुत्व ऐसी भूमि है जिसमे भारत की जड़े गहरे तक पहुंची है ,उन्हें यदि उखाड़ा गया तो यह महावृक्ष निश्चय ही अपनी भूमि से उखड जायेगा. हिन्दू ही यदि हिंदुत्व की रक्षा नही करेंगे ,तो कौन करेगा? अगर भारत के सपूत हिंदुत्व में विश्वास नहीं करेंगे तो कौन उनकी रक्षा करेगा? भारत ही भारत की रक्षा करेगा. भारत और हिंदुत्व एक ही है
Posted in ज्योतिष - Astrology

हिंदू परंपरा में मृतक का दाह संस्कार


***** “हिंदू-धर्म” में कर्म-कांडों का वैज्ञानिक आधार *****

हिंदू परंपरा में मृतक का दाह संस्कार करते समय उसके मुख पर चंदन रख कर जलाने की परंपरा है। यह परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। इस परंपरा के पीछे सिर्फ धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक कारण भी निहित है। चंदन की लकड़ी अत्यंत शीतल मानी जाती है। उसकी ठंडक के कारण लोग चंदन को घिसकर मस्तक पर तिलक लगाते हैं, जिससे मस्तिष्क को ठंडक मिलती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार मृतक के मुख पर चंदन की लकड़ी रख कर दाह संस्कार करने से उसकी आत्मा को शांति मिलती है तथा मृतक को स्वर्ग में भी चंदन की शीतलता प्राप्त होती है। इसका वैज्ञानिक कारण अगर देखा जाए तो मृतक का दाह संस्कार करते समय मांस और हड्डियों के जलने से अत्यंत तीव्र दुर्गंध फैलती है। उसके साथ चंदन की लकड़ी के जलने से दुर्गंध पूरी तरह समाप्त तो नहीं होती लेकिन कुछ कम जरुर हो जाती है।

हिंदू धर्म के 16 संस्कारों में से एक अंतिम संस्कार के समय मृत व्यक्ति की अस्थियों का संचय किया जाता है। इन अस्थियों को पूरे दस दिन सुरक्षित रख ग्यारहवें दिन से इनका श्राद्ध व तर्पण किया जाता है। आखिर किसी की अस्थियों का संचय क्यों किया जाता है? हड्डियों में ऐसी कौन सी विशेष बात होती है जो शरीर के सारे अंग और हिस्से छोड़कर उनका ही संचय किया जाता है? वास्तव में अस्थि संचय का जितना धार्मिक महत्व है उतना ही वैज्ञानिक भी। हिंदू धर्म में मान्यता है कि मृत्यु के बाद भी व्यक्ति की सूक्ष्म आत्मा उसी स्थान पर रहती है जहां उस व्यक्ति की मृत्यु हुई। आत्मा पूरे तेरह दिन अपने घर में ही रहती है। उसी की तृप्ति और मुक्ति के लिए तेरह दिन तक श्राद्ध और भोज आदि कार्यक्रम किए जाते हैं। अस्थियों का संख्य प्रतीकात्मक रूप माना गया है। जो व्यक्ति मरा है उसके दैहिक प्रमाण के तौर पर अस्थियों संचय किया जाता है। अंतिम संस्कार के बाद देह के अंगों में केवल हड्डियों के अवशेष ही बचते हैं। जो लगभग जल चुके होते हैं। इन्हीं को अस्थियां कहते हैं। इन अस्थियों में ही व्यक्ति की आत्मा का वास भी माना जाता है। जलाने के बाद ही चिता से अस्थियां इसलिए ली जाती हैं क्योंकि मृत शरीर में कई तरह के रोगाणु पैदा हो जाते हैं। जिनसे बीमारियों की आशंका होती है। जलने के बाद शरीर के ये सारे जीवाणु और रोगाणु खत्म हो जाते हैं और बची हुई हड्डियां भी जीवाणु मुक्त होती हैं। इनको छूने या इन्हें घर लाने से किसी प्रकार की हानि का डर नहीं होता है। इन अस्थियों को श्राद्ध कर्म आदि क्रियाओं बाद किसी नदी में विसर्जित कर दिया जाता है।

आप सब से नम्र निवेदन है की “हिंदुत्व- विज्ञान” के अखंड और अनंत समुद्र की इन कुछ बूंदों को शेयर द्वारा अपने अन्य मित्रों तक भी गर्व से पहुचायें … _/|\_

!!!…जय हिंदुत्व…जय हिन्द …वन्देमातरम…!!!

***** "हिंदू-धर्म" में कर्म-कांडों का वैज्ञानिक आधार *****

हिंदू परंपरा में मृतक का दाह संस्कार करते समय उसके मुख पर चंदन रख कर जलाने की परंपरा है। यह परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। इस परंपरा के पीछे सिर्फ धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक कारण भी निहित है। चंदन की लकड़ी अत्यंत शीतल मानी जाती है। उसकी ठंडक के कारण लोग चंदन को घिसकर मस्तक पर तिलक लगाते हैं, जिससे मस्तिष्क को ठंडक मिलती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार मृतक के मुख पर चंदन की लकड़ी रख कर दाह संस्कार करने से उसकी आत्मा को शांति मिलती है तथा मृतक को स्वर्ग में भी चंदन की शीतलता प्राप्त होती है। इसका वैज्ञानिक कारण अगर देखा जाए तो मृतक का दाह संस्कार करते समय मांस और हड्डियों के जलने से अत्यंत तीव्र दुर्गंध फैलती है। उसके साथ चंदन की लकड़ी के जलने से दुर्गंध पूरी तरह समाप्त तो नहीं होती लेकिन कुछ कम जरुर हो जाती है।

हिंदू धर्म के 16 संस्कारों में से एक अंतिम संस्कार के समय मृत व्यक्ति की अस्थियों का संचय किया जाता है। इन अस्थियों को पूरे दस दिन सुरक्षित रख ग्यारहवें दिन से इनका श्राद्ध व तर्पण किया जाता है। आखिर किसी की अस्थियों का संचय क्यों किया जाता है? हड्डियों में ऐसी कौन सी विशेष बात होती है जो शरीर के सारे अंग और हिस्से छोड़कर उनका ही संचय किया जाता है? वास्तव में अस्थि संचय का जितना धार्मिक महत्व है उतना ही वैज्ञानिक भी। हिंदू धर्म में मान्यता है कि मृत्यु के बाद भी व्यक्ति की सूक्ष्म आत्मा उसी स्थान पर रहती है जहां उस व्यक्ति की मृत्यु हुई। आत्मा पूरे तेरह दिन अपने घर में ही रहती है। उसी की तृप्ति और मुक्ति के लिए तेरह दिन तक श्राद्ध और भोज आदि कार्यक्रम किए जाते हैं। अस्थियों का संख्य प्रतीकात्मक रूप माना गया है। जो व्यक्ति मरा है उसके दैहिक प्रमाण के तौर पर अस्थियों संचय किया जाता है। अंतिम संस्कार के बाद देह के अंगों में केवल हड्डियों के अवशेष ही बचते हैं। जो लगभग जल चुके होते हैं। इन्हीं को अस्थियां कहते हैं। इन अस्थियों में ही व्यक्ति की आत्मा का वास भी माना जाता है। जलाने के बाद ही चिता से अस्थियां इसलिए ली जाती हैं क्योंकि मृत शरीर में कई तरह के रोगाणु पैदा हो जाते हैं। जिनसे बीमारियों की आशंका होती है। जलने के बाद शरीर के ये सारे जीवाणु और रोगाणु खत्म हो जाते हैं और बची हुई हड्डियां भी जीवाणु मुक्त होती हैं। इनको छूने या इन्हें घर लाने से किसी प्रकार की हानि का डर नहीं होता है। इन अस्थियों को श्राद्ध कर्म आदि क्रियाओं बाद किसी नदी में विसर्जित कर दिया जाता है।

आप सब से नम्र निवेदन है की "हिंदुत्व- विज्ञान" के अखंड और अनंत समुद्र की इन कुछ बूंदों को शेयर द्वारा अपने अन्य मित्रों तक भी गर्व से पहुचायें ... _/|\_

!!!...जय हिंदुत्व...जय हिन्द ...वन्देमातरम...!!!
Posted in PM Narendra Modi

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने 63वें जन्मदिन के मौके पर मां से मिलने अहमदाबाद पहुंचे और उनसे आशीर्वाद लिया। पीएम मोदी की मां ने उनको तोहफे के रूप में जम्मू-कश्मीर में बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए 5 हजार रुपए प्रधानमंत्री राहत कोष के लिए दिए।


PM MODI’S MOTHER GAVE Rs. 5,000/- to SONS RELIEF FUND FOR KASHMIRI FLOODS .. !!!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने 63वें जन्मदिन के मौके पर मां से मिलने अहमदाबाद पहुंचे और उनसे आशीर्वाद लिया। पीएम मोदी की मां ने उनको तोहफे के रूप में जम्मू-कश्मीर में बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए 5 हजार रुपए प्रधानमंत्री राहत कोष के लिए दिए।

इसके लिए पीएम मोदी ने अपनी मां का धन्यवाद किया और उनके पैर भी छुए। वहीं गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने पीएम मोदी को फोन पर जन्मदिन की बधाई दी। ट्विटर पर भी पीएम मोदी को नेता जन्मदिन के बधाई संदेश भेज रहे हैं।

Posted in Love Jihad

सलमान खान भाई जान हो सकता हे पर हमारे बजरंग बली को भाई जान कहने वालो का मुह तोड़ देंगेहम..!


 

सलमान खान भाई जान हो सकता हे पर हमारे बजरंग बली को भाई जान कहने वालो का मुह तोड़ देंगेहम..!

शब्दों की अय्याशी के लिए क्या हिन्दू देवता ही नजर आते हे तुमको फ़िल्मी लोगो

सलमान खान हो सकता हे तुम इस शब्दों की बाजीगिरी से अनजान हो ,पर आज हम तुम्हारी भी जानकारी में ला दे कि तुम्हारी इस नई फिल्म का नाम सवा करोड़ हिन्दुओ के मुह पर थप्पड़ की तरह हे ।

यह फिल्म लव जिहाद का छुपा एजेंडा हे ,हमे इस पर घोर आपत्ति हे ।

शाहरुख़ और आमिर खान तो हे ही पाकिस्तानी पर तुम हिन्दू माँ की संतान हो इसलिए तुमसे यह उम्मीद नही थी की तुम लव जिहाद के इस छुपे एजेंडे की फिल्म में काम करो

मित्रो कमेन्ट करो …!
इस फिल्म का विरोध करो…!
इसे हर हाल में रिलीज होने से रोको…!

इस पोस्ट को इतनी शेयर करो की निर्माता को इस फिल्म का नाम बदलना पड़े ..माफ़ी मांगनी पड़े ।

अब सुनो …..
हिन्दू जन जागरण का यह मिशन पुरे हिंदुस्तान में अलख जगाने का काम कर रहा हे..फेसबुक पर इसके पेज का नाम pranay vijay हे ।

यदि आपको हिंदुत्व में विश्वास हे और आप उसके लिए कुछ भी योगदान करना चाहते हे तो इस मिशन पेज pranay vijay को जरुर लाइक कीजिये ।

इस इंकलाबी पेज से आपको रोजाना क्रन्तिकारी पोस्ट भेजी जाएगी जो आपने न पहले कभी देखि होगी और न ही देखोगे।

जुड़ने के लिए मेरी फोटो को क्लिक करो जिससे यह पेज खुलेगा फिर लाइक के ऑप्शन को क्लिक कीजिये बस !
फिर मिलेगे !!
वन्देमातरम

Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

महाराणा प्रताप के बेटे अमर सिंह ने युद्ध में मुगल सेनापति अब्दुल रहीम खां को परास्त कर दिया।


महाराणा प्रताप के बेटे अमर सिंह ने युद्ध में मुगल सेनापति अब्दुल रहीम खां को परास्त कर दिया।

फिर उन्होंने मुगल सरदारों के साथ ही मुगलों के हरम को भी कब्जे में ले लिया।

महाराणा प्रताप को जब यह समाचार मिला तो वह रुग्णावस्था में ही युद्ध क्षेत्र में जाकर अमर सिंह पर गरज पड़े, ‘ऐसा नीच काम करने से पहले तू मर क्यों नहीं गया! हमारी भारतीय संस्कृति को कलंकित करते तुझे लाज न आई?

अमर सिंह पिता के सामने लज्जित खड़े रहे।
महाराणा प्रताप ने तत्काल मुगल हरम में पहुंचकर बड़ी बेगम को प्रणाम करते हुए कहा,’बड़ी साहिबा, जो सिर शहंशाह अकबर के सामने नहीं झुका, वह आपके सामने झुकाता हूं।

मेरे बेटे से जो अपराध हुआ, उसे क्षमा करें। हमारे लिए स्त्री पूजनीय है, आप लोगों को बंदी बनाकर उसने हमारी संस्कृति का अपमान किया है।’

उधर शहंशाह अकबर ने जब मुगल हरम की चिंता करते हुए सेनापति अब्दुल रहीम खां को फटकारा तो उसने बादशाह को आश्वस्त करते हुए कहा, ‘बेगम वहां उसी तरह महफूज हैं, जिस तरह शाही महल में रहती हैं।’ इस पर अकबर ने कहा, ‘पर महाराणा प्रताप से हमारी जंग चल रही है।

‘ इस पर सेनापति बोले,’ बादशाह सलामत, महाराणा प्रताप हिंदुस्तानी संस्कृति के रक्षक हैं, वह बेगम को कुछ न होने देंगे।’

शहंशाह अकबर शांत तो हुए मगर उनकी फिक्र कम न हुई। जब दूसरे दिन राजपूत सैनिकों की कड़ी सुरक्षा में राजकीय सम्मान के साथ शाही बेगमों की पालकी आगरा के किले में पहुंची तो बादशाह अकबर ने कहा, ‘महाराणा प्रताप जैसा राजा इतिहास में कम ही पैदा होता है।

गर्व है…..

वे हिंदुस्तानी तहजीब के भी सच्चे रखवाले हैं।……

लेकिन

सार यूँ है की,हमारे धर्म का पालन करते हुए हमने अपने ही विनाश को आकार दिया है….
काश
उस वक्त कृष्ण निति अपनाई होती तो

सूअर जैसी कौम आज उसकी वास्तविक जगह पर ही होती

Posted in ज्योतिष - Astrology

श्राद्धविधि


अभिश्रवण एवं रक्षक मंत्र…

श्राद्धविधि में मंत्रों का बड़ा महत्व है। श्राद्ध में आपके द्वारा दी गई वस्तुएँ कितनी भी मूल्यवान क्यों न हों, लेकिन आपके द्वारा यदि मंत्रों का उच्चारण ठीक न हो तो कार्य अस्त-व्यस्त हो जाता है। मंत्रोच्चारण शुद्ध होना चाहिए और जिनके निमित्त श्राद्ध करते हों उनके नाम का उच्चारण शुद्ध करना चाहिए।

श्राद्ध में ब्राह्मणों को भोजन कराते समय ‘रक्षक मंत्र’ का पाठ करके भूमि पर तिल बिखेर दें तथा अपने पितृरूप में उन द्विजश्रेष्ठों का ही चिंतन करें। ‘रक्षक मंत्र’ इस प्रकार हैः

यज्ञेश्वरो यज्ञसमस्तनेता भोक्ताऽव्ययात्मा हरिरीश्वरोऽस्तु ।
तत्संनिधानादपयान्तु सद्यो रक्षांस्यशेषाण्यसुराश्च सर्वे ।।

‘यहाँ संपूर्ण हव्य-फल के भोक्ता यज्ञेश्वर भगवान श्रीहरि विराजमान हैं। अतः उनकी सन्निधि के कारण समस्त राक्षस और असुरगण यहाँ से तुरन्त भाग जाएँ।’

(वराह पुराणः 14.32)

ब्राह्मणों को भोजन के समय यह भावना करें किः
‘इन ब्राह्मणों के शरीरों में स्थित मेरे पिता, पितामह और प्रपितामह आदि आज भोजन से तृप्त हो जाएँ।’

जैसे, यहाँ के भेजे हुए रुपये लंदन में पाउण्ड, अमेरिका में डालर एवं जापान में येन बन जाते हैं ऐसे ही पितरों के प्रति किये गये श्राद्ध का अन्न, श्राद्धकर्म का फल हमारे पितर जहाँ हैं, जैसे हैं, उनके अनुरूप उनको मिल जाता है। किन्तु इसमें जिनके लिए श्राद्ध किया जा रहा हो, उनके नाम, उनके पिता के नाम एवं गोत्र के नाम का स्पष्ट उच्चारण होना चाहिए। विष्णु पुराण में आता हैः

श्रद्धासमन्वितैर्दत्तं पितृभ्यो नामगोत्रतः।
यदाहारास्तु ते जातास्तदाहारत्वमेति तत्।।

‘श्रद्धायुक्त व्यक्तियों द्वारा नाम और गोत्र का उच्चारण करके दिया हुआ अन्न पितृगण को वे जैसे आहार के योग्य होते हैं वैसा ही होकर उन्हें मिलता है’।

(विष्णु पुराणः 3.16.16)

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अभिश्रवण एवं रक्षक मंत्र...

श्राद्धविधि में मंत्रों का बड़ा महत्व है। श्राद्ध में आपके द्वारा दी गई वस्तुएँ कितनी भी मूल्यवान क्यों न हों, लेकिन आपके द्वारा यदि मंत्रों का उच्चारण ठीक न हो तो कार्य अस्त-व्यस्त हो जाता है। मंत्रोच्चारण शुद्ध होना चाहिए और जिनके निमित्त श्राद्ध करते हों उनके नाम का उच्चारण शुद्ध करना चाहिए।

श्राद्ध में ब्राह्मणों को भोजन कराते समय 'रक्षक मंत्र' का पाठ करके भूमि पर तिल बिखेर दें तथा अपने पितृरूप में उन द्विजश्रेष्ठों का ही चिंतन करें। 'रक्षक मंत्र' इस प्रकार हैः

यज्ञेश्वरो यज्ञसमस्तनेता भोक्ताऽव्ययात्मा हरिरीश्वरोऽस्तु ।
तत्संनिधानादपयान्तु सद्यो रक्षांस्यशेषाण्यसुराश्च सर्वे ।।

'यहाँ संपूर्ण हव्य-फल के भोक्ता यज्ञेश्वर भगवान श्रीहरि विराजमान हैं। अतः उनकी सन्निधि के कारण समस्त राक्षस और असुरगण यहाँ से तुरन्त भाग जाएँ।'

                                                                               (वराह पुराणः 14.32)

ब्राह्मणों को भोजन के समय यह भावना करें किः
'इन ब्राह्मणों के शरीरों में स्थित मेरे पिता, पितामह और प्रपितामह आदि आज भोजन से तृप्त हो जाएँ।'

जैसे, यहाँ के भेजे हुए रुपये लंदन में पाउण्ड, अमेरिका में डालर एवं जापान में येन बन जाते हैं ऐसे ही पितरों के प्रति किये गये श्राद्ध का अन्न, श्राद्धकर्म का फल हमारे पितर जहाँ हैं, जैसे हैं, उनके अनुरूप उनको मिल जाता है। किन्तु इसमें जिनके लिए श्राद्ध किया जा रहा हो, उनके नाम, उनके पिता के नाम एवं गोत्र के नाम का स्पष्ट उच्चारण होना चाहिए। विष्णु पुराण में आता हैः

श्रद्धासमन्वितैर्दत्तं पितृभ्यो नामगोत्रतः।
यदाहारास्तु ते जातास्तदाहारत्वमेति तत्।।

'श्रद्धायुक्त व्यक्तियों द्वारा नाम और गोत्र का उच्चारण करके दिया हुआ अन्न पितृगण को वे जैसे आहार के योग्य होते हैं वैसा ही होकर उन्हें मिलता है'।

                                                                            (विष्णु पुराणः 3.16.16)

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Posted in भारतीय मंदिर - Bharatiya Mandir

Save Historical Places of Pakistan


Save Historical Places of Pakistan

While passing through the Kohati Bazaar, a stranger or even a young native would not even know that the biggest Hindu temple of the Rawalpindi district is located in the neighborhood.
Kull Devi Mandir or Kalyan Das Mandir now stands right in the middle of Government Qandeel Secondary School for the Blind and cannot be seen while passing through the Kohati Bazaar as high walls of the academic institution have hindered the magnificent beauty of the temple from passersby. Note it is only one Kull Devi Mandir in Pakistan no Manir like this Mandir . Madir Have Five towers one large more then 50 feet high and 4 are same in size 20 feet tall . It is unique Architecture in this region .
Kalyan Das was a man known for his generosity in Rawalpindi. He laid the foundation of the temple in 1850. The temple was named after its builder afterwards. It had more than 100 rooms and spread over an area of about seven acres besides a vast pond around the main temple building.
The Amaranth Yatra is very important in Hinduism. The Hindu pilgrims used to stay at the Kull Devi Mandir or Kalyan Das Mandir on their way to Amaranth Yatra in the mountains of Jammu and Kashmir, making this temple a very important place for Hindu worshipers.
The temple was abandoned as Hindus left the city in the frenzy of mass migration that followed the partition of the subcontinent in 1947.
In 1956, the temple was taken over by the Auqaf Department and survived as a place of worship until 1958 when a school for the blind, started by Begum Farooqi, was shifted into the complex.
In 1973, the school was taken over by the Punjab government. A new building was erected for the school in 1986 during the time of General Mohammad Zia-ul-Haq. It was the time when the temple’s original surrounding buildings, rooms and pond were demolished and deprived of its beauty. A nearby seminary acquired almost half of the temple land.
The main and three small spires of the temple are still in a stable condition and intact, but many years of neglect has rendered them colorless.
The main prayer room is now being used as a storeroom by nearby street fruit vendors. The four small rooms are also being used for the same purpose. Idols are gone but their pictures, rapidly vanishing, can be seen in the main prayer room and the four small rooms.
Kalyan Das had no children but his brother had. One of the grandchildren of Kalyan’s brother is Saghir Soori, the owner of Saghir Apartments — the tallest residential tower in Delhi. The Kalyan’s family had a residence by the name Soori Building in Kartarpura, which is now known as Noori Building.
Haq Nawaz, an official of the Qandeel Secondary School for the Blind, told this scribe that Saghir Soori and his family visited the temple in 2004. They were disturbed to see the condition of the temple. Now days school Principal want to repair this beautiful Temple but they have no funds . If any Person wanna donate or wanna repair this Historical Place please contact with School Principal during schooling time 8 am to 2 Pm on this number 0092515550465 . This beautiful architecture urgently need for repair please please save this beautiful place request from Hindu Donner’s …. Shahid Shabbir Historian
— in Mandir Kuldevi Built By Kalyan Dass in 1850 AD