Posted in भारतीय मंदिर - Bharatiya Mandir

खंडोबा मंदिर और सुनहरी जेजुरी

स्थान: – यह मंदिर पुणे से 40 किलोमीटर दूर और सोलापुर से 60 किमी पर जेजुरी के शहर में स्थित है। यह देश में प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में से एक है।

मुख्य देवता: – जेजुरी का शहर भगवान खंडोबा के लिए समर्पित है। इन्हे मार्तण्ड भैरव औरमल्हारी – जैसे अन्य नामों से पुकारा जाता है, जो भगवान शिव का दूसरा रूप है। मराठी में, सम्मान रूप में किसी नाम के बाद “बा”, “राव” या “राया”, लगाया जाता है ।इसीलिए ,खंडोबा भीखण्डेराया या खंडेराव के रूप में जाना जाता है।
शहर में भी खण्डोबाची जेजुरी (भगवान खंडोबा के जेजुरी) के नाम से जाना जाता है। खंडोबा की मूर्ती अक्सर एक घोड़े की सवारी करते एक योद्धा के रूप में है। उनके हाथ में राक्षसों को मारने के लिए कि एक बड़ी तलवार (खड्ग) है। खंडोबा नाम भी “खड्ग” इस शब्द से लिया गया है ।
कुछ लोग खंडोबा को शिव, भैरव (शिव का क्रूर रूप ), सूर्य देवता औरकार्तिकेय -इन देवताओं के समामेलनके रूप में विश्वास करते हैं।

वास्तुकला: – मंदिर मुख्य रूप से पत्थर का निर्माण किया है। यह एक पहाड़ी के ऊपर स्थित है और भक्तों को मुख्य गर्भगृह तक पहुंचने के लिए सीढ़िया (500 से अधिक) चढ़ने की जरूरत है। मंदिर के हर कदम पर, हल्दीका छिड़काव किया गया है । हर जगह बिखरे हल्दी की वजह से ये पूरा स्थान सुनहरा दिखाई देता है। मराठी में इस स्थान को सोन्याची जेजुरीकहते है।

इतिहास : – मल्हारी महात्म्य और महाराष्ट्र और कर्नाटक के लोक गीतों तथा साहित्यिक कृतियों में खंडोबा का उल्लेख है । ब्रह्माण्ड पुराण का कहना है – राक्षसों मल्ला और मणि को भगवान ब्रह्मा से एक वरदान द्वारा संरक्षित किया गया था । इस सुरक्षा के साथ, वे अपने आप को अजेय मानने लगे और पृथ्वी पर संतों और लोगों को आतंकित करने लगे । तब भगवान शिवने खंडोबा के रूप में अपने बैल, नंदी की सवारी करते हुए ए। दुनिया के लिए राहत प्रदान करने हेतु उन्होंने राक्षसों को मारने का भार संभाला। मणि ने उन्हें एक घोडा प्रदान किया और मानव जाति की भलाई के लिए भगवान से वरदान माँगा ।खंडोबा ने खुशी से यह वरदान दिया । अन्य दानव मल्ला ने , मानव जाति के विनाश माँगा। तब भगवन ने उसका सर काट कर मंदिर की सीढ़ियों पर छोड़ दिया ताकि मंदिर में प्रवेश के समय भक्त द्वारा कुचल दिया जा सके।

त्योहार/ प्रार्थना: – खंडोबा एक उग्र देवता मने जाते है और इनकी पूजा की सख्त रस्में होती हैं। साधारण पूजाओं की तरह हल्दी, फूल और शाकाहारी भोजन के साथ-साथ, कभी कभी बकरी का मांस मंदिर के बाहर देवता को चढ़ाया जाता है।

भक्तो के अनुसार खंडोबा बच्चे के जन्म और विवाह में बाधाओं को दूर करते है ।

मल्ला और मणि पर उनकी जीत को मनाने के लिए, एक छह दिवसीय मेला जेजुरी में हर साल आयोजित किया जाता है। इस मेले को मार्गशीर्ष के हिंदू महीने के दौरान मनाते है। अंतिम दिन को चंपा षष्टी कहा जाता है और इस दिन व्रत किया जाता है।

रविवार और पूर्णिमा के दिन पूजा के लिए शुभ दिन माना जाता है।

दिशा निर्देश –
इस जगह के बारे में एक घंटे पुणे के माध्यम से ड्राइव और अच्छी तरह से परिवहन के सभी साधनों से जुड़ा हुआ है।

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अंग्रेज कवि हुआ टेनिसन। और उसने अपने संस्मरण


अंग्रेज कवि हुआ टेनिसन। और उसने अपने संस्मरण
में एक बड़ी अनूठी बात लिखी है। उसने लिखा
है कि मैं छोटा बच्चा था और मुझे घर में जल्दी
सोने भेज दिया जाता। घर के लोग तो देर तक
जागते, लेकिन बच्चे को जल्दी भेज देते। मुझे नींद
न आती और कोई उपाय न था और अंधेरे में मुझे डर
भी लगता। अंधेरा कर देते कमरे में और दरवाजा
बंद कर देते और कहते, कि सो जाओ। और सोना
पड़ता। और नींद न आती और अंधेरे में भूत-प्रेत
दिखाई पड़ते और डर भी लगता।
तो मैं आंख बंद करके, कि क्या करूं–पिता
नास्तिक थे इसलिए कोई प्रार्थना कभी
सिखाई नहीं थी। परमात्मा का कोई नाम
नहीं सिखाया, तो क्या करूं? तो मैं अपना ही
नाम दोहराता : “टेनिसन-टेनिसन-टेनिसन”।
उससे थोड़ी हिम्मत बढ़ती, थोड़ी गर्मी आती
और “टेनिसन, टेनिसन, टेनिसन दोहराते-दोहराते
मैं सो जाता।
धीरे-धीरे यह अभ्यास हो गया। और जब भी
चिंता पकड़ती, कोई तनाव होता तो टेनिसन
कहता है, बस तीन बार भीतर आंख बंद करके मुझे
इतना ही कहना पड़ताः “टेनिसन, टेनिसन,
टेनिसन; और सब शांत हो जाता। मंत्र हो गया
अपना ही नाम।
और टेनिसन ने लिखा है, कि मैं इससे बड़े गहरे
ध्यान में उतरने लगा। यह तो मुझे बहुत बाद में
पता चला कि इसे लोग ध्यान कहते हैं।
अपना ही नाम का स्मरण भी तुम्हें परमात्मा
तक पहुंचा सकता है। यह सवाल नहीं है, क्योंकि
सभी नाम उसके हैं। तुम्हारा नाम भी उसी का
है। टेनिसन भी उसी का नाम है। अल्लाह उसी
का नाम है, राम उसी का नाम है। कोई दशरथ के
बेटे ने ठेका लिया है? तुम भी किसी दशरथ के बेटे
हो। तुम्हारा नाम भी उसी का नाम है।
तुम अपना ही नाम भी अगर दोहराओ, तो भी
परिणाम वही होगा। क्योंकि असली सवाल
बोधपूर्वक भीतर स्मरण को जगाने का है। अगर
“टेनिसन, टेनिसन, टेनिसन” या “राम, राम, राम”
कुछ भी तुम दोहराते हो, उसके दोहराने के क्षण
में ही भीतर एक शांत अवस्था बनने लगती है।
और उसको दोहराते-दोहराते तुम्हें यह दिखाई
पड़ने लगता है कि दोहराने वाला अलग है और
जो दोहराया जा रहा है, वह अलग है। तुम धीरे-
धीरे साक्षी-भाव को उत्पन्न होने लगते हो।
स्मरण साक्षी-भाव की सीढ़ियां हैं। जितना
स्मरण गहरा होता है, उतने तुम साक्षी-भाव से
भर जाते हो। इसे तुम करके देखो। अगर न हो
परमात्मा पर भरोसा, कोई चिंता नहीं, तुम
अपना ही स्मरण करो।

➡कहे कबीर दीवाना, प्रवचन-१६,

ओशो

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एक पुरानी कहानी तुमसे कहूं—झेन कथा है।


एक पुरानी कहानी तुमसे कहूं—झेन कथा है।
एक झेन सदगुरु के बगीचे में कद्दू लगे थे।
सुबह—सुबह गुरु बाहर आया तो देखा,
कद्दूओ में बड़ा झगड़ा और विवाद मचा है।
कद्दू ही ठहरे! उसने कहा : ‘अरे कद्दूओ यह क्या कर रहे हो?
आपस में लड़ते हो !’ वहा दो दल हो गए थे
कद्दूओं में और मारधाड़ की नौबत थी।
झेन गुरु ने कहा ‘कद्दूओ, एक—दूसरे को प्रेम करो।’
उन्होंने कहा ‘यह हो ही नहीं सकता। दुश्मन को प्रेम करें?
यह हो कैसे सकता है !’ तो झेन गुरु ने कहा, ‘फिर ऐसा करो, ध्यान करो।
‘ कदुओं ने कहा. ‘हम कद्दू हैं, हम ध्यान कैसे करें ?’
तो झेन गुरु ने ‘कहा : ‘देखो—भीतर मंदिर में बौद्ध भिक्षुओं की कतार ध्यान करने बैठी थी—देखो ये कद्दू इतने कद्दू ध्यान कर रहे हैं।’
बौद्ध भिक्षुओं के सिर तो घुटे होते हैं, कदुओं जैसे ही लगते हैं।
’तुम भी इसी भांति बैठ जाओ।’ पहले तो कद्दू हंसे, लेकिन सोचा
‘गुरु ने कभी कहा भी नहीं; मान ही लें, थोड़ी देर बैठ जाएं।’
जैसा गुरु ने कहा वैसे ही बैठ गए—सिद्धासन में पैर मोड़ कर आंखें बंद करके, रीढ़ सीधी करके। ऐसे बैठने से थोड़ी देर में शांत होने लगे।
सिर्फ बैठने से आदमी शांत हो जाता है।
इसलिए झेन गुरु तो ध्यान का नाम ही रख दिये हैं. झाझेन।
झाझेन का अर्थ होता है. खाली बैठे रहना, कुछ करना न।
कद्दू बैठे—बैठे शांत होने लगे, बड़े हैरान हुए, बड़े चकित भी हुए!
ऐसी शांति कभी जानी न थी।
चारों तरफ एक अपूर्व आनंद का भाव लहरें लेने लगा।
फिर गुरु आया और उसने कहा : ‘अब एक काम और करो,
अपने— अपने सिर पर हाथ रखो।’ हाथ सिर पर रखा तो और चकित हो गए।
एक विचित्र अनुभव आया कि वहा तो किसी बेल से जुड़े हैं।
और जब सिर उठा कर देखा तो वह बेल एक ही है, वहां दो बेलें न थीं,
एक ही बेल में लगे सब कद्दू थे। कदुओं ने कहा : ‘हम भी कैसे मूर्ख!
हम तो एक ही के हिस्से हैं, हम तो सब एक ही हैं,
एक ही रस बहता है हमसे—और हम लड़ते थे।’ तो गुरु ने कहा. ‘अब प्रेम करो।
अब तुमने जान ?? कि एक ही हो, कोई पराया नहीं। एक का ही विस्तार है।’
वह जहां से कदुओं ने पकड़ा अपने सिर पर,
उसी को योगी सातवां चक्र कहते हैं : सहस्रार।
हिंदू वहीं चोटी बढ़ाते हैं। चोटी का मतलब ही यही है कि
वहा से हम एक ही बेल से जुड़े हैं। एक ही परमात्मा है।
एक ही सत्ता, एक अस्तित्व, एक ही सागर लहरें ले रहा है।
वह जो पास में तुम्हारे लहर दिखाई पड़ती है, भिन्न नहीं, अभिन्न है;
तुमसे अलग नहीं, गहरे में तुमसे जुड़ी है। सारी लहरें संयुक्त हैं।
तुमने कभी एक बात खयाल की?
तुमने कभी सागर में ऐसा देखा कि एक ही लहर उठी हो
और सारा सागर शांत हो? नहीं, ऐसा नहीं होता।
तुमने कभी ऐसा देखा, वृक्ष का एक ही पत्ता हिलता हो
और सारा वृक्ष मौन खड़ा हो, हवाएं न हों?
जब हिलता है तो पूरा वृक्ष हिलता है।
और जब सागर में लहरें उठती हैं तो अनंत उठती हैं, एक लहर नहीं उठती। क्योंकि एक लहर तो हो ही नहीँ सकती।
तुम सोच सकते हो कि एक मनुष्य हो सकता है पृथ्वी पर? असंभव है।
एक तो हो ही नहीं सकता। हम तो एक ही सागर की लहरें हैं,
अनेक होने में हम प्रगट हो रहे हैं। जिस दिन यह अनुभव होता है,
उस दिन प्रेम का जन्म होता है।
प्रेम का अर्थ है : अभिन्न का बोध हुआ, अद्वैत का बोध हुआ।
शरीर तो अलग— अलग दिखाई पड ही रहे हैं,
कद्दू तो अलग— अलग हैं ही, लहरें तो ऊपर से
अलग—अलग दिखाई पड़ ही रही हैं— भीतर से आत्मा एक है।
प्रेम का अर्थ है. जब तुम्हें किसी में और अपने बीच एकता का अनुभव हुआ।
और ऐसा नहीं है कि तुम्हें जब यह एकता का अनुभव होगा तो एक
और तुम्हारे बीच ही होगा; यह अनुभव ऐसा है कि हुआ
कि तुम्हें तत्‍क्षण पता चलेगा कि सभी एक हैं।
भ्रांति टूटी तो वृक्ष, पहाड़—पर्वत, नदी—नाले,
आदमी—पुरुष, पशु —पक्षी, चांद—तारे सभी में एक ही कंप रहा है।
उस एक के कंपन को जानने का नाम प्रेम है।
प्रेम प्रार्थना है।

Posted in हास्यमेव जयते

बिना हेलमेट के बाइक चला रहा था।
पुलिस वाले ने रोका, “हेलमेट कहाँ है?” उसने बोला, “भूल गया।”
पुलिस : क्या नाम है? काम क्या करते हो?
बाइक सवार: केहर सिंह नाम है और मैं एक फौजी हूँ।
पुलिस : अच्छा कोई बात नहीं, जाओ, आगे से हेलमेट पहन कर बाइक चलाना।

केहर : नहीं भाई, आप अपना काम करो। मैंने गलती की है, मेरा चालान काटो।
पुलिस : ठीक है, अगर ऐसी ही बात है , तो निकालो 100 रु और पर्ची लेकर जाओ।

केहर : नहीं, यहाँ नहीं भुगतना चालान। मैं अदालत में ही जाकर चालान भुगतुंगा।

अदालत में :

संतरी: केहर सिंह को बुलाओ।
जज: हांजी, मिस्टर केहर सिंह, आप 100 रु का चालान भर दीजिये।
केहर: नहीं जनाब, यह कोई तरीका नहीं हुआ। आपने मेरी “दलील” तो सुनी ही नहीं ?
जज: अच्छा बताओ, क्यों तुम्हें 100 रु का फाइन न किया जाए?
केहर: जनाब, 100 रु का फाइन थोड़ा कम है इसे आप 335 रु का कर दीजिए।
जज: क्यों? और 335 का ही क्यों?
केहर: क्योंकि मुझे 100 रु कम लगता है और 336 रु ज्यादा ही नाइन्साफ़ी हो जाएगी।
(वहाँ खड़ी भीड़ हंसती है)
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जज: (काठ का हथौड़ा मेज पर मारते हुए) शांति, शांति बनाए रखिये।
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केहर: जनाब एक और सलाह है, ये हथौड़ा ‘काठ’ की बजाए “स्टील” का होना चाहिए , आवाज ज्यादा होगी। एक और बात, यहाँ इस कमरे में भीड़ बहुत ज्यादा है। आप एक आर्डर पास कर दीजिए की कल से यहाँ ज्यादा से ज्यादा बस 127 लोग ही आएं।
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जज: are you lost your mind Mr. Kehar Singh? आप यहाँ अदालत में जोक्स क्रैक कर रहे हैं। आप एक जज को सिखा रहे हैं कि अदालत कैसे चलानी है? कानून क्या होना चाहिए? फैसला क्या करना है? आपको पता भी है हम किस परिस्थिति में काम करते हैं? हमारे ऊपर कितना प्रेशर होता है? और….
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केहर: जनाब! मैं एक फौजी हूँ। अभी कश्मीर में पोस्टेड हूँ। with all due respect , sir, आपको ‘ नहीं पता कि “प्रेशर” क्या होता है। आपका प्रेशर ज्यादा से ज्यादा आपको एक दो घंटे ओवरटाइम करवा देगा। हमारा प्रेशर हमारी और सैंकड़ो और लोगों की जान ले सकता है।
जनाब, क्षमा कीजिये कि मैंने आपको सलाह दी। जिस काम के लिए आपको ट्रेनिंग दी जाती है, जिस काम में आप माहिर हैं उस काम में मैंने आपको सलाह दी। परन्तु आप भी तो यही करते हैं हमारे साथ…..मसलन…बन्दुक को 90 डिग्री से नीचे कर के चलाओ, असली गन मत चलाओ, पेलेट गन चलाओ, बस घुटनों के नीचे निशाना लगाओ, प्लास्टिक की गौलियाँ इस्तेमाल करो, प्लास्टिक की गोली भी खोखली होनी चाहिए, उसका वजन xyz ग्राम से ज्यादा नो हो। ये क्या है , जज साब? क्या आप यहाँ ac रूम में बैठ कर हमें सिखाओगे कि हमें अपना काम कैसे करना है? जिस काम के लिए हम trained हैं, जिन situations का हमको firsthand experience है, आप हमें बताओगे कि उस situation में हमें कैसे react करना चाहिए?
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(सन्नाटा)……

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कछुए और खरगोश की दौड़ मे..आलसी खरगोश कुछ दूर जाकर सो जाता है


कछुए और खरगोश की दौड़ मे..आलसी खरगोश कुछ दूर जाकर सो जाता है और मेहनती कछुआ जीत जाता है..कहानी खत्म हो जाती है !
लेकिन इस कहानी मे भयंकर twist है आगे पढे ,फिर क्या होता है ??

ये जानने के लिए आप इस आलेख को विस्तार से पढिए ।

सामर्थवान मनुष्य जब किसी दुर्बल से हारता है तो उसका दंभ (ego) टूट जाता है और वह कुंठीत हो जाता है ।

ठीक वैसे ही चमत्कारिक तरीके से मिली जीत हमे अतिउत्साही…….. (overconfident) बना देती है ये सब naturally है ….जिसे हम अपने सकारात्मक या नकारात्मक विचारो से खुद मे स्थापित कर लेते है ।

चूंकि …खरगोश एक तेज दौड़ने वाला प्राणी होता है;…फिर कछुए की तुलना मे तो कई गुना अधिक सामर्थवान !
लेकिन हार चुका था ,……कुंठित हो गया !

खरगोश दोबारा प्रतियोगिता चाहता था सो कछुए से बोला
— एक बार फिर से शर्त लगाता हूं… क्या तुम फिर से तैयार हो इस चुनौती के लिए ?

अप्रत्याशित जीत से कछुआ भी अतिउत्साही था ….जीत के नशे मे चूर कछुए ने हामी भर दी !

दौड़ शुरू हुई ,..इस बार खरगोश ने कोई गलती नही किया वह पूरी ताकत से दौड़ा और जीत गया !
लेकिन अतिउत्साह के कारण कछुआ अपना सम्मान गवां चुका था जिसे वह फिर पाना चाहता था ।

कछुए ने हार नही मानी और चालाकी के साथ पुनः दौड़ के लिए खरगोश से कहा तो ….खरगोश गर्व से बोला
-“तुम मुझसे अब कभी नही जीत सकते…. मै वह गलती दोबारा नही दोहराऊंगा और मै हर बार तुमसे प्रतियोगिता के लिए तैयार हूं ।”

कछुए ने दूसरे मार्ग से प्रतियोगिता की शर्त रखी…..अहंकार मे खरगोश ने विवेक खो दिया और शर्त स्वीकार कर लिया !

तीसरी बार दौड़ प्रारंभ हुई खरगोश आगे था लेकिन रास्ते मे नदी आ गई, खरगोश तैरना नही जानता था वह किनारे पर कसमसाकर रह गया !
चालाक कछुआ धीरे-धीरे आया और नदी पार कर गया और वह खुद को उस सम्मान के लिए पुनर्स्थापित कर चुका था ।

इस पूरी घटना को पेड़ पर बैठा एक चील देख रहा था उसने दोनो को समझाता-
” तुम दोनो यूनिक हो ,….ईश्वर ने सबको अलग गुण दिए है उसका उपयोग सही दिशा मे करो दोनो मित्र बनो ,आपातकाल मे आवश्यकता होगी!

लेकिन दोनो न माने और चले गए…..

एक समय जंगल मे आग लग गई सभी जानवर भागने लगे …..
कछुआ नदी से बहुत दूर था चाहकर भी बहुत जल्दी पानी तक नही जा सकता था,….आग बढ़ती जा रही थी।
वही खरगोश की सीमाएं भी नदी के किनारे तक ही सीमीत थी।

तभी आकाश मे उड़ते चील ने उन्हे कहा कहा -“…अब वक्त आ चुका है, …..एकदूसरे की मदद से इस आग का सामना करो।

तब खरगोश जो की तेज दौड़ सकता था ,…….उसने कछुए को अपनी पीठ पर बैठाकर आग को उन तक पहुंचने से …..पहले नदी के किनारे तक ले आया।

अब बारी कछुए की थी
….. नदी मे पहुंचकर कछुए ने खरगोश को अपनी पीठ पर बैठाकर पार कराया …..और अब दोनो आग से सुरक्षित थे।

हमे भी अपनी दंभी मानसिकता…..कुंठाओ से बाहर निकलना होगा ,विवेक रखना होगा, सबको समान दृष्टि से देखना होगा ,….।
ईश्वर ने सभी को अलग अलग प्रतिभाएं दी है….. सभी दूनिया मे यूनिक है सभी गुण अलग है।
हमे इस वक्र मानसिकता से बाहर निकलकर एक टीम भावना के साथ आपादा का सामना करना चाहिए…….
अपने लोगो मे छिपी प्रतिभाओ को बाहर निकाले ।
जब हम ऐसा कर सके…… ,तो हमारी हर बार जीत होगी ।
पूरे सम्मान के साथ।
गरिमा के साथ।

Laxmi Kant Varshney
Posted in ज्योतिष - Astrology

जानिए, कितने मुख वाला रुद्राक्ष है आपके लिए लाभकारी!!!!!

रुद्राक्ष भगवान शिव को बहुत ही प्रिय है। इसे परम पावन समझना चाहिए। रुद्राक्ष के दर्शन से, स्‍पर्श से तथा उसपर जप करने से वह समस्‍त पापों का हरण करने वाला माना गया है। भगवान शिव ने समस्‍त लोकों का उपकार करने के लिए देवी पार्वती के सामने रुद्राक्ष की महिमा का वर्णन किया था। आइए जानते हैं क्‍या है रुद्राक्ष की महिमा, क्‍यों, कैसे, किन्‍हें धारण करना चाहिए रुद्राक्ष। साथ ही यह भी जानेंगे कि धारक के लिए कितना लाभकारी है रुद्राक्ष।

शिव महापुराण में भगवान शिव ने माता पार्वती को रुद्राक्ष की पूरी महिमा सुनाई है। भगवान शंकर के अनुसार, ”पूर्वकाल की बात है, मैं मन को संयम में रखकर हजारों दिव्‍य वर्षों तक घोर तपस्‍या में लगा रहा। एक दिन सहसा मेरा मन क्षुब्‍ध हो उठा। मैं सम्‍पूर्ण लोकों का उपकार करने वाला स्‍वतंत्र परमेश्‍वर हूं। अत: उस समय मैंने लीलावश ही अपने दोनों नेत्र खोले, खोलते ही मेरे नेत्र पुटों से कुछ जल की बूंदें गिरीं। आंसुओं की उन बूंदों से वहां रुद्राक्ष नामक वृक्ष पैदा हो गया।

शिव महापुराण के अनुसार, भक्‍तों पर अनुग्रह करने के लिए वे अश्रुबिन्‍दु स्‍थावर भाव को प्राप्‍त हो गये। वे रुद्राक्ष भगवान शिव ने विष्‍णुभक्‍त को तथा चारों वर्णों के लोगों को बांट दिया। भूतलपर अपने प्रिय रुद्राक्षों को उन्‍होंने गौड़ देश में उत्‍पन्‍न किया। मथुरा, अयोध्‍या, लंका, मलयाचल, सह्यगिरि, काशी तथा अन्‍य देशों में उनके अंकुर उगाये गये।

भगवान शिव कहते हैं, ”मेरी आज्ञा से वे (रुद्राक्ष) ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्‍य और शूद्र जाति के भेद से इस भूतलपर प्रकट हुए। रुद्राक्षों की ही जाति के शुभाक्ष भी हैं। उन ब्राह्मणादि जातिवाले रुद्राक्षों के वर्ण श्‍वेत, रक्‍त, पीत तथा कृष्‍ण हैं। मनुष्‍यों को चाहिये कि वे क्रमश: वर्ण के अनुसार अपनी जाति का ही रुद्राक्ष धारण करें।

ब्रह्मचारी, वानप्रस्‍थ, गृहस्‍थ और संन्‍यासी – सबको नियमपूर्वक रुद्राक्ष धारण करना उचित है। इसे धारण करने का सौभाग्‍य बड़े पुण्‍य से प्राप्‍त होता है। रुद्राक्ष शिव का मंगलमय लिंग विग्रह है। सूक्षम रुद्राक्ष को ही सदा प्रशस्‍त माना गया है। सभी आश्रमों, समस्‍त वर्णों, स्‍त्रियों और शूद्रों को भी भगवान शिव की आज्ञा के अनुसार सदैव रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। श्‍वेत रुद्राक्ष केवल ब्राह्मणों को ही धारण करना चाहिए। गहरे लाल रंग का रुद्राक्ष क्षत्रियों के लिए हितकर बताया गया है। वैश्‍यों के लिए प्रतिदिन बारंबार पीले रुद्राक्ष को धारण करना आवश्‍यक है और शूद्रों को काले रंग का रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। यह वेदोक्‍त मार्ग है।

शिव महापुराण के अनुसार, जो रुद्राक्ष बेर के फल के बराबर होता है, वह उतना छोटा होने पर भी लोक में उत्‍तम फल देनेवाला तथा सुख सौभाग्‍य की वृद्धि करने वाला होता है। जो रुद्राक्ष आंवले के फल के बराबर होता है, वह समस्‍त दु:खों का विनाश करने वाला होता है तथा जो बहुत छोटा होता है, वह सम्‍पूर्ण मनोरथों और फलों की सिद्धि करने वाला है। रुद्राक्ष जैसे-जैसे छोटा होता है, वैसे ही वैसे अधिक फल देने वाला होता है। एक-एक बड़े रुद्राक्ष से एक-एक छोटे रुद्राक्ष को विद्वानों ने दसगुना अधिक फल देने वाला बताया है।

कैसे रुद्राक्षों को करें धारण।

समान आकार-प्रकार वाले चिकने, मजबूत, स्‍थूल, कण्‍टकयुक्‍त और सुंदर रुद्राक्ष अभिलाषित पदार्थों के दाता तथा सदैव भोग और मोक्ष देने वाले हैं। वहीं जिसे कीड़ों ने दूषित कर दिया हो, जो टूटा-फूटा हो, जिसमें उभरे हुए दाने न हों, जो व्रणयुक्‍त हों तथा जो पूरा-पूरा गोल न हो, इन पांच प्रकार के रुद्राक्षों को त्‍याग देना चाहिए।

जिस रुद्राक्ष में अपने आप ही धागा पिरोने के योग्‍य छिद्र हो गया हो, वह रुद्राक्ष उत्‍तम माना गया है। जिसमें मनुष्‍य के प्रयत्‍न से छेद किया गया हो वह मध्‍यम श्रेणी का होता है। रुद्राक्ष-धारण बड़े-बड़े पातकों का नाश करने वाल हे।

शिव महापुराण के अनुसार इस जगत् में ग्‍यारह सौ रुद्राक्ष धारण करके मनुष्‍य जिस फल को पाता है उसका वर्णन सैकड़ों वर्षों में भी नहीं किया जा सकता। भक्‍तिमान् पुरुष साढ़े पांच सौ रुद्राक्ष के दानों का सुंदर मुकुट बना लें और उसे सिर पर धारण करें। तीन सौ साठ दानों को लंबे सूत्र में पिरोकर एक हार बना लें। वैसे-वैसे तीन हार बनाकर भक्‍ति परायण पुरुष उनका यज्ञोपवित तैयार करें और उसे यथास्‍थान धारण किये रहे।

किसी अंग में कितने रुद्राक्ष धारण करने चाहिए ।

सिरपर ईशान मंत्र से, कान में तत्‍पुरुष मंत्र से तथा गले और हृदय में अघोर मंत्र से रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। विद्वान पुरुष दोनों हाथों में अघोर-बीजमंत्र से रुद्राक्ष धारण करें। उदर पर वामदेव मंत्र से पंद्रह रुद्राक्षों द्वारा गुंथी हुई माला धारण करे।

अंगो सहित प्रणव का पांच बार जप करके रुद्राक्ष की तीन, पांच या सात मालाएं धारण करें अथवा मूलमंत्र ”नम: शिवाय” से ही समस्‍त रुद्राक्षों को धारण करें। रुद्राक्षधारी पुरुष अपने खान-पान में मदिरा, मांस, लहसुन, प्‍याज, सहिजन, लिसोड़ा आदि को त्‍याग दें।

जिसके ललाट में त्रिपुण्‍ड लगा हो और सभी अंग रुद्राक्ष से विभूषित हो तथा जो मृत्‍युंजय मंत्र का जप कर रहा हो, उसका दर्शन करने से साक्षात् रुद्र के दर्शन का फल प्राप्‍त होता है।

रुद्राक्ष अनेक प्रकार के बताये गये हैं। ये भेद भोग और मोक्षरूपी फल देने वाले हैं।

एक मुखी : एक मुखवाला रुद्राक्ष साक्षात् शिव का स्‍वरूप है। वह भोग और मोक्षरूपी फल प्रदान करता है। जहां रुद्राक्ष की पूजा होती है, वहां से लक्ष्‍मी दूर नहीं जातीं। उस स्‍थान के सारे उपद्रव नष्‍ट हो जाते हैं तथा वहां रहने वाले लोगों की सम्‍पूर्ण कामनाएं पूर्ण होती हैं।

दो मुखी : दो मुखवाला रुद्राक्ष देवदेवेश्‍वर कहा गया है। वह सम्‍पूर्ण कामनाओं और फलों को देने वाला है।

तीन मुखी : तीन मुखवाला रुद्राक्ष सदा साक्षात् साधना का फल देने वाला है, उसके प्रभाव से सारी विद्याएं प्रतिष्‍ठित होती हैं।

चार मुखी : चार मुखवाला रुद्राक्ष साक्षात् ब्रह्मा का रूप है। वह दर्शन और स्‍पर्श से शीघ्र ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष – इन चारों पुरुषार्थों को देने वाला है।

पंच मुखी : पांच मुख वाला रुद्राक्ष साक्षात कालाग्‍निरुद्ररूप है। वह सब कुछ करने में समर्थ है। सबको मुक्‍ति देनेवाला तथा सम्‍पूर्ण मनोवांछित फल प्रदान करने वाला है। पंचमुख रुद्राक्ष समस्‍त पापों को दूर कर देता है।

षड् मुखी : छह मुखवाला रुद्राक्ष भगवान कार्तिकेय का स्‍वरूप है। यदि दाहिनी बांह में उसे धारण किया जाए तो धारण करने वाला मनुष्‍य ब्रह्महत्‍या आदि पापों से मुक्‍त हो जाता है।

सप्‍त मुखी : सात मुखवाला रुद्राक्ष अनंगस्‍वरूप और अनंग नाम से ही प्रसिद्ध है। उसको धारण करने से दरिद्र भी ऐश्‍वर्यशाली हो जाता है।

अष्‍ट मुखी : आठ मुखवाला रुद्राक्ष अष्‍टमूर्ति भैरवरूप है, उसको धारण करने से मनुष्‍य पूर्णायु होता है और मृत्‍यु के पश्‍चात शूलधारी शंकर हो जाता है।

नौ मुखी : नौ मुख वाले रुद्राक्ष को भैरव तथा कपिल-मुनि का प्रतीक माना गया है। साथ ही नौ रूप धारण करने वाली महेश्‍वरी दुर्गा उसकी अधिष्‍ठात्री देवी मानी गयी हैं। शिव कहते हैं, ”जो मनुष्‍य भक्‍तिपरायण हो अपने बायें हाथ में नौ मुख रुद्राक्ष को धारण करता है, वह निश्‍चय ही मेरे समान सर्वेश्‍वर हो जाता है – इसमें संशय नहीं है।”

दश मुखी : दस मुखवाला रुद्राक्ष साक्षात् भगवान विष्‍णु का रूप है। उसको धरण करने से मनुष्‍य की सम्‍पूर्ण कामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।

ग्‍यारह मुखी : ग्‍यारह मुख वाला जो रुद्राक्ष है, वह रुद्ररूप है। उसको धारण करने से मनुष्‍य सर्वत्र विजयी होता है।
बारह मुखी : बारह मुखवाले रुद्राक्ष को केश प्रदेश में धरण करें। उसके धरण करने से मानो मस्‍तकपर बारहों आदित्‍य विराजमान हो जाते हैं।

तेरह मुखी : तेरह मुखवाला रुद्राक्ष विश्‍वेदेवों का स्‍वरूप है। उसको धारण करके मनुष्‍य सम्‍पूर्ण अभीष्‍टों को प्राप्‍त तथा सौभाग्‍य और मंगल लाभ करता है।

चौदह मुखी : चौदह मुखवाला जो रुद्राक्ष है, वह परम शिवरूप है। उसे भक्‍ति पूर्वक मस्‍तक पर धरण करें। इससे समस्‍त पापों का नाश हो जाता है।

शिव महापुराण के अनुसार साधक को चाहिये कि वह निद्रा और आलस्‍य का त्‍याग करके श्रद्धा-भक्‍ति से सम्‍पन्‍न हो, सम्‍पूर्ण मनोरथों की सिद्धि के लिये ऊपर लिखे मंत्रों द्वारा रुद्राक्षों को धारण करे। रुद्राक्ष की माला धरण करने वाले पुरुषों को देखकर भूत, प्रेत, पिशाच, डाकिनी, शाकिनी तथा जो अन्‍य द्रोहकारी राक्षस आदि हैं, वे सब के सब दूर भाग जाते हैं। रुद्राक्ष मालाधारी पुरुष को देखकर मैं शिव, भगवान् विष्‍णु, देवी दुर्गा, गणेश, सूर्य तथा अन्‍य देवता भी प्रसन्‍न हो जाते हैं।

पापों का नाश करने के लिए रुद्राक्ष धारण आवश्‍यक बताया गया है। वह निश्‍चय ही सम्‍पूर्ण अभीष्‍ट मनोरथों का साधक है। अत: अवश्‍य ही उसे धारण करना चाहिए। भगवान शिव कहते हैं, ”हे परमेश्‍वरी, लोक में मंगलमय रुद्राक्ष जैसा फलदायी दूसरी कोई माला नहीं है।

संजय गुप्ता

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हृदय की बीमारी*

आयुर्वेदिक इलाज !!

हमारे देश भारत मे 3000 साल पहले एक बहुत बड़े ऋषि हुये थे

उनका नाम था महाऋषि वागवट जी !!

उन्होने एक पुस्तक लिखी थी

जिसका नाम है अष्टांग हृदयम!!

(Astang hrudayam)

और इस पुस्तक मे उन्होने ने
बीमारियो को ठीक करने के लिए 7000 सूत्र लिखे थे !

यह उनमे से ही एक सूत्र है !!

वागवट जी लिखते है कि कभी भी हृदय को घात हो रहा है !

मतलब दिल की नलियों मे blockage होना शुरू हो रहा है !

तो इसका मतलब है कि रकत (blood) मे acidity(अम्लता ) बढ़ी हुई है !

अम्लता आप समझते है !

जिसको अँग्रेजी मे कहते है acidity !!

अम्लता दो तरह की होती है !

एक होती है पेट कि अम्लता !

और एक होती है रक्त (blood) की अम्लता !!

आपके पेट मे अम्लता जब बढ़ती है !

तो आप कहेंगे पेट मे जलन सी हो रही है !!

खट्टी खट्टी डकार आ रही है !

मुंह से पानी निकाल रहा है !

और अगर ये अम्लता (acidity)और बढ़ जाये !

तो hyperacidity होगी !

और यही पेट की अम्लता बढ़ते-बढ़ते जब रक्त मे आती है तो रक्त अम्लता (blood acidity) होती !!

और जब blood मे acidity बढ़ती है तो ये अम्लीय रक्त (blood) दिल की नलियो मे से निकल नहीं पाता !

और नलिया मे blockage कर देता है !

तभी heart attack होता है !! इसके बिना heart attack नहीं होता !!

और ये आयुर्वेद का सबसे बढ़ा सच है जिसको कोई डाक्टर आपको बताता नहीं !

क्योंकि इसका इलाज सबसे सरल है !!

इलाज क्या है ??

वागबट जी लिखते है कि जब रक्त (blood) मे अम्लता (acidity) बढ़ गई है !

तो आप ऐसी चीजों का उपयोग करो जो क्षारीय है !

आप जानते है दो तरह की चीजे होती है !

अम्लीय और क्षारीय !!

acidic and alkaline

अब अम्ल और क्षार को मिला दो तो क्या होता है ! ?????

acid and alkaline को मिला दो तो क्या होता है )?????

neutral

होता है सब जानते है !!

तो वागबट जी लिखते है !

कि रक्त की अम्लता बढ़ी हुई है तो क्षारीय(alkaline) चीजे खाओ !

तो रक्त की अम्लता (acidity) neutral हो जाएगी !!!

और रक्त मे अम्लता neutral हो गई !

तो heart attack की जिंदगी मे कभी संभावना ही नहीं !!

ये है सारी कहानी !!

अब आप पूछोगे जी ऐसे कौन सी चीजे है जो क्षारीय है और हम खाये ?????

आपके रसोई घर मे ऐसी बहुत सी चीजे है जो क्षारीय है !

जिनहे आप खाये तो कभी heart attack न आए !

और अगर आ गया है !

तो दुबारा न आए !!

सबसे ज्यादा आपके घर मे क्षारीय चीज है वह है लौकी !!

जिसे दुधी भी कहते है !!

English मे इसे कहते है bottle gourd !!!

जिसे आप सब्जी के रूप मे खाते है !

इससे ज्यादा कोई क्षारीय चीज ही नहीं है !

तो आप रोज लौकी का रस निकाल-निकाल कर पियो !!

या कच्ची लौकी खायो !!
वागवतट जी कहते है रक्त की अम्लता कम करने की सबसे ज्यादा ताकत लौकी मे ही है !

तो आप लौकी के रस का सेवन करे !!

कितना सेवन करे ?????????

रोज 200 से 300 मिलीग्राम पियो !!

कब पिये ??

सुबह खाली पेट (toilet जाने के बाद ) पी सकते है !!

या नाश्ते के आधे घंटे के बाद पी सकते है !!

इस लौकी के रस को आप और ज्यादा क्षारीय बना सकते है !

इसमे 7 से 10 पत्ते के तुलसी के डाल लो

तुलसी बहुत क्षारीय है !!

इसके साथ आप पुदीने से 7 से 10 पत्ते मिला सकते है !

पुदीना बहुत क्षारीय है !

इसके साथ आप काला नमक या सेंधा नमक जरूर डाले !

ये भी बहुत क्षारीय है !!

लेकिन याद रखे नमक काला या सेंधा ही डाले !

वो दूसरा आयोडीन युक्त नमक कभी न डाले !!

ये आओडीन युक्त नमक अम्लीय है !!!!

तो मित्रों आप इस लौकी के जूस का सेवन जरूर करे !!

2 से 3 महीने आपकी सारी heart की blockage ठीक कर देगा !!

21 वे दिन ही आपको बहुत ज्यादा असर दिखना शुरू हो जाएगा !!!

कोई आपरेशन की आपको जरूरत नहीं पड़ेगी !!

घर मे ही हमारे भारत के आयुर्वेद से इसका इलाज हो जाएगा !!

और आपका अनमोल शरीर और लाखो रुपए आपरेशन के बच जाएँगे !!

और पैसे बच जाये ! तो किसी गौशाला मे दान कर दे !

डाक्टर को देने से अच्छा है !किसी गौशाला दान दे !!

हमारी गौ माता बचेगी तो भारत बचेगा !!

अमर शहीद राजीव दीक्षित जी की प्रेरणा से ……💐💐
हल्दी का पानी

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पानी में हल्दी मिलाकर पीने से होते है यह 7 फायदें…..
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  1. गुनगुना हल्दी वाला पानी पीने से दिमाग तेज होता है. सुबह के समय हल्दी का गुनगुना पानी पीने से दिमाग तेज और उर्जावान बनता है.
  2. रोज यदि आप हल्दी का पानी पीते हैं तो इससे खून में होने वाली गंदगी साफ होती है और खून जमता भी नहीं है. यह खून साफ करता है और दिल को बीमारियों से भी बचाता है.
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  3. लीवर की समस्या से परेशान लोगों के लिए हल्दी का पानी किसी औषधि से कम नही है. हल्दी के पानी में टाॅक्सिस लीवर के सेल्स को फिर से ठीक करता है. हल्दी और पानी के मिले हुए गुण लीवर को संक्रमण से भी बचाते हैं.
    🙏👏🌹
  4. हार्ट की समस्या से परेशान लोगों को हल्दी वाला पानी पीना चाहिए. हल्दी खून को गाढ़ा होने से बचाती है. जिससे हार्ट अटैक की संभावना कम हो जाती है.
    🙏👏🌹
  5. जब हल्दी के पानी में शहद और नींबू मिलाया जाता है तब यह शरीर के अंदर जमे हुए विषैले पदार्थों को निकाल देता है जिसे पीने से शरीर पर बढ़ती हुई उम्र का असर नहीं पड़ता है. हल्दी में फ्री रेडिकल्स होते हैं जो सेहत और सौंदर्य को बढ़ाते हैं.
    🙏👏🌹
  6. शरीर में किसी भी तरह की सजून हो और वह किसी दवाई से ना ठीक हो रही हो तो आप हल्दी वाला पानी का सेवन करें. हल्दी में करक्यूमिन तत्व होता है जो सूजन और जोड़ों में होने वाले असाहय दर्द को ठीक कर देता है. सूजन की अचूक दवा है हल्दी का पानी.
    🙏👏🌹
  7. कैंसर खत्म करती है हल्दी. हल्दी कैंसर से लड़ती है और उसे बढ़ने से भी रोक देती है. हल्दी एंटी.कैंसर युक्त होती है. यदि आप सप्ताह में तीन दिन हल्दी वाला पानी पीएगें तो आपको भविष्य में कैंसर से हमेशा बचे रहेगें.👏🙏

🙏Plz forward me in your all groups

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हमारे वेदों के अनुसार स्वस्थ रहने के १५ नियम

१- खाना खाने के १.३० घंटे बाद पानी पीना है

२- पानी घूँट घूँट करके पीना है जिस से अपनी मुँह की लार पानी के साथ मिलकर पेट में जा सके , पेट में acid बनता है और मुँह में छार ,दोनो पेट में बराबर मिल जाए तो कोई रोग पास नहीं आएगा

३- पानी कभी भी ठंडा ( फ़्रीज़ का )नहीं पीना है।

४- सुबह उठते ही बिना क़ुल्ला किए २ ग्लास पानी पीना है ,रात भर जो अपने मुँह में लार है वो अमूल्य है उसको पेट में ही जाना ही चाहिए ।

५- खाना ,जितने आपके मुँह में दाँत है उतनी बार ही चबाना है ।

६ -खाना ज़मीन में पलोथी मुद्रा या उखड़ूँ बैठकर ही भोजन करे ।

७ -खाने के मेन्यू में एक दूसरे के विरोधी भोजन एक साथ ना करे जैसे दूध के साथ दही , प्याज़ के साथ दूध , दही के साथ उड़द दल

८ -समुद्री नमक की जगह सेंध्या नमक या काला नमक खाना चाहिए

९-रीफ़ाइन तेल , डालडा ज़हर है इसकी जगह अपने इलाक़े के अनुसार सरसों , तिल , मूँगफली , नारियल का तेल उपयोग में लाए । सोयाबीन के कोई भी प्रोडक्ट खाने में ना ले इसके प्रोडक्ट को केवल सुअर पचा सकते है , आदमी में इसके पचाने के एंज़िम नहीं बनते है ।

१०- दोपहर के भोजन के बाद कम से कम ३० मिनट आराम करना चाहिए और शाम के भोजन बाद ५०० क़दम पैदल चलना चाहिए

११- घर में चीनी (शुगर )का उपयोग नहीं होना चाहिए क्योंकि चीनी को सफ़ेद करने में १७ तरह के ज़हर ( केमिकल )मिलाने पड़ते है इसकी जगह गुड़ का उपयोग करना चाहिए और आजकल गुड बनाने में कॉस्टिक सोडा ( ज़हर ) मिलाकर गुड को सफ़ेद किया जाता है इसलिए सफ़ेद गुड ना खाए । प्राकृतिक गुड ही खाये । और प्राकृतिक गुड चोकलेट कलर का होता है। ।

१२ – सोते समय आपका सिर पूर्व या दक्षिण की तरफ़ होना चाहिए ।

१३- घर में कोई भी अलूमिनियम के बर्तन , कुकर नहीं होना चाहिए । हमारे बर्तन मिट्टी , पीतल लोहा , काँसा के होने चाहिए

१४ -दोपहर का भोजन ११ बजे तक अवम शाम का भोजन सूर्यास्त तक हो जाना चाहिए

१५ सुबह भोर के समय तक आपको देशी गाय के दूध से बनी छाछ (सेंध्या नमक और ज़ीरा बिना भुना हुआ मिलाकर ) पीना चाहिए । यदि आपने ये नियम अपने जीवन में लागू कर लिए तो आपको डॉक्टर के पास जाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी और देश के ८ लाख करोड़ की बचत होगी । यदि आप बीमार है तो ये नियमों का पालन करने से आपके शरीर के सभी रोग ( BP , शुगर ) अगले ३ माह से लेकर १२ माह में ख़त्म हो जाएँगे ।

संजय गुप्ता

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मनुष्य की नीयत


(((( मनुष्य की नीयत ))))
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किसी गाँव में एक साधु रहता था जो दिन भर लोगो को उपदेश दिया करता था।
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उसी गाँव में एक नर्तकी थी, जो लोगो के सामने नाचकर उनका मन बहलाया करती थी।
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एक दिन गाँव में बाढ़ आ गयी और दोनो एक साथ ही मर गये।
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मरने के बाद जब ये दोनो यमलोक पहूँचे तो इनके कर्मों और उनके पीछे छिपी भावनाओं के आधार पर इन्हे स्वर्ग या नरक दिये जाने की बात कही गई।
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साधु खुद को स्वर्ग मिलने को लेकर पुरा आश्वस्त था।
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वही नर्तकी अपने मन में ऐसा कुछ भी विचार नही कर रही थी। नर्तकी को सिर्फ फैसले का इंतजार था।
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तभी घोषणा हूई कि साधु को नरक और नर्तकी को स्वर्ग दिया जाता है।
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इस फैसले को सुनकर साधु गुस्से से यमराज पर चिल्लाया और क्रोधित होकर पूछा ,
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यह कैसा न्याय है महाराज ? मैं जीवन भर लोगो को उपदेश देता रहा और मुझे नरक नसीब हुआ!
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जबकि यह स्त्री जीवन भर लोगो को रिझाने के लिये नाचती रही और इसे स्वर्ग दिया जा रहा है। ऐसा क्यो ?
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यमराज ने शांत भाव से उत्तर दिया ,” यह नर्तकी अपना पेट भरने के लिये नाचती थी..
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लेकिन इसके मन में यही भावना थी कि मैं अपनी कला को ईश्वर के चरणोँ में समर्पित कर रही हूँ।
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जबकि तुम उपदेश देते हुये भी यह सोचते थे कि कि काश तुम्हे भी नर्तकी का नाच देखने को मिल जाता !
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हे साधु ! लगता है तुम इस ईश्वर के इस महत्त्वपूर्ण सन्देश को भूल गए कि इंसान के कर्म से अधिक कर्म करने के पीछे की भावनाएं मायने रखती है।
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अतः तुम्हे नरक और नर्तकी को स्वर्ग दिया जाता है। “
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मित्रों, हम कोई भी काम करें, उसे करने के पीछे की नियत साफ़ होनी चाहिए, अन्यथा दिखने में भले लगने वाले काम भी हमे पुण्य की जगह पाप का ही भागी बना देंगे।

सकंजय गुप्ता

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हनुमान जी का जुगाड़


(((((( हनुमान जी का जुगाड़ ))))))
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एक गरीब ब्रह्मण था। उसको अपनी कन्या का विवाह करना था। उसने विचार किया कि कथा करने से कुछ पैसा आ जायेगा तो काम चल जायेगा।
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ऐसा विचार करके उसने भगवान राम के एक मंदिर में बैठ कर कथा आरंभ की। उसका भाव था कि कोई श्रोता आये, चाहे न आये पर भगवान तो मेरी कथा सुनेंगे।
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पंडित जी ने कथा आरंभ की थोड़े ही देर में श्रोता आने लगे और नाम मात्र चढ़ावा चढ़ा। पंडित जी ने उसी में संतोष किया और रोजाना मंदिर में जाकर कथा करने लगे।
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एक बहुत कंजूस सेठ मंदिर में आया। भगवान को प्रणाम करके जब वह मंदिर कि परिकर्मा कर रहा था, तब भीतर से कुछ आवाज आ रही थी। ऐसा लगा कि दो व्यक्ति आपस में बातें कर रहे हैं।
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सेठ ने कान लगा कर सुना। भगवान राम हनुमान जी से कह रहे थे कि,”इस गरीब ब्रह्मण के लिए सौ रूपए का इंतजाम कर देना, जिससे कन्यादान का कार्य ठीक से हो जाए।
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हनुमान जी ने कहा, ठीक है महाराज ! इसके लिए सौ रूपए का इंतजाम हो जाएगा।
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सेठ ने यह सुना तो वह कथा समाप्ति के बाद पंडित जी से मिला और उनसे पूछा, पंडित जी ! कथा में रूपए पैदा हो रहें हैं कि नहीं ?
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पंडित जी बोले, श्रोता बहुत कम आते हैं तो रूपए कैसे पैदा हों ?
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सेठ ने कहा, मेरी एक शर्त है रोजाना कथा में जितना पैसा आए वह आप मेरे को दे देना और मैं आप को पचास रूपए दे दिया करूंगा।
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पंडित जी ने सोचा कि उनके पास कौन सा इतने पैसे आते हैं। अगर मैं सेठ की बात मान लूं तो रोजाना पचास रूपए तो मिलेंगे, पंडित जी ने सेठ कि बात मान ली।
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इधर सेठ ने सोच रखा था कि भगवान कि आज्ञा का पालन करने हेतु हनुमान जी सौ रूपए पंडित जी को जरूर देंगे।
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मुझे सीधे-सीधे पचास रूपए का फायदा हो रहा है। जो लोभी आदमी होते हैं वे पैसे के बारे में ही सोचते हैं। सेठ ने भगवान जी कि बातें सुनकर भी भक्ति कि और ध्यान नहीं दिया बल्कि पैसे कि और आकर्षित हो गए।
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अब सेठ जी कथा के उपरांत पंडित जी के पास गए और उनसे पूछा कि, कितने रुपए आएं है ?
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सेठ के मन में विचार था कि हनुमान जी सौ रूपए तो भेंट में जरूर दिलवाऐंगे, मगर पंडित जी ने कहा कि पांच-सात रूपए ही हुए हैं।
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अब सेठ को शर्त के मुताबिक पचास रूपए पंडित जी को देने पड़े। सेठ को हनुमान जी पर बहुत ही गुस्सा आ रहा था कि उन्होंने पंडित जी को सौ रूपए नहीं दिए।
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वह मंदिर में गया और हनुमान जी कि मूर्ती पर घूंसा मारा। घूंसा मारते ही सेठ का हाथ मूर्ती पर चिपक गया
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अब सेठ जोर लगाये अपना हाथ छुड़ाने के लिए पर नाकाम रहा। हाथ हनुमान जी कि पकड़ में ही रहा। हनुमान जी किसी को पकड़ लें तो वह कैसे छूट सकता है ?
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सेठ को फिर आवाज सुनाई दी। उसने ध्यान से सुना, भगवान हनुमान जी से पूछ रहे थे कि तुमने ब्रह्मण को सौ रूपए दिलाएं कि नहीं ?
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हनुमान जी ने कहा, महाराज पचास रूपए तो दिला दिए हैं, बाकी पचास रुपयों के लिए सेठ को पकड़ रखा है। वह पचास रूपए दे देगा तो छोड़ देंगे।
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सेठ ने सुना तो विचार किया कि मंदिर में लोग आकर मेरे को देखेंगे तो बड़ी बेईज्ज़ती होगी।
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वह चिल्लाकर बोला, हनुमान जी महाराज ! मेरे को छोड़ दो, मैं पचास रूपय दे दूंगा।
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हनुमान जी ने सेठ को छोड़ दिया। सेठ ने जाकर पंडित जी को पचास रूपए दे दिए।
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(((((((((( जय जय श्री राधे ))))))))))
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~देव शर्मा

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आदतें नस्लों का पता देती हैं।


आदतें नस्लों का पता देती हैं। ( एक अरबी कहानी )
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एक बादशाह के दरबार मे एक अजनबी नौकरी की तलब के लिए हाज़िर हुआ ।

क़ाबलियत पूछी गई,
कहा,
“सियासी हूँ ।” ( अरबी में सियासी अक्ल ओ तदब्बुर से मसला हल करने वाले मामला फ़हम को कहते हैं ।)

बादशाह के पास सियासतदानों की भरमार थी, उसे खास “घोड़ों के अस्तबल का इंचार्ज” बना लिया।
चंद दिनों बाद बादशाह ने उस से अपने सब से महंगे और अज़ीज़ घोड़े के मुताल्लिक़ पूछा,
उसने कहा, “नस्ली नही हैं ।”

बादशाह को ताज्जुब हुआ, उसने जंगल से साईस को बुला कर दरियाफ्त किया..
उसने बताया, घोड़ा नस्ली हैं, लेकिन इसकी पैदायश पर इसकी मां मर गई थी, ये एक गाय का दूध पी कर उसके साथ पला है।

बादशाह ने अपने मसूल को बुलाया और पूछा तुम को कैसे पता चला के घोड़ा नस्ली नहीं हैं ?”

“”उसने कहा “जब ये घास खाता है तो गायों की तरह सर नीचे करके, जबकि नस्ली घोड़ा घास मुह में लेकर सर उठा लेता हैं ।”””

बादशाह उसकी फरासत से बहुत मुतास्सिर हुआ, उसने मसूल के घर अनाज ,घी, भुने दुंबे, और परिंदों का आला गोश्त बतौर इनाम भिजवाया।

और उसे मलिका के महल में तैनात कर दिया।
चंद दिनो बाद , बादशाह ने उस से बेगम के बारे में राय मांगी, उसने कहा, “तौर तरीके तो मलिका जैसे हैं लेकिन शहज़ादी नहीं हैं ।”

बादशाह के पैरों तले जमीन निकल गई, हवास दुरुस्त हुए तो अपनी सास को बुलाया, मामला उसको बताया, सास ने कहा “हक़ीक़त ये हैं, कि आपके वालिद ने मेरे खाविंद से हमारी बेटी की पैदायश पर ही रिश्ता मांग लिया था, लेकिन हमारी बेटी 6 माह में ही मर गई थी, लिहाज़ा हम ने आपकी बादशाहत से करीबी ताल्लुक़ात क़ायम करने के लिए किसी और कि बच्ची को अपनी बेटी बना लिया।”

बादशाह ने अपने मुसाहिब से पूछा “तुम को कैसे इल्म हुआ ?”

“”उसने कहा, “उसका खादिमों के साथ सुलूक जाहिलों से भी बदतर हैं । एक खानदानी इंसान का दूसरों से व्यवहार करने का एक मुलाहजा एक अदब होता हैं, जो शहजादी में बिल्कुल नहीं।

बादशाह फिर उसकी फरासत से खुश हुआ और बहुत से अनाज , भेड़ बकरियां बतौर इनाम दीं साथ ही उसे अपने दरबार मे मुतय्यन कर दिया।

कुछ वक्त गुज़रा, मुसाहिब को बुलाया,अपने बारे में दरियाफ्त किया ।

मुसाहिब ने कहा “जान की अमान ।”

बादशाह ने वादा किया ।

उसने कहा, “न तो आप बादशाह ज़ादे हो न आपका चलन बादशाहों वाला है।”

बादशाह को ताव आया, मगर जान की अमान दे चुका था, सीधा अपनी वालिदा के महल पहुंचा ।

वालिदा ने कहा,
“ये सच है, तुम एक चरवाहे के बेटे हो, हमारी औलाद नहीं थी तो तुम्हे लेकर हम ने पाला ।”

बादशाह ने मुसाहिब को बुलाया और पूछा , बता, “तुझे कैसे इल्म हुआ ????”

उसने कहा “बादशाह जब किसी को “इनाम ओ इकराम” दिया करते हैं, तो हीरे मोती जवाहरात की शक्ल में देते हैं….लेकिन आप भेड़, बकरियां, खाने पीने की चीजें इनायत करते हैं…ये असलूब बादशाह ज़ादे का नही, किसी चरवाहे के बेटे का ही हो सकता है।”

किसी इंसान के पास कितनी धन दौलत, सुख समृद्धि, रुतबा, इल्म, बाहुबल हैं ये सब बाहरी मुल्लम्मा हैं ।
इंसान की असलियत, उस के खून की किस्म उसके व्यवहार, उसकी नियत से होती हैं ।

एक इंसान बहुत आर्थिक, शारीरिक, सामाजिक और राजनैतिक रूप से बहुत शक्तिशाली होने के उपरांत भी अगर वह छोटी छोटी चीजों के लिए नियत खराब कर लेता हैं, इंसाफ और सच की कदर नहीं करता, अपने पर उपकार और विश्वास करने वालों के साथ दगाबाजी कर देता हैं, या अपने तुच्छ फायदे और स्वार्थ पूर्ति के लिए दूसरे इंसान को बड़ा नुकसान पहुंचाने की लिए तैयार हो जाता हैं, तो समझ लीजिए, खून में बहुत बड़ी खराबी हैं । बाकी सब तो पीतल पर चढ़ा हुआ सोने का मुलम्मा हैं ।
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देव शर्मा