भारत का गौरवशाली अतीत !
★तक्षशिला विश्वविद्यालय★
‘तक्षशिला विश्वविद्यालय’ वर्तमान पाकिस्तान की राजधानी रावलपिण्डी से 18 मील
उत्तर की ओर स्थित था।
जिस नगर में यह विश्वविद्यालय था उसके बारे में कहा जाता है कि श्री राम के भाई
भरत के पुत्र तक्ष ने उस नगर की स्थापना की थी।
यह विश्व का प्रथम विश्विद्यालय था जिसकी स्थापना 700 वर्ष ईसा पूर्व में की गई थी।
तक्षशिला विश्वविद्यालय में पूरे विश्व के 10,500 से अधिक छात्र अध्ययन करते थे।
यहां 60 से भी अधिक विषयों को पढ़ाया जाता था।
326 ईस्वी पूर्व में विदेशी आक्रमणकारी सिकन्दर के आक्रमण के समय यह संसार का
सबसे प्रसिद्ध विश्वविद्यालय ही नहीं था, अपितु उस समय के चिकित्सा शास्त्र का एक
मात्र सर्वोपरि केन्द्र था।
तक्षशिला विश्वविद्यालय का विकास विभिन्न रूपों में हुआ था।
इसका कोई एक केन्द्रीय स्थान नहीं था,अपितु यह विस्तृत भू भाग में फैला हुआ था।
विविध विद्याओं के विद्वान आचार्यो ने यहां अपने विद्यालय तथा आश्रम बना रखे थे।
छात्र रुचिनुसार अध्ययन हेतु विभिन्न आचार्यों के पास जाते थे।
महत्वपूर्ण पाठयक्रमों में यहां वेद-वेदान्त,अष्टादश विद्याएं,दर्शन,व्याकरण,अर्थशास्त्र,
राजनीति,युद्धविद्या,शस्त्र-संचालन, ज्यतिष,आयुर्वेद,ललित कला,हस्त विद्या,अश्व-विद्या,
मन्त्र-विद्या,विविध भाषाएं,शिल्प आदि की शिक्षा विद्यार्थी प्राप्त करते थे।
प्राचीन भारतीय साहित्य के अनुसार पाणिनी,कौटिल्य,चन्द्रगुप्त,जीवक,कौशलराज,
प्रसेनजित आदि महापुरुषों ने इसी विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की।
तक्षशिला विश्वविद्यालय में वेतनभोगी शिक्षक नहीं थे और न ही कोई निर्दिष्ट
पाठयक्रम था।
आज कल की तरह पाठयक्रम की अवधि भी निर्धारित नहीं थी और न कोई विशिष्ट
प्रमाणपत्र या उपाधि दी जाती थी।
शिष्य की योग्यता और रुचि देखकर आचार्य उनके लिए अध्ययन की अवधि स्वयं
निश्चित करते थे।
परंतु कहीं-कहीं कुछ पाठयक्रमों की समय सीमा निर्धारित थी।
चिकित्सा के कुछ पाठयक्रम सात वर्ष के थे तथा पढ़ाई पूरी हो जाने के बाद प्रत्येक
छात्र को छ: माह का शोध कार्य करना पड़ता था।
इस शोध कार्य में वह कोई औषधि की जड़ी-बूटी पता लगाता तब जाकर उसे डिग्री
मिलती थी।
★यह विश्व का प्रथम विश्वविद्यालय था जिसकी स्थापना 700 वर्ष ईसा पूर्व में
की गई थी।★
★तक्षशिला विश्वविद्यालय में पूरे विश्व के 10,500 से अधिक छात्र अध्ययन
करते थे।★
★यहां 60 से भी अधिक विषयों को पढ़ाया जाता था।★
★326 ईस्वी पूर्व में विदेशी आक्रमणकारी सिकन्दर के आक्रमण के समय यह संसार
का सबसे प्रसिद्ध विश्वविद्यालय ही नहीं था, अपितु उस समय के’चिकित्सा शास्त्र’का
एकमात्र सर्वोपरि केन्द्र था।★
★आयुर्वेद विज्ञान का
सबसे बड़ा केन्द्र★
500 ई. पू. जब संसार में चिकित्सा शास्त्र की परंपरा भी नहीं थी तब तक्षशिला’आयुर्वेद
विज्ञान’का सबसे बड़ा केन्द्र था।
जातक कथाओं एवं विदेशी पर्यटकों के लेख से पता चलता है कि यहां के स्नातक
मस्तिष्क के भीतर तथा अंतड़ियों तक का ऑपरेशन बड़ी सुगमता से कर लेते थे।
अनेक असाध्य रोगों के उपचार सरल एवं सुलभ जड़ी बूटियों से करते थे।
इसके अतिरिक्त अनेक दुर्लभ जड़ी-बूटियों का भी उन्हें ज्ञान था।
शिष्य आचार्य के आश्रम में रहकर विद्याध्ययन करते थे।
एक आचार्य के पास अनेक विद्यार्थी रहते थे।
इनकी संख्या प्राय: सौ से अधिक होती थी और अनेक बार 500 तक पहुंच जाती थी।
अध्ययन में क्रियात्मक कार्य को बहुत महत्त्व दिया जाता था।
छात्रों को देशाटन भी कराया जाता था।
★शुल्क और परीक्षा★
शिक्षा पूर्ण होने पर परीक्षा ली जाती थी।
तक्षशिला विश्वविद्यालय से स्नातक होना उससमय अत्यंत गौरवपूर्ण माना जाता था।
यहां धनी तथा निर्धन दोनों तरह के छात्रों के अध्ययन की व्यवस्था थी।
धनी छात्र आचार्य को भोजन,निवास और अध्ययन का शुल्क देते थे तथा निर्धन छात्र
अध्ययन करते हुए आश्रम के कार्य करते थे।
शिक्षा पूरी होने पर वे शुल्क देने की प्रतिज्ञा करते थे।
प्राचीन साहित्य से विदित होता है कि तक्षशिला विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले उच्च वर्ण
के ही छात्र होते थे।
सुप्रसिद्ध विद्वान,चिंतक,कूटनीतिज्ञ,अर्थशास्त्री चाणक्य ने भी अपनी शिक्षा यहीं
पूर्ण की थी।
उसके बाद यहीं शिक्षण कार्य करने लगे। यहीं उन्होंने अपने अनेक ग्रंथों की रचना की।
इस विश्वविद्यालय की स्थिति ऐसे स्थान पर थी,जहां पूर्व और पश्चिम से आने वाले
मार्ग मिलते थे।
चतुर्थ शताब्दी ई. पू. से ही इस मार्ग से भारतवर्ष पर विदेशी आक्रमण होने लगे।
विदेशी आक्रांताओं ने इस विश्वविद्यालय को काफ़ी क्षति पहुंचाई।
अंतत: छठवीं शताब्दी में यह आक्रमणकारियों द्वारा पूरी तरह नष्ट कर दिया।
★पाठ्यक्रम★
★उस समय विश्वविद्यालय कई विषयों के पाठ्यक्रम उपलब्ध करता था,
जैसे – भाषाएं,व्याकरण,दर्शन शास्त्र,चिकित्सा,शल्य चिकित्सा, कृषि,भूविज्ञान,
ज्योतिष,खगोल शास्त्र,ज्ञान-विज्ञान,समाज-शास्त्र,धर्म,तंत्र शास्त्र,मनोविज्ञान तथा
योगविद्या आदि।
★विभिन्न विषयों पर शोध का भी प्रावधान था।
★शिक्षा की अवधि 8 वर्ष तक की होती थी।
★विशेष अध्ययन के अतिरिक्त वेद,तीरंदाजी,घुड़सवारी,हाथी का संधान व एक दर्जन
से अधिक कलाओं की शिक्षा दी जाती थी।
★तक्षशिला के स्नातकों का हर स्थान पर बड़ा आदर होता था।
★यहां छात्र 15-16 वर्ष की अवस्था में प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करने आते थे।
स्वाभाविक रूप से चाणक्य को उच्च शिक्षा की चाह तक्षशिला ले आई।
यहां चाणक्य ने पढ़ाई में विशेष योग्यता प्राप्त की
जय महाकाल !!
जय जय श्री राम !!
★#प्रत्यंचासनातनसंस्कृति★
★पंकज मिथिलेश व्दिवेदी★
(मेरे अनुज अत्यंत प्रिय मित्र
दि• श्री मिथिलेश द्विवेदी
“अन्ना” जी)
—-यों तो गांधार की चर्चा ऋग्वेद से ही मिलती है[तथ्य वांछित]
किंतु तक्षशिला की जानकारी सर्वप्रथम वाल्मीकि रामायण से होती है।
अयोध्या के राजा रामचंद्र की विजयों के उल्लेख के सिलसिले में हमें यह ज्ञात होता है
कि उनके छोटे भाई भरत ने अपने नाना केकयराज अश्वपति के आमंत्रण और उनकी
सहायता से गंधर्वो के देश (गांधार) को जीता और अपने दो पुत्रों को वहाँ का शासक
नियुक्त किया।
गंधर्व देश सिंधु नदी के दोनों किनारे, स्थित था (सिंधोरुभयत: पार्श्वे देश: परमशोभन:,
वाल्मिकि रामायण, सप्तम, 100-11) और उसके दानों ओर भरत के तक्ष और पुष्कल
नामक दोनों पुत्रों ने तक्षशिला और पुष्करावती नामक अपनी-अपनी राजधानियाँ बसाई।
(रघुवंश पंद्रहवाँ, 88-9; वाल्मीकि रामायण, सप्तम, 101.10-11; वायुपुराण, 88.190,
महा0, प्रथम 3.22)।
तक्षशिला सिंधु के पूर्वी तट पर थी। उन रघुवंशी क्षत्रियों के वंशजों ने तक्षशिला पर कितने
दिनों तक शासन किया, यह बता सकना कठिन है।
महाभारत युद्ध के बाद परीक्षित के वंशजों ने कुछ पीढ़ियों तक वहाँ अधिकार बनाए रखा
और जनमेजय ने अपना नागयज्ञ वहीं किया था (महा0, स्वर्गारोहण पर्व, अध्याय 5)।
गौतम बुद्ध के समय गांधार के राजा पुक्कुसाति ने मगधराज विंबिसार के यहाँ अपना
दूतमंडल भेजा था।
छठी शती ई0 पूर्व फारस के शासक कुरुष ने सिंधु प्रदेशों पर आक्रमण किया और बाद
में भी उसके कुछ उत्तराधिकारियों ने उसकी नकल की। लगता है, तक्षशिला उनके कब्जे
में चली गई और लगभग 200 वर्षों तक उसपर फारस का अधिपत्य रहा।
मकदूनिया के आक्रमणकारी विजेता सिकंदर के समय की तक्षशिला की चर्चा करते
हुए स्ट्रैबो ने लिखा है (हैमिल्टन और फाकनर का अंग्रेजी अनुवाद, तृतीय, पृष्ट 90)
कि वह एक बड़ा नगर था,अच्छी विधियों से शासित था,घनी आबादीवाला था और
उपजाऊ भूमि से युक्त था।
वहाँ का शासक था बैसिलियस अथवा टैक्सिलिज।
उसने सिकंदर से उपहारों के साथ भेंट कर मित्रता कर ली।
उसकी मृत्यु के बाद उसका पुत्र भी,जिसका नाम आंभी था,सिकंदर का मित्र बना रहा,
किंतु थोड़े ही दिनों पश्चात् चंद्रगुप्त मौर्य ने उत्तरी पश्चिमी सीमाक्षेत्रों से सिकंदर के
सिपहसालारों को मारकर निकाल दिया और तक्षशिला पर उसका अधिकार हो गया।
वह उसके उत्तरापथ प्रांत की राजधानी हो गई और मौर्य राजकुमार मत्रियों की सहायता
से वहाँ शासन करने लगे।
भारत का तक्षशिला विश्वविद्यालय विश्व का सबसे पुराना विश्वविद्यालय है।
भारत में कुछ ऐसे विश्वविद्यालय हैं जिनका इतिहास काफी पुराना रहा है,जिन्होंने
गुलाम भारत से स्वंत्रत भारत को भी देखा।
आज भी दुनिया में भारत ने शिक्षा के क्षेत्र में लोहा मनवाया है।
#साभार_संकलित★
जयति पुण्य सनातन संस्कृति,,
जयति पुण्य भूमि भारत,,
सदा सर्वदा सुमंगल,,,
हर हर महादेव,
वंदेभारतमातरम,,,
जय श्री राम,,
विजय कृष्णा पांडेय