Posted in भारतीय मंदिर - Bharatiya Mandir

खंडोबा मंदिर और सुनहरी जेजुरी

स्थान: – यह मंदिर पुणे से 40 किलोमीटर दूर और सोलापुर से 60 किमी पर जेजुरी के शहर में स्थित है। यह देश में प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में से एक है।

मुख्य देवता: – जेजुरी का शहर भगवान खंडोबा के लिए समर्पित है। इन्हे मार्तण्ड भैरव औरमल्हारी – जैसे अन्य नामों से पुकारा जाता है, जो भगवान शिव का दूसरा रूप है। मराठी में, सम्मान रूप में किसी नाम के बाद “बा”, “राव” या “राया”, लगाया जाता है ।इसीलिए ,खंडोबा भीखण्डेराया या खंडेराव के रूप में जाना जाता है।
शहर में भी खण्डोबाची जेजुरी (भगवान खंडोबा के जेजुरी) के नाम से जाना जाता है। खंडोबा की मूर्ती अक्सर एक घोड़े की सवारी करते एक योद्धा के रूप में है। उनके हाथ में राक्षसों को मारने के लिए कि एक बड़ी तलवार (खड्ग) है। खंडोबा नाम भी “खड्ग” इस शब्द से लिया गया है ।
कुछ लोग खंडोबा को शिव, भैरव (शिव का क्रूर रूप ), सूर्य देवता औरकार्तिकेय -इन देवताओं के समामेलनके रूप में विश्वास करते हैं।

वास्तुकला: – मंदिर मुख्य रूप से पत्थर का निर्माण किया है। यह एक पहाड़ी के ऊपर स्थित है और भक्तों को मुख्य गर्भगृह तक पहुंचने के लिए सीढ़िया (500 से अधिक) चढ़ने की जरूरत है। मंदिर के हर कदम पर, हल्दीका छिड़काव किया गया है । हर जगह बिखरे हल्दी की वजह से ये पूरा स्थान सुनहरा दिखाई देता है। मराठी में इस स्थान को सोन्याची जेजुरीकहते है।

इतिहास : – मल्हारी महात्म्य और महाराष्ट्र और कर्नाटक के लोक गीतों तथा साहित्यिक कृतियों में खंडोबा का उल्लेख है । ब्रह्माण्ड पुराण का कहना है – राक्षसों मल्ला और मणि को भगवान ब्रह्मा से एक वरदान द्वारा संरक्षित किया गया था । इस सुरक्षा के साथ, वे अपने आप को अजेय मानने लगे और पृथ्वी पर संतों और लोगों को आतंकित करने लगे । तब भगवान शिवने खंडोबा के रूप में अपने बैल, नंदी की सवारी करते हुए ए। दुनिया के लिए राहत प्रदान करने हेतु उन्होंने राक्षसों को मारने का भार संभाला। मणि ने उन्हें एक घोडा प्रदान किया और मानव जाति की भलाई के लिए भगवान से वरदान माँगा ।खंडोबा ने खुशी से यह वरदान दिया । अन्य दानव मल्ला ने , मानव जाति के विनाश माँगा। तब भगवन ने उसका सर काट कर मंदिर की सीढ़ियों पर छोड़ दिया ताकि मंदिर में प्रवेश के समय भक्त द्वारा कुचल दिया जा सके।

त्योहार/ प्रार्थना: – खंडोबा एक उग्र देवता मने जाते है और इनकी पूजा की सख्त रस्में होती हैं। साधारण पूजाओं की तरह हल्दी, फूल और शाकाहारी भोजन के साथ-साथ, कभी कभी बकरी का मांस मंदिर के बाहर देवता को चढ़ाया जाता है।

भक्तो के अनुसार खंडोबा बच्चे के जन्म और विवाह में बाधाओं को दूर करते है ।

मल्ला और मणि पर उनकी जीत को मनाने के लिए, एक छह दिवसीय मेला जेजुरी में हर साल आयोजित किया जाता है। इस मेले को मार्गशीर्ष के हिंदू महीने के दौरान मनाते है। अंतिम दिन को चंपा षष्टी कहा जाता है और इस दिन व्रत किया जाता है।

रविवार और पूर्णिमा के दिन पूजा के लिए शुभ दिन माना जाता है।

दिशा निर्देश –
इस जगह के बारे में एक घंटे पुणे के माध्यम से ड्राइव और अच्छी तरह से परिवहन के सभी साधनों से जुड़ा हुआ है।

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अंग्रेज कवि हुआ टेनिसन। और उसने अपने संस्मरण


अंग्रेज कवि हुआ टेनिसन। और उसने अपने संस्मरण
में एक बड़ी अनूठी बात लिखी है। उसने लिखा
है कि मैं छोटा बच्चा था और मुझे घर में जल्दी
सोने भेज दिया जाता। घर के लोग तो देर तक
जागते, लेकिन बच्चे को जल्दी भेज देते। मुझे नींद
न आती और कोई उपाय न था और अंधेरे में मुझे डर
भी लगता। अंधेरा कर देते कमरे में और दरवाजा
बंद कर देते और कहते, कि सो जाओ। और सोना
पड़ता। और नींद न आती और अंधेरे में भूत-प्रेत
दिखाई पड़ते और डर भी लगता।
तो मैं आंख बंद करके, कि क्या करूं–पिता
नास्तिक थे इसलिए कोई प्रार्थना कभी
सिखाई नहीं थी। परमात्मा का कोई नाम
नहीं सिखाया, तो क्या करूं? तो मैं अपना ही
नाम दोहराता : “टेनिसन-टेनिसन-टेनिसन”।
उससे थोड़ी हिम्मत बढ़ती, थोड़ी गर्मी आती
और “टेनिसन, टेनिसन, टेनिसन दोहराते-दोहराते
मैं सो जाता।
धीरे-धीरे यह अभ्यास हो गया। और जब भी
चिंता पकड़ती, कोई तनाव होता तो टेनिसन
कहता है, बस तीन बार भीतर आंख बंद करके मुझे
इतना ही कहना पड़ताः “टेनिसन, टेनिसन,
टेनिसन; और सब शांत हो जाता। मंत्र हो गया
अपना ही नाम।
और टेनिसन ने लिखा है, कि मैं इससे बड़े गहरे
ध्यान में उतरने लगा। यह तो मुझे बहुत बाद में
पता चला कि इसे लोग ध्यान कहते हैं।
अपना ही नाम का स्मरण भी तुम्हें परमात्मा
तक पहुंचा सकता है। यह सवाल नहीं है, क्योंकि
सभी नाम उसके हैं। तुम्हारा नाम भी उसी का
है। टेनिसन भी उसी का नाम है। अल्लाह उसी
का नाम है, राम उसी का नाम है। कोई दशरथ के
बेटे ने ठेका लिया है? तुम भी किसी दशरथ के बेटे
हो। तुम्हारा नाम भी उसी का नाम है।
तुम अपना ही नाम भी अगर दोहराओ, तो भी
परिणाम वही होगा। क्योंकि असली सवाल
बोधपूर्वक भीतर स्मरण को जगाने का है। अगर
“टेनिसन, टेनिसन, टेनिसन” या “राम, राम, राम”
कुछ भी तुम दोहराते हो, उसके दोहराने के क्षण
में ही भीतर एक शांत अवस्था बनने लगती है।
और उसको दोहराते-दोहराते तुम्हें यह दिखाई
पड़ने लगता है कि दोहराने वाला अलग है और
जो दोहराया जा रहा है, वह अलग है। तुम धीरे-
धीरे साक्षी-भाव को उत्पन्न होने लगते हो।
स्मरण साक्षी-भाव की सीढ़ियां हैं। जितना
स्मरण गहरा होता है, उतने तुम साक्षी-भाव से
भर जाते हो। इसे तुम करके देखो। अगर न हो
परमात्मा पर भरोसा, कोई चिंता नहीं, तुम
अपना ही स्मरण करो।

➡कहे कबीर दीवाना, प्रवचन-१६,

ओशो

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एक पुरानी कहानी तुमसे कहूं—झेन कथा है।


एक पुरानी कहानी तुमसे कहूं—झेन कथा है।
एक झेन सदगुरु के बगीचे में कद्दू लगे थे।
सुबह—सुबह गुरु बाहर आया तो देखा,
कद्दूओ में बड़ा झगड़ा और विवाद मचा है।
कद्दू ही ठहरे! उसने कहा : ‘अरे कद्दूओ यह क्या कर रहे हो?
आपस में लड़ते हो !’ वहा दो दल हो गए थे
कद्दूओं में और मारधाड़ की नौबत थी।
झेन गुरु ने कहा ‘कद्दूओ, एक—दूसरे को प्रेम करो।’
उन्होंने कहा ‘यह हो ही नहीं सकता। दुश्मन को प्रेम करें?
यह हो कैसे सकता है !’ तो झेन गुरु ने कहा, ‘फिर ऐसा करो, ध्यान करो।
‘ कदुओं ने कहा. ‘हम कद्दू हैं, हम ध्यान कैसे करें ?’
तो झेन गुरु ने ‘कहा : ‘देखो—भीतर मंदिर में बौद्ध भिक्षुओं की कतार ध्यान करने बैठी थी—देखो ये कद्दू इतने कद्दू ध्यान कर रहे हैं।’
बौद्ध भिक्षुओं के सिर तो घुटे होते हैं, कदुओं जैसे ही लगते हैं।
’तुम भी इसी भांति बैठ जाओ।’ पहले तो कद्दू हंसे, लेकिन सोचा
‘गुरु ने कभी कहा भी नहीं; मान ही लें, थोड़ी देर बैठ जाएं।’
जैसा गुरु ने कहा वैसे ही बैठ गए—सिद्धासन में पैर मोड़ कर आंखें बंद करके, रीढ़ सीधी करके। ऐसे बैठने से थोड़ी देर में शांत होने लगे।
सिर्फ बैठने से आदमी शांत हो जाता है।
इसलिए झेन गुरु तो ध्यान का नाम ही रख दिये हैं. झाझेन।
झाझेन का अर्थ होता है. खाली बैठे रहना, कुछ करना न।
कद्दू बैठे—बैठे शांत होने लगे, बड़े हैरान हुए, बड़े चकित भी हुए!
ऐसी शांति कभी जानी न थी।
चारों तरफ एक अपूर्व आनंद का भाव लहरें लेने लगा।
फिर गुरु आया और उसने कहा : ‘अब एक काम और करो,
अपने— अपने सिर पर हाथ रखो।’ हाथ सिर पर रखा तो और चकित हो गए।
एक विचित्र अनुभव आया कि वहा तो किसी बेल से जुड़े हैं।
और जब सिर उठा कर देखा तो वह बेल एक ही है, वहां दो बेलें न थीं,
एक ही बेल में लगे सब कद्दू थे। कदुओं ने कहा : ‘हम भी कैसे मूर्ख!
हम तो एक ही के हिस्से हैं, हम तो सब एक ही हैं,
एक ही रस बहता है हमसे—और हम लड़ते थे।’ तो गुरु ने कहा. ‘अब प्रेम करो।
अब तुमने जान ?? कि एक ही हो, कोई पराया नहीं। एक का ही विस्तार है।’
वह जहां से कदुओं ने पकड़ा अपने सिर पर,
उसी को योगी सातवां चक्र कहते हैं : सहस्रार।
हिंदू वहीं चोटी बढ़ाते हैं। चोटी का मतलब ही यही है कि
वहा से हम एक ही बेल से जुड़े हैं। एक ही परमात्मा है।
एक ही सत्ता, एक अस्तित्व, एक ही सागर लहरें ले रहा है।
वह जो पास में तुम्हारे लहर दिखाई पड़ती है, भिन्न नहीं, अभिन्न है;
तुमसे अलग नहीं, गहरे में तुमसे जुड़ी है। सारी लहरें संयुक्त हैं।
तुमने कभी एक बात खयाल की?
तुमने कभी सागर में ऐसा देखा कि एक ही लहर उठी हो
और सारा सागर शांत हो? नहीं, ऐसा नहीं होता।
तुमने कभी ऐसा देखा, वृक्ष का एक ही पत्ता हिलता हो
और सारा वृक्ष मौन खड़ा हो, हवाएं न हों?
जब हिलता है तो पूरा वृक्ष हिलता है।
और जब सागर में लहरें उठती हैं तो अनंत उठती हैं, एक लहर नहीं उठती। क्योंकि एक लहर तो हो ही नहीँ सकती।
तुम सोच सकते हो कि एक मनुष्य हो सकता है पृथ्वी पर? असंभव है।
एक तो हो ही नहीं सकता। हम तो एक ही सागर की लहरें हैं,
अनेक होने में हम प्रगट हो रहे हैं। जिस दिन यह अनुभव होता है,
उस दिन प्रेम का जन्म होता है।
प्रेम का अर्थ है : अभिन्न का बोध हुआ, अद्वैत का बोध हुआ।
शरीर तो अलग— अलग दिखाई पड ही रहे हैं,
कद्दू तो अलग— अलग हैं ही, लहरें तो ऊपर से
अलग—अलग दिखाई पड़ ही रही हैं— भीतर से आत्मा एक है।
प्रेम का अर्थ है. जब तुम्हें किसी में और अपने बीच एकता का अनुभव हुआ।
और ऐसा नहीं है कि तुम्हें जब यह एकता का अनुभव होगा तो एक
और तुम्हारे बीच ही होगा; यह अनुभव ऐसा है कि हुआ
कि तुम्हें तत्‍क्षण पता चलेगा कि सभी एक हैं।
भ्रांति टूटी तो वृक्ष, पहाड़—पर्वत, नदी—नाले,
आदमी—पुरुष, पशु —पक्षी, चांद—तारे सभी में एक ही कंप रहा है।
उस एक के कंपन को जानने का नाम प्रेम है।
प्रेम प्रार्थना है।

Posted in हास्यमेव जयते

बिना हेलमेट के बाइक चला रहा था।
पुलिस वाले ने रोका, “हेलमेट कहाँ है?” उसने बोला, “भूल गया।”
पुलिस : क्या नाम है? काम क्या करते हो?
बाइक सवार: केहर सिंह नाम है और मैं एक फौजी हूँ।
पुलिस : अच्छा कोई बात नहीं, जाओ, आगे से हेलमेट पहन कर बाइक चलाना।

केहर : नहीं भाई, आप अपना काम करो। मैंने गलती की है, मेरा चालान काटो।
पुलिस : ठीक है, अगर ऐसी ही बात है , तो निकालो 100 रु और पर्ची लेकर जाओ।

केहर : नहीं, यहाँ नहीं भुगतना चालान। मैं अदालत में ही जाकर चालान भुगतुंगा।

अदालत में :

संतरी: केहर सिंह को बुलाओ।
जज: हांजी, मिस्टर केहर सिंह, आप 100 रु का चालान भर दीजिये।
केहर: नहीं जनाब, यह कोई तरीका नहीं हुआ। आपने मेरी “दलील” तो सुनी ही नहीं ?
जज: अच्छा बताओ, क्यों तुम्हें 100 रु का फाइन न किया जाए?
केहर: जनाब, 100 रु का फाइन थोड़ा कम है इसे आप 335 रु का कर दीजिए।
जज: क्यों? और 335 का ही क्यों?
केहर: क्योंकि मुझे 100 रु कम लगता है और 336 रु ज्यादा ही नाइन्साफ़ी हो जाएगी।
(वहाँ खड़ी भीड़ हंसती है)
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जज: (काठ का हथौड़ा मेज पर मारते हुए) शांति, शांति बनाए रखिये।
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केहर: जनाब एक और सलाह है, ये हथौड़ा ‘काठ’ की बजाए “स्टील” का होना चाहिए , आवाज ज्यादा होगी। एक और बात, यहाँ इस कमरे में भीड़ बहुत ज्यादा है। आप एक आर्डर पास कर दीजिए की कल से यहाँ ज्यादा से ज्यादा बस 127 लोग ही आएं।
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जज: are you lost your mind Mr. Kehar Singh? आप यहाँ अदालत में जोक्स क्रैक कर रहे हैं। आप एक जज को सिखा रहे हैं कि अदालत कैसे चलानी है? कानून क्या होना चाहिए? फैसला क्या करना है? आपको पता भी है हम किस परिस्थिति में काम करते हैं? हमारे ऊपर कितना प्रेशर होता है? और….
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केहर: जनाब! मैं एक फौजी हूँ। अभी कश्मीर में पोस्टेड हूँ। with all due respect , sir, आपको ‘ नहीं पता कि “प्रेशर” क्या होता है। आपका प्रेशर ज्यादा से ज्यादा आपको एक दो घंटे ओवरटाइम करवा देगा। हमारा प्रेशर हमारी और सैंकड़ो और लोगों की जान ले सकता है।
जनाब, क्षमा कीजिये कि मैंने आपको सलाह दी। जिस काम के लिए आपको ट्रेनिंग दी जाती है, जिस काम में आप माहिर हैं उस काम में मैंने आपको सलाह दी। परन्तु आप भी तो यही करते हैं हमारे साथ…..मसलन…बन्दुक को 90 डिग्री से नीचे कर के चलाओ, असली गन मत चलाओ, पेलेट गन चलाओ, बस घुटनों के नीचे निशाना लगाओ, प्लास्टिक की गौलियाँ इस्तेमाल करो, प्लास्टिक की गोली भी खोखली होनी चाहिए, उसका वजन xyz ग्राम से ज्यादा नो हो। ये क्या है , जज साब? क्या आप यहाँ ac रूम में बैठ कर हमें सिखाओगे कि हमें अपना काम कैसे करना है? जिस काम के लिए हम trained हैं, जिन situations का हमको firsthand experience है, आप हमें बताओगे कि उस situation में हमें कैसे react करना चाहिए?
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(सन्नाटा)……

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कछुए और खरगोश की दौड़ मे..आलसी खरगोश कुछ दूर जाकर सो जाता है


कछुए और खरगोश की दौड़ मे..आलसी खरगोश कुछ दूर जाकर सो जाता है और मेहनती कछुआ जीत जाता है..कहानी खत्म हो जाती है !
लेकिन इस कहानी मे भयंकर twist है आगे पढे ,फिर क्या होता है ??

ये जानने के लिए आप इस आलेख को विस्तार से पढिए ।

सामर्थवान मनुष्य जब किसी दुर्बल से हारता है तो उसका दंभ (ego) टूट जाता है और वह कुंठीत हो जाता है ।

ठीक वैसे ही चमत्कारिक तरीके से मिली जीत हमे अतिउत्साही…….. (overconfident) बना देती है ये सब naturally है ….जिसे हम अपने सकारात्मक या नकारात्मक विचारो से खुद मे स्थापित कर लेते है ।

चूंकि …खरगोश एक तेज दौड़ने वाला प्राणी होता है;…फिर कछुए की तुलना मे तो कई गुना अधिक सामर्थवान !
लेकिन हार चुका था ,……कुंठित हो गया !

खरगोश दोबारा प्रतियोगिता चाहता था सो कछुए से बोला
— एक बार फिर से शर्त लगाता हूं… क्या तुम फिर से तैयार हो इस चुनौती के लिए ?

अप्रत्याशित जीत से कछुआ भी अतिउत्साही था ….जीत के नशे मे चूर कछुए ने हामी भर दी !

दौड़ शुरू हुई ,..इस बार खरगोश ने कोई गलती नही किया वह पूरी ताकत से दौड़ा और जीत गया !
लेकिन अतिउत्साह के कारण कछुआ अपना सम्मान गवां चुका था जिसे वह फिर पाना चाहता था ।

कछुए ने हार नही मानी और चालाकी के साथ पुनः दौड़ के लिए खरगोश से कहा तो ….खरगोश गर्व से बोला
-“तुम मुझसे अब कभी नही जीत सकते…. मै वह गलती दोबारा नही दोहराऊंगा और मै हर बार तुमसे प्रतियोगिता के लिए तैयार हूं ।”

कछुए ने दूसरे मार्ग से प्रतियोगिता की शर्त रखी…..अहंकार मे खरगोश ने विवेक खो दिया और शर्त स्वीकार कर लिया !

तीसरी बार दौड़ प्रारंभ हुई खरगोश आगे था लेकिन रास्ते मे नदी आ गई, खरगोश तैरना नही जानता था वह किनारे पर कसमसाकर रह गया !
चालाक कछुआ धीरे-धीरे आया और नदी पार कर गया और वह खुद को उस सम्मान के लिए पुनर्स्थापित कर चुका था ।

इस पूरी घटना को पेड़ पर बैठा एक चील देख रहा था उसने दोनो को समझाता-
” तुम दोनो यूनिक हो ,….ईश्वर ने सबको अलग गुण दिए है उसका उपयोग सही दिशा मे करो दोनो मित्र बनो ,आपातकाल मे आवश्यकता होगी!

लेकिन दोनो न माने और चले गए…..

एक समय जंगल मे आग लग गई सभी जानवर भागने लगे …..
कछुआ नदी से बहुत दूर था चाहकर भी बहुत जल्दी पानी तक नही जा सकता था,….आग बढ़ती जा रही थी।
वही खरगोश की सीमाएं भी नदी के किनारे तक ही सीमीत थी।

तभी आकाश मे उड़ते चील ने उन्हे कहा कहा -“…अब वक्त आ चुका है, …..एकदूसरे की मदद से इस आग का सामना करो।

तब खरगोश जो की तेज दौड़ सकता था ,…….उसने कछुए को अपनी पीठ पर बैठाकर आग को उन तक पहुंचने से …..पहले नदी के किनारे तक ले आया।

अब बारी कछुए की थी
….. नदी मे पहुंचकर कछुए ने खरगोश को अपनी पीठ पर बैठाकर पार कराया …..और अब दोनो आग से सुरक्षित थे।

हमे भी अपनी दंभी मानसिकता…..कुंठाओ से बाहर निकलना होगा ,विवेक रखना होगा, सबको समान दृष्टि से देखना होगा ,….।
ईश्वर ने सभी को अलग अलग प्रतिभाएं दी है….. सभी दूनिया मे यूनिक है सभी गुण अलग है।
हमे इस वक्र मानसिकता से बाहर निकलकर एक टीम भावना के साथ आपादा का सामना करना चाहिए…….
अपने लोगो मे छिपी प्रतिभाओ को बाहर निकाले ।
जब हम ऐसा कर सके…… ,तो हमारी हर बार जीत होगी ।
पूरे सम्मान के साथ।
गरिमा के साथ।

Laxmi Kant Varshney