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💐💐💐नजरिया💐💐💐

राजा भोज एक बार जंगल में शिकार करने गए लेकिन घूमते हुए वह अपने सैनिकों से बिछुड़ गए. वह एक वृक्ष के नीचे बैठकर सुस्ताने लगे.

तभी उनके सामने से एक लकड़हारा सिर पर लकड़ियों का गठ्ठर उठाए वहां से गुजरा.
लकड़हारा अपनी धुन में चला जा रहा था.

उसकी नजर राजा भोज पर पड़ी. एक पल के लिए रुका. उसने राजा को गौर से देखा फिर अपने रास्ते पर बढ़ गया.

राजा को लकड़हारे के व्यवहार पर बड़ा आश्चर्य हुआ. लकड़हारे ने न उन्हें प्रणाम किया, न ही उनकी सेवा में आया.

उन्होंने लकड़हारे को रोककर पूछा, ‘तुम कौन हो?’

लकड़हारे ने जवाब दिया, ‘मैं अपने मन का राजा हूं.’

राजा ने पूछा, ‘अगर तुम राजा हो तो तुम्हारी आमदनी भी बहुत होगी. कितना कमाते हो?’

लकड़हारे ने जवाब दिया, ‘मैं छह स्वर्ण मुद्राएं रोज कमाता हूं.’

भोज की दिलचस्पी बढ़ रही थी. उन्होंने पूछा, ‘तुम इन मुद्राओं को खर्च कैसे करते हो?’

लकड़हारा बोला, ‘मैं रोज एक मुद्रा अपने ऋणदाता यानी मेरे माता-पिता को देता हूं.

उन्होंने मुझे पाला-पोसा है, मेरे लिए हर कष्ट सहा है.

दूसरी मुद्रा अपने ग्राहक आसामी यानी अपने बच्चों को देता हूं. मैं उन्हें यह ऋण इसलिए दे रहा हूं ताकि मेरे बूढ़े हो जाने पर वे मुझे यह ऋण वापस लौटाएं.’

तीसरी मुद्रा मैं अपने मंत्री को देता हूं, वह है मेरी पत्नी. अच्छा मंत्री वह होता है जो राजा को उचित सलाह दे, हर सुख-दुख में उसका साथ दे. पत्नी से अच्छा साथी मंत्री कौन हो सकता है!

चौथी मुद्रा मैं राज्य के खजाने में देता हूं. पांचवीं मुद्रा का उपयोग मैं अपने खाने-पीने पर खर्च करता हूं क्योंकि मैं कड़ी मेहनत करता हूं.

छठी मुद्रा मैं अतिथि सत्कार के लिए सुरक्षित रखता हूं क्योंकि अतिथि कभी भी किसी भी समय आ सकता है. अतिथि सत्कार हमारा परम धर्म है.’

एक लकड़हारे से ज्ञान की ऐसी बातें सुनकर राजा हक्के-बक्के रह गए.

राजा भोज सोचने लगे, ‘मेरे पास तो लाखों मुद्राएं है पर मैं जीवन के आनंद से वंचित हूं. छह मुद्राएं कमाने वाला लकड़हारा जीवन की शिक्षा का पालन करता अपना वर्तमान और भविष्य दोनों सुखद बना रहा है.’

राजा इसी उधेड़बुन में थे. लकड़हारा जाने लगा. वह लौटकर आया. उसने राजा भोज को प्रणाम किया और बोला, ‘मैं आपको पहचान गया था कि आप राजा भोज हैं. पर मुझे उससे क्या लेना-देना?

अपने जीवन से मैं पूरी तरह संतुष्ट हूं इसलिए अपना राजा तो मैं स्वयं हूं.’ जाते-जाते उसने भोज को कई और सबक दे दिए थे.

नजरियाः हमारे जीवन का एक बड़ा भाग सोने में निकल जाता है. उसके बाद का सबसे बड़ा भाग आजीविका जुटाने में. आज की दृष्टि इसी बात पर कि आजीविका आखिर है क्या?

एक तरफ राजा भोज हैं जिनके पास अनंत स्वर्ण मुद्राएं हैं. जिन्हें राज्य की चिंता, अपने परिजनों की चिंता करनी है लेकिन उलझनों में फंसे है.

राजा हैं तो राजा होने का अभिमान भी है. सभी के द्वारा उनकी वंदना हो इसकी भी इच्छा रखते हैं. कैसे सब पर नियंत्रण बनाए रखा जाए, इसकी चिंता अलग.

दूसरी तरफ वह लकड़हारा जो अपनी मेहनत से रोज की छह स्वर्ण मुद्राएं कमाता है. उसमें से कहां और कितना खर्चना है, यह तय कर रखा है. किसी मारामारी में नहीं है.

जीवन सुकून से चल रहा है. सिर्फ सुकून ही क्यों वह अपनी, अपने परिवार की और अपने देश तक की चिंता करता हुआ सुखी है.

इच्छाओं का कहीं अंत है क्या? एक के बाद दूसरी पैदा होगी. एक आत्मअनुशासन रखिए. अपने बच्चों के सामने कभी बड़ी-बड़ी इच्छाओं और उसे पूरी करने के लिए कर रहे प्रपंचों की चर्चा न होने दें.

एक असंतुष्ट मन विवेकपूर्ण निर्णय नहीं कर पाता. अपनी जरूरतों की हमें एक रेखा खींच लेनी चाहिए.

जीवन सुखमय होगा यदि हम राजा भोज की बजाय लकड़हारे बनने का प्रयास करेंगे. मन का राजा होता है. मन के राजा के सामने सभी गुलाम होते हैं.

कबीरदास जी ने कितनी सुंदर बात लिखी है-
चाह मिटी चिंता मिटी, मनवा बेपरवाह !
उनको कुछ नहीं चाहिए, जो शाहन के शाह !!
राधे गोविंद 🙏

Laxmikant Varshnay

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इस हँसी का रहस्य क्या है
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एक बार राजा भोज की पत्नी भोज को स्नान करा रही थी दोनों आनन्द का अनुभव कर रहे थे . भोज बार बार अपनी पत्नी से आग्रह करते कि पानी और डालो इस पर उनकी पत्नी जोर जोर से हंसने लगी . राजा ने पूछा कि तुम क्यों हंस रही हो इस पर उसने कहा कि ये बताने की बात नहीं है . लेकिन राजा अङ गया कि तुम्हें बताना होगा . तब उसने कहा कि ये बात तुम्हें मैं नहीं मेरी बहन बतायेगी उल्लेखनीय है कि भोज की पत्नी उस ग्यान को जानती थी जिसमें पूर्वजन्म का ग्यान होता है .उसकी बहन भी इस ग्यान को जानती थी पर क्योंकि इस ग्यान का संसार के नातों से कोई सम्बन्ध नहीं होता इसलिये कितना भी सगा हो उसे ये ग्यान नहीं बताते . बताने पर ये ग्यान नियम विरुद्ध हो जाने से चला जाता है .
राजा भोज अपनी भारी जिग्यासा के चलते अपनी साली के घर पहुँचा वहाँ उस वक्त कोई कार्यक्रम चल रहा था अतः राजा बात न पूछ सका फ़िर फ़ुरसत मिलते ही राजा ने वह प्रश्न अपनी साली से कर दिया तब उसने कहा कि तुम्हारी बहन ने कहा है कि बार बार पानी डालने की बात पर हंसने का रहस्य मेरी बहन बतायेगी..तब राजा की साली ने कहा कि आज आधी रात को बच्चे को जन्म देते ही मेरी मृत्यु हो जायेगी इसके अठारह साल बाद मेरे पुत्र जिसका आज जन्म होगा उसकी पत्नी तुम्हें ये राज बतायेगी .
राजा ने बहुत हठ किया पर इससे ज्यादा बताने से उसने इंकार कर दिया .ठीक वैसा ही हुआ पुत्र को जन्म देकर भोज की साली मर गयी..राजा ने अठारह साल तक बेसब्री से इंतजार किया
🌹🌹क्रमश:🌹🌹
और फ़िर वो दिन आ ही गया जब उस पुत्र का विवाह हुआ राजा उसी बात का इंतजार कर रहा था सो जैसे ही उसे
वधू से मिलने का मौका मिला . उसने कहा मैं अठारह साल से इस समय का इंतजार कर रहा हूँ….और भोज ने पूरी
बात बता दी . वधू ने कहा कि पहले तो आप ये बात न ही पूछो तो बेहतर है और अगर पूछते ही हो तो मेरे पति से कभी इसका जिक्र न करना..अन्यथा वो पति धर्म से विमुख हो जायेगा और इससे विधान में खलल पङेगा..राजा मान गया .

तब उस वधू ने कहा कि आज जो मेरा पति है अठारह साल पहले इसे मैंने ही जन्म दिया था …तुम्हारी पत्नी इस लिये हंस रही थी कि इससे पहले के जन्म में जब तुम उसके पुत्र थे वह तुम्हें बाल अवस्था में नहलाने के लिये पकङती थी तब तुम नहाने से बचने के लिये बार बार भागते थे..और आज स्वयं तुम पानी डालने को कह रहे थे..इसलिये उस जन्म की बात याद कर वो हस रही थी ..उसने या मैंने उसी समय तुम्हें ये बात इसलिये नहीं बतायी कि वैसी अवस्था में तुम उसे पत्नी मानने के धर्म से विमुख हो सकते थे…यह बात सुनते ही राजा में गहरा वैराग्य जाग्रत हो गया . यही प्रभु की अजीव लीला है .
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संजय गुप्ता

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दहेज़ (लघुकथा)

अशोक भाई ने घर मेँ पैर रखा….‘अरी सुनती हो !’

आवाज सुनते ही अशोक भाई की पत्नी हाथ मेँ पानी का गिलास लेकर बाहर आयी और बोली

“अपनी बेटी का रिश्ता आया है,

अच्छा भला इज्जतदार सुखी परिवार है,
लडके का नाम युवराज है ।
बैँक मे काम करता है।
बस बेटी  हाँ कह दे तो सगाई कर देते है.”

बेटी उनकी एकमात्र लडकी थी..

घर मेँ हमेशा आनंद का वातावरण रहता था ।

कभी कभार अशोक भाई सिगरेट व पान मसाले के कारण उनकी पत्नी और बेटी के साथ कहा सुनी हो जाती लेकिन
अशोक भाई मजाक मेँ निकाल देते ।

बेटी खूब समझदार और संस्कारी थी ।

S.S.C पास करके टयुशन, सिलाई काम करके पिता की मदद करने की कोशिश करती ।

अब तो बेटी ग्रज्येएट हो गई थी और नोकरी भी करती थी
लेकिन अशोक भाई उसकी पगार मेँ से एक रुपया भी नही लेते थे…

और रोज कहते ‘बेटी यह पगार तेरे पास रख तेरे भविष्य मेँ तेरे काम आयेगी ।’

दोनो घरो की सहमति से बेटी  और
युवराज की सगाई कर दी गई और शादी का मुहूर्त भी निकलवा दिया.

अब शादी के 15 दिन और बाकी थे.

अशोक भाई ने बेटी को पास मेँ बिठाया और कहा-

” बेटा तेरे ससुर से मेरी बात हुई…उन्होने कहा दहेज मेँ कुछ नही लेँगे, ना रुपये, ना गहने और ना ही कोई चीज ।

तो बेटा तेरे शादी के लिए मेँने कुछ रुपये जमा किए है।

यह दो लाख रुपये मैँ तुझे देता हूँ।.. तेरे भविष्य मेँ काम आयेगे, तू तेरे खाते मे जमा करवा देना.’

“OK PAPA” – बेटी ने छोटा सा जवाब देकर अपने रुम मेँ चली गई.

समय को जाते कहाँ देर लगती है ?

शुभ दिन बारात आंगन में आयी,

पंडितजी ने मंडप मेँ विवाह विधि शुरु की।
फेरे फिरने का समय आया….

अचानक बेटी दो शब्दो मेँ बोली

“रुको पडिण्त जी ।
मुझे आप सब की उपस्तिथि मेँ मेरे पापा के साथ बात करनी है,”

“पापा आप ने मुझे लाड प्यार से बडा किया, पढाया, लिखाया खूब प्रेम दिया इसका कर्ज तो चुका सकती नही…

लेकिन युवराज और मेरे ससुर जी की सहमति से आपने दिया दो लाख रुपये का चेक मैँ वापस देती हूँ।

इन रुपयों से मेरी शादी के लिए लिये हुए उधार वापस दे देना
और दूसरा चेक तीन लाख जो मेने अपनी पगार मेँ से बचत की है…

जब आप रिटायर होगेँ तब आपके काम आयेगेँ,
मैँ नही चाहती कि आप को बुढापे मेँ आपको किसी के आगे हाथ फैलाना पडे !

अगर मैँ आपका लडका होता तब भी इतना तो करता ना ? !!! ”

वहाँ पर सभी की नजर बेटी  पर थी…

“पापा अब मैं आपसे जो दहेज मेँ मांगू वो दोगे ?”

अशोक भाई भारी आवाज मेँ -“हां बेटा”, इतना ही बोल सके ।

“तो पापा मुझे वचन दो”
आज के बाद सिगरेट के हाथ नही लगाओगे….

तबांकु, पान-मसाले का व्यसन आज से छोड दोगे।

सब की मोजुदगी मेँ दहेज मेँ बस इतना ही मांगती हूँ ।.”

लडकी का बाप मना कैसे करता ?

शादी मे लडकी की विदाई समय कन्या पक्ष को रोते देखा होगा लेकिन

आज तो बारातियो कि आँखो मेँ आँसुओ कि धारा निकल चुकी थी।

मैँ दूर से उस बेटी को लक्ष्मी रुप मे देख रहा था….

रुपये का लिफाफा मैं अपनी जेब से नही निकाल पा रहा था….

साक्षात लक्ष्मी को मैं कैसे लक्ष्मी दूं ?

संजय गुप्ता

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आज सोमवार को पढ़े दुनिया का इकलौता विश्वनाथ मंदिर जहां शक्ति के साथ विराजमान हैं शिव,,काशी विश्वनाथ मंदिर से जुड़े ग्यारह रहस्य!!!!!

*बिस्वनाथ मम नाथ पुरारी। त्रिभुवन महिमा बिदित तुम्हारी॥
चर अरु अचर नाग नर देवा। सकल करहिं पद पंकज सेवा॥

हे संसार के स्वामी! हे मेरे नाथ! हे त्रिपुरासुर का वध करने वाले! आपकी महिमा तीनों लोकों में विख्यात है। चर, अचर, नाग, मनुष्य और देवता सभी आपके चरण कमलों की सेवा करते हैं॥

वाराणसी. द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख काशी विश्वनाथ के दरबार में शिवरात्रि पर आस्था का जन सैलाब उमड़ता है। यहां वाम रूप में स्थापित बाबा विश्वनाथ शक्ति की देवी मां भगवती के साथ विराजते हैं। यह अद्भुत है। ऐसा दुनिया में कहीं और देखने को नहीं मिलता है।

काशी विश्वनाथ मंदिर से जुड़े 11 रहस्य  :-

  1. काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग दो भागों में है। दाहिने भाग में शक्ति के रूप में मां भगवती विराजमान हैं। दूसरी ओर भगवान शिव वाम रूप (सुंदर) रूप में विराजमान हैं। इसीलिए काशी को मुक्ति क्षेत्र कहा जाता है।
  2. देवी भगवती के दाहिनी ओर विराजमान होने से मुक्ति का मार्ग केवल काशी में ही खुलता है। यहां मनुष्य को मुक्ति मिलती है और दोबारा गर्भधारण नहीं करना होता है। भगवान शिव खुद यहां तारक मंत्र देकर लोगों को तारते हैं। अकाल मृत्यु से मरा मनुष्य बिना शिव अराधना के मुक्ति नहीं पा सकता।

  3. श्रृंगार के समय सारी मूर्तियां पश्चिम मुखी होती हैं। इस ज्योतिर्लिंग में शिव और शक्ति दोनों साथ ही विराजते हैं, जो अद्भुत है। ऐसा दुनिया में कहीं और देखने को नहीं मिलता है।

  4. विश्वनाथ दरबार में गर्भ गृह का शिखर है। इसमें ऊपर की ओर गुंबद श्री यंत्र से मंडित है। तांत्रिक सिद्धि के लिए ये उपयुक्त स्थान है। इसे श्री यंत्र-तंत्र साधना के लिए प्रमुख माना जाता है।

  5. बाबा विश्वनाथ के दरबार में तंत्र की दृष्टि से चार प्रमुख द्वार इस प्रकार हैं :- 1. शांति द्वार। 2. कला द्वार। 3. प्रतिष्ठा द्वार। 4. निवृत्ति द्वार। इन चारों द्वारों का तंत्र में अलग ही स्थान है। पूरी दुनिया में ऐसा कोई जगह नहीं है जहां शिवशक्ति एक साथ विराजमान हों और तंत्र द्वार भी हो।

  6. बाबा का ज्योतिर्लिंग गर्भगृह में ईशान कोण में मौजूद है। इस कोण का मतलब होता है, संपूर्ण विद्या और हर कला से परिपूर्ण दरबार। तंत्र की 10 महा विद्याओं का अद्भुत दरबार, जहां भगवान शंकर का नाम ही ईशान है।

  7. मंदिर का मुख्य द्वार दक्षिण मुख पर है और बाबा विश्वनाथ का मुख अघोर की ओर है। इससे मंदिर का मुख्य द्वार दक्षिण से उत्तर की ओर प्रवेश करता है। इसीलिए सबसे पहले बाबा के अघोर रूप का दर्शन होता है। यहां से प्रवेश करते ही पूर्व कृत पाप-ताप विनष्ट हो जाते हैं।

  8. भौगोलिक दृष्टि से बाबा को त्रिकंटक विराजते यानि त्रिशूल पर विराजमान माना जाता है। मैदागिन क्षेत्र जहां कभी मंदाकिनी नदी और गौदोलिया क्षेत्र जहां गोदावरी नदी बहती थी। इन दोनों के बीच में ज्ञानवापी में बाबा स्वयं विराजते हैं। मैदागिन-गौदौलिया के बीच में ज्ञानवापी से नीचे है, जो त्रिशूल की तरह ग्राफ पर बनता है। इसीलिए कहा जाता है कि काशी में कभी प्रलय नहीं आ सकता।

  9. बाबा विश्वनाथ काशी में गुरु और राजा के रूप में विराजमान है। वह दिनभर गुरु रूप में काशी में भ्रमण करते हैं। रात्रि नौ बजे जब बाबा का श्रृंगार आरती किया जाता है तो वह राज वेश में होते हैं। इसीलिए शिव को राजराजेश्वर भी कहते हैं।

  10. बाबा विश्वनाथ और मां भगवती काशी में प्रतिज्ञाबद्ध हैं। मां भगवती अन्नपूर्णा के रूप में हर काशी में रहने वालों को पेट भरती हैं। वहीं, बाबा मृत्यु के पश्चात तारक मंत्र देकर मुक्ति प्रदान करते हैं। बाबा को इसीलिए ताड़केश्वर भी कहते हैं।

  11. बाबा विश्वनाथ के अघोर दर्शन मात्र से ही जन्म जन्मांतर के पाप धुल जाते हैं। शिवरात्रि में बाबा विश्वनाथ औघड़ रूप में भी विचरण करते हैं। उनके बारात में भूत, प्रेत, जानवर, देवता, पशु और पक्षी सभी शामिल होते हैं।

संजय गुप्ता

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🌺 *मकर संक्रांति : पौराणिक तथ्य

🌺 हमारे पवित्र पुराणों के अनुसार ➖मकर संक्रांति का पर्व ब्रह्मा, विष्णु, महेश, गणेश, आद्यशक्ति और सूर्य की आराधना एवं उपासना का पावन व्रत है, जो तन-मन-आत्मा को शक्ति प्रदान करता है।

संत-महर्षियों के अनुसार इसके प्रभाव से प्राणी की आत्मा शुद्ध होती है। संकल्प शक्ति बढ़ती है। ज्ञान तंतु विकसित होते हैं। मकर संक्रांति इसी चेतना को विकसित करने वाला पर्व है। यह संपूर्ण भारत वर्ष में किसी न किसी रूप में आयोजित होता है।

  • पुराणों के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्य अपने पुत्र शनि के घर एक महीने के लिए जाते हैं, क्योंकि मकर राशि का स्वामी शनि है। हालांकि ज्योतिषीय दृष्टि से सूर्य और शनि का तालमेल संभव नहीं, लेकिन इस दिन सूर्य खुद अपने पुत्र के घर जाते हैं। इसलिए पुराणों में यह दिन पिता-पुत्र के संबंधों में निकटता की शुरुआत के रूप में देखा जाता है।
    *  इस दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत करके युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी। उन्होंने सभी असुरों के सिरों को मंदार पर्वत में दबा दिया था। इसलिए यह दिन बुराइयों और नकारात्मकता को खत्म करने का दिन भी माना जाता है।

*  एक अन्य पुराण के अनुसार गंगा को धरती पर लाने वाले महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इस दिन तर्पण किया था। उनका तर्पण स्वीकार करने के बाद इस दिन गंगा समुद्र में जाकर मिल गई थी। इसलिए मकर संक्रांति पर गंगा सागर में मेला लगता है।

  • विष्णु धर्मसूत्र में कहा गया है कि पितरों की आत्मा की शांति के लिए एवं स्व स्वास्थ्यवर्द्धन तथा सर्वकल्याण के लिए तिल के छः प्रयोग पुण्यदायक एवं फलदायक होते हैं- तिल जल से स्नान करना, तिल दान करना, तिल से बना भोजन, जल में तिल अर्पण, तिल से आहुति, तिल का उबटन लगाना।
  • सूर्य के उत्तरायण(पूरब से उत्तर से होते हुये पश्चिम) होने के बाद से देवों की ब्रह्म मुहूर्त उपासना का पुण्यकाल प्रारंभ हो जाता है। इस काल को ही परा-अपरा विद्या की प्राप्ति का काल कहा जाता है। इसे साधना का सिद्धिकाल भी कहा गया है। इस काल में देव प्रतिष्ठा, गृह निर्माण, यज्ञ कर्म आदि पुनीत कर्म किए जाते हैं। मकर संक्रांति के एक दिन पूर्व से ही व्रत उपवास में रहकर योग्य को दान देना चाहिए।

  • रामायण काल से भारतीय संस्कृति में दैनिक सूर्य पूजा का प्रचलन चला आ रहा है। राम कथा में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम द्वारा नित्य सूर्य पूजा का उल्लेख मिलता है। रामचरित मानस में ही भगवान श्री राम द्वारा पतंग उड़ाए जाने का भी उल्लेख मिलता है। मकर संक्रांति का जिक्र वाल्मिकी रचित रामायण में मिलता है।

  • राजा भगीरथ सूर्यवंशी थे, जिन्होंने भगीरथ तप साधना के परिणामस्वरूप पापनाशिनी गंगा को पृथ्वी पर लाकर अपने पूर्वजों को मोक्ष प्रदान करवाया था। राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों का गंगाजल, अक्षत, तिल से श्राद्ध तर्पण किया था। तब से माघ मकर संक्रांति स्नान और मकर संक्रांति श्राद्ध तर्पण की प्रथा आज तक प्रचलित है।

  • कपिल मुनि के आश्रम पर जिस दिन मां गंगे का पदार्पण हुआ था, वह मकर संक्रांति का दिन था। पावन गंगा जल के स्पर्श मात्र से राजा भगीरथ के पूर्वजों को स्वर्ग की प्राप्ति हुई थी। कपिल मुनि ने वरदान देते हुए कहा था, ‘मातु गंगे त्रिकाल तक जन-जन का पापहरण करेंगी और भक्तजनों की सात पीढ़ियों को मुक्ति एवं मोक्ष प्रदान करेंगी। गंगा जल का स्पर्श, पान, स्नान और दर्शन सभी पुण्यदायक फल प्रदान करेगा।’

  • महाभारत में पितामह भीष्म ने सूर्य के उत्तरायण होने पर ही स्वेच्छा से शरीर का परित्याग किया था। उनका श्राद्ध संस्कार भी सूर्य की उत्तरायण गति में हुआ था। फलतः आज तक पितरों की प्रसन्नता के लिए तिल अर्घ्य एवं जल तर्पण की प्रथा मकर संक्रांति के अवसर पर प्रचलित है।

  • सूर्य की सातवीं किरण भारत वर्ष में आध्यात्मिक उन्नति की प्रेरणा देने वाली है। सातवीं किरण का प्रभाव भारत वर्ष में गंगा-जमुना के मध्य अधिक समय तक रहता है। इस भौगोलिक स्थिति के कारण ही हरिद्वार और प्रयाग में माघ मेला अर्थात मकर संक्रांति या पूर्ण कुंभ तथा अर्द्धकुंभ के विशेष उत्सव का आयोजन होता है।

जैसे कि पितृ तुल्य भगवान भास्कर दक्षिणायन से उत्तरायण में जा रहे हैं
ऊर्जामयी रश्मियाँ अपना प्रवास बढ़ाने वाली हैं
अतुल्य शक्ति स्त्रोत प्रकृति अंधेरी रातें छोटी कर
दिन का उजाला बढ़ाने वाली है
धरती माता उदरस्त अनाज को पकाने वाली है
मल्टी विटामिन से भरपूर “तिल” “गुड़” के साथ मिलकर रक्त का भी शोधन करने वाला है
जब सब कुछ ही अच्छा होने वाला है
तो क्यों न मनोभावों की निराशा का संक्रमण कर सकारात्मकता और व्यवहार में नवीन ऊर्जा का संचार कर जीवन में मंगल बढ़ाया जाए और सही अर्थों में संक्रांति उत्सव मनाया जाए..
👏

🌺मकर संक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनायें!🙏🌹*
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

साधना शर्मा

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🕌🕌🕌🕌 ईश्वर का घर 🕌🕌🕌🕌

एक बार भगवान दुविधा में पड़ गए, लोगों की बढ़ती साधना वृत्ति से वह प्रसन्न तो थे पर इससे उन्हें व्यवहारिक मुश्किलें आ रही थीं । कोई भी मनुष्य जब मुसीबत में पड़ता, तो भगवान के पास भागा-भागा आता और उन्हें अपनी परेशानियां बताता । उनसे कुछ न कुछ मांगने लगता । भगवान इससे दु:खी हो गए थे ।

अंतत: उन्होंने इस समस्या के निराकरण के लिए देवताओं की बैठक बुलाई और बोले – “देवताओं, मैं मनुष्य की रचना करके कष्ट में पड़ गया हूं ।  कोई न कोई मनुष्य हर समय शिकायत ही करता रहता हैं, जिससे न तो मैं कहीं शांति पूर्वक रह सकता हूं, न ही तपस्या कर सकता हूं । आप लोग मुझे कृपया ऐसा स्थान बताएं, जहां मनुष्य नाम का प्राणी कदापि न पहुंच सके ।“

प्रभू के विचारों का आदर करते हुए देवताओं ने अपने-अपने विचार प्रकट किए ।

गणेश जी बोले – “आप हिमालय पर्वत की चोटी पर चले जाएं ।“

भगवान ने कहा – “यह स्थान तो मनुष्य की पहुंच में हैं । उसे वहां पहुंचने में अधिक समय नहीं लगेगा ।“

इंद्रदेव ने सलाह दी कि “वह किसी महासागर में चले जाएं ।

वरुण देव बोले “आप अंतरिक्ष में चले जाइए ।“

भगवान ने कहा – “एक दिन मनुष्यवहां भी अवश्य पहुंच जाएगा ।“ भगवान निराश होने लगे थे । वह मन ही मन सोचने लगे “क्या मेरे लिए
कोई भी ऐसा गुप्त स्थान नहीं हैं, जहां मैं शांतिपूर्वक रह सकूं ।“

अंत में सूर्य देव बोले- “ प्रभू ! आप ऐसा करें कि मनुष्य के हृदय में बैठ जाएं । मनुष्य अनेक स्थान पर आपको ढूंढने में सदा उलझा रहेगा, पर वह यहाँ आपको कदापि न तलाश करेगा ।“

ईश्वर को सूर्य देव की बात पसंद आ गई । उन्होंने ऐसा ही किया और वह मनुष्य के हृदय में जाकर बैठ गए ।

उस दिन से मनुष्य अपना दुख व्यक्त करने के लिए ईश्वर को ऊपर, नीचे, दाएं, बाएं, आकाश, पाताल में ढूंढ रहा है पर वह मिल नहीं रहें ।

मनुष्य अपने भीतर बैठे हुए ईश्वर को नहीं देख पा रहा हैं ।🙏 Radhey Radhey🙏
संजय गुप्ता

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प्रक्रति के नियम…
खाना जो हम खाते हैं, 24 घण्टे के अंदर शरीर से बाहर निकल जाना चाहिए, वरना हम बीमार हो जायेंगे ।

पानी जो हम पीते हैं, 04 घण्टे के अंदर शरीर से बाहर निकल जाना चाहिए, वरना हम बीमार हो जायेंगे ।

हवा जो हम सांस लेते हैं, कुछ सेकंड में ही वापस बाहर निकल जानी चाहिए, वरना हम मर ही जायेंगे ।

लेकिन नकारात्मक बातें, जैसे कि घृणा, गुस्सा, ईर्षा, असुरक्षा …. आदि …. आदि, जिनको हम अपने अंदर दिन, महीने और सालों तक रखे रहते हैं ।

यदि इन नकारात्मक विचारों को समय-समय पर अपने अंदर से नहीं निकालेंगे तो एक दिन निश्चित ही हम मानसिक रोगी बन जायेंगे ।

निर्णय आपका…क्योंकि…शरीर है आपका…

The easiest way to breath out all above negative emotions by doing Sudarshan kriya regularly…

Life is yours…
Choice is yours…
🙏🏻Jai Gurudev🙏🏻

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

महादेव जी को एक बार बिना कारण के किसी को प्रणाम करते देखकर पार्वती जी ने पूछा आप किसको प्रणाम करते रहते हैं?

शिव जी पार्वती जी से कहते हैं कि हे देवी ! जो व्यक्ति एक बार राम कहता है उसे मैं तीन बार प्रणाम करता हूँ।

पार्वती जी ने एक बार शिव जी से पूछा आप श्मशान में क्यूँ जाते हैं और ये चिता की भस्म शरीर पे क्यूँ लगाते हैं?

उसी समय शिवजी पार्वती जी को श्मशान ले गए। वहाँ एक शव अंतिम संस्कार के लिए लाया गया। लोग राम नाम सत्य है कहते हुए शव को ला रहे थे।

शिव जी ने कहा कि देखो पार्वती ! इस श्मशान की ओर जब लोग आते हैं तो राम नाम का स्मरण करते हुए आते हैं। और इस शव के निमित्त से कई लोगों के मुख से मेरा अतिप्रिय दिव्य राम नाम निकलता है उसी को सुनने मैं श्मशान में आता हूँ, और इतने लोगों के मुख से राम नाम का जप करवाने में निमित्त बनने वाले इस शव का मैं सम्मान करता हूँ, प्रणाम करता हूँ, और अग्नि में जलने के बाद उसकी भस्म को अपने शरीर पर लगा लेता हूँ।

राम नाम बुलवाने वाले के प्रति मुझे अगाध प्रेम रहता है।

एक बार शिवजी कैलाश पर पहुंचे और पार्वती जी से भोजन माँगा। पार्वती जी विष्णु सहस्रनाम का पाठ कर रहीं थीं। पार्वती जी ने कहा अभी पाठ पूरा नही हुआ, कृपया थोड़ी देर प्रतीक्षा कीजिए।

शिव जी ने कहा कि इसमें तो समय और श्रम दोनों लगेंगे। संत लोग जिस तरह से सहस्र नाम को छोटा कर लेते हैं और नित्य जपते हैं वैसा उपाय कर लो।

पार्वती जी ने पूछा वो उपाय कैसे करते हैं? मैं सुनना चाहती हूँ।

शिव जी ने बताया, केवल एक बार राम कह लो तुम्हें सहस्र नाम, भगवान के एक हज़ार नाम लेने का फल मिल जाएगा।

एक राम नाम हज़ार दिव्य नामों के समान है।

पार्वती जी ने वैसा ही किया।

पार्वत्युवाच –
केनोपायेन लघुना विष्णोर्नाम सहस्रकं?
पठ्यते पण्डितैर्नित्यम् श्रोतुमिच्छाम्यहं प्रभो।।

ईश्वर उवाच-
श्री राम राम रामेति, रमे रामे मनोरमे।
सहस्र नाम तत्तुल्यम राम नाम वरानने।।

यह राम नाम सभी आपदाओं को हरने वाला, सभी सम्पदाओं को देने वाला दाता है, सारे संसार को विश्राम/शान्ति प्रदान करने वाला है। इसीलिए मैं इसे बार बार प्रणाम करता हूँ।

आपदामपहर्तारम् दातारम् सर्वसंपदाम्।
लोकाभिरामम् श्रीरामम् भूयो भूयो नमयहम्।

भव सागर के सभी समस्याओं और दुःख के बीजों को भूंज के रख देनेवाला/समूल नष्ट कर देने वाला, सुख संपत्तियों को अर्जित करने वाला, यम दूतों को खदेड़ने/भगाने वाला केवल राम नाम का गर्जन(जप) है।

भर्जनम् भव बीजानाम्, अर्जनम् सुख सम्पदाम्।
तर्जनम् यम दूतानाम्, राम रामेति गर्जनम्।

प्रयास पूर्वक स्वयम् भी राम नाम जपते रहना चाहिए और दूसरों को भी प्रेरित करके राम नाम जपवाना चाहिए। इस से अपना और दूसरों का तुरन्त कल्याण हो जाता है। यही सबसे सुलभ और अचूक उपाय है।

इसीलिए हमारे देश में प्रणाम–
राम राम कहकर किया जाता है।

जय श्री राम
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