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((((( भगवान विष्णु का दीपक )))))
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सतयुग की बात है. एक समय में भद्राश्व नामक महान राजा हुआ करते थे. भद्राश्व इतने शक्ति शाली राजा थे कि उनके नाम पर भद्राश्ववर्ष पड़ा. एक बार उनके राज्य में अगस्त्य मुनि पहुंचे. वे राजमहल में भी पधारे. राजा ने खूब आवभगत की.
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अगस्त्य बोले- भद्राश्व मैं तुम्हारे वहां सात दिन रुकूंगा. राजा ने उनके ठहरने का विधिवत प्रबंध किया और अपने सेवकों इत्यादि को उनकी सेवा में लगा दिया. उन्होंने अपनी रानियों से उनके दर्शन लाभ लेने को कहा.
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राजा भद्राश्व की रानी कांतिमती अत्यंत सुंदरी थी. कहते हैं उसके चेहरे की चमक बारह सूर्यों के समान चौंधिया देने वाली थी. रानी कांतिमति के अलावा राजा के रनिवास में पचास हजार अन्य रानियां भी थी पर कांतिमती की कोई बराबरी नहीं थी.
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पहले ही दिन रानी कांतिमती मुनि अगस्त्य के दर्शन के लिये आयी. अगस्त्य मुनि ने कांतिमति को देखा तो देखते रह गये. उन्होंने कहा कहा, राजा तू बड़ा ही भाग्यवान है, तू धन्य है.
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दूसरे दिन कांतिमती फिर आयी तो उसे देख कर अगस्त्य बोले, ओह, सारा संसार वंचित रह गया. तीसरे दिन कहा, ये लोग तो उस गोविंद की माया को भी नहीं जानते जिसने एक दिन की प्रसन्नता में इन्हें क्या कुछ नहीं दे दिया.
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चौथे दिन जब कांतिमती मुनि दर्शन के लिये पहुंची तो वे अपने दोनों हाथ ऊपर उठा कर बोले, हे जगन्नाथ आप धन्य हैं. आपकी लीला महान है.
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इसी तरह पांचवें दिन वे बोले भद्राश्व तुम्हें बहुत बहुत धन्यवाद, हे अगस्त्य तू धन्य हुआ. इसी तरह छठे दिन भी उन्होंने कांतिमती को देख कर प्रशंसात्मक टिप्पणियां की.
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सातवें दिन तो गज़ब ही हो गया. वे बोले कि राजा ही नहीं उसकी रानी, सेवक सभी मूर्ख हैं जो मेरी बात नहीं समझते. इतना कहने के बाद वे उठे और सबके बीच, राजा भद्राश्व के सामने ही भाव विभोर हो नाचने लगे.
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सात दिनों तक रानी के जाने पर उसकी प्रशंसा और अब यह सभी उपस्थित लोगों के सामने ही धीर गंभीर रहने वाले मुनि का नृत्य. कुछ देर तो राजा अचरज में रहा फिर उसने विनम्रता से हाथ जोड़ कर अगस्त्य मुनि से इसका कारण पूछा.
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राजा के आश्चर्य और प्रश्न के उत्तर में मुनि ने कहा- राजन आप पूर्वजन्म में हरिदत्त नामक एक धनवान पर धर्म कर्म में विश्वास रखने वाले वैश्य के दास थे. उसकी सेवा सुरक्षा आपका काम था. यह कांतिमती तब भी आपकी पत्नी थी.
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कांतिमती भी वैश्य के यहां दासी का काम करते थी. एक बार वैश्य ने फैसला किया कि वह अश्विन मास की द्वादशी का व्रत रख कर भगवान विष्णु के मंदिर में विधिवत पूजा करेगा.
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समय आने पर वैश्य ने सारी तैयारियां कर मंदिर के लिये प्रस्थान किया. तुम दोनों उसके भरोसे मंद नौकर थे सो इसलिये उसने न सिर्फ तुम दोनों को अपने साथ लिया बल्कि पूजा प्रबंध में भी साथ रखा.
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जब पूजा समाप्त हो गयी और शाम को वैश्य घर लौटने लगा तो उसने तुम दोनों को जिम्मेदारी दी की तुम लोग भगवान विष्णु के आगे जलाये दीपक को बुझने न दोगे.
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तुम दोनों पति पत्नी ने रात भर दीपक के सामने बैठ कर काटा. दीपक को एक क्षण के लिये भी बुझने न दिया. जब तक पूरी तरह सवेरा न हुआ, न उठे. तुम दोनों ने रक्षपाल की भूमिका बहुत ध्यानपूर्वक निभाया.
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बहुत काल बाद उम्र पूरी होने पर तुम दोनों थोड़े से ही अंतराल पर मृत्य को प्राप्त हुए. राजा तुम तो महान राजा प्रियव्रत के वहां पैदा हुये, राज कुमार बने और उस जन्म में दासी रही यह कांतिमती भी उस पुण्य के प्रताप से आज तुम्हारी रानी है.
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वह दीपक तो वैश्य का था, उसके यत्न और धन से जला था, तुमने तो बस उसको जलते रहने की देखरेख ही की थी. यदि केवल इतने से ही का पुण्य प्रताप यह फल दे सकता है तो जो विष्णु मंदिर में स्वयं दीपक जलाएंगे उनको कितना पुण्य मिलेगा.
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इसीलिये मैंने कहा था कि सब संसार इससे वंचित रह गया, सबको मूर्ख मैंने इसलिये कहा कि सब कुछ को देखते हुए भगवान विष्णु के दीपदान के महत्व को लोग नहीं जानते.
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अपने को धन्यवाद इसलिये दिया कि मुझे सब कार्यों में महज श्रीविष्णु ही सूझते हैं और तुम्हें और कांतिमती को धन्य इसलिये कहा कि तुमने दूसरे के जलाये दीप की रक्षा भी इस तरह मन लगा कर किया.
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राजा भद्राश्व अगस्त्य का उत्तर सुन कर संतुष्ट हुए और उन्होंने अगस्त्य् मुनि का धन्यवाद देते हुए कहा, मुनिवर कुछ दिन और रुकें और हमें उपदेश दे कर जायें.
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अगस्त्य मुनि ने भद्राश्व को शीघ्र ही योग्य पुत्र का पिता बनने का आशीर्वाद दिया और कहा कि कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर मुझे पुष्कर में उपस्थित होना है इस लिये अब मैं वहाँ के लिये प्रस्थान करूंगा.

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(((((((((( जय जय श्री राधे ))))))))))
संजय गुप्ता

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भगवान् राम का वनवास सिर्फ चौदह वर्ष ही
क्यों ?

माता कैकयी ने महाराज दशरथ से भरत जी को राजगद्दी और श्री राम को चौदह वर्ष का वनवास माँगा, हो सकता हैं की बहुत से विद्वानों के लिए ये साधारण सा प्रश्न हो ,
लेकिन जब भी ये प्रश्न मस्तिष्क में आता हैं संतोषजनक उत्तर प्राप्त करने के लिए मन बेचैन हो जाता हैं।

प्रश्न ये हैं की श्री राम को आखिर चौदहवर्ष का ही वनवास क्यों ? क्यों नहीं चौदह से कम या चौदह से ज्यादा ?

भगवान् राम ने एक आदर्श पुत्र, भाई, शिष्य, पति,मित्र और गुरु बन कर ये ही दर्शाया की व्यक्ति को रिश्तो का निर्वाह किस प्रकार करनाचाहिए।

राम का दर्शन करने पर हम पाते है कि अयोध्या हमारा शरीर है जो की सरयू नदी यानि हमारे मन के पास है। अयोध्या का एक नाम अवध भी है। (अ वध) अर्थात जहाँ कोई या अपराध न हों। जब इस शरीर का चंचल मन सरयू सा शांत हो जाता है और इससे कोई अपराध नहीं होता तो ये शरीर ही अयोध्या कहलाता है।

शरीर का तत्व (जीव), इस अयोध्या का राजादशरथ है। दशरथ का अर्थ हुआ वो व्यक्ति जो इस शरीर रूपी रथ में जुटे हुए दसों इन्द्रिय रूपी घोड़ों (५ कर्मेन्द्रिय ५ ज्ञानेन्द्रिय) को अपने वश में रख सके।

तीन गुण सतगुण, रजोगुण और तमोगुण दशरथ तीन रानियाँ कौशल्या, सुमित्रा और कैकई है। दशरथ रूपी साधक ने अपने जीवन में चारों पुरुषार्थों धर्म, अर्थ काम और मोक्ष को राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के रूपमें
प्राप्त किया था।

तत्वदर्शन करने पर हम पाते है कि धर्मस्वरूप भगवान्
राम स्वयं ब्रहा है।शेषनाग भगवान् लक्ष्मण वैराग्य है, माँ सीता शांति और भक्ति है और बुद्धि का ज्ञानहनुमान जी है।

रावण घमंड का, कुभंकर्ण अहंकार, मारीच लालच और मेंघनादकाम का प्रतीक है. मंथरा कुटिलता, शूर्पनखा काम और ताडका क्रोध है।

चूँकि काम क्रोधकुटिलता ने ने संसार को वश में कर रखा है इसलिए प्रभु राम ने सबसे पहले क्रोधयानि ताडका का वध ठीक वैसे ही किया जैसे भगवान् कृष्ण नेपूतना का किया था।

नाक और कान वासना के उपादानमाने गए है, इसलिए प्रभु ने शुपर्नखा के नाकऔर कान काटे। भगवान् ने अपनी प्राप्ति का मार्ग स्पष्ट रूप से दर्शाया है। उपरोक्त भाव से अगर हम देखे तो पाएंगे कि भगवान् सबसे पहले वैराग्य (लक्ष्मण)को मिले थे।

फिर वो भक्ति (माँ सीता) और सबसे बाद में ज्ञान (भक्त शिरोमणि हनुमानजी) के द्वारा हासिल किये गए थे। जब भक्ति (माँ सीता) ने लालच (मारीच) के छलावे में आ कर वैराग्य (लक्ष्मण) को अपने से दूर किया तो घमंड (रावण) ने आ कर भक्ति की शांति (माँ सीता की छाया) हर ली और उसे ब्रम्हा (भगवान्) से दूर कर दिया।

भगवान् ने चौदह वर्ष के वनवास के द्वारा ये समझाया कि अगर व्यक्ति जवानी में चौदह पांच ज्ञानेन्द्रियाँ (कान, नाक, आँख, जीभ, चमड़ी), पांच कर्मेन्द्रियाँ (वाक्, पाणी, पाद, पायु, उपस्थ), तथा मन, बुद्धि,चित और अहंकार
को वनवासमें रखेगा तभी प्रत्येक मनुष्य अपने अन्दर
के घमंड या रावण को मार पायेगा।

रावण की अवस्था में 14 ही वर्ष शेष थे,,प्रश्न उठता है ये बात कैकयी कैसे जानती थी,,,बन्धुओं ये घटना घट तो रही है अयोध्या परन्तु योजना देवलोक की है,,

अजसु पिटारी तासु सिर,गई गिरा मति फेरि।

सरस्वती ने मन्थरा की मति में अपनी योजना की कैसेट फिट कर दी,,उसने कैकयी को वही सब सुनाया समझाया कहने को उकसाया जो सरस्वती को इष्ट था,, ,इसके सूत्रधार हैं स्वयं श्रीराम,,वे ही निर्माता निर्देशक तथा अभिनेता हैं,,सूत्रधार उर अन्तरयामी,,,।

।मेघनाद को वही मार सकता था जो 14 वर्ष की कठोर साधना सम्पन्न कर सके,,जो निद्रा को जीत ले,,ब्रह्मचर्य का पालन कर सके,, यह कार्य लक्ष्मण द्वारा सम्पन्न हुआ,, आप कहेंगे वरदान में लक्ष्मण थे ही नहीं तो इनकी
चर्चा क्यों????

परन्तु भाई राम के बिना लक्ष्मण रह ही नहींसकते,श्रीराम का यश यदि झंडा है तो लक्ष्मण उस झंडा के डंडा हैं,,बिना डंडा के झंडा ,,,,,

1माता कैकयी यथार्थ जानती है,,जो नारी युद्ध भूमि में दशरथ के प्राण बचाने के लिये अपना हाथ रथ के धुरे में लगा सकती है,रथ संचालन की कला मे दक्ष है,,वह राजनैतिक परिस्थितियों से अनजान कैसे रह सकती है।

,2,,मेरे राम का पावन यश चौदहों भुवनों में फैलजाये,,और यह विना तप के रावण वध के सम्भव न था अतः…

.3,,,मेरे राम केवल अयोध्या के ही सम्राट् न रह जाये विश्व के समस्त प्राणियों हृहयों के सम्राट बनें,,उसके लिये अपनी साधित शोधित इन्द्रियों तथा अन्तःकरण को पुनश्च तप के द्वारा ,तदर्थ सिद्ध करें,,

,4,,सारी योजना का केन्द्र राक्षस वध है अतः
दण्डकारण्य को ही केन्द्र बनाया गया,, महाराज अनरण्यक के उस शाप का समय पूर्ण होने में 14 ही वर्ष शेष हैं जो शाप उन्होंने रावण को दिया था कि मेरे वंश का राजकुमार तेरा वध करेगा,,

संजय गुप्ता

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#सफलता-का-रहस्य
एक आठ साल का लड़का गर्मी की छुट्टियों में अपने दादा जी के पास गाँव घूमने आया।
एक दिन वो बड़ा खुश था, उछलते-कूदते वो दादाजी के पास पहुंचा और बड़े गर्व से बोला,
जब मैं बड़ा होऊंगा तब मैं बहुत सफल आदमी बनूँगा।
क्या आप मुझे सफल होने के कुछ टिप्स दे सकते हैं?”

दादा जी ने ‘हाँ’ में सिर हिला दिया, और बिना कुछ कहे लड़के का हाथ पकड़ा और उसे करीब की पौधशाला में ले गए।

वहां जाकर दादा जी ने दो छोटे-छोटे पौधे खरीदे और घर वापस आ गए।

वापस लौट कर उन्होंने एक पौधा घर के बाहर लगा दिया और एक पौधा गमले में लगा कर घर के अन्दर रखदिया।

“क्या लगता है तुम्हे, इन दोनों पौधों में से भविष्य में कौन सा पौधा अधिक सफल होगा?”

दादा जी ने लड़के से पूछा। लड़का कुछ क्षणों तक सोचता रहा और फिर बोला,

” घर के अन्दर वाला पौधा ज्यादा सफल होगा क्योंकि वो हर एक खतरे से सुरक्षित है जबकि बाहर वाले पौधे को तेज धूप, आंधी-पानी, और जानवरों से भी खतरा है…

”दादाजी बोले, ” चलो देखते हैं आगे क्या होता है !”,

और वह अखबार उठा कर पढने लगे।

कुछ दिन बाद छुट्टियाँ ख़तम हो गयीं और वो लड़का वापस शहर चला गया।

इस बीच दादाजी दोनों पौधों पर बराबर ध्यान देते रहे और समय बीतता गया।

३-४ साल बाद एक बार फिर वो अपने पेरेंट्स के साथ गाँव घूमने आया और अपने दादा जी को देखते ही बोला,

दादा जी, पिछली बार मैं आपसे successful होने के कुछ टिप्स मांगे थे
पर आपने तो कुछ बताया ही नहीं…

पर इस बार आपको ज़रूर कुछ बताना होगा।

दादा जी मुस्कुराये और लडके को उस जगह ले गए जहाँ उन्होंने गमले में पौधा लगाया था।

अब वह पौधा एक खूबसूरत पेड़ में बदल चुका था।
लड़का बोला,
देखा दादाजी मैंने कहा था न कि ये वाला पौधा ज्यादा सफल होगा…

”“अरे, पहले बाहर वाले पौधे का हाल भी तो देख लो…”,

और ये कहते हुए दादाजी लड़के को बाहर ले गए, बाहर एक विशाल वृक्ष गर्व से खड़ा था!

उसकी शाखाएं दूर तक फैलीं थीं और उसकी छाँव में खड़े राहगीर आराम से बातें कर रहे थे।

“अब बताओ कौन सा पौधा ज्यादा सफल हुआ?”

, दादा जी ने पूछा।“…
ब..ब…बाहर वाला!….

लेकिन ये कैसे संभव है, बाहर तो उसे न जाने कितने खतरों का सामना करना पड़ा होगा….

फिर भी…”,

लड़का आश्चर्य से बोला।

“दादा जी मुस्कुराए और बोले, “हाँ, लेकिन
challenges face करने के अपने rewards भी तो हैं,

बाहर वाले पेड़ के पास आज़ादी थी कि वो अपनी जड़े जितनी चाहे उतनी फैला ले, आपनी शाखाओं से आसमान को छू ले..

बेटे, इस बात को याद रखो और तुम जो भी करोगे उसमे सफल होगे-

अगर तुम जीवन भर
safe option choose
करते हो तो तुम

कभी भी उतना नहीं
grow कर पाओगे
जितनी तुम्हारी क्षमता है,
लेकिन अगर तुम तमाम खतरों के बावजूद इस दुनिया का सामना करने के लिए तैयार रहते हो

तो तुम्हारे लिए कोई भी लक्ष्य हासिल करना असम्भव नहीं है!

लड़के ने लम्बी सांस ली और उस विशाल वृक्ष की तरफ देखने लगा…

वो दादा जी की बात समझ चुका था, आज उसे
सफलता का एक बहुत बड़ा सबक मिल चुका था!

दोस्तों, भगवान् ने हमें एक
meaningful life जीने के लिए बनाया है।

But unfortunately, अधिकतर लोग डर-डर के जीते हैं और कभी भी अपने
full potential को realize नही कर पाते।

इस बेकार के डर को पीछे छोडिये…

ज़िन्दगीजीने का असली मज़ा तभी है जब आप वो सब कुछ कर पाएंजो सब कुछ आप कर सकते हैं…

वरना दो वक़्त की रोटी का जुगाड़ तो कोई भी कर लेता,

इसलिए हर समय play it safe के चक्कर में मत पड़े रहिये…

जोखिम उठाइए…

risk लीजिये और उस विशाल वृक्ष की तरह अपनी

life को large बनाइये!

जिन्दगी में रिस्क लेना भी जरुरी है.
आल्टोज में मेहनत करो. कामयाबी जरुर मिलेगी.
🌹🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
साधना शर्मा

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Plzzz read it very carefully

अभिषेक मनु सिंघवी का हाथ जैसे ही उस अर्द्धनग्न महिला के कमर के उपर पहुँचा ,  महिला ने बड़ी अदा व बड़े प्यार से पूछा – “जज कब बना रहे हो ? “….. बोलो ना डियर , जज कब बना रहे हो”…???

अब साहब ने जो भी उत्तर दिया था वह सारा का सारा सीन उस सेक्स-सीडी में रिकॉर्ड हो गया …..और यही सीडी कांग्रेस के उस बड़े नेता और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी के राजनीतिक पतन का कारण बनी ! परन्तु बेशर्म सिंघवी आज भी कोर्टों में शान से पेश होता है और कांग्रेस का प्रवक्ता भी है और कहीं फिर कांग्रेस की सरकार बनी तो जज बनाना शुरू कर देगा।

पिछले 70 सालों से जजों की नियुक्ति में सेक्स , पैसा , ब्लैक मेल एवं दलाली के जरिए जजों को चुना जाता रहा है।

अजीब बिडम्बना है कि हर रोज दुसरों को सुधरने की नसीहत देने वाले लोकतंत्र के दोनों स्तम्भ मीडिया और न्यायपालिका खुद सुधरने को तैयार नही हैं।

जब देश आज़ाद हुआ तब जजों की नियुक्ति के लिए ब्रिटिश काल से चली आ रही ” कोलेजियम प्रणाली ” भारत सरकार ने अपनाई…. यानी सीनियर जज अपने से छोटे अदालतों के जजों की नियुक्ति करते है। इस कोलेजियम में जज और कुछ वरिष्ठ वकील भी शामिल होते है। जैसे सुप्रीमकोर्ट के जज हाईकोर्ट के जज की नियुक्ति करते है और हाईकोर्ट के जज जिला अदालतों के जजों की नियुक्ति करते है ।

इस प्रणाली में कितना भ्रष्टाचार है वो लोगों ने अभिषेक मनु सिंघवी की सेक्स सीडी में देखा था… अभिषेक मनु सिंघवी सुप्रीमकोर्ट की कोलेजियम के सदस्य थे और उन्हें दिल्ली हाईकोर्ट के लिए जजों की नियुक्ति करने का अधिकार था… उस सेक्स सीडी में वो वरिष्ठ वकील अनुसुइया सालवान को जज बनाने का लालच देकर उसके साथ इलू इलू करते पाए गए थे , वो भी कोर्ट परिसर के ही अपने चैम्बर में।

कलेजियम सिस्टम से कैसे लोगो को जज बनाया जाता है और उसके द्वारा राजनीतिक साजिशें कैसे की जाती है उसके दो उदाहरण देखिये …….

पहला उदाहरण —
किसी भी राज्य के हाईकोर्ट में जज बनने की सिर्फ दो योग्यता होती है… वो भारत का नागरिक हो और 10 साल से किसी हाईकोर्ट में वकालत कर रहा हो …..या किसी राज्य का महाधिवक्ता हो ।

वीरभद्र सिंह जब हिमाचल में मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने सारे नियम कायदों को ताक पर रखकर अपनी बेटी अभिलाषा कुमारी को हिमाचल का महाधिवक्ता नियुक्त कर दिया फिर कुछ दिनों बाद सुप्रीमकोर्ट के जजों के कोलेजियम ने उन्हें हाईकोर्ट के जज की नियुक्ति दे दी और उन्हें गुजरात हाईकोर्ट में जज बनाकर भेज दिया गया।

तब कांग्रेस , गुजरात दंगो के बहाने मोदी को फंसाना चाहती थी और अभिलाषा कुमारी ने जज की हैसियत से कई निर्णय मोदी के खिलाफ दिये …हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने बाद में उसे बदल दिया था।

दूसरा उदाहरण….
1990 में जब लालूप्रसाद बिहार के मुख्यमंत्री थे तब कट्टरपंथी मुस्लिम आफ़ताब आलम को हाईकोर्ट का जज बनाया गया…. बाद में उन्हे प्रोमोशन देकर सुप्रीमकोर्ट का जज बनाया गया…. उनकी नरेंद्र मोदी से इतनी दुश्मनी थी कि तीस्ता शीतलवाड़ और मुकुल सिन्हा गुजरात के हर मामले को इनकी ही बेंच में अपील करते थे… इन्होने नरेद्र मोदी को फँसाने के लिए अपना एक मिशन बना लिया था।

बाद में आठ रिटायर जजों ने जस्टिस एम बी सोनी की अध्यक्षता में सुप्रीमकोर्ट के चीफ जस्टिस से मिलकर आफ़ताब आलम को गुजरात दंगो के किसी भी मामलो की सुनवाई से दूर रखने की अपील की थी…. जस्टिस सोनी ने आफ़ताब आलम के दिए 12 फैसलों का डिटेल में अध्ययन करके उसे सुप्रीमकोर्ट के चीफ जस्टिस को दिया था और साबित किया था कि आफ़ताब आलम चूँकि मुस्लिम है इसलिए उनके हर फैसले में भेदभाव स्पष्ट नजर आ रहा है।

फिर सुप्रीमकोर्ट ने जस्टिस आफ़ताब आलम को गुजरात दंगो से किसी भी केस की सुनवाई से दूर कर दिया।

जजों के चुनाव के लिए कोलेजियम प्रणाली के स्थान पर एक नई विशेष प्रणाली की जरूरत महसूस की जा रही थी। जब मोदी की सरकार आई तो तीन महीने बाद ही संविधान का संशोधन ( 99 वाँ संशोधन) करके एक कमीशन बनाया गया जिसका नाम दिया गया National Judicial Appointments Commission (NJAC)

इस कमीशन के तहत कुल छः लोग मिलकर जजों की नियुक्ति कर सकते थे।
A- इसमें एक सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश ,
B- सुप्रीम कोर्ट के दो सीनियर जज जो मुख्य न्यायाधीश से ठीक नीचे हों ,
C- भारत सरकार का कानून एवं न्याय मंत्री ,
D- और दो ऐसे चयनित व्यक्ति जिसे तीन लोग मिलकर चुनेंगे।( प्रधानमंत्री , मुख्य न्यायाधीश एवं लोकसभा में विपक्ष का नेता) ।

परंतु एक बड़ी बात तब हो गई जब सुप्रीम कोर्ट ने इस कमीशन को रद्द कर दिया , वैसे इसकी उम्मीद भी की जा रही थी।

इस वाकये को #न्यायपालिका एवं #संसद के बीच टकराव के रूप में देखा जाने लगा ….भारतीय लोकतंत्र पर सुप्रीम कोर्ट के कुठाराघात के रूप में इसे लिया गया।

यह कानून संसद के दोनों सदनों में सर्वसम्मति से पारित किया गया था जिसे 20 राज्यों की विधानसभा ने भी अपनी मंजूरी दी थी।

सुप्रीम कोर्ट यह भूल गया थी कि जिस सरकार ने इस कानून को पारित करवाया है उसे देश की जनता ने पूर्ण बहुमत से चुना है।

सिर्फ चार जज बैठकर करोड़ों लोगों की इच्छाओं का दमन कैसे कर सकते हैं ?

क्या सुप्रीम कोर्ट इतना ताकतवर हो सकता है कि वह लोकतंत्र में #जनमानस की आकांक्षाओं पर पानी फेर सकता है ?

जब संविधान की खामियों को देश की जनता परिमार्जित कर सकती है तो न्यायपालिका की खामियों को क्यों नहीं कर सकती ?

यदि NJAC को सुप्रीम कोर्ट असंवैधानिक कह सकता है तो इससे ज्यादा असंवैधानिक तो कोलेजियम सिस्टम है जिसमें ना तो पारदर्शिता है और ना ही #ईमानदारी ?

#कांग्रेसी सरकारों को इस कोलेजियम से कोई दिक्कत नहीं रही क्योंकि उन्हें #पारदर्शिता की आवश्यकता थी ही नहीं।

मोदी सरकार ने एक कोशिश की थी परंतु सुप्रीम कोर्ट ने उस कमीशन को रद्दी की टोकरी में डाल दिया।

#शूचिता एवं #पारदर्शिता का दंभ भरने वाले सुप्रीम कोर्ट को तो यह करना चाहिए था कि इस नये कानून (NJAC) को कुछ समय तक चलने देना चाहिए था…ताकि इसके लाभ हानि का पता चलता , खामियाँ यदि होती तो उसे दूर किया जा सकता था …परंतु ऐसा नहीं हुआ।

जज अपनी नियुक्ति खुद करे ऐसा विश्व में कहीं नहीं होता है सिवाय भारत के।

क्या कुछ सीनियर #IAS आॅफिसर मिलकर नये IAS की नियुक्ति कर सकते हैं?

क्या कुछ सीनियर प्रोफेसर मिलकर नये #प्रोफेसर की नियुक्ति कर सकते हैं ?

यदि नहीं तो जजों की नियुक्ति जजों द्वारा क्यों की जानी चाहिए ?

आज सुप्रीम कोर्ट एक धर्म विशेष का हिमायती बना हुआ है …
सुप्रीम कोर्ट गौरक्षकों को बैन करता है …सुप्रीम कोर्ट जल्लीकट्टू को बैन करता है …सुप्रीम कोर्ट #दही_हांडी के खिलाफ निर्णय देता है ….सुप्रीम कोर्ट दस बजे रात के बाद #डांडिया बंद करवाता है …..सुप्रीम कोर्ट #दीपावली में देर रात पटाखे को बैन करता है।

लेकिन ..
सुप्रीम कोर्ट #आतंकियों की सुनवाई के लिए रात दो बजे अदालत खुलवाता है ….सुप्रीम कोर्ट #पत्थरबाजी को बैन नहीं करता है….सुप्रीम कोर्ट गोमांस खाने वालों पर बैन नहीं लगाता है ….ईद – बकरीद पर पर कुर्बानी को बैन नहीं करता है …..मुस्लिम महिलाओं के शोषण के खिलाफ तीन तलाक को बैन नहीं करता है।

और तो और सुप्रीम कोर्ट ने यहाँ तक कह दिया कि तीन #तलाक का मुद्दा यदि #मजहब का है तो वह हस्तक्षेप नहीं करेगा। ये क्या बात हुई ? #आधीमुस्लिमआबादी की जिंदगी नर्क बनी हुई है और आपको यह मुद्दा मजहबी दिखता है ? धिक्कार है आपके उपर ….।

अभिषेक मनु सिंघवी के वीडियो को सोशल मीडिया , यू ट्यूब से हटाने का आदेश देते हो कि न्यायपालिका की बदनामी ना हो ? ….पर क्यों ऐसा ? …क्यों छुपाते हो अपनी कमजोरी ?

जस्टिस कर्णन जैसे पागल और टूच्चे जजों को नियुक्त करके एवं बाद में छः माह के लिए कैद की सजा सुनाने की सुप्रीम कोर्ट को आवश्यकता क्यों पड़नी चाहिए ?

#अभिषेक मनु सिंघवी जैसे अय्याशों को जजों की नियुक्ति का अधिकार क्यों मिलना चाहिए ?

क्या #सुप्रीम कोर्ट जवाब देगा ..?????

लोग अब तक सुप्रीम कोर्ट की इज्जत करते आए हैं , कहीं ऐसा ना हो कि जनता न्यायपालिका के विरुद्ध अपना उग्र रूप धारण कर लें उसके पहले उसे अपनी समझ दुरुस्त कर लेनी चाहिए। सत्तर सालों से चल रही दादागीरी अब बंद करनी पड़ेगी .. यह “#लोकतंत्र” है और “जनता” ही इसकी “मालिक” ह

Manjeet Suwalka ji, कॉपी पेस्ट