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भक्त की सरलता


(((( भक्त की सरलता ))))
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बहुत साल पहले की बात है। एक आलसी लेकिन भोलाभाला युवक था आनंद।
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दिन भर कोई काम नहीं करता बस खाता ही रहता और सोए रहता। घर वालों ने कहा चलो जाओ निकलो घर से, कोई काम धाम करते नहीं हो बस पड़े रहते हो।
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वह घर से निकल कर यूं ही भटकते हुए एक आश्रम पहुंचा। वहां उसने देखा कि एक गुरुजी हैं उनके शिष्य कोई काम नहीं करते बस मंदिर की पूजा करते हैं।
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उसने मन में सोचा यह बढ़िया है कोई काम धाम नहीं बस पूजा ही तो करना है। गुरुजी के पास जाकर पूछा, क्या मैं यहां रह सकता हूं, गुरुजी बोले हां, हां क्यों नहीं ?
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लेकिन मैं कोई काम नहीं कर सकता हूं
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गुरुजी : कोई काम नहीं करना है बस पूजा करना होगी
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आनंद : ठीक है वह तो मैं कर लूंगा …
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अब आनंद महाराज आश्रम में रहने लगे। ना कोई काम ना कोई धाम बस सारा दिन खाते रहो और प्रभु मक्ति में भजन गाते रहो।
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महीना भर हो गया फिर एक दिन आई एकादशी। उसने रसोई में जाकर देखा खाने की कोई तैयारी नहीं। उसने गुरुजी से पूछा आज खाना नहीं बनेगा क्या
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गुरुजी ने कहा नहीं आज तो एकादशी है तुम्हारा भी उपवास है ।
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उसने कहा नहीं अगर हमने उपवास कर लिया तो कल का दिन ही नहीं देख पाएंगे हम तो …. हम नहीं कर सकते उपवास… हमें तो भूख लगती है आपने पहले क्यों नहीं बताया ?
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गुरुजी ने कहा ठीक है तुम ना करो उपवास, पर खाना भी तुम्हारे लिए कोई और नहीं बनाएगा तुम खुद बना लो।
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मरता क्या न करता… गया रसोई में, गुरुजी फिर आए ”देखो अगर तुम खाना बना लो तो राम जी को भोग जरूर लगा लेना और नदी के उस पार जाकर बना लो रसोई।
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ठीक है, लकड़ी, आटा, तेल, घी, सब्जी लेकर आंनद महाराज चले गए, जैसा तैसा खाना भी बनाया, खाने लगा तो याद आया गुरुजी ने कहा था कि राम जी को भोग लगाना है।
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लगा भजन गाने
आओ मेरे राम जी , भोग लगाओ जी
प्रभु राम आइए, श्रीराम आइए मेरे भोजन का भोग लगाइए…..
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कोई ना आया, तो बैचैन हो गया कि यहां तो भूख लग रही है और राम जी आ ही नहीं रहे।
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भोला मानस जानता नहीं था कि प्रभु साक्षात तो आएंगे नहीं । पर गुरुजी की बात मानना जरूरी है।
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फिर उसने कहा , देखो प्रभु राम जी, मैं समझ गया कि आप क्यों नहीं आ रहे हैं। मैंने रूखा सूखा बनाया है और आपको तर माल खाने की आदत है इसलिए नहीं आ रहे हैं….
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तो सुनो प्रभु … आज वहां भी कुछ नहीं बना है, सबको एकादशी है, खाना हो तो यह भोग ही खालो…
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श्रीराम अपने भक्त की सरलता पर बड़े मुस्कुराए और माता सीता के साथ प्रकट हो गए।
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भक्त असमंजस में। गुरुजी ने तो कहा था कि राम जी आएंगे पर यहां तो माता सीता भी आईं है और मैंने तो भोजन बस दो लोगों का बनाया हैं।
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चलो कोई बात नहीं आज इन्हें ही खिला देते हैं।
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बोला प्रभु मैं भूखा रह गया लेकिन मुझे आप दोनों को देखकर बड़ा अच्छा लग रहा है लेकिन अगली एकादशी पर ऐसा न करना पहले बता देना कि कितने जन आ रहे हो,
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और हां थोड़ा जल्दी आ जाना। राम जी उसकी बात पर बड़े मुदित हुए। प्रसाद ग्रहण कर के चले गए।
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अगली एकादशी तक यह भोला मानस सब भूल गया। उसे लगा प्रभु ऐसे ही आते होंगे और प्रसाद ग्रहण करते होंगे।
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फिर एकादशी आई। गुरुजी से कहा, मैं चला अपना खाना बनाने पर गुरुजी थोड़ा ज्यादा अनाज लगेगा, वहां दो लोग आते हैं।
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गुरुजी मुस्कुराए, भूख के मारे बावला है। ठीक है ले जा और अनाज ले जा।
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अबकी बार उसने तीन लोगों का खाना बनाया। फिर गुहार लगाई
प्रभु राम आइए, सीताराम आइए, मेरे भोजन का भोग लगाइए…
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प्रभु की महिमा भी निराली है। भक्त के साथ कौतुक करने में उन्हें भी बड़ा मजा आता है। इस बार वे अपने भाई लक्ष्मण, भरत शत्रुघ्न और हनुमान जी को लेकर आ गए।
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भक्त को चक्कर आ गए। यह क्या हुआ। एक का भोजन बनाया तो दो आए आज दो का खाना ज्यादा बनाया तो पूरा खानदान आ गया।
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लगता है आज भी भूखा ही रहना पड़ेगा। सबको भोजन लगाया और बैठे-बैठे देखता रहा। अनजाने ही उसकी भी एकादशी हो गई।
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फिर अगली एकादशी आने से पहले गुरुजी से कहा, गुरुजी, ये आपके प्रभु राम जी, अकेले क्यों नहीं आते हर बार कितने सारे लोग ले आते हैं ? इस बार अनाज ज्यादा देना।
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गुरुजी को लगा, कहीं यह अनाज बेचता तो नहीं है देखना पड़ेगा जाकर। भंडार में कहा इसे जितना अनाज चाहिए दे दो और छुप कर उसे देखने चल पड़े।
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इस बार आनंद ने सोचा, खाना पहले नहीं बनाऊंगा, पता नहीं कितने लोग आ जाएं। पहले बुला लेता हूं फिर बनाता हूं।
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फिर टेर लगाई प्रभु राम आइए , श्री राम आइए, मेरे भोजन का भोग लगाइए…
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सारा राम दरबार मौजूद… इस बार तो हनुमान जी भी साथ आए लेकिन यह क्या प्रसाद तो तैयार ही नहीं है।
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भक्त ठहरा भोला भाला, बोला प्रभु इस बार मैंने खाना नहीं बनाया,
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प्रभु ने पूछा क्यों ? बोला, मुझे मिलेगा तो है नहीं फिर क्या फायदा बनाने का, आप ही बना लो और खुद ही खा लो….
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राम जी मुस्कुराए, सीता माता भी गदगद हो गई उसके मासूम जवाब से… लक्ष्मण जी बोले क्या करें प्रभु…
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प्रभु बोले भक्त की इच्छा है पूरी तो करनी पड़ेगी। चलो लग जाओ काम से।
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लक्ष्मण जी ने लकड़ी उठाई, माता सीता आटा सानने लगीं। भक्त एक तरफ बैठकर देखता रहा।
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माता सीता रसोई बना रही थी तो कई ऋषि-मुनि, यक्ष, गंधर्व प्रसाद लेने आने लगे।
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इधर गुरुजी ने देखा खाना तो बना नहीं भक्त एक कोने में बैठा है। पूछा बेटा क्या बात है खाना क्यों नहीं बनाया ?
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बोला, अच्छा किया गुरुजी आप आ गए देखिए कितने लोग आते हैं प्रभु के साथ…..
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गुरुजी बोले, मुझे तो कुछ नहीं दिख रहा तुम्हारे और अनाज के सिवा
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भक्त ने माथा पकड़ लिया, एक तो इतनी मेहनत करवाते हैं प्रभु, भूखा भी रखते हैं और ऊपर से गुरुजी को दिख भी नहीं रहे यह और बड़ी मुसीबत है।
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प्रभु से कहा, आप गुरुजी को क्यों नहीं दिख रहे हैं ?
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प्रभु बोले : मैं उन्हें नहीं दिख सकता।
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बोला : क्यों , वे तो बड़े पंडित हैं, ज्ञानी हैं विद्वान हैं उन्हें तो बहुत कुछ आता है उनको क्यों नहीं दिखते आप ?
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प्रभु बोले , माना कि उनको सब आता है पर वे सरल नहीं हैं तुम्हारी तरह। इसलिए उनको नहीं दिख सकता….
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आनंद ने गुरुजी से कहा, गुरुजी प्रभु कह रहे हैं आप सरल नहीं है इसलिए आपको नहीं दिखेंगे,
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गुरुजी रोने लगे वाकई मैंने सब कुछ पाया पर सरलता नहीं पा सका तुम्हारी तरह, और प्रभु तो मन की सरलता से ही मिलते हैं।
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प्रभु प्रकट हो गए और गुरुजी को भी दर्शन दिए। इस तरह एक भक्त के कहने पर प्रभु ने रसोई भी बनाई।
((((((( जय जय श्री राधे ))))))
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लष्मीकांत वर्षनाय

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पीपल के वृक्ष द्वारा अपनी समस्याओं को दूर करें…
प्रत्येक नक्षत्र वाले दिन भी इसका विशिष्ट गुण
भिन्नता लिए हुए होता है.
भारतीय ज्योतिष शास्त्र में कुल मिला कर 28
नक्षत्रों कि गणना है, तथा प्रचलित केवल 27 नक्षत्र है
उसी के आधार पर प्रत्येक मनुष्य के जन्म के समय नामकरण
होता है. अर्थात मनुष्य का नाम का प्रथम अक्षर
किसी ना किसी नक्षत्र के अनुसार ही होता है.
तथा इन नक्षत्रों के स्वामी भी अलग अलग ग्रह होते है.
विभिन्न नक्षत्र एवं उनके स्वामी निम्नानुसार है
यहां नक्षत्रों के स्वामियों के नाम कोष्ठक के अंदर
लिख रहा हूँ जिससे आपको आसानी रहे.
(१)अश्विनी(केतु), (२)भरणी(शुक्र), (३)कृतिका(सूर्य),
(४)रोहिणी(चन्द्र), (५)मृगशिर(मंगल), (६)आर्द्रा(राहू),
(७)पुनर्वसु(वृहस्पति), (८)पुष्य(शनि), (९)आश्लेषा(बुध),
(१०)मघा(केतु), (११)पूर्व फाल्गुनी(शुक्र),
(१२)उत्तराफाल्गुनी(सूर्य), (१३)हस्त(चन्द्र),
(१४)चित्रा(मंगल), (१५)स्वाति(राहू),
(१६)विशाखा(वृहस्पति), (१७)अनुराधा(शनि),
(१८)ज्येष्ठा(बुध), (१९)मूल(केतु), (२०)पूर्वाषाढा(शुक्र),
(२१)उत्तराषाढा(सूर्य), (२२)श्रवण(चन्द्र),
(२३)धनिष्ठा(मंगल), (२४)शतभिषा(राहू),
(२५)पूर्वाभाद्रपद(वृहस्पति), (२६)उत्तराभाद्रपद(शनि)
एवं (२७)रेवती(बुध)..
ज्योतिष शास्त्र अनुसार प्रत्येक ग्रह 3, 3 नक्षत्रों के
स्वामी होते है
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कोई भी व्यक्ति जिस भी नक्षत्र में जन्मा हो वह
उसके स्वामी ग्रह से सम्बंधित दिव्य प्रयोगों को करके
लाभ प्राप्त कर सकता है.
अपने जन्म नक्षत्र के बारे में अपनी जन्मकुंडली को देखें
या अपनी जन्मतिथि और समय व् जन्म स्थान लिखकर
भेजे.या अपने विद्वान ज्योतिषी से संपर्क कर जन्म
का नक्षत्र ज्ञात कर के यह सर्व सिद्ध प्रयोग करके
लाभ उठा सकते है.
विभिन्न ग्रहों से सम्बंधित पीपल वृक्ष के प्रयोग निम्न
है.
@@सूर्य@@
जिन नक्षत्रों के स्वामी भगवान सूर्य देव है, उन
व्यक्तियों के लिए निम्न प्रयोग है.
(अ) रविवार के दिन प्रातःकाल पीपल वृक्ष की 5
परिक्रमा करें.
(आ) व्यक्ति का जन्म जिस नक्षत्र में हुआ हो उस दिन
(जो कि प्रत्येक माह में अवश्य आता है) भी पीपल
वृक्ष की 5 परिक्रमा अनिवार्य करें.
(इ) पानी में कच्चा दूध मिला कर पीपल पर अर्पण करें.
(ई) रविवार और अपने नक्षत्र वाले दिन 5 पुष्प अवश्य
चढ़ाए. साथ
ही अपनी कामना की प्रार्थना भी अवश्य करे
तो जीवन की समस्त बाधाए दूर होने लगेंगी.
@@चन्द्र:@@
जिन नक्षत्रों के स्वामी भगवान चन्द्र देव है, उन
व्यक्तियों के लिए निम्न प्रयोग है.
(अ) प्रति सोमवार तथा जिस दिन जन्म नक्षत्र
हो उस दिन पीपल वृक्ष को सफेद पुष्प अर्पण करें लेकिन
पहले 4 परिक्रमा पीपल की अवश्य करें.
(आ) पीपल वृक्ष की कुछ सुखी टहनियों को स्नान के
जल में कुछ समय तक रख कर फिर उस जल से स्नान
करना चाहिए.
(इ) पीपल का एक पत्ता सोमवार को और एक
पत्ता जन्म नक्षत्र वाले दिन तोड़ कर उसे अपने कार्य
स्थल पर रखने से सफलता प्राप्त होती है और धन लाभ
के मार्ग प्रशस्त होने लगते है.
(ई) पीपल वृक्ष के नीचे प्रति सोमवार कपूर मिलकर
घी का दीपक लगाना चाहिए.
@@मंगल:@@
जिन नक्षत्रो के स्वामी मंगल है. उन नक्षत्रों के
व्यक्तियों के लिए निम्न प्रयोग है….
(अ) जन्म नक्षत्र वाले दिन और प्रति मंगलवार को एक
ताम्बे के लोटे में जल लेकर पीपल वृक्ष को अर्पित करें.
(आ) लाल रंग के पुष्प प्रति मंगलवार प्रातःकाल पीपल
देव को अर्पण करें.
(इ) मंगलवार तथा जन्म नक्षत्र वाले दिन पीपल वृक्ष
की 8 परिक्रमा अवश्य करनी चाहिए.
(ई) पीपल की लाल कोपल को (नवीन लाल पत्ते को)
जन्म नक्षत्र के दिन स्नान के जल में डाल कर उस जल से
स्नान करें.
(उ) जन्म नक्षत्र के दिन किसी मार्ग के किनारे १
अथवा 8 पीपल के वृक्ष रोपण करें.
(ऊ) पीपल के वृक्ष के नीचे मंगलवार प्रातः कुछ शक्कर
डाले.
(ए) प्रति मंगलवार और अपने जन्म नक्षत्र वाले दिन
अलसी के तेल का दीपक पीपल के वृक्ष के नीचे
लगाना चाहिए.
@@बुध:@@
जिन नक्षत्रों के स्वामी बुध ग्रह है, उन नक्षत्रों से
सम्बंधित व्यक्तियों को निम्न प्रयोग करने चाहिए.
(अ) किसी खेत में जंहा पीपल का वृक्ष
हो वहां नक्षत्र वाले दिन जा कर, पीपल के नीचे
स्नान करना चाहिए.
(आ) पीपल के तीन हरे पत्तों को जन्म नक्षत्र वाले
दिन और बुधवार को स्नान के जल में डाल कर उस जल से
स्नान करना चाहिए.
(इ) पीपल वृक्ष की प्रति बुधवार और नक्षत्र वाले दिन
6 परिक्रमा अवश्य करनी चाहिए.
(ई) पीपल वृक्ष के नीचे बुधवार और जन्म, नक्षत्र वाले
दिन चमेली के तेल का दीपक लगाना चाहिए.
(उ) बुधवार को चमेली का थोड़ा सा इत्र पीपल पर
अवश्य लगाना चाहिए अत्यंत लाभ होता है.
@@वृहस्पति:@@
जिन नक्षत्रो के स्वामी वृहस्पति है. उन नक्षत्रों से
सम्बंधित व्यक्तियों को निम्न प्रयोग करने चाहियें.
(अ) पीपल वृक्ष को वृहस्पतिवार के दिन और अपने जन्म
नक्षत्र वाले दिन पीले पुष्प अर्पण करने चाहिए.
(आ) पिसी हल्दी जल में मिलाकर वृहस्पतिवार और
अपने जन्म नक्षत्र वाले दिन पीपल वृक्ष पर अर्पण करें
(इ) पीपल के वृक्ष के नीचे इसी दिन
थोड़ा सा मावा शक्कर मिलाकर डालना या कोई
भी मिठाई पीपल पर अर्पित करें.
(ई) पीपल के पत्ते को स्नान के जल में डालकर उस जल से
स्नान करें
(उ) पीपल के नीचे उपरोक्त दिनों में सरसों के तेल
का दीपक जलाएं.
@@शुक्र:@@
जिन नक्षत्रो के स्वामी शुक्र है. उन नक्षत्रों से
सम्बंधित व्यक्तियों को निम्न प्रयोग करने चाहियें.
(अ) जन्म नक्षत्र वाले दिन पीपल वृक्ष के नीचे बैठ कर
स्नान करना.
(आ) जन्म नक्षत्र वाले दिन और शुक्रवार को पीपल पर
दूध चढाना.
(इ) प्रत्येक शुक्रवार प्रातः पीपल की 7
परिक्रमा करना.
(ई) पीपल के नीचे जन्म नक्षत्र वाले दिन
थोड़ासा कपूर जलाना.
(उ) पीपल पर जन्म नक्षत्र वाले दिन 7 सफेद पुष्प
अर्पित करना.
(ऊ) प्रति शुक्रवार पीपल के नीचे आटे
की पंजीरी सालना.
@@शनि:@@
जिन नक्षत्रों के स्वामी शनि है. उस नक्षत्रों से
सम्बंधित व्यक्तियों को निम्न प्रयोग करने चाहिए.
(अ) शनिवार के दिन पीपल पर
थोड़ा सा सरसों का तेल चडाना.
(आ) शनिवार के दिन पीपल के नीचे तिल के तेल
का दीपक जलाना.
(इ) शनिवार के दिन और जन्म नक्षत्र के दिन पीपल
को स्पर्श करते हुए उसकी एक परिक्रमा करना.
(ई) जन्म नक्षत्र के दिन पीपल की एक कोपल चबाना.
(उ) पीपल वृक्ष के नीचे कोई भी पुष्प अर्पण करना.
(ऊ) पीपल के वृक्ष पर मिश्री चडाना.
@@राहू:@@
जिन नक्षत्रों के स्वामी राहू है, उन नक्षत्रों से
सम्बंधित व्यक्तियों को निम्न प्रयोग करने चाहिए.
(अ) जन्म नक्षत्र वाले दिन पीपल वृक्ष की 21
परिक्रमा करना.
(आ) शनिवार वाले दिन पीपल पर शहद चडाना.
(इ) पीपल पर लाल पुष्प जन्म नक्षत्र वाले दिन
चडाना.
(ई) जन्म नक्षत्र वाले दिन पीपल के नीचे गौमूत्र मिले
हुए जल से स्नान करना.
(उ) पीपल के नीचे किसी गरीब को मीठा भोजन दान
करना.
@@केतु:@@
जिन नक्षत्रों के स्वामी केतु है, उन नक्षत्रों से
सम्बंधित व्यक्तियों को निम्न उपाय कर अपने जीवन
को सुखमय बनाना चाहिए.
(अ) पीपल वृक्ष पर प्रत्येक शनिवार मोतीचूर का एक
लड्डू या इमरती चडाना.
(आ) पीपल पर प्रति शनिवार गंगाजल मिश्रित जल
अर्पित करना.
(इ) पीपल पर तिल मिश्रित जल जन्म नक्षत्र वाले दिन
अर्पित करना.
(ई) पीपल पर प्रत्येक शनिवार सरसों का तेल चडाना.
(उ) जन्म नक्षत्र वाले दिन पीपल की एक
परिक्रमा करना.
(ऊ) जन्म नक्षत्र वाले दिन पीपल
की थोडीसी जटा लाकर उसे धूप दीप दिखा कर अपने
पास सुरक्षित रखना.
इस प्रकार से प्रत्येक व्यक्ति उपरोक्त उपाय अपने अपने
नक्षत्र के अनुसार करके अपने जीवन को सुगम बना सकते
है, इन उपायों को करने से तुरंत लाभ प्राप्य होता है और
जीवन में किसी भी प्रकार की बाधा उत्पन्न
नहीं होती है और जो बाधा हो वह तत्काल दूर होने
लगती है. शास्त्र, आदि सभी महान ग्रन्थ अनुसार
पीपल वृक्ष में सभी देवी देवताओं का वास होता है.
उन्हीं को हम अपने जन्म नक्षत्र अनुसार प्रसन्न करते है.
और आशीर्वाद प्राप्त करते है.
शुभमस्तु !!!

विक्रम प्रकाश राइसोनय

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प्राचीन न्यूक्लियर रिएक्टर की कहानी

सन 1932 में भौतिक विज्ञान के पितामह अर्नेस्ट रदरफोर्ड ने पहली बार परमाणुओं को तोड़ने में सफलता पाई थी। इससे पूर्व ‘यूरेनियम’ एक अति साधारण तत्व हुआ करता था। परमाणु विखंडन की खोज के बाद यूरेनियम पृथ्वी के गर्भ में उपस्थित हर धातु से अधिक मूल्यवान हो चुका था। यूरेनियम की खोज परमाणु विखंडन से बहुत पहले सन 1789 में कर ली गई थी। इससे पहले तक यूरेनियम का उपयोग सिरैमिक के बर्तनों की रंगाई और रेशम को रंगने के लिए किया जाता था। पिछले वर्ष दिसंबर में मुंबई के ठाणे से कुल 8.86 किलो यूरेनियम क्राइम ब्रांच ने जब्त किया था जिसका अंतरराष्ट्रीय मूल्य लगभग 26 करोड़ आँका गया था। खैर यूरेनियम पर आज का विषय अतीत के एक रहस्य से जुड़ा हुआ है। वो रहस्य जिसने वैज्ञानिकों को उलझन में डाल दिया है।

गबोन गणराज्य पश्चिम मध्य अफ़्रीका में स्थित एक देश है। सन 1972 में फ्रांस की एक कंपनी यहाँ ‘ओक्लो’ में स्थित एक खदान से यूरेनियम के अवयव खुदाई में निकलवा रही थी। जब लेबोरेटरी में इन अवयवों की जांच की गई तो सबके मुंह खुले रह गए। पता चला कि खुदाई में प्राप्त अवयवों में से कुछ प्रतिशत ‘यूरेनियम’ पहले ही निकाला जा चुका था।

बात भरोसे लायक कतई नहीं थी। लैब में हुई गणना के मुताबिक ‘यूरेनियम-235’ में 0.7 प्रतिशत यूरेनियम मिलना चाहिए था लेकिन मिला केवल 0.3 प्रतिशत।  इस अविश्वसनीय तथ्य के पता चलने के बाद वैज्ञानिक समुदाय दो धड़ों में बंट गया। एक धड़े का मानना था कि ये यूरेनियम की खदान दरअसल हज़ारों वर्ष पुराना एक ‘प्राचीन न्यूक्लियर रिएक्टर’ था और दूसरा धड़ा इसे मूर्खतापूर्ण तथ्य बता रहा था।

फ़्रांसिसी भौतिक विज्ञानी फ्रांसिस पेरिन ने अपने सहयोगियों के साथ इस खदान में लंबा अनुसंधान किया तो पता चला यहाँ  मिले तीन प्रकार के इज़ोटोप (isotope) का स्तर वही पाया गया जो आज की आधुनिक परमाणु भट्टियों के परमाणु कचरे में पाया जाता है। कई वैज्ञानिक इस बात पर सहमत हुए कि प्राकृतिक स्त्रोतों में पर्याप्त मात्रा में ‘यूरेनियम-235’ प्राप्त नहीं हुआ था। ये इतनी मात्रा में नहीं था कि स्वाभाविक ‘चेन रिएक्शन’ को अंजाम दे पाता। सवाल बहुत खरा था कि पुराने समय में यूरेनियम-235′ का किसने और कैसे उपयोग किया होगा।

वैज्ञानिक कैसे मान लेते कि हज़ारों या लाखों वर्ष पूर्व अफ्रीका के पथरीले क्षेत्र में कोई अनजान सभ्यता ‘न्यूक्लियर रिएक्टर’ बनाने में सक्षम थी। शोध के आंकड़ों को झुठलाया नहीं जा सकता था। इस असमंजस से निकलने के लिए वैज्ञानिकों ने कहा कि ये ‘महान आश्चर्य’ है जो ‘प्राकृतिक रूप’ से घटित हुआ है।

इस पर फ्रांसिस जैसे वैज्ञानिकों ने विरोध जताते हुए कहा कि उस खदान में जो ‘मानव निर्मित’ अवशेष प्राप्त हुए हैं, उसके बारे में क्या स्पष्टीकरण देंगे। मशहूर वैज्ञानिक डॉक्टर ग्लेन सिबर्ग ने भी इसे ‘प्राकृतिक रूप से घटित’ बताया है। हालांकि ‘चेन रिएक्शन’ प्राकृतिक रूप से हो पाना संभव नहीं है, इसके लिए बहुत से तामझाम करने पड़ते हैं। 

बताया जा रहा कि इस साइट पर जितना यूरेनियम पाया गया, उससे छह परमाणु बम बनाए जा सकते हैं। ये भी पाया गया कि रिएक्टर बेहद ‘सुरक्षित स्थिति’ में छोड़ा गया था और ‘परमाणु कचरे’ के निपटान की पूरी व्यवस्था यहाँ देखी गई है। इसके अलावा प्लांट में प्रयोग किया जाने वाला जल अत्यंत ‘शुद्ध अवस्था’ में मिला। कुल मिलाकर ये आज के आधुनिक ‘न्यूक्लियर रिएक्टर’ की तरह जानदार और शानदार बताया जा रहा है।

जब ये खबर फैली तो ‘गबोन’ स्थित इस खदान में शोध करने के लिए वैज्ञानिकों की भीड़ लग गई थी। यहाँ से जो मिला वह आप फोटो में देख सकेंगे। हालांकि फोटो दूर से लिया गया था लेकिन इसके आकार से आपको अंदाज़ा लग जाएगा। अब समस्या ये है कि अन्य रहस्यों की तरह इस पर भी पर्दा डाल दिया गया है। सन 2015 के बाद से  ‘गबोन’ की ख़बरें आना बंद हो गई है।

प्राचीन न्यूक्लियर रिएक्टर की अवधारणा गुदगुदाती है लेकिन भरोसा नहीं होता। वैज्ञानिकों की जांच-पड़ताल एक भयानक सत्य की ओर इशारा करती है। अतीत में न जाने कितनी बार मानव सभ्यताएं ‘परमाणु’ के लालच में आकर नष्ट हो चुकी हैं। अरबों आकाशगंगाओं में भी कितनी ही सभ्यताएं ‘अक्षय ऊर्जा’ के बजाय ‘परमाणु’ का विकल्प चुनकर अपनी तबाही को आमंत्रित कर लेती हैं। ‘गबोन’ का परमाणु रिएक्टर किसने बनाया था। क्या उस सभ्यता को मोहनजो-दारो की तरह कोई विशाल ‘परमाणु विस्फोट’ विलुप्त कर गया था। वह रिएक्टर कैसे हज़ारों वर्ष तक चैतन्य रहा।

                                                                        
                           सवाल, सवाल और बस सवाल  

✍🏻 विपुल विजय रेगे

वज्र ‘ग्लोबल’ है
दधीचि ऋषि जब तक जीवित रहे, असुर उन्हें देखकर भय खाते रहे। इसके बाद इंद्र को पुष्कर क्षेत्र में दधीचि ने अपनी अस्थियां भेंट कर दी। इंद्र ने इस हड्डी से ‘वज्र’ बनाया और असुरों को पराजित किया। वज्र को इंद्र का शस्त्र माना जाता है। वज्र केवल भारत ही नहीं संसार के विभिन्न क्षेत्रों में प्रयोग किया जाता था। वज्र को ‘पवित्र शस्त्र’ माना गया है। संस्कृत में इसका अर्थ ‘आकाशीय बिजली और कदाचित हीरे से भी लगाया जाता है। दो प्रकार के वज्र बनाए जाते थे। कुलिश और अशानि। वज्र बनाते समय ध्यान रखा जाता था कि इसका ‘हत्था’ वजनदार हो और पत्तियां हल्की। वज्र को ‘शांति और प्रशांति (tranquility)’ का प्रतीक माना जाता है। जापान और चीन में भी प्राचीन वज्र पाए गए हैं। यूनानी देवता ‘ज़ूस(Zeus) की कई प्रतिमाओं में वज्र उनके हाथों में दिखाई देता है। ऑस्ट्रेलिया, नोर्स पुराण में इसका उल्लेख किया गया है। ‘पश्चिम का वज्र’ तो इसमें से ‘बिजली की वर्षा’ भी करवाता है। सुमेरियन ब्रह्मांडिकी (cosmology) में भी वज्र का उल्लेख मिलता है। नोर्स गॉड ‘थोर’ का शस्त्र भी वज्र माना जाता है। माया सभ्यता के पुरावशेषों में भी वज्र दिखाई देता है।राष्ट्र के सबसे बड़े सम्मान ‘परमवीर चक्र’ की थीम भी ‘वज्र’ पर ही बनाई गई है। पौराणिक देवता इंद्र का वज्र परमवीर चक्र पर होने के पीछे बड़ा गहरा कारण है। दधीचि ऋषि ने अपनी अस्थियां दे दी ताकि ‘वज्र’ बनाया जा सके। जीवन का दान किया एक पवित्र उद्देश्य के लिए। परमवीर चक्र भी उसी को मिलता है जो अपनी हड्डियां तक पवित्र उद्देश्य के लिए समर्पित कर देता है।

✍🏻 विपुल रेगे

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मंगलवार को ये काम जरूर करें, घर आंगन में बरसेगी पवनपुत्र की कृपा!!!!!!

  • अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
    दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्‌।
    सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
    रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥

भावार्थ:-अतुल बल के धाम, सोने के पर्वत (सुमेरु) के समान कान्तियुक्त शरीर वाले, दैत्य रूपी वन (को ध्वंस करने) के लिए अग्नि रूप, ज्ञानियों में अग्रगण्य, संपूर्ण गुणों के निधान, वानरों के स्वामी, श्री रघुनाथजी के प्रिय भक्त पवनपुत्र श्री हनुमान्‌जी को मैं प्रणाम करता हूँ॥

मंगलवार यानी हनुमान जी का दिन, ऊपर से साल का दूसरा दिन आज हम आपको बता रहे हैं कि घर आंगन में पवनपुत्र की कृपा बरसाने के लिए आपको इस दिन क्या करना चाहिए।

पवनपुत्र हनुमान अनंत हैं, अकाल हैं, भावनाओं का अतिरेक हैं। कहा जाता है कि इन्हें को प्रसन्न करने वाला कभी भी जीवन में दुखी नहीं रहता। इसलिए आपको मंगलवार को कुछ ऐसे उपाय करने चाहिए, जिससे प्रभु हनुमान प्रसन्न हो जाएं। इसके लिए कुछ काम हैं, जिनके बारे में हम आपको बता रहे हैं। आइए जानते हैं कि मंगलवार को किस तरह से शुभ बनाना चाहिए।

हर दुख से बचाते हैं हनुमान,,,,,कहा जाता है कि वो भगवान हनुमान ही हैं जो ग्रहों के प्रकोप से हर किसी को बचाते हैं। शायद इसी वजह से उन्हें कलयुग के देवता कहा गया है। मंगलवार का दिन हनुमान जी को बहुत प्रिय है। कहा गया है कि इस दिन हनुमान जी की पूजा विशेष रूप से फल प्रदान करती है। कहा गया है कि मंगलवार का दिन मंगल ग्रह से भी जुड़ा है जो रक्त का प्रतिनिधि कहा जाता है।

मीठा हनुमान जी को प्रिय है,,,,,,इसके साथ ही कहा गया है कि जो लोग इस दिन मिठाई दान करते हैं, उन्हें खुद वो मिठाई नहीं खानी चाहिए। जी हां अगर आपने व्रत रखा है और आप पवनपुत्र को मीठा दान कर रहे हैं, तो उस मीठे को खुद ना खाएं बल्कि किसी को दान कर लें। मंगल वार के दिन जिस चीज का दान किया जाता है, उसे उस दिन ग्रहण नहीं करना चाहिए। इससे सौभाग्य पर गलत असर पड़ता है।

नमक से दूरी बनाए रखें,,,,इस बात का ध्यान रखिए कि अगर आप मंगलवार के दिन व्रत रखते हैं तो इस दिन आपको नमक का सेवन नहीं करना चाहिए। जी हां नमक का सेवन मंगलवार को किसी भी हाल में नहीं करना चाहिए। कई लोग अनजाने में इस दिन व्रत तो रखते हैं लेकिन नमक का सेवन कर लेते हैं। ज्योतिष शा्त्र में बताया गया है कि इससे नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश होता है।

दुकान पर हवन ना कराएं,,,,,इसके अलावा कहा गया है कि मंगलवार के दिन घर या दुकान पर हवन नहीं करवाना चाहिए। इसके अलावा कहा गया है कि इस दिन नेल कटर का उपयोग किसी भी हाल में नहीं करना चाहिए। इसके साथ ही कहा गया है कि इस दिन अपने बाल भी नहीं कटवाने चाहिए। ऐसा करने से घर में नेगेटिव एनर्जी आती है और बनते हुए काम बिगड़ने लगते हैं।

मांस मदिरा का ख्याल भी ना करें,,,,इसके अलावा एक बात का ध्यान रखें कि मंगलवार के दिन मांस और मदिरा से दूर रहे हैं। चाहे आपने व्रत रखा है या नहीं रखा है, आप इस दिन खुद को मांस और मदिरा से दूर ही रखें। वैसे तो मांस और मदिरा का सेवन इंसान की सेहत के लिए हानिकारक तो होता ही है, लेकिन इसके साथ साथ ही इस बात का भी ध्यान रखना जरूरी है कि मंगलवार के दिन इन चीजों से खुद को दूर रखें।

धारदार सामान से दूरी बनाएं,,,,इसके अलावा कहा गया है कि मंगलवार के दिन धारदार सामान अपने पास नहीं रखने चाहिए। हां एक और खास बात ये है कि इस दिन बाहर से तेल ना खरीदें। वैसे तेल तो आपको शनिवार के दिन भी नहीं खरीदना चाहिए। इससे लोगों के बुरे ग्रह आप पर आ जाते हैं। लोगों के बुरे ग्रह आप पर आएं तो बुरे काम होते हैं। इसलिए इस दिन बाहर से तेल किसी भी हाल में नहीं खरीदना चाहिए।

संजय गुप्ता

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धर्म का उदेश्य

काशी में गंगा के किनारे एक संत का आश्रम था। उसमें कई शिष्य अध्ययन करते थे। आखिर वह दिन आया जब शिक्षा पूरी होने के बाद गुरुदेव उन्हें अपना आशीर्वाद देकर विदा करने वाले थे। सुबह गंगा में स्नान करने के बाद गुरुदेव और सभी शिष्य पूजा करने बैठ गए। सभी ध्यानमग्न थे कि एक बच्चे की ‘बचाओ बचाओ’ की आवाज सुनाई पड़ी। बच्चा नदी में डूब रहा था।

आवाज सुनकर गुरुदेव की आंखें खुल गईं। उन्होंने देखा कि एक शिष्य पूजा छोड़ बच्चे को बचाने के लिए नदी में कूद गया। वह किसी तरह बच्चे को बचाकर किनारे ले आया, लेकिन दूसरे शिष्य आंखें बंद किए ध्यानमग्न थे। पूजा खत्म होने के बाद गुरुदेव ने उन शिष्यों से पूछा, ‘क्या तुम लोगों को डूबते हुए बच्चे की आवाज सुनाई पड़ी थी?’ शिष्यों ने कहा, ‘हां गुरुदेव, सुनी तो थी।’ गुरुदेव ने कहा, ‘तब तुम्हारे मन में क्या विचार उठा था?’ शिष्यों ने कहा, ‘हम लोग ध्यान में डूबे थे। दूसरी तरफ ध्यान देने की बात मन में उठी ही नहीं।’

गुरुदेव ने कहा, ‘लेकिन तुम्हारा एक मित्र बच्चे को बचाने के लिए पूजा छोड़कर नदी में कूद पड़ा।’ शिष्यों ने कहा, ‘उसने पूजा छोड़कर अधर्म किया है।’ इस पर गुरुदेव ने कहा, ‘अधर्म उसने नहीं, तुम लोगों ने किया है। तुमने डूबते हुए बच्चे की पुकार अनसुनी कर दी। पूजा-पाठ, धर्म-कर्म का एक ही उद्देश्य होता है प्राणियों की रक्षा करना। तुम आश्रम में धर्मशास्त्रों, व्याकरणों, धर्म-कर्म आदि में पारंगत तो हुए, लेकिन धर्म का सार नहीं समझ सके।

परोपकार और संकट में फंसे दूसरे की सहायता करने से बड़ा कोई धर्म नहीं। पूजा पाठ का असल संदेश है कि हम दूसरे की मदद करें।’ गुरुदेव ने उस शिष्य को अपना आशीर्वाद देकर आश्रम से विदा किया जिसने डूबते हुए बच्चे को बचाया था। शेष शिष्यों से कहा, ‘अभी तुम्हारी शिक्षा अधूरी है।’
संजय गुप्ता

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🚩🙌जय श्री राम 🙏🚩

संगम तट पर विराजमान लेटे हनुमान मंदिर की अद्भूत कहानी—–
कुम्भ नगरी प्रयाग अगर संगम के लिए प्रसिद्ध है, तो इसी के तट पर मारूती नन्दन वीर हनुमान का एक ऐसा मंदिर है जो दुनियाभर के लिए किसी आश्चर्य से कम नहीं. यहां पवनसुत वीर हनुमान लेटी हुई मुद्रा में विराजमान हैं. दुनियाभर में यह इकलौता मंदिर ऐसा है जहां अंजनी पुत्र शयन मुद्रा में मौजूद हैं. संगम तट पर लेटे हनुमान का यह मंदिर अति प्राचीन है. विद्वानों की माने तो पदम पुराण में इस मंदिर का विस्तृत वर्णन भी है।
मूर्ति को हटाने का किया गया था प्रयास लिहाजा, इतिहास में इस मंदिर का वर्णन तब से मिलता आया है जब अकबर ने संगम के तट पर किला बनवाया था. कहते हैं अकबर के किले का जो नक्शा बनाया गया था वह इस मंदिर के मध्य से हो कर जाता था. किले के रास्ते में मंदिर आया तो अकबर ने इसे दूसरी जगह स्थापित करने का हुक्म दे दिया. बादशाह के हुक्म का पालन करने के लिए हजारों मजदूर इस प्रतिमा को दूसरी जगह स्थापित करने के लिए लगाए गए.
लेकिन बजरंगबली की मूर्ति अपने स्थान से टस से मस नहीं हुई. इधर अकबर को यह समाचार सुनाने के लिए कोई जाने की हिम्मत नहीं जुटा सका, तो प्रयाग के कुछ पुरोहित उनके पास पहुंच गए. पुरोहितों ने अकबर को सारा किस्सा सुनाते हुए अनुरोध किया कि मंदिर वहीं रहने दें तो उचित होगा. अकबर ने भी तब इस मंदिर के महत्व को जाना और किले की दीवार को टेढ़ा करने का हुक्म देते हुए मंदिर के जीर्णोद्धार का आदेश दे दिया. प्रयाग के इस लेटे हुए हनुमान की मंदिर को लेकर दुनियाभर में कई किंवदंतियां प्रचलित हैं.
इतिहासकार प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी ने बताया कि इनमें से एक किंवदंती के अनुसार प्राचीन युग में एक हनुमान भक्त व्यापारी उनकी मूर्ति नाव पर रख कर यमुना के रास्ते जा रहा था. अचानक प्रयाग में संगम से तट के पास नाव डूब गई. काफी खोजबीन के बाद भी न तो नाव का पता चला और ना ही मूर्ति मिली. इसके कई वर्षों बाद जब नदी की धारा बदली तो पानी खाली हुए तट पर हनुमान जी की मूर्ति लोगों को नजर आई. इसके बाद भक्तों ने मूर्ति को उठाकर किसी मंदिर में स्थापित करने की योजना बनाई. योजना के मुताबिक करीब 100 से ज्यादा लोगों ने मूर्ति को उठाने का भरसक प्रयास किया, लेकिन वह टस से मस न हुई. प्रयास कई दिनों तक किया जा जाता रहा, लेकिन मूर्ति एक इंच भी नहीं खिसकी.
नहीं हिली मूर्ति तो वहीं बनवा दिया विशाल मंदिर आखिर में भक्तों ने महात्माओं की शरण ली. महात्माओं ने भक्तों से कहा तुम चाहे जितना प्रयास कर लो मूर्ति वहां से नहीं हटा सकोगे क्योंकि भगवान वहां स्वयं शयन मुद्रा में हैं. भक्तों ने उपाय पूछा तो महात्माओं ने कहा कि मूर्ति जहां जिस मुद्रा में है वैसी ही रहने दो और वहीं मंदिर का निर्माण करा दो. भक्तों ने महात्माओं की बात मानते हुए वहीं मंदिर बनवा दिया, जो आज भी संगम के तट पर लेटे हनुमान या बड़े हनुमान के नाम से प्रसिद्ध मंदिर मौजूद है।
बड़े हनुमान यानि लेटे हुए हनुमान की मान्यताएं एक दूसरी किंवदंती के मुताबिक लंका विजय के बाद बजरंग बली भारद्वाज ऋषि का आशीर्वाद लेने प्रयाग आए थे. संगम स्नान के बाद अचानक शारीरिक थकान की अधिकता से मूर्छित होकर गिर गए. मूर्छित होकर धरती पर लेटे हनुमान को मां जानकी ने सिंदूर चढ़ाकर उनके चिरायु और सर्वशक्तिमान होने का आशीर्वाद दिया था. तब से ही आज तक लेटे हनुमान पर सिंदूर चढ़ाने की परम्परा है. यह मां जानकी का ही आशीर्वाद है कि यहां बजरंग बली मां गंगा के समकक्ष स्थापित हैं. लेटे हनुमान मंदिर के छोटे महन्त आनन्द गिरी महाराज ने कहा कि ऐसी मान्यता है कि संगम का स्नान तब तक अधूरा है जब तक बड़े हनुमान का दर्शन न किया जाए. यहां देश विदेश से करोड़ों भक्त हर साल आते हैं और शाम को होने वाली आरती में शामिल होकर स्वयं को धन्य मानते हैं. मान्यता है कि इस मंदिर में मांगी कोई भी ऐसी कामना नहीं जो पूरी न हो. लेटे हनुमान मंदिर से जुड़े कई ऐसे रहस्य हैं जिसके पीछे का कारण किसी को नहीं मालूम. यहां विराजमान लेटे हनुमान को शहर का कोतवाल माना जाता है. कहते हैं कि यदि किसी ने जीवन में कभी भी चोरी की है और इस मंदिर में आता है तो उसे बेचैनी होती है. इसके बाद जब तक वह मूर्ति के सामने जाकर अपने पापों का प्रायश्चित नहीं कर लेता, उसे शांति नहीं मिलती. एक अन्य रहस्य जो इस मंदिर से जुड़ा है वह यह कि बरसात में गंगा का जल कम से कम एक बार इस मंदिर तक जरूर पहुंचता है. गंगा की धारा मूर्ति के चरण तक पहुंचने के बाद धीरे-धीरे जलस्तर गिरने लगता है. इसके बाद गंगा अपने वास्तविक धारा के साथ बहने लगती है. जबकि गंगा की धारा और मंदिर की दूरी करीब साढ़े तीन किलोमीटर की है. गंगा जी का मंदिर के गर्भ तक पहुंचने के पीछे का एक कारण यह भी है कि अगर किसी वर्ष पानी बजरंगी बली के चरणों तक नहीं पहुंचता है तो माना जाता है कि कोई न कोई प्राकृतिक आपदा आ सकती है. लेटे हनुमान को बड़े हनुमान के नाम से भी इसलिए जाना जाता है क्योंकि यह शहर में बजरंग बली की सबसे बड़ी मूर्ती है, जो करीब 20 फिट से ज्यादा की है. हालांकि इस मूर्ति से भी बड़ी प्रतिमा बनाने का कई बार प्रयास हुआ लेकिन सफलता नहीं मिली. इसीलिए इसे बड़े हनुमान के नाम से भी जाना जाता है.

🙌जय माँ आंदि शंक्ती जयमहाकांल 🌷🌺🌻🚩🚩🚩

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संजय गुप्ता

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मूर्ति-पूजा का वास्तविक तात्पर्य और महत्व!!!!!

भारतीय संस्कृति में प्रतीकवाद का महत्वपूर्ण स्थान है। सबके लिए सरल सीधी पूजा-पद्धति को आविष्कार करने का श्रेय को ही प्राप्त है। पूजा-पद्धति की उपयोगिता और सरलता की दृष्टि से हिन्दू धर्म की तुलना अन्य सम्प्रदायों से नहीं हो सकती। हिन्दू धर्म में ऐसे वैज्ञानिक मूलभूत सिद्धाँत दिखाई पड़ते हैं, जिनसे हिन्दुओं की कुशाग्र बुद्धि, विवेक और मनोविज्ञान की अपूर्व जानकारी का पता चलता है। मूर्ति-पूजा ऐसी ही प्रतीक पद्धति है।

मूर्ति-पूजा क्या है?

पत्थर, मिट्टी, धातु या चित्र इत्यादि की प्रतिमा को मध्यस्थ बनाकर हम सर्वव्यापी अनन्त शक्तियों और गुणों से सम्पन्न परमात्मा को अपने सम्मुख उपस्थित देखते हैं। निराकार ब्रह्म का मानस चित्र निर्माण करना कष्टसाध्य है।

बड़े योगी, विचारक, तत्ववेत्ता सम्भव है यह कठिन कार्य कर दिखायें, किन्तु साधारण जन के लिए तो वह निताँत असम्भव-सा है। भावुक भक्तों, विशेषतः नारी उपासकों के लिए तो किसी प्रकार की मूर्ति का आधार रहने से उपासना में बड़ी सहायता मिलती है।

मानस चिन्तन और एकाग्रता की सुविधा को ध्यान में रखते हुए प्रतीक रूप में मूर्ति-पूजा की योजना बनी है। साधक अपनी श्रद्धा के अनुसार भगवान की कोई भी मूर्ति चुन लेता है और साधना करने लगता है। उस मूर्ति को देखकर हमारी अन्तः चेतना ऐसा अनुभव करती है मानो साक्षात् भगवान से हमारा मिलन हो रहा है।

यद्यपि इस प्रकार की मूर्ति-पूजा में भावना प्रधान और प्रतिमा गौण है, तो भी प्रतिमा को ही यह श्रेय देना पड़ेगा कि वह भगवान की भावनाओं का उद्रेक और सञ्चार विशेष रूप से हमारे अन्तःकरण में करती है। यों कोई चाहे, तो चाहे जब, चाहे जहाँ भगवान को स्मरण कर सकता है, पर मन्दिर में जाकर प्रभु-प्रतिमा के सम्मुख अनायास ही जो आनन्द प्राप्त होता है, वह बिना मन्दिर में जाये, चाहे जब कठिनता से ही प्राप्त होगा। गंगा-तट पर बैठकर ईश्वरीय शक्तियों का जो चमत्कार मन में उत्पन्न होता है, वह अन्यत्र मुश्किल से ही हो सकता है।

मूर्ति-पूजा के साथ-साथ धर्म-मार्ग में सिद्धाँतमय प्रगति करने के लिए हमारे यहाँ त्याग और संयम पर बड़ा जोर दिया गया है। सोलह संस्कार, नाना प्रकार के धार्मिक कर्मकाण्ड, व्रत, जप, तप, पूजा, अनुष्ठान, तीर्थ-यात्राएं, दान, पुण्य, स्वाध्याय, सत्संग ऐसे ही दिव्य प्रयोजन हैं, जिनसे मनुष्य में संयम और व्यवस्था आती है। मन दृढ़ बनकर दिव्यत्व की ओर बढ़ता है। आध्यात्मिक नियन्त्रण में रहने का अभ्यस्त बनता है।

“जड़ (मूल) ही सबका आधार हुआ करती है। जड़ सेवा के बिना किसी का भी कार्य नहीं चलता। दूसरे की आत्मा की प्रसन्नतार्थ उसके आधार भूत जड़ शरीर एवं उसके अंकों की सेवा करनी पड़ती है। परमात्मा की उपासना के लिए भी उसके आश्रय स्वरूप जड़ प्रकृति की पूजा करनी पड़ती है।

हम वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी, प्रकाश आदि की उपासना से प्रचुर लाभ उठाते हैं, तब मूर्ति-पूजा से क्यों घबड़ाना चाहिए? उसके द्वारा तो आप अणु-अणु में व्यापक चेतन (सच्चिदानन्द) की पूजा कर रहे होते हैं।

आप जिस बुद्धि को या मन को आधारीभूत करके परमात्मा का अध्ययन कर रहे होते हैं क्या वे जड़ नहीं हैं? परमात्मा भी जड़ प्रकृति के बिना कुछ नहीं कर सकता, सृष्टि भी नहीं रच सकता। तब सिद्ध हुआ कि जड़ और चेतन का परस्पर सम्बन्ध है। तब परमात्मा भी किसी मूर्ति के बिना उपास्य कैसे हो सकता है?

हमारे यहाँ मूर्तियाँ मन्दिरों में स्थापित हैं, जिनमें भावुक जिज्ञासु पूजन, वन्दन, अर्चन के लिए जाते हैं और ईश्वर की मूर्तियों पर चित्त एकाग्र करते हैं। घर में परिवार की नाना चिन्ताओं से भरे रहने के कारण पूजा, अर्चन, ध्यान इत्यादि इतनी अच्छी तरह नहीं हो पाता, जितना मन्दिर के प्रशान्त स्वच्छ वातावरण में हो सकता है। अच्छे वातावरण का प्रभाव हमारी उत्तम वृत्तियों को शक्तिवान् बनाने वाला है। मंदिर के सात्विक वातावरण में कुप्रवृत्तियाँ स्वयं फीकी पड़ जाती हैं। इसलिए हिन्दू संस्कृति में मंदिर की स्थापना को बड़ा महत्व दिया गया है, जो उचित ही है।”

कुछ व्यक्ति कहते हैं कि मन्दिरों में अनाचार होते हैं। उनकी संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। उन पर बहुत व्यय हो रहा है। अतः उन्हें समाप्त कर देना चाहिए।

सम्भव है इनमें से कुछ आक्षेप सत्य हों; किन्तु मन्दिरों को समाप्त कर देने या सरकार द्वारा जब्त कर लेने मात्र से क्या अनाचार दूर हो जाएंगे? यदि किसी अंग में कोई विकार आ जाय, तो क्या उसे जड़मूल से नष्ट कर देना उचित है?

कदापि नहीं। उसमें उचित परिष्कार और सुधार करना चाहिए। इसी बात की आवश्यकता आज हमारे मन्दिरों में है। मन्दिर स्वच्छ नैतिक शिक्षण के केन्द्र रहें। उनमें पढ़े-लिखे निस्पृह पुजारी रखे जायं, जो मित्रि, पूजा कराने के साथ-साथ जनता को धर्मग्रन्थों, आचार, शास्त्रों, नीति, ज्ञान की शिक्षण भी दें और जिनका चरित्र जनता के लिए आदर्श रूप हो।

मूर्ति-पूजा चित्त-शुद्धि का साधन,,,,,मनुष्य का यह स्वभाव है कि जब तक वह यह जानता है कि कोई उसके कामों, चरित्र या विविध हाव-भाव विचारों को देख रहा है, तब तक वह बड़ा सावधान रहता है। बाह्य नियन्त्रण हटते ही वह शिथिल-सा होकर पुनः पतन में बहक जाता है।

मंदिर में भगवान की मूर्ति के सम्मुख उसे सदैव ऐसा अनुभव होता रहता है कि वह ईश्वर के सम्मुख है, परमात्मा उसके कार्यों, मन्तव्यों और विचारों को सतर्कता से देख रहे हैं, अतः उसे चित्त-शुद्धि में सहायता मिलती है।

मूर्ति चित-शुद्धि के लिए प्रत्यक्ष परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करती है। जिन भारतीय ऋषियों ने भगवान की मूर्ति की कल्पना की थी, वे मनोविज्ञान-वेत्ता भी थे। उनके इस उपाय से भोली भावुक जनता की चित्त-शुद्धि हुई। मनुष्य ने अपने सात्विक प्रवृत्तियों, कला और सौंदर्य-वृत्ति का सारा प्रदर्शन मन्दिरों में किया हैं। मूर्ति में भगवान की भावना और अपनी श्रद्धा भरकर उन्होंने आत्मविकास किया।

आचार्य बिनोवा भावे ने लिखा हैं कि मूर्ति न होती तो बगीचे में से फूल तोड़कर मनुष्य केवल उसे अपनी नाक तक ही लगाता, किन्तु सात्विक भावना से भरकर भगवान की मूर्ति पर फूल चढ़ाकर, जो कि फूल के लिए शायद सर्वोच्च स्थान है- मनुष्य ने अपनी गंध वासना संयत और उन्नत की। अपनी वासना को उन्नत, परिष्कृत और संयमित करने के लिये भगवान के समर्पण की युक्ति निकाली।”

रामदास स्वामी ने एक स्थान पर लिखा है, “देवाचें वैभव बाढ़वावें” (भगवान का वैभव बढ़ाओ)

अल्पज्ञ, अशक्त, अज्ञान मनुष्य भला भगवान का वैभव क्या बढ़ावेगा? वह महान है, स्वयं असीम शक्तियों का पुञ्ज है। उधर हम रंक हैं; अशक्त हैं; अपनी शक्तियों में सीमित हैं।rpd

लेकिन इस उक्ति का तात्पर्य यही है कि हम ऐसे कार्य, ऐसी भावना प्रकट करें, जो हमारे माध्यम से हमारे पिता परमेश्वर के महत्व को प्रकट करने वाले हों। परमेश्वर का वैभव बढ़ाने की कोशिश करने में हम स्वयं अपना जीवन उन्नत कर लेते हैं, उसे ईश्वरीय शक्तियों से भर लेते हैं।

मन्दिर में ईश्वर की कोई प्रतिमा स्थापित कर निरन्तर उन्हें अपने कार्यों का दृष्टा मानकर हम जो सदाचरण करते हैं, अपने कर्तव्यों को पूर्ण करते हैं, भजन, पूजन, स्वाध्याय, प्रार्थना करते हैं, वही भगवान का वैभव बढ़ाने वाली बातें हैं। जिन विचारों या कार्यों से हमारा देवत्व प्रकट होता है, वे ही इस दुर्लभ मानव-देह से करने योग्य कार्य हैं। वाणी से भगवान के दिव्य गुणों, अतुल सामर्थ्यों का गुण-गान करें, हाथों से पवित्र कार्य करे, ब्रह्म-चिन्तन भजन-गायन, और अर्चन से बुद्धि को शुद्ध बनाये, यही हमारे अहंकार को दूर कर सकता है और चित्त शुद्ध कर सकता है।

जब मूर्ति में हम भगवान की आस्था, श्रद्धा और विश्वास के साथ स्थापित कर देते हैं, तो वही दिव्य सामर्थ्यों से पूर्ण हो जाती है। उसी पत्थर की प्रतिमा के सामने हमारा सिर अपने आप झुक जाता है। यह मनुष्य की श्रद्धा का चमत्कार है। इस मूर्ति के सामने निरन्तर रहने से चित्त-शुद्धि होती है और आत्मानुशासन प्राप्त हो जाता है।

जीवन का चरम लक्ष्य होना चाहिए ईश्वर से तादात्म्य और इसी को मानना चाहिए- परम पुरुषार्थ। मूर्ति-पूजा वह प्रारम्भिक अवस्था है जिसमें मनुष्य दिव्य गुणों के विकास की पहली सीढ़ी पर चढ़ता है। योगसूत्र में भगवान की व्याख्या “रागद्वेषादि रहित पुरुष विशेषः” की है। इस प्रकार मूर्ति-पूजा करते-करते मनुष्य निरहंकार बनता है। जिस मूर्ति में वह जिन देव गुणों का आरोपण का पूजा करने लगता है, कालान्तर में वे ही उसके चरित्र में प्रकट होने लगते हैं। इस प्रकार मूर्ति-पूजा उपयोगी है और आवश्यक भी।

संजय गुप्ता

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किसी समय दुनिया के सबसे धनवान व्यक्ति बिल गेट्स से किसी न पूछा – ‘क्या इस धरती पर आपसे भी अमीर कोई है ?
बिल गेट्स ने जवाब दिया – हां, एक व्यक्ति इस दुनिया में मुझसे भी अमीर है.
कौन —!!!!!
बिल गेट्स ने बताया –
एक समय में जब मेरी प्रसिद्धि और  अमीरी के दिन नहीं थे, न्यूयॉर्क एयरपोर्ट पर था.. वहां सुबह सुबह अखबार देख कर, मैंने एक अखबार खरीदना चाहा,पर मेरे पास खुदरा पैसे नहीं थे.. सो, मैंने अखबार लेने का विचार त्याग कर उसे वापस रख दिया.. अखबार बेचने वाले काले लड़के ने मुझे देखा, तो मैंने खुदरा पैसे/सिक्के न होने की बात कही.. लड़के ने अखबार देते हुए कहा – यह मैं आपको मुफ्त में देता हूँ.. बात आई-गई हो गई.. कोई तीन माह बाद संयोगवश उसी एयरपोर्ट पर मैं फिर उतरा और अखबार के लिए फिर मेरे पास सिक्के नहीं थे. उस लड़के ने मुझे फिर से अखबार दिया, तो मैंने मना कर दिया. मैं ये नहीं ले सकता.. उस लड़के ने कहा, आप इसे ले सकते हैं,मैं इसे अपने प्रॉफिट के हिस्से से दे रहा हूँ.. मुझे नुकसान नहीं होगा. मैंने अखबार ले लिया……
19 साल बाद अपने प्रसिद्ध हो जाने के बाद एक दिन मुझे उस लड़के की याद आयी और मैन उसे ढूंढना शुरू किया. कोई डेढ़ महीने खोजने के बाद आखिरकार वह मिल गया. मैंने पूछा – क्या तुम मुझे पहचानते हो ?
लड़का – हां, आप मि. बिल गेट्स हैं.
गेट्स – तुम्हे याद है, कभी तुमने मुझे फ्री में अखबार दिए थे ?
लड़का – जी हां, बिल्कुल.. ऐसा दो बार हुआ था..
गेट्स- मैं तुम्हारे उस किये हुए की कीमत अदा करना चाहता हूँ.. तुम अपनी जिंदगी में जो कुछ चाहते हो, बताओ, मैं तुम्हारी हर जरूरत पूरी करूंगा..
लड़का – सर, लेकिन क्या आप को नहीं लगता कि, ऐसा कर के आप मेरे काम की कीमत अदा नहीं कर पाएंगे..
गेट्स – क्यूं ..!!!
लड़का – मैंने जब आपकी मदद की थी, मैं एक गरीब लड़का था, जो अखबार बेचता था..
आप मेरी मदद तब कर रहे हैं, जब आप इस दुनिया के सबसे अमीर और सामर्थ्य वाले व्यक्ति हैं.. फिर, आप मेरी मदद की बराबरी कैसे करेंगे…!!! 😊😊
बिल गेट्स की नजर में, वह व्यक्ति दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति से भी अमीर था, क्योंकि—–
“किसी की मदद करने के लिए, उसने अमीर होने का इंतजार नहीं किया था “….
😊😊😊

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🙏🌹
असली पुजारी

     एक विशाल मंदिर था। उसके प्रधान पुजारी की मृत्यु के बाद मंदिर के प्रबंधक ने नए पुजारी की नियुक्ति के लिए घोषणा कराई और शर्त रखी कि जो कल सुबह मंदिर में आकर पूजा विषयक ज्ञान में अपने को श्रेष्ठ सिद्ध करेगा, उसे पुजारी रखा जाएगा। यह घोषणा सुनकर अनेक पुजारी सुबह मंदिर के लिए चल पड़े। मंदिर पहाड़ी पर था और पहुंचने का रास्ता कांटों व पत्थरों से भरा हुआ था। मार्ग की इन जटिलताओं से किसी प्रकार बचकर ये सभी मंदिर पहुंच गए।
   प्रबंधक ने सभी से कुछ प्रश्न और मंत्र पूछे। जब परीक्षा समाप्त होने को थी, तभी एक युवा पुजारी वहां आया। वह पसीने से लथपथ था और उसके कपड़े भी फट गए थे। प्रबंधक ने देरी का कारण पूछा तो वह बोला- घर से तो बहुत जल्दी चला था, किंतु मंदिर के रास्ते में बहुत कांटे व पत्थर देख उन्हें हटाने लगा, ताकि यत्रियों को कष्ट न हो। इसी में देर हो गई। प्रबंधक ने उससे पूजा विधि और कुछ मंत्र पूछे तो उसने बता दिए। प्रबंधक ने कहा- तुम ही आज से इस मंदिर के पुजारी हो। यह सुनकर अन्य पुजारी बोले- पूजा विधि और मंत्रों का हमें भी ज्ञान हैं। फिर इसे ही क्यों पुजारी बनाया जा रहा है? इस में ऐसा कौन सा विशेष गुण है जो हम सब में नहीं है?
   प्रबंधक ने कहा- ज्ञान और अनुभव व्यक्तिगत होते हैं, जबकि मनुष्यता सदैव परोन्मुखी होती है। अपने स्वार्थ की बात तो पशु भी जानते हैं, किंतु सच्चा मनुष्य वह है, जो दूसरों के लिए अपना सुख छोड़ दे। प्रबंधक की इस बात में पुजारियों को अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया।
🙏🌹☆ जय श्रीराम ☆🌹🙏

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सनातन वर्ष काल गणना की प्राचीनतम् पद्धति

मुझे अपने बचपन की एक बात बार बार याद आती है जब मैने पहली कक्षा में प्रवेश लिया और सर्दियां आई तो पता चला के अब बड़े दिनों की  छुट्टियों होंगी । ऐसा नहीं है पहले ये बात नहीं सुनी थी बड़े भाइयों और बहन से सुना था पर कभी ध्यान नहीं गया इस ऒर तब ये  समझ में भी नहीं आया लेकिन एक बात मस्तिक में जरूर आई तीसरी कक्षा में आते आते कि माँ कहती है सर्दियों के दिन छोटे होते है फिर बड़े दिनों की छुट्टियां सर्दी में कैसे होती है ?

नया साल एक जनवरी से क्यों शुरू होता है ? जबकि माँ कहती नया सम्वत् होली के बाद आने वाले नवरात्रों से शुरू होता है।

ऐसे ही अनेक प्रश्नो को मस्तिक में लिए मैं बड़ा हुआ जिनमें से कुच्छ का उत्तर मुझे छठी कक्षा में मिला।

अभी 25 दिसम्बर को मेरे कुछ मित्रों ने मुझे क्रिसमस के सन्देश भेंजे और इसके साथ ही ईसाई नव वर्ष की तैयारियाँ शुरू हो गयी है ।अब बहुत सारें शुभ कामना सन्देश आने शुरू हो जायेंगे।
इसके ठीक उलटे जब हमारा सम्वत्सर शुरू होता है तो हममें से इसके बारे में बहुतों को पता तक नहीं होता या फिर ये कहिये उनको उसमे पिछड़ापन नजर आता है।
ये सब लिखने का मेरा उद्देश्य किसी का विरोध करना नहीं है, बल्कि अपनी सनातन पहचान और ज्ञान को आमजन को बताना है, और उन बंधुओ को  बताना है हमारे पूर्वजों की वैज्ञानिक उपलब्धियों के बारे में काल गणना के माध्यम से भारतीय वर्ष पद्धतियों को आधार बना कर।

हमारी सनातन परम्परा में  सामन्यतया 7 तरह के वर्ष प्रचलन में है जो इस तरह से है। चांद्रवर्ष,सौरवर्ष,नाक्षत्रवर्ष, सावनवर्ष,पितृवर्ष,देववर्ष, ब्रह्मावर्ष।

यहाँ हम इन्हें बरी – बरी से जानते है।

चांद्रवर्ष :-चन्द्र वर्ष का निर्माण तिथियों के आधार पर होता है , और तिथि का निर्माण सूर्य और चन्द्र की गति का अंतर 12 अंश होने पर होता है  इस तरह से 30 तिथियों का निर्माण होता है जो पूर्णतया वैज्ञानिक है और इससे ये सिद्ध होता है कि हमारे पूर्वज नक्षत्र विज्ञान के जन्मदाता थे  एक गोले में 360 अंश होते है अत: 360÷12=30  इस तरह 30 तिथियों से एक मास का निर्माण होता है इसी तरह 12 चंद्र मासो का एक चन्द्रवर्ष होता है।

मास की 30 तिथियाँ  कृष्ण पक्ष में एक से चौदह और फिर अमावस्या आती है। अमावस्या सहित पंद्रह तिथि। शुक्ल पक्ष में 14 तिथियों के अंत में पूर्णिमा होती है इस तरह शुक्ल पक्ष की 15 तिथियाँ । 14 तिथियों के नाम वही होते है दोनों पक्षों में ।

तिथियों के नाम निम्नवत् है :-  प्रतिपदा (पड़वा), द्वितीया (दूज), तृतीया (तीज), चतुर्थी (चौथ), पंचमी (पंचमी), षष्ठी (छठ), सप्तमी (सातम), अष्टमी (आठम), नवमी (नौमी), दशमी (दशमी), एकादशी (ग्यारस), द्वादशी (द्वादसी), त्रयोदशी (तेरस), चतुर्दशी (चौदस) पूर्णिमा (पूरणमासी)अमावस्या (अमावस)।

यहाँ ये स्पष्ठ करना जरुरी है कि ज्योतिष में शुक्ल प्रतिपदा मास की पहली तिथि , पूर्णिमा पन्द्रमी और अमावस्या तीसवीं तिथि होती है।

आकाशमण्डल के 27 नक्षत्रों में से 12 नक्षत्रों के नामों पर मास नाम रखे गये हैं। जिस मास जो नक्षत्र आकाश में प्रायः रात्रि के आरम्भ से अन्त तक दिखाई देता है या कह सकते हैं कि जिस मास   की पूर्णमासी को चन्द्रमा जिस नक्षत्र में होता है, उसी के नाम पर उस मास का नाम रखा गया है।
1) चित्रा नक्षत्र के नाम पर चैत्र मास
2) विशाखा नक्षत्र के नाम पर वैशाख मास
3)ज्येष्ठा नक्षत्र के नाम पर ज्येष्ठ मास
4) आषाढ़ा नक्षत्र के नाम पर आषाढ़ मास
5)श्रवण नक्षत्र के नाम पर श्रावण मास
6)भाद्रपद के नाम पर भाद्रपद मास
7)अश्विनी के नाम पर आश्विन मास
8)कृत्तिका के नाम पर कार्तिक मास
9)मृगशीर्ष के नाम पर मार्गशीर्ष
10) पुष्य के नाम पर पौष
11) मघा के नाम पर माघ तथा
12) फाल्गुनी नक्षत्र के नाम पर फाल्गुन मास का नामकरण हुआ है।

सौरवर्ष :- सौरवर्ष में 12 सौरमास होते है , एक सौर मास 30 से 31 दिन का होता है सौर मास का आरम्भ सूर्य की संक्रांति से होता है। सूर्य की एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति का समय सौरमास कहलाता है।
सौरमास के नाम 12 राशियों के नाम ही है यथा मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्‍चिक, धनु, मकर, कुंभ, मीन

सावनवर्ष :-  सावन दिन एक सूर्य उदय से दूसरे सूर्य उदय तक होता है  30 सावन दिन का एक सावन मास होता है 12 सावन मास का एक सवनवर्ष होता है इसी कारण ज्योतिष में दिन सूर्य उदय से शुरू होकर अगले सूर्य उदय तक रहता है।

नाक्षत्रवर्ष :- चन्द्रमा मध्यम गति से एक दिन में एक नक्षत्र का भोग करता है इस तरह से 27 दिन में 27 नक्षत्र का भोग पूरा कर लेता है इसे एक नक्षत्र मास कहते है 12 नक्षत्र मास का एक नक्षत्र वर्ष होता है।

पितृवर्ष :- पितृ देवता चन्द्रमा पर निवास करते है । कृष्ण पक्ष उनका दिन और शुक्ल पक्ष उनकी रात होती है इस तरह से हमारे 30 महीनों का का उनका एक महीना होता है ,और ऐसे 12 महीनो का उनका एक वर्ष होता है।

देववर्ष :- देवताओ का निवास उत्तरी ध्रु  पर है दक्षणी ध्रु पर दैत्य निवास करते है ध्रु प्रदेश पर 6 – 6 महीने के दिन – रात होते है।
इस तरह से हमारे 30 वर्ष का देवताओ का एक महीना होता है और हमारे 360 वर्ष देवताओ के एक वर्ष के बराबर होते है।

ब्रह्मावर्ष :- सनातन परम्परा में 4 युग होते है।

कलयुग का मान = 4,32000 वर्ष
द्वापर का मान =8,64000 वर्ष
त्रेतायुग का मान =12,96000 वर्ष
सतयुग का मान =17,28000 वर्ष
चार युगो को मिला के एक महायुग बनता है
महागुग का मान =43,20000 वर्ष
ऐसे 71 महायुगों का एक कल्प बनता है और एक कल्प ब्रह्मा के एक दिन के बराबर होता है और 360 दिनों का ब्रह्मा का एक वर्ष होता है ब्रह्मा की आयु 100 वर्ष की होती है।

अब वर्ष के प्रारम्भ होने के समय की बात करते है । हमारा नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से प्रारम्भ होता है।

इस समय सूर्य मेष राशि में होता है सृष्टि का आरम्भ मेष राशि के आदि बिंदु से हुआ है सृष्टि का पहला दिन रविवार था और सूर्य की पहली होरा थी।
इस कारण हमारा नव वर्ष तब ही शुरू होता है यानि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से।

अब ईशवी नववर्ष की अवैज्ञानिकता की बात करते है जिसके स्वागत की तैयारियाँ आप बेसब्री से कर रहें है… उसमे कोई वैज्ञानिता मुझे नजर नहीं आती, इसमें पहले 10 महीने होते थे तब ये मार्च से शुरू होता था मार्च का अर्थ भी शुरुवात करना होता है।
बाद में इसमें 2 महीने जोड़ दिए गए जनवरी और फ़रवरी इनको अंत में जोड़ना चाहिए था लेकिन शुरू में जोड़ दिया इसका परिणाम ये हुआ कि जहाँ से शुरू होता था वह तीसरा महीना बन गया दिसम्बर अर्थ दशवाँ होता है यह दशमलव से बना है अब ये 12वाँ महीना बन गया डेट और दिन रात के बारह बजे बदलती है जिसका कोई आधार नहीं है वास्तव में पहले विश्व का समय महाकालेश्वर से निर्धारित होता था  लेकिन जब हम अंग्रेजो के गुलाम बने तो उन्होंने हमारे बारे में बहुत कुच्छ जाना और  हमारे साथ डेट और दिन बदलना शुरू किया क्योंकि भारत और इंग्लैंड के समय में 5 घंटे 30 मिनट का अंतर है वो हमसे 5.30 घंटे पिच्छे है लेकिन ऐसा करके उन्होंने अपने बौद्धिक दिवलयेपन का ही परिचय  दिया उस समय वहाँ रात होती है।