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एक व्यक्ति का दिन बहुत खराब गया. उसने रात को ईश्वर से फ़रियाद की.
व्यक्ति ने कहा,
‘भगवान, ग़ुस्से न हों तो एक प्रश्न पूछूँ ?
भगवान ने कहा,
‘पूछ, जो पूछना हो पूछ;….?
व्यक्ति ने कहा,
‘भगवान, आपने आज मेरा पूरा दिन एकदम खराब क्यों किया ?
भगवान हँसे ……
पूछा, पर हुआ क्या ?
व्यक्ति ने कहा,
‘सुबह अलार्म नहीं बजा, मुझे उठने में देरी हो गई……’
भगवान ने कहा, अच्छा फिर…..’
व्यक्ति ने कहा,
देर हो रही थी,उस पर स्कूटर बिगड़ गया. मुश्किल से रिक्शा मीली .’
भगवान ने कहा, अच्छा फिर……!’
व्यक्ति ने कहा,
टिफ़िन ले नहीं गया था, वहां केन्टीन बंद थी….एक सेन्डविच पर दिन निकाला, वो भी खराब थी ;
भगवान केवल हँसे…….
व्यक्ति ने फ़रियाद आगे चलाई , ‘मुझे काम का एक महत्व का फ़ोन आया था और फ़ोन बंद हो गया ;
भगवान ने पूछा…..’ अच्छा फिर….’
व्यक्ति ने कहा,
विचार किया कि जल्दी घर जाकर AC चलाकर सो जाऊं , पर घर पहुँचा तो लाईट गई थी .
भगवान…. सब तकलीफें मुझे ही. ऐसा क्यों किया मेरे साथ ?
भगवान ने कहा,
‘ देख , मेरी बात ध्यान से सुन .
आज तुझपर कोई आफ़त थी.
मेरे देवदूत को भेजकर मैंने रुकवाई . अलार्म बजे ही नहीं ऐसा किया . स्कूटर से एक्सीडेंट होने का डर था इसलिए स्कूटर बिगाड़ दिया . केन्टीन में खाने से फ़ूड पोइजन हो जाता .
फ़ोन पर बड़ी काम की बात करने वाला आदमी तुझे बड़े घोटाले में फँसा देता . इसलिए फ़ोन बंद कर दिया .
तेरे घर में आज शार्ट सर्किट से आग लगती, तू सोया रहता और तुझे ख़बर ही नहीं पड़ती . इसलिए लाईट बंद कर दी !
मैं हूं न …..,!
मैंने यह सब तुझे बचाने के लिए किया;
व्यक्ति ने कहा,
भगवान मुझसे भूल हो गई . मुझे माफ किजीए . आज के बाद फ़रियाद नहीं करूँगा ;
भगवान ने कहा,
माफी माँगने की ज़रूरत नहीं , परंतु विश्वास रखना कि मैं हूं न….,
मैं जो करूँगा , जो योजना बनाऊँगा वो तेरे अच्छे के लिए ही ।
जीवन में जो कुछ अच्छा – खराब होता है ; उसकी सही असर लम्बे वक़्त के बाद समझ में आती है.
मेरे कोई भी कार्य पर शंका न कर , श्रदा रख .
जीवन का भार अपने ऊपर लेकर घूमने के बदले मेरे कंधों पर रख दे .
मैं हूं न……!

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बहुत अच्छी सीख है, कृपया पढ़ियेगा जरूर…

एक पिता ने अपने पुत्र की बहुत अच्छी तरह से परवरिश की !उसे अच्छी तरह से पढ़ाया, लिखाया, तथा उसकी सभी सुकामनांओ की पूर्ती की !
कालान्तर में वह पुत्र एक सफल इंसान बना और एक मल्टी नैशनल कंपनी में सी.ई.ओ. बन गया !
उच्च पद ,अच्छा वेतन, सभी सुख सुविधांए उसे कंपनी की और से प्रदान की गई !

समय गुजरता गया उसका विवाह एक सुलक्षणा कन्या से हो गया,और उसके बच्चे भी हो गए । उसका अपना परिवार बन गया !

पिता अब बूढा हो चला था ! एक दिन पिता को पुत्र से मिलने की इच्छा हुई और वो पुत्र से मिलने उसके ऑफिस में गया…..!!!

वहां उसने देखा कि….. उसका पुत्र एक शानदार ऑफिस का अधिकारी बना हुआ है, उसके ऑफिस में सैंकड़ो कर्मचारी उसके अधीन कार्य कर रहे है… !
ये सब देख कर पिता का सीना गर्व से फूल गया !
वह बूढ़ा पिता बेटे के चेंबर में जाकर उसके कंधे पर हाथ रख कर खड़ा हो गया !
और प्यार से अपने पुत्र से पूछा…
“इस दुनिया का सबसे शक्तिशाली इंसान कौन है”? पुत्र ने पिता को बड़े प्यार से हंसते हुए कहा “मेरे अलावा कौन हो सकता है पिताजी “!

पिता को इस जवाब की आशा नहीं थी, उसे विश्वास था कि उसका बेटा गर्व से कहेगा पिताजी इस दुनिया के सब से शक्तिशाली इंसान आप हैैं, जिन्होंने मुझे इतना योग्य बनाया !

उनकी आँखे छलछला आई ! वो चेंबर के गेट को खोल कर बाहर निकलने लगे !

उन्होंने एक बार पीछे मुड़ कर पुनः बेटे से पूछा एक बार फिर बताओ इस दुनिया का सब से शक्तिशाली इंसान कौन है ???
पुत्र ने इस बार कहा
“पिताजी आप हैैं, इस दुनिया के सब से शक्तिशाली इंसान “!
पिता सुनकर आश्चर्यचकित हो गए उन्होंने कहा “अभी तो तुम अपने आप को इस दुनिया का सब से शक्तिशाली इंसान बता रहे थे अब तुम मुझे बता रहे हो ” ???

पुत्र ने हंसते हुए उन्हें अपने सामने बिठाते हुए कहा “पिताजी उस समय आप का हाथ मेरे कंधे पर था, जिस पुत्र के कंधे पर या सिर पर पिता का हाथ हो वो पुत्र तो दुनिया का सबसे शक्तिशाली इंसान ही होगा ना,,,,,
बोलिए पिताजी” !
पिता की आँखे भर आई उन्होंने अपने पुत्र को कस कर के अपने गले लग लिया !

सच है जिस के कंधे पर या सिर पर पिता का हाथ होता है, वो इस दुनिया का सब से शक्तिशाली इंसान होता है !

सदैव बुजुर्गों का सम्मान करें!!!!
हमारी सफलता के पीछे वे ही हैं..

*हमारी तरक्की उन्नति से जब सभी लोग जलते हैं तो केवल माँ बाप ही हैं जो खुश होते हैं
😊😊😊😊
अभ्यास त्यागी

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सिख हिन्दू एकता की मिसाल- गुरु तेग बहादुर जी ”हिन्द की चादर “बलिदान दिवस (24 नवंबर) पर विशेष..

[डॉ. राजेन्द्र साहिल]

संसार को ऐसे बलिदानियों से प्रेरणा मिलती है, जिन्होंने जान तो दे दी, परंतु सत्य का त्याग नहीं किया। नवम पातशाह श्री गुरु तेग बहादुर जी भी ऐसे ही बलिदानी थे। गुरु जी ने स्वयं के लिए नहीं, बल्कि दूसरों के अधिकारों एवं विश्वासों की रक्षा के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया। अपनी आस्था के लिए बलिदान देने वालों के उदाहरणों से तो इतिहास भरा हुआ है, परंतु किसी दूसरे की आस्था की रक्षा के लिए बलिदान देने की एक मात्र मिसाल है-नवम पातशाह की शहादत। औरंगजेब को दिल्ली के तख्त पर कब्जा किए 24-25 वर्ष बीतने को थे। इनमें से पहले 10 वर्ष उसने पिता शाहजहां को कैद में रखने और भाइयों से निपटने में गुजारे थे। औरंगजेब के अत्याचार अपने शिखर पर थे। बात 1675 ई. की है। कश्मीरी पंडितों का एक दल पंडित किरपा राम के नेतृत्व में गुरु तेग बहादुर जी के दरबार में कीरतपुर साहिब आया और फरियाद की- हे सच्चे पातशाह, कश्मीर का सूबेदार बादशाह औरंगजेब को खुश करने के लिए हम लोगों का धर्म परिवर्तन करा रहा है, आप हमारी रक्षा करें। यह फरियाद सुनकर गुरु जी चिंतित हो उठे। इतने में, मात्र नौ वर्षीय श्री गुरु गोविंद सिंह बाहर से आ गए। अपने पिता को चिंताग्रस्त देखकर उन्होंने कारण पूछा। गुरु पिता ने कश्मीरी पंडितों की व्यथा कह सुनाई। साथ ही यह भी कहा कि इनकी रक्षा सिर्फ तभी हो सकती है, जब कोई महापुरुष अपना बलिदान करे। बालक गोविंद राय जी ने स्वाभाविक रूप से उत्तर दिया कि इस महान बलिदान के लिए आपसे बडा महापुरुष कौन हो सकता है? नवम पातशाह ने पंडितों को आश्वासन देकर वापस भेजा कि अगर कोई तुम्हारा धर्म परिवर्तन कराने आए, तो कहना कि पहले गुरु तेग बहादुर का धर्म परिवर्तन करवाओ, फिर हम भी धर्म बदल लेंगे। नवम पातशाह औरंगजेब से टक्कर लेने को तैयार हो गए। बालक गोविंद राय को गुरुगद्दी सौंपी और औरंगजेब से मिलने के लिए दिल्ली रवाना हो गए। औरंगजेब ने गुरु जी को गिरफ्तार किया और काल-कोठरी में बंद कर दिया। गुरु जी के सामने तीन शर्ते रखी गई- या तो वे धर्म परिवर्तन करें या कोई करामात करके दिखाएं या फिर शहादत को तैयार रहें। गुरु जी ने पहली दोनों शर्ते मानने से इंकार कर दिया।

परिणामस्वरूप गुरु जी के साथ आए तीन सिखों-भाई मती दास, भाई सती दास और भाई दयाला को यातनाएं देकर शहीद कर दिया गया। गुरु जी इन सबके लिए पहले से ही तैयार थे। उन्होंने कहा-मैं धर्म परिवर्तन के खिलाफ हूं और करामात दिखाना ईश्वर की इच्छा के विरुद्ध है। गुरु जी को आठ दिन चांदनी चौक की कोतवाली में रखा गया। उन पर अत्याचार किया गया, परंतु वे अचल रहे और अंतत: नानकशाही तिथि पत्रानुसार 24 नवंबर 1675 के दिन उन्हें चांदनी चौक में शहीद कर दिया गया। गुरु जी के एक सिख भाई जैता जी ने गुरु जी के शीश को आनंदपुर साहिब लाने की दिलेरी दिखाई। गुरु गोविंद सिंह जी ने भाई जैता के साहस से प्रसन्न होकर उन्हें रंगरेटे-गुरु के बेटे का खिताब दिया। गुरु जी के शीश का दाह-संस्कार आनंदपुर साहिब में किया गया। गुरु जी के शरीर को भाई लखी शाह और उनके पुत्र अपने गांव रकाबगंज ले गए और घर में आग लगाकर गुरु जी का दाह-संस्कार किया। आज यहां गुरुद्वारा रकाबगंज, दिल्ली सुशोभित है। दिल्ली में आज भी गुरुद्वारा शीशगंज नवम पातशाह श्री गुरु तेग बहादुर जी की बेमिसाल शहादत की याद दिलाता है। आज भी लोग उन्हें हिंद की चादर कह कर याद करते हैं।

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श्री राम ने दिए शबरी को नवधा- भक्ति के उपदेश आप भी पढ़े रामभक्त माता शबरी की सम्पूर्ण कथा।

शबरी का वास्तविक नाम श्रमणा था । श्रमणा भील समुदाय की “शबरी ” जाति  से सम्बंधित थी । संभवतः इसी कारण श्रमणा को शबरी नाम दिया गया था। पौराणिक संदर्भों के अनुसार श्रमणा एक कुलीन ह्रदय की प्रभु राम की एक अनन्य भक्त थी लेकिन उसका विवाह एक दुराचारी औरअत्याचारी व्यक्ति से हुआ था।

प्रारम्भ में श्रमणा ने अपने पति के आचार-विचार बदलने की बहुत चेष्टा की , लेकिन उसके पति के पशु संस्कार इतने प्रबल थे की श्रमणा को उसमें सफलता नहीं मिली । कालांतर में अपने पति के कुसंस्कारों  और अत्याचारों से तंग आकर श्रमणा ने ऋषि मातंग के आश्रम में शरण ली । आश्रम में श्रमणा श्रीराम का भजन  और ऋषियों की सेवा-सुश्रुषा करती हुई अपना समय व्यतीत करने लगी ।

शबरी को भक्ति – साहित्य में एक विशिष्ट स्थान प्राप्त है ।  कुछ भक्तों ने यहां तक कह दिया की प्रभु राम ने शबरी के झूठे फल खाए थे । यह विषय मर्यादा, शालीनता और व्यवहार का  विवाद का न हो कर एक आंतरिक प्रेम अभिव्यक्त करने का प्रसंग है ।

महर्षि वाल्मिकी कृत रामायण के अनुसार स्थूलशिरा नामक महर्षि के अभिशाप से राक्षस बने कबन्ध को श्रीराम ने उसका वध करके मुक्ति दी और उससे सीता की खोज में मार्गदर्शन करने का अनुरोध किया। तब कबन्ध ने श्रीराम को मतंग ऋषि के आश्रम का रास्ता बताया और राक्षस योनि से मुक्त होकर गन्धर्व रूप में परमधाम पधार गया।

श्रीराम व लक्ष्मण मतंग ऋषि के आश्रम पहुंचे। वहां आश्रम में वृद्धा शबरी भक्ति में लीन थी। मतंग ऋषि अपने तप व योग के बल पर अन्य ऋषियों सहित दिव्यलोक पहुंच चुके थे। ऋषि मतंग ने शबरी से एक अपेक्षित घड़ी में कह दिया कि राम तुम्हारी कुटिया में आएंगे। ऋषि ने शबरी की श्रद्धा और सबूरी की परख करके यह भविष्य वाक्य कहा। शबरी एक भरोसे लेकर जीती रही। वह बूढ़ी हो गई, परंतु उसने आतुरता को बूढ़ा नहीं होने दिया।

वन-फलों की अनगिनत टोकरियां भरी और औंधी की। पथ बुहारती रही। राह निहारती रही। प्रतीक्षा में शबरी स्वयं प्रतीक्षा का प्रतिमान हो जाती है।

जब शबरी को पता चला कि भगवान श्रीराम स्वयं उसके आश्रम  आए हैं तो वह एकदम भाव विभोर हो उठी और ऋषि मतंग के दिए आशीर्वाद को स्मरण करके गद्गद हो गईं। वह दौड़कर अपने प्रभु श्रीराम के चरणों से लिपट गईं।

इस भावनात्मक दृश्य को गोस्वामी तुलसीदास इस प्रकार रेखांकित करते हैं:

सरसिज लोचन बाहु बिसाला। जटा मुकुट सिर उर बनमाला।।
स्याम गौर सुंदर दोउ भाई। सबरी परी चरन लपटाई।।
प्रेम मगर मुख बचन न आवा। पुनि पुनि पद सरोज सिर नावा।।
सादर जल लै चरन पखारे। पुनि सुंदर आसन बैठारे।।

(अर्थात, कमल-सदृश नेत्र और विशाल भुजा वाले, सिर पर जटाओं का मुकुट और हृदय पर वनमाला धारण किये हुए सुन्दर साँवले और गोरे दोनों भाईयों के चरणों में शबरीजी लिपट पड़ीं। वह प्रेम में मग्न हो गईं। मुख से वचन तक नहीं निकलता। बार-बार चरण-कमलों में सिर नवा रही हैं। फिर उन्हें जल लेकर आदरपूर्वक दोनों भाईयों के चरण कमल धोये और फिर उन्हें सुन्दर आसनों पर बैठाया।)

इसके बाद शबरी जल्दी से जंगली कंद-मूल और बेर लेकर आईं और अपने परमेश्वर को सादर अर्पित किए। पौराणिक सन्दर्भों के अनुसार, बेर कहीं खट्टे न हों, इसलिए अपने इष्ट की भक्ति की मदहोशी से ग्रसित शबरी ने बेरों को चख-चखकर श्रीराम व लक्ष्मण को भेंट करने शुरू कर दिए।

श्रीराम शबरी की अगाध श्रद्धा व अनन्य भक्ति के वशीभूत होकर सहज भाव एवं प्रेम के साथ झूठे बेर अनवरत रूप से खाते रहे, लेकिन लक्ष्मण ने झूठे बेर खाने में संकोच किया। उसने नजर बचाते हुए वे झूठे बेर एक तरफ फेंक दिए। माना जाता है कि लक्ष्मण द्वारा फेंके गए यही झूठे बेर, बाद में जड़ी-बूटी बनकर उग आए।

समय बीतने पर यही जड़ी-बूटी लक्ष्मण के लिए संजीवनी साबित हुई। श्रीराम-रावण युद्ध के दौरान रावण के पुत्र इन्द्रजीत (मेघनाथ) के ब्रह्मास्त्र  से लक्ष्मण मुर्छित हो गए और मरणासन्न हो गए। विभिषण के सुझाव पर लंका से वैद्यराज सुषेण को लाया गया। वैद्यराज सुषेण के कहने पर बजरंग बली हनुमान संजीवनी लेकर आए। श्रीराम की अनन्य भक्त शबरी के झूठे बेर ही लक्ष्मण के लिए जीवनदायक साबित हुए।

भगवान श्रीराम ने शबरी द्वारा श्रद्धा से भेंट किए गए बेरों को बड़े प्रेम से खाए और उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की। गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं:

कंद मूल फल सुरस अति दिए राम कहुँ आनि।
प्रेम सहित प्रभु खाए बारंबार बखानि।।

श्रीराम अपनी इस वनयात्रा में मुनियों के आश्रम में भी गए। महर्षि भरद्वाज, ब्रह्मर्षि वाल्मीकि आदि के आश्रम में भी आदर और स्नेहपूर्वक उन्हें कंद, मूल, फल अर्पित किए गए। उन महापुरुषों ने जो फल अर्पित किए वे भी दिव्य ही रहे होंगे। ऐसी स्थिति में स्वाभाविक रूप से यह पूछा जा सकता है कि ‘शबरी के फलों में ऐसी कौन सी विशेषता थी कि प्रभु ने उनमें जिस स्वाद का अनुभव किया, अन्यत्र नहीं कर पाए?’

गोस्वामीजी इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए जिस शब्द का प्रयोग करते हैं, उसके अर्थ और संकेत पर गहराई से विचार करने की आवश्यकता है। गोस्वामी, इस शब्द का प्रयोग अन्यत्र अर्पित कंद, मूल, फल के लिए नहीं करते। वे कहते हैं- कंद, मूल, फल सुरस अति दिए राम कहुँ आनि। अर्थात शबरी के फलों में ‘रस’ नहीं ‘सुरस’ है। और केवल सुरस ही नहीं ‘अति सुरस’ है।

भक्ति-साहित्य में शबरी के फलों की मिठास का बार-बार वर्णन आता है। भगवान राम को इन फलों में जैसा स्वाद मिला, वैसा स्वाद न तो पहले कहीं मिला था और न बाद में ही कहीं मिला। भीलनी को सामाजिकता की मूलधारा में ले आते हैं। उसके झूठे बेर खाकर राम ने एक वनवासिन का मन ही नहीं रखा, बल्कि उसे पारिवारिकता दी। अपने प्रियजन और परिवारजन का झूठा खाने में संकोच नहीं होता। राम इस अर्थ में तमाम सामाजिक संकीर्णताओं को तोड़ते हुए मानव समाज की पुनर्रचना की नींव रखते हैं।

इसके बाद श्रीराम ने शबरी की भक्ति से खुश होकर कहा, ‘‘भद्रे!  तुमने  मेरा बड़ा सत्कार किया। अब तुम अपनी इच्छा के अनुसार आनंदपूर्वक अभीष्ट लोक की यात्रा करो।’’ इस पर शबरी ने स्वयं को अग्नि के अर्पण करके दिव्य शरीर धारण किया और अपने प्रभु की आज्ञा से स्वर्गलोक पधार गईं।

महर्षि वाल्मीकी ने शबरी को सिद्धा कहकर पुकारा, क्योंकि अटूट प्रभु भक्ति करके उसने अनूठी आध्यात्मिक उपलब्धि हासिल की थी। यदि शबरी को हमारी भक्ति परम्परा का प्राचीनतम प्रतीक कहें तो कदापि गलत नहीं होगा।

शबरी को उसकी योगाग्नि से हरिपद लीन होने से पहले प्रभु राम ने शबरी को नवधाभक्ति के अनमोल वचन दिए । शबरी प्रसंग से यह पता चलता है की प्रभु  सदैव भाव के भूखे हैं और अन्तर की प्रीति पर रीझते हैं ।

नवधा भगति कहउँ तोहि पाहीं।
सावधान सुनु धरु मन माहीं॥
प्रथम भगति संतन्ह कर संगा।
दूसरि रति मम कथा प्रसंगा॥4॥

मैं तुझसे अब अपनी नवधा भक्ति कहता हूँ। तू सावधान होकर सुन और मन में धारण कर। पहली भक्ति है संतों का सत्संग। दूसरी भक्ति है मेरे कथा प्रसंग में प्रेम॥4॥

गुर पद पंकज सेवा तीसरि भगति अमान।
चौथि भगति मम गुन गन करइ कपट तजि गान॥35॥

तीसरी भक्ति है अभिमानरहित होकर गुरु के चरण कमलों की सेवा और चौथी भक्ति यह है कि कपट छोड़कर मेरे गुण समूहों का गान करें॥35॥

मंत्र जाप मम दृढ़ बिस्वासा।
पंचम भजन सो बेद प्रकासा॥
छठ दम सील बिरति बहु करमा।
निरत निरंतर सज्जन धरमा॥1॥

मेरे (राम) मंत्र का जाप और मुझमें दृढ़ विश्वास- यह पाँचवीं भक्ति है, जो वेदों में प्रसिद्ध है। छठी भक्ति है इंद्रियों का निग्रह, शील (अच्छा स्वभाव या चरित्र), बहुत कार्यों से वैराग्य और निरंतर संत पुरुषों के धर्म (आचरण) में लगे रहना॥1॥

सातवँ सम मोहि मय जग देखा।
मोतें संत अधिक करि लेखा॥
आठवँ जथालाभ संतोषा।
सपनेहुँ नहिं देखइ परदोषा॥2॥

सातवीं भक्ति है जगत्‌ भर को समभाव से मुझमें ओतप्रोत (राममय) देखना और संतों को मुझसे भी अधिक करके मानना। आठवीं भक्ति है जो कुछ मिल जाए, उसी में संतोष करना और स्वप्न में भी पराए दोषों को न देखना॥2॥

नवम सरल सब सन छलहीना।
मम भरोस हियँ हरष न दीना॥
नव महुँ एकउ जिन्ह कें होई।
नारि पुरुष सचराचर कोई॥3॥

नवीं भक्ति है सरलता और सबके साथ कपटरहित बर्ताव करना, हृदय में मेरा भरोसा रखना और किसी भी अवस्था में हर्ष और दैन्य (विषाद) का न होना। इन नवों में से जिनके एक भी होती है, वह स्त्री-पुरुष, जड़-चेतन कोई भी हो-॥3॥

सोइ अतिसय प्रिय भामिनि मोरें।
सकल प्रकार भगति दृढ़ तोरें॥
जोगि बृंद दुरलभ गति जोई।
तो कहुँ आजु सुलभ भइ सोई॥4॥

हे भामिनि! मुझे वही अत्यंत प्रिय है। फिर तुझ में तो सभी प्रकार की भक्ति दृढ़ है। अतएव जो गति योगियों को भी दुर्लभ है, वही आज तेरे लिए सुलभ हो गई है॥4॥

संजय गुप्ता

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सुप्रभातम !
अभी कुछ दिनों पहले मैंने लोकल ट्रेन में पटना से भभुआ की यात्रा की थी। अगले स्टेशन पर ही एक बेहद तेजस्वी और आकर्षक महिला सामने वाली सीट पर आकर बैठ गयी, अब आप उनकी और मेरी बातचीत जरा ध्यान से पढिये
महिला – ये ट्रेन सासाराम  जायेगी ?
मैंने हाँ में गर्दन हिला दी
महिला – कितना दूर है???
मैं – थोड़ा दूर है जब आने वाला होगा मैं आपको बता दूंगा।
महिला – थैंक्स वैसे आप क्या करते हो ?
मैं – मै एक शिक्षक हूं और आप क्या करती है?
महिला – मैंने तो भौतिक जगत से ऊपर उठकर अपना जीवन प्रभु यीशु को समर्पित कर दिया है। अब मैं बहुत खुश हूं। यीशु की महिमा अपरंपार है।
मैं – मै तो भौतिक जगत में रहकर ही बहुत खुश हूं क्योंकि मैं भगवान शिव के कर्मयोग का अनुसरण कर रहा हु। शिव की महिमा अलौकिक है।
महिला – जी सही बात है, वैसे आप प्रभु यीशु के विषय में जानते है?
मैं – मैं इसकी जरूरत ही नही समझता।
महिला – क्यों?
मैं – यीशु से पूर्व ही हमारे देश में बेहद महान पुरुषों ने जन्म लिया है। मेरे वेद उपनिषद मेरे लिये पर्याप्त है मुझे यूरोप में जन्मे व्यक्ति की शिक्षा की आवश्यकता नही है।
महिला – चलिये अच्छी बात है हालाँकि मैंने भी वेदों का बहुत ही बारीखी से अध्ययन किया है। उनमे कुछ त्रुटियां है।
(अब मेरी समझ में पूरा माजरा आ गया मैडम मुझे ईसाई बनाने का लक्ष्य लिये बैठी थी)
मैं – आपने सच में बहुत सूक्ष्मता से अध्ययन किया है??
महिला – जी बिल्कुल
मैं – धर्म के 10  लक्षण क्या क्या है?
(महिला का पूरा वेद ज्ञान चीथड़े चीथड़े उड़ गया चेहरे पर ऐसा भाव दे रही थी जैसे किसी कंपनी का वित्तीय विश्लेषण करने को कह दिया हो।)
मैं – क्या हुआ आपने बहुत ही सूक्ष्मता से अध्ययन किया है ना 10 लक्षण तो बताइए।
(धृति क्षमा दमो$स्तेयं, शौचं इंद्रिय निग्रह:।
धीर्विद्या स्तेयं$क्रोधो,दशकं धर्मं लक्षणम्।।)
महिला – वो मुझे याद नही आ रहे।
मैं – चलिये कोई बात नही मनुष्य के 3 गुण क्या क्या है ?
(अब तो यीशु जी की भक्त को पसीना ही आने लग गया। मेरे बेग में टीशू पेपर थे मैंने एक निकाल कर दे दिया। साथ ही आसपास के 5-6 लोग भी अब यह वाक्युद्ध बड़े ध्यान से सुनने लग गए।)
महिला तब बोली – देखिये यीशु का मार्ग बेहद सरल है
मैं – मैं तो शिव के मार्ग पर ही खुश हूं
महिला – देखिये हम यूनानी सभ्यता के ईसाई है ।हमने मानव सभ्यता विकसित की है।
मैं – उसमे क्या है हम भी सिंधु घाटी के हिन्दू है और मानव सभ्यता सबसे पहले हमने विकसित की आप लोगो ने नही।
(अब तो अब तो आसपास के लोग तक महिला पर हँसने लग गए।
सब अब महिला की ओर ही उत्सुकता से देख रहे थे। मैडम ने अपना मोबाइल निकालकर किसी को फोन लगाया, थोड़ी बात की और फोन काट दिया। तभी औरंगाबाद आ गया था महिला उतरने के लिये उठी।)
मैंने कहा कि सासाराम अभी 2 स्टेशन आगे है उसने कहा नही एक जरुरी काम आ गया इसलिए यही उतर रही हु। फिर उसने हाथ बढ़ाते हुए बड़ी मायूसी से कहा आपसे मिलकर ख़ुशी हुई, मैंने भी हाथ मिलाते हुए कहा मुझसे ज्यादा नही हुई होगी। बस बेचारी चुपचाप औरंगाबाद ही उतर गयी।
तो मुद्दा यही है कि आप अपने धर्म को जानिये वरना लोग आपके मुँह पर आपके धर्म की बुराई गिनाते रहेंगे और आप कुछ नही कह सकोगे। कम से कम धर्म के कुछ लक्षण तो याद रखिये…..
CP
साभार शिव शंकर गिरि।

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—– सुकून —–

आनंद शर्मा का पूरा परिवार तीर्थस्थल पर जाने की तैयारी कर रहा था। आनंद जी की पत्नी पैकिंग आदि में लगी हुई थीं। फ्लाइट की टिकट, होटल की व्यवस्था सब हो गई थी। मंदिर के एजेंट ने उनके तुरंत दर्शनों की व्यवस्था भी कर दी थी।
अपने बेटे की बीमारी के दौरान जब डॉक्टरों ने भी उम्मीद छोड़ दी थी। तब उन्होंने अपने बेटे के लिए मंदिर में 25 तोले सोने का मुकुट चढ़ाने की मनौती मानी थी। ईश्वर की कृपा और डॉक्टरों के प्रयास से बेटा पूर्णतया स्वस्थ हो गया था। घर में तैयारी का माहौल देख ऐसा लग रहा था कि कोई बड़ा जश्न मन रहा हो।
आनंद सुबह चाय पी रहे थे तभी उनका नौकर विनोद आया और चुपचाप खड़ा हो गया।
आनंद ने पूछा ,” विनोद कुछ काम है क्या…. “
उनके इतना पूछते ही विनोद रोने लगा और भावविह्वल हो कहने लगा ,” साहेब बिटिया की शादी तय कर दी थी तारीख पास आ गई है। सोच रहा था” फसल बिक जायेगी पर बाढ़ सब तहस नहस कर गई।”
साहेब हमें दो लाख रुपया उधार दे दीजिए.. ” तनख्वाह से काटते रहिएगा ,फसल का पैसा आएगा तो चूका दूंगा। “
एकदम से भड़क उठे आनंद “मेरे ठेके पर बिटिया की शादी तय की थी ,छोड़ दे नौकरी छोड़नी है ,मेरे पास पैसा नहीं है “।
नौकर सन्नाटे में आ… चुपचाप अपने काम में लग गया  ये सोचते हुए कही लगी लगाई नौकरी छूट गई तो क्या करेगा।
आनंद का बेटा अपने पापा तथा नौकर का वार्त्तालाप सुन रहा था।नौकर के जाने के बाद अपने पापा के पास आया और बोला, “पापा आपसे कुछ कहूंगा प्लीज बुरा मत मानियेगा। “
पापा हम मन्दिर में तीस लाख का मुकुट चढ़ाने जा रहे हैं , नौकर ने आपसे दो लाख रुपये मांगे ,वो भी उधार,जो हमारी जी जान से सेवा करता है। आपके पैसे से उसकी बेटी की शादी जैसा पुनीत कार्य होगा… मुकुट तो पंडित जी एक बार पहना कर, क्या करेंगे पता नहीं।”
आनंद गरजे ” तू समझता नहीं ,जब कोई रास्ता नहीं दिख रहा था तब तेरी माँ ने ये मनौती मानी और प्रभु के चमत्कार से  तू स्वस्थ हो गया , “अब हम वो मनौती तो पूरी ही करेंगे।”
पर पापा अगर आप ये तीस लाख रुपये जरुरत मंदो के लिए इस्तेमाल करेंगे तो कितनो की ज़िंदगी खुशियों से भर जाएगी , कितनी दुआये देंगे वो सब , मैं तो यही चाहता हूं। माँ-पापा आप विचार तो करें।”
बेटे की बातों से दोनों ही पति -पत्नी बहुत प्रभावित हुए।
देर रात तक सोचते रहे और सुबह जब सो कर उठे तो लगा हृदय निर्मल हो गया है। नाश्ते की टेबल पर जब सब बैठे तो आनंद ने बेटे को  गले से लगा लिया और बोले , अनुज बेटा तूने मेरी आँखे खोल दी। हम दर्शन करने जा रहे , प्रसाद भी चढ़ाएंगे। पर इस तीस लाख को मैं जरूरतमंदों की मदद में ही लगाऊंगा।
नौकर को आवाज देकर बुलाया ,” विनोद ये दो लाख रुपये ले जाओ ,शादी की तैयारियां करो और हां ये बेटी को मेरी तरफ से भेंट है , तुम्हें लौटाने नहीं है।
विनोद हतप्रभ सा उन्हें देखने लगा तो वो बोले ये अनुज बेटा की करामात है उसे ही आशीष दो।
आनंद अपने बेटे और पत्नी के साथ सुकून से नाश्ता करने लगे सबके अधरों पर संतोष की मुस्कान थी।

जय श्रीकृष्ण।।

लष्मीकांत वर्षनाय

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🌹❤🌹  एक स्त्री का गला खराब था, खांसी-सर्दी-जुकाम था और दोत्तीन दिन से वह निरंतर खांसरही थी।

पति रात सो भी नहीं सकता था। सुबह उसने कहा, अब तुम
चिंता न करो, आज तुम्हारे गले के लिए कुछ ले ही आऊंगा।
उसने कहा कि जरूर ले आना।
वही जड़ाऊं हार, जो देखा था दुकान पर।
संसार अलग है। गले के लिये दवा पति ले आयेगा, यह तो खयाल ही पत्नी को नहीं आया।
आया खयाल, हार–जड़ाऊ हार जो बहुत दिन पहले देखा था।
और हो सकता है उसी जड़ाऊ हार की वजह से रातभर खांसना पड़ रहा हो। और यह भी हो सकता है, जड़ाऊ हार दवा से ज्यादा उपयोगी सिद्ध हो। शायद दवा हार भी जाये
खांसी मिटाने में, लेकिन जड़ाऊ हार खांसी को मिटा देगा।

हम वही देखते हैं, जो हम चाहते हैं। चाह हमारे
देखने का द्वार है। चाह से देखा गया सत्य संसार है। अ-चाह से
देखा गया संसार सत्य है। इसलिये जब तक चाह न गिर जाये तब तक तुम
वह न देख सकोगे जो है: ‘दैट विच इज़’। तब तक तुम
वही देखते रहोगे, जो तुम चाहते हो।

वासना पूरे को नहीं देखती। हमारी वासना उतने को ही देखती है, जितने से
हमारी वासना का संबंध है। गधे को संसार घास से ज्यादा नहीं। कुत्ते को संसार हड्डी
और मांस में है। तुम अपनी वासना से पूछो तो तुम्हें पता चल जायेगा, तुम्हारा संसार कितना बड़ा है।

मजनू कलंदर ने इस तरह की बहुत सी कहानियां कहीं हैं। यह आदमी अनूठा था। उसने लिखा है कि एक दिन मैंने
सुना कि एक बिल्ली और कुत्ते में विवाद हो रहा था। और कुत्ता कह
रहा था, कि रात मैंने ऐसा अदभुत सपना देखा, जैसा कि कहानियों में
भी खोजना मुश्किल है। बड़ा अनूठा सपना था। वर्षा हो रही है, लेकिन
वर्षा पानी की नहीं हो रही है, हड्डियां बरस रही हैं, मांस के टुकड़े बरस
रहे हैं। ऐसा गजब का सपना था।
बिल्ली ने कहा, छोड़ो बकवास! शास्त्रों से मेरा परिचय है।
इतिहास की मैं जानकार हूं। यह तो हमने सुना है
कि कभी-कभी वर्षा में चूहे बरसते हैं, लेकिन हड्डी और मांस कभी बरसते न सुना
है, न देखा है।

बिल्ली जिस संसार को देखती है, वहां वह चूहे की तलाश कर रही है;
वही उसका सपना है। बिल्ली और कुत्तों के सपने एक नहीं हो सकते क्योंकि उनकी
वासनायें अलग हैं। और बिल्ली का संसार चूहे पर समाप्त हो जाता है; चूहा उसकी सीमा है।

तुम्हारा संसार भी तुम्हारी वासना पर समाप्त हो जाता है। इसलिये बुद्धों ने कहा है, जब तक तुम्हारी सब वासनाएं न गिर जायें, तब तक तुम सत्य को न देख
सकोगे। तब तक तुम सत्य को उतना ही देखोगे, जितना तुम्हारी वासना के लिये जरूरी
है। वह अधूरा होगा। और अधूरे सत्य असत्य से भी ज्यादा खतरनाक
होते हैं। अधूरे सत्य मालूम तो होते हैं सत्य हैं, लेकिन चूंकि वे अधूरे
होते हैं, और अधूरों को हमारा मन पूरा मान लेता है; वहीं भ्रांति हो जाती है।
संसार परमात्मा से अलग नहीं है, संसार परमात्मा का उतना हिस्सा है,
जितना तुम्हारी वासना देखती है।

इसलिये कुत्ते का संसार अलग है, बिल्ली का संसार अलग है,
तुम्हारा संसार अलग है। एक पुरुष का संसार अलग है, एक स्त्री का संसार
अलग है क्योंकि उनकी दोनों की वासनायें बड़ी भिन्न हैं। जो पुरुष को दिखाई पड़ता है,
वह स्त्री को दिखाई नहीं पड़ता। जो स्त्री को दिखाई पड़ता है, वह पुरुष को दिखाई
नहीं पड़ता।

🌹OSHO🌹..

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वीरता की पराकाष्ठा रानी पद्मावती जी पर एक प्रसंग मेवाड़ के राजघराने के कवि श्री नरेन्द्र मिश्र द्वारा
दोहराता हूँ सुनो रक्त से लिखी हुई क़ुरबानी
जिसके कारन मिट्टी भी चन्दन है राजस्थानी

रावल रत्न सिंह को छल से कैद किया खिलजी ने
काल गई मित्रों से मिलकर दाग किया खिलजी ने
खिलजी का चित्तोड़ दुर्ग में एक संदेशा आया
जिसको सुनकर शक्ति शौर्य पर फिर अँधियारा छाया
दस दिन के भीतर न पद्मिनी का डोला यदि आया
यदि ना रूप की रानी को तुमने दिल्ली पहुँचाया
तो फिर राणा रत्न सिंह का शीश कटा पाओगे
शाही शर्त ना मानी तो पीछे पछताओगे

दारुन संवाद लहर सा दौड़ गया रण भर में
यह बिजली की तरक छितर से फैल गया अम्बर में
महारानी हिल गयीं शक्ति का सिंघासन डोला था
था सतीत्व मजबूर जुल्म विजयी स्वर में बोला था
रुष्ट हुए बैठे थे सेनापति गोरा रणधीर
जिनसे रण में भय कहती थी खिलजी की शमशीर
अन्य अनेको मेवाड़ी योद्धा रण छोड़ गए थे
रत्न सिंह के संध नीद से नाता तोड़ गए थे

पर रानी ने प्रथम वीर गोरा को खोज निकाला
वन वन भटक रहा था मन में तिरस्कार की ज्वाला
गोरा से पद्मिनी ने खिलजी का पैगाम सुनाया
मगर वीरता का अपमानित ज्वार नही मिट पाया
बोला मैं तो बोहोत तुक्ष हू राजनीती क्या जानू
निर्वासित हूँ राज मुकुट की हठ कैसे पहचानू
बोली पद्मिनी समय नही है वीर क्रोध करने का
अगर धरा की आन मिट गयी घाव नही भरने का
दिल्ली गयी पद्मिनी तो पीछे पछताओगे
जीतेजी राजपूती कुल को दाग लगा जाओगे
राणा ने को कहा किया वो माफ़ करो सेनानी

यह कह कर गोरा के क़दमों पर झुकी पद्मिनी रानी
यह क्या करती हो गोरा पीछे हट बोला
और राजपूती गरिमा का फिर धधक उठा था शोला
महारानी हो तुम सिसोदिया कुल की जगदम्बा हो
प्राण प्रतिष्ठा एक लिंग की ज्योति अग्निगंधा हो
जब तक गोरा के कंधे पर दुर्जय शीश रहेगा
महाकाल से भी राणा का मस्तक नहीँ कटेगा
तुम निश्चिन्त रहो महलो में देखो समर भवानी
और खिलजी देखेगा केसरिया तलवारो का पानी
राणा के शकुशल आने तक गोरा नहीँ मरेगा
एक पहर तक सर काटने पर धड़ युद्ध करेगा
एक लिंग की शपथ महाराणा वापस आएंगे
महा प्रलय के घोर प्रबन्जन भी न रोक पाएंगे
शब्द शब्द मेवाड़ी सेनापति का था तूफानी
शंकर के डमरू में जैसे जाएगी वीर भवानी

जिसके कारन मिट्टी भी चन्दन है राजस्थानी
दोहराता हूँ सुनो रक्त से लिखी हुई क़ुरबानी

खिलजी मचला था पानी में आग लगा देने को
पर पानी प्यास बैठा था ज्वाला पी लेने को
गोरा का आदेश हुआ सज गए सात सौ डोले
और बाँकुरे बदल से गोरा सेनापति बोले
खबर भेज दो खिलजी पर पद्मिनी स्वयं आती है
अन्य सात सौ सखियाँ भी वो साथ लिए आती है

स्वयं पद्मिनी ने बादल का कुमकुम तिलक किया था
दिल पर पत्थर रख कर भीगी आँखों से विदा किया था
और सात सौ सैनिक जो यम से भी भीड़ सकते थे
हर सैनिक सेनापति था लाखो से लड़ सकते थे
एक एक कर बैठ गए सज गयी डोलियां पल में
मर मिटने की होड़ लग गयी थी मेवाड़ी दल में
हर डोली में एक वीर था चार उठाने वाले
पांचो ही शंकर के गण की तरह समर मतवाले

बज कूच शंख सैनिकों ने जयकार लगाई
हर हर महादेव की ध्वनि से दशो दिशा लहराई
गोरा बादल के अंतस में जगी जोत की रेखा
मातृ भूमि चित्तोड़ दुर्ग को फिर जी भरकर देखा
कर प्रणाम चढ़े घोड़ो पर सुभग अभिमानी
देश भक्ति की निकल पड़े लिखने वो अमर कहानी

जिसके कारन मिट्टी भी चन्दन है राजस्थानी
दोहराता हूँ सुनो रक्त से लिखी हुई क़ुरबानी

जा पहुंचे डोलियां एक दिन खिलजी के सरहद में
उधर दूत भी जा पहुंच खिलजी के रंग महल में
बोला शहंशाह पद्मिनी मल्लिका बनने आयी है
रानी अपने साथ हुस्न की कलियाँ भी लायी है
एक मगर फ़रियाद उसकी फकत पूरी करवा दो
राणा रत्न सिंह से एक बार मिलवा दो

खिलजी उछल पड़ा कह फ़ौरन यह हुक्म दिया था
बड़े शौख से मिलने का शाही फरमान दिया था
वह शाही फरमान दूत ने गोरा तक पहुँचाया
गोरा झूम उठे छन बादल को पास बुलाया
बोले बेटा वक़्त आ गया अब काट मरने का
मातृ भूमि मेवाड़ धरा का दूध सफल करने का
यह लोहार पद्मिनी भेष में बंदी गृह जायेगा
केवल दस डोलियां लिए गोरा पीछे ढायेगा
यह बंधन काटेगा हम राणा को मुख्त करेंगे
घोड़सवार उधर आगे की खी तैयार रहेंगे
जैसे ही राणा आएं वो सब आंधी बन जाएँ
और उन्हें चित्तोड़ दुर्ग पर वो शकुशल पहुंचाएं
अगर भेद खुल गया वीर तो पल की देर न करना
और शाही सेना पहुंचे तो बढ़ कर रण करना
राणा जीएं जिधर शत्रु को उधर न बढ़ने देना
और एक यवन को भी उस पथ पावँ ना धरने देना
मेरे लाल लाडले बादल आन न जाने पाए
तिल तिल कट मरना मेवाड़ी मान न जाने पाए
ऐसा ही होगा काका राजपूती अमर रहेगी
बादल की मिट्टी में भी गौरव की गंध रहेगी
तो फिर आ बेटा बादल साइन से तुझे लगा लू
हो ना सके शायद अब मिलन अंतिम लाड लड़ा लू
यह कह बाँहों में भर कर बादल को गले लगाया
धरती काँप गयी अम्बर का अंतस मन भर आया
सावधान कह पुन्ह पथ पर बढे गोरा सैनानी
पूँछ लिया झट से बढ़ कर के बूढी आँखों का पानी

जिसके कारन मिट्टी भी चन्दन है राजस्थानी
दोहराता हूँ सुनो रक्त से लिखी हुई क़ुरबानी

गोरा की चातुरी चली राणा के बंधन काटे
छांट छांट कर शाही पहरेदारो के सर काटे
लिपट गए गोरा से राणा गलती पर पछताए
सेना पति की नमक खलाली देख नयन भर आये

पर खिलजी का सेनापति पहले से ही शंकित था
वह मेवाड़ी चट्टानी वीरो से आतंकित था
जब उसने लिया समझ पद्मिनी नहीँ आयी है
मेवाड़ी सेना खिलजी की मौत साथ लायी है
पहले से तैयार सैन्य दल को उसने ललकारा
निकल पड़ा तिधि दल का बजने लगा नगाड़ा
दृष्टि फिरि गोरा की राणा को समझाया
रण मतवाले को रोका जबरन चित्तोड़ पठाया

राणा चले तभी शाही सेना लहरा कर आयी
खिलजी की लाखो नंगी तलवारें पड़ी दिखाई
खिलजी ललकारा दुश्मन को भाग न जाने देना
रत्न सिंह का शीश काट कर ही वीरों दम लेना

टूट पदों मेवाड़ी शेरों बादल सिंह ललकारा
हर हर महादेव का गरजा नभ भेदी जयकारा
निकल डोलियों से मेवाड़ी बिजली लगी चमकने
काली का खप्पर भरने तलवारें लगी खटकने

राणा के पथ पर शाही सेना तनिक बढ़ा था
पर उसपर तो गोरा हिमगिरि सा अड़ा खड़ा था
कहा ज़फर से एक कदम भी आगे बढ़ न सकोगे
यदि आदेश न माना तो कुत्ते की मौत मरोगे
रत्न सिंह तो दूर ना उनकी छाया तुहे मिलेगी
दिल्ली की भीषण सेना की होली अभी जलेगी

यह कह के महाकाल बन गोरा रण में हुंकारा
लगा काटने शीश बही समर में रक्त की धारा
खिलजी की असंख्य सेना से गोरा घिरे हुए थे
लेकिन मानो वे रण में मृत्युंजय बने हुए थे
पुण्य प्रकाशित होता है जैसे अग्रित पापों से
फूल खिला रहता असंख्य काटों के संतापों से
वो मेवाड़ी शेर अकेला लाखों से लड़ता था
बढ़ा जिस तरफ वीर उधर ही विजय मंत्र बढ़ता था
इस भीषण रण से दहली थी दिल्ली की दीवारें
गोरा से टकरा कर टूटी खिलजी की तलवारें

मगर क़यामत देख अंत में छल से काम लिया था
गोरा की जंघा पर अरि ने छिप कर वार किया था
वहीँ गिरे वीर वर गोरा जफ़र सामने आया
शीश उतार दिया धोखा देकर मन में हर्षाया
मगर वाह रे मेवाड़ी गोरा का धड़ भी दौड़ा
किया जफ़र पर वार की जैसे सर पर गिरा हतोड़ा
एक बार में ही शाही सेना पति चीर दिया था
जफ़र मोहम्मद को केवल धड़ ने निर्जीव किया था

ज्यों ही जफ़र कटा शाही सेना का साहस लरज़ा
काका का धड़ लख बादल सिंह महारुद्र सा गरजा
अरे कायरो नीच बाँगड़ों छल में रण करते हो
किस बुते पर जवान मर्द बनने का दम भरते हो
यह कह कर बादल उस छन बिजली बन करके टुटा था
मनो धरती पर अम्बर से अग्नि शिरा छुटा था

ज्वाला मुखी फहत हो जैसे दरिया हो तूफानी
सदियों दोहराएंगी बादल की रण रंग कहानी
अरि का भाला लगा पेट में आंते निकल पड़ी थीं
जख्मी बादल पर लाखो तलवारें खिंची खड़ी थी
कसकर बाँध लिया आँतों को केशरिया पगड़ी से
रण चक डिगा न वो प्रलयंकर सम्मुख मृत्यु खड़ी से
अब बादल तूफ़ान बन गया शक्ति बनी फौलादी
मानो खप्पर लेकर रण में लड़ती हो आजादी

उधर वीरवर गोरा का धड़ आर्दाल काट रहा था
और इधर बादल लाशों से भूदल पात रहा था
आगे पीछे दाएं बाएं जैम कर लड़ी लड़ाई
उस दिन समर भूमि में लाखों बादल पड़े दिखाई

मगर हुआ परिणाम वही की जो होना था
उनको तो कण कण अरियों के सोन तामे धोना था
अपने सीमा में बादल शकुशल पहुच गए थे
गारो बादल तिल तिल कर रण में खेत गए थे
एक एक कर मिटे सभी मेवाड़ी वीर सिपाही
रत्न सिंह पर लेकिन रंचक आँच न आने पायी

गोरा बादल के शव पर भारत माता रोई थी
उसने अपनी दो प्यारी ज्वलंत मनियां खोयी थी

धन्य धरा मेवाड़ धन्य गोरा बादल अभिमानी
जिनके बल से रहा पद्मिनी का सतीत्व अभिमानी

जिसके कारन मिट्टी भी चन्दन है राजस्थानी
दोहराता हूँ सुनो रक्त से लिखी हुई क़ुरबानील्वीरता की पराकाष्ठा रानी पद्मावती जी पर एक प्रसंग मेवाड़ के राजघराने के कवि श्री नरेन्द्र मिश्र द्वारा
दोहराता हूँ सुनो रक्त से लिखी हुई क़ुरबानी
जिसके कारन मिट्टी भी चन्दन है राजस्थानी

रावल रत्न सिंह को छल से कैद किया खिलजी ने
काल गई मित्रों से मिलकर दाग किया खिलजी ने
खिलजी का चित्तोड़ दुर्ग में एक संदेशा आया
जिसको सुनकर शक्ति शौर्य पर फिर अँधियारा छाया
दस दिन के भीतर न पद्मिनी का डोला यदि आया
यदि ना रूप की रानी को तुमने दिल्ली पहुँचाया
तो फिर राणा रत्न सिंह का शीश कटा पाओगे
शाही शर्त ना मानी तो पीछे पछताओगे

दारुन संवाद लहर सा दौड़ गया रण भर में
यह बिजली की तरक छितर से फैल गया अम्बर में
महारानी हिल गयीं शक्ति का सिंघासन डोला था
था सतीत्व मजबूर जुल्म विजयी स्वर में बोला था
रुष्ट हुए बैठे थे सेनापति गोरा रणधीर
जिनसे रण में भय कहती थी खिलजी की शमशीर
अन्य अनेको मेवाड़ी योद्धा रण छोड़ गए थे
रत्न सिंह के संध नीद से नाता तोड़ गए थे

पर रानी ने प्रथम वीर गोरा को खोज निकाला
वन वन भटक रहा था मन में तिरस्कार की ज्वाला
गोरा से पद्मिनी ने खिलजी का पैगाम सुनाया
मगर वीरता का अपमानित ज्वार नही मिट पाया
बोला मैं तो बोहोत तुक्ष हू राजनीती क्या जानू
निर्वासित हूँ राज मुकुट की हठ कैसे पहचानू
बोली पद्मिनी समय नही है वीर क्रोध करने का
अगर धरा की आन मिट गयी घाव नही भरने का
दिल्ली गयी पद्मिनी तो पीछे पछताओगे
जीतेजी राजपूती कुल को दाग लगा जाओगे
राणा ने को कहा किया वो माफ़ करो सेनानी

यह कह कर गोरा के क़दमों पर झुकी पद्मिनी रानी
यह क्या करती हो गोरा पीछे हट बोला
और राजपूती गरिमा का फिर धधक उठा था शोला
महारानी हो तुम सिसोदिया कुल की जगदम्बा हो
प्राण प्रतिष्ठा एक लिंग की ज्योति अग्निगंधा हो
जब तक गोरा के कंधे पर दुर्जय शीश रहेगा
महाकाल से भी राणा का मस्तक नहीँ कटेगा
तुम निश्चिन्त रहो महलो में देखो समर भवानी
और खिलजी देखेगा केसरिया तलवारो का पानी
राणा के शकुशल आने तक गोरा नहीँ मरेगा
एक पहर तक सर काटने पर धड़ युद्ध करेगा
एक लिंग की शपथ महाराणा वापस आएंगे
महा प्रलय के घोर प्रबन्जन भी न रोक पाएंगे
शब्द शब्द मेवाड़ी सेनापति का था तूफानी
शंकर के डमरू में जैसे जाएगी वीर भवानी

जिसके कारन मिट्टी भी चन्दन है राजस्थानी
दोहराता हूँ सुनो रक्त से लिखी हुई क़ुरबानी

खिलजी मचला था पानी में आग लगा देने को
पर पानी प्यास बैठा था ज्वाला पी लेने को
गोरा का आदेश हुआ सज गए सात सौ डोले
और बाँकुरे बदल से गोरा सेनापति बोले
खबर भेज दो खिलजी पर पद्मिनी स्वयं आती है
अन्य सात सौ सखियाँ भी वो साथ लिए आती है

स्वयं पद्मिनी ने बादल का कुमकुम तिलक किया था
दिल पर पत्थर रख कर भीगी आँखों से विदा किया था
और सात सौ सैनिक जो यम से भी भीड़ सकते थे
हर सैनिक सेनापति था लाखो से लड़ सकते थे
एक एक कर बैठ गए सज गयी डोलियां पल में
मर मिटने की होड़ लग गयी थी मेवाड़ी दल में
हर डोली में एक वीर था चार उठाने वाले
पांचो ही शंकर के गण की तरह समर मतवाले

बज कूच शंख सैनिकों ने जयकार लगाई
हर हर महादेव की ध्वनि से दशो दिशा लहराई
गोरा बादल के अंतस में जगी जोत की रेखा
मातृ भूमि चित्तोड़ दुर्ग को फिर जी भरकर देखा
कर प्रणाम चढ़े घोड़ो पर सुभग अभिमानी
देश भक्ति की निकल पड़े लिखने वो अमर कहानी

जिसके कारन मिट्टी भी चन्दन है राजस्थानी
दोहराता हूँ सुनो रक्त से लिखी हुई क़ुरबानी

जा पहुंचे डोलियां एक दिन खिलजी के सरहद में
उधर दूत भी जा पहुंच खिलजी के रंग महल में
बोला शहंशाह पद्मिनी मल्लिका बनने आयी है
रानी अपने साथ हुस्न की कलियाँ भी लायी है
एक मगर फ़रियाद उसकी फकत पूरी करवा दो
राणा रत्न सिंह से एक बार मिलवा दो

खिलजी उछल पड़ा कह फ़ौरन यह हुक्म दिया था
बड़े शौख से मिलने का शाही फरमान दिया था
वह शाही फरमान दूत ने गोरा तक पहुँचाया
गोरा झूम उठे छन बादल को पास बुलाया
बोले बेटा वक़्त आ गया अब काट मरने का
मातृ भूमि मेवाड़ धरा का दूध सफल करने का
यह लोहार पद्मिनी भेष में बंदी गृह जायेगा
केवल दस डोलियां लिए गोरा पीछे ढायेगा
यह बंधन काटेगा हम राणा को मुख्त करेंगे
घोड़सवार उधर आगे की खी तैयार रहेंगे
जैसे ही राणा आएं वो सब आंधी बन जाएँ
और उन्हें चित्तोड़ दुर्ग पर वो शकुशल पहुंचाएं
अगर भेद खुल गया वीर तो पल की देर न करना
और शाही सेना पहुंचे तो बढ़ कर रण करना
राणा जीएं जिधर शत्रु को उधर न बढ़ने देना
और एक यवन को भी उस पथ पावँ ना धरने देना
मेरे लाल लाडले बादल आन न जाने पाए
तिल तिल कट मरना मेवाड़ी मान न जाने पाए
ऐसा ही होगा काका राजपूती अमर रहेगी
बादल की मिट्टी में भी गौरव की गंध रहेगी
तो फिर आ बेटा बादल साइन से तुझे लगा लू
हो ना सके शायद अब मिलन अंतिम लाड लड़ा लू
यह कह बाँहों में भर कर बादल को गले लगाया
धरती काँप गयी अम्बर का अंतस मन भर आया
सावधान कह पुन्ह पथ पर बढे गोरा सैनानी
पूँछ लिया झट से बढ़ कर के बूढी आँखों का पानी

जिसके कारन मिट्टी भी चन्दन है राजस्थानी
दोहराता हूँ सुनो रक्त से लिखी हुई क़ुरबानी

गोरा की चातुरी चली राणा के बंधन काटे
छांट छांट कर शाही पहरेदारो के सर काटे
लिपट गए गोरा से राणा गलती पर पछताए
सेना पति की नमक खलाली देख नयन भर आये

पर खिलजी का सेनापति पहले से ही शंकित था
वह मेवाड़ी चट्टानी वीरो से आतंकित था
जब उसने लिया समझ पद्मिनी नहीँ आयी है
मेवाड़ी सेना खिलजी की मौत साथ लायी है
पहले से तैयार सैन्य दल को उसने ललकारा
निकल पड़ा तिधि दल का बजने लगा नगाड़ा
दृष्टि फिरि गोरा की राणा को समझाया
रण मतवाले को रोका जबरन चित्तोड़ पठाया

राणा चले तभी शाही सेना लहरा कर आयी
खिलजी की लाखो नंगी तलवारें पड़ी दिखाई
खिलजी ललकारा दुश्मन को भाग न जाने देना
रत्न सिंह का शीश काट कर ही वीरों दम लेना

टूट पदों मेवाड़ी शेरों बादल सिंह ललकारा
हर हर महादेव का गरजा नभ भेदी जयकारा
निकल डोलियों से मेवाड़ी बिजली लगी चमकने
काली का खप्पर भरने तलवारें लगी खटकने

राणा के पथ पर शाही सेना तनिक बढ़ा था
पर उसपर तो गोरा हिमगिरि सा अड़ा खड़ा था
कहा ज़फर से एक कदम भी आगे बढ़ न सकोगे
यदि आदेश न माना तो कुत्ते की मौत मरोगे
रत्न सिंह तो दूर ना उनकी छाया तुहे मिलेगी
दिल्ली की भीषण सेना की होली अभी जलेगी

यह कह के महाकाल बन गोरा रण में हुंकारा
लगा काटने शीश बही समर में रक्त की धारा
खिलजी की असंख्य सेना से गोरा घिरे हुए थे
लेकिन मानो वे रण में मृत्युंजय बने हुए थे
पुण्य प्रकाशित होता है जैसे अग्रित पापों से
फूल खिला रहता असंख्य काटों के संतापों से
वो मेवाड़ी शेर अकेला लाखों से लड़ता था
बढ़ा जिस तरफ वीर उधर ही विजय मंत्र बढ़ता था
इस भीषण रण से दहली थी दिल्ली की दीवारें
गोरा से टकरा कर टूटी खिलजी की तलवारें

मगर क़यामत देख अंत में छल से काम लिया था
गोरा की जंघा पर अरि ने छिप कर वार किया था
वहीँ गिरे वीर वर गोरा जफ़र सामने आया
शीश उतार दिया धोखा देकर मन में हर्षाया
मगर वाह रे मेवाड़ी गोरा का धड़ भी दौड़ा
किया जफ़र पर वार की जैसे सर पर गिरा हतोड़ा
एक बार में ही शाही सेना पति चीर दिया था
जफ़र मोहम्मद को केवल धड़ ने निर्जीव किया था

ज्यों ही जफ़र कटा शाही सेना का साहस लरज़ा
काका का धड़ लख बादल सिंह महारुद्र सा गरजा
अरे कायरो नीच बाँगड़ों छल में रण करते हो
किस बुते पर जवान मर्द बनने का दम भरते हो
यह कह कर बादल उस छन बिजली बन करके टुटा था
मनो धरती पर अम्बर से अग्नि शिरा छुटा था

ज्वाला मुखी फहत हो जैसे दरिया हो तूफानी
सदियों दोहराएंगी बादल की रण रंग कहानी
अरि का भाला लगा पेट में आंते निकल पड़ी थीं
जख्मी बादल पर लाखो तलवारें खिंची खड़ी थी
कसकर बाँध लिया आँतों को केशरिया पगड़ी से
रण चक डिगा न वो प्रलयंकर सम्मुख मृत्यु खड़ी से
अब बादल तूफ़ान बन गया शक्ति बनी फौलादी
मानो खप्पर लेकर रण में लड़ती हो आजादी

उधर वीरवर गोरा का धड़ आर्दाल काट रहा था
और इधर बादल लाशों से भूदल पात रहा था
आगे पीछे दाएं बाएं जैम कर लड़ी लड़ाई
उस दिन समर भूमि में लाखों बादल पड़े दिखाई

मगर हुआ परिणाम वही की जो होना था
उनको तो कण कण अरियों के सोन तामे धोना था
अपने सीमा में बादल शकुशल पहुच गए थे
गारो बादल तिल तिल कर रण में खेत गए थे
एक एक कर मिटे सभी मेवाड़ी वीर सिपाही
रत्न सिंह पर लेकिन रंचक आँच न आने पायी

गोरा बादल के शव पर भारत माता रोई थी
उसने अपनी दो प्यारी ज्वलंत मनियां खोयी थी

धन्य धरा मेवाड़ धन्य गोरा बादल अभिमानी
जिनके बल से रहा पद्मिनी का सतीत्व अभिमानी

जिसके कारन मिट्टी भी चन्दन है राजस्थानी
दोहराता हूँ सुनो रक्त से लिखी हुई क़ुरबानी

ओम प्रकाश त्रेहन

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मित्रो प्रस्तुत प्रस्तुति में भारत के सात महान संतों के बारे में बतायेगें, जिन्हें हम सब सप्तर्षियों के नाम से जानते हैं!!!!!
  
ऋग्वेद में लगभग एक हजार सूक्त हैं, याने लगभग दस हजार मन्त्र हैं। चारों वेदों में करीब बीस हजार से ज्यादा मंत्र हैं और इन मन्त्रों के रचयिता कवियों को हम ऋषि कहते हैं। बाकी तीन वेदों के मन्त्रों की तरह ऋग्वेद के मन्त्रों की रचना में भी अनेकानेक ऋषियों का योगदान रहा है।

पर इनमें भी सात ऋषि ऐसे हैं जिनके कुलों में मन्त्र रचयिता ऋषियों की एक लम्बी परम्परा रही। ये कुल परंपरा ऋग्वेद के सूक्त दस मंडलों में संग्रहित हैं और इनमें दो से सात यानी छह मंडल ऐसे हैं जिन्हें हम परम्परा से वंशमंडल कहते हैं क्योंकि इनमें छह ऋषिकुलों के ऋषियों के मन्त्र इकट्ठा कर दिए गए हैं।

आकाश में सात तारों का एक मंडल नजर आता है उन्हें सप्तर्षियों का मंडल कहा जाता है। उक्त मंडल के तारों के नाम भारत के महान सात संतों के नाम पर ही रखे गए हैं। वेदों में उक्त मंडल की स्थिति, गति, दूरी और विस्तार की विस्तृत चर्चा मिलती है। प्रत्येक मनवंतर में अगल-अगल सप्त‍ऋषि हुए हैं। यहां प्रस्तुत है वैवस्वत मनु के काल के सप्तऋषियों का परिचय।

1.वशिष्ठ :राजा दशरथ के कुलगुरु ऋषि वशिष्ठ को कौन नहीं जानता। ये दशरथ के चारों पुत्रों के गुरु थे। वशिष्ठ के कहने पर दशरथ ने अपने चारों पुत्रों को ऋषि विश्वामित्र के साथ आश्रम में राक्षसों का वध करने के लिए भेज दिया था।

कामधेनु गाय के लिए वशिष्ठ और विश्वामित्र में युद्ध भी हुआ था। वशिष्ठ ने राजसत्ता पर अंकुश का विचार दिया तो उन्हीं के कुल के मैत्रावरूण वशिष्ठ ने सरस्वती नदी के किनारे सौ सूक्त एक साथ रचकर नया इतिहास बनाया।

2.विश्वामित्र :ऋषि होने के पूर्व विश्वामित्र राजा थे और ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु गाय को हड़पने के लिए उन्होंने युद्ध किया था, लेकिन वे हार गए। इस हार ने ही उन्हें घोर तपस्या के लिए प्रेरित किया। विश्वामित्र की तपस्या और मेनका द्वारा उनकी तपस्या भंग करने की कथा जगत प्रसिद्ध है। विश्वामित्र ने अपनी तपस्या के बल पर त्रिशंकु को सशरीर स्वर्ग भेज दिया था। लेकिन स्वर्ग में उन्हें जगह नहीं मिली तो विश्वामित्र ने एक नए स्वर्ग की रचना कर डाली थी। इस तरह ऋषि विश्वामित्र के असंख्य किस्से हैं।

माना जाता है कि हरिद्वार में आज जहां शांतिकुंज हैं उसी स्थान पर विश्वामित्र ने घोर तपस्या करके इंद्र से रुष्ठ होकर एक अलग ही स्वर्ग लोक की रचना कर दी थी। विश्वामित्र ने इस देश को ऋचा बनाने की विद्या दी और गायत्री मन्त्र की रचना की जो भारत के हृदय में और जिह्ना पर हजारों सालों से आज तक अनवरत निवास कर रहा है।

3.कण्व :माना जाता है इस देश के सबसे महत्वपूर्ण यज्ञ सोमयज्ञ को कण्वों ने व्यवस्थित किया। कण्व वैदिक काल के ऋषि थे। इन्हीं के आश्रम में हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला एवं उनके पुत्र भरत का पालन-पोषण हुआ था।

103सूक्तवाले ऋग्वेद के आठवें मण्डल के अधिकांश मन्त्र महर्षि कण्व तथा उनके वंशजों तथा गोत्रजों द्वारा दृष्ट हैं। कुछ सूक्तों के अन्य भी द्रष्ट ऋषि हैं, किंतु ‘प्राधान्येन व्यपदेशा भवन्ति’ के अनुसार महर्षि कण्व अष्टम मण्डल के द्रष्टा ऋषि कहे गए हैं। इनमें लौकिक ज्ञान-विज्ञान तथा अनिष्ट-निवारण सम्बन्धी उपयोगी मन्त्र हैं।

सोनभद्र में जिला मुख्यालय से आठ किलो मीटर की दूरी पर कैमूर श्रृंखला के शीर्ष स्थल पर स्थित कण्व ऋषि की तपस्थली है जो कंडाकोट नाम से जानी जाती है।

4.भारद्वाज :वैदिक ऋषियों में भारद्वाज-ऋषि का उच्च स्थान है। भारद्वाज के पिता बृहस्पति और माता ममता थीं। भारद्वाज ऋषि राम के पूर्व हुए थे, लेकिन एक उल्लेख अनुसार उनकी लंबी आयु का पता चलता है कि वनवास के समय श्रीराम इनके आश्रम में गए थे, जो ऐतिहासिक दृष्टि से त्रेता-द्वापर का सन्धिकाल था। माना जाता है कि भरद्वाजों में से एक भारद्वाज विदथ ने दुष्यन्त पुत्र भरत का उत्तराधिकारी बन राजकाज करते हुए मन्त्र रचना जारी रखी।

ऋषि भारद्वाज के पुत्रों में 10 ऋषि ऋग्वेद के मन्त्रदृष्टा हैं और एक पुत्री जिसका नाम ‘रात्रि’ था, वह भी रात्रि सूक्त की मन्त्रदृष्टा मानी गई हैं। ॠग्वेद के छठे मण्डल के द्रष्टा भारद्वाज ऋषि हैं। इस मण्डल में भारद्वाज के 765 मन्त्र हैं। अथर्ववेद में भी भारद्वाज के 23 मन्त्र मिलते हैं। ‘भारद्वाज-स्मृति’ एवं ‘भारद्वाज-संहिता’ के रचनाकार भी ऋषि भारद्वाज ही थे।

ऋषि भारद्वाज ने ‘यन्त्र-सर्वस्व’ नामक बृहद् ग्रन्थ की रचना की थी। इस ग्रन्थ का कुछ भाग स्वामी ब्रह्ममुनि ने ‘विमान-शास्त्र’ के नाम से प्रकाशित कराया है। इस ग्रन्थ में उच्च और निम्न स्तर पर विचरने वाले विमानों के लिए विविध धातुओं के निर्माण का वर्णन मिलता है।
पांचवें महान ऋषि पारसी धर्म संस्थापक कुल के और जिन्होंने बताया खेती करना…

5.अत्रि : ऋग्वेद के पंचम मण्डल के द्रष्टा महर्षि अत्रि ब्रह्मा के पुत्र, सोम के पिता और कर्दम प्रजापति व देवहूति की पुत्री अनुसूया के पति थे। अत्रि जब बाहर गए थे तब त्रिदेव अनसूया के घर ब्राह्मण के भेष में भिक्षा माँगने लगे और अनुसूया से कहा कि जब आप अपने संपूर्ण वस्त्र उतार देंगी तभी हम भिक्षा स्वीकार करेंगे, तब अनुसूया ने अपने सतित्व के बल पर उक्त तीनों देवों को अबोध बालक बनाकर उन्हें भिक्षा दी। माता अनुसूया ने देवी सीता को पतिव्रत का उपदेश दिया था।

अत्रि ऋषि ने इस देश में कृषि के विकास में पृथु और ऋषभ की तरह योगदान दिया था। अत्रि लोग ही सिन्धु पार करके पारस (आज का ईरान) चले गए थे, जहाँ उन्होंने यज्ञ का प्रचार किया। अत्रियों के कारण ही अग्निपूजकों के धर्म पारसी धर्म का सूत्रपात हुआ।

अत्रि ऋषि का आश्रम चित्रकूट में था। मान्यता है कि अत्रि-दम्पति की तपस्या और त्रिदेवों की प्रसन्नता के फलस्वरूप विष्णु के अंश से महायोगी दत्तात्रेय, ब्रह्मा के अंश से चन्द्रमा तथा शंकर के अंश से महामुनि दुर्वासा महर्षि अत्रि एवं देवी अनुसूया के पुत्र रूप में जन्मे। ऋषि अत्रि पर अश्विनीकुमारों की भी कृपा थी।
छटवें ऋषि शास्त्रीय संगीत के रचनाकार…

6.वामदेव :वामदेव ने इस देश को सामगान (अर्थात् संगीत) दिया। वामदेव ऋग्वेद के चतुर्थ मंडल के सूत्तद्रष्टा, गौतम ऋषि के पुत्र तथा जन्मत्रयी के तत्ववेत्ता माने जाते हैं। भरत मुनि द्वारा रचित भरत नाट्य शास्त्र सामवेद से ही प्रेरित है। हजारों वर्ष पूर्व लिखे गए सामवेद में संगीत और वाद्य यंत्रों की संपूर्ण जानकारी मिलती है।

वामदेव जब मां के गर्भ में थे तभी से उन्हें अपने पूर्वजन्म आदि का ज्ञान हो गया था। उन्होंने सोचा, मां की योनि से तो सभी जन्म लेते हैं और यह कष्टकर है, अत: मां का पेट फाड़ कर बाहर निकलना चाहिए। वामदेव की मां को इसका आभास हो गया। अत: उसने अपने जीवन को संकट में पड़ा जानकर देवी अदिति से रक्षा की कामना की। तब वामदेव ने इंद्र को अपने समस्त ज्ञान का परिचय देकर योग से श्येन पक्षी का रूप धारण किया तथा अपनी माता के उदर से बिना कष्ट दिए बाहर निकल आए।

7.शौनक :शौनक ने दस हजार विद्यार्थियों के गुरुकुल को चलाकर कुलपति का विलक्षण सम्मान हासिल किया और किसी भी ऋषि ने ऐसा सम्मान पहली बार हासिल किया। वैदिक आचार्य और ऋषि जो शुनक ऋषि के पुत्र थे।

फिर से बताएं तो वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भरद्वाज, अत्रि, वामदेव और शौनक- ये हैं वे सात ऋषि जिन्होंने इस देश को इतना कुछ दे डाला कि कृतज्ञ देश ने इन्हें आकाश के तारामंडल में बिठाकर एक ऐसा अमरत्व दे दिया कि सप्तर्षि शब्द सुनते ही हमारी कल्पना आकाश के तारामंडलों पर टिक जाती है।

इसके अलावा मान्यता हैं कि अगस्त्य, कष्यप, अष्टावक्र, याज्ञवल्क्य, कात्यायन, ऐतरेय, कपिल, जेमिनी, गौतम आदि सभी ऋषि उक्त सात ऋषियों के कुल के होने के कारण इन्हें भी वही दर्जा प्राप्त है।

वेदों का अध्ययन करने पर जिन सात ऋषियों या ऋषि कुल के नामों का पता चलता है वे नाम क्रमश: इस प्रकार है:- 1.वशिष्ठ, 2.विश्वामित्र, 3.कण्व, 4.भारद्वाज, 5.अत्रि, 6.वामदेव और 7.शौनक।

पुराणों में सप्त ऋषि के नाम पर भिन्न-भिन्न नामावली मिलती है। विष्णु पुराण अनुसार इस मन्वन्तर के सप्तऋषि इस प्रकार है :-

वशिष्ठकाश्यपो यात्रिर्जमदग्निस्सगौत। विश्वामित्रभारद्वजौ सप्त सप्तर्षयोभवन्।।

अर्थात् सातवें मन्वन्तर में सप्तऋषि इस प्रकार हैं:- वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र और भारद्वाज।

इसके अलावा पुराणों की अन्य नामावली इस प्रकार है:- ये क्रमशः केतु, पुलह, पुलस्त्य, अत्रि, अंगिरा, वशिष्ट तथा मारीचि है।

महाभारत में सप्तर्षियों की दो नामावलियां मिलती हैं। एक नामावली में कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और वशिष्ठ के नाम आते हैं तो दूसरी नामावली में पांच नाम बदल जाते हैं। कश्यप और वशिष्ठ वहीं रहते हैं पर बाकी के बदले मरीचि, अंगिरस, पुलस्त्य, पुलह और क्रतु नाम आ जाते हैं।

कुछ पुराणों में कश्यप और मरीचि को एक माना गया है तो कहीं कश्यप और कण्व को पर्यायवाची माना गया है।

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संजय गुप्ता

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(श्री गोपीश्वरमहादेव)

श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ ने शांडिल्य ऋषि के सहयोग से वृंदावन में गोपीश्वर महादेव मंदिर की फिर से प्राण प्रतिष्ठा कराई.। समूचे विश्व में यही एकमात्र मंदिर है, जहां विराजे शिवलिंग का श्रृंगार एक नारी की तरह होता है।
भगवान शिव का गोपी रूप धारण करना
   शरद पूर्णिमा की शरत-उज्ज्वल चाँदनी में वंशीवट यमुना के किनारे श्याम सुंदर साक्षात की वंशी जब बज उठी.।
तब कृष्ण-राधा और अन्य गोपिकाओं की रासलीला देखने के लिए भगवान महादेव अपनी समाधि भंग कर कैलाश से सीधे वृंदावन चले आए.। वहां रास लीला के प्रवेश द्वार पर गोपियों ने भगवान शिव को रोक दिया और कहा कि यहां भगवान श्रीकृष्ण के अलावा किसी अन्य पुरुष का प्रवेश वर्जित है.। इस पर शंकर ने गोपियों को ही कुछ उपाय बताने के लिए कहा.।
   ललिता सखी ने कहा – हे भोले बाबा ! आप  मानसरोवर में स्नान कर गोपी का रूप धारण कर के महारास में प्रवेश हुआ जा सकता है.। फिर क्या था, भगवान शिव अर्धनारीश्वर से पूरे नारी-रूप बन गये.।
श्री यमुना जी ने षोडश श्रृंगार कर दिया,
तो बाबा भोलेनाथ गोपी रूप हो गये.
प्रसन्न मन से वे गोपी-वेष में महारास में प्रवेश करने चले प्रवेश द्वार पर ललिता जी खड़ी थी गोपी रूप धारी शिव के कानो में युगल मंत्र का उपदेश किया है,।
क्योकि ललिता सखी के आदेश के बिना कोई रास में प्रवेश नहीं कर सकता था। महादेव गोपी रूप धारण कर लीला में प्रवेश कर गए.।
      श्री शिवजी मोहिनी-वेष में मोहन की रासस्थली में गोपियों के मण्डल में मिलकर अतृप्त नेत्रों से विश्वमोहन की रूप-माधुरी का पान करने लगे। मोहन ने ऐसी मोहिनी वंशी बजायी कि सुधि-बुधि भूल गये भोलेनाथ, नटवर-वेषधारी, श्रीरासविहारी, रासेश्वरी, रसमयी श्रीराधाजी एवं गोपियों को नृत्य एवं रास करते हुए देख नटराज भोलेनाथ भी स्वयं ता-ता थैया कर नाच उठे.और उनकी सिर से साड़ी सरक गई.।
       भगवान कृष्ण पहचान गए भोलेनाथ को. उन्होंने रासेश्वरी श्रीराधा व गोपियों को छोड़कर ब्रज-वनिताओं और लताओं के बीच में गोपी रूप धारी गौरीनाथ का हाथ पकड़ लिया और मन्द-मन्द मुस्कुराते हुए बड़े ही आदर-सत्कार से बोले, “आइये स्वागत है, महाराज गोपेश्वर.।
       श्री राधा आदि श्रीगोपीश्वर महादेव के मोहिनी गोपी के रूप को देखकर आश्चर्य में पड़ गयीं। तब श्रीकृष्ण ने कहा, “राधे, यह कोई गोपी नहीं है, ये तो साक्षात् भगवान शंकर हैं.। हमारे महारास के दर्शन के लिए इन्होंने गोपी का रूप धारण किया है.।
     तब श्रीराधा-कृष्ण ने हँसते हुए शिव जी से पूछा- “भगवन.! आपने यह गोपी वेष क्यों बनाया.?
    भगवान शंकर बोले – “प्रभो.! आप की यह दिव्य रसमयी प्रेमलीला-महारास देखने के लिए गोपी-रूप धारण किया है.।
       इस पर प्रसन्न हो कर श्रीराधाजी ने श्रीमहादेव जी से वर माँगने को कहा तो श्रीशिव जी ने यह वर माँगा “हम चाहते हैं कि यहाँ आप दोनों के चरण-कमलों में सदा ही हमारा वास हो. आप दोनों के चरण-कमलों के बिना हम कहीं अन्यत्र वास करना नहीं चाहते हैं.।
इस पर श्रीकृष्ण ने तथास्तु कह कर यमुना के निकट वंशीवट के सम्मुख भगवान शंकर को श्री गोपीश्वर महादेव के रूप में विराजित कर दिया.। साथ ही, उनसे यह कहा कि किसी भी व्यक्ति की व्रज-वृंदावन यात्रा तभी पूर्ण होगी, जब वह गोपीश्वर महादेव के दर्शन कर लेगा.।
  यहां प्रतिदिन शिवलिंग की जल, दूध, दही, पंचामृत से रुद्राभिषेक और पूजा-अर्चना होती है.संध्याकाल में नित्य शिवलिंग का गोपी रूप में श्रृंगार होता है.इस मंदिर में पार्वती, गणेश और नंदी आदि गर्भ मंदिर के बाहर विराजमान हैं.। सामान्यतया भगवान शिव के दो रूपों का दर्शन होता है-दिगंबर और बाघंबर वेश में.यहां लहंगा, ओढनी, ब्लाउज, नथ, कर्णफूल, टीका आदि पहन कर और काजल, बिंदी, लाली आदि लगाए गोपीश्वरमहादेव के दर्शन होते हैं.इस वेश में भगवान शिव की छवि अत्यंत मनमोहक लगती है.।।

           🌷जयश्रीकृष्ण🌷

संजय गुप्ता