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चश्मा साफ़ करते हुए उस बुज़ुर्ग ने_


चश्मा साफ़ करते हुए उस बुज़ुर्ग ने_
_अपनी पत्नी से कहा : हमारे ज़माने में_
_मोबाइल नहीं थे…

पत्नी :
पर ठीक 5 बजकर 55 मिनट पर_
_मैं पानी का ग्लास लेकर

दरवाज़े पे आती और_
_आप आ पहुँचते…

पति :
मैंने तीस साल नौकरी की_
_पर आज तक मैं ये नहीं समझ_
_पाया कि_
_मैं आता इसलिए तुम_
_पानी लाती थी_
_या तुम पानी लेकर आती थी

इसलिये मैं आता था…

पत्नी :
हाँ… और याद है…
तुम्हारे रिटायर होने से पहले_
_जब तुम्हें डायबीटीज़ नहीं थी

और मैं तुम्हारी मनपसन्द खीर बनाती
तब तुम कहते कि_
_आज दोपहर में ही ख़्याल आया_
_कि खीर खाने को मिल जाए

तो मज़ा आ जाए…

पति :
हाँ… सच में…_
_ऑफ़िस से निकलते वक़्त_
_जो भी सोचता,_
_घर पर आकर देखता_
_कि तुमने वही बनाया है…

पत्नी :
और तुम्हें याद है_
_जब पहली डिलीवरी के वक़्त_
_मैं मैके गई थी और_
_जब दर्द शुरु हुआ_
_मुझे लगा काश…_
_तुम मेरे पास होते…_
_और घंटे भर में तो…

जैसे कोई ख़्वाब हो…_
_तुम मेरे पास थे…

पति :
हाँ… उस दिन यूँ ही ख़्याल_
_आया_
_कि ज़रा देख लूँ तुम्हें…

पत्नी :
और जब तुम_
_मेरी आँखों में आँखें डाल कर_
_कविता की दो लाइनें बोलते…

पति :
हाँ और तुम_
_शरमा के पलकें झुका देती_
_और मैं उसे_
_कविता की ‘लाइक’ समझता…

पत्नी :
और हाँ जब दोपहर को चाय_
_बनाते वक़्त_
_मैं थोड़ा जल गई थी और

उसी शाम तुम बर्नोल की ट्यूब_
_अपनी ज़ेब से निकाल कर बोले.._
_इसे अलमारी में रख दो…

पति :
हाँ… पिछले दिन ही मैंने देखा था_
_कि ट्यूब ख़त्म हो गई है…_
_पता नहीं कब ज़रूरत पड़ जाए.._
_यही सोच कर मैं ट्यूब ले आया था…

पत्नी :
तुम कहते …_
_आज ऑफ़िस के बाद_
_तुम वहीं आ जाना

सिनेमा देखेंगे और_
_खाना भी बाहर खा लेंगे…

पति :
और जब तुम आती तो_
_जो मैंने सोच रखा हो

_तुम वही साड़ी पहन कर आती…_

फिर नज़दीक जा कर
उसका हाथ थाम कर कहा :_
_हाँ, हमारे ज़माने में_
_मोबाइल नहीं थे…

पर…

हम दोनों थे!!!

पत्नी :
आज बेटा और उसकी बहू_
_साथ तो होते हैं पर…_
_बातें नहीं व्हाट्सएप होता है…_
_लगाव नहीं टैग होता है…_
_केमिस्ट्री नहीं कमेन्ट होता है…_
_लव नहीं लाइक होता है…_
_मीठी नोकझोंक नहीं

अनफ़्रेन्ड होता है…_
_उन्हें बच्चे नहीं कैन्डीक्रश सागा,_
_टैम्पल रन और सबवे सर्फ़र्स चाहिए…

पति :
छोड़ो ये सब बातें…_
_हम अब Vibrate Mode  पर हैं…_
_हमारी Battery भी 1 लाइन पे है…

अरे!!! कहाँ चली?

पत्नी :
चाय बनाने…

पति :
अरे… मैं कहने ही वाला था_
_कि चाय बना दो ना…

पत्नी :
पता है…_
_मैं अभी भी कवरेज क्षेत्र में हूँ_
_और मैसेज भी आते हैं…

दोनों हँस पड़े…

पति :
हाँ, हमारे ज़माने में_
_मोबाइल नहीं थे…

😊🙏😊🙏😊🙏

वाक़ई बहुत कुछ छुट गया और बहुत कुछ छुट जायेगा,,, ,,शायद हम अंतिम पीढ़ी है जिसे प्रेम, स्नेह, अपनेपन ,सदाचार और सम्मान का प्रसाद वर्तमान पीढ़ी को बाटना पड़ेगा ।। जरूरी भी है
To every lovely couple.

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ये ऐसी वैसी पोस्ट नही। आज के मोबाइल जमाने पर करारा तमाचा है। हमे अच्छी लगी तो फारवर्ड की।

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बुढापे की लाठी बहू


बुढापेकीलाठी_बहू – एक बहू की कलम से :

लोगों से अक्सर सुनते आये हैं कि बेटा बुढ़ापे की लाठी होता है।इसलिये लोग अपने जीवन मे एक बेटे की कामना अवश्य रखते हैं ताकि बुढ़ापा अच्छे से कट जाए।

ये बात सच भी है क्योंकि बेटा ही घर में बहू लाता है।बहू के आ जाने के बाद एक बेटा अपनी लगभग सारी जिम्मेदारी अपनी पत्नी के कंधे पे डाल देता है और फिर बहू बन जाती है अपने बूढ़े सास-ससुर की बुढ़ापे की लाठी।

जी हाँ मेरा तो यही मनाना है वो बहू ही होती है जिसके सहारे बूढ़े सास-ससुर अपना जीवन व्यतीत करते हैं।
एक बहू को अपने सास-ससुर की पूरी दिनचर्या मालूम होती।
कौन कब और कैसी चाय पीते हैं,
क्या खाना बनाना है,
शाम में नाश्ता में क्या देना,
रात को हर हालत में 9 बजे से पहले खाना बनाना है।

अगर सास-ससुर बीमार पड़ जाएं तो पूरे मन या बेमन से बहू ही देखभाल करती है।

अगर एक दिन के लिये बहू बीमार पड़ जाए या फिर कहीं चली जाए,बेचारे सास-ससुर को ऐसा लगता है जैसा उनकी लाठी ही किसी ने छीन ली हो।

वे चाय नाश्ता से लेकर खाना के लिये छटपटा जाएंगे।कोई पूछेगा नहीं उन्हें,उनका अपना बेटा भी नहीं क्योंकि बेटे को समय नहीं है,और अगर बेटे को समय मिल जाये भी तो वो कुछ नहीं कर पायेगा क्योंकि उसे ये मालूम ही नहीं है कि माँ-बाबूजी को सुबह से रात तक क्या क्या देना है।

क्योंकि बेटा के चंद सवाल है और उसकी ज़िम्मेदारी खत्म जैसे माँ-बाबूजी ने खाना खाया,चाय पिये, नाश्ता किये, लेकिन कभी भी ये जानने की कोशिश नहीं करते कि वे क्या खाते हैं कैसी चाय पीते हैं।

ये लगभग सारे घर की कहानी है।
मैंने तो ऐसी बहुएं देखी हैं जो अपनी सास की बीमारी में तन मन से सेवा करती थी
बिल्कुल एक बच्चे की तरह,जैसे बच्चे सारे काम बिस्तर पर करते हैं ठीक उसी तरह उसकी सास भी करती थी और बेचारी बहू उसको साफ करती थी।
और बेटा ये कहकर निकल जाता था कि मैं अपनी माँ को ऐसी हालत में नहीं देख सकता इसलिये उनके पास नहीं जाता था।

ऐसे की कई बहू के उदाहरण हैं।
मैंने अपनी माँ और चाची को दादा-दादी की ऐसे ही सेवा करते देखा है।
ऐसे ही कई उदाहरण आप लोगों ने भी देखा होगा,आपलोग में से ही कई बहुओं ने अपनी सास-ससुर की ऐसी सेवा की होगी या कर रही होंगी।
कभी-कभी ऐसा होता है कि बेटा संसार छोड़ चला जाता है,तब बहू ही होती है जो उसके माँ-बाप की सेवा करती है,आवश्यकता पड़ने पर नौकरी करती है
लेकिन अगर बहू दुनिया से चली जाए तो बेटा फिर एक बहू ले आता है क्योंकि वो नहीं कर पाता अपने माँ-बाप की सेवा,उसे खुद उस बहू नाम की लाठी की आवश्यकता पड़ती है।
इसलिये मेरा  मानना है कि बहूहीहोतीहैबुढ़ापेकीअसली_लाठी

लेकिन अफसोस बहू की त्याग और सेवा उन्हें भी नहीं दिखती जिसके लिये सारा दिन वो दौड़-भाग करती रहती है
विनय उपाध्याय

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ट्रेन में एक 18-19 वर्षीय खूबसूरत लड़की चढ़ी


ट्रेन में एक 18-19 वर्षीय खूबसूरत लड़की चढ़ी
जिसका सामने वाली बर्थ पर रिजर्वेशन था
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उसके पापा उसे छोड़ने आये थे।
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अपनी सीट पर वैठ जाने के बाद उसने अपने पिता से कहा
“डैडी आप जाइये अब, ट्रेन तो दस मिनट खड़ी रहेगी यहाँ दस मिनट का स्टॉपेज है।”
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उसके पिता ने उदासी भरे शब्दों के साथ कहा
“कोई बात नहीं बेटा, 10 मिनट और तेरे साथ बिता लूँगा, अब तो तुम्हारे क्लासेज सुरु हो रहे है काफी दिन बाद आओगी तुम।”
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लड़की शायद अध्ययन कर रही होगी
क्योंकि उम्र और वेशभूषा से विवाहित नहीं लग रही थी ।
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ट्रेन चलने लगी तो उसने खिड़की से बाहर प्लेटफार्म पर खड़े पिता को हाथ हिलाकर बाय कहा :- “बाय डैडी…
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अरे ये क्या हुआ आपको ! अरे नहीं प्लीज”
पिता की आँखों में आंसू थे।
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ट्रेन अपनी रफ्तार पकडती जा रही थी और
पिता रुमाल से आंसू पोंछते हुए स्टेशन से बाहर जा रहे थे।
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लड़की ने फोन लगाया..”हेलो मम्मी.. ये क्या है यार!
जैसे ही ट्रेन स्टार्ट हुई डैडी तो रोने लग गये..
अब मैं नेक्स्ट टाइम कभी भी उनको सी-ऑफ के लिए नहीं कहूँगी. भले अकेली आ जाउंगी ऑटो से.. अच्छा बाय.. पहुँचते ही कॉल करुँगी. डैडी का खयाल रखना ओके।”
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मैं कुछ देर तक लड़की को सिर्फ इस आशा से देखता रहा
कि पारदर्शी चश्मे से झांकती उन आँखों से
मुझे अश्रुधारा दिख जाए पर मुझे निराशा ही हाथ लगी.
उन आँखों में नमी भी नहीं थी।
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कुछ देर बाद लड़की ने फिर किसी को फोन लगाया-
“हेलो जानू कैसे हो…. मैं ट्रेन में बैठ गई हूँ..
हाँ अभी चली है यहाँ से,
कल अर्ली-मोर्निंग पहुँच जाउंगी..
लेने आ जाना. लव यू टू यार,
मैंने भी बहुत मिस किया तुम्हे..
बस कुछ घंटे और सब्र करलो कल तो पहुँच ही जाऊँगी।”
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मैं मानता हूँ कि आज के युग में
बच्चों को उच्च शिक्षा हेतु बाहर भेजना आवश्यक है
पर इस बात में भी कोई दो राय नहीं कि
इसके कई दुष्परिणाम भी हैं।
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मैं यह नहीं कह रहा कि बाहर पढने वाले सारे लड़के लड़कियां ऐंसे होते हैं। मैं सिर्फ उनकी बात कर रहा हूँ
जो पाश्चात्य संस्कृति की इस हवा में अपने कदम बहकने
से नहीं रोक पाते
और उनको माता-पिता, भाई- बहन किसी का प्यार याद नहीं रह जाता
सिर्फ एक प्यार ही याद रहता है
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वो ये भी भूल जाते है कि उनके माता-पिता ने कैसे-कैसे साधनों को जुटा कर
और किन सपनों को संजो कर अपने दिल के टुकड़े को अपने से दूर पढने भेजा है।
लेकिन बच्चे के कदम बहकने से उसकी परिणति क्या होती है?? वो ये नही जानते हैँ.,
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इसलिये सभी से रिक्वेस्ट है
वो अपने माता पिता के साथ खिलवाड नही करे…!!

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एक हलवाई


“कड़वा है पर सच है !”

एक हलवाई बहुत सी मिठाइयों को सजाए दुकान पर बैठा था ,की तभी कहीं से एक मक्खी उड़कर आई और मिठाई पर बैठ गई ! हलवाई को बुरा लगा और पंखा लेकर मक्खी को झटके से उड़ा दिया ,थोड़ी देर बाद वह फिर आ बैठी तो हलवाई ने फिर झटक कर उड़ा दिया , मिठाई खुले में जो रखी थी इसलिए और चार-पाँच मक्खियाँ आकर्षक दिखने वाली मिठाइयों पर आ बैठीं, अब हलवाई ने सोचा इस तरह तो मिठाइयों का कबाड़ा हो जाएगा, और हलवाई ने एक पतला प्लास्टिक का पैमाना लेकर एक-एक मक्खी को मारना शुरू कर दिया ये सोचकर की अब सब कुछ ठीक हो जाएगा,एक,दो,तीन ,चार इस तरह पंद्रह-बीस मक्खियाँ मरने के बाद हलवाई ने सोचा की अब हालत काबू मे आ जाएँगे पर ये क्या खुली मिठाइयों के महक और आकर्षण ने कुछ और मक्खियों और कीड़ों को आकर्षित कर दिया और लगे मंडराने मिठाइयों पर अब हलवाई माथा पकड़ कर बैठ गया की हे भगवान ये हालात कैसे सुधरेंगे ? कैसे मैं अपनी कीमती मिठाइयों को सुरक्षित रख सकता हूँ ?
“इस तरह एक-एक मक्खी को मार कर कोई हल नही निकल रहा ,तभी उधर से गुज़रते हुए एक महात्मा ने हलवाई की दशा को समझा और कहा की बालक समस्या इन मक्खियों में नही तुम्हारी खुली और बेतरतीब रखी मिठाइयों में है इसलिए बजाए एक-एक मक्खी को मारने के तुम अपनी मिठाइयों को सुरक्षित करने के लिए सबसे पहलें उन मिठाइयों को किसी शोकेस या साफ-सुथरे कपड़े से ढक दो जो बेवजह मक्खियों को अपनी महक और क्षणिक आकर्षण से उत्तेजित कर रही हैं इस तरह आपकी लगभग समस्या ख़त्म हो जाएगी !”

अब इस सिद्धांत को आधुनिक हालात से जोड़कर देखते हैं और अपने आप से एक प्रश्न करते हैं की कहीं हमारी और हमारे प्रशासन क़ी दशा उस हलवाई की तरह तो नहीं  है जो बस अपराधी को कोसने उन्हें पकड़ने और मारने में लगा है यह समाधान नहीं है
इसके लिए  स्त्रियोंं को भी अपनी मानसिकता को सुधारते हुए शरीर पर पुरे वस्त्र पहनना  साथ ही बच्चों में नैतिक शिक्षा का प्रचार प्रसार व् सरकार द्वारा कठोर दण्ड व्यवस्था लागू कर के अतिशीघ्र सभ्य समाज की स्थापना की जा सकती है!

Posted in ज्योतिष - Astrology

भूमि-प्राप्तिके लिये अनुष्ठान
भूमि-प्राप्तिके लिये अनुष्ठान
किसी व्यक्तिको प्रयत्न करनेपर भी निवासके लिये
भूमि अथवा मकान न मिल रहा हो, उसे भगवान्
वराहकी उपासन करनी चाहिये । भगवान् वराहकी
उपासना करनेसे, उनके मस्तक जप करनेसे, उनकी स्तुति –
प्रार्थना करनेसे अवश्य ही निवासके योग्य भूमि या
मकान मिल जाता है ।
स्कन्दपुराणके वैष्णवखण्डमें आया है कि भूमि प्राप्त
करनेके इच्छुक मनुष्यको सदा ही इस मन्त्रका जप करना
चाहिये –
ॐ नमः श्रीवराहाय धरण्ययुद्धारणाय स्वाहा ।
ध्यान – भगवान् वराहके अंगोंकी कान्ति शुद्ध
स्फटिक गिरिके समान श्वेत है । खिले हुए लाल
कमलदलोंके समान उनके सुन्दर नेत्र हैं । उनका मुख
वराहके समान है, पर स्वरुप सौम्य है । उनकी चार
भुजाऍ हैं । उनके मस्तकपर किरीट शोभा पाता हैं और
वक्षःस्थलपर श्रीवत्सका चिह्ल है । उनके चार
हाथोंमें चक्र, शङ्ख, अभय – मुद्रा और कमल सुशोभित
है । उनकी बायीं जाधपर सागराम्बरा पृथ्वीदेवी
विराजमान हैं । भगवान् वराह लाल, पीले वस्त्र पहने
तथा लाल रंगके ही आभूषणोंसे विभूषित हैं ।
श्रीकच्छपके पृष्ठके मध्य भागमें शेषनागकी मूर्ति है ।
उसके ऊपर सहस्त्रदल कमलका आसन है और उसपर
भगवान् वराह विराजमान हैं ।
उपर्युक्त मन्त्रके सङ्कर्षण ॠषि, वाराह देवता, पंक्ति
छन्द और श्री बीज है । उसके चार लाख जप करे और घी
व मधुमिश्रित खीरका हवन करे ।

विक्रम प्रकाश

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रामचरितमानस’ के ‘अरण्यकाण्ड’ में, लक्ष्मण जी ने, श्री राम से विनम्रतापूर्वक पांच प्रश्नं पूछे


रामचरितमानस’ के ‘अरण्यकाण्ड’ में, लक्ष्मण जी ने, श्री राम से विनम्रतापूर्वक पांच प्रश्नं पूछे।

लक्ष्माण जी की जिज्ञासा को शांत करने के लिए, श्रीराम ने “राम गीता” सुनाई। प्रभु ने सूत्रात्म्क भाषा में,माया, ज्ञान, वैराग्य, जीव-शिव और भक्ति का निरूपण किया है। “राम गीता” में परमात्मा श्रीराम का, गुरु-रूप में दर्शन होता है।

  • ईस्वर जीव भेद प्रभु सकल कहौ समुझाइ।
    जातें होइ चरन रति सोक मोह भ्रम जाइ॥

भावार्थ:-हे प्रभो! ईश्वर और जीव का भेद भी सब समझाकर कहिए, जिससे आपके चरणों में मेरी प्रीति हो और शोक, मोह तथा भ्रम नष्ट हो जाएँ॥

  • थोरेहि महँ सब कहउँ बुझाई। सुनहु तात मति मन चित लाई॥
    मैं अरु मोर तोर तैं माया। जेहिं बस कीन्हे जीव निकाया॥

भावार्थ:-(श्री रामजी ने कहा-) हे तात! मैं थोड़े ही में सब समझाकर कहे देता हूँ। तुम मन, चित्त और बुद्धि लगाकर सुनो! मैं और मेरा, तू और तेरा- यही माया है, जिसने समस्त जीवों को वश में कर रखा है॥

  • गो गोचर जहँ लगि मन जाई। सो सब माया जानेहु भाई॥
    तेहि कर भेद सुनहु तुम्ह सोऊ। बिद्या अपर अबिद्या दोऊ॥

भावार्थ:-इंद्रियों के विषयों को और जहाँ तक मन जाता है, हे भाई! उन सबको माया जानना। उसके भी एक विद्या और दूसरी अविद्या, इन दोनों भेदों को तुम सुनो-॥

  • एक दुष्ट अतिसय दुखरूपा। जा बस जीव परा भवकूपा॥
    एक रचइ जग गुन बस जाकें। प्रभु प्रेरित नहिं निज बल ताकें॥

भावार्थ:-एक (अविद्या) दुष्ट (दोषयुक्त) है और अत्यंत दुःखरूप है, जिसके वश होकर जीव संसार रूपी कुएँ में पड़ा हुआ है और एक (विद्या) जिसके वश में गुण है और जो जगत्‌ की रचना करती है, वह प्रभु से ही प्रेरित होती है, उसके अपना बल कुछ भी नही है॥

  • ग्यान मान जहँ एकउ नाहीं। देख ब्रह्म समान सब माहीं॥
    कहिअ तात सो परम बिरागी। तृन सम सिद्धि तीनि गुन त्यागी॥

भावार्थ:-ज्ञान वह है, जहाँ (जिसमें) मान आदि एक भी (दोष) नहीं है और जो सबसे समान रूप से ब्रह्म को देखता है। हे तात! उसी को परम वैराग्यवान्‌ कहना चाहिए, जो सारी सिद्धियों को और तीनों गुणों को तिनके के समान त्याग चुका हो॥4॥

(जिसमें मान, दम्भ, हिंसा, क्षमाराहित्य, टेढ़ापन, आचार्य सेवा का अभाव, अपवित्रता, अस्थिरता, मन का निगृहीत न होना, इंद्रियों के विषय में आसक्ति, अहंकार, जन्म-मृत्यु-जरा-व्याधिमय जगत्‌ में सुख-बुद्धि, स्त्री-पुत्र-घर आदि में आसक्ति तथा ममता, इष्ट और अनिष्ट की प्राप्ति में हर्ष-शोक, भक्ति का अभाव, एकान्त में मन न लगना, विषयी मनुष्यों के संग में प्रेम- ये अठारह न हों और नित्य अध्यात्म (आत्मा) में स्थिति तथा तत्त्व ज्ञान के अर्थ (तत्त्वज्ञान के द्वारा जानने योग्य) परमात्मा का नित्य दर्शन हो, वही ज्ञान कहलाता है। देखिए गीता अध्याय 13/ 7 से 11)

  • माया ईस न आपु कहुँ जान कहिअ सो जीव।
    बंध मोच्छ प्रद सर्बपर माया प्रेरक सीव॥

भावार्थ:-जो माया को, ईश्वर को और अपने स्वरूप को नहीं जानता, उसे जीव कहना चाहिए। जो (कर्मानुसार) बंधन और मोक्ष देने वाला, सबसे परे और माया का प्रेरक है, वह ईश्वर है॥

  • धर्म तें बिरति जोग तें ग्याना। ग्यान मोच्छप्रद बेद बखाना॥
    जातें बेगि द्रवउँ मैं भाई। सो मम भगति भगत सुखदाई॥

भावार्थ:-धर्म (के आचरण) से वैराग्य और योग से ज्ञान होता है तथा ज्ञान मोक्ष का देने वाला है- ऐसा वेदों ने वर्णन किया है। और हे भाई! जिससे मैं शीघ्र ही प्रसन्न होता हूँ, वह मेरी भक्ति है जो भक्तों को सुख देने वाली है॥

  • सो सुतंत्र अवलंब न आना। तेहि आधीन ग्यान बिग्याना॥
    भगति तात अनुपम सुखमूला। मिलइ जो संत होइँ अनुकूला॥

भावार्थ:-वह भक्ति स्वतंत्र है, उसको (ज्ञान-विज्ञान आदि किसी) दूसरे साधन का सहारा (अपेक्षा) नहीं है। ज्ञान और विज्ञान तो उसके अधीन हैं। हे तात! भक्ति अनुपम एवं सुख की मूल है और वह तभी मिलती है, जब संत अनुकूल (प्रसन्न) होते हैं॥

  • भगति कि साधन कहउँ बखानी। सुगम पंथ मोहि पावहिं प्रानी॥
    प्रथमहिं बिप्र चरन अति प्रीती। निज निज कर्म निरत श्रुति रीती॥

भावार्थ:-अब मैं भक्ति के साधन विस्तार से कहता हूँ- यह सुगम मार्ग है, जिससे जीव मुझको सहज ही पा जाते हैं। पहले तो ब्राह्मणों के चरणों में अत्यंत प्रीति हो और वेद की रीति के अनुसार अपने-अपने (वर्णाश्रम के) कर्मों में लगा रहे॥

  • एहि कर फल पुनि बिषय बिरागा। तब मम धर्म उपज अनुरागा॥
    श्रवनादिक नव भक्ति दृढ़ाहीं। मम लीला रति अति मन माहीं॥

भावार्थ:-इसका फल, फिर विषयों से वैराग्य होगा। तब (वैराग्य होने पर) मेरे धर्म (भागवत धर्म) में प्रेम उत्पन्न होगा। तब श्रवण आदि नौ प्रकार की भक्तियाँ दृढ़ होंगी और मन में मेरी लीलाओं के प्रति अत्यंत प्रेम होगा॥

  • संत चरन पंकज अति प्रेमा। मन क्रम बचन भजन दृढ़ नेमा॥
    गुरु पितु मातु बंधु पति देवा। सब मोहि कहँ जानै दृढ़ सेवा॥

भावार्थ:-जिसका संतों के चरणकमलों में अत्यंत प्रेम हो, मन, वचन और कर्म से भजन का दृढ़ नियम हो और जो मुझको ही गुरु, पिता, माता, भाई, पति और देवता सब कुछ जाने और सेवा में दृढ़ हो,॥

  • मम गुन गावत पुलक सरीरा। गदगद गिरा नयन बह नीरा॥
    काम आदि मद दंभ न जाकें। तात निरंतर बस मैं ताकें॥

भावार्थ:-मेरा गुण गाते समय जिसका शरीर पुलकित हो जाए, वाणी गदगद हो जाए और नेत्रों से (प्रेमाश्रुओं का) जल बहने लगे और काम, मद और दम्भ आदि जिसमें न हों, हे भाई! मैं सदा उसके वश में रहता हूँ॥

  • बचन कर्म मन मोरि गति भजनु करहिं निःकाम।
    तिन्ह के हृदय कमल महुँ करउँ सदा बिश्राम॥

भावार्थ:-जिनको कर्म, वचन और मन से मेरी ही गति है और जो निष्काम भाव से मेरा भजन करते हैं, उनके हृदय कमल में मैं सदा विश्राम किया करता हूँ॥

  • भगति जोग सुनि अति सुख पावा। लछिमन प्रभु चरनन्हि सिरु नावा॥
    एहि बिधि कछुक दिन बीती। कहत बिराग ग्यान गुन नीती॥

भावार्थ:-इस भक्ति योग को सुनकर लक्ष्मणजी ने अत्यंत सुख पाया और उन्होंने प्रभु श्री रामचंद्रजी के चरणों में सिर नवाया। इस प्रकार वैराग्य, ज्ञान, गुण और नीति कहते हुए कुछ दिन बीत गए॥

संजय गुप्ता

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એક નગરમાં બે મિત્રો રહેતા હતા.


એક નગરમાં બે મિત્રો રહેતા હતા.બંન્ને મિત્રોમાં ગાઢ પ્રેમ હોવાના કારણે તેમને વ્યાપારમાં ૫ણ ભાગીદારી કરી.કેટલાક સમય સુધી બધું બરાબર ચાલ્યું.એક દિવસ એક મિત્રના મનમાં વિચાર આવ્યો કે હું મારા મિત્રને મારી નાખું જેથી બધી સં૫ત્તિ મારી થઇ જાય અને એક દિવસ તેને મિત્રને મારી નાખી તમામ મિલ્કત પોતાના નામે કરી લીધી.સમય વિતતો ગયો તેમ છતાં આ વાત તેને ગુપ્‍ત જ રાખી.કેટલાક સમય બાદ તેના ઘેર પૂત્રનો જન્મ થયો અને તેનાથી તે ખુબ જ ખુશ થયો ૫ણ આ ખુશી લાંબો સમય સુધી ના ટકી.તેના ઘેર જન્મેલ પૂત્ર બિમાર રહેવા લાગ્યો.અનેક જાતના ઉ૫ચાર કરવા છતાં તેના પૂત્રના સ્વાસ્થ્યમાં કોઇ ફરક ના પડ્યો.હવે તે વ્યક્તિ અંદરથી હિંમત હારી ગયો.તેના એકમાત્ર પૂત્રના બચવાની આશા હવે નહીવત્ હતી તેથી તેનું મન કામધંધામાં ૫ણ લાગતું ન હતું.બીજી બાજુ પૂત્રના ઇલાજ કરવામાં તેનું ધન ૫ણ ઘટવા લાગ્યું અને તે ધીરે ધીરે કંગાળ થવા લાગ્યો.એક માત્ર પૂત્રને થયેલ બિમારીની અસર પિતાને ૫ણ થઇ.
        એક દિવસ તેના પૂત્રનો અંતિમ સમય નજીક આવ્યો તો તેને પિતાને નજીક બોલાવીને કહ્યું કે “હવે આપ સંપૂર્ણ રીતે કંગાળ બની ગયા છો,મારો બદલો પુરો થઇ ગયો છે.’’ તે વ્યક્તિએ ૫રેશાન થઇને પોતાના પૂત્રને પૂછ્યું કે..તૂં આ શું બોલી રહ્યો છે ? બદલો કેવો ? મેં તો તને ખુબ જ પ્રેમથી સાચવ્યો છે.તારા ઉ૫ચાર માટે મારી તમામ સં૫ત્તિ વેચી નાખી છે,તૂં આ શું બોલી રહ્યો છે ? ત્યારે તેનો પૂત્ર બોલ્યો કે..“હું તમારો એ જ મિત્ર છું જેને તમે દોલતની લાલચમાં આવીને દગો કરીને મારી નાખ્યો હતો.મારૂં સર્વસ્વ છીનવી લીધું હતું.હું મારો આ બદલો લેવા માટે જ તમારા ઘેરપૂત્ર બનીને આવ્યો છું.હવે મારૂં કામ પુરૂં થયું છે એટલે હું તમોને બરબાદ કરીને જઇ રહ્યો છું.’’ આટલું કહેતાં કહેતાં તે બાળકનું મોત થઇ ગયું.તે વ્યક્તિ તો દંગ રહી ગયો.તેના દિલ અને દિમાગ ઉ૫ર તેની ગંભીર અસર થઇ ! તેને માંડે માંડે સમજાયું કે “જેવી કરની તેવી ભરણી.’’

Posted in आयुर्वेद - Ayurveda

💐 शयन विधान💐

सूर्यास्त के एक प्रहर (लगभग 3 घंटे) के बाद ही शयन करना।

🌻सोने की मुद्रा: 
           उल्टा सोये भोगी,
           सीधा सोये योगी,
           डाबा सोये निरोगी,
           जीमना सोये रोगी।

🌻शास्त्रीय विधान भी है।
आयुर्वेद में ‘वामकुक्षि’ की     बात आती हैं,  
बायीं करवट सोना स्वास्थ्य के लिये हितकर हैं।

शरीर विज्ञान के अनुसार चित सोने से रीढ़ की हड्डी को नुकसान और औधा या ऊल्टा सोने से आँखे बिगडती है।

सोते समय कितने गायत्री मंन्त्र /नवकार मंन्त्र गिने जाए :-
“सूतां सात, उठता आठ”सोते वक्त सात भय को दूर करने के लिए सात मंन्त्र गिनें और उठते वक्त आठ कर्मो को दूर करने के लिए आठ मंन्त्र गिनें।

“सात भय:-“
इहलोक,परलोक,आदान,
अकस्मात ,वेदना,मरण ,
अश्लोक (भय)

🌻दिशा घ्यान:-
दक्षिणदिशा (South) में पाँव रखकर कभी सोना नहीं । यम और दुष्टदेवों का निवास है ।कान में हवा भरती है । मस्तिष्क  में रक्त का संचार कम को जाता है स्मृति- भ्रंश,मौत व असंख्य बीमारियाँ होती है।

✌यह बात वैज्ञानिकों ने एवं वास्तुविदों ने भी जाहिर की है।

1:- पूर्व ( E ) दिशा में मस्तक रखकर सोने से विद्या की प्राप्ति होती है।

2:-दक्षिण ( S ) में मस्तक रखकर सोने से धनलाभ व आरोग्य लाभ होता है ।

3:-पश्चिम( W ) में मस्तक रखकर सोने से प्रबल चिंता होती है ।

4:-उत्तर ( N ) में मस्तक रखकर  सोने से मृत्यु और हानि होती है ।

अन्य धर्गग्रंथों में शयनविधि में और भी बातें सावधानी के तौर पर बताई गई है ।

विशेष शयन की सावधानियाँ:-

1:-मस्तक और पाँव की तरफ दीपक रखना नहीं। दीपक बायीं या दायीं और कम से कम 5 हाथ दूर होना चाहिये।
2:-सोते समय मस्तक दिवार से कम से कम 3 हाथ दूर होना चाहिये।
3:-संध्याकाल में निद्रा नहीं लेनी।
4:-शय्या पर बैठे-बैठे निद्रा नहीं लेनी।
5:-द्वार के उंबरे/ देहरी/थलेटी/चौकट पर मस्तक रखकर नींद न लें।
6:-ह्रदय पर हाथ रखकर,छत के पाट या बीम के नीचें और पाँव पर पाँव चढ़ाकर निद्रा न लें।
7:-सूर्यास्त के पहले सोना नहीं।
7:-पाँव की और शय्या ऊँची हो  तो  अशुभ  है।  केवल चिकित्स  उपचार हेतु छूट हैं ।
8:- शय्या पर बैठकर खाना-पीना अशुभ है। (बेड टी पीने वाले सावधान)
9:- सोते सोते पढना नहीं।
10:-सोते-सोते तंम्बाकू चबाना नहीं। (मुंह में गुटखा रखकर सोने वाले चेत जाएँ )
11:-ललाट पर तिलक रखकर सोना अशुभ है (इसलिये सोते वक्त तिलक मिटाने का कहा जाता है। )
12:-शय्या पर बैठकर सरोता से सुपारी के टुकड़े करना अशुभ हैं।
🙏🏼 प्रत्येक व्यक्ति यह ज्ञान को प्राप्त कर सके इसलिए शेयर अवश्य करे | 👏🏼👏🏼💐
          जय श्री राधे कृष्ण जी
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कौन कौन से है सप्तर्षि पढें एक संपूर्ण प्रस्तुति।


कौन कौन से है सप्तर्षि पढें एक संपूर्ण प्रस्तुति।

आकाश में सात तारों का एक मंडल नजर आता है उन्हें सप्तर्षियों का मंडल कहा जाता है। उक्त मंडल के तारों के नाम भारत के महान सात संतों के आधार पर ही रखे गए हैं। वेदों में उक्त मंडल की स्थिति, गति, दूरी और विस्तार की विस्तृत चर्चा मिलती है। प्रत्येक मनवंतर में सात सात ऋषि हुए हैं। यहां प्रस्तुत है वैवस्तवत मनु के काल में जन्में सात महान ‍ऋषियों का संक्षिप्त परिचय।

वेदों के रचयिता ऋषि : ऋग्वेद में लगभग एक हजार सूक्त हैं, लगभग दस हजार मन्त्र हैं। चारों वेदों में करीब बीस हजार हैं और इन मन्त्रों के रचयिता कवियों को हम ऋषि कहते हैं। बाकी तीन वेदों के मन्त्रों की तरह ऋग्वेद के मन्त्रों की रचना में भी अनेकानेक ऋषियों का योगदान रहा है। पर इनमें भी सात ऋषि ऐसे हैं जिनके कुलों में मन्त्र रचयिता ऋषियों की एक लम्बी परम्परा रही। ये कुल परंपरा ऋग्वेद के सूक्त दस मंडलों में संग्रहित हैं और इनमें दो से सात यानी छह मंडल ऐसे हैं जिन्हें हम परम्परा से वंशमंडल कहते हैं क्योंकि इनमें छह ऋषिकुलों के ऋषियों के मन्त्र इकट्ठा कर दिए गए हैं।

वेदों का अध्ययन करने पर जिन सात ऋषियों या ऋषि कुल के नामों का पता चलता है वे नाम क्रमश: इस प्रकार है:- 1.वशिष्ठ, 2.विश्वामित्र, 3.कण्व, 4.भारद्वाज, 5.अत्रि, 6.वामदेव और 7.शौनक।

पुराणों में सप्त ऋषि के नाम पर भिन्न-भिन्न नामावली मिलती है। विष्णु पुराण अनुसार इस मन्वन्तर के सप्तऋषि इस प्रकार है :- वशिष्ठकाश्यपो यात्रिर्जमदग्निस्सगौत। विश्वामित्रभारद्वजौ सप्त सप्तर्षयोभवन्।। अर्थात् सातवें मन्वन्तर में सप्तऋषि इस प्रकार हैं:- वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र और भारद्वाज।

इसके अलावा पुराणों की अन्य नामावली इस प्रकार है:- ये क्रमशः केतु, पुलह, पुलस्त्य, अत्रि, अंगिरा, वशिष्ट तथा मारीचि है।

महाभारत में सप्तर्षियों की दो नामावलियां मिलती हैं। एक नामावली में कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और वशिष्ठ के नाम आते हैं तो दूसरी नामावली में पांच नाम बदल जाते हैं। कश्यप और वशिष्ठ वहीं रहते हैं पर बाकी के बदले मरीचि, अंगिरस, पुलस्त्य, पुलह और क्रतु नाम आ जाते हैं। कुछ पुराणों में कश्यप और मरीचि को एक माना गया है तो कहीं कश्यप और कण्व को पर्यायवाची माना गया है। यहां प्रस्तुत है वैदिक नामावली अनुसार सप्तऋषियों का परिचय।

  1. वशिष्ठ : राजा दशरथ के कुलगुरु ऋषि वशिष्ठ को कौन नहीं जानता। ये दशरथ के चारों पुत्रों के गुरु थे। वशिष्ठ के कहने पर दशरथ ने अपने चारों पुत्रों को ऋषि विश्वामित्र के साथ आश्रम में राक्षसों का वध करने के लिए भेज दिया था। कामधेनु गाय के लिए वशिष्ठ और विश्वामित्र में युद्ध भी हुआ था। वशिष्ठ ने राजसत्ता पर अंकुश का विचार दिया तो उन्हीं के कुल के मैत्रावरूण वशिष्ठ ने सरस्वती नदी के किनारे सौ सूक्त एक साथ रचकर नया इतिहास बनाया।

2.विश्वामित्र : ऋषि होने के पूर्व विश्वामित्र राजा थे और ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु गाय को हड़पने के लिए उन्होंने युद्ध किया था, लेकिन वे हार गए। इस हार ने ही उन्हें घोर तपस्या के लिए प्रेरित किया। विश्वामित्र की तपस्या और मेनका द्वारा उनकी तपस्या भंग करने की कथा जगत प्रसिद्ध है। विश्वामित्र ने अपनी तपस्या के बल पर त्रिशंकु को सशरीर स्वर्ग भेज दिया था। इस तरह ऋषि विश्वामित्र के असंख्य किस्से हैं।

माना जाता है कि हरिद्वार में आज जहां शांतिकुंज हैं उसी स्थान पर विश्वामित्र ने घोर तपस्या करके इंद्र से रुष्ठ होकर एक अलग ही स्वर्ग लोक की रचना कर दी थी। विश्वामित्र ने इस देश को ऋचा बनाने की विद्या दी और गायत्री मन्त्र की रचना की जो भारत के हृदय में और जिह्ना पर हजारों सालों से आज तक अनवरत निवास कर रहा है।

  1. कण्व : माना जाता है इस देश के सबसे महत्वपूर्ण यज्ञ सोमयज्ञ को कण्वों ने व्यवस्थित किया। कण्व वैदिक काल के ऋषि थे। इन्हीं के आश्रम में हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला एवं उनके पुत्र भरत का पालन-पोषण हुआ था।
  2. भारद्वाज : वैदिक ऋषियों में भारद्वाज-ऋषि का उच्च स्थान है। भारद्वाज के पिता बृहस्पति और माता ममता थीं। भारद्वाज ऋषि राम के पूर्व हुए थे, लेकिन एक उल्लेख अनुसार उनकी लंबी आयु का पता चलता है कि वनवास के समय श्रीराम इनके आश्रम में गए थे, जो ऐतिहासिक दृष्टि से त्रेता-द्वापर का सन्धिकाल था। माना जाता है कि भरद्वाजों में से एक भारद्वाज विदथ ने दुष्यन्त पुत्र भरत का उत्तराधिकारी बन राजकाज करते हुए मन्त्र रचना जारी रखी।

ऋषि भारद्वाज के पुत्रों में 10 ऋषि ऋग्वेद के मन्त्रदृष्टा हैं और एक पुत्री जिसका नाम ‘रात्रि’ था, वह भी रात्रि सूक्त की मन्त्रदृष्टा मानी गई हैं। ॠग्वेद के छठे मण्डल के द्रष्टा भारद्वाज ऋषि हैं। इस मण्डल में भारद्वाज के 765 मन्त्र हैं। अथर्ववेद में भी भारद्वाज के 23 मन्त्र मिलते हैं। ‘भारद्वाज-स्मृति’ एवं ‘भारद्वाज-संहिता’ के रचनाकार भी ऋषि भारद्वाज ही थे। ऋषि भारद्वाज ने ‘यन्त्र-सर्वस्व’ नामक बृहद् ग्रन्थ की रचना की थी। इस ग्रन्थ का कुछ भाग स्वामी ब्रह्ममुनि ने ‘विमान-शास्त्र’ के नाम से प्रकाशित कराया है। इस ग्रन्थ में उच्च और निम्न स्तर पर विचरने वाले विमानों के लिए विविध धातुओं के निर्माण का वर्णन मिलता है।

  1. अत्रि : ऋग्वेद के पंचम मण्डल के द्रष्टा महर्षि अत्रि ब्रह्मा के पुत्र, सोम के पिता और कर्दम प्रजापति व देवहूति की पुत्री अनुसूया के पति थे। अत्रि जब बाहर गए थे तब त्रिदेव अनसूया के घर ब्राह्मण के भेष में भिक्षा मांगने लगे और अनुसूया से कहा कि जब आप अपने संपूर्ण वस्त्र उतार देंगी तभी हम भिक्षा स्वीकार करेंगे, तब अनुसूया ने अपने सतित्व के बल पर उक्त तीनों देवों को अबोध बालक बनाकर उन्हें भिक्षा दी। माता अनुसूया ने देवी सीता को पतिव्रत का उपदेश दिया था।

अत्रि ऋषि ने इस देश में कृषि के विकास में पृथु और ऋषभ की तरह योगदान दिया था। अत्रि लोग ही सिन्धु पार करके पारस (आज का ईरान) चले गए थे, जहां उन्होंने यज्ञ का प्रचार किया। अत्रियों के कारण ही अग्निपूजकों के धर्म पारसी धर्म का सूत्रपात हुआ। अत्रि ऋषि का आश्रम चित्रकूट में था। मान्यता है कि अत्रि-दम्पति की तपस्या और त्रिदेवों की प्रसन्नता के फलस्वरूप विष्णु के अंश से महायोगी दत्तात्रेय, ब्रह्मा के अंश से चन्द्रमा तथा शंकर के अंश से महामुनि दुर्वासा महर्षि अत्रि एवं देवी अनुसूया के पुत्र रूप में जन्मे। ऋषि अत्रि पर अश्विनीकुमारों की भी कृपा थी।

  1. वामदेव : वामदेव ने इस देश को सामगान (अर्थात् संगीत) दिया। वामदेव ऋग्वेद के चतुर्थ मंडल के सूत्तद्रष्टा, गौतम ऋषि के पुत्र तथा जन्मत्रयी के तत्ववेत्ता माने जाते हैं।
  • शौनक : शौनक ने दस हजार विद्यार्थियों के गुरुकुल को चलाकर कुलपति का विलक्षण सम्मान हासिल किया और किसी भी ऋषि ने ऐसा सम्मान पहली बार हासिल किया। वैदिक आचार्य और ऋषि जो शुनक ऋषि के पुत्र थे।

  • फिर से बताएं तो वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भरद्वाज, अत्रि, वामदेव और शौनक- ये हैं वे सात ऋषि जिन्होंने इस देश को इतना कुछ दे डाला कि कृतज्ञ देश ने इन्हें आकाश के तारामंडल में बिठाकर एक ऐसा अमरत्व दे दिया कि सप्तर्षि शब्द सुनते ही हमारी कल्पना आकाश के तारामंडलों पर टिक जाती है।

    संजय गुप्ता