श्रीमद्भागवतपुराण विद्या का अक्षय भण्डार है। यह पुराण सभी प्रकार के कल्याण देने वाला तथा त्रय ताप-आधिभौतिक, आधिदैविक और आधिदैहिक आदि का शमन करता है। ज्ञान, भक्ति और वैराग्य का यह महान ग्रन्थ है।
आज किसी मित्र के आग्रह पर उसी भागवत् कथा के एक प्रसंग का रसास्वादन करेंगे, जिसे आप मेरे द्वारा प्रस्तुत श्रीमद्भागवत कथा में पढ़ चुके है, कैसे भगवान् भोलेनाथ ने माता पार्वतीजी को भागवत् कथा का अमृत पान कराया? कैसे शुकदेवजी महाराज का प्रादुर्भाव हुआ? उसी भागवतजी के अलौकिक प्रसंग का एक बार फिर से हम सभी रसास्वादन करेंगे।
सज्जनों! एक बार भगवान् भोलेनाथ कहीं भ्रमण को चले गयें, भगवान् शिवजी की अनुपस्थिति में श्री नारदजी कैलाश पधारे और कुछ गड़बड़ करके चले गये, यानी माता से झगड़ा लगवाकर भगवान् के आते ही चले गये, भगवान् भोलेनाथ के आगमन पर प्रभु को कुछ शंका हुई, भगवान् ने कहा- क्या बात है? आज कैलाश पर सन्नाटा क्यों है?
पार्वतीजी ने सुन्दर वस्त्र उतार कर मलीन वस्त्र धारण कर लिये, आभूषण उतार दिये और अंधेरे में विराजमान है, पुराने जमाने में जब मकान बनवाते थे तो राजा-महाराजाओं के घर पर एक अलग से रूठने के लिये कमरा बनाया जाता था, जिसे कोप भवन कहते थे, लेकिन देवीयों के लिये ऐसी सुविधा होती थी या नहीं मुझे नहीं मालूम?
यानी स्त्रियों के रूठने का कमरा अलग से बनता था, अगर कोई उसमें चली गयी तो समझो वो रूठ गयी हैं, और पतिदेव बड़ी मनुहार से मनाया करते थे, माता पार्वती भी ऐसे ही भगवान् भोलेनाथ से रूठकर भवन में चली गयी, शंकरजी ने देखा, मेरे आश्रम से नारदजी निकलकर जा रहे हैं, और जाते-जाते शंकरजी से कहते गये, आश्रम में जल्दी पधारना प्रभु, माताजी ने याद किया है।
शंकरजी ने मन में सोचा, आप घर पधारकर आये है तो जरूर याद करती होंगी, जहाँ आपके चरण पडे वहाँ तो कल्याण ही होगा, शिवजी ने कहा क्या बात है देवी! आप इतनी उदास क्यों हैं? पार्वतीजी ने कहा रहने दीजिये, मैं तो आपको पति परमेश्वर मानती हूँ, आपकी सेवा करती हूंँ, पर आप अन्दर से भी काले और ऊपर से भी काले हैं।
शिवजी ने कहा, अन्दर से काला तो वो होता है जो कपट करता है और मैंने तो जीवन में कोई कपट नहीं किया आपसे, आप मुझे कपटी बोलती है, पार्वतीजी ने कहा, चौबीस घण्टे मुंडो की माला पहनते है, उसमें किसके मुंड लगे है, ये बात मुझे कभी बतायी? भगवान शिव ने कहा, आप ने कभी अवसर नहीं दिया, लेकिन मैं आपसे कितना प्रेम करता हूँ इसका यदि वास्तव में कोई प्रमाण है तो ये मुंडो की माला है।
मुंडमाला में किसी और के सिर नहीं लगे, आपके ही सिर है देवी, वैसे तो आप पराम्बा हैं, जगदम्बा है लेकिन लीला की सिद्धी के लिए जब-जब अपने जीवन में तुम परिवर्तन लाती हो, चरित्र में परिवर्तन लाती हो, तुम्हारी याद मुझे बनी रहे इसके लिए तुम्हारे ही सिर अपनी माला में पिरो लेता हूँ, मेरे जीवन में इतनी बार तुमने देह का परित्याग किया है, ये तुम्हारे ही सिर लगे है किसी और के नहीं।
हम तो मरने के बाद भी तुम्हारे सिर को माला में लटकाये घूमते हैं, तुम कहती हो, हम कपटी हैं, पार्वतीजी बोली, हे भगवान! तब तो आप महाकपटी निकले, शिवजी बोले वो कैसे? ऐसी कौन सी दवाई पी रखी है, जो आप तो कभी मरते नहीं और मुझे बार-बार मरना पड़ता है, वास्तव में प्रेम किये होते तो वो औषधि आप मुझे भी पिलाते, जिसे पीने से मैं भी अमर हो जाती।
भगवान् शंकरजी गंभीर हो गये, उनके नेत्र सजल हो गये और पराम्बा पार्वतीजी से बोले, देवी मैंने एक अद्भुत कथामृत का पान किया है और वो अमृत है, श्रीमद्भागवत कथामृत (अमर कथा) उस अमर कथा का पान करने के की वजह से मेरा कभी जन्म नहीं होता, कभी मृत्यु नहीं होती, माता पार्वतीजी चरणों में गिरकर बोलीं, वो अमृत आप मुझे भी पिलाओ भगवन! शिवजी राजी हो गयें।
शिवजी ने कहा, भागवत् की कथा सुनने के तीन विधान है, भागवत की कथा सन्मुख बैठकर सुननी चाहिये, एकदम व्यास मंच के पीछे के पीछे बैठकर भागवत सुनना शास्त्रों में निषेध है, भागवत की कथा में बीच में उठना नहीं चाहिये, व्यर्थ की बात बीच में नहीं बोलनी चाहिये, बोलना है तो कीर्तन बोलो या भगवान् की जय बोले।
भागवतजी की कथा में सोना नहीं चाहिये, एकाग्र होकर तन्मय होकर सुननी चाहिये, देवी! मैं तो जब कथा सुनाता हूँ, नेत्र बन्द करके सुनाता हूँ, आप सुन रही हो कि नहीं, यह मैं कैसे जान पाऊँगा, इसलिये जब तक कथा चलेगी, आप बीच-बीच में ओउम्, ओउम् का हुँकारा देती रहना, या हरे हरे का हुँकारा देती रहना, माता पार्वतीजी बोली ठीक है।
शिवजी ने जब कथा का आरम्भ किया, कैलाश पर्वत पर कोई नहीं था, श्रोता माता पार्वतीजी, और वक्ता भगवान शिवजी, शिवजी के पीछे फूटा हुआ अंडा जरूर पड़ा है, वो ही तोते का अंडा था, भगवान् भोलेनाथ भागवत् कथा सुनाने लगे, माता पार्वती ॐ, ॐ, ॐ कहकर सुन रही है, पहले दिन की कथा का जैसे ही विश्राम हुआ, पीछे पड़ा तोते का अण्डा साबुत हो गया, उस अंडे में जीव का प्रादुर्भाव हो गया।
दूसरे दिन की कथा के प्रभाव से अंडा फूट गया, उसमें से सुन्दर सा पक्षी निकला, पड़ा हुआ पक्षी तीसरे दिन की कथा को सुन रहा है, गद् गद् हो रहा है, अमृत वचन है ना भागवतजी में तो, भागवतजी में चौथे दिन तो आनन्द की कथा है, श्रीकृष्ण जन्म-महोत्सव, उनको सुनकर पक्षी गद् गद् हो गया, माता पार्वती ध्यान लगाये बैठी है।
सज्जनों! शिवजी ने माता पार्वती को जो कथा सुनायी, वो मेरी आपकी तरह थोड़े ही सुनायी थी, तीन घंटे सुबह सुनी, तीन घंटे शाम को सुनी, तीनघंटे में पैर कभी ऐसे कर लिया, मौका लगा तो व्यासजी की ओर पांव फैलाकर ही बैठ गये, ऐसे ही थोड़े हुई थी कथा, वो तो एक ही आसन से बैठे रहे और देखो, पहले दिन की कथा शाम को छः बजे पूरी हुई, उसी समय दूसरे दिन की कथा छः बजकर एक मिनट पर शुरू हो गयी।
सात दिन तक अविश्राम गति से कथा चलती रही, ऐसे ही कथा चल रही है, पांच दिन से कथा सुन रही है माता, श्रीकृष्ण की कथा बता रहे हैं भगवान् शिव, पक्षी बड़े प्रेम से सुन रहा हैं, भगवान् शंकरजी ने कहा, देवी पार्वती, जब उद्धवजी को पता चला, प्रभु श्रीकृष्ण अपनी लीला को समाप्त कर जाना चाहते है, तो उद्धव ने आकर कृष्ण चरणों में प्रणाम किया।
“योगेश योग विन्यासः” आप योग के स्वामी हैं, योग के अधीश्वर हैं, बताइये त्याग क्या है, वैराग्य क्या है, सन्यास क्या है? ये ज्ञानमय प्रसंग जब श्री उद्धव ने पूछा, इसको सुनते-सुनते माता पार्वती को निद्रा ने घेर लिया, पाँच दिन से अविरल सुन रही थी, शरीर में कभी-कभी थकान हो ही जाती है, तो पार्वतीजी माँ को झपकी लग गयी, झपकी लग गयी और वो सो गयीं।
लेकिन शिवजी तो नेत्र बन्द कर कथा सुना रहे है, उन्हें नहीं पता कौन सोया? पक्षी ने देखा, माँ सो गयी, हाजी, हाजी बंद हो गयी, और कहीं कथा विराम न ले लेवे, इसलिये पक्षी ने पार्वतीजी जैसे स्वर में ॐ-ॐ-ॐ कहना शुरू कर दिया, भागवतजी की कथा जब पूरी हो गयी, भगवान् शिव ने जोर से जयकार लगायी, बोलिये कृष्ण कन्हैया लाल की जय।
जैसे ही जोर से जयकारा लगाया, पार्वतीजी की नींद टूट गयी और कहने लगी, हाँ भगवान् फिर श्रीकृष्ण ने उद्धव से क्या कहा? शंकरजी ने कहा- क्या कहा का क्या मतलब? ये कथा तो पूरी भी हो गयी, पार्वतीजी बोली माफ करना प्रभु मेरे को थोड़ी निंद आ गयी, शिवजी ने कहा आप सो गई थी तो हूँकारा कौन भर रहा था? हूँकारे तो मुझे पुरे सुनाई दे रहे थे
भगवान् शिवजी ने इधर-उधर देखा कोई नहीं पर जैसे ही पिछे मुड के देखा तो वो ही शुक पक्षी दिखाई दिया, शिवजी ने कहा, इसने कथा सुनी, इसमें मुझे कोई आपत्ति नहीं, परन्तु कथा बिना विधि के सुनी इसमें आपत्ति है, सामने बैठकर सुन लेता, परन्तु इसने तो पिछे बैठ कर कथा सुनी है, इसने तो अमर कथा की चोरी की हैं।
त्रिशूल लेकर भोलेनाथ उस शुक पक्षी को मारने के लिए दौड़े, कैलाश पर्वत से उडता-उडता पक्षी दौड लगाता है, कैलाश से नीचे उतरकर आयेंगे तो नीचे पड़ता है बद्रीनाथ धाम, बद्रीनाथ धाम में भगवान् वेदव्यासजी वास करते हैं, उनकी कुटिया का नाम है सम्याप्रास, वहीं उनकी पत्नी श्रीमती पिंगला देवी बैठी थी।
अपने पति से बोलीं, बुढापा तो आ गया, बेटा तो हुआ नहीं, व्यासजी बोले, भगवान् सब कल्याण करेंगे चिन्ता मत करो, ऐसा व्यास पत्नी सोच रही थीं कि उन्हें जोर से उबासी आ गयी, उसी समय उडता हुआ वो नन्हा सा शुक पक्षी पिंगलाजी के मुँह से होकर गर्भ में चला गया, भाई-बहनों वह शुक बारह वर्ष तक माँ पिंगलाजी के गर्भ में रहा।
आखिर भगवान् श्री हरि को आकर उन्हें आश्वासन देना पड़ा कि मेरी माया को तुम पर कोई असर नहीं होगा, तब कहीं जाकर शुकदेवजी महाराज का जन्म हुआ, भाई-बहनों, आप सभी ने भगवान् शिवजी द्वारा माँ पार्वतीजी को सुनाई गई अमरकथा के एक घूंट का श्रवण किया, भगवान् भोलेनाथ आपका कल्याण करें।
Sanjay gupta