Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

प्राचीन भारत में राजाओं को उच्छ्रङ्खल न होने देने का दायित्व ब्राह्मणों और धर्मसभा पर होता था।
राज्याभिषेक के समय धर्मसभा के सदस्य राजा से ३ बार पूछते थे –

केन दण्ड्योऽसि?

केन दण्ड्योऽसि?

केन दण्ड्योऽसि?

(कौन तुम्हें दण्डित कर सकता है?)
राजा राजदण्ड को भूमि पर ३ बार ठोकते हुए कहता था –

अदण्ड्योस्मि!

अदण्ड्योस्मि!

अदण्ड्योस्मि!

(मुझे कोई दण्डित नहीं कर सकता!)
इस पर धर्मसभा के सदस्य पलाशपुष्प को राजा के मस्तक पर ३ बार मारते हुए कहते थे —

धर्मदण्ड्योऽसि!

धर्मदण्ड्योऽसि!

धर्मदण्ड्योऽसि!

(धर्मसभा तुम्हें दण्डित कर सकती है!)
महाराष्ट्र के एक प्रसिद्ध इतिहासकार के अनुसार काशी के पण्डित गंगाभ व पण्डित विश्वेश्वर भट ने शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक में उपर्युक्त विधि का प्रयोग किया था। मराठे उक्त विधि से अपरिचित थे अत: उन्होंने धारणा बनाई कि शिवाजी को क्षत्रिय न मानने के कारण ही ब्राह्मणों ने उनका अपमान करने के लिए उन पर प्रहार किया था और वे शिवाजी को राजा के रूप में स्वीकार नहीं करना चाहते थे। इसके पश्चात् बहुत-सी झूठी कहानियाँ भी बनाईं गईं। यथा किसी ने कहा कि अभिषेककर्ता ब्राह्मण ने बाएँ पैर के अँगूठे से शिवाजी महाराज का अभिषेक किया इत्यादि। ये मिथ्यावादी उन वृद्ध ब्राह्मणों को जिम्नास्ट समझते हैं और शिवाजी को कोई ऐरा-गैरा तुच्छ राजा! आश्चर्य है!!
शिवाजी ने औरंगज़ेब के विरुद्ध अपना स्वतन्त्र राज्य बनाने का प्रयास किया और सफल रहे। वे मराठों में राजा की उपाधि पाने वाले पहले थे। इसीलिए उनके लिए ये अनिवार्य था कि हिन्दू परम्परा के अनुसार उनका राज्याभिषेक हो और लोगों से मान-सम्मान के अलावा उनकी राजशाही को धार्मिक मान्यता मिले।
धर्म के अनुसार राजा बनने का अधिकार केवल क्षत्रियों को था। ऐसे में उन्होंने जाति प्रथा की इस व्यवस्था से निकलने की चेष्टा की।
उन्होंने काशी के मान्य ब्राह्मण पण्डित गंगाभ को बुलवाया जिन्होंने आकर दावा किया कि शिवाजी वस्तुत: राजस्थान के क्षत्रिय जाति के सिसोदिया परिवार के वंशज हैं।
इस बात को मान लिया गया और शिवाजी के कारण पूरे मराठा समुदाय को क्षत्रिय होने की मान्यता मिली।
धर्म की जय हो!

शिवाजी महाराज के हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना हो!!
Prachand Pradyot जी

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