Day: June 14, 2017
ऐतिहासिक सत्य घटना
ऐतिहासिक सत्य घटना
अंग्रेजो ने दिल्ली के अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को बन्दी बना लिया और मुगलो का जम कर कत्लेआम किया । सल्तनत खत्म होने से मुगल सेना कई टुकड़ो में बिखर गयी और देश के कई हिस्सों में जान बचा कर छुप गयी । पेट भरने के लिए कोई रोजगार उन्हें आता नही था क्योंकि मुगल सदैव चोरी लूटपाट और बलात्कार जेसे गन्दे और घ्रणित कार्यो में ही व्यस्त रहे इसलिए वो छोटे गिरोह बना कर लूटपाट करने लगे ।
बीकानेर रियासत में न्याय प्रिय राजा गंगा सिंह जी का शासन था जिन्होंने गंग नहर(सबसे बड़ी नहर) का निर्माण करवाया जिसको कांग्रेस सरकार ने इन्दिरा गांधी नहर नाम देकर हड़प लिया बनवाई थी ।
उन्ही की रियासत के गाँव आसलसर के जागीरदार श्री दीप सिंह जी शेखावत की वीरता और गौ और धर्म रक्षा के चर्चे सब और होते थे ।
“तीज” का त्यौहार चल रहा था और गाँव की सब महिलाये और बच्चियां गांव से 2 किलोमीटर दूर गाँव के तालाब पर गणगौर पूजने को गयी हुई थी और तालाब के समीप ही गांव की गाये भी चर रही थी उसी समय धूल का गुबार सा उठता सा नजर आया और कोई समझ पाता उससे पहले ही करीब 150 घुड़सवारों ने गायों को घेर कर ले जाना शुरू कर दिया । चारो तरफ भगदड़ मच गयी और सब महिलाये गाँव की और दौड़ी , उन गौओ में से एक उन मुगल लुटेरो का घेरा तोड़ कर भाग निकली तो एक मुसलमान ने भाला फेक मारा जो गाय की पीठ में घुस गया पर गाय रुकी नही और गाँव की और सरपट भागी ।
दोपहर का वक्त था और आसल सर के जागीरदार दीप सिंह जी भोजन करने बेठे ही थे की गाय माता की करुण रंभाने की आवाज सुनी , वो तुरन्त उठे और देखते ही समझ गए की मुसलमानो का ही कृत्य है उन्होंने गाँव के ढोली राणा को नगारा बजाने का आदेश दिया जिससे की गाँव के वीर लोग युद्ध के लिए तैयार हो सके पर सयोंगवश सब लोग खेतो में काम पर गए हुए थे , केवल पांच लोग इकट्ठे हुये और वो पाँच थे दीप सिंह जी के सगे भाई ।
सब ने शस्त्र और कवच पहने और घोड़ो पर सवार हुई तभी दो बीकानेर रियासत के सिपाही जो की छुटी पर घर जा रहे थे वो भी आ गए , दीप सिंह जी उनको कहा की आप लोग परिवार से मिलने छुट्टी लेकर जा रहे हो ,आप जाइये ,पर वो वीर कायम सिंह चौहान जी के वंशज नही माने और बोले हमने बीकानेर रियासत का नमक खाया है हम ऐसे नही जा सकते | युद के लिए रवाना होते ही सामने एक और वीर पुरुष चेतन जी भी मिले वो भी युद्ध के लिए साथ हो लिए । इस तरह आठ “8” योद्धा 150 मुसलमान सेनिको से लड़ने निकल पड़े और उनके साथ युद्ध का नगाड़ा बजाने वाले ढोली राणा जी भी ।
मुस्लिम सेना की टुकड़ी के चाल धीमी पड़ चुकी थी क्योंकि गायो को घेर कर चलना था । और उनका पीछा कर रहे जागीरदार दीप सिंह जी ने जल्दी ही उन मुगल सेनिको को “धाम चला” नामक धोरे पर रोक लिया , मुस्लिम टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे मुखिया को इस बात का अंदाज नही था की कोई इतनी जल्दी अवरोध भी सामने आ सकता है ? उसे आश्चर्य और घबराहट दोनों महसूस हुई , आश्चर्य इस बात का की केवल आठ 8 लोग 150 अति प्रशिक्षित सैनिको से लड़ने आ गए और घबराहट इस बात की कि उसने आसल सर के जागीरदार दीप सिंह जी की वीरता के चर्चे सुने थे , उस मुसलमान टुकड़ी के मुखिया ने प्रस्ताव रखा की इस लूट में दो गाँवों की गाये शामिल है अजितसर और आसलसर , आप आसलसर गाँव की गाय वापस ले जाए और हमे निकलने दे पर धर्म और गौ रक्षक श्री दीप सिंह जी शेखावत ने बिलकुल मना कर दिया और कहा की “” ऐ मलेच्छ दुष्ट , ये गाय हमारी माता के सम्मान पूजनीय है कोई व्यपार की वस्तु नही ,तू सभी गौ माताओ को यही छोडेगा और तू भी अपने प्राण यही त्यागेगा ये मेरा वचन है ” मुगल टुकड़ी के मुखिया का मुँह ये जवाब सुनकर खुला ही रह गया और फिर क्रोधित होकर बोला की “मार डालो सबको” ।
आठो वीरो ने जबरदस्त हमला किया जो मुसलमानो ने सोचा भी नही था कई घण्टे युद्ध चला और 150 मुसलमानो की टुकड़ी की लाशें जमीन पर आठ वीर योद्धाओ ने बिछा थी, ।
सभी गऊ माता को गाँव की और रवाना करवा दिया और गंभीर घायल सभी वीर पास में ही खेजड़ी के पेड़ के निचे अपने घावों की मरहमपट्टी करने लगे और गाँव की ही एक बच्ची को बोल कर पीने का पानी मंगवाया ,.| सूर्य देव रेगिस्तान की धरती को अपने तेज से तपा रहे थे और धरती पर मौजूद धर्म रक्षक देव अपने धर्म से ।।
सभी लोग खून से लथपथ हो चुके थे और गर्मी और थकान से निढाल हो रहे थे ,
आसमान में मानव मांस के भक्षण के आदि हो चुके सेंकडो गिद्द मंडरा रहे थे ., इतने ज्यादा संख्या में मंडरा रहे गीधों को लगभग 5 किलोमीटर दूर मौजूद दूसरी मुस्लिमो की टुकड़ी के मुखिया ने देखा तो किसी अनहोनी की आशंका से सिहर उठा ,उसने दूसरे साथियो को कहा ” जरूर कोई खतरनाक युद्ध हुआ है वहां और काफी लोग मारे गए है इसलिए ही इतने गिद्ध आकाश में मंडरा रहे है ” उसने तुरन्त उसी दिशा में चलने का आदेश दिया और वहां का द्रश्य देख उसे चक्कर से आ गए, 150 सेनिको की लाशें पड़ी है जिनको गिद्ध खा रहे है और दूर खेजड़ी के नीचे 8 आठ घायल लहू लुहान आराम कर रहे है ।
‘” अचानक दीप सिंह शेखावत जी को कुछ गड़बड़ का अहसास हुआ और उन्होंने देखा की 150 मुस्लिम सेनिक बिलकुल नजदीक पहुँच चुके है । वो तुरन्त तैयार हुए और अन्य साथियो को भी सचेत किया , सब ने फिर से कवच और हथियार धारण कर लिए और घायल शेर की तरह टूट पड़े ,,
खून की कमी तेज गर्मी और गंभीर घायल वीर योद्धा एक एक कर वीरगति को प्राप्त होने लगे , दीप सिंह जी छोटे सगे भाई रिड़मल सिंह जी और 3 तीन अन्य सगे भाई वीरगति को प्राप्त हुए पर तब तक इन वीरो ने मुगल सेना का बहुत नुकसान कर दिया था ।
“7 ” सात लोग वीरगति को प्राप्त कर चुके थे और युद्ध अपनी चरम सीमा पर था , अब जागीरदार दीप सिंह जी अकेले ही अपना युद्ध कोशल दिखा कर मलेछो के दांत खट्टे कर रहे की तभी एक मुगल ने धोखे से वार करके दीप सिंह की गर्दन धड़ से अलग कर दी ।
और और मुगल सेना के मुखिया ने जो द्रश्य देखा तो उसकी रूह काँप गयी । दीप सिंह जी धड़ बिना सिर के दोनों हाथो से तलवार चला रहा था धीरे धीरे दूसरी टुकड़ी के 150 मलछ् में से केवल दस ग्यारह मलेच्छ ही जिन्दा बचे थे । बूढ़े मुगल मुखिया ने देखा की धड़ के हाथ नगारे की आवाज के साथ साथ चल रहे है उसने तुरंत जाकर निहथे ढोली राणा जी को मार दिया । ढोली जी के वीरगति को प्राप्त होते ही दीप सिंह का शरीर भी ठंडा पड़ गया ।
वो मुग़ल मुखिया अपने सात” 7″ आदमियो के साथ जान बचा कर भाग निकला और जाते जाते दीप सिंह जी की सोने की मुठ वाली तलवार ले भागा ।
लगभग 100 किलोमीटर दूर बीकानेर रियासत के दूसरे छोर पर भाटियो की जागीरे थी जो अपनी वीरता के लिए जाने पहचाने जाते है। मुगल टुकड़ी के मुखिया ने एक भाटी जागीरदार के गाँव में जाकर खाने पीने और ठहरने की व्यवस्था मांगी और बदले में सोने की मुठ वाली तलवार देने की पेशकश करी ।।
भाटी जागीरदार ने जेसे ही तलवार देखी चेहरे का रंग बदल गया और जोर से चिल्लाये ,,”” अरे मलेछ ये तलवार तो आसलसर जागीरदार दीप सिंह जी की है तेरे पास कैसे आई ?”
मुसलमान टुकड़ी के मुखिया ने डरते डरते पूरी घटना बताई और बोला ठाकुर साहब 300 आदमियो की टुकड़ी को गाजर मूली जेसे काट डाला और हम 10 जने ही जिन्दा बच कर आ सके । भाटी जागीरदार दहाड़ कर गुस्से से बोले अब तुम दस भी मुर्दो में गिने जाओगे और उन्होंने तुरंत उसी तलवार से उन मलेछो के सिर कलम कर दिए ।।
और उस तलवार को ससम्मान आसलसर भिजवा दिया।।
ये सत्य घटना आसलसर गाँव की है और दीप सिंह जी जो इस गाँव के जागीरदार थे आज भी दीपसिंह जी की पूजा सभी समाज के लोग श्रदा से करते है। और हाँ वो “धामचला ” धोरा जहाँ युद्ध हुआ वहां आज भी युद्ध की आवाजे आती है और इनकी पत्नी सती के रूप में पूजी जाती है और उनके भी चमत्कार के चर्चे दूर दूर तक है।
आज जो टीवी फिल्मो के माध्यम से दिखाया जाता है किसी भी गाँव के जागीरदार या सामंत सिर्फ शोषण करते थे और कर वसूल करते थे उनके लिए करारा जवाब है । गाँव के मुखिया होते हुए भी इनकी जान बहुत सस्ती हुआ करती थी कैसी भी मुसीबत आये तो मुकाबले में आगे भी ठाकुर ही होते थे। गाँव की औरतो बच्चो गायों और ब्राह्मणों की रक्षा हेतु सदैव तत्पर रहते थे। सत् सत् नमन है ऐसे वीर योद्धाओ को *****
श्री हनुमत प्रश्नावली यंत्र से जाने अपनी समस्याओं का समाधान
श्री हनुमत प्रश्नावली यंत्र से जाने अपनी समस्याओं का समाधान
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हमारे हिन्दू धर्म ग्रंथो में कई तरह के यंत्र(चक्र)के बारे में बताया गया हैं जिनकी सहायता से हम अपने मन में उठ रहे सवाल, हमारे जीवन में आने वाली कठिनाइयों आदि का समाधान पा सकते है। हम अब तक आपको श्रीगणेश प्रश्नावली यंत्र और नवदुर्गा प्रश्नावली चक्र के बारे में बता चुके है आज हम आपको बताएँगे हनुमान प्रश्नावली चक्र के बारे में।
प्रयोग विधि
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जिसे भी अपने प्रश्नों का उत्तर चाहिए वे स्नान आदि कर साफ वस्त्र धारण करे और पांच बार ऊँ रां रामाय नम:मंत्र का जप करने के बाद 11 बार ऊँ हनुमते नम:मंत्र का जप करे। इसके बाद आंखें बंद हनुमानजी का स्मरण करते हुए प्रश्नावली चक्र पर कर्सर घुमाते हुए रोक दें। जिस कोष्ठक(खाने) पर कर्सर रुके, उस कोष्ठक में लिखे अंक को देखकर अपने प्रश्न का उत्तर देखें। कोष्ठकों के अंकों के अनुसार फलादेश
1- आपका कार्य शीघ्र पूरा होगा।
2- आपके कार्य में समय लेगगा। मंगलवार का व्रत करें।
3- प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करें तो कार्य शीघ्र पूरा होगा।
4- कार्य पूर्ण नहीं होगा।
5- कार्य शीघ्र होगा, किंतु अन्य व्यक्ति की सहायता लेनी पड़ेगी।
6- कोई व्यक्ति आपके कार्यों में रोड़े अटका रहा है, बजरंग बाण का पाठ करें।
7- आपके कार्य में किसी स्त्री की सहायता अपेक्षित है।
8- आपका कार्य नहीं होगा, कोई अन्य कार्य करें।
9- कार्यसिद्धि के लिए यात्रा करनी पड़ेगी।
10- मंगलवार का व्रत रखें और हनुमानजी को चोला चढ़ाएं, तो मनोकामना पूर्ण होगी।
11- आपकी मनोकामना शीघ्र पूरी होगी। सुंदरकांड का पाठ करें।
12- आपके शत्रु बहुत हैं। कार्य नहीं होने देंगे।
13- पीपल के वृक्ष की पूजा करें। एक माह बाद कार्य सिद्ध होगा।
14- आपको शीघ्र लाभ होने वाला है। मंगलवार को गाय को गुड़-चना खिलाएं।
15- शरीर स्वस्थ रहेगा, चिंताएं दूर होंगी।
16- परिवार में वृद्धि होगी। माता-पिता की सेवा करें और रामचरितमानस के बालकाण्ड का पाठ करें।
17- कुछ दिन चिंता रहेगी। ऊँ हनुमते नम: मंत्र की प्रतिदिन एक माला का जप करें।
18- हनुमानजी के पूजन एवं दर्शन से मनोकामना पूर्ण होगी।
19- आपको व्यवसाय द्वारा लाभ होगा। दक्षिण दिशा में व्यापारिक संबंध बढ़ाएं।
20- ऋण से छुटकारा, धन की प्राप्ति तथा सुख की उपलब्धि शीघ्र होने वाली है। हनुमान चालीसा का पाठ करें।
21- श्रीरामचंद्रजी की कृपा से धन मिलेगा। श्रीसीताराम के नाम की पांच माला रोज करें।
22- अभी कठिनाइयों का सामाना करना पड़ेगा पर अंत में विजय आपकी होगी।
23- आपके दिन ठीक नहीं है। रोजाना हनुमानजी का पूजन करें। मंगलवार को चोला चढ़ाएं। संकटों से मुक्ति मिलेगी।
24- आपके घर वाले ही विरोध में हैं। उन्हें अनुकूल बनाने के लिए पूर्णिमा का व्रत करें।
25- आपको शीघ्र शुभ समाचार मिलेगा।
26- हर काम सोच-समझकर करें।
27- स्त्री पक्ष से आपको लाभ होगा। दुर्गासप्तशती का पाठ करें।
28- अभी कुछ महीनों तक परेशानी है।
29- अभी आपके कार्य की सिद्धि में विलंब है।
30- आपके मित्र ही आपको धोखा देंगे। सोमवार का व्रत करें।
31- संतान का सुख प्राप्त होगा। शिव की आराधना करें व शिवमहिम्नस्तोत्र का पाठ करें।
32- आपके दुश्मन आपको परेशान कर रहे हैं। रोज पार्थिव शिवलिंग का पूजन कर शिव ताण्डवस्तोत्र का पाठ करें। सोमवार को ब्राह्मण को भोजन कराएं।
33- कोई स्त्री आपको धोखा देना चाहती है, सावधान रहें।
34- आपके भाई-बंधु विरोध कर रहे हैं। गुरुवार को व्रत रखें।
35- नौकरी से आपको लाभ होगा। पदोन्नति संभव है, पूर्णिमा को व्रत रख कथा कराएं।
36- आपके लिए यात्रा शुभदायक रहेगी। आपके अच्छे दिन आ गए हैं।
37- पुत्र आपकी चिंता का कारण बनेगा। रोज राम नाम की पांच माला का जप करें।
38- आपको अभी कुछ दिन और परेशानी रहेगी। यथाशक्ति दान-पुण्य और कीर्तन करें।
39- आपको राजकार्य और मुकद्मे में सफलता मिलेगी। श्रीसीताराम का पूजन करने से लाभ मिलेगा।
40- अतिशीघ्र आपको यश प्राप्त होगा। हनुमानजी की उपासना करें और रामनाम का जप करें।
41- आपकी मनोकामना पूर्ण होगी।
42- समय अभी अच्छा नहीं है।
43- आपको आर्थिक कष्ट का सामना करना पड़ेगा।
44- आपको धन की प्राप्ति होगी।
45- दाम्पत्य सुख मिलेगा।
46- संतान सुख की प्राप्ति होने वाली है।
47- अभी दुर्भाग्य समाप्त नहीं हुआ है। विदेश यात्रा से अवश्य लाभ होगा।
48- आपका अच्छा समय आने वाला है। सामाजिक और व्यवसायिक क्षेत्र में लाभ मिलेगा।
49- आपका समय बहुत अच्छा आ रहा है। आपकी प्रत्येक मनोकामना पूर्ण होगी।
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कलियुग का लक्ष्मण
कलियुग का लक्ष्मण
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” भैया, परसों नये मकान पे हवन है। छुट्टी (इतवार) का दिन है। आप सभी को आना है, मैं गाड़ी भेज दूँगा।” छोटे भाई लक्ष्मण ने बड़े भाई भरत से मोबाईल पर बात करते हुए कहा।
” क्या छोटे, किराये के किसी दूसरे मकान में शिफ्ट हो रहे हो ?”
” नहीं भैया, ये अपना मकान है, किराये का नहीं ।”
” अपना मकान”, भरपूर आश्चर्य के साथ भरत के मुँह से निकला।
“छोटे तूने बताया भी नहीं कि तूने अपना मकान ले लिया है।”
” बस भैया “, कहते हुए लक्ष्मण ने फोन काट दिया।
” अपना मकान” , ” बस भैया ” ये शब्द भरत के दिमाग़ में हथौड़े की तरह बज रहे थे।
भरत और लक्ष्मण दो सगे भाई और उन दोनों में उम्र का अंतर था करीब पन्द्रह साल। लक्ष्मण जब करीब सात साल का था तभी उनके माँ-बाप की एक दुर्घटना में मौत हो गयी। अब लक्ष्मण के पालन-पोषण की सारी जिम्मेदारी भरत पर थी। इस चक्कर में उसने जल्द ही शादी कर ली कि जिससे लक्ष्मण की देख-रेख ठीक से हो जाये।
प्राईवेट कम्पनी में क्लर्क का काम करते भरत की तनख़्वाह का बड़ा हिस्सा दो कमरे के किराये के मकान और लक्ष्मण की पढ़ाई व रहन-सहन में खर्च हो जाता। इस चक्कर में शादी के कई साल बाद तक भी भरत ने बच्चे पैदा नहीं किये। जितना बड़ा परिवार उतना ज्यादा खर्चा।
पढ़ाई पूरी होते ही लक्ष्मण की नौकरी एक अच्छी कम्पनी में लग गयी और फिर जल्द शादी भी हो गयी। बड़े भाई के साथ रहने की जगह कम पड़ने के कारण उसने एक दूसरा किराये का मकान ले लिया। वैसे भी अब भरत के पास भी दो बच्चे थे, लड़की बड़ी और लड़का छोटा।
मकान लेने की बात जब भरत ने अपनी बीबी को बताई तो उसकी आँखों में आँसू आ गये। वो बोली, ” देवर जी के लिये हमने क्या नहीं किया। कभी अपने बच्चों को बढ़िया नहीं पहनाया। कभी घर में महँगी सब्जी या महँगे फल नहीं आये। दुःख इस बात का नहीं कि उन्होंने अपना मकान ले लिया, दुःख इस बात का है कि ये बात उन्होंने हम से छिपा के रखी।”
इतवार की सुबह लक्ष्मण द्वारा भेजी गाड़ी, भरत के परिवार को लेकर एक सुन्दर से मकान के आगे खड़ी हो गयी। मकान को देखकर भरत के मन में एक हूक सी उठी। मकान बाहर से जितना सुन्दर था अन्दर उससे भी ज्यादा सुन्दर। हर तरह की सुख-सुविधा का पूरा इन्तजाम। उस मकान के दो एक जैसे हिस्से देखकर भरत ने मन ही मन कहा, ” देखो छोटे को अपने दोनों लड़कों की कितनी चिन्ता है। दोनों के लिये अभी से एक जैसे दो हिस्से (portion) तैयार कराये हैं। पूरा मकान सवा-डेढ़ करोड़ रूपयों से कम नहीं होगा। और एक मैं हूँ, जिसके पास जवान बेटी की शादी के लिये लाख-दो लाख रूपयों का इन्तजाम भी नहीं है।”
मकान देखते समय भरत की आँखों में आँसू थे जिन्हें उन्होंने बड़ी मुश्किल से बाहर आने से रोका।
तभी पण्डित जी ने आवाज लगाई, ” हवन का समय हो रहा है, मकान के स्वामी हवन के लिये अग्नि-कुण्ड के सामने बैठें।”
लक्ष्मण के दोस्तों ने कहा, ” पण्डित जी तुम्हें बुला रहे हैं।”
यह सुन लक्ष्मण बोले, ” इस मकान का स्वामी मैं अकेला नहीं, मेरे बड़े भाई भरत भी हैं। आज मैं जो भी हूँ सिर्फ और सिर्फ इनकी बदौलत। इस मकान के दो हिस्से हैं, एक उनका और एक मेरा।”
हवन कुण्ड के सामने बैठते समय लक्ष्मण ने भरत के कान में फुसफुसाते हुए कहा, ” भैया, बिटिया की शादी की चिन्ता बिल्कुल न करना। उसकी शादी हम दोनों मिलकर करेंगे ।”
पूरे हवन के दौरान भरत अपनी आँखों से बहते पानी को पोंछ रहे थे, जबकि हवन की अग्नि में धुँए का नामोनिशान न था ।
भरत जैसे आज भी
मिल जाते हैं इन्सान
पर लक्ष्मण जैसे बिरले ही
मिलते इस जहान
ब्राह्म मुहूर्त का महत्व ! विजय कृष्ण पांडेय
ब्राह्म मुहूर्त का महत्व !
विजय कृष्ण पांडेय
रात्रि के अंतिम प्रहर को ब्रह्म मुहूर्त कहते हैं।
हमारे ऋषि मुनियों ने इस मुहूर्त का विशेष महत्व बताया है।
उनके अनुसार यह समय निद्रा त्याग के लिए
सर्वोत्तम है।
ब्रह्म मुहूर्त में उठने से सौंदर्य,बल,विद्या,बुद्धि और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
सूर्योदय से चार घड़ी (लगभग डेढ़ घण्टे) पूर्व ब्रह्म मुहूर्त में ही जग जाना चाहिये।
इस समय सोना शास्त्र निषिद्ध है।
“ब्रह्ममुहूर्ते या निद्रा सा पुण्यक्षयकारिणी।
तां करोति द्विजो मोहात् पादकृच्छेण शुद्धय्ति।।”
ब्रह्ममुहूर्त की पुण्य का नाश करने वाली होती है।
इस समय जो भी शयन करता है उसे इस पाप से मुक्ति हेतु पादकृच्छ नामक (व्रत) से प्रायश्चित
करना चाहिए।
विवश अवस्था में यह क्षम्य है।
आँखों के खुलते ही दोनों हाथों की हथेलियों को देखते हुए निम्न श्लोक का पाठ करें ;-
कराग्रे वसते लक्ष्मी: करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्थितो परब्रह्म प्रभाते करदर्शनम्।।
कर (हाथ) के अग्रभाग में लक्ष्मी,मध्य में सरस्वती तथा हाथ के मूल भाग में ब्रह्मा जी निवास करते हैं अतः प्रातःकाल दोनों करों का दर्शन करना चाहिए।
शय्या से उठ कर भूमि पर पैर रखने के पूर्व पृथ्वी माता का अभिवादन करें तथा पैर रखने की विवशता के लिए माता से क्षमा मांगते हुए निम्न श्लोक का पाठ करें;-
समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डिते।
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्वमें।
समुद्र रूपी वस्त्रों को धारण करनेवाली,पर्वतरूप स्तनों से मण्डित भगवान विष्णु की पत्नी पृथ्वी देवि !
आप मेरे पद स्पर्श को क्षमा करें।
तत्पश्चात गोरोचन,चन्दन,सुवर्ण,शंख,मृदंग,दर्पण,मणि
आदि मांगलिक वस्तुओं का दर्शन करें।
गुरु अग्नि तथा सूर्य को नमस्कार करे।
निम्नलिखित श्लोक को पढ़ते हुए सभी अंगों पर
जल छिड़कने से मानसिक स्नान हो जाता है;-
ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि।।
अतिनीलघनश्यामं नलिनायतलोचनम्।
स्मरामि पुण्डरीकाक्षं तेन स्नातो भवाम्यहम्।।
ब्रह्म मुहूर्त का विशेष महत्व बताने के पीछे हमारे विद्वानों की वैज्ञानिक सोच निहित थी।
वैज्ञानिक शोधों से ज्ञात हुआ है कि ब्रह्म मुहुर्त में
वायु मंडल प्रदूषण रहित होता है।
इसी समय वायु मंडल में ऑक्सीजन (प्राण वायु)
की मात्रा सबसे अधिक (41 प्रतिशत) होती है,
जो फेफड़ों की शुद्धि के लिए महत्वपूर्ण होती है।
शुद्ध वायु मिलने से मन,मस्तिष्क भी स्वस्थ रहता है।
आयुर्वेद के अनुसार ब्रह्म मुहूर्त में उठकर टहलने से शरीर में संजीवनी शक्ति का संचार होता है।
यही कारण है कि इस समय बहने वाली वायु को अमृततुल्य कहा गया है।
इसके अलावा यह समय अध्ययन के लिए भी सर्वोत्तम बताया गया है क्योंकि रात को आराम
करने के बाद सुबह जब हम उठते हैं तो शरीर
तथा मस्तिष्क में भी स्फूर्ति व ताजगी बनी रहती है।
प्रमुख मंदिरों के पट भी ब्रह्म मुहूर्त में खोल दिए
जाते हैं तथा भगवान का श्रृंगार व पूजन भी ब्रह्म मुहूर्त में किए जाने का विधान है।
ब्रह्ममुहूर्त के धार्मिक,पौराणिक व व्यावहारिक पहलुओं और लाभ को जानकर हर रोज इस
शुभ घड़ी में जागना शुरू करें तो बेहतर नतीजे मिलेंगे।
आइये जाने ब्रह्ममुहूर्त का सही वक्त व खास फायदे –
धार्मिक महत्व –
व्यावहारिक रूप से यह समय सुबह
सूर्योदय से पहले चार या पांच बजे के बीच माना जाता है।
किंतु शास्त्रों में साफ बताया गया है कि रात के आखिरी प्रहर का तीसरा हिस्सा या चार घड़ी
तड़के ही ब्रह्ममुहूर्त होता है।
मान्यता है कि इस वक्त जागकर इष्ट या भगवान
की पूजा,ध्यान और पवित्र कर्म करना बहुत शुभ होता है।
क्योंकि इस समय ज्ञान,विवेक,शांति, ताजगी,निरोग और सुंदर शरीर,सुख और ऊर्जा के रूप में ईश्वर
कृपा बरसाते हैं।
भगवान के स्मरण के बाद दही,घी,आईना,सफेद सरसों,बैल,फूलमाला के दर्शन भी इस काल में बहुत पुण्य देते हैं।
पौराणिक महत्व – वाल्मीकि रामायण के मुताबिक माता सीता को ढूंढते हुए श्रीहनुमान ब्रह्ममुहूर्त में ही अशोक वाटिका पहुंचे।
जहां उन्होंने वेद व यज्ञ के ज्ञाताओं के मंत्र उच्चारण की आवाज सुनी।
व्यावहारिक महत्व –
व्यावहारिक रूप से अच्छी सेहत,ताजगी और ऊर्जा पाने के लिए ब्रह्ममुहूर्त बेहतर समय है।
क्योंकि रात की नींद के बाद पिछले दिन की शारीरिक और मानसिक थकान उतर जाने पर दिमाग शांत और स्थिर रहता है।
वातावरण और हवा भी स्वच्छ होती है।
ऐसे में देव उपासना,ध्यान,योग,पूजा तन,मन
और बुद्धि को पुष्ट करते हैं।
इस तरह शौक-मौज या आलस्य के कारण देर
तक सोने के बजाय इस खास वक्त का फायदा उठाकर बेहतर सेहत,सुख, शांति और नतीजों
को पा सकते हैं।
जयति पुण्य सनातन संस्कृति,,,
जयति पुण्य भूमि भारत,,,
सदा सुमंगल,,,
ॐ श्री सूर्याय नमः
जय भवानी
जय श्री राम
विजय कृष्ण पांडेय
शूद्र कभी नहीं कहते कि वे दलित हैं

अधिकांशतः आप देखियेगा –
शूद्र कभी नहीं कहते कि वे दलित हैं , सनातन वैदिक धर्माचार्य कभी नहीं कहते कि शूद्र दलित हैं परन्तु विदेशी शिक्षानीति से उपजे छद्म बुद्धिजीवी ही ये शब्द प्रयोग करते हैं कि शूद्र दलित हैं । और इस दलितवादी मानसिकता की उपज कहॉ से शुरू हुई, इसे आप देखेंगे तो पायेंगे कि अंग्रेजों के जाने के बाद देश में अपना वर्चस्व चाहने वाले राजनीतिक लोगों ने ये एक हवा चलाई कि शूद्र दलित हैं ।
हिन्दू आधिक्य (मेजोरिटी) वाले, गुरुकुलीय परम्परा वाले देश का प्रथम शिक्षामन्त्री एक मुस्लिम को बनाया गया और बच्चों के पाठ्यक्रम में उनके ही हिन्दू धर्म के विरुद्ध जहर घोलती ऐसी शिक्षा परोसी गयी कि वह बच्चा जब कुछ बडा हो जाये तो अपने ही सनातन वैदिक धर्म से, अपने पूर्वजों से ईर्ष्या करने लगे ! इतना कर चुके तो फिर ये मन्थरानुयायी धन मान पद का लोभ शूद्रों को परोसना भला कैसे भूलते ? इनको येन केन प्रकारेण शूद्र वर्ग को सनातन वैदिक धर्म की मुख्य धारा से अलग जो करना है !
अब सनातन वैदिक धर्म का इतिहास देखिये –
ब्राह्मण नगर गॉवों से सुदूर एकान्त वन प्रदेशों में २५ वर्ष गुरुकुल में रहता था , जहॉ वह वेद शास्त्रों का अध्ययन करता था , फिर जब शास्त्र संस्कारों की शिक्षा लेकर घर आता था तो २५ से ५० वर्ष तक गृहस्थी के धर्मों के पालन में डूब जाता था , जिसमें पंचमहायज्ञों से लेकर विविध व्रतोपवासों के दुरूह नियमों का पालन उसे करना पड़ता था , जो उन्हीं मनु स्मृति आदि शास्त्रों में आदेश किये गये हैं , जिन्हें ये तथाकथित छद्म बुद्धिजीवी ब्राह्मणों की रचना बताते हैं । उन नियमों में कहीं कोई चूक हुई तो प्रायश्चित्त के ऐसे कठोर नियम वर्णित हैं कि आप कल्पना भी नहीं कर सकते । अस्तु ,
इसके उपरान्त जब ५० वर्ष तक वह गृहस्थ का निर्वाह करके पारिवारिक जिम्मेदारियों को पूरा कर ही पाता था कि , फिर ५० से ७५ वर्ष तक के लिये फिर से घर परिवार समाज को छोड़कर वानप्रस्थ आश्रम के पालन के लिये वन चला जाता था , इसके उपरान्त तो फिर संन्यासी ही हो जाता था ।
तो कुल मिलाकर आप देखिये कि जीवन का ७५% एक ब्राह्मण परिवार- गॉव- नगर समाज से दूर रहकर एकाकी होकर स्वाध्याय तपस्या में बिताता था , और जो २५ % उसे मिलता , उसमें वह घर परिवार भी संभालता और अपने गृहस्थी के नियम भी पूरे कर अपनी जिम्मेदारियों को सम्पन्न करता ।
पर फिर भी कुछ मन्थरानुयायी ये विष घोलते हैं कि
शूद्रों को शोषित किया, उनको पीड़ित किया , उनको पिछड़ा बनाया आदि आदि ।
उन शूद्रों को , जिनके लिये किसी भी प्रकार की तपस्या का कोई विधान ही नही था , बस राजाओं की सेवा- बढाई करते हुए खा पी के आजीवन गृहस्थी का आनन्द उठाने में ही जिनके मोक्ष का मार्ग था ।
दुरूह वेदों के नियमों का तप करना पड़ता था तो ब्राह्मण करते थे , राष्ट्र पर संकट आता और युद्ध होता था तो क्षत्रिय मरते थे , पर शूद्रों को न कभी किसी ब्राह्मण ने तप कराया न किसी क्षत्रिय राजा ने युद्ध में मरवाया ।
ये प्रकृति का नियम है कि प्राणी को अपने सेवक पर सदैव विशेष प्रीति होती है । शूद्र जिन ब्राह्मण और क्षत्रियों की सेवा में सदैव तत्पर रहते थे , उन अपने परम आत्मीय जनों को ये वर्ण इतना प्रेम से पाल – पोष के लाये , उन को कुछ कथित विदेशी स्लीपर सेल #दलित बोलकर क्या स्वयं उनके स्वाभिमान का अपमान नहीं करते हैं?
ऋग्वेद का मन्त्र देखिये –
ब्राह्मणोsस्य मुखमासीद्बाहू राजन्यः कृतः ।
उरु तदस्य यद्वैश्यः पद्भ्यां शूद्रोsजायत ।।
मन्त्र से स्पष्ट है कि वेदों की रक्षा करने वाले ब्राह्मण को यदि एक ओर मुख की संज्ञा बतायी गयी है तो समाज सेवा का अपना धर्म निभाने वाले शूद्र को भी दूसरी ओर ईश्वरीय शक्ति के चरणों की संज्ञा बतायी गयी है ।
ब्राह्मण व शूद्र का सम्बन्ध एक ही शरीर के मुख और चरण की भॉति रहा । चरण व मुख का क्या सम्बन्ध होता है ?
पैर में कॉटा चुभता है तो ऑख से ऑसू निकलता है , ये होता है चरण और मुख का सम्बन्ध । नेत्र देखते हैं और चरण चलते हैं , यदि चलते समय नेत्र नहीं देखेंगे तो पैरों को ठोकर लगेगी , रक्त पैरों से बहेगा और उसका संज्ञान मस्तिष्क को ही होगा । जब शयन का समय आता है तो पुरुष चादर से पहले अपने चरण को ढकता है , फिर अपने उदर को फिर हाथों को और मुख तो प्रायः चादर के बाहर ही रखता है । सनातन वैदिक समाज में जब भी आपत्ति आयी , तो यहॉ सर्वप्रथम शूद्र की रक्षा की गयी , क्योंकि वह वर्ग ही तो वह प्रजा था , जिसकी रक्षा करना अन्य वर्गों का प्रथम धर्म था ।
सब नर करहिं परस्पर प्रीती । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती ।।
इस प्रकार युगों से परस्पर प्रीतिपूर्वक सनातन वैदिक समाज चल के आया । इतनी आत्मीयता जहॉ के सिद्धान्त में गुम्फित रही , वहॉ पर कुछ छद्म बुद्धिजीवी बार – बार जोर देकर कान भरते जाते हैं कि शूद्र दलित हैं ! किमाश्चर्यमतः परम् !
।। जय श्री राम ।।
एक शहर में एक प्रसिद्ध बनारसी विद्वान् “ज्योतिषीत” का आगमन हुआ.
एक शहर में एक प्रसिद्ध बनारसी विद्वान् “ज्योतिषीत” का आगमन हुआ..!! माना जाता है कि उनकी वाणी में सरस्वती विराजमान है और वे जो भी बताते है वह 100% सच ही होता है। “शर्मा जी” ने अपना दाहिना हाथ आगे बढ़ाते हुए ज्योतिषी को कहा.., “महाराज, मेरी मृत्यु कब, कहॉ और किन परिस्थितियों में होगी?”
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ज्योतिषी ने शर्मा जी की हस्त रेखाऐं देखीं,
चेहरे और माथे को अपलक निहारते रहे।
स्लेट पर कुछ अंक लिख कर जोड़ते–घटाते रहे। बहुत देर बाद वे गंभीर स्वर में बोले..,
“शर्मा जी, आपकी भाग्य रेखाएँ कहती है कि जितनी आयु आपकी माता को प्राप्त होगी उतनी ही आयु आप भी पाएँगे।
जिन परिस्थितियों में और जहाँ आपकी माता की मृत्यु होगी, उसी स्थान पर और उसी तरह, आपकी भी मृत्यु होगी।”
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यह सुन कर “शर्मा जी” भयभीत हो उठे और चल पडे ……
एक घण्टे बाद …
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“शर्मा जी” वृद्धाश्रम से अपनी वृद्ध माता को साथ लेकर घर लौट रहे थे..!!
Prasad Davrani
आर्थिक परेशानी और कर्ज से मुक्ति दिलाता है शिवजी का दारिद्रय दहन स्तोत्र. कारगर मंत्र है आजमाकर देखे
आर्थिक परेशानी और कर्ज से मुक्ति दिलाता है शिवजी का दारिद्रय दहन स्तोत्र. कारगर मंत्र है आजमाकर देखे…………
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जो व्यक्ति घोर आर्थिक संकट से जूझ रहे हों, कर्ज में डूबे हों, व्यापार व्यवसाय की पूंजी बार-बार फंस जाती हो उन्हें दारिद्रय दहन स्तोत्र से शिवजी की आराधना करनी चाहिए.
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महर्षि वशिष्ठ द्वारा रचित यह स्तोत्र बहुत असरदायक है. यदि संकट बहुत ज्यादा है तो शिवमंदिर में या शिव की प्रतिमा के सामने प्रतिदिन तीन बार इसका पाठ करें तो विशेष लाभ होगा.
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जो व्यक्ति कष्ट में हैं अगर वह स्वयं पाठ करें तो सर्वोत्तम फलदायी होता है लेकिन परिजन जैसे पत्नी या माता-पिता भी उसके बदले पाठ करें तो लाभ होता है.
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शिवजी का ध्यान कर मन में संकल्प करें. जो मनोकामना हो उसका ध्यान करें फिर पाठ आरंभ करें.
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श्लोकों को गाकर पढ़े तो बहुत अच्छा, अन्यथा मन में भी पाठ कर सकते हैं. आर्थिक संकटों के साथ-साथ परिवार में सुख शांति के लिए भी इस मंत्र का जप बताया गया है.
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।।दारिद्रय दहन स्तोत्रम्।।
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विश्वेशराय नरकार्ण अवतारणाय
कर्णामृताय शशिशेखर धारणाय।
कर्पूर कान्ति धवलाय, जटाधराय,
दारिद्रय दुख दहनाय नमः शिवाय।।१
गौरी प्रियाय रजनीश कलाधराय,
कलांतकाय भुजगाधिप कंकणाय।
गंगाधराय गजराज विमर्दनाय
द्रारिद्रय दुख दहनाय नमः शिवाय।।२
भक्तिप्रियाय भवरोग भयापहाय
उग्राय दुर्ग भवसागर तारणाय।
ज्योतिर्मयाय गुणनाम सुनृत्यकाय,
दारिद्रय दुख दहनाय नमः शिवाय।।३
चर्माम्बराय शवभस्म विलेपनाय,
भालेक्षणाय मणिकुंडल-मण्डिताय।
मँजीर पादयुगलाय जटाधराय
दारिद्रय दुख दहनाय नमः शिवाय।।४
पंचाननाय फणिराज विभूषणाय
हेमांशुकाय भुवनत्रय मंडिताय।
आनंद भूमि वरदाय तमोमयाय,
दारिद्रय दुख दहनाय नमः शिवाय।।५
भानुप्रियाय भवसागर तारणाय,
कालान्तकाय कमलासन पूजिताय।
नेत्रत्रयाय शुभलक्षण लक्षिताय
दारिद्रय दुख दहनाय नमः शिवाय।।६
रामप्रियाय रधुनाथ वरप्रदाय
नाग प्रियाय नरकार्ण अवताराणाय।
पुण्येषु पुण्य भरिताय सुरार्चिताय,
दारिद्रय दुख दहनाय नमः शिवाय।।७
मुक्तेश्वराय फलदाय गणेश्वराय
गीतप्रियाय वृषभेश्वर वाहनाय।
मातंग चर्म वसनाय महेश्वराय,
दारिद्रय दुख दहनाय नमः शिवाय।।८
वसिष्ठेन कृतं स्तोत्रं सर्व रोग निवारणम्
सर्व संपत् करं शीघ्रं पुत्र पौत्रादि वर्धनम्।।
शुभदं कामदं ह्दयं धनधान्य प्रवर्धनम्
त्रिसंध्यं यः पठेन् नित्यम् स हि स्वर्गम् वाप्युन्यात्।।९
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।।इति श्रीवशिष्ठरचितं दारिद्रयुदुखदहन शिवस्तोत्रम संपूर्णम।।
ગોંડલના મહારાજા સર ભગવતસિંહજી
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ગોંડલના મહારાજા સર ભગવતસિંહજી એકવખત ઘોડા પર સવાર થઇને કોઇ ગામની મુલાકાતે જઇ રહ્યા હતા. મહારાજા એકલા જ હતા અને પહેરવેશ પણ સામાન્ય આથી કોઇને ખબર પણ ના પડે કે આ ગોંડલ નરેશ છે.
રસ્તામાં એક બહેન ઘાસનો ભારો નીચે રાખીને બેઠેલા. ઘોડેસવારને આવતા જોયો એટલે એ બહેને હાથ ઉંચો કરીને ઘોડા પર સવાર થયેલા મહારાજાને ઉભા રાખ્યા. મહારાજાએ પણ સામાન્ય માણસની જેમ ઘોડો ઉભો રાખી દીધો અને પુછ્યુ, “બોલો બહેન, શું કામ છે ?” પેલા બહેને કહ્યુ,”ભાઇ આ ઘાસનો ભારો મારા માથા પર ચડાવવામાં મને મદદ કરોને ?”
મહારાજા ભગવતસિંહજી પોતાના હોદાને એક બાજુ રાખીને સામાન્ય માણસની જેમ એ બહેનને ભારો માથા પર મુકવા માટે નીચે ઉતર્યા. પેલી બહેને કહ્યુ,”આપણા ભગાબાપુ જો થાકલા કરી આપે તો કોઇ ભારો ચડાવવા વાળાની મદદની જરૂર ન પડે” મહારાજાએ પોતાનો પરિચય આપ્યા વગર જ પુછ્યુ,”બહેન આ થાકલા એટલે શું ? ” પેલી સ્ત્રીએ વિસ્તારથી સમજાવતા કહ્યુ, ” માણસની ઉંચાઇ જેટલા બે મોટા પથ્થર પર એક આડો પથ્થર મુકીને જે તૈયાર કરવામાં આવે એ થાકલો. વટેમાર્ગુ થાક ઉતારવા માથા પરનો ભારો ઉપરના આડા પથ્થર પર રાખીને થોડો વિસામો ખાઇ શકે અને જ્યારે ફરી આગળ વધવુ હોય ત્યારે કોઇ ભારો ચડાવવા વાળાની જરૂર ન પડે. વટેમાર્ગુ પોતે જ ઉપર રાખેલા ભારાને સીધો પોતાના માથા પર લઇ શકે.” માથે ભારો ચડાવીને મહારાજા તો વિદાય થયા.
મહારાજા જ્યારે પોતાનું કામ પતાવીને ગોંડલ પરત આવ્યા એટલે તુરંત જ મુખ્ય ઇજનેરને મળવા માટે બોલાવ્યો. મુખ્ય ઇજનેર આવ્યો એટલે સર ભગવતસિંહજીએ એને થાકલા વાળી વાત કહીને સુચના આપતા કહ્યુ કે રાજ્યના તમામ રસ્તાઓ પર દોઢ માઇલના અંતરે આવા થાકલા ઉભા કરી દો જેથી મારા રાજ્યની કોઇ વ્યક્તિને ભારો ચડાવવા માટે કોઇની રાહ ન જોવી પડે અને કોઇના ઓસીયાળા ના રહેવું પડે. આ થાકલાનો માઇલસ્ટોન તરીકે પણ ઉપયોગ કરો જેથી ઉભા કરેલા થાકલાથી નજીકનું ગામ કેટલું દુર છે એની પણ વટેમાર્ગુને ખબર પડે.
ગોંડલ રાજ્યની પ્રજાના પ્રિય એવા ભગાબાપુએ તૈયાર કરેલા એ થાકલાઓ આજે પણ ગોંડલ રાજ્યના મુખ્ય માર્ગો પર જોવા મળે છે.(ફોટામાં રહેલા આ થાકલાઓ જોઇને બળબળતી બપોરે પણ આંખોને ન વર્ણવી શકાય એવી થંડક મળે છે.) જ્યારે જ્યારે હું મારા ગામ મોવિયા જાવ છું ત્યારે રસ્તામાં આ થાકલાઓ જોઇને એવુ થાય કે આ લોકશાહી કરતા ભગાબાપુની રાજાશાહી કેવી સારી ?
બીલખાના મહારાજાએ એની ડાયરીમાં એવી નોંધ કરેલી છે કે ‘ગોંડલ રાજ્યની હદ ક્યાંથી શરુ થાય અને ક્યાં પુરી થાય એ જોવા માટે તમારે હાથમાં નકશો લેવાની જરુર જ નહિ. આંખ બંધ કરીને ઘોડાગાડીમાં બેસો તો પણ ગોંડલ આવે એટલે તમને ખબર પડી જાય કારણકે સમથળ રસ્તાઓને કારણે રોદા આવતા બંધ થઇ જાય અને ગોંડલની હદ પુરી થતા ફરી રોદા આવવાના શરુ થઇ જાય.’
એક એ ગોંડલ હતુ અને એક આજનું ગોંડલ છે . આજે વર્તમાન સમયે પણ ગોંડલની હદ ક્યાંથી શરુ થાય અને ક્યાં પુરી થાય એ જાણવા માટે નકશો હાથમાં લેવાની જરૂર નહી. આંખો બંધ કરીને બેસો. રોદા આવવાના શરુ થાય એટલે સમજી લેવાનું કે ગોંડલ આવ્યુ અને રોદા આવતા બંધ થાય એટલે સમજી લેવાનું કે ગોંડલની હદ પુરી.
સર ભગવતસિંહજીના પ્રજાલક્ષી શાશનને શત શત વંદન

એક નાનકડો પરિવાર હતો
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એક નાનકડો પરિવાર હતો. પતિ, પત્ની અને એક દીકરો. પરિવારની આર્થિક પરિસ્થિતિ ખુબ સામાન્ય હતી. પતિ મજૂરીકામ કરે અને પત્ની બીજાના ઘરના કામ કરવા માટે જાય. જે કંઈ થોડીઘણી આવક થાય એમાંથી પરિવારનું માંડમાંડ ગુજરાન ચાલે. ટૂંકી આવક હોવા છતાં દીકરાના અભ્યાસમાં કોઈ પ્રકારની કચાસ રાખે નહિ.
દીકરાએ દસમા ધોરણની પરિક્ષા પાસ કરી. ખુબ સારા ટકા લાવ્યો અને વિજ્ઞાનપ્રવાહમાં એને રસ હતો એટલે સારી સ્કૂલમાં એડમિશન અપાવવાનું નક્કી કર્યું. સ્કૂલની ફીની વિગત જાણીને પિતાના હોશકોશ ઉડી ગયા. આટલી મોટી ફી કેમ કરીને ભરાશે ? પણ પિતા દીકરાને મોટો સાહેબ જોવા માંગતા હતા એટલે ગમે તેમ કરીને દીકરાને ભણાવવો જ છે એવું એના પિતાએ નક્કી કર્યું.
બીજા દિવસે એ ભાઈએ એમના પત્ની અને પુત્રને કહ્યું, ” મારો બાળપણનો ભાઈબંધ મુંબઈમાં રહે છે. ખુબ સારો ધંધો કરે છે. હું એની પાસે જઈ આવું, મને ખાતરી છે કે એ ચોક્કસ મદદ કરશે.” પિતા મુંબઇ જવા રવાના થયા. દીકરાને થયું પપ્પા ખોટા મુંબઇ જાય છે. આટલી મોટી રકમની મદદ આજના યુગમાં કોઈ ના કરે. એકાદ અઠવાડિયામાં જ એના પિતા પાછા આવ્યા અને સાથે ખુબ મોટી રકમ પણ લાવ્યા. છોકરાની ફી ભરાઈ ગઈ અને અભ્યાસ આગળ વધ્યો.
થોડા દિવસ પછી એકવખત દીકરો ઘરે બેઠો બેઠો હોમવર્ક કરતો હતો. ટપાલી આવ્યો અને એક કવર આપી ગયો. છોકરાની મમ્મીએ કહ્યું, ” બેટા, જરા જો તો આ કોનો કાગળ છે ? આજ દિન સુધી આપણને કોઈએ કાગળ લખ્યો નથી. ગરીબના થોડા કોઈ સગા હોય ? આજે અચાનક આ શેનો કાગળ આવ્યો? હું કે તારા પપ્પા કંઈ ભણ્યા નથી એટલે વાંચતા પણ આવડતું નથી તું જ કાગળ વાંચી સંભળાવ.”
દીકરાએ કવર ખોલીને કાગળ બહાર કાઢ્યો. કાગળ વાંચતાની સાથે દીકરો ચોધાર આંસુએ રડી પડ્યો. એની મમ્મી પણ હેબતાઈ ગઈ અને એટલું જ બોલી શકી કે ‘ બેટા, શું થયું ? શું લખ્યું છે કાગળમાં ?” છોકરાએ રડતા રડતા કહ્યું,” મમ્મી આ એક બહુ મોટા ઉદ્યોગપતિનો કાગળ છે. પપ્પાનો આભાર માનતો પત્ર છે. મમ્મી, પપ્પા મુંબઇ ગયા જ નહોતા. અહીંયા હોસ્પિટલમાં હતા અને એ જે પૈસા લાવ્યા એ એના મિત્ર પાસેથી નહિ, ઉદ્યોગપતિ પાસેથી લાવ્યા છે. પપ્પાએ ઉદ્યોગપતિને એક કિડની દાનમાં આપી દીધી છે અને બદલામાં ઉદ્યોગપતિએ મારા અભ્યાસનો ખર્ચ ઉપડાવાનું પપ્પાને વચન આપ્યું છે.”
મિત્રો, દીકરા કે દીકરી માટે એના પિતા બહુ મોટું બલિદાન આપતા હોય છે અને ઘણીવખત તો સંતાનને એની ખબર પણ પડવા દેતા નથી. પિતા એની કિડની ભલે ના વેંચતા હોય પણ જમીન, મકાન કે ઘરેણાં વેંચીને પણ દીકરા-દીકરીને ભણાવતા હોય છે. પોતે ભલે મુફલિસ થઈ જાય પણ સંતાન મહાન બને એ માટે જાત હોમી દેતા હોય છે.જો…જો…મિત્રો, જલ્સા કરવામાં પિતાનું સમર્પણ અને સપના એળે ના જાય.