Posted in ज्योतिष - Astrology

*मृत्यु का रहस्य*  

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*किरलियान फोटोग्राफी ने मनुष्‍य के सामने कुछ वैज्ञानिक तथ्‍य उजागर किये हैं। किरलियान ने मरते हुए आदमी के फोटो लिए, उसके शरीर से ऊर्जा के छल्‍ले बाहर लगातार विसर्जित हो रहे थे, और वो मरने के तीन दिन बाद तक भी होते रहे। मरने के तीन दिन बाद जिसे हिन्‍दू तीसरा मनाता है।*
*अब तो वह जलाने के बाद औपचारिक तौर पर उसकी हड्डियाँ उठाना ही तीसरा हो गया। यानि अभी जिसे हम मरा समझते हैं वो मरा नहीं है। आज नहीं कल वैज्ञानिक कहते हैं तीन दिन बाद भी मनुष्‍य को जीवित कर सकेगें।*
*और एक मजेदार घटना किरलियान के फोटो में देखने को मिली। की जब आप क्रोध की अवस्‍था में होते हो तो तब वह ऊर्जा के छल्‍ले आपके शरीर से निकल रहे होते हैं। यानि क्रोध भी एक छोटी मृत्‍यु तुल्‍य है।*
*एक बात और किरलियान ने अपनी फोटो से सिद्ध की कि मरने से ठीक छह महीने पहले ऊर्जा के छल्‍ले मनुष्‍य के शरीर से निकलने लग जाते हैं। यानि मरने की प्रक्रिया छ: माह पहले शुरू हो जाती है, जैसे मनुष्‍य का शरीर मां के पेट में नौ महीने विकसित होने में लेता है वैसे ही उसे मिटने के लिए छ: माह का समय चाहिए। फिर तो दुर्घटना जैसी कोई चीज के लिए कोई स्‍थान नहीं रह जाता, हां घटना के लिए जरूर स्‍थान है।*
*भारत में हजारों साल से योगी मरने के छ:माह पहले अपनी तिथि बता देते थे।*
*ये छ: माह कोई संयोगिक बात नहीं है। इस में जरूर कोई रहस्‍य होना चाहिए। कुछ और तथ्‍य किरलियान ने मनुष्‍य के जीवन के सामने रखे, एक फोटो में उसने दिखाया है, छ:  महीने पहले जब उसने जिस मनुष्‍य को फोटो लिया तो उसके दायें हाथ में ऊर्जा प्रवाहित नहीं हो रही थी। यानि दाया हाथ उर्जा को नहीं दर्शा रहा था। जबकि दांया हाथ ठीक ठाक था, पर ठीक छ: माह बाद अचानक एक ऐक्सिडेन्ट के कारण उस आदमी का वह हाथ काटना पड़ा।*
*यानि हाथ की ऊर्जा छ: माह पहले ही अपना स्‍थान छोड़ चुकी थी।*
*भारतीय योग तो हजारों साल से कहता आया है कि मनुष्‍य के स्थूल शरीर में कोई भी बिमारी आने से पहले आपके सूक्ष्‍म शरीर में छ: माह पहले आ जाती है। यानि छ: माह पहले अगर सूक्ष्म शरीर पर ही उसका इलाज कर दिया जाये तो बहुत सी बिमारियों पर विजय पाई जा सकती है।*
*इसी प्रकार भारतीय योग कहता है कि मृत्‍यु की घटना भी अचानक नहीं घटती वह भी शरीर पर छ: माह पहले से तैयारी शुरू कर देती है। पर इस बात का एहसास हम क्‍यों नहीं होता।*
*पहली बात तो मनुष्‍य मृत्‍यु के नाम से इतना भयभीत है कि वह इसका नाम लेने से भी डरता है। दूसरा वह भौतिक वस्तुओं के साथ रहते-रहते इतना संवेदन हीन हो गया है कि उसने लगभग अपनी अतीन्द्रिय शक्‍तियों से नाता तोड़ लिया है। वरन और कोई कारण नहीं है।*
*पृथ्‍वी का श्रेष्‍ठ प्राणी इतना दीन हीन। पशु पक्षी भी अतीन्द्रिय ज्ञान में उससे कहीं आगे है।*
*साइबेरिया में आज भी कुछ ऐसे पक्षी हैं जो बर्फ गिरने के ठीक 14 दिन पहले वहां से उड़ जाते हैं। न एक दिन पहले न एक दिन बाद।*
*जापान में आज भी ऐसी चिड़िया पाई जाती है जो भुकम्‍प के12 घन्‍टे पहले वहाँ से गायब हो जाती है।* 
*और भी न जाने कितने पशु-पक्षी हैं जो अपनी अतीन्द्रिय शक्‍ति के कारण ही आज जीवित हैं।*
*भारत में हजारों योगी मरने की तिथि पहले ही घोषित कर देते हैं। अभी ताजा घटना विनोबा भावे जी की है। जिन्‍होंने महीनों  पहले कह दिया था कि में शरद पूर्णिमा के दिन अपनी देह का त्‍याग करूंगा।*
*ठीक महाभारत काल में भी भीष्‍म पितामह ने भी अपने देह त्‍याग के लिए दिन चुना था। कुछ तो हमारे स्थूल शरीर के उपर ऐसा घटता है, जिससे योगी जान जाते हैं कि अब हमारी मृत्‍यु का दिन करीब आ गया है।*
*आम आदमी उस बदलाव को क्‍यों नहीं कर पाता। क्‍योंकि वह अपने दैनिक कार्यो के प्रति सोया हुआ है। योगी थोड़ा सजग हुआ है। वह जागने का प्रयोग कर रहा है। इसी से उस परिर्वतन को वह देख पाता है महसूस कर पाता है।*
*एक उदाहरण। जब आप रात को बिस्तर पर सोने के लिए जाते है। सोने ओर निंद्रा के बीच में एक संध्या काल आता है, एक न्यूटल गीयर, पर वह पल के हज़ारवें हिस्‍से के समान होता है। उसे देखने के लिए बहुत होश चाहिए। आपको पता ही नहीं चल पाता कि कब तक जागे ओर कब नींद में चले गये। पर योगी सालों तक उस पर मेहनत करता है। जब वह उस संध्‍या काल की अवस्था से परिचित हो जाता है। मरने के ठीक छ: महीने पहले मनुष्‍य के चित्त की वही अवस्‍था सारे दिन के लिए हो जाती है। तब योगी समझ जाता है अब मेरी बड़ी संध्‍या का समय आ गया। पर पहले उस छोटी संध्‍या के प्रति सजग होना पड़ेगा। तब महासंध्या के प्रति आप जान पायेंगे।*
*और हमारे पूरे शरीर का स्नायु तंत्र प्राण ऊर्जा का वर्तुल उल्‍टा कर देता है। यानि आप साँसे तो लेंगे पर उसमें प्राण तत्‍व नहीं ले रहे होगें। शरीर प्राण तत्‍व छोड़ना शुरू कर देता है। ध्यान में बैठिए व सजग हो जाइए।*
 *_में खुद से पहले सुला देता हूँ…_*

*_हर रात सारी ख्वाहिशों को_* 
 
*_कमाल यह कि हर सुबह ये_*

 *_मुझसे पहले जाग जाती हैं_*
            🙏 *जय श्री कृष्ण* 🙏

Posted in गंगा माँ

गंगा में विसर्जित अस्थियां आखिर जाती कहां हैं.?

बहुत ही ज्ञानवर्धक लेख अवश्य पढ़े.!

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पतित पावनी गंगा को देव नदी कहा जाता है क्योंकि शास्त्रों के अनुसार गंगा स्वर्ग से धरती पर आई है। मान्यता है कि गंगा श्री हरि विष्णु के चरणों से निकली है और भगवान शिव की जटाओं में आकर बसी है।

श्री हरि और भगवान शिव से घनिष्ठ संबंध होने पर गंगा को पतित पाविनी कहा जाता है। मान्यता है कि गंगा में स्नान करने से मनुष्य के सभी पापों का नाश हो जाता है।

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एक दिन देवी गंगा श्री हरि से मिलने बैकुण्ठ धाम गई और उन्हें जाकर बोली,” प्रभु ! मेरे जल में स्नान करने से सभी के पाप नष्ट हो जाते हैं लेकिन मैं इतने पापों का बोझ कैसे उठाऊंगी? मेरे में जो पाप समाएंगे उन्हें कैसे समाप्त करूंगी?”

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इस पर श्री हरि बोले,”गंगा! जब साधु, संत, वैष्णव आ कर आप में स्नान करेंगे तो आप के सभी पाप घुल जाएंगे।”

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गंगा नदी इतनी पवित्र है की प्रत्येक हिंदू की अंतिम

इच्छा होती है उसकी अस्थियों का विसर्जन गंगा में ही

किया जाए लेकिन यह अस्थियां जाती कहां हैं?

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इसका उत्तर तो वैज्ञानिक भी नहीं दे पाए क्योंकि असंख्य मात्रा में अस्थियों का विसर्जन करने के बाद भी गंगा जल पवित्र एवं पावन है। गंगा सागर तक खोज करने के बाद भी इस प्रश्न का पार नहीं पाया जा सका।

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सनातन धर्म की मान्यता के अनुसार मृत्यु के बाद आत्मा की शांति के लिए मृत व्यक्ति की अस्थि को गंगा में विसर्जन करना उत्तम माना गया है। यह अस्थियां सीधे श्री हरि के चरणों में बैकुण्ठ जाती हैं।

जिस व्यक्ति का अंत समय गंगा के समीप आता है उसे

मरणोपरांत मुक्ति मिलती है। इन बातों से गंगा के प्रति हिन्दूओं की आस्था तो स्वभाविक है।

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वैज्ञानिक दृष्टि से गंगा जल में पारा अर्थात (मर्करी)

विद्यमान होता है जिससे हड्डियों में कैल्शियम और

फोस्फोरस पानी में घुल जाता है। जो जलजन्तुओं के लिए एक पौष्टिक आहार है। वैज्ञानिक दृष्टि से हड्डियों में गंधक (सल्फर) विद्यमान होता है जो पारे के साथ मिलकर पारद का निर्माण होता है। इसके साथ-साथ यह दोनों मिलकर मरकरी सल्फाइड साल्ट का निर्माण करते हैं। हड्डियों में बचा शेष कैल्शियम, पानी को स्वच्छ रखने का काम करता है। धार्मिक दृष्टि से पारद शिव का प्रतीक है और गंधक शक्ति का प्रतीक है। सभी जीव अंततःशिव और शक्ति में ही विलीन हो जाते हैं।…….

हर हर गंगे

ऊँ नम: शिवाय..!!#प्रतिलिपि

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A man who has gone out of his town comes back and finds that his house is on fire.


A man who has gone out of his town comes back and finds that his house is on fire.

It was one of the most beautiful houses in the town, and the man loved the house the most! Many were ready to give double price for the house, but he had never agreed for any price and now it is just burning before his eyes.

And thousands of people have gathered, but nothing can be done, the fire has spread so far that even if you try to put it out, nothing will be saved. So he becomes very sad.

His son comes running and whispers something in his ear:

“Don’t be worried. I sold it yesterday and at a very good price ― three times.

The offer was so good I could not wait for you. Forgive me.”

Father said, “thank God, it’s not ours now!” Then the father is relaxed and became a silent watcher, just like 1000s of other watchers.

Please think about it!

Just a moment before he was not a watcher, he was attached.

It is the same house….the same fire…. everything is the same…but now he is not concerned.
In fact started enjoying it just as everybody else in the crowd.

Then the second son comes running, and he says to the father, “What are you doing? You are smiling ― and the house is on fire?” The father said, “Don’t you know, your brother has sold it.”

He said, “We have taken only advance amount, not settled fully. I doubt now that the man is going to purchase it now.”

Again, everything changes!!

Tears which had disappeared, have come back to the father’s eyes, his smile is no more there, his heart is beating fast. The ‘watcher’ is gone. He is again attached.

And then the third son comes, and he says, “That man is a man of his word. I have just come from him. He said, ‘It doesn’t matter whether the house is burnt or not, it is mine. And I am going to pay the price that I have settled for. Neither you knew, nor I knew that the house would catch on fire.'”

Again the joy is back and family became ‘watchers’! The attachment is no more there.

Actually nothing is changing!

Just the feeling that “I am the owner! I am not the owner of the house!” makes the whole difference.

Posted in काश्मीर - Kashmir

कश्मीर में हुआ था बडा नरसंहार
डोडा नरसंहार – अगस्त १४, १९९३ को बस रोककर १५ हिंदुओं की हत्या कर दी गई ।

संग्रामपुर नरसंहार – मार्च २१, १९९७ घर में घुसकर ७ कश्मीरी पंडितों का अपहरण कर मार डाला गया ।

वंधामा नरसंहार – जनवरी २५, १९९८ को हथियारबंद आतंकियों ने ४ कश्मीरी परिवार के २३ लोगों को गोलियों से भून कर मार डाला ।

प्रानकोट नरसंहार – अप्रैल १७, १९९८ को उधमपुर जिले के प्रानकोट गांव में एक कश्मीरी हिन्दू परिवार के २७ लोगोंको माैत के घाट उतार दिया था, इसमें ११ बच्चे भी थे । इस नरसंहार के बाद डर से पौनी और रियासी के १००० हिंदुओं ने पलायन किया था ।

२००० में अनंतनाग के पहलगाम में ३० अमरनाथ यात्रियों की आतंकियों ने हत्या कर दी थी ।

२० मार्च २००० चित्ती सिंघपोरा नरसंहार होला मना रहे ३६ सिखों की गुरुद्वारे के सामने आतंकियों ने गोली मार कर हत्या कर दी ।

२००१ में डोडा में ६ हिंदुओं की आतंकियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी ।

२००१ जम्मू कश्मीर रेलवे स्टेशन नरसंहार, सेना के रूप में आतंकियों ने रेलवे स्टेशन पर गोलीबारी कर दी, इसमें ११ लोगों की मृत्यु हो गई ।

२००२ में जम्मू के रघुनाथ मंदिर पर आतंकियों ने दो बार आक्रमण किया, पहला ३० मार्च और दूसरा २४ नवंबर को । इन दोनों आक्रमणों में १५ से ज्यादा लोगों की मृत्यु हो गई ।

२००२ क्वासिम नगर नरसंहार, २९ हिन्दू मजदूरों को मारा गया । इनमें १३ महिलाएं और एक बच्चा था ।

२००३ नदिमार्ग नरसंहार, पुलवामा जिले के नदिमार्ग गांव में आतंकियों ने २४ हिंदुओं को मृत्यु के घाट उतार दिया था ।

स्त्रोत : दैनिक भास्कर

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कुछ दिन पहले मेरे पास एक फ्रेंड रिक्वेस्ट आई


 

कुछ दिन पहले मेरे पास एक फ्रेंड रिक्वेस्ट आई ।

यह किसी दिब्या शर्मा के नाम से थी ।

अमूमन मेरे पास पुरुषों की रिक्वेस्ट तो आती रहती हैं…

मगर इस बार एक सुकन्या ने रिक्वेस्ट भेजी थी सो चौंकना स्वभाविक था ।
एक्सैप्ट करने से पहले मैने आदतन उसकी प्रोफाइल को चैक किया

तो पता चला अभी तक उसकी मित्रता सूची में कोई भी नहीं है ।

शक हुआ कि कहीं कोई फेक तो नहीं है ।फिर सोचा नहीं…., हो सकता है

फेसबुक ने इस यूजर को नया मानते हुए इसे मेरे साथ मित्रता करने के लिए सज्जेस्ट   किया हो

प्रोफाइल फोटो नदारद देखकर मैनें अंदाजा लगाया शायद नई हो

और उसे फोटो अपलोड करनी नहीं आती या फिर वो संकोची हो सकती है ,खैर  मैनें रिक्वेस्ट एक्सेप्ट  कर ली ।

सबसे पहले उसकी ओर से धन्यवाद आया फिर मेरे हर स्टेटस  को लाईक और कमेंटस मिलने शुरू हो गए ।
मैं अपने इस नए कद्रदान को पाकर बेहद खुश हुआ, सिलसिला आगे बढ़ा और

अब मेरी निजी जिंदगी से संबधित कमेंटस आने लगे । मेरी पसंद नापसंद को पूछा जाने लगा ।

अब वो कुछ रोमांटिक सी शायरी भी पोस्ट करने लगी थी.

एक दिन मोहतरमा ने पूछा : क्या आप अपनी बीवी से प्यार करते हैं ?

मैनें झट से कह दिया : हाँ.

वो चुप हो गई ।
अगले दिन उसने पूछा : क्या आपकी मैडम सुंदर है ?

इस बार भी मैने वही जवाब दिया :हाँ बहुत सुंदर है ।

अगले दिन वो बोली : क्या आपकी बीवी खाना अच्छा बनाती है?

” बहुत ही स्वादिष्ट” मैनें जवाब दिया ।

फिर कुछ दिन तक वो नजर नहीं आई ।
अचानक कल सुबह उसने मैसेज बाक्स में लिखा “मैं आपके शहर में आई हूँ

क्या आप मुझसे मिलना चाहेंगे”

मैनें कहा : जरूर

“तो ठीक है आ जाइये सिने गार्डन में मिल भी लेंगे और मूवी भी देख लेंगे” ।

मैनें कहा नहीं- “मैडम आप आ जाइये मेरे घर पर, मेरे बीवी बच्चे आपसे मिलकर खुश होंगे ।

मेरी बीवी के हाथ का खाना भी खाकर देखियेगा ।

बोली : नहीं, मैं आपकी मैडम के सामने नहीं आऊँगी ,आपने आना है तो आ जाओ ।
मैंने उसे अपने यहाँ बुलाने की काफी कोशिश की मगर वो नहीं मानी ।

वो बार बार अपनी पसंद की जगह पर बुलाने की जिद पर अड़ी थी

और मैं उसे अपने यहाँ ।

वो झुंझला उठी और बोली : ठीक है मैं वापिस जा रही हूँ । तुम डरपोक अपने घर पर ही बैठो ।

मैनें फिर उसे समझाने का प्रयास किया और सार्वजनिक स्थल पर मिलने के खतरे गिनायें पर वो नहीं मानी ।

हार कर मैंने कह दिया : मुझसे मिलना है तो मेरे परिवार वालों के सामने मिलो नहीं तो अपने घर जाओ ।

वो ऑफलाइन हो गई । शाम को घर पहुँचा,तो डायनिंग टेबल पर लज़ीज खाना सजा हुआ था ।

मैनें पत्नी से पूछा: कोई आ रहा है क्या खाने पर ?

हाँ, दिब्या शर्मा आ रही है ।
क्या !!

वो तुम्हें कहाँ मिली तुम उसे कैसे जानती हो?

“तसल्ली रखिये साहब,

वो  मैं ही थी, आप मेरे जासूसी मिशन के दौरान परीक्षा में पास हुए.

आओ मेरे सच्चे हमसफर, खाना खायें, ठंडा हो रहा है …

टाईम रहते पत्नी का मोबाईल चेक नहीं किया होता तो आज यह पोस्ट करने लायक ना होता । 😃😃😂😂😜😜😜

Men will be men

Posted in जीवन चरित्र

*See what Mr. PM Nair IAS, former Secretary to the late President of India, has to say about Dr. APJ Abdul Kalam.*
DD Podhigai telecast an interview with Mr P M Nair, retired IAS officer, who was the Secretary to Dr Kalam Sir when he was the President. I summarise the points he spoke in a voice choked with emotion. Mr Nair authored a book titled *”Kalam Effect”*
1. Dr Kalam used to receive costly gifts whenever he went abroad as it is customary for many nations to give gifts to the visiting Heads of State. Refusing the gift would become an insult to the nation and an embarrassment for India. So, he received them and on his return, Dr Kalam asked the gifts to be photographed and then catalogued and handed over to the archives. Afterwards, he never even looked at them. He did not take even a pencil from the gifts received when he left Rashtrapathi Bhavan.
2.  In 2002, the year Dr Kalam took over, the Ramadan month came in July-August. it was a regular practice for the President to host an iftar party. Dr Kalam asked Mr Nair why he should host a party to people who are already well fed and asked him to find out how much would be the cost. Mr Nair told it would cost around Rs. 22 lakhs. Dr Kalam asked him to donate that amount to a few selected orphanages in the form of food, dresses and blankets. The selection of orphanages was left to a team in Rashtrapathi Bhavan and Dr Kalam had no role in it. After the selection was made, Dr Kalam asked Mr Nair to come inside his room and gave him a cheque for Rs 1 lakh. He said that he was giving some amount from his personal savings and this should not be informed to anyone. Mr Nair was so shocked that he said “Sir, I will go outside and tell everyone . People should know that here is a man who not only donated what he should have spent but he is giving his own money also”. Dr Kalam though he was a devout Muslim did not have Iftar parties in the years in which he was the President. 
3. Dr Kalam did not like “Yes Sir” type of people. Once when the Chief Justice of India had come and on some point Dr Kalam expressed his view and asked Mr Nair, “Do you agree?” Mr Nair said “No Sir, I do not agree with you”. 
The Chief Justice was shocked and could not believe his ears. It was impossible for a civil servant to disagree with the President and that too so openly. Mr Nair told him that the President would question him afterwards why he disagreed and if the reason was logical 99% he would change his mind.
4. Dr Kalam invited 50 of his relatives to come to Delhi and they all stayed in Rashtrapathi Bhavan. He organised a bus for them to go around the city which was paid for by him. No official car was used. All their stay and food was calculated as per the instructions of Dr Kalam and the bill came to Rs 2 lakhs which he paid. In the history of this country no one has done it. 
Now, wait for the climax, Dr Kalam’s elder brother stayed with him in his room for the entire one week as Dr Kalam wanted his brother to stay with him. When they left, Dr Kalam wanted to pay rent for that room also. Imagine the President of a country paying rent for the room in which he is staying. This was any way not agreed to by the staff who thought the honesty was getting too much to handle!!!.
5.  When Kalam Sir was to leave Rashtrapathi Bhavan at the end of his tenure, every staff member went and met him and paid their respects. Mr Nair went to him alone as his wife had fractured her leg and was confined to bed. Dr Kalam asked why his wife did not come. He replied that she was in bed due to an accident. Next day, Mr.Nair saw lot of policemen around his house and asked what had happened. They said that the President of India was coming to visit him in his house. He came and met his wife and chatted for some time. Mr Nair says that no president of any country would visit a civil servant’s house and that too on such a simple pretext.
I thought I should give the details as many of you may not have seen the telecast and so it may be useful.
The younger brother of AJP Abdul Kalam runs an umbrella repairing shop. When Mr. Nair met him during Kalam’s funeral,  he touched his feet, in token of respect for both Mr. Nair and Brother.
Such information should be widely shared on social media as mainstream media will not show this because it doesn’t carry the so-called TRP value.
*Do forward it to whomever you know and Let the world know it*.Salute to this greatest President of India.🙏👍👍👍👌👌👌🙏🌹💐

Posted in PM Narendra Modi

अम्बानी ,अदानी, सिंघवी, टाटा, बिरला, माल्या, ललित मोदी, 

*ये मोदी के कार्यकाल में अरबपति बने थे क्या ???*
क्या 85 अरबपतियों को जो 90 हजार करोड़ का लोन दिया गया था 

*क्या वो मोदी के समय दिया गया …??*
जिस भी अफसर के घर छापा डाला जाए… तो करोड़ रुपये तो उसके गद्दे के नीचे ही मिल जाते है …

*क्या ये मोदी के काल में कमाए गये ….????*
*किस हद की मूर्खता पूर्ण देश भर में बातें है .*
मोदी के काल में तो माल्या के 8000 करोड़ के लोन के जवाब में ED ने उसकी 9120 करोड़ की संम्पत्ति को कब्जे में ले लिया है ..
*बस यही गलती हुई है कि मोदी अकेला भ्रष्ट लोगो के खिलाफ लड़ रहा है…*
और 
*हमारे देश में नमक और नमकहराम दोनों पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं ….*
व्यक्तिगत रूप से आप *बीजेपी के विरोधी* हो सकते हैं।

बीजेपी की नीतियों के विरोधी हो सकते हैं ये एक सामान्य प्रकिया है.. 

और इसमें कुछ गलत भी नहीं है…
           परंतु आप आलोचक की हद को पार करके *घृणित-निंदक* बनकर *PM की आलोचना* कैसे कर सकते हैं…?😳
               आप उस व्यक्ति की आलोचना कर रहे हैं जो लगभग 15 सालों से CM के बाद, अब PM रहते हुए  भी अपनी सैलेरी राष्ट्र को दान करता आ रहा है PM हाउस में अपना खर्चा स्वं उठाता आ रहा है..।
             *Pm की निंदा-रस* में डूबते समय क्या आपको खयाल आया है कि क्या आपने कभी 1 महीने की सैलेरी राष्ट्र को दान किया है…?🤔😳🤔
    ₹-240 की LPG-Subsidy तो आप छोड़ नहीं पाते, बाकी.. क्या आप में हिम्मत है 1 साल की सैलेरी *राष्ट्र को दान कर दें…?*
         तो फिर आप उस व्यक्ति की निंदा कैसे कर सकते हैं जो 15 सालों  से ये सब करता आ रहा है….?🤔😳😰😡
            3 बार गुजरात का CM रहने के बावजूद किसके पास कोई *बड़ी संपत्ति नहीं* है, परिवार को भी जिसने VIP सुविधाओं से महरूम कर रखा है ।
       जिस PM के विदेशी दौरों को  आप सिर्फ घूमने फिरने  का नाम देते हैं जबकि असली उदेश्य *व्यापारिक समझौते और आपसी सम्बन्ध को सुधारना* होता है।
        एक 66 साल का व्यक्ति 6 दिन में 5 देशों की यात्रा करता 40 महत्वपूर्ण मीटिंग में भाग लेता है। *देश का पैसा बचाने के लिए* ऐसी प्लानिंग करता है जिससे होटल में कम से कम रुका जाए, और, फ्लाइट में नींद पूरी की जाये….

उसके दौरे को आप सिर्फ भ्रमण का नाम देते हैं..

🤔😳🤔
                  अगली बार PM की निंदा करने से पहले *अपने गिरेबान में झांककर देखें* और-

अपने आप से तुलना करें कि जिसकी आप निंदा कर रहे हैं, क्या उसके *पैरों की धूल के बराबर* आप हैं या नहीं..?🤔
अपने देश के प्रधानमंत्री की गरिमा को मज़बूत बनायें  *निवेदन है, यह मैसेज अपने सभी व्हाट्सएप्प कांटेक्ट ओर फेसबुक पर जरूर शेयर करे..* और *उन सभी को कहे की आप भी अपने व्हाट्सएप्प कांटेक्ट ओर फेसबुक दोस्तों में शेयर करे*, हम सब *बलिदान* ना सही पर *देश के लिए इस छोटा सा काम तो कर ही सकते हैं ना:*
*देश को नहीं, पहले खुद को बदलें।*

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तुलसी कौन थी?


*तुलसी कौन थी?*
“`तुलसी(पौधा) पूर्व जन्म मे एक लड़की थी जिस का नाम वृंदा था, राक्षस कुल में उसका जन्म हुआ था बचपन से ही भगवान विष्णु की भक्त थी.बड़े ही प्रेम से भगवान की सेवा, पूजा किया करती थी.जब वह बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में दानव राज जलंधर से हो गया। जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था.

वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी सदा अपने पति की सेवा किया करती थी.

एक बार देवताओ और दानवों में युद्ध हुआ जब जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा“` –

स्वामी आप युद्ध पर जा रहे है आप जब तक युद्ध में रहेगे में पूजा में बैठ कर“` आपकी जीत के लिये अनुष्ठान करुगी,और जब तक आप वापस नहीं आ जाते, मैं अपना संकल्प

नही छोडूगी। जलंधर तो युद्ध में चले गये,और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गयी, उनके व्रत के प्रभाव से देवता भी जलंधर को ना जीत सके, सारे देवता जब हारने लगे तो विष्णु जी के पास गये।
सबने भगवान से प्रार्थना की तो भगवान कहने लगे कि – वृंदा मेरी परम भक्त है में उसके साथ छल नहीं कर सकता ।

फिर देवता बोले – भगवान दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है अब आप ही हमारी मदद कर सकते है।
भगवान ने जलंधर का ही रूप रखा और वृंदा के महल में पँहुच गये जैसे

ही वृंदा ने अपने पति को देखा, वे तुरंत पूजा मे से उठ गई और उनके चरणों को छू लिए,जैसे ही उनका संकल्प टूटा, युद्ध में देवताओ ने जलंधर को मार दिया और उसका सिर काट कर अलग कर दिया,उनका सिर वृंदा के महल में गिरा जब वृंदा ने देखा कि मेरे पति का सिर तो कटा पडा है तो फिर ये जो मेरे सामने खड़े है ये कौन है?
उन्होंने पूँछा – आप कौन हो जिसका स्पर्श मैने किया, तब भगवान अपने रूप में आ गये पर वे कुछ ना बोल सके,वृंदा सारी बात समझ गई, उन्होंने भगवान को श्राप दे दिया आप पत्थर के हो जाओ, और भगवान तुंरत पत्थर के हो गये।
सभी देवता हाहाकार करने लगे लक्ष्मी जी रोने लगे और प्रार्थना करने लगे यब वृंदा जी ने भगवान को वापस वैसा ही कर दिया और अपने पति का सिर लेकर वे

सती हो गयी।
उनकी राख से एक पौधा निकला तब

भगवान विष्णु जी ने कहा –आज से

इनका नाम तुलसी है, और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जायेगा और में

बिना तुलसी जी के भोग“`

“`स्वीकार नहीं करुगा। तब से तुलसी जी कि पूजा सभी करने लगे। और तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ कार्तिक मास में“`

“`किया जाता है.देव-उठावनी एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है !“`
*इस कथा को कम से कम दो लोगों को अवश्य सुनाए आप को पुण्य  अवश्य मिलेगा।  या चार ग्रुप मे प्रेषित करें।*  🙏🙏

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सर्वनाश का द्वार


*_सर्वनाश का द्वार_*

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*एक ब्राह्मण दरिद्रता से बहुत दुखी होकर राजा के यहां धन याचना करने के लिए चल पड़ा। कई दिन की यात्रा करके राजधानी पहुंचा और राजमहल में प्रवेश करने की चेष्टा करने लगा।*

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*उस नगर का राजा बहुत चतुर था। वह सिर्फ सुपात्रों को दान देता था। याचक सुपात्र है या कुपात्र इसकी परीक्षा होती थी। परीक्षा के लिए राजमहल के चारों दरवाजों पर उसने समुचित व्यवस्था कर रखी थी।*

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*ब्राह्मण ने महल के पहले दरवाजे में प्रवेश किया ही था कि एक वेश्या निकल कर सामने आई। उसने राजमहल में प्रवेश करने का कारण ब्राह्मण से पूछा।*

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*ब्राह्मण ने उत्तर दिया कि मैं राजा से धन याचना के लिए आया हूं। इसलिए मुझे राजा से मिलना आवश्यक है ताकि कुछ धन प्राप्तकर अपने परिवार का गुजारा कर लूं।*

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*वेश्या ने कहा- महोदय आप राजा के पास धन मांगने जरूर जाएं पर इस दरवाजे पर तो मेरा अधिकार है। मैं अभी कामपीड़ित हूं। आप यहां से अन्दर तभी जा सकते हैं जब मुझसे रमण कर लें। अन्यथा दूसरे दरवाजे से जाइए।*

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*ब्राह्मण को वेश्या की शर्त स्वीकार न हुई। अधर्म का आचरण करने की अपेक्षा दूसरे द्वार से जाना उन्हें पसंद आया। वहां से लौट आये और दूसरे दरवाजे पर जाकर प्रवेश करने लगे।*

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*दो ही कदम भीतर पड़े होंगे कि एक प्रहरी सामने आया। उसने कहा इस दरवाजे पर महल के मुख्य रक्षक का अधिकार है। यहां वही प्रवेश कर सकता है जो हमारे स्वामी से मित्रता कर ले। हमारे स्वामी को मांसाहार अतिप्रिय है। भोजन का समय भी हो गया है इसलिए पहले आप भोजन कर लें फिर प्रसन्नता पूर्वक भीतर जा सकते हैं। आज भोजन में हिरण का मांस बना है।*

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*ब्राह्मण ने कहा कि मैं मांसाहार नहीं कर सकता। यह अनुचित है। प्रहरी ने साफ-साफ बता दिया कि फिर आपको इस दरवाजे से जाने की अनुमति नहीं मिल सकती। किसी और दरवाजे से होकर महल में जाने का प्रयास कीजिए।*

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*तीसरे दरवाजे में प्रवेश करने की तैयारी कर ही रहा था कि वहां कुछ लोग मदिरा और प्याले लिए बैठे मदिरा पी रहे थे। ब्राह्मण उन्हें अनदेखा करके घुसने लगा तो एक प्रहरी आया और कहा थोड़ा हमारे साथ मद्य पीयो तभी भीतर जा सकते हो। यह दरवाजा सिर्फ उनके लिए है जो मदिरापान करते हैं। ब्राह्मण ने मद्यपान नहीं किया और उलटे पांव चौथे दरवाजे की ओर चल दिया।*

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*चौथे दरवाजे पर पहुंचकर ब्राह्मण ने देखा कि वहां जुआ हो रहा है। जो लोग जुआ खेलते हैं वे ही भीतर घुस पाते हैं। जुआ खेलना भी धर्म विरुद्ध है।*

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*ब्राह्मण बड़े सोच-विचार में पड़ा। अब किस तरह भीतर प्रवेश हो, चारों दरवाजों पर धर्म विरोधी शर्तें हैं। पैसे की मुझे बहुत जरूरत है इसलिए भीतर प्रवेश करना भी जरूरी है। एक ओर धर्म था तो दूसरी ओर धन। दोनों के बीच घमासान युद्ध उसके मस्तिष्क में होने लगा। ब्राह्मण जरा सा फिसला।*

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*उसने सोचा जुआ छोटा पाप है। इसको थोड़ा सा कर लें तो तनिक सा पाप होगा। मेरे पास एक रुपया बचा है। क्यों न इस रुपये से जुआ खेल लूं और भीतर प्रवेश पाने का अधिकारी हो जाऊं। विचारों को विश्वास रूप में बदलते देर न लगी। ब्राह्मण जुआ खेलने लगा। एक रुपये के दो हुए, दो के चार, चार के आठ, जीत पर जीत होने लगी। ब्राह्मण राजा के पास जाना भूल गया और अब जुआ खेलने लगा। जीत पर जीत होने लगी। शाम तक हजारों रुपयों का ढेर जमा हो गया। जुआ बन्द हुआ। ब्राह्मण ने रुपयों की गठरी बांध ली. दिन भर से खाया कुछ न था। भूख जोर से लग रही थी। पास में कोई भोजन की दुकान न थी। ब्राह्मण ने सोचा रात का समय है कौन देखता है चलकर दूसरे दरवाजे पर मांस का भोजन मिलता है वही क्यों न खा लिया जाए?*

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*स्वादिष्ट भोजन मिलता है और पैसा भी खर्च नहीं होता, दोहरा लाभ है। जरा सा पाप करने में कुछ हर्ज नहीं। मैं तो लोगों के पाप के प्रायश्चित कराता हूं। फिर अपनी क्या चिंता है, कर लेंगे कुछ न कुछ। ब्राह्मण ने मांस मिश्रित स्वादिष्ट भोजन को छककर खाया।*

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*अस्वाभाविक भोजन को पचाने के लिए अस्वाभाविक पाचक पदार्थों की जरूरत पड़ती है। तामसी, विकृत भोजन करने वाले अक्सर पान, बीड़ी, शराब की शरण लिया करते हैं। कभी मांस खाया न था। इसलिए पेट में जाकर मांस अपना करतब दिखाने लगा। अब उन्हें मद्यपान की आवश्यकता महसूस हुई। आगे के दरवाजे की ओर चले और मदिरा की कई प्यालियां चढ़ाई। अब वह तीन प्रकार के नशे में थे। धन काफी था साथ में सो धन का नशा, मांसाहार का नशा और मदिरा भी आ गई थी।*

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*कंचन के बाद कुछ का, सुरा के बाद सुन्दरी का, ध्यान आना स्वाभाविक है। पहले दरवाजे पर पहुंचे और वेश्या के यहां जा विराजे। वेश्या ने उन्हें संतुष्ट किया और पुरस्कार स्वरूप जुए में जीता हुआ सारा धन ले लिया।*

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*एक पूरा दिन चारों द्वारों पर व्यतीत करके दूसरे दिन प्रातःकाल ब्राह्मण महोदय उठे। वेश्या ने उन्हें घृणा के साथ देखा और शीघ्र घर से निकाल देने के लिए अपने नौकरों को आदेश दिया। उन्हें घसीटकर घर से बाहर कर दिया गया।*

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*राजा को सारी सूचना पहुंच चुकी थी। ब्राह्मण फिर चारों दरवाजों पर गया और सब जगह खुद ही कहा कि वह शर्तें पूरी करने के लिए तैयार है प्रवेश करने दो पर आज वहां शर्तों के साथ भी कोई अंदर जाने देने को राजी न हुआ। सब जगह से उन्हें दुत्कार दिया गया। ब्राह्मण को न माया मिली न राम! “जरा सा” पाप करने में कोई बड़ी हानि नहीं है, यही समझने की भूल में उसने धर्म और धन दोनों गंवा दिए।*

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*अपने ऊपर विचार करें कहीं ऐसी ही गलतियां हम भी तो नहीं कर रहे हैं। किसी पाप को छोटा समझकर उसमें एक बार फंस जाने से फिर छुटकारा पाना कठिन होता है। जैसे ही हम बस एक कदम नीचे की ओर गिरने के लिए बढ़ा देते हैं फिर पतन का प्रवाह तीव्र होता जाता है और अन्त में बड़े से बड़े पापों के करने में भी हिचक नहीं होती। हर पाप के लिए हम खोखले तर्क भी तैयार कर लेते हैं पर याद रखें जो खोखला है वह खोखला है। छोटे पापों से भी वैसे ही बचना चाहिए जैसे अग्नि की छोटी चिंगारी से सावधान रहते हैं।  सम्राटों के सम्राट परमात्मा के दरबार में पहुंचकर अनन्त रूपी धन की याचना करने के लिए जीव रूपी ब्राह्मण जाता है*

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*प्रवेश द्वार काम, क्रोध लोभ, मोह के चार पहरेदार बैठे हुए हैं। वे जीव को तरह-तरह से बहकाते हैं और अपनी ओर आकर्षित करते हैं। यदि जीव उनमें फंस गया तो पूर्व पुण्यों रूपी गांठ की कमाई भी उसी तरह दे बैठता है जैसे कि ब्राह्मण अपने घर का एक रुपया भी दे बैठा था। जीवन इन्हीं पाप जंजालों में व्यतीत हो जाता है और अन्त में वेश्या सरूपी ममता के द्वार से दुत्कारा जाकर रोता पीटता इस संसार से विदा होता है। रखना कहीं हम भी उस ब्राह्मण की नकल तो नहीं कर रहे हैं। कोई भी व्यक्ति दो के समक्ष कुछ नहीं छुपा सकता। एक तो वह स्वयं और दूसरा ईश्वर। हमारी अंतरात्मा हमें कई बार हल्का सा ही सही एक संकेत देती जाती हैं कि आप जो कर रहे हैं वह उचित नहीं है। हमें सही को चुनना है।*

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विद्वान और विद्यावान में अन्तर


⛳ *विद्वान और विद्यावान में अन्तर*⛳

🔸विद्यावान गुनी अति चातुर ।

राम काज करिबे को आतुर ॥
🔶  एक होता है विद्वान और एक विद्यावान । दोनों में आपस में बहुत अन्तर है । इसे हम ऐसे समझ सकते हैं, रावण विद्वान है और हनुमान जी विद्यावान हैं ।
🔶  रावण के दस सिर हैं । चार वेद और छह: शास्त्र दोनों मिलाकर दस हैं । इन्हीं को दस सिर कहा गया है । जिसके सिर में ये दसों भरे हों, वही दस शीश हैं । रावण वास्तव में विद्वान है । लेकिन विडम्बना क्या है ? सीता जी का हरण करके ले आया । कईं बार विद्वान लोग अपनी विद्वता के कारण दूसरों को शान्ति से नहीं रहने देते । उनका अभिमान दूसरों की सीता रुपी शान्ति का हरण कर लेता है और हनुमान जी उन्हीं खोई हुई सीता रुपी शान्ति को वापिस भगवान से मिला देते हैं । यही विद्वान और विद्यावान में अन्तर है ।
🔶  हनुमान जी गये, रावण को समझाने । यही विद्वान और विद्यावान का मिलन है । हनुमान जी ने कहा —
🔸विनती करउँ जोरि कर रावन ।

सुनहु मान तजि मोर सिखावन ॥
🔶  हनुमान जी ने हाथ जोड़कर कहा कि मैं विनती करता हूँ, तो क्या हनुमान जी में बल नहीं है ? नहीं, ऐसी बात नहीं है । विनती दोनों करते हैं, जो भय से भरा हो या भाव से भरा हो । रावण ने कहा कि तुम क्या, यहाँ देखो कितने लोग हाथ जोड़कर मेरे सामने खड़े हैं ।
🔸कर जोरे सुर दिसिप विनीता ।

भृकुटी विलोकत सकल सभीता ॥
🔶  रावण के दरबार में देवता और दिग्पाल भय से हाथ जोड़े खड़े हैं और भृकुटी की ओर देख रहे हैं । परन्तु हनुमान जी भय से हाथ जोड़कर नहीं खड़े हैं । रावण ने कहा भी —
🔸कीधौं श्रवन सुनेहि नहिं मोही ।

देखउँ अति असंक सठ तोही ॥
🔶  रावण ने कहा – “तुमने मेरे बारे में सुना नहीं है ? तू बहुत निडर दिखता है !” हनुमान जी बोले – “क्या यह जरुरी है कि तुम्हारे सामने जो आये, वह डरता हुआ आये ?” रावण बोला – “देख लो, यहाँ जितने देवता और अन्य खड़े हैं, वे सब डरकर ही खड़े हैं ।”
🔶  हनुमान जी बोले – “उनके डर का कारण है, वे तुम्हारी भृकुटी की ओर देख रहे हैं ।”
🔸भृकुटी विलोकत सकल सभीता ।
🔶  परन्तु मैं भगवान राम की भृकुटी की ओर देखता हूँ । उनकी भृकुटी कैसी है ? बोले —
🔸भृकुटी विलास सृष्टि लय होई ।

सपनेहु संकट परै कि सोई ॥
🔶  जिनकी भृकुटी टेढ़ी हो जाये तो प्रलय हो जाए और उनकी ओर देखने वाले पर स्वप्न में भी संकट नहीं आए । मैं उन श्रीराम जी की भृकुटी की ओर देखता हूँ ।
🔶  रावण बोला – “यह विचित्र बात है । जब राम जी की भृकुटी की ओर देखते हो तो हाथ हमारे आगे क्यों जोड़ रहे हो ?

 

🔸विनती करउँ जोरि कर रावन ।
🔶  हनुमान जी बोले – “यह तुम्हारा भ्रम है । हाथ तो मैं उन्हीं को जोड़ रहा हूँ ।” रावण बोला – “वह यहाँ कहाँ हैं ?” हनुमान जी ने कहा कि “यही समझाने आया हूँ । मेरे प्रभु राम जी ने कहा था —
🔸सो अनन्य जाकें असि

मति न टरइ हनुमन्त ।

मैं सेवक सचराचर

रुप स्वामी भगवन्त ॥
🔶  भगवान ने कहा है कि सबमें मुझको देखना । इसीलिए मैं तुम्हें नहीं, तुझमें भी भगवान को ही देख रहा हूँ ।” इसलिए हनुमान जी कहते हैं —
🔸खायउँ फल प्रभु लागी भूखा ।

और सबके देह परम प्रिय स्वामी ॥
🔶  हनुमान जी रावण को प्रभु और स्वामी कहते हैं और रावण —
🔸मृत्यु निकट आई खल तोही ।

लागेसि अधम सिखावन मोही ॥
🔶  रावण खल और अधम कहकर हनुमान जी को सम्बोधित करता है । यही विद्यावान का लक्षण है कि अपने को गाली देने वाले में भी जिसे भगवान दिखाई दे, वही विद्यावान है । विद्यावान का लक्षण है —
🔸विद्या ददाति विनयं ।

विनयाति याति पात्रताम् ॥
🔶  पढ़ लिखकर जो विनम्र हो जाये, वह विद्यावान और जो पढ़ लिखकर अकड़ जाये, वह विद्वान । तुलसी दास जी कहते हैं —
🔸बरसहिं जलद भूमि नियराये ।

जथा नवहिं वुध विद्या पाये ॥
🔶  जैसे बादल जल से भरने पर नीचे आ जाते हैं, वैसे विचारवान व्यक्ति विद्या पाकर विनम्र हो जाते हैं । इसी प्रकार हनुमान जी हैं – विनम्र और रावण है – विद्वान ।
🔶  यहाँ प्रश्न उठता है कि विद्वान कौन है ? इसके उत्तर में कहा गया है कि जिसकी दिमागी क्षमता तो बढ़ गयी, परन्तु दिल खराब हो, हृदय में अभिमान हो, वही विद्वान है और अब प्रश्न है कि विद्यावान कौन है ? उत्तर में कहा गया है कि जिसके हृदय में भगवान हो और जो दूसरों के हृदय में भी भगवान को बिठाने की बात करे, वही विद्यावान है ।
🔶  हनुमान जी ने कहा – “रावण ! और तो ठीक है, पर तुम्हारा दिल ठीक नहीं है । कैसे ठीक होगा ? कहा कि —
🔸राम चरन पंकज उर धरहू ।

लंका अचल राज तुम करहू ॥
🔶  अपने हृदय में राम जी को बिठा लो और फिर मजे से लंका में राज करो । यहाँ हनुमान जी रावण के हृदय में भगवान को बिठाने की बात करते हैं, इसलिए वे विद्यावान हैं ।
☀  सीख  :  विद्वान ही नहीं बल्कि “विद्यावान” बनने  का प्रयत्न करे ।।