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भगवान आज तो भोजन दे दो


भगवान आज तो भोजन दे दो
हम उस समय गंगा अपार्टमेंट बस स्टैंड गुड़गांव के पास रहते थे, मेरी नाईट शिफ़्ट होती है, मैं सॉफ्टवेयर प्रोफेशनल हूँ, अक्सर घर से ही अमेरिकन MNC के लिए काम करती हूँ, रात को पौने दस पर मुझे एलर्जी हो गयी और घर पर दवाई नहीं थी, ड्राईवर भी अपने घर जा चुका था और बाहर हल्की बारिश की बूंदे जुलाई महीने के कारण बरस रही थी। दवा की दुकान ज्यादा दूर नहीं थी पैदल जा सकते थे लेकिन बारिश की वज़ह से मैंने रिक्शा लेना उचित समझा। बगल में राम मन्दिर बन रहा था एक रिक्शा वाला भगवान की प्रार्थना कर रहा था। मैंने उससे पूंछा चलोगे तो उसने सहमति में सर हिलाया और हम बैठ गए। काफ़ी बीमार लग रहा था और उसकी आँखों में आँशु भी थे।
मैंने पूंछा क्या हुआ भैया रो क्यूँ रहे हो और तुम्हारी तबियत भी ठीक नहीं लग रही, उसने बताया बारिश की वजह से तीन दिन से सवारी नहीं मिली और वह भूखा है बदन दर्द कर रहा है, अभी भगवान से प्रार्थना कर रहा था क़ि मुझे आज भोजन दे दो, मेरे रिक्शे के लिए सवारी भेज दो।
मैं बिना कुछ बोले रिक्शा रोककर दवा की दूकान पर चली गयी, खड़े खड़े सोच रही थी कहीं मुझे भगवान ने तो इसकी मदद के लिए नहीं भेजा। क्योंकि यदि यही एलर्जी आधे घण्टे पहले उठती तो मैं ड्राइवर से दवा मंगाती, रात को बाहर निकलने की मुझे कोई ज़रूरत भी नहीं थी, और पानी न बरसता तो रिक्शे पर भी न बैठती। मन ही मन गुरुदेव को याद किया और कहा मुझे बताइये क्या आपने रिक्शे वाले की मदद के लिए भेजा है। मन में जवाब मिला हाँ। मैंने गुरुदेव को धन्यवाद् दिया, अपनी दवाई के साथ क्रोसीन की टेबलेट भी ली, बगल की दुकान से छोले भटूरे ख़रीदे और रिक्शे पर आकर बैठ गयी। जिस मन्दिर के पास से रिक्शा लिया था वहीँ पहुंचने पर मैंने रिक्शा रोकने को कहा।
उसके हाथ में रिक्शे के 20 रुपये दिए, गर्म छोले भटूरे दिए और दवा देकर बोली। खाना खा के ये दवा खा लेना, एक गोली आज और एक कल। मन्दिर में नीचे सो जाना।
वो रोते हुए बोला, मैंने तो भगवान से दो रोटी मांगी थी मग़र भगवान ने तो मुझे छोले भटूरे दे दिए। कई महीनों से इसे खाने की  इच्छा थी। आज भगवान ने मेरी प्रार्थना सुन ली।और जो मन्दिर के पास उसका बन्दा रहता था उसको मेरी मदद के लिए भेज दिया। कई बातें वो बोलता रहा और मैं स्तब्ध हो सुनती रही।
घर आकर सोचा क़ि उस मिठाई की दुकान में बहुत सारी चीज़े थीं, मैं कुछ और भी ले सकती थी समोसा या खाने की थाली पर मैंने छोले भटूरे ही क्यों लिए? क्या भगवान ने मुझे रात को अपने भक्त की मदद के लिए भेजा था?
हम जब किसी की मदद करने सही वक्त पर पहुँचते हैं तो इसका मतलब उस व्यक्ति की भगवान ने प्रार्थना सुन ली और आपको अपना प्रतिनिधि बना, देवदूत बना उसकी मदद के लिए भेज दिया।

जय श्री राम ⛳🙏🏻

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ઔષધીય બાગ ના રોપાઓ લેવા જુનાગઢ 

                     ઔષધીય બાગ

વનવગડા ગૃપના સર્વે મિત્રોને મારા પ્રણામ હાલના વર્તમાન સમયમાં મોંઘવારી એ એવી માઝા મુકી છે કે ઘણા ખરા ઘરોના બજેટ બગડી જાય છે વ્યવહારીક ખર્ચ, સંતાનો ના શિક્ષણ નો ખર્ચ, ઘર ખર્ચ, મેડિકલ ખર્ચ… વગેરે…. વગેરે.. 

           ત્યારે મને એવો વિચાર આવ્યો કે મેડિકલ ખર્ચ પણ ઘણાખરા ઘરોનું બજેટ બગાડી નાખે છે. તો આ દિશામાં આપણે કંઈક વિચારવું જોઇએ ત્યારે મને એવો વિચાર આવ્યો કે આપણા ગામ દીઠ એક ઔષધીય બાગ હોવો જોઈએ જેમાં જુદા – જુદા ઔષધ નો ઉછેર કરવો જોઈએ જેવાકે.. અરડુસી, ગરમાળો,પુત્રકજીવક, કાંચનાર, મહુડો, અર્જુન, વાયાવરણો, હરડે, રગતરોહીડ, બહેડા, ગળો, નગોડ … વગેરે… વગેરે… જેના થકી પોતે પણ તંદુરસ્ત રહશે અને ગામ & શહેર પણ તંદુરસ્ત રહશે

        અને આવા કાર્ય માં સરકાર ની પણ રાહ ન જોવાય આપણે આપણા માટે, આપણા સંતાનો માટે સંગાવહાલાઓ તથા પર્યાવરણ ના જતન માટે આપણે કંઈક કરવું જોઈએ. “સંતાનો ને સંપત્તિ આપશુ પણ પર્યાવરણ નહીં આપી શકીશું તો”……? 

          આ માટે સૌપ્રથમ તમારે તમારા ગામના મિત્રો, સજ્જન માણસો, વડીલો સહુએ સાથે મળીને વિચારવું જોઈએ કે જગ્યાએ વૃક્ષો ઉછેરવા પંચાયતના ખરાબાની જમીન પડી હોય તો તેમાં શાળામાં, સ્મશાનોમાં ઘરની આજુબાજુ ની ખુલ્લી જગ્યામાં, કોમન પ્લોટમાં, પોતાના ઘરનું આંગણું મોટું હોય તો તેમા વૃક્ષો ની પસંદગી કેવી રીતે કરવી. ગામમાં હાલ કેવા પ્રકારના વૃક્ષો છે. અને કેવા પ્રકારના નથી અને આપણા પર્યાવરણ માં સરળતાથી ઉછરી જાય તેવા પ્રકારના વૃક્ષો ની પસંદગી કરવી વૃક્ષો એકજ પ્રકારના અને બિનઉપયોગી ન ઉછેરવા ( કૌરવો ૧૦૦ હતા અને પાંડવો ૫ હતા એ વાત સમજી ને ઉછેરવા ) જેથી વનસ્પતિ વૈવિધ્યતા જળવાઈ રહે અને લુપ્ત થતી પ્રજાતિ પણ બચી જાય. 
સુચન :- વનવગડા ના ગૃપ મિત્રો તો પર્યાવરણ પ્રેમી હોયજ અને આ ગૃપનો આંકડો તો હજારોને વટાવી ગયો છે તો તમારી આજુબાજુમાં પણ ઘણા માણસો અત્યારે વૃક્ષો ઉછેરતા હોય છે તો તેમને કાને વાત નાખો કે આપણે જુદા જુદા આયુર્વેદિક ઔષધો માં કામ લાગે તેવા વૃક્ષો  વાવો અને એમના તરફથી એમ ઉત્તર મળે કે અમો આવા વૃક્ષો વિશે જાણતા નથી તો તેમને જુદા જુદા વૃક્ષો થી માહિતગાર કરીને વૃક્ષો વવડાવો જેથી આપણી આવનારી પેઢી તંદુરસ્તમય જીવન જીવી શકે અને પર્યાવરણ જળવાઈ રહે…. અસ્તુ 

                        પટેલ ચંદ્રશેખર સી મોરબી 

                           આચાર્ય શ્રી નવા દેરાળા

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द्वार तो खुला हो


!! द्वार तो खुला हो !!
एक बड़ा मंदिर, उस बड़े मंदिर में सौ पुजारी,

बड़े पुजारी ने एक रात स्वप्न देखा है कि

प्रभु ने खबर की है स्वप्न में कि कल मैं आ रहा हूं।

विश्वास तो न हुआ पुजारी को, क्योंकि पुजारियों

से ज्यादा अविश्वासी आदमी खोजना सदा ही कठिन है।

विश्वास इसलिए भी न हुआ कि जो दुकान करते हैं

धर्म की, उन्हें धर्म पर कभी विश्वास नहीं होता।

धर्म से वे शोषण करते हैं, धर्म उनकी श्रद्धा नहीं है।

और जिसने श्रद्धा को शोषण बनाया,

उससे ज्यादा अश्रद्धालु कोई भी नहीं होता।
पुजारी को भरोसा तो न आया कि भगवान आएगा,

कभी नहीं आया। वर्षों से पुजारी है,

वर्षों से पूजा की है, भगवान कभी नहीं आया।

भगवान को भोग भी लगाया है,

वह भी अपने को ही लग गया है।

भगवान के लिए प्रार्थनाएं भी की हैं,

वे भी खाली आकाश में—

जानते हुए कि कोई नहीं सुनता— की हैं।

सपना मालूम होता है।

समझाया अपने मन को कि

सपने कहीं सच होते हैं!

लेकिन फिर डरा भी, भयभीत भी हुआ कि

कहीं सच ही न हो जाए।

कभी—कभी सपने भी सच हो जाते हैं;

कभी—कभी जिसे हम सच कहते हैं,

वह भी सपना हो जाता है,

कभी—कभी जिसे हम सपना कहते हैं,

वह सच हो जाता है।
तो अपने निकट के पुजारियों को उसने कहा कि सुनो,

बड़ी मजाक मालूम पड़ती है, लेकिन बता दूं।

रात सपना देखा कि भगवान कहते हैं कि कल आता हूं।

दूसरे पुजारी भी हंसे; उन्होंने कहा, पागल हो गए!

सपने की बात किसी और से मत कहना,

नहीं तो लोग पागल समझेंगे।

पर उस बड़े पुजारी ने कहा कि

कहीं अगर वह आ ही गया!

तो कम से कम हम तैयारी तो कर लें!

नहीं आया तो कोई हर्ज नहीं,

आया तो हम तैयार तो मिलेंगे।
तो मंदिर धोया गया, पोंछा गया,

साफ किया गया, फूल लगाए गए,

दीये जलाए गए; सुगंध छिडकी गई,

धूप—दीप सब; भोग बना, भोजन बने।

दिन भर में पुजारी थक गए;

कई बार देखा सड़क की तरफ,

तो कोई आता हुआ दिखाई न पड़ा।

और हर बार जब देखा तब लौटकर कहा,

सपना सपना है, कौन आता है!

नाहक हम पागल बने।

अच्छा हुआ, गांव में खबर न की,

अन्यथा लोग हंसते।
सांझ हो गई।

फिर उन्होंने कहा,

अब भोग हम अपने को लगा लें।

जैसे सदा भगवान के लिए लगा

भोग हमको मिला,

यह भी हम ही को लेना पड़ेगा।

कभी कोई आता है!

सपने के चक्कर में पड़े हम,

पागल बने हम— जानते हुए पागल बने।

दूसरे पागल बनते हैं न जानते हुए,

हम…….हम जो जानते हैं

भलीभांति कभी कोई भगवान नहीं आता।

भगवान है कहां?

बस यह मंदिर की मूर्ति है, ये हम पुजारी हैं,

यह हमारी पूजा है, यह व्यवसाय है।

फिर सांझ उन्होंने भोग लगा लिया,

दिन भर के थके हुए वे जल्दी ही सो गए।
आधी रात गए कोई रथ मंदिर के द्वार पर रुका।

रथ के पहियों की आवाज सुनाई पड़ी।

किसी पुजारी को नींद में लगा कि मालूम होता है

उसका रथ आ गया। उसने जोर से कहा,

सुनते हो, जागो! मालूम होता है

जिसकी हमने दिन भर प्रतीक्षा की,

वह आ गया!

रथ के पहियों की जोर—जोर की आवाज सुनाई पड़ती है!
दूसरे पुजारियों ने कहा, पागल, अब चुप भी रहो;

दिन भर पागल बनाया, अब रात ठीक से सो लेने दो।

यह पहियों की आवाज नहीं, बादलों की गड़गड़ाहट है।

और वे सो गए, उन्होंने व्याख्या कर ली।

फिर कोई मंदिर की सीढ़ियों पर चढ़ा, रथ द्वार पर रुका,

फिर किसी ने द्वार खटखटाया,

फिर किसी पुजारी की नींद खुली,

फिर उसने कहा कि मालूम होता है

वह आ गया मेहमान जिसकी हमने प्रतीक्षा की!

कोई द्वार खटखटाता है!
लेकिन दूसरों ने कहा कि कैसे पागल हो,

रात भर सोने दोगे या नहीं?

हवा के थपेडे हैं, कोई द्वार नहीं थपथपाता है।

उन्होंने फिर व्याख्या कर ली, फिर वे सो गए।
फिर सुबह वे उठे, फिर वे द्वार पर गए।

किसी के पद—चिह्न थे, कोई सीढ़ियां चढ़ा था,

और ऐसे पद—चिह्न थे जो बिलकुल अशात थे।

और किसी ने द्वार जरूर खटखटाया था।

और राह तक कोई रथ भी आया था।

रथ के चाको के चिह्न थे।

वे छाती पीटकर रोने लगे।

वे द्वार पर गिरने लगे।

गांव की भीड़ इकट्ठी हो गई।

वह उनसे पूछने लगी, क्या हो गया है तुम्हें?

वे पुजारी कहने लगे, मत पूछो।

हमने व्याख्या कर ली और हम मर गए।

उसने द्वार खटखटाया,

हमने समझा हवा के थपेडे हैं।

उसका रथ आया, हमने समझी

बादलों की गड़गड़ाहट है।

और सच यह है कि हम कुछ भी न समझे थे,

हम केवल सोना चाहते थे, और

इसलिए हम व्याख्या कर लेते थे।
तो वह तो सभी के द्वार खटखटाता है।

उसकी कृपा तो सब द्वारों पर आती है।

लेकिन हमारे द्वार हैं बंद।

और कभी हमारे द्वार पर दस्तक भी दे तो

हम कोई व्याख्या कर लेते हैं।
पुराने दिनों के लोग कहते थे, अतिथि देवता है।

थोड़ा गलत कहते थे। देवता अतिथि है।

देवता रोज ही अतिथि की तरह खड़ा है।

लेकिन द्वार तो खुला हो! उसकी कृपा सब पर है।
ओशो,

जिन खोजा तिन पाइयां–(प्रवचन–4)
साभार : Preeti Bhardwaj

Posted in Love Jihad

लव जिहाद


यक्ष युधिष्ठिर संवाद में यक्ष पूछते हैं- प्रभु यह लव जिहाद क्या है?                                                                       युधिष्ठिर बोलने के मूड में नहीं थे सो यह वाला विज्ञापन पकड़ा देते हैं।

Posted in ज्योतिष - Astrology

वास्तुशास्त्र भारत का अत्यन्त प्राचीन शास्त्र है। प्राचीन काल में वास्तुकला सभी कलाओं की जननी कही जाती थी। आज भी जितने भवन और बिल्डिंग आदि बन रही है अधिकांश में वास्तु के हिसाब से बनाया जा रहा है ,

आइये जानते है वास्तु के कुछ नियम :-वास्तु तीन प्रकार के होते हैं- 

आवासीय – मकान एवं फ्लैट त्र व्यावसायिक -व्यापारिक एवं औद्योगिक त्र धार्मिक- धर्मशाला, जलाशय एवं धार्मिक संस्थान। वास्तु में भूमि का विशेष महत्व है। भूमि चयन करते समय भूमि या मिट्टी की गुणवत्ता का विचार कर लेना चाहिए। भूमि परीक्षण के लिये भूखंड के मध्य में भूस्वामी के हाथ के बराबर एक हाथ गहरा, एक हाथ लंबा एवं एक हाथ चौड़ा गड्ढा खोदकर उसमें से मिट्टी निकालने के पश्चात् उसी मिट्टी को पुनः उस गड्ढे में भर देना चाहिए। ऐसा करने से यदि मिट्टी शेष रहे तो भूमि उत्तम, यदि पूरा भर जाये तो मध्यम और यदि कम पड़ जाये तो अधम अर्थात् हानिप्रद है। अधम भूमि पर भवन निर्माण नहीं करना चाहिये। इसी प्रकार पहले के अनुसार नाप से गड्ढा खोद कर उसमें जल भरते हैं, यदि जल उसमें तत्काल शोषित न हो तो उत्तम और यदि तत्काल शोषित हो जाए तो समझें कि भूमि अधम है। 

भूमि के खुदाई में यदि हड्डी, कोयला इत्यादि मिले तो ऐसे भूमि पर भवन नहीं बनाना चाहिए।

यदि खुदाई में ईंट पत्थर निकले तो ऐसा भूमि लाभ देने वाला होता है।
भूमि का परीक्षण बीज बोकर भी किया जाता है। जिस भूमि पर वनस्पति समय पर उगता हो और बीज समय पर अंकुरित होता हो तो वैसा भूमि उत्तम है। जिस भूखंड पर थके होकर व्यक्ति को बैठने से शांति मिलती हो तो वह भूमि भवन निर्माण करने योग्य है। वास्तु शास्त्र में भूमि के आकार पर भी विशेष ध्यान रखने को कहा गया है

वर्गाकार भूमि सर्वोत्तम, आयताकार भी शुभ होता है। इसके अतिरिक्त सिंह मुखी एवं गोमुखि भूखंड भी ठीक होता है। सिंह मुखी व्यावसायिक एवं गोमुखी आवासीय दृष्टि उपयोग के लिए ठीक होता है। 

किसी भी भवन में प्राकृतिक शक्तियों का प्रवाह दिशा के अनुसार होता है अतः यदि भवन सही दिशा में बना हो तो उस भवन में रहने वाला व्यक्ति प्राकृतिक शक्तियों का सही लाभ उठा सकेगा, किसकी भाग्य वृद्धि होगी।

किसी भी भवन में कक्षों का दिशाओं के अनुसार स्थान इस प्रकार होता है जैसे :-
पूजा कक्ष – ईशान कोण, 

स्नान घर- पूर्व 

रसोई घर-आग्नेय, 

मुखिया का शयन कक्ष- दक्षिण, 

युवा दम्पति का शयन कक्ष वायव्य कोण एवं उत्तर के बीच, 

बच्चों का कक्ष वायव्य एवं पश्चिम, 

अतिरिक्त कक्ष- वायव्य, 

भोजन कक्ष-पश्चिम 

अध्ययन कक्ष- पश्चिम एवं र्नैत्य कोण के बीच, 

कोषागार- उत्तर एवं स्टोर- र्नैत्य कोण 

जल कूप या बोरिंग-उत्तर दिशा या ईशान कोण, 

सीढ़ी घर – र्नैत्य कोण, जल कूप या बोरिंग – उत्तर दिशा या ईशान कोण, 

सीढ़ी घर- नै र्त्य कोण, 

शौचालय- पश्चिम या उत्तर पश्चिम (वायव्य) 

अविवाहित कन्याओं के लिये शयन कक्ष-वायव्य। 
भवन में सबसे आवश्यक कक्ष पूजा घर है।

ईशान कोण पूर्व एवं उत्तर से प्राप्त होने वाली उर्जा का क्षेत्र है। इस कोण के अधिपति शिव हैं, जो व्यक्ति को मानसिक शक्ति प्रदान करते हैं। 

प्रातः कालीन सूर्य की किरणें सर्वप्रथम ईशान कोण पर पड़ती है। इन किरणों में निहित अल्ट्रॉवायलेट किरणों में इतनी शक्ति होती है कि वे स्थान को कीटाणुमुक्त कर पवित्र बनाते हैं। पवित्र स्थान पर पूजा करने से व्यक्ति का ईश्वर के साथ तादात्म्य स्थापित होता है जिससे शरीर में स्फूर्ति, शक्ति का संचार होता है साथ ही भाग्य बली होता है।
आग्नेय कोण में अग्नि के देवता के स्थित होने से भोजन को तैयार करने में सहायता मिलती है एवं भोजन स्वादिष्ट होता है। भोजन बनाते समय गृहणी का मुख पूर्व दिशा में होना चाहिये इसका कारण यह है कि पूर्व दिशा से आने वाली सकारात्मक ऊर्जा गृहणी को शक्ति प्रदान करती है।
ईशान कोण में रसोई नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह जल के क्षेत्र हैं। जल तथा अग्नि में परस्पर शत्रुता है। र्नैत्य कोण में रसोई बनाने से परस्पर शत्रुता पारिवारिक कष्ट एवं अग्नि से दुर्घटनाओं का भय तथा जन-धन की हानि होती है। दक्षिण दिशा के स्वामी यम हैं तथा ग्रह मंगल हैं। यम का स्वभाव आलस्य एवं निद्रा को उत्तन्न करता है। सोने से पहले मनुष्य के शरीर से आलस्य एवं निद्रा की उत्पत्ति होने से मनुष्य को अच्छी नींद आती है। भरपूर नींद के बाद शरीर फिर से तरोताजा हो जाता है। इसीलिए परिवार के मुखिया का शयन कक्ष दक्षिण दिशा में होना चाहिए।
अतिथि गृह का वायव्य कोण में होना लाभप्रद है। इस दिशा के स्वामी वायु होते हैं तथा ग्रह चंद्रमा। वायु एक जगह नहीं रह सकते तथा चंद्रमा का प्रभाव मन पर पड़ता है। अतः वायव्य कोण में अतिथि गृह होने पर अतिथि कुछ ही समय तक रहता है तथा पूर्व आदर-सत्कार पाकर लौट जाता है, जिससे परिवारिक मतभेद पैदा नहीं होते।
वास्तु शास्त्र के आर्षग्रन्थों में बृहत्संहिता के बाद वशिष्ठसंहिता की भी बड़ी मान्यता है तथा दक्षिण भारत के वास्तु शास्त्री इसे ही प्रमुख मानते हैं। इस संहिता ग्रंथ के अनुसार विशेष वशिष्ठ संहिता के अनुसार अध्ययन कक्ष निवृत्ति से वरुण के मध्य होना चाहिए। वास्तु मंडल में निऋति एवं वरुण के मध्य दौवारिक एवं सुग्रीव के पद होते हैं। दौवारिक का अर्थ होता है पहरेदार तथा सुग्रीव का अर्थ है सुंदर कंठ वाला। दौवारिक की प्रकृति चुस्त एवं चौकन्नी होती है। उसमें आलस्य नहीं होती है। अतः दौवारिक पद पर अध्ययन कक्ष के निर्माण से विद्यार्थी चुस्त एवं चौकन्ना रहकर अध्ययन कर सकता है तथा क्षेत्र विशेष में सफलता प्राप्त कर सकता है।
पश्चिम एवं र्नैत्य कोण के बीच अध्ययन कक्ष के प्रशस्त मानने के पीछे एक कारण यह भी है कि यह क्षेत्र गुरु, बुध एवं चंद्र के प्रभाव क्षेत्र में आता है। बुध बुद्धि प्रदान करने वाला, गुरु ज्ञान पिपासा को बढ़ाकर विद्या प्रदान करने वाला ग्रह है।चंद्र मस्तिष्क को शीतलता प्रदान करता है। अतः इस स्थान पर विद्याभ्यास करने से निश्चित रूप से सफलता मिलती है। टोडरमल ने अपने ‘वास्तु सौखयम्’ नामक ग्रंथ में वर्णन किया है कि उत्तर में जलाशय जलकूप या बोरिंग करने से धन वृद्धि कारक तथा ईशान कोण में हो तो संतान वृद्धि कारक होता है। राजा भोज के समयंत्रण सूत्रधार में जल की स्थापना का वर्णन इस प्रकार किया-‘पर्जन्यनामा यश्चाय् वृष्टिमानम्बुदाधिप’। पर्जन्य के स्थान पर कूप का निर्माण उत्तम होता है, क्योंकि पर्जन्य भी जल के स्वामी हैं।
विश्वकर्मा भगवान ने कहा है कि र्नैत्य, दक्षिण, अग्नि और वायव्य कोण को छोड़कर शेष सभी दिशाओं में जलाशय बनाना चाहिये। तिजोरी हमेशा उत्तर, पूर्व या ईशान कोण में रहना चाहिए। इसके अतिरिक्त आग्नेय दक्षिणा, र्नैत्य पश्चिम एवं वायव्य कोण में धन का तिजोरी रखने से हानि होता है। ड्राईंग रूम को हमेशा भवन के उत्तर दिशा की ओर रखना श्रेष्ठ माना गया है, क्योंकि उत्तर दिशा के स्वामी ग्रह बुध एवं देवता कुबेर हैं। वाणी को प्रिय, मधुर एवं संतुलित बनाने में बुध हमारी सहायता करता है। वाणी यदि मीठी और संतुलित हो तो वह व्यक्ति पर प्रभाव डालती है और दो व्यक्तियों के बीच जुड़ाव पैदा करती है।

र्नैत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम) में वास्तु पुरुष के पैर होते हैं। अतः इस दिशा में भारी निर्माण कर भवन को मजबूती प्रदान किया जा सकता है, जिससे भवन को नकारात्मक शक्तियों के प्रभाव से बचाकर सकारात्मक शक्तियों का प्रवेश कराया जा सकता है। अतः गोदाम (स्टोर) एवं गैरेज का निर्माण र्नैत्य कोण में करते हैं।

जिस भूखंड का ईशान कोण बढ़ा हुआ हो तो वैसे भूखंड में कार्यालय बनाना शुभ होता है। वर्गाकार, आयताकार, सिंह मुखी, षट्कोणीय भूखंड पर कार्यालय बनाना शुभ होता है। कार्यालय का द्वार उत्तर दिशा में होने पर अति उत्तम होता है। पूर्वोत्तर दिशा में अस्पताल बनाना शुभ होता है।

रोगियों का प्रतीक्षालय दक्षिण दिशा में होना चाहिए। रोगियों को देखने के लिए डॉक्टर का कमरा उत्तर दिशा में होना चाहिए। डॉक्टर मरीजों की जांच पूर्व या उत्तर दिशा में बैठकर करना चाहिए। आपातकाल कक्ष की व्यवस्था वायव्य कोण में होना चाहिए। यदि कोई भूखंड आयताकार या वर्गाकार न हो तो भवन का निर्माण आयताकार या वर्गाकार जमीन में करके बाकी जमीन को खाली छोड़ दें या फिर उसमें पार्क आदि बना दें। भवन को वास्तु के नियम से बनाने के साथ-साथ भाग्यवृद्धि एवं सफलता के लिए व्यक्ति को ज्योतिषीय उपचार भी करना चाहिए।

सर्वप्रथम किसी भी घर में श्री यंत्र एवं वास्तु यंत्र का होना अति आवश्यक है। श्री यंत्र के पूजन से लक्ष्मी का आगमन होता रहता है तथा वास्तु यंत्र के दर्शन एवं पूजन से घर में वास्तु दोष का निवारण होता है। इसके अतिरिक्त गणपति यंत्र के दर्शन एवं पूजन से सभी प्रकार के विघ्न-बाधा दूर हो जाते हैं। ज्योतिष एवं वास्तु एक-दूसरे के पूरक हैं। बिना प्रारंभिक ज्योतिषीय ज्ञान के वास्तु शास्त्रीय ज्ञान प्राप्त नहीं किया जा सकता और बिना ‘कर्म’ के इन दोनों के आत्मसात ही नहीं किया जा सकता। इन दोनों के ज्ञान के बिना भाग्य वृद्धि हेतु किसी भी प्रकार के कोई भी उपाय नहीं किए जा सकते।

*…….✍🏻 विकास खुराना ♈*

Posted in काश्मीर - Kashmir

#कैलाश_मानसरोवर_यात्रा 
चाइना ने कैलाश मानसरोवर यात्रा रोक दी बहुत ज़ोर शोर के साथ TV पे दिखाया गया वामीयो और काँगियो ने इसे मोदी की विफलता साबित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी ।
चाइना मानसरोवर यात्रा रोक सकता है क्यूँ ना रोके आख़िरकार कैलाश मानसरोवर अब चाइना का हिस्सा है लेकिन वह १९६२ से पहिले भारत में था ।
यह वामपंथियों ने नहीं बताया …… नेहरु प्रधानमंत्री थे और उनका एक लटकन माने चाटुकार रक्षामंत्री नाम था वी के कृष्ण मेनन निहायद मूर्ख और गँवार ….. उसकी योग्यता बस इतनी थी की वह नेहरु का चाटुकार था।
उसने कभी देश की सेना का बल बढ़ाने के बारे में नहीं सोचा बल्कि उनका कहना था की हमारा कोई दुश्मन है नहीं चाइना दोस्त है हिंदी चीनी भाई भाई टाइप वाला और पाकिस्तान से दुश्मनी १९४८ के बाद ख़त्म हो गयी है तो महानुभाव ने संसद में प्रस्ताव रखा की सेना हटा ली जाय और कम कर दी जाय ऑर्डिनेन्स फ़ैक्टरी भी चलाने की ज़रूरत नहीं है । यह सब उनकी राय थी जिससे आप उनकी मूर्खता का अंदाज़ा स्वयं भी लगा सकते हैं !……
फिर क्या चाइना ने आक्रमण कर दिया रक्षामंत्री विदेश घूमने में इतने मगन की की एक हफ़्ते तक सेना भी नहीं भेजी । और जब भेजी तब तक चाइना २६०००० वर्ग किलॉमेटर क़ब्ज़ा कर चुका था जिसमें कैलाश मानसरोवर का भी नाम है हालाँकि सेना अपनी सामर्थ्य भर लड़ी लेकिन हम युद्ध हर गए और समझौते में नेहरु ने वह ज़मीन चाइना के हवाले कर दिया । 
जब संसद में महावीर त्यागी जी ने सवाल उठाया की यह भूमि हमको कब वापस मिलेगी तो नेहरु  जवाब था बंजर ज़मीन है कुछ नहीं उगता जाने दो ! यह कांग्रेसियत है और ऐसे थे हमारे देश के महान प्रथम प्रधानमंत्री जिनको हम चाचा नेहरु बोलते है !

लेकिन मैं तो संघी हूँ तो यह सब झूठ है कहो मैं झूठ बोलियाँ ……

कश्मीर पर कल. 

राणा प्रवीन जी की पोस्ट. 

कापी पेस्ट.

Posted in राजनीति भारत की - Rajniti Bharat ki

JNU


एक था कम्युनिस्ट नाम कामरेड सज्जाद जहीर ……लखनऊ में पैदा हुआ,,

ये मियाँ साहब ,पहले तो progressive writers association यानि अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के रहनुमा बनकर उभरे ,और अपनी किताब अंगारे से इन्होने अपने लेखक होने का दावा पेश किया …………

बाद मे ये जनाब भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सर्वेसर्वा बने , मगर बाबू साहब की रूह मे तो इस्लाम बसता था , इसीलिए 1947 मे नये इस्लामी देश बने ,पाकिस्तान मे जाकर बस गये ,इनकी बेगम रजिया सज्जाद जहीर भी उर्दू की लेखिका थी …….

सज्जाद जहीर , 1948 मे कलकत्ता के कम्युनिस्ट पार्टी के सम्मेलन मे भाग लेने कलकत्ता पहुँचे ,और वहाँ कुछ मुसलमानो ने कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया से अलग होकर CPP यानि कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ पाकिस्तान का गठन कर लिया , जो बांग्लादेश मे तो फली – फूली ……

मगर पाकिस्तान मे , सज्जाद जहीर , मशहूर शायर लेखक फैज अहमद फैज , शायर अहमद फराज , रजिया सज्जाद जहीर ,और कुछ पाकिस्तानी जनरलो ने मिलकर रावलपिंडी षडयंत्र केस मे पाकिस्तान मे सैन्य तख्ता पलट का प्रयास किया और पकडे जाने पर जेल मे डाल दिये गये । सज्जाद जहीर, अहमद फराज और फैज अहमद फैज को लंबी सजाऐ सुनाई गई …….

जेल से रिहा होने के बाद सज्जाद जहीर भारत आया और खुद को शरणार्थी घोषित करके कांग्रेस सरकार से भारतीय नागरिता मांगी ..और कांग्रेस सरकार ने सज्जाद को भारतीय नागरिकता दे दिया …

अब आगे की कथा सुनिये , इन मियाँ साहब, सज्जाद जहीर और रजिया जहीर की चार बेटियाँ थी .

1- नजमा जहीर बाकर , पाकिस्तानी सज्जाद जहीर की सबसे बडी बेटी , जो कि नेहरू के मदरसे ,JNU मे biochemistry की प्रोफेसर है ……..

2- दूसरी बेटी नसीम भाटिया है …………

3- सज्जाद जहीर की तीसरी बेटी है ,नादिरा बब्बर जिसने फिल्म एक्टर और कांग्रेस सांसद राज बब्बर से शादी की है , इनके दो बच्चे है , आर्य बब्बर और जूही बब्बर ……………..

4- सज्जाद जहीर की चौथी और सबसे छोटी बेटी का नाम है नूर जहीर , ये मोहतरमा भी लेखिका है , और JNU से जुडी है ..

नूर जहीर ने शादी नही की और जीवन भर अविवाहित रहने के अपने फैसले पर आज भी कायम है । चूँकि नूर जहीर ने शादी ही नही की , तो बच्चो का तो सवाल ही पैदा नही होता ….. मगर रूकिये , यहाँ आपको निराश होना पडेगा . अविवाहित होने के बावजूद , नूर जहीर के चार बच्चे है , वो भी चार अलग – अलग पुरूषो से ………………..

इन्ही नूर जहीर और ए. दासगुप्ता की दूसरी संतान है पंखुडी जहीर ,अरे नही चौंकिये मत ………

ये वही पंखुडी जहीर है ,जिसने कुछ ही वर्षो पहले दिल्ली मे RSS ऑफिस केशव कुञ्ज के सामने खुलेआम चूमा- चाटी के लिए , किस ऑफ लव ( kiss of love ) के नाम से इवेंट आयोजित किया था । जी हाँ , ये वही है जो कन्हैयाकुमार वाले मामले मे सबसे ज्यादा उछल कूद मचा रही थी । इसे JNU मे कन्हैयाकुमार की सबसे विश्वश्त सहयोगी माना जाता है । खुले आम सिगरेट , शराब , और अनेको व्यसनो की शौकीन ,इन जैसी लडकियाँ जब महिला अधिकारो के नाम पर बवंडर मचाती है। तो सच मे पूछ लेने को दिल करता है ,कि तुम्हारा खानदान क्या है ??????????

और क्या है तुम्हारे संस्कार ???????

बिन ब्याही माँ की ,दो अलग अलग पुरूषो से उत्पन्न चार संतानो मे से एक पंखुडी जहीर जैसी औरते , खुद औरतो के नाम पे जिल्लत का दाग है ………..

शायद ये पोस्ट पाकिस्तान , इस्लामियत , कम्युनिस्टो का सडन भरा अतीत , इनकी मानसिकता , इनका खानदान , और इनके संस्कार बयां करने को काफी है ……….

इन्ही जैसे लोगो ने JNU की इज्जत मे चार चाँद लगा रखे है ………………..

पाकिस्तान मे कम्युनिस्ट पार्टी आज तक 01% वोट भी नही जुटा पाये , कुल 176 वोट मिलते है इन्हे ………

और पाकिस्तानी सज्जाद जहीर की औलादे , कम्युनिस्टो का चोला पहनकर भारत की बर्बादी के नारे लगा रहे है …..

समझ मे आया ???? JNU के कामरेडो का पाकिस्तान प्रेम और कश्मीर के मुद्दे पर नौटंकी करने का असली उद्देश्य ………………….

क्या कारण है कि ये पंखुडी दासगुप्ता ना लिखकर खुद को पंखुडी जहीर लिखती है ……..?????

और हाँ , इसकी सगी मौसी के लडके , नादिरा बब्बर और राज बब्बर की संतान ,फिल्म एक्टर आर्य बब्बर का घर का नाम सज्जाद है ……

वज्ष्णुगुप्त चाणक्य।

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

वो समझदार बहू


वो समझदार बहू
शाम को गरमी थोड़ी थमी तो मैं पड़ोस में जाकर निशा के पास बैठ गई।

आखिर ,उसकी सासू माँ भी तो कई दिनों से बीमार है….. सोचा ख़बर भी ले आऊँ और निशा के पास बैठ भी आऊँ। मेरे बैठे-बैठे पड़ोस में रहने वाली उसकी तीनों देवरानियाँ भी आ गईं। निशा से पूछा ‘‘अम्मा जी, कैसी हैं?’’
और पूछ कर इतमीनान से चाय-पानी पीने लगी।
फिर एक-एक करके अम्माजी की बातें होने लगी।

सिर्फ़ शिकायतें ‘‘जब मैं आई तो अम्माजी ने ऐसा कहा, वैसा कहा, ये किया, वो किया।’’

आधे घंटे तक शिकायते करने के बाद सब ये कहकर चली गईं……. कि उनको शाम का खाना बनाना है….बच्चे इन्तज़ार कर रहे हैं।
उनके जाने के बाद मैं निशा से पूछ बैठी,

निशा अम्माजी, आज एक साल से बीमार हैं और तेरे ही पास हैं।

तेरे मन में नहीं आता कि कोई और भी रखे या इनका काम करे, माँ तो सबकी है।’’
उसका उत्तर सुनकर मैं तो जड़-सी हो गई।

वह बोली, *‘‘बहनजी, मेरी सास सात बच्चों की माँ है। अपने बच्चो को पालने में उनको अच्छी जिंदगी देने में कभी भी अपने सुख की परवाह नही की…. सबकी अच्छी तरह से परवरिश की ……ये जो आप देख रही हैं न मेरा घर, पति, बेटा….बेटी , शानो-शौकत सब मेरी सासुजी की ही देन है।……

अपनी-अपनी समझ है बहनजी । मैं तो सोचती हूँ इन्हें क्या-क्या खिला-पिला दूँ, कितना सुख दूँ, मेरे दोनों बेटे बेटी अपनी दादी मां के पास सुबह-शाम बैठते हैं….. उन्हे देखकर वो मुस्कराती हैं, अपने कमजोर हाथो से वो उन दोनों का माथा चेहरा ओर शरीर सहलाकर उन्हे जी भरकर दुआएँ देती हैँ।
जब मैं सासु माँ को नहलाती, खिलाती-पिलाती हूँ, ओर इनकी सेवा करती हूँ तो जो संतुष्टि के भाव मेरे पति के चेहरे पर आते है उसे देखकर मैं धन्य हो जाती हूँ၊ मन में ऐसा अहसास होता है जैसे दुनिया का सबसे बड़ा सुख मिल गया हो…….

मेरी सासु माँ तो मेरा तीसरा बच्चा बन चुकी हैं………

और ये कहकर वो सुबकसुबक कर रो पड़ी।
मैं इस ज़माने में उसकी यह समझदारी देखकर हैरान थी, मैने उसे अपनी छाती से लगाया और मन ही मन उसे नमन किया और उसकी सराहना की …!

R K Neekhara

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अण्डे में जहर – साकाहारी बने


*अण्डे में जहर*
लोग मुर्गी के अण्डे को शाकाहार कहकर हड़प करने लगे हैं। सारा संसार जानता है कि मुर्गी पक्षी है, जीव है। इसके पेट से अण्डे की उत्पत्ति होती है तो फिर इसको शाकाहार कैसे कहते हैं?

बड़े आश्चर्य और कौतूहल की बात है कि जब संसार भर की सारी शाक-सब्जियां तो धरती माता के पेट से उत्पन्न होती हैं, यह ऐसी कौन-सी सब्जी विशेष हो गई(केवल मांसाहारियों के लिए) जो ईश्वर ने मुर्गी-माता के पेट से पैदा कर दी? जीव के पेट से तो जीव ही पैदा होता है। सिद्धान्त के अनुसार मुर्गी के अण्डे में से इक्कीस दिनों के पश्चात् चूजा या बच्चा निकल जाता है। उस अण्डे में से शाक की भांति मूली, गाजर, बैंगन, तोरई, टमाटर आदि पैदा क्यों नहीं हुए, चूजे या बच्चे (चलते-फिरते) कैसे निकल आए?
आजकल के नए वैज्ञानिक इसके लिए एक और तर्क पेश करते हैं। वे कहते हैं मुर्गी दो प्रकार के अण्डे देती है। एक खाकी infertile (जिसमें बच्चा नहीं होता) और दूसरे Fertile (जिसमें से बच्चा निकलता है।)
इन बुद्धिमानों से कोई यह पूछे कि भाई-क्या मुर्गी के अण्डे देते ही तुम में से कोई वैज्ञानिक या विशेषज्ञ यह बता सकता है कि यह अण्डा जिसे मुर्गी ने अभी-अभी दिया है, उसमें बच्चा है या नहीं? अथवा कौन-सा अण्डा (Fertile or Infertile) है? संसार में कोई एक्सपर्ट एक सप्ताह से पहले इसका निर्णय नहीं कर सकता। क्योंकि कम से कम एक सप्ताह में मशीन के द्वारा यह जांच की जाती है कि यह अण्डा (Fertile या Infertile) है या नहीं।
परन्तु जितने अण्डे खाने वाले हैं, वे जहां से भी अण्डा खरीदते हैं, दुकानदार से यह पूछते हैं कि यह अण्डा ताजा है? दुकानदार फौरन उत्तर देता है कि कल का है ताजा है।

जिन अण्डों को मुर्गी सेती हैं उनकी बात जाने दो। वह तो स्वयं जानती है। जिस अण्डे में से बच्चा नहीं निकलने वाला होता है, मुर्गी सेती ही नहीं। या तो उस अण्डे को अपने पंजों से फोड डालती है या खा जाती है या उसको अपने दड़वे (पंजों के नीचे) से बाहर निकाल देती है। मुर्गी का मालिक उसको खाकी (Infertile) समझ कर उठा लेता है।

अब उन अण्डों की बात है जिनका लोग व्यापार करते हैं अर्थात् जो सैकड़ों-हजारों की संख्या में मुर्गियां पालते हैं, पोल्ट्रीफार्म बनाते हैं। फार्म में तो सैकड़ों-हजारों अण्डे प्रतिदिन प्राप्त होते हैं। पोल्ट्री फार्मिग करने वाले लोगों के पास अण्डे निकालने की मशीन होती है जिसको इन्क्यूबेटर (Incubator) कहते हैं। इसमें हजारों अण्डे एक समय में ही लगाए जाते हैं। परन्तु लगाने से पूर्व उनको लगभग एक सप्ताह कोल्ड स्टोर में रखा जाता है। वहां से अण्डों की छटनी होती है। मशीन के द्वारा यह पता लगा लेते हैं कि कौन से अण्डों में से बच्चा निकल सकता है, उनको इन्क्यूबेटर में लगा देते हैं और शेष कई दिन के बासी, गले-सड़ों को बाजार में भेज देते हैं। ये अण्डे खराब और गन्दे हो जाते हैं। खाने के बिल्कुल योग्य नहीं रहते। इनमें से बदबू आने लग जाती है। इनकी जर्दी और सफेदी दोनों ही काम की नहीं रहती। अधिक लोग इन छटे हुए अण्डों से रोगी हो जाते हैं क्योंकि वे मार्किट में सस्ते मिलते हैं। लोग खाते हैं और मरते हैं।
आज सर्वत्र अण्डे खाने का प्रचार हो रहा है। सम्भवत: कोई परिवार अथवा परिवार का कोई सदस्य बचा होगा इसके प्रयोग से, *कुछ सात्विक प्रवृत्ति के लोगों को छोड़कर अथवा जो आर्य समाजी संस्कार के हैं उनको छोड़ कर।* भारत के प्रत्येक प्रदेश की पाठ्य पुस्तकों में अण्डा, मांस, मछली खाने के पाठ हैं और उनमें अण्डे आदि के खाने की पर्याप्त प्रशंसा और विज्ञापन है। इससे हमारी आने वाली सन्तान के संस्कार बिगड़ते हैं परन्तु हम इस ओर ध्यान ही नहीं देते। ये पाठ्य पुस्तक हमारे बच्चों के लिए विष का काम करती हैं। आज कोई जरा सा रोगी हुआ, दो-तीन दिन के रोग से शरीर में थोड़ी-सी शिथिलता या कमजोरी आई कि डॉक्टर तुरन्त उसको अण्डा, मांस, मछली खाने के लिए अपनी अनुमति ही नहीं अपितु जोर के साथ आदेश भी दे देता है। यदि दुर्भाग्य से कोई सात्विक प्रवृत्ति या धार्मिक विचार का स्त्री-पुरुष न खाए तो वह उसको न अच्छा होने की धमकी के साथ-साथ रोग न ठीक होने की बात भी कहता है और अण्डा न खाने से मर जाने तक के लिए गारन्टी की बात कह देता है।यह हमारे स्वास्थय के दाताओं का हाल है।
वास्तव में देखा जाए तो मुसलमानों और अंग्रेजों ने तो खासकर अन्य भारतीयों की रुचि इस ओर बढ़ाई ही है, इसके साथ यहां के डॉक्टरों ने भी अण्डे खाने के लिए लोगों में रुचि पैदा की है और खाने के लिए लालायित भी किया है। जितने भी रोगी आते हैं, सब ही को अण्डा, मांस, मछली खाने के लिए उत्साहित और अधिकारपूर्ण आदेश देते हैं।
विदेशी डॉक्टरों, प्रोफेसरों, रिसर्च स्कालरों तथा अनुभवियों की राय है कि अण्डों में थोड़ी प्रोटीन है ये हमें कुछ शक्ति देते हैं परन्तु इससे अधिक सोयाबीन में है, जितनी शाक-सब्जी, लोभिया, मटर, चने, मूंग, उड़द जैसी दालों में और बादाम, काजू, पिस्ता, मूंगफली जैसे मेवों में मौजूद है, इतनी अण्डों में नहीं।
विदेशी डॉक्टरों की राय पढ़कर यह अनुमान लगाएं कि वास्तव में अण्डों में विष है। ये अनेक प्रकार के रोगों से भरे पड़े हैं। इनके प्रयोग से हमारा शरीर जीर्ण-शीर्ण ही नहीं अपितु क्षीण होकर हम शीघ्र ही मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं।

विष्णुगुप्त चाणक्य

Posted in खान्ग्रेस

मीरा कुमार अपना नाम Meera न लिखकर Meira मेइरा कुमार क्यों लिखती हैं ..

जानिए जरा ..!!
सोनिया के दरबार में जितने भी खान्ग्रेसी हैं ..

उनको दरबार में तभी एंट्री मिलती है जब वे ईसाई बन चुके होते हैं 
अनेक खान्ग्रेसी नेता …

सत्ता के लिए हिन्दू धर्म छोड़कर ईसाई बन चुके हैं 
ये अपना नाम थोड़ा सा ट्विस्ट करके लिखते हैं 

ताकि हिन्दू सा भी लगे और ईसाई जैसा भी 

हिन्दू मूर्ख बनते रहें 
इनके नाम की ट्विस्टिंग देखिये …
जैसे शीला दीक्षित Sheela न Sheila लिखती हैं 

शोभा ओझा जो शोभा थॉमस ओजा है 

Ojha को Oza लिखती है 

म_नीच तिवारी Tiwari को Tewary लिखता है 
ये सभी गौ माँस खाने वाले 

बीफ खाने वाले ईसाई हैं 
मेइरा Meira भी कन्वर्टेड ईसाई है 

न कि हिन्दू दलित
ऐसे लोग ईसाई बन चुके हैं 

फिर भी ये अनुसूचित जाति के बने रहकर 

हिन्दू दलितों का अधिकार मार रहे हैं 
ईसाईयों में कोई जाति व्यवस्था होती ही नहीं 

इसलिए अगर मेइरा कुमार ईसाई हैं तो इनको दलित कैसे कहा जा सकता है