Posted in खान्ग्रेस

अचानक से.. रातोंरात..
महाकाल शासित मालवा की उर्वर भूमि से पैदा हुए किसान आंदोलन की जड़ें खोद कर सच जानना चाहते हैं.. ?

तो पढ़िए..
(कृपया वास्तविक अन्नदाता बंधु अन्यथा न लें.. यदि गहराई में जाएंगे, तो लेख को अपने समर्थन में पाएंगे)
पश्चिमी मप्र अर्थात मालवा और पूर्वी राजस्थान के दो जिलों से मिल कर अफीम उत्पादन का बड़ा क्षेत्र बनता है।

मप्र में मंदसौर, नीमच और रतलाम की जावरा तहसील तथा राजस्थान के प्रतापगढ़ और चित्तौड़गढ़ के सीमावर्ती क्षेत्रों में अफीम उत्पादन होता है।
जिन लोगों को जानकारी नहीं है उन्हें बता दूं कि अफीम उत्पादन के लिए सरकार से पट्टा लेना होता है। अर्थात एक निश्चित भूमि में निश्चित मात्रा में आप सरकार की अनुमति से अफीम उत्पादन कर सकते हैं।

इस क्षेत्र के किसान अपनी सीमा से अधिक उत्पादन कर लेते हैं। तय मात्रा सरकार को बेच दी जाती है और अतिरिक्त को तस्करों को बेचा जाता है। स्पष्ट है तस्करों से किसान को तगड़ी रकम मिलती है। कई बार तो सरकारी रेट से ५/७ गुना ज्यादा तक दो नंबर में प्राप्त होता है।
अफीम उत्पादन बहुत झंझट और जोखिम का काम है। मात्र सरकार को बेचने के लिए कोई पागल भी अफीम नहीं बोएगा। शीत ऋतु और ग्रीष्म ऋतु के बीच जब बसंत आता है तब जब सुबह सर्दी, दिन में हल्की गर्मी और देर रात से फिर सर्दी होती है तब अफीम के फल डोडे को चीरा लगाकर उसका दूध इकट्ठा किया जाता है। वही दूध अफीम है।अफीम निकलने के बाद डोडा सूख जाता है और उसमें से पोस्ता दाना या खसखस की प्राप्ति होती है। खसखस के बाद बचा हुआ डोडा चूरा नशेड़ी लोग उबाल कर चाय की तरह पीते हैं। अर्थात इस फसल में लीगल उत्पाद मात्र खसखस है।
दो नंबर की अफीम और डोडा चूरा की खुली बिक्री से इस क्षेत्र में गब्बर किसानों के एक खतरनाक वर्ग ने जन्म लिया जो क्षेत्र की सामाजिक संरचना को अपने शिकंजे में रखता है। इस वर्ग में सभी जातियों के किसान हैं। जो जाति कृषि क्षेत्र में अग्रणी है उसके तस्करों का प्रतिशत भी अधिक है। किंतु ये तस्कर प्रचलित तस्करों जैसे नहीं हैं। ये अपने खेत से बाहर निकल कर तस्करी नहीं करते।
यहाँ से इस खेल में मुसलमान एंट्री करता है और ब्राउन शुगर उत्पादन से लेकर हैरोइन बनाने वाले अंतरराष्ट्रीय गिरोहों तक मध्यस्थता करता है। डी कंपनी और पाकिस्तानी एजेंसियां इसमें गहराई तक घुसी हुई हैं।
आजतक इन गब्बर किसानों की श्वास नली अवरुद्ध करने का साहस किसी ने नहीं किया था। क्योंकि हवाला के हमाम में नंगी कॉन्ग्रेस और सेकुलर दलों की नसें ISI के हाथ में थी। हवाला रैकेट का केंद्र दुबई में है और बिना ISI की जानकारी के वहां से एक रुपया भी स्विस बैंक में नहीं जा सकता।
भाजपा के भ्रष्टाचार का धन अधिकतर भारत में ही खपा है इसलिए पूर्ण बहुमत हासिल होते ही हवाला की कमर तोड़ने पर मोदी सरकार तुल गई। इसके बाद डोडा चूरा प्रतिबंध लगाया और अफीम तस्करी पर इतनी तगड़ी घेराबंदी की कि अफीम उत्पादन से जुड़े गब्बरों की सांसें बंद होने लगी। पिछले कुछ महीनों से मंदसौर नीमच से बाहर एक किलो अफीम भी निकल नहीं पा रही थी। क्विंटलों डोडा चूरा सड़ रहा था। पुलिस ने बहुत सख्ती की हुई थी।
हार्दिक पटेल ने इस अवसर को भुनाने में देर नहीं की। हार्दिक पटेल जैसे लोग अंतरराष्ट्रीय स्तर के बड़े खिलाड़ियों के देसी एजेंट हैं। इन खिलाड़ियों का प्रमुख उद्देश्य हर जगह अराजकता पैदा कर विध्वंसक स्थिति निर्मित करना और फिर वहां सरकार गिराकर अपने पिट्ठू बैठाना है। आज हार्दिक पटेल कॉन्ग्रेस में है जो कॉन्ग्रेस के लिए आत्महत्या का संकेत है।
किसान आंदोलन की आड़ में हिंसा और अराजकता पैदा करने का षड़यंत्र हार्दिक पटेल ने रचा जिसे अमली जामा पहनाने का काम किया अफीम तस्करों ने। मीडिया ने इसे पूरी तरह किसान से जोड़ दिया और प्रशिक्षित लोगों ने जनता में पाटीदार समाज को खलनायक घोषित किया।
इस षड़यंत्र को मालवा के परिपेक्ष्य में देखें। आंदोलन की आड़ में क्विंटलों अवैध अफीम और डोडा चूरा ठिकाने लग गया। गब्बरों के पास धन आ गया। पाकिस्तान को स्मैक और हैरोइन बनाने के लिए भारी मात्रा में कच्चा माल मिल गया। भविष्य में यही स्मैक और हैरोइन भारत की नसों में दौड़ाई जाएगी। आपके युवाओं को जिंदा लाश बना दिया जाएगा और इसका मूल दायित्व उन किसानों पर आएगा जो लोभ में अंधे हुए देशद्रोह जैसे घृणित अपराध को भी अपना मौलिक अधिकार मानते हैं। वो समाज भी इसका अपराधी है जो इन तस्करों को सम्मानित करता है।
शेष भारत के किसानों की भी समस्याएं हैं किंतु थाना जलाने के लिए पिपलिया मंडी में कौन गए ???

टी आइ को जान से मारने की घेराबंदी किसने की ???

वो लोग कौन थे जो भीड़ के पीछे मुंह पर कपड़ा लपेटे खड़े होकर अराजकता पैदा करते और आगजनी करके गायब हो जाते???

मृतकों में कुछ लोगों पर नारकोटिक्स विभाग के प्रकरण थे। वे फरार घोषित थे।

जरा किसी कॉन्स्टेबल से मित्रता कीजिए और पता कीजिए। असली कहानी इतनी सीधी नहीं है जितनी मीडिया ने बनाई है।

संजय द्विवेदी

Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

ગોંડલના પ્રજાવત્સલ મહારાજા સર ભગવતસિંહજી


.”આજે ગોંડલના પ્રજાવત્સલ મહારાજા સર ભગવતસિંહજીનો 151મો જન્મદિવસ છે.

Patel Rasik

“ભગા બાપુ”ના હુલામણા નામથી ઓળખાતા આ રાજવીએ એમના શાસનકાળ દરમ્યાન લોકકલ્યાણના એવા અદભૂત કામ કર્યા હતા…સર ભગવતસિંહજીએ એમના શાસનકાળ દરમ્યાન કન્યાકેળવણી ફરજીયાત બનાવી હતી. કોઇ દિકરી શાળાએ ભણવા ન જાય તો એના પિતાને ચારઆના(તે સમયે આખા દિવસની મજૂરી) દંડ કરવામાં આવતો. આજે ગોંડલ રાજ્યની કોઇ વૃધ્ધા તમને અભણ જોવા નહી મળે.ભગા બાપુ સ્ત્રી સ્વાતંત્ર્યના એવા હિમાયતી હતા કે આઝાદી પહેલાના એ સમયે એમણે એના અંગતમદદનિશ તરીકે જમનાબાઇને નિમણૂંક આપી હતી.

ભગા બાપુ હંમેશા દેશી પહેરવેશ જ પસંદ કરતા. એકવખત કોઇએ એને વિદેશી પહેરવેશ માટે વાત કરી ત્યારે ભગાબાપુએ કહેલુ કે હું વિદેશી પહેરવેશ અપનાવું તો પછી મારો ગામડાનો ખેડુ દિલ ખોલીને મારી સાથે વાત ન કરી શકે. પહેરવેશને કારણે અમારા બંને વચ્ચેનું અંતર ખૂબ વધી જાય. મારે પ્રજા અને રાજા વચ્ચેનું અંતર વધારવું નથી પણ ઘટાડવું છે.

કોઇ કલ્પના પણ કરી શકે કે પ્રજા પાસેથી વેરો લીધા સિવાય રાજ્ય ચલાવી શકાય ? ભગવતસિંહજીએ ગોંડલને વેરામૂક્ત રાજ્ય બનાવેલું. રાજયની તિજોરીમાંથી ખોટી રીતે એક આનો પણ ન ખર્ચાય એની આ રાજવી પુરી તકેદારી રાખતા. એકવખત ટાંચણીના ભાવમાં ઉછાળો આવ્યો ત્યારે ટાંચણી ખરીદવાના બદલે એણે બાવળની શૂળો વાપરવા માટેની કચેરીને સુચના આપેલી અને જ્યાં સુધી ટાંચણીના ભાવ ન ઘટ્યા ત્યાં સુધી બાવળની શૂળોથી કામ ચલાવ્યુ. ગોંડલ રાજ્યમાં પધારતા મહાનુભાવોને પણ મહારાજા સાહેબ એની રહેવા જમવાની વ્યવસ્થા કરવા બદલ બીલ આપતા હતા. મહાત્મા ગાંધી, બ્રિટીશ વાઇસરોય અને ગુરુવર રવિન્દ્રનાથ ટાગોરને પણ આવા બિલ ભરવા માટે શરમ કે સંકોચ વગર જણાવી દીધુ હતું.

મહારાજા સાહેબ માટે એમના સંતાનો અને પ્રજા સરખા જ હતા. પ્રજાને પણ એ સંતાનની જેમ જ સાચવતા. ગોંડલ રાજ્યના તમામ ગામડાઓમાંથી રાત્રે ‘સબસલામત’નો પોલીસ પટેલનો ટેલીફોન આવી જાય પછી જ બાપુ આરામ કરવા માટે જતા.( તે સમયે ગોંડલમાં ટેલીફોન લાઇન, રેલ્વે, અંન્ડર ગ્રાઉન્ડ ઇલેટ્રીસીટી અને ગટરની વ્યવસ્થા મહારાજા સાહેબે કરાવી હતી).

પ્રજાની નાની-નાની મુશ્કેલીઓને પણ બહુ મહત્વ આપતા. એકવખત એક ડોશીએ ભગવતસિંહજીને ભારો ચડાવવા માટે વિનંતી કરી. પોતાનો કોઇ પરિચય આપ્યા વગર એમણે સામાન્ય માણસની જેમ ડોશીમાંના માથા પર ભારો મુક્યો. ડોશીએ એ વખતે કહ્યુ કે ભગાબાપુ અમને ‘થાકલા’ બનાવી દે તો કોઇની મદદની જરૂર ન પડે. મહારાજા સાહેબે ડોશીમાં પાસેથી ‘થાકલા’ એટલે શું એ સમજી લીધુ અને પછી રાજ્યના મુખ્ય ઇજનેરને બોલાવીને રાજ્યના તમામ રસ્તાઓ પર એક માઇલના અંતરે આવા થાકલા ઉભા કરી આપવાની સુચના આપી.( આજે પણ અમુક જગ્યાએ આ થાકલાઓ જોવા મળે છે. જેમાં માણસની ઉંચાઇના બે મોટા પથ્થરોની ઉપર એક ત્રીજો પથ્થર મુકેલો હોયે જેના પર ભારો મુકીને મુસાફર આરામ કરી શકે અને જ્યારે એને જવુ હોય ત્યારે ભારો ચડાવવા માટે કોઇ મદદગારની જરુર જ ન પડે).

પુનાની ફર્ગ્યુશન કોલેજમાં દાન આપવાનું હતુ ત્યારે તે લોકોએ કોલેજના કોઇ એક વિભાગને મહારાજા સાહેબ કે એમના પરિવારનું નામ આપવાની દરખાસ્ત મુકી. મહારાજા સાહેબે કહ્યુ કે આ મારી પ્રજાના પૈસા છે મારા નામની કોઇ જરૂર નથી પણ અભ્યાસ માટે મારા રાજ્યના વિદ્યાર્થીઓ માટે થોડી બેઠક અનામત રાખો. આજે પણ ફરગ્યુશન કોલેજમાં ગોંડલ રાજ્યના વિદ્યાર્થીઓ માટેની બેઠક અનામત છે.

ભગાબાપુ જે બાંધકામ કરાવતા એ તમામ બાંધકામના કોન્ટ્રાકટર પાસે બોંડ સાઇન કરાવતા અને વર્ષો સુધી તેનું મેઇન્ટેનન્સ કરવાની જવાબદારી પણ કોન્ટ્રાકટરના માથે નાંખતા. બાંધકામ કેવુ થયુ છે એની ચકાસણી ખૂદ મહારાજા સાહેબ પોતે કરતા અને જો બાંધકામ સહેજ પણ નબળું લાગે તો ચલાવી ન લેતા.

ભગવતસિંહજી વિશે જેટલી વાત કરીએ એટલી ઓછી છે. મને અમારા ભગા બાપુ પ્રત્યે અનહદ પ્રેમ અને આદર છે.

સર ભગવતસિંહજીને એમના 151માં જન્મદિને કોટી કોટી વંદન”🙏

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पूर्ण आस्तिक भगत सिंह एतिहासिक तथ्य


पूर्ण आस्तिक भगत सिंह एतिहासिक तथ्य
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भगत सिंह की फांसी के बाद भारत के लोगों के लिए भगत सिंह हीरो बन गए थे जगह जगह उनके नाम के साथ लोग अंग्रेजों के खिलाफ खड़े हो रहे थे और अंग्रेजी सत्ता हिलने लगी थी तब अंग्रेजों ने इस ज्वाला को रोकने के लिए एक षणयंत्र रचा ,उन्होंने भगत सिंह के नाम का झूठा निबंध एक अंग्रेजी पत्रिका The People में 27 सितंबर 1931 को “Why I am an Atheist” ( मैं नास्तिक क्यों हूँ ) छपा ये निबंध उनकी फांसी के लगभग छः माह बाद छापा गया इस निबंध में एक बात विशेष थी कि ये अंग्रेजों का लिखा हुआ और अंग्रेजी पत्रिका The People में ही छापा गया था जिसमें ईश्वर की आस्था को नकारने के साथ ईश्वर के अस्तित्व पर कई प्रश्न खड़े किये गए थे जिससे सामान्य हिन्दू और सिखों में भगत के प्रति नफ़रत भर जाए और भगत सिंह को अपना हीरो मानना बंद कर दें और इतिहास साक्षी है कि इस लेख के बाद ही भगत सिंह की चर्चा कम होती गयी और जो आन्दोलन अंगेजों के विरुद्ध खडा हो रहा था वह बंद हो गया अंग्रेजों ने अपनी बात को सही सिद्ध करने के लिए भगत सिंह को वामपंथ ,साम्यवाद और समाजवाद से भी जोड़ दिया तथा अन्य कई जगह भी इसी प्रयोग को दोहराया. The People में छपने वाले इस लेख को भगत सिंह ने कब लिखा और ये किसको दिया इस बात का कोई प्रमाण नहीं है,इसी तरह चंद्रशेखर को भी समाजवाद,वामपंथ और नास्तिकवाद से जोड़ते हैं जबकि वे कट्टर धार्मिक व्यक्ति थे उन्होंने जीवन भर जनेऊ का त्याग नहीं किया जो उनके वास्तविक चित्र में भी देखा जा सकता है जबकि NCERT में छपे एक चित्र में उनके जनेऊ को ही हटा दिया गया था क्योंकि वामपंथियों को भगत सिंह और चंद्रशेखर को वामपंथी और नास्तिक घोषित करना है और हम आँखें बंद करके उनके द्वारा प्रचारित झूठ को स्वीकार कर लेते हैं
भगत सिंह पूर्ण आस्तिक और वैदिक थे तथा आर्य समाज को अपना गुरु मानते थे,सत्यार्थ प्रकाश उनकी प्रिय पुस्तक थी
जय श्रीराम
विवेकानंद आर्य

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बहुत ही प्रेरक कथा


बहुत ही प्रेरक कथा

*एक ही घड़ी मुहूर्त में जन्म लेने पर भी सबके कर्म* *और भाग्य अलग अलग क्यों -एक प्रेरक कथा*

एक बार एक राजा ने विद्वान ज्योतिषियों और ज्योतिष प्रेमियों की सभा सभा बुलाकर प्रश्न किया कि

“मेरी जन्म पत्रिका के अनुसार मेरा राजा बनने का योग था मैं राजा बना ,

*किन्तु उसी घड़ी मुहूर्त में अनेक जातकों ने*

*जन्म लिया होगा जो राजा नहीं बन सके क्यों*

इसका क्या कारण है ?

राजा के इस प्रश्न से सब निरुत्तर होगये ..क्या जबाब दें कि एक ही घड़ी मुहूर्त में जन्म लेने पर भी सबके भाग्य अलग अलग क्यों हैं ।

सब सोच में पड़गये । कि अचानक एक वृद्ध खड़े हुये और बोले महाराज की जय हो !

आपके प्रश्न का उत्तर भला कौन दे सकता है , आप यहाँ से कुछ दूर घने जंगल में यदि जाएँ तो

वहां पर आपको एक महात्मा मिलेंगे उनसे आपको उत्तर मिल सकता है ।

राजा की जिज्ञासा बढ़ी और घोर जंगल में जाकर देखा कि एक महात्मा आग के ढेर के पास बैठ कर अंगार (गरमा गरम कोयला ) खाने में व्यस्त हैं ,

सहमे हुए राजा ने महात्मा से जैसे ही प्रश्न पूछा महात्मा ने क्रोधित होकर कहा

“तेरे प्रश्न का उत्तर देने के लिए मेरे पास समय नहीं है मैं भूख से पीड़ित हूँ ।

तेरे प्रश्न का उत्तर यहां से कुछ आगे पहाड़ियों के बीच एक और महात्मा हैं वे दे सकते हैं ।”

राजा की जिज्ञासा और बढ़ गयी,

पुनः अंधकार और पहाड़ी मार्ग पार कर बड़ी कठिनाइयों से राजा दूसरे महात्मा के पास पहुंचा किन्तु यह क्या महात्मा को देखकर राजा हक्का बक्का रह गया ,दृश्य ही कुछ ऐसा था,

*वे महात्मा अपना ही माँस चिमटे से नोच नोच कर खा रहे थे*

राजा को देखते ही महात्मा ने भी डांटते हुए कहा ”

मैं भूख से बेचैन हूँ मेरे पास इतना समय नहीं है ,

आगे जाओ पहाड़ियों के उस पार एक आदिवासी गाँव में एक बालक जन्म लेने वाला है ,

जो कुछ ही देर तक जिन्दा रहेगा सूर्योदय से पूर्व वहाँ पहुँचो वह बालक तेरे प्रश्न का उत्तर का दे सकता है ”

सुन कर राजा बड़ा बेचैन हुआ बड़ी अजब पहेली बन गया मेरा प्रश्न,

उत्सुकता प्रबल थी कुछ भी हो यहाँ तक पहुँच चुका हूँ वहाँ भी जाकर देखता हूँ क्या होता है ।

राजा पुनः कठिन मार्ग पार कर किसी तरह प्रातः होने तक उस गाँव में पहुंचा, गाँव में पता किया और उस दंपति के घर पहुंचकर सारी बात कही और शीघ्रता से बच्चा लाने को कहा

जैसे ही बच्चा हुआ दम्पत्ति ने नाल सहित बालक राजा के सम्मुख उपस्थित किया ।

राजा को देखते ही बालक ने हँसते हुए कहा राजन् ! मेरे पास भी समय नहीं है ,किन्तु अपना उत्तर सुनो लो –

*तुम,मैं और दोनों महात्मा सात जन्म पहले चारों* *भाई व राजकुमार थे*

एकबार शिकार खेलते खेलते हम जंगल में भटक गए। तीन दिन तक भूखे प्यासे भटकते रहे ।

अचानक हम चारों भाइयों को आटे की एक पोटली मिली जैसे तैसे हमने चार बाटी सेकीं और अपनी अपनी बाटी लेकर खाने बैठे ही थे कि भूख प्यास से तड़पते हुए एक महात्मा आ गये ।

अंगार खाने वाले भइया से उन्होंने कहा –

“बेटा मैं दस दिन से भूखा हूँ अपनी बाटी में से मुझे भी कुछ दे दो ,

मुझ पर दया करो जिससे मेरा भी जीवन बच जाय, इस घोर जंगल से पार निकलने की मुझमें भी कुछ सामर्थ्य आ जायेगी ”

इतना सुनते ही भइया गुस्से से भड़क उठे और बोले “तुम्हें दे दूंगा तो मैं क्या आग खाऊंगा ?

चलो भागो यहां से ….।

वे महात्मा जी फिर मांस खाने वाले भइया के निकट आये उनसे भी अपनी बात कही

किन्तु उन भइया ने भी महात्मा से गुस्से में आकर कहा कि “बड़ी मुश्किल से प्राप्त ये बाटी तुम्हें दे दूंगा *तो मैं क्या अपना मांस नोचकर खाऊंगा*

भूख से लाचार वे महात्मा मेरे पास भी आये ,

मुझे भी बाटी मांगी… तथा दया करने को कहा किन्तु

*मैंने भी भूख में धैर्य खोकर कह दिया कि चलो* *आगे बढ़ो मैं क्या भूखा मरुँ*

बालक बोला “अंतिम आशा लिये वो महात्मा हे राजन !

*आपके पास आये , आपसे भी दया की याचना की*

सुनते ही आपने उनकी दशा पर दया करते हुये *ख़ुशी से अपनी बाटी में से आधी बाटी आदर* *सहित उन महात्मा को दे दी*

बाटी पाकर महात्मा बड़े खुश हुए और जाते हुए बोले “

*तुम्हारा भविष्य तुम्हारे कर्म और व्यवहार से फलेगा* ”

बालक ने कहा “इस प्रकार हे राजन !

*उस घटना के आधार पर हम अपना भोग, भोग रहे*

हैं ,

धरती पर एक समय में अनेकों फूल खिलते हैं, किन्तु सबके फल रूप, गुण, आकार-प्रकार, स्वाद में भिन्न होते हैं ” ..।

इतना कहकर वह बालक मर गया ।

*जो असंख्य जीवो के लिए दुर्लभ है*
*वह मनुष्य जन्म हमें दिया*

*जहाँ असंख्य जीवो को कूड़ा ढूंढने पर भी भोजन नहीं मिलता*
*हमे ईश्वर ने धन्यवान कुल में जन्म दिया*

*ईश्वर ने हमपे भरोसा किया कि हम सब जीवो को*
*सुख देंगे इसी लिए ईश्वर ने हमे यह सब कुछ दिया*

*अब भरोसे पर खरा उतरने की बारी हमारी है*

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जवाहरलाल नेहरू अभिनेत्री नरगिस के मामा थे


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Anup Tripathi

मित्रो, पहले सिनेमा मे अच्छे घरो की लडकिया नही जाती थी, तो प्रोड्यूसर्स नौटंकी से या तवायफो के कोठो से लडकिया छांट कर लाते थे, जो अक्सर मुसलमान ही हुआ करती थी पर प्रचार पाने के लिए हिन्दू नाम भी रख लेती थी। उस समय की मशहूर हिरोइने नूरजहाँ, सुरैया, नरगिस, कामिनी कौशल आदि थी। अंग्रेजो के तलुए चाटने वाले नबाव और राजा अय्याशी के लिए तवायफो के यहाॅ जाया करते थे, और बाद मे कुछ नेता भी उस जमात मे शामिल हो गये। अपने जमाने की मशहूर तवायफ जद्दनबाई काफी पैसे वाली थी और उसका मुजरा बहुत ही रईस और पैसे वाले लोग सुनते थे। यह नरगिस (संजयदत्त की माॅ) उसी जद्दनबाई की बेटी थी।एक कम्यूनिस्ट प्रोड्यूसर, जो मुसलमान था, उसने ‘मदर इंडिया’ फिल्म बनाई जिसमे नर्गिस खूब मशहूर हो गयी और सुनील दत्त से उसकी शादी हो गयी।
जगत प्रसिद्ध छिनरा नेहरू हमेशा सुन्दर औरतो के चक्कर मे रहता था, तो नर्गिस के मामले मे ही पीछे क्यो रहता? वह अक्सर नर्गिस से मिलता रहता था और उस समय के क्रान्तिकारी पत्रकार खूब छापते थे।
असल में वह नेहरू की भान्जी थी, पर इस्लामिक मानसिकता वाले नेहरू को भाॅजी या बेटी से क्या लेना देना? उसे तो बस अपनी अय्याशी से मतलव था।
संजयदत्त से गाधी परिवार के सहानुभूति का प्रत्यक्ष प्रमाण नीचे की लाइनों में आपको मिलेगा।

नेहरू की एक और ऐय्याशी…..इसे भी पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए !!

॥ जवाहरलाल नेहरू अभिनेत्री नरगिस के मामा थे ॥

नरगिस की नानी दिलीपा मंगल पाण्डेय के ननिहाल के राजेन्द्र पाण्डेय की बेटी थीं…उनकी शादी 1880 में बलिया में हुई थी लेकिन शादी के एक हफ़्ते के अंदर ही उनके पति गुज़र गए थे…दिलीपा की उम्र उस वक़्त सिर्फ़ 13 साल थी…उस ज़माने में विधवाओं की ज़िंदगी बेहद तक़लीफ़ों भरी होती थी…ज़िंदगी से निराश होकर दिलीपा एक रोज़ आत्महत्या के इरादे से गंगा की तरफ़ चल पड़ीं लेकिन रात में रास्ता भटककर मियांजान नाम के एक सारंगीवादक के झोंपड़े में पहुंच गयीं जो तवायफ़ों के कोठों पर सारंगी बजाता था।

मियांजान के परिवार में उसकी बीवी और एक बेटी मलिका थे… वो मलिका को भी तवायफ़ बनाना चाहता था…दिलीपा को मियांजान ने अपने घर में शरण दी…और फिर मलिका के साथ साथ दिलीपा भी धीरेधीरे तवायफ़ों वाले तमाम तौर-तरीक़े सीख गयीं और एक रोज़ चिलबिला की मशहूर तवायफ़ रोशनजान के कोठे पर बैठ गयीं।

रोशनजान के कोठे पर उस ज़माने के नामी वक़ील मोतीलाल नेहरू का आना जाना रहता था जिनकी पत्नी पहले बच्चे के जन्म के समय गुज़र गयी थी…दिलीपा के सम्बन्ध मोतीलाल नेहरू से बन गए…इस बात का पता चलते ही मोतीलाल के घरवालों ने उनकी दूसरी शादी लाहौर की स्वरूप रानी से करा दी जिनकी उम्र उस वक़्त 15 साल थी…इसके बावजूद मोतीलाल ने दिलीपा के साथ सम्बन्ध बनाए रखे…इधर दिलीपा का एक बेटा हुआ जिसका नाम मंज़ूर अली रखा गया…उधर कुछ ही दिनों बाद 14 नवम्बर 1889 को स्वरूपरानी ने जवाहरलाल नेहरू को जन्म दिया।

साल 1900 में स्वरूप रानी ने विजयलक्ष्मी पंडित को जन्म दिया और 1901 में दिलीपा के जद्दनबाई पैदा हुईं…अभिनेत्री नरगिस इन्हीं जद्दनबाई की बेटी थीं…मंज़ूर अली आगे चलकर मंज़ूर अली सोख़्त के नाम से बहुत बड़े मज़दूर नेता बने…और साल 1924 में उन्होंने यह कहकर देशभर में सनसनी फैला दी कि मैं मोतीलाल नेहरू का बेटा और जवाहरलाल नेहरू का बड़ा भाई हूं।

उधर एक रोज़ लखनऊ नवाब के बुलावे पर जद्दनबाई मुजरा करने लखनऊ गयीं तो दिलीपा भी उनके साथ थी…जवाहरलाल नेहरू कांग्रेस के किसी काम से उन दिनों लखनऊ में थे…उन्हें पता चला तो वो उन दोनों से मिलने चले आए…दिलीपा जवाहरलाल नेहरू से लिपट गयीं और रो-रोकर मोतीलाल नेहरू का हालचाल पूछने लगीं…मुजरा ख़त्म हुआ तो जद्दनबाई ने जवाहरलाल नेहरू को राखी बांधी।

साल 1931 में मोतीलाल नेहरू ग़ुज़रे तो दिलीपा ने अपनी चूड़ियां तोड़ डालीं और उसके बाद से वो विधवा की तरह रहने लगी।

(गुजराती के वरिष्ठ लेखक रजनीकुमार पंड्या जी की क़िताब ‘आप की परछाईयां’ से उद्धृत अंश।)

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विजय माल्या


#तनिक_इधर_भी_गौर_फरमाये ..

#कांग्रेस द्वारा बार बार मोदी सरकार पर उद्योगपतियों को संरक्षण दिये जाने का आरोप लगाया जाता रहा है, जबकि सच्चाई इससे ठीक विपरीत है, आओ कुछ आकडो द्वारा यह जानने का प्रयास करते हैं कि उन उद्योगपतियों को हजारों हजार करोड के ऋण आखिरकार किसने दिया..?
सिर्फ एक विजय माल्या ही नहीं थे जिसको कांग्रेस सरकार ने 9000 करोड़ का लोन दिया और वो फुर्र हो गए । कांग्रेस ने अपने मित्र उद्योगपतियों को किस दरियादिली से लोन बांटे एक बानगी देखिए –

1. भूषण स्टील 90,000 करोड़
2. वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज 58,000 करोड़
3.जेपी ग्रुप 55,000 करोड़
4 एस्सार लिमिटेड 50,000 करोड़
5.जिंदल ग्रुप 38,000 करोड़
6.आलोक इंडस्ट्रीज 25,000 करोड़
7. लैंको 19,000 करोड़
8. एबीजी शिपयार्ड 15,000 करोड़
9.पुंज लॉयड 14,000 करोड़
10. इलेक्ट्रोस्टील 14,000 करोड़
11. अबान होल्डिंग 13,000 करोड़
12. मोंनेट इस्पात 12,000 करोड़
13.प्रयागराज पावर 12,000 करोड़
14.एरा ग्रुप। 7,000 करोड़

अपनी करनी को छुपाने के लिए #कांग्रेस के युवराज चीख चीख कर देश को गुमराह कर रहे हैं कि देश की सारी पूंजी सिर्फ कुछ उद्योगपतियों के हाथ मे है और उन्हें बचाया जा रहा है और किसानों का कर्ज माफ नही किया जा रहा । कितनी बेशर्मी से कांग्रेस अपनी करनी का हिसाब मोदी सरकार से मांग रही है ।देखिए इन शैतानो ने देश की अर्थव्यवस्था के साथ कितना बड़ा खिलवाड़ किया ।
पर फिर भी सरकार चुप नहीं बैठी है और पूर्ववर्ती सरकार द्वारा मित्र उद्योगपतियों को कर्ज़ के रूप में दिए गए हज़ारों करोड़ रुपये जो एनपीए बन चुके हैं , को वापस वसूलने का खाका बना चुकी है । सरकार हाल ही में बनाये गए नए बैंकरप्सी इंसाल्वेंसी कानून के मदत से कुल 30 ऐसे डिफॉल्टरों,जो 95% एनपीए के जिम्मेदार हैं, से फ़ेज्ड मैनर में वसूली करने जा रही है ।
आज प्रथम चरण में 12 ऐसे लोगों के खिलाफ जो 25 % कुल एनपीए के जिम्मेदार हैं से वसूली के लिए नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया है ।
अगले चरण में बाकियों पर शिकंजा कसने जा रहा है । बचेगा कोई नहीं चाहे कितनी कोशिश कर ले ।

#ग़द्दार_घोटालेबाज़_कांग्रेस
1987 – बोफोर्स तोप घोटाला, 960 करोड़
1992 – शेयर घोटाला, 5,000 करोड़।।
1994 – चीनी घोटाला, 650 करोड़
1995 – प्रेफ्रेंशल अलॉटमेंट घोटाला, 5,000 करोड़
1995 – कस्टम टैक्स घोटाला, 43 करोड़
1995 – कॉबलर घोटाला, 1,000 करोड़
1995 – दीनार / हवाला घोटाला, 400 करोड़
1995 – मेघालय वन घोटाला, 300 करोड़
1996 – उर्वरक आयत घोटाला, 1,300 करोड़
1996 – चारा घोटाला, 950 करोड़
1996 – यूरिया घोटाला, 133 करोड
1997 – बिहार भूमि घोटाला, 400 करोड़
1997 – म्यूच्यूअल फण्ड घोटाला, 1,200 करोड़
1997 – सुखराम टेलिकॉम घोटाला, 1,500 करोड़
1997 – SNC पॉवेर प्रोजेक्ट घोटाला, 374 करोड़
1998 – उदय गोयल कृषि उपज घोटाला, 210 करोड़
1998 – टीक पौध घोटाला, 8,000 करोड़
2001 – डालमिया शेयर घोटाला, 595 करोड़
2001 – UTI घोटाला, 32 करोड़
2001 – केतन पारिख प्रतिभूति घोटाला, 1,000 करोड़
2002 – संजय अग्रवाल गृह निवेश घोटाला, 600 करोड़
2002 – कलकत्ता स्टॉक एक्सचेंज घोटाला, 120 करोड़
2003 – स्टाम्प घोटाला, 20,000 करोड़
2005 – आई पि ओ कॉरिडोर घोटाला, 1,000 करोड़
2005 – बिहार बाढ़ आपदा घोटाला, 17 करोड़
2005 – सौरपियन पनडुब्बी घोटाला, 18,978 करोड़
2006 – पंजाब सिटी सेंटर घोटाला, 1,500 करोड़
2008 – काला धन, 2,10,000 करोड
2008 – सत्यम घोटाला, 8,000 करोड
2008 – सैन्य राशन घोटाला, 5,000 करोड़
2008 – स्टेट बैंक ऑफ़ सौराष्ट्र, 95 करोड़
2008 – हसन् अली हवाला घोटाला, 39,120 करोड़
2009 – उड़ीसा खदान घोटाला, 7,000 करोड़
2009 – चावल निर्यात घोटाला, 2,500 करोड़
2009 – झारखण्ड खदान घोटाला, 4,000 करोड़
2009 – झारखण्ड मेडिकल उपकरण घोटाला, 130 करोड़
2010 – आदर्श घर घोटाला, 900 करोड़
2010 – खाद्यान घोटाला, 35,000 करोड़
2010 – बैंड स्पेक्ट्रम घोटाला, 2,00,000 करोड़
2011 – 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला, 1,76,000 करोड़
2011 – कॉमन वेल्थ घोटाला, 70,000 करोड़
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जय हिन्द ..🇮🇳

जय हिन्द ..🇮🇳

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મહારાષ્ટ્રના એક નાના એવા શહેરમાં રહેતો


મહારાષ્ટ્રના એક નાના એવા શહેરમાં રહેતો એક રિક્ષા ડ્રાઇવર માંડ માંડ કરીને એનું જીવન નિર્વાહ કરતો હતો. એક સાંધે ત્યાં તેર તૂટે જેવી પરિસ્થિતિમાં ટકી રહેવા માટે આ ઓટો રિક્ષા ચલાવનાર ભાઈએ એના મોટા દીકરાને ભણતો ઉઠાડી લેવાનો નિર્ણય કર્યો. મોટો દીકરો હજુ ચોથા ધોરણમાં ભણતો હતો એટલે બિચારો માંડ 10 વર્ષનો હશે.

શાળાએ જઈને દીકરાનું નામ કમી કરવાનું કહ્યું એટલે એક શિક્ષકે આમ કરવા પાછળનું કારણ પૂછ્યું. રિક્ષા ડ્રાઈવરે શિક્ષકને કહ્યું,”સાહેબ, ગરીબનું નસીબ પણ ગરીબ જ હોય. આ ભણી ગણીને શું કરવાનો છે ? આમ પણ કોઈ નોકરી તો મળવાની નથી તો ભણાવાથી શું ફાયદો ? જો મને કામમાં મદદ કરે તો ઘર ચલાવવામાં અનુકૂળતા રહે.” શિક્ષકે આ ભાઈને શિક્ષણનું મહત્વ સમજાવ્યું અને છોકરાનો અભ્યાસ ચાલુ રાખવા માટે મનાવી લીધા.

એકદિવસ કોઈ પોલિસવાળાએ આ રિક્ષા ડ્રાઈવર પાસે લાંચ માંગી. રોજનું કમાઈને રોજ ખાતા હોય અને એમાં કોઈને લાંચ તરીકે મોટી રકમ ધરી દેવાની થાય તો કેવી તકલીફ પડે એતો જેને અનુભવ્યુ હોય એને સમજાય. રિક્ષા ડ્રાઈવર ઘરે આવ્યો અને બધી વાત કરી. પેલા છોકરાને આ વાતથી ખૂબ આઘાત લાગ્યો. એને ત્યારે જ નક્કી કર્યું કે મારે મોટા થઈને અધિકારી બનવું છે અને લોકોની સેવા કરવી છે. જ્યારે છોકરાએ પરિવારના બધા સભ્યોને એના સપના વિષે કહ્યું ત્યારે બધાને કદાચ હસવું આવ્યું હશે પણ છોકરો એના જીવનનું ધ્યેય નક્કી કરી ચુક્યો હતો.

એ છોકરાએ હવે પોતાની પૂરી શક્તિ સરકારી અધિકારી બનાવા માટે લગાવી. યુપીએસસીની પરીક્ષા પાસ કરીને સીધા જ કલેકટર બનવા માટે તનતોડ મહેનત કરી. પોતાનો ખર્ચો કાઢવા માટે એ ભણતા ભણતા એક હોટેલમાં વેઈટર તરીકે કામ પણ કરતો હતો. જ્યારે એ કોલેજ કરતો ત્યારે ઘણીવખત તો બે-ત્રણ દિવસ સુધી કઈ જ ખાવાનું ના મળે તો માત્ર ચા પાણી પીને પણ ચલાવે કારણકે એને તો એની મંઝિલ જ દેખાતી હતી. યુપીએસસીની પરીક્ષા માટે ઓછામાં ઓછી 21 વર્ષની ઉંમર જરૂરી છે આ છોકરાએ 21વર્ષ અને 8 દિવસ પુરા કર્યા અને પરીક્ષા આપી. પ્રથમ પ્રયાસમાં જ વિશ્વની સૌથી અઘરી ગણાતી પરીક્ષા એણે પાસ પણ કરી લીધી અને એ છોકરો માત્ર 21 વર્ષની ઉંમરે ભારત દેશનો સૌથી યુવાન આઈએએસ ઓફિસર બની ગયો.

મહારાષ્ટ્રના જાલનના વતની આ છોકરાનું નામ છે અંસાર શેખ. અંસારે સખત પુરુષાર્થના સથવારે એના ધ્યેયને હાંસલ કર્યું અને માતાપિતાને ગૌરવ અપાવ્યું.

મિત્રો, જીવનમાં કંઈ જ અશક્ય નથી. ધ્યેય નક્કી કરીને એને પ્રાપ્ત કરવા માટેના પ્રામાણિક પ્રયાસો કરવામાં આવે તો ભગવાનની કૃપા થાય જ.

શૈલેષ સગપરીયા

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એકવાર એક છોકરાને એના બાપે માર્યો


એકવાર એક છોકરાને એના બાપે માર્યો.. છોકરો રોવા લાગ્યો, તો બાપે કીધું sorry …

છોકરાએ એના બાપના હાથમાં એક કાગળ આપ્યો અને કહ્યું:
આ કાગળ લો, ફોલ્ડ કરીને હાથમાં મસળી નાખો. અને એને કહો sorry, શું એ પહેલા જેવો પાછો થઇ જશે.??

બાપે છોકરાને બહાર લઇ જઈને કહ્યું.
જો આ મારું સ્કુટર પડ્યું છે. એને અડ્યા વગર ચાલુ કર,
થયું? નઈ ને?
હવે એને બે-ચાર કિક માર.
જો થઇ ગયુંને ચાલુ..!
નાલાયક તું પણ સ્કુટર છે, પેપર નઈ…
નેક્સ ટાઇમ તારું આ facebook અને what’s app વાળું જ્ઞાન તારા બાપને નાં આપતો. સમજ્યો..???

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एक_अनोखा__तलाक


(((#एक_अनोखा__तलाक)))……जरूर पढ़े

Upma Jha 

 

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हुआ यों कि पति ने पत्नी को किसी बात पर तीन थप्पड़ जड़ दिए, पत्नी ने इसके जवाब में अपना सैंडिल पति की तरफ़ फेंका, सैंडिल का एक सिरा पति के सिर को छूता हुआ निकल गया।

मामला रफा-दफा हो भी जाता, लेकिन पति ने इसे अपनी तौहिनी समझी, रिश्तेदारों ने मामला और पेचीदा बना दिया, न सिर्फ़ पेचीदा बल्कि संगीन, सब रिश्तेदारों ने इसे खानदान की नाक कटना कहा, यह भी कहा कि पति को सैडिल मारने वाली औरत न वफादार होती है न पतिव्रता।

इसे घर में रखना, अपने शरीर में मियादी बुखार पालते रहने जैसा है। कुछ रिश्तेदारों ने यह भी पश्चाताप जाहिर किया कि ऐसी औरतों का भ्रूण ही समाप्त कर देना चाहिए।

बुरी बातें चक्रवृत्ति ब्याज की तरह बढ़ती है, सो दोनों तरफ खूब आरोप उछाले गए। ऐसा लगता था जैसे दोनों पक्षों के लोग आरोपों का वॉलीबॉल खेल रहे हैं। लड़के ने लड़की के बारे में और लड़की ने लड़के के बारे में कई असुविधाजनक बातें कही।
मुकदमा दर्ज कराया गया। पति ने पत्नी की चरित्रहीनता का तो पत्नी ने दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज कराया। छह साल तक शादीशुदा जीवन बीताने और एक बच्ची के माता-पिता होने के बाद आज दोनों में तलाक हो गया।

पति-पत्नी के हाथ में तलाक के काग़ज़ों की प्रति थी।
दोनों चुप थे, दोनों शांत, दोनों निर्विकार।
मुकदमा दो साल तक चला था। दो साल से पत्नी अलग रह रही थी और पति अलग, मुकदमे की सुनवाई पर दोनों को आना होता। दोनों एक दूसरे को देखते जैसे चकमक पत्थर आपस में रगड़ खा गए हों।

दोनों गुस्से में होते। दोनों में बदले की भावना का आवेश होता। दोनों के साथ रिश्तेदार होते जिनकी हमदर्दियों में ज़रा-ज़रा विस्फोटक पदार्थ भी छुपा होता।

लेकिन कुछ महीने पहले जब पति-पत्नी कोर्ट में दाखिल होते तो एक-दूसरे को देख कर मुँह फेर लेते। जैसे जानबूझ कर एक-दूसरे की उपेक्षा कर रहे हों, वकील औऱ रिश्तेदार दोनों के साथ होते।

दोनों को अच्छा-खासा सबक सिखाया जाता कि उन्हें क्या कहना है। दोनों वही कहते। कई बार दोनों के वक्तव्य बदलने लगते। वो फिर सँभल जाते।
अंत में वही हुआ जो सब चाहते थे यानी तलाक …………….

पहले रिश्तेदारों की फौज साथ होती थी, आज थोड़े से रिश्तेदार साथ थे। दोनों तरफ के रिश्तेदार खुश थे, वकील खुश थे, माता-पिता भी खुश थे।

तलाकशुदा पत्नी चुप थी और पति खामोश था।
यह महज़ इत्तेफाक ही था कि दोनों पक्षों के रिश्तेदार एक ही टी-स्टॉल पर बैठे , कोल्ड ड्रिंक्स लिया।
यह भी महज़ इत्तेफाक ही था कि तलाकशुदा पति-पत्नी एक ही मेज़ के आमने-सामने जा बैठे।

लकड़ी की बेंच और वो दोनों …….
”कांग्रेच्यूलेशन …. आप जो चाहते थे वही हुआ ….” स्त्री ने कहा।
”तुम्हें भी बधाई ….. तुमने भी तो तलाक दे कर जीत हासिल की ….” पुरुष बोला।

”तलाक क्या जीत का प्रतीक होता है????” स्त्री ने पूछा।
”तुम बताओ?”
पुरुष के पूछने पर स्त्री ने जवाब नहीं दिया, वो चुपचाप बैठी रही, फिर बोली, ”तुमने मुझे चरित्रहीन कहा था….
अच्छा हुआ…. अब तुम्हारा चरित्रहीन स्त्री से पीछा छूटा।”
”वो मेरी गलती थी, मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था” पुरुष बोला।
”मैंने बहुत मानसिक तनाव झेली है”, स्त्री की आवाज़ सपाट थी न दुःख, न गुस्सा।

”जानता हूँ पुरुष इसी हथियार से स्त्री पर वार करता है, जो स्त्री के मन और आत्मा को लहू-लुहान कर देता है… तुम बहुत उज्ज्वल हो। मुझे तुम्हारे बारे में ऐसी गंदी बात नहीं करनी चाहिए थी। मुझे बेहद अफ़सोस है, ” पुरुष ने कहा।

स्त्री चुप रही, उसने एक बार पुरुष को देखा।
कुछ पल चुप रहने के बाद पुरुष ने गहरी साँस ली और कहा, ”तुमने भी तो मुझे दहेज का लोभी कहा था।”
”गलत कहा था”…. पुरुष की ओऱ देखती हुई स्त्री बोली।
कुछ देर चुप रही फिर बोली, ”मैं कोई और आरोप लगाती लेकिन मैं नहीं…”

प्लास्टिक के कप में चाय आ गई।
स्त्री ने चाय उठाई, चाय ज़रा-सी छलकी। गर्म चाय स्त्री के हाथ पर गिरी।
स्सी… की आवाज़ निकली।
पुरुष के गले में उसी क्षण ‘ओह’ की आवाज़ निकली। स्त्री ने पुरुष को देखा। पुरुष स्त्री को देखे जा रहा था।
”तुम्हारा कमर दर्द कैसा है?”
”ऐसा ही है कभी वोवरॉन तो कभी काम्बीफ्लेम,” स्त्री ने बात खत्म करनी चाही।

”तुम एक्सरसाइज भी तो नहीं करती।” पुरुष ने कहा तो स्त्री फीकी हँसी हँस दी।
”तुम्हारे अस्थमा की क्या कंडीशन है… फिर अटैक तो नहीं पड़े????” स्त्री ने पूछा।
”अस्थमा।डॉक्टर सूरी ने स्ट्रेन… मेंटल स्ट्रेस कम करने को कहा है, ” पुरुष ने जानकारी दी।

स्त्री ने पुरुष को देखा, देखती रही एकटक। जैसे पुरुष के चेहरे पर छपे तनाव को पढ़ रही हो।
”इनहेलर तो लेते रहते हो न?” स्त्री ने पुरुष के चेहरे से नज़रें हटाईं और पूछा।
”हाँ, लेता रहता हूँ। आज लाना याद नहीं रहा, ” पुरुष ने कहा।

”तभी आज तुम्हारी साँस उखड़ी-उखड़ी-सी है, ” स्त्री ने हमदर्द लहजे में कहा।
”हाँ, कुछ इस वजह से और कुछ…” पुरुष कहते-कहते रुक गया।
”कुछ… कुछ तनाव के कारण,” स्त्री ने बात पूरी की।

पुरुष कुछ सोचता रहा, फिर बोला, ”तुम्हें चार लाख रुपए देने हैं और छह हज़ार रुपए महीना भी।”
”हाँ… फिर?” स्त्री ने पूछा।
”वसुंधरा में फ्लैट है… तुम्हें तो पता है। मैं उसे तुम्हारे नाम कर देता हूँ। चार लाख रुपए फिलहाल मेरे पास नहीं है।” पुरुष ने अपने मन की बात कही।

”वसुंधरा वाले फ्लैट की कीमत तो बीस लाख रुपए होगी??? मुझे सिर्फ चार लाख रुपए चाहिए….” स्त्री ने स्पष्ट किया।
”बिटिया बड़ी होगी… सौ खर्च होते हैं….” पुरुष ने कहा।
”वो तो तुम छह हज़ार रुपए महीना मुझे देते रहोगे,” स्त्री बोली।
”हाँ, ज़रूर दूँगा।”
”चार लाख अगर तुम्हारे पास नहीं है तो मुझे मत देना,” स्त्री ने कहा।
उसके स्वर में पुराने संबंधों की गर्द थी।

पुरुष उसका चेहरा देखता रहा….
कितनी सह्रदय और कितनी सुंदर लग रही थी सामने बैठी स्त्री जो कभी उसकी पत्नी हुआ करती थी।
स्त्री पुरुष को देख रही थी और सोच रही थी, ”कितना सरल स्वभाव का है यह पुरुष, जो कभी उसका पति हुआ करता था। कितना प्यार करता था उससे…

एक बार हरिद्वार में जब वह गंगा में स्नान कर रही थी तो उसके हाथ से जंजीर छूट गई। फिर पागलों की तरह वह बचाने चला आया था उसे। खुद तैरना नहीं आता था लाट साहब को और मुझे बचाने की कोशिशें करता रहा था… कितना अच्छा है… मैं ही खोट निकालती रही…”

पुरुष एकटक स्त्री को देख रहा था और सोच रहा था, ”कितना ध्यान रखती थी, स्टीम के लिए पानी उबाल कर जग में डाल देती। उसके लिए हमेशा इनहेलर खरीद कर लाती, सेरेटाइड आक्यूहेलर बहुत महँगा था। हर महीने कंजूसी करती, पैसे बचाती, और आक्यूहेलर खरीद लाती। दूसरों की बीमारी की कौन परवाह करता है? ये करती थी परवाह! कभी जाहिर भी नहीं होने देती थी। कितनी संवेदना थी इसमें। मैं अपनी मर्दानगी के नशे में रहा। काश, जो मैं इसके जज़्बे को समझ पाता।”

दोनों चुप थे, बेहद चुप।
दुनिया भर की आवाज़ों से मुक्त हो कर, खामोश।
दोनों भीगी आँखों से एक दूसरे को देखते रहे….

”मुझे एक बात कहनी है, ” उसकी आवाज़ में झिझक थी।
”कहो, ” स्त्री ने सजल आँखों से उसे देखा।
”डरता हूँ,” पुरुष ने कहा।
”डरो मत। हो सकता है तुम्हारी बात मेरे मन की बात हो,” स्त्री ने कहा।
”तुम बहुत याद आती रही,” पुरुष बोला।
”तुम भी,” स्त्री ने कहा।
”मैं तुम्हें अब भी प्रेम करता हूँ।”
”मैं भी.” स्त्री ने कहा।

दोनों की आँखें कुछ ज़्यादा ही सजल हो गई थीं।
दोनों की आवाज़ जज़्बाती और चेहरे मासूम।
”क्या हम दोनों जीवन को नया मोड़ नहीं दे सकते?” पुरुष ने पूछा।
”कौन-सा मोड़?”
”हम फिर से साथ-साथ रहने लगें… एक साथ… पति-पत्नी बन कर… बहुत अच्छे दोस्त बन कर।”

”ये पेपर?” स्त्री ने पूछा।
”फाड़ देते हैं।” पुरुष ने कहा औऱ अपने हाथ से तलाक के काग़ज़ात फाड़ दिए। फिर स्त्री ने भी वही किया। दोनों उठ खड़े हुए। एक दूसरे के हाथ में हाथ डाल कर मुस्कराए। दोनों पक्षों के रिश्तेदार हैरान-परेशान थे। दोनों पति-पत्नी हाथ में हाथ डाले घर की तरफ चले गए। घर जो सिर्फ और सिर्फ पति-पत्नी का था ।।

पति पत्नी में प्यार और तकरार एक ही सिक्के के दो पहलू हैं जरा सी बात पर कोई ऐसा फैसला न लें कि आपको जिंदगी भर अफसोस हो ।।

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एक राजा का जन्म दिन था


एक राजा का जन्म दिन था। सुबह जब वह घूमने निकला तो उसने तय किया कि वह रास्ते में मिलने वाले सबसे पहले व्यक्ति को आज पूरी तरह से खुश व सन्तुष्ट करेगा।
उसे एक भिखारी मिला। भिखारी ने राजा सें भीख मांगी तो राजा ने भिखारी की तरफ एक तांबे का सिक्का उछाल दिया। सिक्का भिखारी के हाथ सें छूट कर नाली में जा गिरा । भिखारी नाली में हाथ डालकर तांबे का सिक्का ढूंढने लगा।
राजा ने उसे बुलाकर दूसरा तांबे का सिक्का दे दिया। भिखारी ने खुश होकर वह सिक्का अपनी जेब में रख लिया और वापिस जाकर नाली में गिरा सिक्का ढूंढने लगा।
राजा को लगा कि भिखारी बहुत गरीब है। उसने भिखारी को फिर बुलाया और चांदी का एक सिक्का दिया। भिखारी ने राजा की जय-जयकार करते हुये चांदी का सिक्का रख लिया और फिर नाली में तांबे वाला सिक्का ढूंढने लगा।
राजा ने उसे फिर बुलाया और अब भिखारी को एक सोने का सिक्का दिया। भिखारी खुशी से झूम उठा और वापिस भागकर अपना हाथ नाली की तरफ बढाने लगा।
राजा को बहुत बुरा लगा। उसे खुद से तय की गयी बात याद आ गयी कि “पहले मिलने वाले व्यक्ति को आज खुश एवं सन्तुष्ट करना है।” उसने भिखारी को फिर से बुलाया और कहा कि मैं तुम्हें अपना आधा राज-पाट देता हूँ। अब तो खुश व सन्तुष्ट हो जाओ।
भिखारी बोला – “सरकार ! मैं तो खुश और संतुष्ट तभी हो सकूँगा, जब नाली में गिरा हुआ तांबे का सिक्का भी मुझे मिल जायेगा।”
हमारा हाल भी उस भिखारी जैसा ही है।
हमें परमात्मा ने मानव रुपी अनमोल खजाना दिया है और हम उसे भूलकर संसार रुपी नाली में तांबे के सिक्के निकालने के लिए जीवन गंवाते जा रहे हैं।
इस अनमोल मानव जीवन का हम सही इस्तेमाल करें, हमारा जीवन धन्य हो जायेगा। ………………रामचन्द्र आर्य