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ज़्यादा पुरानी बात नहीं है. 

आज से सिर्फ लगभग 300 साल पहले धरती पर Dodo नामक एक पक्षी हुआ करता था. 

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Dodo का निवास मारीशस द्वीप पर था. उस द्वीप पर एक भी ऐसा प्राणी नहीं था जिस से कि Dodo को खतरा हो.  ऐसा कहा जाता था कि Dodo has no enemy. मारीशस पर Dodo के लिए भोजन इतना प्रचुर था और शत्रु कोई था नहीं इसलिए Dodo को कभी उड़ना ही नहीं पड़ता था.  इसलिए धीरे धीरे Dodo ने उड़ने की और तेज़ भागने की अपनी क्षमता खो दी.  पूरे द्वीप पर कोई शत्रु न था, कोई ऐसा जीव न था जो Dodo को मार के खाता, इसलिए Dodo ने किसी से डरना भी छोड़ दिया.  

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किसी अनजान जीव से डरना, उसके निकट न जाना, उसे अपने निकट न आने देना, अगर आ जाए तो आत्मरक्षार्थ उस पर हमला करना और ख़तरा होने पर भाग जाना, ये वन्य जीवों के स्वाभाविक गुण होते हैं.  जबकि घरों में पलने वाले पालतू जीव मनुष्यों से नहीं डरते. 

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सो Dodo का चूँकि कोई स्वाभाविक शत्रु ही न था, इसलिए उसने डरना ही छोड़ दिया.  1598 में Mauritius के तट पर Dutch Sailors का आगमन हुआ. स्वर्ग जैसा मारीशस और वहाँ Dodo जैसा friendly पक्षी.  बताया जाता है कि Dodo उन Sailors को देख के स्वयं उनके पास चले आते थे, मित्रवत !!!

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Dutch Sailors ने उन friendly Dodos को मार कर खाना शुरू कर दिया.  एक डोडो में 10 से 20 किलो तक मांस होता था.  सिर्फ 64 साल में, यानि 1662 में धरती पर अंतिम Dodo देखा गया.

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Dodo धरती से विलुप्त हो गए. 

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कल तक स्वीडन यूरोप के सर्वाधिक संपन्न और सर्वाधिक शांतिप्रिय देशों में गिना जाता था.  स्वीडन में crime rate इतना कम था कि वहाँ Police सिर्फ नाम मात्र को थी.  पूरे देश में policing की ज़रूरत ही न पड़ती थी.  Swedish लोग इतने friendly होते थे कि उन्हें कोई बुरा आदमी कभी मिला ही न था.  आदमी जैसा स्वयं होता है वैसा ही वो दूसरों को भी समझता है. 

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याद रखें : आदमी जैसा स्वयं होता है वैसा ही वो दूसरों को भी समझता है. 

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अरब के देशों में जब अशांति फैली और वहाँ से जान बचा के जब लोगों ने भागना शुरू किया, तो वो Europe की तरफ भागे.  Sweden ने दोनों हाथ फैला कर उनको गले से लगाया, शरण दी, सारी सुख सुविधाएं दी.  आज वहाँ हालात ये हैं कि देश गृह युद्ध के कगार पर पहुँच गया है.  वही अरबी शरणार्थी जो कल भूखे नंगे बिलबिलाते शरण मांगने आये थे, उन्होंने Oct 2015 में पूरे देश में एक सप्ताह तक जम कर तोड़ फोड़, लूटपाट, आगजनी की.  हर तीसरे दिन वहाँ किसी न किसी बड़े स्टोर को लूट लिया जाता है या आग लगा दी जाती है.  सरकार ने अपने नागरिकों को Advisory जारी की है कि वो उन इलाकों में न जाएँ जहां शरणार्थी रहते हैं.  महिलाएं बाहर निकलते समय तन ढक के रखें.  अकेले बाहर न निकलें. 

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ताजा समाचार ये भी है कि स्थानीय नागरिकों ने 9 शरणार्थी शिविरों को आग लगा दी है.  स्वीडिश समाज को ये ख़तरा पैदा हो गया है कि देश में कभी भी गृह युद्ध छिड़ सकता है.  देश में शरणार्थियों का अवैध रूप से प्रवेश बदस्तूर जारी है.  Sweden की सड़कों पर लोग सरेआम तलवारें लिए घूम रहे हैं.  

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आज Sweden की कुल मुस्लिम जनसंख्या सिर्फ 5 लाख है.  ये सभी 5 लाख लोग मुस्लिम शरणार्थी हैं जो पिछले 20 सालों में अरबी मुल्कों से यहां आये हैं और उनका आना अब भी बदस्तूर जारी है. 

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Dodo की कहानी पूरी दुनिया के स्कूली पाठ्यक्रम में होनी चाहिए . 

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शायद इसको पढ़कर किसी सिरफिरे और अपने आपको ज्यादा अकल्मन्द समझने वाले “सेकुलर” की आंखे खुल सकें.
#साभार

विपिन खुराना

Posted in काश्मीर - Kashmir

पाकिस्तान व बॉगलादेश बनने व भारत विभाजन के फायदे हिंदूऔ को ?
जिन्ना ने दिया था हिंदुओं को सौ वर्ष का अभय दान

 

सभी जानते हैं 1947 भारत के बटवारे की मूल वजह क़ायदे-आज़म मोहम्मद अली जिन्ना थे और जिन्ना  की जिद्द के कारण अंग्रेजों ने भारत को दो हिस्से में बाँटकर हिंदुस्तान और पाकिस्तान बना दिया क्योंकि जिन्ना का यह मत था कि हिंदुओं की संस्कृति और जीवन शैली मुसलमानों से एकदम भिन्न है अतः हिंदू और मुसलमान एक साथ एक देश में नहीं रह सकते | अगर हिंदू हिंदुस्तान में रहता है तो मुसलमानों को भी एक पाक स्थान पाकिस्तान के रूप में दिया जाना चाहिए परिणाम स्वरुप एक बड़ी हिंसा के बाद हिंदुस्तान का बाँटवारा हो गया और भारत के तीन टुकड़ों में बाँट गया | जो पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के रूप में मुसलमानों को दे दिया गया | बाद को कालांतर में श्रीमती इंदिरा गांधी की राजनीतिक सूझबूझ से पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान बाँटकर कर पुनः दो हिस्से हो गये | पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश के नाम से जाना जाने लगा और पश्चिमी पाकिस्तान पाकिस्तान के नाम से जाना जाने लगा | सुनने में तो बहुत बुरा लगता है लेकिन यह एक बहुत बड़ा सत्य है कि जिन्ना की इसी बेवकूफी के कारण हिंदुस्तान में हिंदुओं को 100 वर्ष का अभय दान मिल गया |

 

आज स्पष्ट रुप से देखा जाता है जिन स्थानों पर मुसलमानों की जनसंख्या 30% से अधिक है वहां से हिंदू प्रति वर्ष पलायन कर रहा है |
 4 जनवरी 1990 को कश्मीर के अंदर तो खुलेआम मस्जिदों के लाऊडस्पीकरों से घोषणा की गई हिंदू अपने घर की बहू-बेटी व संपत्ति छोड़कर तत्काल चले जाएं वरना उनकी हत्या कर दी जाएगी | परिणामता: 2 लाख कश्मीरी हिंदू पंडितों को कश्मीर छोड़कर पलायन करना पड़ा | इसी तरह पश्चिम उत्तर प्रदेश मैं आज बहुत बड़ी मात्रा में हिंदू पलायन कर रहा है | बंगाल के अंदर भी बांग्लादेशियों की घुसपैठ के कारण मुसलमानों की जनसंख्या तेजी से बढ़ने के कारण वहां से बहुत बड़ी मात्रा में मूस्लिमो के डर से  हिंदूओं को पलायन करना पड़ रहा है | इतना ही नहीं भारत में जहां-जहां मुसलमानों की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है वहां-वहां से हिंदू पलायन करके दूसरे स्थानों पर जा रहे हैं |

 

कल्पना कीजिए अगर जिन्ना ने अलग पाकिस्तान की मांग न की होती तो वर्तमान समय में पाकिस्तान के अंदर रहने वाला 19 करोड़ मुसलमान और बंगलादेश के अंदर रहने वाला 16 करोड़ मुसलमान तथा भारत के अंदर रहने वाले 25 करोड़ मुसलमान मिलाकर कुल भारत के अंदर 70  करोड़ मुसलमान होते जो 80 करोड़ हिंदुओं को भारत छोड़ कर भागने के लिए बाध्य कर देते | यह तो जिन्ना की नासमझी और जिद्द का परिणाम था कि हिंदुस्तान का बंटवारा हुआ और हिंदुस्तान की बहुत बड़ी मुसलमान आबादी पाकिस्तान चली गई | जिससे हिंदुस्तान में हिंदुओं को 100  वर्ष तक अपने तरीके से जिंदगी जीने का अधिकार प्राप्त हो गया वर्ना जब हिंदुस्तान के अंदर मुसलमानों की जनसंख्या 50 करोड़  होती तो या तो  हिंदुस्तान का हिंदू मुसलमान हो गया होता या हिंदुस्तान छोड़कर चला गया होता | जैसे देश के बंटवारे के समय पाकिस्तान में 12% हिन्दू था जो आज मात्र 1% दयनीय अवस्था में रह गया है | कुछ हिंदूऔ को मार दिया व कई हिंदूऔ को तलवार के बल मूस्लिम बना दिया है पाकिस्तान मे l

 

अगर हिंदुओं की यह पलायनवादी सोच नहीं समाप्त हुई तो वह दिन दूर नहीं जब भारत के अंदर राष्ट्रपति से लेकर होमगार्ड तक सभी मुसलमान होंगे और उनके समक्ष हिंदुओं के हितों की रक्षा करने के लिए कोई भी व्यक्ति नहीं होगा | जैसे आज बांग्लादेश व पाकिस्तान में हो रहा है | 
योगेश कुमार मिश्र 

9451252162

Posted in वर्णाश्रमव्यवस्था:

ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शूद्र

सनातन हिंदू धर्म के चौथे स्तम्भ यानी शुद्र जाति के कुछ संगठन और लोग आजकल बाकी तीनो स्तम्भों पर आरोप लगाते है!

की शुद्र को दबाया गया कुचला गया कुछ हद तक सही है ये लेकिन ये कहाँ तक उचित है की अगर आप पर जुल्म हुवे तो उसे गा गा कर दुनिया को सुनाये और उसी जाति ने जब आपको अपने सर आखों पर बिठाया तो उसका नाम भी ना लें ???

क्षत्रिय कुल वधु मीरा के गुरु एक शुद्र जाति के थे नाम है संत रैदास!

भगवान् राम के पिता दशरथ के मंत्री सुमंत शुद्र थे!

महर्षि वाल्मीकि जिन्होंने कालजयी ग्रन्थ रामायण की रचना की वो शुद्र ही थे!

अयोध्या में 1990 में राममंदिर की शिला रखने वाले कामेश्वर शुद्र थे!

वाराणसी में शंकराचार्य ने डोम के घर खाना खाया था!

विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर में पूजा का अधिकार शबर यानी शुद्र को ही है!

महाभारत में जिस मत्रिमंडल का वर्णन है जिसमे 54 सदस्य है!

उनमे 4 ब्राह्मण 18 क्षत्रिय ,21 वैश्य और 3 शुद्र और 1 सूत के लिए आरक्षित था!

क्या आप इसे ब्राह्मणवादी प्रधान संस्कृति कहेंगे ??

हिन्दू धर्म जातियां हमेशा कर्म आधारित रही है जैसे।

लोहे का काम करने वाला लोहार।

सोने का काम करने वाला सोनार।

और चमड़े का काम करने वाला चमार।

क्षत्रिय यानी क्षत यानी चोट से रक्षा करने वाला क्षत्रिय माना जाता था!

मुर्दा छूने वाला डोम दाग देने वाला!

#रजस्वला स्त्री और घृणित कार्य करने वालों को #अछूत माना जाता था!

#आदिवासी शब्द 1931 में सबसे पहले अंग्रेजो के द्वारा उपयोग किया गया आदिवासियों का धर्म परिवर्तन तथा भारत की धार्मिक एकता को तोड़ने के लिए!

वैसे ही #गुंडा शब्द!

वैसे ही दलित शब्द 1970 में पहली बार प्रयोग किया गया!

राजनीतिक स्वार्थ के लिए कांशीराम ने बहुजन शब्द का इस्तेमाल 1984 में पहली बार किया!

जिस आदिवासी, दलित और बहुजन शब्द का इस्तेमाल शूद्रों से वोट लेने के लिए किया गया वो शब्द भारतीय संविधान में आपको कहीं नहीं मिलेगा!

”बाबा साहेब अम्बेडकर खुद शूद्रों को सूर्यवंशी क्षत्रिय कहते थे और ये भी कहते थे की #शुद्र राजा शूद्रक की वंशज हैं और जो लोग वर्तमान जातिप्रथा के लिए मनु स्मृति को दोष देते हैं उन्हें पता होना चाहिए की मनु समृति सतयुग के लिए बनी थी!

कलयुग के लिए #परासर_स्मृति है!

वैसे ही जैसे द्वापर के लिए शंख स्मृति और त्रेता युग के लिए गौतम स्मृति का निर्माण किया गया था!

भारत में जाति प्रथा केवल नेताओं और राजनीतिक पार्टियों ने पैदा किया अंग्रेजों के लिखे देश विरोधी इतिहास का आधार लेकर और जिन #ब्राह्मणों को लोग आज गाली देते हैं उनकी जानकारी के लिए बता दूँ की #ब्राह्मण कोई जाति नहीं बल्कि गुण का नाम है!

ब्राह्मण राष्ट्रीय चेतना का प्रतीक है!

चाणक्य ने कुटिया को अपना निवास स्थान चुना।

सुदामा जैसे ब्राह्मण मधु को इक्कठा कर अपना जीवन यापन करते थे!

द्रोणाचार्य इतने गरीब थे कि अपने पुत्र को सतुवा घोल कर पिलाए पर कभी अपने जीवन में गोदान नहीं माँगा। जबकि उस समय दूध की नदियाँ बहती थी ।

द्रोणाचार्य अर्जुन को चक्रव्हूह भेदने का रहस्य जमीन पे रेखा चित्र बनाकर समझा रहे थे तभी उनका पुत्र अस्वस्थामा वहां आ गया, द्रोणाचार्य ने तुरंत उस रेखाचित्र को मिटा दिया की कहीं उनका पुत्र वो विद्या ना सिख ले…! 

ऐसे ब्राह्मण थे द्रोणाचार्य!

क्या यही ब्राह्मणवाद है जिसे आज कुछ राजनीतिक और आदिवासी चिंतक कोसते हैं???

इस्लामी, अंग्रेज, मार्क्सवादी, कम्युनिस्ट, साम्यवादी वगैरह जो भी आया भारतीयों को बर्बाद कर गया!

कारण यह है की बिना सच को जानें हिन्दुओ ने सबपर विश्वास किया।

हिंन्दुओं ने कभी नहीं सोचा हमारे देश की संस्कृति, धर्म और आर्थिक स्थिति क्यों सबसे महान थी।

बस यही हिन्दुओ की गलती है और आज भी हिन्दू जात पात, धर्म में बंट चुके है और महान भारत की महान संस्कृति को भूल चुके है ।

जय श्री राम

चन्द्रशेखर पाण्डेय जी की कलम से. 

कापी पेस्ट.

Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

योगी आदित्यनाथ का यह बयान कुछ लोगों को बुरा लग रहा है कि ताजमहल हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं है। लोग इस बयान पर आपत्ति जताते हुए ताजमहल को प्रेम का प्रतीक बता रहे हैं। ताजमहल, और उसके पीछे के प्रेम की कहानी कुछ दिनों पहले भाई रामप्रकाश त्रिपाठी की वाल पर पढ़ी थी। आप भी धैर्य से पढ़िए। ज्ञानवर्द्धन ही होगा –

धैर्य से पूरा पढ़ें :-
मुगलों के हरम की औलाद को हरामजादा

कहा जाता है।
शाहजहाँ के हरम में ८००० रखैलें थीं जो उसे

उसके पिता जहाँगीर से विरासत में मिली थी।

उसने बाप की सम्पत्ति को और बढ़ाया।
उसने हरम की महिलाओं की व्यापक छाँट

की तथा बुढ़ियाओं को भगा कर और अन्य

हिन्दू परिवारों से बलात लाकर हरम को

बढ़ाता ही रहा।”

(अकबर दी ग्रेट मुगल : वी स्मिथ, पृष्ठ ३५९)
कहते हैं कि उन्हीं भगायी गयी महिलाओं से दिल्ली

का रेडलाइट एरिया जी.बी. रोड गुलजार हुआ था

और वहाँ इस धंधे की शुरूआत हुई थी।
जबरन अगवा की हुई हिन्दू महिलाओं की

यौन-गुलामी और यौन व्यापार को शाहजहाँ

प्रश्रय देता था, और अक्सर अपने मंत्रियों

और सम्बन्धियों को पुरस्कार स्वरूप अनेकों

हिन्दू महिलाओं को उपहार में दिया करता था।
यह नर पशु,यौनाचार के प्रति इतना आकर्षित

और उत्साही था,कि हिन्दू महिलाओं का मीना

बाजार लगाया करता था,यहाँ तक कि अपने

महल में भी।
सुप्रसिद्ध यूरोपीय यात्री फ्रांकोइस बर्नियर

ने इस विषय में टिप्पणी की थी कि,

”महल में बार-बार लगने वाले मीना बाजार,

जहाँ अगवा कर लाई हुई सैकड़ों हिन्दू महिलाओं

का, क्रय-विक्रय हुआ करता था,राज्य द्वारा बड़ी

संख्या में नाचने वाली लड़कियों की व्यवस्था,और

नपुसंक बनाये गये सैकड़ों लड़कों की हरमों में

उपस्थिती, शाहजहाँ की अनंत वासना के समाधान

के लिए ही थी।

(टे्रविल्स इन दी मुगल ऐम्पायर-

फ्रान्कोइसबर्नियर :पुनः लिखित वी. स्मिथ,

औक्सफोर्ड १९३४)
**शाहजहाँ को प्रेम की मिसाल के रूप पेश किया

जाता रहा है और किया भी क्यों न जाए।

८००० औरतों को अपने हरम में रखने वाला अगर

किसी एक में ज्यादा रुचि दिखाए तो वो उसका प्यार

ही कहा जाएगा।आप यह जानकर हैरान हो जायेंगे

कि मुमताज का नाम मुमताज महल था ही नहीं

बल्कि उसका असली नाम “अर्जुमंद-बानो-बेगम” था।
और तो और जिस शाहजहाँ और मुमताज के प्यार

की इतनी डींगे हांकी जाती है वो शाहजहाँ की ना

तो पहली पत्नी थी ना ही आखिरी ।
मुमताज शाहजहाँ की सात बीबियों में चौथी थी।

इसका मतलब है कि शाहजहाँ ने मुमताज से पहले

3 शादियाँ कर रखी थी और,मुमताज से शादी करने

के बाद भी उसका मन नहीं भरा तथा उसके बाद भी

उस ने 3 शादियाँ और की यहाँ तक कि मुमताज के

मरने के एक हफ्ते के अन्दर ही उसकी बहन फरजाना

से शादी कर ली थी।

जिसे उसने रखैल बना कर रखा हुआ था जिससे शादी

करने से पहले ही शाहजहाँ को एक बेटा भी था।
अगर शाहजहाँ को मुमताज से इतना ही प्यार था तो मुमताज से शादी के बाद भी शाहजहाँ ने 3 और

शादियाँ क्यों की….?????
अब आप यह भी जान लो कि शाहजहाँ की सातों

बीबियों में सबसे सुन्दर मुमताज नहीं बल्कि इशरत

बानो थी जो कि उसकी पहली पत्नी थी ।
उस से भी घिनौना तथ्य यह है कि शाहजहाँ से

शादी करते समय मुमताज कोई कुंवारी लड़की

नहीं थी बल्कि वो शादीशुदा थी और,उसका पति शाहजहाँ की सेना में सूबेदार था जिसका नाम “शेर अफगान खान” था।शाहजहाँ ने शेर अफगान खान

की हत्या कर मुमताज से शादी की थी।
गौर करने लायक बात यह भी है कि ३८ वर्षीय

मुमताज की मौत कोई बीमारी या एक्सीडेंट से

नहीं बल्कि चौदहवें बच्चे को जन्म देने के दौरान

अत्यधिक कमजोरी के कारण हुई थी।
यानी शाहजहाँ ने उसे बच्चे पैदा करने की मशीन

ही नहीं बल्कि फैक्ट्री बनाकर मार डाला।
**शाहजहाँ कामुकता के लिए इतना कुख्यात

था कि कई इतिहासकारों ने उसे उसकी अपनी

सगी बेटी जहाँआरा के साथ स्वयं सम्भोग करने

का दोषी कहा है।
शाहजहाँ और मुमताज महल की बड़ी बेटी

जहाँआरा बिल्कुल अपनी माँ की तरह लगती थी।
इसीलिए मुमताज की मृत्यु के बाद उसकी याद में

लम्पट शाहजहाँ ने अपनी ही बेटी जहाँआरा को

फंसाकर भोगना शुरू कर दिया था।
जहाँआरा को शाहजहाँ इतना प्यार करता था

कि उसने उसका निकाह तक होने न दिया।
बाप-बेटी के इस प्यार को देखकर जब महल में

चर्चा शुरू हुई,तो मुल्ला-मौलवियों की एक बैठक

बुलाई गयी और उन्होंने इस पाप को जायज ठहराने

के लिए एक हदीस का उद्धरण दिया और कहा कि – “माली को अपने द्वारा लगाये पेड़ का फल खाने का

हक़ है”।
(Francois Bernier wrote,

” Shah Jahan used to have regular sex

with his eldest daughter Jahan Ara.

To defend himself,Shah Jahan used to

say that,it was the privilege of a planter

to taste the fruit of the tree he had

planted.”)
**इतना ही नहीं जहाँआरा के किसी भी आशिक

को वह उसके पास फटकने नहीं देता था।

कहा जाता है की एकबार जहाँआरा जब अपने एक आशिक के साथ इश्क लड़ा रही थी तो शाहजहाँ आ

गया जिससे डरकर वह हरम के तंदूर में छिप गया, शाहजहाँ नेतंदूर में आग लगवा दी और उसे जिन्दा

जला दिया।
**दरअसल अकबर ने यह नियम बना दिया था

कि मुगलिया खानदान की बेटियों की शादी नहीं

होगी।

इतिहासकार इसके लिए कई कारण बताते हैं।

इसका परिणाम यह होता था कि मुग़लखानदान

की लड़कियां अपने जिस्मानी भूख मिटाने के लिए

अवैध तरीके से दरबारी,नौकर के साथ साथ,रिश्तेदार

यहाँ तक की सगे सम्बन्धियों का भी सहारा लेती थी।
**जहाँआरा अपने लम्पट बाप के लिए लड़कियाँ भी

फंसाकर लाती थी।

जहाँआरा की मदद से शाहजहाँ ने मुमताज के भाई

शाइस्ता खान की बीबी से कई बार बलात्कार किया था।
**शाहजहाँ के राजज्योतिष की 13 वर्षीय ब्राह्मण

लडकी को जहाँआरा ने अपने महल में बुलाकर धोखे

से नशा करा बाप के हवाले कर दिया था जिससे शाहजहाँ

ने 58 वें वर्ष में उस 13 बर्ष की ब्राह्मण कन्या से निकाह

किया था।
बाद में इसी ब्राहम्ण कन्या ने शाहजहाँ के कैद होने के

बाद औरंगजेब से बचने और एक बार फिर से हवस की

सामग्री बनने से खुद को बचाने के लिए अपने ही हाथों

अपने चेहरे पर तेजाब डाल लिया था।
**शाहजहाँ शेखी मारा करता था कि ‘ ‘वह तिमूर

(तैमूरलंग)का वंशज है जो भारत में तलवार और

अग्नि लाया था।

उस उजबेकिस्तान के जंगली जानवर तिमूर से और

उसकी हिन्दुओं के रक्तपात की उपलब्धि से इतना

प्रभावित था कि ”उसने अपना नाम तिमूरद्वितीय

रख लिया”।

(दी लीगेसी ऑफ मुस्लिम रूल इन इण्डिया-

डॉ. के.एस. लाल, १९९२ पृष्ठ- १३२).
**बहुत प्रारम्भिक अवस्था से ही शाहजहाँ ने काफिरों

(हिन्दुओं) के प्रति युद्ध के लिए साहस व रुचि दिखाई थी।
अलग-अलग इतिहासकारों ने लिखा था कि,

”शहजादे के रूप में ही शाहजहाँ ने फतेहपुर सीकरी

पर अधिकार करलिया था और आगरा शहर में हिन्दुओं

का भीषण नरसंहार किया था ।
**भारत यात्रा पर आये देला वैले,इटली के एक धनी

व्यक्ति के अुनसार -शाहजहाँ की सेना ने भयानक

बर्बरता का परिचय कराया था।

हिन्दू नागरिकों को घोर यातनाओं द्वारा अपने संचित

धन को दे देने के लिए विवश किया गया,और अनेकों

उच्च कुल की कुलीन हिन्दू महिलाओं का शील भंग

किया गया।”

(कीन्स हैण्ड बुक फौर विजिटर्स टू आगरा एण्ड

इट्सनेबरहुड, पृष्ठ २५)
**हमारे वामपंथी इतिहासकारों ने शाहजहाँ को

एक महान निर्माता के रूप में चित्रित किया है।
किन्तु इस मुजाहिद ने अनेकों कला के प्रतीक सुन्दर

हिन्दू मन्दिरों और अनेकों हिन्दू भवन निर्माण कला

के केन्द्रों का बड़ी लगन और जोश से विध्वंस किया था
अब्दुल हमीद ने अपने इतिहास अभिलेख, ‘बादशाहनामा’ में लिखा था-‘महामहिम शहंशाह महोदय की सूचना में

लाया गया कि हिन्दुओं के एक प्रमुख केन्द्र,बनारस में

उनके अब्बा हुजूर के शासनकाल में अनेकों मन्दिरों के

पुनः निर्माण का काम प्रारम्भ हुआ था और काफिर

हिन्दू अब उन्हें पूर्ण कर देने के निकट आ पहुँचे हैं।
इस्लाम पंथ के रक्षक,शहंशाह ने आदेश दिया कि

बनारस में और उनके सारे राज्य में अन्यत्र सभी

स्थानों पर जिन मन्दिरों का निर्माण कार्य आरम्भ है,

उन सभी का विध्वंस कर दिया जाए।
**इलाहाबाद प्रदेश से सूचना प्राप्त हो गई कि

जिला बनारस के छिहत्तर मन्दिरों का ध्वंस कर

दिया गया था।”

(बादशाहनामा : अब्दुल हमीद लाहौरी,

अनुवाद एलियट और डाउसन, खण्ड VII,

पृष्ठ ३६)
**हिन्दू मंदिरों को अपवित्र करने और उन्हें ध्वस्त करनेकी प्रथा ने शाहजहाँ के काल में एक व्यवस्थित विकराल रूप धारण कर लिया था।

(मध्यकालीन भारत – हरीश्चंद्र वर्मा – पेज-१४१)
*”कश्मीर से लौटते समय १६३२ में शाहजहाँ को बताया गया कि अनेकों मुस्लिम बनायी गयी महिलायें फिर से हिन्दू हो गईं हैं और उन्होंने हिन्दू परिवारों में

शादी कर ली है।

शहंशाह के आदेश पर इन सभी हिन्दुओं को बन्दी

बना लिया गया।
प्रथम उन सभी पर इतना आर्थिक दण्ड थोपा गया

कि उनमें से कोई भुगतान नहीं कर सका।
तब इस्लाम स्वीकार कर लेने और मृत्यु में से एक को

चुन लेने का विकल्प दिया गया।
जिन्होनें धर्मान्तरण स्वीकार नहीं किया,उन सभी

पुरूषों का सर काट दिया गया।
लगभग चार हजार पाँच सौं महिलाओं को बलात् मुसलमान बना लिया गया और उन्हें सिपहसालारों, अफसरों और शहंशाह के नजदीकी लोगों और

रिश्तेदारों के हरम में भेज दिया गया।”

(हिस्ट्री एण्ड कल्चर ऑफ दी इण्डियन पीपुल :

आर.सी. मजूमदार, भारतीय विद्या भवन,पृष्ठ३१२)
* १६५७ में शाहजहाँ बीमार पड़ा और उसी के

बेटे औरंगजेब ने उसे उसकी रखैल जहाँआरा के

साथ आगरा के किले में बंद कर दिया।
परन्तु औरंगजेब मे एक आदर्श बेटे का भी फर्ज निभाया

और अपने बाप की कामुकता को समझते हुए उसे अपने

साथ ४० रखैलें (शाही वेश्याएँ) रखने की इजाजत दे दी।
दिल्ली आकर उसने बाप के हजारों रखैलों में से कुछ गिनी चुनी औरतों को अपने हरम में डालकर बाकी

सभी को उसने किले से बाहर निकाल दिया।
उन हजारों महिलाओं को भी दिल्ली के उसी हिस्से

में पनाह मिली जिसे आज दिल्ली का रेड लाईट एरिया जीबी रोड कहा जाता है।
जो उसके अब्बा शाहजहाँ की मेहरबानी से ही बसा और गुलजार हुआ था ।
***शाहजहाँ की मृत्यु आगरे के किले में ही २२ जनवरी १६६६ ईस्वी में ७४ साल की उम्र में द हिस्ट्री चैन शाहजहाँ की मृत्यु आगरे के किले में ही २२ जनवरी १६६६ ईस्वी में ७४ साल की उम्र में द हिस्ट्री चैनल के अनुसार अत्यधिक कमोत्तेजक दवाएँ खा लेने का कारण हुई थी। यानी जिन्दगी के आखिरी वक्त तक वो अय्याशी ही करता रहा था।
** अब आप खुद ही सोचें कि क्यों ऐसे बदचलन

और दुश्चरित्र इंसान को प्यार की निशानी समझा कर

महानबताया जाता है…… ?????
क्या ऐसा बदचलन इंसान कभी किसी से प्यार कर

सकता है….?????
क्या ऐसे वहशी और क्रूर व्यक्ति की अय्याशी की कसमेंखाकर लोग अपने प्यार को बे-इज्जत नही

करते हैं ??
दरअसल ताजमहल और प्यार की कहानी इसीलिए

गढ़ी गयी है कि लोगों को गुमराह किया जा सके और लोगों खास कर हिन्दुओं से छुपायी जा सके कि ताजमहल कोई प्यार की निशानी नहीं बल्कि महाराज जय सिंह द्वारा बनवाया गया भगवान् शिव का मंदिर””तेजो महालय”” है….!
और जिसे प्रमाणित करने के लिए डा० सुब्रहमण्यम स्वामी आज भी सुप्रीम कोर्ट में सत्य की लड़ाई लड़

रहे हैं।
** असलियत में मुगल इस देश में धर्मान्तरण,

लूट-खसोट और अय्याशी ही करते रहे परन्तु नेहरू

के आदेश पर हमारे इतिहासकारों नें इन्हें जबरदस्ती महान बनाया।

और ये सब हुआ झूठी धर्मनिरपेक्षता के नाम पर।

Posted in जीवन चरित्र

मीरा कुमार , Manu kumar


कॉग्रेस के  राष्ट्रपति उम्मीदवार  मीरा कुमार की संक्षिप्त राजनीतिक जीवनी ।।। जो जानकर आप चौक जाऔगे 
4 हज़ार करोड़ के घपले घोटाले में महीनों तक जेल में बंद रहा झारखण्ड का पूर्व मुख्यमंत्री मधु कौड़ा 15वीं लोकसभा का सदस्य भी था। सांसदों को अपनी सम्पत्ति का विवरण देने के नियम से छूट देने की मांग उसने की थी। अप्रैल 2013 में उसको यह छूट दे दी गयी थी। तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष ने उसको यह छूट क्यों दी.? इसका जवाब अपने विशेषाधिकार का हवाला देते हुए तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने महाभ्रष्ट घोटालेबाज मधु कौड़ा को छूट देने का कारण बताने से साफ इनकार कर दिया था।

यही नहीं पौने दो लाख करोड़ की रकम वाले 2G घोटाले से सम्बंधित PAC रिपोर्ट को तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष मीराकुमार ने स्वीकारने से ही इनकार कर दिया था।

लेकिन उसी 2G घोटाले में यूपीए को क्लीनचिट देनेवाली JPC की रिपोर्ट को विपक्ष की आपत्ति सुने बिना ही मीरकुमार ने स्वीकार कर लिया था। विपक्ष को उसके खिलाफ बोलने तक की अनुमति नहीं दी थी, ना ही उस रिपोर्ट पर संसद में कोई बहस ही होने दी थी।

हद तो यह है कि 26 मई 2014 को मोदी सरकार के शपथग्रहण के पश्चात अपने कार्यकाल के अंतिम दिन 31 मई को पद छोड़ने से पहले मीराकुमार ने लोकसभा TV के तत्कालीन CEO राजीव मिश्र को बर्खास्त कर दिया था। हालांकि उनको ऐसा करने का नैतिक अधिकार नहीं था।

उसी समय राजीव मिश्र ने बताया था कि लोकसभा चुनाव में मतगणना के दौरान मीराकुमार के पीछे रहने तथा फिर उनकी पराजय का समाचार लोकसभा टीवी पर प्रमुखता से दिखाए जाने के कारण मीराकुमार उनसे बहुत नाराज थीं।

तो यह है फर्क मोदी और उनके विरोधियों के दलित प्रत्याशियों में।

गलत सही का फैसला आप करें।
और सुनो 

17 दलों की राष्ट्रपति उम्मीदवार है मीरा कुमार

इन 17 में से 5 पार्टियों के पास कोई लोकसभा सांसद नहीं, 

3 पार्टियों के पास राज्यसभा सांसद नही

17 में से 15 पार्टियों की एक भी राज्य में सरकार नहीं

और एक पार्टी के पास तो सिर्फ एक विधायक है……. ये कांग्रेस, वामपंथी,लालू, युपीए,सारे भारत विरोधी एजेंडा चलाने वालों की सूवर गैग है..

अच्छा मौका है वक्त रहते इनको पहचान ले जनता..

जय हिंद..

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भारतीय नस्ल के गोवंश को समाप्त करने के लिए ही हुई थी श्वेत क्रांति”

 

 

भारत में अंग्रेजों  के विरुद्ध 1857 का विद्रोह हो चुका था | हिंदुस्तान के कुछ गद्दार राजाओं का समर्थन मिलने की वजह से अंग्रेजों ने इस स्वतंत्रता संग्राम को पूरी तरह कुचल दिया था | राष्ट्र के लिए अंग्रेजो के विरुद्ध हथियार उठाने वालों को चुन-चुन कर अंग्रेजों द्वारा सार्वजनिक स्थानों पर उल्टा लटका कर जिंदा आग में जला कर भून दिया गया था और कुछ लोगों को सरेआम पेड़ों पर लटका कर फांसी दे दी गई थी | शहीदों की लाशें तब तक लटकती रहीं जब तक उनमें बदबू नहीं आने लगी और उन्हें चील कौए नोंच-नोंच कर नहीं खाने लगे | लोग इन लाशों को कोई उतार न ले इसलिए पुलिस के हिंदुस्तानी सिपाही इन लाशो की हिफाजत में बन्दूक लेकर तैनात थे | 
ब्रिटेन के संसद से भारतीयों को दण्डित व नियंत्रित करने के लिए “भारतीय दंड संहिता 1860”  लागू हो गई थी | साथ ही भारतीयों के हथियार रखने के अधिकार को समाप्त करने के लिए “आर्म्स एक्ट 1878” भी लागू कर दिया गया था | विद्रोह को इस बुरी तरह से कुचला गया था ताकि अब अंग्रेजों के लूट के विरुद्ध आवाज उठाने वाला कोई भी व्यक्ति न बच सके | इसमें बहुत से निर्दोष हिंदुस्तानियों को भी तोप के मुहाने पर बांधकर उड़ा दिया गया था |

 

भारतीयों को बीमार और कमजोर करने के लिए भारत से लूटी गई संपदा से ब्रिटेन के अंदर बड़ी-बड़ी एलोपैथी दवाओं के निर्माण के लिये प्रयोगशालाएं स्थापित की जाने लगी थी | जिनमें एलोपैथी दवाइयों का निर्माण शुरू हो गया था और इन दवाओं की खपत के लिए भारत के अंदर ब्रिटिश सत्ताधारियों द्वारा तरह-तरह के वायरस छोड़े कर चेचक, प्लीज, हैजा, जैसे गंभीर रोग हिंदुस्तान में फैला कर बड़ी संख्या में हिन्दुस्तानियों की हत्या की जाने लगी थी | किंतु ब्रिटिश डॉक्टरों और वैज्ञानिकों ने देखा के हिंदुस्तान के अंदर यह वायरस उतने प्रभावशाली नहीं थे, जितने अन्य ब्रिटिश उपनिवेशों में थे | परिणामत: एलोपैथी दवाइयों की खपत अन्य ब्रिटिश उपनिवेश के मुकाबले भारत में काफी कम थी | अब इन वायरसों के भारत में कम प्रभावी होने का कारण ढूंढा जाने लगा |

 

निष्कर्ष यह निकला के भारत के अंदर  भारतीय ऋषियों द्वारा तैयार किया गया जो भारतीय नस्ल का गोवंश था, वह एक विशेष तरह का दूध देता है | जिसके अंदर प्राकृतिक रूप से सुपाच्य स्वर्ण होता है | यही सुपाच्य स्वर्ण भारतीयों के अंदर “रोग प्रतिरोधक क्षमता” विकसित करता है क्योंकि भारतीय ऋषियों द्वारा विकसित किये गये गोवंश की पीठ पर एक विशेष तरह की “सूर्यकेतु नाड़ी” होती है जो सूर्य से ऊर्जा लेकर सुपाच्य स्वर्ण अपने अंदर विकसित करती है | यही सुपाच्य स्वर्ण भारतीयों को रोगी होने से बचाती है | जिसका निरंतर प्रयोग करने के कारण हिंदुस्तानियों के शरीर में एक ऐसी अद्भुत रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो गई है, जिसके ऊपर ब्रिटिश प्रयोगशालाओं में तैयार किया गया कोई भी घातक से घातक वायरस असर नहीं करता | 
अब एलोपैथी दवाइयों का उत्पादन और व्यवसाय करने वालों के आगे यह समस्या थी कि वह इन भारतीय नस्ल के गौवंशों को कैसे समाप्त करें | इसके लिए अनेक भारतीय  डॉक्टर और वैज्ञानिकों को अपने प्रभाव में लेने की कोशिश की जाने लगी तथा भारतीय गोवंश की कमियाँ बतलाई जाने लगी | किंतु आस्था और संस्कार के कारण भारतीय डॉक्टरों और वैज्ञानिकों के प्रयास के बाद भी भारतीय नस्ल के गोवंशों के विरुद्ध ब्रिटिश एलोपैथी व्यवसाइयों का यह षड्यंत्र सफल नहीं हुआ | 

 

अतः कालांतर में भारतीय नस्ल के गोवंश को समाप्त करने के लिए दूसरा रास्ता अपनाया गया | वह था “श्वेत क्रांति” इस श्वेत क्रांति में यह तय किया गया कि यदि भारत के अंदर भारतीय नस्ल के गोवंश को समाप्त करके फ्रीजियन या जर्सी नस्ल के गोवंश को पालने की आदत भारतीयों में  अधिक दूध प्राप्त करने का लालच देकर पैदा कर दी जाए | तो भारतीय स्वयं ही भारतीय नस्ल का गोवंश छोड़कर फ्रीजियन और जर्सी नस्ल के गोवंश का पालन शुरू कर देंगे | 
इसके लिये भारतीय नस्ल के  “बैल व सांड़” को ट्रैक्टर की आड़ में अनुपयोगी पशु बतला कर खत्म करने के लिए पूरे देश भर में पशु कत्लखानों की स्थापना की जाने लगी | जिसमें भारतीय नस्ल के “बैल व सांड़” खुलेआम लाइसेंस देकर कत्ल किए जाने लगे | जिस कारण से भारतीय नस्ल की गायों को प्रजनन हेतु “बैल व सांड़” मिलने बंद हो गए | अतः मजबूरीवश फ्रीजियन और जर्सी नस्ल के गोवंश से भारतीय नस्ल के गायों का प्रजनन करवाया जाने लगा | इस कार्य के लिए भारत वर्ष में सन् 1937 में पैलेस डेयरी फार्म मैसूर में पहला  “कृतिम गर्भाधान विभाग” का निर्माण किया गया | आज भी का पशुपालन विभाग के अधीन “कृतिम गर्भाधान विभाग” द्वारा फ्रीजियन और जर्सी नस्ल के गोवंश के वीर्य को संग्रह करके भारतीय नस्ल की गायों में प्रजनन हेतु प्रयोग किया जाता है |

 

 और इसके अलावा बैंकों के माध्यम से फ्रीजियन और जर्सी नस्ल की गाय व भैंसों को खरीदने के लिए बहुत बड़ी मात्रा में किसानों और दुग्ध व्यवसायियों को कर्ज का लालच दिया जाने लगा | धन के लालच में लाखों की संख्या में भारतीय किसानों और दुग्ध व्यवसायियों होने फ्रीजियन और जर्सी नस्ल की गाय तथा भैंसों को पालना शुरू कर दिया कालांतर में यह  प्रचार किया जाने लगा कि भारतीय नस्ल का गोवंश कम दूध देता है | अतः आर्थिक दृष्टिकोण से यह उपयोगी नहीं है |
 

यह सारे प्रयास “श्वेत क्रांति” योजना के तहत किये गये | इस तरह “श्वेत क्रांति” के नाम पर भारत में अमृत तुल्य दूध देने वाली भारतीय नस्ल के गोवंश को योजनाबद्ध तरीके से समाप्त कर दिया गया और उसके स्थान पर फ्रीजियन और जर्सी नस्ल एवं भैसों का प्रयोग किया जाने लगा |

 

 

अगर भारत को पुनः स्वस्थ बनाना है तो भारत के अंदर भारतीय ऋषियों द्वारा विकसित
 “भारतीय नस्ल का गोवंश”

स्थापित करना होगा  फ्रीजियन ,जर्सी नस्ल या भैंस के स्थान पर |
Subham varma

Posted in संस्कृत साहित्य

मृत्युभोज


👌🏻मृत्युभोज 

से ऊर्जा नष्ट होती है

महाभारत के अनुशासन पर्व में लिखा है कि …..

मृत्युभोज खाने वाले की ऊर्जा नष्ट हो जाती है।

जिस परिवार में मृत्यु जैसी विपदा आई हो उसके साथ इस संकट की घड़ी में जरूर खडे़ हों

और तन, मन, धन से सहयोग करें 

लेकिन……बारहवीं या तेरहवीं पर मृतक भोज का पुरजोर बहिष्कार करें।

महाभारत का युद्ध होने को था, 

अतः श्री कृष्ण ने दुर्योधन के घर जा कर युद्ध न करने के लिए संधि करने का आग्रह किया ।

दुर्योधन द्वारा आग्रह ठुकराए जाने पर श्री कृष्ण को कष्ट हुआ और वह चल पड़े, 

तो दुर्योधन द्वारा श्री कृष्ण से भोजन करने के आग्रह पर कृष्ण ने कहा कि

🍁

’’सम्प्रीति भोज्यानि आपदा भोज्यानि वा पुनैः’’

अर्थात्

“जब खिलाने वाले का मन प्रसन्न हो, खाने वाले का मन प्रसन्न हो, 

तभी भोजन करना चाहिए।

🍁

लेकिन जब खिलाने वाले एवं खाने वालों के दिल में दर्द हो, वेदना हो,

तो ऐसी स्थिति में कदापि भोजन नहीं करना चाहिए।”

🍁

हिन्दू धर्म में मुख्य 16 संस्कार बनाए गए है, 

जिसमें प्रथम संस्कार गर्भाधान एवं अन्तिम तथा 16वाँ संस्कार अन्त्येष्टि है। 

इस प्रकार जब सत्रहवाँ संस्कार बनाया ही नहीं गया 

तो सत्रहवाँ संस्कार 

‘तेरहवीं का भोज’ 

कहाँ से आ टपका।

किसी भी धर्म ग्रन्थ में मृत्युभोज का विधान नहीं है।

बल्कि महाभारत के अनुशासन पर्व में लिखा है कि मृत्युभोज खाने वाले की ऊर्जा नष्ट हो जाती है। 

लेकिन हमारे समाज का तो ईश्वर ही मालिक है।
जिस भोजन बनाने का कृत्य….

रो रोकर हो रहा हो….

जैसे लकड़ी फाड़ी जाती तो रोकर….

आटा गूँथा जाता तो रोकर….

एवं पूड़ी बनाई जाती है तो रो रोकर….

यानि हर कृत्य आँसुओं से भीगा हुआ।

ऐसे आँसुओं से भीगे निकृष्ट भोजन 

अर्थात बारहवीं एवं तेरहवीं के भोज का पूर्ण रूपेण बहिष्कार कर समाज को एक सही दिशा दें।

जानवरों से भी सीखें,

जिसका साथी बिछुड़ जाने पर वह उस दिन चारा नहीं खाता है।

जबकि 84 लाख योनियों में श्रेष्ठ मानव,

जवान आदमी की मृत्यु पर 

हलुवा पूड़ी पकवान खाकर शोक मनाने का ढ़ोंग रचता है।

इससे बढ़कर निन्दनीय कोई दूसरा कृत्य हो नहीं सकता।

यदि आप इस बात से

सहमत हों, तो 

आप आज से संकल्प लें कि आप किसी के मृत्यु भोज को ग्रहण नहीं करेंगे और मृत्युभोज प्रथा को रोकने का हर संभव प्रयास करेंगे 

हमारे इस प्रयास से यह कुप्रथा धीरे धीरे एक दिन अवश्य ही पूर्णत: बंद हो जायेगी

🍁

 सभी से परम आग्रह है कि

इस पोस्ट को अधिक से अधिक ग्रुप में शेयर करें।

मृत्युभोज समाज में फैली कुरीति है व समाज के लिये अभिशाप है ।

एक संसोधन जरूरी है

R K Nekhara

Posted in काश्मीर - Kashmir

मानसरोवर


चाइना ने कैलाश मानसरोवर की यात्रा के लिए भारतीयों की एंट्री पर रोक लगा दी ।

लगा भी सकते है, भाई आखिर कैलाश मानसरोवर उनके इलाके में जो आता है ।पर क्यों आता है और कब से आता है ।

1962 से पहले कैलाश मानसरोवर भारत का हे हिस्सा था, जब तक चीन ने भारत पर हमला कर के उसे हतिया नही लिया ।

इस के लिए हम सभी नेहरु का दोषी ठहराते है, और वो थे भी, क्यों की प्रधान मंत्री तो वो ही थे तब ।

पर क्या पता है चाइना के पास इतनी हिम्मत आई कहा से की वो भारत पर हमला कर सके ।

असल में उस वक़्त भारत के एक महा मुर्ख रक्षा मंत्री थे वि. के. कृषण मेनन ।

जी हाँ मुर्ख ही नही महा मुर्ख, ये थे तो रक्षा मंत्री पर इन्हें, देश की रक्षा और सेना से कोई मतलब नही था ।

ये भारत में कम और विदेशो में ज्यादा रहते थे, इनकी काबिलियत बस यही थी की ये नेहरु के दोस्त थे और इस कारण ये रक्षा मंत्री बने वर्ना इनकी बातें सुन कर आप इन्हें अपने घर का नौकर भी न रखो ।

ये जनाब लोकसभा ये प्रस्ताव रखते थे की, अब भारत का कोई भी मुल्क दुश्मन नही है, तो हमे अपनी फौज हटा देनी चाहिए ।

जी बिलकुल, इनको महा मुर्ख ऐसे ही नही कहा मैंने, इनका कहना था चीन हमारा दोस्त है और पाकिस्तान से हमारे दुश्मनी, 1948 में ही खत्म हो गई , तो हम पर हमला ही कोन करेगा ।

इन महानुभाव ने न सिर्फ सेना में कटोती की बल्कि जो शस्त्र बनाने वाले कारखाने थे उन्हें भी बंद करवा दिया था, जिस से चीन समझ गया था की पड़ोस में मूर्खो की सरकार है, और उसने हमला कर दिया ।

इस हमले में भारत की न सिर्फ 72000 वर्ग मील ज़मीन गई बल्कि, लाखो लोगो की जान भी गई ।

हमले के बाद भी ये इतने सतर्क थे की हफ्ते भर तक तो इन्होने चीन की सेना का जवाब देने के लिए अपनी सेना ही नही भेजी ।

और नेहरु ने जब अमेरिका के कहने पर चीन से संधी की तो वो 72000 वर्ग ज़मीन उन्हें दान में देकर की ।

उसकी हारी हुई ज़मीन का हिस्सा था कैलाश मानसरोवर, जो तीर्थ तो हमारा है पर उस पर कब्ज़ा है चाइना का ।

और जब युद्ध हारने पर विपक्ष के महावीर त्यागीजी ने नेहरु से पुछा की ये ज़मीन वापस कब ली जाएगी, तो नेहरु का जवाब था की वो बंज़र ज़मीन थी, उस पर एक घास का तिनका भी नही होता था , क्या करेंगे उस ज़मीन का? उस पर उन्होंने उत्तर दिया उगता तो हमारे ओर आपके सर पर भी कुछ नही इसका मतलब यह भी दे दे हम।

इतने महान थे हमारे चाचा नेहरु और उनके सिपेसलार ।

TMC..😠

विनोद सिंह