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विद्या महिमा के संस्कृत श्लोक | Sanskrit Slokas on Education with Meaning: 


आदि काल से ही हमारी भारतीय संस्कृति में शिक्षा का बड़ा महत्व रहा है| शिक्षा को अमरत्व का साधन माना गया है| “सा विद्या या विमुक्तये” का मंत्र संसार की एकमात्र हिंदू संस्कृति में मिलता है और इस तरह से हमारी संस्कृति ने सनातन काल से ही गुरु शिष्य परंपरा के माध्यम से शिक्षा को जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग माना है | यही कारण है कि समय समय पर हमारे ऋषि मुनियों के साथ-साथ समाज ने शिक्षा के महत्व पर आधारित संस्कृत श्लोकों की तमाम रचनाएं की जिसे आज मैं यहां संकलित कर रहा हूं मुझे विश्वास है कि यह आपको अच्छा लगेगा

विद्या महिमा के संस्कृत श्लोक | Sanskrit Slokas on Education with Meaning:

संयोजयति विद्यैव नीचगापि नरं सरित् ।
समुद्रमिव दुर्धर्षं नृपं भाग्यमतः परम् ॥
जैसे नीचे प्रवाह में बहेनेवाली नदी, नाव में बैठे हुए इन्सान को न पहुँच पानेवाले समंदर तक पहुँचाती है, वैसे हि निम्न जाति में गयी हुई विद्या भी, उस इन्सान को राजा का समागम करा देती है; और राजा का समागम होने के बाद उसका भाग्य खील उठता है ।

 

विद्यां ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम् ।
पात्रत्वात् धनमाप्नोति धनात् धर्मं ततः सुखम् ॥
विद्या विनय देती है; विनय से पात्रता, पात्रता से धन, धन से धर्म, और धर्म से सुख प्राप्त होता है ।

 

कुत्र विधेयो यत्नः विद्याभ्यासे सदौषधे दाने ।
अवधीरणा क्व कार्या खलपरयोषित्परधनेषु ॥
यत्न कहाँ करना ? विद्याभ्यास, सदौषध और परोपकार में । अनादर कहाँ करना ? दुर्जन, परायी स्त्री और परधन में ।

 

विद्याविनयोपेतो हरति न चेतांसि कस्य मनुजस्य ।
कांचनमणिसंयोगो नो जनयति कस्य लोचनानन्दम् ॥
विद्यावान और विनयी पुरुष किस मनुष्य का चित्त हरण नहि करता ? सुवर्ण और मणि का संयोग किसकी आँखों को सुख नहि देता ?

 

विद्या रूपं कुरूपाणां क्षमा रूपं तपस्विनाम् ।
कोकिलानां स्वरो रूपं स्त्रीणां रूपं पतिव्रतम् ॥
कुरुप का रुप विद्या है, तपस्वी का रुप क्षमा, कोकिला का रुप स्वर, तथा स्त्री का रुप पतिव्रत्य है ।

 

रूपयौवनसंपन्ना विशाल कुलसम्भवाः ।
विद्याहीना न शोभन्ते निर्गन्धा इव किंशुकाः ॥
रुप संपन्न, यौवनसंपन्न, और चाहे विशाल कुल में पैदा क्यों न हुए हों, पर जो विद्याहीन हों, तो वे सुगंधरहित केसुडे के फूल की भाँति शोभा नहि देते ।

 

माता शत्रुः पिता वैरी येन बालो न पाठितः ।
न शोभते सभामध्ये हंसमध्ये बको यथा ॥
जो अपने बालक को पढाते नहि, ऐसी माता शत्रु समान और पित वैरी है; क्यों कि हंसो के बीच बगुले की भाँति, ऐसा मनुष्य विद्वानों की सभा में शोभा नहि देता !

 

क्षणशः कणशश्चैव विद्यामर्थं च साधयेत् ।
क्षणे नष्टे कुतो विद्या कणे नष्टे कुतो धनम्  ॥
एक एक क्षण गवाये बिना विद्या पानी चाहिए; और एक एक कण बचा करके धन ईकट्ठा करना चाहिए । क्षण गवानेवाले को विद्या कहाँ, और कण को क्षुद्र समजनेवाले को धन कहाँ ?

 

अजरामरवत् प्राज्ञः विद्यामर्थं च साधयेत् ।
गृहीत एव केशेषु मृत्युना धर्ममाचरेत् ॥
बुढापा और मृत्यु आनेवाले नहि, ऐसा समजकर मनुष्य ने विद्या और धन प्राप्त करना; पर मृत्यु ने हमारे बाल पकडे हैं, यह समज़कर धर्माचरण करना ।

 

विद्या नाम नरस्य कीर्तिरतुला भाग्यक्षये चाश्रयो
धेनुः कामदुधा रतिश्च विरहे नेत्रं तृतीयं च सा ।
सत्कारायतनं कुलस्य महिमा रत्नैर्विना भूषणम्
तस्मादन्यमुपेक्ष्य सर्वविषयं विद्याधिकारं कुरु ॥
विद्या अनुपम कीर्ति है; भाग्य का नाश होने पर वह आश्रय देती है, कामधेनु है, विरह में रति समान है, तीसरा नेत्र है, सत्कार का मंदिर है, कुल-महिमा है, बगैर रत्न का आभूषण है; इस लिए अन्य सब विषयों को छोडकर विद्या का अधिकारी बन ।

 

श्रियः प्रदुग्धे विपदो रुणद्धि यशांसि सूते मलिनं प्रमार्ष्टि ।
संस्कारशौचेन परं पुनीते शुद्धा हि वुद्धिः किल कामधेनुः ॥
शुद्ध बुद्धि सचमुच कामधेनु है, क्यों कि वह संपत्ति को दोहती है, विपत्ति को रुकाती है, यश दिलाती है, मलिनता धो देती है, और संस्काररुप पावित्र्य द्वारा अन्य को पावन करती है ।

 

हर्तृ र्न गोचरं याति दत्ता भवति विस्तृता ।
कल्पान्तेऽपि न या नश्येत् किमन्यद्विद्यया विना ॥
जो चोरों के नजर पडती नहि, देने से जिसका विस्तार होता है, प्रलय काल में भी जिसका विनाश नहि होता, वह विद्या के अलावा अन्य कौन सा द्रव्य हो सकता है ?

 

ज्ञातिभि र्वण्टयते नैव चोरेणापि न नीयते ।
दाने नैव क्षयं याति विद्यारत्नं महाधनम् ॥
यह विद्यारुपी रत्न महान धन है, जिसका वितरण ज्ञातिजनों द्वारा हो नहि सकता, जिसे चोर ले जा नहि सकते, और जिसका दान करने से क्षय नहि होता ।

 

विद्या शस्त्रं च शास्त्रं च द्वे विद्ये प्रतिपत्तये ।
आद्या हास्याय वृद्धत्वे द्वितीयाद्रियते सदा ॥
शस्त्रविद्या और शास्त्रविद्या – ये दो प्राप्त करने योग्य विद्या हैं । इन में से पहली वृद्धावस्था में हास्यास्पद बनाती है, और दूसरी सदा आदर दिलाती है ।

 

सर्वद्रव्येषु विद्यैव द्रव्यमाहुरनुत्तमम् ।
अहार्यत्वादनर्ध्यत्वादक्षयत्वाच्च सर्वदा ॥
सब द्रव्यों में विद्यारुपी द्रव्य सर्वोत्तम है, क्यों कि वह किसी से हरा नहि जा सकता; उसका मूल्य नहि हो सकता, और उसका कभी नाश नहि होता ।

 

विद्या नाम नरस्य रूपमधिकं प्रच्छन्नगुप्तं धनम्
विद्या भोगकरी यशः सुखकरी विद्या गुरूणां गुरुः ।
विद्या बन्धुजनो विदेशगमने विद्या परं दैवतम्
विद्या राजसु पूज्यते न हि धनं विद्याविहीनः पशुः ॥
विद्या इन्सान का विशिष्ट रुप है, गुप्त धन है । वह भोग देनेवाली, यशदात्री, और सुखकारक है । विद्या गुरुओं का गुरु है, विदेश में वह इन्सान की बंधु है । विद्या बडी देवता है; राजाओं में विद्या की पूजा होती है, धन की नहि । इसलिए विद्याविहीन पशु हि है ।

 

मातेव रक्षति पितेव हिते नियुंक्ते
कान्तेव चापि रमयत्यपनीय खेदम् ।
लक्ष्मीं तनोति वितनोति च दिक्षु कीर्तिम्
किं किं न साधयति कल्पलतेव विद्या ॥
विद्या माता की तरह रक्षण करती है, पिता की तरह हित करती है, पत्नी की तरह थकान दूर करके मन को रीझाती है, शोभा प्राप्त कराती है, और चारों दिशाओं में कीर्ति फैलाती है । सचमुच, कल्पवृक्ष की तरह यह विद्या क्या क्या सिद्ध नहि करती ?

 

सद्विद्या यदि का चिन्ता वराकोदर पूरणे ।
शुकोऽप्यशनमाप्नोति रामरामेति च ब्रुवन् ॥
सद्विद्या हो तो क्षुद्र पेट भरने की चिंता करने का कारण नहि । तोता भी “राम राम” बोलने से खुराक पा हि लेता है ।

 

न चोरहार्यं न च राजहार्यं न भ्रातृभाज्यं न च भारकारी ।
व्यये कृते वर्धते एव नित्यं विद्याधनं सर्वधन प्रधानम् ॥
विद्यारुपी धन को कोई चुरा नहि सकता, राजा ले नहि सकता, भाईयों में उसका भाग नहि होता, उसका भार नहि लगता, (और) खर्च करने से बढता है । सचमुच, विद्यारुप धन सर्वश्रेष्ठ है ।

 

अपूर्वः कोऽपि कोशोड्यं विद्यते तव भारति ।
व्ययतो वृद्धि मायाति क्षयमायाति सञ्चयात् ॥
हे सरस्वती ! तेरा खज़ाना सचमुच अवर्णनीय है; खर्च करने से वह बढता है, और संभालने से कम होता है।
नास्ति विद्यासमो बन्धुर्नास्ति विद्यासमः सुहृत् ।
नास्ति विद्यासमं वित्तं नास्ति विद्यासमं सुखम् ॥
विद्या जैसा बंधु नहि, विद्या जैसा मित्र नहि, (और) विद्या जैसा अन्य कोई धन या सुख नहि ।

 

अनेकसंशयोच्छेदि परोक्षार्थस्य दर्शकम् ।
सर्वस्य लोचनं शास्त्रं यस्य नास्त्यन्ध एव सः ॥
अनेक संशयों को दूर करनेवाला, परोक्ष वस्तु को दिखानेवाला, और सबका नेत्ररुप शास्त्र जिस ने पढा नहि, वह इन्सान (आँख होने के बावजुद) अंधा है ।

 

सुखार्थिनः कुतोविद्या नास्ति विद्यार्थिनः सुखम् ।
सुखार्थी वा त्यजेद् विद्यां विद्यार्थी वा त्यजेत् सुखम् ॥
जिसे सुख की अभिलाषा हो (कष्ट उठाना न हो) उसे विद्या कहाँ से ? और विद्यार्थी को सुख कहाँ से ? सुख की ईच्छा रखनेवाले ने विद्या की आशा छोडनी चाहिए, और विद्यार्थी ने सुख की ।

 

ज्ञानवानेन सुखवान् ज्ञानवानेव जीवति ।
ज्ञानवानेव बलवान् तस्मात् ज्ञानमयो भव ॥
ज्ञानी इन्सान हि सुखी है, और ज्ञानी हि सही अर्थ में जीता है । जो ज्ञानी है वही बलवान है, इस लिए तूं ज्ञानी बन । (वसिष्ठ की राम को उक्ति)

 

कुलं छलं धनं चैव रुपं यौवनमेव च ।
विद्या राज्यं तपश्च एते चाष्टमदाः स्मृताः ॥
कुल, छल, धन, रुप, यौवन, विद्या, अधिकार, और तपस्या – ये आठ मद हैं ।

 

सालस्यो गर्वितो निद्रः परहस्तेन लेखकः ।
अल्पविद्यो विवादी च षडेते आत्मघातकाः ॥
आलसी, गर्विष्ठ, अति सोना, पराये के पास लिखाना, अल्प विद्या, और वाद-विवाद ये छे आत्मघाती हैं ।

 

स्वच्छन्दत्वं धनार्थित्वं प्रेमभावोऽथ भोगिता ।
अविनीतत्वमालस्यं विद्याविघ्नकराणि षट् ॥
स्वंच्छंदता, पैसे का मोह, प्रेमवश होना, भोगाधीन होना, उद्धत होना – ये छे भी विद्याप्राप्ति में विघ्नरुप हैं ।

 

गीती शीघ्री शिरः कम्पी तथा लिखित पाठकः ।
अनर्थज्ञोऽल्पकण्ठश्च षडेते पाठकाधमाः ॥
गाकर पढना, शीघ्रता से पढना, पढते हुए सिर हिलाना, लिखा हुआ पढ जाना, अर्थ न जानकर पढना, और धीमा आवाज होना ये छे पाठक के दोष हैं ।

 

माधुर्यं अक्षरव्यक्तिः पदच्छेदस्तु सुस्वरः ।
धैर्यं लयसमर्थं च षडेते पाठके गुणाः ॥
माधुर्य, स्पष्ट उच्चार, पदच्छेद, मधुर स्वर, धैर्य, और तन्मयता – ये पाठक के छे गुण हैं ।

 

विद्या वितर्को विज्ञानं स्मृतिः तत्परता क्रिया ।
यस्यैते षड्गुणास्तस्य नासाध्यमतिवर्तते ॥
विद्या, तर्कशक्ति, विज्ञान, स्मृतिशक्ति, तत्परता, और कार्यशीलता, ये छे जिसके पास हैं, उसके लिए कुछ भी असाध्य नहि ।

 

द्यूतं पुस्तकवाद्ये च नाटकेषु च सक्तिता ।
स्त्रियस्तन्द्रा च निन्द्रा च विद्याविघ्नकराणि षट् ॥
जुआ, वाद्य, नाट्य (कथा/फिल्म) में आसक्ति, स्त्री (या पुरुष), तंद्रा, और निंद्रा – ये छे विद्या में विघ्नरुप होते हैं ।

 

आयुः कर्म च विद्या च वित्तं निधनमेव च ।
पञ्चैतानि विलिख्यन्ते गर्भस्थस्यैव देहिनः ॥
आयुष्य, (नियत) कर्म, विद्या (की शाखा), वित्त (की मर्यादा), और मृत्यु, ये पाँच देही के गर्भ में हि निश्चित हो जाते हैं ।

 

आरोग्य बुद्धि विनयोद्यम शास्त्ररागाः ।
आभ्यन्तराः पठन सिद्धिकराः भवन्ति ॥
आरोग्य, बुद्धि, विनय, उद्यम, और शास्त्र के प्रति राग (आत्यंतिक प्रेम) – ये पाँच पठन के लिए आवश्यक आंतरिक गुण हैं ।

 

आचार्य पुस्तक निवास सहाय वासो ।
बाह्या इमे पठन पञ्चगुणा नराणाम् ॥
आचार्य, पुस्तक, निवास, मित्र, और वस्त्र – ये पाँच पठन के लिए आवश्यक बाह्य गुण हैं ।

 

दानानां च समस्तानां चत्वार्येतानि भूतले ।
श्रेष्ठानि कन्यागोभूमिविद्या दानानि सर्वदा ॥
सब दानों में कन्यादान, गोदान, भूमिदान, और विद्यादान सर्वश्रेष्ठ है ।

 

तैलाद्रक्षेत् जलाद्रक्षेत् रक्षेत् शिथिल बंधनात् ।
मूर्खहस्ते न दातव्यमेवं वदति पुस्तकम् ॥
पुस्तक कहता है कि, तैल से मेरी रक्षा करो, जल से रक्षा करो, मेरा बंधन शिथिल न होने दो, और मूर्ख के हाथ में मुझे न दो ।

 

दानं प्रियवाक्सहितं ज्ञानमगर्वं क्षमान्वितं शौर्यम् ।
वित्तं दानसमेतं दुर्लभमेतत् चतुष्टयम् ॥
प्रिय वचन से दिया हुआ दान, गर्वरहित ज्ञान, क्षमायुक्त शौर्य, और दान की इच्छावाला धन – ये चार दुर्लभ है ।

 

अव्याकरणमधीतं भिन्नद्रोण्या तरंगिणी तरणम् ।
भेषजमपथ्यसहितं त्रयमिदमकृतं वरं न कृतम् ॥
व्याकरण छोडकर किया हुआ अध्ययन, तूटी हुई नौका से नदी पार करना, और अयोग्य आहार के साथ लिया हुआ औषध – ये ऐसे करने के बजाय तो न करने हि बेहतर है ।

 

यथा काष्ठमयो हस्ती यथा चर्ममयो मृगः ।
तथा वेदं विना विप्रः त्रयस्ते नामधारकाः ॥
लकडे का हाथी, और चमडे से आवृत्त मृग की तरह वेदाध्ययन न किया हुआ ब्राह्मण भी केवल नामधारी हि है ।

 

गुरुशुश्रूषया विद्या पुष्कलेन धनेन वा ।
अथवा विद्यया विद्या चतुर्थी नोपलभ्यते ॥
गुरु की सेवा करके, अत्याधिक धन देकर, या विद्या के बदले में हि विद्या पायी जा सकती है; विद्या पानेका कोई चौथा उपाय नहि ।

 

विद्याभ्यास स्तपो ज्ञानमिन्द्रियाणां च संयमः ।
अहिंसा गुरुसेवा च निःश्रेयसकरं परम् ॥
विद्याभ्यास, तप, ज्ञान, इंद्रिय-संयम, अहिंसा और गुरुसेवा – ये परम् कल्याणकारक हैं ।

 

पठतो नास्ति मूर्खत्वं अपनो नास्ति पातकम् ।
मौनिनः कलहो नास्ति न भयं चास्ति जाग्रतः ॥
पढनेवाले को मूर्खत्व नहि आता; जपनेवाले को पातक नहि लगता; मौन रहनेवाले का झघडा नहि होता; और जागृत रहनेवाले को भय नहि होता ।

 

अर्थातुराणां न सुखं न निद्रा कामातुराणां न भयं न लज्जा ।
विद्यातुराणां न सुखं न निद्रा क्षुधातुराणां न रुचि न बेला ॥
अर्थातुर को सुख और निद्रा नहि होते; कामातुर को भय और लज्जा नहि होते । विद्यातुर को सुख व निद्रा, और भूख से पीडित को रुचि या समय का भान नहि रहेता ।

 

अनालस्यं ब्रह्मचर्यं शीलं गुरुजनादरः ।
स्वावलम्बः दृढाभ्यासः षडेते छात्र सद्गुणाः ॥
अनालस्य, ब्रह्मचर्य, शील, गुरुजनों के लिए आदर, स्वावलंबन, और दृढ अभ्यास – ये छे छात्र के सद्गुण हैं ।

 

अलसस्य कुतो विद्या अविद्यस्य कुतो धनम् ।
अधनस्य कुतो मित्रममित्रस्य कुतः सुखम् ॥
आलसी इन्सान को विद्या कहाँ ? विद्याविहीन को धन कहाँ ? धनविहीन को मित्र कहाँ ? और मित्रविहीन को सुख कहाँ ?

 

पुस्तकस्या तु या विद्या परहस्तगतं धनं ।
कार्यकाले समुत्पन्ने न सा विद्या न तद्धनम् ॥
पुस्तकी विद्या और अन्य को दिया हुआ धन ! योग्य समय आने पर ऐसी विद्या विद्या नहीं और धन धन नहीं, अर्थात् वे काम नहीं आते ।
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अकबर का बाप कौन..??


अकबर का बाप कौन..??
स्कूलों मे यह पढाया जाता है की अकबर के पिता का नाम हुमायूँ था।
पर मैने तो इतिहास मे ये पढा है की सन 1539 ई० में हुमायूँ और शेरशाह सूरी के बीच चौसा का युद्ध हुआ.. जिसमे हुमायूँ हार गया और 1540 ई० में अपनी बीवी को अमरकोट के राजा वीरसाल के पास छोड़कर ईरान भाग गया था …इसके बाद वो 15 वर्ष भटकता रहा ।
अब साला सिर सोच सोचकर फटा जा रहा है की जब 1540 के बाद हुमायूँ अपनी बीवी के साथ नही था
तो 2 वर्ष बाद 1542 में उसे अकबर के रूप में पुत्ररत्न की प्राप्ति कैसे हो गयी…?
कौन है अकबर का बाप ?
हां तो दोस्तों,अकबर को हम किसका पुत्र समझें..?
कोई बुद्धिजीवी इतिहासकार या कोई शोधकर्ता , मेरे इस प्रश्न का उत्तर देगा ???

Posted in खान्ग्रेस

कांग्रेस का पूरा इतिहास ही सेक्स स्कैंडलों से भरा पड़ा है, जगजीवन राम भी इसी कारण नहीं बन पाए PM


कांग्रेस का पूरा इतिहास ही सेक्स स्कैंडलों से भरा पड़ा है, जगजीवन राम भी इसी कारण नहीं बन पाए PM

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रक्षासौदों में दलाली, ऐयाशी इस से कांग्रेस का इतिहास पूरा भरा पड़ा है

सिर्फ अभिषेक वर्मा का ही नहीं एक और मशहूर काण्ड कांग्रेस में हुआ है, और वो काण्ड जगजीवन राम से जुड़ा हुआ है, जो की भारत के तत्कालीन रक्षामंत्री थे
जगजीवन राम का बेटा ”सुरेश कुमार” एक बिगड़ी हुई अय्याश किस्म की औलाद था जिसने देश की रक्षा संबधी महत्वपूर्ण जानकारियों को चीन तथा पाकिस्तान को बेच दिया था !
तब 1970 से 1974 तक जगजीवन राम देश के रक्षामंत्री के रूप में काम किया करते थे, विदेशी गुप्तचर  एजेंसिया गुप्त सूचनाएं हासिल करने के लिए सुरेश कुमार को शराब तथा अय्याशी का पूरा इंतजाम किया करते थे !

इसी सिलसिले में उसने सुषमा नाम की विदेशी एजेंट से शारीरिक संबंध भी बनाए, ये सुषमा भी कांग्रेस से ही जुडी ही थी, और उत्तर प्रदेश के बागपत जिले से इसका सम्बन्ध था

ये विदेशी एजेंटों के हाथों बिकी हुई थी, और नेताओं को फंसाने में विदेशी एजेंटों का साथ देती थी

विदेशी गुप्तचर एजेंसियों ने ब्लैकमेल करने के लिएसुरेश राम की अश्लील फोटो भी खिंच ली थी जिसके वजह से वह हर महत्वपूर्ण सूचना भारत विरोधी गुप्तचर संस्थाओं को दे देता था !

इन अश्लील चित्रों के लीक होने से जगजीवन राम को काफी अपमानित होना पडा था , तथा राजनैतिक कैरियर में नुकसान भी उठाना पडा था !

इंदिरा गाँधी चुनाव हार गयी थी, और कांग्रेस की तरफ से जगजीवन राम ही उभर कर सामने आ रहे थे, पर अपने बेटे सुरेश के स्कैंडल के कारण ही जगजीवन राम प्रधानमंत्री नहीं बन पाए, और उप प्रधानमंत्री ही रह गए
सुरेश भी कांग्रेस से ही जुड़ा हुआ था, और कांग्रेस का नेता था

कांग्रेस का इतिहास काफी दागी रहा है, और कांग्रेस के नेताओं ने ऐयाशी, पैसे के लिए कई कई बार देश से समझौता  किया है, जिसे भारत की बिकाऊ मीडिया देश से छुपाकर ही रखती है
नोट : नेहरू के ज़माने में इतने कैमरे इत्यादि नहीं थे, अन्यथा क्या होता इस बात का भी अंदाजा आप लगा सकते है I

उमेश कुमार निर्मलकर

Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

देश के लोग ये तो जानते है कि चीन ने हमें 1962 में हराया पर ये नहीं जानते कि 1967 में हमने भी चीन को हराया था।  

चीन ने “सिक्किम” पर कब्ज़ा करने की कोशिश की थी. नाथू ला और चो ला फ्रंट पर ये युद्ध लड़ा गया था. चीन को एसा करारा जवाब मिला था कि चीनी भाग खड़े हुये थे.  इस युद्ध में, 88 भारतीय सैनिक बलिदान हुये थे और 400 चीनी सैनिक मारे गए थे. इस युद्ध के बाद ही सिक्किम, “भारत का हिस्सा” बना था !

इस युद्ध में “पूर्वी कमान” को वही सैम मानेक शॉ संभाल रहे थे जिन्होंने बांग्लादेश बनवाया था।

इस युद्ध के हीरो थे राजपुताना रेजिमेंट के मेजर जोशी, कर्नल राय सिंह , मेजर हरभजन सिंह.

गोरखा रेजिमेंट के कृष्ण बहादुर , देवीप्रसाद ने कमाल कर दिया था !! जब गोलिया ख़तम हो गयी थी तो इन गोरखों ने कई चीनियों को अपनी “खुखरी” से ही काट डाला था ! कई गोलियाँ शरीर में लिए हुए मेजर जोशी ने चार चीनी ऑफिसर को मारा ! वैसे तो कई और हीरो भी है पर ये कुछ वो नाम है जिन्हें वीर चक्र मिला और इनकी वीरगाथा इतिहास बनी !!

मैं किसी पोस्ट को शेयर करने के लिये नहीं कहता पर इसे शेयर करो ताकि अधिक से अधिक लोग जाने,दुःख की बात है कि बहुत कम भारतीयों को इसके बारे में पता है !!

सुनील गुप्ता

Posted in काश्मीर - Kashmir

चाइना ने कैलाश मानसरोवर की यात्रा के लिए भारतीयों की एंट्री पर रोक लगा दी ।

लगा भी सकते है, भाई आखिर कैलाश मानसरोवर उनके इलाके में जो आता है ।पर क्यों आता है और कब से आता है ।

1962 से पहले कैलाश मानसरोवर भारत का हे हिस्सा था, जब तक चीन ने भारत पर हमला कर के उसे हतिया नही लिया ।

इस के लिए हम सभी नेहरु का दोषी ठहराते है, और वो थे भी, क्यों की प्रधान मंत्री तो वो ही थे तब ।

पर क्या पता है चाइना के पास इतनी हिम्मत आई कहा से की वो भारत पर हमला कर सके ।

असल में उस वक़्त भारत के एक महा मुर्ख रक्षा मंत्री थे वि. के. कृषण मेनन ।

जी हाँ मुर्ख ही नही महा मुर्ख, ये थे तो रक्षा मंत्री पर इन्हें, देश की रक्षा और सेना से कोई मतलब नही था ।

ये भारत में कम और विदेशो में ज्यादा रहते थे, इनकी काबिलियत बस यही थी की ये नेहरु के दोस्त थे और इस कारण ये रक्षा मंत्री बने वर्ना इनकी बातें सुन कर आप इन्हें अपने घर का नौकर भी न रखो ।

ये जनाब लोकसभा ये प्रस्ताव रखते थे की, अब भारत का कोई भी मुल्क दुश्मन नही है, तो हमे अपनी फौज हटा देनी चाहिए ।

जी बिलकुल, इनको महा मुर्ख ऐसे ही नही कहा मैंने, इनका कहना था चीन हमारा दोस्त है और पाकिस्तान से हमारे दुश्मनी, 1948 में ही खत्म हो गई , तो हम पर हमला ही कोन करेगा ।

इन महानुभाव ने न सिर्फ सेना में कटोती की बल्कि जो शस्त्र बनाने वाले कारखाने थे उन्हें भी बंद करवा दिया था, जिस से चीन समझ गया था की पड़ोस में मूर्खो की सरकार है, और उसने हमला कर दिया ।

इस हमले में भारत की न सिर्फ 72000 वर्ग मील ज़मीन गई बल्कि, लाखो लोगो की जान भी गई ।

हमले के बाद भी ये इतने सतर्क थे की हफ्ते भर तक तो इन्होने चीन की सेना का जवाब देने के लिए अपनी सेना ही नही भेजी ।

और नेहरु ने जब अमेरिका के कहने पर चीन से संधी की तो वो 72000 वर्ग ज़मीन उन्हें दान में देकर की ।

उसकी हारी हुई ज़मीन का हिस्सा था कैलाश मानसरोवर, जो तीर्थ तो हमारा है पर उस पर कब्ज़ा है चाइना का ।

और जब युद्ध हारने पर विपक्ष के महावीर त्यागीजी ने नेहरु से पुछा की ये ज़मीन वापस कब ली जाएगी, तो नेहरु का जवाब था की वो बंज़र ज़मीन थी, उस पर एक घास का तिनका भी नही होता था , क्या करेंगे उस ज़मीन का?

इतने महान थे हमारे चाचा नेहरु और उनके सिपेसलार ।

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इल्लुमिनाति और

भारत्त में शैक्षणिक षडयंत्र 2
*कक्षा 10 में यौन शिक्षा*
शायद 1985 में स्कूलों में 11वि कक्षा के बाद 12 वि कक्षा को जोड़ा गया था।

इससे पहले केवल 11वि तक ही स्कूली पाठ्यक्रम होता था जिसमे कक्षा 9 से विज्ञान या आर्ट्स या कॉमर्स विषय चुनने पड़ते थे।।
12वि कक्षा होने के बाद विषय चुनने का कार्य 11वि से होने लगा।
फिर 1985 में ही कक्षा 10 में स्वास्थ्य जानकारी के नाम पर यौन शिक्षा का एक अध्याय, जीव विज्ञान विषय में पढ़ाया जाने लगा जिसमे महिला , पुरुष के गुप्त अंगो का सचित्र विवरण होता है।
कक्षा 10 वि ही क्यों चुनी गई ?
हमारे भारत्त देश में केवल सेटेलाइट के विषय में ही शोध होते है,ऐसा लगता है,जबकि यूरोप के वैज्ञानिक , मनुष्य की प्रतिदिन की प्रत्येक गतिविधि पर रिसर्च करते है, सुबह जागने से लेकर सोने तक,एवम सोने के बाद भी।
तो
यूरोप के वैज्ञानिकों ने रिसर्च की और पाया कि 15-16 वर्ष की उम्र लड़के लड़कियों में अत्यंत संवेदनशीलता होती है , जिज्ञासु प्रव्रवत्ति होती है, शारीरिक परिवर्तन होने लगते है।विशिष्ट हारमोन का उत्पादन होता है, इसलिये इस उम्र में दूसरे लिंगी के प्रति आकर्षण स्वयम उत्पन्न होता है क्योंकि हारमोन का निकलना अभी आरम्भ हुआ होता है,इसलिये विशिष्ट उत्तेजना इसी उम्र में उत्पन्न होती है।

तो

इस उम्र में भारत्त के पारिवारिक रूप से संस्कारित लड़के लडकिया , विपरीत योनि की तरफ आकर्षित हो, अपनी ऊर्जा और बुद्धि,  पढ़ाई खेल की बजाय, सेक्सुअल बातो में लेने लगे,इसलिये यूरोप के इशारे पर भारत्त में कक्षा 10वि में ये अध्याय रखे गए ताकि भारत्त की युवा पीढ़ी भटकने लग जाए और भारत्त का भविष्य बर्बाद हो। 

साथ ही इन कक्षाओ में एड्स की चर्चा की जाती है, तो भारत्त में क्या 10वि के बच्चों को एड्स होता है? या होने की संभावना है? क्या ये पाठ 12 की कक्षा या 6वि कक्षा में नहीं रखा जा सकता था?

क्या ये पाठ ,लड़कियों को अलग से महिला अंगो की जानकारी देना, लड़को को अलग से पुरुष अंगो की जानकारी देने का कार्य नही हो सकता था, सर्वजनिक किताब में पुरुष महिला के गुप्त अंगो के चित्र क्यों ???
स्वास्थ्य रक्षा का अध्याय यदि रखना था तो क्यों सर्दी जुकाम, बुखार, आँखों, पेट के रोगों का अध्याय नही रखा गया जबकि ये रोग हर घर में होते है और आयुर्वेद,घरेलु औषधियों के मॉध्यम से ठीक किये जा सकते है।

गाय के दूध, घी, भोजन , हल्दी, जीरा,अजवायन, गुड़, मिश्री, ब्राह्मी, नीबू आदि के विषय में स्कुल में कोई अद्याय नही है जबकि

समुद्र के अंदर पाये जाने वाले जीवो, वृक्ष के हर भाग का विशिष्ट वर्णन है जोकि प्रतिदिन के जीवन में किसी लाभ का ज्ञान नहीं है।

गायब जो है वो है चरक, शुश्रुत , धन्वंतरि, नागार्जुन, वाग्भट्ट आदि के महान् आविष्कार।
पहचानिये कौन लोग है वो, जो देश की शिक्षा पद्यति को भारतीय संस्कृति के विपरीत ले जा चुके आजादी के बाद से ही।

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वयाच्या २१ व्या वर्षी सरकारी नोकरी, मानसन्मान, पैसाअडका असं सगळं स्वप्नवत


वयाच्या २१ व्या वर्षी सरकारी नोकरी, मानसन्मान, पैसाअडका असं सगळं स्वप्नवत असताना अचानक नोकरीचा राजीनामा देणाऱ्या मुलीला तुम्ही काय म्हणाल?…

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कदाचित बेजाबदार किंवा लहरी म्हणाल.

पण, समाज ‘ति’ला ‘हिरकणी’ म्हणतो आहे, ‘द रियल हिरोज’ या पुरस्काराने सन्मानित करतो आहे.

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पोलीस निरीक्षक पदाची नोकरी सोडून अनेक अनाथ, गरीब, मनोरुग्णांसाठी कार्य करणारी ‘द रियल हिरो’!

२७ डिसेंबर २०१६ ला ‘ती’ विवाहबंधनात अडकली. लग्नातील अनावश्यक खर्चाला फाटा देत तिने नोंदणी पद्धतीने लग्न करण्याचा निर्णय घेतला.

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लग्नाच्या दिवशी तिने व तिच्या जोडीदाराने रक्तदान केले. एवढंच नाही, तर त्यांच्या लग्नाला आलेल्या इतर मंडळीनी देखील रक्तदान केलं.

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सर्वात महत्त्वाचं म्हणजे लग्नाच्याच दिवशी या नवीन जोडप्याने ५ अनाथ मुलींचे पालकत्व घेऊन एक वेगळा आदर्श निर्माण केला.

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कोण ही ती? ही आहे गुंजन गोळे. महाराष्ट्रातील अमरावती जिल्ह्यात एका सर्वसामान्य कुटुंबात जन्माला आलेली ही मुलगी आज तिच्या कर्तृत्वाने महाराष्ट्र गाजवते आहे. हो ! शब्दशः गाजवते आहे.

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गुंजनने अमरावतीत गवळीगड येथे महिला ढोल पथक सुरु केले आणि राज्यातील पहिले महिला ढोल पथक सुरू करण्याचा मान तिला मिळाला. या पथकात आज १५० महिला आहेत.

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तत्त्वज्ञानामध्ये एम.ए. केल्यानंतर गुंजनने स्पर्धा परीक्षेची तयारी करण्यास सुरुवात केली. प्रचंड कष्ट आणि मेहनतीने अभ्यास केला. युपीएससीमधील Combined Defence Services ची परीक्षा तिने दिली आणि ती उत्तीर्ण देखील झाली. त्यानंतर तिने पोलीस उपनिरीक्षकपदासाठी परीक्षा दिली आणि तिने त्यातही यश मिळवलं.

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लहानपणी गुंजनने पाहिलेलं स्वप्न पूर्ण झालं. आईवडील आणि तिच्या स्वतःच्या कष्टाचं चीज झालं.

गुंजन पोलीस निरीक्षक पदावर रुजू झाली.

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दिवसरात्र मेहनत करून मिळवलेल्या नोकरीचा गुंजनने एक दिवस राजीनामा दिला…! आश्चर्य वाटलं ना?

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पण, हा राजीनामा नोकरीचा कंटाळा आला, काम जमलंच नाही, वरिष्ठांचा दबाव आला म्हणून दिला नव्हता. राजीनामा देण्यामागे एक विचार होता. एक ध्येय होतं. वेगळ करून दाखवण्याची जिद्द होती. समाजसेवेची ओढ होती. हे सगळं करण्यासाठी गुंजनला प्रेरित करणारा प्रसंगही तसाच घडला होता.

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एके दिवशी रात्री ड्युटी आटोपून घरी परतत असताना गुंजनला एक मनोरुग्ण महिला अर्धानग्न अवस्थेत रस्त्याच्या कडेला दिसली. त्या महिलेच्या अंगावर जेमतेम कपडे होते. केस सुटलेले, अनेक दिवस अंघोळ न केल्याने ती विचित्र दिसत होती. त्यातच ती गरोदर आहे हे गुंजनच्या लक्षात आलं. नक्कीच कोणीतरी नराधमाने तिला आपल्या वासनेचं शिकार केलं असणार!

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ते दृश्य बघून गुंजनला खूप रडू आलं. किळस वाटली. स्वत:ला माणूस म्हणवून घ्यायची लाज वाटायला लागली. गुंजनने सगळा धीर एकवटला. ती गाडीतून उतरली. त्या महिलेला घेऊन तिची योग्य ती सोय लावण्याचा तिने ठाम विचार केला आणि अजून एक विचार केला, तो म्हणजे अशा महिलांसाठी कार्य करण्याचा!

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तिचा विचार पक्का झाला आणि अतिशय कष्टाने मिळवलेल्या नोकरीचा गुंजनने राजीनामा दिला. आधीची पोलीस निरीक्षक गुंजन आता रस्त्यांवरील मनोरुग्ण, वयस्क, अनाथ आजी-आजोबा, मुले यांचा आधार झाली.

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आता गुंजनचा दिवस पहाटे केव्हा सुरू होतो आणि केव्हा संपतो हे तिला देखील कळत नाही. ती अमरावती परिसरातील गरीब-गरजू मुलांना सैनिक भरतीचे प्रशिक्षण देते. स्पर्धा परीक्षांचे क्लासेस घेते. ढोल पथकाचा सराव घेते. महिला व मुलींना स्वरक्षणाचे धडे देते. साहसी खेळ जसे लाठी-काठी, तलवारबाजी, दांडपट्टा हे शिकवण्याच्या कार्यशाळा महाराष्ट्रभर आयोजित करते. विशेष म्हणजे, या सगळ्यातून मिळणारे पैसे ती समाजकार्यात वापरते.

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संध्याकाळी आपल्या दुचाकीवर बसून बिस्किटाचे पुडे, पाण्याच्या बाटल्या, छोटे हातरुमाल अशा विविध साहित्याने भरलेली बॅग घेऊन रस्त्यांवर कोणी उपाशी झोपले आहे का, थंडीत कुडकुडते आहे का? याचा ती शोध घेते आणि गरजुंना ते साहित्य देते.

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आजवर कित्येक नवजात बालकांना तिने मृत्यूच्या जबड्यातून वाचवले आहे. अनैतिक संबंधातून जन्माला आलेल्या आणि रस्त्यावर फेकून दिलेल्या अनेक नवजात शिशुंना तिने जीवदान दिले आहे. तिच्या पुढाकाराने अनेक मनोरुग्ण, कृष्टरोगी यांच्यावर उपचार सुरू आहेत.

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गुंजन एक उत्तम गिर्यारोहक देखील आहे! दरवर्षी १५ ऑगस्ट आणि २६ जानेवारीला ती कळसूबाईचे शिखर सर करते आणि कळसूबाईवर तिरंगा फडकावते. आतापर्यंत १४ वेळा तिने हे शिखर सर केले आहे.

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गुंजनशी बोलताना तिचा बिनधास्त स्वभाव, समाजासाठी वाटणारी तळमळ शब्दाशब्दातून जाणवते. या

मुलाखतीत तिने एकदाही स्वतःला मिळालेल्या कोणत्याही सन्मानांचा किंवा पुरस्कारांचा उच्चार देखील केला नाही.

ज्याप्रमाणे पाच मुली दत्तक घेतल्या तशाच ५०० मुली दत्तक घेण्याचा गुंजनचा मानस आहे. महाराष्ट्रात एकही मनोरुग्ण, अनाथ, वयोवृद्ध रस्तावर बेवारस अवस्थेत राहू नये असं तिला वाटत.

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महाराष्ट्राच्या या नारीशक्तीला सलाम….👍👍

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*गोबर है गऊ का बरदान*

*आओ इस को लें पहचान*
वैसे तो भारत के ग्रामीण आंचल में आज भी हम हिंदूओ का अंतिम संस्कार गोसो (उपलों) से ही किया जाता है लेकिन हम शहरी कुछ ज्यादा ही पढ़ लिख गये और कुछ ज्यादा ही समझदार हो गए। शहरों के लगभग सभी शमशान घाटों पर लकड़ी से ही अंतेष्ठी की जाती है तथा कई जगह तो आधूनिकता व पर्यावरण संरक्षण के नाम पर गैस या बिजली से भी अंतिम संस्कार होने लगे हैं जो कि पूर्णतया गलत हैं। 
हम हिन्दूओं का सोलहवां संस्कार एक यज्ञ ही तो है और वह यज्ञ गौमाता के गोबर में ही होना चाहिए। पर्यीवरण रक्षक हमारे पुर्वजों ने जो अंतिम संस्कार की जो विधि बनाई थी उस में गोबर अनिवार्य अंग था लेकिन आज हम अपने अंतिम संस्कार के लिए हर वर्ष पांच से छः करोड़ पेड़ काट कर शमशान घाटों में जला देते हैं तथा हमारी अज्ञानता से गोबर गौशालाओं में सड़ रहा है व गौशालाएं चंदे पर चल रही हैं।
अगर गोबर का सही प्रबंधन कर हम उस गोबर को शमशान घाट पहुंचाने लगें तो सोने पर सुहागा होगा और गौशाला आर्थिक रूप से स्वावलंबी होंगी। कल हमने रोहतक के शीला बाईपास स्थित रामबाण में यह प्रयोग कर के देखा। एक अंतिम संस्कार पर औसतन तीन सौ किलो लकड़ी यानि एक पंद्रह साल का पेढ़ लगता है। हमनें जब गौकाष्ठ में अंतेष्ठी की तो मात्र 200 किलो ही गौकाष्ठ लगा। कल हमनें एक पेड़ व 2500/- ₹ बचाए तथा एक विलुप्त होती परम्पारा को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया। 
इस अवसर के बाबा कर्ण पुरी जी  महाराज, भारत भूषण खुराना, गुलशन डंग, सुरेन्द्र बत्रा, गुलशन खुराना, कृष्ण लाल शर्मा, नरेंद्र वासन, शमशेर दहिया, डॉ. संदीप कुमार तथा मिडिया के साथी व पराहवर गौशाला के सदस्य साक्षी बने।
यह रोजगार सृजन का, पर्यीवरण संरक्षण का, व गौ संवर्धन का एक सटीक तरीका है अगर हर गौशाला यह गौकाष्ठ बनाना शुरु कर दे तथा इसको हर शमशान घाट पर अनिवार्य कर दें तो गौशाला गौधाम बन जाएंगी। 
करना हमें व आपको ही है, क्योंकि यह हमारे व आपके धर्म से जुड़ा है विदेशी कंपनी तो चाहें गी ही कि उनकी बिजली व गैस बिके। कल के गौकाष्ठ से अंतेष्ठी के कुछ चित्र आप सबके लिए नीचे डाल रहा हूँ।
अनपढ

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शबरी के पैरों की धूल


((((((((( शबरी के पैरों की धूल )))))))))

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शबरी एक आदिवासी भील की पुत्री थी। देखने में बहुत साधारण, पर दिल से बहुत कोमल थी।

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इनके पिता ने इनका विवाह निश्चित किया, लेकिन आदिवासियों की एक प्रथा थी की किसी भी अच्छे कार्य से पहले निर्दोष जानवरों की बलि दी जाती थी।

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इसी प्रथा को पूरा करने के लिये इनके पिता शबरी के विवाह के एक दिन पूर्व सौ भेड़ बकरियाँ लेकर आये।

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तब शबरी ने पिता से पूछा – पिताजी इतनी सारी भेड़ बकरियाँ क्यूँ लाये ?

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पिता ने कहा – शबरी यह एक प्रथा है जिसके अनुसार कल प्रातः तुम्हारी विवाह की विधि शुरू करने से पूर्व इन सभी भेड़ बकरियों की बलि दी जायेगी। यह कहकर उसके पिता वहाँ से चले जाते हैं।

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प्रथा के बारे में सुन शबरी को बहुत दुःख होता है और वो पूरी रात उन भेड़ बकरियों के पास बैठी रही और उनसे बाते करती रही। उसके मन में एक ही विचार था कि कैसे वो इन निर्दोष जानवरों को बचा पाये।

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तब ही एकाएक शबरी के मन में ख्याल आता है और वो सुबह होने से पूर्व ही अपने घर से भाग कर जंगल चली गई जिससे वो उन निर्दोष जानवरों को बचा सके।

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शबरी भली भांति जानती थी, अगर एक बार वो इस तरह से घर से जायेगी तो कभी उसे घर वापस आने का मौका नहीं मिलेगा फिर भी शबरी ने खुद से पहले उन निर्दोषों की सोची।

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घर से निकल कर शबरी एक घने जंगल में जा पहुँची। अकेली शबरी जंगल में भटक रही थी तब उसने शिक्षा प्राप्ति के उद्देश्य से कई गुरुवरों के आश्रम में दस्तक दी, लेकिन शबरी तुच्छ जाति की थी इसलिये उसे सभी ने धुत्कार के निकाल दिया।

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शबरी भटकती हुई मतंग ऋषि के आश्रम पहुंची और उसने अपनी शिक्षा प्राप्ति की इच्छा व्यक्त की। मतंग ऋषि ने शबरी को सहर्ष अपने गुरुकुल में स्थान दे दिया।

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अन्य सभी ऋषियों ने मतंग ऋषि का तिरस्कार किया लेकिन मतंग ऋषि ने शबरी को अपने आश्रम में स्थान दिया।

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शबरी ने गुरुकुल के सभी आचरणों को आसानी से अपना लिया और दिन रात अपने गुरु की सेवा में लग गई।

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शबरी जतन से शिक्षा ग्रहण करने के साथ- साथ आश्रम की सफाई, गौ शाला की देख रेख, दूध दोहने के कार्य के साथ सभी गुरुकूल के वासियों के लिये भोजन बनाने के कार्य में लग गई। कई वर्ष बीत गये, मतंग ऋषि शबरी की गुरु भक्ति से बहुत प्रसन्न थे।

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मतंग ऋषि का शरीर दुर्बल हो चूका था इसलिये उन्होंने एक दिन शबरी को अपने पास बुलाया और कहा- पुत्री मेरा शरीर अब दुर्बल हो चूका है, इसलिये मैं अपनी देह यहीं छोड़ना चाहता हूँ, लेकिन उससे पहले मैं तुम्हे आशीर्वाद देना चाहता हूँ बोलो पुत्री तुम्हे क्या चाहिये ?

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आँखों में आसूं भरकर शबरी मतंग ऋषि से कहती है – हे गुरुवर आप ही मेरे पिता है, मैं आपके कारण ही जीवित हूँ, आप मुझे अपने साथ ही ले जाये।

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तब मतंग ऋषि ने कहा- नहीं पुत्री तुम्हे मेरे बाद मेरे इस आश्रम का ध्यान रखना है। तुम जैसी गुरु परायण शिष्या को उसके कर्मो का उचित फल मिलेगा।

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एक दिन भगवान राम तुम से मिलने यहाँ आयेंगे और उस दिन तुम्हारा उद्धार होगा और तुम्हे मोक्ष की प्राप्ति होगी। इतना कहकर मतंग ऋषि अपनी देह त्याग कर समाधि ले लेते हैं।

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उसी दिन से शबरी हर रोज प्रातः उठकर बाग़ जाती, ढेर सारे फल इकठ्ठा करती, सुंदर- सुंदर फूलों से अपना आश्रम सजाती क्यूंकि उसे भगवान राम के आने का कोई निश्चित दिन नहीं पता था, उसे केवल अपने गुरुवर की बात पर यकीन था इसलिये वो रोज श्री राम के इंतजार में समय बिता रही थी। वो रोजाना यही कार्य करती थी।

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एक दिन शबरी आश्रम के पास के तालाब में जल लेने गई, वहीँ पास में एक ऋषि तपस्या में लीन थे। जब उन्होंने शबरी को जल लेते देखा तो उसे अछूत कहकर उस पर एक पत्थर फेंक कर मारा और उसकी चोट से बहते रक्त की एक बूंद से तालाब का सारा पानी रक्त में बदल गया.

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यह देखकर संत शबरी को बुरा भला और पापी कहकर चिल्लाने लगा। शबरी रोती हुई अपने आश्रम में चली गई।

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उसके जाने के बाद  ऋषि फिर से तप करने लगा उसने बहुत से जतन किये लेकिन वो तालाब में भरे रक्त को जल नहीं बना पाया। उसमे गंगा, यमुना सभी पवित्र नदियों का जल डाला गया लेकिन रक्त जल में नहीं बदला।

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कई वर्षों बाद, जब भगवान राम सीता की खोज में वहां आये तब वहाँ के लोगो ने भगवान राम को बुलाया और आग्रह किया कि वे अपने चरणों के स्पर्श से इस तालाब के रक्त को पुनः जल में बदल दें।

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राम उनकी बात सुनकर तालाब के रक्त को चरणों से स्पर्श करते हैं लेकिन कुछ नहीं होता। ऋषि उन्हें जो- जो करने बोलते हैं, वे सभी करते हैं लेकिन रक्त जल में नही बदला।

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तब राम ऋषि से पूछते हैं – हे ऋषिवर मुझे इस तालाब का इतिहास बताये। तब ऋषि उन्हें शबरी और तालाब की पूरी कथा बताते हैं और कहते हैं – हे भगवान यह जल उसी शुद्र शबरी के कारण अपवित्र हुआ है।

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तब भगवान राम दुखी होकर कहा – हे गुरुवर, यह रक्त उस देवी शबरी का नही मेरे ह्रदय का है जिसे तुमने अपने अप शब्दों से घायल किया है.

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भगवान राम ऋषि से आग्रह करते हैं कि मुझे देवी शबरी से मिलना है। तब शबरी को बुलावा भेजा जाता है। राम का नाम सुनते ही शबरी दौड़ी चली आती हैं।

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‘राम मेरे प्रभु’ कहती हुई जब वो तालाब के समीप पहुँचती है तब उसके पैर की धूल तालाब में चली जाती है और तालाब का सारा रक्त जल में बदल जाता है।

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तब भगवान राम कहते हैं – देखिये गुरुवर आपके कहने पर मैंने सब किया लेकिन यह रक्त भक्त शबरी के पैरों की धूल से जल में बदल गया।

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शबरी जैसे ही भगवान राम को देखती हैं उनके चरणों को पकड़ लेती हैं और अपने साथ आश्रम लाती हैं। उस दिन भी शबरी रोज की तरह सुबह से अपना आश्रम फूलों से सजाती हैं और बाग़ से चख- चख कर सबसे मीठे बेर अपने प्रभु राम के लिये चुनती हैं।

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वो पुरे उत्साह के साथ अपने प्रभु राम का स्वागत करती हैं और बड़े प्रेम से उन्हें अपने जूठे बेर परौसती हैं। भगवान राम भी बहुत प्रेम से उसे खाने उठाते हैं,

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तब उनके साथ गये लक्ष्मण उन्हें रोककर कहते हैं – भ्राता ये बेर जूठे हैं। तब राम कहते हैं – लक्ष्मण यह बेर जूठे नहीं सबसे मीठे हैं, क्यूंकि इनमे प्रेम हैं और वे बहुत प्रेम से उन बेरों को खाते हैं।

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मतंग ऋषि का कथन सत्य होता है और देवी शबरी को मोक्ष की प्राप्ति होती है। और इस तरह भगवान राम, शबरी के राम कहलाये

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(((( जय श्री सच्चिदानंद जि))))))

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R K Neekhara

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गाय के घी के 28 ज़बर्दस्त फायदे
 ● देसी गाय के घी को रसायन कहा गया है। जो जवानी को कायम रखते हुए, बुढ़ापे को दूर रखता है। गाय का घी खाने से बूढ़ा व्यक्ति भी जवान जैसा हो जाता है। गाय के घी में स्वर्ण छार पाए जाते हैं जिसमे अदभुत औषधिय गुण होते है, जो की गाय के घी के इलावा अन्य घी में नहीं मिलते
गाय के घी से बेहतर कोई दूसरी चीज नहीं है। गाय के घी में वैक्सीन एसिड, ब्यूट्रिक एसिड, बीटा-कैरोटीन जैसे माइक्रोन्यूट्रींस मौजूद होते हैं। जिस के सेवन करने से कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से बचा जा सकता है। गाय के घी से उत्पन्न शरीर के माइक्रोन्यूट्रींस में कैंसर युक्त तत्वों से लड़ने की क्षमता होती है।

यदि आप गाय के 10 ग्राम घी से हवन अनुष्ठान (यज्ञ) करते हैं तो इसके परिणाम स्वरूप वातावरण में लगभग 1 टन ताजा ऑक्सीजन का उत्पादन कर सकते हैं। यही कारण है कि मंदिरों में गाय के घी का दीपक जलाने कि तथा, धार्मिक समारोह में यज्ञ करने कि प्रथा प्रचलित है। इससे वातावरण में फैले परमाणु विकिरणों को हटाने की अदभुत क्षमता होती है।

》 गाय के घी के अन्य महत्वपूर्ण उपयोग :–

1.गाय का घी नाक में डालने से पागलपन दूर होता है।

2.गाय का घी नाक में डालने से एलर्जी खत्म हो जाती है।

3.गाय का घी नाक में डालने से लकवा का रोग में भी उपचार होता है।

4) 20-25 ग्राम घी व मिश्री खिलाने से शराब, भांग व गांझे का नशा कम हो जाता है।

5) गाय का घी नाक में डालने से कान का पर्दा बिना ओपरेशन के ही ठीक हो जाता है।

6) नाक में घी डालने से नाक की खुश्की दूर होती है और दिमाग तारो ताजा हो जाता है।

7) गाय का घी नाक में डालने से कोमा से बहार निकल कर चेतना वापस लोट आती है।

8) गाय का घी नाक में डालने से बाल झडना समाप्त होकर नए बाल भी आने लगते है
9) गाय के घी को नाक में डालने से मानसिक शांति मिलती है, याददाश्त तेज होती है।

10) हाथ पाव मे जलन होने पर गाय के घी को तलवो में मालिश करें जलन ढीक होता है

11) हिचकी के न रुकने पर खाली गाय का आधा चम्मच घी खाए, हिचकी स्वयं रुक जाएगी।

12) गाय के घी का नियमित सेवन करने से एसिडिटी व कब्ज की शिकायत कम हो जाती है।

13) गाय के घी से बल और वीर्य बढ़ता है और शारीरिक व मानसिक ताकत में भी इजाफा होता है

14) गाय के पुराने घी से बच्चों को छाती और पीठ पर मालिश करने से कफ की शिकायत दूर हो जाती है।

15) अगर अधिक कमजोरी लगे, तो एक गिलास दूध में एक चम्मच गाय का घी और मिश्री डालकर पी लें।

16) हथेली और पांव के तलवो में जलन होने पर गाय के घी की मालिश करने से जलन में आराम आयेगा।

17) गाय का घी न सिर्फ कैंसर को पैदा होने से रोकता है और इस बीमारी के फैलने को भी आश्चर्यजनक ढंग से रोकता है।

18) जिस व्यक्ति को हार्ट अटैक की तकलीफ है और चिकनाइ खाने की मनाही है तो गाय का घी खाएं, हर्दय मज़बूत होता है।

19) देसी गाय के घी में कैंसर से लड़ने की अचूक क्षमता होती है। इसके सेवन से स्तन तथा आंत के खतरनाक कैंसर से बचा जा सकता है।

20) संभोग के बाद कमजोरी आने पर एक गिलास गर्म दूध में एक चम्मच देसी गाय का घी मिलाकर पी लें। इससे थकान बिल्कुल कम हो जाएगी।

21) फफोलो पर गाय का देसी घी लगाने से आराम मिलता है।गाय के घी की झाती पर मालिस करने से बच्चो के बलगम को बहार निकालने मे सहायक होता है।

22) सांप के काटने पर 100 -150 ग्राम घी पिलायें उपर से जितना गुनगुना पानी पिला सके पिलायें जिससे उलटी और दस्त तो लगेंगे ही लेकिन सांप का विष कम हो जायेगा।

23) दो बूंद देसी गाय का घी नाक में सुबह शाम डालने से माइग्रेन दर्द ढीक होता है। सिर दर्द होने पर शरीर में गर्मी लगती हो, तो गाय के घी की पैरों के तलवे पर मालिश करे, सर दर्द ठीक हो जायेगा।

24) यह स्मरण रहे कि गाय के घी के सेवन से कॉलेस्ट्रॉल नहीं बढ़ता है। वजन भी नही बढ़ता, बल्कि वजन को संतुलित करता है । यानी के कमजोर व्यक्ति का वजन बढ़ता है, मोटे व्यक्ति का मोटापा (वजन) कम होता है।

25) एक चम्मच गाय का शुद्ध घी में एक चम्मच बूरा और 1/4 चम्मच पिसी काली मिर्च इन तीनों को मिलाकर सुबह खाली पेट और रात को सोते समय चाट कर ऊपर से गर्म मीठा दूध पीने से आँखों की ज्योति बढ़ती है।

26) गाय के घी को ठन्डे जल में फेंट ले और फिर घी को पानी से अलग कर ले यह प्रक्रिया लगभग सौ बार करे और इसमें थोड़ा सा कपूर डालकर मिला दें। इस विधि द्वारा प्राप्त घी एक असर कारक औषधि में परिवर्तित हो जाता है जिसे जिसे त्वचा सम्बन्धी हर चर्म रोगों में चमत्कारिक मलहम कि तरह से इस्तेमाल कर सकते है। यह सौराइशिस के लिए भी कारगर है।

27) गाय का घी एक अच्छा(LDL)कोलेस्ट्रॉल है। उच्च कोलेस्ट्रॉल के रोगियों को गाय का घी ही खाना चाहिए। यह एक बहुत अच्छा टॉनिक भी है। अगर आप गाय के घी की कुछ बूँदें दिन में तीन बार,नाक में प्रयोग करेंगे तो यह त्रिदोष (वात पित्त और कफ) को संतुलित करता है।

28) घी, छिलका सहित पिसा हुआ काला चना और पिसी शक्कर (बूरा) तीनों को समान मात्रा में मिलाकर लड्डू बाँध लें। प्रातः खाली पेट एक लड्डू खूब चबा-चबाकर खाते हुए एक गिलास मीठा कुनकुना दूध घूँट-घूँट करके पीने से स्त्रियों के प्रदर रोग में आराम होता है, पुरुषों का शरीर मोटा ताजा यानी सुडौल और बलवान बनता है।

☆ गाय का घी और चावल की आहुती डालने से महत्वपूर्ण गैसे जैसे – एथिलीन ऑक्साइड, प्रोपिलीन ऑक्साइड, फॉर्मल्डीहाइड आदि उत्पन्न होती हैं । इथिलीन ऑक्साइड गैस आजकल सबसे अधिक प्रयुक्त होनेवाली जीवाणुरोधक गैस है, जो शल्य-चिकित्सा (ऑपरेशन थियेटर) से लेकर जीवनरक्षक औषधियाँ बनाने तक में उपयोगी हैं ।

वैज्ञानिक प्रोपिलीन ऑक्साइड गैस को कृत्रिम वर्षो का आधार मानते है । आयुर्वेद विशेषज्ञो के अनुसार अनिद्रा का रोगी शाम को दोनों नथुनो में गाय के घी की दो – दो बूंद डाले और रात को नाभि और पैर के तलुओ में गौघृत लगाकर लेट जाय तो उसे प्रगाढ़ निद्रा आ जायेगी ।

☆ गौघृत में मनुष्य – शरीर में पहुंचे रेडियोधर्मी विकिरणों का दुष्प्रभाव नष्ट करने की असीम क्षमता हैं । अग्नि में गाय का घी कि आहुति देने से उसका धुआँ जहाँ तक फैलता है, वहाँ तक का सारा वातावरण प्रदूषण और आण्विक विकरणों से मुक्त हो जाता हैं । सबसे आश्चर्यजनक बात तो यह है कि एक चम्मच गौघृत को अग्नि में डालने से एकटन प्राणवायु (ऑक्सीजन) बनती हैं जो अन्य किसी भी उपाय से संभव नहीं हैं|

अगर आप देशी *गाय का घी*

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9730824415