लघु कथा
हाउस वाइफ
माँ को बहू के रूप में कामकाजी लड़की पसंद थी ,सो मैंने एक सुंदर सी मैनेजर लड़की से शादी करने का निर्णय ले लिया । शादी के एक महीने बाद भी जब दीप्ति ने नौकरी ज्वाइन नहीं की तो घरवालों को शक हुआ कि कहीं बहू की नौकरी तो नहीं छूट गई । इसलिए मैंने कहा ,” डार्लिंग ,अब आप भी अपनी जाॅब ज्वाइन कर लीजिए ,इतनी छुट्टियाँ हो गई हैं ।”
” डार्लिंग , मेरा तो हाउस वाइफ बनने का सपना था सो मैं तो इस्तीफा दे आई थी ।अब आप बाहर सँभालिए और मैं घर । दोनों बाहर रहेंगे घर बिखर जाएगा ।
वैसे भी आपके मम्मी – पापाजी को भी तो सुख मिलना चाहिए । जिंदगी भर बाहर – भीतर पिसते रहे । ना शुद्ध खाने का सुख ना बच्चों को प्यार दुलार दे सके ।”
” दीप्ति ! तुम्हारे मम्मी-पापा ने तुम्हें पढ़ा लिखा कर कामयाब किया । और तुम अपने सुनहरे भविष्य को छोड़कर चूल्हा – चौका सँभालने पर क्यों तुली हो , मैं नहीं चाहता आज़ाद पंछी को क़ैद करना । “
” और मैं नहीं चाहती कि मेरे बच्चे मेरी तरह बिना लाड़ प्यार के तीन – तीन दिन की बासी सब्जी गर्म कर- कर खाते रहें , अपने दिल की बातों को भी अकेले में बड़बड़ाएँ । बड़े से बड़े कष्टों को भी डायरी या काॅपी के अंतिम पन्नों पर लिखते हुए आँसुओं से भिगोएँ । मुझे अधिक पैसा नहीं प्यार चाहिए सबको बाँटने के लिए भी और खुद के लिए भी ।”
” दीप्ति ! घर में कामवाली है ,अब खाना बनाने वाली भी है , फिर बासी सब्जियाँ नहीं , मनपसंद खाना बनवा लेना । प्लीज़ नौकरी मत छेड़िए । मै हाउस वाइफ बनाकर नहीं रख सकता ।”
” बिल्कुल सही कहा बेटा ! लेकिन दीप्ति शागवान हाउस की मैनेजर बनाई जा सकती है । ये लो , इस घर और लाकर्स की चाबियाँ । मम्मी जी ने कमरे के अंदर आते हुए कहा ।
नरेश तोमर