तुलसी की दो प्रमुख सेवायें हैं——
प्रथम सेवा–तुलसी की जड़ो में
प्रतिदिन जल अर्पण करते रहना।
द्वतीय सेवा–तुलसी की मंजरियों को
तोड़कर तुलसी को पीढ़ा मुक्त करते रहना,
क्योंकि ये मंजरियाँ तुलसी जी
को बीमार करके सुखा देती हैं,
जबतक ये मंजरियाँ तुलसी जी की शीश पर रहती है
तबतक तुलसीमाता घोर कष्ट पातीं है।
ये दो सेवायें
श्री ठाकुर जी की सेवा से कम नहीं माना गया है,
इनमें कुछ सावधानियां रखने की भी अवश्यक्तायें हैं–
जैसे–तुलसीदल तोड़ने से पहले
तुलसीजी की आज्ञा ले लेनी चाहिए,
सच्चा वैष्णव बिना आज्ञा लिए
तुलसीदल को स्पर्श भी नहीं करता है,
बुधवार,रविवार और द्वादशी के दिन
कभी भी तुलसी दल को नहीं तोड़ना चाहिए,
तथा कभी भी नाखूनों से तुलसीदल को नहीं तोड़ना चाहिए,
महापाप लगता है।
कारण–तुलसी जी श्री ठाकुर जी की
आज्ञा से केवल इन्ही तीन दिनों विश्राम और निंद्रा लेंती हैं,
बाकी के दिनों में वो एक छण के लिए भी सोती नही हैं
और ना ही विश्राम लेंती हैं,
आठो पहर ठाकुर जी की ही सेवा में लगी रहती है !!