Posted in लक्ष्मी प्राप्ति - Laxmi prapti

गणेश चतुर्थी की धन सम्पदा बढ़ाने वाली पूजा विधि


गणेश चतुर्थी की धन सम्पदा बढ़ाने वाली पूजा विधि
आईये आपको गणेश चतुर्थी के दिन की जाने वाली एक सरल व छोटी सी पूजा बतायें जिससे आप पर ऋण हो तो दुर होकर अन्न धन्न के भंडार भर जावेगें।
एक गणेश जी की फोटो या मूर्ति लेवें वो भी नहीं मिले तो इस ब्लोग पर दिया चित्र चलेगा। उनके आगे 21 दुर्वा चढावें। तथा 5 मोदक या मोतीचुर के लडडू रखें तथा गाय के घी का दीपक करें गाय का घी नहीं मिले तो देसी घी कोई भी ले लेवें।हाथ जोड़कर श्रद्धा से यह श्लोक पढ़ें।
ॐ नमो विध्नराजाय सर्व सौख्य प्रदायिने दुष्टारिष्ट विनाशाय पराय परमात्मने लम्बोदरं महावीर्य नागयज्ञोपशोभितम अर्ध चन्द्रम धरम देवं विघ्न व्यूह विनाशनम ॐ ह्रां ह्रीं हु् हें हों हं हेरम्बाय नमों नमः सर्व सिद्धि प्रदोसी तवं सिद्धि बुद्धि प्रदो भव चिन्तितार्थ प्रदस्तवं ही स्ततं मोदक प्रियः सिन्दुरारेण वस्त्रेच पुजितो वरदायक इदं गणपति स्त्रोतं य पठेद भक्तिमान नरः तस्य देहं च गेंह च स्वंय लक्ष्मीने मुच्यनति ॐ।।
फिर 21 बार यह मन्त्र पढें
।।ॐ नजगजीक्षस्वामी ॐ नजगजीक्षस्वामी ।। (दो उच्चारण का एक मन्त्र हुआ)
बस लडडुओं का एक टुकड़ा अग्नि में भोग लगाकर बाकी लडडु प्रसाद में ले सकते हैं।नोट – अपना भुत-भविष्य जानने के लिए और सटीक उपायो के लिए सम्पर्क करे मगर ध्यान रहे ये सेवाएं सशुल्क और पेड़ कंसल्टिंग के तहत है , जानने के लिए अपनी फ़ोटो, वास्तु की फ़ोटो, दोनों हथेलियो की फ़ोटो और बर्थ डिटेल्स भेजे
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मेरे सतगुरू के फरिश्ते


मेरे सतगुरू के फरिश्ते*
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कल बाजार में फल खरीदने गया तो देखा कि एक फल की रेहड़ी की छत से एक छोटा सा बोर्ड लटक रहा था,उस पर मोटे अक्षरों से लिखा हुआ था…..!!
“घर मे कोई नहीं है, मेरी बूढ़ी माँ बीमार है, मुझे थोड़ी थोड़ी देर में उन्हें खाना, दवा और टायलट कराने के लिए घर जाना पड़ता है, अगर आपको जल्दी है तो अपनी मर्ज़ी से फल तौल लें रेट साथ में लिखें हैं। पैसे कोने पर गत्ते के नीचे रख दें। धन्यवाद”
अगर आपके पास पैसे नहीं हो तो मेरी तरफ से ले लेना, इजाजत है..!!
मैंने इधर उधर देखा, पास पड़े तराजू में दो किलो सेब तोले दर्जन भर केले लिए, बैग में डाले, प्राइज़ लिस्ट से कीमत देखी, पैसे निकाल कर गत्ते को उठाया वहाँ सौ पच्चास और दस दस के नोट पड़े थे, मैंने भी पैसे उसमें रख कर उसे ढक दिया। बैग उठाया और अपने फ्लैट पे आ गया, रात को खाना खाने के बाद मैं और भाई उधर निकले तो देखा एक कमज़ोर सा आदमी, दाढ़ी आधी काली आधी सफेद, मैले से कुर्ते पजामे में रेहड़ी को धक्का लगा कर बस जाने ही वाला था, वो हमें देख कर मुस्कुराया और बोला “साहब! फल तो खत्म हो गए”
उसका नाम पूछा तो बोला: “सीताराम”
फिर हम सामने वाले ढाबे पर बैठ गए। चाय आयी, कहने लगा “पिछले तीन साल से मेरी माता बिस्तर पर हैं, कुछ पागल सी भी हो गईं है और अब तो फ़ालिज भी हो गया है, मेरी कोई संतान नहीं है, बीवी मर गयी है, सिर्फ मैं हूँ और मेरी माँ.! माँ की देखभाल करने वाला कोई नहीं है इसलिए मुझे ही हर वक़्त माँ का ख्याल रखना पड़ता है”
एक दिन मैंने माँ के पाँव दबाते हुए बड़ी नरमी से कहा, माँ ! तेरी सेवा करने को तो बड़ा जी चाहता है पर जेब खाली है और तू मुझे कमरे से बाहर निकलने नही देती, कहती है तू जाता है तो जी घबराने लगता है, तू ही बता मै क्या करूँ?” न मेरे पास.कोई जमा पूंजी है।
ये सुन कर माँ ने हाँफते काँपते उठने की कोशिश की। मैंने तकिये की टेक लगवाई, उन्होंने झुर्रियों वाला चेहरा उठाया अपने कमज़ोर हाथों को ऊपर उठाया मन ही मन राम जी की स्तुति की फिर बोली…
“तू रेहड़ी वहीं छोड़ आया कर हमारी किस्मत हमें इसी कमरे में बैठ कर मिलेगा”
“मैंने कहा माँ क्या बात करती हो, वहाँ छोड़ आऊँगा तो कोई चोर उचक्का सब कुछ ले जायेगा, आजकल कौन लिहाज़ करता है? और बिना मालिक के कौन फल खरीदने आएगा?”
कहने लगीं “तू राम का नाम लेने के बाद बाद रेहड़ी को फलों से भरकर छोड़ कर आजा बस, ज्यादा बक बक नहीं कर, शाम को खाली रेहड़ी ले आया कर, अगर तेरा रुपया गया तो मुझे बोलियो”
ढाई साल हो गए हैं भाई साहब सुबह रेहड़ी लगा आता हूँ शाम को ले जाता हूँ, लोग पैसे रख जाते हैं फल ले जाते हैं, एक धेला भी ऊपर नीचे नहीं होता, बल्कि कुछ तो ज्यादा भी रख जाते हैं, कभी कोई माँ के लिए फूल रख जाता है, कभी कोई और चीज़! परसों एक बच्ची पुलाव बना कर रख गयी साथ में एक पर्ची भी थी “अम्मा के लिए”
एक डॉक्टर अपना कार्ड छोड़ गए पीछे लिखा था माँ की तबियत नाज़ुक हो तो मुझे काल कर लेना मैं आ जाऊँगा, कोई खजूर रख जाता है, रोजाना कुछ न कुछ मेरे हक के साथ मौजूद होता है।
न माँ हिलने देती है न मेरे राम कुछ कमी रहने देते हैं माँ कहती है तेरा फल मेरा राम अपने फरिश्तों से बिकवा देता है।

आखिर में इतना ही कहूँगा की अपने मां बाप की खिदमत करो, और देखो दुनिया की कामयाबियाँ कैसे हमारे कदम चूमती हैं ।

⚜✨जय श्री राधे ✨⚜

🔅🔆हरि ओम जी🔆🔅

 

Aakash

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महिलाएं भी करा सकती हैं उपनयन संस्कार


http://inextlive.jagran.com/upnayan-sanskar-of-womens-78681

http://www.ignca.nic.in/coilnet/ruh0028.htm

 

 

महिलाओं को पुरुषों के समान बराबरी का अधिकार वैदिक काल से प्राप्त है। तभी तो वैदिक रीति में महिलाओं को भी उपनयन संस्कार की इजाजत दी गई है। मातृ शक्ति वैदिक काल से सर्वोपरि और पूजी जाति रही है। महिलाओं को केवल भोग का साधन मानने वालों ने इस वैदिक रीति को दबाना शुरू किया और पूरी तरह दबाते हुए महिलाओं के उपनयन प्रक्रिया को प्रतिबंधित कर दिया। लेकिन, जब पूरे भारत में महिलाओं को बराबरी का दर्जा दिए जाने की लहर चल रही है तो फिर महिलाएं उपनयन संस्कार प्रक्रिया से दूर कैसे रह सकती हैं। श्री- श्री रवि शंकर और उनके शिष्य इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं और महिलाओं का उपनयन संस्कार करा रहे हैं.

महिलाओं में जमा रहे हैं अलख

आर्ट ऑफ लिविंग के जरिये रविशंकर महाराज पूरे देश में महिलाओं को जगा रहे हैं कि पुरुषों की तरह उन्हें भी वैदिक काल से उपनयन संस्कार कराने का अधिकार प्राप्त है। उत्तर प्रदेश में भी जगह- जगह आयोजन हो रहा है। अब तक यूपी में ख्भ्0 महिलाएं उपनयन करा चुकी हैं। इलाहाबाद में आयोजित शिविर में ख्7 महिलाएं उपनयन संस्कार हासिल कर रही हैं। श्रीश्री रविशंकर महाराज के शिष्य स्वामी ब्रह्माचित्य द्वारा उपनयन संस्कार कराया जा रहा है.

जिम्मेदारियों का अहसास कराता है जनेऊ

– उपनयन संस्कार के बाद धारण किया जाता है जनेऊ

– जनेऊ केतीन धागे हैं तीन जिम्मेदारियों के प्रतीक

क्। परिवार के प्रति जिम्मेदारी

ख्। अपना ज्ञानवर्धन करने की जिम्मेदारी

फ्। समाज के प्रति जिम्मेदारी

उपनयन संस्कार से लाभ

– कंट्रोल में रहेगी शारीरिक व मनोस्थिति

– सकारात्मक ऊर्जा का होगा संचार

– मन रहेगा एकाग्रचित

– फोकस प्वाइंट, कंसंट्रेशन होगा बेहतर

– ध्यान की गहराई में जाने में मददगार साबित होगा उपनयन संस्कार

उपनयन के बाद ये करना होगा

– महिलाओं को भी जनेऊ पहनना पड़ेगा

– जनेऊ धारण करने के बाद पुरुषों के लिए जो नियम है, महिलाओं को भी उन्हीं नियमों का पालन करना होगा

– तामसिक भोजन, मांस आदि से रहना होगा दूर

– सात्विक प्रक्रिया का ही करना होगा पालन

– प्रतिदिन करना होगा गायत्री मंत्र का जाप

– जागृत, स्वप्न, सुसुप्ता, तुरया- अवस्था में ध्यान से ज्यादा शांति मिलती है

– मन स्थिर रहेगा तो ऊर्जा का संचार होगा

उपनयन का अर्थ

उपनयन का अर्थ है पास या सन्निकट ले जाना। किसके पास ले जाना? सम्भवत: आरम्भ में इसका तात्पर्य था आचार्य के पास (शिक्षण के लिए) ले जाना। हो सकता है, इसका तात्पर्य रहा हो नवशिष्य को विद्यार्थीपन की अवस्था तक पहुँचा देना।

ये है उपनयन संस्कार की प्रक्रिया-

– उपनयन संस्कार के लिए आने- वाले महिला- पुरुष या फिर बटुक की कराई जाती है जल से शुद्धि

– फिर सभी दिशाओं में कराया जाता है प्रणाम

– प्रणाम के बाद होता है मंत्र का आह्वान

– मंत्रों के आह्वान के बाद गायत्री मंत्र का जाप, फिर प्राणायाम और हवन

– चार दिन की प्रक्रिया के बाद पूरा हो जाता है उपनयन संस्कार

गायत्री मंत्र जाप से मिलती है अद्भुत शक्ति

ऊं भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात

प्राचीन काल में उपनयन संस्कार की तरह ही गायत्री मंत्र उच्चारण महिलाओं के लिए वर्जित कर दिया गया था। गायत्री मन्त्र एक अपूर्व शक्तिशाली मंत्र है, जिसे रक्षा कवच मन्त्र भी कहा गया है। यह वैज्ञानिक कसौटी पर खरा उतरता है, इसीलिए उपनयन संस्कार के दौरान गायत्री मंत्र का जाप कराया जाता है.

वेद शास्त्र महिलाओं और पुरुषों में भेद नहीं करते हैं। उपनयन गुरु के पास जाने और शिक्षा प्राप्त करने का एक संस्कार है। आर्ट ऑफ लिविंग में चल रहे उपनयन संस्कार के जरिए हमें ये जानकारी मिल रही है कि मन को कैसे एकाग्र किया जा सकता है। जीवन को किस तरह और बेहतर बनाया जा सकता है.

डा। रत्ना शर्मा

असिस्टेंट प्रोफेसर, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी

महिलाएं पुरुषों के साथ हर क्षेत्र में कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं, तो फिर उपनयन संस्कार क्यों नहीं? उपनयन का मतलब होता है अपना उन्नयन करना। जब पुरुष उन्नयन कर सकते हैं तो महिलाएं क्यों नहीं? महिलाओं को भी पूर्णता चाहिए.

श्रीमती शशि

सीएटी

यहां आकर पता चला कि हिंदू धर्म में वर्णित क्म् संस्कारों में एक उपनयन संस्कार महिलाएं भी करा सकती हैं, तो काफी खुशी हुई। मेडिटेशन और गायत्री मंत्र जाप के साथ कराए जा रहे संस्कार से मन को काफी शांति मिल रही है।

सरोज मौर्या

रेलवे इम्प्लाई

श्रीश्री रविशंकर गुरु जी ने महिलाओं के लिए उपनयन संस्कार प्रक्रिया प्रारंभ कराकर उन्हें एक कदम आगे बढ़ा दिया। उपनयन प्रक्रिया में शामिल होने के बाद मुझे एक अलग तरह की शांति और एनर्जी का एहसास हो रहा है।

सुरभि गुप्ता

बीटेक स्टूडेंट

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तब और अब.


*…तब और अब…”*

तब:—
एक तौलिया से पूरा घर नहाता था।
दूध का नम्बर बारी-बारी आता था।
छोटा माँ के पास सोकर इठलाता था।
पिताजी से मार का डर सबको सताता था।
बुआ के आने से माहौल शान्त हो जाता था।
पूड़ी-खीर से पूरा घर रविवार मनाता था।
बड़े भाई के कपड़े छोटे होने का इन्तजार रहता था।
स्कूल में बड़े की ताकत से, ‘छोटा’ रौब जमाता था।
बहन-भाई के प्यार का सबसे बड़ा नाता था।
धन का महत्व कभी सोच भी न पाता था।
बड़े का- बस्ता, किताबें, साईकिल, कपड़े, खिलौने, पेन्सिल, स्लेट स्टाईल चप्पल, इन सब से मेरा नाता था।
मामा-मामी, नाना-नानी पर हक जताता था।
एक छोटी से सन्दूक को अपनी जान से ज्यादा प्यारी तिजोरी बताता था।

और अब:—
तौलिया अलग हुआ, दूध अधिक हुआ,
माँ तरसने लगी,
पिताजी डरने लगे,
बुआ से कट गये,
खीर की जगह पिज्जा बर्गर मोमो आ गये,
कपड़े भी व्यक्तिगत हो गये,
भाईयों से दूर हो गये,
बहन के प्रेम की जगह गर्लफ्रेण्ड आ गई,
धन प्रमुख हो गया,
अब सब नया चाहिए,
नाना आदि औपचारिक हो गये।
बटुऐ में नोट हो गये।
कई भाषायें तो सीखे, मगर संस्कार भूल गए।
बहुत पाया पर कुछ खो गए।
रिश्तों के अर्थ बदल गए,
हम आज जीते हुए भी…
एहसास व संवेदनाहीन हो गए…!

कृपया सोचें 😇
हम कहाँ से कहाँ पहुँच गए?
क्या थे क्या हो गए??
🙏🙏
~(योगिअंश रमेश चन्द्र भार्गव)

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एक संत की कथा में एक बालिका खड़ी हो गई।


एक संत की कथा में एक बालिका खड़ी हो गई। चेहरे पर झलकता आक्रोश… संत ने पूछा – बोलो बेटी क्या बात है? बालिका ने कहा- महाराज हमारे समाज में लड़कों को हर प्रकार की आजादी होती है। वह कुछ भी करे, कहीं भी जाए उस पर कोई खास टोका टाकी नहीं होती। इसके विपरीत लड़कियों को बात बात पर टोका जाता है। यह मत करो, यहाँ मत जाओ, घर जल्दी आ जाओ आदि। संत मुस्कुराए और कहा… बेटी तुमने कभी लोहे की दुकान के बाहर पड़े लोहे के गार्डर देखे हैं? ये गार्डर सर्दी, गर्मी, बरसात, रात दिन इसी प्रकार पड़े रहते हैं। इसके बावजूद इनका कुछ नहीं बिगड़ता और इनकी कीमत पर भी कोई अन्तर नहीं पड़ता। लड़कों के लिए कुछ इसी प्रकार की सोच है समाज में। अब तुम चलो एक ज्वेलरी शॉप में। एक बड़ी तिजोरी, उसमें एक छोटी तिजोरी। उसमें रखी छोटी सुन्दर सी डिब्बी में रेशम पर नज़ाकत से रखा चमचमाता हीरा। क्योंकि जौहरी जानता है कि अगर हीरे में जरा भी खरोंच आ गई तो उसकी कोई कीमत नहीं रहेगी। समाज में बेटियों की अहमियत भी कुछ इसी प्रकार की है। पूरे घर को रोशन करती झिलमिलाते हीरे की तरह। जरा सी खरोंच से उसके और उसके परिवार के पास कुछ नहीं बचता। बस यही अन्तर है लड़कियों और लड़कों में। पूरी सभा में चुप्पी छा गई। उस बेटी के साथ पूरी सभा की आँखों में छाई नमी साफ-साफ बता रही थी लोहे और हीरे में फर्क।।। प्लीज , आप से मेरा हाथ जोडकर निवेदन हैं कि ये मैसेज अपनी बेटी-बहन को अवश्य पढायें और दोस्तों में , रिश्तेदारों के साथ, सभी ग्रुप्स में शेयर करें । 📣📣📣📣📣📣🙅 ((( जयश्रीकृष्णा )))📢

ललित धमीजा

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रेल्वे स्टेशनच्या जवळ सायकल लावण्यासाठी जागा होती. 30 रुपये महिन्याला द्यावे लागायचे.


रेल्वे स्टेशनच्या जवळ सायकल लावण्यासाठी जागा होती. 30 रुपये महिन्याला द्यावे लागायचे.

तिथे सायकलींवर लक्ष ठेवण्यासाठी एक म्हातारी बाई बसलेली असायची. चार बांबू लावून वर कडबा आणि ताडपत्री लावून तयार केलेलं छत होत. त्यातच ती आजी राहायची. अंगावर एकदम जुनी फाटकी साडी…ती पण मळलेली. डोक्यावरचे केसपूर्ण पिकलेले होते. साधारण 70-75 वय असावे. तिथे एक जूनं गोणपाट होतं. त्यावरच बसलेली असायची.

थंडी पासून बचावासाठी एक काळी चादर पण होती. थंडीच्या दिवसात कायम अंगावर घेतलेली ती दिसायची. समोर एक जर्मनचे ताट आणि एक स्टीलची चेपलेली वाटी. एवढंच.

एवढं असूनही चेह-यावर कायम स्मितहास्य असायचं.

एक दिवस संध्याकाळी घरी जाताना मी सायकल काढत होतो तेव्हा तिने मला विचारलं, “बाळ, नाव काय तुझं…?”

मी नाव बोललो

कदाचित त्यांना ऐकू नाही गेलं किंवा नाव समजलं नाही. त्यांनी पुन्हा विचारलं. काय?

मी पुन्हा बोललो

त्या हसत हसत बोलल्या “अच्छा . छान आहे नाव”

त्यांनी मग इतर चौकशी केली. म्हणजे घरी कोण असतं? गाव कोणतं? नंतर सायकलीला अडकवलेल्या माझ्या बॅग कडे पाहून विचारलं, “डब्या मध्ये काही शिल्लक आहे का?” मी क्षणभर गोंधळलो. मग बोललो, “नाही ओ आजी”. का कुणास ठाऊक खूप वाईट वाटलं, नाही बोलताना. मग पुन्हा तोच हसरा चेहरा करून बोलल्या, “काही हरकत नाही पण कधी काही शिल्लक राहीलं तर टाकून देण्यापेक्षा आणत जा आणि मला देत जा”

हे सांगताना त्यांचा चेहरा जरी हसरा असला तरी त्यांचे डोळे ओशाळलेले वाटत होते. कदाचित त्यांना लाज वाटत होती असं काही मागण्याची पण मजबूरी होती त्यांची. उपाशी पोट कोणाकडूनही काहीही करवून घेतं. मी हो बोललो आणि निघालो.

घरी आल्यानंतर रात्री आईजवळ बसलो आणि त्या आजी बद्दल सांगितलं. तिला पण खूपवाईट वाटलं. दुस-या दिवशी सकाळी तिने न सांगता डब्यात 2 चपाती जास्त भरल्या आणि बोलली त्या आजीला दे. मला खूप बरं वाटलं. मी निघणार तेवढ्यात बाबांचा आवाज आला, “आता गेल्या गेल्या दे म्हणजे आताच ताजं खाऊन घेतील”

मी हो बोलून निघालो. त्या आजी झोपल्या होत्या. त्यांना उठवून चपाती आणि भाजी त्यांच्या ताटात काढून दिलं. त्या आजींच्या चेह-यावर वेगळाच आनंदं होता. त्यांच्या चेह-यावरील आनंदं पाहून मनाला खूप समाधान मिळालं.

दुपारी ऑफिस मध्ये जेवताना अचानक त्या आजीची आठवण आली आणि एक चपाती काढून ठेवली आणि मित्रांच्या पण डब्यात जे जेवण शिल्लक होतं ते माझ्या डब्यात भरून घेतलं.

संध्याकाळी मी तो डबा आजींना दिला. मग त्या गोड हसल्या. त्यांनी डबा रिकामा करून दिला आणि त्यातील अर्धी चपाती काढली त्याचे छोटे छोटे तुकडे केले आणि थोडं दूर जावून पसरून ठेवले आणि त्यांच्या जवळच्या वाटीत पाणी भरून त्या तुकड्याजवळ ठेवलं.

मी त्यांची प्रत्येक हालचाल पाहत होतो. त्या पुन्हा जवळ येऊन बसल्या. मी विचारलं, “आजी काय करताय हे ?”

त्या हसल्या आणि बोलल्या…बघ तिकडे. मी तिकडे पाहिलं तर काही चिमण्या आल्या आणि ते तुकडे खाऊ लागल्या आणि जवळच्या वाटीतील पाणी पिऊ लागल्या. मधेच एका चिमणीने एक तुकडा उचलला आणि उडून गेली.

कदाचित ती तो तुकडा आणखी एखाद्या भुकेल्या पिल्लासाठी घेऊन चालली होती.

त्यादिवशी जीवनाचा एक वेगळाच रंग दिसला. मी माझ्या डब्यातून काही घास त्या आजीला दिले होते आणि त्या आजीने तिच्या घासातील काही घास त्या चिमण्यांना दिलेत आणि त्या चिमण्यांनी पण काही भाग तिच्या पिल्लांसाठी नेला.

कदाचित हेच जीवन होतं. दुस-यासाठी थोडसं सुख घेवून जाणे.

जवळ जवळ एक वर्ष असच चालू राहीलं. नंतर माझं शिक्षण पूर्ण करून पुण्यात आलो जॉब साठी. चांगला जॉब मिळाला तेव्हा आवर्जून त्या आजींना पेढे देण्यासाठी गेलो. त्यांनी पेढा घेतला. अर्धा मला भरवला आणि डोळ्यात पाणी आणून बोलल्या “आठवणीने मला पेढा दिलास यातच समाधान आहे. माझ्या पोटच्या पोराने मला महालक्ष्मी देवीच्या दर्शनासाठी आणलं आणि मला इथेच सोडून चुकवून निघून गेला. पण कोण कुठला तू… मला प्रेमाने पेढा दिलास खूप समाधान वाटलं. खूप मोठा हो….साहेब होशील मोठा तू ”

मी त्यांच्या पाया पडून आशीर्वाद घेतला आणि निघालो. तेव्हा एक गोष्ट लक्षात आली की, या जगात आशिर्वाद आणि आनंदं मिळवण खूप सोपं आहे. म्हणजे एखाद्याला आपण आनंद दिला की, त्या बदल्यात आपल्याला समाधान, आनंद आणि आशिर्वाद मिळून जातात.

पण आयुष्य संपलं तरी आपण हे दुसरीकडे शोधत बसतो.

मध्ये वर्ष निघून गेलं. जॉब आता पर्मनंट झाला होता. म्हणून पेढा देण्यासाठी मी गेलो पण त्या तिथे नव्हत्या. त्यांचं साहित्य पण नव्हतं तिथे. फक्त दूर नेहमीच्या जागेवर ती वाटी होती.

मी जवळच्या टपरीवर गेलो
आणि विचारलं, “इथल्या आजी कुठे आहेत ?” त्याने मला पाहिलं आणि बोलला, “अरे वारल्या त्या. 2 महीने होवून गेले. ऐकून खूप वाईट वाटलं. मन सुन्न झालं. जणू कोणीतरी जवळचं गेलं होतं.

मी त्या वाटीकडे पाहिलं. कोरडी पडली होती. मी माझ्या जवळची पाण्याची बाटली काढली आणि ती वाटी पाण्याने भरली आणि त्यांच्या साठी आणलेला पेढा ठेवला तिथेच आणि निघालो तिथून. चालता चालता सहज मागे वळून पहिलं तर एक कावळा त्या पेढ्यावर चोच मारून खात होता.

अस बोलतात की पिंडाला कावळा शिवला तर समजायचं की त्या व्यक्तिला मुक्ति मिळाली. त्या कावळ्याला पाहून वाटलं कदाचित मुक्ति मिळाली त्या आजीला !!!

आपल्यातलं थोडसं सुख दुसऱ्याला देणे हेच खरं जीवन

Posted in संस्कृत साहित्य

बेटियों को बुधवार के दिन क्यों नहीं जाना चाहिए ससुराल-


बेटियों को बुधवार के दिन क्यों नहीं जाना चाहिए ससुराल-

वार के अनुसार निषेध कार्य

शास्त्रों में दिन के अनुसार सप्ताह के हर दिन कुछ कार्य करने की मनाही है। इसमें रोजाना जीवन से जुड़ी चीजों के अलावा यात्रा करने तक के लिए निषेध वार शामिल हैं। यहां हम आपको बुधवार से जुड़ी उस मान्यता के विषय में बता रहे हैं जिसके अनुसार इस दिन बेटियों को ससुराल विदा करने की मनाही है।

बुधवार के दिन बेटी को विदा करना आपके लिए और आपकी बेटी के लिए अत्यंत दुखदायी हो सकता है। अगर आपकी बेटी की बुध ग्रह की दशा खराब हो तो आपको ऐसी गलती बिल्कुल भी नहीं करनी चाहिए।

ऐसी मान्यता है कि बुधवार के दिन अपनी बेटियों को ससुराल के लिए विदा नहीं करना चाहिए। इस दिन बेटी को विदा करने से रास्ते में किसी प्रकार की दुर्घटना होने की संभावना रहती है। इतना ही नहीं, आपकी बेटी का अपने ससुराल से संबंध भी बिगड़ सकता है। शास्त्र में इस अपशकुन से जुड़े कारणों की भी व्याख्या है।

‘बुध’ ग्रह ‘चंद्र’ की शत्रुता

एक पौराणिक मान्यता के अनुसार ‘बुध’ ग्रह ‘चंद्र’ को शत्रु मानता है लेकिन ‘चंद्रमा’ के साथ ऐसा नहीं है, वह बुध को शत्रु नहीं मानता। ज्योतिष में चंद्र को यात्रा का कारक माना जाता है और बुध को आय या लाभ का।

बुधवार कथा

इसलिए बुधवार के दिन किसी भी तरह की यात्रा करना नुकसानदेह माना गया है। यदि बुध खराब हो तो दुर्घटना या किसी तरह की अनिष्ट घटना होने की संभावना बढ़ जाती है।

बुधवार कथा

बुधवार को बेटियों को क्यों नहीं विदा करना चाहिए और इससे जुड़ा परिणाम कितना भयंकर हो सकता है, शास्त्रों के अलावा बुधवार व्रत कथा में भी इसकी व्याख्या बड़े ही रुचिकर तरीके से की गई है। इस कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक नगर में मधुसूदन नामक साहूकार का विवाह सुंदर और गुणवान कन्या संगीता से हुआ था।

बुधवार कथा

एक बार मधुसूदन ने बुधवार के दिन पत्नी के माता-पिता से संगीता को विदा कराने के लिए कहा। उसके सास-ससुर बुधवार को अपनी बेटी को विदा नहीं करना चाहते थे। उन्होंने दामाद को बहुत समझाया लेकिन मधुसूदन नहीं माना। वह संगीता को साथ लेकर वहां से रवाना हो गया।

बुधवार कथा

दोनों बैलगाड़ी से घर लौट रहे थे। तभी कुछ दूरी पर उसकी गाड़ी का एक पहिया टूट गया। वहां से दोनों पैदल ही चल पड़े। किसी जगह पहुंचकर संगीता को प्यास लगी तो मधुसूदन उसे एक पेड़ के नीचे बिठाकर पानी लेने चला गया।

बुधवार कथा

थोड़ी देर बाद ही वह जल लेकर वापस आ गया। लेकिन वह आश्चर्य में पड़ गया, क्योंकि उसकी पत्नी के पास मधुसूदन की ही शक्ल-सूरत का एक दूसरा व्यक्ति बैठा हुआ था। संगीता भी उन दोनों में अपने असली पति को नहीं पहचान पाई। मधुसूदन ने उस व्यक्ति से पूछा, “तुम कौन हो और मेरी पत्नी के पास क्यों बैठे हो?”

बुधवार कथा

उस व्यक्ति ने कहा- “अरे भाई, यह मेरी पत्नी संगीता है लेकिन तुम कौन हो जो मुझसे ऐसा प्रश्न कर रहे हो?” यह जवाब सुनकर मधुसूदन को और भी गुस्सा आ गया और उसे नकली कहकर वह उससे झगड़ने लगा। उनका झगड़ा देखकर पास ही नगर के सिपाही वहां आ गए। सिपाही उन दोनों को पकड़कर राजा के पास ले गए।

बुधवार कथा

राजा भी निर्णय नहीं कर पा रहा था। राजा ने दोनों को कारागार में डाल देने के लिए कहा। राजा के फैसले से असली मधुसूदन भयभीत हो गया। तभी एक आकाशवाणी हुई- “मधुसूदन! तूने संगीता के माता-पिता की बात नहीं मानी और बुधवार के दिन अपनी पत्नी को ससुराल से विदा करा ले आया। अब यह सब भगवान बुध देव के प्रकोप से हो रहा है।“

बुधवार कथा

मधुसूदन को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने भगवान बुधदेव से क्षमा मांगी और भविष्य में कभी ऐसा नहीं करने का प्रण लिया। मधुसूदन की प्रार्थना सुनकर बुधदेव ने उसे क्षमा कर दिया। तभी दूसरा व्यक्ति अचानक गायब हो गया।

बुधवार कथा

राजा और दूसरे लोग इस चमत्कार को देख हैरान रह गए। वह व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि स्वयं बुधदेव थे। इस प्रकार बुधदेव ने मधुसूदन को उसकी गलती का एहसास कराया और भविष्य में ऐसी गलती ना करने का सबक भी दिया।

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तवांग तीर्थ यात्रा


🌿 *तवांग तीर्थ यात्रा-2017*🌿
*Nov. 19.-24.,2017*

*भारत-तिब्बत सहयोग मंच द्वारा आयोजित “तवांग तीर्थ यात्रा”, गत वर्षों की भांति इस वर्ष भी 19 नवम्बर की प्रातः गुवाहाटी से प्रारम्भ होकर 24 नवम्बर की सायंकाल तक वापस गुवाहाटी पहुँच कर यात्रा का समापन होगा l यात्रा में जाने वाले अपना पंजीकरण शीघ्रताशीघ्र करा ले,बाकी सूचनाएं समयानुसार मिलती रहेंगी l यात्रा शुल्क 16000/-रूपये*

🌿🌸🌿🌸🌿🌸🌿🌸🌿

*”तवांग तीर्थ यात्रा” में यात्री इन प्रमुख स्थानों के दर्शन का लाभ लेते है* ——–
1– मां कामाख्या देवी मन्दिर ।
2– महादेव मन्दिर।
3– भगवान श्री कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध जी का अग्निगढ मन्दिर ।
4– अरुणांचल प्रदेश का प्रवेश द्वार “भालुकपोंग” ।
5– पश्चिमी कामेंग जिला का मुख्यालय “बोमडीला” जिस पर 1962 के युद्ध मे चीन ने कब्जा कर लिया था ।
6– 1962 में चीन के साथ हुए युद्ध के दोरान चीनी सैना को 72 घंटो तक अकेले मात देने वाले वीर सैनिक जसबंत सिंह की स्मृति में बना “जसबंत गढ”।
7– भारत चीन युद्ध के दौरान हुए शहीदों का “शहीद स्मारक” ।
8– तिब्बत के छठे दलाई लामा जी के जन्म स्थल तवांग में विशाल बना हुआ “तवांग मठ” ।
9– दलाई लामा जी के पद चिन्ह ।
10– श्री नानक देव जी की तपस्या स्थली भूमि पर बना “नानक लामा का तपस्या स्थल” ।
11– 1962 में हुए भारत चीन युद्ध के दौरान गिनती के सैनिक ,सीमित गोला बारूद और बिना राशन के चीनी सैना से मुकाबला करते हुए शहीद होने बाले “जोगिन्दर बाबा जी का मन्दिर” ।
12– “धरती पूजन स्थल”
सूर्य की सबसे पहली किरण भी इसी प्रदेश में आने के कारण इस प्रदेश को सूर्य की धरती भी कहते है l
🌼धरती पर तवांग जिले में प्रकृति का ऐसा नज़ारा है जो देखते ही बनता है बल्कि मैं तो तवांग को भारत का स्विसज़र लेंड भी कहू तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी l

🍀विशेष बात ये है संघ के वरिष्ठ प्रचारक एवं मंच के संस्थापक संरक्षक माननीय इंद्रेश जी का यात्रा में पूरा समय हम सभी को सानिध्य मिलेगा l

बुमला भारत का अन्तिम छोर है ।इसके आगे तिब्बत शुरू हो जाता है ।तिब्बत पर अभी चीन का कब्जा है। भारत तिब्बत सहयोग मंच द्वारा आयोजित तवांग तीर्थ यात्रा के दौरान भारत तिब्बत सीमा पर हर वर्ष सभी तवांग तीर्थ यात्री धरती पूजन करते हैं l

*तवांग तीर्थ यात्रा संयोजक*
🍁 *श्री Pankaj Goyal जी*
011-47072630, 9310015931

🚖 *यात्रा सह-संयोजक*🚖

🌸 *डा.रजनीश त्यागी जी* 8077644966
🌸 *श्री रविन्द्र गुप्ता जी* 9999802509
🌸 *श्रीमती पूजा मिश्रा जी* 9928383838
🌸 *श्री प्रमोद गोयल जी* 9999647477
🌸 *श्री रामकिशोर पसारी जी*9327000981
🌸 *श्री अमृत जोशी जी*9448111824
🌸 *श्री सौरभ सारस्वत जी*9024891939
🌸 *श्री अनिल मोंगा जी* 9910455430
🌸 *श्री मालिंग गोम्बू जी* 9810575763
🌸 *श्री सुस्मित हलदर जी* 7059809411

✍🏻 * *मीडिया संयोजन*
*श्री ताबिश कमाल जी* 9899641413

🤝 *मुख्य सहायक सम्पर्क*
*श्री कुलदीप जी* *9927660033*

🍃 *यात्री अपना शुल्क नगद या निम्न खाते में जमा करा सकते हैं*l
Bharat Tibet Sehyog Manch PNB A/C No. 0604000101601267 IFSC Code : PUNB0060400 MICR code :110024078 Punjab National Bank 222’West Patel Nagar, Main Road, Delhi – 110008

Email *Btsm.india@gmail.com*

🌍 *भारत-तिब्बत सहयोग मंच*🌍

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एक बहुत बड़ा सरोवर था। उसके तट पर मोर


एक बहुत बड़ा सरोवर था। उसके तट पर मोर
रहता था, और वहीं पास एक
मोरनी भी रहती थी। एक दिन मोर
ने मोरनी से प्रस्ताव रखा कि- “हम
तुम विवाह कर लें,
तो कैसा अच्छा रहे?”
मोरनी ने पूछा- “तुम्हारे मित्र
कितने है ?”
मोर ने कहा उसका कोई मित्र
नहीं है।
तो मोरनी ने विवाह से इनकार कर
दिया।
मोर सोचने लगा सुखपूर्वक रहने के
लिए मित्र बनाना भी आवश्यक है।
उसने एक सिंह से.., एक कछुए से.., और
सिंह के लिए शिकार का पता लगाने
वाली टिटहरी से.., दोस्ती कर लीं।
जब उसने यह समाचार
मोरनी को सुनाया, तो वह तुरंत
विवाह के लिए तैयार हो गई। पेड़ पर
घोंसला बनाया और उसमें अंडे दिए, और
भी कितने ही पक्षी उस पेड़ पर रहते
थे।
एक दिन शिकारी आए। दिन भर
कहीं शिकार न मिला तो वे उसी पेड़
की छाया में ठहर गए और सोचने लगे,
पेड़ पर चढ़कर अंडे- बच्चों से भूख बुझाई
जाए।
मोर दंपत्ति को भारी चिंता हुई,
मोर मित्रों के पास सहायता के लिए
दौड़ा। बस फिर क्या था..,
टिटहरी ने जोर- जोर से
चिल्लाना शुरू किया। सिंह समझ गया,
कोई शिकार है। वह उसी पेड़ के नीचे
चला.., जहाँ शिकारी बैठे थे। इतने में
कछुआ भी पानी से निकलकर बाहर आ
गया।
सिंह से डरकर भागते हुए
शिकारियों ने कछुए को ले चलने
की बात सोची। जैसे ही हाथ
बढ़ाया कछुआ पानी में खिसक गया।
शिकारियों के पैर दलदल में फँस गए।
इतने में सिंह आ पहुँचा और उन्हें ठिकाने
लगा दिया।
मोरनी ने कहा- “मैंने विवाह से पूर्व
मित्रों की संख्या पूछी थी, सो बात
काम की निकली न, यदि मित्र न
होते, तो आज हम सबकी खैर न थी।”
मित्रता सभी रिश्तों में
अनोखा और आदर्श रिश्ता होता है।
और मित्र
किसी भी व्यक्ति की अनमोल
पूँजी होते है।
राधे राधे
जय श्री कृष्ण
अगर गिलास दुध से भरा हुआ है तो आप उसमे और दुध नहीं डाल
सकते । लेकिन आप उसमे शक्कर डाले । शक्कर अपनी जगह
बना लेती है और अपना होने का अहसास दिलाती है उसी प्रकार
अच्छे लोग हर किसी के दिल में अपनी जगह बना लेते हैं
।……..परिवार के सभी सदस्यों को
जय श्री कृष्णा

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एक दोस्त हलवाई की दुकान पर मिल गया। मुझसे


एक दोस्त हलवाई की दुकान पर मिल गया। मुझसे
कहा- ‘आज माँ का श्राद्ध है। माँ को लड्डू बहुत पसन्द है,
इसलिए लड्डू लेने आया हूँ। मैं आश्चर्य में पड़ गया।
अभी पाँच मिनिट पहले तो मैं
उसकी माँ से सब्जी मंडी में
मिला था। मैं कुछ और कहता उससे पहले ही खुद
उसकी माँ हाथ में झोला लिए वहाँ आ
पहुँची।
मैंने दोस्त की पीठ पर मारते हुए कहा-
‘भले आदमी ये क्या मजाक है?
माँजी तो यह रही तेरे पास! दोस्त
अपनी माँ के दोनों कंधों पर हाथ रखकर हँसकर
बोला, ‍’भई, बात यूँ है कि मृत्यु के बाद गाय-कौवे
की थाली में लड्डू रखने से अच्छा है
कि माँ की थाली में लड्डू परोसकर उसे
जीते-जी तृप्त करूँ। मैं मानता हूँ
कि जीते जी माता-पिता को हर हाल में
खुश रखना ही सच्चा श्राद्ध है।
आगे उसने कहा, ‘माँ को डायबीटिज है। उन्हें मिठाई,
सफेद जामुन, आम आदि पसंद है। मैं वह सब उन्हें
खिलाता हूँ। श्रद्धालु मंदिर में जाकर
अगरबत्ती जलाते हैं। मैं मंदिर
नहीं जाता हूँ, पर माँ के सोने के कमरे में कछुआ
छाप अगरबत्ती लगा देता हूँ। सुबह जब
माँ गीता पढ़ने बैठती है
तो माँ का चश्मा साफ कर के देता हूँ। मुझे लगता है कि ईश्वर के
फोटो व मूर्ति आदि साफ करने से ज्यादा पुण्य माँ का चश्मा साफ
करके मिलता है ।
यह बात श्रद्धालुओं को चुभ सकती है पर बात
खरी है। हम बुजुर्गों के मरने के बाद उनका श्राद्ध
करते हैं। पंडितों को खीर-पुरी खिलाते हैं।
रस्मों के चलते हम यह सब कर लेते है, पर याद रखिए
कि गाय-कौए को खिलाया ऊपर पहुँचता है या नहीं,
यह किसे पता।
अमेरिका या जापान में भी अभी तक
स्वर्ग के लिए कोई टिफिन सेवा शुरू नही हुई है।
माता-पिता को जीते-
जी ही सारे सुख देना वास्तविक श्राद्ध
है।