Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

सन्त मलूकदास


मित्रो आइए आज आपको एक महान संत की कहानी सुनाता हूॅ ***************************************

आपने अनेको बार यह दोहा सुना होगा सन्त मलूकदास जन्म 1574 और परलोक गमन 1682 इ0 हिन्द की चादर नवे गुरू तेगबहादुर साहब जी के समकालीन सन्त थे। 🌸🌺ब्रज दर्शन🌺🌸 अजगर करे ना चाकरी,पंक्षी करे ना काम दास मलुका कह गये, सबके दाता राम ।। कहानी — मलूकदास जी कर्मयोगी संत थे. स्वाध्याय, सत्संग व भ्रमण से उन्होंने जो व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त किया उसका मुकाबला किताबी ज्ञान नहीं कर सकता. औरंगजेब जैसा पशुवत मनुष्य भी उनके सत्संग का सम्मान करता था! शुरू में संत मलूकदास जी नास्तिक थे. उनके गांव में एक साधु आए और आकर टिक गए. साधुजी लोगों को रामायण सुनाते थे. प्रतिदिन सुबह-शाम गांव वाले उनका दर्शन करते और उनसे राम कथा का आनंद लेते. संयोग से एक दिन मलूकदास भी राम कथा में पहुंचे. उस समय साधु महाराजा ग्रामीणों को श्रीराम की महिमा बताते कह रहे थे- श्रीराम संसार के सबसे बड़े दाता है. वह भूखों को अन्न, नंगों को वस्त्र और आश्रयहीनों को आश्रय देते हैं. मलूकदास ने भी साधु की यह बात सुनी पर उनके पल्ले नहीं पड़ी. उन्होंने अपना विरोध जताते तर्क किया- क्षमा करे महात्मन ! यदि मैं चुपचाप बैठकर राम का नाम लूं, कोई काम न करूं, तब भी क्या राम भोजन देंगे ? साधु ने पूरे विश्वास के साथ कहा- अवश्य देंगे. उनकी दृढता से मलूकदास के मन में एक और प्रश्न उभरा तो पूछ बैठे- यदि मैं घनघोर जंगल में अकेला बैठ जाऊं, तब ? साधु ने दृढ़ता के साथ कहा- तब भी श्रीराम भोजन देंगे ! बात मलूकदास को लग गई. अब तो श्रीराम की दानशीलता की परीक्षा ही लेनी है. पहुंच गए जंगल में और एक घने पेड़ के ऊपर चढ़कर बैठ गए. चारों तरफ ऊंचे-ऊंचे पेड़ थे. कंटीली झाड़ियां थीं. दूर-दूर तक फैले जंगल में धीरे-धीरे खिसकता हुआ सूर्य पश्चिम की पहाड़ियों के पीछे छुप गया. चारों तरफ अंधेरा फैल गया, मगर न मलूकदास को भोजन मिला, न वह पेड़ से ही उतरे. सारी रात बैठे रहे. अगले दिन दूसरे पहर घोर सन्नाटे में मलूकदास को घोड़ों की टापों की आवाज सुनाई पड़ी. वह सतर्क होकर बैठ गए. थोड़ी देर में कुछ राजकीय अधिकारी उधर आते हुए दिखे. वे सब उसी पेड़ के नीचे घोड़ों से उतर पड़े. उन्होंने भोजन का मन बनाया. उसी समय जब एक अधिकारी थैले से भोजन का डिब्बा निकाल रहा था, शेर की जबर्दस्त दहाड़ सुनाई पड़ी. दहाड़ का सुनना था कि घोड़े बिदककर भाग गए. अधिकारियों ने पहले तो स्तब्ध होकर एक-दूसरे को देखा, फिर भोजन छोड़ कर वे भी भाग गए. मलूकदास पेड़ से ये सब देख रहे थे. वह शेर की प्रतीक्षा करने लगे. मगर दहाड़ता हुआ शेर दूसरी तरफ चला गया. मलूकदास को लगा, श्रीराम ने उसकी सुन ली है अन्यथा इस घनघोर जंगल में भोजन कैसे पहुंचता ? मगर मलूकदास तो मलूकदास ठहरे. उतरकर भला स्वयं भोजन क्यों करने लगे ! वह तो भगवान श्रीराम को परख रहे थे. तीसरे पहर में डाकुओं का एक बड़ा दल उधर से गुजरा. पेड़ के नीचे चमकदार चांदी के बर्तनों में विभिन्न प्रकार के व्यंजनों के रूप में पड़े भोजन को देख कर डाकू ठिठक गए. डाकुओं के सरदार ने कहा- भगवान श्रीराम की लीला देखो. हम लोग भूखे हैं और भोजन की प्रार्थना कर रहे थे. इस निर्जन वन में सुंदर डिब्बों में भोजन भेज दिया. इसे खा लिया जाए तो आगे बढ़ें. मलूकदास को हैरानी हुई कि डाकू भी श्रीराम पर इतनी आस्था रखते हैं कि वह भोजन भेजेंगे. वह यह सब सोच ही रहे थे कि उन्हें डाकुओं की बात में कुछ शंका सुनाई पड़ी. डाकू स्वभावतः शकी होते हैं. एक साथी ने सावधान किया- सरदार, इस सुनसान जंगल में इतने सजे-धजे तरीके से सुंदर बर्तनों में भोजन का मिलना मुझे तो रहस्यमय लग रहा है. कहीं इसमें विष न हो. यह सुनकर सरदार बोला- तब तो भोजन लाने वाला आस पास ही कहीं छिपा होगा. पहले उसे तलाशा जाए. सरदार के आदेश पर डाकू इधर-उधर तलाशने लगे. तभी एक डाकू की नजर मलूकदास पर पड़ी. उसने सरदार को बताया. सरदार ने सिर उठाकर मलूकदास को देखा तो उसकी आंखें अंगारों की तरह लाल हो गईं. उसने घुड़ककर कहा- दुष्ट ! भोजन में विष मिलाकर तू ऊपर बैठा है ! चल उतर. सरदार की कड़कती आवाज सुनकर मलूकदास डर गए मगर उतरे नहीं. वहीं से बोले- व्यर्थ दोष क्यों मंढ़ते हो ? भोजन में विष नहीं है. सरदार ने आदेश दिया- पहले पेड़ पर चढ़कर इसे भोजन कराओ. झूठ-सच का पता अभी चल जाता है. आनन-फानन में तीन-चार डाकू भोजन का डिब्बा उठाए पेड़ पर चढ़ गए और छुरा दिखा कर मलूकदास को खाने के लिए विवश कर दिया. मलूकदास ने स्वादिष्ट भोजन कर लिया. फिर नीचे उतरकर डाकुओं को पूरा किस्सा सुनाया. डाकुओं ने उन्हें छोड़ दिया. वह स्वयं भोजन से भाग रहे थे लेकिन प्रभु की माया ऐसी रही कि उन्हें बलात भोजन करा दिया. इस घटना के बाद मलूकदास ईश्वर पक्के भक्त हो गए. गांव लौटकर मलूकदास ने सर्वप्रथम एक दोहा लिखा– . ‘अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम। दास मलूका कह गए, सबके दाता राम॥’ यह दोहा आज खूब सुनाया जाता है. आपके कर्म शुद्ध हैं. आपने कभी किसी का अहित करने की मंशा नहीं रखी तो ईश्वर आपके साथ सबसे ज्यादा प्रेमपूर्ण भाव रखते हैं, चाहे आप उन्हें भजें या न भजें. आपके कर्म अच्छे हैं तो आप यदि मलूकदास जी की तरह प्रभु की परीक्षा लेने लगे तो भी वह इसका बुरा नहीं मानते. 🌸 जय सियाराम 🌸

विकाश खुराना

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

एक दिन एक छोटे बच्चे ने अपनी माँ को उपवास करते देखा।


एक दिन एक छोटे बच्चे ने अपनी माँ को उपवास करते देखा। उसने माँ से पुछा कि वो खा क्यो नही रही है और उसे पेट दर्द हो रहा होगा, तो माँ ने कहा कि मै ये इसलिए कर रही हूँ ताकि भगवान हमारी मनोकामना पूरी करेंगे। बच्चे ने सोचा हो सकता है खुद को तकलीफ देने से उसे भी जो चाहिए वो मिल जाएगा। अगले दिन माँ ने देखा कि उसका बेटा कड़ी धूप मे खड़ा है। माँ ने कारण पूछा तो बच्चे ने कहा उसे एक खिलौना चाहिए इसलिए वह अपने आप को तकलीफ दे रहा था। तो माँ ने कहा, बेटे अगर तुम मुझसे प्यार से मांगते तो मै तुम्हे खिलौना ला देती, तुम्हे अपने आप को दर्द देने की जरुरत नही। मै तुमसे प्यार करती हूँ और इस तरह तुम्हे नही देख सकती। तो बच्चे ने कहा क्या #भगवान तुमसे प्यार नही करते ? वह तुम्हे उपवास करते और तकलीफ लेते देख खुश होते है? तुम भी तो उनसे प्यार से, बिना दर्द लिए जो चाहिए मांग सकती हो. नोट~ उपवास अन्न का नही बुरे विचार का बुरी सोच का करे । 🙏🏻ॐ शान्ति 🙏🏻

Posted in Sai conspiracy

साई का सच.


साई का सच…. शिरडी साई ट्रस्ट 60 वर्षों से एक मुस्लिम फ़क़ीर साई बाबा उर्फ चांदमियाँ को ना केवल हिंदू ब्राह्मण साबित करने का कुत्सित प्रयास कर रहा है, बल्कि अवतार प्रमाणित करने मे लगा हुआ है. धर्म का मूल उद्देश्य ही सत्य की खोज है .उस आस्था का क्या मूल्य जो झूठ और कपट के सहारे खड़ी हुई हो .सत्य तो यह है कि मौला साई के 99% भक्तों को उनकी असलियत के बारे मे कुछ मालूम ही नहीं है . मौला साई के जीवन के बारे मे सबसे प्रामाणिक जानकारी उनके सेवक गोविंदराव दाभोलकर की पुस्तक “‘साई सतचरित्र “” मे मिलती है . यह पुस्तक स्वयं मौला साई के द्वारा ही लिखी मानी जाती है, क्योंकि गोविंद राव ने जब बाबा से उनकी जीवनी लिखने की आज्ञा माँगी तो बाबा ने उन्हे आशीर्वाद देते हुए कहा कि “” मैं तुम्हारे अंतकरण मे प्रकट होकर स्वयं ही अपनी जीवनी लिखूंगा “”.गोविंद राव ने मस्जिद मे होने वाली घटनाओ को संकलित कर सर्वप्रथम मराठी मे पुस्तक लिखी . यही वह पुस्तक है जिसके बल पर चाँदमियाँ को महिमामंडित किया गया है . प्रस्तुत लेख मे साई सतचरित्र पुस्तक के उन तथ्यों को लिखा गया है जो साबित करते हैं कि साई बाबा कट्टर मुस्लिम था. इस लेख का मूल उद्देश्य सत्य को प्रकट करना है… 1 : साई बाबा सारा जीवन मस्जिद मे रहे ( पुस्तक मे हर जगह इस बात का उल्लेख है) नोट : मौला साई लगभग पेंसठ वर्ष तक शिर्डी मे रहे पर एक भी रात उन्होने किसी हिंदू मंदिर मे नही गुज़ारी 2 : अल्लाह मालिक सदा उनके ज़ुबान पर था वो सदा अल्लाह मालिक पुकारते रहते ( पूरी पुस्तक मे जगह जगह इस बात का उल्लेख है ) नोट : मौला साई के मुख से कभी जय श्रीराम, हर हर महादेव या जय माता दी नहीं निकलता था. ना ही कभी वो ओम का उच्चारण करते थे. 3 : रोहीला मुसलमान आठों प्रहार अपनी कर्कश आवाज़ मे क़ुरान शरीफ की कल्मे पढ़ता और अल्लाह ओ अकबर के नारे लगाता. परेशान होकर जब गाँव वालो ने बाबा से उसकी शिकायत की तो उन्होने कहा कि”” वे उसकी कलमो के समक्ष उपस्थित होने का साहस करने मे असमर्थ हैं .”” और बाबा ने गाँव वालों को भगा दिया.( अध्याय 3 पेज 5 ) नोट : शिरडी साई ट्रस्ट इन्ही मौला साई को अखिल ब्रह्मांड नायक कहता है जो क़ुरान की कलमो से डर गये. 4 : तरुण फ़क़ीर को उतरते देख म्हलसापति ने उन्हे सर्वप्रथम “” आओ साई “” कहकर पुकारा. (अध्याय 5 पेज 2 ) नोट : मौला साई मुस्लिम फ़क़ीर थे और फ़क़िरो को अरबी और उर्दू मे साई नाम से पुकारा जाता है. साई शब्द मूल रूप से हिन्दी नही है 5 : मौला साई हमेशा कफनी पहनते थे .(अध्याय 5 पेज 6 ) नोट : कफनी एक प्रकार का पहनावा है जो मुस्लिम फ़क़ीर पहनते हैं 6 : मौला साई सुन्नत (ख़तना ) कराने के पक्ष मे थे. (अध्याय 7 पेज1) नोट : सुन्नत कराना मुस्लिम धर्म की परंपरा है 7 : फ़क़िरो के संग बाबा माँस और मछली का सेवन भी कर लेते थे .(अध्यया 7 पेज 3) नोट : कोई भी हिंदू संत ऐसा घृणित काम नहीं कर सकता. 8 : बाबा ने कहा “” मैं मस्जिद मे एक बकरा हलाल करने वाला हूँ, हाज़ी सिधिक से पूछो की उसे क्या रुचिकर होगा .बकरे का माँस ,नाध या अंडकोष “” (अध्याय 11 पेज 5 ) नोट : हिंदू संत कभी स्वपन मे भी बकरा हलाल नही कर सकता. न ही ऐसे वीभत्स भोजन खा सकता है 9 : एक बार मस्जिद मे एक बकरा बलि चढाने लाया गया तब साई बाबा ने काका साहेब से कहा “” मैं स्वयं ही बलि चढाने का कार्य करूँगा “”.(अध्याय 23 पेज 6) नोट : हिंदू संत कभी ऐसा जघ्न्य कृत्य नही कर सकते. 10 : मालेगाँव के फ़क़ीर पीर मोहम्मद का साई बाबा बहुत आदर करते. वे सदेव उन्हे अपने दाहिने ओर बैठाते. सबसे पहले वो चिलम पीते फिर बाबा को देते .जब दोपहर का भोजन परोस दिया जाता तब बाबा बड़े आदर से उसे उन्हे बुलाकर अपनी दाहिनी ओर बैठाते तब सब भोजन करते .बाबा के पास जो भी दक्षिणा एकत्रित होती उसमे से रोज पचास रुपये वो पीर मोहम्म्द को देते. जब वो लौटते तो बाबा भी सौ कदम तक उनके साथ जाते.(अध्याय 23 पेज 5 ) नोट : मौला साई इतना सम्मान कभी किसी हिंदू संत को नही देते थे .रोज पचास रुपये वो उस समय देते थे जब बीस रुपया तोला सोना मिलता था. मौला साई के जीवन काल में उनके पास इतना दान आता था आयकर विभाग की जाँच भी हुई थी. 11 : एक बार बाबा के भक्त मेघा ने उन्हे गंगा जल से स्नान कराने की सोचा तो बाबा ने कहा “”मुझे इस झंझट से दूर ही रहने दो .मैं तो एक फ़क़ीर हूँ मुझे गंगाजल से क्या प्रायोजन. (अध्याय 28 पेज 7 ) नोट : किसी हिंदू के लिए गंगा स्नान जीवन भर का सपना होता है .गंगा जल का दर्शन भी हिंदुओं मे अति पवित्र माना जाता है 12 : कभी बाबा मीठे चावल बनाते और कभी माँस मिश्रित चावल (पुलाव) बनाते थे (अध्याय 38 पेज 2) नोट : माँस मिश्रित चावल अर्थात मटन बिरयानी सिर्फ़ मुस्लिम फ़क़ीर ही खा सकता हैं, कोई हिंदू संत उसे देखना भी पसंद नही करेगा. 13 : एकादशी को बाबा ने दादा केलकर को कुछ रुपये देकर कुछ माँस खरीद कर लाने को कहा (अध्याय 38 पेज 3 ) नोट : एकादशी हिंदुओं का सबसे पवित्र उपवास का दिन होता है कई घरो मे इस दिन चावल तक नही पकता. 14 : जब भोजन तैयार हो जाता तो बाबा मस्जिद से बर्तन मंगाकर मौलवी से फातिहा पढ़ने को कहते थे (अध्याय 38 पेज 3) नोट : फातिहा मुस्लिम धर्म का संस्कार है 15 : एक बार बाबा ने दादा केलकर को माँस मिश्रित पुलाव चख कर देखने को कहा .केलकर ने मुँहदेखी कह दिया कि अच्छा है .तब बाबा ने केलकर की बाँह पकड़ी और बलपूर्वक बर्तन मे डालकर बोले थोड़ा सा इसमे से निकालो अपना कट्टरपन छोड़कर चख कर देखो.(अध्याय 38 पेज 5) नोट : मौला साई ने परीक्षा लेने के नाम पर जीव हत्या कर एक ब्राहमण का धर्म भ्रष्ट कर दिया किंतु कभी अपने किसी मुस्लिम भक्त की ऐसी कठोर परीक्षा नही ली. अन्य तथ्य जो सिद्ध करते हैं साई बाबा जेहादी मुसलमान था… 1 : मुल्ला जेहादी साई का सेवक अब्दुल बाबा जो लगभग तीस साल तक बाबा के साथ मस्जिद मे ही रहा रोज बाबा को क़ुरान सुनाता था. वो रोज रामायण या गीता नही सुनता था. 2 : महाराष्ट्र मे शिर्डी साई मंदिर मे गाई जाने वाली आरती का अंश मंदा त्वांची उदरिले! मोमीन वंशी जन्मुनी लोँका तारिले!” उपरोक्त आरती मेँ “”मोमिन वंशी जन्मुनी “” अर्थात् मुसलमान वंश मे जन्मे शब्द स्पष्ट आया है. (15 साल से मोमीन वंशी गा रहे हैं फिर भी मौला को ब्राहमाण बता रहे हैं ) 3 : मौला साई ने अपनी मृत्यु के कुछ दिन पहले औरंगाबाद के मुस्लिम फ़क़ीर शमशूद्दीन मियाँ को दो सौ पचास रुपये भिजवाया ताकि उनका मुस्लिम रीति रिवाज़ से अंतिम संस्कार कर दिया जाए तथा सूचना भिजवाई की वो अल्लाह के पास जाने वाले हैं .( ये एक तरह से मृत्यु पूर्व बयान जैसा है जिसे कोर्ट भी सच मानती है अगर बाबा हिंदू होते तो तेरहवी करवाते गंगाजली करवाते ) 4 : मुल्ला साई जब तक जीवित रहा शिरडी मे सूफ़ी फ़क़ीर के नाम से ही जाने जाता था. 5 : मौला साई की मृत्यु के बाद उनकी मज़ार बनाई गई थी जो 1954 तक थी. फिर उसे समाधी मे बदल दिया गया .हम न मौला साईं विरोधी हैं न सांप्रदायिक हैं लेकिन हमारा प्रयास है कि चांदमियां को जानबूझकर हिन्दु न साबित किया जाए। पिछले पचास साल से पैसा कमाने के लिए जैसा अधर्म शिरडी ट्रस्ट ने किया वैसा इतिहास में कभी नहीं हुआ। श्री राम के नाम से सीता माता को हटा दिया. शिर्डी साई संस्थान के अरबपति लालची तथाकथित पंडो का फैलाया षड्यंत्रकारी जाल का झूठ… जिस मौला साई के जन्म तिथि का कोई अता पता नही उनकी कपट पूर्वक राम नवमी के दिन जयंती मनाई जा रही है . मौला साई हमेशा अल्लाह मलिक बोलता था, जबकि “”सबका मलिक एक”” नानक जी कहते थे . जो मौला साईं जीवन भर मस्जिद में रहे उसे मंदिर में बैठा दिया गया, जो मौला साईं व्रत उपवास के विरोधी थे उनके नाम से साईं व्रत कथा छप रही हैं, जो मौला साईं हमेशा अल्लाह मालिक बोलते थे उनके साथ ओम और राम को जोड़ दिया, जो मौला साईं रोज कुरान पड़ते थे उनके मंत्र बनाये जा रहे हैं, पुराण लिखी जा रही है. जो मौला साईं मांसाहारी था उन्हें हिन्दू अवतार बनाया जा रहा है, जिस मुल्ला साईं ने गंगा जल छूने से इंकार कर दिया उसके नाम से यज्ञ किये जा रहे हैं, गंगा जल से अभिषेक किया जा रहा है, जो खुद निगुरा था उसे सदगुरु बनाया जा रहा है। जो मुल्ला साई खुद अनपढ़ था उनके नाम से गीता छापी जा रही है, कब्रगाही व्यक्ति के मंदिर बनाना सनातन हिंदू धर्म मे पाप है . इस देश मे हज़ारों संत हुए किंतु किसी की भी मंदिर नही हैं. व्यास जैसे ऋषि जिन्होने 18 पुराण लिखे गीता लिखी, अगस्त्य, विश्वामित्र, कपिल मुनि ,नारद, दत्तात्रेय, भृिगु, पाराशर,सनक ,सनन्दन सनतकुमार ,शौनक, वशिष्ट, वामदेव ,बाल्मीक, तुलसीदास , गोरखनाथ , तुकाराम, मीरा, एकनाथ , मुक्ताबाई , नरहरी, नामदेव सोपान,संत रविदास , चैतन्य महाप्रभु ,राम कृष्ण परमहंस आदि आदि कितने ही संत हुए किंतु किसी के भी जगह जगह मंदिर नहीं हैं. हर राम भक्त हिन्दू से अनुरोध है कि हिन्दू धर्म की शुद्धि और पवित्रता के लिए इसे अधिक शेयर करें…

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

एक बड़े मुल्क के राष्ट्रपति के बेडरूम की खिड़की सड़क की ओर खुलती थी।


एक बड़े मुल्क के राष्ट्रपति के बेडरूम की खिड़की सड़क की ओर खुलती थी। रोज़ाना हज़ारों आदमी और वाहन उस सड़क से गुज़रते थे। राष्ट्रपति इस बहाने जनता की परेशानी और दुःख-दर्द को निकट से जान लेते।
राष्ट्रपति ने एक सुबह खिड़की का परदा हटाया। भयंकर सर्दी। आसमान से गिरते रुई के फाहे। दूर-दूर तक फैली सफ़ेद चादर। अचानक उन्हें दिखा कि बेंच पर एक आदमी बैठा है। ठंड से सिकुड़ कर गठरी सा होता हुआ ।

राष्ट्रपति ने पीए को कहा -उस आदमी के बारे में जानकारी लो और उसकी ज़रूरत पूछो।
दो घंटे बाद , पीए ने राष्ट्रपति को बताया – सर, वो एक भिखारी है। उसे ठंड से बचने के लिए एक अदद कंबल की ज़रूरत है।
राष्ट्रपति ने कहा -ठीक है, उसे कंबल दे दो।
अगली सुबह राष्ट्रपति ने खिड़की से पर्दा हटाया।
उन्हें घोर हैरानी हुई। वो भिखारी अभी भी वहां जमा है। उसके पास ओढ़ने का कंबल अभी तक नहीं है।

राष्ट्रपति गुस्सा हुए और पीए से पूछा – यह क्या है ?
उस भिखारी को अभी तक कंबल क्यों नहीं दिया गया ?
पीए ने कहा -मैंने आपका आदेश सेक्रेटरी होम को बढ़ा दिया था। मैं अभी देखता हूं कि आदेश का पालन क्यों नहीं हुआ।
थोड़ी देर बाद सेक्रेटरी होम राष्ट्रपति के सामने पेश हुए और सफाई देते हुए बोले – सर, हमारे शहर में हज़ारों भिखारी हैं। अगर एक भिखारी को कंबल दिया तो शहर के बाकी भिखारियों को भी देना पड़ेगा और शायद पूरे मुल्क में भी। अगर न दिया तो आम आदमी और मीडिया हम पर भेदभाव का इल्ज़ाम लगायेगा।

राष्ट्रपति को गुस्सा आया – तो फिर ऐसा क्या होना चाहिए कि उस ज़रूरतमंद भिखारी को कंबल मिल जाए।
सेक्रेटरी होम ने सुझाव दिया -सर, ज़रूरतमंद तो हर भिखारी है। आपके नाम से एक ‘कंबल ओढ़ाओ, भिखारी बचाओ’ योजना शुरू की जाये।
उसके अंतर्गत मुल्क के सारे भिखारियों को कंबल बांट दिया जाए।
राष्ट्रपति खुश हुए। अगली सुबह राष्ट्रपति ने खिड़की से परदा हटाया तो देखा कि वो भिखारी अभी तक बेंच पर बैठा है। राष्ट्रपति आग-बबूला हुए।
सेक्रेटरी होम तलब हुए। उन्होंने स्पष्टीकरण दिया -सर, भिखारियों की गिनती की जा रही है ताकि उतने ही कंबल की खरीद हो सके।
राष्ट्रपति दांत पीस कर रह गए। अगली सुबह राष्ट्रपति को फिर वही भिखारी दिखा वहां।
खून का घूंट पीकर रहे गए वो।
सेक्रेटरी होम की फ़ौरन पेशी हुई।
विनम्र सेक्रेटरी ने बताया -सर, ऑडिट ऑब्जेक्शन से बचने के लिए कंबल ख़रीद का शार्ट-टर्म कोटेशन डाला गया है। आज शाम तक कंबल ख़रीद हो जायेगी और रात में बांट भी दिए जाएंगे।
राष्ट्रपति ने कहा -यह आख़िरी चेतावनी है।
अगली सुबह राष्ट्रपति ने खिड़की पर से परदा हटाया तो देखा बेंच के इर्द-गिर्द भीड़ जमा है। राष्ट्रपति ने पीए को भेज कर पता लगाया। पीए ने लौट कर बताया -कंबल नहीं होने के कारण उस भिखारी की ठंड से मौत हो गयी है।
गुस्से से लाल-पीले राष्ट्रपति ने फौरन से सेक्रेटरी होम को तलब किया। सेक्रेटरी होम ने बड़े अदब से सफाई दी -सर, खरीद की कार्यवाही पूरी हो गई थी। आनन-फानन में हमने सारे कंबल बांट भी दिए। मगर अफ़सोस कंबल कम पड़ गये।
राष्ट्रपति ने पैर पटके -आख़िर क्यों ?
मुझे अभी जवाब चाहिये।
सेक्रेटरी होम ने नज़रें झुकाकर बोले श्रीमान पहले हमने कम्बल अनुसूचित जाती ओर जनजाती के लोगो को दिया ,,फिर अल्पसंख्यक लोगो को फिर …….
फिर ओ बी सी …करके उसने अपनी बात उनके सामने रख दी |आख़िर में जब उस भिखारी का नंबर आया तो कंबल ख़त्म हो गए।

राष्ट्रपति चिंघाड़े -आखिर में ही क्यों?

सेक्रेटरी होम ने भोलेपन से कहा -सर, इसलिये कि उस भिखारी की जाती ऊँची थी , और वह आरक्षण की श्रेणी में नही आता था ,,इसलिये उस को नही दे पाये ,,ओर जब उसका नम्बर आया तो कम्बल ख़त्म हो गये

Posted in आयुर्वेद - Ayurveda

सफेद दाग (श्वेत कुष्ठ) होने के कारण और लक्षण, सफ़ेद दाग का आयुर्वेदिक अचूक और रामबाण इलाज, 7 दिन में होगा पुराने से पुराने सफ़ेद दाग का भी सफाया, जरूर आजमाएं


सफेद दाग (श्वेत कुष्ठ) होने के कारण और लक्षण, सफ़ेद दाग का आयुर्वेदिक अचूक और रामबाण इलाज, 7 दिन में होगा पुराने से पुराने सफ़ेद दाग का भी सफाया, जरूर आजमाए
ल्युकोडर्मा चमडी का भयावह रोग है,जो रोगी की शक्ल सूरत प्रभावित कर शारीरिक के बजाय मानसिक कष्ट ज्यादा देता है। इसे ही श्वेत कुष्ठ कहते हैं। इस रोग में चमडे में रंजक पदार्थ जिसे पिग्मेन्ट मेलानिन कहते हैं,की कमी हो जाती है। चमडी को प्राकृतिक रंग प्रदान करने वाले इस पिग्मेन्ट की कमी से सफ़ेद दाग पैदा होता है। यह चर्म विकृति पुरुषों की बजाय स्त्रियों में ज्यादा देखने में आती है। ल्युकोडर्मा के दाग हाथ, गर्दन, पीठ और कलाई पर विशेष तौर पर पाये जाते हैं। अभी तक इस रोग की मुख्य वजह का पता नहीं चल पाया है। लेकिन चिकित्सा के विद्वानों ने इस रोग के कारणों का अनुमान लगाया है। पेट के रोग, लिवर का ठीक से काम नहीं करना, दिमागी चिंता , छोटी और बडी आंत  में कीडे होना, टायफ़ाईड बुखार, शरीर में पसीना होने के सिस्टम में खराबी होने आदि कारणों से यह रोग पैदा हो सकता है। शरीर का कोई भाग जल जाने और आनुवांशिक करणों से यह रोग पीढी दर पीढी चलता रहता है। इस रोग को नियंत्रित करने और चमडी के स्वाभाविक रंग को पुन: लौटाने हेतु कुछ घरेलू नुस्खे बेहद कारगर साबित हुए हैं। आइये जानते हैं-
सिर्फ 7 दिन में सफ़ेद दाग (श्वेत कुष्ठ) खत्म होगी : दिवान हकीम परमानन्द जी के द्वारा अनभूत प्रयोग

आवश्यक सामग्री

25 ग्राम देशी कीकर (बबूल) के सूखे पते
25 ग्राम पान की सुपारी (बड़े आकार की)
25 ग्राम काबली हरड का छिलका

बनाने की विधि

उपरोक्त तीन वस्तुएँ लेकर दवा बनाये। कही से देशी कीकर (काटे वाला पेड़ जिसमे पीले फुल लगते है ) के ताजे पत्ते (डंठल रहित ) लाकर छाया में सुखाले कुछ घंटो में पत्ते सूख जायेगे बबूल के इन सूखे पत्तो को काम में ले पान वाली सुपारी बढिया ले इसका पाउडर  बना ले कबाली हरड को भी जौ कुट कर ले और इन सभी चीजो को यानि बबूल , सुपारी , काबली हरड का छिलका (बड़ी हरड) सभी को 25-25 ग्राम की अनुपात में ले कुल योग 75 ग्राम और 500 मिली पानी में उबाले पानी जब 125 मिली बचे तब उतर कर ठंडा होने दे और छान कर पी ले ये दवा एक दिन छोड़ कर दूसरे दिन पीनी है अर्थात मान लीजिये आज आप ने दवा ली तो कल नहीं लेनी है और इस काढ़े में 2 चम्मच खांड या मिश्री मिला ले (10 ग्राम) और ये निहार मुह सुबह –सुबह पी ले और 2 घंटे तक कुछ भी खाना नहीं है दवा के प्रभाव से शरीर शुद्धि हो और उलटी या दस्त आने लगे परन्तु दवा बन्द नहीं करे 14 दीन में सिर्फ 7 दिन लेनी है और फिर  दवा बन्द कर दे कुछ महीने में धीरे धीरे त्वचा काली होने लगेगी हकीम साहब का दावा है की ये साल भर में सिर्फ एक बार ही लेने से रोग निर्मूल (ख़त्म) हो जाता है अगर कुछ रह जाये तो दूसरे साल ये प्रयोग एक बार और कर ले नहीं तो दुबारा इसकी जरूरत नहीं पडती।

पूरक उपचार

एक निम्बू, एक अनार और एक सेब तीनो का अलग – अलग ताजा रस निकालने के बाद अच्छी तरह परस्पर मिलाकर रोजाना सुबह शाम या दिन में किसी भी समय एक बार नियम पूर्वक ले। यह फलो का ताजा रस कम से कम दवा सेवन के प्रयोग आगे 2-3 महीने तक जारी रख सके तो अधिक लाभदायक रहेगा।

औषधियों की प्रयोग विधि :

दवा के सेवन काल के 14 दिनों में मक्खन घी दूध अधिक लेना हितकर है क्योकि दवा खुश्क है।
चौदह दिन दवा लेने के बाद कोई विशेष परहेज पालन की जरुरत नहीं है श्वेत कुष्ठ के दूसरे इलाजो में कठिन परहेज पालन होती है परन्तु इस इलाज में नातो सफेद चीजो का परहेज है और ना खटाई आदि का फिर भी आप मछली मांस अंडा नशीले पदार्थ शराब तम्बाकू आदि और अधिक मिर्च मसाले तेल खटाई आदि का परहेज पालन कर सके तो अच्छा रहेगा।
दवा सेवन के 14 दिनों में कभी –कभी उलटी या दस्त आदि हो सकता है इससे घबराना नहीं चाहिए बल्कि उसे शारीरिक शुध्धी के द्वारा आरोग्य प्राप्त होनेका संकेत समझना चाहिए।
रोग दूर होने के संकेत हकीम साहब के अनुसार दवा के सेवन के लगभग 3 महीने बाद सफेद दागो के बीच तिल की तरह काले भूरे या गुलाबी धब्धे ( तील की तरह धब्बे ) के रूप में चमड़ी में रंग परिवर्तन दिखाई देगा और साल भर में धीरे –धीरे सफेद दाग या निशान नष्ट हो कर त्वचा पहले जैसी अपने स्वभाविक रंग में आ जाएगी फिर भी यदि कुछ कसर रह जाये तो एक साल बीत जाने के बाद दवा की सात खुराके इसी तरह दुबारा ले सकते है।
दिवान हकीम साहब का दावा है की उपर्युक्त इलाज से उनके 146 श्वेत कुष्ठ के रोगियों में से 142 रोगी पूर्णत : ठीक अथवा लाभान्वित हुये है कुछ सम्पूर्ण शरीर में सफेद दाग के रोगी भी ठीक हुये है निर्लोभी परोपकारी दीवान हकीम परमानन्द जी की अनुमति से बिस्तार से यह अनमोल योग मानव सेवा भावना के साथ जनजन तक पहुचा रहा हूँ इस आशा और उदात भावना के साथ की पाठक निश्वार्थ भावना से तथा बिना किसी लोभ के जनजन तक जरुर पहुचाये।

स्रोत :  “स्वदेशी चिकित्सा के चमत्कार लेख दीवान हकीम परमानन्द नई दिल्ली द्वारा अनभूत प्रयोग। अपने नजदीकी कुशल वैद्य या चिकित्सक की सलाह अवश्य ले तथा उनकी देख रेख में कोई कदम उठाएं।”

इस वेबसाइट में जो भी जानकारिया दी जा रही हैं, वो हमारे घरों में सदियों से अपनाये जाने वाले घरेलू नुस्खे हैं जो हमारी दादी नानी या बड़े बुज़ुर्ग अक्सर ही इस्तेमाल किया करते थे, आज कल हम भाग दौड़ भरी ज़िंदगी में इन सब को भूल गए हैं और छोटी मोटी बीमारी के लिए बिना डॉक्टर की सलाह से तुरंत गोली खा कर अपने शरीर को खराब कर देते हैं। तो ये वेबसाइट बस उसी भूले बिसरे ज्ञान को आगे बढ़ाने के लक्षय से बनाई गयी है। आप कोई भी उपचार करने से पहले अपने डॉक्टर से या वैद से परामर्श ज़रूर कर ले। यहाँ पर हम दवाएं नहीं बता रहे, हम सिर्फ घरेलु नुस्खे बता रहे हैं। कई बार एक ही घरेलु नुस्खा दो व्यक्तियों के लिए अलग अलग परिणाम देता हैं। इसलिए अपनी प्रकृति को जानते हुए उसके बाद ही कोई प्रयोग करे। इसके लिए आप अपने वैद से या डॉक्टर से संपर्क ज़रूर करे।
Posted in Uncategorized

बाणस्तंभ


‘बाणस्तंभ’ ‘इतिहास’ बडा चमत्कारी विषय हैं. इसको खोजते खोजते हमारा सामना ऐसे स्थिति से होता हैं, की हम आश्चर्य में पड जाते हैं. पहले हम स्वयं से पूछते हैं, यह कैसे संभव हैं..? डेढ़ हजार वर्ष पहले इतना उन्नत और अत्याधुनिक ज्ञान हम भारतीयों के पास था, इस पर विश्वास ही नहीं होता..! गुजरात के सोमनाथ मंदिर में आकर कुछ ऐसी ही स्थिति होती हैं. वैसे भी सोमनाथ मंदिर का इतिहास बड़ा ही विलक्षण और गौरवशाली रहा हैं. १२ ज्योतिर्लिंगों में से पहला ज्योतिर्लिंग हैं सोमनाथ..! एक वैभवशाली, सुंदर शिवलिंग..!! इतना समृध्द की उत्तर-पश्चिम से आने वाले प्रत्येक आक्रांता की पहली नजर सोमनाथ पर जाती थी. अनेकों बार सोमनाथ मंदिर पर हमले हुए. उसे लूटा गया. सोना, चांदी, हिरा, माणिक, मोती आदि गाड़ियाँ भर-भर कर आक्रांता ले गए. इतनी संपत्ति लुटने के बाद भी हर बार सोमनाथ का शिवालय उसी वैभव के साथ खड़ा रहता था. लेकिन केवल इस वैभव के कारण ही सोमनाथ का महत्व नहीं हैं. सोमनाथ का मंदिर भारत के पश्चिम समुद्र तट पर हैं. विशाल अरब सागर रोज भगवान सोमनाथ के चरण पखारता हैं. और गत हजारों वर्षों के ज्ञात इतिहास में इस अरब सागर ने कभी भी अपनी मर्यादा नहीं लांघी हैं. न जाने कितने आंधी, तूफ़ान आये, चक्रवात आये लेकिन किसी भी आंधी, तूफ़ान, चक्रवात से मंदिर की कोई हानि नहीं हुई हैं. इस मंदिर के प्रांगण में एक स्तंभ (खंबा) हैं. यह ‘बाणस्तंभ’ नाम से जाना जाता हैं. यह स्तंभ कब से वहां पर हैं बता पाना कठिन हैं. लगभग छठी शताब्दी से इस बाणस्तंभ का इतिहास में नाम आता हैं. लेकिन इसका अर्थ यह नहीं की बाणस्तंभ का निर्माण छठवे शतक में हुआ हैं. उस के सैकड़ों वर्ष पहले इसका निर्माण हुआ होगा. यह एक दिशादर्शक स्तंभ हैं, जिस पर समुद्र की ओर इंगित करता एक बाण हैं. इस बाणस्तंभ पर लिखा हैं – ‘आसमुद्रांत दक्षिण धृव पर्यंत अबाधित ज्योतिरमार्ग..’ इसका अर्थ यह हुआ – ‘इस बिंदु से दक्षिण धृव तक सीधी रेषा में एक भी अवरोध या बाधा नहीं हैं.’ अर्थात ‘इस समूची दूरी में जमीन का एक भी टुकड़ा नहीं हैं’. जब मैंने पहली बार इस स्तंभ को देखा और यह शिलालेख पढ़ा, तो मेरे रोंगटे खड़े हो गए. यह ज्ञान इतने वर्षों पहले हम भारतीयों को था..? कैसे संभव हैं..? और यदि यह सच हैं, तो कितने समृध्दशाली ज्ञान की वैश्विक धरोहर हम संजोये हैं..! संस्कृत में लिखे हुए इस पंक्ति के अर्थ में अनेक गूढ़ अर्थ समाहित हैं. इस पंक्ति का सरल अर्थ यह हैं की ‘सोमनाथ मंदिर के उस बिंदु से लेकर दक्षिण धृव तक (अर्थात अंटार्टिका तक), एक सीधी रेखा खिंची जाए तो बीच में एक भी भूखंड नहीं आता हैं’. क्या यह सच हैं..? आज के इस तंत्रविज्ञान के युग में यह ढूँढना संभव तो हैं, लेकिन उतना आसान नहीं. गूगल मैप में ढूंढने के बाद भूखंड नहीं दिखता हैं, लेकिन वह बड़ा भूखंड. छोटे, छोटे भूखंडों को देखने के लिए मैप को ‘एनलार्ज’ या ‘ज़ूम’ करते हुए आगे जाना पड़ता हैं. वैसे तो यह बड़ा ही ‘बोरिंग’ सा काम हैं. लेकिन धीरज रख कर धीरे-धीरे देखते गए तो रास्ते में एक भी भूखंड (अर्थात 10 किलोमीटर X 10 किलोमीटर से बड़ा भूखंड. उससे छोटा पकड में नहीं आता हैं) नहीं आता हैं. अर्थात हम मान कर चले की उस संस्कृत श्लोक में सत्यता हैं. किन्तु फिर भी मूल प्रश्न वैसा ही रहता हैं. अगर मान कर भी चलते हैं की सन ६०० में इस बाण स्तंभ का निर्माण हुआ था, तो भी उस जमाने में पृथ्वी को दक्षिणी धृव हैं, यह ज्ञान हमारे पुरखों के पास कहांसे आया..? अच्छा, दक्षिण धृव ज्ञात था यह मान भी लिया तो भी सोमनाथ मंदिर से दक्षिण धृव तक सीधी रेषा में एक भी भूखंड नहीं आता हैं, यह ‘मैपिंग’ किसने किया..? कैसे किया..? सब कुछ अद्भुत..!! इसका अर्थ यह हैं की ‘बाण स्तंभ’ के निर्माण काल में भारतीयों को पृथ्वी गोल हैं, इसका ज्ञान था. इतना ही नहीं, पृथ्वी को दक्षिण धृव हैं (अर्थात उत्तर धृव भी हैं) यह भी ज्ञान था. यह कैसे संभव हुआ..? इसके लिए पृथ्वी का ‘एरिअल व्यू’ लेने का कोई साधन उपलब्ध था..? अथवा पृथ्वी का विकसित नक्शा बना था..? नक़्शे बनाने का एक शास्त्र होता हैं. अंग्रेजी में इसे ‘कार्टोग्राफी’ (यह मूलतः फ्रेंच शब्द हैं.) कहते हैं. यह प्राचीन शास्त्र हैं. इसा से पहले छह से आठ हजार वर्ष पूर्व की गुफाओं में आकाश के ग्रह तारों के नक़्शे मिले थे. परन्तु पृथ्वी का पहला नक्शा किसने बनाया इस पर एकमत नहीं हैं. हमारे भारतीय ज्ञान का कोई सबूत न मिलने के कारण यह सम्मान ‘एनेक्झिमेंडर’ इस ग्रीक वैज्ञानिक को दिया जाता हैं. इनका कालखंड इसा पूर्व ६११ से ५४६ वर्ष था. किन्तु इन्होने बनाया हुआ नक्शा अत्यंत प्राथमिक अवस्था में था. उस कालखंड में जहां जहां मनुष्यों की बसाहट का ज्ञान था, बस वही हिस्सा नक़्शे में दिखाया गया हैं. इस लिए उस नक़्शे में उत्तर और दक्षिण धृव दिखने का कोई कारण ही नहीं था. आज की दुनिया के वास्तविक रूप के करीब जाने वाला नक्शा ‘हेनरिक्स मार्टेलस’ ने साधारणतः सन १४९० के आसपास तैयार किया था. ऐसा माना जाता हैं, की कोलंबस ने इसी नक़्शे के आधार पर अपना समुद्री सफर तय किया था. ‘पृथ्वी गोल हैं’ इस प्रकार का विचार यूरोप के कुछ वैज्ञानिकों ने व्यक्त किया था. ‘एनेक्सिमेंडर’ इसा पूर्व ६०० वर्ष, पृथ्वी को सिलेंडर के रूप में माना था. ‘एरिस्टोटल’ (इसा पूर्व ३८४ – इसा पूर्व ३२२) ने भी पृथ्वी को गोल माना था. लेकिन भारत में यह ज्ञान बहुत प्राचीन समय से था, जिसके प्रमाण भी मिलते हैं. इसी ज्ञान के आधार पर आगे चलकर आर्यभट्ट ने सन ५०० के आस पास इस गोल पृथ्वी का व्यास ४,९६७ योजन हैं (अर्थात नए मापदंडोंके अनुसार ३९,९६८ किलोमीटर हैं) यह भी दृढतापूर्वक बताया. आज की अत्याधुनिक तकनीकी की सहायता से पृथ्वी का व्यास ४०,०७५ किलोमीटर माना गया हैं. इसका अर्थ यह हुआ की आर्यभट्ट के आकलन में मात्र ०.२६% का अंतर आ रहा हैं, जो नाममात्र हैं..! लगभग डेढ़ हजार वर्ष पहले आर्यभट्ट के पास यह ज्ञान कहां से आया..? सन २००८ में जर्मनी के विख्यात इतिहासविद जोसेफ श्वार्ट्सबर्ग ने यह साबित कर दिया की इसा पूर्व दो-ढाई हजार वर्ष, भारत में नकाशा शास्त्र अत्यंत विकसित था. नगर रचना के नक्शे उस समय उपलब्ध तो थे ही, परन्तु नौकायन के लिए आवश्यक नक़्शे भी उपलब्ध थे. भारत में नौकायन शास्त्र प्राचीन काल से विकसित था. संपूर्ण दक्षिण आशिया में जिस प्रकार से हिन्दू संस्कृति के चिन्ह पग पग पर दिखते हैं, उससे यह ज्ञात होता हैं की भारत के जहाज पूर्व दिशा में जावा, सुमात्रा, यवद्वीप को पार कर के जापान तक प्रवास कर के आते थे. सन १९५५ में गुजरात के ‘लोथल’ में ढाई हजार वर्ष पूर्व के अवशेष मिले हैं. इसमें भारत के प्रगत नौकायन के अनेक प्रमाण मिलते हैं. सोमनाथ मंदिर के निर्माण काल में दक्षिण धृव तक दिशादर्शन, उस समय के भारतियों को था यह निश्चित हैं. लेकिन सबसे महत्वपूर्व प्रश्न सामने आता हैं की दक्षिण धृव तक सीधी रेखा में समुद्र में कोई अवरोध नहीं हैं, ऐसा बाद में खोज निकाला, या दक्षिण धृव से भारत के पश्चिम तट पर, बिना अवरोध के सीधी रेखा जहां मिलती हैं, वहां पहला ज्योतिर्लिंग स्थापित किया..? उस बाण स्तंभ पर लिखी गयी उन पंक्तियों में, (‘आसमुद्रांत दक्षिण धृव पर्यंत, अबाधित ज्योतिरमार्ग..’) जिसका उल्लेख किया गया हैं, वह ‘ज्योतिरमार्ग’ क्या है..? यह आज भी प्रश्न ही हैं..! – प्रशांत पोळ

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

मांस का मूल्य


मांस का मूल्य💰

मगध सम्राट बिंन्दुसार ने एक बार अपनी सभा मे पूछा :
देश की खाद्य समस्या को सुलझाने के लिए सबसे सस्ती वस्तु क्या है ?
मंत्री परिषद् तथा अन्य सदस्य सोच में पड़ गये ! चावल, गेहूं, ज्वार, बाजरा आदि तो बहुत श्रम के बाद मिलते हैं और वह भी तब, जब प्रकृति का प्रकोप न हो, ऎसी हालत में अन्न तो सस्ता हो ही नहीं सकता !

तब शिकार का शौक पालने वाले एक सामंत ने कहा :
राजन, सबसे सस्ता खाद्य पदार्थ मांस है, इसे पाने मे मेहनत कम लगती है और पौष्टिक वस्तु खाने को मिल जाती है । सभी ने इस बात का समर्थन किया, लेकिन प्रधान मंत्री चाणक्य चुप थे ।
तब सम्राट ने उनसे पूछा : आपका इस बारे में क्या मत है ? चाणक्य ने कहा : मैं अपने विचार कल आपके समक्ष रखूंगा !

रात होने पर प्रधानमंत्री उस सामंत के महल पहुंचे, सामन्त ने द्वार खोला, इतनी रात गये प्रधानमंत्री को देखकर घबरा गया ।

प्रधानमंत्री ने कहा : शाम को महाराज एकाएक बीमार हो गये हैं, राजवैद्य ने कहा है कि किसी बड़े आदमी के हृदय का दो तोला मांस मिल जाए तो राजा के प्राण बच सकते हैं, इसलिए मैं आपके पास आपके हृदय 💓 का सिर्फ दो तोला मांस लेने आया हूं । इसके लिए आप एक लाख स्वर्ण मुद्रायें ले लें ।

यह सुनते ही सामंत के चेहरे का रंग उड़ गया, उसने प्रधानमंत्री के पैर पकड़ कर माफी मांगी और उल्टे एक लाख स्वर्ण मुद्रायें देकर कहा कि इस धन से वह किसी और सामन्त के हृदय का मांस खरीद लें ।
प्रधानमंत्री बारी-बारी सभी सामंतों, सेनाधिकारियों के यहां पहुंचे और सभी से उनके हृदय का दो तोला मांस मांगा, लेकिन कोई भी राजी न हुआ, उल्टे सभी ने अपने बचाव के लिये प्रधानमंत्री को एक लाख, दो लाख, पांच लाख तक स्वर्ण मुद्रायें दीं ।

इस प्रकार करीब दो करोड़ स्वर्ण मुद्राओं का संग्रह कर प्रधानमंत्री सवेरा होने से पहले वापस अपने महल पहुंचे और समय पर राजसभा में प्रधानमंत्री ने राजा के समक्ष दो करोड़ स्वर्ण मुद्रायें रख दीं ।

सम्राट ने पूछा : यह सब क्या है ? तब प्रधानमंत्री ने बताया कि दो तोला मांस खरिदने के लिए इतनी धनराशि इकट्ठी हो गई फिर भी दो तोला मांस नही मिला । राजन ! अब आप स्वयं विचार करें कि मांस कितना सस्ता है ?

जीवन अमूल्य है, हम यह न भूलें कि जिस तरह हमें अपनी जान प्यारी है, उसी तरह सभी जीवों को भी अपनी जान उतनी ही प्यारी है । किंतु अंतर बस इतना है कि मनुष्य अपने प्राण बचाने हेतु हर सम्भव प्रयास कर सकता है । बोलकर, रिझाकर, डराकर, रिश्वत देकर आदि आदि । पशु न तो बोल सकते हैं, न ही अपनी व्यथा बता सकते हैं । तो क्या बस इसी कारण उनस जीने का अधिकार छीन लिया जाय ।

शुद्ध आहार, शाकाहार !
मानव आहार, शाकाहार !

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

भगवान शिव व विष्णु से जुड़ी अनेक कथाएं हमारे धर्म ग्रंथों में मिलती है।


भगवान शिव व विष्णु से जुड़ी अनेक कथाएं हमारे धर्म ग्रंथों में मिलती है। ऐसी ही एक रोचक कथा कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी से भी जुड़ी है। इस दिन बैकुंठ चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु व शिव की पूजा करने का विधान है। एक बार भगवान विष्णु, शिवजी का पूजन करने के लिए काशी आए। यहां मणिकार्णिका घाट पर स्नान करके उन्होंने एक हजार स्वर्ण कमल फूलों से भगवान शिव की पूजा का संकल्प लिया। अभिषेक के बाद जब भगवान विष्णु पूजन करने लगे तो शिवजी ने उनकी भक्ति की परीक्षा लेने के लिए एक कमल का फूल कम कर दिया। भगवान विष्णु को अपने संकल्प की पूर्ति के लिए एक हजार कमल के फूल चढ़ाने थे। एक पुष्प की कमी देखकर उन्होंने सोचा कि मेरी आंखें ही कमल के समान हैं इसलिए मुझे कमलनयन और पुण्डरीकाक्ष कहा जाता है। एक कमल के फूल के स्थान पर मैं अपनी आँख ही चढ़ा देता हूं। ऐसा सोचकर भगवान विष्णु जैसे ही अपनी आँख भगवान शिव को चढ़ाने के लिए तैयार हुए, वैसे ही शिवजी प्रकट होकर बोले- हे विष्णु। तुम्हारे समान संसार में कोई दूसरा मेरा भक्त नहीं है। आज की यह कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी अब से बैंकुठ चतुर्दशी के नाम से जानी जाएगी। इस दिन व्रत पूर्वक जो पहले आपका और बाद में मेरा पूजन करेगा और बैकुंठ लोक की प्राप्ति होगी। तब प्रसन्न होकर शिवजी ने भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र भी प्रदान किया और कहा कि यह चक्र राक्षसों का विनाश करने वाला होगा। तीनों लोकों में इसकी बराबरी करने वाला कोई अस्त्र नहीं होगा।

कामिनी श्रीवास्तव

Posted in संस्कृत साहित्य

ઐશ્વર્યા રાય એક સાબુ નું પ્રમોશન કરે છે


ઐશ્વર્યા રાય એક સાબુ નું પ્રમોશન કરે છે અને આપણે એ ખરીદીએ છીએ. શિલ્પા શેટ્ટી એક બ્રેકફાસ્ટ નું પ્રમોશન કરે છે અને આપણે એ ખરીદીએ છીએ. હૃતિક રોશન એક DEO નું પ્રમોશન કરે છે અને આપણે એ ખરીદીએ છીએ. જોહ્ન અબ્રાહમ એક હેલ્થ ડ્રિન્ક નું પ્રમોશન કરે છે અને લોકો એ ખરીદે છે. Apple એક નવો ફોન લોન્ચ કરે છે અને લોકો એ લેવા કલાકો સુધી લઈને માં ઉભા રહે છે ત્યારે ટાઈમ હોય છે લોકો ને. Deepika Padukone વેઈટ લોસ નો પ્રોગ્રામ સપોર્ટ કરે છે અને લોકો હોંશે હોંશે એને ફોલૉ કરે છે. Justine Bieber નો કોન્સર્ટ હોય છે જેની ટિકિટ હજારો અને લાખો માં હોય છે તો પણ લોકો એ જોવા જાય છે. પણ ….. પણ ….. પણ…… જો ફ્રેન્ડ કે ફેમિલી માંથી કોઈ નવો બિઝનેસ સ્ટાર્ટ કરે અને લોકો ને વાત કરે તો લોકો એને ના પાડે છે અને એનું ખૂબ રિસર્ચ કરે છે. અને પાછા એમ કહે છે કે પ્રોડક્ટસ બહુ મોંઘી છે. આમ શુ ખોટું છે??? કેમ આપડે આટલા ઉતાવળા હોઈએ છીએ એવા લોકોને સપોર્ટ કરવા માટે જેને આપણે ઓળખતા પણ નથી જેના જોડે અઢળક પૈસા પહેલેથીજ છે. પણ આપણા જોડે લાખો કારણો છે એ લોકો ને ના પાડવા માટે જેઓ અાપડા જેવી સામાન્ય લાઈફ જીવી રહ્યા છે.? તમે જ્યારે ડાયરેક્ટ સેલ્સ અને નાના બિઝનેસ ને સપોર્ટ કરી રહ્યા હોવ છો ત્યારે તમે એવી ફેમિલી ને મદદ કરી રહ્યા હોવ છો જેને તમે ઓળખો છો, એમના બાળકો નું ભારણ પોષણ કરવામાં અને તેમની ખુશી માં મદદ કરી રહ્યા હોવ છો, તેમને આર્થિક રીતે સદ્ધર થવામાં મદદ કરી રહ્યા હોવ છો. માટે તમારા નજીક ના ફ્રેન્ડસ અને ફેમિલી ને તેમના નાના બિઝનેસ માં હેલ્પ કરો નહીં કે સેલિબ્રિટી ને જેના જોડે પહેલેથીજ કરોડો રૂપિયા છે. માટે હવે જ્યારે પણ તમે તમારા મિત્ર ને તેમના બિઝનેસ ની પોસ્ટ મુકતા જુઓ ત્યારે ભલે તમે એમના જોડે થી પ્રોડક્ટ ના લો પણ એમને તરત Like કરો, Share કરો અને Comment કરો. Promote your Family and Friends first. 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻 આમ પણ દુનિયા નો નિયમ છે કે સારી વસ્તુ હંમેશા ઘરે ઘરે જઈને વહેંચવી પડે છે. જેમકે દારૂ પીવા લોકો ની લાઈન લાગે છે પણ દૂધ વહેંચવા લોકો ને ઘરે ઘરે જવું પડે છે. રવિ ભોગતિયા

Posted in संस्कृत साहित्य

कभी सोचा है स्वर्ण मंदिर को हरिमन्दिर क्यों कहा जाता है ?


कभी सोचा है स्वर्ण मंदिर को हरिमन्दिर क्यों कहा जाता है ? हरि, विष्णु जी का नाम है, और सिखों का पवित्र स्थल हरिमंदिर, विष्णु भगवान के नाम पर रखा गया हरिमंदिर साहिब में भगवान विष्णु जी की प्रतिमा खुद गुरु गोविंद सिंह जी ने स्थापित की थी और 1708 में उनकी मृत्यु के पश्चात 201 साल तक भगवान विष्णु की वो मूर्ति स्वर्ण मंदिर में थी मुग़ल काल के एक हुकुम-नामे ने हरिमन्दिर का नाम बदल कर इस्लामिक नाम दरबरा साहब कर दिया, और सारे मूर्तिया तोड़ दी गईं लेकिन विष्णु जी की मूर्ति छोड़ दी गई जिसे Jews और मुसलमानो ने अंग्रेजों से मिलकर 1909 में तुड़वा दिया खालसा पन्थ की स्थापना के समय ब्राह्मण,हिन्दू खत्री आगे आये थे। हर हिन्दू ने अपने परिवार का बड़ा बेटा खालसा फौज के लिए दिया था। एक और जहां मराठे लड़ रहे थे वहीं दूसरी और राजपूतों और ब्राह्मणों ने मुगलों की नाक में दम किया हुआ था। जब पहली खालसा फ़ौज बनी तब उसका नेतृत्व एक ब्राह्मण भाई प्राग दास जी के हाथ में था। उसके बाद उनके बेटे भाई मोहन दास जी ने कमान सम्भाली। सती दास जी,मति दास जी,दयाल दास जी जैसे वीर शहीद ब्राह्मण खालसा फ़ौज के सेनानायक थे। इन्होंने गुरु जी की रक्षा करते हुए अपनी जान दी। गुरु गोविन्द सिंह जी को शस्त्रों की शिक्षा देने वाले पण्डित कृपा दत्त जी भी एक ब्राह्मण थे, उनसे बड़ा योद्धा कभी पंजाब के इतिहास में नही देखा गया। जब 40 मुक्ते मैदान छोड़ कर भागे तब एक बैरागी ब्राह्मण लक्ष्मण दास जी उर्फ़ बन्दा बहादुर जी और उसका 14 साल के बेटे अजय भरद्वाज ने गुरु जी के परिवार की रक्षा के लिए सरहिंद में लड़े।चप्पड़ चिड़ी की लड़ाई में उनकी इतिहासिक विजय हुई। 1906 में खालसा पन्थ सिख धर्म बना। अकाली लहर चला कर उसे हिन्दू धर्म से कुछ लोगों ने अलग कर दिया। इतिहास से छेड़छाड़ हुई पर सच्चाई कभी बदल नही सकती। सभी हिन्दू और सिखो से अनुरोध है कि आप हिन्दू सिखो की सांझी विरासत को पहचानिए और हमारा असली इतिहास जिसे बिकाऊ वामपंथी इतिहासकारों ने मिटा दिया वो सबके सामने आये। Guru Govind Singh who was named after Lord Krishn ( Govind ) created the Khalsa, solely in order to defend “Hindu dharma” and his mother land. So what happened in 1857— a Sundri group by the name of tat Khalsa just hijacked the Guru’s vision and saved the Christian white invader when the whole of India rose like one to drive them away? With the connivance of the FAKE white historians holiest shrine, the Sanskrit name Hari Mandir ( Vishnu temple ) was replaced with the Urdu name Darbar Sahib (“revered court-session”). An Islamic fatwa became the Sikh hukumnama (“command-letter”). The Vishnu statue in the Hari Mandir were broken, and thrown away which none of the 10 gurus did NOT dare to do. It was the German Jew a stooge of German Jew Rothschild, the Principal of Government College at Lahore Gottlieb Wilhelm Leitner who coined the name Singh Sabha and gave all the Urdu titles using a Urdu Muslim scholar, Maulvi Karim-ud-Din. Our Jewish man Leitner used to dress up as a Sikh. Guru Govind passed away in 1708, over 201 years after his passing the Sundri group Tat Singh Sabha in 1906, suddenly decide to remove the original idol of Lord Vishnu kept there by Guru Gobind Singh and all the previous Gurus .. If so, then why not remove the name of Vishnu from the holy book Guru Granth Sabib too? Can you imagine Jews and Muslims working together to screw Hinduism and Mother India ? Sikhs must know desh bhakti is to the mother land and NOT to a book or person on a throne. PLEASE SHARE OR COPY/PASTE THIS POST