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हमीद अंसारी की काला इतिहास बात 1990 के दशक के आखिरी वर्षों का है जब,


हमीद अंसारी की काला इतिहास बात 1990 के दशक के आखिरी वर्षों का है जब, हमीद. अंसारी ईरान मे भारत के Ambassador हुआ करते थे । उस समय तेहरान मे पोस्टेड RAW के जासूस Mr. Kapoor को तेहरान मे किडनेप कर लिया गया । इस young operative को लगातार 3 दिनों तक बुरी तरह टोर्चर किया गया, ड्रग्स के डोज़ दिये गए और आखिर मे उसे तेहरान के सुनसान सड़क पे फेंक दिया गया । पर Ambassador अंसारी ने इस मुद्दे पर तनिक भी ध्यान नहीं दिया, न ही भारत सरकार को इस बाबत खबर दी । . इसी दौरान कश्मीर के कुछ Trainee इमाम तेहरान के नजीदक Qom नामक Religious Center मे ट्रेनिंग के लिए इकट्ठा होते थे, जिस पर RAW ने नजर रखा हुआ था, और इसकी पूरी जानकारी दिल्ली हेडक्वार्टर भेजा जा रहा था । हमीद Ansari के एक जानकार के माध्यम से RAW जासूस Mr. Mathur ने इस संगठन मे अपने जासूस फिट किए थे । . इसी बीच अचानक Mr. Mathur का भी तेहरान जासूसों ने किडनेप कर लिया, जिसका पूरा शक अंसारी के मुखबिरी का था । इंडियन इंटेलिजेंस खेमा हरकत मे आया और माथुर की तलाश ईरान मे शुरू हुई, पर Ambassador होते हुए अंसारी न कोई मदद किया और नहीं इस घटना की सूचना भारत सरकार को दी गयी । . आखिर 2 दिन बाद जब इंटेलिजेंस ऑफिसर के बीबी-बच्चे अंसारी के घर के गेट पर प्रदर्शन करना शुरू किया । पर अंसारी इंटेलिजेंस वालों के परिवार वालों से मिलने से इंकार कर दिया, Mr. Mathur की पत्नी ने अंसारी के केबिन मे घुस उसे बुरी तरह लताड़ा । हताश RAW ने दिल्ली हेडक्वार्टर को इन्फॉर्म किया और तब के PM Atal Bihari Vajpayee जी से बात की । PMO के दखल से कुछ ही घंटे मे ईरानी जासूसों ने Mr. Mathur को आजाद कर दिया । . Mr. Mathur को थर्ड डिग्री दी गयी थी, पर उन्होने तेहरान मे स्थित किसी जासूस या कोई भी सीक्रेट जानकारी उन्हे नहीं दिया । पर ईरान स्थित दूसरे RAW agents का मनोबल टूट चुका था …. वो ‘अन्सारी’ मतलब कल तक के भारत के उपराष्ट्रपति ‘मो. हमीद अन्सारी’ .. ———(Source — “RAW” …..declassified साभार

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एक प्रोफेसर अपनी क्लास में कहानी सुना रहे थे–


एक प्रोफेसर अपनी क्लास में कहानी सुना रहे थे– एक बार समुद्र के बीच में एक बड़े जहाज पर बड़ी दुर्घटना हो गयी. कप्तान ने शिप खाली करने का आदेश दिया. जहाज पर एक युवा दम्पति थे. जब लाइफबोट पर चढ़ने का उनका नम्बर आया तो देखा गया नाव पर केवल एक व्यक्ति के लिए ही जगह है. इस मौके पर आदमी ने औरत को धक्का दिया और नाव पर कूद गया. डूबते हुए जहाज पर खड़ी औरत ने जाते हुए अपने पति से चिल्लाकर एक वाक्य कहा. अब प्रोफेसर ने रुककर स्टूडेंट्स से पूछा – तुम लोगों को क्या लगता है, उस स्त्री ने अपने पति से क्या कहा होगा ? ज्यादातर विद्यार्थी फ़ौरन चिल्लाये – स्त्री ने कहा – मैं तुमसे नफरत करती हूँ ! I hate you ! प्रोफेसर ने देखा एक स्टूडेंट एकदम शांत बैठा हुआ था, प्रोफेसर ने उससे पूछा कि तुम बताओ तुम्हे क्या लगता है ? वो लड़का बोला – मुझे लगता है, औरत ने कहा होगा – हमारे बच्चे का ख्याल रखना ! प्रोफेसर को आश्चर्य हुआ, उन्होंने लडके से पूछा – क्या तुमने यह कहानी पहले सुन रखी थी ? लड़का बोला- जी नहीं, लेकिन यही बात बीमारी से मरती हुई मेरी माँ ने मेरे पिता से कही थी. प्रोफेसर ने दुखपूर्वक कहा – तुम्हारा उत्तर सही है ! प्रोफेसर ने कहानी आगे बढ़ाई – जहाज डूब गया, स्त्री मर गयी, पति किनारे पहुंचा और उसने अपना बाकी जीवन अपनी एकमात्र पुत्री के समुचित लालन-पालन में लगा दिया. कई सालों बाद जब वो व्यक्ति मर गया तो एक दिन सफाई करते हुए उसकी लड़की को अपने पिता की एक डायरी मिली. डायरी से उसे पता चला कि जिस समय उसके माता-पिता उस जहाज पर सफर कर रहे थे तो उसकी माँ एक जानलेवा बीमारी से ग्रस्त थी और उसके जीवन के कुछ दिन ही शेष थे…. ऐसे कठिन मौके पर उसके पिता ने एक कड़ा निर्णय लिया और लाइफबोट पर कूद गया. उसके पिता ने डायरी में लिखा था – तुम्हारे बिना मेरे जीवन को कोई मतलब नहीं, मैं तो तुम्हारे साथ ही समंदर में समा जाना चाहता था. लेकिन अपनी संतान का ख्याल आने पर मुझे तुमको अकेले छोड़कर जाना पड़ा. जब प्रोफेसर ने कहानी समाप्त की, तो पूरी क्लास में शांति थी. इस संसार में कई सही गलत बातें हैं लेकिन उसके अतिरिक्त भी कई जटिलतायें हैं, जिन्हें समझना आसान नहीं. इसीलिए ऊपरी सतह से देखकर बिना गहराई को जाने-समझे हर परिस्थिति का एकदम सही आकलन नहीं किया जा सकता. – कलह होने पर जो पहले माफ़ी मांगे, जरुरी नहीं उसी की गलती हो. हो सकता है वो रिश्ते को बनाये रखना ज्यादा महत्वपूर्ण समझता हो. – जो लोग आपकी मदद करते हैं, जरुरी नहीं वो आपके एहसानों के बोझ तले दबे हों. वो आपकी मदद करते हैं क्योंकि उनके दिलों में दयालुता और करुणा का निवास है. आजकल जीवन कठिन इसीलिए हो गया है क्योंकि हमने लोगो को समझना कम कर दिया है और फौरी तौर पर जानना अधिक शुरू कर दिया है….. विमल कुमार शर्मा

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भक्ति में उदारता हो तो भक्त संतोष से परिपूर्ण रहता है


भक्ति में उदारता हो तो
भक्त संतोष से परिपूर्ण रहता है
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🔷 जगत जननी पार्वती ने भूखे भक्त भर्तृहरि को श्मशान में चिता के अंगारों पर रोटी सेकते देखा तो उनका कलेजा मुँह को आ गया । वह दौड़ी-दौड़ी ओघड़दानी भगवान शिव के पास गयीं और कहने लगीं – ”भगवन् ! मुझे ऐसा लगता है कि आपका कठोर हृदय अपने अनन्य भक्तों की दुर्दशा देखकर भी नहीं पसीजता । कम से कम उनके लिए भोजन की उचित व्यवस्था तो आपको करनी ही चाहिये । देखते नहीं वह बेचारा भर्तृहरि अपनी कईं दिनों की भूख किसी मृतक को दिए गए पिण्ड के आटे की रोटियाँ बनाकर शान्त कर रहा है ।”

🔷 महादेव ने हँसते हुए कहा – “हे देवी ! ऐसे भक्तों के लिए मेरा द्वार सदैव खुला रहता है । पर वे आना ही कहाँ चाहते हैं ! यदि कोई वस्तु उन्हें दी भी जाये तो भी वे उसे स्वीकार नहीं करते, कष्ट उठाते रहते हैं । फिर ऐसी स्थिति में तुम्हीं बताओ कि मैं क्या करुँ ?”

🔷 माँ भवानी अचरज से बोलीं – “तो क्या प्रभु जी ! आपके भक्तों को उदरपूर्ति के लिए भोजन की आवश्यकता भी अनुभव नहीं होती ?”

🔷 भगवान शिव जी ने कहा – “परीक्षा लेने की तो तुम्हारी पुरानी आदत है, देवी ! यदि विश्वास न हो तो तुम स्वयं ही जाकर क्यों न पूछ लेती । लेकिन परीक्षा में सावधानी रखना ।”

🔷 भगवान शिव के आदेश की देरी थी कि माँ पार्वती भिखारिन का छद्मवेश बनाकर भर्तृहरि के पास पहुँच गई और बोली – ”बेटा ! मैं पिछले कईं दिनों से भूखी हूँ । क्या मुझे भी कुछ खाने को दोगे ?”

🔷 भर्तृहरि ने बड़े प्रेम से कहा – “हाँ, क्यों नहीं ! बैठो, माँ !” उन्होंने केवल चार रोटियाँ सेंकी थीं, उनमें से दो बुढ़िया माता के हाथ पर रख दीं और शेष दो रोटियों को खाने के लिए आसन लगाकर बैठ गया ।

🔷 भिखारिन ने दीन भाव से निवेदन किया – “बेटा ! इन दो रोटियों से कैसे काम चलेगा ? मैं अपने परिवार में अकेली नहीं हूँ, एक बुड्ढा पति भी है । उसे भी कईं दिनों से खाने को कुछ नहीं मिला ।”

🔷 भर्तृहरि ने वे दोनों रोटियाँ भी भिखारिन के हाथ पर रख दीं । उन्हें बड़ा सन्तोष हुआ कि इस भोजन से मुझसे भी अधिक भूखे प्राणियों का निर्वाह हो सकेगा । उन्होंने कमण्डल उठाकर पानी पिया, सन्तोष की साँस ली और वहाँ से उठकर जाने लगे । तभी पीछे से आवाज सुनाई दी – “सुनो, वत्स ! तुम कहाँ जा रहे हो ?”

🔷 भर्तृहरि ने पीछे मुड़कर देखा तो भिखारिन मुस्कुरा रही है और कह रही है – “मैं तुम्हारी साधना से बहुत प्रसन्न हूँ, वत्स ! तुम्हें जो वरदान माँगना हो माँगो ।”

🔷 प्रणाम करते हुए भर्तृहरि ने कहा – “माँ ! अभी तो तुम अपनी व अपने पति की क्षुधा शान्त करने के लिए मुझसे रोटियाँ माँगकर ले गई थीं । अरे, जो स्वयं दूसरों के सम्मुख हाथ फैलाकर अपना पेट भरता हो, वह भला क्या किसी को कुछ दे सकता है ! ऐसे भिखारी से मैं क्या माँगू ?”

🔷 पार्वती जी ने अपना असली स्वरुप दिखाया और कहा – “मैं सर्वशक्तिमान हूँ, वत्स ! तुम्हारे स्वभाव में जो करुणा है, उससे मैं बहुत प्रसन्न हूँ, तुम जो चाहो सो वर माँगो ?”

🔷 भर्तृहरि ने श्रद्धा पूर्वक जगदम्बा के चरणों में सिर झुकाया और कहा – “हे माँ ! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो यही वर दे दो कि जो कुछ भी मुझे मिले उसे दीन दु:खियों में बांटता रहूँ और अभावग्रस्त स्थिति में भी मैं बिना मन को विचलित किए शान्ति पूर्वक जीवन यापन करता रहूँ ।”

🔷 पार्वती जी ‘एवमस्तु’ कहकर भगवान शिव के पास लौट आयीं । त्रिकालदर्शी भगवान यह सब देख रहे थे, उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा – “हे देवी ! मेरे भक्त इसलिए दरिद्र नहीं रहते कि उन्हें कुछ मिलता नहीं है । बल्कि भक्ति के साथ जुड़ी उदारता उनसे अधिक से अधिक दान कराती रहती है और वे खाली हाथ रहकर भी विपुल सम्पत्तिवानों से अधिक सन्तुष्ट बने रहते हैं ।

 

🙏🏻 गोपाल स्वामी (भागवत प्रवक्ता)
सुदामा कुटी – खैरी,
धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र (हरियाणा)
080591-54254.

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पिता और पुत्र की रोचक कहानी


पिता और पुत्र की रोचक कहानी एक बार पिता और पुत्र जलमार्ग से यात्रा कर रहे थे, और दोनों रास्ता भटक गये. वे दोनों एक जगह पहुँचे, जहाँ दो टापू आस-पास थे. पिता ने पुत्र से कहा, अब लगता है हम दोनों का अंतिम समय आ गया है. दूर-दूर तक कोई सहारा नहीं दिख रहा है. अचानक उन्हें एक उपाय सूझा, अपने पुत्र से कहा कि वैसे भी हमारा अंतिम समय नज़दीक है तो क्यों न हम ईश्वर की प्रार्थना करें. उन्होने दोनों टापू आपस में बाँट लिए. एक पर पिता और एक पर पुत्र, और दोनों अलग-अलग ईश्वर की प्रार्थना करने लगे. पुत्र ने ईश्वर से कहा, हे भगवन, इस टापू पर पेड़-पौधे उग जाए जिसके फल-फूल से हम अपनी भूख मिटा सकें. प्रार्थना सुनी गयी, तत्काल पेड़-पौधे उग गये और उसमें फल-फूल भी आ गये. उसने कहा ये तो चमत्कार हो गया. फिर उसने प्रार्थना की, एक सुंदर स्त्री आ जाए जिससे हम यहाँ उसके साथ रहकर अपना परिवार बसाएँ. तत्काल एक सुंदर स्त्री प्रकट हो गयी. अब उसने सोचा की मेरी हर प्रार्थना सुनी जा रही है, तो क्यों न हम ईश्वर से यहाँ से बाहर निकलने का रास्ता माँगे? उसने ऐसा ही किया. उसने प्रार्थना की, एक नाव आ जाए जिसमें सवार होकर हम यहाँ से बाहर निकल सकें. तत्काल नाव प्रकट हुई, और पुत्र उसमें सवार होकर बाहर निकलने लगा. तभी एक आकाशवाणी हुई, बेटा तुम अकेले जा रहे हो? अपने पिता को साथ नहीं लोगे? तो पुत्र ने कहा, उनको छोड़ो, वो इसी लायक हैं, प्रार्थना तो उनने भी की, लेकिन आपने उनकी एक भी नहीं सुनी. शायद उनका मन पवित्र नहीं है, तो उन्हें इसका फल भोगने दो ना? आकाशवाणी कहती है – बेटा, क्या तुम्हें पता है, की तुम्हारे पिता ने क्या प्रार्थना की? पुत्र बोला नहीं. —– तो सुनो, तुम्हारे पिता ने एक ही प्रार्थना की, हे भगवन, मेरा बेटा आपसे जो माँगे, उसे दे देना… 🙏

R K Nakeera

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ગરુડ પૂરાણ :* *મૃત્યુ બાદ શું થાય?*


*ગરુડ પૂરાણ :* *મૃત્યુ બાદ શું થાય?* *મૃત્યુ બાદ જીવન છે?* *શું મૃત્યુ પીડા દાયક છે?* *પૂન:જન્મ કેવી રીતે થાય?* *મૃત્યુ પામ્યા બાદ જીવાત્મા ક્યાં જાય છે?* આવાં પ્રશ્નો આપણા મનમાં આવે ત્યારે જ આવે, જ્યારે આપણા કોઈ સ્વજનનું મૃત્યુ થયું હોય. આવે સમયે આપણે વિચારીએ છીએ કે તે વ્યક્તિ સાથે આપણો સંબંધ પૂર્ણ થઈ ગયો? શું આપણે તે વ્યક્તિને ફરી કદી પણ નહીં મળી શકાય? આપણા આ બધા પ્રશ્નો નો ઉત્તર આપણા પ્રાચીન ગરુડ – પૂરાણ માંથી મળશે. ચાલો આજે આપણે સરળ રીતે સમજવાનો પ્રયત્ન કરીએ… મ્રુત્યુ એક રસદાયી ક્રિયા અથવા ઘટનાક્રમ છે. *પ્રુથ્વી-ચક્રનું જોડાણ છુટવુ:* અંદાજે મ્રુત્યુના ૪ થી ૫ કલાક પૂર્વે , પગના તળીયા ઠંડા પડવાની શરૂઆત થઈ જાય છે. આ લક્ષણો એમ સૂચવે છે કે પ્રૃથ્વી-ચક્ર જે પગના તળીયે આવેલ છે, તે શરીરથી છૂટૂ પડી રહ્યું છે. મ્રુત્યુના થોડા સમય પહેલાં પગનાં તળીયા ઠંડા પડી જાય છે. જ્યારે મ્રુત્યુનો સમય આવે છે ત્યારે એમ કહેવાય છે કે યમદૂત તે જીવનું માર્ગદર્શન કરવા માટે આવે છે. *જીવાદોરી ( Astral Cord ):* જીવાદોરી એટલે આત્મા અને શરીર સાથેનું જોડાણ. મ્રુત્યુ નો સમય થતાં, યમદૂતના માર્ગદર્શન થી જીવાદોરી કપાય છે અને આત્મા નું શરીર સાથેનું કનેક્શન કપાઈ જાય છે. આ પ્રક્રિયા ને જ મ્રુત્યુ કહેવાય છે. એક વાર જીવાદોરી કપાય એટલે આત્મા શરીરથી મુક્ત થઈ ગુરૂત્વાકર્ષણ થી વિરુદ્ધ ઉપર તરફ ખેંચાણ નો અનુભવ કરે છે. પરંતુ આત્મા જે શરીરમાં આખી જીંદગી રહ્યો હોય તે શરીર ને છોડવા જલદી તૈયાર થતો નથી અને ફરીથી શરીરમાં પ્રવેશ કરવાની કોશિષ કરે છે. મ્રુતદેહ ની પાસે રહેલ વ્યક્તિ આ કોશિષ નો અનુભવ કરી શકે છે. આપણે ઘણી વાર જોઈએ છીએ કે મ્રુત્યુ થયા પછી પણ મ્રૃતકના ચહેરા અથવા હાથ પગ ઉપર સહેજ હલનચલન વર્તાય છે. તે આત્મા તુરંત સ્વીકાર નથી કરી શકતો કે તેનું મ્રુત્યુ થયું છે. તેને એમજ લાગે છે કે તે જીવંત છે. પરંતુ જીવાદોરી કપાઈ જવાને લીધે તે આત્મા ઉપર તરફ ખેચાણનો અનુભવ કરે છે. આ સમયે આત્માને ઘણા અવાજ સંભળાય છે. તે મ્રુતશરીરની આસપાસ , જેટલી વ્યક્તિ રહેલી હશે અને તે દરેક વ્યક્તિ તે સમયે જે કાંઇ વિચારતા હશે એ બધું જ તે આત્મા ને સંભળાય છે. એ આત્મા પણ ત્યાં રહેલ વ્યક્તિઓ સાથે વાત કરવાની કોશિષ કરે છે, પરંતુ કોઈને સંભળાતુ નથી. ધીરે ધીરે આત્મા ને સમજાય છે કે તેનું મ્રુત્યુ થયું છે. તે આત્મા શરીરથી ૧૦ થી ૧૨ ફૂટ ઉપર છત નજીક હવામાં તરતો રહે છે અને તેને આજુબાજુ શું ચાલી રહ્યું છે તે જોવાય તથા સંભળાય છે. સામાન્ય રીતે જ્યાં સુધી શ્મશાનમાં અગ્નિદાહ થાય ત્યાં સુધી આત્મા શરીરની આસપાસ જ રહે છે. હવે પછી આ વાત ધ્યાનમાં રાખજો કે જ્યારે પણ તમે કોઈની સ્મશાન યાત્રા માં સામેલ થયા હો, તે મ્રુતકનો આત્મા પણ સહુની સાથે યાત્રા દરમિયાન સાથે હશે અને દરેક વ્યક્તિ તેની પાછળ શું બોલી રહ્યા છે તેનો એ આત્મા સાક્ષી બને છે. જ્યારે સ્મશાનમાં તે આત્મા પોતાના શરીર ને પંચમહાભૂત માં વિલીન થતાં જોય છે, ત્યારબાદ તેને મુક્ત થયાનો અહેસાસ થાય છે. આ ઉપરાંત તે ને સમજાય છે કે માત્ર વિચાર કરવાથી જ તેને જ્યાં જવું હોય તે ત્યાં જ્ઈ શકે છે. પહેલાં સાત દિવસ સુધી એ આત્મા તે ની મનગમતી જગ્યાએ ફરે છે. જો, એ આત્મા ને તેમના સંતાન પ્રત્યે લાગણી હશે તો તે સંતાન ના રૂમમાં રહેશે… જો, એમનો જીવ રુપિયા માં હશે તો તેના કબાટ નજીક રહેશે… સાત દિવસ પછી તે આત્મા તેના કુટુંબ ને વિદાય લઈ , પ્રૃથ્વી ની બહાર ના આવરણ તરફ પ્રયાણ કરે છે, જ્યાંથી તેને બીજા લોકમાં જવાનું છે. આ મ્રુત્યુલોક માં થી પરલોકમાં જવા માટે એક ટનલ માં થી પસાર થવું પડે છે. આજ કારણસર કહેવાય છે કે મ્રુત્યુ પછીના ૧૨ દિવસ અત્યંત કસોટીપૂર્ણ છે. મ્રુતકના સગાં સંબંધીઓ એ તે ની પાછળ જે કાંઇ ૧૨માં અથવા ૧૩માં ની શાસ્ત્રોક્ત વિધિ , પીઙદાન તથા ક્ષમા-પ્રાથૅના કરવાની અત્યંત જરૂરી છે જેથી તે આત્મા , કોઈ પણ વ્યક્તિ તરફી નકારાત્મક ઉર્જા ,રાગ, દ્વેષ, વગેરે પોતાની સાથે ન લઈ જાય. તેમની પાછળ કરેલી દરેક વિધિ સકારાત્મક ઉર્જા થી થઈ હશે તો તેમની ઉધ્વૅગતિ માં મદદરૂપ થશે. મ્રુત્યુલોક થી શરૂ થતી ટનલ ના અંતે દિવ્ય-તેજ યુક્ત પરલોકનું પ્રવેશ દ્વાર આવેલ છે. *પૂર્વજો સાથે મિલન:* જ્યારે ૧૧માં, ૧૨માં ની વિધિ, હોમ-હવન, વિગેરે કરવામાં આવે છે ત્યારે તે આત્મા તેના પિત્રુઓને , સ્વગૅવાસિ મીત્રોને તથા સ્વગૅસ્થ સગાઓ ને મળે છે. આપણે જેમ કોઈ વ્યક્તિને ઘણા સમય પછી મળ્યા હોય ત્યારે કેવીરીતે ગળે મળીએ તેવું જ અહીં મિલન થાય છે. ત્યારબાદ જીવાત્માને તેના માર્ગદર્શક દ્વારા કર્મોના હિસાબ રાખતી સમિતિ પાસે લઈ જવામાં આવે છે. તેને ચિત્ર ગુપ્ત તરીકે ઓળખવામાં આવે છે. *મ્રુત્યુલોક ના જીવન ની સમીક્ષા:* અહીં કોઈ ન્યાયકર્તા કે કોઈ પણ ભગવાનની હાજરી નથી હોતી. જીવાત્મા પોતે જ તેજોમય વાતાવરણ માં પોતાના પ્રૃથ્વી ઉપરના વિતેલા જીવનની સમીક્ષા કરે છે. જેમ કોઈ ફિલ્મ ચાલતી હોય એ રીતે જીવાત્મા પોતાની વિતેલી જીદંગી જોઈ શકે છે. ગત્- જીવનમાં જે તે વ્યક્તિઓએ તેને જે કાંઇ તકલીફો આપી હતી તેનું વેર લેવા આ જીવાત્મા ઈચ્છી શકે છે. પોતે કરેલ ખરાબ કર્મો માટે અપરાધ ભાવ પણ આ જીવ મહેસૂસ કરે છે અને તે બદલ પશ્ચાતાપ રુપે હવે પછી ના જન્મ માં શિક્ષા ભોગવાનુ માગી શકે છે. અહીં પરલોકમાં આ જીવાત્મા તેના શરીર તથા અહંકાર થી મુક્ત છે. આજ કારણસર દેવલોકમાં સ્વિકારેલો ચુકાદો તેના આગલા જન્મનો આધાર બને છે. ગત જન્મમાં બનેલ દરેક ઘટનાઓના આધારે તે જીવ પોતાના થનારા નવા જન્મનો નકશો -કરાર ( બ્લુ-પ્રીન્ટ) બનાવે છે. આ કરારમાં જીવ પોતાના નવા જન્મમાં થનારી દરેક ઘટનાક્રમ, પ્રસંગો, આવનારી મુશ્કેલીઓ , વેરઝેર, બદલો, પડકાર, ભક્તિ, સાધના વગેરે નક્કી કરે છે. હકીકતમાં જીવ પોતેજ ઝીણા માં ઝીણી વિગતો જેવી કે ઉમર, નવા જીવનમાં મળનારી દરેક વ્યક્તિ, અનેક પ્રસંગ દ્વારા થનારા સારા – નરસા અનુભવો, વગેરે … આ જીવાત્મા પહેલાં થી જ નક્કી કરે છે. દાખલા તરીકે: કોઈ જીવ જુએ છે કે પાછલા જન્મમાં તેણે પોતાના પાડોશી ને માથામાં પથ્થર મારી ને હત્યા કરી હતી. આ ઘટના ના પશ્ચાતાપ રુપે તે જીવ પોતાના આગલા જન્મમાં એટલી જ વેદના ભોગવવા નું નક્કી કરે છે. તેના ભાગરુપે તે આખી જીંદગી માથાનો અસહ્ય દુઃખાવો સહન કરવાનું કરારબધ્ધ કરે છે કે જેની વેદનાને કોઈ દવાની પણ અસર ન થાય. *આગલા જીવનનો કરાર (બ્લુ-પ્રીન્ટ):* દરેક જીવ તેના નવા જીવનનો જે કરાર કરે છે , તે તદ્દન પોતાના મૂળભૂત સ્વભાવ ને આધારીત જ હોયછે. જો જીવનો સ્વભાવ વેરઝેર યુક્ત હોય તો તેના માં બદલાની ભાવના પ્રબળ હશે. જેટલી તીવ્રતા ની ભાવના હશે તે પ્રમાણે ભોગવવું પડશે. આજ કારણસર દરેક વ્યક્તિને માફ કરવું જરૂરી છે અથવા આપણી ભૂલની માફી માંગવી જરૂરી છે, નહીં તો વેરભાવ ચૂકવવા માટે જન્મો જન્મની પીડા ભોગવવી પડશે. એકવાર જીવ પોતાના આગામી જન્મના કરાર ની બ્લુ-પ્રીન્નટ નક્કી કરે છે , ત્યારબાદ વિશ્રાતિનો સમય હોય છે. દરેક જીવની પોતાની ભોગવવાની તીવ્રતા પર આગલા જન્મ વચ્ચેનો વિશ્રાતિ સમય નક્કી થાય છે. *પૂનઃજન્મ* દરેક જીવ પોતે નક્કી કરેલા કરાર પ્રમાણે, પોતે નક્કી કરેલ સમય બાદ પુનઃજન્મ લેય છે. દરેક જીવને પોતાના માતા પિતાને પસંદ કરવાનો અધિકાર પ્રાપ્ત છે. તે ઉપરાંત જીવને માતાના ગર્ભમાં ક્યા સમયે દાખલ થવું એનો અધિકાર પણ છે. જીવ અંડકોષ ના મિલન દરમ્યાન, ૪થા- ૫માં મહીને અથવા પ્રસૂતિ ના અંતિમ સમયે પણ ગર્ભ માં પ્રવેશ કરી શકે છે. આ બ્રહ્માંડ પણ એટલું જ વિકસિત અને સંપૂર્ણ છે કે જો જીવની જન્મકુંડળીનું વિધાન કાઢવામાં આવે તો એ જીવાત્માએ જે પ્રમાણે જીવનનો કરાર કરીને જન્મ લીધો હોય તેનીજ બ્લુ-પ્રીન્ટ નીકળશે. દરેક જીવાત્માને જન્મના ૪૦ દિવસ સુધી પોતાનો પાછલો જન્મ યાદ રહે છે. ત્યારબાદ પાછલા જન્મની બધી સ્મૃતિ વિસરાઈ જાય છે અને જીવ એ રીતે વર્તન કરે છે કે જાણે તે અગાઉ અસ્તિત્વ માં જ ન હતો. દરેક જીવ, દેવલોકમાં જે કરારબધ્ધ થઈ ને અહીં મ્રુત્યુલોકમાં જન્મે છે તે કરાર જ ભૂલી જાય છે અને પોતાની વિષમ પરિસ્થિતિનો દોષ ગ્રહો તથા ભગવાન ને દેય છે. આપણે સહુએ એક વાત સમજવા જેવી છે કે આપણે ભોગવી રહેલ દરેક પરિસ્થિતિ (સારી અથવા વિષમ), તેનું ચયન આપણે ખૂદ જન્મ લીધા પહેલાં જ કરેલ છે. આ જીવનમાં રહેલી દરેક વ્યક્તિ , માતા, પિતા, મિત્રો, સંબંધીઓ, જીવનસાથી, શત્રુઓ વિગેરે ની પસંદગી પણ આપણે જ કરેલ છે. આપણા જીવન રુપી ફિલ્મની વાર્તા લખનારા તથા પ્રોડ્યુસર અને ડાયરેક્ટર પણ આપણે સ્વયં છીએ. એક વાત ધ્યાનમાં રાખો, આપણા જીવનમાં આવનારી દરેક વ્યક્તિ એજ રોલ નીભાવે છે જે રોલ આપણે લખ્યો છે, તો પછી આપણે શું કામ કોઇ પણ વ્યક્તિ સામે ફરિયાદ કરવી જોઈએ? *શું મ્રુત્યુ બાદ સ્વજનો પાછળ પ્રાર્થના તથા ક્રિયા કરવાની જરૂર છે?* મ્રુત્યુ બાદ આપણાં સ્વજનો ને ગતિ પ્રાપ્ત થાય તે અત્યંત જરૂરી છે. ગતિ એટલે આત્મા એ મ્રુત્યુલોક થી પરલોકમાં પ્રયાણ કરવું. જો ગતિ ન થાય તો જીવ પ્રુથ્વીલોકમાં જ અટકી જાય છે. ઘણી વાર એવું પણ બને છે કે જીવની કોઈ ઈચ્છા બાકી રહી ગઈ હોય, જીવ અત્યંત દુ:ખી થઇ ને નીકળ્યો હોય, અકસ્માત માં કે ઈજાગ્રસ્ત અવસ્થામાં મોત થયું હોય, આપઘાત કર્યો હોય, કોઈ નજીક ની વ્યક્તિ માં જીવ રહી ગયો હોય અથવા જીવાત્મા ની પાછળ અધકચરી અપૂર્ણ અંતિમ ક્રિયા થઈ હોય ,અથવા આત્માને લાગે કે તેને હજુ થોડો સમય પ્રૃથ્વીલોકમાં રહેવું છે… આવી પરિસ્થિતિ માં જીવ અહીં જ રહી જાય છે. પરંતુ મ્રુત્યુ બાદ દરેક જીવાત્મા એ ૧૨ દિવસમાં દેવલોક તરફ પ્રયાણ કરવાનું હોય છે, ત્યારબાદ તે પ્રવેશદ્વાર બંધ થઈ જાય છે અને તે આત્મા દેવલોકમાં પ્રવેશી શકતો નથી અને પ્રૃથ્વી ઉપર પ્રેતયોની માં અધવચ્ચે રહી જાય છે. આમ તે આત્મા ને નથી દેવલોકમાં પ્રવેશ મળતો કે નથી ભોગવવા માટે શરીર મળી શકતું. આજ કારણસર જનાર વ્યક્તિ પાછળ ક્રિયા-વિધિ, ક્ષમા-પ્રાર્થના અત્યંત જરૂરી છે કે જેથી સદ્ ગત્ આત્માની ગતિ થાય. અત્યાર ના સમયમાં નવી પેઢી ને આ બધા રીતીરિવાજો , માન્યતાઓ જૂનવાણી લાગે છે અને પોતાના સ્વજનો પાછળ ક્રિયા વિધિ કરતાં નથી. આને લીધે ઘણાં જીવાત્માઓ અહીં પ્રૃથ્વી લોકમાં અટકી ગયા છે અને તેઓની ગતિ થતી નથી. દરેક પરિવારે તેમના સ્વજનો ના સદ્ ગત આત્માની ગતિ માટે કરવામાં આવતી ક્રિયા વિધિ ની ઉપેક્ષા કદી કરવી નહીં. જે પરિવારે તેમના સ્વજનો ગુમાવ્યા છે, તેમણે કદી દુઃખી થવું નહીં, આત્માનુ કદી મ્રુત્યુ નથી થતું. સમય આવતાં આપણે સ્વજનો ને મળવાનાં જ છીએ. *લેખ: ગરુડ પૂરાણ* *પર આધારિત*

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એક સીનીયર સીટીઝન _મહેશ શાહ_ તરફથી ખૂબ પ્રેમ સાથે સાદર.


એક સીનીયર સીટીઝન _મહેશ શાહ_ તરફથી ખૂબ પ્રેમ સાથે સાદર……….👏👏👏👏👏 વ્રૃધ્ધ થતા આવડે છે તમને? કે માત્ર ઘરડા થયા છો? 💥તમે તમારા પૌત્ર પૌત્રી સાથે રમો છો? 💥એમને વાર્તાઓ કહો છો? 💥જેટલુ આવડે એટલુ,એમને લેસન કરવામા મદદ કરો છો? 💥એમને ઉપદેશ આપ્યા સિવાય એમની ઉમરના થઈ એમની સાથે વાતો કરી શકો છો? 💥એમને નજીકના મંદિરે કે બગીચે લઈ જાઓ છો? 💥એક ચોકલેટ અપાવો છો? તો *તમે મીઠાશભર્યા વ્રૃધ્ધ છો*🌹 💥તમારા દીકરા ની રાહ જમવામા જુઓ છો? 💥એની વાતો માં રસ લો છો? 💥એ બિમાર હોય તો એને માથે બામ લગાડો છો? 💥એનુ વિલાયેલુ મો તમને સમજાય જાય છે? તો *તમે મજાના વ્રૃધ્ધ છો*🌹 💥તમારી પુત્રવધૂ ને યથાશક્તિ ઘર કે બહારના કામમા મદદ કરો છો? 💥ક્યારેક આખુ ઘર પીઝા કે પાઉભાજી ખાવાનુ હોય ત્યારે તંદુરસ્ત હો તો ખીચડીની માંગ વગર આનંદથી જમી શકો છો? 💥નવા જમાના ની પુત્રવધૂ સાથે ટીકા વગર સંવાદ કરી શકો છો? 💥એને બહાર જવુ હોય તો મોઢુ બગાડ્યા વગર બે કલાક ઘરમા રહી શકો છો? તો *તમે સરસ વ્રૃધ્ધ છો*🌹🌹 બાકી ઘરડા તો ઘર ઘર મા છે! રોદણા રોતાં અસહકાર કરતાં, જાતજાત ની માંગણીઓ કરતા ને આખા ઘરને વખોડતા ,ખાસ અલાયદી રસોઈ કરાવતા,ને સંતાનો પાસે એમને મોટા કર્યાનો ટેક્સ ઉઘરાવ્યા કરતા *ઘરડા તો ઘર ઘરમા છે!!!* (તમારા ઘરમાં નથી ને?) વ્રૃધ્ધ થવુ એ આવડત છે👌👌👌👌🌹🌹🌹🌹 ઘરડા તો પોતે થઈ જવાય છે☹☹☹☹ _just review your skills_👏

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स्वर्ग का देवता


((((((( स्वर्ग का देवता ))))))) . लक्ष्मी नारायण बहुत भोला लड़का था। वह प्रतिदिन रात में सोने से पहले अपनी दादी से कहानी सुनाने को कहता था। . दादी उसे नागलोक, पाताल, गन्धर्व लोक, चन्द्रलोक, सूर्यलोक आदि की कहानियाँ सुनाया करती थी। . एक दिन दादी ने उसे स्वर्ग का वर्णन सुनाया। स्वर्ग का वर्णन इतना सुन्दर था कि उसे सुनकर लक्ष्मी नारायण स्वर्ग देखने के लिये हठ करने लगा। . दादी ने उसे बहुत समझाया कि मनुष्य स्वर्ग नहीं देख सकता, किन्तु लक्ष्मीनारायण रोने लगा। रोते- रोते ही वह सो गया। . उसे स्वप्न में दिखायी पड़ा कि एक चम- चम चमकते देवता उसके पास खड़े होकर कह रहे हैं- बच्चे ! स्वर्ग देखने के लिये मूल्य देना पड़ता है। . तुम सरकस देखने जाते हो तो टिकट देते हो न ? स्वर्ग देखने के लिये भी तुम्हें उसी प्रकार रुपये देने पड़ेंगे। . स्वप्न में लक्ष्मीनारायण सोचने लगा कि मैं दादी से रुपये माँगूँगा। लेकिन देवता ने कहा- स्वर्ग में तुम्हारे रुपये नहीं चलते। यहाँ तो भलाई और पुण्य कर्मों का रुपया चलता है। . अच्छा, काम करोगे तो एक रुपया इसमें आ जायगा और जब कोई बुरा काम करोगे तो एक रुपया इसमें से उड़ जायगा। जब यह डिबिया भर जायगी, तब तुम स्वर्ग देख सकोगे। . जब लक्ष्मीनारायण की नींद टूटी तो उसने अपने सिरहाने सचमुच एक डिबिया देखी। . डिबिया लेकर वह बड़ा प्रसन्न हुआ। उस दिन उसकी दादी ने उसे एक पैसा दिया। पैसा लेकर वह घर से निकला। . एक रोगी भिखारी उससे पैसा माँगने लगा। लक्ष्मीनारायण भिखारी को बिना पैसा दिये भाग जाना चाहता था, इतने में उसने अपने अध्यापक को सामने से आते देखा। . उसके अध्यापक उदार लड़कों की बहुत प्रशंसा किया करते थे। उन्हें देखकर लक्ष्मीनारायण ने भिखारी को पैसा दे दिया। अध्यापक ने उसकी पीठ ठोंकी और प्रशंसा की। . घर लौटकर लक्ष्मीनारायण ने वह डिबिया खोली, किन्तु वह खाली पड़ी थी। इस बात से लक्ष्मी नारायण को बहुत दुःख हुआ। . वह रोते- रोते सो गया। सपने में उसे वही देवता फिर दिखायी पड़े और बोले- तुमने अध्यापक से प्रशंसा पाने के लिये पैसा दिया था, सो प्रशंसा मिल गयी। . अब रोते क्यों हो ? किसी लाभ की आशा से जो अच्छा काम किया जाता है, वह तो व्यापार है, वह पुण्य थोड़े ही है। . दूसरे दिन लक्ष्मीनारायण को उसकी दादी ने दो आने पैसे दिये। पैसे लेकर उसने बाजार जाकर दो संतरे खरीदे। . उसका साथी मोतीलाल बीमार था। बाजार से लौटते समय वह अपने मित्र को देखने उसके घर चला गया। . मोतीलाल को देखने उसके घर वैद्य आये थे। वैद्य जी ने दवा देकर मोती लाल की माता से कहा- इसे आज संतरे का रस देना। . मोतीलाल की माता बहुत गरीब थी। वह रोने लगी और बोली- ‘मैं मजदूरी करके पेट भरती हूँ। इस समय बेटे की बीमारी में कई दिन से काम करने नहीं जा सकी। मेरे पास संतरे खरीदने के लिये एक भी पैसा नहीं है।’ . लक्ष्मीनारायण ने अपने दोनों संतरे मोतीलाल की माँ को दिये। वह लक्ष्मीनारायण को आशीर्वाद देने लगी। . घर आकर जब लक्ष्मीनारायण ने अपनी डिबिया खोली तो उसमें दो रुपये चमक रहे थे। . एक दिन लक्ष्मीनारायण खेल में लगा था। उसकी छोटी बहिन वहाँ आयी और उसके खिलौनों को उठाने लगी। लक्ष्मीनारायण ने उसे रोका। जब वह न मानी तो उसने उसे पीट दिया। . बेचारी लड़की रोने लगी। इस बार जब उसने डिबिया खोली तो देखा कि उसके पहले के इकट्ठे कई रुपये उड़ गये हैं। अब उसे बड़ा पश्चाताप हुआ। उसने आगे कोई बुरा काम न करने का पक्का निश्चय कर लिया। . मनुष्य जैसे काम करता है, वैसा उसका स्वभाव हो जाता है। जो बुरे काम करता है, उसका स्वभाव बुरा हो जाता है। उसे फिर बुरा काम करने में ही आनन्द आता है। . जो अच्छा काम करता है, उसका स्वभाव अच्छा हो जाता है। उसे बुरा काम करने की बात भी बुरी लगती है। . लक्ष्मीनारायण पहले रुपये के लोभ से अच्छा काम करता था। धीरे- धीरे उसका स्वभाव ही अच्छा काम करने का हो गया। . अच्छा काम करते- करते उसकी डिबिया रुपयों से भर गयी। स्वर्ग देखने की आशा से प्रसन्न होता, उस डिबिया को लेकर वह अपने बगीचे में पहुँचा। . लक्ष्मीनारायण ने देखा कि बगीचे में पेड़ के नीचे बैठा हुआ एक बूढ़ा साधु रो रहा है। वह दौड़ता हुआ साधु के पास गया और बोला- बाबा ! आप क्यों रो रहे है ? . साधु बोला- बेटा जैसी डिबिया तुम्हारे हाथ में है, वैसी ही एक डिबिया मेरे पास थी। बहुत दिन परिश्रम करके मैंने उसे रुपयों से भरा था। . बड़ी आशा थी कि उसके रुपयों से स्वर्ग देखूँगा, किन्तु आज गंगा जी में स्नान करते समय वह डिबिया पानी में गिर गयी। . लक्ष्मी नारायण ने कहा- बाबा ! आप रोओ मत। मेरी डिबिया भी भरी हुई है। आप इसे ले लो। . साधु बोला- तुमने इसे बड़े परिश्रम से भरा है, इसे देने से तुम्हें दुःख होगा। . लक्ष्मी नारायण ने कहा- मुझे दुःख नहीं होगा बाबा ! मैं तो लड़का हूँ। मुझे तो अभी बहुत दिन जीना है। मैं तो ऐसी कई डिबिया रुपये इकट्ठे कर सकता हुँ। आप बूढ़े हो गये हैं। आप मेरी डिबिया ले लीजिये। . साधु ने डिबिया लेकर लक्ष्मीनारायण के नेत्रों पर हाथ फेर दिया। लक्ष्मीनारायण के नेत्र बंद हो गये। उसे स्वर्ग दिखायी पड़ने लगा। . ऐसा सुन्दर स्वर्ग कि दादी ने जो स्वर्ग का वर्णन किया था, वह वर्णन तो स्वर्ग के एक कोने का भी ठीक वर्णन नहीं था। . जब लक्ष्मीनारायण ने नेत्र खोले तो साधु के बदले स्वप्न में दिखायी पड़ने वाला वही देवता उसके सामने प्रत्यक्ष खड़ा था। . देवता ने कहा- बेटा ! जो लोग अच्छे काम करते हैं, उनका घर स्वर्ग बन जाता है। तुम इसी प्रकार जीवन में भलाई करते रहोगे तो अन्त में स्वर्ग में पहुँच जाओगे।’ देवता इतना कहकर वहीं अदृश्य हो गये। ~~~~~~~~~~~~~~~~~ ((((((( जय जय श्री राधे ))))))) ~~~~~~~~~~~~~~~~~

R K Nakeera