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एक साधक ने अपने दामाद को तीन लाख रूपये व्यापार के लिये दिये।


एक साधक ने अपने दामाद को तीन लाख रूपये व्यापार के लिये दिये। उसका व्यापार बहुत अच्छा जम गया लेकिन उसने रूपये ससुर जी को नहीं लौटाये। आखिर दोनों में झगड़ा हो गया। झगड़ा इस सीमा तक बढ़ गया कि दोनों का एक दूसरे के यहाँ आना जाना बिल्कुल बंद हो गया। घृणा व द्वेष का आंतरिक संबंध अत्यंत गहरा हो गया। साधक हर समय हर संबंधी के सामने अपने दामाद की निंदा, निरादर व आलोचना करने लगे। उनकी साधना लड़खड़ाने लगी। भजन पूजन के समय भी उन्हें दामाद का चिंतन होने लगा। मानसिक व्यथा का प्रभाव तन पर भी पड़ने लगा। बेचैनी बढ़ गयी। समाधान नहीं मिल रहा था। आखिर वे एक संत के पास गये और अपनी व्यथा कह सुनायी। संत श्री ने कहाः ‘बेटा ! तू चिंता मत कर। ईश्वरकृपा से सब ठीक हो जायेगा। तुम कुछ फल व मिठाइयाँ लेकर दामाद के यहाँ जाना और मिलते ही उससे केवल इतना कहना, बेटा ! सारी भूल मुझसे हुई है, मुझे क्षमा कर दो।’ साधक ने कहाः “महाराज ! मैंने ही उसकी मदद की है और क्षमा भी मैं ही माँगू !” संत श्री ने उत्तर दियाः “परिवार में ऐसा कोई भी संघर्ष नहीं हो सकता, जिसमें दोनों पक्षों की गलती न हो। चाहे एक पक्ष की भूल एक प्रतिशत हो दूसरे पक्ष की निन्यानवे प्रतिशत, पर भूल दोनों तरफ से होगी।” साधक की समझ में कुछ नहीं आ रहा था। उसने कहाः “महाराज ! मुझसे क्या भूल हुई ?” “बेटा ! तुमने मन ही मन अपने दामाद को बुरा समझा – यह है तुम्हारी भूल। तुमने उसकी निंदा, आलोचना व तिरस्कार किया – यह है तुम्हारी दूसरी भूल। क्रोध पूर्ण आँखों से उसके दोषों को देखा – यह है तुम्हारी तीसरी भूल। अपने कानों से उसकी निंदा सुनी – यह है तुम्हारी चौथी भूल। तुम्हारे हृदय में दामाद के प्रति क्रोध व घृणा है – यह है तुम्हारी आखिरी भूल। अपनी इन भूलों से तुमने अपने दामाद को दुःख दिया है। तुम्हारा दिया दुःख ही कई गुना हो तुम्हारे पास लौटा है। जाओ, अपनी भूलों के लिए क्षमा माँगो। नहीं तो तुम न चैन से जी सकोगे, न चैन से मर सकोगे। क्षमा माँगना बहुत बड़ी साधना है।” साधक की आँखें खुल गयीं। संत श्री को प्रणाम करके वे दामाद के घर पहुँचे। सब लोग भोजन की तैयारी में थे। उन्होंने दरवाजा खटखटाया। दरवाजा उनके दोहते ने खोला। सामने नाना जी को देखकर वह अवाक् सा रह गया और खुशी से झूमकर जोर जोर से चिल्लाने लगाः “मम्मी ! पापा !! देखो तो नाना जी आये हैं, नाना जी आये हैं….।” माता पिता ने दरवाजे की तरफ देखा। सोचा, ‘कहीं हम सपना तो नहीं देख रहे !’ बेटी हर्ष से पुलकित हो उठी, ‘अहा !पन्द्रह वर्ष के बाद आज पिता जी आये हैं।’ प्रेम से गला रूँध गया, कुछ बोल न सकी। साधक ने फल व मिठाइयाँ टेबल पर रखीं और दोनों हाथ जोड़कर दामाद को कहाः “बेटा ! सारी भूल मुझसे हुई है, मुझे क्षमा करो।” “क्षमा” शब्द निकलते ही उनके हृदय का प्रेम अश्रु बनकर बहने लगा। दामाद उनके चरणों में गिर गये और अपनी भूल के लिए रो-रोकर क्षमा याचना करने लगे। ससुरजी के प्रेमाश्रु दामाद की पीठ पर और दामाद के पश्चाताप व प्रेममिश्रित अश्रु ससुरजी के चरणों में गिरने लगे। पिता पुत्री से और पुत्री अपने वृद्ध पिता से क्षमा माँगने लगी। क्षमा व प्रेम का अथाह सागर फूट पड़ा। सब शांत, चुप ! सबकी आँखों सके अविरल अश्रुधारा बहने लगी। दामाद उठे और रूपये लाकर ससुर जी के सामने रख दिये। ससुरजी कहने लगेः “बेटा ! आज मैं इन कौड़ियों को लेने के लिए नहीं आया हूँ। मैं अपनी भूल मिटाने, अपनी साधना को सजीव बनाने और द्वेष का नाश करके प्रेम की गंगा बहाने आया हूँ। मेरा आना सफल हो गया, मेरा दुःख मिट गया। अब मुझे आनंद का एहसास हो रहा है।” दामाद ने कहाः “पिताजी ! जब तक आप ये रूपये नहीं लेंगे तब तक मेरे हृदय की तपन नहीं मिटेगी। कृपा करके आप ये रूपये ले लें।” साधक ने दामाद से रूपये लिये और अपनी इच्छानुसार बेटी व नातियों में बाँट दिये। सब कार में बैठे, घर पहुँचे। पन्द्रह वर्ष बाद उस अर्धरात्रि में जब माँ-बेटी, भाई-बहन, ननद-भाभी व बालकों का मिलन हुआ तो ऐसा लग रहा था कि मानो साक्षात् प्रेम ही शरीर धारण किये वहाँ पहुँच गया हो। सारा परिवार प्रेम के अथाह सागर में मस्त हो रहा था। क्षमा माँगने के बाद उस साधक के दुःख, चिंता, तनाव, भय, निराशारूपी मानसिक रोग जड़ से ही मिट गये और साधना सजीव हो उठी।

विष्णु अरोड़ा

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सच्ची_घटना एक गांव में राजपूत, ब्राह्मण, बनिये, तेली, हरिजन आदि जाति के लोग रहते थे,


#सच्ची_घटना एक गांव में राजपूत, ब्राह्मण, बनिये, तेली, हरिजन आदि जाति के लोग रहते थे, सभी मिलजुल कर शान्ति से रहते थे। एक दिन गांव के मुखिया के पास एक मुस्लिम अपनी पत्नी और आठ बच्चों के साथ आया और गांव मे रहने की भीख मांगने लगा। गांव वालों ने फैसला किया ओर उस मुस्लिम को रहने की अनुमति दी ,लेकिन तेली और हरिजनों ने इसका विरोध किया पर राजपूतों और ब्राह्मणों ने नहीं माना ओर मुस्लिम को गांव मे रहने की अनुमति दे दी। दिन गुजरते गये और मुस्लिम के आठों बच्चे बड़े हो गए जब उनकी शादी की बारी आई तो मुस्लिम पहले राजपूतों के पास गया और बोला कि हुजूर बच्चों की शादी होनेवाली है और मेरे पास एक ही घर हैं तो राजपूतों ने उसको एक बंजर जमीन दे दी और कहा कि तुम उस पर घर बना कर रहो। इसके बाद मुस्लिम बनिये के पास गया और उससे पैसे उधार लिए । कुछ समय बाद उन आठों बच्चों के ७४ बच्चे हुए और देखते ही देखते लगभग ३० सालों मे उस गांव में मुस्लिमों की जनसंख्या ४०% हो गई। अब मुस्लिम लड़के अपनी आदत अनुसार हिन्दुओं से झगड़ा करने लगे और उनकी औरतों को छेड़ने लगे । धीरे धीरे ब्राह्मणों ओर बनियों ने वो गांव छोड़ दिया। एक दिन गांव के मुख्य मंदिर को मुस्लिमों ने तोड़ दिया और उस पर मस्जिद बनाने लगे तब वहां पर राजपूत उनको रोकने लगे तो वो मुस्लिम बोला कि जो अल्लाह के काम में रुकावट डाले उसे काट डालो। इस तरह राजपूतों ने वो गांव छोड़ दिया और जाते जाते तेली और हरिजनों से बोले की हमने तुम्हारी बात न मानकर उस मुल्ले पर भरोसा किया और आज हमें गांव छोड़कर जाना पड़ रहा है। इस प्रकार उस गांव का नाम पंचवटी से बदलकर रहिमाबाद हो गया है तथा यह गांव महाराष्ट्र के अमरावती जिले में स्थित है। कुछ ऐसे ही हो रहा है भारत का इस्लामीकरण।।

उमेशकुमार निर्मलकर

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पांच चीज़े है जिन से प्रभु श्री कृष्ण अति प्रसन्न होते है


पांच चीज़े है जिन से प्रभु श्री कृष्ण अति प्रसन्न होते है, यह सभी इन्हे अपने बचपन से ही प्यारी है इसी धारणा से आज भी भक्तो इन्हे यह चीज़े प्रदान करते है। आइये जाने यह पांच चीजे क्या है, 1 बांसुरी 2 गाय और ग्वाल 3 मोर पंख 4 कमलबीजकी वैजयंती माला 5 माखन ओर मिसरी इन चीजोके रहस्य ज्ञानसे, भक्तोको, श्री कृष्ण का प्रेम ओर सीख भी प्रदान होता है। 1 बांसुरी :…….. बांसुरी श्री कृष्णको अति प्रिय है, इसे पृभु अपनी ख़ुशी और गम दोनों में बजाय करते थे, हमेशा उनके साथ उनकी बांसुरी रहती थी, उन्हें बंसी बजैया भी कहा जाता है। ऊसमें ३ गुण हीनेसे प्रिय है। बांसुरी में कोई गांठ नही होती हे, इसी तरह मनुष्यको भी किसीभी बातकी गांठ नही बांधनी चाहिए, किसी की भी बुराई को पकड़ के मत बैठो. दूसरा गुण यह है की बांसुरी बिना बजाये बजती नही, अत: जब तक ना बोला जावे, हम भी व्यर्थ ना बोले। तीसरा, जब भी बांसुरी बजती है मधुर ही बजती है। जिस का अर्थ हुआ जब भी बोले, मीठा ही बोले। जब ऐसे गुण पृभु किसीमें देखते हैं, तो उसे उठा कर अपने होंठों से लगा लेते हैं 2 गाय ओर ग्वाल श्रीकृष्ण को गौ अत्यंत प्रिय है। दरअसल, गौ सब कार्यों में उदार तथा समस्त गुणों की खान है। गौ मूत्र, गोबर, दूध, दही और घी, इन्हे पंचगव्य कहते हैं, मान्यता है कि इनका पान कर लेने से शरीर के सब रोग जीवके भीतर पाप नहीं ठहरता, जो गौ की एक बार प्रदक्षिणा करके उसे प्रणाम करता है, वह सब पापों से मुक्त होकर अक्षय स्वर्ग का सुख भोगता है। 3 मोर पंख……….. मोर पंखसे ब्रह्मचर्य की शिक्षा, मोर ही एकमात्र प्राणी है जो -ब्रह्मचर्य का पालन करता है, मोरनी मोर के आँख के आँसू को पीकर ही संतान को जन्म देती है। इस लिऐ इस सुन्दर पक्षी के पंख श्रीकृष्ण को बहूत पसंद है और हमेशा उन्हें अपने शिर पर मोर मुकुट के रूपमें सजाते है। 4 कमलकी वैजयंती माला… कमल की तरह रहें पवित्र कमल गन्दगी में रह कर भी बहूत सुन्दर और पवित्रता का प्रतीक है, इस की खुशबु मन को मोह लेती है यह हमें जीवन जीने का सन्देश देता है की आपके आस पास कितना भी अवगुणी लोग क्यों ना हो, चाहे तो आप गुणवान बन सकते है, आप को वो अवगुण छू भी नहीं सकते। कमल से बनी वैजयंती माला श्रीकृष्ण जी के गले में शोभित है कमल के बीजों से बनी वैजयंती माला जो चमकदार होती है, बीज सख्त होने के कारण टूटते नही है यह माला हमें सीख देती है किसी भी अवस्था में टूटे नही, हमेशा चमकदार बने रहे और इन बीजो की मंजिल है धरा तो हमेशा अपनी जमीन से जुड़े रहे कितने भी बड़े क्यों ना हो जाए पर अपनी पूर्व पहचान के नजदीक बने रहे, जो इस तरह रहते है, पृभु उनको अपने गले लगा लेते है, 5 माखन मिश्री माखन मिश्री से सीखें की मिठास हमारे कान्हा को बहुत ही प्रिय है। मिश्री में सब से बड़ा गुण यह है कि जब इसे माखन में मिलाया जाता है, तो उस की मिठास माखन के कण-कण में घुल जाती है। यह हमें सीख देती है, हमारा व्यवहार भी ऐसा ही होना चाहिए की हमारे आस पास हमारे व्यवहार की मिठास घुल जाये, हमारे सम्पर्क में आकर आस पास भी मधुर गुण भर जाये। ——————————————–

R K Neekhara

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गुडहल का पौधा सूर्य और मंगल से संबंध रखता है


गुडहल का पौधा सूर्य और मंगल से संबंध रखता है, गुडहल का पौधा घर में कहीं भी लगा सकते हैं, परंतु ध्यान रखें कि उसको पर्याप्त धूप मिलना जरूरी है। गुडहल का फूल जल में डालकर सूर्य को अघ्र्य देना आंखों, हड्डियों की समस्या और नाम एवं यश प्राप्ति में लाभकारी होता है। मंगल ग्रह की समस्या, संपत्ति की बाधा या कानून संबंधी समस्या हो, तो हनुमान जी को नित्य प्रात: गुडहल का फूल अर्पित करना चाहिए। माँ दुर्गा को नित्य गुडहल अर्पण करने वाले के जीवन से सारे संकट दूर रहते है । गुड़हल फूल न सिर्फ देखने में खूबसूरत होता है बल्कि इइसमें छिपा है सेहत का खजाना। भारतीय पारंपरिक चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद के अनुसार सफेद गुड़हल की जड़ों को पीस कर कई दवाएं बनाई जाती हैं। आयुर्वेद में इस फूल के कई प्रयोग बताएं गए हैं मुंह के छाले गुड़हल के पत्ते चबाने से लाभ होता है।

विक्रम प्रकाश राइसोनि

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९९.९९९९% लोगो को इश्वर क्यूँ नहीं मिलते?


९९.९९९९% लोगो को इश्वर क्यूँ नहीं मिलते? इस सवाल का जवाब एक कहानी के माध्यम से खोजते है | अच्छा लगे तो अपने मित्रो के साथ भी साँझा करे और अगर कोई आपत्ति हो तो कृपया करके टिपण्णी दे | एक बार एक राजा थे , उन्होंने अपने राज्य में ऐसी व्यवस्था कर रखी थी की कोई भी प्राणी (मनुष्य और जानवर) कभी भूके न सोये | सबके पास अपने अपने घर भी थे और दुकाने भी थी | राजा के सभी अच्छे कार्य के लिए लोग उनको देवता कहते थे और भगवन की तरह पूजते थे लेकिन आश्चर्य की बात यह थी की किसी को भी राजा के नाम के अलावा कुछ भी नहीं पता था , राजा कभी अपनी प्रजा से मिलने नहीं जाते थे ! प्रजा के अंदर बहुत जिज्ञासा थी की वो लोग राजा के कम से कम एक बार तो दर्शन करे ! काफी लोगो ने प्रयास किया लेकिन सभी को निराशा हाथ लगी | पूरे राज्य के लोगो ने मिलकर एक ख़त राजा के नाम लिखा और उसमें राजा से आग्रह किया की कम से कम एक बार तो दर्शन दे! .. सेनापति ने भी राजा के ऊपर दबाव बनाया की उनको प्रजा को दर्शन देने चाहिए ! राजा के सेनापति की बात को नकारा नहीं और सभी लोगो से मिलने के लिए आश्वासन दिया | राजा ने सेनापति को कहा की १ सप्ताह बाद सभी लोग राजा से एक निश्चित स्थान पर मिल सकते है | पूरे राज्य में उत्साह की लहर दौड़ गयी | वर्षो से जिस देवता रुपी राजा से मिलने के लिए वो प्रयत्न करते थे वो आखिरकार बहुत करीब थे! राजा ने सेनापति को बुलाया और कहा की ५० कोस दूर एक बाजार सजा दिया जाये और दुनिया की तमाम वस्तुओ का प्रभंध किया जाए | बाजार से दुसरे छोर से २ कोस (किलोमीटर) दूर उनके बैठने का प्रबंध किया जाये | २ दिन में बाजार सज चूका था , राजा के बैठने का प्रबंध हो चूका था | सेनापति ने राजा को इसके बारे में सूचना दी | राजा ने सेनापति को कहा की राज्य की जनता को भी सूचित करे की कहाँ पर मिलना है और उनको बाजार के बारे में सूचित न करे ! सेनापति ने ठीक वैसा ही किया ! सभी लोग अगले दिन राजा से मिलने के लिए निकल पड़े और रस्ते में बाजार दिखा तो लोग और भी उत्साहित हो गये | लोगो के लिए राजा ने दुनिया की तमाम वस्तुए मुफ्त में प्रबंध करवा रखी थी | सभी लोगो में मुफ्त का समान लेने की होड़ मच गयी | जो लोग राजा से मिलने के लिए घर से निकले थे उन लोगो को लालच ने ऐसा जकड़ा की राजा के बारे में भूलकर सिर्फ और सिर्फ मुफ्त के सामान पर टूट पड़े , सभी लोग अपना घर भरने लगे! उन सभी लोगो में सिर्फ एक व्यक्ति ऐसा था जिसने पूरा बाज़ार को नज़र अंदाज़ किया और राजा से मिलने के लिए आगे बढता चला गया बढता चला गया .. वो व्यक्ति विकलांग था और रेंगते हुए राजा के पास पहुंचा ! राजा उसको देखकर बहुत प्रसन्न हुआ और राजा को देखकर विकलांग व्यक्ति भी बहुत भावुक हो उठा और रोने लगा | राजा ने उसके आंसू पूंछे और उससे कहा की क्या चाहिए आपको आप जो मांगोगे वो मिलेगा | उस विकलांग व्यक्ति ने कहा की मुझे आपके साथ रहना है! राजा ने उसको अपने साथ रख लिया! ————————————————- लोग चले थे देवता रुपी राजा से मिलने के लिए लेकिन लालच के कारण वो लोग अपना मार्ग भूल गए अर्थात अपनी मंजिल तक पहुँच ही नहीं पाए! वहीँ वो विकलांग व्यक्ति दुनिया की तमाम सुख सुविधाओ को नकार कर सिर्फ अपने लक्ष्य की और बढता गया और अंत में उसने अपने लक्ष्य की प्राप्ति करी! इश्वर भी लोगो को आसानी से नहीं मिलते ! एक बार सांसारिक सुख दुःख त्याग कर देखो! इश्वर को सदैव अपने साथ ही पाओगे! *……….✍विकास खुराना ♈🚩*

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पापा� और �#�बेटी�


पापा� और �#�बेटी�’ — “आप सभी से निवेदन है कि कहानी पूरी पढ़े”– रविवार का दिन था ‘अंजली’ जो 15 साल की है अपनी गुड़िया के लिए लहंगा सिल रही है वही बरामदे मे बैठे उसके पापा पेपर पढ़ रहे है माँ रसोई घर मे खाना बनाने मे व्यस्त है ‘अंजली’ अपनी गुड़िया को दुल्हन की तरह सजा रही है अंजली: पापा, देखो मेरी गुड़िया को दुल्हन लग रही है न? पापा: हाँ तेरी गुड़िया तो बड़ी हो गई है उसके लिए दुल्हा ढूँढना होगा। अंजली: पापा आप दुल्हा ढूँढ़ दोगे? पापा: हां, मै तेरी गुड़िया के लिए ‘श्री राम’ जैसा दुल्हा ढूँढ़ दूँगा। अंजली: नही पापा ‘श्री राम’ जैसा नही चाहिये उन्होने माता सीता को कोई सुख नही दिया उनकी ‘अग्नी परीक्षा’ ली, उसके बाद प्रजा की खुशी के लिए सीता को जंगल मे भटकने के लिए छोड़ दिया, ऐसे लड़के से मै अपनी गुड़िया की शादी नही कर सकती! पापा: ठीक है तू चिन्ता मत कर श्री कृष्ण जैसा दुल्हा ढूँढ़ दूँगा। अंजली: श्री कृष्ण की तरह जो राधा से प्यार करे रूपमणी से शादी करे और गोपियो के साथ रास-लीला करे नही.. ऐसे लड़के से मैं अपनी गुड़िया की शादी नही कर सकती। पापा: ठीक है बेटी अर्जुन की तरह धनुष धर तो चलेगा? अंजली: नही पापा,अर्जुन के जैसा भी नही चलेगा अपनी पत्नी को जुआ मे हारने वाले लड़के के हाथ मै अपनी गुड़िया का हाथ नही दे सकती! पापा: अब मै क्या करूँ तेरी �#�गुड़िया� के लिये दुल्हा ढूँढ नहीं पाया! अंजली: रहने दो पापा मै ‘आज के भारत’ की बेटी हूँ, पहले मैं अपनी गुड़ियां को पढ़ा-लिखा कर काबिल बनाऊंगी उसे इतना गुणवान बनाऊंगी कि लड़के वाले मेरी गुड़िया का हाथ मांगने खुद आयेगे उस वक्त मेरी गुड़िया जिसको अपने काबिल समझेगी उसी से उसकी शादी होगी। पापा: बहुत अच्छा उनका ध्यान पेपर से हट गया वह सोच मे डूब गये आज बात अंजली कि गुड़िया की हो रही है कुछ दिन बाद मेरी गुड़िया ‘अंजली’ बड़ी होगी उस वक्त कहां से दुल्हा आयेगा, जो उनकी अंजली के काबिल होगा मेरी बेटी के कितने उच्च विचार है वह अपनी गुड़िया का हाथ कितना सोच-समझ कर लायक लड़के के हाथ मे देने की बात कर रही है और मै क्या कर रहा हू अपनी गुड़िया के लिये! वो सोच मे डूबे रहते है .. अंजली: पापा आप क्या सोच रहे हो? पापा: कुछ नही कुछ दिन बाद तु भी बड़ी हो जायेगी और अपने ससुराल चली जायेगी। अंजली: पापा मुझे बड़ा नही होना ससुराल नही जाना! पापा: क्यों बेटी? हर लड़की का सपना होता है कि उसे अच्छा ससुराल मिले! अंजली: होता होगा पर मुझे शादी नही करना शादी होने के बाद आप मुझे पराया कर दोगे। पापा: नही बेटी ऐसी बात नही है। अंजली: पापा मुझे याद है बुआ हमारी अपनी थी आपने और दादी ने उनकी शादी के बाद पराया कर दिया था, वो ससुराल वालो से परेशान हो कर दादी के पास रोती थी दादी कहती बेटी तुम्हारी तकदीर मे यही लिखा था शादी तोड़ी नहीं जाती जैसे भी हो तुझे वहीं रहना होगा मायके से बेटी डोली मे विदा होती है ससुराल से अर्थी पर विदा होती है यही लड़की का भाग्य है। पापा: बेटी ऐसी बात नही है! अंजली: पापा आपने भी बुआ के लिए कुछ नही किया। पापा: बेटी उस समय कि बात कुछ और थी अब सब ठीक है। अंजली: पापा कुछ नहीं बदला आपका समाज उस समय जैसा था, आज भी वैसा ही है मेरे साथ भी वही होगा और आप चुपचाप देखोगे! पापा: नहीं बेटी तुम्हारे साथ ऐसा कभी नही होगा तुम्हारे ससुराल वाले अच्छे होगे। अंजली: इसकी कोई गारंटी है? पापा: आशा करता हूं, कि अच्छा ससुराल और अच्छा दुल्हा ढूँढ पाऊं .. अंजली: पापा मेरी थोड़ी सी अंगुली जल गई थी तो मै कितना रोई थी उन्होने तो बुआ को ही जला दिया, कितना रोई होगी इतना बोल कर सीमा भी रोने लगी! पापा पेपर फेंक कर अंजली को गले लगा लेते है और खुद भी रोने लगते है। रोने की आवाज़ सुनकर अंजली की मम्मी दौड़ कर आई और पूछने लगी: क्या हुआ बाप-बेटी क्यो रो रहे हो? पापा: मैने अंजली को कहा कि तुम्हें भी ससुराल जाना होगा इस बात पर वह रो रही है। मम्मी: अभी शादी कहां हो रही है आज इतना रो रहे हो तो �#�विदाई� के समय कितना रोओगे! चल बेटी पापा तुझे चुप क्या करायेंगे ये तो खुद रो रहे है! अंजली को लेकर उसकी मम्मी उसके कमरे में ले गये अंजली बहुत रो रही थी, वह रोते-रोते सो गई। इधर ‘पापा’ बरामदे में बैठे बेटी कि बातों से चिंतित रो रहे है मम्मी: जी क्या हुआ आप दोनो इतना क्यों रो रहे थे? पापा: : मेरी बहन को उसके ससुराल वालो ने जलाकर मार दिया था वो घटना अंजली को याद है और दिल मे डर बन कर बैठ गया है वह शादी के नाम से डरती है। मम्मी: उस समय तो वह सिर्फ 8 साल की थी! पापा: हां पर उसे सब याद है! मम्मी: अब क्या होगा पापा: उसके इस डर को धीरे- धीरे निकालना होगा आज तुम्हारे सामने अपने आप से एक वादा करता हू मैं अपनी बेटी का हाथ उसी के हाथ में दूंगा जो उसे पलकों पर बैठा कर रखेगा ।

R K Neekharaa

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मै अपने सभी भाई बहनों से निवेदन करता हू आप इसे जरूर पढ़े !! ”पापा वैभव बहुत अच्छा है .


मै अपने सभी भाई बहनों से निवेदन करता हू आप इसे जरूर पढ़े !! ”पापा वैभव बहुत अच्छा है … मैं उससे ही शादी करूंगी.. वरना !! ‘ पापा ने बेटी के ये शब्द सुनकर एक घडी को तो सन्न रह गए . फिर सामान्य होते हुए बोले -‘ ठीक है पर पहले मैं तुम्हारे साथ मिलकर उसकी परीक्षा लेना चाहता हूँ तभी होगा तुम्हारा विवाह वैभव से… कहो मंज़ूर है ? ‘बेटी चहकते हुए बोली -”हाँ मंज़ूर है मुझे .. वैभव से अच्छा जीवन साथी कोई हो ही नहीं सकता.. वो हर परीक्षा में सफल होगा .. आप नहीं जानते पापा वैभव को !’ अगले दिन कॉलेज में नेहा जब वैभव से मिली तो उसका मुंह लटका हुआ था.. वैभव मुस्कुराते हुए बोला -‘क्या बात है स्वीट हार्ट.. इतना उदास क्यों हो …. तुम मुस्कुरा दो वरना मैं अपनी जान दे दूंगा .” नेहा झुंझलाते हुए बोली -‘वैभव मजाक छोडो …. पापा ने हमारे विवाह के लिए इंकार कर दिया है … अब क्या होगा ? वैभव हवा में बात उडाता हुआ बोला होगा क्या … हम घर से भाग जायेंगे और कोर्ट मैरिज कर वापस आ जायेंगें .” नेहा उसे बीच में टोकते हुए बोली पर इस सबके लिए तो पैसों की जरूरत होगी.. क्या तुम मैनेज कर लोगे ?” ” ओह बस यही दिक्कत है … मैं तुम्हारे लिए जान दे सकता हूँ पर इस वक्त मेरे पास पैसे नहीं … हो सकता है घर से भागने के बाद हमें कही होटल में छिपकर रहना पड़े.. तुम ऐसा करो तुम्हारे पास और तुम्हारे घर में जो कुछ भी चाँदी -सोना-नकदी तुम्हारे हाथ लगे तुम ले आना … वैसे मैं भी कोशिश करूंगा … कल को तुम घर से कहकर आना कि तुम कॉलेज जा रही हो और यहाँ से हम फर हो जायेंगे… सपनों को सच करने के लिए !” नेहा भोली बनते हुए बोली -”पर इससे तो मेरी व् मेरे परिवार कि बहुत बदनामी होगी ” वैभव लापरवाही के साथ बोला -”बदनामी वो तो होती रहती है … तुम इसकी परवाह मत करो..” वैभव इससे आगे कुछ कहता उससे पूर्व ही नेहा ने उसके गाल पर जोरदार तमाचा रसीद कर दिया.. नेहा भड़कते हुयी बोली -”हर बात पर जान देने को तैयार बदतमीज़ तुझे ये तक परवाह नहीं जिससे तू प्यार करता है उसकी और उसके परिवार की समाज में बदनामी हो …. प्रेम का दावा करता है… बदतमीज़ ये जान ले कि मैं वो अंधी प्रेमिका नहीं जो पिता की इज्ज़त की धज्जियाँ उड़ा कर ऐय्याशी करती फिरूं .कौन से सपने सच हो जायेंगे …. जब मेरे भाग जाने पर मेरे पिता जहर खाकर प्राण दे देंगें ! मैं अपने पिता की इज्ज़त नीलाम कर तेरे साथ भाग जाऊँगी तो समाज में और ससुराल में मेरी बड़ी इज्ज़त होगी … वे अपने सिर माथे पर बैठायेंगें… और सपनों की दुनिया इस समाज से कहीं इतर होगी… हमें रहना तो इसी समाज में हैं … घर से भागकर क्या आसमान में रहेंगें ? है कोई जवाब तेरे पास.. पीछे से ताली की आवाज सुनकर वैभव ने मुड़कर देखा तो पहचान न पाया.. नेहा दौड़कर उनके पास चली गयी और आंसू पोछते हुए बोली -‘ पापा आप ठीक कह रहे थे ये प्रेम नहीं केवल जाल है जिसमे फंसकर मुझ जैसी हजारों लडकियां अपना जीवन बर्बाद कर डालती हैं !!”

लष्मीकांत वर्शनय

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पूर्वाग्रह


*😞पूर्वाग्रह😞* आज विमला जी बहुत खुश थीं।पूरे 6 महीने बाद बेटा बहू से मिलने जा रही थी।नई नवेली बहू नौकरी के चक्कर में 4 दिन भी सास के साथ न रह सकी थी।शादी के तुरन्त बाद चली आई थी पति विकास के साथ उज्जैन। इधर विमला जी ने ट्रेन से उतरते ही 🚘टैक्सी ली और पँहुच गई बेटे के आशियने🏠। किन्तु यह क्या??? दरवाज़े पर बड़ा सा ताला🔒 लटक रहा था। विमला जी की खुशी पलभर में काफ़ूर😢 हो गई।पर्स में से फोन📱 निकाला ही था कि पड़ौसन की आवाज़ सुनाई पड़ी….. “विमला जी आप आ गई? आईए! आईये!! निर्मला ऑफिस जाते समय चाबियाँ दे गई थी,सुबह ही बताया उसने मम्मी जी आ रहीं हैं। आईये, हमारे साथ भी चाय☕ पी लीजिए।” विमला जी का मन तो क्षुब्ध☹ हो गया था लेकिन अभी 4 ही बजे थे बहू पता नही कब तक लौटे।बेटा विकास भी टूर पर गया हुआ था सो मन मारकर बैग उठाया और चल दी पड़ौसन के साथ। कुछ इधर उधर की बाते की चाय☕ पी और चाबी 🔑लेकर आ गईं वापस बेटे के आशियाने 🏠में। शाम के सात बजे तक विमला का मन अत्यंत क्षुब्ध☹ हो गया। बेटा तो टूर पर गया हुआ था लेकिन बहू को तो पता था कि वह आज आने वाली है। ऑफिस से छुट्टी तो ली नहीं उल्टे समय से घर पर भी नहीं आई। चाबी🔑 पड़ोस में रख गई और फोन📞 भी नहीं किया। वह तो भला हो पड़ोसियों का चाबी🔑 का भी बताया और चाय नाश्ता☕ भी करवा दिया वरना चार बजे पहुंचते ही चाय☕ भी खुद ही बनाकर पीनी पड़ती। ऑफिस में उन्हें हाल ही में प्रमोशन मिला था तो ज्वाइन करके उन्होंने आठ दिन की छुट्टी ले ली थी सोचा चलकर कुछ दिन नई बहू के पास रहूंगी तो सास बहू जरा एक दूसरे को जान समझ लेंगी लेकिन यहां तो आते ही बहू के निराले रंग दिखने लगे। अपमान से वह एक दम क्षुब्ध☹ सी हो गई। मन में *पूर्वाग्रहों😞😞 के कुछ नाग* फन उठाने लगे जरूर… जानबूझकर ऐसा कर रही होगी ताकि मैं यहां से जल्दी चली जाऊं। निर्मला की बहू ने भी ऐसा ही किया था, और करुणा की बहू तो ऑफिस का टूर है कहकर मायके ही जाकर बैठ गई थी। मेरी बहू भी वैसी ही निकली और उनके मन ने बहू की एक छवि गढ़ ली मन ही मन। 7:30 बजे आखिर बहू आ ही गई। दरवाजा खुलते ही…….. “सॉरी माँ!, बहुत शर्मिंदा हूँ, देर हो गई मोबाइल📱 की बैटरी खत्म हो गई तो ऑफिस से निकलने के बाद फोन📞 भी नहीं कर पाई। प्रमोशन की बहुत बहुत बधाई।” ताजे फूलों🌹🌹 की खुशबू बिखेरता खूबसूरत बुके💐 विमला के हाथ में था और बहू उन्हें प्रणाम 🙏करने के लिए झुकी हुई थी। विमला का हाथ ✋🏻 अनायास बहू का सर पर पहुंच गया,जिसे प्यार से सहला भी दिया। अप्रत्याश्चित सुख😇 का एक झौंका विमला जी को सहला💫 गया। “और यह देखो मैं आपके लिए साड़ी लाई हूं इसलिए देर हो गई। मुझे कोई साड़ी पसंद ही नहीं आ रही थी आखिर बड़ा ढूंढने के बाद जाकर यह साड़ी पसंद आई।” “बताओ ना मां आपको पसंद आई कि नहीं।” बहू ने हाथ में पकड़े पैकेट से एक खूबसूरत सिल्क की साड़ी निकाल कर विमला के कंधे पर फैला दी। भीगी आंखों😭 और खुशी😊 से रुंधें गले से उन्होंने कहा,”बहुत सुंदर है,बेटा!” “सच में माँजी?” बहु का चेहरा खिल😋 गया। “सारे काम आज पूरे कर के ऑफिस से आठ दिन की छुट्टी ले ली है मैंने।” “अब मैं पूरा समय आपके ही साथ रहूंगी,जाने कितनी बातें करनी है आपसे,जाने कितना कुछ सीखना है।” “चलिए! अब तो सबसे पहले मैं आपकी पसंद का खाना बनाने रसोईघर में जाती हूं।” नन्ही बच्ची की तरह वह उनके गले में बाहें डाल कर झूल गई। उसकी पीठ पर स्नेह से हाथ फेरती विमला उसके साथ ही रसोई घर की तरफ चल दी। मन के सारे *पूर्वाग्रह😞* खुशी के आसुओं के साथ धुलते जा रहे थे। मित्रों! कई बार हमारे साथ भी ऐसा ही होता है और हम सामने वाले को जाने बिना उसके विषय में गलत अवधारणाएं बनाकर एक अनचाहे विवाद या कटुता को जन्म दे बैठते हैं। आईये अपने *पूर्वाग्रहों😞* को दरकिनार करते हुए परस्पर मज़बूत सम्बन्धों🤝 की दिशा में कदम बढ़ाते हुए आज की सुहानी सुबह का शुभारम्भ करें……. आपश्री की आरोग्यता प्रसन्नता और सभी से मधुर एवम मज़बूत सम्बन्धों🤝 की कामना के साथ…… *🙏सुप्रभात आदरणीय🙏* *🤗डॉ. कौशल कालरा🤗*