🔴बहुत पुरानी कथा है, तीन ऋषि थे, उनकी बहुत ख्याति थी। लोक-लोकांतर में उनका यश पहुंच गया था। इंद्र पीड़ित हो गया था उनके यश को देख कर। और इंद्र ने उर्वशी को, अपने उस गंधर्व नगर की श्रेष्ठतम अप्सरा को कहा, इन तीन ऋषियों को मैं निमंत्रित कर रहा हूं अपने जन्म-दिन पर, तू ऐसी कोशिश करना कि उन तीनों का चित्त विचलित हो जाए।
उन तीन ऋषियों को आमंत्रित किया गया। वे तीन ऋषि इंद्र के नगर में उपस्थित हुए। सारे देवता, सारा नगर देखने आया जन्म-दिन के उत्सव को। उर्वशी ऐसी सजी थी कि खुद इंद्र और देवता हैरान हो गए, जो उससे परिचित थे, भलीभांति जानते थे। वह आज इतनी सुंदर मालूम हो रही थी जिसका कोई हिसाब नहीं। फिर नृत्य शुरू हुआ। उर्वशी ने आधी रात बीतते तक अपने नृत्य से सभी को मोहित, मंत्रमुग्ध कर लिया। फिर जब रात गहरी होने लगी और लोगों पर नृत्य का नशा छाने लगा, तब उसने अपने अलंकार फेंकने शुरू कर दिए। फिर धीरे-धीरे वस्त्र भी। एक ऋषि घबड़ाया और चिल्लाया, उर्वशी बंद करो, यह तो सीमा के बाहर जाना है, यह नहीं देखा जा सकता। दूसरे दो ऋषियों ने कहा, मित्र, नृत्य तो चलेगा, अगर तुम्हें ने देखना हो तो अपनी आंखें बंद कर ले सकते हो। नृत्य क्यों बंद होता है। इतने लोग देखने को उत्सुक हैं, तुम्हारे अकेले के भयभीत होने से नृत्य बंद होने को नहीं। अपनी आंख बंद कर लो तुम्हें नहीं देखना। ऋषि ने आंखें बंद कर लीं। सोचा था उस ऋषि ने कि आंखें बंद कर लेने से उर्वशी दिखाई पड़नी बंद हो जाएगी। पाया कि यह गलती थी, भूल थी।
आंख बंद करने से कुछ दिखाई पड़ना बंद होता है? आंख बंद करने से तो जिससे डरते हम आंख बंद करते हैं वह और प्रगाढ़ होकर भीतर उपस्थित हो जाता है। रोज हम जानते हैं, सपनों में हम उनसे मिल लेते हैं, जिनको देख कर हमने आंख बंद कर ली थी। रोज हम जानते हैं जिस चीज से हम भयभीत होकर भागे थे वह सपनों में उपस्थित हो जाती है। दिन भर उपवास किया था तो रात सपने में किसी राज-भोज पर आमंत्रित हो जाते हैं। यह हम सब जानते हैं। उस ऋषि की भी वही तकलीफ। आंख बंद किए और मुश्किल में पड़ गया है। नृत्य चलता रहा, फिर उर्वशी ने और भी वस्त्र फेंक दिए, केवल एक ही अधोवस्त्र उसके शरीर पर रह गया। दूसरा ऋषि घबड़ाया और चिल्लाया कि बंद करो उर्वशी, यह तो अब अश्लीलता की हद हो गई, बंद करो, यह नृत्य नहीं देखा जा सकता। यह क्या पागलपन है? तीसरे ऋषि ने कहा, मित्र, तुम भी पहले जैसे ही…हो। आंख बंद कर लो, नृत्य तो चलेगा। इतने लोग देखने को उत्सुक हैं। फिर मैं भी देखना चाहता हूं। तुम आंख बंद कर लो। नृत्य बंद नहीं होगा। दूसरे ऋषि ने भी आंख बंद कर ली।
आंख जब तक खुली थी तब तक उर्वशी एक वस्त्र पहने हुई थी। आंख बंद करते ही ऋषि ने पाया वह वस्त्र भी गिर गया। स्वाभाविक है, चित्त जिस चीज से भयभीत होता है उसी में ग्रसित हो जाता है। चित्त जिस चीज को निषेध करता है, उसी में आकर्षित हो जाता है। फिर उर्वशी का नृत्य और आगे चला, उसने सारे वस्त्र फेंक दिए, वह नग्न हो गई। फिर उसके पास फेंकने को कुछ भी न बचा। वह तीसरा ऋषि बोला, उर्वशी, और भी कुछ फेंकने को हो तो फेंक दो, मैं आज पूरा ही देखने को तैयार हूं। अब तो अपनी इस चमड़ी को भी फेंक दे, ताकि मैं और भी देख लूं कि और आगे क्या है। उर्वशी ने कहा, मैं हार गई आपसे, वह पैरों पर गिर पड़ी उस शिष्य के, उसने कहा, अब मेरे पास फेंकने को कुछ भी नहीं है। मैं हार गई, क्योंकि आप अंत तक देखने को तैयार हो गए। दो ऋषि हार गए, क्योंकि बीच में ही उन्होंने आंख बंद कर ली। मैं हार गई, अब मेरे पास फेंकने को कुछ भी नहीं, और जिसने मुझे नग्न जान लिया, अब उसके चित्त में जानने को भी कुछ शेष न रहा। उसका चित्त मुक्त ही हो गया।
चित्त का निरीक्षण करना है पूरा। मन के भीतर जो भी उर्वशियां हैं, मन के भीतर जो भी वृत्ति की अप्सराएं हैं–चाहे काम की, चाहे क्रोध की, चाहे लोभ की, चाहे मोह की, उन सबको पूरी नग्नता में देख लेना है। उनका एक-एक वस्त्र उतार कर देख लेना है। आंख बंद करके भागना नहीं है। एस्केप नहीं है, पलायन नहीं है जीवन की साधना, जीवन की साधना है पूरी खुली आंखों से चित्त का दर्शन। और जिस दिन कोई व्यक्ति अपने चित्त के सब वस्त्रों को उतार कर चित्त की पूरी नग्नता में, पूरी नेकेडनेस में, पूरी अग्लीनेस में, चित्त की पूरी कुरूपता में पूरी आंख खोल कर देखने को राजी हो जाता है, उसी दिन चित्त की उर्वशी पैरों पर गिर पड़ती है और कह देती है मुझे क्षमा करें, मैं हार गई हूं। अब आगे जानने को कुछ भी नहीं है।
चित्त की पूरी जानकारी, चित्त का पूरला ज्ञान चित्त से मुक्ति बन जाता है।
ओशो – अंतर की खोज ()
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