#जीण_हर्ष/2/
अनूठी प्रेम कथा हाँ तो भाई लोगों नणद-भावज एक रोज अपनी कुछ सखियों के संग सरोवर पर आपस में कर रही थीं हँसी-ठिठोली। भावज, भाई आज भी मुझे थारे से ज्यादा चावै, जीण बोली। भावज ने कहा-चल झूठी मैं ना मानू। शर्त जीत जावै तो जाणूं। शर्त लगी चल माथे पर दोनों घड़ा धरें’। हर्ष पहले जिसका घड़ा उतारे, मानो उससे ज्यादा प्यार करे। शर्त से अनजान हर्ष ने पहले लुगाई का घड़ा लिया उतार। बहन जीण पर मानो हो गया भारी अत्याचार। रूठी-रूठी वह रहने लगी। भाभी भी ताने कसने लगी। एक दिन कस दिया ऐसा ताना, जीण को जाग उठा बैराग। घर-बार दिया फिर उसने त्याग। वह काजल नाम की पहाड़ी पर वह जा बैठी। भाई हर्ष उसे मनाने आया। लेकिन मना उसे नहीं पाया। दोनों वापस ना घर गए। पहाड़ो पर ही जम गए। दोनों के वहां फिर बन गए मंदिर। एक भगवती दूजा भैरों माना गया। कलजुग में दोनों को ऐसे जाना गया। भाई बहन का अमर प्यार। थे दोनों ईश्वरीय अवतार। …. जीण ने घर से निकलने के बाद पीछे मुड़कर ही नहीं देखा और अरावली पर्वतमाला के इस पहाड़ के एक शिखर जिसे “काजल शिखर” के नाम से जाना जाता है पहुँच कर तपस्या करने लगी। तब भगवती ने वरदान दिया कि आज से मैं इस स्थान पर जीण नाम से पूजा ग्रहण करूंगी। जब भाई हर्ष को पता चला तो वो जीण को मनाकर वापस लाने के लिए उसके पीछे शक्ति पीठ पर आ पहुँचा। हर्ष ने अपनी भूल स्वीकार कर माफी मांगी और वापस साथ चलने का आग्रह किया जिसे जीण ने स्वीकार नहीं किया। हर्षनाथ का मन बहुत उदास हो गया और घर नहीं लौटा। वह भी वहां से कुछ दूर जाकर दूसरे पहाड़ की चोटी पर भैरव की साधना में तल्लीन हो गया। पहाड़ की यह चोटी बाद में हर्ष नाथ पहाड़ के नाम से प्रसिद्ध हुई। हर्षनाथ ने हर्ष शिखर पर बैठकर भैरूजी की तपस्या कर स्वयं भैरू की मूर्ति में विलीन होकर हर्षनाथ भैरव बन गए। जीण आजीवन ब्रह्मचारिणी रही और तपस्या के बल पर देवी बन गई। इस प्रकार जीण और हर्ष अपनी कठोर साधना व तप के बल पर देवत्व प्राप्त कर लिया। आज भी दोनों भाई बहन के अमर प्रेम को श्रद्धा और विश्वास से पूजा जा रहा है। देवी जयंती के अवतार माता जीण भवानी का भव्य धाम राजस्थान सीकर के सुरम्य अरावली पहाड़ियों (रेवासा पहाडियों) में स्थित है। सीकर ज़िले के उत्तर में झुन्झुनू, उत्तर-पश्चिम में चूरू, दक्षिण-पश्चिम में नागौर और दक्षिण-पूर्व में जयपुर जिले की सीमाएँ लगती हैं। माता जीण भवानी का भव्य धाम जयपुर से से लगभग 115 किलोमीटर और सीकर से लगभग 15 कि.मी. दूर दक्षिण में जयपुर बीकानेर राजमार्ग पर गोरियां रेलवे स्टेशन से 15 कि.मी. पश्चिम व दक्षिण के मध्य खोस नामक गाँव के पास स्थित है। कृष्ण कुमार परिहर(फोटो हर्ष मंदिर , )