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अनूठी प्रेम कथा हाँ तो भाई लोगों नणद-भावज


#जीण_हर्ष/2/

अनूठी प्रेम कथा हाँ तो भाई लोगों नणद-भावज एक रोज अपनी कुछ सखियों के संग सरोवर पर आपस में कर रही थीं हँसी-ठिठोली। भावज, भाई आज भी मुझे थारे से ज्यादा चावै, जीण बोली। भावज ने कहा-चल झूठी मैं ना मानू। शर्त जीत जावै तो जाणूं। शर्त लगी चल माथे पर दोनों घड़ा धरें’। हर्ष पहले जिसका घड़ा उतारे, मानो उससे ज्यादा प्यार करे। शर्त से अनजान हर्ष ने पहले लुगाई का घड़ा लिया उतार। बहन जीण पर मानो हो गया भारी अत्याचार। रूठी-रूठी वह रहने लगी। भाभी भी ताने कसने लगी। एक दिन कस दिया ऐसा ताना, जीण को जाग उठा बैराग। घर-बार दिया फिर उसने त्याग। वह काजल नाम की पहाड़ी पर वह जा बैठी। भाई हर्ष उसे मनाने आया। लेकिन मना उसे नहीं पाया। दोनों वापस ना घर गए। पहाड़ो पर ही जम गए। दोनों के वहां फिर बन गए मंदिर। एक भगवती दूजा भैरों माना गया। कलजुग में दोनों को ऐसे जाना गया। भाई बहन का अमर प्यार। थे दोनों ईश्वरीय अवतार। …. जीण ने घर से निकलने के बाद पीछे मुड़कर ही नहीं देखा और अरावली पर्वतमाला के इस पहाड़ के एक शिखर जिसे “काजल शिखर” के नाम से जाना जाता है पहुँच कर तपस्या करने लगी। तब भगवती ने वरदान दिया कि आज से मैं इस स्थान पर जीण नाम से पूजा ग्रहण करूंगी। जब भाई हर्ष को पता चला तो वो जीण को मनाकर वापस लाने के लिए उसके पीछे शक्ति पीठ पर आ पहुँचा। हर्ष ने अपनी भूल स्वीकार कर माफी मांगी और वापस साथ चलने का आग्रह किया जिसे जीण ने स्वीकार नहीं किया। हर्षनाथ का मन बहुत उदास हो गया और घर नहीं लौटा। वह भी वहां से कुछ दूर जाकर दूसरे पहाड़ की चोटी पर भैरव की साधना में तल्लीन हो गया। पहाड़ की यह चोटी बाद में हर्ष नाथ पहाड़ के नाम से प्रसिद्ध हुई। हर्षनाथ ने हर्ष शिखर पर बैठकर भैरूजी की तपस्या कर स्वयं भैरू की मूर्ति में विलीन होकर हर्षनाथ भैरव बन गए। जीण आजीवन ब्रह्मचारिणी रही और तपस्या के बल पर देवी बन गई। इस प्रकार जीण और हर्ष अपनी कठोर साधना व तप के बल पर देवत्व प्राप्त कर लिया। आज भी दोनों भाई बहन के अमर प्रेम को श्रद्धा और विश्वास से पूजा जा रहा है। देवी जयंती के अवतार माता जीण भवानी का भव्य धाम राजस्थान सीकर के सुरम्य अरावली पहाड़ियों (रेवासा पहाडियों) में स्थित है। सीकर ज़िले के उत्तर में झुन्झुनू, उत्तर-पश्चिम में चूरू, दक्षिण-पश्चिम में नागौर और दक्षिण-पूर्व में जयपुर जिले की सीमाएँ लगती हैं। माता जीण भवानी का भव्य धाम जयपुर से से लगभग 115 किलोमीटर और सीकर से लगभग 15 कि.मी. दूर दक्षिण में जयपुर बीकानेर राजमार्ग पर गोरियां रेलवे स्टेशन से 15 कि.मी. पश्चिम व दक्षिण के मध्य खोस नामक गाँव के पास स्थित है। कृष्ण कुमार परिहर(फोटो हर्ष मंदिर , )

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बूढ़ा पिता अपने IAS बेटे के चेंबर में जाकर उसके कंधे पर हाथ रख कर खड़ा हो गया !


*बूढ़ा पिता अपने IAS बेटे के चेंबर में जाकर उसके कंधे पर हाथ रख कर खड़ा हो गया !* *और प्यार से अपने पुत्र से पूछा…* *”इस दुनिया का सबसे शक्तिशाली इंसान कौन है”?* *पुत्र ने पिता को बड़े प्यार से हंसते हुए कहा “मेरे अलावा कौन हो सकता है पिताजी “!* *पिता को इस जवाब की आशा नहीं थी, उसे विश्वास था कि उसका बेटा गर्व से कहेगा पिताजी इस दुनिया के सब से शक्तिशाली इंसान आप हैैं, जिन्होंने मुझे इतना योग्य बनाया !* *उनकी आँखे छलछला आई !* *वो चेंबर के गेट को खोल कर बाहर निकलने लगे !* *उन्होंने एक बार पीछे मुड़ कर पुनः बेटे से पूछा एक बार फिर बताओ इस दुनिया का सब से शक्तिशाली इंसान कौन है ???* *पुत्र ने इस बार कहा…* *”पिताजी आप हैैं,* *इस दुनिया के सब से* *शक्तिशाली इंसान “!* *पिता सुनकर आश्चर्यचकित हो गए उन्होंने कहा “अभी तो तुम अपने आप को इस दुनिया का सब से शक्तिशाली इंसान बता रहे थे अब तुम मुझे बता रहे हो ” ???* *पुत्र ने हंसते हुए उन्हें अपने सामने बिठाते हुए कहा ..* *”पिताजी उस समय आप का हाथ मेरे कंधे पर था, जिस पुत्र के कंधे पर या सिर पर पिता का हाथ हो वो पुत्र तो दुनिया का सबसे शक्तिशाली इंसान ही होगा ना,,,,,* *बोलिए पिताजी” !* *पिता की आँखे भर आई उन्होंने अपने पुत्र को कस कर के अपने गले लगा लिया !* *”तब में चन्द पंक्तिया लिखता हुं”* *जो पिता के पैरों को छूता है *वो कभी गरीब नहीं होता।* *जो मां के पैरों को छूता है वो कभी बदनसीब नही होता।* *जो भाई के पैराें को छुता हें वो कभी गमगीन नही होता।* *जो बहन के पैरों को छूता है वो कभी चरित्रहीन नहीं होता।* *जो गुरू के पैरों को छूता है* *उस जेसा कोई खुशनसीब नहीं होता…….* *💞अच्छा दिखने के लिये मत जिओ* *बल्कि अच्छा बनने के लिए जिओ💞* *💞जो झुक सकता है वह सारी* *☄दुनिया को झुका सकता है 💞* *💞 अगर बुरी आदत समय पर न बदली जाये* *तो बुरी आदत समय बदल देती है💞* *💞चलते रहने से ही सफलता है,* *रुका हुआ तो पानी भी बेकार हो जाता है 💞* *💞 झूठे दिलासे से स्पष्ट इंकार बेहतर है* *अच्छी सोच, अच्छी भावना,* *अच्छा विचार मन को हल्का करता है💞* *💞मुसीबत सब प आती है* *कोई बिखर जाता हे* *और कोई निखर जाता हें* *💞 “तेरा मेरा”करते एक दिन चले जाना है…* *जो भी कमाया यही रहे जाना हे* 🙏🏼 *सदैव बुजुर्गों का सम्मान करें* 🙏🏼 *💐जय श्री कृष्णा राधे राधे💐*

किरण महान महेता

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સસરા એ શું જવાબ આપ્યો


*સસરા એ શું જવાબ આપ્યો* *જરૂર વાંચજો* એક યુવકના લગ્ન થયા. ઘરમાં નવવધુ આવી અને ઘર આનંદ ઉલ્લાસથી ગુંજવા લાગ્યુ. નવી આવેલી વહુ બધાની ખુબ સારસંભાળ રાખતી હતી. ઘરના બધા સભ્યો ઘરના આ નવા સભ્યના આગમનથી આનંદમાં હતા પણ એકમાત્ર યુવાનની માતા થોડી ઉદાસ ઉદાસ રહેતી હતી. યુવકના પિતાને થોડાક દિવસમાં જ ખબર પડી ગઇ કે વહુ આવ્યા પછી એમની પત્નિ થોડી ઉદાસ થઇ ગઇ છે. પત્નિની આ ઉદાસીનું કારણ જાણવા માટે એકવાર ઘરમાં કોઇ નહોતુ ત્યારે એ ભાઇએ પોતાની પત્નિને પુછ્યુ, *હું જોઇ રહ્યો છું કે વહુના આવ્યા પછી તુ થોડી ઉદાસ થઇ ગઇ છે*. આ માટે કોઇ ખાસ કારણ ? ” *પત્નિએ કહ્યુ*, ” તમે કોઇ નોંધ લીધી. *લગ્ન પછી આપણો દિકરો સાવ બદલાઇ ગયો છે*. પહેલા એ મારી સાથે બેસીને વાતો કરતો પણ હવે એને મારા માટે ટાઇમ જ નથી ક્યારેક ક્યારેક જ વાતો થાય છે. જો એકાદ દિવસની રજા પડે તો વહુને લઇને એના સસરાને ત્યાં જતો રહે છે. *મારા કરતા તો એની સાસુ સાથે હવે વધારે વાતો કરે છે મને એવુ લાગે છે કે આપણો દિકરો હવે અડધો એના સસરાનો થઇ ગયો છે*. બસ આ બધા વિચારોથી હું સતત બેચેન રહુ છું” પેલા ભાઇએ પોતાની પત્નિનો હાથ પોતાના હાથમાં લઇને કહ્યુ, ” તારી વાત બિલકુલ સાચી છે. હવે આપણો દિકરો પુરેપુરો આપણો નથી રહ્યો. પણ મારે તને એક વાત પુછવી છે. તને એવુ લાગે છે કે આપણી વહુએ આ ઘરમાં આવીને ઘરનું વાતાવરણ બગાડી નાંખ્યુ છે ? ” છોકરાની મમ્મી બોલી, ” ના બિલકુલ નહી, એ તો સ્વભાવની બહુ સારી છે મારુ અને તમારુ બહુ સારુ ધ્યાન રાખે છે.” છોકરાના પપ્પાએ હસતા હસતા કહ્યુ, *ગાંડી કોઇ બીજાની દિકરી* *પુરેપુરી આપણી થઇ જતી હોય* *તો પછી “આપણો દિકરો અડધો એનો કે એના માતા-પિતાનો થાય* એમાં આમ ઉદાસ થોડુ થવાનું હોય? મિત્રો, *એક સ્ત્રી પોતાનું સર્વસ્વ છોડીને આપણી થવા માટે આપણા* *આંગણે આવે છે ત્યારે જો આપણે પુરેપુરા નહી* *માત્ર અડધા પણ એના અને એના પરિવારના બનીએ તો પારિવારિક પ્રશ્નો ઉભા નહી થાય* ગમે તો શેર જરૂર કરજો*!

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एक सेठ जी थे


एक सेठ जी थे – जिनके पास काफी दौलत थी. सेठ जी ने अपनी बेटी की शादी एक बड़े घर में की थी. परन्तु बेटी के भाग्य में सुख न होने के कारण उसका पति जुआरी, शराबी निकल गया. जिससे सब धन समाप्त हो गया. बेटी की यह हालत देखकर सेठानी जी रोज सेठ जी से कहती कि आप दुनिया की मदद करते हो, मगर अपनी बेटी परेशानी में होते हुए उसकी मदद क्यों नहीं करते हो? सेठ जी कहते कि “जब उनका भाग्य उदय होगा तो अपने आप सब मदद करने को तैयार हो जायेंगे…” एक दिन सेठ जी घर से बाहर गये थे कि, तभी उनका दामाद घर आ गया. सास ने दामाद का आदर-सत्कार किया और बेटी की मदद करने का विचार उसके मन में आया कि क्यों न मोतीचूर के लड्डूओं में अर्शफिया रख दी जाये… यह सोचकर सास ने लड्डूओ के बीच में अर्शफिया दबा कर रख दी और दामाद को टीका लगा कर विदा करते समय पांच किलों शुद्ध देशी घी के लड्डू, जिनमे अर्शफिया थी, दिये… दामाद लड्डू लेकर घर से चला, दामाद ने सोचा कि इतना वजन कौन लेकर जाये क्यों न यहीं मिठाई की दुकान पर बेच दिये जायें और दामाद ने वह लड्डुयों का पैकेट मिठाई वाले को बेच दिया और पैसे जेब में डालकर चला गया. उधर सेठ जी बाहर से आये तो उन्होंने सोचा घर के लिये मिठाई की दुकान से मोतीचूर के लड्डू लेता चलू और सेठ जी ने दुकानदार से लड्डू मांगे…मिठाई वाले ने वही लड्डू का पैकेट सेठ जी को वापिस बेच दिया. सेठ जी लड्डू लेकर घर आये.. सेठानी ने जब लड्डूओ का वही पैकेट देखा तो सेठानी ने लड्डू फोडकर देखे, अर्शफिया देख कर अपना माथा पीट लिया. सेठानी ने सेठ जी को दामाद के आने से लेकर जाने तक और लड्डुओं में अर्शफिया छिपाने की बात कह डाली… सेठ जी बोले कि भाग्यवान मैंनें पहले ही समझाया था कि अभी उनका भाग्य नहीं जागा… देखा मोहरें ना तो दामाद के भाग्य में थी और न ही मिठाई वाले के भाग्य में… इसलिये कहते हैं कि भाग्य से ज्यादा और… समय से पहले न किसी को कुछ मिला है और न मीलेगा! ईसी लिये ईशवर जितना दे उसी मै संतोष करो…

सयानी कमल

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एक डॉक्टर के पास एक बेहाल मरीज़ गया।


एक डॉक्टर के पास एक बेहाल मरीज़ गया। . . मरीज़: डॉ. साहब पेट में बहुत दर्द हो रहा है।. . . डॉ: अच्छा, ये बताओ आखिरी बार खाना कब खाया था…?? . . मरीज़: खाना तो रोज ही खाता हूँ। . . डॉ: अच्छा-अच्छा, (2 ऊँगली उठाते हुए ) आखिरी बार कब गए थे…?? . . मरीज़: जाता तो रोज ही हूँ पर होता नहीं है। . . डॉकटर समझ गए कि कब्ज़ है। अन्दर बहुत सारी बोतलें पड़ी थी उस में से एक उठा लाये और साथ ही केल्क्युलेटर भी लेते आये। . . फिर पूछा, “घर कितना दूर है तुम्हारा…??” . . मरीज़: 1 किलोमीटर। . . डॉक्टर ने केलकुलेटर पे कुछ हिसाब किया और फिर बोतल में से चार चम्मच दवाई निकाल कर एक कटोरी में डाली। . . डॉ: गाडी से आये हो या चल कर…?? . . मरीज़: चल कर। . . डॉ: जाते वक्त भाग के जाना। डॉक्टर ने फिर से केलकुलेटर पे हिसाब किया फिर थोड़ी दवाई कटोरी में से बाहर निकाल ली। . . डॉ: घर कौन सी मंज़िल पे है…?? . . मरीज़: तीसरी मंज़िल पे। . . डॉक्टर ने फिर से केलकुलेटर पे हिसाब किया फिर थोड़ी दवाई कटोरी में से और बाहर निकाल ली। . . डॉ: लिफ्ट है या सीढियाँ चढ़ के जाओगे…?? . . मरीज़: सीढियां। . . डॉक्टर ने फिर से केलकुलेटर पे हिसाब किया फिर थोड़ी दवाई कटोरी में से और बाहर निकाल ली। . . डॉ: अब आखिरी सवाल का जवाब दो। घर के मुख्य दरवाजे से टॉयलेट कितना दूर है…?? . . मरीज़: करीब 20 फुट। . . डॉक्टर ने फिर से केलकुलेटर पे हिसाब किया फिर थोड़ी दवाई कटोरी में से और बाहर निकाल ली। . . डॉ: अब मेरी फीस दे दो मुझे पहले…!! फिर ये दवाई पियो और फटाफट घर चले जाओ, कहीं रुकना नहीं और फिर मुझे फोन करना। . . मरीज़ ने वैसा ही किया। . . आधे घंटे बाद मरीज़ का फोन आया और एकदम ढीली आवाज में बोला, . . “डॉक्टर साहब, दवाई तो बहुत अच्छी थी आपकी पर आप अपना केलकुलेटर ठीक करवा लेना। . . . हम 10 फुट से हार गये। 😂😝😂😝😂😂😝

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रक्षाबंधन के नाम पर सेक्युलर घोटाला


रक्षाबंधन के नाम पर सेक्युलर घोटाला

बचपन में हमें अपने पाठयक्रम में पढ़ाया जाता रहा है कि रक्षाबंधन के त्योहार पर बहने अपने भाई को राखी बांध कर उनकी लम्बी आयु की कामना करती है। रक्षा बंधन का सबसे प्रचलित उदहारण चित्तोड़ की रानी कर्णावती और मुगल बादशाह हुमायूँ का दिया जाता है। कहा जाता है कि जब गुजरात के शासक बहादुर शाह ने चित्तोड़ पर हमला किया तब चित्तोड़ की रानी कर्णावती ने मुगल बादशाह हुमायूँ को पत्र लिख कर सहायता करने का निवेदन किया। पत्र के साथ रानी ने भाई समझ कर राखी भी भेजी थी। हुमायूँ रानी की रक्षा के लिए आया मगर तब तक देर हो चुकी थी। रानी ने जौहर कर आत्महत्या कर ली थी। इस इतिहास को हिन्दू-मुस्लिम एकता तोर पर पढ़ाया जाता हैं।

अब सेक्युलर खोटाला पढ़िए

हमारे देश का इतिहास सेक्युलर इतिहासकारों ने लिखा है। भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अब्दुल कलाम थे। जिन्हें साम्यवादी विचारधारा के नेहरू ने सख्त हिदायत देकर यह कहा था कि जो भी इतिहास पाठयक्रम में शामिल किया जाये। उस इतिहास में यह न पढ़ाया जाये कि मुस्लिम हमलावरों ने हिन्दू मंदिरों को तोड़ा, हिन्दुओं को जबरन धर्मान्तरित किया, उन पर अनेक अत्याचार किये। मौलाना ने नेहरू की सलाह को मानते हुए न केवल सत्य इतिहास को छुपाया अपितु उसे विकृत भी कर दिया।

रानी कर्णावती और मुगल बादशाह हुमायूँ के किस्से के साथ भी यही अत्याचार हुआ। जब रानी को पता चला की बहादुर शाह उस पर हमला करने वाला है तो उसने हुमायूँ को पत्र तो लिखा। मगर हुमायूँ को पत्र लिखे जाने का बहादुर खान को पता चल गया। बहादुर खान ने हुमायूँ को पत्र लिख कर इस्लाम की दुहाई दी और एक काफिर की सहायता करने से रोका।

मिरात-ए-सिकंदरी में गुजरात विषय से पृष्ठ संख्या 382 पर लिखा मिलता है-

सुल्तान के पत्र का हुमायूँ पर बुरा प्रभाव हुआ। वह आगरे से चित्तोड़ के लिए निकल गया था। अभी वह गवालियर ही पहुंचा था। उसे विचार आया, “सुलतान चित्तोड़ पर हमला करने जा रहा है। अगर मैंने चित्तोड़ की मदद की तो मैं एक प्रकार से एक काफिर की मदद करूँगा। इस्लाम के अनुसार काफिर की मदद करना हराम है। इसलिए देरी करना सबसे सही रहेगा। ” यह विचार कर हुमायूँ गवालियर में ही रुक गया और आगे नहीं सरका।

इधर बहादुर शाह ने जब चित्तोड़ को घेर लिया। रानी ने पूरी वीरता से उसका सामना किया। हुमायूँ का कोई नामोनिशान नहीं था। अंत में जौहर करने का फैसला हुआ। किले के दरवाजे खोल दिए गए। केसरिया बाना पहनकर पुरुष युद्ध के लिए उतर गए। पीछे से राजपूत औरतें जौहर की आग में कूद गई। रानी कर्णावती 13000 स्त्रियों के साथ जौहर में कूद गई। 3000 छोटे बच्चों को कुँए और खाई में फेंक दिया गया। ताकि वे मुसलमानों के हाथ न लगे। कुल मिलकर 32000 निर्दोष लोगों को अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा।

बहादुर शाह किले में लूटपाट कर वापिस चला गया। हुमायूँ चित्तोड़ आया। मगर पुरे एक वर्ष के बाद आया।परन्तु किसलिए आया? अपने वार्षिक लगान को इकठ्ठा करने आया। ध्यान दीजिये यही हुमायूँ जब शेरशाह सूरी के डर से रेगिस्तान की धूल छानता फिर रहा था। तब उमरकोट सिंध के हिन्दू राजपूत राणा ने हुमायूँ को आश्रय दिया था। यही उमरकोट में अकबर का जन्म हुआ था। एक काफ़िर का आश्रय लेते हुमायूँ को कभी इस्लाम याद नहीं आया। और धिक्कार है ऐसे राणा पर जिसने अपने हिन्दू राजपूत रियासत चित्तोड़ से दगा करने वाले हुमायूँ को आश्रय दिया। अगर हुमायूँ यही रेगिस्तान में मर जाता। तो भारत से मुग़लों का अंत तभी हो जाता। न आगे चलकर अकबर से लेकर औरंगज़ेब के अत्याचार हिन्दुओं को सहने पड़ते।

इरफ़ान हबीब, रोमिला थापर सरीखे इतिहासकारों ने इतिहास का केवल विकृतिकरण ही नहीं किया अपितु उसका पूरा बलात्कार ही कर दिया। हुमायूँ द्वारा इस्लाम के नाम पर की गई दगाबाजी को हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे और रक्षाबंधन का नाम दे दिया। हमारे पाठयक्रम में पढ़ा पढ़ा कर हिन्दू बच्चों को इतना भ्रमित किया गया कि उन्हें कभी सत्य का ज्ञान ही न हो। इसीलिए आज हिन्दुओं के बच्चे दिल्ली में हुमायूँ के मकबरे के दर्शन करने जाते हैं। जहाँ पर गाइड उन्हें हुमायूँ को हिन्दूमुस्लिम भाईचारे के प्रतीक के रूप में बताते हैं।

इस लेख को आज रक्षाबंधन के दिन इतना फैलाये कि इन सेक्युलर घोटालेबाजों तक यह अवश्य पहुंच जाये।

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एक बहुत पुरानी कहानी है


एक बहुत पुरानी कहानी है
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एक राजा बहुत दिनो से पुत्र की प्राप्ती के लिये आशा लगाये बैठा था,पर पुत्र नही हुआ ।उसके सलाहकारों ने तांत्रिकों से सहयोग की बात बताई ।सुझाव मिला कि किसी बच्चे की बलि दे दी जाये तो पुत्र प्राप्ती हो जायेगी।
राजा ने राज्य में ये बात फैलाई कि जो अपना बच्चा देगा उसे बहुत सारे धन दिये जायेगे ।एक परिवार में कई बच्चें थे ,गरीबी भी थी,एक ऐसा बच्चा भी था जो ईश्वर पर आस्था रखता था तथा सन्तों के संग सत्संग में ज्यादा समय देता था।
परिवार को लगा कि इसे राजा को दे दिया जाये क्योंकि ये कुछ काम भी नही करता है,हमारे किसी काम का भी नही ।इससे राजा प्रसन्न होकर बहुत सारा धन देगा ।ऐसा ही किया गया बच्चा राजा को दे दिया गया।
राजा के तात्रिकों द्वारा बच्चे की बलि की तैयारी हो गई,राजा को भी बुलाया गया ,बच्चे से पुछा गया कि तुम्हारी आखरी इच्छा क्या है ?क्योंकि अाज तुम्हारा जीवन का अन्तिम दिन है।
बच्चे ने कहा कि ठीक है मेरे लिये रेत मगा दिया जाये,रेत अा गया ।बच्चे ने रेत से चार ढ़ेर* *बनाये ,एक-एक करके तीन रेत के ढ़ेर को तोड़ दिया और चौथे के सामने हाथ जोड़कर बैठ गया और कहा कि अब जो करना है करे।
ये सब देखकर तॉत्रिक डर गये बोले कि ये तुमने क्या किया है पहले बताओं ।राजा ने भी पुछा तो बच्चे ने कहा कि पहली ढ़ेरी मेरे माता पिता की है,मेरी रक्षा करना उनका कर्तब्य था पर उन्होने पैसे के लिये मुझे बेच दिया ।इसलिये मैने ये ढ़ेरी तोड़ी,दुसरा मेरे सगे-सम्बन्धियों का था,उन्होंने भी मेरे माता-पिता को नही समझाया तीसरा आपका है राजा क्योंकि राज्य के सभी इंसानों की रक्षा करना राजा का ही काम होता है पर राजा ही मेरी बलि देना चाह रहा है तो ये ढ़ेरी भी मैने तोड़ दी ।अब सिर्फ मेरे सत्गुरु और ईश्वर पर मुझे भरोसा है इसलिये ये एक ढ़ेरी मैने छोड़ दी है।
राजा ने सोचा कि पता नही बच्चे की बलि से बाद भी पुत्र प्राप्त हो या न हो क्यों ना इस बच्चे को ही अपना पुत्र बना ले,इतना समझदार और ईश्वर भक्त बच्चा है ।इससे अच्छा बच्चा कहा मिलेगा ।
राजा ने उस बच्चे को अपना बेटा बना लिया और राजकुमार घोषित कर दिया
कहानी का भाव कि जो ईश्वर और सत्गुरु पर यकीन रखते है,उनका बाल भी बाका नही होता है,हर मुश्किल में एक का ही जो आसरा लेते है उनका कही से किसी प्रकार का कोई अहित नही होता है।

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एक बेटी ने एक संत से आग्रह किया कि


🌺एक बेटी ने एक संत से आग्रह किया कि वो घर आकर उसके बीमार पिता से मिलें, प्रार्थना करें…बेटी ने ये भी बताया कि उसके बुजुर्ग पिता पलंग से उठ भी नहीं सकते l जब संत घर आए तो पिता पलंग पर दो तकियों पर सिर रखकर लेटे हुए थे… एक खाली कुर्सी पलंग के साथ पड़ी थी…संत ने सोचा कि शायद मेरे आने की वजह से ये कुर्सी यहां पहले से ही रख दी गई l संत…मुझे लगता है कि आप मेरी ही उम्मीद कर रहे थे l पिता…नहीं, आप कौन हैं l संत ने अपना परिचय दिया…और फिर कहा…मुझे ये खाली कुर्सी देखकर लगा कि आप को मेरे आने का आभास था l पिता…ओह ये बात…खाली कुर्सी…आप…आपको अगर बुरा न लगे तो कृपया कमरे का दरवाज़ा बंद करेंगे l संत को ये सुनकर थोड़ी हैरत हुई, फिर भी दरवाज़ा बंद कर दिया l पिता…दरअसल इस खाली कुर्सी का राज़ मैंने किसी को नहीं बताया…अपनी बेटी को भी नहीं…पूरी ज़िंदगी, मैं ये जान नहीं सका कि प्रार्थना कैसे की जाती है…मंदिर जाता था, पुजारी के श्लोक सुनता…वो सिर के ऊपर से गुज़र जाते….कुछ पल्ले नहीं पड़ता था…मैंने फिर प्रार्थना की कोशिश करना छोड़ दिया…लेकिन चार साल पहले मेरा एक दोस्त मिला…उसने मुझे बताया कि प्रार्थना कुछ नहीं भगवान से सीधे संवाद का माध्यम होती है….उसी ने सलाह दी कि एक खाली कुर्सी अपने सामने रखो…फिर विश्वास करो कि वहां भगवान खुद ही विराजमान हैं…अब भगवान से ठीक वैसे ही बात करना शुरू करो, जैसे कि अभी तुम मुझसे कर रहे हो…मैंने ऐसा करके देखा…मुझे बहुत अच्छा लगा…फिर तो मैं रोज़ दो-दो घंटे ऐसा करके देखने लगा…लेकिन ये ध्यान रखता कि मेरी बेटी कभी मुझे ऐसा करते न देख ले…अगर वो देख लेती तो उसका ही नर्वस ब्रेकडाउन हो जाता या वो फिर मुझे साइकाइट्रिस्ट के पास ले जाती l ये सब सुनकर संत ने बुजुर्ग के लिए प्रार्थना की…सिर पर हाथ रखा और भगवान से बात करने के क्रम को जारी रखने के लिए कहा…संत को उसी दिन दो दिन के लिए शहर से बाहर जाना था…इसलिए विदा लेकर चले गए l दो दिन बाद बेटी का संत को फोन आया कि उसके पिता की उसी दिन कुछ घंटे बाद मृत्यु हो गई थी, जिस दिन वो आप से मिले थे l संत ने पूछा कि उन्हें प्राण छोड़ते वक्त कोई तकलीफ़ तो नहीं हुई l बेटी ने जवाब दिया…नहीं, मैं जब घर से काम पर जा रही थी तो उन्होंने मुझे बुलाया…मेरा माथा प्यार से चूमा…ये सब करते हुए उनके चेहरे पर ऐसी शांति थी, जो मैंने पहले कभी नहीं देखी थी…जब मैं वापस आई तो वो हमेशा के लिए आंखें मूंद चुके थे…लेकिन मैंने एक अजीब सी चीज़ भी देखी…वो ऐसी मुद्रा में थे जैसे कि खाली कुर्सी पर किसी की गोद में अपना सिर झुकाया हो…संत जी, वो क्या था l ये सुनकर संत की आंखों से आंसू बह निकले…बड़ी मुश्किल से बोल पाए…काश, मैं भी जब दुनिया से जाऊं तो ऐसे ही जाऊं l ओम शांति !

सयानी कमल

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सर्वप्रथम किसने बांधी राखी किस को और क्यों ?


✍सर्वप्रथम किसने बांधी राखी किस को और क्यों ??* 👉लक्ष्मी जी ने सर्वप्रथम बलि को बांधी थी। ये बात हैं जब की जब दानबेन्द्र राजा बलि अश्वमेध यज्ञ करा रहें थे तब नारायण ने राजा बलि को छलने के लिये वामन अवतार लिया और तीन पग में सब कुछ ले लिया तब उसे भगवान ने पाताल लोक का राज्य रहने के लिये दें दिया तब उसने प्रभु से कहा की कोई बात नहीँ मैं रहने के लिये तैयार हूँ पर मेरी भी एक शर्त होगी भगवान अपने भक्तो की बात कभी टाल नहीँ सकते उन्होने कहा ऐसे नहीँ प्रभु आप छलिया हो पहले मुझे वचन दें की जो मांगूँगा वो आप दोगे नारायण ने कहा दूँगा दूँगा दूँगा जब त्रिबाचा करा लिया तब बोले बलि की मैं जब सोने जाऊँ तो जब उठूं तो जिधर भी नजर जाये उधर आपको ही देखूं नारायण ने अपना माथा ठोका और बोले इसने तो मुझे पहरेदार बना दिया हैं ये सबकुछ हार के भी जीत गया है पर कर भी क्या सकते थे वचन जो दें चुके थे ऐसे होते होते काफी समय बीत गया उधर बैकुंठ में लक्ष्मी जी को चिंता होने लगी नारायण के बिना उधर नारद जी का आना हुआ लक्ष्मी जी ने कहा नारद जी आप तो तीनों लोकों में घूमते हैं क्या नारायण को कहीँ देखा आपने तब नारद जी बोले की पाताल लोक में हैं राजा बलि की पहरेदार बने हुये हैं तब लक्ष्मी जी ने कहा मुझे आप ही राह दिखाये की कैसे मिलेंगे तब नारद ने कहा आप राजा बलि को भाई बना लो और रक्षा का वचन लो और पहले तिर्बाचा करा लेना दक्षिणा में जो मांगुगी वो देंगे और दक्षिणा में अपने नारायण को माँग लेना लक्ष्मी जी सुन्दर स्त्री के भेष में रोते हुये पहुँची बलि ने कहा क्यों रो रहीं हैं आप तब लक्ष्मी जी बोली की मेरा कोई भाई नहीँ हैं इसलिए मैं दुखी हूँ तब बलि बोले की तुम मेरी धरम की बहिन बन जाओ तब लक्ष्मी ने तिर्बाचा कराया और बोली मुझे आपका ये पहरेदार चाहिये जब ये माँगा तो बलि पीटने लगे अपना माथा और सोचा धन्य हो माता पति आये सब कुछ लें गये और ये महारानी ऐसी आयीं की उन्हे भी लें गयीं तब से ये रक्षाबन्धन शुरू हुआ था और इसी लिये जब कलावा बाँधते समय मंत्र बोला जाता हैं *येन बद्धो राजा बलि दानबेन्द्रो महाबला तेन त्वाम प्रपद्यये रक्षे माचल माचल:* ये मंत्र हैं रक्षा बन्धन अर्थात बह बन्धन जो हमें सुरक्षा प्रदान करे सुरक्षा किस से हमारे आंतरिक और बाहरी शत्रुओं से रोग ऋण से। राखी का मान करे।

श्री गौरव कृष्णा गोस्वामी