Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

मोची का लालच


((((( मोची का लालच ))))) . किसी गाँव में एक धनी सेठ रहता था . उसके बंगले के पास एक जूते सिलने वाले गरीब मोची की छोटी सी दुकान थी। . उस मोची की एक खास आदत थी कि जो जब भी जूते सिलता तो भगवान के भजन गुनगुनाता रहता था….. . लेकिन सेठ ने कभी उसके भजनों की तरफ ध्यान नहीं दिया । . एक दिन सेठ व्यापार के सिलसिले में विदेश गया और घर लौटते वक्त उसकी तबियत बहुत ख़राब हो गयी । . लेकिन पैसे की कोई कमी तो थी नहीं सो देश विदेशों से डॉक्टर, वैद्य, हकीमों को बुलाया गया लेकिन कोई भी सेठ की बीमारी का इलाज नहीं कर सका । . अब सेठ की तबियत दिन प्रतिदिन ख़राब होती जा रही थी। वह चल फिर भी नहीं पाता था , . एक दिन वह घर में अपने बिस्तर पे लेटा था अचानक उसके कान में मोची के भजन गाने की आवाज सुनाई दी, . आज मोची के भजन कुछ अच्छे लग रहे थे सेठ को, कुछ ही देर में सेठ इतना मंत्र मुग्ध हो गया कि उसे ऐसा लगा जैसे वो साक्षात परमात्मा से मिलन कर रहा हो। . मोची के भजन सेठ को उसकी बीमारी से दूर लेते जा रहे थे… . कुछ देर के लिए सेठ भूल गया कि वह बीमार है उसे अपार आनंद की प्राप्ति हुई । . कुछ दिन तक यही सिलसिला चलता रहा, अब धीरे धीरे सेठ के स्वास्थ्य में सुधार आने लगा। . एक दिन उसने मोची को बुलाया और कहा….. . मेरी बीमारी का इलाज बड़े बड़े डॉक्टर नहीं कर पाये लेकिन तुम्हारे भजन ने मेरा स्वास्थ्य सुधार दिया…. . ये लो 1000 रुपये इनाम, मोची खुश होते हुए पैसे लेकर चला गया । . लेकिन उस रात मोची को बिल्कुल नींद नहीं आई वो सारी रात यही सोचता रहा कि इतने सारे पैसों को कहाँ छुपा कर रखूं और इनसे क्या क्या खरीदना है ? . इसी सोच की वजह से वो इतना परेशान हुआ कि अगले दिन काम पे भी नहीं जा पाया। . अब भजन गाना तो जैसे वो भूल ही गया था, मन में खुशी थी पैसे की। . अब तो उसने काम पर जाना ही बंद कर दिया और धीरे धीरे उसकी दुकानदारी भी चौपट होने लगी । . इधर सेठ की बीमारी फिर से बढ़ती जा रही थी । . एक दिन मोची सेठ के बंगले में आया और बोला सेठ जी आप अपने ये पैसे वापस रख लीजिये, . इस धन की वजह से मेरा धंधा चौपट हो गया, मैं भजन गाना ही भूल गया। . इस धन ने तो मेरा परमात्मा से नाता ही तुड़वा दिया। . मोची पैसे वापस करके फिर से अपने काम में लग गया। अब वो फिर से भगवान के भजन गुनगुनाता रहता था… . मित्रों ये एक कहानी मात्र नहीं है ये एक सीख है कि किस तरह हम पैसों का लालच हमको अपनों से दूर ले जाता है . हम भूल जाते हैं कि कोई ऐसी शक्ति भी है जिसने हमें बनाया है। . आज के माहौल में ये सब बहुत देखते को मिलता है लोग 24 घंटे सिर्फ जॉब की बात करते हैं, बिज़निस की बात करते हैं, पैसों की बात करते हैं। . हालाँकि धन जीवन यापन के लिए बहुत जरुरी है लेकिन उसके लिए अपने अस्तित्व को भूल जाना मूर्खता ही है। . आप खूब पैसा कमाइए लेकिन साथ ही साथ अपने माता -पिता की सेवा करिये , दूसरों के हित की बातें सोचिये और भगवान का स्मरण करिये यही इस कहानी की शिक्षा है.

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

जीवन जीने की कला


“जीवन जीने की कला” एक शाम माँ ने दिनभर की लम्बी थकान एवं काम के बाद जब डिनर बनाया तो उन्होंने पापा के सामने एक प्लेट सब्जी और एक जली हुई रोटी परोसी। मुझे लग रहा था कि इस जली हुई रोटी पर कोई कुछ कहेगा। परन्तु पापा ने उस रोटी को आराम से खा लिया ।मैंने माँ को पापा से उस जली रोटी के लिए “साॅरी” बोलते हुए जरूर सुना था। और मैं ये कभी नहीं भूल सकता जो पापा ने कहा “प्रिये, मूझे जली हुई कड़क रोटी बेहद पसंद है।” देर रात को मैंने पापा से पूछा, क्या उन्हें सचमुच जली रोटी पसंद है? उन्होंने मुझे अपनी बाहों में लेते हुए कहा – तुम्हारी माँ ने आज दिनभर ढ़ेर सारा काम किया, और वो सचमुच बहुत थकी हुई थी और…वेसे भी…एक जली रोटी किसी को ठेस नहीं पहुंचाती, परन्तु कठोर-कटू शब्द जरूर पहुंचाते हैं। तुम्हें पता है बेटा – जिंदगी भरी पड़ी है अपूर्ण चीजों से…अपूर्ण लोगों से… कमियों से…दोषों से…मैं स्वयं सर्वश्रेष्ठ नहीं, साधारण हूँ और शायद ही किसी काम में ठीक हूँ। मैंने इतने सालों में सीखा है कि- “एक दूसरे की गलतियों को स्वीकार करो…अनदेखी करो… और चुनो… पसंद करो…आपसी संबंधों को सेलिब्रेट करना।” मित्रों, जिदंगी बहुत छोटी है…उसे हर सुबह दु:ख…पछतावे…खेद के साथ जताते हुए बर्बाद न करें। जो लोग तुमसे अच्छा व्यवहार करते हैं, उन्हें प्यार करो ओर जो नहीं करते उनके लिए दया सहानुभूति रखो। किसी ने क्या खूब कहा है- मेरे पास वक्त नहीं उन लोगों से नफरत करने का जो मुझे पसंद नहीं करते क्योंकि मैं व्यस्त हूँ उन लोगों को प्यार करने में जो मुझे पसंद करते हैं।✌ 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 Laxmi Kant Varshney

Posted in भारतीय मंदिर - Bharatiya Mandir

नागेश का ज्योतिर्लिंग मंदिर


सुमंगल स्वागत स्वजनों,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, नमः सर्वहितार्थाय जगदाधारहेतवे। साष्टांगोयं प्रणामस्ते प्रयत्नेन मया कृत:।। श्री भगवते साम्बशिवाय नमः नमस्कारान् समर्पयामि,,,,,,,,^,,,,,,, हिमालय के पवित्र क्षेत्र में स्थित जागेश्वर धाम भगवान शिव का परम कल्याणकारी धाम माना जाता है। भगवान शिव के पृथ्वी पर पिण्डी स्वरूप में अवतरित होने की घटना सर्वप्रथम इसी क्षेत्र में घटी है। यह स्थान आदिकाल से पूज्यनीय रहा है। पृथ्वी की करुण गाथा व गहन वेदना को दूर करने के लिए ही सर्वप्रथम शिव इस वसुंधरा में जागेश्वर में ही प्रकट व अवतरित हुए। दारूकानन जागेश्वर क्षेत्र में भगवान शिव के प्रकट होने की कथा बडी रहस्यभरी है। यहीं से उन्होंने कैलाश खण्ड,केदारखण्ड, पातालखण्ड,काशीखण्ड,रेवाखण्ड,नागखण्ड सहित अनेकों रूपों में अपनी लीलाओं का विस्तार किया। यह समूचा क्षेत्र शिव का विचरण स्थल माना जाता है। यहां स्थित नागेश का ज्योतिर्लिंग मंदिर आदिकाल से शिव महिमा की अलौकिक सौगात है। भक्तजन,श्रद्वालुजन इस मंदिर के दर्शन कर अपना लोक व परलोक दोनों ही संवारते हैं। कहा जाता है कि इस मंदिर का जीर्णोद्वार महाराज विक्रमादित्य ने किया था,उसके बाद आदि जगतगुरू शंकराचार्य ने पुनः प्राण प्रतिष्ठा की। शिव और शक्ति की अद्भुत महिमा से यह भूभाग सर्वत्र ही पूज्यनीय है। पृथ्वी के चरित्र के वर्णन के साथ ही पुराणों में इस क्षेत्र का वर्णन मिलता है। पुराणों के अनुसार दक्ष प्रजापति के यज्ञ का विध्वंस करने के बाद सती के आत्मदाह से दुःखी यज्ञ की भस्म को अपने सारे शरीर पर मलकर शिव ने इन क्षेत्रों के वियावान घनघोर जंगलों में हजारों वर्ष तक तप किया। शिव महिमा के इस पावन चरित्र का वर्णन करते हुए वेद व्यास जी ने जिज्ञासु ऋषिगणों को यह रहस्य बलाते हुए कहा कि पृथ्वी पर शिवलिंग का पतन सर्वप्रथम इसी स्थल पर हुआ। जिसका कारण बताते हुए उन्होंने कहा है- दक्ष प्रजापति की काली नाम की कन्या के साथ शंकर ने विवाह किया। विवाह के काफी समय पश्चात महामाया काली ने यह सुना कि उनके पिता ने यज्ञ आरंभ किया है। उस यज्ञ में उन्होंने भगवान शंकर से भी चलने का अनुरोध किया किन्तु नीति व मर्यादा के अनुसार आमंत्रण न होने के कारण भगवान शंकर ने यज्ञ में जाना उचित नहीं समझा तथा भांति-भांति से अपनी अर्धांगिनी को भी समझाया। लेकिन वे इस पर राजी नहीं हुई और अपने पिता के घर बिना बुलाये ही चली गई। वहां यशस्विनी काली ने अन्य स्त्रियों तथा अपनी बहिनों को पूर्ण सम्मान के साथ देखा और शंकर का यज्ञ में कोई भाग न होने से वे कुपित हो उठी और यज्ञ कुण्ड में प्रवेश कर अपनी आहुति दे डाली। भूतभावन भगवान शंकर काली को भस्म हुआ जानकर दक्ष की राजधानी में प्रज्वलित अग्नि की तरह विकराल रूप धारण कर पहुंच गये। समूचा यज्ञ मण्डप क्षेत्र त्राहिमाम हो उठा। ब्रह्मा ने शंकर का अनुनय विनय कर उन्हें शांत कर दक्ष की रक्षा करवायी,तत्पश्चात महादेव जी घोर तपस्या के संकल्प के साथ भू-लोक को चले आये। अपने गणों सहित विन्ध्य पर्वत में आकर नन्दी के साथ एक वर्ष तक उन्होंने घोर तपस्या की। फिर इस स्थान को त्याग कर हिमालय के अनेकों भागों में तपस्या की,अन्ततः शिवजी ऐसे घोर वन में गये जहां दिन-रात हिमपात होता रहता था। अनेक प्रकार के वनचरों से सेवित यह स्थान दारूकानन क्षेत्र था। यहीं उन्होंने अपना वास स्थान बनाया तथा यहीं वृक्षों की छाया से घिरे हुए व्याघ्र चर्म के उग्र आसन पर बैठकर घोर तपस्या आरंभ कर दी। समस्त संसार के दुःखों का हरण करने वाले भगवान शिव सती के वियोगजन्य दुःख को स्मरण कर ध्यानमग्न हो गये। इस अवस्था में आठ हजार पर्वतनायिकाओं ने उनकी स्तुति कर अपना जीवन धन्य किया। दारूकानन के इसी पावन क्षेत्र के आसपास वशिष्ठ आदि महर्षिजनों ने भी अपनी-अपनी पत्नियों व शिष्यगणों के साथ इस स्थान पर साधना की। कहा जाता है कि ऋषि पत्नियां एक बार दैनिक सामग्री की खोज में उस पवित्र वन में गईं जहां भगवान शिव आसन जमाये बैठे थे। एकाग्रचित ध्यान में सम्पूर्ण शरीर पर भस्म रमाये हुए सर्पों की माला से सुशोभित व्याघ्र चर्म को ओढे शिव का यह रूप हजारों विश्वमोहन रूप से भी ज्यादा आकर्षक था,जिनके चरणों का ध्यान योगीजन किया करते हैं वे स्वयं अपने ध्यान में स्थित थे। वे मुनि पत्नियां शिवजी की इस स्थिति को देखकर उन पर मोहित हो गईं और ईधन-कुशा ले जाना भूल गई। ऊधर रात व्यतीत होने पर भी जब प्रातःकाल तक ऋषि पत्नियां वापस नहीं लौटी तो तब चिंतित ऋषिगण अपनी पत्नियों की खोज में निकल पडे। ढूंढते-ढूंढते वे दारूकानन क्षेत्र में पहुंचे। वहीं शिव को ध्यान मग्न व अपनी पत्नियों को वेसुध पडा देखकर शंकाग्रस्त ऋषियों ने शिव को श्राप दे डाला तथा कहा आपने हमारी पत्नियों को मोहित किया है। इसलिए हम आपको श्राप देते हैं कि आप के लिंग का भूमि पर पतन हो। भगवान शिव का ध्यान भंग हुआ। उन्होंने श्राप देने वाले ऋषियों को देखा। संसार के कल्याणकर्ता शिव ने निरपराध उस श्राप को सुन ऋषियों से कहा,वैरभाव से भी मेरा दर्शन कर पुत्र-मित्र द्रोहीजन भी मुक्ति लाभ को प्राप्त होते हैं। आप भी मन्वन्तर बदलने पर वैवस्वत मनु के समय अपनी पत्नियों सहित आकाश में उत्तर की ओर तारे बनकर अनन्त काल तक चमकते रहोगे। इस प्रकार शिवजी ने ऋषियों को अनन्त कीर्ति प्रदान कर वहीं पर स्वयं अपना लिंग पतन किया। शिव कृपा से आज भी सप्तऋषि मण्डल उत्तर दिशा में दिखायी पडता है। पुण्यस्वरूप शिवलिंग के पृथ्वी पर पतन होने की बात सुनकर समस्त देवताओं ने इस क्षेत्र को अपना वास स्थान चुना। दारूकानन क्षेत्र में लिंग के पृथ्वी पर गिरते ही पृथ्वी धन्य हो उठी,किन्तु इसके भार को धारण करने में असमर्थता व्यक्त करते हुए पृथ्वी ने भगवान विष्णु की आराधना की। पाताल पर्यन्त से भी अनन्त शिव के अनादि स्वरूप का उन्होंने भगवान विष्णु से वर्णन किया तथा विनती की कि, “हे प्रभु! भूत,भविष्य,वर्तमान इन तीनों कालों में शिव का तेज दुःसह है इसके साथ ही पाताल पर्यन्त पहुंचा हुआ तेजोमय शिवलिंग तो और भी दुःसह है। परम योगी भगवान विष्णु ने धरा की व्यथा को जान भगवान शिव से लिंग के विभाजन की प्रार्थना की ताकि लिंग के भार से दबती पृथ्वी का उद्धार हो। प्रसन्न शिव ने भगवान विष्णु को चक्र से लिंग छिन्न करने की आज्ञा दी। शंकर की आज्ञा पाकर लोकपावन विष्णु भगवान ने शिव के द्वारा समाहृत लिंग को अपने चक्र से काट दिया तथा उन्हें पृथ्वी पर नौ खण्डों में स्थापित किया। जहां-जहां भगवान विष्णु ने उन लिंगों को स्थापित किया वे परम कल्याणकारी तीर्थ बने। प्रथम भाग मानस के नाम से प्रसिद्व हुआ। मानसरोवर नामक तीर्थ भक्तों के कल्याणार्थ परम पूज्यनीय है। दूसरा भाग कैलाश खण्ड के नाम से प्रसिद्व हुआ, जो दुर्लभ मुक्ति को प्रदान करने वाला कहा गया है तीसरा भाग केदार नामक विस्तृत खण्ड है, जिसकी महिमा अनादि है। इसके बाद पाताल खण्ड है,जो नाग कन्याओं के नामों से सुसेवित है। तदन्तर काशीखण्ड है,जहां विश्वेश्वर लिंग के रूप में भक्तों को दर्शन देते हैं। आगे रेवाखण्ड है,जो नर्मदा की विभिन्न धाराओं, सुन्दरता का रूप लेकर नर्मदेश्वर के नाम से पूजित है। फिर रामेश्वरम शोणितपुर का महात्म्य वर्णित है। इसके बाद ब्रह्मोत्तर खण्ड है,जहां कोकर्णेश की पावन कथायें हैं। आगे नागखण्ड का वर्णन आता है। उज्जयिनी नगरी के महात्म्य के साथ इनकी उपासना कर भक्तजन शिवलोक प्राप्त करते हैं। शिवजी की पावन स्थली दारूकानन क्षेत्र में शिव साक्षात् रूप में प्रतिष्ठित हुए। भगवान शिव के जागेश्वर क्षेत्र में तपस्या करने का क्या रहस्य था? लीलाधर ने यह लीला क्यों रची? इसका भी विस्तृत वर्णन पुराणों में मिलता है, जिसका संक्षिप्त सार इस प्रकार है- कहा जाता है कि मधु व कैटभ महा दैत्यों को मारने के बाद उनके शरीर से जल के समान द्रवीभूत चर्बी जल में ही जम गयी। उन दोनों की चर्बी से पर्वतों सहित वसुधा की कल्पना कर शिव की प्रेरणा से विष्णु ने पृथ्वी की रचना की। फिर कच्छ अवतार धारण कर अपनी पीठ पर पृथ्वी को स्थापित किया तथा ब्रह्मा को आज्ञा दी कि वे सृष्टि में प्राणियों का उत्पादन करें। इस प्रकार सृष्टि चक्र चलने पर अत्रि गोत्र में उत्पन्न अंग नाम के प्रजापति हुए। उनके वंश में पृथु नाम का एक राजा हुआ। राज सिंहासन संभालने पर राजा पृथु की शरण में उनकी प्रजा जन गई तथा कहा कि आप हमारा पालन करें। अपनी प्रजा के इस विनय पर राजा पृथु ने लोगों के हित में गो-रूप धारिणी समग्र पृथ्वी का दोहन किया। इस कार्य से पृथ्वी दुःखी व व्यथित हो गई। वेणु के पुत्र प्रतापशाली राजा पृथु ने अपने धनुष की नोक से सम्पूर्ण पृथ्वी को उठाया। वसुधा पृथ्वीतल को सब ओर से खोदा हुआ देखकर दुःखी पृथ्वी ने राजा पृथु से प्रार्थना की, “मैं आपकी पुत्री का स्थान ग्रहण करती हूं, मेरा उद्वार करें।” पृथ्वी की गहन वेदना पर तरस खाकर राजा पृथु ने अपनी प्रजा को आज्ञा देकर ग्राम व नगरों का निर्माण करवाया ताकि पृथ्वी की सुन्दरता कुरूप न हो। पुनः राजा पृथु के राज्य में अन्न आदि पदार्थों को लेकर हाहाकार मच गया,तब वेणु के प्रतापी राजा पृथु ने सब लोगों की भरण पोषण की चिंता दूर करते हुए अपने वाणों से ही अपने हाथों पृथ्वी का दोहन किया और पृथ्वी अन्नदात्री व कर्मभूमि के रूप में प्रसिद्व हुई। सृष्टि के विस्तार के साथ पृथ्वी की दशा परवश हो गयी और भय से ग्रस्त पृथ्वी गोरूप धारण करके जगत के पालनकर्ता भगवान विष्णु की शरण में गई तथा अपनी व्यथा उन्हें सुनाई। तब भगवान विष्णु ने पृथ्वी की स्तुति पर प्रसन्न हो कहा कि, “जब-जब तुम भयग्रस्त होगी,मैं मनुष्य रूप में अवतार लेकर तुम्हारा उद्वार करूंगा। पृथु ने लोक कल्याण के लिए तुम्हारा दोहन किया है इसलिए तुम दुःखी मत हो। रहा प्रश्न तुम्हारे भयभीत होने का,तुम निर्भय होकर अपने कर्तव्य का पालन करो तथा स्मरण रखो कि देवताओं की वर्ष गणना के हिसाब से हजारों वर्ष के बाद सतयुग के आरंभ में साक्षात शिव पृथ्वी पर आयेंगे। दक्ष प्रजापति की पुत्री सती के वियोग से खिन्न होकर महादेव तपस्या करने भूमण्डल के दारूकानन क्षेत्र में साक्षात रूप में रहेंगे। वहीं पर ऋषियों से श्रापित होकर भगवान शंकर के पुनीत लिंग का पतन होगा। शिवलिंग के पृथ्वी पर गिरते ही तुम निश्चल, निर्मल,पावन गति को प्राप्त होगी,पृथ्वी के साथ-साथ समस्त पृथ्वीवासियों का भगवान शिव की कृपा से कल्याण होगा। दारूकानन सहित हिमालय का पावन क्षेत्र शिव कृपा से धन्य होगा,बाद में गंगा के पृथ्वी में अवतरण से तुम और निहाल हो उठोगी।” इस प्रकार भगवान विष्णु ने विस्तार से भांति-भांति अवतारों की महिमा बताकर पृथ्वी को कृतार्थ किया। अपने परम भक्त भगवान विष्णु के वचन को सत्य सिद्व करने के लिए भगवान शिव ने विराट लीला की रचना की व जागेश्वर में लिंग का पतन कर पृथ्वी व पृथ्वीवासियों का उद्वार किया। आगे इसका महात्म्य विस्तृत रूप से अपनी लीला का विस्तार करता चला गया। दारूकानन के इस पर्वत पर ब्रह्मा,विष्णु,महेशादि तीनों देवताओं के साथ सिद्वों,विद्याधर गणों,मरीचि, अत्रि आदि महर्षियों,महेन्द्रादि देवों,वाणादि दैत्यों तथा वासुकि आदि नागों एवं यक्षों से सेवित भगवान शंकर देवों और गन्धर्वों से पूजित है। इस स्थान पर क्षण भर आराधना करने पर महापातकी मनुष्य भी परम गति को प्राप्त कर लेता है। भगवान श्री रामचन्द्र जी के पुत्र कुश ने जब गुरू वशिष्ठ से यह पूछा कि मुनिश्रेष्ठ पातकों के विनाश के लिए आफ मत में पृथ्वी पर कौन सा क्षेत्र है तथा किस देवता की आराधना से मनुष्य को उत्तम मुक्ति मिलती है। सत्य मार्ग के अन्वेष्टा पुण्यात्माओं के लिए दुष्प्राप्य क्या है? कौन सा ऐसा उपाय है जिससे यमलोक गये हुए लोग कालपाश से रहित हों। तब गुरू वशिष्ठ जी ने श्री राम पुत्र कुश जिज्ञासा को देखकर उन्हें ऐसे दिव्य तीर्थ स्थल का वर्णन करते हुए बताया कि ऐसे क्षेत्र व ऐसे तीर्थ की जिज्ञासा एक बार ऋषि-मुनियों के हृदय में भी जागृत हुई तथा उन्होंने भगवान विष्णु से बैकुण्ठ भवन जाकर उनकी स्तुति करते हुए यह विनती की कि प्रभु आप ही अज्ञानीजनों के लिए परम गति है। हे प्रभु! कृपा करके ऐसा सुगम उपाय बतलाइये जिससे महापापी भी पाप मुक्त हो सकें। दान यज्ञ तपयज्ञ के बिना भी किस पुण्य स्थल या किस पुण्य क्षेत्र में जाकर पापों का नाश हो सकता है? हे! देवेश! हे कमलनयन! हे महाविष्णो! भूतल पर ऐसे मुक्ति प्रद तीर्थस्थान का रहस्य बतला पाने में आप ही सक्षम हैं। प्रभु हमारा मार्गदर्शन कीजिए। ऋषि जनों की विनम्र सुन्दर वाणी व उनकी स्तुति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने हिमालय क्षेत्र में स्थित दारूकानन की दिव्य अलौकिक महिमा से उन्हें विदित कराते हुए अपनी योगमाया से इस स्थान के दर्शन कराये तथा भगवान शिव की जटाओं से निकली हुई जटागंगा के समीपस्थ ही पापनाशक परम ज्योतिर्लिंग का भी दर्शन कराया। रुद्र कन्याओं से सेवित एवं तीनों लोकों को पावन करने वाला यागीश्वर क्षेत्र व इसके दर्शन से कृतार्थ हुए ऋषि जनों ने भगवान विष्णु से पुनः प्रार्थना करते हुए कहा कि, “हे प्रभु! आप भक्तों के सिद्विदायक हैं, अब आप कृपा करके भक्तों को सिद्वि प्रदान करने वाले तथा सभी पापों का नाश करने वाले यागीश्वर तीर्थ का विस्तृत वर्णन कर हमें धन्य करें। ऋषियों की वन्दना से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु बोले,हिमालय के सुरम्य तट पर से सरयू का उद्गम हुआ है। उसके दक्षिण भाग में हिमालय की भांति ही शोभायमान दारूकानन है। इस क्षेत्र में सिद्व,गंधर्व,मनुज,देवर्षि तथा महर्षिजनों का भी वास है। उसके दर्शन करने से अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है। स्पर्श से यह फल दस गुना व स्तुति करने से सौ गुना और जिसने स्वयं को शिव को समर्पित कर दिया वह मोक्ष को प्राप्त होता है। —–साभार संकलित ============ जयति पुण्य सनातन संस्कृति,,, जयति पुण्य भूमि भारत,,, सदा सर्वदा सुमंगल,,, ॐ हरिहराय नमः जय भवानी,, जय श्री राम समस्त चराचर प्राणियों एवं सकल विश्व का कल्याण करो प्रभु !!! मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वर। यत्पूजितं मया देव परिपूर्णं तदस्तु में।। श्रीभगवते साम्बशिवाय नमः क्षमायाचनां समर्पयामि,,, कष्ट हरो,,,काल हरो,,, दुःख हरो,,,दारिद्र्य हरो,,, हर हर महादेव

Posted in रामायण - Ramayan

खाते-कमाते-अघाते मनोवृत्ति’ वाले हिंदुओं को पता होना चाहिए कि रामजन्मूभि के लिए 464 सालों में उनके कितने पूर्वजों का बलिदान हुआ है!


खाते-कमाते-अघाते मनोवृत्ति’ वाले हिंदुओं को पता होना चाहिए कि रामजन्मूभि के लिए 464 सालों में उनके कितने पूर्वजों का बलिदान हुआ है!

रामजन्मूभि मुक्ति आंदोलन आज से नहीं 489 वर्षों से चल रहा है। 1528 से 1992 तक 464 सालों में अनगिनत हिंदुओं ने इसके लिए प्राणोत्सर्ग किया है! लेकिन चार वामपंथी लेखकों ने न केवल इसे झुठलाने का प्रयास किया, अपितु यह भी साबित करने का प्रयास किया कि वहां कभी कोई राममंदिर था ही नहीं! राम कभी हुए ही नहीं!

इनमें सबसे बड़ी भूमिका वामपंथी और मुल्लापंथी का मिक्सचर-इरफान हबीब ने निभाया। उसके अलावा रोमिला थापर, आर.एस.शर्मा और डी.एन.झा-यही वो चार वामपंथी इतिहासकार हैं, जिन्होंने हिंदू-मुसलिम के बीच जहर घोलने का कार्य किया और देश को गुमराह किया।

इरफान हबीब खुद को इतिहासकार कहता है, लेकिन इस घटिया व्यक्ति को इतिहास का बेसिक तक पता नहीं है। इसके अनुसार अयोध्या में उस जगह पर कभी राम मंदिर था ही नहीं, यही नहीं, यह लिखता है कि रामकथा का उद्भव 18-19 वीं शताब्दी में हुआ है! यानी राम का नाम इससे पूर्व इस देश ने सुना ही नहीं!

जबकि इलाहाबाद हाईकोर्ट के 5000 पन्ने के निर्णय में रामजन्मूभि विवाद पर सबसे पहले दस्तावेज की जो जानकारी दी गयी है, वह 1858 की है। यह फैजाबाद जिला अदालत का निर्णय है। यानी इस मूढ़ इतिहासकार ने उपलब्ध दस्तावेजों का भी अध्ययन नहीं किया है!

जब इलाहाबाद हाईकोर्ट का निर्णय हिंदुओं के पक्ष में आया, तो इरफान हबीब ने भारत विभाजन की विचारधारा देने वाले अलीगढ़ मुसलियम विवि के इतिहासकारों का फोरम बनाकर एक बुकलेट छापा, जिसमें अदालत के निर्णय को झूठ ठहराने का प्रयास किया गया और ऐसी मनगढंत बातें लिखी गयी, जो उपलब्ध साक्ष्यों से कभी मेल ही नहीं खाती है! इसका एक एक झूठ धाराशायी होता चला गया! यह पतित बिरादरी सुप्रीम कोर्ट के आगामी निर्णय को लेकर इसीलिए डरी हुयी है! बाबरी मसजिद एक्शन कमेटी तो सिर्फ इनका पिछलग्गू है!

मैं इसीलिए कहता हूं कि आमजन अपने इतिहास को पढ़ें, जाने, समझे; अन्यथा केवल चार लोग देश का झूठा इतिहास लिख सकते हैं, आंखों के सामने की चीज को झुठला सकते हैं और समाज में विभाजन का बीज बो सकते हैं; अयोध्या इसका जीवंत उदाहरण है!

मेरी पुस्तक ‘राज-योगी: गोरखनाथ से आदित्यनाथ तक’ संक्षेप में आपको बताती है कि अयोध्या का आंदोलन पिछले 489 सालों से चल रहा है। हर भारतीय और हिंदू को अयोध्या के आंदोलन के बारे में जानना चाहिए, जिसके लिए साधु-संन्यासियों से लेकर सामान्य स्त्री-पुरुषों ने 1528 से 1992 तक लगातार बलिदान दिया है। ‘खाते-कमाते-अघाते मनोवृत्ति’ वाले हिंदुओं को पता चलना चाहिए कि उनके पूर्वजों ने इस केवल एक मंदिर के लिए हंसते-हंसते अनेकों बार अपना प्राण न्यौछावर किया है!

चूंकि आजादी के बाद 1949 में इसके लिए पहला आंदोलन योगी आदित्नाथ के दादा गुरू महंत दिग्विजयनाथ ने शुरू किया, फिर 1980 के दशक में इसकी शुरूआत योगी के गुरू महंत अवेद्यनाथ ने किया और आज नियति ने इस मंदिर के निर्माण का सुनहरा अवसर योगी को दिया है, इसलिए यह आंदोलन इस पुस्तक का हिस्सा है!

आखिर नियति क्यों नाथपंथियों और गोरखपीठ को बार-बार रामजन्मूभि पर ले जाकर खड़ी कर दे रही है? यह नाथपंथ का इतिहास पढकर ही पता चलेगा! #संदीपदेव #SandeepDeo

#योगी #राजयोगी #RajYogi Book link:. http://www.amazon.in/Raj-Yogi-Gorakhnath-Adity…/…/9386606453

Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

कर्नल पुरिहित


Sachin Khare;;

कर्नल पुरिहित ने रिपोर्ट किया था
कि 2005 में भारत का सर्वोच्च
शत्रु >>> दाऊद इब्राहिम <<<

मुम्बई में बैठकर नक्सली और isi
के बीच मध्यस्तता कर रहा था..

इस पर कभी जांच भी नहीं कि
गयी कि कैसे दाऊद इब्राहिम
भारत की भूमि पर रहा,किसने
उसे आश्रय दिया,कौन कौन राजनैतिक व्यक्ति उसके सम्पर्क
में थे,पुलिस को जानकारी थी
किन्तु पुलिस एक प्रकार से
दाऊद के कवच के रूप में
तैनात थी..

भारत मे ये सब कौन होने दे रहा था 🤔🤔

मैंने बताया था आपको की 2005 में कर्नल पुरोहित ने जानकारी दी थी कि दाऊद इब्राहिम मुम्बई में था और नक्सली और isi के बीच
सौदा करवा रहा था..

#update
2005 में अजीत डोवाल को मुंबई में पुलिस ने पकड़ लिया था क्योंकि उनके पास दाऊद
को पकड़ने का पूरा प्लान था..

#10जनपथकाखेल

26/11 को जो होने वाला
था कर्नल पुरोहित को पता
था,लेकिन उनको कुछ दिन पहले चोरों के माफिक भोपाल हवाई अड्डे पर ही पकड़ लिया गया..

जिनको शंका है वो जरा
तारीखे पता कर लें..

#10जनपथकाखेल
26/11 मुम्बई में करना पड़ा क्योंकि गुजरात पुलिस अपने मुख्यमंत्री की सुरक्षा के लिए अत्यंत सक्रिय थी..

याद कीजिये
आतंकियों की बात पहले गुजरात के तट पर ही देखी गयी थी किन्तु वहां दाल नहीं गली तो मुम्बई फारवर्ड किया गया था..

फिर सवाल यह उठता है कि #भगवा_आतंकवाद क्यों गढ़ा गया..

ISI के Lt. Gen. Pasha ने वास्तव में यह शब्द गढ़े थे जिसपर 10 जनपथ सहमत था.. दिग्गी को निर्देश मिले,
मप्र के धार में दिग्गी ने simi
का गढ़ बना रखा था,उधर से स्लीपर सेल मुम्बई पहुंचे,बच्चों के लिए खाने रहने की व्यवस्था की गई..

बच्चे आ रहे थे कर्नल पुरोहित को पता था…
कर्नल को जेल क्यों हुई समझिये..

कर्नल बहुत कुछ जानते थे और जिसकी जानकारी वे लगातार सेना को दे रहे थे, वह जानकारी सेना के एक वरिष्ठतम अधिकारी को पता थी, वहां से 10जनपथ तक खबर हो रही थी..

दिग्गी अपनी तैयारी में थे, कुछ ATS वालों को पहले से फोन पर बातें किया करते थे..

पर फोन पर जिनसे बातें किया करते थे उनको बोत से आने वाले बच्चे नहीं पहचानते थे..

कोऑर्डिनेशन में गड़बड़ हुई, ATS वाले अपनो से मिलने पहुंच गए “टहलते” हुए, बच्चों ने पुलिस की गाड़ी पर ak47की मैगजीन खाली कर दी, फिर गाड़ी को खाली किया और मुंबई सैर पर निकल गए..

उधर दिग्गी पहले ही भगवा आतंकवाद की कहानी पर किताबों की प्रूफ रीडिंग करवा चुके थे, बच्चे मुम्बई में उतरे तो उन्हें कलावे पहना दिए गए, बच्चों को निर्देश था कि जिंदा नहीं पकड़े जाना नही तो अम्मी अब्बू बहन भाई सब ऊपर ही मिलेंगे..

वो तो हवलदार देशभक्त था क्योंकि बच्चे इतनी दूर पहुंच जाएंगे इसकी तैयारी और सोच भी नहीं थी..

बाकी ईश्वर की मर्जी के आगे सब शून्य ही तो है..

कर्नल बहुत कुछ जानते थे, रिपोर्ट भी करते थे, बस कलावे के फेर में उलझते गए..

#10जनपथकाखेल

मालदा से दरभंगा तक नक्सलियों को रुपया पैसा हथियार नेपाल ISI दाऊद चीन कांग्रेस सब पता था कर्नल को किन्तु वो कौन था जो 10 जनपथ को सब बता रहा था..

26/11
#10जनपथकाखेल

एक पुलिस अधिकारी को आतंकियों ने मार दिया, पुलिस अधिकारी को मरणोंपरान्त मेडल से सम्मानित किया गया..

बाद में दिग्गी चुप नही रहे बता बैठे की एक दिन पहले ही दोनों की बात हुई थी, क्यो बताया, क्योंकि यदि नहीं बताते और कहीं गलती से जांच हो जाती तो फोन कॉल डिटेल्स में नाम तो आना ही था..

चौबेजी बनने चले थे छबे जी बनकर लौट आये..
अधिकारी जी बिचारे जबरन में निपट गए..

कर्नल को पैर के अंगूठे से घुटने तक 27 फ्रेक्चर तो बाद में हुए किन्तु यदि अधिकारी जी जीवित होते तो 200+ पूरे शरीर में होते..

26/11
कर्नल पुरोहित
#10जनपथकाखेल
आज आपने सुना होगा कि सबसे पहले शारद पवार ने हिन्दू आतंकवाद की अवधारणा भारत मे दी थी – डीपी त्रिपाठी ने कहा है..

बच्चे आये थे, कलावे पहन कर.. जिंदा नहीं पकड़े जाने, बार बार हमने रिकार्डेड बातचीत में सब सुन है,, पर तुकाराम,, हवलदार तुकाराम तो बहुत दूर चौपाटी के करीब थे, उनको तो बस माँ भारती की सेवा करनी थी..

सो पकड़ लिया कसाब को, जिंदा..
खुद तुकाराम तो वास्तव में शहीद हो गए पर आरएसएस को जीवन दे गए, खुद विषपान कर नीलकण्ठ हो गए और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को अमरता का अमृत दे गए ..

बस यहीं मात खा गया 10 जनपथ..
ये भारतीय नाहक ही देशभक्ति दिखा जाते हैं नहीं तो आज जिन मोदी जी के सामने विपक्ष शून्य हो चुका है उस स्थान पर राऊल बाबा होते, सल्तनत बरकरार रहती..

कर्नल को सब पता था, कर्नल को हटाना जरूरी था..

26/11
कर्नल पुरोहित
#10जनपथकाखेल

क्या आपको पता है कि पाकिस्तान ने साझा जांच के लिए कर्नल से पाकिस्तान में पूछताछ की बात की बार कही थी जिसपर तत्कालीन सरकार क़ानूनी दांवपेंच सुलझाने में लगी थी..

वास्तव में पाकिस्तानी ISI को यह पता करना था कि 10 जनपथ के साथ मिलकर उनके बनाये इतने पुख्ता प्लान के बारे में कर्नल को पता कैसे चला..

पर कर्नल तो सख्त जान निकले, माँ भारती के सच्चे सपूत, शरीर तोड़ दिया उन लोगों ने लेकिन जमीर नहीं तोड़ पाए..

नमन है

26/11
कर्नल पुरोहित
#10जनपथकाखेल

“26/11 – आरएसएस की साजिश” किताब छापी जा चुकी थी क्योंकि तबतक प्लान के अनुसार कोई भी बच्चा जिंदा नहीं बचने वाला था, अधिकारी महोदय भी यही सुनिश्चित करने निकले थे कि अस्पताल से निकलेंगे, हाँथ मिलाएंगे फिर निबटा देंगे पर बच्चे सयाने थे, उन्होंने कन्फ्यूजन में अधिकारी महोदय को निबटा दिया…

मुझे इस बात में कोई शंका नहीं कि भारत के पास एक डोवाल हैं तो साथ ही एक पुरोहित भी है..

डोवाल खुद पाकिस्तान में थे तो कर्नल भारत मे छिपे पाकिस्तान के बीच स्थापित थे.. 👍

26/11
कर्नल पुरोहित
#10जनपथकाखेल

भारतीय सेना की खुफिया विंग के एक प्रमुख अधिकारी को पकड़ लिया गया और उधर खलबली मचा दी गयी ..

इधर बच्चों को लाने की व्यवस्था कर दी गयी और बोट मुम्बई में लगा दी गयी..

2009 में यदि श्रद्धेय आडवाणी जी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार नहीं बनाया गया होता तो उनके लिए 26/11 का समय बहुत कठिन हो सकता था लेकिन चुनाव भी सर पर थे…

वैसे भारतीय समुद्री सीमा सुरक्षा बल जो पाकिस्तानी मछुआरों को 1 किलोमीटर के दायरा पार करते ही पकड़ लेता है उनपर क्या आप शंका कर सकते हैं कि मुम्बई तक बोट पहुंच गई और किसी को भनक तक नहीं लगी..

याद कीजिये, सुबह मैने याद करवाया था वो पाकिस्तानी हवाई जहाज जो पाकिस्तान से उड़ा था और जिसने भारत मे हथियार गिराए थे..

वो हथियार कहाँ गए, वो हवाई जहाज किसी भी रडार की पकड़ में क्यों नहीं आया…

रडार जरूरत के समय कोई तो है जो एक साथ सभी संस्थाओं के रडार बन्द कर देता है.. कौन हो सकता है..

26/11
कर्नल पुरोहित
#10जनपथकाखेल

आज अंत मे बताऊं
करकरे एक अच्छे अधिकारी थे किंतु दिग्विजय सिंह के सम्पर्क में आ गए और कभी जान ही नहीं पाए कि उन्हें केवल प्यादा बना दिया गया था शतरंज के खेल में..

रानी आज भी कटघरे में है, राजा सीमा पार बैठा है, वजीर बाथरूम की फोटो में उलझ गया तो घोड़ा बितका हुआ है.. हांथी को लकवा लगा तो वो और सुस्त हो गया..

इसी बीच सत्ता परिवर्तन हो गया, पूरा खेल बिगड़ गया, सब के सब अपनी बारी की प्रतीक्षा में बैठे हैं कि कब उनके कर्म उनपर लौटकर पड़ते हैं.. पड़ेंगे जरूर..

Sachin Khare,,
★★★★★★★★★★★★

वंदेमातरम,
भारत माता की जय,
हर हर महादेव,
जय भवानी,
जय श्री राम,,

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

एक बार एक गवालन दूध बेच रही थी


_*एक बार एक गवालन दूध बेच रही थी और सबको दूध नाप नाप कर दे रही थी । उसी समय एक नौजवान दूध लेने आया तो गवालन ने बिना नापे ही उस नौजवान का बरतन दूध से भर दिया ।* *वही थोड़ी दूर पर एक साधु हाथ में माला लेकर मनको को गिन गिन कर माल फेर था । तभी उसकी नजर गवालन पर पड़ी और उसने ये सब देखा और पास ही बैठे व्यक्ति से सारी बात बताकर इसका कारण पूछा ।* *उस व्यक्ति ने बताया कि जिस नौजवान को उस गवालन ने बिना नाप के दूध दिया है वह उस नौजवान से प्रेम करती है इसलिए उसने उसे बिना नाप के दूध दे दिया ।* *यह बात साधु के दिल को छू गयी और उसने सोचा कि एक दूध बेचने वाली गवालन जिससे प्रेम करती है तो उसका हिसाब नही रखती और मैं अपने जिस ईश्वर से प्रेम करता हुँ, उसके लिए सुबह से शाम तक मनके गिनगिन कर माला फेरता हुँ। मुझसे तो अच्छी यह गवालन ही है और उसने माला तोड़कर फेंक दी ।* *जीवन भी ऐसा ही है । जहाँ प्रेम होता है वहाँ हिसाब किताब नही होता है, और जहाँ हिसाब किताब होता है वहाँ प्रेम नही होता है , सिर्फ व्यापार होता है……….* 😇😇😇😇

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

एक राजा का दरबार लगा हुआ था।


एक राजा का दरबार लगा हुआ था। क्योंकि सर्दी का दिन था इसलिये राजा का दरवार खुले में बैठा था। पूरी आम सभा सुबह की धूप में बैठी थी। महाराज ने सिंहासन के सामने एक टेबल जैसी कोई कीमती चीज रखी थी। पंडित लोग दीवान आदि सभी दरवार में बैठे थे। राजा के परिवार के सदस्य भी बैठे थे। उसी समय एक व्यक्ति आया और प्रवेश मागा, प्रवेश मिल गया तो उसने कहा मेरे पास दो वस्तुए है मै हर राज्य के राजा के पास जाता हूँ और अपनी बात रखता हूँ कोई परख नही पाता सब हार जाते है और मैं विजेता बनकर घूम रहा हूँ अब आपके नगर में आया हूँ। राजा ने बुलाया और कहा क्या बात है तो उसने दोनो वस्तुये टेबल पर रख दी बिल्कुल समान आकार समान रुप रंग समान प्रकाश सब कुछ नख सिख समान राजा ने कहा ये दोनो वस्तुए एक है तो उस व्यक्ति ने कहा हाँ दिखाई तो एक सी देती है लेकिन है भिन्न। इनमे से एक है बहुत कीमती हीरा और एक है काँच का टुकडा। लेकिन रूप रंग सब एक है कोई आज तक परख नही पाया की कौन सा हीरा है और कौन सा काँच कोई परख कर बताये की ये हीरा है ये काँच। अगर परख खरी निकली तो मैं हार जाउगा और यह कीमती हीरा मैं आपके राज्य की तिजोरी में जमा करवा दूगां। यदि कोई न पहचान पाया तो इस हीरे की जो कीमत है उतनी धनराशि आपको मुझे देनी होगी। इसी प्रकार मैं कई राज्यों से जीतता आया हूँ। राजा ने कहा मैं तो नही परख सकूगा, दीवान बोले हम भी हिम्मत नही कर सकते क्योंकि दोनो बिल्कुल समान है। सब हारे कोई हिम्मत नही जुटा पाया। हारने पर पैसे देने पडेगे इसका कोई सवाल नही, क्योकि राजा के पास बहुत धन है राजा की प्रतिष्ठा गिर जायेगी इसका सबको भय था। कोई व्यक्ति पहचान नही पाया, आखिरकार पीछे थोडी हलचल हुइ एक अंधा आदमी हाथ में लाठी लेकर उठा उसने कहा मुझें महाराज के पास ले चलो, मैंने सब बाते सुनी है और यह भी सुना कि कोई परख नही पा रहा है। एक अवसर मुझें भी दो, एक आदमी के सहारे वह राजा के पास पहुचा। उसने राजा से प्रार्थना की मैं तो जन्म से अंधा हूँ, फिर भी मुझें एक अवसर दिया जाये, जिससे मैं भी एक बार अपनी बुद्धि को परखू और हो सकता है कि सफल भी हो जाऊ और यदि सफल न भी हुआ तो वैसे भी आप तो हारे ही है। राजा को लगा कि इसे अवसर देने में क्या हरज है। राजा ने कहा ठीक है तो उस अंधे आदमी को दोनो चीजे छुआ दी गयी और पूछा गया इसमे कौन सा हीरा है और कौन सा काँच यही परखना है। कथा कहती है कि उस आदमी ने एक मिनट में कह दिया कि यह हीरा है और यह काँच। जो आदमी इतने राज्यों को जीतकर आया था, वह नतमस्तक हो गया और बोला सही है। आपने पहचान लिया धन्य हो आप। अपने वचन के मुताबिक यह हीरा मैं आपके राज्य की तिजोरी में दे रहा हूँ। सब बहुत खुश हो गये और जो आदमी आया था। वह भी बहुत प्रसन्न हुआ कि कम से कम कोई तो मिला परखने वाला। वह राजा और अन्य सभी लोगो ने उस अंधे व्यक्ति से एक ही जिज्ञासा जताई कि तुमने यह कैसे पहचाना कि यह हीरा है और वह काँच। उस अंधे ने कहा की सीधी सी बात है मालिक धूप में हम सब बैठे है। मैने दोनो को छुआ जो ठंडा रहा वह हीरा जो गरम हो गया वह काँच। जीवन में भी देखना जो बात – बात में गरम हो जाये उलझ जाये वह काँच जो विपरीत परिस्थिति में भी ठंडा रहे वह हीरा है।

सयानी कमल

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

अकबर ने तानसेन के सम्मुख उनके गुरु श्री हरिदास


अकबर ने तानसेन के सम्मुख उनके गुरु श्री हरिदास का संगीत सुनने की इच्छा व्यक्त की तानसेन बड़े असमंजस में पड़ गये। श्री हरिदास के दिल्ली आकर बादशाह के सामने गाने की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। यह भी आशा नहीं की जा सकती थी कि वृन्दावन में भी अकबर को सुनाने के लिये वे तैयार हो जावेंगे। इस उलझन में तानसेन ने एक रास्ता निकाला, बादशाह अकबर वृन्दावन गए व साधारण वेश में चुपके से स्वामी जी की कुटिया से बाहर छिप कर बैठ गये। तानसेन अन्दर गये व अपने गुरु को प्रणाम कर गाना गाने लगे। तानसेन ने जान बूझकर गाने में गलती कर दी, अपने इतने पटु शिष्य की गलती सुधारने के लिए गुरु ने स्वयं गाना शुरू किया। इस तरह बादशाह अकबर की इच्छा पूर्ण हुईं कुछ दिनों बाद की बात है। एक बार जब दिल्ली में तानसेन गा रहे थे, तो गाना पूरा हो जाने पर तानसेन से कहा-”तानसेन तुम गाते तो हो, परन्तु तुम्हारे गाने में वह निखार नहीं जो तुम्हारे गुरु के गाने में है। तुम्हारे गुरु का गायन तो बहुत ही उच्च कोटि का है “तुरन्त ही तानसेन ने नम्रता पूर्वक कहा-”जहाँपनाह! इसका कारण यह है कि मैं हिन्दुस्तान के बादशाह के लिये गाता हूँ और मेरे गुरु अखिल विश्व के नियन्ता के लिये गाते हैं।” जो वस्तु परमात्मा को सौंप दी इससे अधिक पवित्र वस्तु क्या हो सकती है? विकरण प्रकाश रासनोई

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

बुद्धिमान कौन


#बुद्धिमान #कौन** एक गाँव में एक अर्थविद रहता था, उसकी ख्याति दूर दूर तक फैली थी। एक बार वहाँ के राजा ने उसे चर्चा पर बुलाया। काफी देर चर्चा के बाद उसने कहा – “महाशय, आप बहुत बडे अर्थ ज्ञानी है, पर आपका लडका इतना मूर्ख क्यों है? उसे भी कुछ सिखायें। उसे तो सोने चांदी में मूल्यवान क्या है यह भी नही पता॥” यह कहकर वह जोर से हंस पडा.. अर्थविद को बुरा लगा, वह घर गया व लडके से पूछा “सोना व चांदी में अधिक मूल्यवान क्या है?” “सोना”, बिना एकपल भी गंवाए उसके लडके ने कहा। “तुम्हारा उत्तर तो ठीक है, फिर राजा ने ऐसा क्यूं कहा-? सभी के बीच मेरी खिल्ली भी उठाई।” लडके के समझ मे आ गया, वह बोला “राजा गाँव के पास एक खुला दरबार लगाते हैं, जिसमें सभी प्रतिष्ठित व्यक्ति भी शामिल होते हैं। यह दरबार मेरे स्कूल जाने के मार्ग मे हि पडता है। मुझे देखते हि बुलवा लेते हैं, अपने एक हाथ मे सोने का व दूसरे मे चांदी का सिक्का रखकर, जो अधिक मूल्यवान है वह ले लेने को कहते हैं ऒर मैं चांदी का सिक्का ले लेता हूं। सभी ठहाका लगाकर हंसते हैं व मजा लेते हैं। ऐसा तकरीबन हर दूसरे दिन होता है।” “फिर तुम सोने का सिक्का क्यों नही उठाते, चार लोगों के बीच अपनी फजिहत कराते हो व साथ मे मेरी भी।” लडका हंसा व हाथ पकडकर अर्थविद को अंदर ले गया ऒर कपाट से एक पेटी निकालकर दिखाई जो चांदी के सिक्कों से भरी हुई थी। यह देख अर्थविद हतप्रभ रह गया। लडका बोला “जिस दिन मैंने सोने का सिक्का उठा लिया उस दिन से यह खेल बंद हो जाएगा। वो मुझे मूर्ख समझकर मजा लेते हैं तो लेने दें, यदि मैं बुद्धिमानी दिखाउंगा तो कुछ नही मिलेगा।” *मूर्ख होना अलग बात है व समझा जाना अलग.. स्वर्णिम मॊके का फायदा उठाने से बेहतर है, हर मॊके को स्वर्ण मे तब्दील करना। *जैसे समुद्र सबके लिए समान होता है, कुछ लोग पानी के अंदर टहलकर आ जाते हैं, कुछ मछलियाँ ढूंढ पकड लाते हैं .. व कुछ मोती चुन कर आत हैं| जर श्री राम

लष्मीकांत वर्शनय

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

राजस्थान का हर जर्रा वीरता आैर शौर्य की कहानियों से अटा पड़ा है।


। राजस्थान का हर जर्रा वीरता आैर शौर्य की कहानियों से अटा पड़ा है। यहां के कण-कण में एेसी हजारों कहानियां हैं जिनमें यहां के वीर योद्घा मातृभूमि की रक्षा आैर आत्म सम्मान के लिए हंसते-हंसते अपने प्राणों की आहूति दे देते हैं। राजस्थान का इतिहास बताता है कि पराक्रमी वीर योद्घा युद्घ की घड़ी में सबसे आगे रहने के लिए हर वक्त तैयार रहते थे। युद्घ में सबसे आगे रहने की एेसी ही एक कहानी है चूण्डावतों आैर शक्तावतों की। मेवाड़ के महाराणा अमर सिंह की सेना में दो राजपूत रेजीमेंट चूण्डावत आैर शक्तावत हमेशा से ही अपनी श्रेष्ठता सिद्घ करने के लिए प्रयासरत रहते थे। मेवाड़ की सेना में चूण्डावतों को ‘हरावल’ यानी युद्घ में सबसे आगे रहने का गौरव प्राप्त था। चूण्डावत जबरदस्त पराक्रमी थे, जिसके कारण उन्हें ये सम्मान दिया गया था। हालांकि शक्तावत उनसे कम पराक्रमी नहीं थे। शक्तावत भी चाहते थे कि हरावल दस्ते का प्रतिनिधित्व वे करें। अपनी इस इच्छा को उन्होंने महाराणा अमर सिंह के सामने रखा आैर कहा कि वे वीरता आैर बलिदान देने में किसी भी प्रकार से वे चूण्डावतों से कम नहीं हैं। शक्तावतों की इस बात से अमरसिंह पशोपेश में पड़ गए। उन्होंने इस पर काफी विचार करने के बाद अपना फैसला सुनाया। उन्होंने कहा कि दोनों दल उन्टाला दुर्ग पर अलग-अलग दिशा से एक साथ आक्रमण करेंगे। इसके बाद जिस दल का योद्घा इस दुर्ग में पहले पहुंचेगा उसे ही युद्घों में सबसे आगे रहने का गौरव मिलेगा। ये किला बादशाह जहांगीर के नियंत्रण में था आैर उस वक्त फतेहपुर का नवाब समस खां वहां का किलेदार था। युद्घ शुरू हुआ आैर शक्तावत दुर्ग के फाटक पर पहुंचकर इसे तोड़ने की कोशिश करने लगे तो चूण्डावतों ने रस्सी के सहारे दुर्ग पर चढ़ने की कोशिश की। कहते हैं कि जब दुर्ग को तोड़ने के लिए शक्तावतों ने हाथी को आगे बढ़ाया गया तो वह सहमकर पीछे हट गया। फाटक पर नुकीले शूल थे, जिसके कारण वह आगे बढ़ने से हिचकिचा रहा था। ये देखकर शक्तावतों के सरदार बल्लू अपना सीना शूलों से अड़ाकर खड़े हो गए। उन्होंने महावत को हाथी को आगे बढ़ाने का हुक्म दिया। महावत से जब एेसे करते न बना तो उन्होंने कठोर शब्दों में एेसा करने के लिए कहा। महावत ने उनका हुक्म मानते हुए हाथी को आगे बढ़ाया आैर सरदार बल्लू के सीने को नुकीले शूलों ने बींध दिया। उन्होंने इस युद्घ में वीरता पार्इ। सरदार बल्लू का बलिदान देखकर वहां पर मौजूद हर कोर्इ उनके आगे नतमस्तक था। चूंण्डावतों ने ये देखा तो उन्हें लगा कि शक्तावत इस तरह से किले में पहले पहुंचने में कामयाब हो जाएंगे। यह देखकर चूण्डावताें के सरदार जैतसिंह चूण्डावत ने अपने सिपाहियों काे वो आदेश दिया जिसे सुनकर आज भी लोगों के रौंगटे खड़े हो जाते हैं। उन्होंने अपने सैनिकों से कहा कि दुर्ग में पहले पहुंचने की शर्त को पूरा करने के लिए मेरे सिर को काटकर किले के अंदर फेंक दो। कहते हैं कि जब उनके साथी एेसा करने को तैयार नहीं हुए तो उन्हेांने खुद अपना सिर काटकर किले में फेंक दिया। शक्तावत जब फाटक तोड़कर अंदर घुसे तो उन्हें वहां पर चूडावतों के सरदार जैतसिंह चूडावत का मस्तक किले के अंदर दिखा। चूडावतों ने हरावल का अधिकार अपने पास रखा। ये युद्घ दिखाता है कि राजस्थान की मिट्टी में पैदा होने वाले वीर अपने जीवन के लिए नहीं बल्कि अपने सम्मान के लिए जीते हैं आैर इसके लिए वे स्वयं का बलिदान देने से भी पीछे नहीं हटते।