😎 ❤️❤️❤️❤️❤️सबक❤️❤️❤️❤️❤️
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रामलाल के बेटे दिनेश की तीसरी सगाई की बात चल रही थी। पहिले दो बार सगाई टूट जाने के कारण वह इस बार बहुत चौकस था। पहिले जो कुछ हुआ उससे सबक ले पाँव फूँक-फूँक कर रख रहा था।
“लड़का पढ़ा-लिखा है और सरकारी नौकरी में भी है। अपने परिवार और लड़के की नौकरी के स्टेट्स के अनुसार दहेज ज़रूर लेना है। हमारे घर टी.वी., फ्रिज़, ए.सी., कार वगैरा सब है, इसलिए दहेज में नकद रकम ही चाहिए।” दीनदयाल ने अपने जीवन-स्तर को बयान करते हुए दहेज की माँग रख दी।
“ठीक है, जैसी आपकी इच्छा। हम सामान न देंगे, नकद पैसे दे देंगे, बात तो एक ही है।”
लड़की वालों ने सोचा, लड़का सुंदर है, पढ़ा लिखा है और अच्छी नौकरी पर भी लगा है। घर भी देखने योग्य है। क्या हुआ अगर लड़के का बाप जरा लालची है। एक बार खर्च कर अगर लड़की सुखी रहती है तो नकदी देने में भी कोई हरज नहीं है। बातचीत के बाद फैसला हुआ कि लड़की वाले दहेज के रूप में पाँच लाख रुपये नकद देंगे।
निश्चित दिन पर दीनदयाल लड़के की बारात लेकर लड़की वालों के घर पहुँच गया।
“जल्दी करो। लड़के को फेरों पर बिठाओ, लग्न का समय निकलता जा रहा है।” पंडित जल्दी कर रहा था।
“पहले दहेज की रकम, फिर फेरे।”
दीनदयाल पहले नकदी लेने पर अड़ गया। लड़की वालों ने रुपयों का बैग पकड़ाया तब शादी की रस्में शुरु हुईं।
समधियों से बारात की अच्छी खातिरदारी करवा, डोली लेकर मुड़ने लगे तो दीनदयाल ने रुपयों वाला बैग लड़की के पिता को पकड़ाते हुए कहा, “यह लो अपनी अमानत। आपका माल आपको लौटा रहा हूँ।”
लड़की का बाप घबराकर दीनदयाल के मुँह की ओर देखने लगा। वह डर रहा था कि यह लालची व्यक्ति अब कोई और माँग रखना चाहता है।
दीनदयाल ने स्थिति को स्पष्ट करते हे कहा, “मेरे बेटे की सगाई दो बार टूट चुकी थी। कारण एक ही था कि मैं दहेज रहित शादी करना चाहता था। इससे लड़की वालों को यह संदेश गया कि शायद लड़के में कोई नुक्स है। इसले सगाई टूट गई। मैं तीसरी बार सगाई टूटने नहीं देना चाहता था। इसलिए ही मजबूरी में मुझे दहेज माँगना पड़ा। अब शादी हो चुकी है, इसलिए मैं दहेज लौटा रहा हूँ।”
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संजय गुप्त