Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

🌷🍁🎄एक बार की बात है कि श्री कृष्ण और अर्जुन कहीं जा रहे थे ।🌷🍁🎄

🌷🍁🎄रास्ते में अर्जुन ने श्री कृष्ण से पूछा कि प्रभु – एक जिज्ञासा है मेरे मन में, अगर आज्ञा हो तो पूछूँ ?🌷🍁🎄

🌷🍁🎄श्री कृष्ण ने कहा – अर्जुन , तुम मुझसे बिना किसी हिचक , कुछ भी पूछ सकते हो ।🌷🍁🎄

🌷🍁🎄तब अर्जुन ने कहा कि मुझे आज तक यह बात समझ नहीं आई है कि दान तो मै भी बहुत करता हूँ परंतु सभी लोग कर्ण को ही सबसे बड़ा दानी क्यों कहते हैं ?🌷🍁🎄

🌷🍁🎄यह प्रश्न सुन श्री कृष्ण मुस्कुराये और बोले कि आज मैं तुम्हारी यह जिज्ञासा अवश्य शांत करूंगा ।🌷🍁🎄

🌤श्री कृष्ण ने पास में ही स्थित दो पहाड़ियों को सोने का बना दिया ।

🌷🍁🎄इसके बाद वह अर्जुन से बोले कि हे अर्जुन इन दोनों सोने की पहाड़ियों को तुम आस पास के गाँव वालों में बांट दो ।🌷🍁🎄

🌷🍁🎄अर्जुन प्रभु से आज्ञा ले कर तुरंत ही यह काम करने के लिए चल दिया ।उसने सभी गाँव वालों को बुलाया ।उनसे कहा कि वह लोग पंक्ति बना लें अब मैं आपको सोना बाटूंगा और सोना बांटना शुरू कर दिया ।🌷🍁🎄

🌷🍁🎄गाँव वालों ने अर्जुन की खूब जय जयकार करनी शुरू कर दी ।अर्जुन सोना पहाड़ी में से तोड़ते गए और गाँव वालों को देते गए ।🌷🍁🎄

🌷🍁🎄लगातार दो दिन और दो रातों तक अर्जुन सोना बांटते रहे ।उनमे अब तक अहंकार आ चुका था ।गाँव के लोग वापस आ कर दोबारा से लाईन में लगने लगे थे ।इतने समय पश्चात अर्जुन काफी थक चुके थे ।🌷🍁🎄

🌷🍁🎄जिन सोने की पहाड़ियों से अर्जुन सोना तोड़ रहे थे, उन दोनों पहाड़ियों के आकार में जरा भी कमी नहीं आई थी ।🌷🍁🎄
🌷🍁🎄उन्होंने श्री कृष्ण जी से कहा कि अब मुझसे यह काम और न हो सकेगा ।🌷🍁🎄

🌷🍁🎄मुझे थोड़ा विश्राम चाहिए ।प्रभु ने कहा कि ठीक है तुम अब विश्राम करो और उन्होंने कर्ण बुला लिया ।उन्होंने कर्ण से कहा कि इन दोनों पहाड़ियों का सोना इन गांव वालों में बांट दो ।🌷🍁🎄

🌷🍁🎄कर्ण तुरंत सोना बांटने चल दिये ।🌷🍁🎄

🌷🍁🎄उन्होंने गाँव वालों को बुलाया और उनसे कहा – यह सोना आप लोगों का है , जिसको जितना सोना चाहिए वह यहां से ले जाये ।ऐसा कह कर कर्ण वहां से चले गए ।यह देख कर अर्जुन ने कहा कि ऐसा करने का विचार मेरे मन में क्यों नही आया ?🌷🍁🎄

🌷🍁🎄⚜श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को शिक्षा⚜🌷🍁🎄

🌷🍁🎄इस पर श्री कृष्ण ने जवाब दिया कि तुम्हे सोने से मोह हो गया था ।तुम खुद यह निर्णय कर रहे थे कि किस गाँव वाले की कितनी जरूरत है ।🌷🍁🎄

🌷🍁🎄उतना ही सोना तुम पहाड़ी में से खोद कर उन्हे दे रहे थे ।🌷🍁🎄
🌷🍁🎄तुम में दाता होने का भाव आ गया था ।दूसरी तरफ कर्ण ने ऐसा नहीं किया ।वह सारा सोना गाँव वालों को देकर वहां से चले गए ।वह नहीं चाहते थे कि उनके सामने कोई उनकी जय जयकार करे या प्रशंसा करे ।🌷🍁🎄

🌷🍁🎄उनके पीठ पीछे भी लोग क्या कहते हैं उस से उनको कोई फर्क नहीं पड़ता ।यह उस आदमी की निशानी है जिसे आत्मज्ञान हांसिल हो चुका है ।इस तरह श्री कृष्ण ने खूबसूरत तरीके से अर्जुन के प्रश्न का उत्तर दिया , अर्जुन को भी अब अपने प्रश्न का उत्तर मिल चुका था ।🌷🍁🎄

🌷🍁🎄⚜निष्कर्ष⚜🌷🍁🎄

🌷🍁🎄दान देने के बदले में धन्यवाद या बधाई की उम्मीद करना भी उपहार नहीं सौदा कहलाता है ।🌷🍁🎄

🌷🍁🎄यदि हम किसी को कुछ दान या सहयोग करना चाहते हैं तो हमे यह बिना किसी उम्मीद या आशा के करना चाहिए ।🌷🍁🎄

🏵 ताकि यह हमारा सत्कर्म हो, न कि हमारा अहंकार🏵
💜 राधे 💖 राधे 💛 राधे 💚 💗 राधे 💚 राधे ❤ राधे 💙 राधे 💚 💗 राधे
.^.
राधे ;(-_-): राधे
‘\””’.\’=’-.
राधे \/..\,’ राधे
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राधे (\ /. राधे
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राधे ,,; ‘,* राधे
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…..🌹 जय श्री कृष्ण 🌹…..
‼ 💛 राधे 💙 राधे 💚 राधे 💜 !!
!!💚 राधे 💖 राधे ❤ राधे 💛 ‼
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राधे 💚 💗*🏵जय जय श्री राधेकृष्ण🏵💗 राधे
🏵🌷🍁🎄🌹🌷🍁🎄🌹🌷🍁🎄🌹🌷🍁🎄🌹
🌷🍁🎄*श्री राधे राधे बोलना तो पड़ेगा जी*🌷🍁🎄
🌷🍁🎄🌷🏵 🍁🎄🏵 🌷🍁🎄🏵 🌷

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🌷🍁🎄एक बार की बात है कि श्री कृष्ण और अर्जुन कहीं जा रहे थे ।🌷🍁🎄

🌷🍁🎄रास्ते में अर्जुन ने श्री कृष्ण से पूछा कि प्रभु – एक जिज्ञासा है मेरे मन में, अगर आज्ञा हो तो पूछूँ ?🌷🍁🎄

🌷🍁🎄श्री कृष्ण ने कहा – अर्जुन , तुम मुझसे बिना किसी हिचक , कुछ भी पूछ सकते हो ।🌷🍁🎄

🌷🍁🎄तब अर्जुन ने कहा कि मुझे आज तक यह बात समझ नहीं आई है कि दान तो मै भी बहुत करता हूँ परंतु सभी लोग कर्ण को ही सबसे बड़ा दानी क्यों कहते हैं ?🌷🍁🎄

🌷🍁🎄यह प्रश्न सुन श्री कृष्ण मुस्कुराये और बोले कि आज मैं तुम्हारी यह जिज्ञासा अवश्य शांत करूंगा ।🌷🍁🎄

🌤श्री कृष्ण ने पास में ही स्थित दो पहाड़ियों को सोने का बना दिया ।

🌷🍁🎄इसके बाद वह अर्जुन से बोले कि हे अर्जुन इन दोनों सोने की पहाड़ियों को तुम आस पास के गाँव वालों में बांट दो ।🌷🍁🎄

🌷🍁🎄अर्जुन प्रभु से आज्ञा ले कर तुरंत ही यह काम करने के लिए चल दिया ।उसने सभी गाँव वालों को बुलाया ।उनसे कहा कि वह लोग पंक्ति बना लें अब मैं आपको सोना बाटूंगा और सोना बांटना शुरू कर दिया ।🌷🍁🎄

🌷🍁🎄गाँव वालों ने अर्जुन की खूब जय जयकार करनी शुरू कर दी ।अर्जुन सोना पहाड़ी में से तोड़ते गए और गाँव वालों को देते गए ।🌷🍁🎄

🌷🍁🎄लगातार दो दिन और दो रातों तक अर्जुन सोना बांटते रहे ।उनमे अब तक अहंकार आ चुका था ।गाँव के लोग वापस आ कर दोबारा से लाईन में लगने लगे थे ।इतने समय पश्चात अर्जुन काफी थक चुके थे ।🌷🍁🎄

🌷🍁🎄जिन सोने की पहाड़ियों से अर्जुन सोना तोड़ रहे थे, उन दोनों पहाड़ियों के आकार में जरा भी कमी नहीं आई थी ।🌷🍁🎄
🌷🍁🎄उन्होंने श्री कृष्ण जी से कहा कि अब मुझसे यह काम और न हो सकेगा ।🌷🍁🎄

🌷🍁🎄मुझे थोड़ा विश्राम चाहिए ।प्रभु ने कहा कि ठीक है तुम अब विश्राम करो और उन्होंने कर्ण बुला लिया ।उन्होंने कर्ण से कहा कि इन दोनों पहाड़ियों का सोना इन गांव वालों में बांट दो ।🌷🍁🎄

🌷🍁🎄कर्ण तुरंत सोना बांटने चल दिये ।🌷🍁🎄

🌷🍁🎄उन्होंने गाँव वालों को बुलाया और उनसे कहा – यह सोना आप लोगों का है , जिसको जितना सोना चाहिए वह यहां से ले जाये ।ऐसा कह कर कर्ण वहां से चले गए ।यह देख कर अर्जुन ने कहा कि ऐसा करने का विचार मेरे मन में क्यों नही आया ?🌷🍁🎄

🌷🍁🎄⚜श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को शिक्षा⚜🌷🍁🎄

🌷🍁🎄इस पर श्री कृष्ण ने जवाब दिया कि तुम्हे सोने से मोह हो गया था ।तुम खुद यह निर्णय कर रहे थे कि किस गाँव वाले की कितनी जरूरत है ।🌷🍁🎄

🌷🍁🎄उतना ही सोना तुम पहाड़ी में से खोद कर उन्हे दे रहे थे ।🌷🍁🎄
🌷🍁🎄तुम में दाता होने का भाव आ गया था ।दूसरी तरफ कर्ण ने ऐसा नहीं किया ।वह सारा सोना गाँव वालों को देकर वहां से चले गए ।वह नहीं चाहते थे कि उनके सामने कोई उनकी जय जयकार करे या प्रशंसा करे ।🌷🍁🎄

🌷🍁🎄उनके पीठ पीछे भी लोग क्या कहते हैं उस से उनको कोई फर्क नहीं पड़ता ।यह उस आदमी की निशानी है जिसे आत्मज्ञान हांसिल हो चुका है ।इस तरह श्री कृष्ण ने खूबसूरत तरीके से अर्जुन के प्रश्न का उत्तर दिया , अर्जुन को भी अब अपने प्रश्न का उत्तर मिल चुका था ।🌷🍁🎄

🌷🍁🎄⚜निष्कर्ष⚜🌷🍁🎄

🌷🍁🎄दान देने के बदले में धन्यवाद या बधाई की उम्मीद करना भी उपहार नहीं सौदा कहलाता है ।🌷🍁🎄

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मुकेश अग्नि

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एक सच्ची घटना सुनिए
एक संत की

वे एक बार वृन्दावन गए
वहाँ कुछ दिन घूमे फिरे
दर्शन किए

जब वापस लौटने का मन किया तो सोचा
भगवान को भोग लगा कर कुछ प्रसाद लेता चलूँ

संत ने रामदाने के कुछ लड्डू ख़रीदे
मंदिर गए
प्रसाद चढ़ाया
और आश्रम में आकर सो गए
सुबह ट्रेन पकड़नी थी

अगले दिन ट्रेन से चले
सुबह वृन्दावन से चली ट्रेन को मुगलसराय स्टेशन तक आने में शाम हो गयी

संत ने सोचा
अभी पटना तक जाने में तीन चार घंटे और लगेंगे
भूख लग रही है
मुगलसराय में ट्रेन आधे घंटे रूकती है
चलो हाथ पैर धोकर संध्या वंदन करके कुछ पा लिया जाय

संत ने हाथ पैर धोया
और लड्डू खाने के लिए डिब्बा खोला
उन्होंने देखा
लड्डू में चींटे लगे हुए थे
उन्होंने चींटों को हटाकर एक दो लड्डू खा लिए
बाकी बचे लड्डू प्रसाद बाँट दूंगा ये सोच कर छोड़ दिए

पर कहते हैं न
संत ह्रदय नवनीत समाना

बेचारे को लड्डुओं से अधिक उन चींटों की चिंता सताने लगी

सोचने लगे
ये चींटें वृन्दावन से इस मिठाई के डिब्बे में आए हैं
बेचारे इतनी दूर तक ट्रेन में मुगलसराय तक आ गए
कितने भाग्यशाली थे
इनका जन्म वृन्दावन में हुआ था
अब इतनी दूर से पता नहीं कितने दिन
या कितने जन्म लग जाएँगे
इनको वापस पहुंचने में
पता नहीं ब्रज की धूल इनको फिर कभी मिल भी पाएगी या नहीं
मैंने कितना बड़ा पाप कर दिया
इनका वृन्दावन छुड़वा दिया

नहीं
मुझे वापस जाना होगा

और संत ने उन चींटों को वापस उसी मिठाई के डिब्बे में सावधानी से रखा
और वृन्दावन की ट्रेन पकड़ ली

उसी मिठाई की दूकान के पास गए
डिब्बा धरती पर रखा
और हाथ जोड़ लिए

मेरे भाग्य में नहीं कि तेरे ब्रज में रह सकूँ
तो मुझे कोई अधिकार भी नहीं कि जिसके भाग्य में ब्रज की धूल लिखी है
उसे दूर कर सकूँ

दूकानदार ने देखा
तो आया
महाराज चीटें लग गए तो कोई बात नहीं
आप दूसरी मिठाई तौलवा लो

संत ने कहा
भईया मिठाई में कोई कमी नहीं थी
इन हाथों से पाप होते होते रह गया
उसी का प्रायश्चित कर रहा हूँ

दुकानदार ने जब सारी बात जानी तो उस संत के पैरों के पास बैठ गया
भावुक हो गया
इधर दुकानदार रो रहा था
उधर संत की आँखें गीली हो रही थीं

बात भाव की है
बात उस निर्मल मन की है
बात ब्रज की है
बात मेरे वृन्दावन की है
बात मेरे नटवर नागर और उनकी राधारानी की है
बात मेरे कृष्ण की राजधानी की है

बूझो तो बहुत कुछ है
नहीं तो बस पागलपन है
बस एक कहानी है

प्रताप राज

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एक कहानी
एक बार की बात है सम्राट अकबर एवं बीरबल ने मार्ग मेँ किसी ब्राह्मण को भीख माँगते देखा।
राजा ने बीरबल से पूछा-यह क्या है?
बीरबल ने तत्काल कहा-महाराज! भूला हुआ है।
अकबर ने कहा-तो इस पण्डित को रास्ते पे लाओ।
बीरबल ने कहा-आ जायेगा राजन! पर समय लगेगा। कृप्या तीन माह की अवधि दीजिये।
राजा ने स्वीकृति दे दी।
शाम को बीरबल ब्राह्मण के घर गया और ब्राह्मण से विद्वान होकर भीख मांगने का कारण पूछा। ब्राह्मण के बताने पर बीरबल ने कहा-कल से प्रात: आप चार बजे जाग जायँ और मेरे लिये दो घण्टे राम नाम का जप करेँ, शाम को एक स्वर्ण मुद्रा रोज आपके घर पहुँचा दी जायेगी।
ब्राह्मण को पहले तो यह सुन कर आश्चर्य हुआ , किँतू मन ही मन सोचा कि ऐसा करने मेँ क्या हर्ज है। जप करना स्वीकार कर लिया। पिछले जन्म के कुल के सँस्कार शुभ थे। चार बजे उठने और जप करने मेँ कोई कठिनाई नहीँ हुई। रोज शाम को एक स्वर्ण मुद्रिका मिल जाने से धीरे धीरे ब्राह्मण धनवान हो गया। अभ्यास करते करते राम नाम के दिव्य सँस्कारोँ ने दबे सुसंस्कारो को उभारा। एक दिन ब्राह्मण ने सोचा कि यदि बीरबल के लिये जपने से राम नाम ने धनाढ्य बना दिया तो स्वयंके लिये जपने से तो लोक और परलोक दोनो धनाढ्य हो जायेँगे। ऐसा सोच कर रोज दो घण्टे खुद के लिये जपने लगे। राम नाम की ऐसी कृपा हुई की ब्राह्मण की कामनायेँ खत्म होने लगी और एक दिन ब्राह्मण ने बीरबल से कहा-आप कृप्या सोने की मुद्रिका ना भेजेँ मैँ अब केवल अपने लिये ही जप करूगा। राम नाम की उपासना ने मेरा विवेक एवं वैराग्य जाग्रत कर दिया, प्रभु भक्ति की लग्न लग गयी।
एक दिन ब्राहमण ने पत्नी से कहा-ईश्वर कृपा से अपनी गरीबी दूर हो गयी। सब ठीक हो गया अब आप अनुमति देँ तो मैँ एकान्त मेँ रहकर जप साधना करना चाहता हूँ। पत्नी साध्वी थी अत: उसने स्वीकृति दे दी।
अब ब्राह्मण देवता सतत रामनामोपासनासे राम रंगमेँ रंग गये। साधना फलने फूलने लगी। लोग दर्शनार्थ पधारने लगे धीरे धीरे बात राजा तक पहुँची तो राजा भी एक दिन बीरबल के साथ महात्मा के दर्शन करने पधारे। वापिस लौटते समय अकबर ने कहा-महात्मन!मैँ भारत का बादशाह अकबर आपसे प्रार्थना करता हूँ-यदि आपको किसी चीज की जरूरत पड़े तो नि:संकोच संदेश भिजवाईयेगा, तत्काल मिलेगी। ब्राह्मण देवता मुस्कुराये ओर बोले-राजन!आपके पास ऐसा कुछ नही जिसकी मुझे जरूरत हो। हाँ यदि आपको कुछ चाहिये तो माँगने मेँ संकोच मत करना।
बीरबल ने कहा-राजन!आपने पहचाना इनको, ये वही ब्राह्मण है जो तीन माह पूर्व भीख माँग रहे थे। राम नाम के जप ने एक भिखारी को सच्चा दाता बना दिया है। यह सुनकर अकबर बड़े हैरान हुये।
ये है राम-नाम के जप का प्रभाव जो भीखारी से सच्चा दाता बना दे।
मेरा सब कुछ मेरा राम प्रेम से बोलिए जय श्रीराम जय हो मेरे प्रिय राम

मुकेश अग्नि

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धीरु भाई अम्बानी के विषय में एक बड़ा ही प्रेरक प्रसंग पढा था—-
हुआ यूं कि धीरु भाई एक मिटिंग के सिलसिले में कार से कहीं जा रहे थे; रास्ते में एक जगह भयानक तुफानी हवा और बारिस होने लगी; कई लोग सडक के किनारे अपनी गाडी लगाकर सीसे बंद करके बैठे थे;
धीरु भाई के ड्राइवर ने कहा– सर क्या किया जाए
धीरु भाई ने कहा-; धीरे धीरे आगे बढ़ते रहो
कुछ दूर चलने के बाद तूफान और तेज हो गया
ड्राइवर ने कहा – सर अब गाडी लगा लेनी चाहिए
धीरु भाई ने कहा- नहीं धीरे-धीरे आगे बढ़ते रहो
कुछ दूर चलने के बाद तूफान छट गया;
धीरु भाई ने कहा — देखा हमलोग धीरे-धीरे चल के तूफान से बाहर आ गये ; पीछे देखो जो लोग रुक गए वो अभी भी तूफान में फंसे हैं; अब उनका भगवान ही मालिक है; ईश्वर उनकी रक्षा करें
इस प्रेरणादायी प्रसंग के उपर आए लोगों के कमेंट और भी मजेदार थे—————
बहोत शानदार
यूं ही नहीं कोई चैंपियन बन जाता
जो रिस्क लेता है वही आगे बढता है
डर के आगे जीत है
और भी एक से बढ़कर एक
अब इसी कहानी को पलट दीजिए—
मान लीजिए अगर तूफान की वजह से गाडी पलट जाती ; धीरु भाई का हाथ पैर टूट जाता
अब यही लोग कहते–
चूइतिया है साला; क्या जरूरत थी तूफान में गाडी चलाने की
अभी तो बच गया; आगे से ऐसा करेगा तो मरेगा स्याला
ऐसे चूइतियो का यही हाल होता है
और चलाओ तूफान में गाडी
अबे आधा घण्टा रुक जाता तो क्या बिगड जाता


युवराज सिंह तो याद ही होगा आपको
छह गेंद पर छह छक्के लगाए थे
विश्व कप जिताने में बहोत बड़ी भूमिका निभाई
लोगों की प्रतिक्रिया देखिए—-
शेर है युवराज ; गजब का बल्लेबाज है; गजब का टैलेंट है उसके अंदर; और भी बहुत कुछ
उसी युवराज की वजह से भारत एक मैच हार गई
फिर यही लोग– मारो भोसईवाले को; निखट्टू है; किसी काम का नहीं ; किसी लायक नहीं ; हटाओ स्याले को


हार जीत जीवन का एक हिस्सा है; हर हार कुछ सीख देती है; आगे का रास्ता बनाती है
आज सुबह सै वो लोग भी मोदी शाह को राजनीति सिखा रहे जिन्हें राजनीति का र नहीं पता
सब लोग ज्ञान देने में लगे हैं मोदी को ऐसे करना चाहिए ऐसे नहीं करना चाहिये ; यहां जाना चाहिए यहां नहीं जाना चाहिए;
ज्ञान कौन दे रहा है ;जिसकी औकात एक पार्षद बनने की नहीं
और ज्ञान किसको दे रहे; जो कि खुद में राजनीति का महाग्रंथ है;
चलिए बिरोधी अगर ये सारी बातें करते तो कोई बात नहीं ; पर बिरोध वो लोग कर रहे जो खुद को भाजपाई कहते हैं; भाजपा सपोर्टर बनते है
मजब के सपोर्टर हो भाई ; अरे अगर तुम्हे लग रहा कि मोदी हिंदू बिरोधी हो गया; मुस्लिमों का भला कर रहा तो खुल के बोलिए ना कि भइया हम अखिलेश यादव के साथ है; मायावती के साथ हैं; कांग्रेस के साथ हैं ; ये लोग हैं हिंदू हृदय सरकार
अगर आप को लगता मोदी देश के लिए अच्छा नहीं तो खुल के कहिए कि आपके लिए सपा बसपा कांग्रेस विकास करने वाली पार्टी है
खुल के बोलिए कि हमें भाजप नहीं फलाना पार्टी पसंद है
मोदी नहीं फलाने नेता बढिया है
पर अगर खुद को भाजपाई कहते हैं तो थोड़ा सा शर्म कर लीजिए; अच्छे समय में ताली बजाओगे और बुरे समय में दुम दबा के भाग लोगे
अरे शर्म करो तुमसे लाख गुना अच्छे सपा बसपाई कांगी; बामी और आपिए हैं; कम से कम अच्छे बुरे हर समय में साथ तो खडे रहते हैं

उषा गोहिल

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एक राजा बड़ा ही तामसिक प्रवृत्ति का था और उस राजा का अधिकाँश समय निद्रा और भोग विलास मे ही व्यतीत होता था ।

पर उसके जीवन मे एक बड़ी अच्छाई थी की वो जब तक गौ माता को अपने हाथों से रोटी न दे देता तब तक वो चाहे भूखा मर जाता पर कुछ भी ग्रहण नही करता था ।

एक बार शिकार खेलते खेलते घनघोर जंगल मे जा पहुँचा उसके साथ उसके कुछ साथी भी थे पूरी रात वो जंगल मे इधर उधर भटकते रहे पर रास्ता न मिला ।

फिर वो उसी जंगल मे सो गये जब सुबह हुई तो चलते चलते बहुत दुर निकल गये और सभी भुख से व्याकुल थे उधर से कोई सन्तों का दल आ रहा था सभी उनके पास पहुँचे सन्तों के पास खाने की कुछ सामग्री थी तो सन्तों ने उन्हे खाने को दिया पर राजा ने कहा हॆ महात्माओं मेरे जीवन मे अनेक दुर्गुण है पर मेरा एक नियम है की जब तक मैं अपने हाथों से गौ माता को रोटी न खिलाऊँ तब तक मैं कुछ ग्रहण नही करूँगा और फिर वो सभी जैसे तैसे अपने नगर पहुँचे फिर राजा ने गौ माता को रोटी खिलाई और फिर स्वयं ने भोजन ग्रहण किया ।

और इस दिन के बाद राजा को रोज एक स्वपन आने लगा फिर राजा किसी पहुँचे हुये सन्त के पास गये और राजा ने कहा हॆ महात्मन मैं रोज एक स्वपन देखता हुं
की तीन व्यक्ति घोडे के साथ चल रहे है जिसमे पहला व्यक्ति घोड़े पर बैठकर आनन्दमय मुद्रा मे जा रहा है और वो घोड़े को कोडो से पिट रहा है और दूसरा जो है वो घोड़े पर बैठा है पर वो नीचे गिरता है फिर घोड़े पर बैठता है और घोड़े की कौडे से पिटाई करता है और तीसरा जो व्यक्ति है उसे घोड़े खींच रहे है और वो लहूलुहान हो रहा है कभी घोड़ा इधर भगाये तो कभी उधर भगाये और घोड़ा भी रो रहा है और वो व्यक्ति भी रो रहा है ।

पर सबसे बड़े आश्चर्य की बात ये है की जिन घोडो की पिटाई हो रही है वो बड़े ही आनंदमुद्रा मे चल रहे है और वो घुड़सवार भी आनन्द मे है और जो कभी नीचे गिरता कभी वापिस बैठता वो थोड़ा सा दुःखी होते है पर जैसे ही घोड़े को कौडे लगाता है घोड़ा और घुड़सवार दोनो खुश हो जाते है और तीसरा जो है घोड़े को बहुत ही लाड़प्यार से रख रहा है पर घोडा भी दुःखी और घोड़ेवाला भी दुःखी है ये क्या रहस्य है देव आप मुझ पर दया कीजिये और समझाये नाथ ।

महात्माजी ने कहा
हे राजन तीन तरह की प्रवर्तियां और तीन तरह के व्यक्ति है ।

सात्विक, राजसिक और तामसिक

जिनके जीवन मे सात्विकता की प्रधानता है वो संयम रूपी कौडे से इन्द्रिय रूपी घोडो की पिटाई करते है और जो इन्द्रियों पर राज करते है वही आनन्द मे है घोड़ा और घुड़सवार दोनो ही आनन्द मे है ।

दूसरे वो है जो इंद्रियों पर विजय प्राप्त करने की पूरी पूरी कोशिश कर रहे है और वो भी संयम रूपी कौडे से पिटाई कर रहे है ।

और तीसरे वो जिनके जीवन मे तामसिकता प्रधान है जो भोग और विलास मे डूबे हुये है इंद्रियों ने उन्हे अपना गुलाम बना रखा है और ऐसे लोग रोते रोते ही चले जाते है ।

राजा- क्षमा हॆ नाथ पर मैं तो एक तामसिक प्रवर्ति का मानव हुं और ऐसा दिव्य स्वपन मुझे कैसे आया ?

महात्मा जी – हॆ राजन आपने जो गाय को रोटी देकर फिर कुछ खाने का जो नियम बना रखा है और परीक्षा काल मे भी जब आप अपने नियम के प्रति अडिग रहे तो,
भगवान ने आप पर दया करके आपको ये स्वपन दिखाया है ।

महात्मा जी ने राजा को एक पाठ पढाया।

देखना इन्द्रियों के न घोड़े भगे,
इनपे दिन रात संयम के कौडे पड़े ।

मन को विषयों से तुम हटाते चलो,
कृष्ण गोविन्द गोपाल गाते चलो ।

साधना- मार्ग पे आगे बढ़ते चलो,
कृष्ण गोविन्द गोपाल गाते चलो ।

राह मे आयेगी बाधायें बहुत,
पर यु हार मान के रुकना कही,,
बहती नदी की तरह तुम लड़ते चलो ।
कृष्ण गोविन्द गोपाल गाते चलो ।।

देखना इन्द्रियों के न घोड़े भागे,
इन पे दिन रात संयम के कौडे पड़े ।।

उस दिन से राजा ने जीवन को सात्विकता की ओर मोड़ दिया,
मित्रों राजा था तो तामसिक पर उसने अथक प्रयासों से पूरे जीवन को बदलकर रख दिया ।

नियम के बिना कुछ नही है जीवन मे एक सारगर्भित नियम जरूर बनाना और उस नियम को कभी भंग मत होने देना फिर देखना एक दिन वो हमारे बन्द भाग्य के दरवाजे कैसे खोलता है ।।

मुकेश अग्नि

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एक भावपूर्ण कथा-

मुंन्डा (हमारी गाय का नाम) सोलह बरस की हो चुकी थी। जब भी जंगल से चर कर आती तो आवाज देकर बताने का प्रयास करती कि- मैं आ गयी। मुझे मेरे खुंटे पर बांध दो।
पिछले दस बारह साल से लगातार दुध दे रही थी। सुबह सुबह जंगल छोड़ के आना पड़ता था बस। वापस खुद आती थी। कभी भी किसी गांव वाले ने शिकायत ना कि होगी कि तुम्हारी गाय ने हमारे खेत/ खलियान मे घुस कर ये नुकसान कर दिया। चार पाँच बछडे भी हुए। पर धरती पर आठ दस महीने से ज्यादा नही टिक पाए। अब वह बुढी हो चुकी थी। गर्भधारण नही कर पायी। धीरे धीरे दुध घटते घटते बंद ही हो गया।
अक्टूबर मे मैं छुट्टी लेकर घर गया। संयोगवश मेरे पिताजी भी घर आ रखे थे। शाम को सुर्यदेव आकाश रेखा (skyline) को पार कर आराम करने हेतु प्रयासरत थे। आंगन मे बैठे बैठे जाने कहां से घुमते हुए चर्चा मुंन्डा पर पहुंची। मां बोली कि अब दुसरी गाय लानी पड़ेगी। ये तो दुध देने से रही। मैंने कहा कि ठीक है, नयी गाय ले आते हैं। मां बोली कि फिर मैं दो दो गाय कैसे पालुंगी। इतना तो घास भी नही होता। “तो फिर” दो शब्द मैंने प्रश्नवाचक भाव से कहे। अपने शब्दों को आगे बढ़ाते हुए मैंने पुछा कि क्या जंगल छोड़ आउं या कसाई को दे दुं? इतने साल से जो हमें दुध पिला रही है उसे ! वो भी वापस ना लोटने के लिए 😦 ना ना….. ऐसा कैसे कर सकते हैं। मैंने व पिताजी ने एकमत होकर मुंन्डा को घर पर ही रखने का प्रस्ताव दिया। मां का सवाल वही था कि दो को कैसे पालुंगी।
तटस्थ सदस्य के रुप मे मौन धारण किये हुए थी। दोनों पक्षों ने अपनी अपनी दलिल रखी किन्तु हमारे पास बहुमत होने के पश्चात भी विपक्षी के घर कि मालकिन होने के कारण प्रस्ताव पर चर्चा बिना किसी निर्णय के समाप्त हो गयी। पर अगले दिन से मैंने गौर किया कि हमारी गाय का व्यवहार कुछ बदला बदला सा था। लगा कि जैसे पीड़ा और भय के भाव उसके मन मे हिलोरे ले रहे थे। उसका दुख: स्पष्ट परिलक्षित हो रहा था। मैंने उसे पुचकारते हुए कहा कि डर मत। तू हमारे ही पास रहेगी। पर ये क्या….. उसके नेत्र अश्रु वर्षा करने लगे। जैसे सारी बात समझ गयी हो। अश्रु तो बह ही रहे थे पर कुछ दिन बाद उसने घास खाना भी छोड़ दिया। उसके पसंद कि बाड़ी और झंगोरा भी बनाया पर जो उसने चखा भी हो। अगले दिन उठकर बाहर आया।
आँख मलते हुए देखा कि मां आंगन मे बैठे रो रही है। अनिष्ट कि आशंका के चलते हृदय कंपन करने लगा। दोडकर मां के पास पहुंचा और रोने का कारण पुछा तो रुंधे गले से धीमी अवाज मे मां ने कहा कि मुन्डां मर गयी। मैं स्तब्ध सा खड़ा। वर्णमाला का कोई भी शब्द कंठ से बाहर निकलने को तैयार नही। इतने मे पिताजी आए और कहने लगे कि चल…. अन्तिम संस्कार भी करना है। मुंन्डा के चैहरे पर हाथ फेरा तो वो अब भी भीगी रहा था। शायद अन्तिम समय तक वह रोती रही। अन्तिम संस्कार कर लौटे तो घर पर वही मौन। कोई शब्द नही, कोई चर्चा नही। ना ही खाना बना था। तभी मां के करुण स्वर सुनाई दिये कि- शायद मुंडा अपनी पूरी जिंदगी इसी घर मे गुजारना चाहती थी।
शब्द सुन मेरे नेत्र भी भीग गये। परिवार का एक सदस्य जो चला गया था…… हमेशा के लिए 😦

                             🐄🐄🐄🐄🐄🐄

संजय गुप्ता

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प्रेरक प्रसंग

हरि को भजै सो हरि का होई

  सन्त सदन का पेशा तो था कसाई का, लेकिन जीव-हिंसा से वे द्रवित हो उठते थे ।  आजिविका का कोई अन्य उपाय न होने से वे दूसरे कसाईयों से मांस खरीदकर बेचा करते ।  बचपन से ही भगवन्नाम एवं हरिकीर्तन में रूचि होने से सदा लीलामय पुरुषोत्तम के नाम, जप, गुणगान और चिन्तन में लगे रहते ।  मांस तौलते समय बाट रूप में जिस पत्थर का प्रयोग करते, वस्तुतः वह भगवान् शालिग्राम थे, जिससे ले अनभिज्ञ थे ।  बाट समझकर उसी से वे मांस तौला करते ।
  एक दिन एक साधु उनकी दुकान के सामने से जा रहे थे कि उनकी नजर तराजू में रखे शालिग्राम पर पड़ी ।  मांस विक्रेता के यहाँ भगवान् को देख उन्हें क्रोध आया ।  उन्होंने सदन से उसे माँगकर एवँ उसकी विधिपूर्वक पूजा कर अपने पूजाघर में रख दिया ।  मगर भगवान् तो प्रेम के भूखे हैं, मंत्र या विधि की वे तनिक भी अपेक्षा नहीं करते ।  उन्होंने रात को उससे स्वप्न में कहा,  "सदन के यहाँ मुझे बड़ा सुख मिलता था, वहाँ से उठाकर मुझे तुम यहाँ क्यों ले आये ? मांस तौलते समय उसका स्पर्ष पाकर मैं बड़े आनन्द का अनुभव करता था ।  उसके मुख से निकले शब्द मुझे स्तोत्ररुपी मधुर जान पड़ते थे ।  मेरी सामने जब वह भजन-कीर्तन करता, तो मेरा आनन्द से रोम-रोम पुलकित हो उठता था ।  मुझे यहाँ लाने से मैं घुटन महसूस कर रहा हूँ ।  अच्छा होता तुम मुझे वहीं पहुँचा देते ।"
  साधु महाराज जब जागे, तो तुरन्त शालिग्राम को प्रणाम कर सदन को दे आये और बताया कि यह कोई बाट या पत्थर नहीं, बल्कि साक्षात् शालिग्राम भगवान् हैं ।  यह सुन सदन को पश्चाताप हुआ ।  मन ही मन बोले,  "मैं भी कितना पापी हूँ कि भगवान् को कब तक अपवित्र स्थल पर रखता रहा ।"  अब उन्हें अपने व्यवसाय से भी घृणा हो गयी ।  शालिग्राम को लेकर वे पुरी की ओर रवाना हो गये ।

अनूप सिन्हा

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*तीन पथिक पहाड़ी की ऊपरी चोटी पर लंबा रास्ता पार कर रहे थे। धूप और थकान से उनका मुँह सूखने लगा।

प्यास से व्याकुल हो उन्होंने चारों ओर देखा, पर वहाँ पानी न था। एक झरना बहुत गहराई में नीचे बह रहा था।

एक पथिक ने आवाज लगाई, “हे ईश्वर, सहायता कर हम तक पानी पहुँचा।”

दूसरे ने पुकारा,
“हे इंद्र, मेघमाला ला और जल बरसा।”

तीसरे पथिक ने किसी से कुछ नहीं माँगा और चोटी से नीचे उतर तलहटी में बहने वाले झरने पर जा पहुँचा और प्यास बुझाई।

दो प्यासों की आवाजें अभी भी सहायता के लिए पुकारती हुई पहाड़ी को प्रतिध्वनित कर रही थीं,

पर जिसने आत्मावलंबन का साहस किया, वह तृप्तिलाभ कर फिर आगे बढ़ चलने में समर्थ हो गया।

आत्मावलंबी किसी अनुग्रह, वरदान की प्रतीक्षा नहीं करते, न ही याचना, वरन् प्रगति का पथ स्वयं बनाते हैं। भगवान भी उनकी ही सहायता करते है जो अपनी सहायता आप ही करते हैं।
Good evening*
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संजय गुप्ता

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*”नाकामयाबी एक पड़ाव हैं…आख़िरी पड़ाव नहीं!”
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।।प्रेरक कहानी।।
आज दसवीं का रिज़ल्ट था . कविता मैम …सुबह से टेंस थी. पता नहीं ….इस बार उसके स्कूल का कौन सा बच्चा …फेल होने के कारण …कोई ग़लत कदम उठा ले.
पिछले साल ही ..स्कूल का सबसे हरफ़नमौला छात्र चिराग ने ….लोवर ग्रेड के कारण….बड़े ही दर्दनाक ढंग से ख़ुदकुशी कर ली थी . वह स्कूल के बॉलीवॉल टीम का कॅप्टन भी था.
और सौम्या …ने भी ….एक सब्जेक्ट में फेल होने के कारण …..ख़ुदकुशी का प्रयास किया था. थैंक गॉड ….वह बच गयी थी।
ठीक चार बजे शाम को …जब रिज़ल्ट ऑनलाइन हुआ …कविता मैम ने लिस्ट में सबसे पहले असफल स्टूडेंट्स और लोवर ग्रेड वाले छात्रों का नाम देखा …..कुल चार नाम थे …कनिष्क , मोहित, सुरभि और अनुपमा.
उन्होने तुरंत….उन चारों को फोन किया …..डियर ….रिज़ल्ट में कुछ गड़बड़ी हैं…स्कूल को मैसेज आया हैं…तुरंत आकर …..स्कूल के असेंब्ली हॉल में मिलो.
और मैम ने तुरंत वॉटस अप के ज़रिए सभी सफल स्टूडेंट्स को भी …….फ़ौरन …स्कूल के असेंब्ली हॉल में एकट्ठा होने को कहा.
अगले दो घंटे में …..असेंब्ली हॉल …..करीब -55- स्टूडेंट्स ……बड़े ही बेसब्री से मेडम की प्रतीक्ष कर रहे थे .
. एक बड़ा स्टेज सजाया गया था . कुर्सियाँ रखी गयी थी. गुलदस्ते रखे थे.
मैडम के आते ही…हॉल मे “ गुड ईव्निंग “, मैम का शोर उभरा ….जिसमे ….बेहद खुशी …कम खुशी और उदासी की मिली जुली आवाज़ें थी. स्कूल के और भी टीचर्स भी मंच पर थे .
मैम ने माइक लेकर बोलना शुरू किया ……” मेरे प्यारे स्टूडेंट्स …..सॉरी फॉर रॉंग इन्फर्मेशन . रिज़ल्ट के गड़बड़ी की खबर मैने केवल तुम सब को बुलाने के लिए दी थी. ”
मुझे सफल छात्रों से पहले चूक गये छात्रों से बात करनी हैं. और मैं पहले बुलाना चाहूँगी उन स्टूडेंट्स को जो अगली बार पास होने वाले हैं.
मुँह लटकाएँ एक एक कर चारों छात्र-छात्राएँ स्टेज पर आ गये.
कविता मैडम ने उन चारों को पहले शपथ दिलवाई कि …पिछले साल के चिराग और सौम्या की तरह वे कोई ग़लत कदम नहीं उठाएँगे।
फिर उसने उन चारों का मुँह मीठा करवाया -” तुम चारों आज हार कर भी विजेता हो . तुम्हें ….एक हार नहीं तोड़ सकती ….तुम्हें एक साल और अच्छे से तैयारी कर के …खुद को साबित करना हैं……तुम सब अपने अपने घरों के सबसे अनमोल हीरे हो….पूछो चिराग की माँ से…..कि … उन्हे चिराग चाहिए था ….या ….उसका उस साल सफल होना ज़रूरी था. वे आज भी बेटे के गम में रो रहे .
और तुम्हें किसी से शर्माने की ज़रूरत नहीं ….कि तुम सब फेल हो गये या लोवर ग्रेड आया हैं…..क्योकि…पूरे देश में कल कितने हारे हुए बच्चे ( भगवान ना करे ) ख़ुदकुशी कर लेंगे …मगर …तुम चारों पूरे समाज को मैसेज दो कि तुम सब विनर हो…. अगले मैच के विनर .
“ नाकामयाबी एक पड़ाव हैं…..आख़िरी पड़ाव नहीं….इसके आगे निकल कर ही …कई कामो में असफल रहा…कई चुनावों में हारा …एक अमरीकी ….अमरीका का ऑल टाइम फ़ेवरेट प्रेसीडेंट अब्राहम लिंकन के नाम से जाना जाता हैं.
हवाई जहाज़ों के निर्माता बंधुयों ने शुरुआत एक साइकल की दुकान से की थी.
मैंने अपने कैरियर में 900 से ज्यादा शॉट्स मिस किये, करीब 300 मैचों में नाकाम रहा , 26 मौकों पर विनिंग शॉट्स गंवाए . मैं बार बार नाकाम रहा …मगर नाउममीद नहीं हुआ …और इसी कारण मैं कामयाब भी रहा ” पता हैं यह किसकी कहानी हैं द ग्रेटेस्ट बास्केट बॉल प्लेयर …………..”
“ माइकल जोर्डन की “ भीड़ से आवाज़ आई.
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“एक लड़का जो रामेश्वरम में अख़बार बेचा करता था . जिसकी बनाई पहली मिसाइल फेल हो गयी थी”
“ अब्दुल कलाम “ भीड़ से दूसरी आवाज़ आई
“ और तुम लोग उस युवक के बारे में जानते होगे …जिसे एक न्यूज़ पेपर के ऑफीस से “ लैक ऑफ इमॅजिनेशन एंड गुड आइडिया “ कह कर निकाल दिया गया था…..मगर उसने सुसाइड नही किया बल्कि वॉल्ट डिज़्नी बना.
मैडम के उदाहरणों से असफल हुए स्टूडेंट्स के चेहरे पर छाई उदासी ख़त्म हो रही थी.
“नाकाम होने के बाद भी हिम्मत टूटने नहीं देना …..यह है “रियल विनर ” की निशानी …तो ऑडियेन्स बता ओ आज का सच्चा विनर कौन हैं भीड़ में से उन चारों के फ्रेंड्स ने ……खूब ज़ोर से कहा ..
कनिष्क ,
मोहित,
सुरभि
अनुपमा.”
वाउ…..असफलता का जश्न पहली बार देखा था और यह जश्न अपने उद्देश्य में सफल भी रहा.

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संजय गुप्ता