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घनस्याम

नयी पड़ोसन और नीला दुपट्टा !!
मोहल्ले में नयी बहुत ही खूबसूरत और जवान पड़ोसन आकर आबाद हुई, उसके दो छोटे बच्चे थे, उसका शौहर शक्ल से ही खुर्रांट और बदमिज़ाज लगता था, पड़ोसन की ख़ूबसूरती देखकर ही मोहल्ले के तमाम मर्दों की हमदर्दियां उसके साथ हो गयीं !

पड़ोसन ने धीरे धीरे मोहल्ले के घरों में आना जाना शुरू किया, मिर्ज़ा साहब और शेख साहब को अपनी अपनी बेगमों से पता चला कि उस खूबसूरत पड़ोसन का शौहर बहुत ही शक्की और खब्ती था ! वो पड़ोसन अपने शौहर से बहुत खौफ खाती थी, ये सुन कर दोनों मर्द हज़रात की निगाहें आसमान की ओर उठ गयीं, दिल ही दिल में शिकवा कर डाला कि या अल्लाह कैसे कैसे हीरे नाक़द्रों को दे दिए हैं !

एक दिन वो खूबसूरत पड़ोसन सब्ज़ी वाले की दुकान पर शेख साहब को मिली, उसने खुद आगे बढ़कर शेख साहब को सलाम किया, शेख साहब को अपनी क़िस्मत पर नाज़ हुआ, पड़ोसन बोली शेख साहब बुरा न माने तो आपसे कुछ मश्वरा करना था ? शेख साहब ख़ुशी से बावले हो गए, वजह ये भी थी कि उस पड़ोसन ने आम अनजान औरतों की तरह भाई नहीं कहा था, बल्कि शेख साहब कहा था !

शेख साहब ने बड़ी मुश्किल से अपनी ख़ुशी छुपाते हुए मोतबर अंदाज़ में जवाब दिया ” जी फरमाइए !” पड़ोसन ने कहा कि मेरे शौहर अक्सर काम के सिलसिले में बाहर रहते हैं, मैं इतनी पढ़ी लिखी नहीं हूँ, बच्चों के एडमिशन के लिए आपकी रहनुमाई की ज़रुरत थी !

वो आगे बोली कि यूं सड़क पर खड़े होकर बातें करना ठीक नहीं है, आपके पास वक़्त हो तो मेरे घर चल कर कुछ मिनट मुझे समझा दें, ताकि मैं कल ही बच्चों का एडमिशन करा दूँ ! ख़ुशी से बावले हुए शेख साहब चंद मिनट तो क्या सदियां बिताने को तैयार थे, उन्होंने फ़ौरन कहा कि जी ज़रूर चलिए !

शेख साहब पड़ोसन के साथ घर में दाखिल हुए, अभी सोफे पर बैठे ही थे कि बाहर स्कूटर के रुकने की आवाज़ सी आयी, पड़ोसन ने घबराकर कहा कि या अल्लाह लगता है मेरे शौहर आ गए, उन्होंने यहाँ आपको देख लिया तो वो मेरा और आपका दोनों का क़त्ल ही कर डालेंगे, कुछ भी नहीं सुनेंगे, आप एक काम कीजिये वो सामने कपड़ों का ढेर है, आप ये नीला दुपट्टा सर पर डाल लें और उन कपड़ों पर इस्त्री करना शुरू कर दें, मैं उनसे कह दूँगी कि इस्त्री वाली मौसी काम कर रही है !

शेख साहब ने जल्दी से नीला दुपट्टा ओढ़कर शानदार घूंघट निकाला और उस कपडे के ढेर से कपडे लेकर इस्त्री करने लगे, तीन घंटे तक शेख साहब ने ढेर लगे सभी कपड़ों पर इस्त्री कर डाली थी, आखरी कपडे पर इस्त्री पूरी हुई तब तक पड़ोसन का खुर्रांट शौहर भी वापस चला गया !

पसीने से लथपथ और थकान से निढाल शेख साहब दुपट्टा फेंक कर घर से निकले, जैसे ही वो निकल कर चार क़दम चले सामने से उनके पडोसी मिर्ज़ा साहब आते दिखाई दिए, शेख साहब की हालत देख कर मिर्ज़ा साहब ने पूछा “कितनी देर से अंदर थे ?” शेख साहब ने कहा “तीन घंटों से, क्योंकि उसका शौहर आ गया था, इसलिए तीन घंटों से कपड़ों पर इस्त्री कर रहा था !”

मिर्ज़ा साहब ने आह भर कर कहा “जिन कपड़ों पर तुमने तीन घंटे घूंघट निकाल कर इस्त्री की है उस कपड़ों के ढेर को कल मैंने चार घंटे बैठ कर धोया है, क्या तुमने भी नीला दुपट्टा ओढ़ा था ?”
🤣😂😛

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एक दिन हनुमानजी जब , सीताजी की शरण में आए.!


एक दिन हनुमानजी जब , सीताजी की शरण में आए.!
नैनों में जल भरा हुआ है , बैठ गए शीश झुकाए.!!

सीता जी ने पूछा उनसे , कहो लाडले बात क्या है.!
किस कारण ये छाई उदासी , नैनों में क्यों नीर भरा है.!!

हनुमान जी बोले , मैया आपनें कुछ वरदान दिए हैं.!
अजर अमर की पदवी दी है और बहुत सम्मान दिए हैं.!
अब मैं उन्हें लौटानें आया , मुझे अमर पद नहीं चाहिए.!
दूर रहूं मैं श्री चरणों से , ऐसा जीवन नहीं चाहिए.!!

सीता जी मुस्काकर बोली , बेटा ये क्या बोल रहे हो.!
अमृत को तो देव भी तरसे , तुम काहे को डोल रहे हो.!

इतने में श्रीराम प्रभु आ गए और बोले.!
क्या चर्चा चल रही है , मां और बेटे में.!!

सीताजी बोली सुनो नाथ जी.!
ना जाने क्या हुआ हनुमान को.!
पदवी अजर – अमर , लौटानें आया है ये मुझको.!!

राम जी बोले क्यों बजरंगी , ये क्या लीला नई रचाई.!
कौन भला छोड़ेगा , अमृत की ये अमर कमाई.!!

हनुमानजी रोकर बोले , आप साकेत पधार रहे हो.!
मुझे छोड़कर इस धरती पर , आप वैकुंठ सिधार रहे हो.!
आप बिना क्या मेरा जीवन , अमृत का विष पीना होगा.!
तड़प-तड़प कर विरह अग्नि में , जीना भी क्या जीना होगा.!
प्रभु अब आप ही बताओ , आप के बिना मैं यहां कैसे रहूंगा.!!

प्रभु श्रीराम बोले :
हनुमान सीता का यह वरदान , सिर्फ आपके लिए ही नहीं है.!
बल्कि यह तो , संसार भर के कल्याण के लिए है.!
तुम यहां रहोगे और संसार का कल्याण करोगे.!
मांगो हनुमान वरदान मांगो.!!

हनुमान जी बोले :
जहां जहां पर आपकी कथा हो , आपका नाम हो.!
वहां-वहां पर मैं उपस्थित होकर , हमेशा आनंद लिया करूं.!!

सीताजी बोलीं : दे दो , प्रभु दे दो.!

भगवान राम नें हंसकर कहा : तुम नहीं जानती सीते.!
ये क्या मांग रहा है , ये अन्गिनत शरीर मांग रहा है.!
जितनी जगह मेरा पाठ होगा , उतनें शरीर मांग रहा है.!!

सीताजी बोलीं : दे दो फिर क्या हुआ , आपका लाडला है.!

प्रभु श्रीराम बोले : तुम्हरी इच्छा पूर्ण होगी.!
वहां विराजोगे बजरंगी , जहां हमारी चर्चा होगी.!
कथा जहां पर राम की होगी , वहां ये राम दुलारा होगा.!
जहां हमारा चिंतन होगा , वहां पर जिक्र तुम्हारा होगा.!!

कलयुग में मुझसे भी ज्यादा , पूजा हो हनुमान तुम्हारी.!
जो कोई तुम्हरी शरण में आए , भक्ति उसको मिले हमारी.!
मेरे हर मंदिर की शोभा बनकर , आप विराजोगे.!
मेरे नाम का सुमिरन करके , सुध बुध खोकर नाचोगे.!!

नाच उठे ये सुन बजरंगी , चरणन शीश नवाया.!
दुख-हर्ता , सुख-कर्ता प्रभु का , प्यारा नाम ये गाया.!

जय सियाराम , जय जय सियाराम.!
जय सियाराम , जय जय सियाराम.!!

।। जय श्रीराम ।।

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સાચી વાત છે દ્રૌપદી ને પાણીપુરી વાળી… કુંતા માતા એ બટાકા અને લોટ આપી કહ્યું આમાંથી કૈક સ્વાદિષ્ટ પણ હોય અને પેટ પણ ભરાય એવું બનાવો ને દ્રૌપદી એ પાણી પૂરી બનાવી સ્ત્રી જાતને જન્મો સુધી ઋણી બનાવી દીધી…સાચી વાત તો એ છે કે મહાભારત માં પાણીપુરી ના ઉલ્લેખ વાળા તમામ પ્રસંગો ઉડાડી દીધા છે…
મહાભારત માં ચોથું જલપુપલીકા પર્વ છે… જે આખ્ખું પાણીપૂરી ઉપર છે.પણ ભૈયા ઓ પર આડ વેર રાખી આનો તક્ષશિલા માં નાશ કરાયો…
પાંડવો કૌરવો ની પરીક્ષામાં દ્રૌણે ઝાડ પર મસાલાપુરી ગોઠવેલ…
ભીમને મસાલામાંના ચણા પણ દેખાય છે એવું કહેતા ફેલ કરેલ..
ભીમને દુર્યોધને પાણીપુરીમાં ઝેર આપેલું…
મસ્ત્યવેધમાં પાણીમાં જોઈને, બાણથી ઉપર લટકાવેલ પુરી માં આરપાર ના જાય એ રીતે કાણું પાડવાનું હતું…માત્ર અરજણ જ એ કરી શક્યો…
યુદ્ધમાં કૌરવોને હરાવવા કૃષ્ણ ની યોજના મુજબ એક ખૂણે કૌરવ સૈનિકોને પાણીપુરી ફ્રીમાં ખવડાવવી શરૂ કરી…કૌરવો લડવાનું મૂકી ઘાંઘાં થઇ પા.પુ. ઝાપટવામાં પડ્યા..સ્વાદરસિક દ્રોણે પણ પૂછ્યું કે યુધિષ્ઠિર કઈ પાણીપુરી વેચાય છે?કોરી કે પાણીવાળી?
યુધિષ્ઠિર ક્યે મસાલ્યો વા કોરો વા? એમાં એમનો એક વ્હેત ઉપર ચાલતો રથ જમીન પર બેસી ગયો…
અક્ષયપાત્ર વાસણ ધોયા પછી પણ તેમાં બટાકાનું છોતરું ચોંટી રહેલું એના લીધે અક્ષયપાત્ર માંથી 200 લોકોને દ્રૌપદીએ ફરી પાણીપુરી ખવડાવેલી…
અર્જુન ને વિષાદયોગ નહિ પાણીપુરીવિયોગ થયો ને વાટકી લઇ રથની પાછળ બેસી ગયો… કૃષ્ણ ગરમ થયા કે આ લાલદરવાજા નથી નથી અને તારા જેવા વીર ને યુદ્ધ માં લડવા ટાણે આ શું સુઝ્યું??
ને અરજણ યુદ્ધ જીતીશ તો આખા હસ્તિનાપુર ના પાણીપુરી વાળા તને પાણીપુરી ખવડાવશે ને યુદ્ધ માં હણાઈશ તો સરગ માં અપ્સરાઓ જોડે સીસકારા બોલાવતો પા.પુ. ખાઈશ માટે યુદ્ધ કર…
અને છેવટે એક ડીશ મસાલાપૂરી રથ ની પાછળ ખવડાવી પછી ગાંડીવ પકડ્યું…
ધૃતરાષ્ટ્ર ને પાણીપુરી ના જોઈ શકવાનો રંજ હતો એમાં ગાંધારી એ આખી જિંદગી પાટા બાંધ્યા…
ને કૌરવોના ગર્ભ ને ફુદીના વાળા પાણી ના ૧૦૦ માટલા માં રાખ્યા ત્યારે તો એમનો જન્મ થયો…
ને દુશાલાના ગર્ભને આમલી ખજુર ની ચટણી માં રાખી …
છેલ્લે બાણશય્યા પર ભીષ્મ પડ્યા ને ઈચ્છામૃત્યુ પૂરું કરવા કૃષ્ણ સમક્ષ પાણીપુરી ની માંગણી કરી કૃષ્ણ એ એક કોરી મસાલા પૂરી આપી ને ભીષ્મ એ યાચક નજરે અરજણ સામે જોયું…
અર્જુને એક તીર મારી જમીન માંથી ૮-૮ ફ્લેવર ના પાણી ના ફુવારા ઉડાડી કોરી પુરીઓ ભરી દીધી..
ત્યારે મોક્ષ થયો…
આખું મહાભારત પાણી પૂરી મય છે, અહી રામાયણ કે ભાગવત ની વાત નથી…
વરાહ અવતારે ફુદીના વાળા પાણી ના સમુદ્ર માંથી પાણી પૂરી ને નાક થી ધક્કો મારી બહાર કાઢી એમાં જ પૃથ્વી ની ઉત્પત્તિ થઇ… બટાકા ને ચણા કાળક્રમે ઠરી જતાં જમીન ને પહાડો બન્યાં
પાણી ના સમુદ્રો બન્યા…
ઉત્પત્તિ થી અંત સુધી જો જોવાની નજર હોય તો આખું જગત પાણીપુરી મય છે…
જ્યાં જ્યાં નજર મારી ઠરે પાણીપુરી ત્યાં આપની…
વૈદ્ય ગૌરાંગ

 

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नानक की जिंदगी में एक घटना है


नानक की जिंदगी में एक घटना है,

जिस घटना से नानक संत बने। उस दिन से नानक का कर्म यज्ञ हो गया। छोटी—मोटी जागीरदारी में वे नौकर हैं। और काम उनका है सिपाहियों को राशन बांटना। तो वे दिनभर सुबह से शाम तक गेहूं, दाल, चना, तौलते रहते हैं और सिपाहियों को देते रहते हैं।

पर एक दिन कुछ गड़बड़ हो गई। ऐसी गड़बड़ बड़ी सौभाग्यपूर्ण है। और जब किसी की जिंदगी में हो जाती है, तो परमात्मा प्रवेश हो जाता है। एक दिन सब अस्तव्यस्त हो गया, सब गणित टूट गया, सब नाप टूट गई। नापने बैठे थे, एक से गिनती शुरू की।

बारह तक सब ठीक चला। लेकिन तेरह की जो गिनती आई, तो अचानक उन्हें तेरा से तेरे का खयाल आ गया, उसका, परमात्मा का। बारह तक तो सब ठीक चला, तेरहवें पल्ले को उलटते वक्त उनको आया खयाल, तेरा। वह जो तेरह शब्द है, वह तेरा। फिर चौदह नहीं निकल सका मुंह से। फिर दूसरा भी पलवा भरा और फिर भी कहा, तेरा। फिर तीसरा भी पलवा भरा.। फिर लोग समझे कि पागल हो गए। भीड़ इकट्ठी हो गई। उन्होंने कहा, यह क्या कर रहे हो, गिनती आगे नहीं बढ़ेगी? तो नानक ने कहा, उसके आगे अब और क्या गिनती हो सकती है! मालिक ने बुलाया और कहा, पागल हो गए! नानक ने कहा, अब तक पागल था। अब बस, इस गिनती के आगे कुछ नहीं है। अब सब तेरा।

फिर नौकरी तो छूट ही गई। लेकिन बड़ी नौकरी मिल गई, परमात्मा की नौकरी मिल गई। छोटे-मोटे मालिक की नौकरी छूटी, परम मालिक की नौकरी मिल गई। और जब भी कोई नानक से पूछता कि तुम्हारी जिंदगी में यह कहां से आई रोशनी? तो वे कहते, तेरे, तेरा, उस शब्द से यह रोशनी आई। जब भी कोई पूछता, कहां से आया यह नृत्य? कहां से आया यह संगीत? कहां से यह उठा नाद? तो वे कहते, बस एक दिन स्मरण आ गया कि तू ही है, तेरा ही है, मेरा नहीं है।

बंधने के लिए मैं का भाव चाहिए। बंधेगा कौन? मैं तो चाहिए ही, अगर बंधना है। अब यह बड़े मजे की बात है कि मैं अगर नहीं हूं, तो बंधेगा कौन? बंधूंगा कैसे? मैं चाहिए बंधने के लिए और मेरा चाहिए बांधने के लिए। ये दो सूत्र खयाल में ले लें। मै चाहिए बंधने के लिए और मेरा चाहिए बांधने के लिए। मैं बनेगा कैदी और मेरा बनेगा जंजीर। लेकिन जिस दिन कोई व्यक्ति कह पाता है, मै नहीं, तू ही; मेरा नहीं, तेरा; उस दिन न तो बंधन बचता है और न बंधने वाला बचता है।

गीता-दर्शन👣ओशो

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अहंकार की कोई कीमत नहीं है


अहंकार की कोई कीमत नहीं है…

अशोक के जीवन में मैंने पढ़ा है, गांव में एक भिक्षु आता था। अशोक गया और उस भिक्षु के चरणों में सिर रख दिया। अशोक के बड़े आमात्य, वह जो बड़ा वजीर था अशोक का, उसे यह अच्छा नहीं लगा। अशोक जैसा सम्राट गांव में भीख मांगते एक भिखारी के पैरों पर सिर रखे! बहुत……घर लौटते ही, महल लौटते ही उसने कहा कि नहीं सम्राट, यह मुझे ठीक नहीं लगा। आप जैसा सम्राट, जिसकी कीर्ति शायद जगत में कोई सम्राट नहीं छू सकेगा फिर, वह एक साधारण से भिखारी के चरणों पर सिर रखे…

अशोक हंसा और चुप रह गया। महीने भर, दो महीने बीत जाने पर उसने बड़े वजीर को बुलाया और कहा कि एक काम करना है। कुछ प्रयोग करना है, तुम यह सामान ले जाओ और गांव में बेच आओ। सामान बड़ा अजीब था। उसमें बकरी का सिर था, गाय का सिर था, आदमी का सिर था, कई जानवरों के सिर थे और कहा कि जाओ बेच आओ बाजार में।

वह वजीर बेचने गया। गाय का सिर भी बिक गया और घोड़े का सिर भी बिक गया, सब बिक गया, वह आदमी का सिर नहीं बिका। कोई लेने को तैयार नहीं था कि इस गंदगी को कौन लेकर क्या करेगा? इस खोपड़ी को कौन रखेगा? वह वापस लौट आया और कहने लगा कि महाराज! बड़े आश्चर्य की बात है, सब सिर बिक गए हैं, सिर्फ आदमी का सिर नहीं बिक सका। कोई नहीं लेता है।

सम्राट ने कहा कि मुफ्त में दे आओ। वह वजीर वापस गया और कई लोगों के घर गया कि मुफ्त में देते हैं इसे, इसे आप रख लें। उन्होंने कहा. पागल हो गए हो! और फिंकवाने की मेहनत कौन करेगा? आप ले जाइए। वह वजीर वापस लौट आया और सम्राट से कहने लगा कि नहीं, कोई मुफ्त में भी नहीं लेता।

अशोक ने कहा कि अब मैं तुमसे यह पूछता हूं कि अगर मैं मर जाऊं और तुम मेरे सिर को बाजार में बेचने जाओ तो कोई फर्क पड़ेगा? वह वजीर थोड़ा डरा और उसने कहा कि मैं कैसे कहूं क्षमा करें तो कहूं। नहीं, आपके सिर को भी कोई नहीं ले सकेगा। मुझे पहली दफा पता चला कि आदमी के सिर की कोई भी कीमत नहीं है।

उस सम्राट ने कहा, उस अशोक ने कि फिर इस बिना कीमत के सिर को अगर मैंने एक भिखारी के पैरों में रख दिया था तो क्यों इतने परेशान हो गए थे तुम।

आदमी के सिर की कीमत नहीं, अर्थात आदमी के अहंकार की कोई भी कीमत नहीं है। आदमी का सिर तो एक प्रतीक है आदमी के अहंकार का, ईगो का। और अहंकार की सारी चेष्टा है भीतर लाने की और भीतर कुछ भी नहीं जाता—न धन जाता है, न त्याग जाता है, न ज्ञान जाता है। कुछ भी भीतर नहीं जाता। बाहर से भीतर ले जाने का उपाय नहीं है। बाहर से भीतर ले जाने की सारी चेष्टा खुद की आत्महत्या से ज्यादा नहीं है, क्योंकि जीवन की धारा सदा भीतर से बाहर की ओर है।

ओशो…

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Reality of mahmud Ghaznavi 17 invasions in India.

महमूद गजनवी के सत्रह आक्रमणों का पूरा सच

महमूद गजनवी के सत्रह आक्रमणों का पूरा सच

अंग्रेजो से प्रभावित भारतीय इतिहासकारों ने विदेशी आक्रमणकारियों को सदैव महिमा मंडित किया है। इसी परम्परा में गजनी के महमूद के द्वारा भारत किये गए सत्रह सफल आक्रमणो की गौरव गाथा भी गायी गयी है।

1025 ईसवीं में महमूद का सोलहवां बहु चर्चित प्रसिद्ध आक्रमण सोमनाथ मन्दिर पर हुआ। मन्दिर को लूटा गया लेकिन इस घटना को इतना तुच्छ समझा गया कि समसामयिक भारतीय इतिहास लेखकों हेमचन्द्र, सोमेश्वर और मेरुतुंग आदि ने चर्चा तक न की। कीर्ति कौमुदी, कुमार पाल चरित, सुकृत संकीर्तन , आदि समसामयिक पुस्तको में इसका उल्लेख भी नहीं हुआ। गुजरात की सत्ता और सम्रद्धि में कुछ भी कमी नहीं आई, क्यों कि 1026 ईसवी में ही भीमदेव प्रथम ने पाटन गुजरात पर अधिकार कर लिया और 1026 में ही सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कर पुनः प्रतिष्ठित कर दिया। और इस के सात वर्ष बाद ही 1032 में मंत्रीश्वर विमल देव शाह ने आबू पर खर्च हुए ”भगवान आदि नाथ” का मंदिर बनवाया जिस में उस जामाने में बारह करोड़ मुद्रा खर्च हुए थे।

आज फिर से देखते है सत्रह आक्रमण:

पहला आक्रमण 1000 ईसवीं में हुआ था। यह किसी राजा पर नहीं , खैबर दर्रे के कुछ अरक्षित किलों पर अधिकार था।

दूसरा आक्रमण…1001 ईसवीं….पेशावर में राजा जयपाल पर….. राजा जयपाल के 15-20 पुत्र पौत्र एवं परिजनों को बंदी बना लिया गया , जिन्हें फिरौती में 250000 दीनार मिलने पर छोड़ा गया उसके बाद भी 15000 हिन्दुओं का क़त्ल किया गया |
अपमानित राजा ने आत्महत्या कर ली,… क्यों ? यह खुला युद्ध नहीं था महमूद ने मित्रता का प्रस्ताव रख ,धोखे से राजा को और उसके परिजनों को बंदी बना लिया और फिरौती मांगी |महमूद के वापस जाते ही जयपाल के बेटे आनंद आनन्दपाल ने गद्दी पर कब्ज़ा कर लिया।

तीसरा आक्रमण…1006 ईसवीं… मुल्तान , सात दिन के घेरे के बाद वहां के शासक अबुल फतह को बंदी बनाकर मुल्तान पर अधिकार कर लिया , और राजा जयपाल के पुत्र सुखपाल को ” नवाब शाह ” के नाम से राजा बनाया , महमूद के वापस जाते ही सुखपाल ने इस्लाम त्याग अपने को स्वतंत्र राजा घोषित कर दिया।

चौथा आक्रमण……1008 ईसवीं.. मुल्तान.. सुखपाल का विद्रोह दमन किया।

पांचवां आक्रमण…..1008 ईसवीं पेशावर के राजा आनंद पाल के नेत्रत्व में उज्जैन ग्वालियर कन्नौज कालिंजर के राजाओं ने मोर्चा बनाया। ओहिंद के मैदान में सामना हुआ। खोखरो ने भी हिन्दू राजाओं का साथ दिया। पहले धावे में ही खोखरों ने 5000 मुसलमानों को मार दिया। महमूद की सेना भागने को ही थी की आनंद पाल का हाथी बिगड़ गया और भागने लगा , फिर भी दो दिन तक युद्ध चला , आनंद पाल पराजित हुआ।

छठा आक्रमण……1009 ईसवीं… नगरकोट काँगड़ा… छोटा राज्य ,हिन्दुओं द्वारा आत्मसमर्पण ……बड़ी लूट , मन्दिरों को लूटा गया इस लूट में महमूद को सात हजार सोने के दीनार ,700 मन सोने चांदी के बर्तन 200 मन सोना और 200 हीरे मिले।

सातवाँ आक्रमण…..1014 ईसवीं… में थानेश्वर. पर आक्रमण , मन्दिरों को लूटा गया।

आठवां आक्रमण……1015 ईसवीं… में कश्मीर पर अभियान…. असफल आक्रमण तौसी मैदान में महमूद ने डेरा डाला ,महमूद की बुरी हार हुई ….वह अस्त बस्त हालत में बहुत मुशकिल से गजनी पहुँच पाया।

नवां आक्रमण……1018-1019 मथुरा वृन्दावन और कन्नौज मन्दिरों को लूटा गया।

दसवां आक्रमण……1021 ईसवीं.. में फिर कश्मीर पर ….. असफल अभियान … महमूद की बुरी हार हुई।

11 वां आक्रमण……1021-1022 ग्वालियर और कालिंजर असफल अभियान — मुस्लिम लेखक “ अबू गाडिर्जी” ने अपनी किताब” जैनुल अकबर “में लिखा है कि 1019 में कालिंजर पर आक्रमण में राजपूतों ने इतना प्रबल युद्ध किया की महमूद को उलटे पांव वापस गजनी जाना पड़ा। 1022 ईसवीं. में महमूद फिर इस हार का बदला लेने के लिए गजनी से चला, रास्ते में ग्वालियर पर चार दिन चार रात घेरा डालने पर भी जीत की सम्भावना न देख , शांति संधि (हार) कर वह कालिंजर के लिए आगे बढ़ गया। कालिंजर का किला इतनी ऊंचाई पर था कि उस पर सीधे आक्रमण करना संभव नहीं था न ही आधार के पत्थर काटकर घुसा जा सकता था। गाडिर्जी आगे लिखता है कि महमूद ने विद्याधर को धन रत्न कपडे औरतें “ भेट “ में भेजी और कई किलों पर बातचीत कर (अधिकार मान कर ) गजनी प्रस्थान किया। यह मुस्लिम लेखको द्वारा अपने संरक्षकों को ”हारा हुआ” न दिखाने का तरीका था। महमूद को” दो बार” हराने के बाद विद्याधर ने खजुराहो में कंडारिया महादेव का मंदिर बनवाया।

12वां, 13वां ,14वां और 15वां आक्रमण… कुछ विवरण नहीं मिलता

सोलहवां आक्रमण—— 1025 ईसवीं में महमूद का सोलहवां बहु चर्चित आक्रमण सोमनाथ पर हुआ। मन्दिर को लूटा। सोमनाथ की लूट महमूद के जीवन की सबसे बड़ी लूट कही गयी सैकड़ों मन सोना, चांदी , हीरे जवाहरात, दास, दासी गजनी ले जाये गए।

अंतिम आक्रमण…… 1026 ईसवीं में जाटों पर आक्रमण—–कहते है सोमनाथ आक्रमण से वापसी में जाटों ने बहुत तंग किया था अतः उन्हें दंड देने के लिए यह आक्रमण किया सोचने वाली बात है किस तरह तंग किया होगा…..वस्तुतः जाटों ने सोमनाथ की लूट का खजाना महमूद से छीन लिया था , उसे वापस पाने के लिए यह आक्रमण किया, पर उस के हाथ न खजाना ,न विजय हाथ लगी।

इस प्रकार हम देखते है कि पहले से पांच आक्रमण एक ही राज्य /राज परिवार … राजा जयपाल व उनके पुत्रों पर हुए… अतः ”एक ही“ राजनीतिक जीत गिनी जायगी। नगरकोट काँगड़ा ,थानेश्वर, मथुरा (वृन्दावन) और कन्नौज पर अभियान। मंदिरों की लूट के लिए किये कश्मीर पर “दो बार” महमूद की बुरी तरह हार हुई। कालिंजर पर “दो बार“ और ग्वालियर पर “एक बार” बुरी तरह हार का मुह देखना पड़ा। इस प्रकार एक ही राजनीतिक जीत और चार बार मंदिरों की लूट तथा पांच बार “हार” के सच पर महमूद को कितना महत्व दिया जाय यह सोचने की बात है।

महमूद गजनवी जिसके आक्रमणों का कोई राजनीतिक परिणाम न आया हो, जिससे भारतीय समाज और जन जीवन जरा भी प्रभावित न हुआ हो , उसके वापस जाते ही सब कुछ यथावत चलने लगे। इतनी महत्वहीन घटना कि सम सामयिक भारतीय लेखको ने इसका जिक्र तक न किया हो , उसे आज के भारतीय इतिहास में एक महत्व पूर्ण घटना दिखाना क्या सही है?

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अपराध अक्षम्य है..।

Devendra Sharma

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बटुकेश्वर दत्त !

नाम याद है या भूल गए ??

हाँ, ये वही बटुकेश्वर दत्त हैं जिन्होंने भगतसिंह के साथ दिल्ली असेंबली में बम फेंका था और गिरफ़्तारी दी थी।
अपने भगत पर तो जुर्म संगीन थे लिहाज़ा उनको सजा-ए-मौत दी गयी । पर बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास के लिए काला पानी (अंडमान निकोबार) भेज दिया गया और मौत उनको करीब से छू कर गुज़र गयी। वहाँ जेल में भयंकर टी.बी. हो जाने से मौत फिर एक बार बटुकेश्वर पर हावी हुई लेकिन वहाँ भी वो मौत को गच्चा दे गए।

कहते हैं जब भगतसिंह, राजगुरु सुखदेव को फाँसी होने की खबर जेल में बटुकेश्वर को मिली तो वो बहुत उदास हो गए।इसलिए नहीं कि उनके दोस्तों को फाँसी की सज़ा हुई,बल्कि इसलिए कि उनको अफसोस था कि उन्हें ही क्यों ज़िंदा छोड़ दिया गया !

1938 में उनकी रिहाई हुई और वो फिर से गांधी जी के साथ आंदोलन में कूद पड़े लेकिन जल्द ही फिर से गिरफ्तार कर जेल भेज दिए गए और वो कई सालों तक जेल की यातनाएं झेलते रहे।बहरहाल 1947 में देश आजाद हुआ और बटुकेश्वर को रिहाई मिली।

लेकिन इस वीर सपूत को वो दर्जा कभी ना मिला जो हमारी सरकार और भारतवासियों से इसे मिलना चाहिए था।आज़ाद भारत में बटुकेश्वर नौकरी के लिए दर-दर भटकने लगे। कभी सिगरेट बेची तो कभी टूरिस्ट गाइड का काम करके पेट पाला। कभी बिस्किट बनाने का काम शुरू किया लेकिन सब में असफल रहे।कहा जाता है कि एक बार पटना में बसों के लिए परमिट मिल रहे थे ! उसकेलिए बटुकेश्वर दत्त ने भी आवेदन किया ! परमिट के लिए जब पटना के कमिश्नर के सामने इस 50 साल के अधेड़ की पेशी हुई तो उनसे कहा गया कि वे स्वतंत्रता सेनानी होने का प्रमाण पत्र लेकर आएं..!!! भगत के साथी की इतनी बड़ी बेइज़्ज़ती भारत में ही संभव है।

हालांकि बाद में राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को जब यह बात पता चलीतो कमिश्नर ने बटुकेश्वर से माफ़ी मांगी थी ! 1963 में उन्हें विधान परिषद का सदस्य बना दिया गया । लेकिन इसके बाद वो राजनीति कीचकाचौंध से दूर गुमनामी में जीवन बिताते रहे । सरकार ने इनकी कोई सुध ना ली।

1964 में जीवन के अंतिम पड़ाव पर बटुकेश्वर दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में कैंसर से जूझ रहे थे तो उन्होंने अपने परिवार वालोंसे एक बात कही थी-“कभी सोचा ना था कि जिस दिल्ली में मैंने बम फोड़ा था उसी दिल्ली मेंएक दिन इस हालत में स्ट्रेचर पर पड़ा होऊंगा।”इनकी दशा पर इनके मित्र चमनलाल ने एक लेख लिख कर देशवासियों का ध्यान इनकी ओर दिलाया कि-“किस तरह एक क्रांतिकारी जो फांसी से बाल-बाल बच गया जिसने कितने वर्ष देश के लिए कारावास भोगा , वह आज नितांत दयनीय स्थिति में अस्पताल में पड़ा एड़ियां रगड़ रहा है और उसे कोई पूछने वाला नहीं है।”बताते हैं कि इस लेख के बाद सत्ता के गलियारों में थोड़ी हलचल हुई !

सरकार ने इन पर ध्यान देना शुरू किया लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।भगतसिंह की माँ भी अंतिम वक़्त में उनसे मिलने पहुँची।भगतसिंह की माँ से उन्होंने सिर्फ एक बात कही-“मेरी इच्छा है कि मेरा अंतिम संस्कार भगत की समाधि के पास ही किया जाए।उनकी हालत लगातार बिगड़ती गई.

17 जुलाई को वे कोमा में चले गये और 20 जुलाई 1965 की रात एक बजकर 50 मिनट पर उनका देहांत हो गया !भारत पाकिस्तान सीमा के पास पंजाब के हुसैनीवाला स्थान पर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की समाधि के साथ ये गुमनाम शख्स आज भी सोया हुआ है।

मुझे लगता है भगत ने बटुकेश्वर से पूछा तो होगा- दोस्त मैं तो जीते जी आज़ाद भारत में सांस ले ना सका, तू बता आज़ादी के बाद हम क्रांतिकारियों की क्या शान है भारत में।”

*********आज सोचा कि कुछ इतर लिखूं और बटुकेश्वर दत्त से आपका परिचय करवाऊं!!

साभार
Indian history real truth

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ज्योति अग्रवाल

एक दूजे के लिए
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4 दिनों की लंबी छुट्टियां पल्लवी को 4 युगों के समान लग रही थीं. पहला दिन घर के कामकाज में निकल गया. दूसरा दिन आराम करने और घर के लिए जरूरी सामान खरीदने में बीत गया. लेकिन आज सुबह से ही पल्लवी को बड़ा खालीपन लग रहा था. खालीपन तो वह कई महीनों से महसूस करती आ रही थी, लेकिन आज तो सुबह से ही वह खासी बोरियत महसूस कर रही थी.
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बाई खाना बना कर जा चुकी थी. सुबह के 11 ही बजे थे पल्लवी का नहाना धोना, नाश्ता भी हो चुका था. झाड़ूपोंछा और कपड़े धोने वाली बाइयां भी अपना अपना काम कर के जा चुकी थीं. यानी अब दिन भर न किसी का आना या जाना नहीं होना था.
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टीवी से भी बोर हो कर पल्लवी ने टीवी बंद कर दिया.
पिछले 4 साल से घर में अकेली ही रह रही थी। माँ बाप भाई बहिन और पति सब कोई साथ छोड़ गए थे ,,, थी तो उसके साथ उसकी महत्वकांक्षाये , उसका अहम , ऐसा अहम जो स्वाभिमान का विकृत रूप बन गया था। आज बोरियत से टालने के लिए अपनी प्यारी सहेली अंजलि को फ़ोन किया ,, “हे अंजलि चल ना मूवी देखने चलते है ? ,, नहीं यार आज पीहू की तबियत ठीक नहीं है। हिम्मत करके मूवी
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अकेले देखने गयी तो देखा अंजलि अपने पति के साथ मूवी देखने आयी हुई थी ,, पीहू चहक रही थी। दिल पर लगी बात अंजलि की ,,, जब जाना ही था मुझे मना क्यों किया ? मन ही मन सोचा पल्लवी ने।
इसी तरह उसकी सारी सहेलिया उस से कन्नी काटने लगी थी ,, जो कभी उसके इर्द गिर्द मंडराती रहती थी। भौरे जब तक पास रहते है जब तक फूल में रस उपलब्ध होता है। सभी सहेलिया किसी न किसी बात पर मिलने से अवॉयड करने लग गयी थी। जब से पल्लवी ने सुमित से तलाक लिया था… शुरू शुरू में उसे आजादी महसूस हुई ,, लेकिन 1 साल बाद अकेलापन खाने को दौड़ता ,, सब भाई बहिन ,, माँ बाप सभी ने उस से रिश्ता तोड़ दिया था। पल्लवी ने किसी की सुनी भी कहाँ थी ,, सबने बहुत समझाया ,, सुमित अच्छा लड़का है तुमसे बहुत प्यार करता है।
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लेकिन स्वाभिमान और अहंकार के बीच महीन दीवार होती है ,, इंसान कब उस दीवार को लांघ जाता है पता नहीं चलता। और अक्सर लांघने वाले गिर कर चोट खाते है। यही पल्लवी के साथ हुआ ,, अच्छे घर से आयी ,, पढ़ी लिखी मल्टीनेशनल कंपनी में मैनेजर के तौर पर कार्यरत थी। सुमित उसका पति बैंक में मैनेजर की पोस्ट पर था। ज्यादा पढाई भी कभी कभार मूल संस्कार नष्ट कर देती है ,, सुमित और उसके परिवार की दिली इच्छा एक बच्चे की थी तो क्या गलत थी?
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ऑफिस में सहेलिया उसको भड़काने में कोई कसर नहीं छोड़ती थी ,, “रहने दे पल्लवी , अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है ? अभी बच्चा पैदा करेगी तो फिगर खराब हो जायेगा। हर पति की कुछ छोटी छोटी अपेक्षाएं होती है ,, सुमित को भी रहती थी जैसे कभी पकोड़े खाने का मन होता था। कभी शर्ट का बटन टूट जाता उसको टांकने को कहता। एक दिन जब सुमित ने बाजार से ताजा टिंडे ला कर अपने हाथ के मसाले वाले भरवां टिंडे बनाने का अनुरोध किया, तो पल्लवी बुरी तरह बिफर गई कि वह अभी औफिस से थकीमांदी आई है और सुमित उस से चूल्हे-चौके का काम करने को कह रहा है. उस दिन पल्लवी ने न सिर्फ सुमित को बहुत कुछ उलटासीधा कहा, बल्कि साफसाफ यह भी कह दिया कि वह अब और अधिक उस की गुलामी नहीं करेगी. आखिर वह भी इंसान है, कोई खरीदी हुई बांदी नहीं है कि जबतब सिर झुका कर उस का हुकुम बजाती रहे. उसे इस गुलामी से छुटकारा चाहिए.
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सुमित सन्न सा खड़ा रह गया. एक छोटी सी बात इतना बड़ा मुद्दा बनेगी, यह तो उस ने सपने में भी नहीं सोचा था. इस के बाद वह बारबार माफी मांगता रहा, पर पल्लवी न मानी ,, हर बार उसको जवाब ना में ही मिलता ,, सुमित के माता पिता तो अपने कसबे में ही रहते थे। 2 जीव भी एक छत के नीचे प्रेम से निर्वाह न कर सके तो बड़ी विडंबना है।
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पल्लवी की सखिया श्वेता , पूनम ,,अंजलि और प्रेरणा ,, सभी शादी शुदा थी बाल बच्चे दार थी… मगर किसी के घर में झगडे नहीं थे ,, सब की सब स्वार्थी सिर्फ उसका फायदा उठाती थी। उसके पैसे चाहिए होते थे ,, उनसे मस्ती करती थी सब। पल्लवी की मम्मी पापा ने बहुत समझाया बेटा ,, अभी भी वक़्त है सुधर जाओ ,, लेकिन पल्लवी पर सखियों का गहरा रंग चढ़ा था। 2 साल गुजर गए शादी को ,, छोटी छोटी बात पर झगडे होने लगे। सुमित बहुत प्यार करता था हर चीज बर्दाश्त कर जाता था। काम में बहुत मदद कर देता था ,, लेकिन जब अहम सर से ऊपर चला जाता है ,, तो विनाश काले विपरीत बुद्धि।
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आखिर पल्ल्वी ने अपने पति से छुटकारा लेने का फैसला किया ,, सुमित ने पल्लवी की ख़ुशी के लिए चुप चाप कागजात पर हस्ताक्षर कर दिए। पल्लवी बड़ी खुश थी आजादी मिल गयी थी सब से,, अलग फ्लैट लेकर अकेली रहने लगी। शुरू में बहुत खुश थी लेकिन धीरे धीरे तन्हाई ने घेरे डालने शुरू कर दिए। पति नाम का सुरक्षा कवच नारी को भेडियो से बचाता है। ऑफिस में मोहल्ले में जब से लोगों को पता लगा,, अकेली औरत रहती है तो बदजात मर्द सूंघते मिल जाते थे। हर कोई खुली तिजोरी लूटने को त्यार रहता है
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धीरे धीरे उसकी सहेलिया भी कन्नी काटने लगी ,, उनको यह भय सताता कहीं हमारे पतियों को ना फसा ले। जिसको भी मिलने के लिए बुलाती वही कुछ न कुछ बहाना बनाकर टाल जाती थी। कभी बच्चो का कभी पति का बहाना लगाकर सब पीछे हट जाती।
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4 साल गुजर गए आज बिलकुल अकेली तन्हाई में रोती पल्लवी ,, “काश सुमित मेने तुम्हे समझा होता ,, काश में सहेलियों की बातो में न आयी होती। काश माँ बाप की बात सुनी होती। पिछली जिंदगी को याद कर कर के सुबक सुबक कर रोने लगी ,, आज उसे किसी काँधे की जरुरत थी ,, जो उसके पास नहीं था।
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एक दिन पल्ल्वी ऑफिस जा रही थी उसको पूर्णिमा मिली जो सुमित की दफ्तर में काम करती थी ,, जिसको लेकर भी पल्लवी और उसकी सहेलियों ने शक जताया था। जबकि दोनों के बीच कुछ रिश्ता नहीं था ,, लेकिन तलाक के बाद सुमित और पूर्णिमा दोस्त बन गए थे। उसे सुमित के दिल के हाल पता थे
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“आओ पूर्णिमा कैसी हो ? ” में अच्छी हूँ आप कैसी हो ? चलो कही कैफ़े में बैठते है ,,, पल्लवी ने कहा। “कैसी हो पल्ल्वी ? सुमित के बिना कैसी कट रही है ,, दोबारा शादी की ? सब बाते सुनते सुनते पल्ल्वी अचानक फफक फफक कर रो पड़ी। “मुझसे बहुत बड़ी भूल हुई ,,सहेलियों के भड़कावे में आकर मेने सुमित से तलाक लेकर बहुत बड़ी गलती की। बरसो से रुका हुआ सैलाब आज बह निकला ,, पूर्णिमा ने हाथ पकड़ते हुए कहा ,, पललवी हौसला रखो तुम बहादुर हो।
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सुमित के क्या हाल है ? पल्लवी ने आंसू पोंछते हुए पूछा। ठीक है बस ज़िंदा है,, आज भी तुम्हारी याद में सुलग रहा है ,, ऐसा सुलग रहा है ना धुआं ना राख।
पूर्णिमा की भी आँखे नाम हो आयी ,,, पल्लवी तुम ही पहला और आखिरी प्यार हो उसका। आज भी उसने शादी नहीं की ,, अगर तुम कहो तो में उस से बात करू ? नहीं में खुद ही जाउंगी।
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उसी दिन शाम को पल्लवी ने घंटी बजाई ,, अंदर से सुमित निकल कर आया। कितनी देर तक दोनों एक दूसरे की आँखों में आँखे डाल कर अश्रुधारा प्रवाहित करते रहे। जब थोड़ा सम्भले तब ” अंदर आने के लिए नहीं कहोगे ? “आ जाओ तुम ही छोड़ कर गयी थी ,, मेने तुम्हे जाने को कभी नहीं कहा। कान पकड़ते हुए पल्ल्वी में माफ़ी मांगी ,, “मुझे माफ़ करदो सुमित ” रोते रोते सुमित ने बाहें फैलाई ,, पल्लवी अपने साजन की बाहों में समां गयी। सुमित ने उसे कस कर अपने बाहुपाश में बांध लिया. दोनों देर तक आंसू बहाते रहे. मनों का मैल और 4 सालों की दूरियां आंसुओं से धुल गईं.

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खाना खाकर दोनों बात करते रहे ,, अच्छा सो जाओ पल्लवी तुम्हे सुबह ऑफिस के लिए निकलना है। “मेने नौकरी छोड़ दी है” क्यों,, अब मुझे तुम्हारे बच्चो की परवरिश करनी है ,, शरमाते हुए सुमित की बाहों में समां गयी,, सुमित हंस पड़ा. फिर दोनों एकदूसरे की बांहों में खोए हुए अपने कमरे की ओर चल पड़े.

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देव कृष्णा

सुविचार

एक बुजुर्ग औरत मर गई, यमराज लेने आये।

औरत ने यमराज से पूछा, आप मुझे स्वर्ग ले जायेगें या नरक।

यमराज बोले दोनों में से कहीं नहीं।

तुमनें इस जन्म में बहुत ही अच्छे कर्म किये हैं, इसलिये मैं तुम्हें सिधे प्रभु के धाम ले जा रहा हूं।

बुजुर्ग औरत खुश हो गई, बोली धन्यवाद, पर मेरी आपसे एक विनती है।

मैनें यहां धरती पर सबसे बहुत स्वर्ग – नरक के बारे में सुना है मैं एक बार इन दोनों जगाहो को देखना चाहती हूं।

यमराज बोले तुम्हारे कर्म अच्छे हैं, इसलिये मैं तुम्हारी ये इच्छा पूरी करता हूं।

चलो हम स्वर्ग और नरक के रसते से होते हुए प्रभु के धाम चलेगें।

दोनों चल पडें, सबसे पहले नरक आया।

नरक में बुजुर्ग औरत ने जो़र जो़र से लोगो के रोने कि आवाज़ सुनी।

वहां नरक में सभी लोग दुबले पतले और बीमार दिखाई दे रहे थे।

औरत ने एक आदमी से पूछा यहां आप सब लोगों कि ऐसी हालत क्यों है।

आदमी बोला तो और कैसी हालत होगी, मरने के बाद जबसे यहां आये हैं, हमने एक दिन भी खाना नहीं खाया।

भूख से हमारी आतमायें तड़प रही हैं

बुजुर्ग औरत कि नज़र एक वीशाल पतिले पर पडी़, जो कि लोगों के कद से करीब 300 फूट ऊंचा होगा, उस पतिले के ऊपर एक वीशाल चम्मच लटका हुआ था।

उस पतिले में से बहुत ही शानदार खुशबु आ रही थी।

बुजुर्ग औरत ने उस आदमी से पूछा इस पतिले में कया है।

आदमी मायूस होकर बोला ये पतिला बहुत ही स्वादीशट खीर से हर समय भरा रहता है।

बुजुर्ग औरत ने हैरानी से पूछा, इसमें खीर है

तो आप लोग पेट भरके ये खीर खाते क्यों नहीं, भूख से क्यों तड़प रहें हैं।

आदमी रो रो कर बोलने लगा, कैसे खायें

ये पतिला 300 फीट ऊंचा है हममें से कोई भी उस पतिले तक नहीं पहुँच पाता।

बुजुर्ग औरत को उन पर तरस आ गया
सोचने लगी बेचारे, खीर का पतिला होते हुए भी भूख से बेहाल हैं।

शायद ईश्वर नें इन्हें ये ही दंड दिया होगा

यमराज बुजुर्ग औरत से बोले चलो हमें देर हो रही है।

दोनों चल पडे़, कुछ दूर चलने पर स्वरग आया।

वहां पर बुजुर्ग औरत को सबकी हंसने,खिलखिलाने कि आवाज़ सुनाई दी।

सब लोग बहुत खुश दिखाई दे रहे थे।
उनको खुश देखकर बुजुर्ग औरत भी बहुत खुश हो गई।

पर वहां स्वरग में भी बुजुर्ग औरत कि नज़र वैसे ही 300 फूट उचें पतिले पर पडी़ जैसा नरक में था, उसके ऊपर भी वैसा ही चम्मच लटका हुआ था।

बुजुर्ग औरत ने वहां लोगो से पूछा इस पतिले में कया है।

स्वर्ग के लोग बोले के इसमें बहुत टेस्टी खीर है।

बुजुर्ग औरत हैरान हो गई

उनसे बोली पर ये पतिला तो 300 फीट ऊंचा है

आप लोग तो इस तक पहुँच ही नहीं पाते होगें

उस हिसाब से तो आप लोगों को खाना मिलता ही नहीं होगा, आप लोग भूख से बेहाल होगें

पर मुझे तो आप सभी इतने खुश लग रहे हो, ऐसे कैसे

लोग बोले हम तो सभी लोग इस पतिले में से पेट भर के खीर खाते हैं

औरत बोली पर कैसे,पतिला तो बहुत ऊंचा है।

लोग बोले तो क्या हो गया पतिला ऊंचा है तो

यहां पर कितने सारे पेड़ हैं, ईश्वर ने ये पेड़ पौधे, नदी, झरने हम मनुष्यों के उपयोग के लिये तो बनाईं हैं

हमनें इन पेडो़ कि लकडी़ ली, उसको काटा, फिर लकड़ीयों के तुकडो़ को जोड़ के वीशाल सिढी़ का निर्माण किया

उस लकडी़ की सिढी़ के सहारे हम पतिले तक पहुंचते हैं

और सब मिलकर खीर का आंनद लेते हैं

बुजुर्ग औरत यमराज कि तरफ देखने लगी

यमराज मुसकाये बोले

ईशवर ने स्वर्ग और नरक मनुष्यों के हाथों में ही सौंप रखा है,चाहें तो अपने लिये नरक बना लें, चाहे तो अपने लिये स्वरग, ईशवर ने सबको एक समान हालातो में डाला हैं

उसके लिए उसके सभी बच्चें एक समान हैं, वो किसी से भेदभाव नहीं करता

वहां नरक में भी पेेड़ पौधे सब थे, पर वो लोग खुद ही आलसी हैं, उन्हें खीर हाथ में चाहीये,वो कोई कर्म नहीं करना चाहते, कोई मेहनत नहीं करना चाहते, इसलिये भूख से बेहाल हैं

कयोकिं ये ही तो ईश्वर कि बनाई इस दुनिया का नियम है,जो कर्म करेगा, मेहनत करेगा, उसी को मीठा फल खाने को मिलेगा

दोस्तों ये ही आज का सुविचार है, स्वरग और नरक आपके हाथ में है

मेहनत करें, अच्छे कर्म करें और अपने जीवन को स्वरग बनाएं।

राधे राधे जी…

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एक प्रसंग, एक कहानी जो सच है।

एक बार ‘मध्यप्रदेश के इन्दौर’ नगर में एक रास्ते से
महारानी देवी अहिल्यावाई होल्कर के पुत्र मालोजीराव
का रथ निकला
तो उनके रास्ते में हाल ही की जनी गाय का एक बछड़ा सामने आ गया।

गाय अपने बछड़े को बचाने दौड़ी तब तक मालोजीराव का रथ गाय के बछड़े को कुचलता हुआ आगे बढ़ गया।

किसी ने उस बछड़े की परवाह नहीं की।
गाय बछड़े के निधन से स्तब्ध व आहत होकर बछड़े के पास ही सड़क पर बैठ गई।

🚩थोड़ी देर बाद अहिल्यावाई वहाँ से गुजरीं।
अहिल्यावाई ने गाय को और उसके पास पड़े मृत बछड़े को देखकर घटनाक्रम के बारे में पता किया।

🚩सारा घटनाक्रम जानने पर अहिल्यावाई ने दरबार में मालोजी की पत्नी मेनावाई से पूछा…
यदि कोई व्यक्ति किसी माँ के सामने ही उसके बेटे की हत्या कर दे,
तो उसे क्या दंड़ मिलना चाहिए?

🚩मालोजी की पत्नी ने जवाब दिया- उसे माँ प्राण दंड मिलना चाहिए।_

🚩देवी अहिल्यावाई ने मालोराव को हाथ-पैर बाँध कर मार्ग पर डालने के लिए कहा
और
फिर उन्होंने आदेश दिया मालोजी को मृत्यु दंड़ रथ से टकराकर दिया जाए।

🚩यह कार्य कोई भी सारथी करने को तैयार न था। देवी अहिल्यावाई न्यायप्रिय थी।

अत: वे स्वयं ही माँ होते हुए भी इस कार्य को करने के लिए भी रथ पर सवार हो गईं।

🚩वे रथ को लेकर
आगे बढ़ी ही थीं
कि तभी एक अप्रत्यासित घटना घटी।
‘वही गाय’
फिर रथ के सामने आकर खड़ी हो गई,

उसे जितनी बार हटाया जाता उतनी बार पुन: अहिल्यावाई के रथ के सामने आकर खड़ी हो जाती।

🚩यह द़ृश्य देखकर
मंत्री परिषद् ने देवी अहिल्यावाई से मालोजी को क्षमा करने की प्रार्थना की,
जिसका आधार उस गाय का व्यवहार बना।

🚩उस तरह गाय ने स्वयं पीड़ित होते हुए भी मालोजी को द्रौपदी की तरह क्षमा करके
उनके जीवन की रक्षा की।

🚩इन्दौर में
जिस जगह यह घटना घटी थी,
वह स्थान आज भी गाय के आड़ा होने के कारण
‘आड़ा बाजार’
के नाम से जाना जाता है।
उसी स्थान पर गाय ने अड़कर दूसरे की रक्षा की थी।✔

‘अक्रोध से क्रोध का, प्रेम से घृणा का और क्षमा से प्रतिशोध की भावना का शमन होता है’

भारतीय ऋषियों ने यूँ ही गाय को माँ नहीं कहा है, बल्कि इसके पीछे गाय का ममत्वपूर्ण व्यवहार, मानव जीवन में, कृषि में गाय की उपयोगिता बड़ा आधारभूत कारण है। गौसंवर्धन करना हर भारतीय का संवैधानिक कर्तव्य भी है।