Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

चौरासी कोस की यात्रा ………..

एक समय श्रीशंकर भगवान माता पार्वती के साथ कैलाश पर विराजमान थे | माता पार्वती भगवान शिव जी को बहुत देर से चिंतित देख कर शिव जी से पूछीं | भगवन मैं आपको बहुत देर से चिंतित देख रही हूँ |क्या में जान सकती हूँ कि आपकी चिंता का विषय
क्या है | तब भगवान शिव जी माता पार्वती जी से बोले कि हे देवी, मेरी चिंता का विषय यह है कि सब लोग अपने – अपने गुरु बनाते हैं | पर आज तक हमने किसी को गुरु नहीं बनाया | क्यों कि कहा गया है कि जीवन में जब तक गुरु नहीं बनाया, तब तक का किया हुआ सभी पुन्य कार्यों का फल नहीं मिलता | हम रात दिन राम – राम जपते हैं पर उसका कोई फल हमें प्राप्त
नहीं होता |इस लिये बिचार कर रहा हूँ| कि जगत में गुरु बनाये तो किसको |इस पर माता पार्वती बोली कि आप जिनका रात दिन भजन करते हैं उन्ही को गुरु बना लीजिये | तब भगवान शिव जी बोले कि जिनका में भजन करता हूँ उनको तो पूरा संसार भजता है | इसलिये ये नहीं कुछ नया होना चाहिये | तब माता पार्वती जी भगवान
शिव जी से बोलीं कि तब तो एक ही रास्ता है |क्यों ना भगवान विष्णु जी को श्री कृष्ण जी के नयेरूप में और श्री लक्ष्मी जी को श्री राधा रानी जी के नये रूप में बना कर उनकी पूजा करके आप उन्हें गुरु बना लीजिये | भगवान शिव जी माता पार्वती जी की बात सुन कर प्रसन्न हो उठे | और बोले “हे देवी” तब तो मैं आज ही जा कर भगवान श्री विष्णु जी से अपना गुरु बनाने के लिए आग्रह करता हूँ | माता
पार्वती बोली “हे नाथ” आपकी आज्ञा हो तो मैं भी आपके साथ श्रीविष्णुलोक चलना चाहती हूँ |तब भगवान शिव और माता पार्वती श्रीविष्णु लोक के लिए प्रस्थान कर गये | श्रीविष्णु लोक पहुँच कर भगवान शिव जी और माता पार्वती जी भगवान श्रीविष्णु जी से बोले की ऐसे तो हम रात दिन आपका भजन करते ही हैं पर आज तक हमने किसी को गुरु नहीं बनाया इस लिए हमें हमारे भजन का फल नहीं मिलता, इस लिए हमने बिचार किया है की हम
आपको ही गुरु बनाये | इस लिए आप और माता श्रीलक्ष्मी जी श्रीविरजा नदी के तट पर पधारें हम वहीँ आपको गुरु बनायेंगे |भगवान श्रीविष्णु जी और
माता श्रीलक्ष्मी जी भगवान शिव जी का आमंत्रण सहर्ष स्वीकार कर लिया | भगवान शिव और माता पार्वती जी वापस अपने स्थान कैलाश पर आ गये |कुछ समय बाद भगवान शिव जी द्वारा दिये गये समय के अनुसार श्रीविष्णु जी और माता श्रीलक्ष्मी जी
श्रीविरजा नदी के तट पर बताये गये जगह पर पहुँच गये |भगवान शिव जी और माता पार्वती जी ने भगवान
श्रीविष्णु जी और माता श्रीलक्ष्मी जी का भव्य स्वागत किया | “स्वागत में भगवान शिव जी सभी लोकों से अलग श्रीविरजा नदी के तट पर एक नए लोक का निर्माण किया, जिसमें अनेकानेक गाये थीं सभी प्रकार के फलों के वृक्ष थे | मोर, तोता सभी पक्षी मोजूद थे | शीतल मन्द सुगन्ध हवायें चल रही थी | एक बहुत बड़ा सोने का रत्न जड़ित सिंहासन बना हुआ था” जिसका “श्रीगौलोक धाम” नाम दिया गया |स्वागत के बाद भगवान शिव जी और माता पार्वती
जी भगवान श्रीविष्णु जी और श्रीलक्ष्मी जी को पहले एक नया स्वरूप दिया | जिसमें श्रीविष्णु जी को श्रीकृष्ण जी के रूप में और श्रीलक्ष्मी जी को श्रीराधा जी के रूप में सजा कर उस सोने के सिंहासन पर बिठा कर विधि विधान से पूजन अर्चन करके फिर उनको अपना गुरु बनाया | और कहा कि महाराज ये लोक जिसका नाम “गौलोक धाम” है, ये आपकी विहार स्थली है | ये सारी गाय इस धाम में उपस्थित सभी वस्तु आपको समर्पित है | आप इसी रूप में
( श्रीराधा कृष्ण ) सदा यहाँ निवास करिये | और अपने भक्तों को मोक्ष प्रदान करिये | तदुपरान्त भगवान शिव जी और माता पार्वती अपने धाम कैलाश को वापस आ गये | एक दिन श्रीराधा जी और श्रीकृष्ण जी अपने धाम श्रीगौलोक में विहार कर रहे थे, दोनों विहार में इतने मद मस्त थे कि, तभी उसी समय श्रीराधा रानी जी
के भाई वहाँ से गुजरे | श्रीराधा जी और श्रीकृष्ण जी दोनों ही उनको नहीं देखे और ना ही उनके और ध्यान दिये | जिस पर श्रीराधा रानी जी के भाई को
क्रोध आ गया कि, हम यहाँ से गुजर रहे हैं और ये लोग विहार में इतने मद मस्त हैं कि इनको हमारी ओर जरा भी ध्यान नहीं है | जिस पर श्रीराधा रानी जी के भाई ने श्रीराधा रानी जी को और श्रीकृष्ण जी को श्राप दे दिया कि आप लोग में जितना अधिक प्रेम है आप दोनों उतने ही दूर चले जाओगे | श्राप दे कर भाई तो चले गये |तब श्रीकृष्ण जी श्रीराधा रानी जी से बोले कि आपके भाई द्वारा दिए गये श्राप के फल को भोगने के लिए तो मृत्युलोक में जाना पड़ेगा | क्यों कि यहाँ तो इस श्राप को भोगने का कोई साधन नहीं है | ये सुन कर श्रीराधा रानी जी रोने लगीं | और भगवान श्रीकृष्ण जी से बोलीं कि हम तो मृत्युलोक नहीं
जायेंगे | क्यों कि वहाँ का लोक हमारे अनकूल नहीं है |वहाँ पाप अधिक है पुन्य कम है | तब भगवान श्रीकृष्ण
जी बोले कि चाहे वहाँ जो भी हो, श्राप भोगने तोवहीँ जाना होगा | श्रीराधा रानी जी मृत्युलोक में आने के लिए किसी भी प्रकार से तैयार नहीं हो
रहीं थीं, तब अन्त में श्रीकृष्ण जी बोले कि एक उपाय है | क्यों ना हम इस गौलोक धाम को ही वहाँ ले चलें |इस पर श्रीराधा रानी जी मृत्युलोक आने के लिए तैयार हो गयीं |तब भगवान श्रीकृष्ण जी सर्व प्रथम श्रीयमुना जी को पृथ्वी ( धरती ) पर आने को कहा, फिर श्रीविरजा नदी का जल ( पानी ) श्रीयमुना जी में छोड़ा गया| इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण जी गौलोक धाम से
( 84 ) चौरासी अँगुल गौलोक धाम कि मिटटी पृथ्वी पर एक सीमित क्षेत्र चौरासी कोस में बर्षा की, 84 कोस बराबर 252 कि. मी.| श्रीविरजा नदी
का जल और श्रीगौलोक धाम की मिटटी चौरासी कोस के क्षेत्र में एक साथ आने के कारण इस क्षेत्र का नाम ब्रज क्षेत्र पड़ा |इस ब्रज क्षेत्र में 12वन, 24 उपवन, 20 कुण्ड और नन्द गाँव,
बरसाना, गोकुल, गोवर्धन, वृन्दावन, मथुरा, कोसी,राधा कुण्ड आदि क्षेत्र इसके अंतर्गत आते हैं | ( चौरासी
अँगुल इस लिए कि धर्म शास्त्रों के अनुसार पृथ्वी पर हर मनुष्य का शरीर अपने हाथ कि अँगुली से चौरासी
अँगुल का ही होता है | ) इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण जी गौलोक धाम के सभी पशु पक्षी इत्यादि को बोले कि आप श्रीराधा रानी जी कि सेवा में ब्रज
में जाइये |तब जा कर श्रीराधा रानी जी सर्व प्रथम ब्रज क्षेत्र के बरसाने में श्रीबृसभान जी के यहाँ प्रगट हुयीं |
श्रीराधा रानी जी के ब्रज में आने के कई वर्ष बाद श्रीकृष्ण भगवान मथुरा में अपने मामा कंस के कारागृह में बन्द श्रीवासुदेव जी के यहाँ पधारे | और बाल्यकाल कि सभी लीला श्रीराधा रानी जी के साथ ब्रज में ही किया | इसके बाद श्रीकृष्ण जी तो ब्रज छोड़
कर चले गये, पर श्रीराधा रानी जी अपने भाई द्वारा दिए श्राप को ब्रज में ही बितायीं और बाद में अपने धाम गौलोक को चली गयी | बोलो जय श्री
राधे |श्री मद भागवत पुराण आदि में ऋषि – सन्तों का बर्णन है कि कलयुग में ब्रज चौरासी कोस कि परिक्रमा लगाने से चौरासी जन्म के पापों से सहज ही मुक्ति मिल जाती है |
मुक्ति कहे गोपाल से, मेरी मुक्ति बताओ |
ब्रज रज जब माथे चड़े, मुक्ति मुक्त हो जाय ||
ब्रज चौरासी कोस कि परिकम्मा जो देत|
तो लख चौरासी कोस के पाप हरि हर लेत
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संजय गुप्ता

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।। क्या है फिटकरी और क्या है इस से जुड़े कुछ फ़ायदे आए जाने इस पोस्ट के द्वारा ।।

जो मनुष्य की काया ‘फिट’ करे उसे ‘फिटकरी’ कहते हैं यह लाल व सफेद दो प्रकार की होती है। फिटकरी एक प्रकार का खनिज है जो प्राकृतिक रूप में पत्थर की शक्ल में मिलता है। इस पत्थर को एल्युनाइट कहते हैं। इससे परिष्कृत फिटकरी तैयार की जाती है। खड़े नमक की तरह दिखने वाली फिटकरी सेंधा नमक की तरह चट्टानों से मिलती है। इसका रासायनिक नाम है पोटेशियम एल्युमिनियम सल्फेट। पोटाश एलम का इस्तेमाल रक्त में थक्का बनाने के लिए किया जाता है। इसके कई तरह के औषधीय उपयोग हैं।
औषधीय उपयोग के अलावा ज्योतिषियों अनुसार फिटकरी के कुछ और भी प्रयोग होते हैं जिनको करने से जीवन में लाभ प्राप्त किया जा सकता है। तो आओ जानते हैं फिटकरी के अचूक उपाय

◆ बुरे सपनों से मिलेगी मुक्ति :

आप सोने वाले बिस्तर के नीचे काले कपड़े में फिटकरी बांधकर रखें। इससे बुरे स्वप्न आना, नींद में चमकना या किसी अनजान भय से व्यक्ति ‍मुक्त हो जाता है।
किसी भी मंगलवार या रविवार के दिन फिटकरी का एक टुकड़ा बच्चे के सिरहाने रख दें। रात में बच्चे को सोते समय बुरे स्वप्न नहीं आएंगे और न ही बच्चा डरेगा नही और आराम से सो जायेगा।।

◆ व्यापार मे बरकत के लिए

किसी दुकान या प्रतिष्ठान के मुख्य द्वार पर काले कपड़े में फिटकरी बांधकर लटका देने से बरकत बरकरार रहती है।

◆ पानी
परिवार के सदस्यों में झगड़े होते हों तो परिवार का मुखिया रात्रि को अपने पलंग के नीचे एक लोटा पानी रख दें उस मे छोटा सा टुकड़ा फिटकरी का डाल दे और सुबह गुरुमंत्र अथवा ईष्टदेव के नाम का उच्चारण करके वह जल पीपल को चढ़ाएं। इससे पारिवारिक कलह दूर होंगे, घर में शांति होगी।

◆ फिटकरी या नमक का कटोरा:

बाथरूम में खड़े नमक या फिटकरी से भरा एक कटोरा रखें। हर महीने इस कटोरे के नमक या फिटकरी को बदलती रहें। माना जाता है कि हवा में मौजूद नमी के साथ-साथ यह नमक आसपास की नकारात्मक ऊर्जाओं को भी अपने अंदर समाहित कर लेता है।
◆ घर मे सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाने के लिए

घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह सुनिश्चित करने के लिए किसी शीशे की प्लेट में कुछ छोटे-छोटे फिटकरी के टुकड़े आदि खिड़की या दरवाजे या बालकनी के पास रख दें तथा उन्हें हर महीने नियम से बदलते रहें, तो वास्तुदोष से मुक्ति मिलती है।
इसके अलावा 50 ग्राम फिटकरी का टुकड़ा घर के प्रत्येक कमरे में तथा कार्यालय के किसी कोने में रख देने से वहां का वास्तु दोष कुछ हद तक कम हो जाता है।

◆ फिटकरी से नजरदोषमुक्ति :

जिस व्यक्ति को नज़र लगी हो उसे लिटाकर, फिटकरी का टुकड़ा लेकर सिर से पांव तक सात बार उतारें। ध्यान रहे कि हर बार सिर से पांव तक ले जाकर टुकड़े को तलुवे से लगाकर फिर सिर से घुमाना शुरु करें। इस फिटकरी के टुकड़े को आग में डाल दें। जैसे- जैसे वह फिटकरी आग में जलेगी, वैसे- वैसे बुरी नजर का असर खत्म होता जाएगा।

◆ कारोबार में कामयाबी के लिए

साक्षात्कार देने जाते समय ये टुकड़े अपने पास रखेंगे तो सफलता मिलेगी। दूसरा यह कि कारोबार से जुड़े किसी महत्वपूर्ण कार्य से जा रहे हैं तो ये फिटकरी के टुकड़े अपने पास रखेंगे तो अवश्य सफलता मिलेगी।

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( मृत्यु टाले न टले )

भगवान विष्णु गरुड़ पर बैठ कर कैलाश पर्वत पर गए।
द्वार पर गरुड़ को छोड़ कर खुद शिव से मिलने अंदर
चले गए। तब कैलाश की अपूर्व प्राकृतिक शोभा
को देख कर गरुड़ मंत्रमुग्ध थे कि तभी उनकी नजर
एक खूबसूरत छोटी सी चिड़िया पर पड़ी।
चिड़िया कुछ इतनी सुंदर थी कि गरुड़ के सारे
विचार उसकी तरफ आकर्षित होने लगे।
उसी समय कैलाश पर यम देव पधारे और अंदर जाने से
पहले उन्होंने उस छोटे से पक्षी को आश्चर्य की
द्रष्टि से देखा। गरुड़ समझ गए उस चिड़िया का अंत
निकट है और यमदेव कैलाश से निकलते ही उसे अपने
साथ यमलोक ले जाएँगे।
गरूड़ को दया आ गई। इतनी छोटी और सुंदर
चिड़िया को मरता हुआ नहीं देख सकते थे। उसे अपने
पंजों में दबाया और कैलाश से हजारो कोश दूर एक
जंगल में एक चट्टान के ऊपर छोड़ दिया, और खुद
बापिस कैलाश पर आ गया।
आखिर जब यम बाहर आए तो गरुड़ ने पूछ ही लिया
कि उन्होंने उस चिड़िया को इतनी आश्चर्य भरी
नजर से क्यों देखा था। यम देव बोले “गरुड़ जब मैंने
उस चिड़िया को देखा तो मुझे ज्ञात हुआ कि वो
चिड़िया कुछ ही पल बाद यहाँ से हजारों कोस दूर
एक नाग द्वारा खा ली जाएगी। मैं सोच रहा था
कि वो इतनी जलदी इतनी दूर कैसे जाएगी, पर अब
जब वो यहाँ नहीं है तो निश्चित ही वो मर चुकी
होगी।”
गरुड़ समझ गये “मृत्यु टाले नहीं टलती चाहे कितनी
भी चतुराई की जाए।”
इस लिए कृष्ण कहते है।
करता तू वह है
जो तू चाहता है
परन्तु होता वह है
जो में चाहता हूँ
कर तू वह
जो में चाहता हूँ
फिर होगा वो
जो तू चाहेगा ।

इसलिए संभल के चलिए … ज़िन्दगी का सफर छोटा है , हँसते हँसते काटिये , आनंद आएगा ।।
जय श्री कृष्ण
*

संजय गुप्ता

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(((( सहजो बाई की गुरु भक्ति ))))
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आज सहजो अपनी कुटिया के द्वार पर बैठी है, उसकी गुरुभक्ति से प्रसन्न होकर परमात्मा प्रकट हुए हैं ।
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पर सहजो के अन्दर कोई उत्साह नहीं । कहा – सहजो हम स्वयं चलकर आऐ हैं तुम्हे हर्ष नही ?
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सहजो ने कहा — प्रभु ये तो आपने अहेतुक कृपा की है, पर मुझे तो आपके दर्शन की भी कामना नही थी।
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परमात्मा को झटका लगा। ऐसा तेरे पास क्या है, जो तू मेरा आतिथ्य भी नही करती ?
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सहजो– मेरे पास मेरा सद्गुरु समर्थ है। मैने तुम्हे अपने सद्गुरु मे पा लिया है, मैं परमात्म तत्व का दर्शन भी करना चाहती हूँ तो केवल अपने सद्गुरु के रूप मे।
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मुझे आपके दर्शनो की कोई अभिलाषा नही है, यदि मै गुरुदेव को कहती तो वह कभी का तुम्हे उठाकर मेरी झोली मे डाल देते।
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ये भाव देखकर आज परमात्मा पिघल गया। कहा – सहजो मुझे अदंर आने के लिए नही कहोगी ?
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सहजो कहती है- प्रभु मेरी कुटिया के भीतर एक ही आसन है और उस पर भी मेरे सद्गुरु विराजते हैं, क्या आप भूमि पर बैठकर मेरा आतिथ्य स्वीकार करेंगें ?
.
तुम जहाँ कहोगी वहाँ बैठेंगें। भीतर तो आने दो प्रभु ने कहा।
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देखा सचमुच एक ही आसन है। भूमि पर बैठ गया ठाकुर।
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कहा — सहजो मैं जहाँ जाता हूँ कुछ न कुछ देता हूँ ऐसा मेरा नियम है । कुछ माँग लो।
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सहजो कहती है — मेरे जीवन मे कोई कामना नही है।
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प्रभु– फिर भी कुछ तो माँग लो ।
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कहा ठाकुर तुम मुझे क्या दोगे ? तुम तो स्वयं एक दान हो, जिसे मेरा दाता सद्गुरु किसी को भी जब चाहे दान कर देता है।
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अब बताओ दान बड़ा या दाता ? तुमने तो जन्म मरण, रोग भोग मे उलझाया, ये तो मेरे सदगुरु ने कृपा कर सब छुड़ाया।
.
प्रभु– सहजो आज मेरी मर्यादा रख ले, कुछ सेवा ही दे दे।
.
कहा – प्रभु एक सेवा है, मेरे सद्गुरु आने वाले हैं, जब मैं उन्हे भोजन कराऊँ तो क्या तुम उनके पीछे खड़े होकर चमर डुला सकते हो ?
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कथा कहती है प्रभु ने सहजो के गुरु चरणदास पर चमर डुलाया। जय सद्गुरू देव महाराज और सहजो बाई की अविचल अटूट ग्रुरू भक्ति …

संजय गुप्ता

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पाँच साल की बेटी बाज़ार में गोल गप्पे खाने के लिए मचल गई। 🍥🌏 “किस भाव से दिए भाई?” पापा नें सवाल् किया। “10 रूपये के 8 दिए हैं। गोल गप्पे वाले ने जवाब दिया…… पापा को मालूम नहीं था गोलगप्पे इतने महँगे हो गये है….जब वे खाया करते थे तब तो एक रुपये के 10 मिला करते थे। . पापा ने जेब मे हाथ डाला 15 रुपये बचे थे। बाकी रुपये घर की जरूरत का सामान लेने में खर्च हो गए थे। उनका गांव शहर से दूर है 10 रुपये तो बस किराए में लग जाने है। “नहीं भई 5 रुपये में 10 दो तो ठीक है वरना नही लेने।

यह सुनकर बेटी नें मुँह फुला लिया…. “अरे अब चलो भी , नहीं लेने इतने महँगे। पापा के माथे पर लकीरें उभर आयीं …. “अरे खा लेने दो ना साहब… अभी आपके घर में है तो आपसे लाड़ भी कर सकती है… कल को पराये घर चली गयी तो पता नहीं ऐसे मचल पायेगी या नहीं. … तब आप भी तरसोगे बिटिया की फरमाइश पूरी करने को… गोलगप्पे वाले के शब्द थे तो चुभने वाले पर उन्हें सुनकर पापा को अपनी बड़ी बेटी की याद आ गयी….

जिसकी शादी उसने तीन साल पहले
एक खाते -पीते पढ़े लिखे परिवार में की थी……

उन्होंने पहले साल से ही उसे छोटी
छोटी बातों पर सताना शुरू कर दिया था…..

दो साल तक वह मुट्ठी भरभर के
रुपये उनके मुँह में ठूँसता रहा पर
उनका पेट बढ़ता ही चला गया ….

और अंत में एक दिन सीढियों से
गिर कर बेटी की मौत की खबर
ही मायके पहुँची….

आज वह छटपटाता है
कि उसकी वह बेटी फिर से
उसके पास लौट आये..?
और वह चुन चुन कर उसकी
सारी अधूरी इच्छाएँ पूरी कर दे…

पर वह अच्छी तरह जानता है
कि अब यह असंभव है.
“दे दूँ क्या बाबूजी

गोलगप्पे वाले की आवाज से
पापा की तंद्रा टूटी…

“रुको भाई दो मिनिट ….
पापा पास ही पंसारी की दुकान थी उस पर गए जहाँ से जरूरत का सामान खरीदा था। खरीदी गई पाँच किलो चीनी में से एक किलो चीनी वापस की तो 40 रुपये जेब मे बढ़ गए।

फिर ठेले पर आकर पापा ने डबडबायी आँखें
पोंछते हुए कहा
अब खिलादे भाई। हाँ तीखा जरा कम डालना। मेरी बिटिया बहुत नाजुक है….
सुनकर पाँच वर्ष की गुड़िया जैसी बेटी की आंखों में चमक आ गई और पापा का हाथ कस कर पकड़ लिया।

जब तक बेटी हमारे घर है
उनकी हर इच्छा जरूर पूरी करे,…👏👏

क्या पता आगे कोई इच्छा
पूरी हो पाये या ना हो पाये ।

ये बेटियां भी कितनी अजीब होती हैं
जब ससुराल में होती हैं
तब माइके जाने को तरसती हैं….

सोचती हैं
कि घर जाकर माँ को ये बताऊँगी
पापा से ये मांगूंगी
बहिन से ये कहूँगी
भाई को सबक सिखाऊंगी
और मौज मस्ती करुँगी…

लेकिन

जब सच में मायके जाती हैं तो
एकदम शांत हो जाती है
किसी से कुछ भी नहीं बोलती….

बस माँ बाप भाई बहन से गले मिलती है।
बहुत बहुत खुश होती है।
भूल जाती है
कुछ पल के लिए पति ससुराल…..

क्योंकि
एक अनोखा प्यार होता है मायके में
एक अजीब कशिश होती है मायके में…..
ससुराल में कितना भी प्यार मिले…..

माँ बाप की एक मुस्कान को
तरसती है ये बेटियां….

ससुराल में कितना भी रोएँ
पर मायके में एक भी आंसूं नहीं
बहाती ये बेटियां….

क्योंकि
बेटियों का सिर्फ एक ही आंसू माँ
बाप भाई बहन को हिला देता है
रुला देता है…..

कितनी अजीब है ये बेटियां
कितनी नटखट है ये बेटियां
भगवान की अनमोल देंन हैं
ये बेटियां ……

हो सके तो
बेटियों को बहुत प्यार दें
उन्हें कभी भी न रुलाये
क्योंकि ये अनमोल बेटी दो
परिवार जोड़ती है
दो रिश्तों को साथ लाती है।
अपने प्यार और मुस्कान से।

हम चाहते हैं कि
सभी बेटियां खुश रहें
हमेशा भले ही हो वो
मायके में या ससुराल में।

●●●●●●●●
खुशकिस्मत है वो
जो बेटी के बाप हैं,

उन्हें भरपूर प्यार दे, दुलार करें और यही व्यवहार अपनी पत्नी के साथ भी करें क्यों की वो भी किसी की बेटी है और अपने पिता की छोड़ कर आपके साथ पूरी ज़िन्दगी बीताने आयी है। उसके पिता की सारी उम्मीदें सिर्फ और सिर्फ आप से हैं।

अगर ये पोस्ट दिल को छु गया हो तो और लोगों के साथ #शेयर जरूर करें

ये पोस्ट समर्पित है हर नारी को। ……..✍✍✍✍🙏🙏

Sanjay Gupta

Posted in ज्योतिष - Astrology

💯✔સવારે ઊઠીને પથારી સરખી ન કરે, એની પથારી ફરે,

ભગવાન કાર્તિકેય રચિત જ્યોતિષ સામુદ્રિકશાસ્ત્ર માં શરીરના અંગ ઉપાંગો તેમજ માનવ સ્વભાવની દૈનિક ગતિવિધિના આધારે ભવિષ્ય ભાખવામાં આવેલું છે. આમાંની કેટલીક લાક્ષણિક ટેવો જીવન વ્યવહારમાં વણાઈ ગયેલી હોય છે. ઘણી કુટેવો સુધારવા ઘરના વડિલો ટકોરતા પણ હોય છે. આવી શાસ્ત્રસંગત આચારસંહિતા અપનાવવાથી વ્યક્તિના જીવનમાં અનુશાસન, તંદુરસ્તી, પ્રગતિ અને વિકાસ સાધી શકાય છે. અહીં આવી જ કેટલીક ચાવીરૂપ બાબતોનો નિર્દેશ કરવામાં આવેલો છે. જે માટે આત્મચિંતન કરી તેમાં સુધાર લાવવાથી જરૂર અભિવૃદ્ધિ પામી શકાશે.

1, કેટલાક લોકોને જાહેરમાં કે ઘરમાં જ્યાં ત્યાં થૂંકવાની આદત હોય છે. જેનાથી યશ-આદર-સન્માન જલદી મળતાં નથી. મળી જાય તો પણ લાંબો સમય ટકતાં નથી. જેના બદલે યોગ્ય જગ્યાએ અથવા વૉશ બેસીનમાં થૂંક અને સળેખમનો નિકાલ કરવાની ટેવ પાડવાથી પોતાના માન-સન્માનમાં વધારો થશે.

  1. જે લોકો નાસ્તો કર્યા પછી કાગળની ડીશ, પતરાળું વગેરે જ્યાં ત્યાં ફેંકે છે કે જમ્યા પછી એઠીં થાળી જાતે ઉપાડ્યા વિના જ્યાં ત્યાં રહેવા દે છે, તેમને સ્થીર રીતે સફળતા મળતી નથી. ખૂબ જ વેઠ કરવી પડે છે. મન વિક્ષુબ્ધ રહે છે. નાસ્તા કે ભોજન પછી પોતાનું પાત્ર પોતે જ ઉઠાવી યોગ્ય જગ્યાએ મુકવાથી જીવનમાં આવતી રોજિંદી અડચણો સહેલાઈથી ઉકેલી શકવાનો માર્ગ મળે છે. માનસિક શાંતિ વધે છે. ચંદ્ર અને શનિનું ગ્રહ નડતર દૂર થાય છે.
  2. જ્યારે પણ ઘરમાં બહારથી કોઇ આગંતૂક કે મહેમાન આવે ત્યારે ચોખ્ખું પાણી પીવરાવવાની ટેવ રાખવી. કોઈના એઠા વાસણમાં કે એઠું પાણી પીવા ક્યારેય ન આપવું. વળી, ઘરમાં પાણિયારું સ્વચ્છ રાખવું. આમ કરવાથી રાહુનું સન્માન થાય છે. આકસ્મિક સંકટો નડતાં નથી.

  3. ઘરમાં રાખેલ પ્લાન્ટેશન-છોડની પ્રેમથી માવજત કરવામાં આવે, નિયમિત જળ સિંચવામાં આવે તો સૂર્યચંદ્ર અને બુધ પ્રસન્ન થાય છે. પરિવારમાં ખુશી અને સંપ રહે છે.

  4. જે ઘરમાં સભ્યો બહારથી આવી પોતાના ચંપલ, જૂતાં, મોજડી વગેરે આમ-તેમ ફંગોળી દે છે. તેમને શત્રુપીડા ભોગવવી પડે છે. વિરોધીઓથી ત્રાસ થાય છે. ઘરમાં આવતાં જ પગરખાં યોગ્ય જગ્યાએ મૂકવાથી પ્રતિષ્ઠામાં વધારો થાય છે. પનોતિની પીડામાં રાહત મળે છે.

  5. જે લોકો સવારે ઊઠીને પોતાની પથારી, ઓશીકું, ઓઢવાનું વગેરે અસ્ત વ્યસ્ત રાખતા હોય, તેના પર જૂનાં કપડાં, નાહીને ભીનો ટુવાલ પડેલા હોય, તેવા લોકોનો રાહુ-શનિ ખરાબ હોય છે, આવી વ્યક્તિ ખૂદ તો પરેશાન હોય છે જ, પરંતું બીજાઓ માટે પણ મુસીબતો સર્જતા હોય છે. તેવાઓનો વિકાસ અટકી જતો હોય છે. તેનાથી બચવા ઊઠતાંની સાથે સ્વયં પોતાનો બિસ્તરો સમેટી લેવાની ટેવ રાખવી. નાહીને પોતાનો ટુવાલ જાતે સુકવી દેવો. આમ કરવાથી જીવનમાં આશ્ચર્યજનક સુધાર આવશે.

  6. લોકો પાની -પગની સફાઈમાં બહુ લક્ષ્ય આપતા નથી. સ્નાન કરતી વખતે પગ સારી રીતે ધોવા તેમજ વ્યવસાય પરથી કે અન્ય કામે બહારથી ઘરમાં પરત ફરતાં પાંચ મિનિટ રોકાઈ હાથ-પગ-મોઢું પાણીથી ધોવા. આમ કરવાથી શરીરની થકાન અને ચીડીયાપણું દૂર થશે. મનની શક્તિ વધશે. ક્રોધ ઓછો થઈ આનંદમાં વૃદ્ધિ થશે. મંગળ-બુધની કૃપા ઉતરશે.

  7. કામ પરથી રોજ ખાલી હાથે ઘરે પરત ફરતાં ધીરે ધીરે આર્થિક તંગી વર્તાવા લાગે છે અને ઘરના સભ્યો માં પણ નકારાત્મક નિરાશાનો ભાવ જાગે છે. એનાથી ઊલટું ઘેર પાછા જતાં કોઈને કોઈ નાની વસ્તુ કે ઉપહાર લઈને જવાથી ઘરની સમૃધ્ધિ માં વૃદ્ધિ થાય છે. લક્ષ્મી નો વાસ થાય છે. ઘરના સભ્યોની પ્રગતિ થાય છે. સુર્ય અને શુક્રના દોષ દૂર થાય છે.

  8. વારંવાર જૂઠ્ઠું બોલવા કે છળકપટની ટેવથી આત્મ સન્માન અને પ્રતિષ્ઠાને હાનિ પહોંચાડનારી છે. તેનાથી વારંવાર ઉદાસીનતા આવતી હોય છે. સૂર્ય-ચંદ્ર-રાહુ પીડાદાયક બને છે. કરવાનાં કામ રહી જાય છે. રૂપિયા ઘર કરી જાય છે. આ ગ્રહોની પ્રસન્ન્તા મેળવવા સાચું બોલવાની ટેવ પાડવી.

શાસ્ત્રોની આજ્ઞા પ્રમાણે રોજિંદી ટેવો સુધારવાથી નડતા ગ્રહોની કૃપા થાય છે અને સમૃદ્ધિનો માર્ગ મોકળો થાય છે.

🙏🏻🌹 જય શ્રી કૃષ્ણ 🌹🙏🏻

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મારી સાથે બોલે છે ને..?
એમ પૂછીને પણ એકબીજા
સાથે બોલતા,

રીસેસમાં ફક્ત લંચ
બોક્સના નહિ,
આપણે લાગણીઓના
ઢાંકણાં પણ ખોલતા.

કિટ્ટા કર્યા પછી ફરી પાછા
બોલી જતા,

એમ ફરી એક વાર
બોલીએ,
ચાલ ને યાર,
એક જૂની નોટબુક ખોલીએ.

ચાલુ ક્લાસે
એકબીજાની સામે જોઈને
હસતા’તા,

કોઈપણ જાતના
એગ્રીમેન્ટ વગર,
આપણે એકબીજામાં
વસતા’તા.

એક વાર મારું હોમવર્ક
તેં કરી આપ્યું’તું,

નોટબુકના એ પાનાને મેં
વાળીને રાખ્યું’તું.

હાંસિયામાં જે દોરેલા,
એવા સપનાઓના ઘર હશે,

દોસ્ત,
મારી નોટબુકમાં આજે પણ
તારા અક્ષર હશે.

એક પણ પ્રશ્ન પૂછ્યા વગર
જ્યાં આપણા આંસુઓ
કોઈ લૂછતું’તું,

એકલા ઉભા રહીને
શું વાત કરો છો..?
એવું ત્યારે ક્યાં કોઈ
પૂછતું’તું..?

ખાનગી વાત કરવા માટે
સાવ નજીક આવી,
એક બીજાના કાનમાં
કશુંક કહેતા’તા…

ત્યારે ખાનગી કશું જ નહોતું
અને છતાં ખાનગીમાં
કહેતા’તા.

હવે, બધું જ ખાનગી છે
પણ કોની સાથે શેર કરું..?
નજીકમાં કોઈ કાન નથી…

દોસ્ત, તું કયા દેશમાં છે..?
કયા શહેરમાં છે..?
મને તો એનું પણ ભાન નથી.

બાકસના ખોખાને
દોરી બાંધીને
ટેલીફોનમાં બોલતા,
એમ ફરી એક વાર
બોલીએ,

ચાલ ને યાર,
એક જૂની નોટબુક ખોલીએ.

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पत्नी की फटकार का महत्व- 👩

पत्नी की फटकार सुनी जब,
तुलसी भागे छोड़ मकान।
राम चरित मानस रच डाला,
जग में बन गए भक्त महान।।

पत्नी छोड़ भगे थे जो जो,
वही बने विद्वान महान।
गौतम बुद्ध महावीर तीर्थंकर,
पत्नी छोड़ बने भगवान।।

पत्नी छोड़ जो भागे मोदी
हुए आज हैं पंत प्रधान।।
अडवाणी ना छोड़ सके तो,
देख अभी तक हैं परेशान।।

नहीं कि है शादी पप्पू ने,
नहीं सुनी पत्नी की तान।
इसीलिए फिरते है भटकते,
बन न सके राजनेता महान।।

हम भी पत्नी छोड़ न पाए,
इसीलिए तो हैं परेशान।
पत्नी छोड़ बनो सन्यासी,
पाओ मोक्ष और निर्वाण।।

(हास्य कविता का आनन्द लीजिये,,,, )
प्रेम से बाेलाे राघे राघे

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ये मोबाइल यूँ ही हट्टा कट्टा नहीं

बहुत कुछ खाया – पीया है इसने
मसलन
ये हाथ की घड़ी खा गया 
ये टॉर्च – लाईटे खा गया
ये चिट्ठी पत्रियाँ खा गया
ये किताब खा गया
ये रेडियो खा गया
ये टेप रिकॉर्डर खा गया
ये कैमरा खा गया
ये कैल्क्युलेटर खा गया
ये परोस की दोस्ती खा गया
ये मेल – मिलाप खा गया
ये हमारा वक्त खा गया
ये हमारा सुकून खा गया
ये पैसे खा गया
ये रिश्ते खा गया
ये यादास्त खा गया
ये तंदुरूस्ती खा गया
कमबख्त
इतना कुछ खाकर ही स्मार्ट बना
बदलती दुनिया का ऐसा असर
होने लगा
आदमी पागल और फोन स्मार्ट
होने लगा
जब तक फोन वायर से बंधा था
इंसान आजाद था
जब से फोन आजाद हुआ है
इंसान फोन से बंध गया है
ऊँगलिया ही निभा रही रिश्ते
आजकल
जुवान से निभाने का वक्त कहाँ है
सब टच में बिजी है
पर टच में कोई नहीं है ।

 

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ગુજરાતી વારસો

એક વાર્તા :- સાહેબ, હું તમારો વિદ્યાર્થી છું
By – #માય_ડિયર_જયુ

ઘોઘા દરવાજે એ મળ્યો. મને જોતાં જ ઉમંગથી ઝુકીને મને નમસ્કાર કર્યા. હું પ્રસન્નપણે એને જોઈ રહ્યો. બી.એ.માં હતો ત્યારે મારા વર્ગમાં બેઠો બેઠો ધ્યાનપૂર્વક મારી વાતો સાંભળતો એટલે એનો ચહેરો પરિચિત હતો. પણ એ વખતના સાદાં કપડાં અને અત્યારના જરા ઠીકઠાક પરિધાનથી મારી પ્રસન્નતામાં કંઈક ચમક આવી ગઈ. એ તે પામી ગયો હોય એમ બોલ્યો :
‘સર, મને નોકરી મળી ગઈ છે.’
‘બહુ સરસ. અત્યારે નોકરી મળવી મુશ્કેલ છે. તું ભાગ્યશાળી કે તને તરત જ નોકરી મળી ગઈ.’ મેં મારી ખુશી જણાવી.

એણે વિનયપૂર્વક કહ્યું : ‘તમારા આશીર્વાદ, સર.’
‘અરે, એમાં મારા આશીર્વાદ શા કામના ! તારી હોશિયારી, મહેનત અને નસીબ જ સારું પરિણામ લાવે.’ મેં ખુલાસો કર્યો. કારણ કે, ત્રણ વર્ષના એના અભ્યાસકાળમાં એ મને કોલેજમાં બે-ત્રણ વાર મળ્યો હશે. અમારી વચ્ચે એવી કાંઈ પરિચિતતા નહોતી કેળવાઈ કે અમે વારંવાર મળીએ, વધુ નજીક આવીએ, અંતરંગ બની જઈએ કે પછી હું એની નોકરી વગેરે જેવી બાબતોની ચિંતા કરતો હોઉં. પછી એના બોલવામાં ડોકાયેલા જશને ખોટી રીતે ગુંજે ભરવામાં મને સંકોચ થયો.
‘ગમે તેમ સાહેબ, પણ મને સમયસર નોકરી મળી ગઈ એનો મને વધુ આનંદ છે.’ કહેતાં કહેતાં એનો કંઠ ભીંજાઈ ગયો. મારા ચહેરા પરથી નજર હટાવીને મનોમન બોલતો હોય એમ બોલ્યો :
‘નોકરી ન મળી હોત તો અમારું શું થાત ?’
‘કેમ ?’
‘મારા પિતાજી તો હું નાનો હતો ત્યારે ચાલી ગયેલા. ઘરમાં એક ભાઈ, એક બહેન અને બા. બાએ મને મહેનત મજૂરી કરીને ભણાવ્યો. હવે એ બિમાર પડી છે. વચ્ચે તો ટંક છાંડી જઈએ એવાય દિવસો હતાં.’ હું પણ ગંભીર થઈ ગયો. પણ હવે એ ભૂતકાળમાં આંટા લગાવીને દુઃખી થવાની જરૂર નથી, એમ સમજીને મેં વાત બદલવાની કોશિશ કરી.
‘અચ્છા, નોકરી શાની છે એ તો કહે ?’
એણે ગર્વથી કહ્યું : ‘તલાટી-કમ-મંત્રીની, સર. બાજુના ગામમાં જ.’
‘વાહ, ગામડામાં મંત્રી તો રાજા જ કહેવાય. પૂરી બાદશાહી. હવે જલસા કર.’
‘તમારા આશીર્વાદ, સાહેબ.’ ફરી એમ જ બોલીને છૂટો પડ્યો. એકવાર ડોકું ઘુમાવીને મેં એને જોયો. ઉત્સાહથી ડગલાં માંડતો જતો હતો.

એ દિવસોમાં મને રોજ સાંજે બજારમાં આંટો લગાવવાની ટેવ. એકાદ વરસ થયું હશે. એ જ સ્થળે એ ફરી સામો આવી ઊભો. મને નમસ્કાર કર્યા. મેં જોયું કે એના દિદાર ફરી ગયા હતા. એ સાદા કફની લેંઘામાં હતો અને ચહેરો શાંત હતો. મને થયું, નજીકનું કોઈ સગુંવહાલું ગુજરી ગયું હશે કારણ કે એ કહેતો હતો ને કે એની મા બિમાર છે. ગમે તેમ પણ મને એની વાત કાઢવાનું મન ન થયું. કોઈને સીધું જ એમ પૂછીએ કે કોઈનું અવસાન થયું છે તો કેવું લાગે ? એટલે મેં એમ જ પૂછ્યું : ‘કેમ ચાલે છે તારી નોકરી ?’
ક્ષણવાર એ મારી સામું જોઈ રહ્યો. પછી એની આંખોમાં ચમક આવી અને હોઠ મરક્યા. પછી સહેજ આડું જોઈને બોલ્યો : ‘એ નોકરી મેં છોડી દીધી, સર.’
હું હચમચી ગયો.
‘કેમ ? કેમ ? તું તો ખૂબ જ જરૂરિયાતમંદ છો અને નોકરી પણ મજાની કહેવાય ! વળી કોઈ કામ કરતા તું થાકે-કંટાળે એવો તો છો નહિ. પછી….?’
‘છ મહિનામાં કામથી નહિ સાહેબ, નકામા વ્યવહારથી મને એ નોકરી પર નફરત થઈ ગઈ છે.’ હું વાત પામી ગયો. નસ-નસમાં વ્યાપેલો ભ્રષ્ટાચાર આને પણ અભડાવી ગયો હશે. તોય હું સમાધાનકારી વાતે વળ્યો.
‘તારી વાત સાચી છે. પણ આપ ભલા તો જગ ભલા. આપણે એવા વ્યવહારોથી અલિપ્ત રહીને નોકરી કરીએ ને….’
‘મેં ત્રણચાર મહિના એવા પ્રયત્નો કરી જોયા. પરંતુ કીચડમાં ચાલીએ અને ખરડાઈ નહિ એવું કેમ બને ? આપણે ન કરીએ તો અધિકારીઓ આપણા નામે હાંકે, એમાં રહેવું કેવી રીતે ? આપણે કંઈ ન કરી શકીએ તો પણ આપણો આત્મા સતત ડંખ્યા કરે.’

હું ચૂપ થઈ ગયો. આ ઉંમરે અને આ પરિસ્થિતિમાંય એને જીવનમૂલ્યોની ખેવના છે એ જાણીને મને એના પર માન થયું.
‘તારી વાત સાચી પણ આત્મા જે દેહમાં વસે છે એના નિર્વાહ માટેય વિચારવું પડે ને.’ મેં વાસ્તવિકતાને સામે ધરી. એણે મારી આંખોમાં આંખો પરોવી છાતીમાં હવા ભરી અને એક એક શબ્દ છુટો પાડીને બોલ્યો :
‘સાહેબ, હું તમારો વિદ્યાર્થી છું. હલકી બાબતોમાં બાંધછોડ કરવાનું તમે ક્યાં શીખવ્યું છે !’ હું દિંગ થઈ ગયો. મેં ? મેં શું શીખવ્યું છે ? હા, અભ્યાસક્રમમાં ચાલતી કથા, વાર્તા, કવિતાઓની કૃતિઓમાં તો જીવનના આદર્શોની વાતો હોય જ. હા, હું ગાંધીયન ચિંતન અને સરદારના ભાવનાશીલ શાસન વચ્ચે ઊછરેલો-ભણેલો એટલે જીવન વિશેનો મારો અભિગમ આદર્શવાદી રહ્યો હોય તે સ્વાભાવિક છે. પણ વર્ગમાં ઉત્સાહપૂર્વક કરેલી આવી વાતો કોઈના હૃદયને સોંસરવી ઊતરી જાય એ આશ્ચર્ય !

મને ચૂપ જોઈને એ હળવાશથી બોલ્યો :
‘ચિંતા કરવાની જરૂર નથી, સર. મને મારા ગામમાં શિક્ષક તરીકેની નોકરી મળી ગઈ છે. અત્યારે હંગામી ધોરણે છે, પણ ભવિષ્યે કાયમી થઈ જઈશ એવી આશા છે.’ અમે સસ્મિત એકબીજા સામુ જોઈ રહ્યા. ‘પછી મળીશ’ કહીને એ ચાલતો થયો. ક્ષણવાર એની ટટ્ટાર ચાલને હું જોઈ રહ્યો. ખાર દરવાજા તરફ ચાલ્યો. ત્યારે મેં અનુભવ્યું કે મારી ચાલ સાવ ધીમી પડી ગઈ છે. એના સંવાદે મારા માનસનો કબજો કરી લીધો. અરે, એક શિક્ષકના શબ્દો કોઈના જીવન પર આવી અસર પણ કરી શકે ? તો, શિક્ષકે પિસ્તાલીસ મિનિટ કાપવાં એલફેલ-આડુંઅવળું તો ન જ બોલાય ને.

એ પ્રસંગ પછી મેં પચ્ચીસેક વરસ અધ્યાપક તરીકે નોકરી કરી. પણ દરેક પિરીયડ વખતે મારામાં આ સાવધાની આવી બેસતી. અને પછી તો એ સભાનતા મારું લક્ષણ બની ગઈ. એનાથી મને પણ જીવનમાં મજા આવી. હા, એક ખટકો હજી પણ છે. એ પછી એ મને ભેગો થયો નથી. નહીંતર, મારે એને કહેવું હતું કે, ‘તું મારો નહિ, હું તારો વિદ્યાર્થી છું !’