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शीघ्र मनोकामना सिद्धि के लिए जप के नियम
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हमारे पुराणों में मंत्रों की असीम शक्ति का वर्णन किया गया है। यदि साधना काल में नियमों का पालन न किया जाए तो कभी-कभी इसके बड़े घातक परिणाम सामने आ जाते हैं। प्रयोग करते समय तो विशेष सावधानी‍ बरतनी चाहिए।

मंत्रों का प्रभाव मंदिर में प्रतिष्ठित मूर्ति के प्रभाव का आधार मंत्र ही तो है क्योंकि बिना मंत्र सिद्धि यंत्र हो या मूर्ति अपना प्रभाव नहीं देती। मंत्र आपकी वाणी, आपकी काया, आपके विचार को प्रभावपूर्ण बनाते हैं। मंत्र उच्चारण की जरा-सी त्रुटि हमारे सारे करे-कराए पर पानी फेर सकत‍ी है।

मंत्र-साधक के बारे में यह बात किसी को पता नहीं चलना चाहिए कि वो किस मंत्र का जप करता है या कर रहा है। यदि मंत्र के समय कोई पास में है तो मानसिक जप करना चाहिए।

भगवान राम ने माता शबरी के निवेदन पर उन्हें भक्ति का ज्ञान देते हुए कहा है कि ‘मंत्र जप मम दृढ़ विश्वासा! पंचम भजन सो वेद प्रकाशा!

अर्थात् मंत्र जप करना भी मेरी पांचवीं प्रकार की भक्ति है, ऐसा वेद भी कहते हैं। तात्पर्य यह है कि कोई भी प्राणी कल्याण कारक मंत्रों को उस मंत्र के योग्य जपनीय माला द्वारा सविधि जप करके अपने कार्य को सिद्ध करके इष्ट को प्राप्त कर सकता है।

मंत्रों का जप करने पर भी अगर सफलता नहीं मिलती है तो इसका एक बड़ा कारण यह होता है कि लोग जिस मनोकाना की पूर्ति के लिए जप करते हैं उसके अनुकूल माला का प्रयोग नहीं करते। इसलिए जप में माला का बड़ा महत्व बताया गया है।

मंत्र जप शुरु करने से पहले करें यह काम
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जिस माला से जाप करना है उसका संस्कार व शुद्धि करना भी जरूरी है। एक पात्र में पंचगव्य (गाय का दूध, दही, घी, गोबर और गोमूत्र) लें। उसमें थोड़ी-सी कुशा डालें दें और इससे माला को शुद्ध करें। फिर गायत्री मंत्र बोलते हुए माला को हिलाएं। इसके बाद पीपल के पत्तों पर माला को रखकर गंगाजल से स्नान कराएं।

मंत्र जाप अथवा साधना करते समय सर्वप्रथम स्नानादि से निवृत होकर आसन स्थापित करें। उसके बाद पूर्व या उत्तर की ओर मुंह करके दीप प्रज्ज्वलित करते हुए यह मंत्र पढ़ें-`दीपो ज्योतिः परं ब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दनः। दीपो हरतु मे पापं, पूजा दीप नमोऽस्तुते। शुभं करोतु कल्याणं आरोग्यं सुखसम्पदाम्। शत्रु बुद्धि विनाशाय पूजा दीप नमोऽस्तुते।’

इसके बाद अपने इष्ट देव की पंचोपचार या षोडशोपचार पूजा करके जपनीय माला के सुमेरु को दोनों नेत्रों के मध्य ब्रह्मरंध्र पर स्पर्श कराते हुए इस मंत्र को बोलते हुए माला को अभिमंत्रित करें-

`ऊं मां माले महामाये सर्वशक्ति स्वरूपिणी। चतुर्वर्गस्त्वयि न्यस्तस्तस्मान्मे सिद्द्धिदा भव। ॐ अविघ्नम् कुरु माले त्वं गृह्णामि दक्षिणे करे। जपकाले च सिद्ध्यर्थं प्रसीद मम सिद्धये। ॐ अक्षमालाधिपतये सुसिद्धिं देहि देहि सर्वमंत्रार्थसाधिनि साध्य-साध्य सर्वसिद्धि परिकल्पय परिकल्पय मे स्वाहा।’

जब जप पूर्ण हो जाए, तो पुनः उसी माला को ब्रह्मरंध्र के मध्य रखें और यह मंत्र ‘ ॐ गुह्याति गुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपं। सिद्धिर्भवतु मे देव त्वत प्रसादान्महेश्वरि।’ पढ़ते हुए प्रणाम करें। ऐसा करने से आपके सभी इच्छित मनोरथ पूर्ण होंगे।

मनकों को अनामिका और अंगूठे के अग्र भाग को मिला कर उस के ऊपर रखें और मध्यमा अंगुली से आगे चलाते रहें। अन्य किसी भी अंगुली का प्रयोग जप में निषेध है।

मनोकामना अनुसार चुनें माला
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कमलगट्टे की माला धन प्राप्ति, पुत्रजीवा की माला संतान प्राप्ति तथ्‍ा मूंगे की माला गणेश और लक्ष्मी की प्रसन्नता के लिए है। लाल चंदन की माला गणेशजी, मां दुर्गा और लक्ष्मीजी की साधना के लिए प्रयुक्त होती है। वहीं तुलसी की माला वैष्णव भक्तों, राम और कृष्ण की उपासना हेतु उत्तम मानी गई है।

स्फटिक माला सौम्य प्रभाव से युक्त होती है। इसे धारण करने से चंद्रमा और शिवजी की कृपा शीघ्र प्राप्त हो जाती है। हल्दी की माला का प्रयोग बृहस्पति ग्रह की शांति तथा मां बगलामुखी के मंत्र जप के लिए श्रेष्ठ है। कमल के बीजों की माला से मां लक्ष्मी की आराधना करें।

हनुमानजी का मंत्र जप करने के लिए मूंगे की माला या तुलसी माला का प्रयोग श्रेयस्कर है। चंद्रमा की पूजा के लिए मोती की माला प्रयोग करें। शिव मंत्र जाप के लिए रुद्राक्ष की माला निश्चित की गई है। सूर्य की पूजा करने के लिए माणिक्य की माला ही सिद्ध है।
माला जप को लेकर लोगों में मन में कई धारणाएं हैं। कुछ लोगों का मानना है कि महिलाओं को माला नहीं जपनी चाहिए। जबकि यह सत्य नहीं है। महिलाएं भी अपने इष्ट देव का ध्यान करते हुए माला से मंत्र जप कर सकती हैं।
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देव शर्मा

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

क्यों पड़ते है श्री जगन्नाथ भगवान प्रत्येक वर्ष बीमार…… ????

जगन्नाथ स्वामी नयन पथगामी भवतुमे

उड़ीसा प्रान्त में जगन्नाथ पुरी में एक भक्त रहते थे। श्री माधव दास जी अकेले रहते थे।संसार से इनका कोई लेना देना नही |

अकेले बैठे-बैठे भजन किया करते थे। नित्य प्रति श्री जगन्नाथ प्रभु का दर्शन करते थे और उन्हीं को अपना सखा मानते थे, प्रभु के साथ खेलते थे ।

प्रभु इनके साथ अनेक लीलाए किया करते थे | प्रभु इनको चोरी करना भी सिखाते थे।भक्त माधव दास जी अपनी मस्ती में मग्न रहते थे |

जब जगन्नाथ प्रभु बन गये सेवक………
एक बार माधव दास जी को अतिसार ( उलटी-दस्त ) का रोग हो गया। वह इतने दुर्बल हो गए कि उठ-बैठ नहीं सकते थे।पर जब तक इनसे बना यह अपना कार्य स्वयं करते थे और सेवा किसी से लेते भी नही थे |

कोई कहे महाराजजी हम कर दें आपकी सेवा तो कहते नही। मेरे तो एक जगन्नाथ ही हैं, वही मेरी रक्षा करेंगे । ऐसी दशा में जब उनका रोग बढ़ गया वो उठने बैठने में भी असमर्थ हो गये।

तब श्री जगन्नाथजी स्वयं सेवक बनकर इनके घर पहुचे और माधवदासजी को कहा की हम आपकी सेवा कर दें |

भक्तों के लिए अपने क्या-क्या नही किया…
क्यूंकि उनका इतना रोग बढ़ गया था कि उन्हें पता भी नही चलता था कि कब मलमूत्र त्याग देते थे | वस्त्र गंदे हो जाते थे |

उन वस्त्रों को जगन्नाथ भगवान् अपने हाथों से साफ करते थे। उनके पूरे शरीर को साफ करते थे, उनको स्वच्छ करते थे।

कोई अपना भी इतनी सेवा नही कर सके, जितनी जगन्नाथ भगवान ने भक्त माधव दास जी की करी है |

भक्त माधव दास जी पर प्रभु का स्नेह………

जब माधवदासजी को होश आया,तब उन्होंने तुरंत पहचान लिया की यह तो मेरे प्रभु ही हैं।
एक दिन श्री माधवदासजी ने पूछ लिया प्रभु से –

“प्रभु आप तो त्रिभुवन के मालिक हो, स्वामी हो, आप मेरी सेवा कर रहे हो | आप चाहते तो मेरा ये रोग भी तो दूर कर सकते थे, रोग दूर कर देते तो ये सब करना नही पड़ता | ”

ठाकुरजी कहते हाँ देखो माधव! मुझसे भक्तों का कष्ट नहीं सहा जाता। इसी कारण तुम्हारी सेवा मैंने स्वयं की। जो प्रारब्ध होता है उसे तो भोगना ही पड़ता है |

अगर उसको काटोगे तो इस जन्म में नहीं पर उसको भोगने के लिए फिर तुम्हे अगला जन्म लेना पड़ेगा और मै नहीं चाहता की मेरे भक्त को ज़रा से प्रारब्ध के कारण अगला जन्म फिर लेना पड़े

इसीलिए मैंने तुम्हारी सेवा की लेकिन।अगर फिर भी तुम कह रहे हो तो भक्त की बात भी नही टाल सकता

भक्तों के सहायक बन उनको प्रारब्ध के दुखों से, कष्टों से सहज ही पार कर देते हैं प्रभु
अब तुम्हारे प्रारब्ध में यह 15 दिन का रोग और बचा है। इसलिए 15 दिन का रोग तू मुझे दे दे |
15 दिन का वो रोग जगन्नाथ प्रभु ने माधवदासजी से ले लिया |

आज भी इसलिए जगन्नाथ भगवान होते है बीमार…….

वो तो हो गयी तब की बात ।भगवान् जगन्नाथ जी की भक्त वत्सलता देखो।आज भी वर्ष में एक बार जगन्नाथ भगवान को स्नान कराया जाता है (जिसे स्नान यात्रा कहते है )।

स्नान यात्रा करने के बाद हर साल 15 दिन के लिए जगन्नाथ भगवान् आज भी बीमार पड़ते हैं |

15 दिन के लिए मंदिर बंद कर दिया जाता है । कभी भी जगनाथ भगवान की रसोई बंद नही होती। परन्तु इन 15 दिनों के लिए उनकी रसोई बंद कर दी जाती है |

भगवान को 56 भोग नही खिलाया जाता ( बीमार हो तो परहेज़ तो रखना पड़ेगा )

प्रभु को लगाया जाता है काढ़ों का भोग………

15 दिन जगन्नाथ भगवान को काढ़ों का भोग लगता है | इस दौरान भगवान को आयुर्वेदिक काढ़े का भोग लगाया जाता है। जगन्नाथ धाम मंदिर में तो भगवान की बीमारी की जांच करने के लिए हर दिन वैद्य भी आते हैं।

काढ़े के अलावा फलों का रस भी दिया जाता है। वहीं रोज शीतल लेप भी लगया जाता है। बीमार के दौरान उन्हें फलों का रस, छेना का भोग लगाया जाता है और रात में सोने से पहले मीठा दूध अर्पित किया जाता है।

भगवान जगन्नाथ बीमार हो गए है और अब 15 दिनों तक आराम करेंगे। आराम के लिए 15 दिन तक मंदिर के पट भी बंद कर दिए जाते है और उनकी सेवा की जाती है। ताकि वे जल्दी ठीक हो जाएं।

जिस दिन वे पूरी तरह से ठीक होते है। उस दिन जगन्नाथ रथ-यात्रा निकलती है। जिसके दर्शन हेतु असंख्य भक्त उमड़ते हैं |

खुद पे तकलीफ लेकर अपने भक्तों का जीवन सुखमयी बनाये। ऐसे तो सिर्फ मेरे भगवान् ही हो सकते है।

जय श्रीजगन्नाथ……
संजय गुप्ता