Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

🌳विश्व पर्यावरण दिवस🌳 के अवसर पर बहुत बहुत शुभकामनाएं | आप सभी से निवेदन कि एक पेड़ जरूर लगाएं
🌴एक पेड़ जिंदगी का 🌴

#विश्वपर्यावरणदिवस#

           #Must_read#

एक बकरी के पीछे शिकारी कुत्ते दौड़े। बकरी जान बचाकर अंगूरों की झाड़ी में घुस गयी
कुत्ते आगे निकल गए
बकरी ने निश्चिंतापूर्वक अँगूर की बेले खानी शुरु कर दी और जमीन से लेकर अपनी गर्दन पहुचे उतनी दूरी तक के सारे पत्ते खा लिए
पत्ते झाड़ी में नहीं रहे
छिपने का सहारा समाप्त् हो जाने पर कुत्तो ने उसे देख लिया और मार डाला !!
सहारा देने वाले को जो नष्ट करता है , उसकी ऐसी ही दुर्गति होती है

मनुष्य भी आज सहारा देने वालीं जीवनदायिनी नदियां, पेड़ पौधो, जानवर, गाय, पर्वतो आदि को नुकसान पंहुचा रहा है और इन सभी का परिणाम भी अनेक आपदाओ के रूप में भोग रहा है

प्राकृतिक सम्पदा बचाओ
अपना कल सुरक्षित करो
😊💐💐🙏

Posted in भारतीय मंदिर - Bharatiya Mandir

भारत के इस मंदिर के आगे चाँद पर पहुंचने वाले वैज्ञानिक भी मान गए हार !
भगवान जगन्नाथ मंदिर – चंद्र पर पहुंचने वाले वैज्ञानिक आज तक किसी अंधविश्वास के आगे नहीं झुके हैं लेकिन भारत के एक मंदिर ने उन्हें अपने आगे घुठने टेकने पर मजबूर कर दिया.
आज हम आपको जिस मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं वह दुनिया का एक अनोखा अजूबा है जिसके पीछे छुपे रहस्य और दिव्य शक्तियों के आगे आज सारी दुनिया सर झुकाए खडी है.
जी हाँ दोस्तो और यह और कोई मंदिर नहीं बल्कि भगवान जगन्नाथ मंदिर – भगवान जगन्नाथ बलभद्र और सुभद्रा का मंदिर है.
इन सभी देवी देवताओं की मूर्तियां एक रत्न मंडित पाषाण चबूतरे पर गर्भ गृह में स्थापित हैं. यह विश्व का सबसे बड़ा, भव्य और ऊंचा मंदिर कहलाता है. चार लाख वर्गफूट में फैला और करीब 214 फुट ऊंचे मंदिर का शिखर आसानी से नहीं देखा जा सकता. यह मंदिर जितना विशाल हैउतना ही आधुनिक विज्ञान की समझ से परे है. इस मंदिर के बारे में एक हैरान करने वाली बात सामने आई है जिसके मुताबिक मंदिर के शिखर पर लहराती ध्वजा हमेशा हवा के विपरीत दिशा में लहराती है. मंदिर वक्र रेखीय आकार का है.
वक्र जिस शिखर पर स्थित है वहाँ पर विष्णु का श्री सुदर्शन चक्र मंडित है. इसे नीलचक्र भी कहते हैं, जो अष्टधातुओ से निर्मित है तथा इसे देवप्रतिमा की तरह अति पावन और पवित्र माना जाता है. आज तक मंदिर के गुंबद के आसपास कभी कोई पक्षी उड़ता नहीं देखा गया. पक्षी शिखर के पास भी उड़ते नजर नहीं आते.
सिंह द्वार से मंदिर परिसर में प्रवेश करने पर सागर की लहरों की आवाज नहीं सुनाई देती, जबकि बाहर निकलते ही समुद्र की लहराई जोर-जोर से सुनाई देती हैं.
मंदिर की रसोई में प्रसाद तैयार करने के लिए सात बर्तन एक-दूसरे पर रखे जाते हैं और सब कुछ लकडियों पर ही पकाया जाता है. इस प्रक्रिया एन शीर्ष बर्तन में सामग्री पहले पकती है फिर नीचे की तरफ एक के बाद एक पकती जाती है. यानी सबसे ऊपर रखे बर्तन का खाना पहले पक जाता है.
यहाँ पांच सौ रसोइए प्रसाद बनाते हैं.
मंदिर के रसोई घर में इतना खाना बनाया जाता है कि उत्सव के दिनों में बीस लाख व्यक्ति तक भोजन कर सके. कहते हैं कि प्रसाद कुछ हजार लोगों के लिए बनाया गया हो, तो भी लाखो के लिए कम नहीं पड़ता, न ही व्यर्थ जाता है.
यहाँ जगन्नाथ जी के साथ के मंदिरो में भाई बलराम और बहन सुभद्रा भी हैं. तीनों की मूर्तिया काष्ठ की बनी हुई हैं. बारहवें वर्ष में एक बार प्रतिमा नई जरूर बनाई जाती हैं, लेकिन इनकार आकार और रूप वही रहता है. कहा जाता है कि मूर्तियो की पूजा नहीं होती, केवल दर्शनार्थ रखी गई हैं.
भगवान जगन्नाथ मंदिर की मान्यता विश्व भर में फैली हुई है और यहाँ इनके दर्शन के लिए लोग विदेश तक से आते हैं लेकिन जो सबसे खास बात है वो ये है की इस मंदिर के चमत्कारों के आगे विज्ञान भी सर झुकाए इनके चरणों में विराजमान हो चुका है. आज तक कोई ये नहीं बता पाया कि आखिर इस मंदिर के ये चमत्कार हो कैसे रहे हैं या इनके पीछे क्या वजह है.

हे नाथ !! तेरी जय हो !!
प्रताप सिंह 🙏🙏🙏

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प्रेरक प्रसंग

जिन खोजा तिन पाइयाँ

   बालक शेख फरीद को जब पढ़ - लिख सकने का ज्ञान आया, तो माता ने उसे रोज नमाज़ पढ़ने के लिए कहा ।  नमाज़ पढ़ने के बाद जब वह कपड़ा उठाता तो उसे नीचे मिठाई दिखाई देती ।  वह खा लेता और ख़ुश हो जाता ।  बात यह थी कि माँ कपड़े के नीचे पहले ही मिठाई रख देती थी, लेकिन फरीद यह समझता था कि अल्लाह ही उसे नमाज़ पढ़ने के बदले मिठाई देते हैं ।
   एक दिन उसने माता से पूछा,  "अम्मा !  क्या मुझे अल्लाह नहीं मिल सकते ?  "क्यों नहीं",  माँ ने कहा,  "मगर तुझे इसके लिए दूर जाना होगा ।"  और बालक अल्लाह की खोज में निकल पड़ा और अल्लाह का नाम जपते हुए उनका इन्तजार करता रहा ।  इस दौरान उसने भोजन तो नहीं किया, बस पेड़ों के पत्ते चबा - चबाकर खा जाता ।  जब खुदा का दीदार नहीं हुआ, तो वह वापस घर आया और उसने माँ से शिकायत की कि अल्लाह तो उसे मिले ही नहीं ।  माँ ने उससे सारी हकीकत पूछी और कहा,  "अल्लाह तुम्हें मिलेंगे कैसे ?  तुम्हारा जी पत्तों से पेट भरने में लगा रहता था ।  तुम जिन पेड़ों के पत्ते तोड़ते थे, क्या उन पेड़ों को दर्द नहीं होता रहा होगा ?  अगर तुम सचमुच अल्लाह को पाना चाहते हो, तो तुम्हें लकड़ी की रोटियाँ दूँगी ।  भूख लगने पर वे तेरे दिल को समझाया करेंगी ।"
  फरीद माँ की दी हुई लकड़ी की रोटियाँ लेकर फिर जंगल की ओर निकल पड़ा ।  काफी अरसे के बाद भी जब अल्लाह नहीं मिले, तो घर वापस आ गया ।  माँ से फिर शिकायत की, तो माँ बोली,  "बेटा, तू अल्लाह का नाम लेता तो था, मगर भूख लगने पर यह सोचता था कि रोटियाँ पेट में बँधी हैं, अब खा लूँगा, तब खा लूँगा ।  अरे, जिसका दिल रोटियों में लगा रहता है, अल्लाह भला उसे कभी मिल सकते हैं ?"
  अब फरीद अपने अरब देश से बहुत दूर निकल आया और वर्धा जिले के गिरर नामक स्थान पर रूक गया ।  वहाँ एक बड़ा पेड़ था, जिसके नीचे बहुत बड़ा गड्ठा था ।  वह उस पेड़ पर उल्टा लटक गया और अल्लाह का नाम जपने लगा ।  अब न उसे भूख की चिन्ता थी, न प्यास की ।  खुदा की याद में वह ऐसा डूबा कि अपने शरीर की भी परवाह न रही ।  आखिर एक दिन आवाज आयी ___ "ऐ शेख फरीद !  तेरी इबादत कबूल की गयी है ।  अब पेड़ से उतर जा ।"  मगर उसे यकीन न हुआ, तो पूछा,  "क्या मेरी इच्छा पूरी हो गयी ?"। आवाज आयी,  "हाँ, तेरी हर इच्छा पूरी हो गयी ।  यकीन न आता हो, तो यह कहकर देख ले ___ 'जो खुदा करे, वही हो, और जो शेख़ फरीद कहे, वही हो ।"
  यह सुनते ही फरीद बोल उठा,  "नीचे वाला गड्ढ़ा शक्कर से भर जाय ।"  उसका वाक्य पूरा हुआ भी न था कि गड्ढा शक्कर से भर गया । फिर क्या था, वह नीचे उतर आया और आनन्द में मगन होकर बोल उठा,  "मिल गया, मुझे मेरा अल्लाह मिल गया !"  वह गिरर में ही रह गया और अल्लाह का नाम जपता रहा ।  उसकी याद में आज भी वहाँ दरगाह मौजूद है ।

अनूप सिन्हा

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🙏
एक सब्ज़ी वाला था, सब्ज़ी की पूरी दुकान साइकल पर लगा कर घूमता रहता था ।”प्रभु” उसका तकिया कलाम था । कोई पूछता आलू कैसे दिये, 10 रुपये प्रभु । हरी धनीया है क्या ? बिलकुल ताज़ा है प्रभु। वह सबको प्रभु कहता था । लोग भी उसको प्रभु कहकर पुकारने लगे।
एक दिन उससे किसी ने पूछा तुम सबको प्रभु-प्रभु क्यों कहते हो, यहाँ तक तुझे भी लोग इसी उपाधि से बुलाते हैं और तुम्हारा कोई असली नाम है भी या नहीं *?

सब्जी वाले ने कहा है न प्रभु , मेरा नाम भैयालाल है

प्रभु, मैं शुरू से अनपढ़ गँवार हूँ। गॉव में मज़दूरी करता था, एक बार गाँव में एक नामी सन्त की कथा हुईं कथा मेरे पल्ले नहीं पड़ी, लेकिन एक लाइन मेरे दिमाग़ में आकर फँस गई , उन संत ने कहा हर इन्सान में प्रभु का वास हैं -तलाशने की कोशिश तो करो पता नहीं किस इन्सान में मिल जाय और तुम्हारा उद्धार कर जाये, बस उस दिन से मैने हर मिलने वाले को प्रभु की नज़र से देखना और पुकारना शुरू कर दिया वाकई चमत्त्कार हो गया दुनिया के लिए शैतान आदमी भी मेरे लिये प्रभु रूप हो गया । ऐसे दिन फिरें कि मज़दूर से व्यापारी हो गया सुख समृद्धि के सारे साधन जुड़ते गये मेरे लिये तो सारी दुनिया ही प्रभु रूप बन गईं।🙏
लाख टके की बात
जीवन एक प्रतिध्वनि है आप जिस लहजे में आवाज़ देंगे पलटकर आपको उसी लहजे में सुनाईं देंगीं। न जाने किस रूप में मालिक☝ मिल जाये

जय राम जी की
🙏🙏🙏

संजय गुप्त

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🎵🎵🎵💕 प्रेम बेशर्त है 💗🎵🎵🎵

मुल्ला नसरुद्दीन के घर मैं एक दिन मेहमान था। उसकी पत्नी अमीर घर की लड़की है। और जैसा अमीर घर की लड़कियां होती हैं, एक तो पत्नियां वैसे ही उपद्रव, गरीब घर की हों तो भी, अमीर घर की पत्नी तो फिर बहुत उपद्रव। वह हर छोटी बात में याद दिला देती है मुल्ला को कि यह शानदार मकान न होता अगर मेरे बाप के पास पैसे न होते; यह कार न खड़ी होती पोर्च में अगर मेरे बाप के पास पैसे न होते; जिस कुर्सी पर आराम से बैठे हो यह कुर्सी घर में न होती, भीख मांग रहे होते, अगर मेरे बाप के पास पैसे न होते। मैं मेहमान था। भोजन की थाली लग गई थी, और उसने अपना राग छेड़ दिया कि यह चांदी की थालियों में भोजन चल रहा है, अगर मेरे बाप के पास पैसे न होते तो मुल्ला तुम भीख मांगते! मुल्ला ने कहा, अब मैं सच बात कह ही दूं, अब बहुत हो गया। मैं तुझसे कहता हूं कि अगर तेरे बाप के पास पैसे न होते तो तू भी यहां न होती, टेबल और कुर्सी का तो सवाल ही नहीं है। तेरे बाप के पास पैसे न होते तो तू भी यहां न होती। हमने कोई तुझसे विवाह नहीं किया, तेरे बाप के पैसों से विवाह किया है।
प्रेम तो झूठ है। सौ में निन्यानबे मौके पर कभी पैसे के लिए है, कभी प्रतिष्ठा के लिए है, कभी चमड़ी के लिए है, और कभी बहुत क्षुद्र बातों के लिए है, जिनका तुम हिसाब ही न लगा सकोगे कि कैसा पागलपन है! पैसे के लिए बहुत मौकों पर प्रेम का आवरण खड़ा हो जाता है। प्रतिष्ठा के लिए, पद के लिए, कुलीनता के लिए, बड़ा घर, बड़े संबंधी, आर्थिक लाभ, कभी स्त्री की चमड़ी सुंदर है इसलिए; वह भी ऊपर-ऊपर है, क्योंकि स्त्री चमड़ी नहीं है, चमड़ी से बहुत ज्यादा है। और चमड़ी तो भूल जाएगी दो दिन बाद; रोज तो भीतर की आत्मा के साथ रहना पड़ेगा। कभी आंखों के लिए कि आंखें सुंदर हैं। लेकिन कहीं आंखों के साथ रहने से कुछ काम चला है! कि कभी नाक का आकार, कि कभी वाणी की मधुरता, और कभी-कभी और भी क्षुद्र बातों के लिए प्रेम का आवरण खड़ा हो जाता है, स्त्री का चलने का ढंग, कि उसके मुड़ने का ढंग, कभी बहुत छोटी-छोटी बातों के लिए। लेकिन तुम इन सबको प्रेम का आवरण दे देते हो। छोटी बातें बड़ी मालूम होने लगती हैं। लेकिन यह आवरण टूटेगा, जब तक कि प्रेम ही न हो।
और प्रेम अकारण है; प्रेम का कोई कारण नहीं है। न तो नाक का झुकाव, न आंख का मछलियों जैसा होना; कोई कारण नहीं है प्रेम का। प्रेम अकारण भावदशा है; अतक्र्य। तुम यह नहीं बता सकते कि क्यों। क्यों का अगर उत्तर दे सको तो तुम्हारा प्रेम झूठा है। तुम क्यों का उत्तर खोजो, और खोजो, और न पा सको, तो तुम्हारा प्रेम सच्चा है। तुम कहो कि क्यों तो कुछ भी नहीं मिलता, कारण तो कुछ भी नहीं मिलता, बस हृदय है कि बहा जाता है। अगर तुम कारण बता सको कि इस कारण से प्रेम है, तो प्रेम नहीं है। कारण ही महत्वपूर्ण है, धन, पद, प्रतिष्ठा, कुछ भी नाम हो उसका। और आज नहीं कल चुक जाएगा। कारण सदा चुक जाते हैं। कारण शाश्वत नहीं हो सकते; कारण तो क्षणभंगुर जीवन है उनका। अकारण प्रेम शाश्वत हो सकता है। वही प्रेम है। फिर जिससे तुमने प्रेम किया है, उसका शरीर भी छूट जाए तो भी प्रेम नहीं छूटता।
💕💕💕
🌹🌹🌹🌹 ओशो🌹🌹🌹🌹

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दो गठरियाँ
संसार को बनाने वाले विधाता ने एक बार आदमी को अपने पास बुला कर पूछा,’तुम क्या चाहते हो ?’आदमी ने कहा, मैं उन्नति करना चाहता हूँ,सुख -शांति चाहता हूँ और चाहता हूँ कि सब लोग मेरी प्रशंसा करें।
विधाता ने आदमी के सामने दो गठरियाँ रख दी।वे बोले, इन गठरियों को ले लो।इनमें से एक गठरी में तुम्हारे पडोसी की बुराइयाँ भरी हैं।उसे पीठ पर लाद लो।उसे हमेशा बंद रखना।न तुम देखना न दूसरों को दिखाना।दूसरी गठरी में तुम्हारी बुराइयाँ भरी हैं।उसे सामने लटका लो और बार बार खोलकर देखा करो।’
आदमी ने दोनो गठरियाँ उठा ली। लेकिन उससे एक गलती हो गई। उसने अपनी बुराइयों की गठरी को पीठ पर लाद लिया और उसका मुँह कसकर बंद कर दिया।अपने पडोसी की बुराइयों से भरी गठरी उसने सामने लटका ली।उसका मुंह खोलकर वह उसे देखता ओर दूसरों को भी दिखाता। इससे आदमी ने विधाता से जो वरदान मांगे थे,वे भी उलटे हो गये।वह अवनति करने लगा उसे दु:ख और अशांति मिलने लगी। सब लोग उसे बुरा बताने लगे।
आदमी अपनी भूल सुधार ले तो उसकी उन्नति होगी। उसे सुख -शांति मिलेगी ।जगत मेँ प्रशंसा होगी। हमें करना यह है कि अपने पडोसी और परिचितों के दोष देखना बंद कर दें और अपने दोषों पर सदा दृष्टि बनाए रखे।

संजय गुप्ता

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ये मैसेज बनाने वाले को १०० तोपो की सलामी🙏

😃एक पुराना चुटकुला 😃

एक बार संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर को ले कर चर्चा चल रही थी।

एक भारतीय प्रवक्ता बोलने के लिए खड़ा हुआ। अपना पक्ष रखने से पहले उसने ऋषि कश्यप की एक बहुत पुरानी कहानी सुनाने की अनुमति माँगी। अनुमति मिलने के बाद भारतीय प्रवक्ता ने अपनी बात शुरू की…

“एक बार महर्षि कश्यप, जिनके नाम पर आज कश्मीर का नाम पड़ा है, घूमते-घूमते कश्मीर पहुंच गए।

वहाँ उन्होंने एक सुन्दर झील देखी तो उस झील में उनका नहाने का मन हुआ।

उन्होंने अपने कपड़े उतारे और झील में नहाने चले गए।

जब वो नहा कर बाहर निकले, तो उनके कपड़े वहाँ से गायब मिले।

दरअसल, उनके कपड़े किसी पाकिस्तानी ने चुरा लिये थे…”

इतने में पाकिस्तानी प्रवक्ता चीख पड़ा और बोला:
“क्या बकवास कर रहे हो? उस समय तो ‘पाकिस्तान’ था ही नहीं!!!”

भारतीय प्रवक्ता मुस्कुराया और बोला:

“और ये पाकिस्तानी कहते हैं कि कश्मीर इनका है!!!” 🇮🇳🇮🇳
😜😂😃

इतना सुनते ही… पूरा संयुक्त राष्ट्र सभा ठहाकों की गूंज से भर उठा।।
😂😝😜👏👏👏

एक हिन्दुस्तानी होने के नाते यह वाकया मुझे बहुत पसंद आया।

यदि पसंद आए तो आप भी इसे अपने दोस्तों के साथ ज़रूर शेयर करें।
👏👏👏👏👏👏👏👏👏

संजय गुप्ता

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जीवन की सचाई

एक आदमी की चार पत्नियाँ थी।

वह अपनी चौथी पत्नी से बहुत प्यार करता था और उसकी खूब देखभाल करता व उसको सबसे श्रेष्ठ देता।

वह अपनी तीसरी पत्नी से भी प्यार करता था और हमेशा उसे अपने मित्रों को दिखाना चाहता था। हालांकि उसे हमेशा डर था की वह कभी भी किसी दुसरे इंसान के साथ भाग सकती है।

वह अपनी दूसरी पत्नी से भी प्यार करता था।जब भी उसे कोई परेशानी आती तो वे अपनी दुसरे नंबर की पत्नी के पास जाता और वो उसकी समस्या सुलझा देती।

वह अपनी पहली पत्नी से प्यार नहीं करता था जबकि पत्नी उससे बहुत गहरा प्यार करती थी और उसकी खूब देखभाल करती।

एक दिन वह बहुत बीमार पड़ गया और जानता था की जल्दी ही वह मर जाएगा।उसने अपने आप से कहा,” मेरी चार पत्नियां हैं, उनमें से मैं एक को अपने साथ ले जाता हूँ…जब मैं मरूं तो वह मरने में मेरा साथ दे।”

तब उसने चौथी पत्नी से अपने साथ आने को कहा तो वह बोली,” नहीं, ऐसा तो हो ही नहीं सकता और चली गयी।

उसने तीसरी पत्नी से पूछा तो वह बोली की,” ज़िन्दगी बहुत अच्छी है यहाँ।जब तुम मरोगे तो मैं दूसरी शादी कर लूंगी।”

उसने दूसरी पत्नी से कहा तो वह बोली, ” माफ़ कर दो, इस बार मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकती।ज्यादा से ज्यादा मैं तुम्हारे दफनाने तक तुम्हारे साथ रह सकती हूँ।”

अब तक उसका दिल बैठ सा गया और ठंडा पड़ गया।तब एक आवाज़ आई,” मैं तुम्हारे साथ चलने को तैयार हूँ।तुम जहाँ जाओगे मैं तुम्हारे साथ चलूंगी।”

उस आदमी ने जब देखा तो वह उसकी पहली पत्नी थी।वह बहुत बीमार सी हो गयी थी खाने पीने के अभाव में।
वह आदमी पश्चाताप के आंसूं के साथ बोला,” मुझे तुम्हारी अच्छी देखभाल करनी चाहिए थी और मैं कर सकता थाI”

दरअसल हम सब की चार पत्नियां हैं जीवन में।

  1. चौथी पत्नी हमारा शरीर है।
    हम चाहें जितना सजा लें संवार लें पर जब हम मरेंगे तो यह हमारा साथ छोड़ देगा।
  2. तीसरी पत्नी है हमारी जमा पूँजी, रुतबा। जब हम मरेंगे
    तो ये दूसरों के पास चले जायेंगे।

  3. दूसरी पत्नी है हमारे दोस्त व रिश्तेदार।चाहेंवे कितने भी करीबी क्यूँ ना हों हमारे जीवन काल में पर मरने के बाद हद से हद वे हमारे अंतिम संस्कार तक साथ रहते हैं।

  4. पहली पत्नी हमारी आत्मा है, जो सांसारिक मोह माया में हमेशा उपेक्षित रहती है।

यही वह चीज़ है जो हमारे साथ रहती है जहाँ भी हम जाएँ…….
कुछ देना है तो इसे दो….
देखभाल करनी है तो इसकी करो….
प्यार करना है तो इससे करो…

         मिली थी जिन्दगी
  किसी के 'काम' आने के लिए..

       पर वक्त बीत रहा है
 कागज के टुकड़े कमाने के लिए..                      

क्या करोगे इतना पैसा कमा कर..?
ना कफन मे ‘जेब’ है ना कब्र मे ‘अलमारी..’

   और ये मौत के फ़रिश्ते तो
       'रिश्वत' भी नही लेते...

संजय गुप्ता

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एक राजा था उसके यहाँ एक दिन दो दर्जी आये । उन्होंने कहा की हम स्वर्ग से धागा लाकर पोशाक बनाते है, जिसे देवता पहनते है ।

राजा ने कहा एक पोशाक मेरे लिए बनाओ, उसका तुम्हें मुँह माँगा इनाम मिलेगा ।

दर्जी ने कहा ठीक है, 50 दिन का टाइम दो । दर्जी ने राजा से कहा, लेकिन इस पोशाक की एक खास बात है ये है कि मूर्खों को नहीं दिखेगी । राजा और भी खुश की ऐसे तो हम अपने राज्य के मूर्खों की भी पहचान कर लेंगे…!

दोनों ने पोशाक एक बंद कमरे में बनानी शुरू कर दी । देर रात तक दोनों कटर-पटर करते रहते थे ।

एक दिन राजा ने मंत्री को भेजा और कहा की देखो कैसी पोशाक बन रही है ?
मंत्री कमरे के अंदर गया तो जाते ही एक दर्जी ने कहा, देखो मंत्रीजी ! कितना सुन्दर रेशा है…!

पर मंत्री को कुछ दिखाई न दिया । अब उसे वो बात याद आई की मूर्ख को ये पोशाक दिखाई न देगी !

मंत्री ने भी कहा, हां ! बहुत सुन्दर है और आकर राजा को बताया की बहुत सुन्दर बन रही है आपकी पोशाक । राजा बहुत खुश हुआ तो एक दिन राजा भी गया देखने । उसे भी कुछ न दिखाई दिया, पर चुप रहा और मन में सोचा, लगता है मंत्री हमसे ज्यादा बुद्धिमान है तभी उसे दिखाई दी थी लेकिन मैं मूर्ख हूँ, इस प्रकार राजा भी चुप रहा ।

पोशाक बनकर तैयार हो गयी । दोनों दर्जियों ने कहा, कल हम जनता के सामने ये पोशाक राजा को पहनाएंगे, फिर राजा की सवारी निकलेगी ।

दूसरे दिन राजा को पोशाक पहनाई गयी, जो किसी को दिख नहीं रही थी, पर बोला कोई नहीं ! क्योंकि मूर्खो को दिखती नहीं थी !

इस डर से कि हमें सब मूर्ख कहेंगे, सब चुप रहे । लेकिन राजा नंग-धड़ंग होकर बड़ी बेशर्मी और शान से सवारी निकाल रहा था…!!

              ।। जय श्री राम ।।

संजय गुप्ता

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महाभारत के सबसे चर्चित पात्र अश्‍वत्थामा की कथा !!!!!

अश्वत्थामा द्रोणाचार्य के पुत्र थे। द्रोणाचार्य ने शिव को अपनी तपस्या से प्रसन्न करके उन्हीं के अंश से अश्वत्थामा नामक पुत्र को प्राप्त किया। इनकी माता का नाम कृपा था जो शरद्वान की लड़की थी। जन्म ग्रहण करते ही इनके कण्ठ से हिनहिनाने की सी ध्वनि हुई जिससे इनका नाम अश्वत्थामा पड़ा। महाभारत युद्ध में ये कौरव-पक्ष के एक सेनापति थे।

एक बार रात में ये पाण्डवों के शिविर में गये और सोते में अपने पिता के हनन करने वाले धृष्टद्युम्न और शिखंडी तथा पाण्डवों के पाँचों लड़कों को मार डाला। पुत्र वियोग के कारण द्रौपदी करुण विलाप करने लगी। इस पर क्षुब्ध हो अश्वत्थामा को अर्जुन ने चुनौती दी। अश्वत्थामा ने अर्जुन पर ऐशिकास्त्र से आक्रमण किया।

अर्जुन ने प्रत्याक्रमण के लिए ब्रह्माशिरास्त्र उठाया, तब ये भागे ‘अश्वत्थामा भय कर भग्यो’। व्यास, नारद, युधिष्ठिर आदि ने अर्जुन को अस्त्र-प्रयोग करने से रोका। द्रौपदी ने इनकी मणि उतार लेने का सुझाव दिया। अत: अर्जुन ने इनकी मुकुट मणि लेकर प्राणदान दे दिया। अर्जुन ने यह मणि द्रौपदी को दे दी जिसे द्रौपदी ने युधिष्ठिर के अधिकार में दे दिया।

महाभारत के युद्ध में उन्होंने सक्रिय भाग लिया था। उन्होंने भीम-पुत्र घटोत्कच को परास्त किया तथा घटोत्कच पुत्र अंजनपर्वा का वध किया। उसके अतिरिक्त द्रुपदकुमार, शत्रुंजय, बलानीक, जयानीक, जयाश्व तथा राजा श्रुताहु को भी मार डाला था।

उन्होंने कुंतीभोज के दस पुत्रों का वध किया। महाभारत युद्ध में धोखे से किये गये द्रोणाचार्य के वध के विषय में जानकर अश्वत्थामा का ख़ून खौल उठा। पूर्वकाल में द्रोण ने नारायण को प्रसन्न करके नारायणास्त्र की प्राप्ति की थी। फिर अपने बेटे अश्वत्थामा को नारायणास्त्र प्रदान करके उन्होंने किसी पर सहसा उसका आघात करने को मना किया। अश्वत्थामा ने धृष्टद्युम्न को उसी अस्त्र से मारने का निश्चय किया।

धृष्टद्युम्न पर जब उन्होंने नारायणास्त्र का प्रयोग किया तब कृष्ण ने अपनी ओर के सब सैनिकों को रथ से उतर-कर हथियार डालने के लिए कहा क्योंकि यही एकमात्र उसके निराकरण का उपाय था। भीम ने कृष्ण की बात नहीं मानी तो सबको छोड़कर नारायणास्त्र उसी के मस्तक पर प्रहार करने लगा। कृष्ण ने उसे बलात रथ से उतारकर नारायणास्त्र के प्रभाव को शांत किया।

अश्वत्थामा ने आग्नेयास्त्र का प्रयोग किया किंतु श्रीकृष्ण तथा अर्जुन पर उसका प्रभाव नहीं हुआ, शेष समस्त सेना व्याकुल और घायल हो गयी। अश्वत्थामा बड़े असमंजस में पड़ गये, तभी व्यास ने प्रकट होकर उन्हें बताया कि श्रीकृष्ण साक्षात विष्णु हैं, जिन्होंने आराधना से शिव को प्रसन्न कर रखा है। उन्हीं के तप से महामुनि नर (अर्जुन) प्रकट हुए। अत: अर्जुन और कृष्ण साक्षात नरनारायण हैं।

अश्वत्थामा ने मन ही मन शिव, नर और नारायण को नमस्कार किया और सेना सहित शिविर की ओर प्रस्थान किया। कर्ण के सेनापतित्व में युद्ध करते हुए अश्वत्थामा ने प्रतिज्ञा की थी कि जब तक धृष्टद्युम्न को नहीं मार डालेंगे, अपना कवच नहीं उतारेंगे।

ब्रह्मास्त्र का प्रयोग : – अठारह दिन तक युद्ध चलता रहा। अश्वत्थामा को जब दुर्योधन के अधर्म-पूर्वक किये गये वध के विषय में पता चला तो वे क्रोध से अंधे हो गये। उन्होंने शिविर में सोते हुए समस्त पांचालों को मार डाला। द्रौपदी को समाचार मिला तो उसने आमरण अनशन कर लिया और कहा कि वह अनशन तभी तोड़ेगी, जब कि अश्वत्थामा के मस्तक पर सदैव बनी रहने वाली मणि उसे प्राप्त होगी। कौरव-पांडवों के युद्ध में अश्वत्थामा ने अर्जुन पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया था। शिव-प्रदत्त पाशुपत अस्त्र से अर्जुन ने ब्रह्मास्त्र का निवारण किया।

पांडवों को जड़-मूल से नष्ट करने के लिए अश्वत्थामा ने गर्भवती उत्तरा पर भी वार किया था। अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र छोड़ा, प्रत्युत्तर में अर्जुन ने भी छोड़ा। अश्वत्थामा ने पांडवों के नाश के लिए छोड़ा था और अर्जुन ने उसके ब्रह्मास्त्र को नष्ट करने के लिए।

नारद तथा व्यास के कहने से अर्जुन ने अपने ब्रह्मास्त्र का उपसंहार कर दिया किंतु अश्वत्थामा ने वापस लेने की सामर्थ्य की न्यूनता बताते हुए पांडव परिवार के गर्भों को नष्ट करने के लिए छोड़ा। कृष्ण ने कहा- ‘उत्तरा को परीक्षित नामक बालक के जन्म का वर प्राप्त है। उसका पुत्र होगा ही। यदि तेरे शस्त्र-प्रयोग के कारण मृत हुआ तो भी मैं उसे जीवनदान करूंगा। वह भूमि का सम्राट होगा और तू? नीच अश्वत्थामा! तू इतने वधों का पाप ढोता हुआ हज़ारों वर्ष तक निर्जन स्थानों में भटकेगा।

तेरे शरीर से सदैव रक्त की दुर्गंध नि:सृत होती रहेगी। तू अनेक रोगों से पीड़ित रहेगा।’ व्यास ने श्रीकृष्ण के वचनों का अनुमोदन किया। अश्वत्थामा ने कहा कि वह मनुष्यों में केवल व्यास मुनि के साथ रहना चाहता है। जन्म से ही अश्वत्थामा के मस्तक में एक अमूल्य मणि विद्यमान थी जो कि उसे दैत्य, दानव, अस्त्र शस्त्र, व्याधि, देवता, नाग आदि से निर्भय रखती थी। वही मणि द्रौपदी ने मांगी थी। व्यास तथा नारद के कहने से उसने वह मणि द्रौपदी के लिए दे दी।

अश्वत्थामा ने द्रौपदी के सोते हुए पुत्रों को मार डाला। अत: अर्जुन ने क्रुद्ध होकर रोती हुई द्रौपदी से कहा कि वह अश्वत्थामा का सर काटकर उसे अर्पित करेगा। तदनंतर अर्जुन कृष्ण को सारथी बनाकर अश्वत्थामा से युद्ध करने गये। गुरुपुत्र होने पर भी उसे केवल ब्रह्मास्त्र छोड़ना आता था, वापस लेना नहीं आता था, तथापि अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया।

अर्जुन ने उसे ब्रह्मास्त्र से ही काटा, फिर सृष्टि को बचाने के लिए दोनों को लौटा लिया तथा अश्वत्थामा को रस्सी में बांधकर द्रौपदी के पास ले गया।

द्रौपदी ने दयार्द्र होकर उसे छोड़ने को कहा किंतु कृष्ण की प्रेरणा से अर्जुन ने उसके सिर से मणि निकालकर द्रौपदी को दी, इस प्रकार उसकी शपथ किसी सीमा तक निभ गयी और उसे छोड़ दिया। कृष्ण ने कहा- ‘पतित ब्राह्मण भी मारने योग्य नहीं होता, पर आततायी छोड़ा नहीं जाना चाहिए।’ इस प्रकार इस उक्ति का पालन हुआ।

संजय गुप्ता