Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

कान्हा नाम का एक भंगी नाली साफ करने वाला था.

वह भगवान श्रीकृष्ण से बहुत प्रेम करता था और उसने अपने मन को श्री श्यामसुन्दर के प्रेमरस में बिलकुल मिला दिया था. वह दूर से खड़े होकर श्री श्रीनाथ जी को टकटकी लगाकर देखा करता था. जब मंदिर के अधिकारीयों एवं पुजारियों ने उसे ऐसा करते देखा तो उन्हें अच्छा नहीं लगा. उन लोगों ने श्रीगोसाईं जी से कहकर मंदिर के द्वार के सामने दीवार उठवा दी जिससे श्री श्रीनाथ जी को कान्हा की दृष्टि से बचाया जा सके.

उसी रात श्री श्रीनाथ जी ने कान्हा से स्वप्न में कहा कि ये नई दीवार मुझे बहुत कष्ट दे रही है. प्रभु ने कान्हा को आज्ञा दी कि वो श्रीगोकुलनाथ जी से कह कर उस दीवार को हटवा दे. प्रभु ने कहा कि वो विलछू कुण्ड की शोभा को देखना चाहते हैं. इतना सब कहने के बाद प्रभु ने कान्हा से ये भी कहा कि उन्हें कान्हा के कष्ट का ख्याल है.

कान्हा ने स्वप्न में प्रभु के दर्शन किए और उनकी आज्ञा भी पायी पर उसमें अभी भी श्रीगोसाईं जी के पास जाने का साहस नहीं हुआ. तब प्रभु ने रोज़ उसे स्वप्न में यही कहना शुरू कर दिया. तीन दिन बाद कान्हा हिम्मत करके श्रीगोसाईं जी के द्वार पर पहुँचा और द्वारपालों से कहा कि उसे श्रीगोसाईं जी से कुछ बात करनी है. इसे सुनकर द्वारपाल नाराज़ हो गए और उसे वहाँ से चले जाने को कहा. पर तभी किसी ने श्रीगोसाईं जी को बता दिया कि कान्हा उनसे कुछ बात करने आया है. श्रीगोसाईं जी ने तुरंत कान्हा को अन्दर बुलवाया और उसकी बात सुनी. बात सुनते ही श्रीगोसाईं जी प्रेम में मग्न हो गए. उन्हें इस बात से बहुत आनन्द हुआ कि प्रभु ने उन्हें अपना मानकर उनके लिये सन्देश भिजवाया है. श्रीगोसाईं जी बार बार इस बात को सोच कर हर्षित होते थे कि प्रभु ने उनका नाम लेकर उन्हें आज्ञा करी है. श्रीगोसाईं जी कान्हा से बहुत प्रेम से मिले और कहा कि जैसा प्रभु ने कहा है वैसा ही होगा. श्रीगोसाईं जी ने दीवार गिरवा दी और कान्हा को श्रीनाथ जी का अनन्य सखा जानकर भोजन देने की आज्ञा करी.

सबसे बड़ा नाता भक्ति का होता है. भक्ति के आगे किसी चीज़ का कोई महत्त्व नहीं होता है. प्रभु तो केवल एक भक्ति का ही नाता मानते हैं. प्रभु से भी अपने भक्त का वियोग सहन नहीं होता है. प्रभु अपने भक्त से दूर नहीं रहते हैं और छिपे भी नहीं रहते हैं. भक्त और भगवान ही भक्ति की बात को समझ भी सकते हैं. प्रभु का कौतुक भी निराला है. खुद ही प्रेरणा दे कर दीवार उठवाते हैं जिससे कि वो अपने दो भक्तों को आनंदित कर सकें और फिर उसे गिरवाते हैं. कुछ करो या न करो पर ऐसे प्रभु से प्रेम ज़रूर करो।।

ज्योति अग्रवाल

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दर्द
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पचास वर्षीय राजेश बाबू ने सुबह सुबह करवट ली और हमेशा की तरह अपनी पत्नी मीता को चाय बनाने को कहा और फिर रजाई ढक कर करवट ले ली.
कुछ पल उन्होने इंतजार की पर कोई हलचल ना होने पर उन्होने दुबारा आवाज दी.
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ऐसा कभी भी नही हुआ था इसलिए राजेश बाबू ने लाईट जलाई और मीता को हिलाया पर कोई हलचल ना होने पर ना जाने वो घबरा से गए.
रजाई हटाई तो मीता निढाल सी एक ओर पडी थी.
ना जाने रात ही रात मे क्या हो गया.
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अचानक मीता का इस तरह से उनकी जिंदगी से हमेशा हमेशा ले लिए चले जाना …. असहनीय था.
धीरे धीरे जैसे पता चलता रहा लोग इकठठे होते रहे और उसका अंतिम संस्कार कर दिया.
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एक हफ्ता किस तरह बीता उन्हे कुछ याद ही नही. उन का एक ही बेटा था जो कि अमेरिका रहता था.
पढाई के बाद वही नौकरी कर ली थी.
बेटा आकर जाने की भी तैयारी कर रहा था.
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उसने अपने पापा को भी साथ चलने को कहा और वो तैयार भी हो गए. पर मीता की याद को अपने दिल से लगा लिया था.
अब उन्हे हर बात मे उसकी अच्छाई ही नजर आने लगी.उन्हे याद आता कि कितना ख्याल रखती थी मीता उनका पर वो कोई भी मौका नही चूकते थे उसे गलत साबित करने का. ना कभी उसकी तारीफ करते और ना कभी उसका मनोबल बढाते बल्कि कर काम मे उसकी गलती निकालने मे उन्हे असीम शांति मिलती थी.
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उधर मीता दिनभर काम मे जुटी रहती थी.
एक बार् जब काम वाली बाई 2 महीने की छुट्टी पर गई थी तब भी मीता इतने मजे से सारा काम बिना किसी दर्द और शिकन के आराम से गुनगुनाते हुए किया जबकि कोई दूसरी महिला होती तो अशांत हो जाती .
दिन रात राजेश बाबू उनकी यादो के सहारे जीने लगे.
काश वह तब उसकी कीमत जान पाते. काश वो तब उसकी प्रशंसा कर पाते. काश …. !!! पर अब बहुत देर हो चुकी थी.
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आज राजेश अमेरिका जाने के लिए सामान पैक कर रहे थे.
पैक करते करते मीता की फोटो को देख कर अचानक फफक कर रो पडे और बोले मीता,मुझे माफ कर दो.
प्लीज वापिस आ जाओ . मै तुम्हारे बिना कुछ नही हूं. आज जान गया हूं कि मै तुमसे कितना कितना प्यार करता हूं…
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तभी उन्हें किसी ने पीठ से झकोरा.
इससे पहले वो खुद को सम्भाल पाते अचानक उनकी आखं खुल गई.
मीता उन्हे घबराई हुई आवाज मे उठा रही थी.
वो सब सपना था.
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एक बार तो उन्हे विश्वास ही नही हुआ पर दूसरे पल उन्होने मीता का हाथ अपने हाथो मे ले लिया पर आखो से आसूं लगातार बहे जा रहे थे.
बस एक ही बात कह पाए … आई लव यू मीता !!!! आई लव यू !!!
और मीता नम हुई आखो से अपलक राजेश को ही देखे जा रही थी…

सुरेंदर जैन

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बिल्व पत्र की विशेषता
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भगवान शिव की पूजा में बिल्व पत्र यानी बेल पत्र का विशेष महत्व है। महादेव एक बेलपत्र अर्पण करने से भी प्रसन्न हो जाते है, इसलिए तो उन्हें आशुतोष भी कहा जाता है।

बिल्व तथा श्रीफल नाम से प्रसिद्ध यह फल बहुत ही काम का है। यह जिस पेड़ पर लगता है वह शिवद्रुम भी कहलाता है। बिल्व का पेड़ संपन्नता का प्रतीक, बहुत पवित्र तथा समृद्धि देने वाला है।

बेल के पत्ते शंकर जी का आहार माने गए हैं, इसलिए भक्त लोग बड़ी श्रद्धा से इन्हें महादेव के ऊपर चढ़ाते हैं। शिव की पूजा के लिए बिल्व-पत्र बहुत ज़रूरी माना जाता है। शिव-भक्तों का विश्वास है कि पत्तों के त्रिनेत्रस्वरूप् तीनों पर्णक शिव के तीनों नेत्रों को विशेष प्रिय हैं।

भगवान शंकर का प्रिय
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भगवान शंकर को बिल्व पत्र बेहद प्रिय हैं। भांग धतूरा और बिल्व पत्र से प्रसन्न होने वाले केवल शिव ही हैं। शिवरात्रि के अवसर पर बिल्वपत्रों से विशेष रूप से शिव की पूजा की जाती है। तीन पत्तियों वाले बिल्व पत्र आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं, किंतु कुछ ऐसे बिल्व पत्र भी होते हैं जो दुर्लभ पर चमत्कारिक और अद्भुत होते हैं।

बिल्वाष्टक और शिव पुराण
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बिल्व पत्र का भगवान शंकर के पूजन में विशेष महत्व है जिसका प्रमाण शास्त्रों में मिलता है। बिल्वाष्टक और शिव पुराण में इसका स्पेशल उल्लेख है। अन्य कई ग्रंथों में भी इसका उल्लेख मिलता है। भगवान शंकर एवं पार्वती को बिल्व पत्र चढ़ाने का विशेष महत्व है।

मां भगवती को बिल्व पत्र
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श्रीमद् देवी भागवत में स्पष्ट वर्णन है कि जो व्यक्ति मां भगवती को बिल्व पत्र अर्पित करता है वह कभी भी किसी भी परिस्थिति में दुखी नहीं होता। उसे हर तरह की सिद्धि प्राप्त होती है और कई जन्मों के पापों से मुक्ति मिलती है और वह भगवान भोले नाथ का प्रिय भक्त हो जाता है। उसकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं और अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है।

बिल्व पत्र के प्रकार
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बिल्व पत्र चार प्रकार के होते हैं – अखंड बिल्व पत्र, तीन पत्तियों के बिल्व पत्र, छः से 21 पत्तियों तक के बिल्व पत्र और श्वेत बिल्व पत्र। इन सभी बिल्व पत्रों का अपना-अपना आध्यात्मिक महत्व है। आप हैरान हो जाएंगे ये जानकर की कैसे ये बेलपत्र आपको भाग्यवान बना सकते हैं और लक्ष्मी कृपा दिला सकते हैं।

अखंड बिल्व पत्र
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इसका विवरण बिल्वाष्टक में इस प्रकार है – ‘‘अखंड बिल्व पत्रं नंदकेश्वरे सिद्धर्थ लक्ष्मी’’। यह अपने आप में लक्ष्मी सिद्ध है। एकमुखी रुद्राक्ष के समान ही इसका अपना विशेष महत्व है। यह वास्तुदोष का निवारण भी करता है। इसे गल्ले में रखकर नित्य पूजन करने से व्यापार में चैमुखी विकास होता है।

तीन पत्तियों वाला बिल्व पत्र
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इस बिल्व पत्र के महत्व का वर्णन भी बिल्वाष्टक में आया है जो इस प्रकार है- ‘‘त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुतम् त्रिजन्म पाप सहारं एक बिल्वपत्रं शिवार्पणम’’ यह तीन गणों से युक्त होने के कारण भगवान शिव को प्रिय है। इसके साथ यदि एक फूल धतूरे का चढ़ा दिया जाए, तो फलों में बहुत वृद्धि होती है।

इस तरह बिल्व पत्र अर्पित करने से भक्त को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। रीतिकालीन कवि ने इसका वर्णन इस प्रकार किया है- ‘‘देखि त्रिपुरारी की उदारता अपार कहां पायो तो फल चार एक फूल दीनो धतूरा को’’ भगवान आशुतोष त्रिपुरारी भंडारी सबका भंडार भर देते हैं।

आप भी फूल चढ़ाकर इसका चमत्कार स्वयं देख सकते हैं और सिद्धि प्राप्त कर सकते हैं। तीन पत्तियों वाले बिल्व पत्र में अखंड बिल्व पत्र भी प्राप्त हो जाते हैं। कभी-कभी एक ही वृक्ष पर चार, पांच, छह पत्तियों वाले बिल्व पत्र भी पाए जाते हैं। परंतु ये बहुत दुर्लभ हैं।

10 छह से लेकर 21 पत्तियों वाले बिल्व पत्र
ये मुख्यतः नेपाल में पाए जाते हैं। पर भारत में भी दक्षिण में कहीं-कहीं मिलते हैं। जिस तरह रुद्राक्ष कई मुखों वाले होते हैं उसी तरह बिल्व पत्र भी कई पत्तियों वाले होते हैं।

श्वेत बिल्व पत्र
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जिस तरह सफेद सांप, सफेद टांक, सफेद आंख, सफेद दूर्वा आदि होते हैं उसी तरह सफेद बिल्वपत्र भी होता है। यह प्रकृति की अनमोल देन है। इस बिल्व पत्र के पूरे पेड़ पर श्वेत पत्ते पाए जाते हैं। इसमें हरी पत्तियां नहीं होतीं। इन्हें भगवान शंकर को अर्पित करने का विशेष महत्व है।

कैसे आया बेल वृक्ष
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बेल वृक्ष की उत्पत्ति के संबंध में ‘स्कंदपुराण’ में कहा गया है कि एक बार देवी पार्वती ने अपनी ललाट से पसीना पोछकर फेंका, जिसकी कुछ बूंदें मंदार पर्वत पर गिरीं, जिससे बेल वृक्ष उत्पन्न हुआ। इस वृक्ष की जड़ों में गिरिजा, तना में महेश्वरी, शाखाओं में दक्षयायनी, पत्तियों में पार्वती, फूलों में गौरी का वास माना गया है।

बिल्व-पत्र तोड़ने का मंत्र
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बिल्व-पत्र को सोच-विचार कर ही तोड़ना चाहिए। पत्ते तोड़ने से पहले यह मंत्र बोलना चाहिए-

अमृतोद्भव श्रीवृक्ष महादेवप्रिय: सदा।
गृह्यामि तव पत्राणि शिवपूजार्थमादरात्॥

अर्थ- अमृत से उत्पन्न सौंदर्य व ऐश्वर्यपूर्ण वृक्ष महादेव को हमेशा प्रिय है। भगवान शिव की पूजा के लिए हे वृक्ष में तुम्हारे पत्र तोड़ता हूं।

पत्तियां कब न तोड़ें
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विशेष दिन या पर्वो के अवसर पर बिल्व के पेड़ से पत्तियां तोड़ना मना है। शास्त्रों के अनुसार इसकी पत्तियां इन दिनों में नहीं तोड़ना चाहिए-
सोमवार के दिन चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या की तिथियों को। संक्रांति के पर्व पर।

अमारिक्तासु संक्रान्त्यामष्टम्यामिन्दुवासरे ।
बिल्वपत्रं न च छिन्द्याच्छिन्द्याच्चेन्नरकं व्रजेत ॥
(लिंगपुराण)

अर्थ
अमावस्या, संक्रान्ति के समय, चतुर्थी, अष्टमी, नवमी और चतुर्दशी तिथियों तथा सोमवार के दिन बिल्व-पत्र तोड़ना वर्जित है।

क्या चढ़ाया गया बिल्व-पत्र भी चढ़ा सकते हैं
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शास्त्रों में विशेष दिनों पर बिल्व-पत्र चढ़ाने से मना किया गया है तो यह भी कहा गया है कि इन दिनों में चढ़ाया गया बिल्व-पत्र धोकर पुन: चढ़ा सकते हैं।

अर्पितान्यपि बिल्वानि प्रक्षाल्यापि पुन: पुन:।
शंकरायार्पणीयानि न नवानि यदि चित्॥
(स्कन्दपुराण, आचारेन्दु)

अर्थ- अगर भगवान शिव को अर्पित करने के लिए नूतन बिल्व-पत्र न हो तो चढ़ाए गए पत्तों को बार-बार धोकर चढ़ा सकते हैं।

विभिन्न रोगों की कारगर दवा
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बिल्व-पत्र-बिल्व का वृक्ष विभिन्न रोगों की कारगर दवा है। इसके पत्ते ही नहीं बल्कि विभिन्न अंग दवा के रूप में उपयोग किए जाते हैं। पीलिया, सूजन, कब्ज, अतिसार, शारीरिक दाह, हृदय की घबराहट, निद्रा, मानसिक तनाव, श्वेतप्रदर, रक्तप्रदर, आंखों के दर्द, रक्तविकार आदि रोगों में बिल्व के विभिन्न अंग उपयोगी होते हैं। इसके पत्तो को पानी से पकाकर उस पानी से किसी भी तरह के जख्म को धोकर उस पर ताजे पत्ते पीसकर बांध देने से वह शीघ्र ठीक हो जाता है।

पूजन में महत्व
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वस्तुत: बिल्व पत्र हमारे लिए उपयोगी वनस्पति है। यह हमारे कष्टों को दूर करती है। भगवान शिव को चढ़ाने का भाव यह होता है कि जीवन में हम भी लोगों के संकट में काम आएं। दूसरों के दु:ख के समय काम आने वाला व्यक्ति या वस्तु भगवान शिव को प्रिय है। सारी वनस्पतियां भगवान की कृपा से ही हमें मिली हैं अत: हमारे अंदर पेड़ों के प्रति सद्भावना होती है। यह भावना पेड़-पौधों की रक्षा व सुरक्षा के लिए स्वत: प्रेरित करती है। पूजा में चढ़ाने का मंत्र-भगवान शिव की पूजा में बिल्व पत्र यह मंत्र बोलकर चढ़ाया जाता है। यह मंत्र बहुत पौराणिक है।

त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुतम्।
त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्॥

अर्थ- तीन गुण, तीन नेत्र, त्रिशूल धारण करने वाले और तीन जन्मों के पाप को संहार करने वाले हे शिवजी आपको त्रिदल बिल्व पत्र अर्पित करता हूं।

रुद्राष्टाध्यायी के इस मन्त्र को बोलकर बिल्वपत्र चढ़ाने का विशेष महत्त्व एवं फल है।
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नमो बिल्ल्मिने च कवचिने च नमो वर्म्मिणे च वरूथिने चनमः श्रुताय च श्रुतसेनाय च नमो दुन्दुब्भ्याय चा हनन्न्याय च नमो घृश्णवे॥
दर्शनं बिल्वपत्रस्य स्पर्शनम्‌ पापनाशनम्‌। अघोर पाप संहारं बिल्व पत्रं शिवार्पणम्‌॥त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुधम्‌। त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्‌॥
अखण्डै बिल्वपत्रैश्च पूजये शिव शंकरम्‌। कोटिकन्या महादानं बिल्व पत्रं शिवार्पणम्‌॥गृहाण बिल्व पत्राणि सपुश्पाणि महेश्वर। सुगन्धीनि भवानीश शिवत्वंकुसुम प्रिय।
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प्रताप राज

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प्रेरक प्रसंग

ध्यान अटूट तैल धार जिमि

  कहते हैं, एक बार अकबर बादशाह आखेट के लिए निकला ।  मार्ग में नमाज का वक्त हुआ, तो उसने वस्त्र बिछाकर नमाज़ पढ़ना प्रारम्भ किया ।  इतने में एक युवती अपने प्रियतम को ढूँढ़ती हुई उधर से निकली ।  उसका ध्यान वस्त्र की ओर न होने से उस पर पैर देकर निकल गयी ।  बादशाह ने देखा तो क्रोधित हो उठा; बोला,  "क्यों री !  तुझे यह दिखा नहीं कि मैं नमाज़ पढ़ रहा था ?  मैं नमाज़ में लीन था, यह देखकर भी सीधे वस्त्र पर पैर रख चली गयी !"  युवती ने सुना, तो जवाब में केवल निम्न दोहा कह सुनाया ___

           नर  राची  सूझी  नहीं,  तुम  कस  लख्यो  सुजान ।
           पढ़ि   कुरान   बौरे   भयो,  नहीं   राच्यौ  रहमान  ।।

   ___ मैं तो अपने प्रियतम के खोज में मग्न थी, इसलिए मेरा ध्यान आपकी ओर नहीं गया, मगर आप तो भक्ति में मग्न थे, फिर भला आप मुझे कैसे देख पाये ?  मालूम होता है, कुरान पढ़कर आप बौरा गये हैं ।  वास्तव में आपका ध्यान नमाज़ की ओर नहीं, मेरी ओर था !

अनूप सिन्हा

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(((( नीम का घमंड ))))
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शहर से दूर एक घने जंगल में एक आम का पेड़ था और एक लंबा और घना नीम का पेड़ था ।
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नीम का पेड़ अपने पड़ोसी पेड़ से बात तक नहीं करता था ।
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उसको अपने बढ़े होने पर घमंड था ।
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एक बार एक रानी मधुमक्खी नीम के पेड़ के पास पहुची और उसने कहाँ, नीम भाई मैं आपके यहाँ पर आपने शहद का छत्ता बना लू..
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तब नीम के पेड़ ने कहाँ, नहीं जा जाकर कहीं और अपना छत्ता बना ।
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इतना सुनकर आम के पेड़ ने कहाँ, भाई छत्ता क्यों नहीं बना लेने देते, यह तुम्हारे पेड़ पर सुरक्षित रह सकेंगी ।
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इतने पर नीम के पेड़ ने आम के पेड़ को जवाब दिया कि मुझे तुम्हारी सलाह कि आवश्यकता नहीं हें ।
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रानी मधुमक्खी ने फिर से आग्रह किया तो भी नीम के पेड़ ने मना कर दिया ।
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रानी मधुमक्खी आम के पेड़ के पास गई और कहने लगी, क्या मैं आपकी शाखा पर अपना छत्ता बना लूँ ।
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इस पर आम के पेड़ ने उसे सहमति दे दी। रानी मधुमक्खी ने छत्ता बना लिया और सुखपूर्वक रहने लगी ।
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कुछ दिनों बाद कुछ व्यक्ति वहाँ पर आये और कहने लगे कि इस आम के पेड़ को काटते हैं।
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तभी एक व्यक्ति कि नजर मधुमक्खी के छत्ते पर पड़ी और उसने कहाँ यदि हम इस पेड़ को काटते हैं तो यह मधुमक्खीया हमें नहीं छोड़ेगी |
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अतः हम नीम के पेड़ को काटते हें । इससे हमको कोई खतरा नहीं है, और लकड़ियां भी हमे अधिक मात्रा में मिल जाएँगी |
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यह सब बाते सुनकर नीम डर गया, अब वह कर भी क्या सकता था ।
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दूसरे दिन सभी व्यक्ति आये और पेड़ काटने लगे तो नीम ने कहाँ
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मुझे बचाओ, मुझे बचाओ, नही तो ये लोग मुझको काट डालेंगे।
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तब मधुमक्खियों ने उन लोगों पर हमला कर दिया और उन्हें वहाँ से भगा दिया ।
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नीम के पेड़ ने मधुमक्खियों को धन्यवाद दिया तो इस पर मधुमक्खियों ने कहाँ,
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धन्यवाद हमें नही आम भाई को दो, यदि वह हमसे नहीं कहते तो हम आपको नहीं बचाते ।
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कभी कभी बड़े और महान होने का एहसास हमें घमंडी और क्रूर बना देता हें, जिससे हम अपने सच्चे साथियों से दूर हो जाते हें ।

((((((( जय जय श्री राधे )))))))

ज्योति अग्रवाल

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#राधे-राधे
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पहली बार कृष्ण राधा से दूर तब गए, जब जब मामा कंस ने उन्हें और बलराम को मथुरा आमंत्रित किया।

वृंदावन के लोगों को जब यह बात पता चली, तो वह दुःखी हो गए।मां यशोदा परेशान थीं, तो नंद बाबा चिंतित। सभी कृष्ण के रथ के चारों तरफ खड़े हुए थे।

जो कान्हा के मामा ने उन्हें मथुरा लाने के लिए भेजा था।
मथुरा जाने से पहले श्रीकृष्ण राधा से मिले थे। राधा, कृष्ण के मन में चल रही हर गतिविधि को जानती थीं।

दोनों को बोलने की ज्यादा आवश्यकता नहीं पड़ी। आखिर राधा को अलविदा कह कृष्ण उनसे दूर चले गए।

लेकिन विधि का विधान कुछ और ही था। राधा एक बार फिर कृष्ण से मिलीं। राधा, कृष्ण की नगरी द्वारिका पहुंची। कृष्ण ने जब राधा को देखा तो बहुत प्रसन्न हुए।

दोनों संकेतों की भाषा में एक दूसरे से काफी देर तक बातचीत करते रहे।शास्त्रों में वर्णित है कि राधा जी को कान्हा की नगरी द्वारिका में कोई नहीं जानता था।

राधा के अनुरोध पर कृष्ण ने उन्हें महल में एक देविका के रूप में नियुक्त किया। वे दिन भर महल में रहतीं, महल से जुड़े कार्यों को देखती और जब भी मौका मिलता दूर से ही कृष्ण के दर्शन कर लेती थीं।

लेकिन एक दिन राधा महल से दूर चली गईं। और भगवान कृष्ण उनके पास पहुंचे। यह दोनों का आखिर मिलन था। यह वह समय था, जब अपने प्रिय को अलविदा कह रही थीं।

कान्हा ने राधा से पूछा, ‘वे इस अंतिम समय में कुछ मांगना चाहें।’ तब राधा ने एक ही मांग की और वह यह कि ‘वे आखिरी बार कृष्ण को बांसुरी बजाते देखना चाहती थी’

कृष्ण ने बांसुरी ली और बेहद मधुर धुन में उसे बजाया, बांसुरी के मधुर स्वर सुनते-सुनते राधा जी ने अपना शरीर त्याग दिया।

कहते हैं कृष्ण ने इस घटना के बाद अपनी बांसुरी तोड़ दी और फिर कभी वह बांसुरी नहीं बजाई जिसकी तान सुन राधाजी देवलोक की ओर चली गई थीं।

संजय गुप्ता

Posted in भारतीय मंदिर - Bharatiya Mandir

मित्रो आज हम आपको शमी के वृक्ष के बारे में बतायेंगे!!!!!!

शमी वृक्ष को हिन्दू धर्म में बड़ा ही पवित्र माना गया है। विवाह आदि समारोहों में बांस ओर शमी के वृक्ष की लकड़ी के साथ ही दूल्हा दुल्हन सात फेरे लेते हैं। भारतीय परंपरा में ‘विजयादशमी’ पर शमी पूजन का पौराणिक महत्व रहा है।

राजस्थान में शमी वृक्ष को ‘खेजड़ी’ के नाम से जाना जाता है। यह मूलतः रेगिस्तान में पाया जाने वाला वृक्ष है, जो थार मरुस्थल एवं अन्य स्थानों पर भी पाया जाता है। अंग्रेज़ी में शमी वृक्ष प्रोसोपिस सिनेरेरिया के नाम से जाना जाता है।

शमी वृक्ष के संदर्भ में कई पौराणिक कथाओं का आधार विद्यमान है। यज्ञ परंपरा में भी शमी के पत्तों का हवन गुणकारी माना गया है। शमी का वृक्ष आठ से दस मीटर तक ऊंचा होता है। शाखाओं पर कांटे होते हैं।

इसकी पत्तियां द्विपक्षवत होती हैं। शमी के फूल छोटे पीताभ रंग के होते हैं। प्रौढ पत्तियों का रंग राख जैसा होता है, इसीलिए इसकी प्रजाति का नाम ‘सिनरेरिया’ रखा गया है अर्थात ‘राख जैसा’।

हिन्दू धर्म में शमी वृक्ष से जुड़ी कई मान्यताएँ है, जैसे- शुभ अवसरों पर,दशहरे के दिन शमी के वृक्ष की पूजा करने की प्रथा है। मान्यता है कि यह भगवान श्री राम का प्रिय वृक्ष था औरलंका पर आक्रमण से पहले उन्होंने शमी वृक्ष की पूजा करके उससे विजयी होने का आशीर्वाद प्राप्त किया था।

आज भी कई स्थानों पर ‘रावण दहन’ के बाद घर लौटते समय शमी के पत्ते स्वर्ण के प्रतीक के रूप में एक दूसरे को बाँटने की प्रथा हैं, इसके साथ ही कार्यों में सफलता मिलने कि कामना की जाती है।

शमी वृक्ष का वर्णन महाभारत काल में भी मिलता है। अपने 12 वर्ष के वनवास के बाद एक साल के अज्ञातवास में पांडवों ने अपने सारे अस्त्र शस्त्र इसी पेड़ पर छुपाये थे, जिसमें अर्जुन का गांडीव धनुष भी था।

कुरुक्षेत्र में कौरवों के साथ युद्ध के लिये जाने से पहले भी पांडवों ने शमी के वृक्ष की पूजा की थी और उससे शक्ति और विजय प्राप्ति की कामना की थी। तभी से यह माना जाने लगा है कि जो भी इस वृक्ष कि पूजा करता है उसे शक्ति और विजय प्राप्त होती है।

शमी शमयते पापम् शमी शत्रुविनाशिनी ।
अर्जुनस्य धनुर्धारी रामस्य प्रियदर्शिनी ॥
करिष्यमाणयात्राया यथाकालम् सुखम् मया ।
तत्रनिर्विघ्नकर्त्रीत्वं भव श्रीरामपूजिता ॥

अर्थात “हे शमी, आप पापों का क्षय करने वाले और दुश्मनों को पराजित करने वाले हैं। आप अर्जुन का धनुष धारण करने वाले हैं और श्री राम को प्रिय हैं। जिस तरह श्री राम ने आपकी पूजा की मैं भी करता हूँ। मेरी विजय के रास्ते में आने वाली सभी बाधाओं से दूर कर के उसे सुखमय बना दीजिये।

अन्य विशेष तथ्य : – अन्य कथा के अनुसार कवि कालिदास ने शमी के वृक्ष के नीचे बैठ कर तपस्या करके ही ज्ञान की प्राप्ति की थी।शमी वृक्ष की लकड़ी यज्ञ की समिधा के लिए पवित्र मानी जाती है। शनिवार को शमी की समिधा का विशेष महत्त्व है। शनि देव को शान्त रखने के लिये भी शमी की पूजा की जाती है।

शमी को गणेश जी का भी प्रिय वृक्ष माना जाता है और इसकी पत्तियाँ गणेश जी की पूजा में भी चढ़ाई जाती हैं।बिहार, झारखण्ड और आसपास के कई राज्यों में भी इस वृक्ष को पूजा जाता है। यह लगभग हर घर के दरवाज़े के दाहिनी ओर लगा देखा जा सकता है। किसी भी काम पर जाने से पहले इसके दर्शन को शुभ मना जाता है।

ऋग्वेद के अनुसार शमी के पेड़ में आग पैदा करने कि क्षमता होती है और ऋग्वेद की ही एक कथा के अनुसार आदिम काल में सबसे पहली बार पुरुओं ने शमी और पीपल की टहनियों को रगड़ कर ही आग पैदा की थी।कवियों और लेखकों के लिये शमी बड़ा महत्व रखता है।

हिन्दू धर्म में भगवान चित्रगुप्त को शब्दों और लेखनी का देवता माना जाता है और शब्द-साधक यम-द्वितीया को यथा-संभव शमी के पेड़ के नीचे उसकी पत्तियों से उनकी पूजा करते हैं।

संजय गुप्ता

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

एक और एक ग्यारह
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एक बार की बात हैं कि बनगिरी के घने जंगल में एक उन्मुत्त हाथी ने भारी उत्पात मचा रखा था। वह अपनी ताकत के नशे में चूर होने के कारण किसी को कुछ नेहीं समझता था।

बनगिरी में ही एक पेड पर एक चिडिया व चिडे का छोटा-सा सुखी संसार था। चिडिया अंडो पर बैठी नन्हें-नन्हें प्यारे बच्चों के निकलने के सुनहरे सपने देखती रहती। एक दिन क्रूर हाथी गरजता, चिंघाडता पेडों को तोडता-मरोडता उसी ओर आया। देखते ही देखते उसने चिडिया के घोंसले वाला पेड भी तोड डाला। घोंसला नीचे आ गिरा। अंडे टूट गए और ऊपर से हाथी का पैर उस पर पडा।

चिडिया और चिडा चीखने चिल्लाने के सिवा और कुछ न कर सके। हाथी के जाने के बाद चिडिया छाती पीट-पीटकर रोने लगी। तभी वहां कठफोठवी आई। वह चिडिया की अच्छी मित्र थी। कठफोडवी ने उनके रोने का कारण पूछा तो चिडिया ने अपनी सारी कहानी कह डाली। कठफोडवी बोली “इस प्रकार गम में डूबे रहने से कुछ नहीं होगा। उस हाथी को सबक सिखाने के लिए हमे कुछ करना होगा।”

चिडिया ने निराशा दिखाई “हमें छोटे-मोटे जीव उस बलशाली हाथी से कैसे टक्कर ले सकते हैं?”

कठफोडवी ने समझाया “एक और एक मिलकर ग्यारह बनते हैं। हम अपनी शक्तियां जोडेंगे।”

“कैसे?” चिडिया ने पूछा।

“मेरा एक मित्र वींआख नामक भंवरा हैं। हमें उससे सलाह लेना चाहिए।” चिडिया और कठफोडवी भंवरे से मिली। भंवरा गुनगुनाया “यह तो बहुत बुरा हुआ। मेरा एक मेंढक मित्र हैं आओ, उससे सहायता मांगे।”

अब तीनों उस सरोवर के किनारे पहुंचे, जहां वह मेढक रहता था। भंवरे ने सारी समस्या बताई। मेंढक भर्राये स्वर में बोला “आप लोग धैर्य से जरा यहीं मेरी प्रतीक्षा करें। मैं गहरे पाने में बैठकर सोचता हूं।”

ऐसा कहकर मेंढक जल में कूद गया। आधे घंटे बाद वह पानी से बाहर आया तो उसकी आंखे चमक रही थी। वह बोला “दोस्तो! उस हत्यारे हाथी को नष्ट करने की मेरे दिमाग में एक बडी अच्छी योजना आई हैं। उसमें सभी का योगदान होगा।”

मेंढक ने जैसे ही अपनी योजना बताई,सब खुशी से उछल पडे। योजना सचमुच ही अदभुत थी। मेंढक ने दोबारा बारी-बारी सबको अपना-अपना रोल समझाया।

कुछ ही दूर वह उन्मत्त हाथी तोडफोड मचाकर व पेट भरकर कोंपलों वाली शाखाएं खाकर मस्ती में खडा झूम रहा था। पहला काम भंवरे का था। वह हाथी के कानों के पास जाकर मधुर राग गुंजाने लगा। राग सुनकर हाथी मस्त होकर आंखें बंद करके झूमने लगा।

तभी कठफोडवी ने अपना काम कर दिखाया। वह् आई और अपनी सुई जैसी नुकीली चोंच से उसने तेजी से हाथी की दोनों आंखें बींध डाली। हाथी की आंखे फूट गईं। वह तडपता हुआ अंधा होकर इधर-उधर भागने लगा।

जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा था, हाथी का क्रोध बढता जा रहा था। आंखों से नजर न आने के कारण ठोकरों और टक्करों से शरीर जख्मी होता जा रहा था। जख्म उसे और चिल्लाने पर मजबूर कर रहे थे।

चिडिया कॄतज्ञ स्वर में मेढक से बोली “बहिया, मैं आजीवन तुम्हारी आभारी रहूंगी। तुमने मेरी इतनी सहायता कर दी।”

मेढक ने कहा “आभार मानने की जरुरत नहीं। मित्र ही मित्रों के काम आते हैं।”

एक तो आंखों में जलन और ऊपर से चिल्लाते-चिंघाडते हाथी का गला सूख गया। उसे तेज प्यास लगने लगी। अब उसे एक ही चीज की तलाश थी, पानी।

मेढक ने अपने बहुत से बंधु-बांधवों को इकट्ठा किया और उन्हें ले जाकर दूर बहुत बडे गड्ढे के किनारे बैठकर टर्राने के लिए कहा। सारे मेढक टर्राने लगे।

मेढक की टर्राहट सुनकर हाथी के कान खडे हो गए। वह यह जानता ता कि मेढक जल स्त्रोत के निकट ही वास करते हैं। वह उसी दिशा में चल पडा।

टर्राहट और तेज होती जा रही थी। प्यासा हाथी और तेज भागने लगा।

जैसे ही हाथी गड्ढे के निकट पहुंचा, मेढकों ने पूरा जोर लगाकर टर्राना शुरु किया। हाथी आगे बढा और विशाल पत्थर की तरह गड्ढे में गिर पडा, जहां उसके प्राण पखेरु उडते देर न लगे इस प्रकार उस अहंकार में डूबे हाथी का अंत हुआ।

सीखः 1.एकता में बल हैं।
2.अहंकारी का देर या सबेर अंत होता ही हैं।
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देव शर्मा

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

एक बार एक लड़का अपने स्कूल की फीस भरने के लिए एक दरवाजे से दूसरे दरवाजे तक कुछ सामान बेचा करता था,

एक दिन उसका कोई सामान नहीं बिका और उसे बड़े जोर से भूख भी लग रही थी. उसने तय किया कि अब वह जिस भी दरवाजे पर जायेगा, उससे खाना मांग लेगा…

पहला दरवाजा खटखटाते ही एक लड़की ने दरवाजा खोला, जिसे देखकर वह घबरा गया और बजाय खाने के उसने पानी का एक गिलास माँगा….

लड़की ने भांप लिया था कि वह भूखा है, इसलिए वह एक.. बड़ा गिलास दूध का ले आई. लड़के ने धीरे-धीरे दूध पी लिया…
” कितने पैसे दूं ?” लड़के ने पूछा.
” पैसे किस बात के ?” लड़की ने जवाव में कहा. “माँ ने मुझे सिखाया है कि जब भी किसी पर दया करो तो उसके पैसे नहीं लेने चाहिए.”

“तो फिर मैं आपको दिल से धन्यवाद देता हूँ.” जैसे ही उस लड़के ने वह घर छोड़ा, उसे न केवल शारीरिक तौर पर शक्ति भी मिल चुकी थी , बल्कि उसका भगवान् और आदमी पर भरोसा और भी बढ़ गया था

सालों बाद वह लड़की गंभीर रूप से बीमार पड़ गयी.लोकल डॉक्टर ने उसे शहर के बड़े अस्पताल में इलाज के लिए भेज दिया…

विशेषज्ञ डॉक्टर होवार्ड केल्ली को मरीज देखने के लिए बुलाया गया.जैसे ही उसने लड़की के कस्बे का नाम सुना, उसकी आँखों में चमक आ गयी…

वह एकदम सीट से उठा और उस लड़की के कमरे में गया.उसने उस लड़की को देखा, एकदम पहचान लिया और तय कर लिया कि वह उसकी जान बचाने के लिए जमीन-आसमान एक कर देगा….

उसकी मेहनत और लग्न रंग लायी और उस लड़की कि जान बच गयी. डॉक्टर ने अस्पताल के ऑफिस में जा कर उस लड़की के इलाज का बिल लिया….

उस बिल के कौने में एक नोट लिखा और उसे उस लड़की के पास भिजवा दिया. लड़की बिल का लिफाफा देखकर घबरागयी…

उसे मालूम था कि वह बीमारी से तो वह बच गयी है लेकिन बिल कि रकम जरूर उसकी जान ले लेगी…

फिर भी उसने धीरे से बिल खोला, रकम को देखा और फिर अचानक उसकी नज़र बिल के कौने में पैन से लिखे नोट पर गयी…

जहाँ लिखा था, “एक गिलास दूध द्वारा इस बिल का भुगतान किया जा चुका है. ” नीचे उस नेक डॉक्टर होवार्ड केल्ली के हस्ताक्षर थे.

ख़ुशी और अचम्भे से उस लड़की के गालों पर आंसू टपक पड़े उसने ऊपर कि और दोनों हाथ उठा कर कहा, ” हे भगवान..! आपका बहुत-बहुत धन्यवाद..
आपका प्यार इंसानों के दिलों और हाथों के द्वारा न जाने कहाँ- कहाँ फैल चुका है.”

अगर आप दूसरों पर.. अच्छाई करोगे तो.. आपके साथ भी.. अच्छा ही होगा ..!!

अब आपको दो में से एक चुनाव करना है…!
या तो आप इसे शेयर करके इस सन्देश को हर जगह पहुंचाएँ..! या अपने आप को समझा लें कि इस कहानी ने आपका दिल नहीं छूआ..!!

संजय गुप्ता

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

#आजकीकहानी :

एक पुरानी सी इमारत में था वैद्यजी का मकान था। पिछले हिस्से में रहते थे और अगले हिस्से में दवाख़ाना खोल रखा था। उनकी पत्नी की आदत थी कि दवाख़ाना खोलने से पहले उस दिन के लिए आवश्यक सामान एक चिठ्ठी में लिख कर दे देती थी। वैद्यजी गद्दी पर बैठकर पहले भगवान का नाम लेते फिर वह चिठ्ठी खोलते। पत्नी ने जो बातें लिखी होतीं, उनके भाव देखते , फिर उनका हिसाब करते। फिर परमात्मा से प्रार्थना करते कि हे भगवान ! मैं केवल तेरे ही आदेश के अनुसार तेरी भक्ति छोड़कर यहाँ दुनियादारी के चक्कर में आ बैठा हूँ। वैद्यजी कभी अपने मुँह से किसी रोगी से फ़ीस नहीं माँगते थे। कोई देता था, कोई नहीं देता था किन्तु एक बात निश्चित थी कि ज्यों ही उस दिन के आवश्यक सामान ख़रीदने योग्य पैसे पूरे हो जाते थे, उसके बाद वह किसी से भी दवा के पैसे नहीं लेते थे चाहे रोगी कितना ही धनवान क्यों न हो।

एक दिन वैद्यजी ने दवाख़ाना खोला। गद्दी पर बैठकर परमात्मा का स्मरण करके पैसे का हिसाब लगाने के लिए आवश्यक सामान वाली चिट्ठी खोली तो वह चिठ्ठी को एकटक देखते ही रह गए। एक बार तो उनका मन भटक गया। उन्हें अपनी आँखों के सामने तारे चमकते हुए नज़र आए किन्तु शीघ्र ही उन्होंने अपनी तंत्रिकाओं पर नियंत्रण पा लिया। आटे-दाल-चावल आदि के बाद पत्नी ने लिखा था, “बेटी का विवाह 20 तारीख़ को है, उसके दहेज का सामान।” कुछ देर सोचते रहे फिर बाकी चीजों की क़ीमत लिखने के बाद दहेज के सामने लिखा, ” यह काम परमात्मा का है, परमात्मा जाने।”

एक-दो रोगी आए थे। उन्हें वैद्यजी दवाई दे रहे थे। इसी दौरान एक बड़ी सी कार उनके दवाखाने के सामने आकर रुकी। वैद्यजी ने कोई खास तवज्जो नहीं दी क्योंकि कई कारों वाले उनके पास आते रहते थे। दोनों मरीज दवाई लेकर चले गए। वह सूटेड-बूटेड साहब कार से बाहर निकले और नमस्ते करके बेंच पर बैठ गए। वैद्यजी ने कहा कि अगर आपको अपने लिए दवा लेनी है तो इधर स्टूल पर आएँ ताकि आपकी नाड़ी देख लूँ और अगर किसी रोगी की दवाई लेकर जाना है तो बीमारी की स्थिति का वर्णन करें।

वह साहब कहने लगे “वैद्यजी! आपने मुझे पहचाना नहीं। मेरा नाम कृष्णलाल है लेकिन आप मुझे पहचान भी कैसे सकते हैं? क्योंकि मैं 15-16 साल बाद आपके दवाखाने पर आया हूँ। आप को पिछली मुलाकात का हाल सुनाता हूँ, फिर आपको सारी बात याद आ जाएगी। जब मैं पहली बार यहाँ आया था तो मैं खुद नहीं आया था अपितु ईश्वर मुझे आप के पास ले आया था क्योंकि ईश्वर ने मुझ पर कृपा की थी और वह मेरा घर आबाद करना चाहता था। हुआ इस तरह था कि मैं कार से अपने पैतृक घर जा रहा था। बिल्कुल आपके दवाखाने के सामने हमारी कार पंक्चर हो गई। ड्राईवर कार का पहिया उतार कर पंक्चर लगवाने चला गया। आपने देखा कि गर्मी में मैं कार के पास खड़ा था तो आप मेरे पास आए और दवाखाने की ओर इशारा किया और कहा कि इधर आकर कुर्सी पर बैठ जाएँ। अंधा क्या चाहे दो आँखें और कुर्सी पर आकर बैठ गया। ड्राइवर ने कुछ ज्यादा ही देर लगा दी थी।

एक छोटी-सी बच्ची भी यहाँ आपकी मेज़ के पास खड़ी थी और बार-बार कह रही थी, ” चलो न बाबा, मुझे भूख लगी है। आप उससे कह रहे थे कि बेटी थोड़ा धीरज धरो, चलते हैं। मैं यह सोच कर कि इतनी देर से आप के पास बैठा था और मेरे ही कारण आप खाना खाने भी नहीं जा रहे थे। मुझे कोई दवाई खरीद लेनी चाहिए ताकि आप मेरे बैठने का भार महसूस न करें। मैंने कहा वैद्यजी मैं पिछले 5-6 साल से इंग्लैंड में रहकर कारोबार कर रहा हूँ। इंग्लैंड जाने से पहले मेरी शादी हो गई थी लेकिन अब तक बच्चे के सुख से वंचित हूँ। यहाँ भी इलाज कराया और वहाँ इंग्लैंड में भी लेकिन किस्मत ने निराशा के सिवा और कुछ नहीं दिया।”

आपने कहा था, “मेरे भाई! भगवान से निराश न होओ। याद रखो कि उसके कोष में किसी चीज़ की कोई कमी नहीं है। आस-औलाद, धन-इज्जत, सुख-दुःख, जीवन-मृत्यु सब कुछ उसी के हाथ में है। यह किसी वैद्य या डॉक्टर के हाथ में नहीं होता और न ही किसी दवा में होता है। जो कुछ होना होता है वह सब भगवान के आदेश से होता है। औलाद देनी है तो उसी ने देनी है। मुझे याद है आप बातें करते जा रहे थे और साथ-साथ पुड़िया भी बनाते जा रहे थे। सभी दवा आपने दो भागों में विभाजित कर दो अलग-अलग लिफ़ाफ़ों में डाली थीं और फिर मुझसे पूछकर आप ने एक लिफ़ाफ़े पर मेरा और दूसरे पर मेरी पत्नी का नाम लिखकर दवा उपयोग करने का तरीका बताया था।

मैंने तब बेदिली से वह दवाई ले ली थी क्योंकि मैं सिर्फ कुछ पैसे आप को देना चाहता था। लेकिन जब दवा लेने के बाद मैंने पैसे पूछे तो आपने कहा था, बस ठीक है। मैंने जोर डाला, तो आपने कहा कि आज का खाता बंद हो गया है। मैंने कहा मुझे आपकी बात समझ नहीं आई। इसी दौरान वहां एक और आदमी आया उसने हमारी चर्चा सुनकर मुझे बताया कि खाता बंद होने का मतलब यह है कि आज के घरेलू खर्च के लिए जितनी राशि वैद्यजी ने भगवान से माँगी थी वह ईश्वर ने उन्हें दे दी है। अधिक पैसे वे नहीं ले सकते।

मैं कुछ हैरान हुआ और कुछ दिल में लज्जित भी कि मेरे विचार कितने निम्न थे और यह सरलचित्त वैद्य कितना महान है। मैंने जब घर जा कर पत्नी को औषधि दिखाई और सारी बात बताई तो उसके मुँह से निकला वो इंसान नहीं कोई देवता है और उसकी दी हुई दवा ही हमारे मन की मुराद पूरी करने का कारण बनेंगी। आज मेरे घर में दो फूल खिले हुए हैं। हम दोनों पति-पत्नी हर समय आपके लिए प्रार्थना करते रहते हैं। इतने साल तक कारोबार ने फ़ुरसत ही न दी कि स्वयं आकर आपसे धन्यवाद के दो शब्द ही कह जाता। इतने बरसों बाद आज भारत आया हूँ और कार केवल यहीं रोकी है।

वैद्यजी हमारा सारा परिवार इंग्लैंड में सेटल हो चुका है। केवल मेरी एक विधवा बहन अपनी बेटी के साथ भारत में रहती है। हमारी भान्जी की शादी इस महीने की 21 तारीख को होनी है। न जाने क्यों जब-जब मैं अपनी भान्जी के भात के लिए कोई सामान खरीदता था तो मेरी आँखों के सामने आपकी वह छोटी-सी बेटी भी आ जाती थी और हर सामान मैं दोहरा खरीद लेता था। मैं आपके विचारों को जानता था कि संभवतः आप वह सामान न लें किन्तु मुझे लगता था कि मेरी अपनी सगी भान्जी के साथ जो चेहरा मुझे बार-बार दिख रहा है वह भी मेरी भान्जी ही है। मुझे लगता था कि ईश्वर ने इस भान्जी के विवाह में भी मुझे भात भरने की ज़िम्मेदारी दी है।

वैद्यजी की आँखें आश्चर्य से खुली की खुली रह गईं और बहुत धीमी आवाज़ में बोले, ” कृष्णलाल जी, आप जो कुछ कह रहे हैं मुझे समझ नहीं आ रहा कि ईश्वर की यह क्या माया है। आप मेरी श्रीमती के हाथ की लिखी हुई यह चिठ्ठी देखिये।” और वैद्यजी ने चिट्ठी खोलकर कृष्णलाल जी को पकड़ा दी। वहाँ उपस्थित सभी यह देखकर हैरान रह गए कि ”दहेज का सामान” के सामने लिखा हुआ था ” यह काम परमात्मा का है, परमात्मा जाने।”

काँपती-सी आवाज़ में वैद्यजी बोले, “कृष्णलाल जी, विश्वास कीजिये कि आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ कि पत्नी ने चिठ्ठी पर आवश्यकता लिखी हो और भगवान ने उसी दिन उसकी व्यवस्था न कर दी हो। आपकी बातें सुनकर तो लगता है कि भगवान को पता होता है कि किस दिन मेरी श्रीमती क्या लिखने वाली हैं अन्यथा आपसे इतने दिन पहले ही सामान ख़रीदना आरम्भ न करवा दिया होता परमात्मा ने। वाह भगवान वाह! तू महान है तू दयावान है। मैं हैरान हूँ कि वह कैसे अपने रंग दिखाता है।”

वैद्यजी ने आगे कहा,सँभाला है, एक ही पाठ पढ़ा है कि सुबह परमात्मा का आभार करो, शाम को अच्छा दिन गुज़रने का आभार करो, खाते समय उसका आभार करो, सोते समय उसका आभार करो।

अच्छा लगे तो share जरूर करे II

संजय गुप्ता