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कांग्रेस वो पार्टी है जो दुनिया के सबसे धनि देश भारत की सत्ता पर काबिज रही

भारत धनि देश (पानी है, खनिज है, 8 मौसम है, अच्छी जमीन है), 60 सालों तक कांग्रेस की जगह कोई अच्छा शासक होता तो आज भारत अमरीका से 10 साल आगे होता

खैर, तो हम बता रहे थे की 1947 के से 70 सालों में लगभग 60 साल कांग्रेस ही भारत की सत्ता में रही, भारत अब भी पिछड़ा हुआ है, 20 करोड़ लोग आज भी भूखे सो रहे है रोजाना, सभी को शौचालय तक नहीं है, भारत पर खरबों रुपए का कर्ज है

टुच्चे से देश पाकिस्तान ने भारत के बड़े भूभाग पर कब्ज़ा कर लिया (पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर 1948 में), भारत के साथ ही आज़ाद हुआ देश चीन इतना शक्तिशाली हुआ की उसने भी भारत के बड़े हिस्से पर कब्जा कर रखा है (1962 के बाद, चीन अधिकृत कश्मीर, तिब्बत इत्यादि)

जबकि अमरीकी राष्ट्रपति कैनेडी ने नेहरू को परमाणु बम का ऑफर दिया था, सुरक्षा परिषद् में स्थाई सीट का ऑफर मिला था, नेहरू ने सबकुछ चीन को दे दिया

और आज राहुल गाँधी कहते है की, नरेन्द्र मोदी भारत को बर्बाद कर देगा, कांग्रेस को लाइए वो भारत को बचाएगी, नरेन्द्र मोदी तो सैनिको के खून का दलाल है (नेहरू के ज़माने में रक्षामंत्री थे कृष्णा मेनन, उनका कहना था की भारत के सैनिको को हथियारों की जरुरत नहीं, लाठी से काम चल सकता है, हथियारों का निर्माण लगभग बन्द था, भारत के हज़ारो सैनिक 1962 में नेहरू-मेनन ने मरवा दिए)

भारत में आज जितनी भी समस्या है, राहुल गाँधी के हिसाब से ढाई साल से राज कर रहे नरेन्द्र मोदी के कारण ही सारी समस्या है

उनके अनुसार भारत को कांग्रेस ने स्वर्ग बनाया हुआ था, नरेन्द्र मोदी नरक बना देंगे

वैसे राहुल गाँधी एक विदेशी माँ से उत्पन्न संतान है, और ये जो अखंड भारत था (1947 में नेहरू-जिन्ना) इत्यादि ने तोड़ दिया, ये देश है चाणक्य (चंद्रगुप्त केवल चाणक्य के शिष्य थे)

जिन्होंने सैंकड़ो टुकड़ो में बंटे पड़े भूभाग को 1 देश बनाया था, उस चाणक्य से अधिक महाज्ञानी भारत के इतिहास में कौन होगा

जब चंद्रगुप्त मौर्य की संधि के तहत मेसेडोनिया की के सेनापति सेल्युकुस की बेटी हेलेना से शादी हुई तो चाणक्य ने हुक्म सुनाया की “चंद्रगुप्त-हेलेना” से उत्पन्न संतान कभी भारत की गद्दी पर न बैठे, केवल “चंद्रगुप्त-दुर्धरा” का ही संतान गद्दी पर बैठे

क्योंकि विदेशी महिला से उत्पन्न संतान चाहे कितना अच्छा हो परंतु वो भारत का भला नहीं कर सकता

चाणक्य ने ये भी कहा था की, “हेलेना कभी भारत के मामलों में दखल न दे, चंद्रगुप्त और भारत ने चाणक्य की बात को माना और भारत दुनिया का सबसे ताकतवर देश था, और आज भारत के लोगों ने तो सोनिया गाँधी को 10 साल तक सत्ता ही सौंपी हुई थी”

वैसे एक गरीब से चंद्रगुप्त ने चाणक्य की सारी बाते मानी तो वो इतिहास के सबसे बड़े राजा बन गए, भारत के सर्वप्रथम राजा बने, अगर चाणक्य की कही हुई बात आज बचे कूचे भारत के लोग माने तो निश्चित भारत का कल्याण होगा
#JAI_SHRI_RAM
#LALLA_PANDEY

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मेंहदी (लासोनिया इनर्मिस)

 

 आयुर्वेद के पुराने ग्रन्थों में मेंहदी को ‘नखरजंनी’ एवं ‘मदयन्तिका’ की संज्ञा दी गई है। अथर्ववेद में इस मदावति के नाम से पुकारा गया है। मेंहदी की व्यावसायिक खेती पद्रिचमी राजस्थान के पाली जिले में (लगभग 70,000-80,000 हैक्टेयर से ज्यादा क्षेत्रफल में ) की जा रही है तथा जिले की ‘सोजत’ तहसील पूरे विद्रव की प्रमुख मण्डी बन गई है। इसकी खेती पंजाब व गुजरात में भी होती है व हरियाणा, मध्य प्रदेद्रा व उत्तर प्रदेद्रा की जलवायु भी इसके लिए काफी उपयुक्त है। इसके फूलों की अत्यधिक मीठी सुगन्ध मन को अत्यन्त भाति है।

उपयोगः मेंहदी के पत्तों, छाल, फल और बीजों का उपयोग विभिन्न अंगों पर लेप करने से रक्त का तापक्रम नियंत्रित किया जा सकता है। औद्गाधीय रूपों में मेंहदी कफ-पित नाद्राक, द्राोथहर तथा व्रणद्राोधक होती है। इसके पुद्गप निद्राजनक, ज्वरहन होते हैं। इसके बीज स्तम्भक, अतिसार एवं प्रवाहिका में उपयोगी होते है। यह सिरदर्द, पीलिया और कुद्गठ रोग में भी काफी उपयोगी है। जली हुई चमड़ी पर द्राीतलता पहुँचाती है। हाथों और पैरों पर श्रृंगार के रूप में व बालों को रंगने में भी मेंहदी काफी उपयोगी है।

जलवायुः इसकी खेती कहीं भी समद्राीतोद्गण जलवायु में की जा सकती है।

भूमिः सभी प्रकार की भूमियों-कंकरीली, पथरीली, हल्की, भारी एवं दूसरी प्रकार की कृद्गिा के लिए अनुपयुक्त भूमियों में भी इसकी खेती संभव है। अत्यधिक पानी जमा होने वाली, क्षारीय एवं लवणीय भूमि इसके लिए उपयुक्त नहीं है। 

भूमि की तैयारीः गर्मी में गहरी जुताई करके छोड़ दें। मानसून की प्रथम वद्गर्ाा होने पर खेत में 2-3 जुताइयाँ और करें तथा फिर पाटा लगाकर छोड़ दें।

बिजाई की विधिः एक एकड़ के लिए 2 कि.ग्रा. बीज की नर्सरी तैयारी करनी चाहिए। मार्च-अप्रैल के महीने में छायादार जगह पर जहाँ सिंचाई की व्यवस्था हो, ऊपर उठे हुए बैड बनाकर मेंहदी के बीजों का छिड़काव करें व निद्रिचत समय पर पानी लगाते रहें। बीज का 15-20 दिन के बाद अंकुरण हो जाता है। नर्सरी में साथ-2 खरपतवार भी निकालते रहना चाहिए। अगस्त मास में नर्सरी 16-20 ईंच तक बड़ी हो जाती है तब इसकी रोपाई खेतों में 45 सें.मी. की दूरी पर हल द्वारा सीधी लाईनों में की जाती है। पौधे से पौधे की दूरी 30 सें.मी. रखें। रोपाई के बाद सिंचाई अवद्रय करें।

निराई-गुड़ाईः रोपाई के एक महीने बाद निराई करना आवद्रयक होता है। यदि आवद्रयकता हो तो अक्तूबर में भी गुड़ाई करें।

खादः इसकी जड़ें काफी गहरी होती है तथा इसमें किसी प्रकार के खाद की आवद्रयकता नहीं होती।

सिंचाईः जड़ों की गहराई के कारण इसमें सिंचाई की भी जरूरत नहीं होती तथा सिंचाई करने पर इसके पत्तों की गुणवत्ता में भी कमी आती है। यह पूर्णतः असिंचित फसल ही लाभदायक है।

कटाईः पहली कटाई मार्च-अप्रैल माह में जमीन से दो-तीन ईंच ऊपर से करें। अगले वद्गर्ाों में दो कटाइयाँ अक्तूबर-नवम्बर तथा मार्च माह में करनी चाहिए। मेंहदी की कटाई करके इसे छोटी-2 ढेरियों में इसे सुखायें। सूख जाने पर पत्तों को झाड़ लेवे और डंठल अलग कर लेवें व बोरियों में भर कर बेचा जा सकता है।

उत्पादनः प्रति वर्द्गा एक एकड़ में 600 से 800 कि.ग्रा. पत्तों का उत्पादन होता है।

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एक अंग्रेज ट्रेन से सफ़र कर रहा था …..


एक अंग्रेज ट्रेन से सफ़र कर रहा था …..

सामने एक बच्चा बैठा था…

अंग्रेज ने बच्चे से पूछा, यहाँ सबसे ज्यादा खतरनाक लोग कौन सी जगह के हैं ???

बच्चा: “महाराष्ट्रीयन, पंजाबी, गुजराती, हरयाणवी, और सबसे ज्यादा तो rajasthan…”

अंग्रेज : ‘ओह ~~~ इनके पास जाना डेंजरस है’..

[कुछ देर पश्चात]

अंग्रेज : ‘मैं कैसे जान सकता हूँ कि कौन
सा व्यक्ति कितना खतरनाक है ?’

बच्चा: ‘बैठा रह शान्ति से … अभी दस घंटे के सफ़र
में सबसे मिलवा दूंगा’….

कुछ ही देर बाद हरियाणा का एक
चौधरी मूंछों पे ताव देता हुआ बैठ गया ।

बच्चा: ‘भाई ये हरियाणवी है …’

अंग्रेज : ‘इससे बात कैसे करूँ?’

बच्चा: “चुपचाप बैठा रह और मूंछों पर ताव देता रह.. ये खुद बात करेगा तेरे से’…

अंग्रेज ने अपनी सफाचट मूछों पर ताव दिया..

चौधरी उठा और अंग्रेज के दो कंटाप जड़े –
‘बिन खेती के ही हल चला रिया है तू ..?’


थोड़ी देर बाद एक मराठी आ के बैठ गया …
बच्चा : ‘भाई ये मराठी है …’

अंग्रेज : ‘इससे बात कैसे करूँ ?’

बच्चा : ‘इससे बोल कि बाम्बे बहुत बढ़िया ..’

अंग्रेज ने मराठी से यही बोल दिया..

मराठी उठा और थप्पड़ लगाया – “साले बाम्बे नहीं मुम्बई … समझा क्या”


थोड़ी देर बाद एक गुजराती सामने आकर बैठ
गया।

बच्चा : ‘भाई ये गुजराती है …’

अंग्रेज गाल सहलाते हुए : ‘इससे कैसे बात करूँ ?’

बच्चा : ‘इससे बोल सोनिया गांधी जिंदाबाद …’

अंग्रेज ने गुजराती से यही कह दिया
गुजराती ने कसकर घूंसा मारा – ‘नरेन्द्र
मोदी जिंदाबाद…एक ही विकल्प- मोदी’..


थोड़ी देर बाद एक सरदार जी आकर बैठ गए ।
बच्चा : ‘देख भाई ये पंजाबी है …’

अंग्रेज ने कराहते हुए पूछा – ‘इससे कैसे बात करूँ ..’

बच्चा : ‘बात न कर बस पूछ ले कि 12 बज गए क्या ?’

अंग्रेज ने ठीक यही किया …

अंग्रेज : ‘ओ सरदार जी 12 बज गए क्या ?

सरदार जी ने आव देखा न ताव अंग्रेज को उठा के
नीचे पटक दिया…

सरदार : साले खोतया नू … तेरे को मैं मनमोहन
सिंह लगता हूँ जो चुप रहूँगा’….


पहले से परेशान अंग्रेज बिलबिला गया .
..
खीझ के बच्चे से बोला : इन सबसे
मिलवा दिया अब rajasthan वाले से भी मिलवा दो’
.
.
बच्चा बोला- “इतनी देर से तेरे को पिटवा कौन रहा है….

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राघवं रामचन्द्रं च रावणारि रमापतिम्। राजीवलोचनं रामं वं वन्दे रघुनन्दम्।।


राघवं रामचन्द्रं च रावणारि रमापतिम्।
राजीवलोचनं रामं वं वन्दे रघुनन्दम्।।

भगवान राम मर्यादा पुरुषोत्तम
(पुरुषों में उत्तम) हैं !

आजकल लगता है कि सचमुच
में घोर कलयुग आ गया है,,,
तभी राम नाम जपने की उम्र में भी….
बूढ़े लोग भगवान राम के पुरुषोत्तम
होने पर संदेह उत्पन्न करते हैं…!

सम्भवतः उन्होंने रामायण को ठीक
तरीके से पढ़ा नहीं है….. या फिर,
कुछ लोगों पर सत्ता पाने की लालसा
इस कदर हावी हो गयी है कि…. उन्हें
आस्था से ज्यादा व्यक्तिगत स्वार्थ
महत्वपूर्ण लगने लगी है….!

अंग्रेजी स्कूलों में पढ़े व्यक्तियों से
आस्था की आस करना भी व्यर्थ है…
उनकी आस्था सिर्फ पैसे,व्यक्तिगत
स्वार्थ.. तथा मुस्लिमों और ईसाईयों
के आराध्यों तक ही सीमित रहती है।

आज मैं बताना चाहता हूँ कि…..
भगवान राम सिर्फ हम हिन्दुओं के
आस्था के कारण ही भगवान नहीं हैं,
बल्कि वे अपने कर्मों के कारण ही
पूजे जाते हैं तथा पुरुषोत्तम
कहलाते हैं।

भगवान राम के जन्म के समय से ही
कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओं और घटनाओं को….. उस समय तथा आधुनिक
परिदृश्य में प्रस्तुत करता जाऊँगा…..
ताकि आप सभी को समझने में
सुगमता हो।

प्रभु श्री राम —आदर्श राजा !

राम प्रजा को हर तरह से सुखी
रखना राजा का परम कर्तव्य
मानते थे।

उनकी धारणा थी कि जिस राजा
के शासन में प्रजा दु:खी रहती है,
वह नृप अवश्य ही नरक का
अधिकारी होता है।

जनकल्याण की भावना से ही उन्होंने
राज्य का संचालन किया,जिससे प्रजा
धनधान्य से पूर्ण,सुखी,धर्मशील एवं
निरामय हो गई-

‘प्रहृष्ट मुदितो लोकस्तुष्ट: पुष्ट:सुधार्मिक:।
निरामयो ह्यरोगश्च दुर्भिक्षभयवर्जित:।’

तुलसीदास ने भी रामचरितमानस
में रामराज्य की विशद चर्चा की है।

लोकानुरंजन के लिए वे अपने सर्वस्व
का त्याग करने को तत्पर रहते थे।

इसी से भवभूति ने उनके के मुँह
से कहलाया है,
‘स्नेहं दयां च सौख्यं च,
यदि वा जानकीमपि।
आराधनाय लोकस्य
मुंचतोनास्ति मे व्यथा’।

अर्थात् ‘यदि आवश्यकता हुई तो
जानकी तक का परित्याग मैं कर
सकता हूँ।’

1 . प्रारंभ में भगवान राम …
ऋषि वशिष्ठ के साथ विद्या अध्धयन
को गए…… और… ऋषि विश्वामित्र
के साथ जाते हुए उन्होंने उन्होंने
ताड़का नमक राक्षसी का वध
किया……

उनका यह व्यवहार बताता है कि…..
गुरु पूजनीय होते हैं…. और,अगर गुरु
मुसीबत में हो तो….. शिष्य को हमेशा उनके साथ होना चाहिए।

2. स्वयंवर में उन्होंने भगवान शिव का धनुष अपने गुरु के कहने उपरान्त ही
तोडा जो उनके गुरु के प्रति आदर
और निष्ठा को दर्शाता है।

3. भगवान राम द्वारा सीता को यह
वचन दिया जाना कि मैं अपने जीवन
में सिर्फ एक ही विवाह करूँगा,और
तुम मेरी एकमात्र पत्नी रहोगी।

यह दर्शाता है कि वे बहुविवाह के
विरोधी थे जो कि उस समय बहुत
ही आम बात थी।
(आज भी हिन्दुओं में भगवान्
राम की तरह एक विवाह की ही
मान्यता है)

4. अपने पिता को कहने पर भगवान
राम बिना किसी हिचक के अपने भाई भरत को गद्दी सौंप कर 14 साल के
लिए वन को चले गए।

उनका यह कर्म हमें बताता है कि
पिता के बातों और वचनों का लाज
रखना हर पुत्र का धर्म है।
आप इसे माता-पिता की आज्ञा
पालन भी कह सकते है।

कैकई ने भले ही अपने और सौतेले
का भेद किया परन्तु भगवान राम ने
अपनी माता-और सौतेली माता में
कोई भेद नहीं किया।

5. जंगल में निषादराज से गले
मिलकर भगवान राम ने उंच-नीच
की भावना पर कुठाराघात किया।

हमें यह सन्देश दिया कि जाति
अथवा धन आधारित विभेद नहीं
होना चाहिए।

6. शबरी जो कि एक अछूत जाति
से थी,उसके हाथों के जूठे बेर खा
कर उन्होंने जाति या वर्ण व्यवस्था
को बेमानी कर दिया।
हमें यह सन्देश दिया कि मोल
व्यक्तियों और उसकी भावनाओं
का होता है,ना कि उसके कुल या
जाति का।

7. जंगल में ही अहिल्या को शाप
मुक्त कर उन्होंने यह सन्देश दिया
कि अनजाने में हुए गलती,गलती
नहीं कहलाती है और,
बेहतर भविष्य के लिए उसे माफ़
कर देना ही उचित है।

8. बाली वध के बारे में बहुत सारी
बातें कही जाती है परन्तु बाली वध
का सार यह है कि अगर आप का
मित्र सही है तो किसी भी हालत
में आप को आप के मित्र की
सहायता करनी चाहिए।

येन-केन-प्रकारेण पृथ्वी पर से दुष्टों
का संहार जरुरी है ताकि सज्जन चैन से जी सकें।

9. माता सीता के अपहरण के
पश्चात् पहले समुद्र से विनय पूर्वक
रास्ता मांगना,फिर उस पर ब्रह्मास्त्र
से प्रहार को उत्तेजित होना …. यह
दर्शाता है कि शक्तिसंपन्न होने के
बाद भी लोगों को अपनी मर्यादा
नहीं भुलानी चाहिए।

10. समुद्र को मात्र एक वाण से
सुखा देने कि क्षमता होने के वाबजूद
भी समुद्र पर राम सेतु का बनाना,
हमें यह सिखाता है कि अगर काम
बन जाए तो अकारण शक्ति प्रदर्शन अनुचित है।
अपने से कमजोर को ताकत के बल
पर अपना पसंदीदा काम करवाना
सर्वथा अनुचित है।

11. रावण वध के पश्चात् लक्ष्मण
को उसके पास शिक्षा ग्रहण करने
को भेजना,हमें यह सिखाता है कि
ज्ञान जिस से भी मिले,जरुर ग्रहण
करना चाहिए।

मनुष्य ये कभी भी नहीं समझना
चाहिए कि वो सम्पूर्ण है।

12. सीता कि अग्नि परीक्षा पर भी
बहुत सवाल उठाये जाते हैं कि यह
गलत हुआ था,परन्तु,अगर किसी ने
रामायण ध्यान से पढ़ा होगा तो….
उसमे भगवन राम कहते हैं कि…..
“”आज ये सीता की अग्नि परीक्षा ..
अंतिम अग्नि परीक्षा है।
दुनिया में फिर किसी नारी को ऐसी प्रताड़ना नहीं दी जाएगी।

तात्पर्य यह कि मनुष्य को अपनी
अर्धागिनी पर विश्वास करना चाहिए।

माता सीता उतने वर्ष रावण जैसे
नीच और नराधम व्यक्ति के पास
रह कर भी.. पवित्र ही थी।

ठीक उसी प्रकार आधुनिक नारी को
भी घर में अथवा बाहर अकेला छोड़
देने के बाद उसकी बातों और उसकी
पवित्रता पर विश्वास करना चाहिए।

नारी वो शक्ति है जो रावण जैसे
नराधम के पास अकेली रह कर
भी अपनी लाज की रक्षा करने
में सक्षम है।

यदि अग्नि परीक्षा नहीं हुई होती
तो नारी की सच्चाई संदिग्ध हो
जाती चरित्रता संदिग्ध हो जाती,
वो विश्वासघात होत परन्तु अग्नि
परीक्षा ने यह सिद्ध कर दिया
कि नारी पर संदेह करने का
कोई कारण नहीं है,खास कर
जब वो आपकी अर्धांगिनी है।

13. एक धोबी के कहने पर…..
भगवान् राम द्वारा माता सीता
के परित्याग पर भी बहुत उँगलियाँ
उठाई जाती है कि ये गलत हुआ था।

एक धोबी के कहने पर भगवान्
राम द्वारा माता सीता का परित्याग,
भगवान राम का राजधर्म था,
जहाँ उन्होंने माता सीता का परित्याग
कर यह सन्देश दिया कि राजा की अपनी
कोई ख़ुशी अथवा गम नहीं होना चाहिए।

राज्य का एक भी व्यक्ति भले ही
वो एक धोबी जैसा निर्धन,निर्बल
अथवा तुच्छ ही क्यों ना हो,
उसका मत भी महत्वपूर्ण है,
उसके राय भी महत्वपूर्ण हैं।

उन्होंने हमें यह सिखाया कि कोई
भी कार्य सर्वसम्मति से करना चाहिए और,सर्वसम्मति बनाने के लिए….
अगर राज को,अपनी निजी ख़ुशी
को यदि बलिदान भी करना पड़े तो…. राजा को कर देना चाहिए।

राजा बनने से व्यक्ति खुद का
या परिवार का नहीं रह जाता है ….
बल्कि… वो राज्य का हो जाता है।

प्रजा की ख़ुशी में ही राजा की ख़ुशी
होनी चाहिये,प्रजा के दुःख में ही राजा
का भी दुःख निहित है।

वस्तुतः यह आज की परिकल्पना
के बिलकुल ही विपरीत की कल्पना है,
क्योंकि आज के परिदृश्य में यहाँ जनता भूखों मर रही है,वहां हजारों रुपये के प्लेट उडाए जा रहे हैं।

लोग पैसे -पैसे के लिए मुहताज हैं,
वहां राजनेताओं के पैसे स्विस बैंक
में भरे पड़े हैं।

यहाँ लोगों के पेट में अनाज नहीं है….
वहां नीतिनिर्धारकों के लिए 35 लाख
के संडास हैं।

और तो और….
यहाँ सरकारी अस्पतालों में बुखार
तक की दवा उपलब्ध नहीं है…..
और,वहां लोग अमेरिका जा कर
बाबासीर के ऑपरेशन में हजारों
करोड़ रूपये उड़ा रहे हैं।

यही कारण है कि आज के परिदृश्य भगवान राम के चरित्र को समझ पाना
कम अक्लों के लिए दिक्कतें खड़ी कर
देता है।

उन्हें सहसा ये विश्वास ही नहीं हो
पाता है कि ऐसा भी हो सकता है।

परन्तु हकीकत यह है कि वास्तव
में ऐसा हो सकता है,और हुआ है।

भगवान राम के हर कार्य में हमारे
लिए अहम् सन्देश है।

एक अच्छे शिष्य,आज्ञाकारी पुत्र,
वफादार पति,आपसी भाई चारा,
जात-पात का विरोधी,तथा एक
बेहद ही संवेदनशील राजा थे।

यही कारण है कि राम हमारे अराध्य
एवं आदर्श होने के साथ-साथ ….
मर्यादा पुरुषोत्तम (पुरुषों में उत्तम)
भी कहे जाते हैं।

जयति पुण्य सनातन संस्कृति,,
जयति पुण्य भूमि भारत,,

सदा सर्वदा सुमंगल,
हर हर महादेव,
जय भवानी,
जय श्री राम…!

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6 छोटी-छोटी कहानियाँ*


6 छोटी-छोटी कहानियाँ*

( 1 )

*एक बार गाँव वालों ने यह निर्णय लिया कि बारिश के लिए ईश्वर से प्रार्थना🙏 करेंगे , प्रार्थना के दिन सभी गाँव वाले एक जगह एकत्रित हुए , परन्तु एक बालक🙇 अपने साथ छाता 🌂भी लेकर आया ।*
👇

*🔔 इसे कहते हैं 🔔*
*🎄 आस्था🎄*

🌾
( 2 )

*👶जब आप एक बच्चे को हवा में उछालते हैं तो वह हँसता 😀 है , क्यों कि वह जानता है कि आप उसे पकड़ लेंगे ।*
👇

*🐾इसे कहते हैं🐾*
* विश्वास*

🌾
( 3 )

*🌜प्रत्येक रात्रि को जब हम सोने के लिए जाते हैं तब इस बात की कोई गारण्टी नहीं है कि सुबह तक हम जीवित रहेंगे भी कि नहीं , फिर भी हम घड़ी में अलार्म लगाकर सोते हैं ।*
👇
*💡इसे कहते हैं*
*🌞आशा(उम्मीद)🌞*
🌾
( 4 )

*हमें भविष्य के बारे में कोई जानकारी नहीं है फिर भी हम आने वाले कल के लिए बड़ी बड़ी योजनाएं बनाते हैं ।*

👇
*👉 इसे कहते हैं👈*
*💪 आत्मविश्वास💪*
—————————————
🌾
( 5 )
*💞 हम देखरहे हैं कि दुनियाँ कठिनाइयों से जूझरही है फिर भी हम शादी 🎎 करते हैं ।*
👇
*🎵 इसे कहते हैं 🎵*
*💘 प्यार 💘*
🌾
( 6 )

*👍 एक 60 साल की उम्र वाले व्यक्ति की शर्ट पर एक शानदार वाक्य लिखा था , “मेरी उम्र 60 साल नहीं है , मैं तो केवल मधुर – मधुर 16 साल का हूँ , 44 साल के अनुभव के साथ ।”*

👇
*👊 इसे कहते हैं 👊*
*👀 नज़रिया 👀*
—————

*जीवन खूबसूरत है , इसे सर्वोत्तम के लिए जियो।*

*संसार में केवल मनुष्य ही ऐसा एकमात्र प्राणी है*
*जिसे ईश्वर ने हंसने का गुण दिया है, इसे खोईए मत.*

*”बिखरने दो होंठों पे हंसी के फुहारों को*
*दोस्तों,*
*प्यार से बात कर लेने से जायदाद कम नहीं होती है*

*इन्सान तो हर घर में पैदा होते हैं….!!*

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सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड की तरफ़ से पेश 15 इतिहासकारों में से 12 हिन्दू है


*वैदिक सनातन के हत्यारे , विदेशियो के एजेंट*

सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड की तरफ़ से पेश 15 इतिहासकारों में से 12 हिन्दू है

इनका कहना है कि अयोध्या में राम_मंदिर कभी था ही नही !

गवाह नं 63 आर एस शर्मा
गवाह नं 64 सूरज भान
गवाह नं 65 डी एन झा
गवाह नं 66 रोमिला थापर
गवाह नं 72 बी एन पाण्डेय
गवाह नं 74 आर एल शुक्ला
गवाह नं 82 सुशील श्रीवास्तव
गवाह नं 95 के एम श्री माली
गवाह नं 96 सुधीर जायसवाल
गवाह नं 99 सतीश चंद्रा
गवाह नं 101 सुमित सरकार
गवाह नं 102 ज्ञानेन्द्र पांडेय

*इस धर्म युध्द की लड़ाई में नपुंसकों की कमी नही है*

क्रोध तो बहुत आ रहा होगा ये जानकारी देखकर परन्तु तुम सुधरने वाले फिर भी नही

मुर्ख भी दूध का जला , छाछ फूँक मार पीता है
कट्टर हिन्दू कहने वालो तुम इससे भी गये गुजरे हो ।

1000 साल की गुलामी में ये 12 एजेंट ही नही अनेको एजेंटो ने तुम्हारे धर्म का विनाश किया और तुम आँख बंद करके उन्हें सर माथे लगाते हो

एक और हरामखोर गवाह है एक हिन्दू संत , जिसके ग्रन्थों को भी अयोध्या केस में प्रमाण स्वरूप प्रस्तुत किया गया जिसे मुर्ख हिन्दुओ ने सर माथे चढा रखा है वो है तुलसीदास

*1527 बाबरी मस्जिद निर्माण*
*तुलसीदास जीवन काल 1497 से 1623*

इसके जीवन काल में मंदिर टूटा
परन्तु इसने इस घटना का जिक्र किसी ग्रन्थ में नही किया , इसने 20 से अधिक ग्रन्थ लिखे: रामचरितमानस, विनयपत्रिका, दोहावली, कवितावली, हनुमान चालीसा, वैराग्य सन्दीपनी, जानकी मंगल, पार्वती मंगल, इत्यादि

ये अकबर द्वारा बनबाई गयी मस्जिद में रहता था और अकबर के ख़ास नो-रतन् रहीम का मित्र था ।

तुलसी सरनाम, गुलाम है रामको, जाको चाहे सो कहे वोहू.
मांग के खायिबो, महजिद में रहिबो, लेबै को एक न देबै को दोउ.

(मेरा नाम तुलसी है, मैं राम का गुलाम हूँ, जिसको जो मन कहे कहता हूँ,
मांग के खाता हूँ, मस्जिद में रहता हूँ, न किसी से लेना, न किसी को
देना.)
-तुलसीदास, (विनय चरितावली)

इस तुलसीदास ने ना तो इस्लाम के विरुद्ध कुछ लिखा , ना अयोध्या मंदिर के टूटने के संबंध में और ना ही बाबरी मस्जिद के बारे में

इसमें सिर्फ और सिर्फ वाल्मीकि रामायण के वैज्ञानिक प्रसंगों को जादू टोने चमत्कारों में बदल कर हिन्दू समाज को अंधविश्वास और अकर्मण्यता की गहरी खाई में धकेला है

तुलसीदास को राष्ट्र व् धर्म की किसी समस्या से कोई सरोकार नही था

नारियो को गाली देना, भग्यवादी सन्देश देना और श्री राम व् हनुमान जी के काल्पनिक किस्से बताना ही इसका साहित्यिक कार्य है

जब मुल्ले हिन्दुओ का विनाश कर रहे थे तब ये मस्जिद में रहकर लिखता था
*होइ वही जो राम रची राखा*
*क्यों करे तर्क बढ़ावे शाखा*

और अगर कोई हिन्दू गलती से इनकी बात न माने और समस्याओ को राम जी करनी ना माने और इन्हें दूर करने के लिए कर्म करना प्रारम्भ करे , संघर्ष करे तो उसके लिए भी गुरुमन्त्र है तुलसीदास के पास।

*तुलसी भरोसे राम के, निर्भय हो के सोए!*
*अनहोनी होनी नही, होनी हो सो होए!!*

आँखे खोलो , एजेंट पहचानो

दिव्यप्रकाश आर्य

Posted in आरक्षण

अगर मैं भारत का प्रधानमंत्री होता तो अम्बेडकर को कभी भी ड्राफ्टिंग कमिटी का अध्यक्ष न बनाता—-सरदार वल्लभ भाई पटेल


#एक_इतिहास_का_सच

अगर मैं भारत का प्रधानमंत्री होता तो अम्बेडकर को कभी भी ड्राफ्टिंग कमिटी का अध्यक्ष न बनाता—-सरदार वल्लभ भाई पटेल

सरदार पटेल और अम्बेडकर संवाद

संविधान निर्माण चल रहा था।। इसमें सरदार पटेल भी संविधान निर्माताओ की लिस्ट में शामिल थे। अम्बेडकर ने आरक्षण की भीख का तुर्रा छोड़ दिया।

सरदार पटेल–आरक्षण गलत है,इसको हटाओ

अम्बेडकर–नहीं,ये मेरी कौम के लोगो के लिए है

सरदार—कौन सी तुम्हारी कौम?? हम सब भारतीय है,आज़ादी के बाद आज देश का हर वर्ग भूँखा नंगा है…इसलिए किसी वर्ग विशेष को ये सुविधा देना गलत है…

अम्बेडकर(चीखते हुए)–मैं आरक्षण देना चाहता हु,अगर मुझे रोका गया तो मैं कानून मंत्री के पद से स्तीफा दे दूंगा

सरदार पटेल— देखो भीमराव,तुम वो नहीं देख पा रहे जो मैं देख पा रहा हु,स्वार्थ की राजनीति ने तुम्हारी आँखों में पट्टी बाँध दी है। अगर आज किसी जाति विशेष को आरक्षण दिया गया तो भविष्य के भारत में रोज एक नई जाति आरक्षण मांगेगी और देश की अखंडता पर खतरा उत्पन्न होगा….जो दलित और गरीब है उनके लिए हम दूसरे हर तरह के उपाय करने को तैयार है..जैसे मुफ़्त शिक्षा,मुफ़्त स्कूल,उनके लिए सस्ते घर,रोजगार इत्यादि….हम उन्हें इतना काबिल बनाये ताकि वो खुद के दम पर आगे बढ़ सके … न की आरक्षण की बैशाखी से या मुफ्तखोरी से….तुम किसी अयोग्य को सत्ता पर बैठाकर देश को बर्बाद क्यों करना चाहते हो???

अम्बेडकर(चीखते हुए)— आरक्षण होकर रहेगा…..

ये सुनकर लौह पुरुष सरदार पटेल,जो कभी किसी के आगे नहीं झुकते थे मजबूरी में उन्हें अम्बेडकर के कमरे से बाहर आना पड़ा और नेहरू से उन्होंने कहा था कि “”ये आपने किस बीमार मानसिकता वाले व्यक्ति को ड्राफ्टिंग कमिटी का अध्यक्ष बना दिया,ये तो मानसिक उन्मादी प्रतीत होता है,इसमें दूरदर्शिता की भारी कमी और अंग्रेज़ियत मानसिकता की गन्दगी भरी है,अगर मैं भारत का प्रधानमंत्री होता तो इसे कब का इसके पद से हटा चूका होता,ये व्यक्ति भारत का दुर्भाग्य साबित होगा,तन से ज्यादा इसका मन काला है,हम हर गरीब दलित के हक़ की बात करने को तैयार है लेकिन इसका अर्थ ये तो नहीं की भूंखे मर रहे सवर्णों की क़ुरबानी दे दी जाये???”

ये सुनकर नेहरू मौन थे…उनके पास कोई जवाब न था…

अखंड भारत के जनक सरदार की मृत्यु हो गयी। जानकार कहते है की अगर सरदार ज़िंदा होते तो भारत का वो संविधान जो अम्बेडकर ने पेश किया था,वो लागू न हो पाता क्योंकि वो सबिधान देश को बर्बाद करने वाला एक कीटाणु था।

आरक्षण एक दीमक है देश में लगा हुआ !

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1931 में भगत सिंह के साथ बटुकेश्वर दत्त शहीद नही हुए थे वो तो आज़ादी के बाद भी जिन्दा थे पर देश ने क्या किया उनके साथ ?


1931 में भगत सिंह के साथ बटुकेश्वर दत्त शहीद नही हुए थे वो तो आज़ादी के बाद भी जिन्दा थे पर देश ने क्या किया उनके साथ ?

 http://www.navbharatkhabar.com/life-of-batukeshwar-dutt-after-bhagat-singhs-martyrdom/

भारत के एक क्रांतिकारी ने अंग्रेजों के साथ जंग की. भगत सिंह के साथ मिलकर लड़ा. भगत सिंह को फांसी हुई पर उसको नहीं हुई. वो आजादी के बाद तक जिंदा रहा. पर देश ने क्या किया उसके साथ? जो किया वो रोंगटे खड़े करता है.

स्वतंत्रता संग्राम में एक घटना थी जिसने भारतीय इतिहास में वीरता का नया अध्याय लिखा. ये घटना थी दिल्ली की नेशनल असेम्बली में भगत सिंह का बम फेंकना. बम फेंकते वक़्त भगत सिंह ने कहा था: ‘अगर बहरों को सुनाना हो तो आवाज़ ज़ोरदार करनी होगी’. इस घटना में एक और क्रान्तिकारी था जिसने भगत सिंह के साथ ही गिरफ़्तारी दी थी.

वो क्रान्तिकारी थे बटुकेश्वर दत्त. भगत सिंह पर कई केस थे. उनको तो फांसी की सजा सुना दी गयी, लेकिन बटुकेश्वर दत्त इतने खुशकिस्मत नहीं थे उनको अभी बहुत कुछ झेलना था. अंग्रेजी सरकार ने उनको उम्रकैद की सज़ा सुना दी और अंडमान-निकोबार की जेल में भेज दिया, जिसे कालापानी की सज़ा भी कहा जाता है .कालापानी की सजा के दौरान ही उन्हें टीबी हो गया था जिससे वे मरते-मरते बचे. जेल में जब उन्हें पता चला कि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सज़ा सुनाई गई है तो वो काफी निराश हुए. उनकी निराशा इस बात को लेकर नहीं थी कि उनके तीनों साथी अपनी आखिरी सांसें गिन रहे हैं. उन्हें दुःख था तो सिर्फ इस बात का कि उनको फांसी क्यों नहीं दी गई.

देश आज़ाद होने के बाद बटुकेश्वर दत्त भी रिहा कर दिए गए. लेकिन दत्त को जीते जी भारत ने भुला दिया. इस बात का खुलासा नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित किताब “बटुकेश्वर दत्त, भगत सिंह के सहयोगी” में किया गया है. अनिल वर्मा ने इस किताब में कई बातें बताई हैं.

आज़ादी के बाद दत्त के लिए सबसे बड़ा सवाल था कि अब वे आगे क्या करें. क्योंकि उन्होंने देश को आज़ाद करवाने के सिवा कुछ और सोचा ही नहीं था. और अब देश आज़ाद हो चुका था तो वो पशोपेश में थे कि अब आगे क्या?

बटुकेश्वर दत्त की शादी हुई और फिर उनको देश में जगह नहीं मिली

नवम्बर 1947 में उन्होंने अंजलि नाम की लड़की से शादी की. अब उनके सामने कमाने और घर चलाने की समस्या आ गई. बटुकेश्वर दत्त ने एक सिगरेट कंपनी में एजेंट की नौकरी कर ली. बाद में बिस्कुट बनाने का एक छोटा कारखाना भी खोला, लेकिन नुकसान होने की वजह से इसे बंद कर देना पड़ा.

सोचने में बड़ा अजीब लगता है कि भारत का सबसे बड़ा क्रांतिकारी देश की आजादी के बाद यूं भटक रहा था.

भारत में उनकी उपेक्षा का एक किस्सा और है. अनिल वर्मा बताते हैं कि एक बार पटना में बसों के लिए परमिट मिल रहे थे. इसके लिए दत्त ने भी आवेदन किया. परमिट के लिए जब वो पटना के कमिश्नर से मिलने गए तो कमिश्नर ने उनसे स्वतंत्रता सेनानी होने का प्रमाण पत्र लाने को कहा. बटुकेश्वर दत्त के लिए ये दिल तोड़ने वाली बात थी.

बाद में राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद को जब ये पता चला तो कमिश्नर ने बटुकेश्वर दत्त से माफ़ी मांग ली. हालांकि फिर देश में बटुकेश्वर का सम्मान हुआ तो पचास के दशक में उन्हें चार महीने के लिए विधान परिषद् का सदस्य मनोनीत किया गया. पर इससे क्या होने वाला था. राजनीति की चकाचौंध से परे थे वो लोग.

अपनी जिंदगी की जद्दोजहद में लगे बटुकेश्वर दत्त 1964 में बीमार पड़ गए. उन्हें गंभीर हालत में पटना के सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया. उनको इस हालत में देखकर उनके मित्र चमनलाल आज़ाद ने एक लेख में लिखाः

“क्या दत्त जैसे क्रांतिकारी को भारत में जन्म लेना चाहिए, परमात्मा ने इतने महान शूरवीर को हमारे देश में जन्म देकर भारी गलती की है. खेद की बात है कि जिस व्यक्ति ने देश को स्वतंत्र कराने के लिए प्राणों की बाजी लगा दी और जो फांसी से बाल-बाल बच गया, वह आज नितांत दयनीय स्थिति में अस्पताल में पड़ा एड़ियां रगड़ रहा है और उसे कोई पूछने वाला नहीं है.”

अखबारों में इस लेख के छपने के बाद, सत्ता में बैठे लोगों के कानों पर जूं रेंगी. पंजाब सरकार उनकी मदद के लिए सामने आई. बिहार सरकार भी हरकत में आई, लेकिन तब तक बटुकेश्वर की हालत काफी बिगड़ चुकी थी. उन्हें 22 नवंबर 1964 को उन्हें दिल्ली लाया गया.

दिल्ली पहुंचने पर उन्होंने पत्रकारों से कहा था:
“मैं सपने में भी नहीं सोच सकता था कि उस दिल्ली में मैंने जहां बम डाला था, वहां एक अपाहिज की तरह स्ट्रेचर पर लादा जाऊंगा.”

फिर मौत के वक्त उनके पास आईं भगत सिंह की मां

पहले उन्हें सफदरजंग अस्पताल में भर्ती किया गया. फिर वहां से एम्स ले जाया गया. जांच में पता चला कि उन्हें कैंसर है और बस कुछ ही दिन उनके पास बचे हैं. बीमारी के वक़्त भी वे अपने साथियों भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को याद करके अक्सर रो पड़ते थे.

फिर जब भगत सिंह की मां विद्यावती जी अस्पताल में दत्त से उनके आखिरी पलों में मिलने आईं तो उन्होंने अपनी अंतिम इच्छा जताते हुए कहा कि उनका दाह संस्कार भी उनके मित्र भगत सिंह की समाधि के बगल में किया जाए.

बटुकेश्वर दत्त से मिलने आईं भगत सिंह की माता विद्यावती जी

20 जुलाई 1965 की रात एक बजकर पचास मिनट पर भारत के इस महान सपूत ने दुनिया को अलविदा कह दिया. उनका अंतिम संस्कार उनकी इच्छा के ही अनुसार भारत-पाक सीमा के करीब हुसैनीवाला में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की समाधि के पास किया गया. भगत सिंह की मां तब भी उनके साथ थीं. श्रीमती विरेन्द्र कौर संधू के अनुसार 1968 में जब भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव के समाधि-तीर्थ का उद्घाटन किया गया तो इस 86 वर्षीया वीर मां ने उनकी समाधि पर फूल चढ़ाने से पहले श्री बटुकेश्वर दत्त की समाधि पर फूलों का हार चढ़ाया था. बटुकेश्वर दत्त की यही इच्छा तो थी कि मुझे भगतसिंह से अलग न किया जाए.