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Leukoderma (सफेद दाग) एक त्वचा रोग है


Leukoderma (सफेद दाग) एक त्वचा रोग है इस रोग के रोगी के बदन पर अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग आकार के सफेद दाग आ जाते हैं पूरे विश्व में एक से दो प्रतिशत लोग इस रोग से प्रभावित हैं लेकिन इसके विपरीत भारत में इस रोग के शिकार लोगों का प्रतिशत चार से पांच है तथा राजस्थान और गुजरात के कुछ भागों में पांच से आठ प्रतिशत लोग इस रोग से ग्रस्त हैं शरीर पर सफेद दाग आ जाने को लोग एक Stigma(कलंक) के रूप में देखने लगते हैं और कुछ लोग भ्रम-वश इसे कुष्ठ रोग मान बैठते हैं।[Image: safed-dag-ka-ayurvedic-ilaj]

 

इस रोग से पीड़ित लोग ज्यादातर Frustration(हताशा) में रहते है उनको लगता है कि समाज ने उनको बहिष्कृत किया हुआ है इस रोग के एलोपैथी और अन्य चिकित्सा-पद्धतियों में इलाज हैं- शल्यचिकित्सा से भी इसका इलाज किया जाता है लेकिन ये सभी इलाज इस रोग को पूरी तरह ठीक करने के लिए संतोषजनक नहीं हैं इसके अलावा इन चिकित्सा-पद्धतियों से इलाज बहुत महंगा है और उतना कारगर भी नहीं है- रोगियों को इलाज के दौरान फफोले और जलन पैदा होती है-इस कारण बहुत से रोगी इलाज बीच में ही छोड़ देते हैं।आइये जाने ऐसा प्रयोग जिसका कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं  होता

सिर्फ 7 दीन में सफ़ेद दाग (श्वेत कुष्ठ) खत्म होगी : दिवान हकीम परमानन्द जी के द्वारा अनभूत प्रयोग आवश्यक सामग्री

  1. 25 ग्राम देशी कीकर (बबूल) के सूखे पते
  2. 25 ग्राम पान की सुपारी (बड़े आकार की)
  3. 25 ग्राम काबली हरड का छिलका

बनाने की विधि

उपरोक्त तीन वस्तुएँ लेकर दवा बनाये।  कही से देशी कीकर (काटे वाला पेड़ जिसमे पीले फुल लगते है ) के ताजे पत्ते (डंठल रहित ) लाकर छाया में सुखाले कुछ घंटो में पत्ते सुख जायेगे बबूल के इन सूखे पत्तो को काम में ले पान वाली सुपारी बढिया ले इसका पावडर बना ले कबाली हरड को भी जौ कुट कर ले और इन सभी चीजो को यानि बबूल , सुपारी , काबली हरड का छिलका (बड़ी हरड) सभी को 25-25 ग्राम की अनुपात में ले कुल योग 75 ग्राम और 500 मिली पानी में उबाले पानी जब 125 मिली बचे तब उतर कर ठंडा होने दे और छान कर पी ले ये दवा एक दिन छोड़ कर दुसरे दिन पीनी है अर्थात मान लीजिये आज आप ने दवा ली तो कल नहीं लेनी है और इस काढ़े में 2 चमच खांड या मिश्री मिला ले (10 ग्राम) और ये निहार मुह सुबह –सुबह पी ले और 2 घंटे तक कुछ भी खाना नहीं है दवा के प्रभाव से शरीर शुद्धि हो और उलटी या दस्त आने लगे परन्तु दवा बन्द नहीं करे 14 दीन में सिर्फ 7 दिन लेनी है और फीर दवा बन्द कर दे कुछ महीने में घिरे –घिरे त्वचा काली होने लगेगी हकीम साहब का दावा है की ये साल भर में सिर्फ एक बार ही लेने से रोग निर्मूल (ख़त्म) हो जाता है अगर कुछ रह जाये तो दुसरे साल ये प्रयोग एक बार और कर ले नहीं तो दुबारा इसकी जरूरत नहीं पडती।

पूरक उपचार

एक निम्बू, एक अनार और एक सेब  तीनो का अलग – अलग ताजा रस निकालने के बाद अच्छी तरह परस्पर मिलाकर रोजाना सुबह शाम या दिन में किसी भी समय एक बार नियम पूर्वक ले। यह फलो का ताजा रस कम से कम दवा सेवन के प्रयोग आगे 2-3 महीने तक जारी रख सके तो अधिक लाभदायक रहेगा।

औषधियों की प्रयोग विधि :

  1.  दवा के सेवन काल के 14 दिनों में मक्खन घी दूध अधिक लेना हितकर है क्योकि दवा खुश्क है।
  2. चौदह दिन दवा लेने के बाद कोई बिशेस परहेज पालन की जरुरत नहीं है श्वेत कुष्ठ के दुसरे इलाजो में कठीन परहेज पालन होती है परन्तु इस ईलाज में नातो सफेद चीजो का परहेज है और ना खटाई आदि का फीर भी आप मछली मांस अंडा नशीले पदार्थ शराब तम्बाकू आदि और अधिक मिर्च मसले तेल खटाई आदि का परहेज पालन कर सके तो अच्छा रहेगा।
  3. दवा सेवन के 14 दिनों में कभी –कभी उलटी या दस्त आदि हो सकता है इससे घबराना नहीं चाहिए बल्कि उसे शारीरिक शुध्धी के द्वारा आरोग्य प्राप्त होनेका संकेत समझना चाहिए।
  4. रोग दूर होने के संकेत हकीम साहब के अनुसार दवा के सेवन के लगभग 3 महीने बाद सफेद दागो के बीच तील की तरह काले भूरे या गुलाबी धब्धे ( तील की तरह धब्बे ) के रूप में चमड़ी में रंग परिवर्तन दिखाई देगा और साल भर में धीरे –धीरे सफेद दाग या निसान नष्ट हो कर त्वचा पहले जयसी अपने स्वभाविक रंग में आ जाएगी फीर भी यदि कुछ कसर रह जाये तो एक साल बीत जाने के बाद दवा की सात खुराके इसी तरह दुबारा ले सकते है।
  5. दिवान हकीम साहब का दावा है की उतर्युक्त ईलाज से उनके 146 श्वेत कुष्ठ के रोगियों में से 142 रोगी पूर्णत : ठीक अथवा लाभान्वित हुये है कुछ सम्पूर्ण शरीर में सफेद रोगी भी ठीक हुये है निर्लोभी परोपकारी दीवान हकीम परमानन्द जी की अनुमति से बिस्तार से यह अनमोल योग मानव सेवा भावना के साथ जनजन तक पहुचा रहा हु इस आशा और उदात भावना के साथ की पाठक निश्वार्थ भावना से तथा बिना किसी लोभ के जनजन तक जरुर पहुचाये।
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#कर्ण ने कृष्ण से पूछा – मेरा जन्म होते ही मेरी माँ ने मुझे त्यग दिया। क्या अवैध संतान होना मेरा दोष था ?


#कर्ण ने कृष्ण से पूछा – मेरा जन्म होते ही मेरी माँ ने मुझे त्यग दिया। क्या अवैध संतान होना मेरा दोष था ?
द्रोणाचार्य ने मुझे सिखाया नहीं क्योंकि मैं क्षत्रिय पुत्र नहीं था।
परशुराम जी ने मुझे सिखाया तो सही परंतु श्राप दे दिया कि जिस वक्त मुझे उस विद्या की सर्वाधिक आवश्यकता होगी, मुझे उसका विस्मरण होगा।- क्योंकि उनके अनुसार मैं क्षत्रिय ही था ।
केवल संयोगवश एक गाय को मेरा बाण लगा और उसके स्वामी ने मुझे श्राप दिया जबकि मेरा कोई दोष नहीं था ।
द्रौपदी स्वयंवर में मेरा अपमान किया गया ।
माता कुंती ने मुझे आखिर में मेरा जन्म रहस्य बताया भी तो अपने अन्य बेटों को बचाने के लिए।
जो भी मुझे प्राप्त हुआ है, दुर्योधन के दातृत्व से ही हुआ है ।
तो, अगर मैं उसकी तरफ से लड़ूँ तो मैं गलत कहाँ हूँ ?

कृष्ण ने उत्तर दिया:

कर्ण, मेरा जन्म कारागार में हुआ ।
जन्म से पहले ही मृत्यु मेरी प्रतीक्षा में घात लगाए बैठा था।
जिस रात मेरा जन्म हुआ, उसी रात मातापिता से दूर किया गया ।
तुम्हारा बचपन खड्ग, रथ, घोड़े, धनुष्य और बाण के बीच उनकी ध्वनि सुनते बीता । मुझे ग्वाले की गौशाला मिली, गोबर मिला और खड़ा होकर चल भी पाया उसके पहले ही कई प्राणघातक हमले झेलने पड़े ।

कोई सेना नहीं, कोई शिक्षा नहीं। लोगों से ताने ही मिले कि उनकी समस्याओं का कारण मैं हूँ। तुम्हारे गुरु जब तुम्हारे शौर्य की तारीफ कर रहे थे, मुझे उस उम्र में कोई शिक्षा भी नहीं मिली थी। जब मैं सोलह वर्षों का हुआ तब कहीं जाकर ऋषि सांदीपन के गुरुकुल पहुंचा ।

तुम अपनी पसंद की कन्या से विवाह कर सके ।
जिस कन्या से मैंने प्रेम किया वो मुझे नहीं मिली और उनसे विवाह करने पड़े जिन्हें मेरी चाहत थी या जिनको मैंने राक्षसों से बचाया था ।
मेरे पूरे समाज को यमुना के किनारे से हटाकर एक दूर समुद्र के किनारे बसाना पड़ा, उन्हें जरासंध से बचाने के लिए । रण से पलायन के कारण मुझे भीरु भी कहा गया ।

कल अगर दुर्योधन युद्ध जीतता है तो तुम्हें बहुत श्रेय मिलेगा ।

धर्मराज अगर जीतता है तो मुझे क्या मिलेगा ?
मुझे केवल युद्ध और युद्ध से निर्माण हुई समस्याओं के लिए दोष दिया जाएगा।
एक बात का स्मरण रहे कर्ण –
हर किसी को जिंदगी चुनौतियाँ देती है, जिंदगी किसी के भी साथ न्याय नहीं करती। दुर्योधन ने अन्याय का सामना किया है तो युधिष्ठिर ने भी अन्याय भुगता है ।

लेकिन सत्य धर्म क्या है यह तुम जानते हो ।

कोई बात नहीं अगर कितना ही अपमान हो, जो हमारा अधिकार है वो हमें ना मिल पाये…महत्व इस बात का है कि तुम उस समय उस संकट का सामना कैसे करते हो ।

रोना धोना बंद करो कर्ण, जिंदगी न्याय नहीं करती इसका मतलब यह नहीं होता कि तुम्हें अधर्म के पथ पर चलने की अनुमति है ।।

यह पोस्ट उन लोगो के लिए जो कहते है “हमारे साथ सदियों से अन्याय हुआ है”

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

कैसे बने भगवान विष्णु तिरुपति बालाजी


कैसे बने भगवान विष्णु
तिरुपति बालाजी
देखे –
एक बार समस्त देवताओं ने मिलकर एक यज्ञ करने का निश्चय किया । यज्ञ की तैयारी पूर्ण हो गयी । तभी वेद ने एक प्रश्न किया तो एक व्यवहारिक समस्या आ खड़ी हुई । ऋषि-मुनियों द्वारा किए जाने वाले यज्ञ की हविष्य तो देवगण ग्रहण करते थे । लेकिन देवों द्वारा किए गए यज्ञ की पहली आहूति किसकी होगी ? यानी सर्वश्रेष्ठ देव का निर्धारण जरुरी था, जो फिर अन्य सभी देवों को यज्ञ भाग प्रदान करे ।
ब्रह्मा-विष्णु-महेश परम् अात्मा हैं । इनमें से श्रेष्ठ कौन है ? इसका निर्णय आखिर हो तो कैसे ? भृगु ने इसका दायित्व सम्भाला । वह देवों की परीक्षा लेने चले । ऋषियों से विदा लेकर वह सर्व प्रथम अपने पिता ब्रह्मदेव के पास पहुँचे ।
ब्रह्मा जी की परीक्षा लेने के लिए भृगु ने उन्हें प्रणाम नहीं किया । इससे ब्रह्मा जी अत्यन्त कुपित हुए और उन्हें शिष्टता सिखाने का प्रयत्न किया । भृगु को गर्व था कि वह तो परीक्षक हैं, परीक्षा लेने आए हैं । पिता-पुत्र का आज क्या रिश्ता ? भृगु ने ब्रह्म देव से अशिष्टता कर दी । ब्रह्मा जी का क्रोध बढ़ गया और अपना कमण्डल लेकर पुत्र को मारने भागे । भृगु किसी तरह वहाँ से जान बचाकर भाग चले आए ।
इसके बाद वह शिव जी के लोक कैलाश गए । भृगु ने फिर से धृष्टता की । बिना कोई सूचना का शिष्टाचार दिखाए या शिव गणों से आज्ञा लिए सीधे वहाँ पहुँच गए, जहाँ शिव जी माता पार्वती के साथ विश्राम कर रहे थे । आए तो आए, साथ ही अशिष्टता का आचरण भी किया । शिव जी शांत रहे, पर भृगु न समझे । शिव जी को क्रोध आया तो उन्होंने अपना त्रिशूल उठाया । भृगु वहाँ से भागे ।
अन्त में वह भगवान विष्णु के पास क्षीर सागर पहुंचे । श्री हरि शेष शय्या पर लेटे निद्रा में थे और देवी लक्ष्मी उनके चरण दबा रही थीं । महर्षि भृगु दो स्थानों से अपमानित करके भगाए गए थे । उनका मन बहुत दुखी था । विष्णु जी को सोता देख । उन्हें न जाने क्या हो गया और उन्होंने विष्णु जी को जगाने के लिए उनकी छाती पर एक लात जमा दी ।
विष्णु जी जाग उठे और भृगु से बोले “हे ब्राह्मण देवता ! मेरी छाती वज्र समान कठोर है और आपका शरीर तप के कारण दुर्बल है, कहीं आपके पैर में चोट तो नहीं आयी ? आपने मुझे सावधान करके कृपा की है । आपका चरण चिह्न मेरे वक्ष पर सदा अंकित रहेगा ।”
भृगु को बड़ा आश्चर्य हुआ । उन्होंने तो भगवान की परीक्षा लेने के लिए यह अपराध किया था । परन्तु भगवान तो दण्ड देने के बदले मुस्करा रहे थे । उन्होंने निश्चय किया कि श्रीहरि जैसी विनम्रता किसी में नहीं । वास्तव में विष्णु ही सबसे बड़े देवता हैं । लौट करके उन्होंने सभी ऋषियों को पूरी घटना सुनायी । सभी ने एक मत से यह निर्णय किया कि भगवान विष्णु को ही यज्ञ का प्रधान देवता समझकर मुख्य भाग दिया जाएगा ।
लेकिन लक्ष्मी जी ने भृगु को अपने पति की छाती पर लात मारते देखा तो उन्हें बड़ा क्रोध आया । परन्तु उन्हें इस बात पर क्षोभ था कि श्रीहरि ने उद्दण्ड को दण्ड देने के स्थान पर उसके चरण पकड़ लिए और उल्टे क्षमा मांगने लगे ! क्रोध से तमतमाई महालक्ष्मी को लगा कि वह जिस पति को संसार का सबसे शक्तिशाली समझती है, वह तो निर्बल हैं । यह धर्म की रक्षा करने के लिए अधर्मियों एवं दुष्टों का नाश कैसे करते होंगे ?
महालक्ष्मी ग्लानि में भर गई और मन श्रीहरि से उचाटन हो गया । उन्होंने श्रीहरि और बैकुण्ठ लोक दोनों के त्याग का निश्चय कर लिया । स्त्री का स्वाभिमान उसके स्वामी के साथ बंधा होता है । उनके समक्ष कोई स्वामी पर प्रहार कर गया और स्वामी ने प्रतिकार भी न किया, यह बात मन में कौंधती रही । यह स्थान वास के योग्य नहीं । पर, त्याग कैसे करें ? श्रीहरि से ओझल होकर रहना कैसे होगा ? वह उचित समय की प्रतीक्षा करने लगीं ।
श्रीहरि ने हिरण्याक्ष के कोप से मुक्ति दिलाने के लिए वराह अवतार लिया और दुष्टों का संहार करने लगे । महालक्ष्मी के लिए यह समय उचित लगा । उन्होंने बैकुण्ठ का त्याग कर दिया और पृथ्वी पर एक वन में तपस्या करने लगीं ।
तप करते-करते उन्होंने अपना शरीर छोड़ दिया । विष्णु जी वराह अवतार का अपना कार्य पूर्ण कर वैकुण्ठ लौटे तो महालक्ष्मी नहीं मिलीं । वह उन्हें खोजने लगे ।
श्रीहरि ने उन्हें तीनों लोकों में खोजा किन्तु तप करके माता लक्ष्मी ने भ्रमित करने की अनुपम शक्ति प्राप्त कर ली थी । उसी शक्ति से उन्होंने श्री हरि को भ्रमित रखा । आख़िर श्रीहरि को पता लग ही गया । लेकिन तब तक वह शरीर छोड़ चुकीं थीं । दिव्य दृष्टि से उन्होंने देखा कि लक्ष्मी जी ने चोलराज के घर में जन्म लिया है । श्रीहरि ने सोचा कि उनकी पत्नी ने उनका त्याग सामर्थ्यहीन समझने के भ्रम में किया है, इसलिए वह उन्हें पुनः प्राप्त करने के लिए अलौकिक शक्तियों का प्रयोग नहीं करेंगे ।
महालक्ष्मी ने मानव रुप धरा है तो अपनी प्रिय पत्नी को प्राप्त करने के लिए वह भी साधारण मानवों के समान व्यवहार करेंगे और महालक्ष्मी जी का हृदय और विश्वास जीतेंगे । भगवान ने श्रीनिवास का रुप धरा और पृथ्वी लोक पर चोलनरेश के राज्य में निवास करते हुए महालक्ष्मी से मिलन के लिए उचित अवसर की प्रतीक्षा करने लगे ।
राजा आकाशराज निःसंतान थे । उन्होंने शुकदेव जी की आज्ञा से सन्तान प्राप्ति यज्ञ किया । यज्ञ के बाद यज्ञशाला में ऋषियों ने राजा को हल जोतने को कहा गया । राजा ने हल जोता तो हल का फल किसी वस्तु से टकराया । राजा ने उस स्थान को खोदा तो एक पेटी के अन्दर सहस्रदल कमल पर एक छोटी-सी कन्या विराजमान थी । वह महालक्ष्मी ही थीं । राजा के मन की मुराद पूरी हो गई थी । चूंकि कन्या कमल के फूल में मिली थी, इसलिए उसका नाम रखा गया “पदमावती” ।
पदमावती नाम के अनुरुप ही रुपवती और गुणवती थी । साक्षात लक्ष्मी का अवतार । पद्मावती विवाह के योग्य हुई । एक दिन वह बाग में फूल चुन रही थी । उस वन में श्रीनिवास (बालाजी) आखेट के लिए गए थे । उन्होंने देखा कि एक हाथी एक युवती के पीछे पड़ा है और डरा रहा है । राजकुमारी के सेवक भाग खड़े हुए । श्रीनिवास ने तीर चलाकर हाथी को रोका और पदमावती की रक्षा की । श्रीनिवास और पदमावती ने एक-दूसरे को देखा और रीझ गए । दोनों के मन में परस्पर अनुराग पैदा हुआ । लेकिन दोनों बिना कुछ कहे अपने-अपने घर लौट गए ।
श्रीनिवास घर तो लौट आए, लेकिन मन पदमावती में ही बस गया । वह पदमावती का पता लगाने के लिए उपाय सोचने लगे । उन्होंने ज्योतिषी का रुप धरा और भविष्य बांचने के बहाने पदमावती को ढूंढने निकल पड़े । धीरे-धीरे ज्योतिषी श्रीनिवास की ख्याति पूरे चोल राज में फैल गयी ।
पदमावती के मन में श्रीनिवास के लिए प्रेम जागृत हुआ । वह भी उनसे मिलने को व्याकुल थीं । किन्तु कोई पता-ठिकाना न होने के कारण उनका मन चिंतित था । इस चिन्ता और प्रेम विरह में उन्होंने भोजन-श्रृंगार आदि का त्याग कर दिया । इसके कारण उसका शरीर कृशकाय होता चला गया । राजा से पुत्री की यह दशा देखी नहीं जा रही थी, वह चिंतित थे । ज्योतिषी की प्रसिद्धि की सूचना राजा को हुई ।
राजा ने ज्योतिषी श्रीनिवास को बुलाया और सारी बात बताकर अपनी कन्या की दशा का कारण बताने को कहा । श्रीनिवास राजकुमारी का हाल समझने पहुंचे तो पदमावती को देखकर प्रसन्न हो गए । उनका उपक्रम सफल हुआ । उन्होंने परदमावती का हाथ अपने हाथ में लिया । कुछ देर तक पढने का स्वांग करने के बाद बोले – “महाराज ! आपकी पुत्री प्रेम के विरह में जल रही है । आप इनका शीघ्र विवाह कर दें तो ये स्वस्थ हो जायेंगी ।”
पदमावती ने अब श्रीनिवास की ओर देखा । देखते ही पहचान लिया । उनके मुख पर प्रसन्नता के भाव आए और वह हँसीं । काफी दिनों बाद पुत्री को प्रसन्न देख राजा को लगा कि ज्योतिषी का अनुमान सही है । राजा ने श्रीनिवास से पूछा – “ज्योतिषी महाराज ! यदि आपको यह पता है कि मेरी पुत्री प्रेम के विरह में पीड़ित है तो आपको यह भी सूचना होगी कि मेरी पुत्री को किससे प्रेम है ? उसका विवाह करने को तैयार हूँ, आप उसका परिचय दें ?
श्रीनिवास ने कहा – “महाराज ! आपकी पुत्री एक दिन वन में फूल चुनने गई थी । एक हाथी ने उन पर हमला किया तो आपके सैनिक और दासियां भाग खड़ी हुईं । राजकुमारी के प्राण एक धनुर्धर ने बचाए थे ।”
राजा ने कहा – “हाँ, मेरे सैनिकों ने बताया था कि एक दिन ऐसी घटना हुई थी । एक वीर पुरुष ने उसके प्राण बचाए थे । लेकिन मेरी पुत्री के प्रेम से उस घटना का क्या तात्पर्य है ?”
श्रीनिवास ने बताया – “महाराज ! आपकी पुत्री को अपनी जान बचाने वाले उसी युवक से प्रेम हुआ है ।” राजा के पूछने पर श्रीनिवास ने कहा – “वह कोई साधारण युवक नहीं, बल्कि शंख चक्रधारी स्वयं भगवान विष्णु ही हैं । इस समय बैकुण्ठ को छोड़कर मानव रुप में श्रीनिवास के नाम से पृथ्वी पर वास कर रहे हैं । आप अपनी पुत्री का विवाह उनसे करें । मैं इसकी सारी व्यवस्था करा दूंगा ।” यह बात सुनकर राजा प्रसन्न हो गए कि स्वयं विष्णु उनके जमाई बनेंगे ।
श्रीनिवास और पदमावती का विवाह तय हो गया । श्रीनिवास रुप में श्रीहरि ने शुकदेव के माध्यम से समस्त देवी-देवताओं को अपने विवाह की सूचना भिजवा दी । शुकदेव की सूचना से सभी देवी-देवता अत्यंत प्रसन्न हुए । देवी-देवता श्रीनिवास जी से मिलने औऱ बधाई देने पृथ्वी पर पहुंचे ।
परन्तु श्रीनिवास जी को खुशी के बीच एक चिंता भी होने लगी । देवताओं ने पूछा – “भगवन ! संसार की चिंता हरने वाले आप इस उत्सव के मौके पर इतने चिंतातुर क्यों हैं ?”
श्रीनिवास जी ने कहा – “चिंता की बात तो है ही, धन का अभाव । महालक्ष्मी ने मुझे त्याग दिया, इस कारण धनहीन हो चुका हूँ । स्वयं महालक्ष्मी ने तप से शरीर त्याग मानव रुप लिया है और पिछली स्मृतियों को गुप्त कर लिया है । इस कारण उन्हें यह सूचना नहीं है कि वह महालक्ष्मी का स्वरुप हैं । वह तो स्वयं को राजकुमारी पदमावती ही मानती हैं । मैंने निर्णय किया है कि जब तक उनका प्रेम पुनः प्राप्त नहीं करता, अपनी माया का उन्हें आभास नहीं कराउंगा । इस कारण मैं एक साधारण मनुष्य का जीवन व्यतीत कर रहा हूँ। और वह हैं, राजकुमारी । राजा की पुत्री से शादी करने और घर बसाने के लिए धन, वैभव और ऐश्वर्य की जरुरत है । वह मैं कहां से लाऊं ?”
स्वयं नारायण को धन की कमी सताने लगी । मानव रुप में आए प्रभु को भी विवाह के लिए धन की आवश्यकता हुई । यही तो ईश्वर की लीला है । जिस रुप में रहते हैं, उस योनि के जीवों के सभी कष्ट सहते हैं । श्रीहरि विवाह के लिए धन का प्रबंध कैसे हो ? इस बात से चिंतित हैं । देवताओं ने जब यह सुना तो उन्हें आश्चर्य हुआ । देवताओं ने कहा – “कुबेर, आवश्यकता के बराबर धन की व्यवस्था कर देंगे ।”
देवताओं ने कुबेर का आह्वान किया तो कुबेर प्रकट हुए । कुबेर ने कहा – “यह तो मेरे लिए प्रसन्नता की बात है कि आपके लिए कुछ कर सकूं । प्रभु ! आपके लिए धन का तत्काल प्रबंध करता हूँ । कुबेर का कोष आपकी कृपा से ही रक्षित है ।”
श्रीहरि ने कुबेर से कहा – “यक्षराज कुबेर ! आपको भगवान भोलेनाथ ने जगत और देवताओं के धन की रक्षा का दायित्व सौंपा है । उसमें से धन मैं अपनी आवश्यकता के हिसाब से लूंगा अवश्य, पर मेरी एक शर्त भी होगी ।”
श्रीहरि कुबेर से धन प्राप्ति की शर्त रख रहे हैं, यह सुनकर सभी देवता आश्चर्य में पड़ गए । श्रीहरि ने कहा – “ब्रह्मा जी और शिव जी साक्षी रहें । कुबेर से धन ऋण के रुप में लूंगा, जिसे भविष्य में ब्याज सहित चुकाऊंगा ।”
श्रीहरि की बात से कुबेर समेत सभी देवता विस्मय में एक-दूसरे को देखने लगे । कुबेर बोले – “भगवन ! मुझसे कोई अपराध हुआ तो उसके लिए क्षमा कर दें । पर, ऐसी बात न कहें । आपकी कृपा से विहीन होकर मेरा सारा कोष नष्ट हो जाएगा ।”
श्रीहरि ने कुबेर को निश्चिंत करते हुए कहा – “आपसे कोई अपराध नहीं हुआ । मैं मानव की कठिनाई का अनुभव करना चाहता हूँ । मानव रुप में उन कठिनाइयों का सामना करुँगा, जो मानव को आती हैं । धन की कमी और ऋण का बोझ सबसे बड़ा होता है ।”
कुबेर ने कहा – “प्रभु ! यदि आप मानव की तरह ऋण पर धन लेने की बात कर रहे हैं तो फिर आपको मानव की तरह यह भी बताना होगा कि ऋण चुकाएंगे कैसे ? मानव को ऋण प्राप्त करने के लिए कई शर्तें झेलनी पड़ती हैं ।”
श्रीनिवास ने कहा – “कुबेर ! यह ऋण मैं नहीं, मेरे भक्त चुकाएंगे । लेकिन मैं उनसे भी कोई उपकार नहीं लूंगा । मैं अपनी कृपा से उन्हें धनवान बनाऊंगा । कलियुग में पृथ्वी पर मेरी पूजा धन, ऐश्वर्य और वैभव से परिपूर्ण देवता के रुप में होगी । मेरे भक्त मुझसे धन, वैभव और ऐश्वर्य की मांग करने आएंगे । मेरी कृपा से उन्हें यह प्राप्त होगा, बदले में भक्तों से मैं दान प्राप्त करूंगा जो चढ़ावे के रुप में होगा । मैं इस तरह आपका ऋण चुकाता रहूंगा ।”
कुबेर ने कहा – “भगवन ! कलियुग में मानव जाति धन के विषय में बहुत विश्वास के योग्य नहीं रहेगी । उन पर आवश्यकता से अधिक विश्वास करना क्या उचित होगा ?”
श्रीनिवास जी बोले – “शरीर त्यागने के बाद तिरुपति के तिरुमाला पर्वत पर बाला जी के नाम से लोग मेरी पूजा करेंगे । मेरे भक्तों की अटूट श्रद्धा होगी । वह मेरे आशीर्वाद से प्राप्त धन में मेरा हिस्सा रखेंगे । इस रिश्ते में न कोई दाता है और न कोई याचक । हे कुबेर ! कलियुग के आखिरी तक भगवान बाला जी धन, ऐश्वर्य और वैभव के देवता बने रहेंगे । मैं अपने भक्तों को धन से परिपूर्ण करूंगा तो मेरे भक्त दान से न केवल मेरे प्रति अपना ऋण उतारेंगे, बल्कि मेरा ऋण उतारने में भी मदद करेंगे । इस तरह कलियुग की समाप्ति के बाद मैं आपका मूलधन लौटा दूंगा ।”
कुबेर ने श्रीहरि द्वारा भक्त और भगवान के बीच एक ऐसे रिश्ते की बात सुनकर उन्हें प्रणाम किया और धन का प्रबंध कर दिया । भगवान श्रीनिवास और कुबेर के बीच हुए समझौते के साक्षी स्वयं ब्रह्मा और शिव जी हैं । दोनों वृक्ष रुप में साक्षी बन गए । आज भी पुष्करणी तीर्थ के किनारे ब्रह्मा और शिव जी बरगद के पेड़ के रुप में साक्षी बनकर खड़े हैं ।
ऐसा कहा जाता है कि निर्माण कार्य के लिए स्थान बनाने के लिए इन दोनों पेड़ों को जब काटा जाने लगा तो उनमें से खून की धारा फूट पड़ी । पेड़ काटना बन्द करके उसकी देवता की तरह पूजा होने लगी ।
इस तरह भगवान श्रीनिवास (बाला जी) और पदमावती (महालक्ष्मी) का विवाह पूरे धूमधाम से हुआ । जिसमें सभी देवगण पधारे । भक्त मन्दिर में दान देकर भगवान पर चढ़ा ऋण उतार रहे हैं, जो कलियुग के अन्त तक जारी रहेगा ।
।। जय हो बालाजी ।।
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कैसे करें रत्नों का चुनाव


कैसे करें रत्नों का चुनाव
रत्नों का चुनाव कैसे करें :
अनिष्ट ग्रहों के प्रभाव को कम करने के लिए या जिस ग्रह का प्रभाव कम पड़ रहा हो उसमें वृद्धि करने के लिए उस ग्रह के रत्न को धारण करने का परामर्श ज्योतिषी देते हैं।
एक साथ कौन-कौन से रत्न पहनने चाहिए, इस बारे में ज्योतिषियों की राय है कि,
1. माणिक्य के साथ- नीलम, गोमेद, लहसुनिया वर्जित है।
2. मोती के साथ- हीरा, पन्ना, नीलम, गोमेद, लहसुनिया वर्जित है।
3. मूंगा के साथ- पन्ना, हीरा, गोमेद, लहसुनिया वर्जित है।
4. पन्ना के साथ- मूंगा, मोती वर्जित है।
5. पुखराज के साथ- हीरा, नीलम, गोमेद वर्जित है।
6. हीरे के साथ- माणिक्य, मोती, मूंगा, पुखराज वर्जित है।
7. नीलम के साथ- माणिक्य, मोती, पुखराज वर्जित है।
8. गोमेद के साथ- माणिक्य, मूंगा, पुखराज वर्जित है।
9. लहसुनिया के साथ- माणिक्य, मूंगा, पुखराज, मोती वर्जित है।
नोट : कोई भी रत्न ऐसे ही न पहने अपने ज़्योतिषी की सलाह लेकर ही पहने ।

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पारद लक्ष्मी गणेशजी


पारद लक्ष्मी गणेशजी की मूर्ति सब मूर्तियों में श्रेष्ठ बताई गई हैं देवी श्री लक्ष्मी ने स्वयं भगवान विष्णु से कहा था कि जिस स्थान पर मेरी पारद प्रतिमा की पूजा हो गई उस स्थान पर सदैव मेरा वास होगा, देवी लक्ष्मी देवी दुर्गा का ही एक रूप हैं जोकि भगवान विष्णुजी की पत्नी हैं यह धन,सुख सुविधा एवम् ऐश्वर्य प्रदान करने वाली हैं और इनके साथ ही इनके मानस पुत्र भगवान गणेशजी की पूजा का विधान हैं इसी कारण इन दोनों की पूजा एक साथ होती हैं भगवान गणेशजी स्वयं ऋद्धि-सिद्धि के दाता हैं सारे विध्नों के विनाशक हैं, शुभ हैं। विशेष मंगलकारक हैं इनकी कृपा से धन प्राप्ति में आने वाली सारी विध्न – बाधाएँ नष्ट होती हैं जिससे धनागम के द्वार खुल जाते हैं जिस स्थान पर देवी लक्ष्मी का वास होता हैं वहाँ कभी भी धन का अभाव नहीं होता एवम् वहाँ के लोगों को कोई परेशानी नहीं होती। पारद लक्ष्मीगणेश की मूर्ति को स्थापित करने से आपको धन की प्राप्ति काफी अधिक मात्रा में होने लगती हैं जीवन में कभी भी धन का अभाव नहीं रहता हैं घर में सभी प्रकार की सुख, शांति, समृद्धि बनी रहती हैं। आपको हर काम में सफलता एवम् नौकरी में आने वाली बाधा एवम् नौकरी और व्यापार में उन्नति होती हैं दिवाली की रात को मिट्टी की मूर्ति के स्थान पर पारद लक्ष्मी गणेश को अपने घर में रखें। देवी लक्ष्मी ने स्वयं भगवान विष्णु से कहा हैं कि जो व्यक्ति दिवाली की रात को मेरी पारद मूर्ति की पूजा करता हैं उसे कभी भी धन की कमी नहीं होगी उसके साथ सदैव मैं रहूंगी। दिवाली को इन दोनों की पारद मूर्ति की पूजा करने से ये जल्दी प्रसन्न होते हैं और मनचाही मनोकामना को पूरा करते हैं और उस पर अपनी कृपा सदा बनाए रखते हैं पारद धातु स्वयं सिद्ध धातु होती हैं दिवाली को मिट्टी की मूर्ति के स्थान पर पारद लक्ष्मी गणेश की पूजा करें आप इसे अपने घर, व्यवसाय स्थल, फैक्टरी, एवम् दुकान कार्यालय आदि में भी स्थापित कर सकते हैं। शुभ नक्षत्र द्वारा हवन द्वारा प्राण प्रतिष्ठित एवम अभिमंत्रित पारद प्रतिमा प्राप्त करने के लिए सम्पर्क करे
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रुद्राक्ष


रुद्राक्ष अपने अनेकों गुणों के कारण व्यक्ति को दिया प्रकृति का बहुमूल्य उपहार है मान्यता है कि रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के नेत्रों से निकले जलबिंदु से हुई है. अनेक धर्म ग्रंथों में रुद्राक्ष के महत्व को प्रकट किया गया है जिसके फलस्वरूप रुद्राक्ष के महत्व से जग प्रकाशित है. इसे धारण करने से व्यक्ति को सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है. अत: रुद्राक्ष को यदि राशि के अनुरुप धारन किया जाए तो यह ओरभी अधिक प्रभावशाली सिद्ध होता है.
रुद्राक्ष को राशि, ग्रह और नक्षत्र के अनुसार धारण करने से उसकी फलों में कई गुणा वृद्धि हो जाती है. ग्रह दोषों तथा अन्य समस्याओं से मुक्ति हेतु रुद्राक्ष बहुत उपयोगी होता है. कुंडली के अनुरूप सही और दोषमुक्त रुद्राक्ष धारण करना अमृत के समान होता है.
रुद्राक्ष धारण एक सरल एवं सस्ता उपाय है, इसे धारण करने से व्यक्ति उन सभी इच्छाओं की पूर्ति कर लेता है जो उसकी सार्थकता के लिए पूर्ण होती है. रुद्राक्ष धारण से कोई नुकसान नहीं होता यह किसी न किसी रूप में व्यक्ति को शुभ फलों की प्राप्ति कराता है.
कई बार कुंडली में शुभ-योग मौजूद होने के उपरांत भी उन योगों से संबंधित ग्रहों के रत्न धारण करना लग्नानुसार उचित नहीं होता इसलिए इन योगों के अचित एवं शुभ प्रभाव में वृद्धि के लिए इन ग्रहों से संबंधित रुद्राक्ष धारण किए जा सकते हैं और यह रुद्राक्ष व्यक्ति के इन योगों में अपनी उपस्थित दर्ज कराकर उनके प्रभावों को की गुणा बढा़ देते हैं. अर्थात गजकेसरी योग के लिए दो और पांच मुखी, लक्ष्मी योग के लिए दो और तीन मुखी रुद्राक्ष लाभकारी होता है.
इसी प्रकार अंक ज्योतिष के अनुसार व्यक्ति अपने मूलांक, भाग्यांक और नामांक के अनुरूप रुद्राक्ष धारण कर सकता है. क्योंकि इन अंकों में भी ग्रहों का निवास माना गया है. हर अंक किसी ग्रह न किसी ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है उदाहरण स्वरुप अंक एक के स्वामी ग्रह सूर्य है और अंक दो के चंद्रमा इसी प्रकार एक से नौ तक के सभी अंकों के विशेष ग्रह मौजूद हैं. अतः व्यक्ति संबंधित ग्रह के रुद्राक्ष धारण कर सकता है. इसी प्रकार नौकरी एवं व्यवसाय अनुरूप रुद्राक्ष धारण करना कार्य क्षेत्र में चौमुखी विकास, उन्नति और सफलता को दर्शाता है.
राशियों के अनुरुप रुद्राक्ष | Rudraksha for Rashi
मेष राशि के स्वामी ग्रह मंगल हैं, इसलिए मेष राशि के जातकों को तीन मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए.
वृषभ राशि के स्वामी ग्रह शुक्र है अत: इस राशि के जातकों के लिए छ: मुखी रुद्राक्ष फायदेमंद होता है.
मिथुन राशि के स्वामी ग्रह बुध है. मिथुन राशि के लिए चार मुखी रुद्राक्ष है.
कर्क राशि के स्वामी ग्रह चंद्रमा हैं इस राशि के लिए दो मुखी रुद्राक्ष लाभकारी है.
सिंह राशि के स्वामी ग्रह सूर्य हैं. इस राशि के लिए एक या बारह मुखी रुद्राक्ष उपयोगी होगा.
कन्या राशि के स्वामी ग्रह बुध हैं. कन्या राशि के लिए चार मुखी रुद्राक्ष लाभदायक है.
तुला राशि के स्वामी ग्रह शुक्र हैं. तुला राशि के लिए छ: मुखी रुद्राक्ष तथा तेरह मुखी रुद्राक्ष उपयोगी होगा.
वृश्चिक राशि के स्वामी ग्रह मंगल हैं. वृश्चिक राशि के लिए तीन मुखी रुद्राक्ष लाभदायक होगा.
धनु राशि के स्वामी ग्रह (गुरु)बृहस्पति हैं. धनु राशि के लिए पाँच मुखी रुद्राक्ष उपयोगी है.
मकर राशि के स्वामी ग्रह शनि हैं. मकर राशि के लिए सात या चौदह मुखी रुद्राक्ष उपयोगी होगा.
कुंभ राशि के स्वामी ग्रह शनि हैं. कुंभ राशि के व्यक्ति के लिए सात या चौदह मुखी रुद्राक्ष लाभदायक होगा.
मीन राशि के स्वामी ग्रह गुरु हैं. इस राशि के जातकों के लिए पाँच मुखी रुद्राक्ष उपयोगी है.
राहु के लिए आठ मुखी रुद्राक्ष और केतु के लिए नौमुखी रुद्राक्ष का वर्णन किया गया है.
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इंद्रजाल इस पौधे


इंद्रजाल इस पौधे के बारे में तब आपने सोशल मीडिया पर काफी पढ़ा होगा या सुना होगा यह जो पौधा तो यह समुंद्र में पाया जाने वाला पौधा होता है लेकिन से लेकर 1 फीट से 2 फीट तक तक इसका आकार होता है इसका रंग काला होता है और इसकी अनेक तैह्निया होती है और कहां से आरंभ होती है कहां से जुड़ती कहां पर खत्म होती है यह पता नहीं चलता इसलिए इसको इंद्रजाल कहा जाता है और मजबूती की दृष्टि से देखा जाए तो काफी मजबूती होता है इंद्रजाल का प्रयोग इस पौधे का प्रयोग कई तरीकों में किया जाता है तंत्र में जैसे किए कराए की काट के लिए तंत्र मंत्र का प्रभाव के लिए हवा के दुष्प्रभाव के लिए इसके अलावा कई इसके प्रयोग होते हैं जैसे संतान प्राप्ति के लिए शत्रु बाधा को दूर करने के लिए नजर दोष से बचने के लिए इसके द्वारा हम बताएंगे कैसे करती है तंतर और कैसे करता है यह कार्य कैसे सफल होते हैं से सभी कार्य सिद्ध और कैसे आपका घर तंत्र से बचाव होता है नज़र से बचाव होता है ऊपरी बाधा से बचाव होता है कई मंत्रों से और कई विधियों से और कई क्रियाओं से मंत्र से सिद्ध करना पड़ता है और इसको कहां पर घर में लगाया जाता है जिसका पूर्ण प्रभाव होता है
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गोमती चक्र


यदि आपका कार्य ऐसा है कि आपको घूम फिर के कार्य करना पड़ता है अथवा कोई भी ऐसा कार्य करते हैं जिसमें आप को एक जगह से दूसरी जगह जाना पड़ता है और आप अगर चाहते हैं कि आपकी आय में वृद्धि हो अथवा आप की तरक्की हो पदोंति हो तो आप सदा आप सफलता के लिए या अपने कार्य में बढ़ोतरी के लिए गोमती चक कर ले अभिमंत्रित करें करके गोमती चक्रों को चांदी की तार के साथ बांधकर अपनी जेब में रखें आपको तीन गोमती चकर लेने हैं और उनको चांदी की तार के साथ बांध के रखने हैं मगर उस को अभिमंत्रित करवाना मत भूलें हमारे पास सीद्ध अभिमंत्रित गोमती चक्र उपलब्ध है जिसका मूल्य 500 प्रति नग है
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रुद्राक्ष


अब हम आपको रुद्राक्ष के बारे में जानकारी देंगे यह जानकारी रुद्राक्ष के बारे में तो देंगी देंगे साथ में आपको असली और नकली रुद्राक्ष की पहचान भी बताएंगे असली रुद्राक्ष पर कभी भी शिवलिंग नाग या कोई भी आकृति नहीं होती जितने भी मार्केट में आपको रुद्राक्ष मिलते हैं जिन पर शिवलिंग नागजी त्रिशूल की आकृति बनी होती है और सभी नकली रुद्राक्ष होते हैं हम आपको असली नकली से अवगत कराएंगे और इनसे कौन से मुक्त एक मुखी रुद्राक्ष से क्या-क्या लाभ होते हैं उनका कौन से ग्रह की शांति होती है और क्या-क्या जीवन में उपलब्धियां प्राप्त होती है और क्या उन्नति होती है उसके बारे में भी हम आपको पूरी जानकारी देंगे सबसे पहले तो मैं शुरू करना चाहता था एक मुखी रुद्राक्ष से पर जो जीवन में सबसे महत्वपूर्ण चीज है वह है धन जो लोग भी आर्थिक समस्या से जूझ रहे हैं या गूंज रहे हैं उन लोगों को सात मुखी रुद्राक्ष जरूर धारण करना चाहिए सात मुखी रुद्राक्ष की अधिष्ठात्री देवी मां लक्ष्मी है इसको कामदेव का भी रूप माना जाता है जो व्यक्ति इसको दाएं हाथ में धारण करता या गले में भी धारण कर सकते हैं और जो भी इसको धारण करता है उसकी सभी तरह की आर्थिक समस्याएं खत्म होती है उनसे निजात मिलता है और ना ही उसको आर्थिक समस्या आती है ऐसा शास्त्रों में कहा गया है इससे सात तरह के दोष खत्म होते हैं इस रुद्राक्ष को व्यापार करने वाले को नौकरी करने वाले को नौकरी में उन्नति की इच्छा करने वाले को जरूर धारण करना चाहिए इस रुद्राक्ष को धारण करने से इंसान निरोग मन को शांति समाज में सम्मान स्त्री वर का सुख की प्राप्ति होती है और मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है और विशेष यह चीज जिन लोगों पर शनि का ढैया साढेसाती शनि की महादशा शनि की अंतर्दशा जिनकी कुंडली में शनि खराब है या जिन के जीवन में शनि ग्रह से संबंधित परेशानियां चली आ रही है उन लोगों को तो यह जरुर धारण करना चाहिए इस को मैंने खुद अनुभव किया है इसका खुद लाभ लिया है इसको मैंने खुद किया है और यह मैंने प्रमाणिकता है इस चीज की मैंने इस चीज का प्रमाण देखा है और मेरे जितने भी जानकार हैं मुझे जानते हैं जो मुझे मिले हैं उनसे आप पूछ सकते हैं और उन लोगों ने भी इसको धारण करके इसका लाभ लिया है और जिन लोगों की शनि से संबंधित समस्या हो उसको यह धारण करना चाहिए यह है इसको धारण करने के लिए खास विधि होती है जिस से अभिमंत्रित करके इसको लाल धागे में पहना जाता है गले में या दाए हाथ में और उसके बाद आपको जीवन में उन्नति लाभ मानसिक परेशानी से निजात मिलती है और आर्थिक समस्या नहीं आती मैंने इसीलिए सबसे पहले मैंने इसके बारे में कहा क्योंकि ज्यादातर लोग ऐसी ही समस्या से जूझ रहे हैं इसकी जानकारी दी जाए धंयवाद
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हत्था जोड़ी


हत्था जोड़ी के बारे में आपने काफी कुछ सुन रखा होगा किंतु इसके प्रयोग के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं या बहुत कम जानते हैं और जो जानते हैं वह पूरन प्रयोग नहीं है हमने इसके द्वारा अनेक प्रयोग किए हैं सभी टेस्ट हैं हत्थाजोड़ी यह एक जंगली पौधे की जड़ होती है इसकी आकृति कुछ इस प्रकार की होती है जैसे मानव के दोनों हाथों को मुठ्ठी बांधकर कलाई से जोड़ दिया हो हत्था जोड़ी में साक्षात मां चामुंडे का वास होता है अभिमंत्रित होने पर इसकी शक्ति कई गुना बढ़ जाती है या कह सकते हैं की असीम शक्ति आ जाती है इसका निवास में होना बहुत शुभ माना जाता है परंतु इसको स्थान देने के लिए एक विधि होती है इस विधि के बारे में हम आपको आवश्यक जानकारी देंगे इसके लिए जो जानकारी होगी अगर आप उस तरीके से इसका इस्तेमाल करोगे तो आपको लाभ होगा हत्था जोड़ी अगर सिद्ध करके घर में रखी जाए तो ऐसा माना जाता है कहा जाता है कि वहां कोई नकरात्मक ऊर्जा ऊपरी हवा अथवा कोई तांत्रिक अभिचार कर्म नहीं होता और इसको घर में रखने से शत्रुओं पर विजय धन का आगमन और कोर्ट कचहरी में विजय मिलती है मगर उसको कैसे यूज करना है इस्तेमाल करना है वह उसी के साथ क्रिया की जाती है जिस से कि जिस कार्य के लिए आप उसका इस्तेमाल करें वह कार्य सफल हो