Posted in आयुर्वेद - Ayurveda

चीनी एक जहर है 


👏 👏 चीनी एक जहर है जो अनेक रोगों का कारण है, जानिये कैसे…

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(1)– चीनी बनाने की प्रक्रिया में गंधक का सबसे अधिक प्रयोग होता है । गंधक माने पटाखों का मसाला

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(2)– गंधक अत्यंत कठोर धातु है जो शरीर मेँ चला तो जाता है परंतु बाहर नहीँ निकलता ।

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(3)– चीनी कॉलेस्ट्रॉल बढ़ाती है जिसके कारण हृदयघात या हार्ट अटैक आता है ।

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(4)– चीनी शरीर के वजन को अनियन्त्रित कर देती है जिसके कारण मोटापा होता है ।

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(5)– चीनी रक्तचाप या ब्लड प्रैशर को बढ़ाती है ।

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(6)– चीनी ब्रेन अटैक का एक प्रमुख कारण है ।

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(7)– चीनी की मिठास को आधुनिक चिकित्सा मेँ सूक्रोज़ कहते हैँ जो इंसान और जानवर दोनो पचा नहीँ पाते ।

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(8)– चीनी बनाने की प्रक्रिया मेँ तेइस हानिकारक रसायनोँ का प्रयोग किया जाता है ।

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(9)– चीनी डाइबिटीज़ का एक प्रमुख कारण है ।

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(10)– चीनी पेट की जलन का एक प्रमुख कारण है ।

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(11)– चीनी शरीर मे ट्राइ ग्लिसराइड को बढ़ाती है ।

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(12)– चीनी पेरेलिसिस अटैक या लकवा होने का एक प्रमुख कारण है।

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(13) चीनी बनाने की सबसे पहली मिल अंग्रेजो ने 1868 मेँ लगाई थी ।उसके पहले भारतवासी शुद्ध देशी गुड़ खाते थे और कभी बीमार नहीँ पड़ते थे ।

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(14) कृपया जितना हो सके, चीनी से गुड़ पे आएँ ।

अच्छी बातें, अच्छे लोगों, अपने मित्र , रिश्तेदार और ग्रुप में अवश्य शेयर करें ! 

  – डाक्टर वैद्य पंडित विनय कुमार उपाध्याय

Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

सुभाष चंद्र बॉस


देखो गॉधिजी का शर्मनाक कृत्य

सुभाष चंद्र बॉस अंग्रेज़ो पर हमला करने वाले थे ,और गांधी लोगो को नेता जी के विरुद्ध अँग्रेजी सेना भी भर्ती होने को कह रहे थे ।
मित्रो बात 1939 की है । कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए चुनाव होने थे ,एक पत्रकार थे उनका नाम था पट्टाभि सीतारमैया ! पट्टाभि सीतारमैया कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए गांधी के प्रतिनिधि के रूप में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के विरुद्ध चुनाव लड़े जिसमें नेताजी सुभाष चंद्र बोस चुनाव जीत गये और पट्टाभि सीतारमैया हार गये ।
तब महात्मा गांधी ने सार्वजनिक रुप से यह बयान दिया कि “पट्टाभि सीतारमैया की हार मेरी हार है” गांधी के इसी कथन पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने कांग्रेस छोड़ दी और भारत के स्वतंत्रता की लड़ाई को जारी रखने के लिए भारत के बाहर जाकर सेना इकट्ठी करने व अंग्रेज सरकार के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध करने का निर्णय लिया |
अंग्रेजों द्वारा घर में नजरबंद करने के बाद भी नेताजी सुभाष चंद्र बोस जर्मन जाकर एडोल्फ हिटलर से मिले और एडोल्फ हिटलर के सहयोग से नेताजी सुभाष चंद्र बोस को जापान का भी सहयोग प्राप्त हुआ और उन्होंने 21 अक्टूबर, 1943 को सिंगापुर में भारत की आस्थाई सरकार ‘ आज़ाद हिन्द सरकार’ की स्थापना की जिसको बर्मा, क्रोएशिया, जर्मनी, नानकिंग (वर्तमान में चीन), मंचूको, इटली, थाइलैंड, फिलीपींस, व आयरलैंड आदि विश्व के 11 देशों ने तत्काल मान्यता प्रदान कर दिया |
आजाद हिंद सरकार ने 1943 में आजाद हिंद बैंक को स्थापित किया और मुद्राएं भी प्रकाशित करना शुरू कर दिया | साथ ही आजाद हिंद सरकार ने सेना की भर्ती भी प्रारंभ कर दी और 40,000 सैनिकों की आजाद हिंद फौज तैयार करके ब्रिटिश सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए “दिल्ली चलो” का नारा दिया |22 सितम्बर 1944 को शहीदी दिवस मनाते हुये सुभाष बोस ने अपने सैनिकों से मार्मिक शब्दों में कहा –
“हमारी मातृभूमि स्वतन्त्रता की खोज में है। तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा। यह स्वतन्त्रता की देवी की माँग है।“
ब्रिटिश सरकार नेताजी सुभाष चंद्र बोस के इस प्रयास से बहुत घबरा गई |
उधर जर्मन में एडोल्फ हिटलर ने समूचे इंग्लैंड पर बमो की वर्षा करके इंग्लैंड को नेस्तनाबूद कर दिया था इधर बर्मा बॉर्डर जापान की सेना ब्रिटिश सरकार से भयंकर युद्ध कर रही थी अंग्रेजों को यह समझ में नहीं आ रहा था यदि नेताजी सुभाष चंद्र बोस कि आजाद हिंद फौज यदि बंगाल तक आ गई तो भारत के अंदर होने वाले जन विद्रोह को कैसे रोका जाएगा |
इसी चिन्ता को लेकर अंग्रेज गांधीजी की शरण में गए, गांधी ने उनको आश्वस्त किया आप परेशान मत होइये, मैं भारत के नागरिकों से आप की सेना में भर्ती होने का आग्रह करूंगा और गांधी जी गांव-गांव घूमकर भारतीय नौजवानों को गुमराह किया और बतलाया कि जापान भारत पर आक्रमण करना चाहता है इस तरह भारतीय नौजवानों को गुमराह करके नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज के खिलाफ लड़ने के लिए ब्रिटिश सेना में भर्ती करवाना शुरु कर दिया |
उनका कहना था “भले ही हम बर्तानिया (अँग्रेजी) सरकार के खिलाफ आजादी की जंग लड़ रहे हैं किंतु फिर भी आज हमारा शासक (अंग्रेज़) मुश्किल में है हमें भारतीयों को फौज में भर्ती होकर उसकी मदद करनी चाहिए |”
इसी तरह अंग्रेजों ने जब पूरे विश्व में अपना साम्राज्य स्थापित करने के लिए प्रथम विश्वयुद्ध छेड़ा तब गांधी गांव-गांव जाकर लोगों को अंग्रेजों की फौज में भर्ती होने के लिए प्रेरित करते थे और इतनी मूर्खतापूर्ण बात कहते रहे “कि यदि ब्रिटिश सरकार का पूरे विश्व पर शासन हो जाएगा तो विश्व के दूसरे देशों पर अपना शासन चलाने के लिए ब्रिटिश सरकार के अधिकारी इतना व्यस्त हो जाएंगे कि उनका ध्यान भारत जैसे देश की तरफ नहीं रहेगा
तब हमें अपनी आज़ादी की लड़ाई लड़ने में आसानी होगी और ब्रिटिश सरकार पूरे विश्व में शासन पाने के बाद हमारे सहयोग से खुश होकर हमें स्वयं स्वतंत्र करके भारत छोड़कर चली जाएगी | गांधी के इसी वक्तव्य पर विश्वास करके बहुत से लोगों ने अंग्रेजों की फौज में भर्ती ली और विदेशों में जाकर अंग्रेजी साम्राज्य के विस्तार के लिए युद्ध करते-करते मर गए |
लाखों की संख्या में जब भारतीय विदेशों में अंग्रेजी साम्राज्य के विस्तार के लिए युद्ध करते-करते मरे तब भारत में उनके परिवार वालों को सैनिक की मृत्यु के उपरांत दी जाने वाली सुविधाओं को देने से अंग्रेज सरकार ने मना कर दिया और एक कानून बना दिया यदि किसी व्यक्ति का मृत शरीर प्राप्त नहीं होता है तो 7 वर्ष की अवधि के पूर्व उसे मरा घोषित नहीं किया जा सकता और जब व्यक्ति मरा ही नहीं तो उसके मरणोपरांत प्राप्त होने वाली सुविधाओं का तो प्रश्न ही नहीं उठता |
गांधी इस विषय पर भी मौन रहे जनाक्रोश जब अत्यधिक बढ़ गया तो अंग्रेजो ने भारत के जनमानस का ध्यान हटाने के लिए दिल्ली में इंडिया गेट का निर्माण कर प्रथम विश्वयुद्ध में ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार के लिए मरने वाले भारतीय ब्रिटिश सैनिकों को सम्मानित किया और 7 वर्ष की अवधि बीतने के दौरान बहुत से लोगों ने अपने परिवार के सदस्यों की मृत्यु के बदले ब्रिटिश सरकार से मरणोपरांत प्राप्त सुविधाओं का विषय ही छोड़ दिया और इस तरह गांधी जी की दया से ब्रिटिश सरकार करोड़ों रूपए की देनदारी से भी बच गई |
योगेश मिश्र
ज्योतिषाचार्य,संवैधानिक शोधकर्ता एंव अधिवक्ता ( हाईकोर्ट)
संपर्क – 9044414408

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एक दिन चिड़िया बोली – मुझे छोड़ कर कभी उड़ तो नहीं जाओगे


🌹एक दिन चिड़िया बोली – मुझे छोड़ कर कभी उड़ तो नहीं जाओगे❣

 

🌹चिड़ा ने कहा – उड़

जाऊं तो तुम पकड़ लेना.❣

 

🌹चिड़िया-मैं तुम्हें पकड़

तो सकती हूँ,

पर फिर पा तो नहीं सकती…❣

 

🌹यह सुन चिड़े की आँखों में आंसू आ गए और उसने अपने पंख तोड़ दिए और बोला अब हम

हमेशा साथ रहेंगे,❣

 

🌹लेकिन एक दिन जोर से तूफान आया,

चिड़िया उड़ने लगी तभी चिड़ा बोला तुम उड़

जाओ मैं नहीं उड़ सकता..❣

 

🌹चिड़िया- अच्छा अपना ख्याल रखना, कहकर

उड़ गई !❣

 

🌹जब तूफान थमा और चिड़िया वापस

आई तो उसने देखा की चिड़ा मर चुका था❣

❣और एक डाली पर लिखा था…❣

 

✍काश तुम एक बार तो कहती कि मैं तुम्हें नहीं छोड़ सकती””❣

🌹तो शायद मैं तूफ़ान आने से

पहले नहीं मरता❣

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*न रोते बन रहा है* *न देखते बन रहा है*


*न रोते बन रहा है*

*न देखते बन रहा है*

 

न जाने क्यूँ आज

भगवान पर एतबार न

करते बन रहा है

न किस्मत पर एतबार करते बन रहा है

 

न जाने क्यूँ आज

फुट फुट कर आँसू बहाने का मन कर रहा है

 

आज अपना कश्मीर

फिर से बाढ़ से घिर गया है दोस्तों

 

और एक बार फिर से

सेना को बचाव कार्य में

लगना पड़ रहा है

 

बचना भी उन्ही पत्थरबाजों को है

 

इसलिए न जाने क्यूँ

*न रोते बन रहा है*

*न देखते बन रहा है*

Posted in आयुर्वेद - Ayurveda

सेंधा नमक : भारत से कैसे गायब कर दिया गया


सेंधा नमक : भारत से कैसे गायब कर दिया गया

सेंधा नमक वात, पित्त और कफ को दूर करता है
सेंधा नमक :-

आप सोच रहे होंगे की ये सेंधा नमक बनता कैसे है ?? आइये आज हम आपको बताते हैं कि नमक मुख्य कितने प्रकार होते हैं !!
एक होता है समुद्री नमक दूसरा होता है सेंधा नमक (rock slat) !!
सेंधा नमक बनता नहीं है पहले से ही बना बनाया है !! पूरे उत्तर भारतीय उपमहाद्वीप में खनिज पत्थर के नमक को ‘सेंधा नमक’ या ‘सैन्धव नमक’, लाहोरी नमक आदि आदि नाम से जाना जाता है ! जिसका मतलब है ‘सिंध या सिन्धु के इलाक़े से आया हुआ’। वहाँ नमक के बड़े बड़े पहाड़ है सुरंगे है !! वहाँ से ये नमक आता है ! मोटे मोटे टुकड़ो मे होता है आजकल पीसा हुआ भी आने लगा है यह ह्रदय के लिये उत्तम, दीपन और पाचन मे मददरूप, त्रिदोष शामक, शीतवीर्य अर्थात ठंडी तासीर वाला, पचने मे हल्का है । इससे पाचक रस बढ़्ते हैं। तों अंत आप ये समुद्री नमक के चक्कर से बाहर निकले ! काला नमक ,सेंधा नमक प्रयोग करे !! क्यूंकि ये प्रकर्ति का बनाया है ईश्वर का बनाया हुआ है !! और सदैव याद रखे इंसान जरूर शैतान हो सकता है लेकिन भगवान कभी शैतान नहीं होता !!

आयोडीन के नाम पर हम जो नमक खाते हैं उसमें कोर्इ तत्व नहीं होता। आयोडीन और फ्रीफ्लो नमक बनाते समय नमक से सारे तत्व निकाल लिए जाते हैं और उनकी बिक्री अलग से करके बाजार में सिर्फ सोडियम वाला नमक ही उपलब्ध होता है जो आयोडीन की कमी के नाम पर पूरे देश में बेचा जाता है, जबकि आयोडीन की कमी सिर्फ पर्वतीय क्षेत्रों में ही पार्इ जाती है इसलिए आयोडीन युक्त नमक केवल उन्ही क्षेत्रों के लिए जरुरी है।

भारत मे 1930 से पहले कोई भी समुद्री नमक नहीं खाता था विदेशी कंपनीया भारत मे नमक के व्यापार मे आज़ादी के पहले से उतरी हुई है ,उनके कहने पर ही भारत के अँग्रेजी प्रशासन द्वारा भारत की भोली भली जनता को आयोडिन मिलाकर समुद्री नमक खिलाया जा रहा है

हुआ ये कि जब ग्लोबलाईसेशन के बाद बहुत सी विदेशी कंपनियो(अनपूर्णा,कैपटन कुक ) ने नमक बेचना शुरू किया तब ये सारा खेल शुरू हुआ ! अब समझिए खेल क्या था ?? खेल ये था कि विदेशी कंपनियो को नमक बेचना है और बहुत मोटा लाभ कमाना है और लूट मचानी है तो पूरे भारत मे एक नई बात फैलाई गई कि आओडीन युक्त नामक खाओ ,आओडीन युक्त नमक खाओ ! आप सबको आओडीन की कमी हो गई है ! ये सेहत के लिए बहुत अच्छा है आदि आदि बातें पूरे देश मे प्रायोजित ढंग से फैलाई गई !! और जो नमक किसी जमाने मे 2 से 3 रूपये किलो मे बिकता था ! उसकी जगह आओडीन नमक के नाम पर सीधा भाव पहुँच गया 8 रूपये प्रति किलो ! और आज तो 20 रूपये को भी पार कर गया है !

दुनिया के 56 देशों ने अतिरिक्त आओडीन युक्त नमक 40 साल पहले ban कर दिया अमेरिका मे नहीं है जर्मनी मे नहीं है फ्रांस मे नहीं ,डेन्मार्क मे नहीं , यही बेचा जा रहा है डेन्मार्क की सरकार ने 1956 मे आओडीन युक्त नमक बैन कर दिया क्यों ?? उनकी सरकार ने कहा हमने मे आओडीन युक्त नमक खिलाया !(1940 से 1956 तक ) अधिकांश लोग नपुंसक हो गए ! जनसंख्या इतनी कम हो गई कि देश के खत्म होने का खतरा हो गया ! उनके वैज्ञानिको ने कहा कि आओडीन युक्त नमक बंद करवाओ तो उन्होने बैन लगाया ! और शुरू के दिनो मे जब हमारे देश मे ये आओडीन का खेल शुरू हुआ इस देश के बेशर्म नेताओ ने कानून बना दिया कि बिना आओडीन युक्त नमक बिक नहीं सकता भारत मे !! वो कुछ समय पूर्व किसी ने कोर्ट मे मुकदमा दाखिल किया और ये बैन हटाया गया

आज से कुछ वर्ष पहले कोई भी समुद्री नमक नहीं खाता था सब सेंधा नमक ही खाते थे !

सेंधा नमक के उपयोग से रक्तचाप और बहुत ही गंभीर बीमारियों पर नियन्त्रण रहता है ।! क्योंकि ये अम्लीय नहीं ये क्षारीय है (alkaline ) !! क्षारीय चीज जब अमल मे मिलती है तो वो न्यूटल हो जाता है ! और रक्त अमलता खत्म होते ही शरीर के 48 रोग ठीक हो जाते हैं ! ये नामक शरीर मे पूरी तरह से घुलनशील है ! और सेंधा नमक की शुद्धता के कारण आप एक और बात से पहचान सकते हैं कि उपवास ,व्रत मे सब सेंधा नमक ही खाते है ! तो आप सोचिए जो समुंदरी नमक आपके उपवास को अपवित्र कर सकता है वो आपके शरीर के लिए कैसे लाभकारी हो सकता है ?? सेंधा नमक शरीर मे 97 पोषक तत्वो की कमी को पूरा करता है ! इन पोषक तत्वो की कमी ना पूरी होने के कारण ही लकवे (paralysis ) का अटैक आने का सबसे बढ़ा जोखिम होता है सेंधा नमक के बारे में आयुर्वेद में बोला गया है कि यह आपको इसलिये खाना चाहिए क्योंकि सेंधा नमक वात, पित्त और कफ को दूर करता है। यह पाचन में सहायक होता है और साथ ही इसमें पोटैशियम और मैग्नीशियम पाया जाता है जो हृदय के लिए लाभकारी होता है। यही नहीं आयुर्वेदिक औषधियों में जैसे लवण भाष्कर, पाचन चूर्ण आदि में भी प्रयोग किया जाता है।

समुद्री नमक :-

ये जो समुद्री नमक है आयुर्वेद के अनुसार ये तो अपने आप मे ही बहुत खतरनाक है ! क्योंकि कंपनियाँ इसमे अतिरिक्त आओडीन डाल रही है !! अब आओडीन भी दो तरह का होता है एक तो भगवान का बनाया हुआ जो पहले से नमक मे होता है ! दूसरा होता है industrial iodine ! ये बहुत ही खतरनाक है ! तो समुद्री नमक जो पहले से ही खतरनाक है उसमे कंपनिया अतिरिक्त industrial iodine डाल को पूरे देश को बेच रही है ! जिससे बहुत सी गंभीर बीमरिया हम लोगो को आ रही है ! ये नमक मानव द्वारा फ़ैक्टरियों मे निर्मित है !

आम तौर से उपयोग मे लाये जाने वाले समुद्री नमक से उच्च रक्तचाप (high BP ) ,डाइबिटीज़, आदि गंभीर बीमारियो का भी कारण बनता है । इसका एक कारण ये है कि ये नमक अम्लीय (acidic) होता है ! जिससे रक्त अम्लता बढ़ती है और रक्त अमलता बढ्ने से ये सब 48 रोग आते है ! ये नमक पानी कभी पूरी तरह नहीं घुलता हीरे (diamond ) की तरह चमकता रहता है इसी प्रकार शरीर के अंदर जाकर भी नहीं घुलता और अंत इसी प्रकार किडनी से भी नहीं निकल पाता और पथरी का भी कारण बनता है ! और ये नमक नपुंसकता और लकवा (paralysis ) का बहुत बड़ा कारण है समुद्री नमक से सिर्फ शरीर को 4 पोषक तत्व मिलते है ! और बीमारिया जरूर साथ मे मिल जाती है !

रिफाइण्ड नमक में 98% सोडियम क्लोराइड ही है शरीर इसे विजातीय पदार्थ के रुप में रखता है। यह शरीर में घुलता नही है। इस नमक में आयोडीन को बनाये रखने के लिए Tricalcium Phosphate, Magnesium Carbonate, Sodium Alumino Silicate जैसे रसायन मिलाये जाते हैं जो सीमेंट बनाने में भी इस्तेमाल होते है। विज्ञान के अनुसार यह रसायन शरीर में रक्त वाहिनियों को कड़ा बनाते हैं जिससे ब्लाक्स बनने की संभावना और आक्सीजन जाने मे परेशानी होती है, जोड़ो का दर्द और गढिया, प्रोस्टेट आदि होती है। आयोडीन नमक से पानी की जरुरत ज्यादा होती है। 1 ग्राम नमक अपने से 23 गुना अधिक पानी खींचता है। यह पानी कोशिकाओ के पानी को कम करता है। इसी कारण हमें प्यास ज्यादा लगती है।

निवेदन :-

पांच हजार साल पुरानी आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में भी भोजन में सेंधा नमक के ही इस्तेमाल की सलाह दी गई है। भोजन में नमक व मसाले का प्रयोग भारत, नेपाल, चीन, बंगलादेश और पाकिस्तान में अधिक होता है। आजकल बाजार में ज्यादातर समुद्री जल से तैयार नमक ही मिलता है। जबकि 1960 के दशक में देश में लाहौरी नमक मिलता था। यहां तक कि राशन की दुकानों पर भी इसी नमक का वितरण किया जाता था। स्वाद के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी होता था। समुद्री नमक के बजाय सेंधा नमक का प्रयोग होना चाहिए।

आप इस अतिरिक्त आओडीन युक्त समुद्री नमक खाना छोड़िए और उसकी जगह सेंधा नमक खाइये !! सिर्फ आयोडीन के चक्कर में समुद्री नमक खाना समझदारी नहीं है, क्योंकि जैसा हमने ऊपर बताया आओडीन हर नमक मे होता है सेंधा नमक मे भी आओडीन होता है बस फर्क इतना है इस सेंधा नमक मे प्राकृतिक के द्वारा भगवान द्वारा बनाया आओडीन होता है इसके इलावा आओडीन हमें आलू, अरवी के साथ-साथ हरी सब्जियों से भी मिल जाता है।

Posted in हास्यमेव जयते

गाँव का आदमी मुम्बई पहुँच गया


गाँव का आदमी मुम्बई पहुँच गया

 

सड़क के किनारे खड़ा ऊँची बिल्डिंग को देख रहा था !

 

एक औरत लिफ्ट में गई !

 

थोड़ी देर में लिफ्ट से एक बुढिया बाहर निकली !

 

उसने सोचा ये कौन सी मशीन है ?

 

फ़िर एक आदमी अंदर गया !थोड़ी देर बाद एक बूढ़ा बाहर निकला !

 

गाँव का आदमी हक्का बक्का !ये कौन सी ख़तरनाक मशीन है ?

 

फ़िर एक 16साल की लड़की अंदर जाने लगी !

 

उसने हाथ पकड़ कर रोका !

 

बेटी इसके अंदर मत जाओ !

 

बहुत खराब मशीन है !लड़की हाथ झटक कर अंदर चली गई !

 

थोड़ी देर में एक बुढिया बाहर आई !

 

जाओ मना किया था !अब भुगतो !

 

अबकी वार एक बुढिया अंदर जाने लगी !

 

जाओ तुमको क्या रोके !तुम तो पहले से ही बूढ़ी हो !

 

थोडी देर में एक 18साल की लड़की बाहर निकली !

 

आदमी सन्न ??????

अफसोस !!   !! से बोला

 

पहले पता होता तो पप्पू की माँ को भी संग ही ले आता

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एक आदमी ने बहोत ही सुंदर लड़की से ब्याह किया।


एक आदमी ने बहोत ही सुंदर लड़की से ब्याह किया। वो उसे बहोत प्यार करता था। अचानक उस लड़की को चर्मरोग हो गया कारण वश उसकी सुंदरता कुरूपता में परिवर्तित होने लगी। अचानक एक दिन सफर में दुर्घटना से उस व्यक्ति के आँखों की रौशनी चली गई।

दोनों पति-पत्नी की जिंदगी तकलीफों के बावजूद भी एक दूसरे के साथ प्रेम पूर्वक चल रही थी।

दिन ब दिन पत्नी अपनी सुंदरता खो रही थी पर पति के देख न पाने के कारण उनके प्यार में कोई कमी नही आ रही थी ।

दोनों का दाम्पत्य जीवन बड़े प्यार से चल रहा था।

रोग के बढ़ते रहने के कारण पत्नी की मृत्यु हो गई।

पति को बहोत दुःख हुआ और उसने उसकी यादों के साथ जुड़ा होने के कारण उस शहर को छोड़ देने का विचार किया।

उसके एक मित्र ने कहा अब तुम पत्नी के बिना सहारे अंजान जगह अकेले कैसे चल फिर पाओगे ?

उसने कहा मैं अँधा होने का नाटक कर रहा था,क्यों की अगर मेरी पत्नी को ये पता चल जाता की मैं देख सकता हूँ तो उसे अपने रोग से ज्यादा कुरूपता पर दुःख होता और में उसे इतना प्यार करता था,की किसी भी हालत में उसे दुखी नही देख सकता था।

वो एक बहोत ही अच्छि पत्नी थी और मैं उसे हमेशा खुश देखना चाहता था।

सिख:

कभी कभी हमारे लिए भी अच्छा है कि हम कुछ मामलों में अंधे बने रहें, वही हमारी ख़ुशी का सबसे बड़ा कारण होगा।

बहोत वार दांत जीभ को काट लेते हैं फिर भी मुंह में एक साथ रहते हैं, यही माफ़ कर देने का सबसे बड़ा उदाहरण है।

मानवीय रिस्ते बिना एक दूसरे के हमेशा अधूरे हैं ,इसलिए हमेशा जुड़े रहें।

हमारे जीवन में सब की अपनी अपनी अलग प्रधानता है, जैसे हम एक तेज धार दार ब्लेड से पेड़ नही काट सकते और एक मजबूत कुल्हाड़ी से बाल नही काट सकते।

जो जैसा है कमो-वेस सदा जुड़े रहें।यही जीवन की सफलता का राज है।

Posted in गौ माता - Gau maata

*शोभा डे नाम की एक प्रख्यात लेखिका की टिप्पणी* –


*शोभा डे नाम की एक प्रख्यात लेखिका की टिप्पणी* –

 

*”मांस तो मांस ही होता है,*

*चाहे गाय का हो,*

*या बकरे का,*

*या किसी अन्य जानवर* *का……।*

 

*फिर,*

*हिन्दू लोग जानवरों के प्रति* *अलग-अलग व्यवहार कर के*

*क्यों ढोंग करते है कि बकरा* *काटो,*

*पर, गाय मत काटो ।*

*ये उनकी मूर्खता है कि नहीं……?”*

.

*जवाब -1.*

बिल्कुल ठीक कहा शोभा जी आप ने ।

मर्द तो मर्द ही होता है,

चाहे वो भाई हो,

या

पति,

या

बाप,

या

बेटा ।

फिर, *तीनो के साथ आप अलग-अलग व्यवहार क्यों करती हैं ?*

 

*क्या सन्तान पैदा करने,

या यौन-सुख पाने के लिए पति जरुरी है ?*

 

भाई, बेटा, या बाप के साथ भी वही व्यवहार किया जा सकता है,

जो आप अपने पति के साथ करती हैं ।

 

*ये आप की मूर्खता और आप का ढोंग है कि नहीं…..?*

 

*जवाब-2.*

घर में आप अपने बच्चों और अपने पति को खाने-नाश्ते में दूध तो देती ही होंगी, या चाय-कॉफी तो बनाती ही होंगी…!

जाहिर है, वो दूध गाय, या भैंस का ही होगा ।

 

तो, क्या आप कुतिया  का भी दूध उनको पिला सकती हैं, या कुतिया के दूध की भी चाय-कॉफी बना सकती हैं..?

 

क्यों नही ? दूध तो दूध है , चाहे वो किसी का भी हो..!

 

*ये आप की मूर्खता और आप का ढोंग है कि नहीं……?*

.

*प्रश्न मांस का नहीं, आस्था और भावना का*

*है ।*

 

जिस तरह, भाई, पति, बेटा, बेटी, बहन, माँ, आदि रिश्तों के पुरुषों-महिलाओं से हमारे सम्बन्ध मात्र एक पुरुष, या मात्र एक स्त्री होने के आधार पर न चल कर भावना और आस्था के आधार पर संचालित होते हैं,

 

उसी प्रकार गाय, बकरे, या अन्य पशु भी हमारी भावना के आधार पर व्यवहृत होते

हैं ।

 

*जवाब – 3.*

एक अंग्रेज ने स्वामी विवेकानन्द से पूछा –

“सब से अच्छा दूध किस जानवर का होता है ?”

 

स्वामी विवेकानंद –

“भैँस का ।”

 

अंग्रेज –

“परन्तु आप भारतीय तो गाय को ही सर्वश्रेष्ठ मानते हैं न…..?”

 

स्वामी विवेकानन्द कहा –

“आप ने “दूध” के बारे मे पुछा है जनाब, “अमृत” के बारे में नहीं,

और दूसरी बात,

आप ने जानवर के बारे मेँ पूछा था ।

*गाय तो हमारी ‘माता’ है,*

*कोई जानवर नहीं ।”*

 

*इसी विषय में एक सवाल :-*

“Save tiger” कहने वाले समाज सेवी होते हैं

और

“Save Dogs” कहने वाले पशु प्रेमी होते हैं ।

तब,

*”Save Cow” कहने वाले कट्टरपन्थी कैसे हो गये…..?*

 

इसका जवाब अगर किसी के पास हो, तो बताने की ज़रूर कृपा करे ।

.

.प्लीज आगे शेयर करे अगर आपको भी मेरे मत से सहमत है  l

अगर आप शोभा डे के मत से प्रभावित है तो शेयर मत कीजिये ।

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मुल्तान विजय के बाद कासिम


मुल्तान विजय के बाद कासिम के आतंकवादियों ने एक विशेष सम्प्रदाय हिन्दू के ऊपर गांवो शहरों में भीषण रक्तपात मचाया था। हजारों स्त्रियों की छातियाँ नोच डाली गयीं, इस कारण अपनी लाज बचाने के लिए हजारों सनातनी किशोरियां अपनी शील की रक्षा के लिए कुंए तालाब में डूब मरीं।लगभग सभी युवाओं को या तो मार डाला गया या गुलाम बना लिया गया। अरब ने पहली बार भारत को अपना इस्लाम धर्म का रूप दिखाया था।

 

एक बालक तक्षक के पिता कासिम की सेना के साथ हुए युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो चुके थे। लुटेरी अरब सेना जब तक्षक के गांव में पहुची तो हाहाकार मच गया। स्त्रियों को घरों से खींच खींच कर उनकी देह लूटी जाने लगी।भय से आक्रांत तक्षक के घर में भी सब चिल्ला उठे। तक्षक और उसकी दो बहनें भय से कांप उठी थीं।

 

तक्षक की माँ पूरी परिस्थिति समझ चुकी थी, उसने कुछ देर तक अपने बच्चों को देखा और जैसे एक निर्णय पर पहुच गयी। माँ ने अपने तीनों बच्चों को खींच कर छाती में चिपका लिया और रो पड़ी। फिर देखते देखते उस क्षत्राणी ने म्यान से तलवार खीचा और अपनी दोनों बेटियों का सर काट डाला।उसके बाद अरबों द्वारा उनकी काटी जा रही गाय की तरफ और  बेटे की ओर अंतिम दृष्टि डाली, और तलवार को अपनी छाती में उतार लिया।

 

आठ वर्ष का बालक तक्षक एकाएक समय को पढ़ना सीख गया था, उसने भूमि पर पड़ी मृत माँ के आँचल से अंतिम बार अपनी आँखे पोंछी, और घर के पिछले द्वार से निकल कर खेतों से होकर जंगल में भाग गया।

 

पचीस वर्ष बीत गए। अब वह बालक बत्तीस वर्ष का पुरुष हो कर कन्नौज के प्रतापी शासक नागभट्ट द्वितीय का मुख्य अंगरक्षक था। वर्षों से किसी ने उसके चेहरे पर भावना का कोई चिन्ह नही देखा था। वह न कभी खुश होता था न कभी दुखी। उसकी आँखे सदैव प्रतिशोध की वजह से अंगारे की तरह लाल रहती थीं। उसके पराक्रम के किस्से पूरी सेना में सुने सुनाये जाते थे। अपनी तलवार के एक वार से हाथी को मार डालने वाला तक्षक सैनिकों के लिए आदर्श था। कन्नौज नरेश नागभट्ट अपने अतुल्य पराक्रम से अरबों के सफल प्रतिरोध के लिए ख्यात थे। सिंध पर शासन कर रहे अरब कई बार कन्नौज पर आक्रमण कर चुके थे,पर हर बार योद्धा राजपूत उन्हें खदेड़ देते। युद्ध के सनातन नियमों का पालन करते नागभट्ट कभी उनका पीछा नहीं करते, जिसके कारण मुस्लिम शासक आदत से मजबूर बार बार मजबूत हो कर पुनः आक्रमण करते थे। ऐसा पंद्रह वर्षों से हो रहा था।

 

फिर से सभा बैठी थी, अरब के खलीफा से सहयोग ले कर सिंध की विशाल सेना कन्नौज पर आक्रमण के लिए प्रस्थान कर चुकी है, और संभवत: दो से तीन दिन के अंदर यह सेना कन्नौज की सीमा पर होगी। इसी सम्बंध में रणनीति बनाने के लिए महाराज नागभट्ट ने यह सभा बैठाई थी। सारे सेनाध्यक्ष अपनी अपनी राय दे रहे थे…

 

तभी अंगरक्षक तक्षक उठ खड़ा हुआ…

 

“और बोला- महाराज, हमे इस बार दुश्मन को उसी की शैली में उत्तर देना होगा।”

 

महाराज ने ध्यान से देखा अपने इस अंगरक्षक की ओर, बोले- “अपनी बात खुल कर कहो तक्षक, हम कुछ समझ नही पा रहे।”

 

“महाराज, अरब सैनिक महाबर्बर हैं, उनके साथ सनातन नियमों के अनुरूप युद्ध कर के हम अपनी प्रजा के साथ घात ही करेंगे। उनको उन्ही की शैली में हराना होगा।”

 

महाराज के माथे पर लकीरें उभर आयीं, बोले-

“किन्तु हम धर्म और मर्यादा नही छोड़ सकते सैनिक। ”

 

तक्षक ने कहा-

“मर्यादा का निर्वाह उसके साथ किया जाता है जो मर्यादा का अर्थ समझते हों। ये बर्बर धर्मोन्मत्त राक्षस हैं महाराज। इनके लिए हत्या और बलात्कार ही धर्म है।”

 

“पर यह हमारा धर्म नही हैं बीर”

 

“राजा का केवल एक ही धर्म होता है महाराज, और वह है प्रजा की रक्षा। देवल और मुल्तान का युद्ध याद करें महाराज, जब कासिम की सेना ने दाहिर को पराजित करने के पश्चात प्रजा पर कितना अत्याचार किया था। ईश्वर न करे, यदि हम पराजित हुए तो बर्बर अत्याचारी अरब हमारी स्त्रियों, बच्चों और निरीह प्रजा के साथ कैसा व्यवहार करेंगे, यह महाराज जानते हैं।”

 

महाराज ने एक बार पूरी सभा की ओर निहारा, सबका मौन तक्षक के तर्कों से सहमत दिख रहा था। महाराज अपने मुख्य सेनापतियों मंत्रियों और तक्षक के साथ गुप्त सभाकक्ष की ओर बढ़ गए।

 

अगले दिवस की संध्या तक कन्नौज की पश्चिम सीमा पर दोनों सेनाओं का पड़ाव हो चूका था, और आशा थी कि अगला प्रभात एक भीषण युद्ध का साक्षी होगा।

 

आधी रात्रि बीत चुकी थी। अरब सेना अपने शिविर में निश्चिन्त सो रही थी। अचानक तक्षक के संचालन में कन्नौज की एक चौथाई सेना अरब शिविर पर टूट पड़ी। अरबों को किसी हिन्दू शासक से रात्रि युद्ध की आशा न थी। वे उठते,सावधान होते और हथियार सँभालते इसके पुर्व ही आधे अरब गाजर मूली की तरह काट डाले गए।

 

इस भयावह निशा में तक्षक का सौर्य अपनी पराकाष्ठा पर था।वह घोडा दौड़ाते जिधर निकल पड़ता उधर की भूमि शवों से पट जाती थी। आज माँ और बहनों की आत्मा को ठंडक देने का समय था….

 

उषा की प्रथम किरण से पुर्व अरबों की दो तिहाई सेना मारी जा चुकी थी। सुबह होते ही बची सेना पीछे भागी, किन्तु आश्चर्य! महाराज नागभट्ट अपनी शेष सेना के साथ उधर तैयार खड़े थे। दोपहर होते होते समूची अरब सेना काट डाली गयी। अपनी बर्बरता के बल पर विश्वविजय का स्वप्न देखने वाले आतंकियों को पहली बार किसी ने ऐसा उत्तर दिया था।

 

विजय के बाद महाराज ने अपने सभी सेनानायकों की ओर देखा, उनमे तक्षक का कहीं पता नही था।सैनिकों ने युद्धभूमि में तक्षक की खोज प्रारंभ की तो देखा-लगभग हजार अरब सैनिकों के शव के बीच तक्षक की मृत देह दमक रही थी। उसे शीघ्र उठा कर महाराज के पास लाया गया। कुछ क्षण तक इस अद्भुत योद्धा की ओर चुपचाप देखने के पश्चात महाराज नागभट्ट आगे बढ़े और तक्षक के चरणों में अपनी तलवार रख कर उसकी मृत देह को प्रणाम किया। युद्ध के पश्चात युद्धभूमि में पसरी नीरवता में भारत का वह महान सम्राट गरज उठा-

 

“आप आर्यावर्त की वीरता के शिखर थे तक्षक…. भारत ने अबतक मातृभूमि की रक्षा में प्राण न्योछावर करना सीखा था, आप ने मातृभूमि के लिए प्राण लेना सिखा दिया। भारत युगों युगों तक आपका आभारी रहेगा।”

 

इतिहास साक्षी है, इस युद्ध के बाद अगले तीन शताब्दियों तक अरबों में भारत की तरफ आँख उठा कर देखने की हिम्मत नही हुई।  तक्षक ने सिखाया कि मातृभूमि के लिए प्राण दिए ही नही लिए भी जाते हैं ।

(दोस्तों प्रण लीजिये हमसब वीर तक्षक के रास्तों पर ही चलेंगे)