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श्रीमद भगवद गीता – सुंदर वेब साईट


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सूर्योपासना


भारत में सूर्योपासना ऋग वैदिक काल से होती आ रही है। सूर्य और इसकी उपासना की चर्चा विष्णु पुराण, भगवत पुराण, ब्रह्मा वैवर्त पुराण आदि में विस्तार से की गई है। मध्य काल तक छठ सूर्योपासना के व्यवस्थित पर्व के रूप में प्रतिष्ठित हो गया, जो अभी तक चला आ रहा है। तालाब में पूजा करते हैं।
देवता के रूप में सृष्टि और पालन शक्ति के कारण सूर्य की उपासना सभ्यता के विकास के साथ विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग रूप में प्रारंभ हो गई, लेकिन देवता के रूप में सूर्य की वंदना का उल्लेख पहली बार ऋगवेद में मिलता है। इसके बाद अन्य सभी वेदों के साथ ही उपनिषद आदि वैदिक ग्रंथों में इसकी चर्चा प्रमुखता से हुई है। निरुक्त के रचियता यास्क ने द्युस्थानीय देवताओं में सूर्य को पहले स्थान पर रखा है।
सूर्य के मानवीय रूप की कल्पना उत्तर वैदिक काल के अंतिम कालखंड में होने लगी। इसने कालांतर में सूर्य की मूर्ति पूजा का रूप ले लिया। पौराणिक काल आते-आते सूर्य पूजा का प्रचलन और अधिक हो गया। अनेक स्थानों पर सूर्य देव के मंदिर भी बनाए गए। पौराणिक काल में सूर्य को आरोग्य देवता भी माना जाने लगा था। सूर्य की किरणों में कई रोगों को नष्ट करने की क्षमता पाई गई। ऋषि-मुनियों ने अपने अनुसंधान के क्रम में किसी खास दिन इसका प्रभाव विशेष पाया। संभवत: यही छठ पर्व के उद्भव की बेला रही हो। भगवान कृष्ण के पौत्र शाम्ब को कुष्ठ हो गया था। इस रोग से मुक्ति के लिए विशेष सूर्योपासना की गई, जिसके लिए शाक्य द्वीप से ब्राह्मणों को बुलाया गया था।
सूर्योपासना का यह अनुपम लोकपर्व मुख्य रूप से मध्य काल से वर्तमान काल तक भारत के साथ साथ विश्वभर मे प्रचलित व प्रसिद्ध हो गया है। कार्तिक मास की अमावस्या को दीपावली के तुरंत बाद मनाए जाने वाले इस चार दिवसीय व्रत की सबसे कठिन और महत्वपूर्ण रात्रि कार्तिक शुक्ल षष्टी की होती है। इसी कारण इस व्रत का नामकरण छठ व्रत हो गया। वैसे तो कार्तिक मास में भगवान सूर्य की पूजा करने का विधान है ही पर कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में षष्ठी तिथि पर स्वास्थ्य से संबंधित समस्याएं न हों इसलिए सूर्य देव की विशिष्ट अराधना करने का विधान है क्योंकि इस समय सूर्य नीच राशि में होता है तथा विज्ञान की मानें तो कार्तिक मास में ऊर्जा और स्वास्थ्य को उच्च रखने के लिए सूर्य पूजन अवश्य करना चाहिए। वैसे तो प्रतिदिन दिन का आरंभ सूर्य उपासना से करना चाहिए, संभव न हो तो उनके प्रिय दिन रविवार को अवश्य ये काम करना चाहिए।सूर्य की शक्तियों का मुख्य श्रोत उनकी पत्नी ऊषा और प्रत्यूषा हैं। छठ में सूर्य के साथ-साथ दोनों शक्तियों की संयुक्त आराधना होती है। प्रात:काल में सूर्य की पहली किरण (ऊषा) और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण (प्रत्यूषा) को अघ्र्य देकर दोनों का नमन किया जाता है।
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मीराबाई


मीराबाई
ये मेड़तिया के राठौर रत्नसिंह की पुत्री, राव दूदाजी की पौत्री और जोधपुर के बसानेवाले प्रसिद्ध राव जोधाजी की प्रपौत्री थीं. इनका जन्म सन् 1516 ई. में चोकड़ी नाम के एक गाँव में हुआ था और विवाह उदयपुर के महाराणा कुमार भोजराज जी के साथ हुआ था. ये आरंभ से ही कृष्ण भक्ति में लीन रहा करती थी. विवाह के उपरांत थोड़े दिनों में इनके पति का परलोकवास हो गया. ये प्राय: मंदिर में जाकर उपस्थित भक्तों और संतों के बीच श्रीकृष्ण भगवान् की मूर्ती के सामने आनंदमग्न होकर नाचती और गाती थी. कहते हैं कि इनके इस राजकुलविरूद्ध आचरण से इनके स्वजन लोकनिंदा के भय से रूष्ट रहा करते थे. यहाँ तक कहा जाता है कि इन्हें कई बार विष देने का प्रयत्न किया गया, पर विष का कोई प्रभाव इन पर न हुआ. घरवालों के व्यवहार से खिन्न होकर ये द्वारका और वृंदावन के मंदिरों में घूम-घूमकर भजन सुनाया करती थीं. ऐसा प्रसिद्ध है कि घरवालों से तंग आकर इन्होंने गोस्वामी तुलसीदासजी को यह पद लिखकर भेजा था:
स्वस्ति श्री तुलसी कुल भूषन दूषन हरन गोसाईं I
बारहिं बार प्रनाम करहुँ, अब हरहु सोक समुदाई II
घर के स्वजन हमारे जेते सबन्ह उपाधि बढ़ाई II
साधु संग अरू भजन करत मोहिं देत कलेस महाई II
मेरे मात पिता के सम हौ, हरिभक्तन्ह सुखदाई II
हमको कहा उचित करिबो है, सो लिखिए समझाई II
इस पर गोस्वामी जी ने ‘विनयपत्रिका’ का यह पद लिखकर भेजा था :
जाके प्रिय न राम बैदेही I
सो नर तजिय कोटि बैरी सम जद्यपि परम सनेही II
नाते सबै राम के मनियत सुहृद सुसेव्य जहाँ लौं I
अंजन कहा आँखि जौ फूटै, बहुतक कहौं कहाँ लौं II
मीराबाई की मृत्यु द्वारका में सन् 1546 ई. में हो चुकी थी. अत: यह जनश्रुति किसी की कल्पना के आधार पर ही चल पड़ी.
मीराबाई का नाम प्रधान भक्तों में है और इनका गुणगान नाभाजी, ध्रुवदास, व्यास जी, मलूकदास आदि सब भक्तों ने किया है.
कृतियाँ
1. नरसी जी का मायरा
2. गीतगोविंद टीका
3. राग गोविंद
4. राग सोरठ के पद
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श्रीकृष्ण में 64 ऐसे दिव्य गुण


श्रीकृष्ण में 64 ऐसे दिव्य गुण

परम पूज्य संत श्री आशारामजी बापू

 

रुदती भिक्षणं – कभी रोने लगते है, उदगायन्ति – कभी गाने लगते है, नर्त्यतीं च – नाचने लगते है, मद भक्ति युक्तो भुवनं पुनाति – मेरी भक्ति युक्त ऐसे लोग भुवनो को पावन करते है उनको छुकर जो हवांए जाती है वो भी लोगो को सुख शांति और अहंकार रहित आत्मरस से  पवित्र करने वाली होती है | लेकिन जो अहंकारी है जिनकी मटेरिअल लाइफ है, जो रॉक और पोप म्यूजिक पर झूमते है भूत के जैसे, ऐसे लोग ऐसे भक्तो की हंसी उड़ाते है | धनभागी है दुनिया के कृष्ण भक्त जो श्रीकृष्ण के लिए हँसते है, नाचते है ,रोते है, गाते है श्रीकृष्ण के लिए, भगवान के लिए, शिव के लिए, गुरु के लिए | रॉक और पोप म्यूजिक से धूमते है सेक्सुअल केंद्र उतेजित हो जाता है और आदमी हवस का, विकारो का, सेक्स का शिकार बन जाते है लेकिन जो भगवान की भक्ति में, गुरु के सत्संग में हँसते, रोते, गाते गुनगुनाते है वो तो त्रिभुवन को पावन करते है उद्धव |
तो यहाँ ब्रम्हवैवर्त पुराण में धर्मराजा सावित्री देवीजी को कहते है जो भक्तो के नाचने, गाने, अलग-अलग चेष्टाओ करने को देखकर जो हंसी उड़ाते है जो उनकी माखोल उड़ाते है उनको १०० वर्ष तक अश्रु नरक में  वास करना पड़ता है और अश्रु पान करना पड़ता है | इसिलिए भक्त की चेष्टाओ को देखकर कभी भी खिल्ली नही उड़ानी चाहिए कभी भी वयंग्य नही करना चाहिए|
श्रीकृष्ण में 64 ऐसे दिव्य गुण है की वे आप के अन्दर छुपे हुए है उन्हें जगाने पर आप कृष्णमय हो जाओगे | आप का आत्मा भी वही कृष्ण का आत्मा ही है क्योंकि आत्मा एक है परब्रम्हपरमात्मा एक है | भक्तो के ह्रदय में बीज रूप से छुपा है, संतो के ह्रदय में पोधे के रूप में या वृक्ष के रूप में विकसित हुआ है और वही श्रीकृष्ण के ह्रदय में वही ब्रम्ह विकसित हुआ है |
श्रीकृष्ण के 64 गुण सुनकर आप भी कुछ गुण विकसित कर सकते ही है | तो भगवान कृष्ण कैसे थे सुन्दर अंग वाले थे आप भी आसन, प्राणायाम और श्वास रोककर बहार जप करे आपका शरीरिक शरीर सुढोल रहेगा आप सुन्दर अंग वाले बनेगे |
भगवान श्रीकृष्ण में दूसरा गुण था शुभ लक्षणों से युक्त थे आप भी शुभ चिंतन करो | मै बीमार हूँ, यह ऐसा है,  वो वैसा है अपने चहरे को भद्दा मत करो, किसी की भी निन्दा न करो, निन्दा करने से अपना चहेरा भद्दा होता है, मन भद्दा होता है, श्रीकृष्ण निन्दा नही करते थे इर्ष्या नही करते थे, सदा बंसी बजाते रहते, प्रसन्नता बिखेरते रहते ऐसे ही आप भी सदा प्रसन्नता बिखेरते रहो| निन्दा किसी की हम किसी से भूल कर भी ना करे|
श्रीकृष्ण में तीसरा गुण था अतिशय रुचिकर थे उनको देख कर लोग भाग-भाग कर जाते श्रीकृष्ण आये श्रीकृष्ण आये, जैसे लीलाशाह बापू को देख कर भक्त दोड़-दोड़ कर दर्शन करने जाते, अपने भक्त दोड़-दोड़ कर आते है ऐसे ही श्रीकृष्ण में आकर्षणी शक्ति थी भक्त उनको देख-देख कर आनन्दित होते थे |
चोथा श्रीकृष्ण का दिव्या गुण था तेजोमय थे, पांचवा बलवान थे और छठा नित्य तत्व मे रमण करते थे, शरीर तो अवतार लिया, विलय हो जायेगा पर मै ज्यों का त्यों हूँ ऐसे ही तुम्हारा शरीर भी बना है विलय हो जायेगा, तुम ज्यों के त्यों हो ऐसे नित्य तत्व मै रहने की अपनी दृढ़ता करो तो श्रीकृष्ण का सवभाव आपके ह्रदय में प्रकट होने लग जायेगा | सातवाँ गुण था श्रीकृष्ण प्रियभाषी थे कटु नही बोलते, आप भी मधुमय बोलने में सफल हो सकते हो, रोज सुबह उठो कि आज मै अपनी जिव्हा पर मधुर, मधुमय अवतार का स्मरण करके मधु वाणी बोलूँगा |
आठवीं बात श्रीकृष्ण में थी सत्यवादी थे, शोर्यमय थे नवमी बात, और दशवीं बात थी भाषाओ के जानकार थे मनुष्य की भाषा तो जानते थे पशुओ की भाषा भी जानते थे |
परम पंडित थे ग्यारहवाँ तत्व, श्रीकृष्ण बुद्धिमान थे, बच्चों को और आप को भी बुद्धिमान बनना हो तो भूमध्य में ओंकार या गुरुदेव का ध्यान करे , श्वासों-श्वास में ओंकार की गिनती करे तो बुद्धिमान बनने में आसानी होगी |
तेहरवाँ गुण था प्रतिभाशाली थे, चोहदवाँ गुण था कला पारंगत थे, पंद्रहवाँ गुण था श्रीकृष्ण का सुविकसित चतुर थे, आजकल जो झूट कपट करके, दुसरे को ठग कर पैसे इक्ठ्ठे करता है उसको चतुर मानते है तो मुर्ख है, वो उसी पैसे से दारू पियेगा, सट्टा करेगा, चिंतित होगा और मरने के बाद प्रेत बनेगा | श्रीकृष्ण ऐसे चतुर थे कि बिना वस्तु के, बिना व्यक्ति के प्रसन्न रह सकते है और अपनी मीठी नजर से लोगो को आनंदित करते थे | सुख में दुःख में सम रहते थे यह सच्ची चतुरता है |
सोहलवाँ गुण था श्री कृष्ण दक्ष रहते थे पक्षपात नहीं करते थे जो भी हुआ उसको देखते है समता में रहते है, श्रीकृष्ण की सोने की द्वारका डूब रही है और बंसी बज रही है कि इसी का नाम तो दुनिया है बनता है बिगड़ता है बदलता है | साधुओ की मजाक उड़ाने से साधुओ ने श्राप दे दिया कृष्ण के बेटे पोतो को, की गोप को गोपी बनाकर, गर्भवती गोपी को कौनसा क्या बच्चा होगा, मुसल बंधा है पेट पर, वही मुसल तुम्हारा विनाश करेगा मूर्खो, तुम्हारे बाप और दादा श्रीकृष्ण तो संतो का चरण धोते है और तुम संतो की मजाक उड़ाते हो, धिक्कार है तुम पर | अब श्रीकृष्ण चाहते तो संतो को बुलाकर श्राप वापस कराते या दूसरा कुछ कराते, नही श्रीकृष्ण दक्ष थे, गलती किया है तो दंड मिली है श्रीकृष्ण पक्षपात नही करते, इतने तटस्थ है |
सत्रवाँ गुण था श्रीकृष्ण का कृतज्ञ थे कोई थोडा भी उनके प्रति करता है तो उनका उपकार याद रखते थे आप भी दुसरे का हेल्प लो तो भूलना नही, यह आप कर सकते है जो श्रीकृष्ण के गुण विकसित थे वो आप विकसित कर सकते है |
अठारवाँ गुण था व्रतधारी थे जैसे पूनम का व्रत किया तो पहुंचना है, दस माला का जप करने का व्रत, जिसके जीवन में व्रत नही है उसके जीवन में दृढता भी नही है और सच्चाई भी नही है और सत्य को प्राप्त करने की योग्यता भी नही रहती | उनीसवाँ गुण था देश काल परिस्थिति को जानते थे, बीसवाँ गुण था श्रीकृष्ण शास्त्र में पारंगत थे, सत्संग के द्वारा शास्त्रों का ज्ञान मिलता है शास्त्रों का अध्यन स्मृति करने से शास्त्रों में पारंगत होते है |
२१वाँ महागुण था श्री कृष्ण भीतर और बाहर से प्रवित्र रहते, सुबह स्नान आदि करते, संध्या करते है. श्रीकृष्ण की ऐसी सुन्दर पवित्रता थी की नींद में से उठते ही मै शुद्ध-बुद्ध चैतन्य परम पवित्र आत्मा हूँ ऐसा चिन्तन करते थे, तुम कर सकते हो,
२२वाँ गुण था आत्मसंयमी थे जंहा देखना है देखा नजर हटायी तो हटायी,ग्वाल और गोपियों का प्रेम था तब था जब मथुरा आये तो फिर मुड़कर देखा नही |
२३वीं श्रीकृष्ण की महानता थी स्थिर बुद्धि थे और २४वीं श्रीकृष्ण की सहज सहनशीलता थी शिशुपाल ने एक गाली नही, दो दी, १०, २०,२५ श्रीकृष्ण उद्धिग्न नही हुए, ६० और ७० गालिया दी लेकिन श्रीकृष्ण सहनशीलता में, फिर आखिरी में सुदर्शन छोड़ा और उसकी सदगति कर डाली | जो गालियाँ देता है उसकी सदगति करना कितनी सहनशीलता है, जो जहर पिलाती है पुतना उसकी सदगति करना कितनी सहनशीलता है, हम कितने भाग्यशाली है की हमारा ऐसा गोड है |
२५वाँ श्रीकृष्णजी का गुण था क्षमाशील थे, २६वीं थी श्रीकृष्ण गंभीर थे, हंसने के समय हँसना और रहस्य समझने में श्रीकृष्ण बड़े गंभीर थे कहाँ कौन सी बात बताना और किस बात से किस का हित होना यह बात श्रीकृष्ण जानते थे | यह गंभीरता श्रीकृष्ण में थी आप भी यह गंभीरता ला सकते है |
२७वाँ गुण था श्रीकृष्ण में धैर्यवान थे आपत्ति काल में आप धैर्यवान रहे, आपति काल में आप धर्म निष्ठ रहे, श्रीकृष्ण का यह सदगुण आप विकसित कर सकते है | २८वाँ गुण था समदृष्टी थे, २९वाँ गुण था श्रीकृष्ण उदार आत्मा थे, दान पुण्य करने में संकोच नही करते थे, क्षमा करने में संकोच नही करते थे किसी को मदद करने में देर नही करते थे |
३०वाँ गुण था श्रीकृष्ण धार्मिक थे सामर्थ्य है तो मनमाना नही करते, शास्त्र मर्यादा के अनुसार, श्रीकृष्ण समर्थ है चतुर्भुजी हो जाते है, दो भुजी हो जाते है, आकाश में खड़े हो जाते है आद्रश्य हो जाते है फिर भी धर्म की मर्यादा नही भूलते है | मेरा आर्डर है तू युद्ध कर, नही उपनिषिदो में ऐसा लिखा है धर्म ऐसा बोलता है अध्यातम किं उच्चते, आदिदेविकं च किं, आदिभोतिकं चं किं, अध्यातम क्या है? आधिभोतिक क्या है? तू जनता नही है अर्जुन |
श्रीकृष्ण को उपनिषदों का ज्ञान देना पड़ा अर्जुन को, अपनी तरफ से आर्डर नही करते,धार्मिक थे, धर्म का उपदेश दिया वो गीता बन गई |
३१वाँ सदगुण था श्रीकृष्ण शूरवीर थे और ३२वाँ था करुणा और ३३वाँ गुण आप ला सकते हो अमानी थे
लोग हमको मान दे, थैंक्स दे, आप दुसरो को मान दे वो मान दे ना दे वो रिस्पेक्ट दे ना दे आप रिस्पेक्ट दो, ३४वाँ श्रीकृष्ण के अन्दर गुण था विनीत थे और ३५वाँ गुण था श्रीकृष्ण उदारआत्मा थे, ३६वाँ गुण था लज्जावान थे नक्कटे नहीं थे गुरु के आगे संकोच से बेठते थे | ३७वाँ गुण था शरणागत रक्षक थे, ३८वाँ गुण था श्रीकृष्ण सुखी रहते थे, दुसरो को हैप्पी कर देते थे, ३९वाँ गुण था श्रीकृष्ण हितेषी थे किसी से कोई मतलब नहीं, उनका हित चाहे कंस हो, चाहे पूतना हो, चाहे शूर्पनखा हो, रामजी और कृष्णजी हित ही हित चाहते है |  आप भी दुसरो का हित चाहोगे तो, कृष्ण तत्व तो आप का आत्मा है आप कृष्ण से अलग नहीं है, श्री कृष्ण के आत्मा से आपका आत्मा अलग नही है, आप उन गुणों को विकसित करो तो साक्षात कृष्ण अवतार हो जाओगे, ४०वाँ श्रीकृष्ण का गुण था प्रेम वशीभूत थे निर्दोष प्रेम को बड़ा महत्व देते थे |
४२वाँ गुण था मंगलमय थे परम प्रतापी थे, ४३वाँ गुण था यशश्वी थे आप भी यह गुण विकसित कर सकते होगे तो यशश्वी हो जाओगे | बापू के लिए अपयश करने वाले बेचारे मीडिया वाले और 62 करोड़ रूपये धर्मान्तर करने वालो ने खर्च किया लेकिन बापू का अपयश करने में विफल हो गये, यश और बढ़ गया, गांधीजी का अपयश करने में अंग्रेजो ने खूब जोर मारा लेकिन गाँधीजी का यश बड़ा, गाँधीजी ने कृष्ण के गुण विकसित किये, रामजी ने गुण विकसित किये तो तुम भी विकसित कर सकते हो | कर सकते हो ना ??
श्रीकृष्ण की यशश्वी सदगुण के साथ लोकप्रियता भी बहुत थी और भक्तवत्सलता भी बहुत थी,
४६वाँ  गुण था श्रीकृष्ण चित्तचोर थे, किसी के आँखों में दाल दी की जोगी रे हम तो लुट गये तेरे प्यार में |
और ४७वाँ सदगुण था आराध्य थे, ४८वाँ श्री कृष्ण का गुण था ऐश्वर्य युक्त थे, ऐश्वर्य युक्त और वैराग्य युक्त, दोनों विरोधी है जिसमे वैराग्य होता है तो फक्कड़ होता है ऐश्वर्य होता है तो भोगी होता है श्री कृष्ण ऐश्वर्यवान भी है और वैराग्यवान भी है, द्वारिका डूब रही है वैराग्य है दुःख नहीं है | ५०वाँ श्री कृष्ण का गुण था की ईश्वर के जो ऐश्वर्य के गुण थे उनमे थे और ५१वाँ गुण था श्रीकृष्ण एक स्वरूप थे, एक स्वरूव सभी का है और श्रीकृष्ण उसी में टिके रहते थे, ५२वाँ गुण था सर्वज्ञ थे और ५३वाँ गुण था नित्य नूतन और ५४वाँ गुण था श्रीकृष्ण सचिदानन्द थे अपने को सत मानते थे सदा है शरीर के बाद भी, अपने को चेतन मानते थे की बुद्धि में मेरा प्रकाश है, अपने को आन्नदित मानते, तो आप भी वास्तव में सचिदानन्द हो, मै, आप और श्रीकृष्ण सभी सचिदानंद है लेकिन श्री कृष्ण जानते थे और आपको जानने के लिए कमर कसनी है |
५५वाँ श्री कृष्ण का गुण था सिद्धियों के द्वारा सेवित थे, ५६वाँ गुण था शक्ति से युक्त थे और ५७वाँ गुण था विग्र ब्रह्माण्ड प्रकट कर सकते थे, ५८वाँ था अवतारों के स्तोत्र थे जंहा से अवतार प्रकट होते है उसी आत्मा मै टिकने वाले स्तोत्र थे | ५९वाँ गुण था मुक्तिदाता थे, चिंता से मुक्ति, भय से मुक्ति, रोग से मुक्ति, शोक से मुक्ति, अहंकार से मुक्ति और जन्म मरण से भी मुक्ति देने में भी श्री कृष्ण दाता थे जो ब्रम्हज्ञानी गुरुओ का शिष्य होते है और भक्त होता है तो साधक ने थोड़ी अधुरी-अधुरी साधना की होती है आखिर में फिर गुरु उनको मुक्त आत्मा बना देते थे | अपना वीटो पॉवर, अपने संकल्प से.. तो इस प्रकार का गुरुतत्व भी श्रीकृष्ण में मुक्ति दाता का सदगुण भी था | ६०वाँ श्रीकृष्ण का गुण था आकर्षित करने वाले थे और आप भी ॐ आनंद, ॐ माधुर्य,  ॐ शांति, करके अंतर आत्मा में तृप्त रहोगे तो तुम भी इम्प्रेसिवे हो जाओगे, तुम बनो इम्प्रेसिवे, तुम्हारे बाप का क्या जाता है, जैसे बापु चिंतन करते, श्रीकृष्ण चिंतन करते थे वैसा करो बस |
६१वाँ गुण था चमत्कारी थे, ६२वाँ गुण था भक्तो से विभूषित थे जो श्रीकृष्ण की शरण आ जाते है अथवा कृष्ण को देख लेते थे वो उनके भक्त बन जाते है |
६३वाँ उनकी मुरली, और वादय तो मारने पीटने से बजते थे, ढोल है नगाड़ा है मारने पीटने से बजते है पर बंसी तो श्रीकृष्ण अपने प्राण फूंकते थे और मीठी निगाहे डालते थे तो श्री कृष्ण की मुरली चित्त हरने वाली थी |
६४वाँ गुण था जिनके तुल्य कोई रूपवान नहीं था ऐसे रूप के धनी थे, प्रपन्न होना, प्रपन्न होना माने उनकी शरण होने, पांव पकड़ लेना |
कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी, हे नाथ नारायण वासुदेवाय, वासुदेवा, प्रीतिदेवा, प्यारे देवा, मेरे देवा |
वो अंतरात्मा तुम्हारा कृष्ण है भगवान परे नहीं पराये नहीं है | इश्वरो सर्व भूतानां हर्दयशे अर्जुन तिष्ठति, जहाँ से 64 गुण खुले है वो तुम्हारा अंतरात्मा अभी तुम में है ॐ शांति ॐ आनंद…
श्रीकृष्ण का एक नाम गुरु भी है | भगवान विष्णु हजार नामो में एक नाम गुरु भी है | सहनशक्ति तो कैसी तुकाराम बोलते है कि हे कृष्ण, हे पांडुरंग मई तुमको गाली देने वाला हूँ कान खोल कर सुन लो, अगर इधर गये हुए हो, नाचने गये हो तो आ जाओ, कृष्ण की मूर्ति को देखकर बोलते है कंही बाहर गये हो तो आ जाओ मूर्ति में और खाली धमकी नहीं दी, गाली दे डाली, माझा पांडुरंगा तुम्ही भारवाही बैल हो बैल, श्री कृष्ण हंसने लगे हे माझा विट्ठाला मै तुमको गाली देने वाला हूँ ह्रदय में तो प्यार था मै गाली सुनाउंगा, तुम बैल हो भार ढोने वाले | पहले के ज़माने में यह टेक्टर ट्रोलिया नहीं थी गधो पर और बैल पर luggage लेकर जाते थे | तो भगवान को बोला तुम बैल हो और कृष्ण आनंदित हो रहे है | वास्तव में आत्मा कृष्ण तो सब में है और दिखता तो गधा है एकनाथ ने देखा कि मै तो रामेश्वर भगवान को जल चढाने जाता हूँ, यह गधे के रूप मै भगवान रामेश्वर यहाँ प्यास से मर रहे है हे रामेश्वराय लो पियो, राजस्थान के प्यासे गधे के मुँह में पानी डाला, दिखता तो गधा है लेकिन शिवतत्व का ज्ञान, आनंद आ गया |
नामदेव को दिखता तो कुत्ता है, इंडिया में कैसे कैसे लोग हो गये, ड़ोग में से भगवान प्रकट कर देते है, डोंकी में से भगवान प्रकट कर देते है अरे पत्थर कि मूर्ति में से भगवान प्रकट कर देते है गुरु में से भगवान प्रकट करना तो बहुत सरल है, very easy ,very easy.
अखंडानन्द जी के गुरु, अखंडानन्द जी उनकी सेवा में थे | गुरूजी बोलते थे आज हमारे गुरूजी फोटो, चित्र में से निकल कर आये, आज गुरूजी प्रसन्न थे, आज गुरूजी नाराज थे, फोट तो वही का वही और तुम भी experience कर सकते हो, जब गधे में से भगवान प्रकट हो सकता है पत्थर में से, शालीग्राम में से भगवान प्रकट हो सकते है तो भगवान की मूर्ति से भगवान प्रकट हो सकता है, भगवान की मूर्ति तो आर्टिस्ट ने बनायीं, शिल्पियों ने बनायीं पर गुरु का फोटो तो सीधा है काल्पनिक नहीं है ज्यूँ का त्यूं लिया हुआ है |
ध्यान मुलं गुरु मूर्ति पूजा मुलं गुरु पदम |
एकलव्य ने मिटटी की मूर्ति में से ज्ञान प्रकट करके अर्जुन को पीछे कर दिया |
भगवान की भक्ति, गुरु का ज्ञान का बोझा उठा उठा कर लोगो तक पहुँचाने वाले बैल, शिवजी को उठाते है नंदी, पूजे जाते है शिवजी का पूजन बाद में होता है पहले नंदी का होता है | ऐसे गुरु को तो थैंक्स बाद में करते है पर गुरु भक्तो को लोग थैंक्स करते है |
यह सत्संग वास्तव में सत्य में विश्रांति दिला देगा | खाली सत्संग को बार बार सुनते जाये, कैसेट को भरते जाये और ध्यान में डूबते जाए, एक एक गुण अपने आत्मसात करते जाए, तो कृष्ण दूर नहीं, दुर्लभ नहीं, परे नहीं, पराये नहीं |
एक खतरा है कृष्ण की आकृति देखने का अथवा गुरु की आकृति देखने का आग्रह मत रखो, गुरूजी दिखे कृष्ण जी दिखे तो दिखे, ना दिखे तो भी गुरु और कृष्ण एक चैतन्य सत्ता है जो तुम्हारा आत्मा है इसिलिये आप दिखे तो भी ठीक है गुरूजी या कृष्णजी ध्यान में, नहीं दीखते तो भी उनके गुणों के द्वारा, आप का गुरुतत्व, कृष्णतत्व इसमे, एक ही है |
ऐसा दिव्य ज्ञान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दे डाला तो तुम्हारा को थोड़ी संकोच कर रहे है हम |
नहीं जानते है तो जीव है और जान गये तो वही ब्रम्ह है | तरंग अपने को पानी नहीं जानता है तो तरंग है और पानी जान लिया तो समुन्द्र है, बुलबुला अपने को पानी नहीं जानता तो छोटा सा, शुद्र है | बहुत बहुत छोटा है बहुत बहुत बहुत, अणु है लेकिन जान ले अपने को पानी तो बहुत बड़ा है बहुत बहुत बड़ा है | जीव अपने को नहीं जानता है तो बहुत छोटा है, बहुत छोटा, जीरो से जीरो, जीरो से जीरो दिखता भी नही, मरता है तो दिखता भी नही इतना छोटा पर अपने को ब्रम्ह जान ले तो बड़ा है सब वही रूप है बहुत बड़ा है |
नारायण हरि, बस, हैप्पी जन्माष्टमी हरी ॐ हरी ॐ…
इ लव यू नही यू लव मी… हम भगवान को क्या प्रेम करेगे, भगवान हमको प्रेम कर रहे है, गोड़ लव अस, गुरु लव अस… हरी ॐ हरी ॐ…
मुझे तो लगता है की मै कृष्ण से अलग नही हो सकता और श्रीकृष्ण मेरे से अलग नही हो सकते, उनकी ताकत नही की मेरे से अलग जाएँ और मेरी ताकत नही उनसे अलग हो जाऊ, समझ गये.. हैप्पी जन्माष्टमी |

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हिन्दू धर्म


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जयदुर्गा
महिषमर्दिनी
यशोरेश्वरी
फुल्लरा
नंदिनी
इंद्राक्षी

द्वादश ज्योतिर्लिंग

सोमनाथ
द्वारका
महाकालेश्वर
श्रीशैल
भीमाशंकर
ॐकारेश्वर
केदारनाथ
विश्वनाथ
त्र्यंबकेश्वर
रामेश्वरम
घृष्णेश्वर
बैद्यनाथ

सप्त पुरियां

काशी
मथुरा
अयोध्या
द्वारका
माया
कांची
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राजा मानसिंह


N S Shekhawat राजा मानसिंह ने अपने जीवनकाल में कई मंदिरों का निर्माण, कईयों का जीर्णोद्धार व कई मंदिरों के रख रखाव की व्यवस्था कर सनातन के प्रचार प्रसार में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई| यही नहीं राजा मानसिंह ने सनातन मंदिरों के लिए अकबर के खजाने का भरपूर उपयोग किया और दिल खोलकर अकबर के राज्य की भूमि मंदिरों को दान में दी| बनारस में राजा मानसिंह ने मंदिर व घाट के निर्माण पर अपने एक लाख रूपये के साथ अकबर के खजाने से दस लाख रूपये खर्च कर दिए थे, जिसकी शिकायत जहाँगीर ने अकबर से की थी, पर अकबर ने उसकी शिकायत को अनसुना कर मानसिंह का समर्थन किया|

राजा मानसिंह ने अपने राज्य आमेर के साथ साथ बिहार, बंगाल और देश के अन्य स्थानों पर कई मंदिर बनवाये| पटना जिले बरह उपखण्ड के बैंकटपुर में राजा मानसिंह ने एक शिव मंदिर बनवाया और उसके रखरखाव की समुचित व्यवस्था की जिसका फरमान आज भी मुख्य पुजारी के पास उपलब्ध है| इसी तरह गया के मानपुर में भी राजा ने एक सुन्दर शिव मंदिर का निर्माण कराया, जिसे स्वामी नीलकंठ मंदिर के नाम से जाना जाता है| इस मंदिर में विष्णु, सूर्य, गणेश और शक्ति की प्रतिमाएं भी स्थापित की गई थी| मि. बेगलर ने बंगाल प्रान्त की सर्वेक्षण यात्रा 1872-73 की अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया है कि- “राजा मानसिंह ने बड़ी संख्या में मंदिर बनाये और पुरानों का जीर्णोद्धार करवाया| ये मंदिर आज भी बिहार में बंगाल के उपखंडों में विद्यमान है| रोहतास किले में भी राजा मानसिंह द्वारा मंदिर बनवाये गए थे|

मथुरा के तत्कालीन छ: गुंसाईयों में से एक रघुनाथ भट्ट के अनुरोध पर राजा मानसिंह ने वृन्दावन में गोविन्ददेव का मंदिर बनवाया था|

आमेर के किले शिलादेवी का मंदिर भी राजा मानसिंह की ही देन है| शिलादेवी की प्रतिमा राजा मानसिंह बंगाल में केदार के राजा से प्राप्त कर आमेर लाये थे| परम्पराएं इस बात की तस्दीक करती है कि राजा मानसिंह ने हनुमान जी की मूर्ति को और सांगा बाबा की मूर्ति को क्रमश: चांदपोल और सांगानेर में स्थापित करवाया था| आज भी लोक गीतों में गूंजता है-

आमेर की शिलादेवी, सांगानेर को सांगा बाबो ल्यायो राजा मान|

आमेर में जगत शिरोमणी मंदिर का निर्माण कर उसमें राधा और गिरधर गोपाल की प्रतिमाएं भी राजा मानसिंह द्वारा स्थापित करवाई हुई है|
मंदिर निर्माणों के यह तो कुछ ज्ञात व इतिहास में दर्ज कुछ उदाहरण मात्र है, जबकि राजा मानसिंह ने सनातन धर्म के अनुयायियों हेतु पूजा अर्चना के के कई छोड़े बड़े असंख्य मंदिरों का निर्माण कराया, पुराने मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया और कई मंदिरों के रखरखाव की व्यवस्था करवाकर एक तरह से सनातन धर्म के प्रसार में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई|

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कुलधरा गाँव


कुलधरा गाँव – ब्राह्मणों के क्रोध का प्रतीक जहां आज भी लोग जाने से डरते हैं।
राजस्थान के जैसलमेर शहर से 18 किमी दूर स्थित कुलधरा गाव आज से 500 साल पहले 600 घरो और 85 गावो का पालीवाल ब्रह्मिनो का साम्राज्य ऐसा राज्य था जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है,
रेगिस्तान के बंजर धोरो में पानी नहीं मिलता वहा पालीवाल ब्रह्मिनो ने ऐसा चमत्कार किया जो इंसानी दिमाग से बहुत परे थी,
उन्होंने जमीन पे उपलब्ध पानी का प्रयोग नहीं किया,न बारिश के पानी को संग्रहित किया बल्कि रेगिस्तान के मिटटी में मोजूद पानी के कण को खोजा और अपना गाव जिप्सम की सतह के ऊपर बनाया,उन्होंने उस समय जिप्सम की जमीन खोजी ताकि बारिश का पानी जमीन सोखे नहीं,
और आवाज के लिए गाव ऐसा बंसाया की दूर से अगर दुश्मन आये तो उसकी आवाज उससे 4 गुना पहले गाव के भीतर आ जाती थी.
हर घर के बीच में आवाज का ऐसा मेल था जेसे आज के समय में टेलीफोन होते हे,
जैसलमेर के दीवान और राजा को ये बात हजम नहीं हुई की ब्राह्मण इतने आधुनिक तरीके से खेती करके अपना जीवन यापन कर सकते हे तो उन्होंने खेती पर कर लगा दिया पर पालीवाल ब्रह्मिनो ने कर देने से मना कर दिया,
उसके बाद दीवान सलीम सिंह को गाव के मुखिया की बेटी पसंद आ गयी तो उसने कह दिया या तो बेटी दीवान को दे दो या सजा भुगतने के लिए तयार रहे,
ब्रह्मिनो को अपने आत्मसम्मान से समझोता बिलकुल बर्दास्त नहीं था इसलिए रातो रात 85 गावो की एक महापंच्यात बेठी और निर्णय हुआ की रातो रात कुलधरा खाली करके वो चले जायेंगे,
रातो रात 85 गाव के ब्राह्मण कहा गए केसे गए और कब गए इस चीज का पता आजतक नहीं लगा.पर जाते जाते पालीवाल ब्राह्मण शाप दे गए की ये कुलधरा हमेसा वीरान रहेगा इस जमीन पे कोई फिर से आके नहीं बस पायेगा,

आज भी जैसलमेर में जो तापमान रहता हे गर्मी हो या सर्दी,कुलधरा गाव में आते ही तापमान में 4 डिग्री की बढ़ोतरी हो जाती हे.विज्ञानिको की टीम जब पहुची तो उनके मशीनो में आवाज और तरगो की रिकॉर्डिंग हुई जिससे ये पता चलता हे की कुलधरा में आज भी कुछ शक्तिया मोजूद हे जो इस गाव में किसी को रहने नहीं देती.मशीनो में रिकॉर्ड तरंग ये बताती हे की वहा मोजूद शक्तिया कुछ संकेत देती हे,
आज भी कुलधरा गाव की सीमा में आते हे मोबाइल नेटवर्क और रेडियो कम करना बंद कर देते हे पर जेसे ही गाव की सीमा से बाहर आते हे मोबाइल और रेडियो शुरू हो जाते हे,

आज भी कुलधरा शाम होते ही खाली हो जाता हे और कोई इन्सान वहा जाने की हिम्मत नहीं करता.जैसलमेर जब भी जाना हो तो कुलधरा जरुर जाए.
ब्राह्मण के क्रोध और आत्मसम्मान का प्रतीक है, कुलधरा ।

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आरक्षण और शोषण – Sanjay Dwivedy


आरक्षण और शोषण
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शिक्षा और सरकारी रोजगार के क्षेत्र में सवर्णों के लिए शून्य प्रतिशत सीटें हैं ,चौकिये नहीं , यह सच्चाई है। इस देश में किसी भी सरकारी महकमें में सवर्ण को तभी तक प्रवेश मिल रहा हैं जब तक वो सबसे ज्यादा नंबर ला रहे हैं । जब कभी भी कोई आरक्षित श्रेणी का व्यक्ति सवर्ण के बराबर या सवर्ण से ज्यादा नंबर प्राप्त करता हैं तो वह सवर्ण/सामान्य श्रेणी के कोटे से चुना जाता हैं न की आरक्षित श्रेणी से । मतलब ये की सामान्य वर्ग के लिए इस देश में कोई सीट नहीं है।

मान लीजिये किसी नौकरी के लिए 100 सीटें निकली । भारत के आरक्षण के हिसाब से 50 सीटें आरक्षित होगी और 50 सामान्य कोटे की होगी । अब परीक्षा के बाद मान लीजिये सामान्य वर्ग का कटऑफ 90 नंबर , OBC का कटऑफ 70 नंबर , SC का 40 नंबर और ST का 30 नंबर बनता हैं ।

असली शोषण का खेल अब शुरू होता है । 50 सीटों पर आरक्षित वर्ग के वे लोग चयनित होंगे जिनके नंबर 90 से कम होंगे । बाकी बचे 50 सीटों पर उन लोगो को लिया जायेगा जिनके नंबर 90 या ज्यादा होंगे लेकिन वरीयता पहले आरक्षित वर्ग के लोगो को मिलेगी । मतलब अगर आरक्षित श्रेणी के 50 लोग 90 या उससे ज्यादा नंबर लाते हैं तो सामान्य वर्ग से किसी का चयन नहीं होगा ।

सामान्य वर्ग को वही मिलता हैं जिसे आरक्षित वर्ग छोड़ देता हैं । कानून 50% बस कहने का हैं आज 80 से 90 % तक सीटें आरक्षित लोगो को मिल रही हैं ।

इस देश में सवर्णों को दोयम दर्जे की भी नागरिकता नहीं हैं । इस देश की कानून और सरकार सबसे ज्यादा जुल्म और शोषण सवर्ण का कर रही हैं । अगर विश्वास न हो तो किसी भी परीक्षा का परिणाम जातिगत आधार पर RTI डाल कर निकलवा ले ।

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

सोया भाग्य – Laxmi Kant Varshney


सोया भाग्य
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एक व्यक्ति जीवन से हर प्रकार से निराश था । लोग उसे मनहूस के नाम से बुलाते थे ।
एक ज्ञानी पंडित ने उसे बताया कि तेरा भाग्य फलां पर्वत पर सोया हुआ है , तू उसे जाकर जगा ले तो भाग्य तेरे साथ हो जाएगा । बस ! फिर क्या था वो चल पड़ा अपना सोया भाग्य जगाने ।
रास्ते में जंगल पड़ा तो एक शेर उसे खाने को लपका , वो बोला भाई ! मुझे मत खाओ , मैं अपना सोया भाग्य जगाने जा रहा हूँ ।
शेर ने कहा कि तुम्हारा भाग्य जाग जाये तो मेरी एक समस्या है , उसका समाधान पूछते लाना । मेरी समस्या ये है कि मैं कितना भी खाऊं … मेरा पेट भरता ही नहीं है , हर समय पेट भूख की ज्वाला से जलता रहता है ।*
मनहूस ने कहा– ठीक है । आगे जाने पर एक किसान के घर उसने रात बिताई । बातों बातों में पता चलने पर कि वो अपना सोया भाग्य जगाने जा रहा है ,
किसान ने कहा कि मेरा भी एक सवाल है .. अपने भाग्य से पूछकर उसका समाधान लेते आना … मेरे खेत में , मैं कितनी भी मेहनत कर लूँ . पैदावार अच्छी होती ही नहीं । मेरी शादी योग्य एक कन्या है, उसका विवाह इन परिस्थितियों में मैं कैसे कर पाऊंगा ?

मनहूस बोला — ठीक है । और आगे जाने पर वो एक राजा के घर मेहमान बना । रात्री भोज के उपरान्त राजा ने ये जानने पर कि वो अपने भाग्य को जगाने जा रहा है , उससे कहा कि मेरी परेशानी का हल भी अपने भाग्य से पूछते आना । मेरी परेशानी ये है कि कितनी भी समझदारी से राज्य चलाऊं… मेरे राज्य में अराजकता का बोलबाला ही बना रहता है ।
.
मनहूस ने उससे भी कहा — ठीक है । अब वो पर्वत के पास पहुँच चुका था । वहां पर उसने अपने सोये भाग्य को झिंझोड़ कर जगाया— उठो ! उठो ! मैं तुम्हें जगाने आया हूँ । उसके भाग्य ने एक अंगडाई ली और उसके साथ चल दिया ।
उसका भाग्य बोला — अब मैं तुम्हारे साथ हरदम रहूँगा ।
अब वो मनहूस न रह गया था बल्कि भाग्यशाली व्यक्ति बन गया था और अपने भाग्य की बदौलत वो सारे सवालों के जवाब जानता था ।
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वापसी यात्रा में वो उसी राजा का मेहमान बना और राजा की परेशानी का हल बताते हुए वो बोला — चूँकि तुम एक स्त्री हो और पुरुष वेश में रहकर राज – काज संभालती हो , इसीलिए राज्य में अराजकता का बोलबाला है । तुम किसी योग्य पुरुष के साथ विवाह कर लो , दोनों मिलकर राज्य भार संभालो तो तुम्हारे राज्य में शांति स्थापित हो जाएगी ।
.
रानी बोली — तुम्हीं मुझ से ब्याह कर लो और यहीं रह जाओ ।
भाग्यशाली बन चुका वो मनहूस इन्कार करते हुए बोला — नहीं नहीं ! मेरा तो भाग्य जाग चुका है । तुम किसी और से विवाह कर लो । तब रानी ने अपने मंत्री से विवाह किया और सुखपूर्वक राज्य चलाने लगी |
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कुछ दिन राजकीय मेहमान बनने के बाद उसने वहां से विदा ली ।
चलते चलते वो किसान के घर पहुंचा और उसके सवाल के जवाब में बताया कि तुम्हारे खेत में सात कलश हीरे जवाहरात के गड़े हैं , उस खजाने को निकाल लेने पर तुम्हारी जमीन उपजाऊ हो जाएगी और उस धन से तुम अपनी बेटी का ब्याह भी धूमधाम से कर सकोगे ।
किसान ने अनुग्रहित होते हुए उससे कहा कि मैं तुम्हारा शुक्रगुजार हूँ , तुम ही मेरी बेटी के साथ ब्याह कर लो ।पर भाग्यशाली बन चुका वह व्यक्ति बोला कि नहीं !नहीं ! मेरा तो भाग्योदय हो चुका है , तुम कहीं और अपनी सुन्दर कन्या का विवाह करो । किसान ने उचित वर देखकर अपनी कन्या का विवाह किया और सुखपूर्वक रहने लगा ।
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कुछ दिन किसान की मेहमाननवाजी भोगने के बाद वो जंगल में पहुंचा और शेर से उसकी समस्या के समाधानस्वरुप कहा कि यदि तुम किसी बड़े मूर्ख को खा लोगे तो तुम्हारी ये क्षुधा शांत हो जाएगी ।

शेर ने उसकी बड़ी आवभगत की और यात्रा का पूरा हाल जाना । सारी बात पता चलने के बाद शेर ने कहा कि भाग्योदय होने के बाद इतने अच्छे और बड़े दो मौके गंवाने वाले ऐ इंसान ! तुझसे बड़ा मूर्ख और कौन होगा ? तुझे खाकर ही मेरी भूख शांत होगी और इस तरह वो इंसान शेर का शिकार बनकर मृत्यु को प्राप्त हुआ ।
यदि आपके पास सही मौका परखने का विवेक और अवसर को पकड़ लेने का ज्ञान नहीं है तो भाग्य भी आपके साथ आकर आपका कुछ भला नहीं कर सकता है।

Posted in ज्योतिष - Astrology

राशी वालों को हमेशा दान अपनी कुंडली के अनुसार ही करना चाहिए


राशी वालों को हमेशा दान अपनी
कुंडली के अनुसार ही करना चाहिए ..
दान – हमारी भारतीय संस्कृति
की एक महत्वपूरण प्रथा .. जो युगों युगों से
चलती आ रही है ..
कहा जाता है कि हम अपनी नेक कमाई में से दसवा
हिस्सा जिसको दसवंध कहते हैं .. जरुर निकालें .. ता कि जो लोग
गरीबी और भुखमरी में रह
रहे हैं उनको अन्न की प्राप्ति हो सके ..
पर कई बार इस भलाई के काम में किसी का नुक्सान
भी हो जाता है …
हम कई बार उन का दान कर जाते हैं जो हमारी
कुंडली के हिसाब से योगकारी
होती हैं .. और जब हम उन का दान करते हैं तो
हमें कोई न कोई नुक्सान होने लगता है .. जिसका दोष हम दान
विध को देते हैं .. और इस के कारण हमारा दान से विशवास उठ
जाता है ..
हमेशा अपनी कुंडली के हिसाब से
ही दान करना चाहिए ..
दान के बारे में बहुत ज्यादा भ्रान्ति है की दान कहाँ
करें ?
कई पूछते हैं की क्या मंदिर या गुरुदुआरे में दान करें
..??
क्या भगवन के आगे चरणों में रखें ??
पर दोस्तों .. दान का अर्थ है अपने से नीचे दर्जे के
लोगो में चीज को बांटना .. किसी
गरीब को देना .. किसी लंगर में डालना ता कि
किसी गरीब के मुह वो चीज
लग जाये ..
भगवान् के आगे चरणों में राखी चीज दान
नहीं कहलाती ..”” वो तो भेंट
होती है “”
जैसे —
मेष , सिंह , वृश्चिक राशी -वाले कभी
भी पीली चीज का
दान न करें .. जैसे चने की दाल , हल्दी ,
गुड , शक्कर इत्यादि ..
ये लोग सिर्फ काले माह { उड़द } , चाय पत्ती ,
काली मिर्च का दान कर सकते हैं ..
वृष और तुला राशी वाले { जिनका स्वामी
शुक्र है } अगर देसी घी की
जोत घर में जलाते हैं तो उनकी गृहस्थी में
कटुता आ सकती है और घर से लक्ष्मी
का वास ख़तम हो सकता है .. ये लोग गुड , चने की
दाल , हल्दी इत्यादि का दान कर सकते हैं ..
कर्क राशी वाले { जिनका स्वामी चंद्रमा
है } अगर दूध का दान करेंगे तो उनकी सेहत में
खराबी आ सकती है .
.
कन्या राशी और मिथुन राशी वाले { जिनका
स्वामी बुध है } अगर गाय को हरा चारा डालते हैं तो
उनका व्योपार ख़तम हो सकता है और उनके अपने पिता के साथ
सम्बन्ध बिगड़ सकते हैं ..
मकर और कुम्भ राशी वाले कभी
काली चीज का दान न करें ..
कभी काले माह { उड़द } किसी
गरीब को न दे .. ये सिर्फ चने की दाल
लंगर में या गरीब को दे सकते हैं ..
धनु मीन राशी वाले { जिनका
स्वामी ब्रहस्पति है } अगर चने की
दाल किसी लंगर में दान करेंगे तो उनकी खुद
की सेहत और उनकी माता की
सेहत खराब हो सकती है …ये लोग सिर्फ काले माह
{ उड़द } , चाय पत्ती , काली मिर्च का दान
कर सकते हैं ..
इसी तरह बारह की बारह
राशी वालों को हमेशा दान अपनी
कुंडली के अनुसार ही करना चाहिए .