Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

कौन छोटा कौन बड़ा


कौन छोटा कौन बड़ा

शंकर के जीवन में उल्लेख है कि शंकर सुबह-सुबह नहाकर ब्रह्ममुहूर्त में काशी के गंगा-घाट पर सीढ़ियां चढ़ रहे हैं, कि एक शूद्र ने उन्हें छू लिया। क्रुद्ध हो गए, कहा कि देखकर नहीं चलते हो? मुझ ब्राह्मण को छू लिया! अब मुझे फिर स्नान करने जाना पड़ेगा।

शूद्र ने जो कहा, लगता है जैसे स्वयं परमात्मा शूद्र के रूप में आकर शंकर को जगाया होगा।

शूद्र ने कहा: एक बात पूछूँ ? तुम तो अद्वैत की बात करते हो — एक ही परमात्मा है, दूसरा है ही नहीं। तो तुम अलग, मैं अलग ? शंकर ठिठके होंगे।

आकर हारना पड़ेगा इस शूद्र से, यह कभी सोचा भी न होगा। मगर बात तो चोट की थी।

सुबह के उस सन्नाटे में, एकांत घाट पर, शंकर को कांटे की तरह चुभ गई। बात तो सच थी — अगर एक ही परमात्मा है, तो कौन शूद्र, कौन ब्राह्मण!

फिर उस शूद्र ने कहा: मेरे शरीर ने तुम्हें छुआ है, तो मेरे शरीर में और तुम्हारे शरीर में कुछ भेद है?

खून वही, मांस वही, हड्डी वही। तुम भी मिट्टी से बने, मैं भी मिट्टी से बना। मिट्टी मिट्टी को छुए, इसमें क्या अपवित्रता है ?

और अगर तुम सोचते कि मेरी आत्मा ने तुम्हारी आत्मा को छू लिया, तो क्या आत्मा भी पवित्र और अपवित्र होती है ?

कहानी कहती है, शंकर उसके चरणों पर झुक गए। इसके पहले कि उठें, शूद्र तिरोहित हो गया था। बहुत खोजा घाट पर, बहुत दौड़े, कुछ पता न चल सका।
जैसे परमात्मा ने ही शंकर को बोध दिया हो कि बहुत हो चुकी बकवास माया और ब्रह्म की, जागोगे कब ? शंकर की सब दिग्विजय व्यर्थ हो गई। और यह जो हार हुई शूद्र से, यही जीत बनी। इसी घटना ने उनके जीवन को रूपांतरित किया।

अब वे केवल दार्शनिक नहीं थे, अब केवल बात की ही बात न थी, अब जीवन में उनके एक नया अनुभव आया — नहीं कोई भिन्न है, न ही कोई भिन्न हो सकता है।

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आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतोऽदब्धासो अपरितासउद्भिदः।


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आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतोऽदब्धासो अपरितासउद्भिदः। देवा नो यथा सदमिद् वृधे असन्नप्रायुवो रक्षितारो दिवे दिवे॥

दवानां भद्रा सुमतिर्ऋजूयतां देवाना ग्वँग् रातिरभि नो निवर्तताम्। देवाना ग्वँग् सख्यमुपसेदिमा वयं देवा न आयुः प्रतिरन्तुजीवसे॥

तान् पूर्वया निविदाहूमहे वयं भगं मित्रमदितिं दक्षमस्रिधम्। अर्यमणं वरुण ग्वँग् सोममश्विना शृणुतंधिष्ण्या युवम्॥

तमीशानं जगतस्तस्थुषस्पतिं धियञ्जिन्वमसे हूसहे वयम्। पूषा नो यथा वेदसामसद् वृधे रक्षिता पायुरदब्धः स्वस्तये॥

स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्वेवेदाः। स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥

पृषदश्वा मरुतः पृश्निमातरः शुभं यावानो विदथेषु जग्मयः। अग्निजिह्वा मनवः सूरचक्षसो विश्वे नो देवा अवसागमन्निह॥

भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं फश्येमाक्षभिर्यजत्राः। स्थिरै रङ्गैस्तुष्टुवा ग्वँग् सस्तनू भिर्व्यशेमहि देवहितं यदायुः॥
शतमिन्नु शरदो अन्ति देवा यत्रा नश्चक्रा जरसं तनूनाम्। पुत्रासो यत्र पितरो भवन्ति मा नो मध्या रीरिषतायुर्गन्तोः॥

अदितिर्द्यौरदितिरन्तरिक्षमदितिर्माता म पिता स पुत्रः। विश्वे देवा अदितिः पञ्चजना अदितिर्जातमदितिर्जनित्वम्॥

द्यौः शान्तिरन्तरिक्ष ग्वँग् शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः। वनस्पतयः शान्तिर्विश्वे देवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः सर्व ग्वँग् शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि॥

यतो यतः समीहसे ततो नो अभयं कुरु। शन्नः कुरु प्रजाभ्योऽभयं नः पशुभ्यः॥ सुशान्तिर्भवतु॥”’वलिताक्षराणि

ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परा सुव यद् भद्रं तन्न आ सुव॥

ॐ गणानां त्वा गणपति ग्वँग् हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपति ग्वँग् हवामहे निधीनां त्वा निधीपति ग्वँग् हवामहे वसो मम। आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्॥

ॐ अम्बे अम्बिकेऽम्बालिके न मा नयति कश्चन। ससस्त्यश्वकः सुभद्रिकां काम्पीलवासिनीम्॥

 

आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतोऽदब्धासो अपरीतास उद्भिदः । देवा नो यथा सदमिद् वृधे असन्नप्रायुवो रक्षितारो दिवे-दिवे ॥ देवानां भद्रा सुमतिर्ऋजूयतां देवानां रातिरभि नो नि वर्तताम् । देवानां सख्यमुप सेदिमा वयं देवा न आयुः प्र तिरन्तु जीवसे ॥ तान् पूर्वया निविदा हूमहे वयं भगं मित्रमदितिं दक्षमस्रिधम् । अर्यमणं वरुणं सोममश्विना सरस्वती नः सुभगा मयस्करत् ॥ तन्नो वातो मयोभु वातु भेषजं तन्माता पृथिवी तत् पिता द्यौः । तद् ग्रावाणः सोमसुतो मयोभुवस्तदश्विना शृणुतं धिष्ण्या युवम् ॥ तमीशानं जगतस्तस्थुषस्पतिं धियंजिन्वमवसे हूमहे वयम् । पूषा नो यथा वेदसामसद् वृधे रक्षिता पायुरदब्धः स्वस्तये ॥ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पुषा विश्ववेदाः । स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥ पृषदश्वा मरुतः पृश्निमातरः शुभंयावानो विदथेषु जग्मयः । अग्निजिह्वा मनवः सूरचक्षसो विश्वे नो देवा अवसा गमन्निह ॥ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः । स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवांसस्तनूभिर्व्यशेम देवहितं यदायुः ॥ शतमिन्नु शरदो अन्ति देवा यत्रा नश्चक्रा जरसं तनूनाम । पुत्रासो यत्र पितरो भवन्ति मा नो मध्या रीरिषतायुर्गन्तोः ॥ अदितिर्द्यौरदितिरन्तरिक्षमदितिर्माता स पिता स पुत्रः । विश्वे देवा अदितिः पञ्च जना अदितिर्जातमदितिर्जनित्वम ॥ (ऋक॰१।८९।१-१०) कल्याणकारक, न दबनेवाले, पराभूत न होने वाले, उच्चता को पहुँचानेवाले शुभकर्म चारों ओर से हमारे पास आयें। प्रगति को न रोकने वाले, प्रतिदिन सुरक्षा करने वाले देव हमारा सदा संवर्धन करने वाले हों। सरल मार्ग से जाने वाले देवों की कल्याणकारक सुबुद्धि तथा देवों की उदारता हमें प्राप्त होती रहे। हम देवों की मित्रता प्राप्त करें, देव हमें दीर्घ आयु हमारे दीर्घ जीवन के लिये दें। उन देवों को प्राचीन मन्त्रों से हम बुलाते हैं। भग, मित्र, अदिति, दक्ष, विश्वास योग्य मरुतों के गण, अर्यमा, वरुण, सोम, अश्विनीकुमार, भाग्य युक्त सरस्वती हमें सुख दें। वायु उस सुखदायी औषध को हमारे पास बहायें। माता भूमि तथा पिता द्युलोक उस औषध को हमें दें। सोमरस निकालने वाले सुखकारी पत्थर वह औषध हमें दें। हे बुद्धिमान् अश्विदेवो तुम वह हमारा भाषण सुनो। स्थावर और जंगम के अधिपति बुद्धि को प्रेरणा देने वाले उस ईश्वर को हम अपनी सुरक्षा के लिये बुलाते हैं। इससे वह पोषणकर्ता देव हमारे ऐश्वर्य की समृद्धि करने वाला तथा सुरक्षा करने वाला हो, वह अपराजित देव हमारा कल्याण करे और संरक्षक हो। बहुत यशस्वी इन्द्र हमारा कल्याण करे, सर्वज्ञ पूषा हमारा कल्याण करे। जिसका रथचक्र अप्रतिहत चलता है, वह तार्क्ष्य हमारा कल्याण करे, बृहस्पति हमारा कल्याण करे। धब्बों वाले घोड़ों से युक्त, भूमि को माता मानने वाले, शुभ कर्म करने के लिये जाने वाले, युद्धों में पहुँचने वाले, अग्नि के समान तेजस्वी जिह्वावाले, मननशील, सूर्य के समान तेजस्वी मरुत् रुपी सब देव हमारे यहाँ अपनी सुरक्षा की शक्ति के साथ आयें। हे देवो कानों से हम कल्याणकारक भाषण सुनें। हे यज्ञ के योग्य देवों आँखों से हम कल्याणकारक वस्तु देखें। स्थिर सुदृढ़ अवयवों से युक्त शरीरों से हम तुम्हारी स्तुति करते हुए, जितनी हमारी आयु है, वहाँ तक हम देवों का हित ही करें। हे देवो सौ वर्ष तक ही हमारे आयुष्य की मर्यादा है, उसमें भी हमारे शरीरों का बुढ़ापा तुमने किया है तथा आज जो पुत्र हैं, वे ही आगे पिता होनेवाले हैं, सब देव, पञ्चजन (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और निषाद), जो बन चुका है और जो बनने वाला है, वह सब अदिति ही है। (अर्थात् यही शाश्चत सत्य है, जिसके तत्त्वदर्शन से परम कल्याण होता है)

 

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आरएसएस की प्रार्थना व उसका हिन्दी भाषा में अर्थ।


आरएसएस की प्रार्थना व उसका हिन्दी भाषा में अर्थ।

नमस्ते सदा वत्सले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रार्थना है। सम्पूर्ण प्रार्थना संस्कृत में है केवल इसकी अन्तिम पंक्ति (भारत माता की जय!) हिन्दी में है।

इस प्रार्थना की रचना नरहरि नारायण भिड़े[1] ने फरवरी १९३९ में की थी। इसे सर्वप्रथम २३ अप्रैल १९४० को पुणे के संघ शिक्षा वर्ग में गाया गया था। यादव राव जोशी ने इसे सुर प्रदान किया था।

नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे
त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोहम्।
महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे
पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते॥ १॥
प्रभो शक्तिमन् हिन्दुराष्ट्राङ्गभूता
इमे सादरं त्वां नमामो वयम्
त्वदीयाय कार्याय बध्दा कटीयम्
शुभामाशिषं देहि तत्पूर्तये।
अजय्यां च विश्वस्य देहीश शक्तिं
सुशीलं जगद्येन नम्रं भवेत्
श्रुतं चैव यत्कण्टकाकीर्ण मार्गं
स्वयं स्वीकृतं नः सुगं कारयेत्॥ २॥
समुत्कर्षनिःश्रेयस्यैकमुग्रं
परं साधनं नाम वीरव्रतम्
तदन्तः स्फुरत्वक्षया ध्येयनिष्ठा
हृदन्तः प्रजागर्तु तीव्रानिशम्।
विजेत्री च नः संहता कार्यशक्तिर्
विधायास्य धर्मस्य संरक्षणम्।
परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं
समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम्॥ ३॥
॥ भारत माता की जय ॥

प्रार्थना का हिन्दी में अर्थ:

हे वात्सल्यमयी मातृभूमि, तुम्हें सदा प्रणाम! इस
मातृभूमि ने हमें अपने बच्चों की तरह स्नेह और
ममता दी है। इस हिन्दू भूमि पर सुखपूर्वक मैं
बड़ा हुआ हूँ। यह भूमि महा मंगलमय और पुण्यभूमि है।
इस भूमि की रक्षा के लिए मैं यह नश्वर
शरीर मातृभूमि को अर्पण करते हुए इस भूमि को
बार-बार प्रणाम करता हूँ।
हे सर्व शक्तिमान परमेश्वर, इस हिन्दू राष्ट्र के घटक के
रूप में मैं तुमको सादर प्रणाम करता हूँ। आपके ही
कार्य के लिए हम कटिबद्ध हुवे है। हमें इस कार्य को पूरा
करने किये आशीर्वाद दे। हमें ऐसी
अजेय शक्ति दीजिये कि सारे विश्व मे हमे कोई न
जीत सकें और ऐसी नम्रता दें कि पूरा
विश्व हमारी विनयशीलता के सामने
नतमस्तक हो। यह रास्ता काटों से भरा है, इस कार्य को
हमने स्वयँ स्वीकार किया है और इसे सुगम कर
काँटों रहित करेंगे।
ऐसा उच्च आध्यात्मिक सुख और ऐसी महान
ऐहिक समृद्धि को प्राप्त करने का एकमात्र श्रेष्ट साधन उग्र
वीरव्रत की भावना हमारे अन्दर सदेव
जलती रहे। तीव्र और अखंड ध्येय
निष्ठा की भावना हमारे अंतःकरण में
जलती रहे। आपकी
असीम कृपा से हमारी यह
विजयशालिनी संघठित कार्यशक्ति हमारे धर्म का
सरंक्षण कर इस राष्ट्र को परम वैभव पर ले जाने में समर्थ
हो।
॥ भारत माता की जय॥

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नक्सलवाद


इसे जरूर पढ़े :- मेरा निवेदन
Writer :- Prashant Dave (7597954747)

नक्सलवाद :-50 साल:- भारत का बौद्धिक विनाश करने का असफल प्रयास,25 मई 1967 को हुई थी शुरूआत
दिनांक :-24/05/2017

राजस्थान पत्रिका के आज के अंश में नक्सलवाद को जड़ से जानने का हर किसी को मौका मिल सकता है। भारत में रहकर भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था का हिंसक विरोध ही नक्सलवाद (communalism) है। लेकिन इन सब कुकृत्यों को करने के लिए आम नागरिक की मानसिकता में किस तरह नकारात्मक परिवर्तन लाया गया होगा ये चिंता का विषय है। आज से ठीक 50 साल पहले जब ये चिंगारी उठी तब ये इतना भयंकर विनाश लाएगी ऐसा किसी ने नहीं सोचा था। नक्सलवाद को पैदा करने वाले दल का श्रेय Communist Party Of India (भारतीय वाम दल) को जाता है। अर्थात यह कहना उचित रहेगा कि भारत में नक्सली, भारतीय वाम दल (CPI) के कार्यकर्ता ही हैं। पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग के पास स्थित कस्बा “नक्सलबाड़ी” जहाँ नक्सलवाद शुरू हुआ तो उसका मकसद दमनकारी विचारधारा का विरोध करना था लेकिन कब ये मकसद स्वयं दमनकारी गतिविधियों का जनक हो जाएगा ये कालखंड की समझ से परे था। 24 मई 1967 को प्रशासन के दमनकारी रवैये के विरोध में झड़ूजोत ग्राम में गुस्साए ग्रामीणों ने पुलिस निरीक्षक सोनम वाग्दी की हत्या कर दी। जवाबी कार्यवाही में तथाकथित तौर पर पुलिस ने उस क्षेत्र के 11 ग्रामीणों जिनमें 8 महिलाएँ व 2 बच्चे थे को मौत के घाट उतार दिया, बस इसी चिंगारी ने विनाशकारी आग का रूप ले लिया। भारतीय वाम दल (CPI) के नेता चारू मजूमदार व कानू सान्याल ने चीनी वामपंथी माओत्से तुंग से प्रभावित होकर विद्रोह का अभियान छेड़ दिया। इस अभियान का प्रतीक लाल रंग के झंडे को बनाया गया,संदेश दिया गया कि दमनकारियों का रक्त बहा दो लेकिन इस दमन के विरोध की विचारधारा को सियासी रंग लेने में केवल 4 वर्ष लगे और 4 वर्ष के भीतर ही नक्सलवाद की इस विचारधारा में आंतरिक विद्रोह हो गया। और इस चिंगारी से कई चिंगारियां पैदा हुई जिन्होंने लक्ष्य को पूर्णतः तोड़कर दमन का दामन थाम लिया। भारत में इस विचारधारा के घिनौने रूप से 10 राज्य सीधे सीधे गंभीर रूप से प्रभावित हो गए। पं.बंगाल,छत्तीसगढ़,आंध्रप्रदेश,बिहार,झारखंड प्रमुखता से प्रभावित हुए। सबसे ज्यादा हमले नक्सलीयों द्वारा छत्तीसगढ़ में किए गए। 25 मई 2013 को नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष महेन्द्र सुकमा समेत 27 कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को मार डाला। 11 मई 2014 को महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में 7 जवानों को लाल बंदूक का निशाना बनाया गया। 30 मार्च 2016 को दंतेवाडा़ में नक्सलियों ने CRPF के 7 जवानों की हत्या की। इसी तरह हाल ही में नक्सलीयों ने 24 अप्रैल 2017 को 25 CRPF जवानों को मार दिया। इस तरह इस गंदी अमानवीय विचारधारा ने ” 802″ पुलिस व CRPF तथा जवानों को मारा साथ ही उनके बीच ही रहने वाले “2112” आम नागरिकों को भी मार दिया ये आँकड़ा 2010 से 2015 के बीच का है मतलब 50 साल के काले इतिहास में सिर्फ 5 वर्ष का आँकड़ा तो आप समझिए कि इन नक्सलीयों ने 50 वर्ष में कैसा रक्त रंजित बवंडर मचाया होगा। तमाम सरकारी प्रयासों के बावजूद इन्होंने कई जवानों के सीनों को छलनी कर उनकी पत्नीयों को विधवा कर दिया। विश्व में, भारत में पनपे इस आंतरिक विद्रोह को आतंकवाद तक कहा जाने लगा। भारत की शांतिपूर्ण छवि को खराब करने में नक्सलवाद ने कोई कसर नहीं छोड़ी।
-:सरकार द्वारा इस Movement को रोकने के लिए किए गए योजनाबद्ध प्रयास :-
नक्सलवाद के इन 50 वर्षों में भारत में 12 लोकतांत्रिक सरकारें आई। इस विद्रोह को रोकने के कई प्रयास किए गए लेकिन नक्सलियों का ये विद्रोह सरकारी प्रयासों की विफलता के कारण बदस्तूर जारी है। सरकार की सोच रही कि प्रभावित इलाकों में जितना विकास करवाया जाएगा नक्सलवाद में उतनी ही कमी आएगी लेकिन सरकार के इस integrated action plan for development को नक्सली वामपंथी नेताओं ने नाकारा (unuseful) करार दे दिया। नक्सल सड़कों की सुलभता, शैक्षिक गुणवत्ता व मोबाइल नेटवर्क से विकसित नहीं होना चाहता तभी तो ये चिंगारी शिक्षा के क्षेत्र में भी युवाओं की मानसिकता को खराब करने में पीछे नहीं रही जिसका उदाहरण JNU दिल्ली,HCU हैदराबाद जैसे विश्वविद्यालयों में हुए देश विरोधी प्रदर्शनों ने दिया।
नक्सलियों की नाजायज माँगें :-
हर नक्सली को नक्सलवाद छोड़ने के बदले कम से कम 1.5 लाख रूपये, तीन वर्ष तक 2000 रूपये प्रतिमाह गुजारा भत्ता, घर में एक सरकारी नौकरी व जमीन दी जाए। नक्सली को दूसरे कैदियों की तरह बंद जेल नहीं बल्कि खुली जेल में रखी जाए,ऐसी निरर्थक माँगे हैं। झारखंड हाइकोर्ट ने नक्सली कुंदन पाहन के समर्पण पर सरकार द्वारा दिए गए 15 लाख रूपयों पर कड़ा एतराज जताया व कहा कि इतने पैसे अगर स्वतंत्रता सैनानी या शहीद परिवारों को दिए जाते तो देश तरक्की करता।
नक्सलवाद समाप्त हो किंतु किस तरह जबकि ना तो ये (नक्सली) विकास चाहते हैं ना शुद्धिकरण ये सरकार के लिए प्रश्नवाचक चिन्ह है बस मैं एक बात से सहमत हूँ कि यदि मानसिक तौर पर भारत की जनता द्वारा नक्सलियों का विरोध अर्थात Mental boycott किया जाएगा तभी सफलता प्राप्त हो पाएगी। अंत तो सुनिश्चित है लेकिन जल्द हो इसमें हमारी मानसिक भागीदारी अपेक्षित व निहीत है।
लेखक :- प्रशांत दवे(महानगर मंत्री, ABVP, Ajmer)
मो. नं./whatsapp :- 7597954747
फेसबुक आईडी :- प्रशांत दवे
ट्विटर :- @prashantdavej
ईमेल आईडी :- daveprashant54@gmail.com

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सच्ची रामायण की पोल खोल-८ अर्थात् पेरियार द्वारा रामायण पर किये आक्षेपों का मुंहतोड़ जवाब* -लेखक कार्तिक अय्यर ।


सच्ची रामायण की पोल खोल-८ अर्थात् पेरियार द्वारा रामायण पर किये आक्षेपों का मुंहतोड़ जवाब*
-लेखक कार्तिक अय्यर ।

।।ओ३म्।।
धर्मप्रेमी सज्जनों! नमस्ते ।पिछले लेख मे हमने पेरियार साहब के ‘कथा स्रोत’ नामक लेख का खंडन किया।आगे पेरियार साहब अपने निराधार तथ्यों द्वारा श्रीराम पर अनर्गल आक्षेप और गालियों की बौछार करते हैं।
*प्रश्न-८इस बात प अधिक जोर दिया गया है कि रामायण का प्रमुख पात्र राम मनुष्य रूप में स्वर्ग से उतरा और उसे ईश्वर समझा जाना चाहिये।वाल्मीकि ने स्पष्ट लिखा है कि राम विश्वासघात,छल,कपट,लालच,कृत्रिमता,हत्या,आमिष-भोज,और निर्दोष पर तीर चलाने की साकार मूर्ति था।तमिलवासियों तथा भारत के शूद्रों तथा महाशूद्रों के लिये राम का चरित्र शिक्षा प्रद एवं अनुकरणीय नहीं है।*

*समीक्षा* बलिहारी है इन पेरियार साहब की!आहाहा!क्या गालियां लिखी हैं महाशय ने।लेखनी से तो फूल झर रहे हैं! श्रीराम का तो पता नहीं पर आप गालियां और झूठ लिखने की साक्षात् मूर्ति हैं।आपके आक्षेपों का यथायोग्य जवाब तो हम आगे उपयुक्त स्थलों पर देंगे।फिलहाल संक्षेप में उत्तर लिखते हैं।
श्रीरामचंद्रा का चरित्र उनको ईश्वर समझने हेतु नहीं अपितु एक आदर्श मानव चित्रित करने हेतु रचा गया है।यह सत्य है कि कालांतर में वाममार्गियों,मुसलमानों और पंडों ने रामायण में कई प्रक्षेप किये हैं।उन्हीं में से एक मिलावट है राम जी को ईश्वरावतार सिद्ध करने की है।इसलिये आपको प्रक्षिप्त अंश पढ़कर लगा होगा कि ‘ श्रीराम को ईश्वरावतार समझना’ अनिवार्य है।परंतु ऐसा नहीं है।देखिये:-
*एतदिच्छाम्यहं श्रोतु परं कौतूहलं हि मे।महर्षे त्वं समर्थो$सि ज्ञातुमेवं विधं नरम्।।* (बालकांड सर्ग १ श्लोक ५)
आरंभ में वाल्मीकि जी नारदजी से प्रश्न करते हैं:-“हे महर्षे!ऐसे गुणों से युक्त व्यक्ति के संबंध में जानने की मुझे उत्कट इच्छा है,और आप इस प्रकार के मनुष्य को जानने में समर्थ हैं।” ध्यान दें!श्लोक में नरः पद से सिद्ध है कि श्रीराम ईश्वरानतार नहीं थे।वाल्मीकि जी ने मनुष्य के बारे में प्रश्न किया है और नारदजी ने मनुष्य का ही वर्णन किया ।
*महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने यह सिद्ध किया है कि ईश्वर का अवतारलेना संभव नहीं।परमात्मा के लिये वेद में “अज एकपात” (ऋग्वेद ७/३५/१३)’सपर्यगाच्छुक्रमकायम'(यजुर्वेद ४०/८)इत्यादि वेद वचनों में ईश्वर को कभी जन्म न लेने वाला तथा सर्वव्यापक कहा है।(विस्तार के लिये देखें:- सत्यार्थप्रकाश सप्तमसमुल्लास पृष्ठ १५७)
अतः राम जी ईश्वर नहीं अपितु महामानव थे।
महर्षि वाल्मीकि ने कहीं भी श्रीरामचंद्र पर विश्वासघात, लालच,हत्या आदि के दोष नहीं लगाये वरन् उनको *सर्वगुणसंपन्न*अवश्य कहा है।आपको इन आक्षेपों का उत्तर श्रीराम के प्रकरणमें दिया जायेगा।फिलहाल वाल्मीकि जी ने राम जी के बारे में क्या *स्पष्ट* कहा है वह देखिये। *अयोध्याकांड प्रथम सर्ग श्लोक ९-३२*
*सा हि रूपोपमन्नश्च वीर्यवानसूयकः।भूमावनुपमः सूनुर्गुणैर्दशरथोपमः।९।कदाचिदुपकारेण कृतेतैकेन तुष्यति।न स्मरत्यपकारणा शतमप्यात्यत्तया।११।*
अर्थात्:- श्रीराम बड़े ही रूपवान और पराक्रमी थे।वे किसी में दोष नहीं देखते थे।भूमंडल उसके समान कोई न था।वे गुणों में अपने पिता के समान तथा योग्य पुत्र थे।९।।कभी कोई उपकार करता तो उसे सदा याद करते तथा उसके अपराधों को याद नहीं करते।।११।।
आगे संक्षेप में इसी सर्ग में वर्णित श्रीराम के गुणों का वर्णन करते हैं।देखिये *श्लोक १२-३४*।इनमें श्रीराम के निम्नलिखित गुण हैं।
१:-अस्त्र-शस्त्र के ज्ञाता।महापुरुषों से बात कर उनसे शिक्षा लेते।
२:-बुद्धिमान,मधुरभाषी तथा पराक्रम पर गर्व न करने वाले।
३:-सत्यवादी,विद्वान, प्रजा के प्रति अनुरक्त;प्रजा भी उनको चाहती थी।
४:-परमदयालु,क्रोध को जीतने वाले,दीनबंधु।
५:-कुलोचित आचार व क्षात्रधर्मके पालक।
६:-शास्त्र विरुद्ध बातें नहीं मानते थे,वाचस्पति के समान तर्कशील।
७:-उनका शरीर निरोग था(आमिष-भोजी का शरीर निरोग नहीं हो सकता),तरूण अवस्था।सुंदर शरीर से सुशोभित थे।
८:-‘सर्वविद्याव्रतस्नातो यथावत् सांगवेदवित’-संपूर्ण विद्याओं में प्रवीण, षडमगवेदपारगामी।बाणविद्या में अपने पिता से भी बढ़कर।
९:-उनको धर्मार्थकाममोक्ष का यथार्थज्ञान था तथा प्रतिभाशाली थे।
१०:-विनयशील,गुरुभक्त,आलस्य रहित थे।
११:- धनुर्वेद में सब विद्वानों से श्रेष्ठ।
कहां तक वर्णन किया जाये? वाल्मीकि जी ने तो यहां तक कहा है कि *लोके पुरुषसारज्ञः साधुरेको विनिर्मितः।*( वही सर्ग श्लोक १८)
अर्थात्:- *उन्हें देखकर ऐसा जान पड़ता था कि संसार में विधाता ने समस्त पुरुषों के सारतत्त्व को समझनेवाले साधु पुरुष के रूपमें एकमात्र श्रीराम को ही प्रकच किया है।*
अब पाठकगण स्वयं निर्णय कर लेंगे कि श्रीराम क्या थे?लोभ,हत्या,मांसभोज आदि या सदाचार और श्रेष्ठतमगुणों की साक्षात् मूर्ति।
श्रीराम के विषय में वर्णित विषय समझना मानव बुद्धि से परे नहीं है।शायद आप अपनी भ्रांत बुद्धि को समस्त मानवों की बुद्धि समझने की भूल कर दी।रामायण को यदि कोई पक्षपातरहित होकर पढे़ तो अवश्य ही जान जायेगा कि श्रीराम का चरित्र कितना सुगम व अनुकरणीय है।
आगे दुबारा शूद्रों और महाशूद्रों का कार्ड खेलकर लिखा है कि इन लोगों के लिये कुछ भी अनुकरणीय व शिक्षाप्रद नहीं है।यह पाठक रामायण का अध्ययन करके स्वतः जान जायेंगे कि उनके लिये क्या अनुकरणीय है?

पूरी पोस्ट पढ़ने के लिये धन्यवाद ।
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क्रमशः—–

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचंद्र की जय।
योगेश्वर श्रीकृष्ण चंद्र की जय।
।।ओ३म।।

Posted in हिन्दू पतन

●करवाचौथ नारी उत्पीड़न है, 3 तलाक़ धार्मिक आस्था…
●देवदासी प्रथा वेश्यावृत्ति थी, हलाला पवित्र नारी-शुद्धिकरण…
●बहुविवाह एक अनैतिक प्रथा थी, चार-निक़ाह ईश्वरीय आदेश…
●चुटिया रखना धार्मिक ढोंग है, बकर-दाढ़ी ईश्वर का नूर है…
●यज्ञोपवीत पहनना धार्मिक कट्टरवाद है, अरबी लबादा ओढ़ना धार्मिक पहचान है…
●तिलक लगाना दकियानूसी कट्टरता है, मत्थे पे ईंटे से रगड़कर बनाया काला निशान आध्यात्मिक है…
●कर्ण छेदन असभ्य क्रूरता है, ख़तना अलौकिक प्रक्रिया…
●पितृपक्ष तर्पण एक ढोंग है, मरहूमों की मज़ारों पर चढ़ावा चढ़ाना श्रद्धा…
●तीर्थ-यात्रा पैसा कमाने का मनुवादी ढोंग, लाखों रुपये फूँककर हज़-उमरा पवित्र ईश्वर का दर्शन…
●जल्लीकट्टू पशु उत्पीड़न है, पशुओं की गला रेतकर क़ुर्बानी धार्मिक आस्था…
●गौरक्षा माँसाहार के अधिकार का हनन है, सुअर खाने वाले शैतान हैं…
●दही-हांडी ख़ेल ख़तरनाक़ है, छाती-पीट ख़ूनी मातम धार्मिक आस्था…
●संस्कृत गुरुकुल कट्टरवाद सिखाते थे, मदरसों में आधुनिक वैज्ञानिक शोध होते हैं…
●व्रत-उपवास दकियानूसी ढोंग हैं, रोज़े वैज्ञानिक शारीरिक तपस्या है…
●हिंदुओं में खानपान की छुआछूत अमानवीय है, शिया-सुन्नी-अहमदिया का आपसी क़त्लेआम स्नेहिल भाईचारा है…
●हज़ारों साल पुरानी सारी इंसानी किताबें झूठी-बकवास हैं, 1400 साल पुरानी आसमानी किताब में ब्रह्माण्ड का सारा ज्ञान-विज्ञान है…
●गुजरात में दुनिया का सबसे बड़ा दंगा हुआ, हज़ारों कश्मीरी पण्डित मारे खुशी के दुनिया छोड़ गए, लाखों कश्मीर छोड़ दिये…
●बाक़ी मज़हबों पर संविधान लागू होता है, हुज़ूर का मज़हब ख़ुद में संविधान है…
●फलस्तीनियों पर बहुत अत्याचार होता है, यज़ीदी दुनिया की सबसे खुशहाल कौम है…
●रोहिंग्या मुसलमान शरणार्थी हैं, पाकिस्तानी-अफगानी हिन्दू बड़े सुरक्षित खुशहाल हैं…
इसमें से अधिकांश बातें तो बचपन से सुनता आया हूँ… कहने को तो और बहुत कुछ है, लेकिन शालीनतावश सब कुछ नहीं लिखूंगा…
वाह रे प्रगतिशील हरे सेक्युलरों, वाह रे ब्रिटिश कानूनों का कॉपी-पेस्ट क़ानून-संविधान और वाह रे मीलॉर्ड न्यायासुरों…

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कांग्रेस और पाकिस्तान में समानताएँ –

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कांग्रेस कभी नहीं मानती कि उसने भ्रष्टाचार किया है और पाकिस्तान कभी नहीं मानता कि वो आतंकवाद का समर्थन करता है।
कांग्रेस हिंदुओं की शत्रु है और पाकिस्तान भी।
कांग्रेस इस देश को खोखला, कमज़ोर और बदनाम करने में लगी रही, पाकिस्तान भी यही करता है।
कांग्रेस का पाकिस्तान प्रेम और पाकिस्तान का कांग्रेस प्रेम किसी से छिपा नहीं है।
आतंकवादियों के मारे जाने पर सोनिया गांधी और कांग्रेसी रोते हैं पाकिस्तान भी रोता है।
कश्मीर में पत्थरबाजों और अलगाववादी नेताओं पर सख़्त कार्रवाई का विरोध कांग्रेस करती है और पाकिस्तान भी।
कश्मीर समस्या को उलझाकर रखने की कांग्रेस ने हमेशा कोशिश की और पाकिस्तान ने भी।
कांग्रेस को मोदी फूटी आँख नहीं सुहाते, पाकिस्तान को भी नहीं सुहाते।
कांग्रेस ने अपने सैनिकों को शहीद होने दिया या कहें कि उनकी हत्याएँ करवाईं लेकिन पाकिस्तान पर कभी कड़ी जवाबी कार्रवाई करने की छूट सेना को नहीं दी।
केंद्र और राज्य दोनों जगह कांग्रेस की सरकार थी और 26/11 जैसे भीषणतम आतंकी हमला भारत में हुआ और कांग्रेस ने बाक़ायदा किताब छापकर इसमें पाकिस्तान का हाथ होने की बजाय आरएसएस का नाम ले दिया।
जेएनयू में भारत तेरे टुकड़े होंगे के नारे लगाने वालों के समर्थन में राहुल गांधी जाकर खड़े हो जाते हैं, पाकिस्तान भी भारत के टुकड़े चाहता है।
कांग्रेस के नेता पाकिस्तान जाकर मोदी को हटाने के लिये मदद माँगते हैं।
अनेक देशद्रोही गतिविधियों में लिप्त NGOs को कांग्रेस राज में फंडिंग पाने और कामकाज करने की छूट थी, मोदी ने बंद करा दिए।
कांग्रेस ने अनेक राज्यों की सरकारें गिराई, जोड़तोड़ से सरकारें बनाई तब कभी लोकतंत्र की हत्या नहीं हुई लेकिन भाजपा ने किया तो उसे ये लोकतंत्र के लिए खतरा लगा। पाकिस्तान भी ऐसा ही करता है फिर जब सर्जिकल स्ट्राइक होती है तो इसे अपने ऊपर ख़तरा बताता है।
मोदी कूटनीति के तहत अचानक पाकिस्तान चले जाते हैं तो सारे कांग्रेसी और उसके हिमायती इस पर तंज कसते हैं लेकिन पाकिस्तान के 90 हज़ार सैनिकों को रिहा करने पर ये खामोश हो जाते हैं। ऐसी ही दोगलापंथी पाकिस्तान भी करता है।
गुजरात दंगों को लेकर कांग्रेस ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक बदनाम करने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ा, पाकिस्तान ने भी वही किया।

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दस्तावेज..
गोडवाड के किसी गाँव का गरीब मेड़तिया राठौर नौजवान पर आज वज्र टूट पड़ा जब सुसराल से पत्र आया की एक हज़ार रूपए ले कर जेष्ठ सुक्ल दूज को लग्न करने आ जाना, यदि रूपए नहीं लाये और निश्चित तिथि को नहीं पहुचे तो कन्या को किसी और योग्य वर से विवाह करा दिया जायेगा, 

कोई रास्ता ना देख पाली के बनिए के पास गया और मदद मांगी, बनिए ने पुछा “कुछ है गिरवी रखने को “ वो ठेरा गरीब राजपूत कहा से लाता,

 बनिए ने कागज़ में कुछ लिखा “लो भाई,इस पर हस्ताक्षर कर दो, कागज पढ़ नौजवान के हौश उड़ गए, कागज पर लिखा था “जब तक एक हज़ार रूपए अदा नहीं करू तब तक अपनी पत्नी को माँ –बहन समझुगा ! मरता क्या नहीं  करता अपने कलेजे पर पत्थर रखकर हस्ताक्षर किये और एक हज़ार रूपए अपने साफे में बांध सुसराल चल पड़ा, 

जेष्ठ सुक्ल दूज को सूर्यादय के समय नवयुवक अपने सुसराल पहुचा,हज़ार रूपए की थेल्ली अपने ससुर के सामने रखी,धूमधाम से लग्न हुआ, नवयुवक अपनी नयी दुल्हन को बैलगाड़ी पर बिठा कर अपने घर की और चल पड़ा  

 बिन सास ससुर, देवर ननद का ये सुनसान झोपड़ा, कोई नयी दुल्हन का स्वागत करने वाला नहीं, नयी दुल्हन ने हाथ में झाड़ू थमा और लगी अपनी नयी दुनिया सवारने, रात्री को नयी दुल्हन ने अपने हाथ से बनाया गरम भोजन अपने स्वामी को जिमाया, पीहर से लाये नरम रुई के गद्दे से सेज सजाई, कोने में तेल का दिया रखा, प्रीतम आया अपनी तलवार मयान से खैच कर,सेज के बीच में रखकर, करवट पलट कर सो गया !! 

इस प्रकार एक के बाद एक अनेक राते बीतती गयी, क्षत्रानी  को ये पहेली कुछ समझ नहीं आई, कोई नाराजगी है या मेरी परीक्षा ले रहे है, कुछ समझ में नहीं आ रहा था, उस रात जब ठाकुर घर आया तो हिम्मत कर पूछ ही लिया “ठाकुर आप क्या मेरे पीहर का बदला ले रहे हो ? आखिर क्या है इस तलवार का भेद ?? 

राजपूत ने बनिए दुअरा लिखा पत्र आगे कर दिया “लो ये खुद ही पढ़ लो” जैसे जैसे क्षत्रानी ने पत्र पढ़ा वैसे वैसे उसकी आँखों में चमक आने लगी बोली वाह रे राजपूत, मेरा तुझ से ब्याहना सफल हो गया, धन्य हो मेरी सास जिसने आप को अपनी कोख से जनम दिया, 

ये लो कहते हुए क्षत्रानी ने अपने सुहाग की चूडिया और अपने तन पर पहने गहने उत्तार कर अपने पति के सामने रख दिए,

 बस इतना सा सब्र क्षत्रानी राजपूत बोला अपनी स्त्री के गहने से अपना वर्त छोड़ दू, ये नहीं हो सकता  

उतेजित ना हो स्वामी, इस सोने को बेच कर दो बढ़िया घोडिया खरीदो,बढ़िया कपडे सिलवाओ और हथियार लो, 

 दूसरी घोड़ी किसके लिए और कपडे हथियार किसलिए ??

 मेरे लिए, जब में छोटी थी तो मर्दाने वस्त्र पहन कही बार युद्ध में गयी थी,तलवार चलानी भी आती है, हम दोनों मेवाड़ राज्य चलते है ,हम मित्र बन कर राणाजी के यहाँ काम करेगे और पैसे कमा कर बनिए का ऋण उतरेगे !

 ठाकुर तो क्षत्रानी का मुह देखता ही रह गया 

 वेश बदलकर दोनों घुड़सवार मेवाड़ की तरफ निकल पड़े, मेवाड़ पहुच,दरबार में हाज़िर हुए, राणाजी में पुछा “कौन हो ,कहा से आ रहे हो,  हम दोनों मित्र है और मारवाड़ के मेड़तिया राठौर है, आप की सेवा के आये है  

राणाजी ने दोनों को दरबार में नौकरी पर रख लिया, 

 कुछ दिन बाद राणाजी शिकार पर निकले, दोनों क्षत्रय साथ में, हाथी पर बैठे राणाजी में शेर पर निशाना साधा, निशाना सही नहीं लगा,घायल शेर वापस मुडकर सीधा हाथी के हौदे की और लपका,दुसरे सिपाही समझ पाते उस से पहले ही  क्षत्रानी ने अपने भाले से शेर को बींध डाला,

 राणाजी प्रसन्न हो पर उन दोनों को  अपने शयनकक्ष का पहरा देने हेतु नियुक्त कर दिया,  

वक़्त बीतता गया ,सावन का महिना आया , हाथ में नंगी तलवार लिए पहरा देते दोनों राजपूत,  

कड़कड कड़ बिजली क्रोधी, गड गड कर बादल गरजे, हाथ में तलवार लिए पहेरा देती क्षत्रानी अपनी पति को निहार रही है, विरह की वेदना झेल रही क्षत्रानी के मुह से अनायास मुह से दोहा निकल गया

 देश वीजा,पियु परदेशा ,पियु बंधवा रे वेश ! 

जे दी जासा देश में, (तौदी) बांधवापियु करेश ! 

महारानी झरोखी में बैठी सुन रही थी ,

सुबह हुई, महारानी के दिल में बात समां नहीं रही थी उसने राणाजी से कहा इन राजपूत पहरियो में कोई भेद है, रात ये बिछुड़ने  की बात कर रहे थे हो ना हो इन में से एक पुरुष है और एक स्त्री है,

 राणाजी को विश्वास नहीं हुआ,ये बहादुरी और वो भी स्त्री की ? 

 परीक्षा कर लो पता चल जायेगा !! 

राणाजी ने दोनों को रानीवास में अन्दर बुलाया, महारानी ने दूध मंगवा कर आंगन के चुल्ले पर रख दिया और गर्म होने दिया,दूध में उफान आते ही क्षत्रानी चिल्ला पड़ी “अरे अरे दूध ..!!

 ठाकुर ने अपनी कोहनी मार कर चेताया पर देर हो चुकी थी ! 

महारानी ने मुस्कुराते हुआ पुछा “बेटा ,तुम कौन हो, सच्ची बात बताओ तुम्हारे सभी गुनाह माफ़ है  गदगद कंठ से राजपूत ने सारी बात विस्तार से बताई . 

वाह राजपूत वाह ! तुम धन्य हो ! आज से तुम मेरे बेटे-बेटी ,तुम यही रहो तुम्हरे रहने का बंदोबस्त महल में करवा देता हु ,बनिए के कर्ज के पैसे में अपने आदमियों से भिजवा देता हु  

महारानी अन्दर से बढ़िया पौशाक व् गहने लाकर क्षत्रानी को दिए !

 दोनों की आँखों में कृत्यगता के आसू थे, हाथ जोड़ कर बोले “हजुर हम अपने हाथो से बनिए का कर्ज चूका कर हमारे लिखे दस्तावेज अपनी हाथो से फाड़े तभी हमारा वर्त छूटेगा  

राणाजी ने श्रृंगार की हुई  बैलगाडी से ,खुद सारा धन देकर उनको विदा किया  घर पहुच कर ,पहले बनिए के पास जा कर अपना कर्ज चुकाया और अपनी जमीन कर मुक्त कराई, उस रात इस राजपूत जोड़े ने अपना दाम्पत्य प्रारम्भ किया ।
**श्री नाहर सिंह  जी जसोल की किताब से **