Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

माहिष्मती गाथा-1 : ऐश्वर्यशाली और कला सरंक्षक माहिष्मती साम्राज्य के सबूत


माहिष्मती गाथा प्रस्तुत करने से पहले आपको ये बताना चाहूंगा कि देश के एक चक्रवर्ती सम्राट की प्रतिष्ठा को देश के ही कुछ इतिहासकारों ने कलंकित करने का काम किया है. एक ऐसा महान राजा, जिसकी सेनाएं तीनों समुद्रों पर तैनात रहती थी. जिसका साम्राज्य गंगा तराई के निचले हिस्से को छोड़कर समस्त भारतीय भूभाग श्रीलंका समेत अन्य द्वीपों तक फैला हुआ था. जिसने सनातनी परंपरा को देश में पुनर्स्थापित किया. उस महान शासक की प्रतिष्ठा को कई काल्पनिक कहानियों के जरिये धूमिल करने का प्रयास किया गया है.

 

हालिया प्रदर्शित फिल्म ‘बाहुबली’ में जिस अमरेंद्र बाहुबली के किरदार को आपने देखा वो कतई काल्पनिक नहीं है. हमने माहिष्मती(वर्तमान महेश्वर) और उसके समीपस्थ क्षेत्रों में लंबा और थका देने वाला शोध किया है. हमने इसके लिए 46 डिग्री के तापमान में निमाड़ की ख़ाक छानी. कई म्यूजियमों का दौरा किया. महेश्वर के नामी विद्वानों की मदद ली. अंततः जो परिणाम आए वे बहुत सुखद रहे हैं. माहिष्मती की ये गाथा इतनी विस्तृत है कि एक भाग में समेटी नहीं जा सकती. तो कहानी शुरू करते हैं.

 

गाथा ईसा पूर्व 230 ईस्वी में प्रारंभ होती है. सम्राट अशोक की मृत्यु के बाद सातवाहन वंश के महाराज सिमूक ने मगध संधि को अमान्य करते हुए ईपू 230 में सातवाहन ब्राह्मण वंश शुरू किया. उस समय नर्मदा क्षेत्र को ‘अनूपा’ के नाम से जाना जाता था. उस वास्तविक बाहुबली का नाम गौतमी पुत्र शतकर्णी था. जैसा कि फिल्म में दर्शाया गया है कि नारी इस राजवंश में बहुत शक्तिशाली होती थी, वैसे ही सातवाहन राजवंश एक मातृसत्तात्मक राजवंश था. इसमें नारी पुरुष से कहीं अधिक शक्तिशाली हुआ करती थी.

 

आज यदि गौतमी पुत्र शतकर्णी का नाम इतिहास के पन्नों से निकलकर हमारे सामने आ गया है तो इसका श्रेय बाहुबली फिल्म के निर्देशक एस.राजामौली को जाता है. हम ये नहीं कहते कि बाहुबली की कथा अक्षरश सत्य है लेकिन उस कथा में आप सातवाहन राजवंश के बारे में, उनकी परंपराओं और प्रथाओं के बारे में जान सकते हैं. सबसे बढ़कर अमरेंद्र बाहुबली का चरित्र हूबहू गौतमी पुत्र शतकर्णी के प्रभावशाली चरित्र से मेल खाता है. गौतमी पुत्र शतकर्णी ने लगभग 25 साल तक एकछत्र राज्य किया. उस दौर में पूरा मध्यभारत उसके अधीन हुआ करता था.

 

आगे इस कहानी के किरदारों के बारे में विस्तार से बताया जाएगा और आज मौजूद सातवाहन वंश के अवशेषों की बात भी करेंगे. आगे वाली कड़ियों में ये भी बताया जाएगा कि क्यों हमारे इतिहासकारों ने गौतमी पुत्र की प्रतिष्ठा धूमिल करने की चेष्टा की. सातवाहन वंश की सबसे प्रभावशाली माँ गौतमी बालाश्री की बात भी की जाएगी. बालाश्री के चरित्र की एक झलक आपने बाहुबली की शिवगामी में देख ही ली होगी.

 

फोटो में दिखाए दे रहे नंदी गौतमी पुत्र के बनाए एक शिव मंदिर में विराजमान है. इनकी बनावट देखकर ही आप समझ जाएंगे कि माहिष्मती साम्राज्य कितना ऐश्वर्यशाली और कला सरंक्षक रहा होगा. ये पहला प्रमाण है जो बताता है कि माहिष्मती कोई काल्पनिक जगह नहीं है.
ये पहली सदी  की बात है. प्राचीन भारत के  महान शक्तिशाली मौर्य साम्राज्य की शक्ति अब क्षीण पड़ने लगी थी. 185 ईसा पूर्व में इस वंश के अंतिम शासक  बृहद्रथ मौर्य की उसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने हत्या कर डाली.
शक्तिशाली मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद कण्ववंश ने सत्ता संभाली लेकिन सैन्य रूप से कमजोर कण्ववंश ज्यादा टिक नहीं पाया. राजा श्रीमुख  ने इसके बाद महान सातवाहन साम्राज्य की नींव रखी. ये समय लगभग 60 ईसा पूर्व का माना जाता है. इसके बाद सातवाहनों ने लगभग 250 साल तक शासन किया.
हालांकि सातवाहन वंश के प्रथम राजा श्रीमुख के बाद उसके पुत्र कान्हा के शासनकाल में सातवाहन साम्राज्य फिर कमज़ोर होने लगा था. इसके बाद गाथा में उस वीर प्रतापी योद्धा का आगमन होता है, जिसने एक के बाद एक युद्ध जीतते हुए भारत को एक सूत्र में बांधने में सफलता प्राप्त की.
कान्हा के पुत्र गौतमीपुत्र शतकर्णी के शासनकाल (106-130 ई.) में ही ‘माहिष्मती (आज का महेश्वर) की स्थापना हुई. उस समय नर्मदा प्रदेश को ‘अनूप’ कहा जाता था. गौतमी पुत्र ने ये क्षेत्र युद्ध में शकों से जीता था.
एक सवाल मन में आता है कि महाराणा प्रताप, शिवाजी, पृथ्वीराज चौहान जैसे वीर योद्धाओं में गौतमीपुत्र का नाम शामिल क्यों नहीं है. क्यों वे बाकी नायकों की तरह कोर्स की किताबों में बच्चों को नहीं पढ़ाए जा रहे हैं.
आपको भी हैरानी हुई होगी कि आठ प्रदेशों पर राज करने वाले योद्धा को वर्तमान पीढ़ी याद क्यों नहीं करती. क्यों कुछ इतिहासकारों ने गौतमी पुत्र की प्रतिष्ठा पर लांछन लगाने का काम किया. क्यों उसकी महान गाथा के बारे में आप कुछ नहीं जानते. जिसके घोड़े तीन समुद्रों का पानी पीते थे, ऐसे योद्धा को क्यों भूला दिया गया है.
ये कैसे सम्भव है कि देश का वामपंथी धड़ा एक काल्पनिक कथा को दिखाए जाने पर इतना शोर मचाए. बात जैसी नज़र आ रही है, वैसी नहीं है. जिन लोगों ने हमारे समृद्ध इतिहास को षड्यंत्रपूर्वक बदला है, वे दरअसल इस बात से भयभीत है कि बाहुबली फिल्म के जरिये प्राचीन भारत के एक विलक्षण नायक का सत्य  जान ले.
वे इस बात से भयभीत हैं कि कहीं गौतमी शतकर्णी का नाम उछलते ही इतिहास की किताबे फिर न खोदी जाने लगे. वे इस बात से भयभीत हैं कि कहीं लोग ये न जान जाए कि उनके एक महाप्रतापी पूर्वज को हमने किताबों में एक हत्यारा भी लिख दिया है.
इसे लेख समझने की भूल न करें. ये एक अभियान है, जिसमें दक्षिणपंथी और उन लोगों की मदद की दरकार है, जो हमारे इतिहास पर पड़ी झूठ की परते उठाना चाहते हैं. वो शासक जिसने देश में दक्षिणपंथ को मजबूत किया. समाज को बेहतर जीवन देने के लिए कई सामाजिक कार्य किये. कुओं, नदियों और तालाबों के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित किया. आगे हम जानेंगे कि गौतमीपुत्र शतकर्णी उर्फ़ अमरेंद्र बाहुबली की चारित्रिक विशेषताएं क्या-क्या थी. आखिर उसमें ऐसी क्या बात थी कि प्रजा में वह बहुत लोकप्रिय था. उसकी सेना कैसी थी.
चित्र में जो चबूतरा दिखाई दे रहा है, ठीक इसके पीछे माहिष्मती के अवशेष आज भी काँटों के जंगल में दबे पड़े हैं. इस चबूतरे के बारे में कहा जाता है कि यहाँ महेश्वर के तत्कालीन राजा मंडन मिश्र और आदि शंकराचार्य के बीच शास्त्रार्थ हुआ था. सम्भव है ये चबूतरा प्राचीन माहिष्मती के वैभव को वर्षों तक निहारा करता होगा.
जारी रहेगा…..
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मकड़ी, चीँटी और जाला..


*मकड़ी, चीँटी और जाला…🌹*

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*🙏एक मकड़ी थी. उसने आराम से रहने के लिए एक शानदार जाला बनाने का विचार किया और सोचा की इस जाले मे खूब कीड़ें, मक्खियाँ फसेंगी और मै उसे आहार बनाउंगी और मजे से रहूंगी l उसने कमरे के एक कोने को पसंद किया और वहाँ जाला बुनना शुरू किया l कुछ देर बाद आधा जाला बुन कर तैयार हो गया, यह देखकर वह मकड़ी काफी खुश हुई कि तभी अचानक उसकी नजर एक बिल्ली पर पड़ी जो उसे देखकर हँस रही थी l
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मकड़ी को गुस्सा आ गया और वह बिल्ली से बोली , ” हँस क्यो रही हो ?”
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“हँसू नही तो क्या करू.” , बिल्ली ने जवाब दिया , ” यहाँ मक्खियाँ नही है ये जगह तो बिलकुल साफ सुथरी है, यहाँ कौन आयेगा तेरे जाले मे..
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”ये बात मकड़ी के गले उतर गई. उसने अच्छी सलाह के लिये बिल्ली को धन्यवाद दिया और जाला अधूरा छोड़कर दूसरी जगह तलाश करने लगी. उसने ईधर ऊधर देखा l
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उसे एक खिड़की नजर आयी और फिर उसमे जाला बुनना शुरू किया कुछ देर तक वह जाला बुनती रही , तभी एक चिड़िया आयी और मकड़ी का मजाक उड़ाते हुए बोली,
” अरे मकड़ी , तू भी कितनी बेवकूफ है.”..
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“क्यो ?”, मकड़ी ने पूछा.चिड़िया उसे समझाने लगी , ” अरे यहां तो खिड़की से तेज हवा आती है. यहा तो तू अपने जाले के साथ ही उड़ जायेगी.” l
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मकड़ी को चिड़िया की बात ठीक लगीँ और वह वहाँ भी जाला अधूरा बना छोड़कर सोचने लगी अब कहाँ जाला बनायाँ जाये. समय काफी बीत चुका था और अब उसे भूख भी लगने लगी थी l उसे एक आलमारी का खुला दरवाजा दिखा और उसने उसी मे अपना जाला बुनना शुरू किया l
कुछ जाला बुना ही था तभी उसे एक काक्रोच नजर आया जो जाले को अचरज भरे नजरो से देख रहा था l
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मकड़ी ने पूछा – ‘इस तरह क्यो देख रहे हो ?’
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काक्रोच बोला-,” अरे यहाँ कहाँ जाला बुनने चली आयी ये तो बेकार की आलमारी है. अभी ये यहाँ पड़ी है कुछ दिनों बाद इसे बेच दिया जायेगा और तुम्हारी सारी मेहनत बेकार चली जायेगी. यह सुन कर मकड़ी ने वहां से हट जाना ही बेहतर समझा l
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बार-बार प्रयास करने से वह काफी थक चुकी थी और उसके अंदर जाला बुनने की ताकत ही नही बची थी..
भूख की वजह से वह परेशान थी l
उसे पछतावा हो रहा था कि अगर पहले ही जाला बुन लेती तो अच्छा रहता
पर अब वह कुछ नहीं कर सकती थी उसी हालत मे पड़ी रही l
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जब मकड़ी को लगा कि अब कुछ नहीं हो सकता है तो उसने पास से गुजर रही चींटी से मदद करने का आग्रह किया l
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चींटी बोली, ” मैं बहुत देर से तुम्हे देख रही थी , तुम बार-बार अपना काम शुरू करती और दूसरों के कहने पर उसे अधूरा छोड़ देती और जो लोग ऐसा करते हैं उनकी यही हालत होती है.”और ऐसा कहते हुए वह अपने रास्ते चली गई और मकड़ी पछताती हुई निढाल पड़ी रही l
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हमारी ज़िन्दगी मे भी कई बार कुछ ऐसा ही होता है. हम कोई काम start करते है. शुरू -शुरू मे तो हम उस काम के लिये बड़े उत्साहित रहते है पर लोगो के comments की वजह से उत्साह कम होने लगता है और हम अपना काम बीच मे ही छोड़ देते है और जब बाद मे पता चलता है कि हम अपने सफलता के कितने नजदीक थे तो बाद मे पछतावे के अलावा कुछ नही बचता l

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બધા શિક્ષકોએ વાંચવા જેવું :


Sayani Kamal

બધા શિક્ષકોએ વાંચવા જેવું :
શિક્ષક : જુઓ બાળકો…
આપણે ચિત્ર સ્પર્ધા કરવાની છે… 
વિષય છે…
બાળક : પણ સાહેબ મારે તો મોર દોરવો છે…!!!
શિક્ષક : મોર – બોર નહિ પણ મેં કહ્યું એ જ દોરવાનું…
અત્યારે ઉજવણી કયા કાર્યક્રમની છે…?
અને હા બાળકો તમારે વક્તૃત્વ સ્પર્ધામાં ભાગ લેવાનો છે…
બે – બે હોશિયાર વિદ્યાર્થીઓએ અલગ – અલગ દેશ નેતાઓના નિબંધ તૈયાર કરી જ નાખવાના કારણ કે આવી ઉજવણીઓ તો ચાલુ જ રહેવાની… 
કામ લાગે…
અને હા આધારકાર્ડ ના નીકળ્યું હોય તેવા કેટલાં…?
જેની પાસે હોય તે એક ઝેરોક્ષ બેંકમાં આપી આવજો…
ફોનની ઘંટડી રણકે છે… 
સામે છેડે…
અરે ભાઈ તમે હાલ જ આવીને *BLO*નું મટીરીયલ લઇ જાઓ…
અરજન્ટ છે…
શિક્ષક : પણ સાહેબ પરીક્ષા આવે છે…
ભણાવવાનું…
અરે એ બધું છોડો, પહેલા આ કરો…
શિક્ષક : બાળકો કાલે સ્વચ્છતાનું એક ગીત પણ તમારે તૈયાર કરી લાવવાનું છે…
જો હું બોર્ડ પર લખી દઉં છું…
ગીત બોર્ડ પર લખે છે…
રાજુ : સાહેબ હું તૈયાર નહીં કરી લાવું…
શિક્ષક : કેમ…?
તારે કોઈ પ્રવૃત્તિમાં ભાગ જ નથી લેવો…?
ભણવાનું બંધ કરી દે…
રાજુ : સાહેબ તમે ભણાવવાનું શરૂ કારી દો તો મારે બંધ નહીં કરવું પડે… 
મને વાંચતા આવડે એવું તો કઈંક કરો પછી નિબંધ સ્પર્ધાઓ રાખો…
શિક્ષક ચૂપ…

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આ શિક્ષક કોણ છે…?
તમે…???
હું…???
કોઈ તો બચાવો…
ક્યા ખોવાયુ છે શિક્ષણ…??

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આવી બાબતોમાં ખોવાયુ છે શિક્ષણ….!!!
ઉત્સવોની જંજાડમાં ને તૈયારીઓની ભરમારમાં ખોવાયુ છે શિક્ષણ…
વાલીઓની નિરસતામાં ને બાળકની નિષ્કિયતામાં ખોવાયુ છે શિક્ષણ…
નીતિઓના ફેરબદલીમાં ને શિક્ષકોની અદલાબદલીમાં ખોવાયુ છે શિક્ષણ…
મીટીંગોની ભરમારોમાં ને વહિવટોની ગડમથલોમાં ખોવાયુ છે શિક્ષણ…
પરિપત્રોના અર્થઘટનમાં ને સમજથી શબ્દોના ઉકેલમાં ખોવાયુ છે શિક્ષણ…
પરીક્ષાઓનાં આયોજનમાં ને ગુણોનાં સમાયોજનમાં ખોવાયુ છે શિક્ષણ…
કાયદાનાં  કદમાં ને  નિયમોની હદમાં ખોવાયુ છે શિક્ષણ…
આધુનિકતાનાં રેલામાં ને બાળકનાં થેલામાં ખોવાયુ છે શિક્ષણ…
ગરીબીનાં શ્રાપમાં ને લાચાર સંતાનનાં બાપમાં ખોવાયુ છે શિક્ષણ…
સમાજનાં વિચારમાં ને સત્તાનાં પ્રચારમાં ખોવાયુ છે શિક્ષણ…
ગામની સફાઇમાં ને ગુણોની હરિફાઇમાં ખોવાયુ છે શિક્ષણ…
માતાપિતાનાં ફોર્સમાં ને શિક્ષણનાં કોર્સમાં

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​ढोला-सादिया सेतु


ढोला-सादिया सेतु (वो सबकुछ जो आप जानना चाहते हैं) : आज 56 इंची सिने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश का सबसे लंबा सेतु राष्ट्र को समर्पित कर नया इतिहास रच डाला, आइये जानते हैं इसके बारे में रोचक तथ्य : 
1. 15 अगस्त 1950 में एक भूकंप आया जिस से ब्रह्मपुत्र नदी ने अपन रुख बदल लिया, परिणाम स्वरूप भारत का अतिसंवेदनशील पूर्वी अरुणांचल प्रदेश से सड़क मार्ग पूरी तरह कट गया, यानी अब पूर्वी सीमाएं पूर्ण रूप से असुरक्षित हो गयी थी, लेकिन देश मे 70 साल राज करने वाली कांग्रेस सरकार को कभी इसकी फिक्र ही नही हुई, बहुत व्यस्त जो थे अपनी अय्याशियों और घोटाले करने में ।
2. केंद्र में BJP की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार आयी और PM वाजपेयी ने देश की सुरक्षा की दृष्टि से पूर्वी सीमाओँ और अरुणांचल प्रदेश को देश से जोड़ने का बीड़ा उठाया ।
3. रक्षा मंत्री जॉर्ज फ़र्नान्डिस ने एक विवादास्पत बयान दिया “पाकिस्तान नही चीन है भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा” जिबकी इसके विपरीत आज तक कि कांग्रेस सरकारें “हिन्दी चीनी भाई भाई” का नारा देती आयीं थीं और हर बार भारत धोखा खाता था, पूरे विश्व मे अफरातफरी मच गई ये बयान विश्व हेडलाइंस बन गया, और वे PM वाजपेयी से मिले और सड़क को सेना के उपयोग में आने लायक बनाने के लिए कहा ।
4. PM वाजपेयी को बात जम गयी और BJP सरकार ने सामरिक उपयोग के लिए सेतु की डिज़ाइन ड्राइंग स्पेसिफिकेशन तैयार करने शुरू किए, फिजिबिलिटी रिपोट और DPR तैयार हुई और 2003 में BJP सरकार ने सेतु बनाने को हरी झंडी दे दी ।
5. सरकार बदल गयी और कांग्रेस की सरकार आयी जिसने 7 साल इस संवेदनशील सेतु की फ़ाइल दबाए रखी, ये देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ था ।
6. सेतु की प्रारंभिक कीमत 360 करोड़ थी, लेकिन बाद में कांग्रेस ने इसे बढ़ा कर 950करोड़ किया और फिर इसका ठेका 2096 करोड़ में दिया गया यानी मूल कीमत से करीब 6 गुना, शायद इसके निर्माण में भ्रष्टाचार करने के लिए ही कांग्रेस ने 7 साल तक इस मामले को लटकाए रखा और जब भ्रष्टाचार की रकम सबके पेट मे चली गयी तब फ़ाइल आगे बढ़ाई, यदि ये पुल 2004 में ही बनवा लिया गया होता तो सिर्फ 360 करोड़ में बन जाता और बचे हुए पैसे से और कई निर्माण किये जा सकते थे ।
7. 2010 में ठेका होने के बाद 2011 में कछुए की गति से काम चालू हुआ, मोदी सरकार के आने के बाद PM मोदी ने इस सेतु की संवेदनशीलता पर ध्यान देते हुए इसकी day to day रिपोर्ट PMO तलब करनी शुरू कर दी, मोदी की सख्ती रंग लाई और बचा हुआ काम रिकॉर्ड दिनों में पूरा किया गया ।
1950 से 2017 यानी 67 साल बाद आज देश का एक हिस्सा फिर से देश से जुड़ पाया है, वो भी मोदी सरकार के सत्ता में आने की बदौलत, अभी सिर्फ 3 साल हुए हैं आगे आगे देखिए होता है क्या, यू ही नही कोई 56 इंची बन जाता, 3 साल बेमिसाल, जय मोदीराज, नमो नमो ।

Posted in कविता - Kavita - કવિતા

बूढा बाप समझा कि मुकद्दर संवर गया ! बेटे को डीग्री मिली और घर से निकल गया !!


बूढा बाप समझा कि मुकद्दर संवर गया !
बेटे को डीग्री मिली और घर से निकल गया !!
~ Bk Neelam….✍🏻
एक बार जरूर पढ़े दोस्तों……….
दादी माँ बनाती थी रोटी
पहली गाय की,
आखरी कुत्ते की………..
.
हर सुबह सांड आ जाता था
दरवाज़े पर गुड़ की डली के लिए………
.
कबूतर का चुग्गा
कीडियो(चीटियों) का आटा….

ग्यारस, अमावस, पूर्णिमा का सीधा
डाकौत का तेल
काली कुतिया के ब्याने पर तेल गुड़ का सीरा……….

सब कुछ निकल आता था
उस घर से ,
जिसमें विलासिता के नाम पर एक टेबल पंखा था……..

आज सामान से भरे घर में
कुछ भी नहीं निकलता
सिवाय लड़ने के कर्कश आवाजों के…….
….
मकान चाहे कच्चे थे
लेकिन रिश्ते सारे सच्चे थे…

चारपाई पर बैठते थे
पास पास रहते थे…

सोफे और डबल बेड आ गए
दूरियां हमारी बढा गए….

छतों पर अब न सोते हैं
बात बतंगड अब न होते हैं…..

आंगन में वृक्ष थे
सांझे सुख दुख थे…

दरवाजा खुला रहता था
राही भी आ बैठता था…….

कौवे भी कांवते थे
मेहमान आते जाते थे…….

इक साइकिल ही पास था
फिर भी मेल जोल था…….

रिश्ते निभाते थे
रूठते मनाते थे…

पैसा चाहे कम था
माथे पे ना गम था…

मकान चाहे कच्चे थे
रिश्ते सारे सच्चे थे…

अब शायद कुछ पा लिया है
पर लगता है कि बहुत कुछ गंवा दिया!!!!

पोस्ट दिल को छू गयी हो तो शेयर जरूर कर दे………..

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

ન્યુયોર્કમાં સરકારી સ્ટેટબેંક ની શાખા છે


ન્યુયોર્કમાં સરકારી સ્ટેટબેંક ની શાખા છે, દુનિયા ની લગભગ બધી મુખ્ય બધી બેંકો સાથે વ્યવહાર છે. રોજના લાખો કરોડો ડોલર ની લેવડદેવડ થાય છે. આવી આ વિશાળ બેંક માં ૬ કેશ કાઉન્ટર છે.

૪૬ વર્ષીય જહોન પિટર નામના બેંક ના કર્મચારી આમાં થી એક કાઉન્ટર સંભાળે છે. હવે સામાન્ય રીતે તો બધા કાઉન્ટર પર 3 થી ૪ લોકો ની લાઈન લાગે પણ જહોનભાઈ નાં કાઉન્ટર પર ૧૦ થી ૧ર જણાં લાઈનમાં ઉભા હોય. ક્યારેક તો વળી એવું પણ બને કે ૬ કાઉન્ટર માં થી ૫ કાઉન્ટર પર કોઈ કહેતાં કોઈ ન હોય અને જહોનભાઈ ને ત્યાં ૫ જણાં લાઈન લગાવી ને વાટ જોતાં હોય.

બેંક ના મેનેજર નું ધ્યાન જતાં તેમણે બીજા કાઉન્ટર પર જલ્દી સર્વિસ મળી શકશે એમ જણાવ્યું તો પણ લોકો તો જહોન પાસેથી જ પૈસા મેળવવા નો આગ્રહ રાખતાં.

આનું રહસ્ય સમજવાં મેનેજર સાહેબે આ પાંચ સાત ખાતેદારો ની જુદા જુદા સમયે પૂછપરછ કરી. જાણી ને સાહેબ તો અચંબિત થઈ ગયાં. આવો આપણે પણ આ ખાતેદારો ની વાત ક્રમસર જાણીએ.

પહેલાં ખાતેદારે કહ્યું જહોન પાસેથી લીધેલા પૈસા માં બરકત સારી આવે છે.

બીજા ખાતેદાર મલ્ટીનેશનલ કંપની નાં એકાઉન્ટન્ટ કહે કે મને કુદરતીરીતે જ જહોન પાસેથી પૈસા લેવાનું ગમે છે.

ત્રીજા ખાતેદાર સરકારી કામો નાં કોન્ટ્રાકટર હતાં. હું જહોન પાસેથી પૈસા લઉ તો અઘરાં કામો પણ સરળતા થી અને સમયસર પૂર્ણ થાય છે.

મિ. એલન સ્મિથ જે ચોથા ખાતેદાર છે બિઝનેસમેન છે. મારે ઘણાં શહેરો માં ટ્રાવેલ કરવું પડે છે. એમના પાસેથી લીધેલા પૈસાની બેગ મુસાફરી માં બબ્બે વાર ખોવાયા પછી પાછી મળી ગઈ છે.

પાંચમા ખાતેદારે તો જહોન ને પોતાનાં જીવન પરિવર્તન કરી આપનાર ફરિશ્તો કહ્યો. હું વેશ્યાઓ પાછળ અને દારુ પાછળ ખૂબ પૈસા ખર્ચતો, પણ એક દિવસ જહોન પિટર પાસે ચેક ક્લિયરન્સ કરાવી પૈસા લીધા તો તરત જ અચાનક મને થયું કે હું કેટલા ખોટા માર્ગે છું, આમ મારું જીવન પરિવર્તન થયું. એ રાતે મને સપનું આવ્યું કે ભગવાન જાણે કે કહી રહ્યા હોય કે આ વિચાર માટે જહોનભાઈ ની પ્રાર્થના જવાબદાર છે. ગમે એટલી વાર લાગે પણ પૈસા તો હું જહોનભાઈ થી જ લઉં છું.

જીમી નામની મહિલાએ કહ્યું કે તેનું અને તેનાં પતિ રોબર્ટ વર્થ નું જોઈંટ એકાઉન્ટ આ બેંક માં છે. એક વાર પોતાની સાથે કામ કરતાં યુવાન ના પ્રેમ માં અંધ બની ને બધા પૈસા ઉપાડી ભાગી જવાની હતી. કુદરતી રીતે જહોન પીટર પાસે ચેક ક્લિયરીંગ માટે ગયો. એમણે પૈસા આપ્યા, તરત જ મને મારી ભૂલ નો અહેસાસ થયો. હું ત્યાં જ ખુરશી પર બેસી વિચારવા લાગી અને બધા પૈસા પરત સ્લીપ ભરી બેંક માં પાછા જમા કરાવી દીધા. ત્યારથી હું હંમેશા જહોન પાસેથી જ પૈસા લેવાનો આગ્રહ રાખું છું.

બે દિવસ પછી મેનેજર સાહેબે જહોન અને તેમની વાઈફ ને પોતાને ત્યાં ડિનર પર નિમંત્રણ આપ્યું. તેઓ એ ખુબ જ ઉત્સાહ થી પોતાનાં આ સામાન્ય ક્લાર્ક નાં અદભુત કહી શકાય એવાં પરિણામો દંપતિ ને જણાવ્યાં. પોતાનાં બાળકો સાથે જહોન નાં આર્શિવાદ માંગ્યા. ત્યારે આ સરળ એવાં જહોન ભાઈ એ કહ્યું સાહેબ હું કોઈ સાધુ નથી, સંત નથી પણ સંસ્કારી માતા પિતા નું સંતાન છું. નાનપણ થી જ મારી મા મને કહેતી કે આપણા સંપર્ક માં જે કોઈ આવે એમનું દિલથી ભલું ઈચ્છવું.

મારી માતાની સોનેરી સલાહ ને મેં જીવન માં ઉતારી છે. તેથી જે કોઈનો પણ ચેક મારી પાસે ક્લીયરન્સ માટે આવે ત્યારે હું મનમાં જ સાચા દિલથી,

“MAY GOD BLESS YOU”

“પ્રભુ તમને આર્શિવાદ આપે, તમારું ભલું કરે”

આ પ્રાર્થના ત્રણ વાર કરું છું. ટોકન આપે ત્યારે, હું પૈસા ગણું ત્યારે અને એમનાં હાથમાં પૈસા આપું ત્યારે. તમારે મંત્રજાપ માનવો હોય તો મંત્રજાપ માનો અને દિવ્યસહાય ગણવી હોય તો દિવ્યસહાય ગણો, જે હોય તે આ છે