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लड्डू गोपाल की सेवा……………


लड्डू गोपाल की सेवा……………

एक नगर में दो वृद्धस्त्रियां बिल्कुल पास पास रहा करती थी। उन दोनो में बहुत घनिष्ठता थी। उन दोनों का ही संसार में कोई नहीं था इसलिए एक दूसरे का सदा साथ देतीं और अपने सुख-दुःख आपस में बाँट लेती थीं। एक स्त्री हिन्दू थी तथा दूसरी जैन धर्म को मानने वाली थी। हिन्दू वृद्धा ने अपने घर में लड्डू गोपाल को विराजमान किया हुआ था। वह प्रतिदिन बड़े प्रेम से लड्डू गोपाल की सेवा करा करती थी। प्रतिदिन उनको स्नान कराना, धुले वस्त्र पहनाना, दूध व फल आदि भोग अर्पित करना उसका नियम था। वह स्त्री लड्डू गोपाल के भोजन का भी विशेष ध्यान रखती थी। सर्दी, गर्मी, बरसात हर मौसम का ध्यान उसको रहता था। वह जब भी कभी बाहर जाती लड्डू गोपाल के लिए कोई ना कोई खाने की वस्तु, नए वस्त्र खिलोने आदि अवश्य लाती थी। लड्डू गोपाल के प्रति उसके मन में आपार प्रेम और श्रद्धा का भाव था। उधर जैन वृद्धा भी अपनी जैन परम्परा के अनुसार भगवान् के प्रति सेवा भाव में लगी रहती थी। उन दोनों स्त्रिओं के मध्य परस्पर बहुत प्रेम भाव था, दोनों ही एक दूसरे के भक्ति भाव और धर्म की प्रति पूर्ण सम्मान की भावना रखती थी। । जब किसी को कोई समस्या होती तो दूसरी उसका साथ देती, दोनों ही वृद्धाएं स्वाभाव से भी बहुत सरल और सज्जन थी। भगवान की सेवा के अतिरिक्त उनका जो भी समय शेष होता था वह दोनों एक दूसरे के साथ ही व्यतीत करती थीं।

एक बार हिन्दू वृद्धा को एक माह के लिए तीर्थ यात्रा का अवसर प्राप्त हुआ उसने दूसरी स्त्री से भी साथ चलने का आग्रह किया किन्तु वृद्धावस्था के कारण अधिक ना चल पाने के कारण उस स्त्री ने अपनी विवशता प्रकट करी, हिन्दु वृद्धा ने कहा कोई बात नहीं में जहां भी जाउंगी भगवान् से तुम्हारे लिए प्रार्थना करुँगी। फिर वह बोली में तो एक माह में लिए चली जाउंगी तब तक मेरे पीछे मेरे लड्डू गोपाल का ध्यान रखना। उस जैन वृद्धा ने सहर्ष ही उसका यह अनुरोध स्वीकार कर लिया। हिन्दू वृद्धा ने उस जैन वृद्धा को लड्डू गोपाल की सेवा के सभी नियम व आवश्यकताएँ बता दी उस जैन वृद्धा ने सहर्ष सब कुछ स्वीकार कर लिया।

कुछ दिन बाद वह हिन्दू वृद्धा तीर्थ यात्रा के लिए निकल गई। उसके जाने के बाद लड्डू गोपाल के सवा का कार्य जैन वृद्धा ने अपने हाथ में लिया। वह बहुत उत्त्साहित थी कि उसको लड्डू गोपाल की सेवा का अवसर प्राप्त हुआ। उस दिन उसने बड़े प्रेम से लड्डू गोपाल की सेवा करी, भोजन कराने से लेकर रात्री में उनके शयन तक के सभी कार्य पूर्ण श्रद्धा के साथ वैसे ही पूर्ण किए जैसे उसको बताए गए थे। लड्डू गोपाल के शयन का प्रबन्ध करके वह भी अपने घर शयन के लिए चली गई।

अगले दिन प्रातः जब वह वृद्धा लड्डू गोपाल के सेवा के लिए हिन्दू स्त्री के घर पहुंची तो उसने सबसे पहले लड्डू गोपाल को स्नान कराने की तैयारी करी, नियम के अनुरूप जब वह लड्डू गोपाल को स्नान कराने लगी तो उसने देखा की लड्डू गोपाल के पाँव पीछे की और मुड़े हुए हैं। उसने पहले कभी लड्डू गोपाल के पाँव नहीं देखे थे जब भी उनको देखा वस्त्रों में ही देखा था। वह नहीं जानती थी की लड्डू गोपाल के पाँव हैं ही ऐसे, घुटनों के बल बैठे हुए। लड्डू गोपाल के पाँव पीछे की और देख कर वह सोंचने लगी अरे मेरे लड्डू गोपाल को यह क्या हो गया इसके तो पैर मुड़ गए है। उसने उस हिन्दू वृद्धा से सुन रखा था की लड्डू गोपाल जीवंत होते हैं। उसने मन में विचार किया की में इनके पैरो की मालिश करुँगी हो सकता है इनके पाँव ठीक हो जाएं। बस फिर क्या था भक्ति भाव में डूबी उस भोली भाली वृद्धा ने लड्डू गोपाल के पैरों की मालिश आरम्भ कर दी। उसके बाद वह नियम से प्रति दिन पांच बार उनके पैरों की मालिश करने लगी। उस भोली वृद्धा की भक्ति और प्रेम देख कर ठाकुर जी का हृदय द्रवित हो उठा, भक्त वत्सल भगवान् अपनी करुणा वश अपना प्रेम उस वृद्धा पर उड़ेल दिया। एक दिन प्रातः उस जैन वृद्धा ने देखा की लड्डू गोपाल के पाँव ठीक हो गए हैं और वह सीधे खड़े हो गए हैं, यह देख कर वह बहुत प्रसन्न हुई और दूसरी स्त्री के आने की प्रतीक्षा करने लगी।

कुछ दिन पश्चात् दूसरी स्त्री वापस लोटी तो उसने घर आकर सबसे पहले अपने लड्डू गोपाल के दर्शन किये, किन्तु जैसे ही वह लड्डू गोपाल के सम्मुख पहुंची तो देखा कि वह तो अपने पैरों पर सीधे खड़े हैं, यह देखकर वह अचंभित रह गई। वह तुरंत उस दूसरी स्त्री के पास गई और उसको सारी बात बताई और पूंछा कि मेरे लड्डू गोपाल कहा गए। यह सुनकर उस जैन स्त्री ने सारी बात बता दी उसकी बात सुनकर वह वृद्ध स्त्री सन्न रह गई और उसको लेकर अपने घर गई वहां जाकर उसने देखा तो लड्डू गोपाल मुस्करा रहे थे, वह लड्डू गोपाल के चरणों में गिर पड़ी और बोली है गोपाल आपकी लीला निराली है, मेने इतने वर्षो तक आपकी सेवा करी किन्तु आपको नहीं पहचान सकी। तब वह उस जैन वृद्धा से बोली की तू धन्य है, तुझको नहीं मालूम की हमारे लड्डू गोपाल के पाँव तो ऐसे ही हैं, पीछे की और किन्तु तेरी भक्ति और प्रेम ने तो लड्डू गोपाल पाँव भी सीधे कर दिया।

उस दिन के बाद उन दोनों स्त्रिओं के मध्य प्रेम भाव और अधिक बड़ गया दोनों मिल कर लड्डू गोपाल की सेवा करने लगी। वह दोनों स्त्री जब तक जीवित रही तब तक लड्डू गोपाल की सेवा करती रहीं।

हरे कृष्णा
जय जय श्री राधे।

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शेखचिल्ली की कहानी – साधना वैद


शेखचिल्ली की कहानी

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लोक कथायें कहाँ से आईं और कहाँ तक पहुँचीं, उनमें कितने बदलाव हुए और कितने नये किस्से उनमें जुड़ते गये इसका अनुमान लगाना मुश्किल है | पर इन काल्पनिक कथाओं के कुछ नायक इतने पसंंद किये गये कि उनके गुणों से मिलते हुए यथार्थ जगत के किसी भी व्यक्ति को उन्हीं के नाम से पुकारा जाने लगा यह उन नायकों की लोक स्वीकृति और प्रसिद्धि का परिचायक है ! थोड़े बुद्धू पर खयाली पुलाव पकाने के आदी शेखचिल्ली भी एक उसी तरह का और सबको हँसाने वाला एक मशहूर पात्र है !

परन्तु शेखचिल्ली का चरित्र कोई काल्पनिक चरित्र नहीं है ! हरियाणा के किसी गाँव में एक ग़रीब परिवार रहता था ! परिवार में शेख नाम का एक बालक था ! इस बच्चे का नाम शेखचिल्ली कैसे पड़ा यह एक रोचक कहानी है ! एक बार मदरसे में व्याकरण पढ़ाते हुए मौलवी साहेब ने बच्चों को सिखाया कि अगर ‘लड़का’ है तो वह खाता है, रोता है और सोता है लेकिन इसके विपरीत अगर ‘लड़की’ है तो वह खाती है, रोती है, सोती है इत्यादि ! शेख ने यह बात ध्यान से सुनी और याद कर ली ! एक दिन गाँव की एक लड़की सूखे कुए में गिर गयी ! सारा गाँव उसे खोजने लगा ! शेख भी उसे खोजने लगा ! शेख को कुए के अंदर से लड़की के चिल्लाने की आवाज़ सुनाई दी ! उसने सबको बुलाया देखो, ‘लड़की चिल्ली रही है !’ लोगों ने लड़की को कुए से बाहर निकाला ! लड़की ज़ोर-ज़ोर से रो रही थी पर उसे ज्यादह चोट नहीं लगी थी ! शेख ने कहा, ‘ये चिल्ली रही है पर ठीक हो जायेगी !’ लोगों ने आश्चर्य से पूछा, ‘ये चिल्ली चिल्ली क्या कह रहे हो !’ शेख ने कहा, ‘लड़का होता तो मैं कहता चिल्ला रहा है ! लड़की है इसलिए चिल्ली रही है !’ लोग हँसते-हँसते लोटपोट हो गये और मदरसे के सभी छात्रों के बीच बालक शेख का नाम ‘शेखचिल्ली’ पड़ गया ! शेखचिल्ली ने इसका बुरा भी नहीं माना ! और वह अपने अजीब कारनामों से सबका मनोरंजन करता रहा ! आज भी शेखचिल्ली की कहानियाँ हम सबको खूब हँसाती हैं ! कहा जाता है कि बाद में उम्रदराज़ हो जाने पर यही शेखचिल्ली फ़कीर बन गये और हरियाणा के कुरूक्षेत्र में उनका मकबरा आज भी अच्छी हालत में मौजूद है ! उसके पास ही उनकी पत्नी का मकबरा भी बना हुआ है ! वहीं पर एक मदरसा भी है ! कहते हैं कि शेखचिल्ली इसी मदरसे में पढ़ा करते थे !

 

शेखचिल्ली का मकबरा

आइये शेखचिल्ली की सबसे मशहूर कहानी आज आपको सुनाती हूँ !

शेखचिल्ली अपनी माँ के पास रहते थे पर कुछ काम काज नहीं करते थे ! एक दिन गाँव की हाट में पंसारी की दूकान के पास खाली बैठे थे तभी एक अमीर आदमी दूकान पर आया और उसने पंसारी से घड़ा भर घी खरीदा ! मदद के लिये उसने शेखचिल्ली से पूछा, ‘क्या तुम यह घड़ा मेरे घर पहुँचा दोगे ? मैं तुम्हें इसके बदले में दो सिक्के दूँगा !’ शेखचिल्ली तुरंत राज़ी हो गये ! उन्होंने अपने सिर पर घड़ा रखवा लिया और अमीर आदमी के पीछे-पीछे चल दिये ! आदत के अनुसार वो लगे खयाली पुलाव पकाने ! मैं तो इन पैसों से एक अंडा खरीदूँगा ! अंडे को खूब सम्हाल के रूई पर रखूँगा ! कुछ दिन के बाद उसमें से चूज़ा निकल आएगा ! चूज़ा बड़ा होकर मुर्गी बन जाएगा ! अब तो वह मुर्गी रोज़ अंडे दिया करेगी ! और मेरे पास जब बहुत सारे चूज़े, मुर्गियाँ और अंडे जमा हो जायेंगे तो मैं उनको बेच कर बकरियाँ खरीद लूँगा ! बकरियों के भी बच्चे हो जायेंगे तो मेरे पास ढेर सारे बकरे बकरियाँ जमा हो जायेंगे ! लेकिन बड़ा आदमी बनने के लिये मुझे तो बहुत तरक्की करनी है इसलिए मैं उनको भी बेच दूँगा और फिर मैं भैंस पालने का काम करूँगा ! भैंस के दूध में अच्छा मुनाफ़ा है ! खूब धन जमा हो जाएगा ! माँ भी खुश हो जायेंगी और मुझे निखट्टू कहना बंद कर देंगी ! सबसे पहले तो मैं अपने टूटे हुए घर की मरम्मत करवा के एक सुन्दर सा मकान बनाउँगा ! पड़ोसी तो देखते ही रह जायेंगे ! और फिर तो मेरी शादी के लिये बहुत अच्छे-अच्छे रिश्ते भी आने लगेंगे ! मेरी माँ ज़रूर मेरे लिये एक सुन्दर और आज्ञाकारी पत्नी खोज लेंगी और मेरा जीवन खुशियों से भर जाएगा ! मैं रोज़ भैंसों के लिये चारा काटने जंगल जाया करूँगा और मेरी पत्नी घर का और भैंसों का सारा काम कर दूध निकाला करेगी ! मेरी माँ घर के बाहर बैठ कर दूध बेचा करेगी ! सोचते-सोचते शेखचिल्ली मुस्कुरा भी रहे थे और शरमा भी रहे थे ! अब बाल बच्चे भी तो हो जायेंगे और वहीं घर के आँगन में खेला करेंगे ! शाम को मेरे घर लौटने का इंतज़ार किया करेंगे ! जब शाम को सिर पर भैसों के लिये चारा लाद कर मैं घर आउँगा तो बच्चे ‘अब्बा-अब्बा’ कह कर मेरे पैरों से लिपट जायेंगे ! उन्हें गोद में लेने के लिये मैं सिर के गठ्ठर को वहीं पटक दूँगा और उन्हें गोद में उठा लूँगा ! शेखचिल्ली अपने ख्यालों में इतने डूब चुके थे कि चारे का गठ्ठर पटकने की जगह उन्होंने अपने सिर पर रखा घी से भरा घड़ा ही ज़मीन पर पटक दिया ! घड़ा फूट गया और सारा घी ज़मीन पर फ़ैल गया ! अमीर ने जब यह नज़ारा देखा तो अपना सिर पीट लिया ! शेखचिल्ली को उसने खूब खरी खोटी सुनाई और कहा कि, ‘तुमने तो मेरा सारा घी मिट्टी में मिला दिया !’

शेखचिल्ली सदमे में चुपचाप खड़े थे ! डाँट सुन कर बोले, ‘तुम्हारा तो सिर्फ घी ही मिट्टी में मिला है मेरा तो सारा घरबार, बीबी बच्चे, भैंस तबेला, सब के सब मिट्टी में मिल गये !’

तो ऐसे थे जनाब शेखचिल्ली ! आज भी कोरे दिवास्वप्न देखने वाले और आधारहीन कल्पना के संसार में विचरने वालों लोगों को शेखचिल्ली की उपाधि से ही नवाज़ा जाता है ! तो कहिये कैसी रही कहानी ! मज़ा आया न आपको ?

साधना वैद

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बाहूबली


श्री संजय द्विवेदी
​”बाहूबली फिल्म मे जिस 

#महिष्मति रियासत की बात हुई है उस पर”
“हैहय वंश” के क्षत्रियो का राज था ।

चेदि जनपद की राजधानी ‘माहिष्मति’, जो नर्मदा के तट पर स्थित थी, इसका अभिज्ञान ज़िला इंदौर, मध्य प्रदेश में स्थित ‘महेश्वर’ नामक स्थान से किया गया है, जो पश्चिम रेलवे के अजमेर-खंडवा मार्ग पर बड़वाहा स्टेशन से 35 मील दूर है।
महाभारत के समय यहाँ राजा नील का राज्य था, जिसे सहदेव ने युद्ध में परास्त किया था ।

‘ततो रत्नान्युपादाय पुरीं माहिष्मतीं ययौ।

तत्र नीलेन राज्ञा स चक्रे युद्धं नरर्षभ:।।
राजा नील महाभारत के युद्ध में कौरवों की ओर से लड़ता हुआ मारा गया था। बौद्ध साहित्य में माहिष्मति को दक्षिण अवंति जनपद का मुख्य नगर बताया गया है। बुद्ध काल में यह नगरी समृद्धिशाली थी तथा व्यापारिक केंद्र के रूप में विख्यात थी। तत्पश्चात उज्जयिनी की प्रतिष्ठा बढ़ने के साथ-साथ इस नगरी का गौरव कम होता गया।
गुप्त काल में 5वीं शती तक माहिष्मति का बराबर उल्लेख मिलता है। कालिदास ने ‘रघुवंश’ में इंदुमती के स्वयंवर के प्रसंग में नर्मदा तट पर स्थित #माहिष्मति का वर्णन किया है और यहाँ के राजा का नाम ‘प्रतीप’ बताया है।
‘अस्यांकलक्ष्मीभवदीर्घबाहो

माहिष्मतीवप्रनितंबकांचीम् प्रासाद-जालैर्ज

लवेणि रम्यां रेवा यदि प्रेक्षितुमस्तिकाम:।’
इस उल्लेख में माहिष्मती नगरी के परकोटे के नीचे कांची या मेखला की भाति सुशोभित नर्मदा का सुंदर वर्णन है।

कालिदास का उल्लेख माहिष्मति नरेश को कालिदास ने अनूपराज भी कहा है जिससे ज्ञात होता है कि कालिदास के समय में माहिष्मति का प्रदेश “नर्मदा” नदीके तट के निकट होने के कारण अनूप कहलाता था। पौराणिक कथाओं में माहिष्मति को हैहय वंशीय कार्तवीर्य अर्जुन अथवा सहस्त्रबाहु की राजधानी बताया गया है। किंवदंती है कि इसने अपनी सहस्त्र भुजाओं से नर्मदा का प्रवाह रोक दिया था।
महेश्वर में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई ने नर्मदा के उत्तरी तट पर अनेक घाट बनवाए थे, जो आज भी वर्तमान हैं। यह धर्मप्राणरानी 1767 के पश्चात इंदौर छोड़कर प्राय: इसी पवित्र

स्थल पर रहने लगी थीं। नर्मदा के तट पर अहिल्याबाई तथा होल्कर वंश के नरेशों की कई छतरियां बनी हैं। ये वास्तुकला की दृष्टि से प्राचीन हिन्दू मंदिरों के स्थापत्य की अनुकृति हैं। भूतपूर्व इंदौर रियासत की आद्य राजधानी यहीं थी।
एक पौराणिक अनुश्रुति में कहा गया है कि माहिष्मति का बसाने वाला ‘महिष्मानस’ नामक चंद्रवंशी नरेश था। सहस्त्रबाहु इन्हीं के वंश में हुआ था। महेश्वरी नामक नदी जो माहिष्मति अथवा महिष्मान के नाम पर प्रसिद्ध है, महेश्वर से कुछ ही दूर पर नर्मदा में मिलती है।
हरिवंश पुराण की टीका में नीलकंठ ने माहिष्मति की स्थिति विंध्य और ऋक्ष पर्वतों के बीच में विंध्य के उत्तर में और ऋक्ष के दक्षिण में बताई है।
मुम्बई फ़िल्म इंडस्ट्री वाले तिलमिला गए हैं। सारी इंडस्ट्री चिन्ता में है। और क्यों न हों? प्रतिस्पर्धा कोई एरे गेरे से थोड़ी ना है??

आजतक मद्रास ने कोई अधिक हानि नही पहुचाई थी परन्तु आंध्र फ़िल्म इंडस्ट्री मद्रास थोड़ी ना है?? यह मुम्बई बॉलीवुड को खा जायेगी और डकार भी नही लेगी। बॉलीवुड ने कभी योग्य व्यक्ति को उचित कार्य नही दीया है। बॉलीवुड में दाउद जैसे मुस्लीमों का राज चलता होने के कारण सभी फ़िल्म में अकारण मुस्लीम पात्र घुसेड़ा है। नायक-नायिका हिन्दू होने पर भी गीतों में खुदा और अल्ला-अल्ला गाना पड़ता था।

सारी फिल्मों में मुस्लीम सभ्यता को महान दिखाना और मुस्लिम पात्र को वीरत्व भरा ही दिखाना पड़ता था क्योंकि बॉलीवुड मुस्लीम साम्राज्य पर ही खड़ा था। परन्तु अब उनके पाप का घड़ा भर चूका है। सामने उनका बाप बाहुबली खड़ा है।
उस दौर में बर्बर यवनो, शकों, हुणों हमारे वैभव को देखकर खिंचे चले आते थे, उन बर्बरों के लगातार आक्रमणों को नकारते हुए, इस पुण्यभूमि के गौरव की गाथा को वही भव्यता के साथ प्रस्तुत किया गया जो उस समय होगा, इसे कल्मनिक मानकर नही अपितु इस पुण्यभूमि भारत का गौरव और वैभव को सजीव मान इस सबसे बहतरीन फिल्म बाहुबली को देखे और अपने पुरखों का स्वाभिमान मान गर्वित हो ।
# बाहूबली जिस फिल्म मे #क्षत्रियो की वीरता ,युद्ध की रणनीती और मातृभूमि के लिए मर मिट जाने वाला शौर्य दिखाया गया है, जो हम इतिहास की किताबो मे पढते आए वो ही इस फिल्म मे दर्शाया है l

वर्तमान में महेश्वर 

खरगोन ज़िले में है 

जो एरिया निमाड़ के नाम से जाना जाता है 

निमाड़ में पहले दो जिले थे अब चार है 

ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग भी निमाड़ में है

Posted in संस्कृत साहित्य

आदि शंकराचार्य


*”आदि शंकराचार्य”* के अवतरण दिवस पर सनातन धर्म की रक्षा के लिए आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।

बड़े ही दुःख की बात है कि कई हिन्दू आदि शंकराचार्य का नाम तक नहीं जानते, पर जो हिन्दू उनको जानते हैं वो हमेशा उनके ऋणी रहेंगे।

अशोक के धर्मांतरण के बाद भारत में बौद्ध बढ़ने लगे।
एक के बाद एक बौद्ध राजा हुए
और सनातनियों का बौद्ध में बड़े पैमाने पर धर्मांतरण हुआ।
भारत की पुरातन संस्कृति ही लुप्त होने लगी!

ऐसे में केरल में जन्मे “शंकर”, सनातन धर्म की रक्षा करने के लिए अकेले ही निकल पड़े। उन्होंने पूरे भारत का भ्रमण किया और सभी बड़े बौद्ध गुरुओं को, उनके साथ, शास्त्रार्थ (ज्ञान बहस) करने की चुनौती दी।

आचार्य शंकर ने एक-एक कर, सभी बौद्ध धर्मगुरुओं को ज्ञान में हराया।

बहस की यही शर्त रहती थी कि, जो बहस में हारेगा वो अपने आप को व अपने अनुयायिओं को जीतने वाले के धर्म में बदल लेगा।

अगर बौद्ध धर्मगुरु हारे तो वे सनातन धर्म में आ जाएँगे और आचार्य शंकर हारे तो वो बौद्ध धर्म में आ जाएँगे या आत्महत्या कर लेंगे।
एक के बाद एक उस समय भारत में मौजूद हर बौद्ध धर्मगुरु को आचार्य शंकर ने हराया, और फिर उनकी और उनके समर्थको की घर वापसी कराई।
उस समय सनातन धर्म का ये हाल था कि सनातनी लोग अपने ही देश, भारत में, अल्पसंख्यक हो गए थे!

सनातन धर्म प्रायः-प्रायः लुप्त ही होने के कगार पर था, पर एक अकेले “आचार्य शंकर” ने सनातन धर्म को बचाया।
आज पूरा हिन्दू समाज आचार्य शंकर का ऋणी है, अन्यथा हमारे पूर्वजों का सनातन धर्म लुप्त ही हो जाता!

वो “आचार्य शंकर” ही थे जिन्होंने सनातन धर्म को बचाया।

आज आचार्य शंकर को आदि शंकराचार्य के नाम से जाना जाता है और उनको मात्र एक संत बता दिया जाता है! उन्होंने ‘क्या किया था’ वो कोई नहीं बताता…!!!

आचार्य शंकर जिस भी बौद्ध गुरु को हराते थे, तो कहते थे, कि- “आज सिद्धार्थ गौतम होते तो वो भी सनातन धर्म में वापसी करते।”

आचार्य शंकर ने चार मठ भी स्थापित किये थे। एक उत्तराखंड में है, एक गुजरात में है, एक उड़ीसा में है और एक कर्नाटका में। उन्होंने इन मठों का निर्माण भारत के चारों कोनों में किया था, व अपने शिष्यों को ज्ञान देकर शंकराचार्य भी बनाया था।
आज भी भारत में ये विद्दमान हैं,
पर “आचार्य शंकर’ की तरह ये काम करने में असमर्थ है! वैसे हिन्दू समाज भी शंकराचार्यों का साथ देता नहीं!
खैर आज महानतम सनातनी योद्धाचार्य “आदि शंकर” का जन्मदिवस है और हम उनको नमन करते हैं।
🙏🔔🙏
(~योगिअंश रमेश चन्द्र भार्गव)

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BUT IT’S HARD TRUTH – दही ले लो, दही। मीठा और ताज़ा दही। पेट को ठंडक पहुंचाने वाला दही


BUT IT’S HARD TRUTH

मेरे गांव में एक महिला सिर पर मटका ले कर घूमती थी और कहती, “दही ले लो, दही। मीठा और ताज़ा दही। पेट को ठंडक पहुंचाने वाला दही।”
मैं मां से पूछता था कि मां, ये दही सिर पर लेकर क्यों घूमती है? मां कहती कि ये दही बेच रही है, बेटा।
“मां, ये दही क्यों बेच रही है?”
“इसके पास गाय है। गाय दूध देती है। हमारे घऱ जो दूध आता है, वो भी यही बेचती है। तुमने देखा होगा, सुबह दूधवाला आता है बाल्टी में दूध लेकर। वो इस दही वाली का पति है। जब दूध बच जाता है, तो उसका दही बना देते हैं और फिर दही बेचते हैं।”
“और दही बच जाए तो?”
“तो उसका घी बना देते हैं। फिर घी बेचते हैं। यही बिजनेस है।”
मेरी मां ने अर्थशास्त्र की पढ़ाई नहीं की थी। पांच साल के . को बिजनेस का मतलब नहीं पता था। लेकिन उस साल गांव जाकर पहली बार मैं बिजनेस का मतलब समझ रहा था। मैं समझ रहा था कि जिसके पास गाय होती है, वो पहले दूध बेचता है। दूध से मुनाफा कम हो तो दही बेचता है और अधिक पैसे चाहिए तो वही घी भी बेचता है।
जैसे-जैसे थोड़ा बड़ा होता गया मैंने सुना कि दूधवाला दूध में अब पानी मिला कर दूध बेचने लगा है। इससे कम दूध ज़्यादा बन जाता है। वाह! क्या बिजनेस है।
यहां तक तो ठीक था। पर बहुत बाद में मैंने सुना कि दूध वाला दूध में यूरिया और पता नहीं क्या-क्या दूध में मिलाने लगा है, जिससे दूध की मात्रा और बढ़ने लगी थी।
मैंने मां से पूछा था कि “मां, क्या ये भी बिजनेस है?”
मां कहती कि नहीं बेटा, “ये चोरी है, बेईमानी है। अपराध है। दूध, दही, घी बेचना बिजनेस है, लेकिन झूठ बोल कर या उसमें मिलावट करके बेचना अपराध है।“
पहली बार मैंने अपराध का मतलब समझा था।
मां की पाठशाला में पढ़ते-पढ़ते ज़िंदगी के पाठ को समझ रहे थे।
“पर मां, दूधवाले का घर तो बहुत बड़ा हो गया है। उसने कई और गाय पाल ली हैं। अब वो दूध की मिठाई भी बनाने लगा है। उसका बिजनेस बढ़ गया है।”
मां कहती थी कि जिस पैसे को बेइमानी से कमाया जाता है, वो पैसा अच्छा नहीं होता। मां ये भी कहती थी कि अधिक की कोई सीमा नहीं होती है, संतोष की सीमा होती है। आदमी को संतोष के साथ जीना चाहिए। दूसरों को धोखा देकर कमाया गया पैसा कभी फलता नहीं।
वो मां थी। उसकी अपनी समझ थी। पर मां के दिए एक-एक ज्ञान को मैंने ज़िंदगी में आत्मसात कर लिया था। मैं गांव से शहर चला आया था। मुझे नहीं पता कि उस दूधवाले का क्या हुआ? बेइमानी से कमाया उसका पैसा उसे फला या उसे ले डूबा, ये भी मुझे नहीं पता।
पर कल मैं दफ्तर में बैठा था और मेरे पास एक रिपोर्ट आई जिसमें लिखा था कि भारत में स्वास्थ्य सेवा अगले सात वर्षों में करीब चार सौ अरब डॉलर का कारोबार हो जाएगा।
चार सौ अरब डॉलर कितने रूपए होते हैं, इसे आप अपने कैलकुलेटर पर कैलकुलेट करते रहिए, मैं तो नहीं कर पाऊंगा, लेकिन मैं इतना कह सकता हूं कि इस ख़बर को पढ़ने के बाद मैं सिहर उठा था।
मुझे नहीं पता कि ऐसे आंकड़े कौन जुटाता है, पर जिन लोगों को इस तरह के आंकड़े जुटाने की ज़िम्मेदारी दी गई है, उन लोगों के मुताबिक अगले तीन वर्षों में भारत में करीब तेरह करोड़ बूढ़े लोगों की संख्या ब़ढ़ जाएगी और तीस करोड़ से अधिक लोगों पर नई बीमारियों से मरने का खतरा मंडराने लगेगा। अस्पताल की मांग खूब बढ़ेगी और मेडिकल बीमा का कारोबार खूब फलेगा-फूलेगा।
मेडिकल क्षेत्र में ढेर सारी नौकरियों की गुंजाइश बढ़ेगी। भारत के पास ढेर सारी विदेशी मुद्रा भी आने लगेगी।
कोई भी इस रिपोर्ट को पढ़ेगा तो खुश होगा कि भारत मेडिकल के क्षेत्र में बहुत तरक्करी करने जा रहा है। पर मैं दुखी हो गया।
मैं मन मे सोचने लगा कि पहले एक आदमी डॉक्टर बना होगा। फिर उसने दवा की दुकान खोली होगी। फिर अस्पताल भी उसी ने खोला होगा। बहुत दिनों के बाद मुमकिन है कि दवा की फैक्ट्री भी उसी ने खोली होगी। बीमा का धंधा भी उसी ने शुरु किया होगा।
कुछ लोग बीमार पड़ते होंगे तो डॉक्टर के पास जाते होंगे। डॉक्टर उन्हें दवा देता होगा। धीरे-धीरे उसने अपने अस्पताल में मरीज़ों की भर्ती शुरू कर दी होगी। यहां तक तो सब ठीक रहा होगा।
पर एक ऐसा वक्त भी आ गया जब उसे लगा कि और पैसे कमाने चाहिए तो वो बीमारी बेचने लगा। ।
लोग पेट खराब होने पर उस डॉक्टर के पास गए, उसने कहा कि कैंसर हो गया है। गैस से छाती में दर्द की शिकायत लेकर गए तो कहने लगा कि हार्ट फेल होने वाला है।
आप सोच रहे होंगे कि -सुबह उठ कर गप मारने लगे हैं। बिल्कुल नहीं। मैंने आपको कालरा साहब की कहानी सुनाई है। वही कालरा साहब जिन्होंने पंद्रह साल पहले दिल्ली के एक नामी अस्पताल से मुझे फोन किया था कि उनकी बाईपास सर्जरी होने वाली है। मै चौंका था कि ऐसा क्या हो गया, तो कहने लगे कि रात में छाती में दर्द हुआ था, डॉक्टर के पास आया था। उन्होंने पूरी जांच की है और कहा है कि धमनियों में वसा जम गया है। ऑपरेशन होना ही एकमात्र उपाय है।
मैंने उन्हें उस दिन अस्पताल से बुला लिया था। कहा था कि जल्दी मत कीजिए। अगली सुबह उसी अस्पताल में उन्हें दुबारा भेजा था, कहा था कि अपना नाम कुछ और बताइएगा और कहिएगा कि इंश्योंरेंस नहीं है। ऑपरेशन के लिए पैसे नहीं हैं। उनकी रिपोर्ट तब बिल्कुल ठीक आई थी। पंद्रह साल बीत गए हैं। कालरा साहब एकदम मस्त हैं। न छाती में दर्द हुआ, न दिल का ऑपरेशन।
मेरी साली को ऐसे ही एक सुबह पेट में दर्द हुआ था तो दिल्ली के एक पांच सितारा अस्पताल ने कहा था कि अपेंडिसाइटिस हो गया है। तुरंत ऑपरेशन नहीं होने पर जान को खतरा है। वो अस्पताल में ही थी कि मैं वहां पहुंच गया। सेकेंड ओपिनियन के लिए मैं उसे वहां से अपने एक मित्र डॉक्टर के पास ले गया। उसने सारा चेकअप किया और कहा कि कुछ नहीं है, अपच की वज़ह से पेट में दर्द हुआ था। इस घटना को भी सत्रह साल बीत चुके हैं। मेरी साली भी एकदम मस्त है।
परसों मेरे घर एक परिचित आई थीं। बताने लगीं कि उनके एक जानने वाले के शरीर में कई गांठ बन गए थे, डॉक्टर ने कहा कि कैंसर हो गया है। वो इतना डरा रहे थे मरीज़ को कि कोई भी घबरा जाए। पर मरीज़ ने कहीं और पूरा चेकअप कराया तो पता चला कि वो ऐसे ही गांठ बन गए हैं, उनसे कोई खतरा नहीं।
इन बातों को सुन कर, देख कर, समझ कर और रिपोर्ट पर पढ़ कर मां की बहुत याद आती है।
जिस डॉक्टर ने ये रिपोर्ट तैयार की है कि भारत में मेडिकल का कारोबार चार सौ अरब डॉलर का हो जाएगा, लाखों लोगों को रोज़गार मिलेगा, विदेशी मुद्रा का फायदा होने लगेगा, उस पर मुमकिन है कि कोई तालियां बजाए, मैं तो नहीं बजाने वाला। मेरी निगाह में मेडिकल का कारोबार बढ़ना ही मानवता के लिए अपराध है। मेडिलक प्रोफेशन की कामयाबी इसमें है कि लोगों को असल में डॉक्टरों की ज़रूरत कम पड़ने लगे। पर ऐसा नहीं हो सकता है।
मुझे तो लगता है कि गांव में दूध बेचने वाले ने पहले दूध में पानी मिलाया। फिर गंदा पानी मिलाया। फिर यूरिया मिलाया। उसके दूध को पीकर हम बीमार पड़े तो उसने अपने एक बेटे को डॉक्टर बना दिया कि वो इलाज़ करेगा।
केवल डॉक्टर बनने से क्या होता है? उस दूध वाले ने घी में चर्बी मिलानी शुरू कर दी। इससे उसके घी का कारोबार बढ़ा और इधर उसके बेटे की डॉक्टरी का। अब उसी ने दवा भी बनानी शुरू कर दी। मरीज़ अधिक हो गए तो उसने अस्पताल भी खोल दिया। बीमा का धंधा भी उसी ने शुरु किया।
मुझे यकीन है कि ये चार सौ अरब डॉलर का कारोबार हज़ार अरब डॉलर के कारोबार में भी बदल जाएगा। आप खुश होइएगा कि भारत तरक्की कर रहा है, लेकिन मैं खुश नहीं होऊंगा। मै तो इस सत्य को जानता हूं कि ऐसे कमाया गया पैसा चोरी का पैसा होता है, अपराध का पैसा होता है। ऐसा पैसा कभी फलता नहीं।
इस रिपोर्ट को पढ़ कर कोई और खुश हो सकता है, में कल से आवाज़ गूंज रही है, “बीमारी ले लो, बीमारी। जानलेवा बीमारी।”