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काल भैरव जयंती


Kaal bhairav jayanti 2018: काल भैरव जयंती अगहन मास की अष्टमी तिथि को मनायी जाती है। इसको काल भैरव अष्टमी भी कहते हैं। इस वर्ष यह जयंती दिनांक 29 नवम्बर 2018 को है। इस अष्टमी को तंत्र के देवता काल भैरव की विधिवत उपासना की जाती है।

भैरव के कई रूप हैं। प्रमुखतया 3 रूपों बटुक भैरव, महाकाल भैरव तथा स्वर्णाकर्षण भैरव की ही प्रधानता है। इसमें बटुक भैरव की उपासना ज्यादा प्रचलन में है। तांत्रिक सिद्धियों के लिए भी बटुक भैरव की ही उपासना करते हैं।

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भैरव के इन 8 नामों का उच्चारण करने से मनोवांछित मनोकामना की पूर्ति होती है

1-अतिसांग भैरव
2-चंड भैरव
3-रुरु भैरव
4-क्रोध भैरव
5-उन्मत्त भैरव
6-कपाल भैरव
7-संहार भैरव
8-भीषण भैरव

माता वैष्णो देवी की पूजा तो बिना भैरव दर्शन के अपूर्ण मानी जाती है। शत्रु विनाश तथा रोगों से बचने के लिए यह पूजा आवश्यक है। राहु की महादशा में भैरो पूजा अति आवश्यक है। मंगलवार तथा बुधवार को इस उपासना का बहुत महत्व है। भैरव जयंती के दिन इनकी उपासना करने से रोगों से मुक्ति मिलती है।

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जो लोग सिर दर्द या माइग्रेन से पीड़ित हैं उनको आज के दिन भैरव उपासना अवश्य करनी चाहिए। शत्रु विनाश के लिए भी तथा अंतः मन के विकारों को दूर करने के लिए भी यह पूजा जरूरी है। यदि राहु जन्मकुंडली के पंचम भाव में बैठकर संतान प्राप्ति में बाधा उत्पन्न कर रहा है तो भैरो पूजा से राहु का दोष समाप्त होता है। यदि कुंडली में गुरु के साथ राहु बैठा है तो गुरू चांडाल नामक नकारात्मक परिणाम देता है, ऐसी स्थिति में भैरो पूजा नितांत आवश्यक हो जाती है।

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक, रामायण - Ramayan

बात ज्यादा पुरानी नहीं है…
🙏🚩🕉️🚩🙏
अंग्रेजो के ज़माने में एक दंगा हुआ था
श्री राम जन्मभूमि को ले लेकर.. और फैज़ाबाद की तरफ से मुस्लिम भीड़ ने हमला किया था।

तब दंगे के बीच सबने देखा कि हनुमान गढ़ी की सीढ़ियों से 6 फुट से ज्यादा ऊंचा विशालकाय नागा साधु हाथ मे तलवार लिए उतरा और दंगाई भीड़ पे अकेले टूट पड़ा और गाजर मूली की तरहः काटता हुआ फैज़ाबाद की तरफ निकल गया
हनुमान गढ़ी में रहने वाले अन्य महंत पुजारी नागा भी हैरान रह गए क्योंकि किसी ने उस नागा साधु को न उस दिन के पहले देखा था न उस दिन के बाद देखा।

लेकिन उस अकेले नागा ने ऐसी मार काट की थी कि फैज़ाबाद तक सड़क पे दंगाइयों की लाशें पड़ी थी और दंगा खत्म हो गया था।
अयोध्या शहर के कोतवाल हनुमान जी है और अयोध्या की सुरक्षा का जिम्मा उनके ऊपर है
और जब अयोध्या पर संकट आता है तो वो किसी न किसी साधु रूप में आते है।
🙏🚩⛳🕉️⛳🚩🙏
6 दिसम्बर वाले दिन बाबरी ढांचे के चारो तरफ प्रशाशन ने कई स्तर की बैरिकेड लगाया हुआ था और कार सेवक अंदर नही जा पा रहे थे।
तभी एक नागा साधु एक सरकारी बस स्टार्ट कर के तेज़ी से बस ले कर बैरिकेड के एक के बाद एक स्तर तोड़ता हुआ अंदर घुसता गया। उसके पीछे भीड़ घुस गई और वो नागा उस भीड़ में गायब हो गया

ये घटना फ़ोटो और वीडियो में रिकॉर्ड हुई थी अखबारों में भी छपी लेकिन वो नागा कभी दुबारा नही दिखा लेकिन उसने ढांचा गिराने के लिए कारसेवकों के लिए रास्ता खोल दिया था।
प्रशाशन देखता रह गया और कुछ नही कर सका था।

अयोध्या में हनुमान जी का किला है हनुमान गढ़ी और देश भर के सभी प्रमुख हनुमान मंदिरों का मुख्यालय भी है

🚩श्री हनुमतये नमः🚩
⛳जय बजरंग बली⛳

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक, राजनीति भारत की - Rajniti Bharat ki

3 अप्रैल 1967 को चौधरी चरण सिंह UP के मुख्यमंत्री बने थे उस समय UP की विधानसभा में दो मुसलमान थे।
एक दिन कमाल यूसुफ नाम के विधायक ने चौधरी चरण सिंह से कहा कि चौधरी साहब आप केवल हिंदुओं की वोटों से ही मुख्यमंत्री नहीं बने हो, हमने भी तुम्हें वोट दी हैं, अब हमारी कुछ मांग हैं वह आपको माननी पड़ेगी !
चौधरी साहब ने कहा यदि तुम्हारी मांग मैं ना मानूं तो क्या करोगे ? उस मुस्लिम विधायक ने कहा कि मुसलमान जन्मजात लड़ाकू होता है बहादुर होता है यदि तुम हमारी मांग स्वीकार नहीं करोगे तो हम लड़ करके अपनी मांगे मनवायेंगे !
चौधरी साहब ने कहा – के नीचे बैठ जा वरना जितना ऊपर खड़ा है उतना ही तुझे जमीन में उतार दूंगा ! तुम बहादुर कब से हो गए ? मुसलमान बहादुर बिल्कुल नहीं होता , एक नंबर का कायर होता है ! तुम यदि बहादुर होते तो मुसलमान बनते ही क्यों , यह जितने भी हिंदुओं से मुसलमान बने हैं यह तलवार के बल पर बने हैं ! जो तलवार की नोक को देखकर ही अपने धर्म को छोड़ सकता है और विधर्मी बन सकता है वह बहादुर कैसे हो सकता है !
बहादुर तो हम हैं कि हमारे पूर्वजों ने 700 साल तक मुसलमानों के साथ तलवार बजाई है ! लाखों ने अपना बलिदान दिया है ! लेकिन मुसलमान नहीं बने , तो बहादुर हम हुए या तुम हुए ! तलवार को देखते ही धर्म छोड़ बैठे आज तुम बहादुर हो तुम्हें तो अपने आप को कायर कहना चाहिए , और जो भी हिंदुओं से बना हुआ मुसलमान है पक्का कायर है क्योंकि तुमने इस्लाम को स्वीकार किया था , और मैं तुम्हारी एक भी मॉंग मानने वाला नहीं हूं जो तुम्हें करना हो कर लेना, मैं देखना चाहता हूं तुम कितने बहादुर हो।
धन्य हैं ऐसे मुख्यमंत्री !

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शाहजहाँ ने बताया थाहिंदू क्यों गुलाम हुआ

मुग़ल बादशाह शाहजहाँ लाल किले में तख्त-ए-ताऊस पर बैठा हुआ था। तख्त-ए-ताऊस काफ़ी ऊँचा था । उसके एक तरफ़ थोड़ा नीचे अग़ल-बग़ल दो और छोटे-छोटे तख्त लगे हुए थे । एक तख्त पर मुगल वज़ीर दिलदार खां बैठा हुआ था और दूसरे तख्त पर मुगल सेनापति सलावत खां बैठा था । सामने सूबेदार-सेनापति -अफ़सर और दरबार का खास हिफ़ाज़ती दस्ता मौजूद था ।

उस दरबार में इंसानों से ज्यादा क़ीमत बादशाह के सिंहासन तख्त-ए-ताऊस की थी । तख्त-ए-ताऊस में 30 करोड़ रुपए के हीरे और जवाहरात लगे हुए थे । इस तख्त की भी अपनी कथा-व्यथा थी । तख्त-ए-ताऊस का असली नाम मयूर सिंहासन था । 300 साल पहले यही मयूर सिंहासन देवगिरी के यादव राजाओं के दरबार की शोभा था । यादव राजाओं का सदियों तक गोलकुंडा के हीरों की खदानों पर अधिकार रहा था । यहां से निकलने वाले बेशक़ीमती हीरे, मणि, माणिक, मोती… मयूर सिंहासन के सौंदर्य को दीप्त करते थे । लेकिन समय चक्र पलटा… दिल्ली के क्रूर सुल्तान अलाउदद्दीन खिलजी ने यादव राज रामचंद्र पर हमला करके उनकी अरबों की संपत्ति के साथ ये मयूर सिंहासन भी लूट लिया। इसी मयूर सिंहासन को फारसी भाषा में तख्त-ए-ताऊस कहा जाने लगा ।

दरबार का अपना सम्मोहन होता है और इस सम्मोहन को राजपूत वीर अमर सिंह राठौर ने अपनी पद चापों से भंग कर दिया । अमर सिंह राठौर.. शाहजहां के तख्त की तरफ आगे बढ़ रहे थे । तभी मुगलों के सेनापति सलावत खां ने उन्हें रोक दिया ।

सलावत खां- ठहर जाओ… अमर सिंह जी… आप 8 दिन की छुट्टी पर गए थे और आज 16वें दिन तशरीफ़ लाए हैं ।

अमर सिंह- मैं राजा हूँ । मेरे पास रियासत है फौज है.. किसी का गुलाम नहीं ।

सलावत खां- आप राजा थे… अब हम आपके सेनापति हैं… आप मेरे मातहत हैं । आप पर जुर्माना लगाया जाता है… शाम तक जुर्माने के सात लाख रुपए भिजवा दीजिएगा ।

अमर सिंह- अगर मैं जुर्माना ना दूँ !

सलावत खां- (तख्त की तरफ देखते हुए) हुज़ूर… ये काफिर आपके सामने हुकूम उदूली कर रहा है।

अमर सिंह के कानों ने काफिर शब्द सुना । उनका हाथ तलवार की मूंठ पर गया… तलवार बिजली की तरह निकली और सलावत खां की गर्दन पर गिरी । मुगलों के सेनापति सलावत खां का सिर जमीन पर आ गिरा… अकड़ कर बैठा सलावत खां का धड़ धम्म से नीचे गिर गया । दरबार में हड़कंप मच गया… वज़ीर फ़ौरन हरकत में आया वो बादशाह का हाथ पकड़कर भागा और उन्हें सीधे तख्त-ए-ताऊस के पीछे मौजूद कोठरीनुमा कमरे में ले गया । उसी कमरे में दुबक कर वहां मौजूद खिड़की की दरार से वज़ीर और बादशाह दरबार का मंज़र देखने लगे ।

दरबार की हिफ़ाज़त में तैनात ढाई सौ सिपाहियों का पूरा दस्ता अमर सिंह पर टूट पड़ा था । देखते ही देखते… अमर सिंह ने शेर की तरह सारे भेड़ियों का सफ़ाया कर दिया ।

बादशाह- हमारी 300 की फौज का सफ़ाया हो गया… या खुदा !

वज़ीर- जी जहाँपनाह

बादशाह- अमर सिंह बहुत बहादुर है… उसे किसी तरह समझा बुझाकर ले आओ… कहना हमने माफ किया !

वज़ीर- जी जहाँपनाह ! हुजूर… लेकिन आँखों पर यक़ीन नहीं होता… समझ में नहीं आता… अगर हिंदू इतना बहादुर है तो फिर गुलाम कैसे हो गया ?

बादशाह- अच्छा… सवाल वाजिब है… जवाब कल पता चल जाएगा ।

अगले दिन फिर बादशाह का दरबार सजा ।

शाहजहां- अमर सिंह का कुछ पता चला ।

वजीर- नहीं जहाँपनाह… अमर सिंह के पास जाने का जोखिम कोई नहीं उठाना चाहता है ।

शाहजहां- क्या कोई नहीं है जो अमर सिंह को यहां ला सके ?

दरबार में अफ़ग़ानी, ईरानी, तुर्की… बड़े बड़े रुस्तम-ए-जमां मौजूद थे । लेकिन कल अमर सिंह के शौर्य को देखकर सबकी हिम्मत जवाब दे रही थी।

आखिर में एक राजपूत वीर आगे बढ़ा.. नाम था… अर्जुन सिंह ।

अर्जुन सिंह- हुज़ूर आप हुक्म दें… मैं अभी अमर सिंह को ले आता हूँ ।

बादशाह ने वज़ीर को अपने पास बुलाया और कान में कहा.. यही तुम्हारे कल के सवाल का जवाब है… हिंदू बहादुर है लेकिन इसीलिए गुलाम हुआ.. देखो.. यही वजह है।

अर्जुन सिंह… अमर सिंह के साले थे । अर्जुन सिंह ने अमर सिंह को धोखा देकर उनकी हत्या कर दी । अमर सिंह नहीं रहे लेकिन उनका स्वाभिमान इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में प्रकाशित है । इतिहास में ऐसी बहुत सी कथाएँ हैं जिनसे सबक़ लेना आज भी बाकी है ।

हिंदू

  • शाहजहाँ के दरबारी, इतिहासकार और यात्री अब्दुल हमीद लाहौरी की किताब बादशाहनामा से ली गईं ऐतिहासिक कथा ।
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व्योमेश कुमार

महाशिवरात्रि आज 21 फरवरी 20 को है। ऐसी मान्यता है कि आज ही के दिन भगवान शिव और देवी पार्वती की शादी हुई थी। जिस कारण महाशिवरात्रि का धार्मिक महत्व बहुत ज्य़ादा माना जाता है।

शिव रहते हैं #शिवलिंग में
धर्म के जानकारों के हिसाब से फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष के एकादशी, यानी फरवरी-मार्च के महीने में पड़ने वाला ये त्यौहार इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि आज के दिन भगवान शिव का अंश प्रत्येक शिवलिंग में पूरे दिन और रात मौजूद रहता है। महाशिवरात्रि की मध्यरात्रि में शिव अपने रूद्र रूप में प्रकट हुए थे।

महाशिवरात्रि बहुत महत्वपूर्ण है।

धर्मशास्त्रियों के मुताबिक महाशिवरात्रि के दिन ग्रहों की दशा कुछ ऐसी होती है कि मानव शरीर में प्राकृतिक रूप से ऊर्जा ऊपर की ओर चढ़ती है. वे लोग जो अध्यात्म मार्ग पर हैं उनके लिए महाशिवरात्रि बहुत महत्वपूर्ण है। और तो और योग परंपरा में शिव की पूजा ईश्वर के रूप में नहीं बल्कि उन्हें आदि गुरु मानकर की जाती है।

महाशिवरात्रि पूजन विधि

शिवपुराण की कोटि रुद्र संहिता में बताया गया है कि शिवरात्रि व्रत करने से व्यक्ति को भोग एवं मोक्ष दोनों ही प्राप्त होते हैं। ब्रह्मा, विष्णु तथा पार्वती के पूछने पर भगवान सदाशिव ने बताया कि शिवरात्रि व्रत करने से महान पुण्य की प्राप्ति होती है। मोक्ष की प्राप्ति कराने वाले चार संकल्प पर नियमपूर्वक पालन करना चाहिए।

महाशिवरात्रि पूजन विधि
ये चार संकल्प हैं- शिवरात्रि पर भगवान शिव की पूजा, रुद्रमंत्र का जप, शिवमंदिर में उपवास तथा काशी में देहत्याग। शिवपुराण में मोक्ष के चार सनातन मार्ग बताए गए हैं। इन चारों में भी शिवरात्रि व्रत का विशेष महत्व है।

उपवास में रात्रि जागरण क्यों?
‘विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देनिहः’ के अनुसार आध्यात्मिक साधना के लिए उपवास करना सबसे ज़रूरी है। संतों का यह कथन अत्यंत प्रसिद्ध है – ‘या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी।’ उपासना से इन्द्रियों और मन पर नियंत्रण करने वाला संयमी व्यक्ति ही रात्रि में जागकर अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील हो सकता है।
इन्हीं सब कारणों से शिवरात्रि में व्रती जन उपवास के साथ रात में जागकर शिव पूजा करते हैं। इसलिए महाशिवरात्रि को रात के चारों पहरों में विशेष पूजा की जाती है। सुबह आरती के बाद यह पूजा पूरी होती है।

शिव की महिमा विधि
देवों के देव देवाधिदेव महादेव ही एक मात्र ऐसे भगवान हैं, जिनकी भक्ति हर कोई करता है। चाहे वह इंसान हो, राक्षस हो, भूत-प्रेत हो अथवा देवता हो। यहां तक कि पशु-पक्षी, जलचर, नभचर, पाताललोक वासी हो अथवा बैकुण्ठवासी हो। शिव की भक्ति हर जगह हुई और जब तक दुनिया कायम है, शिव की महिमा गाई जाती रहेगी।

शिव को प्रसन्न करना है आसान
शिव पुराण कथा के अनुसार शिव ही ऐसे भगवान हैं, जो शीघ्र प्रसन्न होकर अपने भक्तों को मनचाहा वर दे देते हैं। वे सिर्फ अपने भक्तों का कल्याण करना चाहते हैं। वे यह नहीं देखते कि उनकी भक्ति करने वाला इंसान है, राक्षस है, भूत-प्रेत है या फिर किसी और योनि का जीव है। शिव को प्रसन्न करना सबसे आसान है।

शिवलिंग की महिमा:- शिवलिंग में मात्र जल चढ़ाकर या बेलपत्र अर्पित करके भी शिव को प्रसन्न किया जा सकता है। इसके लिए किसी विशेष पूजन विधि की आवश्यकता नहीं है।

भारतीय त्रिमूर्ति के अनुसार भगवान शिव प्रलय के प्रतीक हैं। त्रिर्मूति के दो और भगवान हैं, विष्णु तथा ब्रह्मा। शिव का चित्रांकन एक क्रुद्ध भाव द्वारा किया जाता है। ऐसा प्रतीकात्मक व्यक्ति भाव, जिसके मस्तक पर तीसरी आंख है; जो जैसे ही खुलती है, अग्नि का प्रवाह बहना प्रारम्भ हो जाता है।

महाशिवरात्रि से संबंधित तीन कथाएँ
महाशिवरात्रि के महत्त्व से संबंधित तीन कथाएँ इस पर्व से जुड़ी हैं….

प्रथम कथा – महाशिवरात्रि
एक बार मां पार्वती ने शिव से पूछा कि कौन-सा व्रत उनको सर्वोत्तम भक्ति व पुण्य प्रदान कर सकता है? तब शिव ने स्वयं इस शुभ दिन के विषय में बताया था कि फाल्गुन कृष्ण पक्ष के चतुर्दशी की रात्रि को जो उपवास करता है, वह मुझे प्रसन्न कर लेता है। मैं अभिषेक, वस्त्र, धूप, अर्ध्य तथा पुष्प आदि समर्पण से उतना प्रसन्न नहीं होता, जितना कि व्रत-उपवास से।

दूसरी कथा – महाशिवरात्रि
इसी दिन, भगवान विष्णु व ब्रह्मा के समक्ष सबसे पहले शिव का अत्यंत प्रकाशवान आकार प्रकट हुआ था। श्रीब्रह्मा व श्रीविष्णु को अपने अच्छे कर्मों का अभिमान हो गया। श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए दोनों आमादा हो उठे। तब शिव ने हस्तक्षेप करने का निश्चय किया, चूंकि वे इन दोनों देवताओं को यह आभास दिलाना चाहते थे कि जीवन भौतिक आकार-प्रकार से कहीं अधिक है।
शिव एक अग्नि स्तम्भ के रूप में प्रकट हुए। इस स्तम्भ का आदि या अंत दिखाई नहीं दे रहा था। विष्णु और ब्रह्मा ने इस स्तम्भ के ओर-छोर को जानने का निश्चय किया। विष्णु नीचे पाताल की ओर इसे जानने गए और ब्रह्मा अपने हंस वाहन पर बैठ ऊपर गए। वर्षों यात्रा के बाद भी वे इसका आरंभ या अंत न जान सके।
वे वापस आए, अब तक उनक क्रोध भी शांत हो चुका था तथा उन्हें भौतिक आकार की सीमाओं का ज्ञान मिल गया था। जब उन्होंने अपने अहम् को समर्पित कर दिया, तब शिव प्रकट हुए तथा सभी विषय वस्तुओं को पुनर्स्थापित किया। शिव का यह प्राकट्य फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि को ही हुआ था। इसलिए इस रात्रि को महाशिवरात्रि कहते हैं।
शिव एक अग्नि स्तम्भ के रूप में प्रकट हुए। इस स्तम्भ का आदि या अंत दिखाई नहीं दे रहा था। विष्णु और ब्रह्मा ने इस स्तम्भ के ओर-छोर को जानने का निश्चय किया। विष्णु नीचे पाताल की ओर इसे जानने गए और ब्रह्मा अपने हंस वाहन पर बैठ ऊपर गए। वर्षों यात्रा के बाद भी वे इसका आरंभ या अंत न जान सके।

तीसरी कथा – महाशिवरात्रि
इसी दिन भगवान शिव और आदि शक्ति का विवाह हुआ था। भगवान शिव का ताण्डव और भगवती का लास्यनृत्य दोनों के समन्वय से ही सृष्टि में संतुलन बना हुआ है, अन्यथा ताण्डव नृत्य से सृष्टि खण्ड- खण्ड हो जाये। इसलिए यह महत्त्वपूर्ण दिन है।

महाशिवरात्रि के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निपट कर समीप स्थित किसी शिव मंदिर में जाएं और भगवान शिव का जल से अभिषेक करें और उन्हें काले तिल अर्पण करें। इसके बाद मंदिर में कुछ देर बैठकर मन ही मन में ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जप करें।

महाशिवरात्रि इस दिन सुबह किसी नदी या तालाब जाकर आटे की गोलियां मछलियों को खिलाएं। जब तक यह काम करें मन ही मन में भगवान शिव का ध्यान करते रहें। यह धन प्राप्ति का बहुत ही सरल उपाय है।

महाशिवरात्रि यदि आपके विवाह में अड़चन आ रही है तो महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर केसर मिला हुआ दूध चढ़ाएं। इससे जल्दी ही आपके विवाह के योग बनने लगेंगे।

महाशिवरात्रि के दिन नंदी (बैल) को हरा चारा खिलाएं। इससे जीवन में सुख-समृद्धि आएगी और मन प्रसन्न रहेगा।

महाशिवरात्रि के दिन 21 बिल्वपत्रों पर चंदन से (ऊँ नम: शिवाय) लिखकर शिवलिंग पर चढ़ाएं साथ ही रुद्राक्ष माला भी अर्पण करें। इससे सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाएंगी।

शिवमहिमा:-

भगवान शिव का निवास स्थान कैलाश पर्वत माना जाता है, लेकिन शिव समस्त जगत् में विचरण करते रहते हैं। अगर वे कैलाश पर्वत पर विचरण करते हैं, तो श्मशान में भी धूनी रमाते हैं। हिमालय पर उनके विचरण करने की मान्यता के कारण ही उत्तराखंड के नगरों और गाँवों में शिव के हज़ारों मंदिर हैं। धार्मिक मान्यता है कि शिवरात्रि को शिव जगत् में विचरण करते हैं।
शिवरात्रि के दिन शिव का दर्शन करने से हज़ारों जन्मों का पाप मिट जाता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह महाशिवरात्रि के पर्व का महत्व ही है कि सभी आयु वर्ग के लोग इस पर्व में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। इस दिन शिवभक्त काँवड़ में गंगाजी का जल भरकर शिवजी को जल चढ़ाते हैं। और उनकी पूजा-अर्चना करते हैं।

महाशिवरात्रि:- जल, दूध, दही के साथ ही शिवलिंग पर कौन-कौन सी चीजें चढ़ानी चाहिए।

इस बार महाशिवरात्रि पर सुबह-सुबह पूजा करना ज्यादा शुभ रहेगा। शास्त्रों के अनुसार शिवजी की कृपा से सभी इच्छाएं पूरी हो सकती हैं। जानिए शिव कृपा पाने के लिए शिवलिंग पर कौन-कौन सी चीजें चढ़ानी चाहिए…

शिवलिंग पर चढ़ाएं ये 10 चीजें।

  1. जल, 2. दूध, 3. दही, 4. शहद, 5. घी, 6. शकर, 7. ईत्र, 8. चंदन, 9. केशर, 10. भांग (विजया औषधि)

इन सभी चीजों को एक साथ मिलाकर या एक-एक चीज शिवलिंग पर चढ़ा सकते हैं। #शिवपुराण में बताया गया है कि इन चीजों से शिवलिंग को स्नान कराने पर भक्त की सभी इच्छाएं पूरी हो सकती हैं। स्नान करवाते समय ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जाप करना चाहिए।

शिव पूजन की सामान्य विधि:-

शिवरात्रि पर सुबह जल्दी उठें और स्नान आदि नित्य कर्मों के बाद घर के मंदिर में ही पूजा की व्यवस्था करें या किसी शिव मंदिर जाएं।

#भरत कुमार विनोद परिहार भगवा राज

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कुंडल कंकन पहिरे ब्याला।
तन बिभूति पट केहरि छाला।
ससि ललाट सुंदर सिर गंगा।
नयन तीनि उपबीत भुजंगा।।
गरल कंठ उर नर सिर माला।
असिव बेष सिवधाम कृपाला।।
कर त्रिसूल अरु डमरु बिराजा।
चले बसहँ चढ़ि बाजहिं बाजा।।
देखि सिवहि सुरत्रिय मुसुकाहीं।
वर लायक दुलहिनि जग नाहीं।।
बर अनुहारि बारात न भाई।
हँसी करैहहु पर पुर जाई।।
कोउ मुखहीन बिपुल मुख काहू।
बिनु पद कर कोउ बहु पद बाहू।।
बिपुल नयन कोउ नयन बिहीना।
रिष्ट पुष्ट कोउ अति तनखीना।।
जस दूलहु तसि बनी बराता।
कौतुक बिबिध होहिं मग जाता।।
बिकट बेष रुद्रहि जब देखा।
अबलन्ह उर भय भयउ बिशेखा।।
मैना हृदय भयउ दुख भारी।
लीन्ही बोलि गोद बैठारी।।
जेहि बिधि तुम्हहि रूप अस दीन्हा।
तेहिं जड़ बरु बाउर कस कीन्हा।।
असि बिचारि सोचहि मति माता।
सो न टरइ जो रचइ बिधाता।।
करम लिखा जो बाउर नाहू।
तौ कत दोष लगाइअ काहू।।

भगवान विष्णु और सप्तर्षियों की अनुनय विनय और देवी पार्वती की कठोर तपश्या से प्रसन्न हो देवताओ और जगत के कल्याण हेतु सर्वशक्तिमान विचित्र देव भगवान शिव देवी पार्वती के साथ विवाह के लिए तैयार हो गए विवाह की तैयारी धूमधाम से शुरु हो गई बारात के लिए भगवान शिव जी के गण दूल्हा के रूप में उन्हें सजाने सवारने लगे तथा उनका शृंगार करने लगे भगवान के जटाओं को उनके शरीर मे लिपटे सर्पों को विवाह के मुकुट के रूप में संवारा और सजाया गया कंकन और कुंडल के रूप में सर्पो को धारण कराया गया तन में भस्म लगाई गई भगवान नरसिंघ की छाल वस्त्र के रूप में लपेटी गयी ललाट पर बाल चंद्रमा को धारण किया गया शिर में देवी गंगा धारित की गई विशाल त्रिनेत्रधारी शिव जी को तीन भुजंग (काले नागों )का जनेऊ धारण किया गया कंठ में कालकूट बिष धारण किया गया गले मे नरमुंडों को माला धारण की गई हाथ मे त्रिसूल और डमरू ले सज धज कर बैल पर सवार हो अपने गणों के साथ जब भगवान शिव अपने भवन से बाहर आये तो दूल्हा का और उनके गणों का विचित्र रूप देखकर देवता और देवपत्नियाँ अपनी हँसी न रोक पाये हस्ते हुए सब ने कहा ऐसे दूल्हे के लायक तो इस संसार मे कोई दुलहिन मिलना असंभव है बाराती शिवगण विचित्र रूप और अपनी विचित्र सवारी के साथ कोई बहुत हाथों बाला कोई बहुत पैरों वाला तो कोई बिना हाथ और कोई बिना पैर बाला कोई बहुत शिर और बहुत मुख बाला तो कोई बिना शिर और बिना मुख बाला किसी के बहुत से नेत्र तो कई बिना नेत्रो के कोई बहुत मोटा तगड़ा तो कोई अत्यंत दुबला पतला भगवान शिव के साथ उनके गणों को विचित्र वेष भूषा के साथ खुस और प्रसन्न हो झूमते नाचते गाते देख कर भगवान श्री हरि विष्णु ने देवताओं से कहा कि सब लोग अलग अलग होकर चलो दूल्हा शिव जी की और उनकी टोली के साथ बारात में हम उनके अनुरूप नही है दूसरे के यहां जाकर हँसी मत करना ऐसे कहते सब अलग अलग अपने अपने दलों के साथ हसते हुए बारात में चले दरवाजे पर बारात आने पर मैन रानी ने दूल्हे की आरती की दूल्हा को देखकर वहां आई नगर की सब स्त्रियां डर कर भाग गई मैना रानी देवी पार्वती को गोद मे वैठा कर रो रो कर देवी पार्वती के रूप की प्रसंसा कर भाग को कोशती हुए बिधि को दोष देने लगी ऐसी रूपवान बेटी को ऐसा ऐसा विचित्र और अटपटा वर दिया इस पर देवी पार्वती ने अपनी माता को सांत्वना और दिलाशा देते हुए कहा की जिसके भाग्य में जो लिखा होता है वही मिलता है भाग्य से किसी का बस नही है इसलिए ईश्वर जो करता है उसे ही अच्छा और उचित मानकर उसे खुसी खुसी स्वीकार कर लेना चाहिए जब देवी देवता भाग्य में लिखे को भोगने को वाध्य होते है तो हम मनुष्य अपना भाग
कैसे बदल सकते है अतः कर्तव्य कर्मो का पालन करते हुए जो मिले उसी में संतोष कर प्रसन्न और खुस रहना ही सच्चा सुख है।

माहाशिवरात्रि की हार्दिक बधाई और शुभकामनाओ सहित सादर नमस्कार

श्री रामचरितमानस-बालकाण्ड
दोहा-91.2 से 96.7(खण्ड क्रम)
सादर नमस्कार
देव ब्रत चतुर्वेदी-पन्ना(मप्र)

Posted in लक्ष्मी प्राप्ति - Laxmi prapti

💥दारिद्रय दहन स्त्रोत💥
आर्थिक परेशानी और कर्ज से मुक्ति दिलाता है शिवजी का दारिद्रय दहन स्तोत्र. कारगर मंत्र है आजमाकर देखे

जो व्यक्ति घोर आर्थिक संकट से जूझ रहे हों, कर्ज में डूबे हों, व्यापार व्यवसाय की पूंजी बार-बार फंस जाती हो उन्हें दारिद्रय दहन स्तोत्र से शिवजी की आराधना करनी चाहिए.

महर्षि वशिष्ठ द्वारा रचित यह स्तोत्र बहुत असरदायक है. यदि संकट बहुत ज्यादा है तो शिवमंदिर में या शिव की प्रतिमा के सामने प्रतिदिन तीन बार इसका पाठ करें तो विशेष लाभ होगा.

जो व्यक्ति कष्ट में हैं अगर वह स्वयं पाठ करें तो सर्वोत्तम फलदायी होता है लेकिन परिजन जैसे पत्नी या माता-पिता भी उसके बदले पाठ करें तो लाभ होता है.

शिवजी का ध्यान कर मन में संकल्प करें. जो मनोकामना हो उसका ध्यान करें फिर पाठ आरंभ करें.

श्लोकों को गाकर पढ़े तो बहुत अच्छा, अन्यथा मन में भी पाठ कर सकते हैं. आर्थिक संकटों के साथ-साथ परिवार में सुख शांति के लिए भी इस मंत्र का जप बताया गया है.

।।दारिद्रय दहन स्तोत्रम्।।
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विश्वेशराय नरकार्ण अवतारणाय
कर्णामृताय शशिशेखर धारणाय।

कर्पूर कान्ति धवलाय, जटाधराय,
दारिद्रय दुख दहनाय नमः शिवाय।।१

गौरी प्रियाय रजनीश कलाधराय,
कलांतकाय भुजगाधिप कंकणाय।

गंगाधराय गजराज विमर्दनाय
द्रारिद्रय दुख दहनाय नमः शिवाय।।२

भक्तिप्रियाय भवरोग भयापहाय
उग्राय दुर्ग भवसागर तारणाय।

ज्योतिर्मयाय गुणनाम सुनृत्यकाय,
दारिद्रय दुख दहनाय नमः शिवाय।।३

चर्माम्बराय शवभस्म विलेपनाय,
भालेक्षणाय मणिकुंडल-मण्डिताय।

मँजीर पादयुगलाय जटाधराय
दारिद्रय दुख दहनाय नमः शिवाय।।४

पंचाननाय फणिराज विभूषणाय
हेमांशुकाय भुवनत्रय मंडिताय।

आनंद भूमि वरदाय तमोमयाय,
दारिद्रय दुख दहनाय नमः शिवाय।।५

भानुप्रियाय भवसागर तारणाय,
कालान्तकाय कमलासन पूजिताय।

नेत्रत्रयाय शुभलक्षण लक्षिताय
दारिद्रय दुख दहनाय नमः शिवाय।।६

रामप्रियाय रधुनाथ वरप्रदाय
नाग प्रियाय नरकार्ण अवताराणाय।

पुण्येषु पुण्य भरिताय सुरार्चिताय,
दारिद्रय दुख दहनाय नमः शिवाय।।७

मुक्तेश्वराय फलदाय गणेश्वराय
गीतप्रियाय वृषभेश्वर वाहनाय।

मातंग चर्म वसनाय महेश्वराय,
दारिद्रय दुख दहनाय नमः शिवाय।।८

वसिष्ठेन कृतं स्तोत्रं सर्व रोग निवारणम्
सर्व संपत् करं शीघ्रं पुत्र पौत्रादि वर्धनम्।।

शुभदं कामदं ह्दयं धनधान्य प्रवर्धनम्
त्रिसंध्यं यः पठेन् नित्यम् स हि स्वर्गम् वाप्युन्यात्।।९

।।इति श्रीवशिष्ठरचितं दारिद्रयुदुखदहन शिवस्तोत्रम संपूर्णम।।

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अमिताभ बच्चन कहते हैं … “अपने करियर के चरम पर, मैं एक बार हवाई जहाज से यात्रा कर रहा था।
मेरे बगल वाली सीट पे एक साधारण से सज्जन व्यक्ति बैठे थे, जिसने एक साधारण शर्ट और पैंट पहन रखी थी। वह मध्यम वर्ग का लग रहा था, और बेहद शिक्षित दिख रहा था।

अन्य यात्री मुझे पहचान रहे थे कि मैं कौन हूँ, लेकिन यह सज्जन मेरी उपस्थिति के प्रति अंजान लग रहे थे … वह अपना पेपर पढ़ रहे थे, खिड़की से बाहर देख रहे थे, और जब चाय परोसी गई, तो उन्होंने इसे चुपचाप पी लिया ।

उसके साथ बातचीत करने की कोशिश में मैं उन्हें देख मुस्कुराया। वह आदमी मेरी ओर देख विनम्रता से मुस्कुराया और ‘हैलो’ कहा।

हमारी बातचीत शुरू हुई और मैंने सिनेमा और फिल्मों के विषय को उठाया और पूछा, ‘क्या आप फिल्में देखते हैं?’

आदमी ने जवाब दिया, ‘ओह, बहुत कम। मैंने कई साल पहले एक फिल्म देखा था। ‘

मैंने उल्लेख किया कि मैंने फिल्म उद्योग में काम किया है।

आदमी ने जवाब दिया .. “ओह, यह अच्छा है। आप क्या करते हैं?”

मैंने जवाब दिया, ‘मैं एक अभिनेता हूं’

आदमी ने सिर हिलाया, ‘ओह, यह अद्भुत है!’ तो यह बात हैं …

जब हम उतरे, तो मैंने हाथ मिलाते हुए कहा, “आपके साथ यात्रा करना अच्छा था। वैसे, मेरा नाम अमिताभ बच्चन है!”

उस आदमी ने हाथ मिलाते हुए मुस्कुराया, “थैंक्यू … आपसे मिलकर अच्छा लगा..मैं जे आर डी टाटा (टाटा का चेयरमैन) हूं!”

मैंने उस दिन सीखा कि आप चाहे कितने भी बड़े हो।हमेशा आप से कोई बड़ा होता है।

नम्र बनो, इसमें कुछ भी खर्च नहीं है।°