नर्मदा जयंती …… 1 फरवरी 2020
नर्मदा नदी देश की पवित्रतम नदियों में से एक है। मान्यता है की नर्मदा नदी में स्नान करने से मानव के सभी पाप धुल जाते हैं और उसको पुण्य की प्राप्ति होती है। मां नर्मदा को रेवा भी कहा जाता है। नर्मदा अथाह जलराशि के साथ अमरकंटक से निकलती है और खंभात की खाड़ी में जाकर समुद्र में मिल जाती है। मां नर्मदा की पवित्रता की वजह से इसके किनारे पर तपस्वी तपस्या भी करते हैं और इसके किनारों पर किया गया जप-तप अनंत गुना फलदायी होता है। नर्मदा का जन्म माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को हुआ था इसलिए इस दिन नर्मदा जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष नर्मदा जयंती 1 फरवरी शनिवार को मनाई जाएगी।
‘माघै च सप्तमयां दास्त्रामें च रविदिने।
मध्याह्न समये राम भास्करेण कृमागते॥’
माघ शुक्ल सप्तमी को मकर राशि सूर्य मध्याह्न काल के समय नर्मदाजी को जल रूप में बहने का आदेश दिया।
शिव के ज्योतिपुंज से हुआ था नर्मदा का जन्म, नदी को पत्थरों की पूजा का है वरदान……
जन्म कथा 1 : कहते हैं तपस्या में बैठे भगवान शिव के पसीने से नर्मदा प्रकट हुई। नर्मदा ने प्रकट होते ही अपने अलौकिक सौंदर्य से ऐसी चमत्कारी लीलाएं प्रस्तुत की कि खुद शिव-पार्वती चकित रह गए। तभी उन्होंने नामकरण करते हुए कहा- देवी, तुमने हमारे दिल को हर्षित कर दिया। इसलिए तुम्हारा नाम हुआ नर्मदा। नर्म का अर्थ है- सुख और दा का अर्थ है- देने वाली। इसका एक नाम रेवा भी है, लेकिन नर्मदा ही सर्वमान्य है।
जन्मकथा 2 : मैखल पर्वत पर भगवान शंकर ने ज्योतिपुंज से 12 वर्ष की दिव्य कन्या को अवतरित किया महारूपवती होने के कारण विष्णु आदि देवताओं ने इस कन्या का नामकरण नर्मदा किया। इस दिव्य कन्या नर्मदा ने उत्तरवाहिनी गंगा के तट पर काशी के पंचक्रोशी क्षेत्र में 10,000 दिव्य वर्षों तक तपस्या करके प्रभु शिव से कुछ ऐसे वरदान प्राप्त किए जो कि अन्य किसी नदी के पास नहीं है – जैसे,
प्रलय में भी मेरा नाश न हो।
मैं विश्व में एकमात्र पाप-नाशिनी नदी के रूप में प्रसिद्ध रहूं।
मेरा हर पाषाण (नर्मदेश्वर) शिवलिंग के रूप में बिना प्राण-प्रतिष्ठा के पूजित हो।
मेरे (नर्मदा) तट पर शिव-पार्वती सहित सभी देवता निवास करें।
पृथ्वी पर नर्मदा : स्कंद पुराण में वर्णित है कि राजा-हिरण्यतेजा ने चौदह हजार दिव्य वर्षों की घोर तपस्या से शिव भगवान को प्रसन्न कर नर्मदा जी को पृथ्वी तल पर आने के लिए वर मांगा। शिव जी के आदेश से नर्मदा जी मगरमच्छ के आसन पर विराज कर उदयाचल पर्वत पर उतरीं और पश्चिम दिशा की ओर बहकर गईं।
उसी समय महादेव जी ने तीन पर्वतों की सृष्टि की- मेठ, हिमावन, कैलाश। इन पर्वतों की लंबाई 32 हजार योजन है और दक्षिण से उत्तर की ओर 5 सौ योजन है।
नर्मदा स्तुति …….
पुण्या कनखले गंगा कुरुक्षेत्रे सरस्वती।
ग्रामेवा यदि वारण्ये पुण्या सर्वत्र नर्मदा।
त्रिभि:सारस्वतं पुण्यं सप्ताहेनतुयामुनम्।
सद्य:पुनातिगाङ्गेयंदर्शनादेवनर्मदाम्।
गंगा हरिद्वार तथा सरस्वती कुरुक्षेत्र में अत्यंत पुण्यमयी कही गयी है, किंतु नर्मदा चाहे गांव के बगल से बह रही हो या जंगल के बीच, वे सर्वत्र पुण्यमयी हैं। सरस्वती का जल तीन दिनों में, यमुनाजी का एक सप्ताह में तथा गंगाजी का जल स्पर्श करते ही पवित्र कर देता है किन्तु नर्मदा का जल केवल दर्शन मात्र से पावन कर देता है।
स्कन्दपुराण के अनुसार नर्मदा का पहला अवतरण आदिकल्पके सत्ययुग में हुआ था। दूसरा अवतरण दक्षसावर्णिमन्वन्तर में हुआ। तीसरा अवतरण राजा पुरुरवाद्वारा वैष्णव मन्वन्तर में हुआ। नर्मदा में स्नान करने, गोता लगाने, उसका जल पीने तथा नर्मदा का स्मरण एवं कीर्तन करने से अनेक जन्मों के घोर पाप तत्काल नष्ट हो जाते हैं। नर्मदा समस्त सरिताओं में श्रेष्ठ है। वे सम्पूर्ण जगत् को तारने के लिये ही धरा पर अवतीर्ण हुई हैं। इनकी कृपा से भोग और मोक्ष, दोनों सुलभ हो जाते हैं।
भगवती नर्मदा की उपासना युगों से होती आ रही हैं। मेरुतंत्र में नर्मदा देवी के निम्न मंत्र का उल्लेख है-
ऐं श्रींमेकल-कन्यायैसोमोद्भवायैदेवापगायैनम:।
इस मंत्र के ऋषि भृगु, छन्द अमित और देवता नर्मदा हैं। उनके अधिदैविक स्वरूप का ध्यान इस प्रकार करें-
कनकाभांकच्छपस्थांत्रिनेत्रांबहुभूषणां।
पद्माभय:सुधाकुम्भ:वराद्यान्विभ्रतींकरै:।
पद्मपुराणके स्वर्गखंड में देवर्षिनारद भगवती नर्मदा की स्तुति करते हुए कहते हैं-
नम: पुण्यजलेआद्येनम: सागरगामिनि।
नमोऽस्तुतेऋषिगणै:शंकरदेहनि:सृते।
नमोऽस्तुतेधर्मभृतेवराननेनमोऽस्तुतेदेवगणैकवन्दिते।
नमोऽस्तुतेसर्वपवित्रपावनेनमोऽस्तुतेसर्वजगत्सुपूजिते।
पुण्यसलिला नर्मदा तुम सब नदियों में प्रधान हो, तुम्हें नमस्कार है। सागरगामिनी तुमको प्रणाम है। ऋषि-मुनियों द्वारा पूजित तथा भगवान शंकर की देह से प्रकट हुई नर्मदे तुम्हें बारंबार नमस्कार है। सुमुखितुम धर्म को धारण करने वाली हो, तुम्हें प्रणाम है। देवगण तुम्हारे समक्ष मस्तक झुकाते हैं, तुम्हें नमस्कार है। देवि तुम समस्त पवित्र वस्तुओं को भी परम पावन बनाने वाली हो, सारा संसार तुम्हारी पूजा करता है, तुम्हें बारंबार नमस्कार है।
नर्मदा जी का जितना भी गुण-गान किया जाए कम ही होगा। इनका हर कंकर शंकर की तरह पूजा जाता है। नर्मदा का स्वच्छ निर्मल जल पृथ्वी का मानों अमृत ही है। माघ मास के शुक्लपक्ष की सप्तमी तिथि को शास्त्रों में नर्मदा जयंती कहा गया है।
“पुरा शिव शांत तानुश्य चार विपुलं तपः हितार्थ सर्व लोकानाभूमाया सह शंकर”
नर्मदा ने की शिव उपासना…….
इसके साथ नर्मदा ने उत्तर वाहिनी गंगा के तट पर कई सालों तक भगवान् शिव की आराधना की। भोलेनाथ मां नर्मदा की तपस्या से प्रसन्न हुए और ऐसे वरदान प्राप्त किए, जो किसी भी नदी के पास नहीं थे। नर्मदा ने कहा कि मेरा नाश प्रलय आ जाए तो भी न हो। मैं पापों का नाश करने वाली धरती की एकमात्र नदी रहूं। मेरा हर पत्थर बगैर प्राण प्रतिष्ठा के पूजा जाये और मेरे किनारों पर सभी देवताओं का वास हो। यही कारण है नर्मदा नदी सदानिरा है और इसके पत्थर नर्मदेश्वर शिवलिंग के रूप में पूजे जाते हैं। नर्मदा पर सभी देवताओं का वास माना जाता है और इसके दर्शन मात्र से पापों का नाश होता है।
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