Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

देवलोक गौशाला

सही युक्ति

बहुत समय पहले की बात है, किसी गाँव में एक किसान रहता था। उस किसान की एक बहुत ही सुन्दर बेटी थी । दुर्भाग्यवश,
गाँव के जमींदार से उसने बहुत सारा धन उधार लिया हुआ था । जमीनदार बूढा और कुरूप था ।

किसान की सुंदर बेटी को देखकर उसने सोचा क्यूँ न कर्जे के बदले किसान के सामने उसकी बेटी से
विवाह का प्रस्ताव रखा जाये.

जमींदार किसान के पास गया और उसने कहा – तुम अपनी बेटी का विवाह मेरे साथ कर दो, बदले में मैं तुम्हारा सारा कर्ज माफ़ कर दूंगा ।

जमींदार की बात सुन कर किसान और किसान की बेटी के होश उड़ गए । वो कुछ उत्तर न दे पाये। तब जमींदार ने कहा –

चलो गाँव की पंचायत के पास चलते हैं और जो निर्णय वे लेंगे उसे हम दोनों को ही मानना होगा ।

वो सब मिल कर पंचायत के पास गए और उन्हें सब कह सुनाया.
उनकी बात सुन कर पंचायत ने थोडा सोच विचार किया और कहा- ये मामला बड़ा उलझा हुआ है अतः हम इसका फैसला किस्मत पर छोड़ते हैं ।

जमींदार सामने पड़े सफ़ेद और काले रोड़ों के ढेर से एक काला और एक सफ़ेद रोड़ा उठाकर एक थैले में रख देगा। फिर लड़की बिना देखे उस थैले से एक रोड़ा उठाएगी, और उस आधार पर उसके पास तीन विकल्प होंगे :

१. अगर वो काला रोड़ा उठाती है तो उसे जमींदार से शादी करनी पड़ेगी और उसके पिता का कर्ज माफ़ कर दिया जायेगा.

२. अगर वो सफ़ेद पत्थर उठती है तो उसे जमींदार से शादी नहीं करनी पड़ेगी और उसके
पिता का कर्फ़ भी माफ़ कर दिया जायेगा.

३. अगर लड़की पत्थर उठाने से मना करती है तो उसके पिता को जेल भेज दिया जायेगा।
पंचायत के आदेशानुसार जमींदार झुका और उसने दो रोड़े उठा लिए । जब वो रोड़ा उठा रहा था तो तब किसान की बेटी ने देखा कि उस जमींदार ने दोनों काले रोड़े ही उठाये हैं और उन्हें थैले में डाल दिया है।

लड़की इस स्थिति से घबराये बिना सोचने लगी कि वो क्या कर सकती है, उसे तीन रास्ते नज़र आये:-

१. वह रोड़ा उठाने से मना कर दे और अपने पिता को जेल जाने दे.

२. सबको बता दे कि जमींदार दोनों काले पत्थर उठा कर
सबको धोखा दे रहा हैं.

३. वह चुप रह कर काला पत्थर उठा ले और अपने पिता को कर्ज से बचाने के लिए जमींदार से शादी करके अपना जीवन बलिदान कर दे.

उसे लगा कि दूसरा तरीका सही है, पर तभी उसे एक और भी अच्छा उपाय सूझा।

उसने थैले में अपना हाथ डाला और एक रोड़ा अपने हाथ में ले लिया और बिना रोड़े की तरफ देखे उसके हाथ से फिसलने का नाटक किया, उसका रोड़ा अब हज़ारों रोड़ों के ढेर में गिर चुका था और उनमे ही कहीं खो चुका था..

लड़की ने कहा – हे भगवान !
मैं कितनी बेवकूफ हूँ । लेकिन कोई बात नहीं . आप लोग थैले के अन्दर देख लीजिये कि कौन से रंग का रोड़ा बचा है, तब आपको पता चल जायेगा कि मैंने कौन सा उठाया था जो मेरे हाथ से गिर गया.

थैले में बचा हुआ रोड़ा काला था, सब लोगों ने मान लिया कि लड़की ने सफ़ेद पत्थर ही उठाया था. जमींदार के अन्दर इतना साहस नहीं था कि वो अपनी चोरी मान ले । लड़की ने अपनी सोच से असम्भव को संभव कर दिया ।

-हमारे जीवन में भी कई बार ऐसी परिस्थितियां आ जाती हैं जहाँ सब कुछ धुंधला दीखता है, हर रास्ता नाकामयाबी की ओर जाता महसूस होता है पर ऐसे समय में यदि हम सोचने का प्रयास करें तो उस लड़की की तरह अपनी मुशिकलें दूर कर सकते हैं ।

विशेष,,,, सही युक्ति समस्या का सही निदान है. एसी युक्ति के हमारे अंतःकरण में उत्पादन के लिए वहीं आहार खाए जो गणेश जी को प्रिय है क्योंकि प्रथम पूज्य श्रीगणेश ज़ी ही विघ्नहर्ता है और वे बुद्धि के स्वामी भी है.
🙏🙏🙏🙏🙏🙏
गणेश जी का स्मरण मंत्र,,,,
1- वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
अर्थ – घुमावदार सूंड वाले, विशाल शरीर काय, करोड़ सूर्य के समान महान प्रतिभाशाली।
मेरे प्रभु, हमेशा मेरे सारे कार्य बिना विघ्न के पूरे करें (करने की कृपा करें)॥

2- विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धितायं।
नागाननाथ श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते॥
अर्थ – विघ्नेश्वर, वर देनेवाले, देवताओं को प्रिय, लम्बोदर, कलाओंसे परिपूर्ण, जगत् का हित करनेवाले, गजके समान मुखवाले और वेद तथा यज्ञ से विभूषित पार्वतीपुत्र को नमस्कार है ; हे गणनाथ ! आपको नमस्कार है ।

3- अमेयाय च हेरम्ब परशुधारकाय ते ।
मूषक वाहनायैव विश्वेशाय नमो नमः ॥
अर्थ – हे हेरम्ब ! आपको किन्ही प्रमाणों द्वारा मापा नहीं जा सकता, आप परशु धारण करने वाले हैं, आपका वाहन मूषक है । आप विश्वेश्वर को बारम्बार नमस्कार है ।

4- एकदन्ताय शुद्घाय सुमुखाय नमो नमः ।
प्रपन्न जनपालाय प्रणतार्ति विनाशिने ॥
अर्थ – जिनके एक दाँत और सुन्दर मुख है, जो शरणागत भक्तजनों के रक्षक तथा प्रणतजनों की पीड़ा का नाश करनेवाले हैं, उन शुद्धस्वरूप आप गणपति को बारम्बार नमस्कार है ।

5- एकदंताय विद्‍महे। वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दंती प्रचोदयात।।
अर्थ – एक दंत को हम जानते हैं। वक्रतुण्ड का हम ध्यान करते हैं। वह दन्ती (गजानन) हमें प्रेरणा प्रदान करें।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
” जीवन का सत्य आत्मिक कल्याण है ना की भौतिक सुख !”
,,,,सच्चे संतो की वाणी से अमृत बरसता है , आवश्यकता है ,,,उसे आचरण में उतारने की ….
Note ; कृपया पोस्ट के साथ ही देवलोक गौशाला का page भी लाइक करें और हमेशा के लिए सत्संग का लाभ उठाएं ! देवलोक गौशाला सदैव आपको सन्मार्ग दिखाएगी और उस पर चलने के लिए प्रेरित करती रहेगी! ! सर्वदेवमयी यज्ञेश्वरी गौमाता को नमन
जय गौमाता की 🙏👏🌹🌲🌿🌹
शरीर परमात्मा का दिया हुआ उपहार है ! चाहो तो इससे ” विभूतिया ” (अच्छाइयां / पुण्य इत्यादि ) अर्जित करलो चाहे घोरतम ” दुर्गति ” ( बुराइया / पाप ) इत्यादि !
परोपकारी बनो एवं प्रभु का सानिध्य प्राप्त करो !
प्रभु हर जीव में चेतना रूप में विद्यमान है अतः प्राणियों से प्रेम करो !
शाकाहार अपनाओ , करुणा को चुनो !

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Night story🌝🌝
मेरी पत्नी ने कुछ दिनों पहले घर की छत पर कुछ गमले रखवा दिए और एक
छोटा सा गार्डन बना लिया।

पिछले दिनों मैं छत पर गया तो ये देख कर हैरान रह गया कि कई गमलों में
फूल खिल गए हैं,
नींबू के पौधे में दो नींबू 🍋🍋भी लटके हुए हैं और दो चार हरी
मिर्च भी लटकी हुई नज़र आई।

मैंने देखा कि पिछले हफ्ते उसने बांस 🎋का जो पौधा गमले में लगाया था,
उस गमले को घसीट कर दूसरे गमले के पास कर रही थी।

मैंने कहा तुम इस भारी गमले को क्यों घसीट रही हो?

पत्नी ने मुझसे कहा कि यहां ये बांस का पौधा सूख रहा है, इसे खिसका कर इस पौधे के पास कर देते हैं।

मैं हंस पड़ा और कहा अरे पौधा सूख रहा है तो खाद डालो, पानी डालो। 💦

इसे खिसका कर किसी और पौधे
के पास कर देने से क्या होगा?” 😕

_पत्नी ने मुस्कुराते हुए कहा ये पौधा यहां अकेला है इसलिए मुर्झा रहा है।

इसे इस पौधे के पास कर देंगे तो ये फिर लहलहा उठेगा। ☺

पौधे अकेले में सूख जाते हैं, लेकिन उन्हें अगर किसी और पौधे का साथ मिल जाए तो जी उठते हैं।”

यह बहुत अजीब सी बात थी। एक-एक कर कई तस्वीरें आखों के आगे बनती
चली गईं।

मां की मौत के बाद पिताजी कैसे एक ही रात में बूढ़े, बहुत बूढ़े हो गए थे।

हालांकि मां के जाने के बाद सोलह साल तक वो रहे, लेकिन सूखते हुए पौधे की तरह। 😞

मां के रहते हुए जिस पिताजी को मैंने कभी उदास नहीं देखा था, वो मां के जाने के बाद
खामोश से हो गए थे।😔

मुझे पत्नी के विश्वास पर पूरा विश्वास हो रहा था।

लग रहा था कि सचमुच पौधे अकेले में सूख जाते होंगे।

बचपन में मैं एक बार बाज़ार से एक छोटी सी रंगीन मछली 🐠खरीद कर लाया था और
उसे शीशे के जार में पानी भर कर रख दिया था।

मछली सारा दिन गुमसुम रही।
मैंने उसके लिए खाना भी डाला, लेकिन वो चुपचाप इधर-उधर पानी में अनमना सा घूमती रही।

सारा खाना जार की तलहटी में जाकर बैठ
गया, मछली ने कुछ नहीं खाया। दो दिनों तक वो ऐसे ही रही, और एक सुबह मैंने देखा कि वो पानी की सतह पर उल्टी पड़ी थी। 😞😞

आज मुझे घर में पाली वो छोटी सी मछली याद आ रही थी।

बचपन में किसी ने मुझे ये नहीं बताया था, अगर मालूम होता तो कम से
कम दो, तीन या ढ़ेर सारी मछलियां खरीद लाता और मेरी वो प्यारी
मछली यूं तन्हा न मर जाती। 😢

बचपन में मेरी माँ से सुना था कि लोग मकान बनवाते थे और रौशनी के लिए कमरे में दीपक🔥 रखने के लिए दीवार में इसलिए दो मोखे बनवाते थे क्योंकि माँ का
कहना था कि बेचारा अकेला मोखा गुमसुम और उदास हो जाता है।

मुझे लगता है कि संसार में किसी को अकेलापन पसंद नहीं।

आदमी हो या पौधा, हर किसी को
किसी न किसी के साथ की ज़रुरत होती है।

आप अपने आसपास झांकिए, अगर कहीं कोई अकेला दिखे तो उसे अपना
साथ दीजिए, उसे मुरझाने से बचाइए।

अगर आप अकेले हों, तो आप भी
किसी का साथ लीजिए, आप खुद को भी मुरझाने से रोकिए।

_अकेलापन संसार में सबसे बड़ी सजा है। गमले के पौधे को तो हाथ से खींच
कर एक दूसरे पौधे के पास किया जा सकता है, लेकिन आदमी को करीब लाने के
लिए जरुरत
होती है रिश्तों को समझने की, सहेजने की और समेटने की।😊

अगर मन के किसी कोने में आपको लगे कि ज़िंदगी का रस सूख रहा है,
जीवन मुरझा रहा है तो उस पर रिश्तों के प्यार का रस डालिए। 💧☺

खुश रहिए और मुस्कुराइए।☺ कोई यूं ही किसी और की गलती से आपसे दूर हो
गया हो तो उसे अपने करीब लाने की कोशिश कीजिए और हो जाइए
हरा-भरा। _*एक प्रयास* 🖊_

यदि आपको पसंद आये तो शेयर अवश्य करें👏 🌹🙏🌹

Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

वामपंथी इतिहासकारों ने हमें झूठ पढ़ाया हमारे वीर राजा महाराजाओं को अपमानित कर यवनों और अंग्रेजों की झूठी प्रशंसा में कसीदे पढ़े

साभार :
भारत में मुसलमानो के 800 वर्ष के शासन का झूठ :
श्री राजिव दीक्षित द्वारा-
क्या भारत में मुसलमानों ने 800 वर्षों तक शासन किया है?
सुनने में यही आता है पर न कभी कोई आत्ममंथन करता है और न इतिहास का सही अवलोकन।
आईये देखते हैं, इतिहास के वास्तविक नायक कौन थे? और उन्होंने किस प्रकार मुगलिया
ताकतों को रोके रखा और भारतीय संस्कृति की रक्षा में सफल रहे।
राजा दाहिर : प्रारम्भ करते हैं मुहम्मद बिन कासिम के समय से-
भारत पर पहला आक्रमण मुहम्मद बिन ने 711 ई में सिंध पर किया। राजा दाहिर पूरी शक्ति से
लड़े और मुसलमानों के धोखे के शिकार होकर वीरगति को प्राप्त हुए।
बप्पा रावल: दूसरा हमला 735 में राजपुताना पर हुआ जब हज्जात ने सेना भेजकर बप्पा रावल
के राज्य पर आक्रमण किया। वीर बप्पा रावल ने मुसलमानों को न केवल खदेड़ा बल्कि अफगानिस्तान
तक मुस्लिम राज्यों को रौंदते हुए अरब की सीमा तक पहुँच गए। ईरान अफगानिस्तान के मुस्लिम
सुल्तानों ने उन्हें अपनी पुत्रियां भेंट की और उन्होंने 35 मुस्लिम लड़कियों से विवाह करके सनातन
धर्म का डंका पुन: बजाया। बप्पा रावल का इतिहास कही नहीं पढ़ाया जाता। यहाँ तक की अधिकतर
इतिहासकर उनका नाम भी छुपाते हैं । गिनती भर हिन्दू होंगे जो उनका नाम जानते हैं!
दूसरे ही युद्ध में भारत से इस्लाम समाप्त हो चुका था। ये था भारत में पहली बार इस्लाम का नाश।* सोमनाथ के रक्षक राजा जयपाल और आनंदपाल: अब आगे बढ़ते हैं गजनवी पर। बप्पा रावल के आक्रमणों से मुसलमान इतने भयक्रांत हुए की अगले 300 सालों तक वे भारत से दूर रहे। इसके बाद महमूद गजनवी ने 1002 से 1017 तक भारत पर कई आक्रमण किये पर हर बार उसे भारत के हिन्दू राजाओ से कड़ा उत्तर मिला। पहले राजा जयपाल और फिर उनका पुत्र आनंदपाल, दोनों ने उसे मार भगाया था। महमूद गजनवी ने सोमनाथ पर भी कई आक्रमण किये पर 17 वे युद्ध में उसे सफलता मिली थी। सोमनाथ के शिवलिंग को उसने तोडा नहीं था बल्कि उसे लूट कर वह काबा ले गया था। जिसका रहस्य आपके समक्ष जल्द ही रखता हूँ। यहाँ से उसे शिवलिंग तो मिल गया जो चुम्बक का बना हुआ था। पर खजाना नहीं मिला। भारतीय राजाओ के निरंतर आक्रमण से वह वापिस गजनी लौट गया और अगले 100 सालो तक कोई भी मुस्लिम आक्रमणकारी भारत पर आक्रमण न कर सका।
सम्राट पृथ्वीराज चौहान: 1098 में मुहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज राज चौहान को 16 युद्द के बाद परास्त किया और
अजमेर व दिल्ली पर उसके गुलाम वंश के शासक जैसे कुतुबुद्दीन, इल्तुमिश व बलवन दिल्ली से आगे न बढ़ सके।
उन्हें हिन्दू राजाओ के प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। पश्चिमी द्वार खुला रहा जहाँ से बाद में ख़िलजी लोधी
तुगलक आदि आये। ख़िलजी भारत के उत्तरी भाग से होते हुए बिहार बंगाल पहुँच गए। कूच बिहार व बंगाल में
मुसलमानो का राज्य हो गया पर बिहार व अवध प्रदेश मुसलमानो से अब भी दूर थे। शेष भारत में केवल
गुजरात ही मुसलमानो के अधिकार में था। अन्य भाग स्वतन्त्र थे।
राणा सांगा: 1526 में राणा सांगा ने इब्राहिम लोधी के विरुद्ध बाबर को बुलाया। बाबर ने लोधियों की सत्ता तो उखाड़
दी पर वो भारत की सम्पन्नता देख यही रुक गया और राणा सांगा को उसने युद्ध में हरा दिया। चित्तोड़ तब भी स्वतंत्र
रहा पर अब दिल्ली मुगलो के अधिकार में थी। हुमायूँ दिल्ली पर अधिकार नहीं कर पाया पर उसका बेटा अवश्य
दिल्ली से आगरा के भाग पर शासन करने में सफल रहा। तब तक कश्मीर भी मुसलमानो के अधिकार में आ चुका था।
महाराणा प्रताप: अकबर पुरे जीवन महाराणा प्रताप से युद्ध में व्यस्त रहा। जो बाप्पा रावल के ही वंशज थे और उदय
सिंह के पुत्र थे जिनके पूर्वजो ने 700 सालो तक मुस्लिम आक्रमणकारियों का सफलतापूर्वक सामना किया।
जहाँगीर व शाहजहाँ भी राजपूतों से युद्धों में व्यस्त रहे व भारत के बाकी भाग पर राज्य न कर पाये।_
दक्षिण में बीजापुर में तब तक इस्लाम शासन स्थापित हो चुका था।
छत्रपति शिवाजी महाराज: औरंगजेब के समय में मराठा शक्ति का उदय हुआ और शिवाजी महाराज से लेकर पेशवाओ
ने मुगलो की जड़े खोद डाली। शिवाजी महाराज द्वारा स्थापित हिंदवी स्वराज्य का विस्तार उनके बाद आने वाले मराठा
वीरों ने किया। बाजीराव पेशवा इन्होने मराठा सम्राज्य को भारत में हिमाचल बंगाल और पुरे दक्षिण में फैलाया।
दिल्ली में उन्होंने आक्रमण से पहले गौरी शंकर भगवान से मन्नत मांगी थी कि यदि वे सफल रहे तो चांदनी चौक में वे
भव्य मंदिर बनाएंगे। जहाँ कभी पीपल के पेड़ के नीचे 5 शिवलिंग रखे थे। बाजीराव ने दिल्ली पर अधिकार किया और
गौरी शंकर मंदिर का निर्माण किया। जिसका प्रमाण मंदिर के बाहर उनके नाम का लगा हुआ शिलालेख है।
बाजीराव पेशवा ने एक शक्तिशाली हिन्दुराष्ट्र की स्थापना की जो 1830 तक अंग्रेजो के आने तक स्थापित रहा।
अंग्रेजों और मुगलों की मिलीभगत:
मुगल सुल्तान मराठाओ को चौथ व कर देते रहे थे और केवल लालकिले तक सिमित रह गए थे। और वे तब तक शक्तिहीन रहे।
जब तक अंग्रेज भारत में नहीं आ गए। 1760 के बाद भारत में मुस्लिम जनसँख्या में जबरदस्त गिरावट हुई जो 1800 तक
मात्र 7 प्रतिशत तक पहुँच गयी थी। अंग्रेजो के आने के बाद मुसल्मानो को संजीवनी मिली और पुन इस्लाम को खड़ा किया गया,
ताकि भारत में सनातन धर्म को नष्ट किया जा सके। इसलिए अंग्रेजो ने 50 साल से अधिक समय से पहले ही मुसलमानो के
सहारे भारत विभाजन का षड्यंत्र रच लिया था। मुसलमानो के हिन्दु विरोधी रवैये व उनके धार्मिक जूनून को अंग्रेजो ने सही
से प्रयोग किया तो यह झूठा इतिहास क्यों पढ़ाया गया?
असल में हिन्दुओ पर 1200 सालो के निरंतर आक्रमण के बाद भी जब भारत पर इस्लामिक शासन स्थापित नहीं हुआ
और न ही अंग्रेज इस देश को पूरा समाप्त कर सके। तो उन्होंने शिक्षा को अपना अस्त्र बनाया और इतिहास में फेरबदल किये।
अब हिन्दुओ की मानसिकता को बदलना है तो उन्हें ये बताना होगा की तुम गुलाम हो। लगातार जब यही भाव हिन्दुओ में होगा
तो वे स्वयं को कमजोर और अत्याचारी को शक्तिशाली समझेंगे। इसी चाल के अंतर्गत ही हमारा जातीय नाम आर्य के स्थान पर
हिन्दू रख दिया गया, जिसका अर्थ होता है काफ़िर, काला, चोर, नीच आदि ताकि हम आत्महीनता के शिकार हो अपने गौरव,
धर्म, इतिहास और राष्ट्रीयता से विमुख हो दासत्व मनोवृति से पीड़ित हो सकें। वास्तव में हमारे सनातन धर्म के किसी भी शास्त्र
और ग्रन्थ में हिन्दू शब्द कहीं भी नहीं मिलता बल्कि शास्त्रो में हमे आर्य, आर्यपुत्र और आर्यवर्त राष्ट्र के वासी बताया गया है।
आज भी पंडित लोग संकल्प पाठ कराते हुए “आर्यवर्त अन्तर्गते.”* का उच्चारण कराते हैं । अत: भारत के हिन्दुओ को मानसिक
गुलाम बनाया गया जिसके लिए झूठे इतिहास का सहारा लिया गया और परिणाम सामने है।_
लुटेरे और चोरो को आज हम बादशाह सुलतान नामो से पुकारते है उनके नाम पर सड़के बनाते है। शहरो के नाम रखते है और उसका
कोई हिन्दू विरोध भी नहीं करता जो बिना गुलाम मानसिकता के संभव नहीं सकता था। इसलिए उन्होंने नई रण नीति अपनाई।
इतिहास बदलो, मन बदलो और गुलाम बनाओ। यही आज तक होता आया है। जिसे हमने मित्र माना वही अंत में हमारी पीठ पर वार करता है।
इसलिए झूठे इतिहास और झूठे मित्र दोनों से सावधान रहने की आवश्यकता है।_

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

“सत्य घटना..”

बात 1880 के अक्टूबर नवम्बर की है बनारस की एक रामलीला मण्डली रामलीला खेलने तुलसी गांव आयी हुई थी… मण्डली में 22-24 कलाकार थे जो गांव के ही एक आदमी के यहाँ रुके थे वहीं सभी कलाकार रिहर्सल करते और खाना बनाते खाते थे…पण्डित कृपाराम दूबे उस रामलीला मण्डली के निर्देशक थे और हारमोनियम पर बैठ के मंच संचालन करते थे और फौजदार शर्मा साज-सज्जा और राम लीला से जुड़ी अन्य व्यवस्था देखते थे…एक दिन पूरी मण्डली बैठी थी और रिहर्सल चल रहा था तभी पण्डित कृपाराम दूबे ने फौजदार से कहा इस बार वो शिव धनुष हल्की और नरम लकड़ी की बनवाएं ताकि राम का पात्र निभा रहे 17 साल के युवक को परेशानी न हो पिछली बार धनुष तोड़ने में वक़्त लग गया था… इस बात पर फौजदार कुपित हो गया क्योंकि लीला की साज सज्जा और अन्य व्यवस्था वही देखता था और पिछला धनुष भी वही बनवाया था… इस बात को लेकर पण्डित जी और फौजदार में से कहा सुनी हो गया..फौजदार पण्डित जी से काफी नाराज था और पंडित जी से बदला लेने को सोच लिया था …संयोग से अगले दिन सीता स्वयंवर और शिव धनुष भंग का मंचन होना था…फौजदार मण्डली जिसके घर रुकी थी उनके घर गया और कहा रामलीला में लोहे के एक छड़ की जरूरत आन पड़ी है दे दीजिए….. गृहस्वामी ने उसे एक बड़ा और मोटा लोहे का छड़ दे दिया छड़ लेके फौजदार दूसरे गांव के लोहार के पास गया और उसे धनुष का आकार दिलवा लाया। रास्ते मे उसने धनुष पर कपड़ा लपेट कर और रंगीन कागज से सजा के गांव के एक आदमी के घर रख आया…रात में रामलीला शुरू हुआ तो फौजदार ने चुपके धनुष बदल दिया और लोहे वाला धनुष ले जा के मंच के आगे रख दिया और खुद पर्दे के पीछे जाके तमाशा देखने के लिए खड़ा हो गया…रामलीला शुरू हुआ पण्डित जी हारमोनियम पर राम चरणों मे भाव विभोर होकर रामचरित मानस के दोहे का पाठ कर रहे थे… हजारों की संख्या में दर्शक शिव धनुष भंग देखने के लिए मूर्तिवत बैठे थे… रामलीला धीरे धीरे आगे बढ़ रहा था सारे राजाओं के बाद राम जी गुरु से आज्ञा ले के धनुष भंग को आगे बढ़े…पास जाके उन्होंने जब धनुष हो हाथ लगाया तो धनुष उससे उठी ही नही कलाकार को सत्यता का आभास हो गया गया उस 17 वर्षीय कलाकार ने पंडित कृपाराम दूबे की तरफ कतार दृष्टि से देखा तो पण्डित जी समझ गए कि दाल में कुछ काला है…उन्होंने सोचा कि आज इज्जत चली जायेगी हजारों लोगों के सामने और ये कलाकार की नहीं स्वयं प्रभु राम की तौहीन सरे बाजार होने वाली है.. पंडित जी ने कलाकार को आंखों से रुकने और धनुष की प्रदक्षिणा करने का इशारा किया और खुद को मर्यादा पुरुषोत्तम के चरणों में समर्पित करते हुए आंखे बंद करके उंगलियां हारमोनियम पर रख दी और राम जी की स्तुति करनी शुरू…. जिन लोगों ने ये लीला अपनी आँखों से देखी थी बाद में उन्होंने बताया कि इस इशारे के बाद जैसे पंडित जी ने आंख बंद करके हारमोनियम पर हाथ रखा हारमोनियम से उसी पल दिव्य सुर निकलने लगे वैसा वादन करते हुए किसी ने पंडित जी को कभी नहीं देखा था…सारे दर्शक मूर्तिवत हो गए… नगाडे से निकलने वाली परम्परागत आवाज भीषण दुंदभी में बदल गयी..पेट्रोमेक्स की धीमी रोशनी बढ़ने लगी आसमान में बिन बादल बिजली कौंधने लगी और पूरा पंडाल अद्भुत आकाशीय प्रकाश से रह रह के प्रकाशमान हो रहा था…दर्शकों के कुछ समझ में नही आ रहा था कि क्या हो रहा और क्यों हो रहा….पण्डित जी खुद को राम चरणों मे आत्मार्पित कर चुके थे और जैसे ही उन्होंने चौपाई कहा—-
लेत चढ़ावत खैंचत गाढ़ें। काहुँ न लखा देख सबु ठाढ़ें॥
तेहि छन राम मध्य धनु तोरा। भरे भुवन धुनि घोरकठोरा॥
पण्डित जी के चौपाई पढ़ते ही आसमान में भीषण बिजली कड़की और मंच पर रखे लोहे के धनुष को कलाकार ने दो भागों में तोड़ दिया…
लोग बताते हैं हैं कि ये सब कैसे हुआ और कब हुआ किसी ने कुछ नही देखा सब एक पल में हो गया..धनुष टूटने के बाद सब स्थिति अगले ही पल सामान्य हो गयी पण्डित जी मंच के बीच गए और टूटे धनुष और कलाकार के सन्मुख दण्डवत हो गए…. लोग शिव धनुष भंग पर जय श्री राम का उद्घोषणा कर रहे थे और पण्डित जी की आंखों से श्रद्धा के आँसू निकल रहे थे….

…राम “सबके” है एक बार “राम का” होकर तो देख…

जय श्री राम ♥️

Posted in सुभाषित - Subhasit

संघर्ष करना सिखाइए

बाज पक्षी जिसे हम ईगल या शाहीन भी कहते है। जिस उम्र में बाकी परिंदों के बच्चे चिचियाना सीखते है उस उम्र में एक मादा बाज अपने चूजे को पंजे में दबोच कर सबसे ऊंचा उड़ जाती है। पक्षियों की दुनिया में ऐसी Tough and tight training किसी भी ओर की नही होती।

मादा बाज अपने चूजे को लेकर लगभग 12 Kms. ऊपर ले जाती है। जितने ऊपर अमूमन जहाज उड़ा करते हैं और वह दूरी तय करने में मादा बाज 7 से 9 मिनट का समय लेती है।

यहां से शुरू होती है उस नन्हें चूजे की कठिन परीक्षा। उसे अब यहां बताया जाएगा कि तू किस लिए पैदा हुआ है? तेरी दुनिया क्या है? तेरी ऊंचाई क्या है? तेरा धर्म बहुत ऊंचा है और फिर मादा बाज उसे अपने पंजों से छोड़ देती है।

धरती की ओर ऊपर से नीचे आते वक्त लगभग 2 Kms. उस चूजे को आभास ही नहीं होता कि उसके साथ क्या हो रहा है। 7 Kms. के अंतराल के आने के बाद उस चूजे के पंख जो कंजाइन से जकड़े होते है, वह खुलने लगते है।

लगभग 9 Kms. आने के बाद उनके पंख पूरे खुल जाते है। यह जीवन का पहला दौर होता है जब बाज का बच्चा पंख फड़फड़ाता है।

अब धरती से वह लगभग 3000 मीटर दूर है लेकिन अभी वह उड़ना नहीं सीख पाया है। अब धरती के बिल्कुल करीब आता है जहां से वह देख सकता है उसके स्वामित्व को। अब उसकी दूरी धरती से महज 700/800 मीटर होती है लेकिन उसका पंख अभी इतना मजबूत नहीं हुआ है की वो उड़ सके।

धरती से लगभग 400/500 मीटर दूरी पर उसे अब लगता है कि उसके जीवन की शायद अंतिम यात्रा है। फिर अचानक से एक पंजा उसे आकर अपनी गिरफ्त मे लेता है और अपने पंखों के दरमियान समा लेता है। यह पंजा उसकी मां का होता है जो ठीक उसके उपर चिपक कर उड़ रही होती है। और उसकी यह ट्रेनिंग निरंतर चलती रहती है जब तक कि वह उड़ना नहीं सीख जाता।

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यह ट्रेनिंग एक कमांडो की तरह होती है।. तब जाकर दुनिया को एक बाज़ मिलता है अपने से दस गुना अधिक वजनी प्राणी का भी शिकार करता है।

हिंदी में एक कहावत है… “बाज़ के बच्चे मुँडेर पर नही उड़ते।” बेशक अपने बच्चों को अपने से चिपका कर रखिए पर उसे दुनियां की मुश्किलों से रूबरू कराइए, उन्हें लड़ना सिखाइए। बिना आवश्यकता के भी संघर्ष करना सिखाइए।

वर्तमान समय की अनन्त सुख सुविधाओं की आदत व अभिवावकों के बेहिसाब लाड़ प्यार ने मिलकर, आपके बच्चों को “ब्रायलर मुर्गे” जैसा बना दिया है जिसके पास मजबूत टंगड़ी तो है पर चल नही सकता। वजनदार पंख तो है पर उड़ नही सकता क्योंकि..

_”गमले के पौधे और जंगल के पौधे में बहुत फ़र्क होता है।”

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👏🏽 ॐ श्री हरि नारायण👏🏽
सुप्रभात प्रणाम
एक पुत्र अपने वृद्ध पिता को रात्रिभोज के लिये एक अच्छे रेस्टोरेंट में लेकर गया। खाने के दौरान वृद्ध पिता ने कई बार भोजन अपने कपड़ों पर गिराया। रेस्टोरेंट में बैठे दूसरे खाना खा रहे लोग वृद्ध को घृणा की नजरों से देख रहे थे लेकिन उसका पुत्र शांत था।

खाने के बाद पुत्र बिना किसी शर्म के वृद्ध को वॉशरूम ले गया। उनके कपड़े साफ़ किये, चेहरा साफ़ किया, बालों में कंघी की, चश्मा पहनाया, और फिर बाहर लाया। सभी लोग खामोशी से उन्हें ही देख रहे थे।

फ़िर उसने बिल का भुगतान किया और वृद्ध के साथ बाहर जाने लगा। तभी डिनर कर रहे एक अन्य वृद्ध ने उसे आवाज दी, और पूछा – क्या तुम्हें नहीं लगता कि यहाँ अपने पीछे तुम कुछ छोड़ कर जा रहे हो?

उसने जवाब दिया – नहीं सर, मैं कुछ भी छोड़कर नहीं जा रहा।

वृद्ध ने कहा – बेटे, तुम यहाँ प्रत्येक पुत्र के लिए एक शिक्षा, सबक और प्रत्येक पिता के लिए उम्मीद छोड़कर जा रहे हो।

आमतौर पर हम लोग अपने बुजुर्ग माता-पिता को अपने साथ बाहर ले जाना पसंद नहीं करते,
और कहते हैं – क्या करोगे, आपसे चला तो जाता नहीं, ठीक से खाया भी नहीं जाता, आप तो घर पर ही रहो, वही अच्छा होगा।

लेकिन क्या आप भूल गये कि जब आप छोटे थे, और आपके माता पिता आपको अपनी गोद में उठाकर ले जाया करते थे। आप जब ठीक से खा नहीं पाते थे तो माँ आपको अपने हाथ से खाना खिलाती थी, और खाना गिर जाने पर डाँट नही प्यार जताती थी।

फिर वही माँ बाप बुढ़ापे में बोझ क्यों लगने लगते हैं?

माँ-बाप भगवान का रूप होते हैं। उनकी सेवा कीजिये, और प्यार दीजिये क्योंकि एक दिन आप भी बूढ़े होंगे।

अपनेमातापिताकासर्वदासम्मानकरें।

आपका दिन शुभ व मंगलमय हो

🔅 Uday Raj 🔅