Posted in रामायण - Ramayan

कहानी १९७६ में शुरू हुई। फ़िल्म निर्माता-निर्देशक रामानंद सागर अपनी फिल्म ‘चरस’ की शूटिंग के लिए स्विट्जरलैंड गए। एक शाम वे पब में बैठे और रेड वाइन ऑर्डर की। वेटर ने वाइन के साथ एक बड़ा सा लकड़ी का बॉक्स टेबल पर रख दिया। रामानंद ने कौतुहल से इस बॉक्स की ओर देखा। वेटर ने शटर हटाया और उसमें रखा टीवी ऑन किया। रामानंद चकित हो गए क्योंकि जीवन मे पहली बार उन्होंने रंगीन टीवी देखा था। इसके पांच मिनट बाद वे निर्णय ले चुके थे कि अब सिनेमा छोड़ देंगे और अब उनका उद्देश्य प्रभु राम, कृष्ण और माँ दुर्गा की कहानियों को टेलेविजन के माध्यम से लोगों को दिखाना होगा।

भारत मे टीवी १९५९ में शुरू हुआ। तब इसे टेलीविजन इंडिया कहा जाता था। बहुत ही कम लोगों तक इसकी पहुंच थी। १९७५ में इसे नया नाम मिला दूरदर्शन। तब तक ये दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई और कोलकाता तक सीमित था, जब तक कि १९८२ में एशियाड खेलों का प्रसारण सम्पूर्ण देश मे होने लगा था। १९८४ में ‘बुनियाद’ और ‘हम लोग’ की आशातीत सफलता ने टीवी की लोकप्रियता में और बढ़ोतरी की।

इधर रामानंद सागर उत्साह से रामायण की तैयारियां कर रहे थे। लेकिन टीवी में प्रवेश को उनके साथी आत्महत्या करने जैसा बता रहे थे। सिनेमा में अच्छी पोजिशन छोड़ टीवी में जाना आज भी फ़िल्म मेकर के लिए आत्महत्या जैसा ही है। रामानंद इन सबसे अविचलित अपने काम मे लगे रहे। उनके इस काम पर कोई पैसा लगाने को तैयार नहीं हुआ।

जैसे-तैसे वे अपना पहला सीरियल ‘विक्रम और वेताल’ लेकर आए। सीरियल बहुत सफल हुआ। हर आयुवर्ग के दर्शकों ने इसे सराहा। यहीं से टीवी में स्पेशल इफेक्ट्स दिखने लगे थे। विक्रम और वेताल को तो दूरदर्शन ने अनुमति दे दी थी लेकिन रामायण का कांसेप्ट न दूरदर्शन को अच्छा लगा, न तत्कालीन कांग्रेस सरकार को। यहां से रामानंद के जीवन का दुःखद अध्याय शुरू हुआ।

दूरदर्शन ‘रामायण’ दिखाने पर सहमत था किंतु तत्कालीन कांग्रेस सरकार इस पर आनाकानी कर रही थी। दूरदर्शन अधिकारियों ने जैसे-तैसे रामानंद सागर को स्लॉट देने की अनुमति सरकार से ले ली। ये सारे संस्मरण रामानंद जी के पुत्र प्रेम सागर ने एक किताब में लिखे थे। तो दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में रामायण को लेकर अंतर्विरोध देखने को मिल रहा था। सूचना एवं प्रसारण मंत्री बीएन गाडगिल को डर था कि ये धारावाहिक न केवल हिन्दुओं में गर्व की भावना को जन्म देगा अपितु तेज़ी से उभर रही भारतीय जनता पार्टी को भी इससे लाभ होगा। हालांकि राजीव गांधी के हस्तक्षेप से विरोध शांत हो गया।

इससे पहले रामानंद को अत्यंत कड़ा संघर्ष करना पड़ा था। वे दिल्ली के चक्कर लगाया करते कि दूरदर्शन उनको अनुमति दे दे लेकिन सरकारी घाघपन दूरदर्शन में भी व्याप्त था। घंटों वे मंडी हाउस में खड़े रहकर अपनी बारी का इंतज़ार करते। कभी वे अशोका होटल में रुक जाते, इस आस में कि कभी तो बुलावा आएगा। एक बार तो रामायण के संवादों को लेकर डीडी अधिकारियों ने उनको अपमानित किया। ये वहीं समय था जब रामानंद सागर जैसे निर्माताओं के पैर दुबई के अंडरवर्ल्ड के कारण उखड़ने लगे थे। दुबई का प्रभाव बढ़ रहा था, जो आगे जाकर दाऊद इंडस्ट्री में परिवर्तित हो गया।

१९८६ में श्री राम की कृपा हुई। अजित कुमार पांजा ने सूचना व प्रसारण का पदभार संभाला और रामायण की दूरदर्शन में एंट्री हो गई। २५ जनवरी १९८७ को ये महाकाव्य डीडी पर शुरू हुआ। ये दूरदर्शन की यात्रा का महत्वपूर्ण बिंदु था। दूरदर्शन के दिन बदल गए। राम की कृपा से धारावाहिक ऐसा हिट हुआ कि रविवार की सुबह सड़कों पर स्वैच्छिक जनता कर्फ्यू लगने लगा।

इसके हर एपिसोड पर एक लाख का खर्च आता था, जो उस समय दूरदर्शन के लिए बहुत बड़ी रकम हुआ करती थी। राम बने अरुण गोविल और सीता बनी दीपिका चिखलिया की प्रसिद्धि फिल्मी कलाकारों के बराबर हो गई थी। दीपिका चिखलिया को सार्वजनिक जीवन मे कभी किसी ने हाय-हेलो नही किया। उनको सीता मानकर ही सम्मान दिया जाता था।

अब नटराज स्टूडियो साधुओं की आवाजाही का केंद्र बन गया था। रामानंद से मिलने कई साधु वहां आया करते। एक दिन कोई युवा साधु उनके पास आया। उन्होंने ध्यान दिया कि साधु का ओरा बहुत तेजस्वी है। साधु ने कहा वह हिमालय से अपने गुरु का संदेश लेकर आया है। तत्क्षण साधु की भाव-भंगिमाएं बदल गई। वह गरज कर बोला ‘ तुम किससे इतना डरते हो, अपना घमंड त्याग दो। तुम रामायण बना रहे हो, निर्भिक होकर बनाओ। तुम जैसे लोगों को जागरूकता के लिए चुना गया है। हिमालय के दिव्य लोक में भारत के लिए योजना तैयार हो रही है। अतिशीघ्र भारत विश्व का मुखिया बनेगा।’

आश्चर्य है कि रामानंद जी को अपने कार्य के लिए हिमालय के अज्ञात साधु का संदेश मिला। आज इतिहास पुनरावृत्ति कर रहा है। उस समय जनता स्वयं कर्फ्यू लगा देती थी, आज कोरोना ने लगवा दिया है। उस समय दस करोड़ लोग इसे देखते थे, कल इससे भी अधिक देखेंगे। उन करोड़ों की सामूहिक चेतना हिमालय के उन गुरु तक पुनः पहुंच सकेगी। शायद फिर कोई युवा साधु चला आए और हम कोरोना से लड़ रहे इस युद्ध मे विजयी बन कर उभरे। कल चले राम बाण, और कोरोना का वध हो।

सत्यमशिवमसुन्दरम
बरसों बाद दूरदर्शन पर लौटा है।।
तुष्टिकरण की चटनी, सेकुलरिज्म का चम्मच और ये लाल चड्डी (वामपंथी जीव)………..☺
अस्सी के दशक में भारत में पहली बार #रामायण जैसे हिन्दू धार्मिक सीरियलों का दूरदर्शन पर प्रसारण शुरू हुआ… और नब्बे के दशक आते आते #महाभारत ने ब्लैक एंड वाईट टेलीविजन पर अपनी पकड मजबूत कर ली, यह वास्तविकता है की जब रामयण दूरदर्शन 1 पर रविवार को शुरू होता था… तो सड़कें, गलियाँ सूनी हो जाती थी।
अपने आराध्य को टीवी पर देखने की ऐसी दीवानगी थी
की रामायण सीरियल में राम बने अरुण गोविल अगर सामने आ जाते तो लोगों में उनके पैर छूने की होड़ लग जाती… इन दोनों धार्मिक सीरियलों ने नब्बे के दशक में लोगो पर पूरी तरह से जादू सा कर दिया…पर धर्म को अफीम समझने
वाले कम्युनिस्टों से ये ना देखा गया नब्बे के दशक में कम्युनिस्टों ने इस बात की शिकायत राष्ट्रपति से की… कि एक धर्मनिरपेक्ष देश में एक समुदाय के प्रभुत्व को बढ़ावा देने वाली चीज़े दूरदर्शन जैसे राष्ट्रीय चैनलों पर कैसे आ सकती है ??? इससे हिन्दुत्ववादी माहौल बनता है… जो की धर्मनिरपेक्षता के लिए खतरा है।
इसी वजह से सरकार को उन दिनों “अकबर दी ग्रेट ”….. टीपू सुलतान…. अलिफ़ लैला…. और ईसाईयों के लिए “दयासागर “जैसे धारावाहिकों की शुरुवात भी दूरदर्शन पर करनी पड़ी।
सत्तर के अन्तिम दशक में जब मोरार जी देसाई की सरकार थी और लाल कृष्ण अडवानी सूचना और प्रसारण मंत्री थे… तब हर साल एक केबिनट मिनिस्ट्री की मीटिंग होती थी जिसमे विपक्षी दल भी आते थे…. मीटिंग की शुरुवात में ही एक वरिष्ठ कांग्रेसी जन उठे और अपनी बात रखते हुवे कहा की…. ये रोज़ सुबह साढ़े छ बजे जो रेडियो पर जो भक्ति संगीत बजता है… वो देश की धर्म निरपेक्षता के लिए खतरा है… इसे बंद किया जाए,, बड़ा जटिल प्रश्न था उनका… उसके कुछ सालों बाद बनारस हिन्दू विद्यालय के नाम से हिन्दू शब्द हटाने की मांग भी उठी… स्कूलों में रामयण और हिन्दू प्रतीकों और परम्पराओं को नष्ट करने के लिए…. सरस्वती वंदना कांग्रेस शासन में ही बंद कर दी गई… महाराणा प्रताप की जगह अकबर का इतिहास पढ़ाना… ये कांग्रेस सरकार की ही देन थी…. केन्द्रीय विद्यालय का लोगो दीपक से बदल कर चाँद तारा रखने का सुझाव कांग्रेस का ही था… भारतीय लोकतंत्र में हर वो परम्परा या प्रतीक जो हिंदुओ के प्रभुत्व को बढ़ावा देता है को सेकुलरवादियों के अनुसार धर्म निरपेक्षता के लिए खतरा है… किसी सरकारी समारोह में दीप प्रज्वलन करने का भी ये विरोध कर चुके है… इनके अनुसार दीप प्रज्वलन कर किसी कार्य का उद्घाटन करना धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है…. जबकि रिबन काटकर उद्घाटन करने से देश में एकता आती है… कांग्रेस यूपीए सरकार के समय हमारे रास्ट्रीय चैनल दूरदर्शन से “सत्यम शिवम सुन्दरम” को हटा दिया गया था,
ये भूल गए है कि ये देश पहले भी हिन्दू राष्ट्र था और आज भी है ये स्वयं घोषित हिन्दू देश है… आज भी भारतीय संसद के मुख्यद्वार पर “धर्म चक्र प्रवार्ताय अंकित है…. राज्यसभा के मुख्यद्वार पर “सत्यं वद–धर्मम चर“ अंकित है…. भारतीय न्यायपालिका का घोष वाक्य है “धर्मो रक्षित रक्षितः“…. और सर्वोच्च न्यायलय का अधिकारिक वाक्य है, “यतो धर्मो ततो जयः “यानी जहाँ धर्म है वही जीत है…. आज भी दूरदर्शन का लोगो… सत्यम शिवम् सुन्दरम है।
ये भूल गए हैं की आज भी सेना में किसी जहाज या हथियार टैंक का उद्घाटन नारियल फोड़ कर ही किया जाता है… ये भूल गए है की भारत की आर्थिक राजधानी में स्थित मुंबई शेयर बाजार में आज भी दिवाली के दिन लक्ष्मी गणेश की पूजा होती है… ये कम्युनिस्ट भूल गए है की स्वयं के प्रदेश जहाँ कम्युनिस्टों का 34 साल शासन रहा, वो बंगाल…. वहां आज भी घर घर में दुर्गा पूजा होती है… ये भूल गए है की इस धर्म निरपेक्ष देश में भी दिल्ली के रामलीला मैदान में स्वयं भारत के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति राम-लक्ष्मण की आरती उतारते है… और ये सारे हिंदुत्ववादी परंपराए इस धर्मनिरपेक्ष मुल्क में होती है…
ये धर्म को अफीम समझने वाले कम्युनिस्टों….!तुम धर्म को नहीं जानते…. . और इस सनातन धर्मी देश में तुम्हारी शातिर बेवकूफी अब ज्यादा दिन तक चलेगी नही …… अब भारत जाग रहा है ,अपनी संस्कृति को पहचान रहा है।

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[31/03, 7:12 pm] Harshad Ashodiya: Mundaka Upanishad (Mundaka 3 Khand 1):
न चक्षुषा गृह्यते नापि वाचा नान्यैर्देवैस्तपसा कर्मण वा ।
ज्ञानप्रसादेन विशुद्धसत्त्व स्ततस्तु तं पश्यते निष्कलं
ध्यायमानः ॥ ८ ॥

उसे न चक्षु ग्रहण कर पाते हैं न वाणी, न अन्य देवता उसे ग्रहण कर पाते हैं; उसे न तपस्या से ग्रहण किया जा सकता है न कर्मों के द्वारा: जब अंतर सत्ता ज्ञान के प्रसाद से विशुद्ध हो जाती है, केवल तभी ध्यान की अवस्था में उस अखंड परमात्मा तत्व को देखा जाता है।
[31/03, 7:26 pm] Harshad Ashodiya: लुब्धस्य नश्यति यशः पिशुनस्य मैत्री नष्टक्रियस्य कुलमर्थपरस्य धर्मः।
विद्याफलं व्यसनिनः कृपणस्य सौख्यं राज्यं प्रमत्तसचिवस्य नराधिपस्य।।अर्थात् लोभी व्यक्ति का यश, चुगलखोर की मित्रता, जिसकी क्रिया नष्ट हो गई है उसका वंश, धनपरायण का धर्म, बुरी आदत वाले की विद्या का फल, कंजूस का सुख तथा जिसके सचिव प्रमाद से युक्त हो गये हो, ऐसे राजा का राज्य नष्ट हो जाता है।

पञ्चतंत्र – काकोलुकीय – प्रमत्तसचिव
[31/03, 7:30 pm] Harshad Ashodiya: पीत्वा रसं तु कटुकं मधुरं समानं
माधुर्यमेव जनयेन्मधुमक्षिकासौ |
सन्तस्तथैव समसज्जनदुर्जनानां
श्रुत्वा वचः मधुरसुक्तरसं सृजन्ति ||

भावानुवाद

रस सेवुनि मधुर वा कटु, मधमाशी निर्मिते गोड मधु |
बोल ऐकूनी स्तुती वा निंदेचे , संत सांगती हितोपदेशु ||

जिस तरह मधुमक्खी कड़वा, मीठा रस पीकर (एकत्रित कर) इसे मधुर रस मे बदल देती है उसी प्रकार संत भी सज्जन दुर्जन दोनो के वचन सुनकर मधुर सुन्दर (रस युक्त वाणी) का सृजन करते हैं।
[31/03, 7:37 pm] Harshad Ashodiya: गुणाः गुणज्ञेषु गुणा: भवन्ति
ते निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषाः।
आस्व्याद्य तोयाः प्रवहन्ति नद्यः
समुद्रमासाद्य भवत्यपेयाः ॥

(विद्वान और गुणी व्यक्तियों के पास गुण, सद्गुण के ही रूप में सुरक्षित रहते हैं परन्तु वे ही गुण गुणहीन और नीच व्यक्तियों के संसर्ग से दूषित हो कर दोषों में परिणित हो जाते हैं। उदाहरणार्थ नदियों में अच्छे स्वाद वाला पीने योग्य जल प्रवाहित होता है परन्तु वही जल जब समुद्र के जल से मिल जाता है तब वह अशुद्ध हो कर खारा हो जाता है और पीने के योग्य नहीं रहता है।)

सूंदर सत्य

जैसे अर्जुन कृष्ण के संपर्क में आया और सुरक्षित रहा।
कर्ण दूषित सूर्योधन के संपर्क में आया और सत्यानाश हुआ।

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गुरु और परमात्मा में- एक अंतर है।

‼️वेद पुराण की प्रस्तुति‼️

एक आदमी के घर परमात्मा और गुरु दोनो पहुंच गये, वह बाहर आया और चरणों में गिरने लगा।

वह परमात्मा के चरणों में गिरा तो परमात्मा बोले- रुको-रुको पहले गुरु के चरणों में जाओ।

वह दौड़ कर गुरु के चरणों में गया। गुरु बोले- मैं परमात्मा को लाया हूँ,
पहले परमात्मा के चरणों में जाओ।

वह परमात्मा के चरणों में गया तो परमात्मा बोले- इस परमात्मा को गुरु ही लाया है न,
गुरु ने ही बताया है न, तो पहले गुरु के चरणों में जाओ।
फिर वह गुरु के चरणों में गया।

गुरु बोले- नहीं-नहीं मैंने तो तुम्हें बताया ही है न, लेकिन तुमको बनाया किसने?

परमात्मा ने ही तो बनाया है न, इसलिये पहले परमात्मा के चरणों में जाओ।
वो फिर वह परमात्मा के चरणों में गया।
परमात्मा बोले- रुको मैंने तुम्हें बनाया, यह सब ठीक है। तुम मेरे चरणों में आ गये हो।
लेकिन मेरे यहाँ न्याय की पद्धति है। अगर तुमने अच्छा किया है,
अच्छे कर्म किये हैं, तो तुमको स्वर्ग मिलेगा।
फिर अच्छा जन्म मिलेगा, अच्छी योनि मिलेगी।
लेकिन अगर तुम बुरे कर्म करके आए हो,
तो मेरे यहाँ दंड का प्रावधान भी है, दंड मिलेगा।

चौरासी लाख योनियों में भटकाए जाओगे, फिर अटकोगे, फिर तुम्हारी आत्मा को कष्ट होगा।
फिर नरक मिलेगा, और अटक जाओगे।

लेकिन यह गुरु है ना, यह बहुत भोला है।
इनके पास, इसके चरणों में पहले चले गये तो तुम जैसे भी हो, जिस तरह से भी हो
यह तुम्हें गले लगा लेगा।
और तुमको शुद्ध करके मेरे चरणों में रख जायेगा। जहाँ ईनाम ही ईनाम है।
यही कारण है कि गुरु कभी किसी को भगाता नहीं।
गुरु निखारता है, जो भी मिलता है उसको गले लगाता है।
उस पतित को पावन करता है और सदा के लिए जन्म-मरण के आवागमन से मुक्ति दिलाकर परमात्मा के चरणों में भेज देता है…🙏🏻

🙏🏻👏🏻ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नमो नमः👏🏻🙏🏻

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💥🔆🌳शुभ प्रभात🌳💥🔆 *💐मां की सीख*💐

एक धनी सेठ था | उसकी एक पुश्तैनी हवेली भी थी जो बहुत विशाल थी और जिसकी उसे साफ – सफाई करवानी थी लेकिन वह पूरे घर की साफ–सफाई एक साथ नहीं करवाना चाहता था क्योंकि पूरे घर की एक साथ सफाई करवाने पर उसे सारा सामान इधर से उधर करना पड़ता जिससे बहुत समय ख़राब होता और सामान को संभालने में भी बहुत दिक्कते आती इसलिए उसकी इच्छा थी कि कोई ऐसा मजदूर मिल जाए जो एक दिन में केवल एक कमरा साफ करें | अत: इस कार्य के लिए उसने कई मजदूरों से बात की लेकिन सभी पूरे घर को एक साथ साफ करने के लिए कह रहे थे |
जब कहीं बात नहीं बनी तो सेठ ने अतुल नाम के एक बारह–तेरह साल के मजदूर लड़के को काम पर लगा दिया |अतुल रोज समय पर हवेली आता और एक कमरा साफ करके अपने घर चला जाता | इस प्रकार उसने घर के बाहरी कमरों को कुछ दिनों में साफ कर दिया |

इन कुछ दिनों में अतुल ने कभी भी किसी भी सदस्य को शिकायत का मौका नहीं दिया |इस वजह से घर के सभी सदस्य बहुत खुश थे और अतुल पर बहुत विश्वास करने लगे थे और अच्छे आचार व्यवहार के कारण घर में कही आने–जाने पर कोई रोक–टोक नहीं थी |

चूकी बाहर के कमरों की सफाई हो चुकी थी इसलिए अब वह घर के आन्तरिक कमरों की साफ सफाई करने लगा | एक दिन वह सेठ के शयनकक्ष की सफाई करने गया तो उस कमरे में रखी कीमती वस्तुओ को देखकर अतुल की आंखे खुली की खुली रह गई |

कमरे में एक से बढ़कर एक सुंदर वस्तु रखी हुई थी | जिसमे से कुछ तो सोने–चांदी से भी जड़ी हुई थी | अतुल ने अपने पूरे जीवन में इतनी सुंदर,इतनी कीमती और इतनी तरह की वस्तुये नहीं देखी थी | बेचारा उस चकाचौंध के आकर्षण से भौचक्का हो गया |

वह अपने आप को रोक नहीं पाया और कमरें में रखी चीजो को खूब पास से ध्यानपूर्वक उठा–उठाकर देखने लगा |उसको सभी चीजें बहुत अच्छी लग रही थी लेकिन एक सोने की घड़ी के प्रति उसका बाल मन आकर्षित होने लगा और यह आकर्षण कही न कही उसके नैतिक संस्कारों की जड़ों को हिला रहा था |

आख़िरकार वह लालच के जाल में फस ही गया और उस घड़ी को बार–बार उठा कर देखने लगा | कान से लगाकर घड़ी की मीठी आवाज भी सुनी और अनगिनत बार हाथ पर भी बांध कर देखी |

अपने हाथ पर घड़ी उसे बहुत खूबसूरत लग रही थी |अब तो उसका ध्यान उस घड़ी पर ही केंद्रित होकर रह गया और उसके मन से एक आवाज उठी– “यदि यह घड़ी मुझे मिल जाती” | लेकिन अतुल का बाल मन यह नहीं समझ पा रहा था कि बिना पूछे घड़ी को अपना बना लेना चोरी कहलाता है

उसी वक्त घर की मालकिन यह देखने के लिए आ गई कि आखिर अतुल क्या कर रहा है जो वह दोपहर के खाने के लिए न आया | मालकिन ने अतुल के हाथ में घड़ी देखी तो दरवाजे पर ही रुक गई |

बहुत देर तक घडी हाथ में लिए वह सोचता रहा क्या मैं इसे ले लूँ और ले तो लूँगा पर यह तो चोरी होगी | चोरी शब्द मन में आते ही उसका सारा शरीर कांप उठा | उसके लिए यह किसी संकट की घड़ी से कम नहीं लग रहा था |

ऐसे समय में उसे अपने माँ की दी हुई सीख याद आ गई कि “बेटा कभी किसी की चीज नहीं चुराना,चाहे तुम्हे भूखा ही क्यों न रहना पड़े क्योंकि चोरी करना महापाप होता है |भले ही कोई इन्सान तुम्हे चोरी करते देखे या न देखे पर ईश्वर अवश्य देख लेता है | वह चोरी करने पर बहुत बड़ी सजा देता है |यह याद रखना कि चोरी एक न एक दिन जरुर पकड़ी ही जाती है और तब सजा जरुर मिलती है |”

माँ की बाते याद आते ही अतुल को लगा कि ईश्वर उसे देख रहे है और उन्होंने उसके मन की चोरी वाली बात जान ली है |वह घबराकर रोने लगा और घड़ी को वही मेज पर रखकर यह कहता हुआ बाहर भागा–माँ मैं चोर नहीं हूँ, मैं कभी चोरी नहीं करूँगा,मुझे बचा लो माँ मुझे जेल नहीं जाना है |

मालकिन यह सब देख भावविह्वल हो गई और अतुल को पकड़ कर गले से लगा लिया और उसे चुप कराते हुए बोली “बेटा तुमने कोई चोरी नहीं की | तुम्हे डरने की जरुरत नहीं है |”तुम तो बहुत ईमानदार हो |”
मालकिन ने खुद घड़ी अपने हाथों से अतुल को देनी चाही लेकिन उसने लेने से मना कर दिया। यह देख मालकिन बहुत खुश हुई और मन ही मन सोचा कि जिस माँ ने अपने बेटे को नैतिकता की इतनी अच्छी शिक्षा दी है उस माँ से तो जरुर मिलना चाहिए और वह अतुल के साथ उसके घर गई |
“जिंदगी में हम कितने सही और कितने गलत है यह बात सिर्फ दो ही शक्स जानते है एक ‘ईश्वर’ और दूसरा आपकी ‘अंतरआत्मा’ अतुल को उसकी माँ ने अपनी अंतरआत्मा’ की आवाज सुनना सिखा दिया था !

सदैव प्रसन्न रहिये !!!🌳
जो प्राप्त है-पर्याप्त है !!!🌳
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“ईमानदारी का फल”

बहुत पहले की बात है एक राजा सुबह सुबह सैर करने के लिये महल से अकेला ही निकला । रास्ते में उसने देखा, एक किसान पसीने में तर-ब-तर अपने खेत में काम कर रहा है । राजा ने उसके पास जाकर पूछा, ‘भाई आप इतनी मेहनत करते हो, दिन में कितना कमा लेते हो ?’ किसान ने उत्तर दिया ‘एक सोने का सिक्का।’ राजा ने पूछा ‘उस सोने के सिक्के का क्या करते हो?’ किसान ने कहा, ‘राजन ! एक चौथाई भाग मैं खुद खाता हूँ। दूसरा चौथाई भाग उधार देता हूँ। तीसरे चौथाई भाग से ब्याज चुकाता हूँ और बाकी चौथाई हिस्सा कुएँ में डाल देता हूँ।’

किसान की बात राजा की समझ में न आई। वह बोले-भाई, पहेली मत बुझाओ। साफ़-साफ़ बताओ।

किसान ने मंद-मंद मुसकराकर कहा-महाराज, बात तो साफ़ है। पहले चौथाई भाग में से मैं अपना और अपनी औरत का पेट पालता हूँ। दूसरे चौथाई हिस्से में अपने बाल-बच्चों को खिलाता हूँ, क्योंकि बुढ़ापे में वे ही हमें पालने वाले हैं। तीसरे चौथाई भाग से मैं अपने बूढ़े माँ-बाप को खिलाता हूँ, क्योंकि उन्होंने मुझे पाल-पोसकर बड़ा किया है। इसलिए मैं उनका ऋणी हूँ। इस प्रकार उनका ब्याज चुकाता हूँ। बाकी चौथाई हिस्से को मैं दान-पुण्य में लगा देता हूँ, जिससे मौत के बाद परलोक सुधर जाए।

किसान का जवाब सुनकर राजा बहुत खुश हुए। उन्होंने किसान से कहा–मुझे तुम यह वचन दो कि जब तक तुम मेरा मुँह सौ बार न देखोगे, तब तक यह बात किसी दूसरे को न बताओगे। किसान ने राजा को वैसा ही वचन दिया।

दूसरे दिन राजा का दरबार लगा। राजा ने दरबारियों के सामने यह सवाल रखा और पूछा-आप लोग मेरा सवाल ध्यान से सुनिए और इसका सही जवाब दीजिए। जो इसका सही जवाब देगा, उसे सौ सोने के सिक्के इनाम में दिए जाएँगे। अब सुन लीजिए। मेरा सवाल है-हमारे राज्य में एक किसान है। वह रोज़ एक सोने का सिक्का कमाता है। उसका एक चौथाई भाग वह खुद खाता है। दूसरा चौथाई भाग उधार देता है। तीसरे चौथाई भाग से ब्याज चुकाता है और बाकी चौथाई हिस्सा कुएँ में डाल देता है। इसका मतलब क्‍या है?

सभी दरबारी राजा का यह सवाल सुनकर मौन रह गए। कोई जवाब न दे पाया। राजा ने सभी दरबारियों को यह पहेली सुलझाने के लिए दो दिन की मुहलत दी।

राजा का एक मंत्री बड़ा ही समझदार था। उसने सोचा कि आज सुबह राजा टहलने के लिए राजधानी से बाहर गए थे, वहाँ पर राजा की मुलाकात किसी किसान से हुई होगी। यह सोचकर वह मंत्री दूसरे दिन सवेरे टहलते हुए राजधानी के बाहर चला गया। वहाँ पर नदी के किनारे खेत में वही किसान खेत जोत रहा था। मंत्री ने उस किसान के पास जाकर उस सवाल का जवाब पूछा।

किसान ने कहा-मैंने राजा को वचन दिया है कि जब तक मैं राजा का मुँह सौ बार न देखूँगा, तब तक मैं इस सवाल का जवाब किसी को न बताऊँगा। इसलिए मुझे माफ कीजिए। मैं इसका जवाब आपको नहीं दे सकता।

मंत्री बड़ा ही बुद्धिमान था। वह किसान की बात समझ गया। उसने उसी वक्‍त अपनी थैली में से सौ सोने के सिक्के निकालकर किसान को दिए। हर-एक सिक्‍के पर राजा का चित्र था। किसान ने सौ सिक्‍कों पर राजा का चित्र देख लिया और उस सवाल का जवाब मंत्री को बता दिया।

तीसरे दिन जब दरबार लगा, तब राजा ने वही सवाल पूछा। मंत्री ने उठकर उसका सही जवाब कह सुनाया। राजा समझ गए कि उसी किसान ने मंत्री को उनके सवाल का जवाब बता दिया है।

राजा गुस्से में आ गए। उन्होंने उस किसान को बुलवाकर पूछा-तुमने अपने बचन का पालन क्‍यों नहीं किया?

किसान ने हाथ जोड़कर कहा-महाराज, मैंने अपने वचन का पालन किया है। यह उत्तर देने से पहले मैंने सौ बार आपका चेहरा देख लिया है। ये लीजिए, आपके चेहरे वाले सौ सोने के सिक्‍के। इन पर मैंने आपका चेहरा सौ बार देख लिया, तभी तो जवाब बता दिया।

राजा किसान की ईमानदारी पर बहुत खुश हुआ। किसान ने अपने वचन का पालन किया था, इसलिए राजा ने किसान को सौ सौने के सिक्के इनाम में दिए। किसान खुशी-खुशी अपने घर चला गया।
🙏🏻🙏🏽🙏🏼जय जय श्री राधे🙏🏾🙏🏿🙏

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आज का शुभ विचार
🍁🍁🍁🍁🍁🍁

बोल उठती है तस्वीर भी…..🌹🍂🌹
मन से बुला कर देखिये
दिल की बात ज़रा प्रभु को
सुना कर देखिये

देते है वो सबकी बातों का जवाब
दुःख अपने दिल का उनको
बता कर देखिये…..

होगा इक रोज़ तुमको भी
किस्मत पे अपनी नाज़
चरणों में उनके सिर को झुका कर देखिये….

प्रभु तसवीर से भी दर्शन देगे बस मन से बोल तो दीजिये

हँस जैन खण्डवा

🌹🌺🌹🥀🌹🌹

🔥भगवान के दर्शन🔥

एक धार्मिक व्यक्ति था : भगवान में उसकी बड़ी श्रद्धा थी ....

उसने मन ही मन प्रभु की एक तस्वीर बना रखी थी .. एक दिन भक्ति से भरकर उसने भगवान से कहा- भगवान मुझसे बात करो ....

और एक बुलबुल चहकने लगी लेकिन उस आदमी ने नहीं सुना .. इसलिए इस बार वह जोर से चिल्लाया ....

भगवान मुझसे कुछ बोलो- तो और आकाश में घटाएं उमङ़ने घुमड़ने लगी बादलो की गड़गडाहट होने लगी .. लेकिन आदमी ने कुछ नहीं सुना ....

उसने चारों तरफ निहारा, ऊपर-नीचे सब तरफ देखा .. और बोला- भगवान मेरे सामने तो आओ और बादलो में छिपा सूरज चमकने लगा ....

पर उसने देखा ही नहीं आखिरकार वह आदमी गला फाड़कर चीखने लगा भगवान मुझे कोई चमत्कार दिखाओ- तभी एक शिशु का जन्म हुआ और उसका प्रथम रुदन गूंजने लगा किन्तु उस आदमी ने ध्यान नहीं दिया ....

अब तो वह व्यक्ति रोने लगा और भगवान से याचना करने लगा- भगवान मुझे स्पर्श करो मुझे पता तो चले तुम यहाँ हो, मेरे पास हो, मेरे साथ हो और एक तितली उड़ते हुए आकर उसके हथेली पर बैठ गयी .. लेकिन उसने तितली को उड़ा दिया, और उदास मन से आगे चला गया ....

भगवान इतने सारे रूपो में उसके सामने आया,
इतने सारे ढंग से उससे बात की, पर उस आदमी ने पहचाना ही नहीं
शायद उसके मन में प्रभु की तस्वीर ही नहीं थी ....

हम यह तो कहते है कि ईश्वर प्रकृति के कण-कण में है, लेकिन हम उसे किसी और रूप में देखना चाहते ही नहीं है
इसलिए उसे कहीं देख ही नहीं पाते ....

इसे भक्ति में दुराग्रह भी कहते है ....

भगवान अपने तरीके से आना चाहते है और हम अपने तरीके से देखना चाहते है और बात नहीं बन पाती ..!!

बात तभी बनेगी जब हम भगवान को भगवान की आँखों से देखेंगे ...!!

हँस जैन खण्डवा

🌖🌕🌖🌗🌕🌗

आज का उपाय
🌱🌿☘🍀☘🍁

भारतीय धर्म शास्त्रों में बहुत सारे ऐसे उपाय बताए गए हैं जिन्हें प्रतिदिन घर में करने से नकारात्मकता का नाश होता है और सकारात्मकता से शुभ प्रभाव आता है। यहां आपको तीन उपाय बताए जा रहे हैं जिन्हें गरीब व्यक्ति भी हर रोज अपने घर करेगा तो वह भी अमीर बनने का सुख प्राप्त कर सकता है।

  1. प्रतिदिन घर के हर कोने में कपूर का धुआ दें। पारिवारिक सदस्यों को तनाव से मुक्ति दिलवाने में यह उपाय अहम भूमिका निभाता है।
  2. जल के अंदर नमक मिला कर पूरे घर के अंदर इसका छिड़काव करें। नमक हवा में मौजुद नकारात्मक शक्ति को सोख लेता है और घर में सकारात्मक वातावरण का संचार करता है। छिड़काव करने के बाद हाथ अच्छे से साफ करें।
  3. जब शाम को घर वापिस आएं तो कुछ न कुछ खाने की वस्तु अवश्य लेकर आएं। इससे घर में देवी अन्नपूर्णा सहित महालक्ष्मी का वास बना रहता है।

हँस जैन रामनगर खण्डवा मध्यप्रदेश

98272 14427

🌗🌹☘🍀🍁👏🏻

Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

देवी सिंह तोमर

फुर्सत में भी हो… और समय भी बहुत हैं… तो लेख को पुरा पढे…
“अंग्रेजों और कोंग्रेसियों” के फैलाए “झूठ” से बाहर निकलने के लिये लिंक के साथ पूरा लेख पढ़िये –

जिन का प्रचार होता है वो “राष्टवादी” बन जाते है – जैसे – “गांधी”..

जिन का “दुष्प्रचार” होता है वो “देशद्रोही” बन जाते है – जैसे – “हुतात्मा नाथूराम गोडसे”।

ऐसे ही “वीर सांवरकर” के साथ भी किया गया था।


कुछ ऐसा ही — “हिटलर” के साथ भी हुआ था।

लोग दिवाने थे हिटलर के – उसके एक इशारे पर – पूरे जर्मनी के लोग – कुर्बान – होने के लिए तैयार थे।
हिटलर ने जर्मनी को – पहले विश्व युद्ध की -“आर्थिक और सामजिक” – बर्बादी से बाहर निकाल कर जर्मनी को एक बार फिर से – “विश्व शक्ति” – बनाया था…

जिसने कभी ना “सूर्यास्त” होने वाले सम्राज्य के मालिक “ब्रिटेन” के दिल में हार का “खौफ” भर दिया था।

बाद में यही “खौफ” भारत जैसे देशो को “आज़ादी” दिलवाने में एक बड़ा कारण बना।

नही तो – अंग्रेजों का – भारत को “छोड़ने” का कोई “मन” ही नही था,क्यों कि,

1940 में तो अंग्रेजों ने अपने “आका” {वाइसराय} के रहने के लिये बहुत ही “भव्य भवन” बनवा कर पूरा किया था,

उस आलीशान इमारत को – आज हम “राष्ट्रपति भवन” कहते है।

इधर ये भवन बनकर तैयार हुआ और उधर अंगेजो के “हलक” में हिटलर ने “डंडा” डाल दिया और
मार मार के “कचूमर” ही निकाल दिया और “विश्व विजयी” अंग्रेजों की सारी “हेकड़ी” निकाल कर और उस “साम्राज्यवादी शासन” की – जड़े खोद कर खोखली कर दी।

हिटलर ने – हारी हुई – भारतीय अंग्रेज फौज के “जिन्दा पकड़े” गये “युद्ध बंदीयों” को – नेता जी “सुभाषचन्द्र” को सौंप कर “आजाद हिन्द फौज” खड़ी करवा दी-

याद रहे :– “आजाद हिन्द फौज” में सीधे यहाँ भारत से “बहुत कम” लोगो शामिल हुए थे।

हिटलर को अपने “देश और धर्म” से प्यार था ,
हिटलर पागलो की तरह अपने देश से प्यार करता था उसका
यही पागलपन दूसरे विश्व युद्ध का कारण बना।

कुछ लोग कहते है कि हिटलर ने दुनिया को विश्व युद्ध
की ओर धकेल दिया इस लिये वो “नरसहारक” है,

तो फिर ब्रिटेन तो पुरे ४०० सालो तक दुनिया भर में चुन चुन कर
हमले करता रहा और उन देशों को “गुलाम” बना कर उन पर “शासन” भी करता रहा …
और उन देशों के “नागरिकों” को “गुलाम” बना कर दुसरे देशों “बेचता” भी रहा..

क्या वो “बर्बरता और कत्लेआम” पुण्य का काम था –??–

भारत में भी “ब्रिटेन” ने हमारे “ज्ञात और अज्ञात”,
8 लाख के करीब भारतीय “स्वतंत्रता सैनानियों” को मारा था।

आज भी अमेरिका “विश्व शांति” के नाम पर, पुरे विश्व के हर देश में “नर संहार” कर रहा है,

क्या वो सब जायज है–??–

ऐसे देश – कैसे “हिटलर” को “हत्यारा” कह सकते है।

हाँ — ये देश – “हिटलर”- के बारे में -“झूठा प्रचार”- जरुर करते है।

अब आप सिक्के का दूसरा पहलू भी देखिये :—

राजतन्त्र में एक गाँव के कर्ताधर्ता को — “ठाकुर” — कहते थे।
बहुत से गांवो पर राज करने वाले को — “राजा”,
और “कई राजाओ” पर शासन करने वाले को – हिन्दू लोग “सम्राट” कहते थे।

और मुसलमान उसे — “बादशाह” कहते थे।

क्या आप ऐसा मानते है कि :– एक राजा के लिये – दुसरे राजा – अपना राजपाट – आने वाले राजा के लिए – ख़ुशी ख़ुशी छोड़ देते थे,

नही :– सिर्फ कुछ को छोड़ कर – सभी राजाओं ने – आत्म समर्पण नही किया – बल्कि – युद्ध किये है –इतिहास गवाह है।

युद्ध में तो सिर्फ “कत्लोगारत” ही होता है।

अकबर ने महाराणा प्रताप को झुकाने के लिए बहुत खून खराब किया था — और — ऐसे ही — सम्राट अशोक ने भी कलिंग को जितने के लिए भी कत्लेआम किया था।

फिर सोचने की बात है – हम लोग – कैसे उन्हें “महान” कह रहे है –??–

तो क्या आप ये मानते है कि :—

मुगल बादशाह “अकबर” को “बादशाहत” —
बिना “कत्लेआम” और बिना “खूनखराबे” के उस की -“सुसराल से दहेज”- में मिली थी -??- और —

“सम्राट अशोक महान” को भी “सम्राट” की “पदवी” भी उस की “सुसराल” से ही मिली होगी-??-

जी नही — इन दोनों ने “कत्लेआम” और “खूनखराबे” से ही ये “स्थान” हासिल किये थे।

तथाकथित सम्राट अशोक ने “बुद्ध” के कहने से – सनातन धर्म को हटा कर – “बौद्ध धम्म” को – राज धर्म” घोषित कर दिया था।

कोई भी हिन्दू – अपनी सनातनी धर्म की मान्यताओं के अनुसार पूजा अर्चना नही कर सकता था,
अपनी सनातनी परम्पराओं की पालना नही कर सकता था,

अगर कोई हिन्दू ऐसा करता तो – वो “राजद्रोही” माना जाता,
वो हिन्दू “दण्ड” का भागी होता,उस समय “राजा की आज्ञा” नही मानने की क्या सजा होती होगी आप समझ सकते है।

क्योंकि हर भारतीय हिन्दू अशोक के राज में – अशोक की – “राज्य आज्ञा” के अधीन था…

तो – फिर “अकबर और अशोक” को – “महान” और – “हिटलर हत्यारा” को क्यों कहा जाता है।

एक बात और जान लीजिये :—

हिटलर से बड़ा जर्मनी की धरती पर कोई…

“देशप्रेमी” {राष्ट भक्त} ना कोई हुआ है और ना फिर कोई होगा।

हिटलर ने अपने “देश हित” में जो किया वो बिलकुल सही किया।

भारतीय लोग भूल रहे है कि यहाँ भारत भूमि पर भी :—

“धर्म और नीति” के लिए ही – “महाभारत” – नाम का एक युद्ध हुआ था – युद्ध में लड्डू नही बांटे जाते – युद्ध कहीं भी हो – किसी का भी हो – सिर्फ “कत्लेआम” होता है।

महाभारत के युद्ध में भी – करोड़ो लोगों की जाने गयी थी।

तो क्या – महाभारत – के युद्ध के कारण – हम लोग – “भगवान श्री कृष्ण और पांडवों” को भी – खुनी और हत्यारा – कहने लगेंगे – ??- {सोचिये}

माता सीता को खोजने में “सुग्रीव” से कई गुणा अधिक मददगार साबित होता “बाली” – मगर प्रभु
श्रीराम ने “बाली” का वध करके “सुग्रीव” की मित्रता चुनी क्योंकि “बाली” अधर्म के और “सुग्रीव” धर्म के प्रतिनिधि थे।

{तो क्या बाली के वध के लिए – हम भगवान राम को खूनी और कातिल कहने लगेंगे}

हिटलर का दुष्प्रचार करने वाले अंग्रेज लोग – हम भारतीय लोगों को भी तो “कुता” मानते थे – तो क्या – उन्ही की देखा देखि हम लोग – खुद को “कुता” मानने लगेंगे…

हिटलर ने – वो सब क्यों किया – ये कोई नही “जानता” और कोई “जानना” भी नही चाहता,

जो कुछ “पढ़ा और सूना” उसी को ही “सत्य” मान कर चल रहे है।

जबकि :— “सत्य इस से बिलकुल” अलग है।

जर्मनी तो – अमेरिका से – सिर्फ एक – परमाणु हथियार – बनाने में ही पिछड़ गया- नही तो –

उस समय – अमेरिका – जर्मनी के सामने – हर तकनीकी में – बहुत पीछे था


इतिहास को तनिक ध्यान से पढ़ा जाए !
हां तो मित्रो :—
सन 1539 ई० में हुमायूँ और शेरशाह सूरी के बीच चौसा का युद्ध हुआ !
जिसमे हुमायूँ हार गया और 1540ई० में अपनी बीवी को अमरकोट के राजा वीरसाल के पास छोड़कर ईरान भाग गया !
इसके बाद वो 15 साल भटकता रहा !
अब साला सिर सोच सोचकर फटा जा रहा है!
कि = जब 1540 के बाद हुमायूँ अपनी बीवी के साथ नही था!

तो 2 साल बाद 1542 में उसे अकबर के रूप में पुत्ररत्न की प्राप्ति कैसे हो गयी ???

शायद यही कारण है कि अकबर को “महान” बताया वामपंथियों इतिहासकारों ने !

अकबर कितना महान था – ये जानने के लिए – एक ये पोस्ट भी पढ़ लीजिये –


अकबर के समय के इतिहास लेखक “अहमद यादगार” ने लिखा :–

“बैरम खाँ ने निहत्थे और बुरी तरह घायल हिन्दू राजा हेमू के हाथ पैर बाँध दिये और उसे नौजवान शहजादे {अकबर} के पास ले गया और बोला, आप अपने पवित्र हाथों से इस “काफिर” का कत्ल कर दें और ”गाज़ी”की उपाधि कुबूल करें, और शहजादे ने उसका सिर उसके अपवित्र धड़ से अलग कर दिया।” (नवम्बर, ५ AD १५५६)
(तारीख-ई-अफगान,अहमद यादगार,अनुवाद एलियट और डाउसन, खण्ड VI, पृष्ठ ६५-६६)

इस तरह अकबर ने १४ साल की आयु में ही “गाज़ी” (काफिरों का कातिल) होने का सम्मान पाया।

साम्राज्यवादी मनोलिप्सा से प्रेरित हो 1567 अक्टूबर में अकबर ने चितौड़ गढ़ पर आक्रमण किया।
जेम्स कर्नल टॉड ने एक मान्यता का उल्लेख किया :— जो इस प्रकार है -इस लड़ाई में जो लोग काम आए उनके गलों से यज्ञोपवीत उतरवा कर तुलवाये तो वे ७४-१/२ मन बैठे।

अकबर द्वारा निरीह व्यक्तियों की हत्या चितौड़ में की गई – उसकी “स्मृति को चिर स्थायी” रखने के लिए ७४-१/२ की संख्या की “अपशुकुन” माने जाने लगा।

इसीलिए जब किसी को कोई गोपनीय पत्र भिजवाया जाता तो उसके ऊपर ७४ -१/२ का आँक लगा दिया जाता कि यदि किसी अनाधिकृत व्यक्ति ने पत्र खोला तो उसे “चितौड़ खप्या का पाप” लगेगा।

इस लिये – मेवाड़ में 1567 (लगभग 70 साल पूर्व तक) जब कोई पत्र व्यवहार होता था तो उस चिठ्ठी को बंद कर उस पर ७४-१/२ का आँक लगाया जाता था।{७४-१/२ लिखा जाता था}

तथाकथित “महान” अकबर के हमले देखेंगे तो भी ऐसा ही दिखेगा। उस से हारने वाला कोई राजा जीवित नहीं छोड़ा गया। उन “राजपरिवारों और सामंतों” के घर की सभी “औरतों” को गुलाम बना कर अपने “हरम” में डाल दिया गया था।

लूडो जैसा खेल खेलने के लिए – “फतेहपुर सिकरी”- के महलों में जमीन पर – “खांचे”- बने हैं, जिसमें – “गोटियों” – के बदले कभी “महान” अकबर -“गुलाम लौंडियों” – को इस्तेमाल करते थे।

चलिए एक बार मान भी लेते हैं कि –“अकबर महान” था – लेकिन – “बाबर हुमायूँ और तुगलक”-??- के नाम पर भी – “रोड” –??-
क्या ये सभी महान थे – या – कोंगियों के “पितृ पुरुष” थे -??-

दिल्ली तो “इंद्रप्रस्थ” तो है लेकिन “युधिस्ठिर,भीम,अर्जुन,नकुल, सहदेव और विदुर” के नाम पर एक भी सड़क नहीं -??-
दिल्ली की “सड़कों” का नाम पढ़ने पर “आत्मग्लानि” होती है और लगता है कि यह “हिंदुस्तान” नहीं बल्कि “पाकिस्तान” की राजधानी है…

अकबर को “मुस्लिम आक्रांता” कहकर “माननीय प्रणव मुखर्जी” जी ने उस “लुटेरे” को -“महान”- कहने वाले -“वामपंथी इतिहासकारों, बुद्धिजीवियों और सेक्युलर नेताओं”- का मुंह बंद कर दिया है!

आशा करता हूँ कि – ये लोग अब स्वयं “इंडिया गेट” से प्रधानमंत्री निवास को जोड़ने वाली “अकबर रोड” का नाम बदलने की मांग करेंगे।

तिरंगा भारतीय राष्ट्रीय ध्वज – 15 अगस्त 1947 को ही फहराया गया था – जो कि – बिलकुल झूठ है –

मालदीव को 1944 में ही अंग्रेजो से छीन कर – या – कहे जीत – नेता जी सुभाष चन्द्र बोष ने – तिरंगा फहरा दिया था ..{जो कहीं – भी आप को – पढने या सुनने को नही मिलेगा}

आज़ाद हिंद फौज ने 21 अक्टूबर 1943 को प्रथम सरकार की स्थापना सिंगापुर में हुई और. भारत के उत्तर पूर्व के कई भागों को स्वतंत्र कर लिया गया और 11 देशों ने उसे मान्यता दी जैसे जापान, फिलीपीन्स, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड ने मान्यता दे दी। और कई देशों ने अपने दूतावास भी खोले थे।

“अंग्रेजों और कोंग्रेसियों” के फैलाए “झूठ” से बाहर निकलिये – इतिहास में बहुत गडबड है आप अपने – “विवेक” – से काम लीजिये ..

मेरे लिखने का मुद्दा – हिटलर की महिमामंडित करना नही है – थोड़ा गम्भीरता से सोचिये.. .

मैंने ये सब क्यों लिखा है .. थोड़ा दिमाग पर जोर दीजिये –

।।

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

एक बार एक राजा के राज्य में महामारी फैल गयी। चारो ओर लोग मरने लगे। राजा ने इसे रोकने के लिये बहुत सारे उपाय करवाये मगर कुछ असर न हुआ और लोग मरते रहे। दुखी राजा ईश्वर से प्रार्थना करने लगा। तभी अचानक आकाशवाणी हुई। आसमान से आवाज़ आयी कि हे राजा तुम्हारी राजधानी के बीचो बीच जो पुराना सूखा कुंआ है अगर अमावस्या की रात को राज्य के प्रत्येक घर से एक – एक बाल्टी दूध उस कुएं में डाला जाये तो अगली ही सुबह ये महामारी समाप्त हो जायेगी और लोगों का मरना बन्द हो जायेगा। राजा ने तुरन्त ही पूरे राज्य में यह घोषणा करवा दी कि महामारी से बचने के लिए अमावस्या की रात को हर घर से कुएं में एक-एक बाल्टी दूध डाला जाना अनिवार्य है ।

अमावस्या की रात जब लोगों को कुएं में दूध डालना था उसी रात राज्य में रहने वाली एक चालाक एवं कंजूस बुढ़िया ने सोंचा कि सारे लोग तो कुंए में दूध डालेंगे अगर मै अकेली एक बाल्टी पानी डाल दूं तो किसी को क्या पता चलेगा। इसी विचार से उस कंजूस बुढ़िया ने रात में चुपचाप एक बाल्टी पानी कुंए में डाल दिया। अगले दिन जब सुबह हुई तो लोग वैसे ही मर रहे थे। कुछ भी नहीं बदला था क्योंकि महामारी समाप्त नहीं हुयी थी। राजा ने जब कुंए के पास जाकर इसका कारण जानना चाहा तो उसने देखा कि सारा कुंआ पानी से भरा हुआ है। दूध की एक बूंद भी वहां नहीं थी। राजा समझ गया कि इसी कारण से महामारी दूर नहीं हुई और लोग अभी भी मर रहे हैं।

दरअसल ऐसा इसलिये हुआ क्योंकि जो विचार उस बुढ़िया के मन में आया था वही विचार पूरे राज्य के लोगों के मन में आ गया और किसी ने भी कुंए में दूध नहीं डाला।

मित्रों , जैसा इस कहानी में हुआ वैसा ही हमारे जीवन में भी होता है। जब भी कोई ऐसा काम आता है जिसे बहुत सारे लोगों को मिल कर करना होता है तो अक्सर हम अपनी जिम्मेदारियों से यह सोच कर पीछे हट जाते हैं कि कोई न कोई तो कर ही देगा और हमारी इसी सोच की वजह से स्थितियां वैसी की वैसी बनी रहती हैं।

तो मित्रों..! सरकार ने… प्रशासन ने…डॉक्टरों ने….

आप सभी को सलाह दे रहे है इस विपदा से निकलने के लिए, यह भी एक प्रकार से ईश्वर का ही रूप है।

इनकी सलाह को ईश्वर की सलाह मानकर इनकी बातों पर अमल करें.!

यह सब हमारी भलाई के लिए है…. जान है तो जहान है….!!

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

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नियम का महत्व

एक संत थे। एक दिन वे एक जाट के घर गए। जाट ने उनकी बड़ी सेवा की। सन्त ने उसे कहा कि रोजाना नाम -जप करने का कुछ नियम ले लो। जाट ने कहा बाबा, हमारे को वक्त नहीं मिलता। सन्त ने कहा कि अच्छा, रोजाना ठाकुर जी की मूर्ति के दर्शन कर आया करो। जाट ने कहा मैं तो खेत में रहता हूं और ठाकुर जी की मूर्ति गांव के मंदिर में है, कैसे करूँ ? संत ने उसे कई साधन बताये, कि वह कुछ -न-कुछ नियम ले लें। पर वह यही कहता रहा कि मेरे से यह बनेगा नहीं, मैं खेत में काम करू या माला लेकर जप करूँ। इतना समय मेरे पास कहाँ है ? बाल -बच्चों का पालन पोषण करना है। आपके जैसे बाबा जी थोड़े ही हूँ कि बैठकर भजन करूँ। संत ने कहा कि अच्छा तू क्या कर सकता है ? जाट बोला कि पड़ोस में एक कुम्हार रहता है। उसके साथ मेरी मित्रता है। उसके और मेरे खेत भी पास -पास है और घर भी पास-पास है। रोजाना एक बार उसको देख लिया करूगाँ। सन्त ने कहा कि ठीक है। उसको देखे बिना भोजन मत करना। जाट ने स्वीकार कर लिया। जब उसकी पत्नी कहती कि भोजन कर लो। तो वह चट बाड़ पर चढ़कर कुम्हार को देख लेता और भोजन कर लेता। इस नियम में वह पक्का रहा। एक दिन जाट को खेत में जल्दी जाना था। इसलिए भोजन जल्दी तैयार कर लिया। उसने बाड पर चढ़कर देखा तो कुम्हार दीखा नहीं। पूछने पर पता लगा कि वह तो मिट्टी खोदने बाहर गया है। जाट बोला कि कहां मर गया, कम से कम देख तो लेता। अब जाट उसको देखने के लिए तेजी से भागा। उधर कुम्हार को मिट्टी खोदते-खोदते एक हाँडी मिल गई। जिसमें तरह-तरह के रत्न, अशर्फियाँ भरी हुई थी। उसके मन में आया कि कोई देख लेगा तो मुश्किल हो जायेगी। अतः वह देखने के लिए ऊपर चढा तो सामने वह जाट आ गया। कुम्हार को देखते ही जाट वापस भागा, तो कुम्हार ने समझा कि उसने वह हाँडी देख ली। और अब वह आफत पैदा करेगा। कुम्हार ने उसे रूकने के लिए आवाज लगाई। जाट बोला कि बस देख लिया, देख लिया।कुम्हार बोला कि अच्छा, देख लिया तो आधा तेरा आधा मेरा, पर किसी से कहना मत। जाट वापस आया तो उसको धन मिल गया। उसके मन में विचार आया कि संत से अपना मनचाहा नियम लेने में इतनी बात है। अगर सदा उनकी आज्ञा का पालन करू तो कितना लाभ है। ऐसा विचार करके वह जाट और उसका मित्र कुम्हार दोनों ही भगवान् के भक्त बन गए।
तात्पर्य यह है कि हम दृढता से अपना एक उद्देश्य बना ले और नियम ले ले..!!
🙏🏾🙏🏿🙏🏼जय जय श्री राधे🙏🏽🙏🏻🙏

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