Posted in रामायण - Ramayan

प्रसाद देवरानी

क्यों हनुमानजी ने स्वयं की लिखी हुयी ‘रामायण’ समुद्र में फेंक दी थी

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

जग में सुंदर है दो नाम, चाहे कृष्ण कहो या राम।

राम और कृष्ण पर जितनी कथा टीका, भाष्य, व्याख्याएं आदि लिखी गई हैं उतनी किसी अन्य महापुरुष पर नहीं। कहते हैं कि हरि अनंत हरि कथा अनंता, कहहिं सुनहिं बहुविधि सब संता। शास्त्रों में एक घटना ऐसी भी है कि श्री हनुमानजी ने रामायण को वाल्मीकि जी के सामने ही समुद्र में फेंक दिया था। अगले पन्ने पर होगा इस घटना का खुलासा…

वाल्मीकि जी ने जो रामाय‍ण लिखी थी वह तो प्रभु श्रीराम के जीवन के कुछ घास घटनाक्रम की लिखी थी। उन्होंने उनके 14 वर्ष के वनवास का संपूर्ण वर्णन थोड़े ही किया है। यही कारण रहा कि वाल्मीकिजी रामायण में जो कथा नहीं मिलती वह हमें कबंद रामायण (कबंद एक राक्षस का नाम था) और जो कबंद में नहीं मिलती वह हमें अद्भुत रामायण में मिल जाती है और जो अद्भुत में नहीं मिलती है वह हमें आनंद रामायण में मिल जाती है।

राम काल में अनेक रामायणें लिखी गई थीं। ऐसा क्यों? क्योंकि राम के बारे में वाल्मीकिजी जो जानते थे वह उन्होंने लिखी। कबंद, अद्भुत और आनंद रामायण के रचयिता जो जानते थे वह उन्होंने लिखा। वाल्मीकिजी तो अयोध्या पुरी क्षेत्र में रहते थे लेकिन दंडकारण्य में राम के साथ क्या-क्या घटा, यह तो दंडकाराण्य के ऋषि ही जानते हैं। इस तरह रामायण कई होती गईं, लेकिन वाल्मीकिजी रामायण को ही मान्यता मिली, क्योंकि वह रामायण वाल्मीकिजी ने लिखी थी। वाल्मीकिजी उस समय के महान ऋषियों की गिनती में थे।

राम की कथा को वाल्मीकिजी के लिखने के बाद दक्षिण भारतीय लोगों ने अलग तरीके से लिखा। दक्षिण भारतीय लोगों के जीवन में राम का बहुत महत्व है। कर्नाटक और तमिलनाडु में राम ने अपनी सेना का गठन किया था। तमिलनाडु में ही श्रीराम ने रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की स्थापना की थी।

कई भाषाओं में लिखी गईं रामायण : जितनी भाषाओं में रामकथा पाई जाती है, उनकी फेहरिस्त बनाने में ही आप थक जाएंगे- अन्नामी, बाली, बांग्ला, कम्बोडियाई, चीनी, गुजराती, जावाई, कन्नड़, कश्मीरी, खोटानी, लाओसी, मलेशियाई, मराठी, ओड़िया, प्राकृत, संस्कृत, संथाली, सिंहली, तमिल, तेलुगु, थाई, तिब्बती, कावी आदि हजारों भाषाओं में उस काल में और उसके बाद कृष्ण काल, बौद्ध काल में चरित रामायण में अनुवाद के कारण कई परिवर्तन होते चले गए, लेकिन मूल कथा आज भी वैसी की वैसी ही है।

अब तक लिखी गई राम कथा की लिस्ट :

  1. अध्यात्म रामायण
  2. वाल्मीकि की ‘रामायण’ (संस्कृत)
  3. आनंद रामायण
  4. ‘अद्भुत रामायण’ (संस्कृत)
  5. रंगनाथ रामायण (तेलुगु)
  6. कवयित्री मोल्डा रचित मोल्डा रामायण (तेलुगु)
  7. रूइपादकातेणपदी रामायण (उड़िया)
  8. रामकेर (कंबोडिया)
  9. तुलसीदास की ‘रामचरित मानस’ (अव‍धी)
  10. कम्बन की ‘इरामावतारम’ (तमिल)
  11. कुमार दास की ‘जानकी हरण’ (संस्कृत)
  12. मलेराज कथाव (सिंहली)
  13. किंरस-पुंस-पा की ‘काव्यदर्श’ (तिब्बती)
  14. रामायण काकावीन (इंडोनेशियाई कावी)
  15. हिकायत सेरीराम (मलेशियाई भाषा)
  16. रामवत्थु (बर्मा)
  17. रामकेर्ति-रिआमकेर (कंपूचिया खमेर)
  18. तैरानो यसुयोरी की ‘होबुत्सुशू’ (जापानी)
  19. फ्रलक-फ्रलाम-रामजातक (लाओस)
  20. भानुभक्त कृत रामायण (नेपाल)
  21. अद्भुत रामायण
  22. रामकियेन (थाईलैंड)
  23. खोतानी रामायण (तुर्किस्तान)
  24. जीवक जातक (मंगोलियाई भाषा)
  25. मसीही रामायण (फारसी)
  26. शेख सादी मसीह की ‘दास्ताने राम व सीता’।
  27. महालादिया लाबन (मारनव भाषा, फिलीपींस)
  28. दशरथ कथानम (चीन)
  29. हनुमन्नाटक (हृदयराम-1623)
  30. खोज जारी है सबसे पहले किसने कही रामायण…

अध्‍यात्म रामायण : सर्वप्रथम श्रीराम की कथा भगवान श्री शंकर ने माता पार्वतीजी को सुनाई थी। उस कथा को एक कौवे ने भी सुन लिया। उसी कौवे का पुनर्जन्म कागभुशुण्डि के रूप में हुआ। काकभुशुण्डि को पूर्व जन्म में भगवान शंकर के मुख से सुनी वह रामकथा पूरी की पूरी याद थी। उन्होंने यह कथा अपने शिष्यों को सुनाई। इस प्रकार रामकथा का प्रचार-प्रसार हुआ। भगवान शंकर के मुख से निकली श्रीराम की यह पवित्र कथा ‘अध्यात्म रामायण’ के नाम से विख्यात है।

काकभुशुण्डि : लोमश ऋषि के शाप के चलते काकभुशुण्डि कौवा बन गए थे। लोमश ऋषि ने शाप से मु‍क्त होने के लिए उन्हें राम मंत्र और इच्छामृत्यु का वरदान दिया। कौवे के रूप में ही उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन व्यतीत किया। वाल्मीकि से पहले ही काकभुशुण्डि ने रामायण गिद्धराज गरूड़ को सुना दी थी।

जब रावण के पुत्र मेघनाथ ने श्रीराम से युद्ध करते हुए श्रीराम को नागपाश से बांध दिया था, तब देवर्षि नारद के कहने पर गिद्धराज गरूड़ ने नागपाश के समस्त नागों को खाकर श्रीराम को नागपाश के बंधन से मुक्त कर दिया था। भगवान राम के इस तरह नागपाश में बंध जाने पर श्रीराम के भगवान होने पर गरूड़ को संदेह हो गया। गरूड़ का संदेह दूर करने के लिए देवर्षि नारद उन्हें ब्रह्माजी के पास भेज देते हैं। ब्रह्माजी उनको शंकरजी के पास भेज देते हैं। भगवान शंकर ने भी गरूड़ को उनका संदेह मिटाने के लिए काकभुशुण्डिजी के पास भेज दिया। अंत में काकभुशुण्डिजी ने राम के चरित्र की पवित्र कथा सुनाकर गरूड़ के संदेह को दूर किया।

वैदिक साहित्य के बाद जो रामकथाएं लिखी गईं, उनमें वाल्मीकि रामायण सर्वोपरि है। वाल्मीकि श्रीराम के समकालीन थे और उन्होंने रामायण तब लिखी, जब रावण-वध के बाद राम का राज्याभिषेक हो चुका था। एक दिन वे वन में ऋषि भारद्वाज के साथ घूम रहे थे और उन्होंने एक व्याघ द्वारा क्रौंच पक्षी को मारे जाने की हृदयविदारक घटना देखी और तभी उनके मन से एक श्लोक फूट पड़ा। बस यहीं से इस कथा को लिखने की प्रेरणा मिली।

यह इसी कल्प की कथा है और यही प्रामाणिक है। वाल्मीकिज‍ी ने राम से संबंधित घटनाचक्र को अपने जीवनकाल में स्वयं देखा या सुना था इसलिए उनकी रामायण सत्य के काफी निकट है, लेकिन उनकी रामायण के सिर्फ 6 ही कांड थे। उत्तरकांड को बौद्धकाल में जोड़ा गया। उत्तरकांड क्यों नहीं लिखा वाल्मीकि ने? या उत्तरकांड क्यों जोड़ा गया, यह सवाल अभी भी खोजा जाता है।

अद्भुत रामायण संस्कृत भाषा में रचित 27 सर्गों का काव्य-विशेष है। कहा जाता है कि इस ग्रंथ के प्रणेता भी वाल्मीकि थे। किंतु शोधकर्ताओं के अनुसार इसकी भाषा और रचना से लगता है कि किसी बहुत परवर्ती कवि ने इसका प्रणयन किया है अर्थात अब यह वाल्मीकि कृत नहीं रही। तो क्या वाल्मीकि यह चाहते थे कि मेरी रामायण में विवादित विषय न हो, क्योंकि वे श्रीराम को एक मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में ही स्थापित करना चाहते थे?

हनुमानजी ने भी लिखी थी एक रामायण,हनुमद रामायण!!!!!!!!

शास्त्रों के अनुसार विद्वान लोग कहते हैं कि सर्वप्रथम रामकथा हनुमानजी ने लिखी थी और वह भी एक शिला (चट्टान) पर अपने नाखूनों से लिखी थी। यह रामकथा वाल्मीकिजी की रामायण से भी पहले लिखी गई थी और यह ‘हनुमद रामायण’ के नाम से प्रसिद्ध है।

यह घटना तब की है जबकि भगवान श्रीराम रावण पर विजय प्राप्त करने के बाद अयोध्या में राज करने लगते हैं और श्री हनुमानजी हिमालय पर चले जाते हैं। वहां वे अपनी शिव तपस्या के दौरान की एक शिला पर प्रतिदिन अपने नाखून से रामायण की कथा लिखते थे। इस तरह उन्होंने प्रभु श्रीराम की महिमा का उल्लेख करते हुए ‘हनुमद रामायण’ की रचना की।

कुछ समय बाद महर्षि वाल्मीकि ने भी ‘वाल्मीकि रामायण’ लिखी और लिखने के बाद उनके मन में इसे भगवान शंकर को दिखाकर उनको समर्पित करने की इच्छा हुई। वे अपनी रामायण लेकर शिव के धाम कैलाश पर्वत पहुंच गए। वहां उन्होंने हनुमानजी को और उनके द्वारा लिखी गई ‘हनुमद रामायण’ को देखा। हनुमद रामायण के दर्शन कर वाल्मीकिजी निराश हो गए।

वाल्मीकिजी को निराश देखकर हनुमानजी ने उनसे उनकी निराशा का कारण पूछा तो महर्षि बोले कि उन्होंने बड़े ही कठिन परिश्रम के बाद रामायण लिखी थी लेकिन आपकी रामायण देखकर लगता है कि अब मेरी रामायण उपेक्षित हो जाएगी, क्योंकि आपने जो लिखा है उसके समक्ष मेरी रामायण तो कुछ भी नहीं है।

तब वाल्मीकिजी की चिंता का शमन करते हुए श्री हनुमानजी ने हनुमद रामायण पर्वत शिला को एक कंधे पर उठाया और दूसरे कंधे पर महर्षि वाल्मीकि को बिठाकर समुद्र के पास गए और स्वयं द्वारा की गई रचना को श्रीराम को समर्पित करते हुए समुद्र में समा दिया। तभी से हनुमान द्वारा रची गई हनुमद रामायण उपलब्ध नहीं है। वह आज भी समुद्र में पड़ी है। कौन ढूंढेगा उसको और कौन निकालेगा उसको?

हनुमानजी द्वारा लिखी रामायण को हनुमानजी द्वारा समुद्र में फेंक दिए जाने के बाद महर्षि वाल्मीकि बोले कि हे रामभक्त श्री हनुमान, आप धन्य हैं! आप जैसा कोई दूसरा ज्ञानी और दयावान नहीं है। हे हनुमान, आपकी महिमा का गुणगान करने के लिए मुझे एक जन्म और लेना होगा और मैं वचन देता हूं कि कलयुग में मैं एक और रामायण लिखने के लिए जन्म लूंगा। तब मैं यह रामायण आम लोगों की भाषा में लिखूंगा।

माना जाता है कि रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास कोई और नहीं बल्कि महर्षि वाल्मीकि का ही दूसरा जन्म था। तुलसीदासजी अपनी ‘रामचरित मानस’ लिखने के पूर्व हनुमान चालीसा लिखकर हनुमानजी का गुणगान करते हैं और हनुमानजी की प्रेरणा से ही वे फिर रामचरित मानस लिखते हैं।

मिल गई समुद्र में हनुमान द्वारा लिखी हनुमान रामायण…

कहते हैं कि कालिदास के काल में एक पट्टलिका को समुद्र के किनारे पाया गया था जिसे एक सार्वजनिक स्थान पर टांग दिया गया था ताकि विद्यार्थी उस पर लिखी गूढ़ लिपि को समझ और पढ़कर उसका अर्थ निकाल सकें। ऐसा माना जाता है कि कालिदास ने उसका अर्थ निकाल लिया था और वो ये भी जान गए थे कि ये पट्टलिका कोई और नहीं, अपितु हनुमानजी द्वारा रचित हनुमद रामायण का ही एक अंश है, जो कि जल के साथ प्रवाहित होकर यहां तक आ गया है।

महाकवि तुलसीदास के हाथ वहीं पट्टलिका लग गई थी। उसे पाकर तुलसीदास ने अपने आपको बहुत भाग्यशाली माना कि उन्हें हनुमद रामायण के श्लोक का एक पद्य प्राप्त हुआ है।

हनुमन्नाटक रामायण के अंतिम खंड में लिखा है-
‘रचितमनिलपुत्रेणाथ वाल्मीकिनाब्धौ
निहितममृतबुद्धया प्राड् महानाटकं यत्।।
सुमतिनृपतिभेजेनोद्धृतं तत्क्रमेण
ग्रथितमवतु विश्वं मिश्रदामोदरेण।।’

अर्थात : इसको पवनकुमार ने रचा और शिलाओं पर लिखा था, परंतु वाल्मीकि ने जब अपनी रामायण रची तो तब यह समझकर कि इस रामायण को कौन पढ़ेगा, श्री हनुमानजी से प्रार्थना करके उनकी आज्ञा से इस महानाटक को समुद्र में स्थापित करा दिया, परंतु विद्वानों से किंवदंती को सुनकर राजा भोज ने इसे समुद्र से निकलवाया और जो कुछ भी मिला उसको उनकी सभा के विद्वान दामोदर मिश्र ने संगतिपूर्वक संग्रहीत किया।

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

👏🏽ॐ श्री हरि नारायण👏🏽
👏🏽 सुप्रभात प्रणाम 👏🏽

एक व्यक्ति ने एक नया मकान खरीदा ! उसमे फलों का बगीचा भी था। पडौस का मकान पुराना था और उसमे कई लोग रहते थे।*
कुछ दिन बाद उसने देखा, कि पडौस के मकान से किसी ने बाल्टी भर कूडा, उसके घर के दरवाजे पर डाल दिया है।
शाम को उस व्यक्ति ने एक बाल्टी ली, उसमे ताजे फल रखे और उस घर के दरवाजे की घंटी बजायी।
उस घर के लोग बेचैन हो गये और वो सोचने लगे, कि वह उनसे सुबह की घटना के लिये लडने आया है..!
अतः वे पहले ही तैयार हो गये और बुरा भला बोलने लगे।
मगर जैसे ही उन्होने दरवाजा खोला, वे हैरान हो गये। रसीले ताजे फलों की भरी बाल्टी के साथ,
मुस्कान चेहरे पर लिये नया पडोसी, सामने खडा था…! सब हैरान थे।
.

उसने कहा — जो मेरे पास था, वही मैं आपके लिये ला सका…!

सच है जिसके पास जो है, वही वह दूसरे को दे सकता है..!

जरा सोचिये, कि आपके पास दूसरो के लिये क्या है..?

दाग तेरे दामन के धुले ना धुले,

नेकी तेरी कही तुला पर तुले ना तुले।

मांग ले अपनी गलतियो की माफी खुदा से,

क्या पता आँख कल ये खुले ना खुले ?

प्यार बांटो प्यार मिलेगा,

खुशी बांटो खुशी मिलेगी…….

🔅 Uday Raj 🔅

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

कहानी : अपनी तुलना दूसरों से न करें
★★★★★★★★★★★★★★★★

एक बार की बात है, किसी जंगल में एक कौवा रहता था, वो बहुत ही खुश था, क्योंकि उसकी ज्यादा इच्छाएं नहीं थीं। वह अपनी जिंदगी से संतुष्ट था, लेकिन एक बार उसने जंगल में किसी हंस को देख लिया और उसे देखते ही सोचने लगा कि ये प्राणी कितना सुन्दर है, ऐसा प्राणी तो मैंने पहले कभी नहीं देखा! इतना साफ और सफेद। यह तो इस जंगल में औरों से बहुत सफेद और सुंदर है, इसलिए यह तो बहुत खुश रहता होगा।

कोवा हंस के पास गया और पूछा, भाई तुम इतने सुंदर हो, इसलिए तुम बहुत खुश होगे?

इस पर हंस ने जवाब दिया, हां मैं पहले बहुत खुश रहता था, जब तक मैंने तोते को नहीं देखा था। उसे देखने के बाद से लगता है कि तोता धरती का सबसे सुंदर प्राणी है। हम दोनों के शरीर का तो एक ही रंग है लेकिन तोते के शरीर पर दो-दो रंग है, उसके गले में लाल रंग का घेरा और वो सूर्ख हरे रंग का था, सच में वो बेहद खूबसूरत था।

अब कौवे ने सोचा कि हंस तो तोते को सबसे सुंदर बता रहा है, तो फिर उसे देखना होगा।

कौवा तोते के पास गया और पूछा, भाई तुम दो-दो रंग पाकर बड़े खुश होगे?

इस पर तोते ने कहा, हां मैं तब तक खुश था जब तक मैंने मोर को नहीं देखा था। मेरे पास तो दो ही रंग हैं लेकिन मोर के शरीर पर तो कई तरह के रंग हैं।

अब कौवे ने सोचा सबसे ज्यादा खुश कौन है, यह तो मैं पता करके ही रहूंगा। इसलिए अब मोर से मिलना ही पड़ेगा। कौए ने मोर को जंगल में ढूंढा लेकिन उसे पूरे जंगल में एक भी मोर नहीं मिला और मोर को ढूंढते-ढूंढते वह चिड़ियाघर में पहुंच गया, तो देखा मोर को देखने बहुत से लोग आए हुए हैं और उसके आसपास अच्छी खासी भीड़ है।

सब लोगों के जाने के बाद कौवे ने मोर से पूछा, भाई तुम दुनिया के सबसे सुंदर जीव हो और रंगबिरंगे हो, तुम्हारे साथ लोग फोटो खिंचवा रहे थे। तुम्हें तो बहुत अच्छा लगता होगा और तुम तो दुनिया के सबसे खुश जीव होगे?

इस पर मोर ने दुखी होते हुए कहा, भाई अगर सुंदर हूं तो भी क्या फर्क पड़ता है! मुझे लोग इस चिड़ियाघर में कैद करके रखते हैं, लेकिन तुम्हें तो कोई चिड़ियाघर में कैद करके नहीं रखता और तुम जहां चाहो अपनी मर्जी से घूम-फिर सकते हो। इसलिए दुनिया के सबसे संतुष्ट और खुश जीव तो तुम्हें होना चाहिए, क्योंकि तुम आज़ाद रहते हो। कौवा हैरान रह गया, क्‍योंकि उसके जीवन की अहमियत कोई दूसरा बता गया।

दोस्तों, ऐसा ही हम लोग भी करते हैं। हम अपनी खुशियों और गुणों की तुलना दूसरों से करते हैं, ऐसे लोगों से जिनका रहन-सहन का माहौल हमसे बिलकुल अलग होता है। हमारी जिंदगी में बहुत सारी ऐसी चीज़ें होती हैं, जो केवल हमारे पास हैं, लेकिन हम उसकी अहमियत समझकर खुश नहीं होते। लेकिन दूसरों की छोटी ख़ुशी भी हमें बड़ी लगती है, जबकि हम अपनी बड़ी खुशियों को इग्नोर कर देते हैं।