लष्मीकांत विजयघढिया
अप्रतिम मराठा योद्धा को अविस्मरणीय श्रद्धांजलि है तान्हा जी…
औरंगज़ेब के मनसबदार के 5000 की फौज पर अपने 385 सैनिकों के साथ काल बनकर टूट पड़े और इतिहास प्रसिद्ध कोंढाना दुर्ग पर विजय प्राप्ति का अविश्वसनीय इतिहास रचने वाले अप्रतिम मराठा योद्धा तान्हा जी के शौर्य साहस पराक्रम और बलिदान को अविस्मरणीय श्रद्धांजलि है उनपर बनी फिल्म तान्हा जी। आधुनिक तकनीक के माध्यम से उस ऐतिहासिक युद्ध को जिस कुशलता के साथ तथा औरंगजेब के अत्याचारी साम्प्रदायिक शासन में हिन्दूओं के राक्षसी उत्पीड़न को जिस बेबाकी के साथ सिनेमा के पर्दे पर जीवंत किया गया है उसके लिए अजय देवगन को कोटि कोटि साधुवाद। आज के दौर में जिस भगवे को अपमानजनक सम्बोधन का पर्याय बना देने के पतित प्रयासों की बाढ़ सी आई हुई है उस भगवे की महानता और महत्व को जिस जिस गौरवपूर्ण शैली में फ़िल्म में जीवंत किया गया है वह शैली अभिनंदनीय है। प्रत्येक भारतीय, विशेषकर नई पीढ़ी के देखने योग्य है यह फ़िल्म।
सारागढ़ी युद्ध पर बनी फ़िल्म “केसरी” के 10 माह पश्चात आई ‘तान्हा जी” दूसरी ऐसी फिल्म है जो उन महावीरों के प्रचण्ड पराक्रम और शौर्य की उस यशगाथा को मुक्तकंठ से सुनाती है, जिन यशगाथाओं पर स्वतन्त्र भारत में सिर्फ इसलिए पर्दा डालकर रखा गया ताकि आज़ाद भारत की पीढ़ियों को यह अफीम चटाने में आसानी हो कि मुगल शासक बहुत “सेक्युलर” न्यायप्रिय और महावीर थे। इसीलिए उन्होंने 5-7 सौ साल हम पर शासन किया। भारतीयों को यह अफीम इसतरह चटाई जाती रही है कि उनमें स्थायी रूप से यह हीन ग्रन्थि घर बना ले कि भारतीय समाज, विशेषकर हिन्दू, अत्यन्त शौर्यहीन साहसहीन पराक्रमहीन समाज रहा है। ऐसा इसलिए किया गया ताकि भारतीयों को बहुत सहजता से यह भांग पिलाई जा सके कि हमें हमारी आज़ादी अहिंसा के सहारे “बिना खड्ग बिना ढाल” मिली है। उस अहिंसा का डिस्ट्रीब्यूटर/ठेकेदार एक परिवार को बना दिया गया।
जबकि तान्हा जी, हरिसिंह नलवा, हवलदार ईशर सिंह, असम के अहोम सेनापति लचित बोरफूकन सरीखे उन भारतीय योद्धाओं की सूची बहुत समृद्ध है जिन्होंने मुगलों विशेषकर सबसे बहादुर और युद्धकुशल मुगल शासक कहे जाने वाले औरंगज़ेब के दांत अपनी तलवारों से बुरी तरह खट्टे किये थे। लेकिन 70 वर्षों में इनपर कभी कोई फ़िल्म क्यों नहीं बनी.? यह सवाल बहुत कुछ कह देता है, क्योंकि उन्हीं 70 वर्षों के दौरान डकैत फूलन देवी, पुतलीबाई, सुल्ताना डाकू सरीखे अपराधी असामाजिक तत्वों का महिमामण्डन करती अनेकानेक फिल्में बनी।
उम्मीद की जानी चाहिए कि पहले केसरी और अब तान्हा जी के साथ ही भारतीय संस्कृति समाज इतिहास के उन गुमनाम शूरवीर महानायकों की यशगाथाओं का गान करती अन्य अनेक फिल्में हमें निकट भविष्य में देखने को मिलेंगी।