पंडित देवीदीन जो सनेथू गाव अयोध्या के रहने वाले थे जिनका जन्म सर्युपारी ब्राह्मण परिवार में हुआ था जो की एक कर्मकांडी पुरोहित लेकिन जब बाबर की सेना ने सभी हिंदू राजाओं को हराते हुए राम मंदिर की तरफ बढ़ी तब ,
श्री भगवान परशुराम की तरह ही पंडित देविदीन पांडे ने पुरोहित का काम छोड़कर आसपास के ब्राह्मण क्षत्रियों को लेकर बाबर सेना के खिलाफ युद्ध लड़ने के लिए हथियार उठा लिया ,और बाबर के खिलाफ मीर बाकी के नेतृत्व में मुगलों के सेना से युद्ध किया, ये युद्ध इतना विकराल था की युद्ध करते समय पंडित जी ने 700 मुगलों को अपने हाथों से काट डाला
एक मुगल सैनिक के तलवार के वार से ऐशा हुआ कि देविदीन जी का सर दो भागों में फट कर खुल गया लेकिन उन्होंने अपने गमछा से सर को बांधकर लड़ाई लड़नी शुरू कर दी और अंत में एक सैनिक के द्वारा किए गए वार से यहां काफी घायल हुए और वहीं पर वीरगति को प्राप्त हुए !
उस सेना के सेनापति देविदीन के वीरगति प्राप्त हो जाने के बाद बाबर के सेना जीत गई ! देविदीन ने अपने जीवित रहते राम मंदिर को कभी आंच नहीं आने दी!
इतिहासकार कनिंघम अपने ‘लखनऊ गजेटियर’ के 66वें अंक के पृष्ठ 3 पर लिखता है कि 1,74,000 हिन्दुओं की लाशें गिर जाने के पश्चात मीर बकी अपने मंदिर ध्वस्त करने के अभियान में सफल हुआ।
