Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

दृष्टि_TheMelody


आज का सारा दिन इतना बुरा गुज़रा था कि बस दिल कर रहा था, सिर फोड़ लूँ अपना। अकेलेपन से बचने के लिए एक दोस्त को फोन किया, तो उसने मुम्बई का एक पता देकर वहाँ पहुँचने के लिए कहा। बस, बेहतर यही लगा मुझे।
उसके दिए पते के सातवें माले (तल/फ्लोर) पर जाने के लिए लिफ्ट का बटन दबा ही रहा था कि दस-ग्यारह साल का एक बच्चा जो सीढ़ियों की तरफ जा रहा था, बोला—
“अंकल, लिफ्ट खराब है,” और सीढ़ियाँ चढ़ने लगा।
“अंकल! अभी तो मेरी शादी भी नहीं हुई!” मैंने कोफ्त से कहा।
वह हँस दिया। मेरे बुरे दिन का असर कम होने का नाम ही नहीं ले रहा था। अब सीढ़ियाँ भी चढ़नी पड़ रही थीं। तीसरे माले पर प्यानो की एक मद्धम सी धुन सुनी जो ऊपर से आ रही थी। ऊपर बढ़ते हुए वह तेज होती गई और मेरे दिल की धड़कन भी। सालों बाद सुनी थी यह धुन। एक बहुत पुराने गीत की धुन जो आजकल कहीं सुनाई नहीं देती क्योंकि कोई बजाना पसंद नहीं करता। मेरी कुछ मधुर यादें जुड़ी थीं इस धुन से।
“ये प्यानो कौन बजा रहा है, दोस्त?”
“मनीषा दीदी,” वह बोला और नाम सुन कर ही ग़श सा आ गया मुझे।
“क्या हुआ अंकल? वह अंधी होते हुए भी बहुत अच्छा सिखाती हैं”।
“अंधी?” मेरे कदम वहीं थम गये। मनीषा की आँखें कितनी प्यारी थीं। ये जरूर कोई और होगी। लेकिन धुन? क्या यह भी संयोग मात्र है?
“क्या यही हैं, मनीषा दीदी?” मैंने जेब से पर्स निकाला।
बच्चे ने हैरानी से मनीषा की तस्वीर देखी और ‘हाँ’ में सिर हिलाया। चौथे माले पर उसने एक दरवाजे की ओर संकेत किया। प्यानो की आवाज़ अब नहीं आ रही थी। मेरे डोर-बैल पुश करने से पहले ही उस बच्चे ने दरवाजा खोल दिया। अंदर प्यानो के पास बैठी थी मनीषा और तीन-चार बच्चे, जो अपने की-बोर्ड्स पर वही धुन बजा रहे थे।
“दीदी कोई आया है,” एक बच्चा बोला।
“कोई बात नहीं, मैं इंतज़ार कर लूँगा,” मैंने तेज धड़कते दिल को संभाला तो मनीषा मेरी आवाज़ सुन कर बेतरह चौंकी।
“बच्चे तो जाने ही वाले हैं,” मनीषा बोली तो बच्चे उठ खड़े हुए। वह अपने हाथों से टटोलने लगी, और प्यानो पर रखा काला चश्मा ढूँढ कर पहन लिया उसने। मैं बस अपलक उसे निहारे जा रहा था। उस सादे, घरेलू लिबास में कितनी बदली हुई लग रही थी, वह। उसे हमेशा स्मार्ट लिबास में ही देखा था मैंने।
“आप कौन हैं? क्या आपके बच्चे को प्यानो सीखना है? आप बैठिए न!” उसने एक ओर पड़े सोफे की ओर इशारा किया। मेरी आँखों में उसे यूँ इस हाल में देख कर आँसू थे, पर वह तो देख नहीं सकती थी न!
“मैं रितेश हूँ, मनीषा!” मेरी भर्राई आवाज़ सुन कर उसके चेहरे पर हैरानी कम, खुशी के भाव अधिक प्रदर्शित हुए।
“मैं तो आवाज़ से एकदम पहचान गई थी, लेकिन तुम्हारे यहाँ होने की कोई संभावना नहीं थी, तो बस लगा कोई और होगा, तुम्हारे जैसी आवाज़ वाला। लेकिन, तुम यहाँ कैसे?”
“मैं मुंबई में ही जॉब करता हूँ, तुम्हारी शादी के बाद यहीं चला आया था। क्या यह तुम्हारी ससुराल है? और तुम्हारी प्यारी आँखें?”
“उफ्फ… लंबी कहानी है। शादी के दो महीने बाद ही हमारा कार-एक्सीडेंट हो गया था जिसमें पति की मौत हो गई थी और मैं अंधी। ये मेरी आंटी का घर है, पति की मौत के बाद अंधी बहू को मनहूस बताते हुए ससुराल वालों ने दरकिनार कर दिया। इतना बड़ा दुख माँ सहन न कर पाई, वह गुज़र गई तो पापा टूट गए और फिर छह महीने में वह भी…” मनीषा इतना कह कर रोने लगी, और उसके साथ मैं भी। सिर्फ दो साल में दुनियां ही बदल गई थी।
तभी कमरे में उसकी आंटी आईं। उन्होंने वह दृश्य देखा तो स्त्रियोचित-गुण से बहुत कुछ समझ गईं—
“मनीषा ने शादी कर ली थी, तो तुमने शादी क्यों नहीं की?”

“जब मनीषा ने परिवार के लिए अपने प्यार की कुर्बानी दे दी, तो मैं मर जाना चाहता था। लेकिन बस परिवार के लिए मुझे भी जीना पड़ा”।
“मुझे माफ कर दो रितेश, मैं तुम्हारी ग़ुनहगार हूँ,” मनीषा व्यथित हो उठी।
“तुम ग़ुनहगार नहीं, मेरा प्यार हो, और हमेशा रहोगी,” मैंने उठ कर मनीषा के हाथ पकड़ लिए।
आंटी की आँखों में खुशी के आँसू आ गए। उन्हें महसूस हो गया कि मनीषा को मेरे प्रेम की दृष्टि मिल गई थीं।
कहते हैं गुज़रा वक्त लौटता नहीं
मिलना है तेरा, झुठला रहा इसे।

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एक लड़की थी जिसका “श्री गुरु नानक साहिब जी पर अटुट विश्वास था वह सुबह तीन उठ जाती स्नान आदि से निर्वत हो कर नितनेम पाठ करती,रोज गुरुद्वारा साहिब जाती श्री गुरु ग्रंथ साहिब का प्रकाश भी करती, सहज पाठ करती,उसको बहुत सारी गुरबानी कंठस्थ थी,वह घर में काम करते समय भी गुरबानी की कोई ना कोई तुक हमेशा उसके मुंह मेे होती वो सिर पर हमेशा चुन्नी लगा कर रखती।

फिर उसकी शादी हो गई, ससुराल घर जा कर भी उसने अपना नितनेम नहीं छोड़ा रोज गुरुद्वारा साहिब जाना,सेवा करनी,प्रकाश करना,उसके ससुराल वाले किसी और दुनियावी बाबा को मानते थे,उनको बहू का इस तरह गुरु घर जाना बिल्कुल पसन्द नही था,वो सब उसको दुनियावी बाबा को मानने को कहते पर उस लड़की ने साफ मना कर दिया और कहा मेरे श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी पुरन समरथ है मुझे किसी और के आगे सिर झुकाने की जरुरत नहीं,

पर उसके ससुराल वाले कोई ना कोई बहाना ढूँढते कि किस तरह इसको नीचा दिखायें.एक दिन उसके ससुराल वालों ने कहा कि अगर तेरे गुरु ग्रंथ साहिब पुरन समरथ हैं तो इस महीने की 31 तारीख तक वो आप चल कर के हमारे घर आएं अगर वो आ गए तो तुझे कभी भी गुरू घर जाने से नहीं रोकेगे और अगर नहीं आए तो तुम कभी भी गुरु घर नहीं जाएगी़ पर उस लड़की को तो पुर्ण रुप से विश्वास था उसने कहा मुझे मंजुर है.

उसने रोज सुबह गुरुद्वारा साहिब जाना अरदास करनी और कभी कभी रो भी पड़ना और एक ही बात कहनी कि सच्चे पातशाह जी मुझे आप पर पूरा विश्वास है.
दिन निकलते गए,आखिर 30 तारीख आ गयी उस रात लड़की बहुत रोई की अगर सुबह गुरु जी घर ना आए तो मेरा विश्वास टूट जाएगा,उस रात 3 बजे के बाद बहुत बरसात हुई उस सुबह लड़की गुरुद्वारा साहब नही जा सकी जब सुबह हुई तो उसी गाँव के गुरुद्वारा साहब के ग्रंथी साहब ने देखा कि गुरुद्वारा साहब कि कच्ची छत से पानी लीक हो रहा है उन्होंने ने सोचा कि कहीं कुछ गलत ना हो जाए तो गाँव के कुछ समझदार लोगों को बुला के हालात बताए सब ने यह सलाह की कि जब तक बरसात नहीं रुकती और छत ठीक नहीं होती तब तक गुरु साहिब जी का पावन सरुप का किसी के घर में प्रकाश कर देना चाहिए ताकि बेअदबी ना हो तब ग्रंथी जी ने कहा रोज यहाँ एक लड़की आती है जो कभी कभी प्रकाश भी करती है और सेवा भी बहुत करती है,हम लोग गुरु साहिब जी का सरुप उसके घर ले जाते हैं सब लोग इस बात पर सहमत हो गए एक बुजुर्ग कहने लगा कि एक बंदा उसके घर भेज कर इजाजत ले लो ग्रंथी साहब ने कहा इजाज़त क्या लेनी वो मना थोड़ा करेगी तब ग्रंथी साहब और गाँव के कुछ लोग गुरु साहिब जी के पावन सरुप को बेहद आदर सत्कार से लेकर उस लड़की के घर की तरफ चल पड़े,

लड़की के ससुराल सब इस बात पर खुश हो रहे थे कि आज 31 तारीख़ है अगर गुरु ना आए तो कल से इसका गुरुद्वारे जाना बंद तभी दरवाजे पर दस्तक हुई जब ससुर ने दरवाजा खोला तो सामने “श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी” वो तो दंग रह गया,ग्रंथी जी ने कहा जल्दी से कोई भी एक कमरा खाली करके उसकी अच्छी तरह से साफ सफाई करो गुरु साहिब जी का प्रकाश करना है,उस लड़की ने बहुत चाव से कमरा साफ किया उसकी श्रद्धा विश्वास देख सारे परिवार ने उस लड़की से माफी मांगी लड़की का विश्वास रंग लाया.

बात सारी विश्वास की है,भगत धन्ना जाट ने भी विश्वास के साथ पत्थर में से परमात्मा पा लिया था,श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी आज भी पूर्ण रूप से समरथ हैं कमी गुरु साहिब में नहीं हम में है,हमे गुरु साहिब में विश्वास नहीं है हम कोई भी काम अपनी बुद्धि को आगे रखते हैं और गुरु के हुक्म को पीछे तभी तो बाद में दुखी होते हैं.

भक्ति सारी विश्वास पर खड़ी है इसलिए गुरु पर विश्वास बनाओ कुछ भी असंभव नहीं है बस कभी भी शक ना करो कि मेरा गुरु यह कर सकता है? नीयत साफ रखो,विश्वास रखो कि हाँ मेरे गुरु सब कुछ कर सकते हैं विश्वास मतलब के लिए मत रखना दिल से प्रेम करना..!!
🙏🏽🙏🙏🏿वाहे गुरु जी

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बटी की चूड़ी


बरसाने में एक सेठजी रहते थे। उनके कई कारोबार थे, तीन बेटे तीन बहुएँ थी,

सब के सब आज्ञाकारी थे, लेकिन सेठजी के बेटी नहीं थी, यही अभाव उन्हें खलता था। यह चिंता संतों के दर्शन से कम हुई।

संत बोले मन में जो अभाव हो उस पर भगवान का भाव स्थापित कर लो।

सुनो सेठ तुमकू मिल्यो बरसाने का वास, यदि मानो राधे सुता काहे रहो उदास।

सेठ जी ने राधा रानी का एक चित्र मँगवाया और अपने घर में लगा कर पुत्री भाव से रखते।

रोज सुबह उठ कर राधेराधे कहते भोग लगाते और दुकान से लौट कर राधेराधे कहकर सोते

तीन बहू बेटे हैं घर में, सुख सुविधा है पूरी, संपति भरी भवन में रहती, नहीं कोई मजबूरी, कृष्ण कृपा से जीवन पथ पे आती न कोई बाधा, मैं हूँ पिता बहुत बड़भागी, बेटी है मेरी राधा।

एक दिन एक मनिहारी चूड़ी पहनाने सेठ के अहाते में आई और चूड़ी पहनने की गुहार लगाई। तीनों बहुएँ बारी बारी से चूड़ी पहन कर चली गयीं।

फिर एक हाथ और बढ़ा तो मनिहारिन ने सोचा कि कोई रिश्तेदार आया होगा उसने चूड़ी पहनाई और चली गयी।

सेठजी की दुकान पर पहुँच कर पैसे माँगे और कहा कि इस बार पैसे पहले से ज्यादा चाहिए। सेठजी बोले कि क्या चूड़ी मँहगी हो गयी है?

मनिहारिन बोली, नहीं सेठजी आज मैं चार लोगो को चूड़ी पहना कर आ रही हूँ।

सेठ जी ने कहा कि तीन बहुओं के अलावा चौथा कौन है? झूठ मत बोल, यह ले तीन का पैसा। मनिहारिन बेचारी तीन का पैसा ले कर चली गयी।

सेठजी ने घर पर पूछा कि चौथा कौन था जिसने चूड़ी पहनी हैं? बहुएँ बोली कि हम तीन के अलावा तो कोई भी नही था।

रात को सोने से पहले सेठजी पुत्री राधारानी को स्मरण करके सो गये। नींद में राधा जी प्रगट हुईं, सेठजी बोले “बेटी बहुत उदास हो, क्या बात है?

बृषभानु दुलारी बोलीं, “तनया बनायो तात, नात ना निभायो है..चूड़ी पहनि लीनी मैं, जानि पितु गेह किंतु, आप मनिहारिन को मोल ना चुकायो है।

तीन बहू याद किन्तु बेटी नही याद रही, नैनन श्रीराधिका के नीर भरि आयो है।

कैसी भई दूरी कहो कौन मजबूरी हाय, आज चार चूड़ी काज मोहि बिसरायो है???

सेठजी की नींद टूट गयी पर नीर नही टूटा, रोते रहे, सबेरा हुआ, स्नान ध्यान करके मनिहारिन के घर पहुँच गये। मनिहारिन देखकर चकित हुई।
सेठ जी आंखों में आँसू लिये बोले धन धन भाग तेरो मनिहारी..तोसे बड़भागी नही कोई, संत महंत पुजारी, धन धन भाग तेरो मनिहारी..”मैने मानी सुता किन्तु निज नैनन नहीं निहारी, चूड़ी पहन गयीं तेरे हाथन ते श्री बृषभानु दुलारी। धन धन भाग तेरो मनिहारी..बेटी की चूड़ी पहिराई लेहु, जाऊँ तेरी बलिहारी, हाथ जोड़ बिनती करूँ, क्षमियो चूक हमारी। “जुगल नयन जलते भरे मुख ते कहे न बोल, “मनिहारिन के पाँय पड़ि लगे चुकावन मोल।”

मनिहारीन सोचने लगी, जब तोहि मिलो अमोल धन, अब काहे माँगत मोल, ऐ मन मेरे प्रेम से श्री राधे राधे बोल।

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छठी इंद्री


दरवाज़े पर घंटी फिर से बजी। उन्होंने फिर से झाँककर देखा, वो लोग ही थे।
“आंटीजी, दरवाज़ा खोल दें। काम निपटाना है, ठेकेदार ने ही भेजा है।”
घर में पिछले दस दिनों से काम चल रहा है। बाथरूम का पाइप टाइल्स के एरिया में लीक हो रहा था, जिससे बाथरूम की पूरी दीवार में सीलन आ गई और वो सीलन हॉल तक पहुँच गई। ठीक करने के लिए सारी टाइल्स ही तोड़नी पड़ी। बाथरूम ठीक करवाने के बाद उन्होंने सोचा कि लगे हाथ हॉल में भी टाइल्स लगवा लेते हैं। आजकल मज़दूर मिलना भी आसान काम नहीं।

हमेशा दो मज़दूर आते थे काम करने लेकिन आज तो तीन आए हैं। ऊपर से आज रविवार है और ठेकेदार ने कहा था कि रविवार को छुट्टी रहेगी माताजी। तो फिर ये लोग आज कैसे आ गए?

पुष्पा जी उधेड़बुन में ही थी कि अंदर से रामशरण जी ने कहा, “आ गए हैं तो अब खोल भी दो। काम जल्दी ख़त्म करने के लिए भेजा होगा जीतेंद्रभाई ने, तुम भी ज़्यादा ही सीआईडी बन रही हो। कितनी बार कहा है कि आज कल की यह सीरियल ज़्यादा मत देखा करो, हर आदमी पर ही शक करती रहती हो। तुम्हारा बस चले तो तुम किसी पर भरोसा ना करो। तब से बाहर ही खड़े हैं बेचारे। कितनी बार तो सफ़ाई दे दी तुम्हें।”

पुष्पा जी की छठी इंद्री ने फिर से मनाही का संकेत दिया। एक तो वो बुजुर्ग दंपति और दूसरा इस इलाक़े में ज़्यादा चहल-पहल भी नहीं रहती। कितनी ही बार उसने शोज में देखा है कि ऐसी ही छोटी सी लापरवाही का पूरे परिवार को बहुत भारी ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ा। ये लड़के पिछले दस दिनों से घर में काम कर रहे हैं, पूरा रूटीन पता चल गया है इन्हें, ऐसे में आज इनका यहाँ आना बहुत खटक रहा था उनको।

“किसे फ़ोन मिला रही हो?”
“जीतेंद्रभाई को। पूछूँ तो सही कि जब संडे तो मना किया हुआ है तो आज लेबर क्यों भेजे और तीसरे वर्कर का तो हमें पता भी नहीं। किसी को भेजने से पहले कम से कम बताना तो चाहिए।”
“हद्द ही है भई तुम्हारे आगे तो, पता नहीं वो भी क्या सोचेंगे?”
“जो सोचना है, सोचते रहेंगे। मेरे मन को तो शांति मिलेगी। रिंकू भी कहते रहता है कि मम्मी, ऐसे क्राइम के लिए आजकल बुजुर्ग लोग बच्चों से भी ज़्यादा ईज़ी टार्गेट होने लगे हैं। आप लोग अकेले रहते हो, ध्यान रखा करो।”
बाहर से लगातार घंटियाँ बज रहीं थीं।
“आ रहा हूँ भाई, ज़रा सुस्ता लो। तुम्हारी आंटीजी जीतेंद्रभाई से फ़ोन पर पूछ रहीं हैं कि तुम लोगों को आज क्यों भेजा?”
इतना सुनते ही घंटी बजना बंद हो गई और अंदर से आवाज़ आई, “क्या कहा? आपने किसी को नहीं भेजा।”

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भक्ति


एक बार लक्ष्मी और नारायण धरा पर घूमने आए, कुछ समय घूम कर वो विश्राम के लिए एक बगीचे में जाकर बैठ गए। नारायण आंख बंद कर लेट गए, लक्ष्मी जी बैठ नज़ारे देखने लगीं। थोड़ी देर बाद उन्होंने देखा एक आदमी शराब के नशे में धुत गाना गाते जा रहा था। उस आदमी को अचानक ठोकर लगी, तो उस पत्थर को लात मारने और अपशब्द कहने लगा। लक्ष्मी जी को बुरा लगा, अचानक उसकी ठोकरों से पत्थर हट गया, वहां से एक पोटली निकली उसने उठा कर देखा तो उसमें हीरे जवाहरात भरे थे, वो खुशी से नाचने लगा और पोटली उठा चलता बना। लक्ष्मी जी हैरान हुई, उन्होंने पाया ये इंसान बहुत झूठा, चोर और शराबी है। सारे ग़लत काम करता है, इसे भला ईश्वर ने कृपा के काबिल क्यों समझा, उन्होंने नारायण की तरफ देखा, मगर वो आंखें बंद किये मगन थे। तभी लक्ष्मी जी ने एक और व्यक्ति को आते देखा, बहुत ग़रीब लगता था, मगर उसके चेहरे पे तेज़ और ख़ुशी थी, कपडे साफ़ मगर पुराने थे, तभी उस व्यक्ति के पांव में एक बहुत बड़ा शूल यानि कांटा घुस गया, ख़ून के फव्वारे बह निकले, उसने हिम्मत कर उस कांटे को निकाला, पांव में गमछा बाँधा, प्रभु को हाथ जोड़ धन्यवाद दे लंगड़ाता हुआ चल दिया। इतने अच्छे व्यक्ति की ये दशा। उन्होंने (लक्ष्मी जी ने) पाया नारायण अब भी आँख बंद किये पड़े हैं मज़े से।
उन्हें अपने भक्त के साथ ये भेद भाव पसंद नहीं आया, उन्होंने नारायण जी को हिलाकर उठाया, नारायण आँखें खोल मुस्काये। लक्ष्मी जी ने उस घटना का राज़ पूछा। तो नारायण ने जवाब में कहा लोग मेरी कार्यशैली नहीं समझे। मैं किसी को दुःख या सुख नहीं देता वो तो इंसान अपनी करनी से पाता है। यूं समझ लो मैं एक Accountant हूं। सिर्फ ये हिसाब रखता हूं कि किसको किस कर्म के लिए कब या किस जन्म में अपने पाप या पुण्य अनुसार क्या फल मिलेगा।
जिस अधर्मी को सोने की पोटली मिली, दरअसल आज उसे उस वक़्त पूर्व जन्म के सुकर्मों के लिए, पूरा राज्य भाग मिलना था मगर उसने इस जन्म में इतने विकर्म किये कि पूरे राज्य का मिलने वाला खज़ाना घट कर एक पोटली सोना रह गया और उस भले व्यक्ति ने पूर्व जन्म में इतने पाप करके शरीर छोड़ा था कि आज उसे शूली यानि फांसी पर चढ़ाया जाना था मगर इस जन्म के पुण्य कर्मो की वजह से शूली एक शूल में बदल गई।

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कोयला और चंदन…?


क्या हकीम लुकमान का नाम सुना है, आपने?
जब उनका अंतिम समय नजदीक आया तो उन्होंने अपने बेटे को पास बुलाया। बेटा पास आ गया तो उन्होंने उससे कहा, ‘देखो बेटा, मैंने अपना सारा जीवन दुनिया को शिक्षा देने में गुजार दिया। अब अपने अंतिम समय में मैं तुम्हें कुछ जरूरी बातें बताना चाहता हूं। लेकिन इससे पहले जरा तुम एक कोयला और चंदन का एक टुकड़ा उठा कर ले लाओ। बेटे को पहले तो यह बड़ा अटपटा लगा, लेकिन उसने सोचा कि अब पिता का हुक्म है तो यह सब लाना ही होगा। उसने रसोई घर से कोयले का एक टुकड़ा उठाया। संयोग से घर में चंदन की एक छोटी लकड़ी भी मिल गई। वह दोनों को लेकर अपने पिता के पास पहुंच गया। उसे आया देख लुकमान बोले, ‘बेटा, अब इन दोनों चीजों को नीचे फेंक दो।’ बेटे ने दोनों चीजें नीचे फेंक दीं और हाथ धोने जाने लगा तो लुकमान बोले, ‘जरा ठहरो बेटा। मुझे अपने हाथ तो दिखाओ।’ बेटे ने हाथ दिखाए तो वह उसका कोयले वाला हाथ पकड़ कर बोले, ‘देखा तुमने। कोयला पकड़ते ही हाथ काला हो गया। लेकिन उसे फेंक देने के बाद भी तुम्हारे हाथ में कालिख लगी रह गई। गलत लोगों की संगति ऐसी ही होती है। उनके साथ रहने पर भी दुख होता है और उनके न रहने पर भी जीवन भर के लिए बदनामी साथ लग जाती है। दूसरी ओर सज्जनों का संग इस चंदन की लकडी की तरह है जो साथ रहते हैं तो दुनिया भर का ज्ञान मिलता है और उनका साथ छूटने पर भी उनके विचारों की महक जीवन भर बनी रहती है। इसलिए हमेशा अच्छे लोगों की संगति में ही रहना।

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जेब कतरा*


भक्क सल्ला इतना देर तक उसके पीछे-पीछे घुमता रहा लेकिन हाथ क्या लगा? दस रुपये के दो नोट. पाकीट (पॉकेट) तो इतना फुला लग रहा था मानो लाख-दो-लाख होगा, नहीं भी तो कम से कम बीस-पचास हज़ार तो होगा ही. पुरा चार घंटा उसके पीछे लगा रहा, मूड तो तब ख़राब हो गया था जब वो फ़क़ीर बेंच पर बैठ कर पसर गया था, पता नहीं कहाँ खो गया था, घंटे भर बाद उठा था। मेरा पुरा दिन ख़राब हो गया इसके चक्कर में, नहीं तो दो-चार पाकीट मार ही लेता, कितना भी कम निकलता तो दो-चार सौ तो कमा ही लेता। सिर्फ़ दो दस के नोट और इतना सारा काग़ज़, अरररे! इतना बड़ा काग़ज़ कौन रखता है पाकीट में! खोल कर देखता हूँ क्या है? हे भगवान ए क्या? पाकीट मार के हाथ काँपने लगे: ए तो चिट्ठी है!

माँय-बाबु:: पाय लागूँ, भगवान आप दोनों को लंबी आयु और अच्छा स्वास्थ्य दे! मैं जानता हूँ बाबुजी, आपने बड़ा वाला खेत गिरवी रख कर पैसे भेजे थे, मेरा क्लेक्टर का आख़िरी परीक्षा था और आप सब को उम्मीद थी मेरे पास होने की, लेकिन मैं पास नहीं हो पाया, इंटरव्यू में मुझे छाँट दिया गया, उनका कहना था की मैं गाँव और शहर में सामंजस्य नहीं बैठा पाया जवाब देने में. आप ही बताइए बाबुजी मैं तो शहर सिर्फ़ पढ़ाई करने आया था न की इसको समझने, तो जवाब कैसे दे पाता? कैसे बोल पाता की गाँव के भोले इंसान को शहर में किसी को कैसे बेवक़ूफ़ बनाया जाता है? ख़ैर, क़र्ज़ के पैसों से ही मैंने पिछले सप्ताह इंश्योरेंस ले लिया, मेरे नहीं रहने के बाद वो लोग इतना दे देंगे की छुटकी की शादी हो जाएगी, खेत वापस मिल जाएगा और इतना बच जाएगा की आपके बुढ़ापे तक किसी के सामने हाथ नहीं फैलाना पड़ेगा। इंश्योरेंस का काग़ज़ भी चिट्ठी के साथ भेज रहा हूँ।
प्रणाम 🙏🏻 जेब कतरा चिट्ठी पढ़ कर पसीना-पसीना हो गया, कान के निचे से बहता पसीना गले तक आ गया: हे भगवान, कितनी बड़ी ज़िम्मेदारी दे दी इस जेब कतरे को?
बड़बड़ाता हुआ वो प्लेफॉर्म की तरफ़ भागा, वो आदमी कहीं नहीं दिख रहा था, जेब कतरा लगभग रोते हुए इधर-उधर भाग ही रहा था, देखा दूर पटरी तक वो आदमी जा चुका था. भाग कर गया और दनादन थप्पड़ मारने लगा। भाई तुम क्या कर रहे हो? सिर्फ़ अपनी सोच रहे हो? कभी सोचा, क्या गुज़रेगी माँ-बाप पर? क्या गुज़रेगी छोटी बहन पर?
सब समझता हूँ भाई, लेकिन क्या करूँ? कोई रास्ता नहीं बचा है. चिट्ठी लिखने को तो लिख दिया लेकिन पोस्ट करने की हिम्मत न कर पाया!
रास्ता कैसे नहीं बचा है? तुम पढे-लिखे हो, कुछ भी कर के कमा सकते हो!
हाँ, लेकिन माँ-बाबु का सपना तो पुरा नहीं कर पाया न?
अरे भाई, तुम ज़िंदा रहोगे तो कुछ और सपना पुरा कर लेना
जेब कतरा उसको कंधे से पकड़ कर अपने खोली ले आया, पानी पिलाया, और फिर से बात शुरु की: देख भाई, मैं तेरी तरह ज़्यादा पढ़ा नहीं, लेकिन परिवार चलाने के लिए जेब काटने लगा, गाँव में सब समझते हैं की हम यहाँ फ़ैक्ट्री में काम करते हैं। आज से मैं भी चोरी-चकारी बंद करता हूँ, यह शहर बहुत बड़ा है, इमानदारी से कमाई करेंगे दोनों भाई, मैं समोसे और जलेबी बनाऊँगा तुम गल्ले पर बैठना, देखना साल भर में ही हम अपनी पक्की दुकान कर लेंगे, तुम्हारे परिवार को भी इज़्ज़त की कमाई भेजना और मैं भी अपने परिवार को।
भाई, मैं ज़िंदगी से डर गया था, तुम मिले हो तो कुछ अच्छा करेंगे अब, साहब नहीं बन पाया कोई बात नहीं, अब दोबारा नहीं सोचूँगा परिवार को अकेला छोड़ने का, पता नहीं तुम भाई बन कर आए की भगवान का दुत बन कर, लेकिन मेरी छुटकी तुम्हारे जैसा एक और भैया पा कर ख़ुशी से पागल हो जाएगी, माँ-बाबु भी चाहते थे की उनको दो बेटे होते तो घर भरा-भरा लगता।

जिसकी जेब कटी थी उसे तो समझ ही नही आ रहा था कि हो क्या रहा है। कुछ समय लगा वीक्षोभ से बाहर आने में ओर जेब कतरे की बात को समझने में। वो तो बस अब भगवान का धन्यवाद करता है। और दोनों चल पड़ते है जिंदगी की नई राह की तरफ।

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सपने देखने वाला आदमी


बहुत समय पहले की बात हैं, एक व्यक्ति था जो बेहद आलसी और साथ ही साथ गरीब भी था। वह कुछ भी मेहनत नहीं करना चाहता था। लेकिन अमीर बनने का सपना देखता रहता था। वह भिक्षा मांगकर अपना गुजारा करता था।
एक सुबह उसे भिक्षा के रूप में दूध से भरा एक घड़ा मिला। वह बहुत प्रसन्न हुआ और दूध का घड़ा लेकर घर चला गया।
उसने दूध को उबाला, उसमें से कुछ दूध पिया और बचा हुआ दूध, एक बर्तन में डाल दिया। दूध को दही में बदलने के लिए उसने बर्तन में थोड़ा सा दही डाला। इसके बाद वह सोने के लिए लेट गया।
वह सोते समय दही के बर्तन के बारे में सोचने लगा।
उसने सोचा; “सुबह तक दूध दही बन जायेगा। मैं दही को मथकर उससे मक्खन बना लूंगा। फिर मक्खन को गर्म करके उससे घी बना लूंगा। फिर घी को बाजार में जाकर उसे बेच दूँगा और कुछ पैसे कमा लूंगा। उस पैसे से मैं एक मुर्गी खरीदूंगा। मुर्गी अंडे देगी, उन अंडो से बहुत सारे मुर्गे मुर्गी पैदा होंगे। फिर ये मुर्गियां सैकड़ों अंडे देगी और मेरे पास जल्द ही एक पोल्ट्री फार्म होगा।” वह कल्पना में डूबा रहा।
फिर उसने सोचा, “मैं सारी मुर्गियां बेच दूंगा और फिर कुछ गाय भैंस खरीद लूंगा और दूध की डेयरी खोल दूंगा। शहर के सभी लोग मुझसे दूध खरीदने आएंगे और मैं बहुत जल्दी ही अमीर हो जाऊंगा। फिर में अमीर परिवार की खूबसूरत लड़की से शादी कर कर लूंगा। फिर मेरा एक सुंदर सा बेटा होगा। अगर वह कोई शरारत करेगा तो मुझे बहुत गुस्सा आएगा और उसे सबक सिखाने के लिए मैं उसे डंडे से ऐसे मारूंगा।”
यह सोचने के दौरान उसने बिस्तर के बगल में पड़ा डंडा उठाया और मारने का नाटक करने लगा। यही डंडा उसके दूध के बर्तन में लग गया और दूध का बर्तन टूट गया, इससे सारा दूध जमीन पर फैल गया।
बर्तन की आवाज सुनकर उस आदमी की नींद उड़ गई। फैला हुआ दूध देखकर उसने अपना सिर पकड़ लिया।
शिक्षा: दोस्तों सपने देखो, लेकिन खाली सपने देखने से कुछ नहीं होगा। हमें कड़ी मेहनत करनी होगी। कुछ भी जिंदगी में आसानी से नहीं मिलता हैं। हमारी जिंदगी को बेहतरीन बनाने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी। क्योंकि कड़ी मेहनत का कोई विकल्प नहीं है।
अगर आप केवल सपने ही देखते रहते हैं उनको साकार करने के लिए कोई कदम नहीं उठाते हैं, तो ऐसा करके आप खुद को धोखा दे रहे हैं। इसलिए पहले खुद का 100% दीजिए, फिर सफलता खुद आपके कदम चूमने आएगी।

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सेविंग


दोनों बच्चे और उनकी माँ के मुँह बने हुए हैं मना जो कर दिया मैनें इस बार मॉल से शॉपिंग करने के लिये। दो महीने हो गए मॉल से घर का सामान लाते हुए। अच्छा भला अब तक बड़े बाज़ार के लाला की दुकान से सामान आया करता था लेकिन उस दिन मैडम ने अखबार में देख लिया……इसके साथ वो फ़्री, उस पर इतने परसेन्ट की छूट। बस दिमाग घूम गया उसका और मेरा भी घुमा दिया …..सेविंग के नाम पर और चले गये हम दोनों मॉल से शॉपिंग करने। जरुरत से ज्यादा गैर जरूरी चीजें भरीं जा रही थी फ्री और सस्ते के चक्कर में। खचाखच भरी ट्रोली ने मेरी जेब खाली करा दी। आठ हज़ार का परचा फटा राशन के नाम का।

सबक लेती हुए मैडम पिछले महीने बोली, ” लिस्ट बना कर ले जायेंगे। कुछ फालतू लेंगे ही नहीं।” इस बार बच्चे भी साथ हो लिये। नूडल्स, दसियों तरह की सॉस,मेयो, कुकीज़, चॉकलेट और ना जाने क्या अटरम-शटरम भर लिया, ना सिर्फ उन दोनों ने, उनकी माँ ने भी। लिस्ट की कसम जो घर से खा कर चली थी उसे वो यहाँ आते ही हजम कर गई। काऊंटर पर खड़ा बारह हजार का अमाउंट पे कर रहा था। बच्चे साथ गए थे उन्हें झूले भी झूलने हैं, कार रेसिंग गेम भी चलानी है और बर्गर भी खाना है अब मना थोड़े ना किया जाता है बच्चे ही तो हैं। अपनी मैडम को भी कहाँ मना किया जब उसने बड़े प्यार से मुझसे कहा, ” रात होने वाली है कब घर पहुंचेंगे? कब खाना बनेगा? कब खायेंगे? एक काम करतें हैं यहीं फूड कोर्ट से खाना खा कर चलते हैं।” खा लिया खाना। ये सब हुआ सेविंग के नाम पर।

सामान आया सो आया अब उसे ऐडजस्ट करने की आफत। जब सारी जगह फुल हो गई तब बारी आई मेरी किताबों की अल्मारी की। जो आज तक ना हुआ वो अब हो रहा था। बेचारी मेरी किताबों को टूथपेस्ट, चाय के पैकेट, साबुन,बिस्किट के साथ ऐडजस्ट करना पड़ रहा था। चलो जी, ठूँस-ठास कर जैसे-तैसे सामान भर दिया गया यहाँ तक तो ठीक था पर अगले दिन जो हुआ……. घर पधारी अपनी सहेली से हमारी मैडम मॉल में शॉपिंग के फायदे गिनाते-गिनाते अचानक क्या बोलती है, “ओ! तू मत खरीदना मेरे पास एक्स्ट्रा रखा है।” और ओट्स का एक पैकेट उसे दानवीर बन कर दे दिया। अब कोई मुझे बताये ये एक्स्ट्रा कैसे हुआ? कब हुआ? खुद ने ही तो खरीदा था। एक के साथ एक फ़्री बोल कर। पहले बेमतलब का खरीदो फिर एक-एक को दान करो। ये क्या बात हुई भला?

बस बहुत हुआ। इसलिये इस महीने घर का सामान लाने के लिए मॉल जाने से मैनें साफ़ मना कर दिया।……लिस्ट, थैला उठाया और स्कूटर लेकर निकल पड़ा बड़े बाज़ार वाली लाला की दुकान की तरफ। छ: हजार में सारा सामान आ गया। लौटते हुए तीनों के लटके चेहरे याद आ गए। स्कूटर रोका बच्चों के लिए रेड वेल्वेट पेस्ट्री और उनकी माँ के लिए बटर स्कॉच आइसक्रीम लेकर चल दिया घर की ओर।

कैसे तीनों के मुरझाए चेहरे खिल उठे अपनी फ़ेवरिट चीजें देखकर। जहाँ बच्चे अपनी पेस्ट्री और मैडम अपनी आइसक्रीम का मज़ा ले रही थी वहीं मैं लुत्फ उठा रहा था अपनी सेविंग का।

बचत करना एक कला है।

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बेटियाँ बहुमूल्य रत्न


बीस दिन के पश्चात अस्पताल से घर लौटी शैलजा, पर घर लौट कर भी तो वह बिस्तर पर ही है। अचानक पैर फिसल जाने के कारण पांव की हड्डी टूट गई थी। जब से वह बिस्तर पर है तब से उसकी 18 वर्षीय बेटी लेखा ने अपने कंधों पर सारी जिम्मेदारी ले रखी है। घर में खाना बनाना, फिर मां के लिए टिफिन भर के अस्पताल ले जाना, उन्हें खिलाना, बेड पैन देना, उनके शरीर को स्पंज करना, कपड़े बदलना सारी जिम्मेदारी लेखा ने बखूबी संभाल ली। एक नन्ही सी जान और काम हजार फिर भी चेहरे पर शिकन नहीं। इतने सब कामों के बीच भी अपनी पढ़ाई जारी रखना कोई मामूली बात नहीं है, परंतु लेखा ने उसे भी बखूबी संभाल लिया है क्योंकि इस साल उसे इंजीनियरिंग एंट्रेंस एग्जाम देना है।

शैलजा को चाहे कितनी ही तकलीफ हो वह अपने चेहरे पर मुस्कान बिखेर कर अपनी बेटी से कहती अब थोड़ा सा आराम कर लो बेटा! इतना काम करने के पश्चात फिर पढ़ाई के लिए बैठ गई हो। शरीर को भी थोड़ा सा आराम देना जरूरी है।
मां की तकलीफ को देखकर लेखा की आंखों में कई बार आंसू आ जाते, परंतु मां के सामने वह अपने चेहरे पर दुख का भाव आने नहीं देती। वह जानती है कि अगर मेरे चेहरे पर उदासी की काली छाया जरा भी दिखी तो माँ भी दुखी हो जाएगी।
चार महीने के बाद बिस्तर से उठकर शैलजा ऑफिस जाने लगी। ऑफिस में बैठकर उसके पांव में इतनी सूजन आ जाती कि शाम तक उसका हाल बुरा हो जाता। घर आते ही बेटी प्यार से कहती मां आप थोड़ी देर लेट जाओ। आपको मैं चाय बना कर देती हूं, फिर उठकर चाय पी लेना। पांव की सूजन भी कम हो जाएगी।
शैलजा की आंखें भावुकता में भीग जातीं, बेटी का प्यार और सेवा पाकर। वह मन ही मन सोचती ईश्वर ने अगर मुझे बेटी नहीं दी होती तो आज इतनी सेवा कौन करता। कौन मेरी तकलीफ को समझता और मेरी छोटी से छोटी बात का ध्यान कौन रखता?
परीक्षा का परिणाम आया तो लेखा के चेहरे पर खुशी ना देख कर शैलजा ने पूछा क्या बात है बेटा? इतनी उदास क्यों हो? आओ मेरे पास आकर बैठो और जो भी बात हो मुझसे कहो।
मां की प्यार भरी बातें सुनकर और प्यार का स्पर्श पाकर लेखा की आंखें उमड़ पड़ी मां मुझे क्षमा करना! मैं आपको खुशी नहीं दे पाई। मन मुताबिक मेरा रिजल्ट नहीं आया है।
शैलजा ने बेटी को अपनी बाहों में भर कर, प्यार से सिर पर हाथ फेर कर कहा कोई बात नहीं बेटा! इतनी परेशानी के बावजूद तुमने पढ़ाई की, यही बहुत बड़ी बात है! मैं इसी बात से ही खुश हूं। जिंदगी सही सलामत रही तो तुम जीवन में बहुत कुछ कर लोगे, मुझे पता है। तुम्हारी हिम्मत को देखा है मैंने। कभी कभी परेशानी से मेरा मन डोल जाता था, पर तुम्हें अपने निश्चय पर अडिग देखा है मैंने। तुममें जो आत्मविश्वास है, वह आत्मविश्वास तुम्हें जीवन में प्रगति के पथ पर ले जाएगा।
आज शैलजा अपनी बेटी लेखा को एयरपोर्ट छोड़ने आई है, क्योंकि वह अमेरिका जा रही है उच्च शिक्षा के लिए। अपनी बेटी को विदा करने के पश्चात शैलजा की आंखें नम थी, परंतु ह्रदय में एक खुशी की लहर भी थी। उसका मन सोच के समुद्र में गोता लगाने लगा लोग बेटियां होने पर दुखी क्यों होते हैं? क्यों बेटियों को जन्म से पहले मार देते हैं। क्या बेटियों को इस धरा पर जन्म लेने का अधिकार नहीं है? क्या उसे जीवन जीने का अधिकार नहीं है? बेटियां तो वह संपत्ति है, जो किसी किस्मत वाले को ही प्राप्त होती है? कब सीखेंगे लोग? बेटियों की कद्र करना? हे ईश्वर! तुम्हें कोटि कोटि धन्यवाद! तुमने मुझे एक बहुमूल्य रत्न मेरी बेटी दी है