Posted in सुभाषित - Subhasit

दीपो भक्षयते ध्वान्तं कज्जलं च प्रसूयते।
यदन्नं भक्षयेन्नित्यं जायते तादृशी प्रजा॥

चाणक्यनीति

दीप lamp, light प्रथमैकवचनान्त:(पु)
→ दीप:

भक्ष् to eat, to consume प्रथम पुरुष वर्तमानकालवाचक एकवचनम्
→ भक्षयते

ध्वान्त darkness द्वितीयैकवचनान्त:(न)
→ ध्वान्तम्

कज्जल black soot, lampblack द्वितीयैकवचनान्त:(न)
→ कज्जलम्

च and

प्रसु beget, give birth to, bring forth प्रथम पुरुष वर्तमानकालवाचक एकवचनम्
→ प्रसूयते

यद् that, which द्वितीयैकवचनान्त:(न)
→ यद्

अन्न grain, cereal, food द्वितीयैकवचनान्त:(न)
→ अन्नम्

भक्ष् to eat, to consume प्रथम पुरुष विध्यर्थ एकवचनम्
→ भक्षयेत्

नित्यम् daily

जन् to be born or produced, to come into existence प्रथम पुरुष वर्तमानकालवाचक एकवचनम्
→ जायते

तादृक्ष that kind, that type, that like प्रथमैकवचनान्त:(स्त्री)
→ तादृशी

प्रजा procreation, propagation प्रथमैकवचनान्त:(स्त्री)
→ प्रजा

(जसा) दिवा काळोखाला खातो (नाहीसा करतो) आणि (काळी) काजळी निर्माण करतो, (तसा) (मनुष्य) ज्या प्रकारचे अन्नसेवन करतो त्याच प्रकारची त्याची संतति उपजते.

(Just as) lamp eats (destroys) darkness and produces (black) soot, in the same manner (quality of) food (man) eats daily, has an influence on his offspring’s nature.

जैसे दीप अन्धकार का भक्षण करता हैं और कज्जल उत्पन्न करता हैं, वैसे ही (मनुष्य) जिस प्रकार का अन्नसेवन करता है, उसी प्रकार की उस की संतान जन्म लेती हैं।

इन हिंदी कहावतों के स्थान पर संस्कृत की सूक्ति बोलें।
1. अपनी डफली अपना राग – मुण्डे मुण्डे मतिर्भिन्ना ।
2. का बरखा जब कृषि सुखाने – पयो गते किं खलु सेतुबन्धनम्।
3. अंधों में काना राजा – निरस्तपादपे देशे एरण्डोपि द्रुमायते।
4. अधजल गगरी छलकत जाए – अर्धोघटो घोषमुपैति शब्दम् ।
5. एक पंथ दो काज – एका क्रिया द्वयर्थकरी प्रसिद्धा।
6. आंख का अंधा नाम नयनसुख – भिक्षार्थं भ्रमते नित्यं नाम किन्तु धनेश्वरः।
7. काल करे सो आज कर, आज करे सो अब – श्वः कर्तव्यानि कार्याणि कुर्यादद्यैव बुद्धिमान्।
8. जैसी करनी वैसी भरनी – यो यद् वपति बीजं लभते तादृशं फलम्।
9. पर उपदेश कुशल बहुतेरे – परोपदेशे पाण्डित्यं सर्वेषां सुकरं नृणाम् ।
10. मुंह में राम बगल में छुरी – विषकुम्भं पयोमुखम्।
11. भूखा क्या नहीं करता – बुभुक्षितः किं न करोति पापम्।

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मोहमद युनुस और इंदिरा.


मोहमद युनुस और इंदिरा… गलत संबध से जन्म हुआ था संजय *नेहरू-गांधी वंश का इतिहास***नेहरू-गांधी राजवंश की शुरुआत होती है गंगाधर (गंगाधर नेहरू नहीं), यानी मोतीलाल नेहरू के पिता से। नेहरू उपनाम बाद में मोतीलाल ने खुद लगा लिया था, जिसका शाब्दिक अर्थ था नहर वाले। वरना तो उनका नाम होना चाहिये था मोतीलाल धर।
लेकिन जैसा कि इस खानदान को नाम बदलने की आदत थी उसी के मुताबिक उन्होंने यह किया।
रॉबर्ट हार्डी एन्ड्रूज की किताब ए लैम्पफॉरइंडिया
द स्टोरी ऑफमदामपण्डित में
उस तथाकथित “गंगाधर” का चित्र छपा है,
जिसके अनुसार “गंगाधर” असल में एक….
“सुन्नी मुसलमान” था, जिसका असली नाम… “गयासुद्दीन गाजी” था।😠
दरअसल नेहरू ने खुद की आत्मकथा में एक जगह लिखा है कि उनके दादा अर्थात् मोतीलाल के पिता गंगा धर थे।
ठीक वैसा ही जवाहर की बहन…..
कृष्णा हठीसिंह ने भी लिखा है कि उनके दादाजी……
मुगल सल्तनत (बहादुरशाह जफर के समय) में नगर कोतवाल थे।😉
जब इतिहासकारों ने खोज की तो पाया कि बहादुरशाह जफर के समय कोई भी हिन्दू इतनी महत्वपूर्ण ओहदे पर नहीं था।😞
और खोजबीन पर यह भी पता चला कि उस वक्त के दो नायब कोतवाल हिन्दू थे….
जिनके नाम थे भाऊ सिंह और काशीनाथ,
जो लाहौरी गेट दिल्ली में तैनात थे।
लेकिन किसी गंगाधर नाम के व्यक्ति का कोई रिकॉर्ड नहीं मिला। (सन्दर्भ: मेहदी हुसैन की पुस्तक बहादुरशाह जफर और १८५७ का गदर, १९८७ की आवृत्ति)
रिकॉर्ड मिलता भी कैसे, क्योंकि गंगाधर नाम तो बाद में अंग्रेजों के कहर से डर कर बदला गया था, असली नाम तो “गयासुद्दीन गाजी” था।😠

जब अंग्रेजों ने दिल्ली को लगभग जीत लिया था, तब मुगलों और मुसलमानों के दोबारा विद्रोह के डर से उन्होंने दिल्ली के सारे हिन्दुओं और मुसलमानों को शहर से बाहर करके तम्बुओं में ठहरा दिया था।
अंग्रेज वह गलती नहीं दोहराना चाहते थे, जो हिन्दू राजाओं (पृथ्वीराज चौहान आदि) ने मुसलमान आक्रान्ताओं को जीवित छोड़कर की थी।
इसलिये उन्होंने चुन-चुन कर मुसलमानों को मारना शुरू किया। लेकिन कुछ मुसलमान दिल्ली से भागकर आसपास के इलाकों मे चले गये।
उसी समय यह परिवार भी आगरा की तरफ कूच कर गया।
नेहरू ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि आगरा जाते समय उनके दादा गंगा धर को अंग्रेजों ने रोक कर पूछताछ की थी।
लेकिन तब उन्होंने कहा था कि वे मुसलमान नहीं हैं बल्कि कश्मीरी पण्डित हैं …..!😞
अत: अंग्रेजों ने उन्हें आगरा जाने दिया।
बाकी इतिहास में सब है ही।

यह धर उपनाम कश्मीरी पण्डितों में आमतौर पाया जाता है, और इसी का अपभ्रंश होते-होते और नामान्तर होते होते दर या डार हो गया जो कश्मीर के अविभाजित हिस्से में आमतौर पाया जाने वाला नाम है।😞

लेकिन मोतीलाल ने नेहरू नाम चुना ताकि यह पूरी तरह से हिन्दू सा लगे।😠
इतने पीछे से शुरुआत करने का मकसद सिर्फ यही है कि हमें पता चले कि खानदानी लोग क्या होते हैं।
कहा जाता है कि आदमी और घोड़े को उसकी नस्ल से पहचानना चाहिये, प्रत्येक व्यक्ति और घोड़ा अपनी नस्लीय विशेषताओं के हिसाब से ही व्यवहार करता है, संस्कार उसमें थोड़ा बदलाव ला सकते हैं, लेकिन उसका मूल स्वभाव आसानी से बदलता नहीं।😞

अपनी पुस्तक “द नेहरू डायनेस्टी” में लेखक के.एन.राव लिखते हैं – ऐसा माना जाता है कि जवाहरलाल, मोतीलाल नेहरू के पुत्र थे और मोतीलाल के पिता का नाम था गंगाधर।
यह तो हम जानते ही हैं कि जवाहरलाल की एक पुत्री थी इन्दिरा प्रियदर्शिनी नेहरू।😉
कमला नेहरू उनकी माता का नाम था, जिनकी मृत्यु स्विटजरलैण्ड में टीबी से हुई थी।
कमला शुरू से ही इन्दिरा संग फिरोज से विवाह के खिलाफ थीं क्यों..? यह हमें नहीं पता..
लेकिन यह फिरोज गाँधी कौन थे ?
फिरोज उस व्यापारी के बेटे थे, जो आनन्द भवन में घरेलू सामान और शराब पहुँचाने का काम करता था।
आनन्द भवन का असली नाम था……
“इशरत मंजिल” और उसके मालिक थे…. “मुबारक अली” ।
मोतीलाल नेहरू पहले इन्हीं मुबारक अली के यहाँ काम करते थे।
खैर हममें से सभी जानते हैं कि राजीव गाँधी के नाना का नाम था जवाहरलाल नेहरू।
लेकिन प्रत्येक व्यक्ति के नाना के साथ ही दादा भी तो होते हैं और अधिकतर परिवारों में दादा और पिता का नाम ज्यादा महत्वपूर्ण होता है, बजाय नाना या मामा के।
तो फिर राजीव गाँधी के दादाजी का नाम क्या था आपको मालूम है? नहीं ना…
ऐसा इसलिये है, क्योंकि राजीव गाँधी के दादा थे “नवाब खान”, एक मुस्लिम व्यापारी……
जो आनन्द भवन में सामान सप्लाई करता था और जिसका मूल निवास था जूनागढ़ गुजरात में……..
“नवाब खान” ने एक पारसी महिला से शादी की और उसे मुस्लिम बनाया .. !

फिरोज इसी महिला की सन्तान थे और उनकी माँ का उपनाम था घांदी (गाँधी नहीं)…
घांदी नाम पारसियों में अक्सर पाया जाता था ..!

विवाह से पहले फिरोज गाँधी ना होकर
“फिरोज खान” थे और कमला नेहरू के विरोध का असली कारण भी यही था…..!

हमें बताया जाता है कि राजीव गाँधी पहले पारसी थे…..!
यह मात्र एक भ्रम पैदा किया गया है।

इन्दिरा गाँधी अकेलेपन और अवसाद का शिकार थीं। शान्ति निकेतन में पढ़ते वक्त ही रवीन्द्रनाथ टैगोर ने उन्हें अनुचित व्यवहार के लिये निकाल बाहर किया था…..!

अब आप खुद ही सोचिये… एक तन्हा जवान लड़की जिसके पिता राजनीति में पूरी तरह से व्यस्त और माँ लगभग मृत्यु शैया पर पड़ी हुई हो…..
थोड़ी सी सहानुभूति मात्र से क्यों न पिघलेगी, और विपरीत लिंग की ओर क्यों न आकर्षित होगी…..?
इसी बात का फायदा फिरोज खान ने उठाया और इन्दिरा को बहला-फुसलाकर उसका धर्म परिवर्तन करवाकर लन्दन की एक मस्जिद में उससे शादी रचा ली (नाम रखा मैमूना बेगम)।

नेहरू को पता चला तो वे बहुत लाल-पीले हुए, लेकिन अब क्या किया जा सकता था….!

जब यह खबर मोहनदास करमचन्द गाँधी को मिली तो उन्होंने ताबड़तोड़ नेहरू को बुलाकर समझाया….
राजनैतिक छवि की खातिर फिरोज को मनाया कि , वह अपना नाम गाँधी रख ले…….!
यह एक आसान काम था कि एक शपथ पत्र के जरिये, बजाय धर्म बदलने के,
सिर्फ नाम बदला जाये, तो……
“फिरोज खान” (घांदी) बन गये फिरोज गाँधी।

विडम्बना यह है कि सत्य-सत्य का जाप करने वाले और सत्य के साथ मेरे प्रयोग लिखने वाले गाँधी ने इस बात का उल्लेख आज तक कहीं नहीं किया, और वे महात्मा भी कहलाये…खैर…

उन दोनों (फिरोज और इन्दिरा) को भारत बुलाकर जनता के सामने दिखावे के लिये एक बार पुनः वैदिक रीति से उनका विवाह करवाया गया, ताकि उनके खानदान की ऊँची नाक (?) का भ्रम बना रहे।
इस बारे में नेहरू के सेक्रेटरी एम.ओ.मथाई अपनी पुस्तक रेमेनिसेन्सेस ऑफ द नेहरू एज (पृष्ट ९४ पैरा २), जो अब भारत सरकार द्वारा प्रतिबन्धित है, में लिखते हैं कि पता नहीं क्यों नेहरू ने सन १९४२ में एक अन्तर्जातीय और अन्तर्धार्मिक विवाह को वैदिक रीतिरिवाजों से किये जाने को अनुमति दी, जबकि उस समय यह अवैधानिक था।
कानूनी रूप से उसे सिविल मैरिज होना चाहिये था।
यह तो एक स्थापित तथ्य है कि राजीव गाँधी के जन्म के कुछ समय बाद इन्दिरा और फिरोज अलग हो गये थे, हालाँकि तलाक नहीं हुआ था। फिरोज गाँधी अक्सर नेहरू परिवार को पैसे माँगते हुए परेशान किया करते थे, और नेहरू की राजनैतिक गतिविधियों में हस्तक्षेप तक करने लगे थे।
तंग आकर नेहरू ने फिरोज का तीन मूर्ति भवन मे आने-जाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था।

मथाई लिखते हैं फिरोज की मृत्यु से नेहरू और इन्दिरा को बड़ी राहत मिली थी।
१९६० में फिरोज गाँधी की मृत्यु भी रहस्यमय हालात में हुई थी, जबकि वह दूसरी शादी रचाने की योजना बना चुके थे।
अपुष्ट सूत्रों, कुछ खोजी पत्रकारों और इन्दिरा गाँधी के फिरोज से अलगाव के कारण यह तथ्य भी स्थापित हुआ कि …..
श्रीमती इन्दिरा गाँधी (या श्रीमती फिरोज खान) का दूसरा बेटा अर्थात् “संजय गाँधी”…..
फिरोज की सन्तान नहीं था।
“संजय गाँधी” एक और मुस्लिम “मोहम्मद यूनुस” का बेटा था।
संजय गाँधी का असली नाम दरअसल
“संजीव गाँधी” था,
अपने बड़े भाई राजीव गाँधी से मिलता जुलता।

लेकिन “संजय” नाम रखने की नौबत इसलिये आई क्योंकि…..
उसे लन्दन पुलिस ने इंग्लैण्ड में कार चोरी के आरोप में पकड़ लिया था
और उसका पासपोर्ट जब्त कर लिया था।
ब्रिटेन में तत्कालीन भारतीय उच्चायुक्त….
“कृष्ण मेनन” ने तब मदद करके संजीव गाँधी का नाम बदलकर नया पासपोर्ट “संजय गाँधी” के नाम से बनवाया था (इन्हीं कृष्ण मेनन साहब को भ्रष्टाचार के एक मामले में नेहरू और इन्दिरा ने बचाया था)।

अब संयोग पर संयोग देखिये…
संजय गाँधी का विवाह “मेनका आनन्द” से हुआ। .. कहां……..?
मोहम्मद यूनुस के घर पर ….
(है ना आश्चर्य की बात)……….???

मोहम्मद यूनुस की पुस्तक ……
“पर्सन्स, पैशन्स एण्ड पोलिटिक्स” में…….
बालक संजय का इस्लामी रीतिरिवाजों के मुताबिक “खतना” बताया गया है।
हालांकि उसे फिमोसिस नामक बीमारी के कारण किया गया कृत्य बताया गया है, ताकि हम लोग (आम जनता) गाफिल रहें….!

मेनका जो कि एक सिक्ख लड़की थी,
संजय की रंगरेलियों की वजह से गर्भवती हो गईं थी, जिसके कारण मेनका के पिता…..
“कर्नल आनन्द” ने “संजय” को जान से मारने की धमकी दी थी।
फिर उनकी शादी हुई और “मेनका” का नाम बदलकर “मानेका” किया गया,
क्योंकि इन्दिरा गाँधी को मेनका नाम पसन्द नहीं था।
(यह इन्द्रसभाकीनृत्यांगनाटाईपकानामलगताथा) पसन्द तो “मेनका”, “मोहम्मद यूनुस” को भी नहीं थी क्योंकि उन्होंने …….
एक मुस्लिम लड़की संजय के लिये देख रखी थी।
फिर भी मेनका कोई साधारण लड़की नहीं थीं, क्योंकि उस जमाने में उसने बॉम्बे डाईंग के लिये, सिर्फ एक तौलिये में विज्ञापन किया था।

आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि संजय गाँधी अपनी माँ को ब्लैकमेल करते थे और जिसके कारण उनके सभी बुरे कृत्यों पर इन्दिरा ने हमेशा परदा डाला और उसे अपनी मनमानी करने की छूट दी।
ऐसा प्रतीत होता है कि शायद संजय गाँधी को उसके असली पिता का नाम मालूम हो गया था और यही इन्दिरा की कमजोर नस थी..!
वरना क्या कारण था कि संजय के विशेष नसबन्दी अभियान….
(जिसका मुसलमानों ने भारी विरोध किया था) के दौरान उन्होंने चुप्पी साधे रखी, और संजय की मौत के तत्काल बाद काफी समय तक वे एक चाभियों का गुच्छा खोजती रहीं थी…?

जबकि मोहम्मद यूनुस संजय की लाश पर दहाड़ें मार कर रोने वाले एकमात्र बाहरी व्यक्ति थे।

संजय गाँधी के तीन अन्य मित्र *कमलनाथ, *अकबर अहमद डम्पी और *विद्याचरण शुक्ल, ये चारों उन दिनों चाण्डाल चौकड़ी कहलाते थे…..!
इनकी रंगरेलियों के किस्से तो बहुत मशहूर हो चुके हैं……!
जैसे कि *अंबिका सोनी और *रुखसाना सुलताना, अभिनेत्री *अमृता सिंह की माँ, के साथ इन लोगों की विशेष नजदीकियाँ थीं…!

एम.ओ.मथाई अपनी पुस्तक के पृष्ठ २०६ पर लिखते हैं –
१९४८ में वाराणसी से एक सन्यासिन दिल्ली आई जिसका काल्पनिक नाम श्रद्धा माता था। वह संस्कृत की विद्वान थी और कई सांसद उसके व्याख्यान सुनने को बेताब रहते थे।
वह भारतीय पुरालेखों और सनातन संस्कृति की अच्छी जानकार थी।
नेहरू के पुराने कर्मचारी “एस.डी.उपाध्याय” ने एक हिन्दी का पत्र नेहरू को सौंपा जिसके कारण नेहरू उस सन्यासिन को एक इण्टरव्यू देने को राजी हुए।
चूँकि देश तब आजाद हुआ ही था और काम बहुत था।
नेहरू ने अधिकतर बार इण्टरव्यू आधी रात के समय ही दिये।
मथाई के शब्दों में – एक रात मैने उसे पीएम हाऊस से निकलते देखा, वह बहुत ही जवान, खूबसूरत और दिलकश थी।

एक बार नेहरू के लखनऊ दौरे के समय श्रद्धा माता उनसे मिली और उपाध्याय जी हमेशा की तरह एक पत्र लेकर नेहरू के पास आये।
नेहरू ने भी उसे उत्तर दिया, फिर अचानक एक दिन श्रद्धा माता गायब हो गईं और किसी के ढूँढे से नहीं मिलीं।
नवम्बर १९४९ में बेंगलूर के एक कॉन्वेण्ट से एक सुदर्शन सा आदमी पत्रों का एक बण्डल लेकर आया।
उसने कहा कि उत्तर भारत से एक युवती उस कॉन्वेण्ट में कुछ महीने पहले आई थी और उसने एक बच्चे को जन्म दिया।
उस युवती ने अपना नाम पता नहीं बताया और बच्चे के जन्म के तुरन्त बाद ही उस बच्चे को वहाँ छोड़कर गायब हो गई थी।
उसकी निजी वस्तुओं में हिन्दी में लिखे कुछ पत्र बरामद हुए जो प्रधानमन्त्री द्वारा लिखे गये हैं।

पत्रों का वह बण्डल उस आदमी ने अधिकारियों के सुपुर्द कर दिया।

मथाई लिखते हैं – मैने उस बच्चे और उसकी माँ की खोजबीन की काफी कोशिश की, लेकिन कॉन्वेण्ट की मुख्य मिस्ट्रेस, जो कि एक विदेशी महिला थी, बहुत कठोर अनुशासन वाली थी और उसने इस मामले में एक शब्द भी किसी से नहीं कहा…..
लेकिन मेरी इच्छा थी कि उस बच्चे का पालन-पोषण मैं करूँ और उसे रोमन कैथोलिक संस्कारों में बड़ा करूँ।
ताकि उसे अपने पिता का नाम कभी भी मालूम न हो….!
लेकिन विधाता को यह मंजूर नहीं था….!

खैर… हम बात कर रहे थे राजीव गाँधी की।जैसा कि हमें मालूम है राजीव गाँधी ने, तूरिन (इटली) की महिला “सानिया माइनो” से विवाह करने के लिये अपना तथाकथित “पारसी धर्म” छोड़कर “कैथोलिक ईसाई” धर्म अपना लिया था।
राजीव गाँधी बन गये थे “रोबेर्तो” और उनके दो बच्चे हुए, जिसमें से लड़की का नाम था…..
“बियेन्का” और लड़के का “रॉल”।
बडी ही चालाकी से भारतीय जनता को बेवकूफ बनाने के लिये राजीव-सोनिया का हिन्दू रीतिरिवाजों से पुनर्विवाह करवाया गया…..
और बच्चों का नाम “बियेन्का” से बदलकर “प्रियंका” और “रॉल” से बदलकर “राहुल” कर दिया गया…..!
बेचारी भोली-भाली आम जनता….!

प्रधानमन्त्री बनने के बाद राजीव गाँधी ने….
लन्दन की एक प्रेस कॉन्फ्रेन्स में अपने आप को.. “पारसी की सन्तान” बताया था। जबकि….. पारसियों से उनका कोई लेना-देना ही नहीं था।
क्योंकि वे तो एक “मुस्लिम” की सन्तान थे जिसने नाम बदलकर “पारसी उपनाम” रख लिया था।
हमें बताया गया है कि राजीव गाँधी केम्ब्रिज विश्वविद्यालय के स्नातक थे, यह अर्धसत्य है…! सच तो ये है कि,
राजीव केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में मेकेनिकल इंजीनियरिंग के छात्र थे,
लेकिन उन्हें वहाँ से बिना किसी डिग्री के निकलना पड़ा था….😉
क्योंकि वे लगातार तीन साल फेल हो गये थे।😃

लगभग यही हाल सानिया माइनो का था…..!
हमें यही बताया गया है कि वे भी….
केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से स्नातक हैं।
जबकि सच्चाई यह है कि…..
सोनिया स्नातक हैं ही नहीं….!
वे केम्ब्रिज में पढने जरूर गईं थीं लेकिन केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में नहीं।
सोनिया गाँधी केम्ब्रिज में अंग्रेजी सीखने का एक कोर्स करने गई थी, ना कि विश्वविद्यालय में।
(यह बात हाल ही में लोकसभा सचिवालय द्वारा माँगी गई जानकारी के तहत खुद सोनिया गाँधी ने मुहैया कराई है, उन्होंने बड़े ही मासूम अन्दाज में कहा कि उन्होंने कब यह दावा किया था कि वे केम्ब्रिज से स्नातक हैं। अर्थात् उनके चमचों ने यह बेपर की खबर उड़ाई थी।)
क्रूरता की हद तो यह थी कि राजीव का अन्तिम संस्कार हिन्दू रीति रिवाजों के तहत किया गया।
ना ही पारसी तरीके से ना ही मुस्लिम तरीके से।

इसी नेहरू खानदान की भारत की जनता पूजा करती है।
एक इटालियन महिला जिसकी एकमात्र योग्यता यह है कि वह इस खानदान की बहू है…..
आज देश की सबसे बडी पार्टी की कर्ताधर्ता है… और रॉल को भारत का भविष्य बताया जा रहा है।
मेनका गाँधी को विपक्षी पार्टियों द्वारा हाथोंहाथ इसीलिये लिया था कि वे नेहरू खानदान की बहू हैं।
इसलिये नहीं कि वे कोई समाजसेवी या प्राणियों पर दया रखने वाली हैं….?
और यदि कोई “सोनिया माइनो” की तुलना मदर टेरेसा या एनीबेसेण्ट से करता है तो….
उसकी बुद्धि पर तरस खाया जा सकता है।😂

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देने वाला कौन?


देने वाला कौन?

Santosh Chaturvedi

• एक लकड़हारा रात-दिन लकड़ियां काटता, मगर कठोर परिश्रम के बावजूद उसे आधा पेट भोजन ही मिल पाता था। एक दिन उसकी मुलाकात एक साधु से हुई। लकड़हारे ने साधु से कहा कि जब भी आपकी प्रभु से मुलाकात हो जाए, मेरी एक फरियाद उनके सामने रखना और मेरे कष्ट का कारण पूछना।

• कुछ दिनों बाद उसे वह साधु फिर मिला। लकड़हारे ने उसे अपनी फरियाद की याद दिलाई तो साधु ने कहा कि- प्रभु ने बताया हैं कि लकड़हारे की आयु 60 वर्ष हैं और उसके भाग्य में पूरे जीवन के लिए सिर्फ पाँच बोरी अनाज हैं, इसलिए प्रभु उसे थोड़ा अनाज ही देते हैं ताकि वह 60 वर्ष तक जीवित रह सके।

• समय बीता। साधु उस लकड़हारे को फिर मिला तो लकड़हारे ने कहा- ऋषिवर…!! अब जब भी आपकी प्रभु से बात हो तो मेरी यह फरियाद उन तक पहुँचा देना कि वह मेरे जीवन का सारा अनाज एक साथ दे दें, ताकि कम से कम एक दिन तो मैं भरपेट भोजन कर सकूं।

• अगले दिन साधु ने कुछ ऐसा किया कि लकड़हारे के घर ढ़ेर सारा अनाज पहुँच गया। लकड़हारे ने समझा कि प्रभु ने उसकी फरियाद कबूल कर उसे उसका सारा हिस्सा भेज दिया हैं। उसने बिना कल की चिंता किए, सारे अनाज का भोजन बनाकर फकीरों और भूखों को खिला दिया और खुद भी भरपेट खाया।

• लेकिन अगली सुबह उठने पर उसने देखा कि उतना ही अनाज उसके घर फिर पहुंच गया हैं। उसने फिर गरीबों को खिला दिया। फिर उसका भंडार भर गया। यह सिलसिला रोज-रोज चल पड़ा और लकड़हारा लकड़ियां काटने की जगह गरीबों को खाना खिलाने में व्यस्त रहने लगा।

• कुछ दिन बाद वह साधु फिर लकड़हारे को मिला तो लकड़हारे ने कहा- ऋषिवर! आप तो कहते थे कि मेरे जीवन में सिर्फ पाँच बोरी अनाज हैं, लेकिन अब तो हर दिन मेरे घर पाँच बोरी अनाज आ जाता हैं।

• साधु ने समझाया, तुमने अपने जीवन की परवाह ना करते हुए अपने हिस्से का अनाज गरीब व भूखों को खिला दिया, इसीलिए प्रभु अब उन गरीबों के हिस्से का अनाज तुम्हें दे रहे हैं।

• कथासार- किसी को भी कुछ भी देने की शक्ति हम में है ही नहीं, हम देते वक्त ये सोचते हैं, की जिसको कुछ दिया तो ये मैंने दिया!

• दान, वस्तु, ज्ञान, यहाँ तक की अपने बच्चों को भी कुछ देते दिलाते हैं तो कहते हैं मैंने दिलाया। वास्तविकता ये है कि वो उनका अपना है आप को सिर्फ परमात्मा ने निहित मात्र बनाया हैं उन तक उनकी जरूरतों तक पहुचाने के लिये तो निहित होने का घमंड कैसा??

• दान किए से जाए दुःख, दूर होएं सब पाप, प्रभु आकर द्वार पे, दूर करें संताप!!

 

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कर्ज़


कर्ज़ ⭕

Sanjay Gupta

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🔷 एक सेठ जी बहुत ही दयालु थे । धर्म-कर्म में यकीन करते थे । उनके पास जो भी व्यक्ति उधार मांगने आता, वे उसे मना नहीं करते थे । सेठ जी मुनीम को बुलाते और जो उधार मांगने वाला व्यक्ति होता उससे पूछते कि “भाई ! तुम उधार कब लौटाओगे ? इस जन्म में या फिर अगले जन्म में ?”
🔷 जो लोग ईमानदार होते वो कहते – “सेठ जी ! हम तो इसी जन्म में आपका कर्ज़ चुकता कर देंगे ।” और कुछ लोग जो ज्यादा चालक व बेईमान होते वे कहते – “सेठ जी ! हम आपका कर्ज़ अगले जन्म में उतारेंगे ।” और अपनी चालाकी पर वे मन ही मन खुश होते कि “क्या मूर्ख सेठ है ! अगले जन्म में उधार वापसी की उम्मीद लगाए बैठा है ।” ऐसे लोग मुनीम से पहले ही कह देते कि वो अपना कर्ज़ अगले जन्म में लौटाएंगे और मुनीम भी कभी किसी से कुछ पूछता नहीं था । जो जैसा कह देता मुनीम वैसा ही बही में लिख लेता ।
🔷 एक दिन एक चोर भी सेठ जी के पास उधार मांगने पहुँचा । उसे मालूम था कि सेठ अगले जन्म तक के लिए रकम उधार दे देता है । हालांकि उसका मकसद उधार लेने से अधिक सेठ की तिजोरी को देखना था । चोर ने सेठ से कुछ रुपये उधार मांगे, सेठ ने मुनीम को बुलाकर उधार देने को कहा । मुनीम ने चोर से पूछा – “भाई ! इस जन्म में लौटाओगे या अगले जन्म में ?”
🔷 चोर ने कहा – “मुनीम जी ! मैं यह रकम अगले जन्म में लौटाऊँगा ।”
🔷 मुनीम ने तिजोरी खोलकर पैसे उसे दे दिए । चोर ने भी तिजोरी देख ली और तय कर लिया कि इस मूर्ख सेठ की तिजोरी आज रात में उड़ा दूँगा । वो रात में ही सेठ के घर पहुँच गया और वहीं भैंसों के तबेले में छिपकर सेठ के सोने का इन्तजार करने लगा । अचानक चोर ने सुना कि भैंसे आपस में बातें कर रही हैं और वह चोर भैंसों की भाषा ठीक से समझ पा रहा है ।
🔷 एक भैंस ने दूसरी से पूछा – “तुम तो आज ही आई हो न, बहन !” उस भैंस ने जवाब दिया – “हाँ, आज ही सेठ के तबेले में आई हूँ, सेठ जी का पिछले जन्म का कर्ज़ उतारना है और तुम कब से यहाँ हो ?” उस भैंस ने पलटकर पूछा तो पहले वाली भैंस ने बताया – “मुझे तो तीन साल हो गए हैं, बहन ! मैंने सेठ जी से कर्ज़ लिया था यह कहकर कि अगले जन्म में लौटाऊँगी । सेठ से उधार लेने के बाद जब मेरी मृत्यु हो गई तो मैं भैंस बन गई और सेठ के तबेले में चली आयी । अब दूध देकर उसका कर्ज़ उतार रही हूँ । जब तक कर्ज़ की रकम पूरी नहीं हो जाती तब तक यहीं रहना होगा ।”
🔷 चोर ने जब उन भैंसों की बातें सुनी तो होश उड़ गए और वहाँ बंधी भैंसों की ओर देखने लगा । वो समझ गया कि उधार चुकाना ही पड़ता है, चाहे इस जन्म में या फिर अगले जन्म में उसे चुकाना ही होगा । वह उल्टे पाँव सेठ के घर की ओर भागा और जो कर्ज़ उसने लिया था उसे फटाफट मुनीम को लौटाकर रजिस्टर से अपना नाम कटवा लिया ।
🔶 हम सब इस दुनिया में इसलिए आते हैं, क्योंकि हमें किसी से लेना होता है तो किसी का देना होता है । इस तरह से प्रत्येक को कुछ न कुछ लेने देने के हिसाब चुकाने होते हैं । इस कर्ज़ का हिसाब चुकता करने के लिए इस दुनिया में कोई बेटा बनकर आता है तो कोई बेटी बनकर आती है, कोई पिता बनकर आता है तो कोई माँ बनकर आती है, कोई पति बनकर आता है तो कोई पत्नी बनकर आती है, कोई प्रेमी बनकर आता है तो कोई प्रेमिका बनकर आती है, कोई मित्र बनकर आता है तो कोई शत्रु बनकर आता है, कोई पढ़ोसी बनकर आता है तो कोई रिस्तेदार बनकर आता है । चाहे दुःख हो या सुख हिसाब तो सबको देने ही होते हैं ।

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आगरा में एक शाम हर रोज की तरह


आगरा में एक शाम हर रोज की तरह तंग और बदनाम गलियों में शाम से ही ‘रंगीन रातों ‘ का आगाज हो चुका था। कोठों से श्रृंगार रस की स्वर लहरियाँ उठ रहीं थीं ।
ऐसी ही गली से दैववश साधारण वस्त्रों में एक असाधारण पुरुष गुजर रहा था। साधारण नागरिकों के वस्त्रों में भी उसके चेहरे की आभा उसके तपस्वी व्यक्तित्व होने की घोषणा कर रही थी। वह कुछ गुनगुनाते हुये जा रहा था।
“उफ ये आखिरी पंक्ति पूरी ही नहीं हो पा रही है इतने दिनों से” वह झुंझलाकर स्वगत बड़बड़ाया ।
और तभी रूप और संगीत के उस बाजार के एक कोठे से एक मधुर स्वर उठा। वह उस आवाज को सुनकर जैसे चौंक उठा। लंबे लंबे डग भरते उसके पैर सहसा ठिठक गये ।
ऐसी अद्भुत आवाज ?
रूप और वासना के इस बाजार में ??
उसके कदम स्वरों की दिशा में यंत्रचलित अवस्था में खिंचने लगे ।
एक गणिका का कोठा।
और फिर उपस्थित हो गया एक अद्भुत दृश्य ..
बदनाम कोठे के नीचे एक खड़ा एक पुरुष, कर्णगह्वरों से होकर आत्मा की गहराइयों तक उतरती स्वरलहरियों में डूबा, भाव विभोर और अर्धनिमीलित नेत्रों से अपने अश्रुओं को उस आवाज पर न्योछावर सा करता हुआ।
कुछ क्षणों तक वह सोच विचार करता खड़ा रहा और फिर कुछ निश्चय कर कोठे की सीढ़ियां चढ़ने लगा।
पुरुष ने गणिका पर दृष्टिपात किया।
चंपक वर्ण, तीखी नासिका, उत्फुल्ल अधर, , क्षीण कटि और जगमगाते वस्त्राभूषणों में लिपटा संतुलित गदराया हुआ शरीर।
परंतु सर्वाधिक विचित्र थी उसकी आंखें। बड़ी बड़ी आंखें जिनमें एक अबूझ गहराई थ जो उसके गणिका सुलभ चंचलता से मेल नहीं खातीं थीं।
जब अंतिम व्यक्ति भी चला गया तब वह आगुंतक पुरुष की ओर उन्मुख हुई
“ये नाचीज आपकी क्या खिदमत कर सकती है हुजूर? ”
“तुम्हारा नाम क्या है?” बिना दृष्टि हटाये हुए पुरुष ने पूछा।
“रामजनी बाई”
“तुम्हारी आवाज की तरह तुम्हारा सौंदर्य भी अद्भुत है बाई।”
“शुक्रिया, आइये तशरीफ़ रखिये” उसने अपने ग्राहक को एक मसनद पर आमंत्रित किया।
आगुंतक अपने स्थान पर अविचल रहे।
” नहीं, मैं तो यहां नहीं बैठ सकूँगा पर क्या तुम मेरे साथ चलकर मेरे ठाकुर के लिए गा सकोगी?” आगुंतक ने गंभीर स्वर में पूछा ।
“जैसा हुजूर चाहें। पर ये नाचीज हवेलियों पर मुजरा करने के लिये 100 अशर्फियाँ लेती है।” तिरछी कुटिल चितवन के साथ गणिका ने अपना शुल्क बताया।
पुरुष शुल्क सुनकर भी अप्रभावित रहा और बिना कुछ कहे अपने अंगरखे को टटोला और अशर्फियों से भरी थैली गणिका की ओर उछाल दी ।
कुछ देर बाद मथुरा की ओर दो घोडागाड़ियाँ जा रहीं थीं । एक गाड़ी में तबलची , सारँगीवान और सितारवादक अपने साजों के साथ ठुंसे हुये थे और दूसरी गाड़ी में गणिका अपने उस असाधारण ग्राहक के साथ बैठी थी ।
“आपके ठाकुर का ठिकाना क्या है ?” वेश्या ने पूछा ।
“ब्रज” संक्षिप्त उत्तर आया ।
क्षणिक चुप्पी के बाद पुनः गणिका ने कटाक्षपूर्वक पूछा,
“और आपका नाम?”
“कृष्णदास”
“आपके ठाकुर क्या सुनना पसंद करेंगे ?”
“कुछ भी जो ह्रदय से गाया जाये”, पुरुष रहस्यपूर्ण ढंग से मुस्कुराया।
“फिर भी?”, उलझी हुई गणिका ने पुनः आग्रह किया ।
“अच्छा ठीक है, तुम मेरे ठाकुर को यह सुनाना” उन्होंने अपने मधुर गंभीर स्वर में गुनगुनाना शुरू कर दिया।
“अरे ये तो भजन है।” गणिका बोल उठी।
“हाँ, तुम्हें इसे गाने में कठिनाई तो नहीं होगी?” स्वरों को रोककर वह फिर मुस्कुराया ।
भजन ब्रज भाषा में था और बहुत सुंदर था ।
“किसने लिखा है ?”
“मैंने” उन्होंने जवाब दिया।
“ओह तो ये कविवर इस भजन को मेरे माध्यम से अपने मालिक को सुनाकर उनकी कृपा प्राप्त करना चाहते हैं ।” गणिका ने सोचा ।
पुरुष पुनः अपना भजन गुनगुनाने लगा और गणिका तन्मयता से सुनकर शब्दों, ताल, राग, आरोह अवरोह आदि को स्मृतिबद्ध करती रही ।
अंततः 5 घंटे बाद लगभग अर्धरात्रि से कुछ पूर्व उन्होंने मथुरा में प्रवेश किया और कुछ पलों बाद पुरुष के निर्देशानुसार एक मंदिर के सामने गाड़ियां रोक दी गयीं।
पुरुष नीचे उतरा और सभीको नीचे उतरने का निर्देश दिया। वह स्वयं मंदिर के सिंहद्वार की ओर बढ़ा और जेब से कुंजी निकालकर उसकी सहायता से कपाट खोल दिये ।
“अंदर आओ” उसने इशारा किया ।
“मंदिर में?” गणिका आश्चर्यचकित व संकुचित हो उठी ।
“अंदर आ जाओ, संकुचित होने की आवश्यकता नहीं है ” पुरुष ने साधिकार आदेश दिया ।
उलझन में भरी गणिका और उसकी मंडली अंदर आ गयी।
“मैं चादरें और मसनद बिछवाता हूँ, तुम अपने साज जमा लो”
“यहां? यह एक मंदिर है । लोग क्या कहेंगे हुजूर ??” गणिका अब भयग्रस्त हो उठी ।
“कोई कुछ नहीं कह सकेगा। मेरे ठाकुर ने मुझे सारे अधिकार दे रखे हैं।” उन्होंने सबको आश्वस्त करते हुए कहा ।
“सच बताइये आप कौन हैं?”
“इस मन्दिर का मुख्य प्रबंधनकर्ता और मुख्याधिकारी कृष्णदास” उन्होंने उत्तर दिया ।
गणिका आश्वस्त तो हुई परंतु उसकी उलझन मिटी नहीं। कैसा है ये व्यक्ति जो इस पवित्र स्थान का प्रयोग अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करनी के लिए कर रहा है और कैसा है इनका ‘ठाकुर’ जो इस पवित्र स्थान में मुजरा सुनने का आकांक्षी है?
इसी उधेड़बुन में डूबी वह अपना श्रंगार व्यवस्थित करने एक ओर चली गयी जबकि कृष्णदास व साजिंदे दीपों को प्रज्ज्वलित कर बिछावन बिछाने लगे।
अंततः साजिंदों ने अपने साज जमा लिये और गणिका भी अपने पूर्ण श्रंगार और मोहक रूप में प्रस्तुत थी।
“आपके ठाकुर नहीं पधारे अभी तक?” उसने अपनी मोहक मुस्कुराहट के साथ पूछा ।
“वे तो यहीं हैं ”
“कहाँ?”
इस प्रश्न के उत्तर में कृष्णदास उठे, गर्भगृह की ओर बढ़े और पट खोल दिये।
वहां कान्हाजी अपने पूर्णश्रृंगार में विराजमान थे ।
“यही हैं मेरे ठाकुर”
हतप्रभ स्त्री की निगाहें कृष्ण के श्रीविग्रह से टकराईं।
वह चित्रवत जड़ हो गई, कृष्ण छवि में खो गई, बिक गई।
जन्म जन्मांतरों के पुण्य प्रकट हो उठे।
समय उन पलों में जैसे ठहर गया ।
“गाओ देवी, कान्हा तुम्हें सुनने का इंतजार कर रहे हैं ” कृष्णदास की गंभीर वाणी गूंजी ।
गणिका के लिये जैसे समस्त संसार अदृश्य हो गया और वह बावली हो उठी। उसकी आँखों में में केवल कृष्ण की छवि थी और कर्ण गह्वरों में सिर्फ एक ध्वनि ..
“कान्हा तुम्हें सुनने का इंतजार कर रहे हैं ”
उसकी आंखें भर आईं और आत्मा की गहराइयों से मधुर तान फूट निकली।
साजिंदों ने स्वर छेड़ दिये।
कृष्णदास के सिखाये भजन के स्वर गूंज उठे।

“मो मन गिरिधर छबि पै अटक्यो।”
स्त्री उन शब्दों में जैसेबडूब गई। वह बार बार उन्हीं पंक्तियों को दुहरा रही थी।
“मो मन गिरिधर छबि पै अटक्यो।”

संगीत की ध्वनि, भावविभोर स्वर .. लोगों की निद्रा टूट गयी और वे आश्चर्यचकित मंदिर में आने लगे।
दृश्य अवांक्षित परन्तु अपूर्व था।
जनवृन्द का सात्विक रोष गणिका के भावसमुद्र में उतराते शब्दों के साथ बह गया।
गणिका ने भजन की अगली पंक्तियाँ उठाईं।

“ललित त्रिभंग चाल पै चलि कै”
“ललित त्रिभंग चाल पै चलि कै
चिबुक चारु गडि ठठक्यो”

मो मन गिरिधर छबि पै अटक्यो।
मो मन गिरिधर छबि पै अटक्यो।।

समस्त जन उन क्षणों में, उन भावभरे शब्दों में जैसे कृष्ण का साक्षात दर्शन कर रहे थे। गणिका आगे बढ़ी-

“सजल स्याम घन बरन लीन ह्वै,
“सजल स्याम घन बरन लीन ह्वै
फिर चित अनत न भटक्यो।”

लोगों की आंसुओं की धारायें बह उठी। समस्त जनवृन्द गा उठा, एक बार, दो बार, बार बार …

“….फिर चित अनत न भटक्यो ….
..….फिर चित अनत न भटक्यो…
…..फिर चित अनत न भटक्यो

गणिका अपने ही भावसंसार में थी। भावों की चरमावस्था में उसकी आंखें कृष्ण की आंखों से जा मिलीं।
गणिका ने और गाना चाहा पर उसके होंठ कुछ थरथराकर शांत हो गये और आंखें कृष्ण की आंखों में अटक गयीं।
कृष्ण की आंखों में उसे आमंत्रण दिखाई दे रहा था, उसकी आत्मा विकल हो उठी और अपने स्थान पर बैठे ही बैठे उसने अपनी भुजा कातर मुद्रा में कृष्ण की ओर फैला दी।
उसने कान्हाजी के चेहरे पर मुस्कुराहट देखी और वह पूर्ण हो उठी। डबडबाई आंखों से अंततः अश्रुओं की दो धाराएं बह निकलीं और अगले ही क्षण वह भूमि पर निश्चेष्ट होकर गिर गई ।
भीड़ शांत स्तब्ध हो गई । इस गहन स्तब्धता को कृष्णदास की पगध्वनि ने भंग किया। उन्होंने रामजनी की निश्चल देह को भुजाओं में उठाया और कान्हा के श्रीविग्रह की ओर बढ़ चले ।
मृत देह कृष्ण चरणों में अर्पित हुई ।
जीवनपुष्प कृष्णार्पित हुआ ।
जीवन, निर्माल्य बनकर कृतार्थ हुआ ।

…..और डबडबाई आंखों से कृष्णदास ने अपने अधूरे भजन की पंक्तियाँ पूर्ण कीं –

‘कृष्णदासकिएप्राननिछावर,
यह
तनजगसिर_पटक्यो।।

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ગુજરાતી સાહિત્યની રચનાઓ … વાંચવી ગમશે …
બે કે ત્રણ લીટી ઘણું કહી જાય છે …
👍👍

થોડા two લાઇનર્સ

સ્વપ્ન એટલે…
તારા વગર,
તને મળવું …

“એક નફરત છે,”
જે લોકો
“એક પળમાં સમજી” જાય છે,

અને

“એક પ્રેમ છે,”
જેને “સમજવામાં વર્ષો”
નીકળી જાય છે.

ક્યાંક તડકો દેખાય તો કહેજોને…

રૂ જેવી હલકી અને ભીંજાઇ ગયેલી

ગેરસમજોને સૂકવવી છે…

સંબંધોની ક્યારેય પરીક્ષા ન લેશો…

સામેવાળા નાપાસ થશે તો તમે જ દુઃખી થશો.

શિયાળો એટલે
સતત કોઇની “હુંફ” ઇચ્છતી
એક પાગલ ઋતુ !

મળીએ ત્યારે,
આંખમાં હરખ

અને

અલગ પડતી વેળાએ
આંખમાં થોડી ઝાકળ..

અમુક રાતે
તમને ઊંઘ નથી આવતી

અને

અમુક રાતે
તમે સુવા નથી માંગતા.

વેદના અને આનંદ વચ્ચે
આ ફેર છે.

ક્યાંક અઢળક પણ ઓછું પડે,

અને

ક્યાંક એક સ્મિત અઢળક થઈ પડે….

સાંભળ્યું છે કે પ્લે સ્ટોરમાં બધું જ મળે છે…

ચાલો, વિખરાયેલા સંબંધો સર્ચ કરીએ…

પ્રેમ અને મોતની પસંદગી તો જોવો,

એકને હૃદય જોઈએ
તો બીજાને ધબકારા..

મેડીક્લેઈમ તો આખા શરીરનો હતો,

પણ ખાલી દિલ તુટ્યું હતું

એટલે ક્લેઈમ પાસ ન થયો ..!

ગરમ ચા જેવા મગજને ઠંડું કરવાનો ઉપાય ?

પ્રેમની પહોળી રકાબીમાં એને રેડી દેવો.

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🦋कुछ हँस के🦋*
🦋बोल दिया करो🦋
🦋कुछ हँस के🦋
🦋टाल दिया करो🦋,
🦋यूँ तो बहुत 🦋
🦋परेशानियां है🦋
🦋तुमको भी🦋
🦋मुझको भी,🦋
🦋मगर कुछ फैंसले🦋
🦋वक्त पे डाल दिया करो,🦋

🦋न जाने कल कोई 🦋
🦋हंसाने वाला मिले न मिले🦋
🦋इसलिये आज ही🦋
🦋हसरत निकाल लिया करो !!🦋

🦋समझौता🦋
🦋करना सीखिए..🦋
🦋क्योंकि थोड़ा सा🦋
🦋झुक जाना 🦋
🦋किसी रिश्ते को🦋
🦋हमेशा के लिए 🦋
🦋तोड़ देने से 🦋
🦋बहुत बेहतर है ।।।🦋

🦋किसी के साथ🦋
🦋हँसते-हँसते🦋
🦋उतने ही हक से 🦋
🦋 रूठना भी आना चाहिए !🦋
🦋अपनो की आँख का🦋
🦋पानी धीरे से 🦋
🦋पोंछना आना चाहिए !🦋

  *🦋रिश्तेदारी और🦋* 

🦋दोस्ती में 🦋
🦋कैसा मान अपमान ?🦋
🦋बस अपनों के 🦋
🦋दिल मे रहना 🦋
*🦋आना चाहिए…!🙏

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“टेढ़ी खीर”
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दो किशोरे लड़के जो बहुत गरीब थे, शहर और गाँव में घर-घर भोजन के लिए भीख मांग कर अपना जीवन-यापन करते थे. उनमे से एक जन्म से अंधा था, दूसरा उसकी सहायता करता था. इस प्रकार वे दोनों, भीख मांगने के लिए एक साथ घूमते-फिरते चक्कर लगाते.

एक दिन अंधा लड़का बीमार पड़ गया. उसके साथी ने कहा “यहीं रुको और आराम करो, मै दोनों के लिए भीख मांगने जाउंगा और तुम्हारे लिए भोजन लेकर वापस आउंगा”, और वह भीख मांगने के लिए चला गया.

उस दिन ऐसा हुआ की उस लड़के को भीख में बहुत स्वादिष्ट खीर मिली. उसने खीर पहले कभी नहीं खाई थी. उसे खीर खाने में बड़ा मजा आया. लेकिन दुर्भाग्य से उसके पास कोई पात्र नहीं था जिसमे वह अपने मित्र के लिए तरल खीर ला पाता. इसलिए वह सारी खीर खा गया.

जब वह अपने साथी के पास वापस पहुंचा, उसने कहा, “आज मुझे एक अद्भुत स्वादिष्ट भोजन, दूध से बनी खीर मिली, लेकिन मुझे बहुत अफ़सोस है कि मैं उसे तुम्हारे लिए नहीं ला सका.

अंधे लड़के ने उससे कहा नहीं ला सके-नहीं ला सके कोई बात नहीं पर यह तो बताओ कि “यह दूध से बनी खीर कैसी होती है?”

“यह सफ़ेद होती है, दूध जैसी सफ़ेद होती है.”

जन्म से अँधा होने के कारण वह समझ ना सका और पूछा “यह सफ़ेद क्या होता है?”

“तुम्हे पता नहीं, सफ़ेद क्या होता है?”

“नहीं मुझे नहीं पता.”

“यह काले का उलटा होता है.”

“पर यह काला क्या होता है?” वह यह भी नहीं जानता था कि – काला क्या होता है.

“ओह… सफ़ेद को समझने की कोशिश करो.” परन्तु वह अँधा लड़का कुछ नहीं समझ सका.

इसलिए उसके मित्र ने अपने चारों और देखा, और एक सफ़ेद बगुला देखकर उस पक्षी को पकड़ लाया और उस अंधे लड़के के पास लाकर अससे कहा, “सफ़ेद – इस पक्षी की तरह होता है.” आँख न होने के कारण, अंधा लड़का पक्षी के पास जाकर उसे अपनी अँगुलियों से छूने लगा. “ओह.. अब मै समझा कि सफ़ेद क्या होता है, सफ़ेद मुलायम होता है”.

“नहीं, बिलकुल नहीं, सफ़ेद का मुलायम से कोई लेना-देना नहीं, सफेद-सफ़ेद है. इसे समझने की कोशिश करो.

“लेकिन तुमने मुझे बताया कि यह बगुले के सामान होता है. मैंने बगुले को देखा-जांचा, यह मुलायम है. इसलिए ‘दूध की खीर’ मुलायम है. सफ़ेद माने मुलायम है.”

“नहीं तुमने समझा नहीं, फिर कोशिश करो.”

अंधे लड़के ने अपनी अंगुलियाँ बगुले के चोंच से सर – गर्दन – शरीर – पूंछ के सिरे तक घुमाकर उसे फिर से देखा-परखा. “अच्छा – अब समझ मै समझ गया, यह टेढ़ी है, खीर टेढ़ी होती है.” “खीर टेढ़ी है.”

वह समझ नहीं सकता क्योंकि उसके पास सफ़ेद को समझने की इन्द्रिय नहीं है.

उसी प्रकार यदि आपके पास सच्चाई को यथाभूत रूप में अनुभव करने की इन्द्रिय नहीं है, “सत्य” आपके लिए हमेशा “टेढ़ी खीर” ही रहेगी.

जिस व्यक्ति ने कभी सच्चाई का स्वाद न चखा हो उसे क्या मालूम सच्चाई क्या होती है. जितना-जितना सत्य जिस-जिस की अनुभूति पर उतरता है उसके लिए सत्य उतना होता है. उसके आगे की सच्चाई का स्वाद जब तक नहीं चख लेता तब तक वह सत्य होते हुए भी उसके लिए सुझाव मात्र है.

ह्रदय की तलस्पर्शी गहराइयों से क्षमस्व. – आनंद

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ગોળ અને ખાંડમાં શુ ફેર છે ?


ગોળ અને ખાંડમાં શુ ફેર છે ? ક્યુ સારું છે ? શા માટે ગોળ જ વપરાય ?? વગેરે માહિતી તમારા માટે…

લેખ શાંતિથી વાંચજો, વિચારજો અને અનુસરણ કરશો જી… usefull લાગે તો બીજાને share કરવાનું ભૂલતા નહિ…

આયુર્વેદમાં લખ્યું છે કે શરીરને ભોજનમાંથી મળવા વાળી જે સાકર છે, તે ઝડપથી પેટ માં પચે તેમાં રસ્તામાં કોઈ ખલેલ ન પડે. એવી કોઈ વસ્તુ ભોજનમાં નાં હોવી જોઈએ જે પાચન ક્રિયા ને રોકે….

આપણા દેશમાં એક ખુબ જ મોટી લેબોરેટરી છે જેનું નામ CDRI (CENTRAL Drug research institute) છે. ત્યાંના વૈજ્ઞાનિકો જણાવે છે કે ભોજન માં એવી કઈ કઈ વસ્તુ છે જે આપણા ભોજનની કુદરતી સાકર ને શરીર માટે મદદ રૂપ થવામાં અડચણ રૂપ થાય છે તો બધા વેજ્ઞાનિકો એ એક જ અવાજે જે વસ્તુનું નામ લીધું હતું,
તેનું નામ ખાંડ હતું.

તેની જગ્યાએ શું ખઈએ. જવાબ છે-ગોળ

ગોળ અને ખાંડમાં ફરક !

બન્નેમાં ઘણો ફરક છે, ખાંડ બનાવવા માટે શેરડીના રસમાં ૨૩ ઝેર (કેમિકલ) ભેળવવા પડે છે,અને તે બધા શરીર ની અંદર તો જાય છે પરંતુ બહાર નથી નીકળી શકતા અને ગોળ એક જ એવો છે કોઈ પણ ઝેર ભળ્યા સિવાય સીધે સીધો બને છે શેરડીના રસને ગરમ કરતા જાઓ,ગોળ બની જાય છે.તેમાં કઈ પણ ભેળવવું પડતું નથી.માત્ર તેમાં દૂધ ભેળવવાનું છે બીજું કઈ ભેળવવાનું નથી.

ગોળ થી પણ સારી વસ્તુ તમે ખાઈ શકો છો તેનું નામ છે કાકવી. જો તમે ક્યારેય ગોળ બનતા જોયું હશે તો ખબર પડી જશે.આ કાકવી ગોળ થી પણ સારી છે, કાક્વીને ડોલમાં ભરીને રાખો તે ખરાબ થતી નથી,૧ વર્ષ આરામ થી રાખી શકો છો. કાક્વી નો ભાવ પણ ગોળ જેટલો જ હોય છે.હવે તમે યા તો કાકવી ખાવ નહી તો ગોળ ખાવ. જો તમને કાકવી મળી રહે છે તો સમજી લો કે તમે રાજા છો, જો કાકવી ન મળે તો ગોળ મળી રહ્યો છે તો નાના રાજા છો.☺☺

ખાંડે આખી દુનિયાનો સત્યાનાશ કરી નાખ્યો છે. જ્યાર થી ખાંડ બનાવવા નું અને ખાવાનું શરુ કર્યું છે, ત્યારથી શરીરની હાલત ખરાબ છે.

રસપ્રદ જાણકારી💐👌👌

ભારત ને છોડી ને દુનિયા ના દેશો માં ગોળ અને કાકવી ની ખુબ જ માંગ છે. કેમ કે ખાંડ થી બનેલી મીઠાઈ જલ્દી ખરાબ થઇ જાય છે,તેમાં ગુણવત્તા હોતી નથી,પરંતુ ગોળ માંથી બનેલી મીઠાઈ ઘણા મહિના સુધી બગડતી નથી અને સારી ક્વોલેટી ની હોય છે.

તમને સાંભળીને નવાઈ લાગશે કે ગામમાં ગોળ નો ભાવ ૨૦-૩૦ રૂપિયા કિલો હોય છે.પરંતુ ઇજરાયલ માં ગોળનો ભાવ 170 રૂપિયા કિલો વેચાય છે.જર્મની માં ગોળનો ભાવ ૨૧૦ રૂપિયા કિલો છે, કેનેડામાં ભારત ના રૂપિયાના હિસાબે ગોળનો ભાવ ૩૩૦ રૂપિયા કિલો છે. આ બધા દેશોમાં ગોળ ની ખુબ જ માગ છે.ખાંડ ત્યાં સસ્તી છે કેમ કે તેમણે ખબર છે કે ખાંડ ઝેર છે અને ગોળ અમૃત છે.

ગોળ અને ખાંડ ની એક જ વાત યાદ રાખો. જો ખાંડ તમે ખાધી તો તેને પચાવવી પડે છે અને તેમાં એટલા નુકશાનકારક તત્વો હોય છે કે આસાની થી પચતા નથી.જો ગોળ ખાશો તો ગોળ એટલી સરસ જાત છે,કે જે પણ ગોળ સાથે તમે ખાધું છે, તેને ગોળ પચાવી દે છે.

ગોળ ભોજનને માત્ર ૪ કલાક ૪૦ મીનીટમાં પચાવી દે છે. એટલા માટે ભોજન સાથે ગોળ જરૂર ખાવ અને ખાંડ બિલકુલ ન ખાઓ.

આ સુત્રનું પાલન કરશો તો ડાયાબિટીસ, આર્થરાઈટીસ, અસ્થમા, ઓસ્તીમાલીસીસ જેવી ૧૪૮ ગંભીર બીમારીઓ જીંદગી માં ક્યારેય નહિ આવે.

તમે તમારી જીંદગી માં થી ખાંડ ને કાઢી નાખો કેમ કે આપણે જે કુદરતી ખાંડ ફળ માંથી કે બીજી વસ્તુઓ માંથી મળી રહે છે, આ ખાંડ તમને પચવા ના રસ્તા માં મોટી અડચણ છે.

તમે એક વાત યાદ રાખો જો ત્યાગવા ની કોઈ વસ્તુ છે ને સૌથી વધુ નફરત કરવી છે તો તે ખાંડથી કરો ગોળ ખાઓ કાકવી ખાઓ.

મહત્વની એક વાત..

ખાંડ આપણે ચીન વગેરે દેશમાંથી આયાત કરવી પડે છે, જ્યારે ગોળ આપના પોતાના દેશની પ્રોડક્ટ છે… તેને ભોજનમાં વિશેષ સ્થાન આપીએ… દેશને આર્થિક રીતે પણ સમૃદ્ધ કરીએ…

👌💐👌💐👌💐👌

કૃપયા આ પોસ્ટમાં કોઈપણ ફેરફાર કર્યા વગર જ SAHRE કરજો।..