Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

मैं शांति से बैठा अपना इंटरनेट चला रहा था…तभी कुछ मच्छरों ने आकर मेरा खून चूसना शुरू कर दिया तो स्वाभाविक प्रतिक्रिया में मेरा हाथ उठा और चटाक हो गया
और एक-दो मच्छर ढेर हो गए… फिर क्या था उन्होंने शोर मचाना शुरू कर दिया कि, मैं असहिष्णु हो गया हूँ..!!

मैंने पूछा.., “इसमें असहिष्णुता की क्या बात है..?”

वो कहने लगे.., “खून चूसना उनकी आज़ादी है..”

बस “आज़ादी” शब्द सुनते ही कईं बुद्धिजीवी उनके पक्ष में उतर आये और बहस करने लगे.. इसके बाद नारेबाजी शुरू हो गयी..!!

“तुम कितने मच्छर मारोगे.. हर घर से मच्छर निकलेगा..”

बुद्धिजीवियों ने अख़बार में तपते तर्कों के साथ बड़े-बड़े लेख लिखना शुरू कर दिया।

उनका कहना था कि ..,मच्छर देह पर मौज़ूद तो थे लेकिन खून चूस रहे थे ये कहाँ सिद्ध हुआ है ….
और अगर चूस भी रहे थे तो भी ये गलत तो हो सकता है लेकिन ‘देहद्रोह’ की श्रेणी में नहीं आता…

क्योंकि ये “मच्छर” बहुत ही प्रगतिशील रहे है..किसी की भी देह पर बैठ जाना इनका ‘सरोकार’ रहा है।

मैंने कहा.., “मैं अपना खून नहीं चूसने दूंगा बस।”

तो कहने लगे.., “ये “एक्सट्रीम देहप्रेम” है… तुम कट्टरपंथी हो, डिबेट से भाग रहे हो।”

मैंने कहा…, “तुम्हारा उदारवाद तुम्हें मेरा खून चूसने की इज़ाज़त नहीं दे सकता।”

इस पर उनका तर्क़ था कि…, भले ही यह गलत हो लेकिन फिर भी थोड़ा खून चूसने से तुम्हारी मौत तो नहीं हो जाती, लेकिन तुमने मासूम मच्छरों की ज़िन्दगी छीन ली..
“फेयर ट्रायल” का मौका भी नहीं दिया।

इतने में ही कुछ राजनेता भी आ गए और वो उन मच्छरों को अपने बगीचे की ‘बहार’ का बेटा बताने लगे।

हालात से हैरान और परेशान होकर मैंने कहा कि…, लेकिन ऐसे ही मच्छरों को खून चूसने देने से मलेरिया हो जाता है, और तुरंत न सही बाद में बीमार और कमज़ोर होकर मौत हो जाती है।

इस पर वो कहने लगे कि.., तुम्हारे पास तर्क़ नहीं हैं इसलिए तुम भविष्य की कल्पनाओं के आधार पर अपने ‘फासीवादी’ फैसले को सही ठहरा रहे हो…

मैंने कहा, “ये साइंटिफिक तथ्य है कि मच्छरों के काटने से मलेरिया होता है… मुझे इससे पहले अतीत में भी ये झेलना पड़ा है.., साइंटिफिक शब्द उन्हें समझ नहीं आया..!!

तथ्य के जवाब में वो कहने लगे कि.., मैं इतिहास को मच्छर समाज के प्रति अपनी घृणा का बहाना बना रहा हूँ.. जबकि मुझे वर्तमान में जीना चाहिए।

इतने हंगामें के बाद उन्होंने मेरे ही सिर माहौल बिगाड़ने का आरोप भी मढ़ दिया।

मेरे ख़िलाफ़ मेरे कान में घुसकर सारे मच्छर भिन्नाने लगे कि… ” हम लेके रहेंगे आज़ादी…”

मैं बहस और विवाद में पड़कर परेशान हो गया था…उससे ज़्यादा जितना कि, खून चूसे जाने पर हुआ।

आख़िरकार मुझे तुलसी बाबा याद आये.., “सठ सन विनय कुटिल सन प्रीती”

और फिर मैंने काला हिट उठाया और मंडली से मार्च तक, बगीचे से नाले तक उनके हर सॉफिस्टिकेटेड और सीक्रेट ठिकाने पर दे मारा…

एक बार तेजी से भिन्न-भिन्न हुई और फिर सब शांत….
उसके बाद से न कोई बहस न कोई विवाद, न कोई आज़ादी.. न कोई बर्बादी… न कोई क्रांति…. न कोई सरोकार…!!!!

अब सब कुछ ठीक है बस यही दुनिया की रीत है…!!!

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अवश्य पढ़ें बहुत सुंदर प्रेरणादायी कहानी 👌

एक गाय घास चरने के लिए एक जंगल में चली गई। शाम ढलने के करीब थी। उसने देखा कि एक बाघ उसकी तरफ दबे पांव बढ़ रहा है।
वह डर के मारे इधर-उधर भागने लगी। वह बाघ भी उसके पीछे दौड़ने लगा। दौड़ते हुए गाय को सामने एक तालाब दिखाई दिया। घबराई हुई गाय उस तालाब के अंदर घुस गई।
वह बाघ भी उसका पीछा करते हुए तालाब के अंदर घुस गया। तब उन्होंने देखा कि वह तालाब बहुत गहरा नहीं था। उसमें पानी कम था और वह कीचड़ से भरा हुआ था।
उन दोनों के बीच की दूरी काफी कम थी। लेकिन अब वह कुछ नहीं कर पा रहे थे। वह गाय उस कीचड़ के अंदर धीरे-धीरे धंसने लगी। वह बाघ भी उसके पास होते हुए भी उसे पकड़ नहीं सका। वह भी धीरे-धीरे कीचड़ के अंदर धंसने लगा। दोनों ही करीब करीब गले तक उस कीचड़ के अंदर फंस गए।
दोनों हिल भी नहीं पा रहे थे। गाय के करीब होने के बावजूद वह बाघ उसे पकड़ नहीं पा रहा था।
थोड़ी देर बाद गाय ने उस बाघ से पूछा, क्या तुम्हारा कोई गुरु या मालिक है ?
बाघ ने गुर्राते हुए कहा, मैं तो जंगल का राजा हूं। मेरा कोई मालिक नहीं। मैं खुद ही जंगल का मालिक हूं।
गाय ने कहा, लेकिन तुम्हारी उस शक्ति का यहां पर क्या उपयोग है?
उस बाघ ने कहा, तुम भी तो फंस गई हो और मरने के करीब हो। तुम्हारी भी तो हालत मेरे जैसी ही है।

गाय ने मुस्कुराते हुए कहा,…. बिलकुल नहीं। मेरा मालिक जब शाम को घर आएगा और मुझे वहां पर नहीं पाएगा तो वह ढूंढते हुए यहां जरूर आएगा और मुझे इस कीचड़ से निकाल कर अपने घर ले जाएगा। तुम्हें कौन ले जाएगा?

थोड़ी ही देर में सच में ही एक आदमी वहां पर आया और गाय को कीचड़ से निकालकर अपने घर ले गया।
जाते समय गाय और उसका मालिक दोनों एक दूसरे की तरफ कृतज्ञता पूर्वक देख रहे थे। वे चाहते हुए भी उस बाघ को कीचड़ से नहीं निकाल सकते थे, क्योंकि उनकी जान के लिए वह खतरा था।

गाय —-समर्पित ह्रदय का प्रतीक है।
बाघ —-अहंकारी मन है।
और
मालिक—- गुरु और ईश्वर का प्रतीक है।
कीचड़—- यह संसार है।
और
यह संघर्ष—- अस्तित्व की लड़ाई है।

किसी पर निर्भर नहीं होना अच्छी बात है, लेकिन मैं ही सब कुछ हूं, मुझे किसी के सहयोग की आवश्यकता नहीं है, यही अहंकार है, और यहीं से विनाश का बीजारोपण हो जाता है।

ईश्वर और गुरू से बड़ा इस दुनिया में सच्चा हितैषी कोई नहीं होता, क्योंकि वही अनेक रूपों में हमारी रक्षा करता है।
सुप्रभात🙏🙏🌹🌹

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एक व्यक्ति को रास्ते में यमराज मिल गये वो व्यक्ति उन्हें पहचान नहीं सका।यमराज ने पीने के लिए पानी मांगा उस व्यक्ति ने उन्हें पानी पिलाया।
पानी पीने के बाद यमराज ने बताया कि वो उसके प्राण लेने आये हैं लेकिन चूँकि तुमने मेरी प्यास बुझाई है इसलिए मैं तुम्हें अपनी किस्मत बदलने का एक मौका देता हूँ।
यह कहकर यमराज ने उसे एक डायरी देकर कहा तुम्हारे पास 5 मिनट का समय है इसमें तुम जो भी लिखोगे वही होगा लेकिन ध्यान रहे केवल 5 मिनट। उस व्यक्ति ने डायरी खोलकर देखा तो पहले पेज पर लिखा था कि उसके पड़ोसी की लाॅटरी निकलने वाली है और वह करोड़पति बनने वाला है। उसने वहाँ लिख दिया कि पड़ोसी की लाॅटरी ना निकले। अगले पेज पर लिखा था उसका एक दोस्त चुनाव जीतकर मंत्री बनने वाला है उसने लिख दिया कि वह चुनाव हार जाये।
इसी तरह वह पेज पलटता रहा और अंत में उसे अपना पेज दिखाई दिया। जैसे ही उसने कुछ लिखने के लिए अपना पैन उठाया यमराज ने उसके हाथों से डायरी ले ली और कहा वत्स तुम्हारा 5 मिनट का समय पूरा हुआ अब कुछ नहीं हो सकता। तुमने अपना पूरा समय दूसरों का बुरा करने में निकाल दिया और अपना जीवन खतरे में डाल दिया अतःतुम्हारा अन्त निश्चित है।
यह सुनकर वह व्यक्ति बहुत पछताया लेकिन सुनहरा समय निकल चुका था।

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धर्म और संस्कृति
ग्रुप की सादर प्रस्तुति

हँस जैन खण्डवा
98272 14427
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प्रभु की लीला
अपरम्पार
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एक दिन बालकृष्ण ने फल वाली पर भी कृपा की है। भगवान ने देखा की उसके द्वार पर कोई फलवाली फल बेच रही है। और आवाज लगते हुए जा रही है कोई फल ले लो री! कोई फल ले लो री।

भगवान जी ने जैसे ही सुना तो दौड़े दौड़े गए और बोले मैया-मैया मुझे ये फल) दे दे। मैया बोली की ठीक है लाला मैं दे दूंगी पर बदले में कुछ अनाज लेके आ जा।

कन्हैया कहते है ठीक है मैया।

भगवान अंदर गए है और अपने दोनों हाथो की मुट्ठी में अनाज भर कर लाते है। और दौड़े दौड़े नन्द भवन के अंदर से आते है। लेकिन रस्ते में सारा अनाज गिराते भी जा रहे है। जब तक मैया की पास पहुंचे केवल 2- 4 दाने ही बचे हैं।
फल बेचने वाली बोली की लाला क्या लेके आयो है ?

कृष्णा ने कहा मैया तेरे लिए बहुत सारा अनाज लेके आया हूँ। दोनों मुट्ठी में अनाज है मेरे।
मैया बोली अच्छा लाला दिखा मेरे को।

ज्यों ही कृष्ण ने अंजुली खोली तो केवल 2-4 दाने ही बचे थे। फल वाली बोली की लाला तू तो कहवे है की बहुत सारा आनाज लायो है। ये देख थोड़ा सा है।
भगवान बोले वहां से लेके बहुत सारा चला था पर रस्ते में सब गिर गयो मैया। मेरे छोटे छोटे हाथ है तो अंजुली के बीच से गिर गयो मैया।

भगवान की मीठी मीठी बाते सुनकर फल वाली मुस्कराने लगी और भगवान से 2-4 दाने ले लिए और उनको टोकरी में रख लिया। और बदले में मैया ने भगवान को सारे फल दे दिए। और मैया अब ये कहना भूल गई कोई फल ले लो री कोई फल ले लो री
मैया आवाज लगा रही है कोई श्याम ले लो री! कोई श्याम ले लो री।

जब वह फल वाली घर पहुचती है तो क्या देखती है जिस टोकरी में उसने अनाज के 2-4 दाने रखे थे। अनाज के दानों जगह वो टोकरी हीरे और मोतियों से भर गई थी। इस प्रकार भगवन ने फल वाली पर कृपा की है
भगवान कहते है तुम मुझे थोड़ा बहुत भी दोगे मैं तुम्हे बदले में हजार गुना वापिस करूँगा। वैसे मुझे किसी का कुछ लेने की जरुरत नहीं है। मैं भाव देखता हूँ। और उस भाव के बदले मैं सब कुछ अपने भक्त को दे देता हूँ।

बोलिए कृष्ण कन्हैया की जय !!

हँस जैन खण्डवा

धर्म और संस्कृति ग्रुप

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